UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 2 Structure and Physiography

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 2 Structure and Physiography (संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान)

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. नीचे दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर का चयन करें|
(i) करेवा भू-आकृति कहाँ पाई जाती है?
(क) उत्तरी-पूर्वी हिमालय
(ख) पूर्वी हिमालय
(ग) हिमाचल-उत्तरांचल हिमालय
(घ) कश्मीर हिमालय
उत्तर-(घ) कश्मीर हिमालय। |

(ii) निम्नलिखित में से किस राज्य में ‘लोकताक’ झील स्थित है?
(क) केरल
(ख) मणिपुर
(ग) उत्तरांचल (उत्तराखण्ड)
(घ) राजस्थान
उत्तर-(ख) मणिपुर।

(iii) अण्डमान और निकोबार को कौन-सा जल क्षेत्र अलग करता है?
(क) 11° चैनल ।
(ख) 10° चैनल
(ग) मन्नार की खाड़ी।
(घ) अण्डमान सागर
उत्तर-(ख) 10° चैनल। |

(iv) डोडाबेटा चोटी निम्नलिखित में से कौन-सी पहाडी श्रृंखला में स्थित है?
(क) नीलगिरि
(ख) काडमम
(ग) अनामलाई
(घ) नल्लामाला
उत्तर-(क) नीलगिरि।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30 शब्दों में दीजिए
(i) यदि एक व्यक्ति को लक्षद्वीप जाना हो तो वह कौन-से तटीय मैदान से होकर जाएगा और क्यों?
उत्तर-यदि किसी व्यक्ति को लक्षद्वीप जाना हो तो उसे पश्चिमी तटीय मैदान होकर जाना होगा, क्योंकि यही उसके लिए निकटतम दूरी वाला मार्ग होगा। यह द्वीप केरल तट से 280 किलोमीटर दूर है।

(ii) भारत में ठण्डा मरुस्थल कहाँ स्थित है? इस क्षेत्र की मुख्य श्रेणियों के नाम बताएँ।
उत्तरं-भारत में उत्तरी-पश्चिमी यो कश्मीर हिमालय क्षेत्र ठण्डा मरुस्थल कहलाता है। यहाँ वर्षभर तापमान निम्न रहने के कारण सम्पूर्ण क्षेत्र हिमाच्छादित रहता है, इसलिए यह निर्जन क्षेत्र ठण्डा मरुस्थल कहलाता है। वास्तव में यह क्षेत्र वृहत् हिमालय और कराकोरम श्रेणियों के बीच स्थित है। इस क्षेत्र में कराकोरम, जास्कर और लद्दाख श्रेणियाँ हैं। |

(iii) पश्चिमी तटीय मैदान पर कोई डेल्टा क्यों नहीं है?
उत्तर-पश्चिमी तट पर बहने वाली प्रमुख नदियाँ नर्मदा तथा ताप्ती हैं। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक छोटी-छोटी नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलकर अरब सागर में गिरती हैं। ये नदियाँ डेल्टा नहीं बनातीं। इसके निम्नलिखित कारण हैं

  1. ये नदियाँ सँकरे मैदान में बहकर आती हैं। इनका वेग अधिक होने के कारण ये नदियाँ तेज गति से बहती हैं।
  2. इन नदियों के मार्ग की ढाल प्रवणता अधिक होने के कारण ये तीव्र वेग से बहती हैं, जिससे इनके | मुहाने पर तलछट का निक्षेप न होने के कारण डेल्टा का निर्माण नहीं होता है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए
(i). अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूहों का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर- अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह ।
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(ii) नदी घाटी मैदान में पाए जाने वाली महत्त्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ कौन-सी हैं? इनका विवरण
उत्तर-नदी घाटी मैदानों का निर्माण नदियों द्वारा लाए गए अवसाद से हुआ है। ये मैदान दो प्रकार के होते हैं–खादर एवं बांगर। खादर मैदान नवीन जलोढ़ मृदा से तथा बांगर पुराने जलोढ़ से बने हैं। नदी घाटी मैदानों की उत्तरी सीमा पर्वतीय है, जिन्हें गिरिपाद मैदान कहते हैं, जो महीन मलबे और मोटे कंकड़ों से बने हैं। इन्हें भाबर कहते हैं। इनके दक्षिण में तराई के मैदान हैं। यहाँ नदियों का विस्तार अधिक हो जाता है तथा कहीं-कहीं दलदले बन जाते हैं। नदी घाटी मैदानों में बाढ़कृत मैदान पेनीप्लेन, ऊँचे टीले, गर्त, विसर्प, गोखुर झील, बालू रोधिका आदि प्रमुख स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं जो नदी की प्रौढ़ावस्था में बनने वाली अपरदनी और निक्षेपण स्थलाकृतियाँ हैं।

(iii) यदि आप बद्रीनाथ सुन्दरवन डेल्टा तक गंगा नदी के साथ-साथ चलते हैं तो आपके रास्ते में कौन-सी मुख्य स्थलाकृतियाँ आएँगी?’
उत्तर-बद्रीनाथ उत्तराखण्ड राज्य के मध्य हिमालय में चमोली जिले की फूलों की घाटी के समीप स्थित है। यदि हम बद्रीनाथ से गंगा के साथ-साथ सुन्दरवन डेल्टा के लिए चलें तो हमें कई प्रकार की भू-आकृतियों से होकर जाना होगा। पर्वतीय क्षेत्र में ऊँची-ऊँची चोटियाँ, गहरी घाटियों व तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों को पार करना पड़ेगा। इस मार्ग में गॉर्ज, V-आकार की घाटी और तीव्र ढाल मुख्य स्थलाकृतियाँ हमें मिलेंगी। हरिद्वार के पास हमारा पर्वतीय मार्ग समाप्त हो जाएगा और मैदानी मार्ग आरम्भ हो जाएगा। यहाँ पर तराई अथवा भाबर क्षेत्र से गुजरना पड़ेगा। इसके पश्चात् समतल मैदान पार करना होगा। इस मैदान में धरातल प्राय: समतल मिलेगा, कोई भी ऊँची श्रेणी नहीं मिलेगी। गंगा के टेढ़े विसर्पो और झीलों के साथ हम सुन्दरवन डेल्टा पर पहुंचेंगे। यह डेल्टा गंगा नदी द्वारा निर्मित है। यहाँ गंगा विभिन्न शाखाओं में विभक्त होकर इस डेल्टा का निर्माण करती है। यह डेल्टा 150 मीटर ऊँचा है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. हिमालय पर्वत की सर्वोच्च चोटी है
(क) एवरेस्ट
(ख) कंचनजंगा
(ग) K-2
(घ) नन्दादेवी
उत्तर-(क) एवरेस्ट।

प्रश्न 2. गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है
(क) चम्बल
(ख) यमुना
(ग) बेतवा
(घ) नर्मदा
उत्तर-(ख) यमुना।।

प्रश्न 3. नन्दा देवी शिखर किस पर्वत से सम्बन्धित है?
(क) नीलगिरि
(ख) सतपुड़ा
(ग) हिमालय
(घ) मैकाले
उत्तर-(ग) हिमालय।।

प्रश्न 4. भारत का सर्वोच्च शिखर कौन-सा है?
(क) गॉडविन ऑस्टिन
(ख) कंचनजंगा
(ग) नन्दा देवी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ख) कंचनजंगा।

प्रश्न 5. नाथूला दर्रा किस राज्य में स्थित है?
(क) अरुणाचल प्रदेश में ।
(ख) असोम में
(ग) सिक्किम में
(घ) मणिपुर में
उत्तर-(ग) सिक्किम में।

प्रश्न 6. शिवालिक पर्वत स्थित है
(क) उत्तरी भारत में
(ख) दक्षिणी भारत में
(ग) पूर्वी भारत में
(घ) पश्चिमी भारत में
उत्तर—(क) उत्तरी भारत में। ||

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. सर्वोच्च हिमालय किसे कहते हैं?
उत्तर–हिमालय पर्वत की सबसे उत्तरी पर्वत श्रृंखला सर्वोच्च हिमालय के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 2. भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित दरों के नाम बताइए।
उत्तर–भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित दरों के नाम निम्नलिखित हैं— (1) खैबर, (2) गोमल, (3) बोलन, (4) टोची, (5) कुर्रम।

प्रश्न 3. बोमडिला दर्रा भारत के किस पूर्वांचल राज्य में है?
उत्तर–बोमडिला दर्रा भारत के अरुणाचल प्रदेश नामक राज्य में स्थित है।

प्रश्न 4. हिमालय के दो प्रमुख दरों के नाम लिखिए।
उत्तर–हिमालय के दो प्रमुख दरों के नाम निम्नलिखित हैं (1) थांगला एवं (2) लिपुलेख।।

प्रश्न 5. हिमालय पर्वतमाला की तीन समानान्तर पर्वत-श्रृंखलाओं के नाम लिखिए।
उत्तर–हिमालय पर्वतमाला की तीन समानान्तर पर्वत-शृंखलाओं के नाम निम्नलिखित हैं–
1. महान् या बृहद् हिमालय अथवा हिमाद्रि हिमालय,
2. लघु हिमालय,
3. बाह्य हिमालय या शिवालिक हिमालय।

प्रश्न 6. हिमालय को भारत का प्रहरी क्यों कहा जाता है?
उत्तर–हिमालय पर्वत भारत की उत्तरी सीमा पर एक अभेद्य दीवार के रूप में सन्तरी की भाँति अडिग खड़ा है, जिस कारण हिमालय को भारत का प्रहरी कहा जाता है।

प्रश्न 7. मध्यवर्ती उच्च भूमि को किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर-मध्यवर्ती उच्च भूमि के उत्तर-पश्चिमी भाग को ‘मालवा कां पठार’, दक्षिणी उत्तर प्रदेश के भू-भाग को ‘बुन्देलखण्ड’ व ‘बघेलखण्ड’ तथा दक्षिणी बिहार में सम्मिलित भू-भाग को ‘छोटा नागपुर’ पठार के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 8, शिवालिक किसे कहते हैं? ।
उत्तर–हिमालय की दक्षिणतम श्रेणी को शिवालिक कहते हैं।

प्रश्न 9. पूर्वांचल किसे कहते हैं?
उत्तर- भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित पर्वत-श्रेणियाँ पूर्वांचल के नाम से प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 10. लघु हिमालय किसे कहते हैं? इसकी दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-महान् हिमालय के दक्षिण में स्थित पर्वतश्रेणी लघु या मध्य हिमालय कहलाती है। इसे ‘हिमाचल हिमालय’ कहा जाता है।

प्रश्न 11. हिमालय की तीन प्रमुख श्रेणियों के नाम लिखिए।
उत्तर-(1) महान् या हिमाद्रि हिमालय, (2) लघु या मध्य हिमालय, (3) बाह्य या शिवालिक हिमालय।

प्रश्न 12. हिमालय को नवीन वलित पर्वत कहने के तीन कारण बताइए।
उत्तर-हिमालय को नवीन वलित पर्वत कहा जाता है, इसके तीन प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  1. इस पर्वत का निर्माण अवसादी पदार्थ में वलन प्रक्रिया के द्वारा हुआ है।
  2. यह भूभाग वैज्ञानिक युग की नवीनतम उच्च पर्वत-शृंखला है।
  3. हिमालय पर्वत की युवा श्रेणियों में वर्तमान में भी उत्थान हो रहा है।

प्रश्न 13. कश्मीर हिमालय की प्रमुख विशेषता बताइए।
उत्तर-कश्मीर हिमालय का उत्तरी-पूर्वी भाग जो बृहत् हिमालय और कराकोरम श्रेणियों के बीच स्थित है, एक ठण्डा मरुस्थल है। हिमालय के इसी भाग में बृहत् हिमालये और पीरपंजाल के बीच विश्वप्रसिद्ध कश्मीर घाटी और डल झील स्थित हैं।

प्रश्न 14. करेवा क्या हैं?
उत्तर-करेवा झील के अवसाद हैं। इनका निर्माण कश्मीर हिमालय में चिकनी मिट्टी और दूसरे हिमोढ़ पर्वतों से हुआ है।

प्रश्न 15. पर्यटन की दृष्टि से कश्मीर हिमालय का क्या महत्त्व है?
उत्तर-कश्मीर और उत्तर-पश्चिमी हिमालय विलक्षण सौन्दर्य एवं खूबसूरत दृश्य स्थलों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ कई प्रसिद्ध तीर्थस्थल; जैसे-वैष्णोदेवी, अमरनाथ गुफा और चरार-ए-शरीफ भी पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 16. जलोढ़ मैदान का विस्तार बताइए।
उत्तर–जलोढ़ मैदान उत्तरी भारत में सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बहाकर लाए गए जलोढ़ निक्षेप से बना है। इसकी पूर्व से पश्चिमी लम्बाई, 3,200 किलोमीटर है तथा अधिकतम चौड़ाई 150 से 300 किमी है। इस मैदान में जलोढ़ का निक्षेप अधिकतम 1,000 से 2,000 मीटर गहरा है।।

प्रश्न 17, पामीर ग्रन्थि कहाँ स्थिति है? इससे निकली उत्तरी-पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी पर्वत श्रेणियों केनाम बताइए।
उत्तर–पामीर ग्रन्थि भारत के उत्तर में मध्य एशिया में स्थित है। इससे निकलने वाली उत्तरी-पूर्वी पर्वत श्रेणी तियानशान तथा दक्षिण-पूर्वी श्रेणी कराकोरम है।

प्रश्न 18. कराकोरम के दक्षिण में स्थित दो समानान्तर पर्वत श्रेणियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर-लद्दाख तथा जास्कर श्रेणियाँ कराकोरम के दक्षिण में स्थित समानान्तर श्रेणियाँ हैं।

प्रश्न 19. हिमालय की किन्हीं चार ऊँची चोटियों के नाम बताइए।
उत्तर-माउण्ट एवरेस्ट (सबसे ऊँची चोटी), कंचनजंगा, नन्दादेवी तथा धौलगिरि (उत्तराखण्ङ)।

प्रश्न 20. भारत का कौन-सा भौतिक भाग सबसे अधिक उपजाऊ है और क्यों?
उत्तर-भारत के उत्तरी विशाल मैदान सबसे अधिक उपजाऊ हैं। इसका कारण यह है कि यहाँ की जलोढ़ मिट्टी बहुत ही उपजाऊ है और सिंचाई की अच्छी सुविधाएँ एवं आदर्श जलवायु उपलब्ध है।

प्रश्न 21. उत्तरी मैदानों को कौन-कौन से नदी-तन्त्रों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर-(1) पश्चिम में सिन्धु नदी तन्त्र। (2) पूर्व में गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र।

प्रश्न 22. तराई प्रदेश कहाँ स्थित है? इसकी दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर–तराई प्रदेश भाबर के दक्षिण में स्थित है।
विशेषताएँ–(1) यह प्रदेश दलदली है। (2) यह घने वनों से ढका था किन्तु वर्तमान में यहाँ कृषि भूमि का विकास हो रहा है।

प्रश्न 23. पश्चिमी तटीय मैदानों को कौन-कौन से भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर-कोंकण (उत्तरी भाग), कन्नड़ (मध्य भाग) तथा मालाबार (दक्षिण भाग)। प्रश्न 24. पूर्वी तटीय मैदानों के उत्तरी तथा दक्षिणी भागों को किस-किस नाम से पुकारा जाता है? उत्तर-क्रमशः उत्तरी सरकार तथा कोरोमण्डल तट।

प्रश्न 25. भारत के पाँच भौतिक विभाग कौन-से हैं?
उत्तर–भारत के पाँच भौतिक विभाग हैं-(1) उत्तर के विशाल पर्वत, (2) उत्तर भारत के मैदान, (3) प्रायद्वीपीय पठार, (4) तटीय मैदान, (5) द्वीप समूह।

प्रश्न 26. पूर्वांचल बनाने वाली पाँच प्रमुख पहाड़ी श्रेणियों के नाम लिखिए।
उत्तर-पूर्वांचल बनाने वाली पाँच प्रमुख पहाड़ी श्रेणियाँ हैं-गारो, खासी, जयन्तिया, नागा तथा मिजो।

प्रश्न 27. भारत का कौन-सा भू-भाग प्राचीनतम है?
उत्तर-भारत का प्राचीनतम भू-भाग दक्षिण का पठार है। यह कठोर आग्नेय तथा रूपान्तरित शैलों से बना है। यह भाग प्राचीनतम गोण्डवानालैण्ड का भाग है।

प्रश्न 28. भारत के नवीन और प्राचीनतम पर्वतों का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर–नवीन या युवापर्वत–हिमालय।। प्राचीनतम पर्वत-अरावली।

प्रश्न 29. हिमालय के चार प्रमुख दरों के नाम लिखिए।
उत्तर-हिमालय में अनेक महत्त्वपूर्ण दरें हैं। कश्मीर में कराकोरम, हिमालय में शिपकीला, सिक्किम में नाथुला तथा अरुणाचल प्रदेश में बोमडिला दर्रा स्थित है।

प्रश्न 30. दून क्या है?
उत्तर-पर्वतीय क्षेत्र में अनुदैर्घ्य विस्तार में पाई जाने वाली समतल संरचनात्मक घाटियाँ दून कहलाती हैं। जैसे-देहरादून की घाटी।

प्रश्न 31. पश्चिमी घाट के दो दरों के नाम बताइए।
उत्तर-पश्चिमी घाट के दो दरों के नाम हैं-(1) भोरघाट तथा (2) थालघाट।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत के उत्तरी विशाल मैदान का निर्माण किस प्रकार हुआ ? ।
उत्तर-भारत का उत्तरी मैदान हिमालय तथा दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार के मध्य स्थित है। यह मैदान हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार से निकलकर उत्तर की ओर बहने वाली नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टियों से बना है। इन महीन मिट्टियों को जलोढ़क’ कहते हैं। उत्तरी मैदान जलोढ़कों द्वारा निर्मित एक समतल उपजाऊ भू-भाग है। प्राचीनकाल में इस मैदान के स्थान पर एक विशाल गर्त था। हिमालय पर्वतों के निर्माण के बाद हिमालय से निकलकर बहने वाली नदियों ने उस गर्त में गाद भरने शुरू किये। अनाच्छादन के कारकों ने हिमालय का अपरदन किया तथा भारी मात्रा में अवसाद उस गर्त में एकत्रित होते गये। क्रमशः वह गर्त अवसादों से पट गया तथा उत्तरी मैदान की रचना हुई।

प्रश्न 2, पश्चिमी तटीय मैदान की भौगोलिक स्थिति एवं विस्तार तथा उसकी तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या भारत के पश्चिमी तटीय भाग के दोनों नामों को स्थिति सहित लिखिए।
उत्तर-पश्चिमी तटीय मैदान एक सँकरी पट्टी के रूप में विस्तृत हैं। प्रायद्वीप के पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक इस मैदान का विस्तार है। इसकी औसत चौड़ाई 64 किमी है, जबकि नर्मदा एवं ताप्ती नदियों के मुहाने के निकट ये 80 किमी तक चौड़े हैं। इस मैदान के उत्तरी भाग को कोंकण तथा दक्षिणी भाग को मालाबार कहते हैं। यहाँ सघन जनसंख्या पायी जाती है। इनकी स्थिति का विवरण निम्नलिखित है|

1. कोंकण का मैदान इस मैदान का विस्तार दमन से लेकर गोआ तक 500 किमी की लम्बाई में | है। इस मैदान की चौड़ाई 50 से 60 किमी के बीच है तथा मुम्बई के निकट सबसे अधिक है।

2. मालाबार का तटीय मैदान–इस मैदान का विस्तार मंगलोर से लेकर कन्याकुमारी तक 500 किमी की लम्बाई में है। इस पर लैगून नामक छोटी-छोटी तटीय झीलें पायी जाती हैं। पश्चिमी तटीय मैदानों की प्रमुख तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • ये मैदान एक सँकरी पट्टी के रूप में विस्तृत हैं। गुजरात में ये अधिकतम चौड़े हैं तथा दक्षिण की
    ओर सँकरे हैं।
  • इस तट पर अनेक ज्वारनदमुख स्थित हैं जिनमें नर्मदा और ताप्ती के ज्वारनदमुख (एस्चुरी) मुख्य हैं।
  • दक्षिण में केरल में अनेक लैगून या पश्चजल स्थित हैं। उनके मुख पर बालूमिति या रोधिकाएँ स्थित हैं।

प्रश्न 3. पूर्वी तटीय मैदान की स्थिति, विस्तार तथा उसकी तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी किनारे पर बंगाल की खाड़ी के तट तक तथा पूर्वी घाट के मध्य प० बंगाल से लेकैर दक्षिण में कन्याकुमारी तक पूर्वी तटीय मैदानों का विस्तार है। तमिलनाडु में यह मैदान 100 से 120 किमी चौड़ा है। गोदावरी के डेल्टा के उत्तर में यह सँकरा है। कहीं-कहीं इसकी चौड़ाई 32 किमी तक है। इसकी तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यह मैदान पश्चिमी तटीय मैदान से अधिक चौड़ा है। नदियों के डेल्टाओं के निकट विशेष रूप से यह अधिक चौड़ा है।
  • नदी डेल्टाओं के मैंदान अत्यधिक उर्वर तथा सघन आबाद हैं। महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी यहाँ बहने वाली नदियाँ हैं।
  • डेल्टाओं में नदियों से अनेक नहरें निकाली गयी हैं, जो सिंचाई के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। यहाँ अनेक लैगून झीलें भी मिलती हैं, जिनमें ओडिशा की चिल्का, आन्ध्र प्रदेश की कोलेरू तथा तमिलनाडु की पुलीकट झीलें उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 4. उत्तरी पर्वत प्राचीर तथा प्रायद्वीपीय पठार में क्या अन्तर है?
उत्तर-उत्तरी पर्वत प्राचीर तथा प्रायद्वीपीय पठार में निम्नलिखित अन्तर हैं
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प्रश्न 5. हिमालय की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए। |
या हिमालय का निर्माण किस प्रकार हुआ ?
उत्तर-उच्चावच से तात्पर्य किसी भू-भाग के ऊँचे व नीचे धरातल से है। सभी प्रकार के पहाड़ी, पठारी वे मैदानी तथा मरुस्थलीय क्षेत्र मिलकर किसी क्षेत्र के उच्चावच का निर्माण करते हैं। उच्चावच की दृष्टि से भारत में अनेक विभिन्नताएँ मिलती हैं। इनका मूल कारण अनेक शक्तियों और संचलनों का परिणाम है, जो लाखों वर्ष पूर्व घटित हुई थीं। इसकी उत्पत्ति भूवैज्ञानिक अतीत के अध्ययन से स्पष्ट की जा सकती है। आज से 25 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप विषुवत रेखा के दक्षिण में स्थित प्राचीन गोण्डवानालैण्ड का एक भाग था। अंगारालैण्ड नामक एक अन्य प्राचीन भूखण्ड विषुवत रेखा के उत्तर में स्थित था। दोनों प्राचीन भूखण्डों के मध्य टेथिस नामक एक सँकरा, लम्बा, उथला सागर था। इन भूखण्डों की नदियाँ टेथिस में अवसाद जमा करती रहीं, जिससे कालान्तर में टेथिस सागर पट गया। पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण दोनों भूखण्ड टूटे। गोण्डवानालैण्ड से भारत का प्रायद्वीप अलग हो गया तथा भूखण्डों के टूटे हुए भाग विस्थापित होने लगे। आन्तरिक हलचलों से टेथिस सागर के अवसादों की परतों में भिंचाव हुआ और उसमें विशाल मोड़ पड़ गये। इस प्रकार हिमालय पर्वत-श्रृंखला की रचना हुई। इसी कारण हिमालय को वलित पर्वत कहा जाता है।

हिमालय की उत्पत्ति के बाद भारतीय प्रायद्वीप और हिमालय के मध्य एक खाई या गर्त शेष रह गया। हिमालय से उतरने वाली नदियों ने स्थल को अपरदन करके अवसादों के उस गर्त को क्रमश: भरना शुरू किया जिससे विशाल उत्तरी मैदान की रचना हुई। इस प्रकार भारतीय उपमहाद्वीप की भू-आकृतिक इकाइयाँ अस्तित्व में आयीं।।

प्रश्न 6. भारत के समुद्रतटीय मैदानों के आर्थिक महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर–प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली सँकरी पट्टी के रूप में जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं। ये क्रमश: पश्चिमी तथा पूर्वी समुद्रतटीय मैदान कहलाते हैं। इनका आर्थिक महत्त्व अग्रवत् है

1. पश्चिमी तटीय मैदान–प्रायद्वीप के पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक इस मैदान का विस्तार है। नर्मदा तथा ताप्ती यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं। नदियों के मुहानों पर बालू जम जाने से यहाँ लैगून निर्मित होते हैं। इनमें मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। उपयुक्त जलवायु तथा उत्तम मिट्टी के कारण यहाँ चावल, आम, केला, सुपारी, काजू, इलायची, गरम मसाले, नारियल आदि की फसलें उगायी जाती हैं। सागर तट पर नमक बनाने तथा मछलियाँ पकड़ने का व्यवसाय भी पर्याप्त रूप में विकसित हुआ है। भारत के प्रमुख पत्तन इन्हीं मैदानों में स्थित हैं। काण्दला, मुम्बई (न्हावाशेवा) व कोचीन इस तट के प्रमुख बन्दरगाह हैं।

2. पूर्वी तटीय मैदान–प्रायद्वीपीय पठारों के पूर्वी किनारों पर बंगाल की खाड़ी के तट तक तथा पूर्वी घाट के मध्य प० बंगाल से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक पूर्वी तटीय मैदानों का विस्तार है। इस मैदान में महानदी, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टा विकसित हुए हैं। डेल्टाओं में नदियों से अनेक नहरें निकाली गयी हैं, जो सिंचाई का महत्त्वपूर्ण साधन हैं। यह तटीय मैदान उपजाऊ है तथा कहीं-कहीं पर काँप मिट्टी से ढका है। यह मैदान कृषि की दृष्टि से बड़ा अनुकूल है। चावल, गन्ना, तम्बाकू व जूट इस मैदान की मुख्य उपज हैं।

प्रश्न 7. भारत के पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदानों में दो मुख्य अन्तर लिखिए।
या भारत के पूर्वी व पश्चिमी तटीय मैदानों की तुलना कीजिए।
उत्तर–प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली पट्टी के रूप में जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं। इन मैदानों को दो क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है-पूर्वी तटीय मैदान एवं पश्चिमी तटीय मैदान। इन दोनों मैदानों में दो मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं

  • आकार-पश्चिमी तटीय मैदान एक सँकरी पट्टी के रूप में विस्तृत हैं। इनकी औसत चौड़ाई 64 किमी है तथा नर्मदा एवं ताप्ती के मुहाने के निकट ये 80 किमी चौड़े हैं, जबकि पूर्वी तटीय मैदान | अपेक्षाकृत अधिक चौड़े हैं। इनकी औसत चौड़ाई 161 से 483 किमी है।।
  • विस्तार–पश्चिमी तटीय मैदान प्रायद्वीप के पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक फैले हैं, जबकि पूर्वी तटीय मैदान प्रायद्वीपीय पठारों के पूर्वी किनारों पर बंगाल की खाड़ी के तट तक तथा पूर्वी घाट के मध्य पश्चिमी बंगाल से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक विस्तृत हैं।

प्रश्न 8. हिमालय को नवीन वलित पर्वत क्यों कहते हैं?
उत्तर-हिमालय पर्वत भारत और तिब्बत (चीन) के मध्य एक अवरोध के रूप में स्थित है। यह एक नवीन वलित पर्वतश्रेणी है, जो अब भी क्रमशः ऊँची उठ रही है।

हिमालय पर्वत की उत्पत्ति के सम्बन्ध में भू-वैज्ञानिकों का मत है कि आज जहाँ हिमालय है, वहाँ पहले कभी टेथिस नामक महासागर लहराता था। टेनिस महासागर भारत और म्यांमार (बर्मा) की वर्तमान सीमा से लेकर पश्चिमी एशिया के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ था (वर्तमान में भूमध्यसागर इसी का अवशॆष है)। इस महासागर के उत्तर में अंगारालैण्ड तथा दक्षिण में गोंडवानालैण्ड कठोर स्थलखण्ड स्थित थे। इन स्थलखण्डों से नदियाँ प्रतिवर्ष भारी अवसाद बहाकर टेथिस सागर में जमा करती चली गईं। कालान्तर में भूगर्भ की आन्तरिक परिवर्तनकारी शक्तियों के फलस्वरूप ये दोनों कठोर स्थलखण्ड एक-दूसरे की ओर खिसके, जिससे टेथिस की अवसाद में वलन पने आरम्भ हो गए। कालान्तर में इस अवसाद ने वलित पर्वत का रूप धारण कर लिया, जो आज हिमालय के नाम से जाना जाता है। हिमालय की उत्पत्ति आज से लगभग 7 करोड़ वर्ष पूर्व मैसोजोइक (मध्य-जीव) महाकल्प से आरम्भ होकर अब से 20 लाख वर्ष पूर्व प्लीस्टोसीन युग तक चलती रही। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में आज भी आन्तरिक परिवर्तनकारी शक्तियाँ क्रियाशील हैं, इसी कारण हिमालय आज भी ऊँचा उठ रहा है। इसीलिए हिमालय को नवीन वलित पर्वत कहा जाता है।

प्रश्न 9. पश्चिमी हिमालय और पूर्वी हिमालय का सचित्र तुलनात्मक वर्णन कीजिए।
उत्तर- पश्चिमी और पूर्वी हिमालय की तुलना
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प्रश्न 10. भारत के दो प्राकृतिक विभागों के नाम लिखिए तथा संक्षेप में उनकी स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-भारत के दो प्राकृतिक भाग तथा उनकी स्थिति इस प्रकार है–

1. उत्तर में विशाल पर्वतों की प्राचीर अथवा हिमालय पर्वतीय प्रदेश–भारत के उत्तर में लगभग 2,500 किमी की लम्बाई तथा 150 से 400 किमी की चौड़ाई में हिमालय पर्वतीय प्रदेश का विस्तार है। यह विशाल पर्वतों की प्राचीर पूर्व से पश्चिम दिशा में चाप के आकार में फैली हुई है। इस पर्वतीय प्रदेश का विस्तार लगभग 5 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल में विस्तृत है।

2. उत्तरी मैदान अथवा उत्तर का विशाल मैदान–हिमालय पर्वत के दक्षिण तथा दकन पठार के उत्तर में गंगा, सतलज, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों की काँप मिट्टी द्वारा निर्मित उपजाऊ एवं समतल मैदान को उत्तर को विशाल मैदान कहते हैं। इसका क्षेत्रफल लगभग 7 लाख वर्ग किमी है। इसे जलोढ़ मैदान’ के नाम से भी पुकारते हैं। इस मैदान की लम्बाई पूर्व से पश्चिमी
लगभग 2,414 किमी तथा चौड़ाई पूर्व में 145 किमी तथा पश्चिम में 480 किमी है।।

प्रश्न 11. कश्मीर भारत का स्विट्जरलैण्ड कहलाता है, क्यों?
उत्तर-कश्मीर स्विट्जरलैण्ड की भाँति अद्वितीय प्राकृतिक एवं नैसर्गिक सौन्दर्य रखने वाला प्रदेश है। स्विट्जरलैण्ड को ‘यूरोप का स्वर्ग’ कहकर पुकारा जाता है; अत: कश्मीर ‘भारत का स्विट्जरलैण्ड’ तथा ‘भारत का स्वर्ग’ भी कहलाता है। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किए जा सकते हैं

  • स्विट्जरलैण्ड अपनी सुन्दर दृश्यावलियों एवं पर्वतीय ढालों के लिए प्रसिद्ध है, ठीक उसी प्रकार कश्मीर प्राकृतिक एवं नैसर्गिक सौन्दर्य की विशिष्टता रखने वाला प्रदेश है।
  • स्विट्जरलैण्ड के पर्वतीय ढाल हिम से ढके रहते हैं, ठीक उसी प्रकार कश्मीर के पर्वतीय ढाल भी वर्षभर हिम से आच्छादित रहते हैं।
  • स्विट्जरलैण्ड बर्फ के खेलों के लिए यूरोप में ही नहीं, अपितु विश्वभर में प्रसिद्ध है, ठीक उसी | प्रकार कश्मीर में भी बर्फ के खेलों (स्कीइंग) का आनन्द उठाया जा सकता है।
  • स्विट्जरलैण्ड की घाटी हरे-भरे वृक्षों, उत्तम जलवायु तथा अनूठे सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध है, ठीक उसी प्रकार कश्मीर घाटी अँगूठी में जड़े नगीने के समान सौन्दर्य की खान है। यही कारण है कि इसकी तुलना स्विट्जरलैण्ड के साथ की जाती है।

प्रश्न 12. पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट में अन्तर
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प्रश्न 13. पूर्वांचल में कौन-कौन सी श्रृंखलाएँ सम्मिलित हैं?
उत्तर–भारत की पूर्वी सीमा पर विस्तृत पर्वतों को पूर्वांचल कहा जाता है। ये पर्वत श्रृंखलाएँ हिमालय की भाँति विशाल नहीं हैं तथा न ही अधिक ऊँची हैं। ये मध्यम ऊँचाई की पर्वतश्रेणियाँ हैं। इन पर्वतश्रेणियों में उत्तर की ओर पटकोई, बुम एवं नाग पहाड़ियाँ तथा दक्षिण की ओर मिजो पहाड़ियाँ (लुशाई पहाड़ियाँ) सम्मिलित हैं। मध्य में ये पहाड़ियाँ पश्चिम की ओर मुड़ जाती हैं तथा मेघालय राज्य में भारत-बांग्लादेश की सीमा के साथ विस्तृत हैं। यहाँ इन पहाड़ियों को पश्चिम से पूर्व की ओर गारो, खासी और जयन्तिया के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

प्रश्न 14. भारत की त्रिस्तरीय भू-आकृति में क्या-क्या समानताएँ पाई जाती हैं?
उत्तर–भारत की त्रिस्तरीय भू-आकृति में निम्नलिखित समानताएँ पाई जाती हैं

  • भारत के प्रायद्वीपीय पठार पर युवा स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं जो हिमालय पर्वत क्षेत्र की विशेषता | है। दूसरी ओर हिमालय पर भी घर्षित धरातल मिलते हैं जो प्रायद्वीपीय पठार की विशेषता है।
  • प्रायद्वीपीय पठार तथा हिमालय पर्वतमाला के निर्माण की प्रक्रिया में समानता दिखाई देती है। | हिमालय पर्वत के उत्थान के समय प्रायद्वीपीय पठार का एक भाग तथा अरावली पहाड़ियाँ भी। प्रभावित हुई हैं।
  • उत्तरी मैदान के निर्माण में हिमालय की तलछट तथा प्रायद्वीपीय पठार की तलछट दोनों का योगदान रहा है।

प्रश्न 15. दोआब से आप क्या समझते हैं? भारतीय उपमहाद्वीप से पाँच उदाहरणं दीजिए।
उत्तर-दो नदियों का मध्य भाग दोआब कहलाता है। भारतीय उपमहाद्वीप में निम्नलिखित दोआब स्थित हैं

  1. गंगा-यमुना दोआबे,
  2. व्यास एवं सतलज के बीच का विस्ट-जालंधर दोआब,
  3. व्यास एवं रावी के मध्य का बारी दोआब,
  4. रावी एवं चेनाब के मध्य का रेचना दोआब,
  5. चेनाब एवं झेलम के मध्य का छाज दोआब।

प्रश्न 16. विशाल मैदान के विशिष्ट भौतिक लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर–हिमालय के दक्षिण से विशाल मैदान का विस्तार आरम्भ हो जाता है। इस मैदान की उत्पत्ति नूतन काल में हुई है। यह मैदान रोचक भू-लक्षणों से युक्त है। इसकी उत्तरी सीमा पर गिरिपाद मैदान स्थित है जो महीन मलबे और मोटे कंकड़ों से बना है, जिन्हें भाबर कहते हैं। इस मैदान के दक्षिण में तराई का मैदान मिलता है। इस मैदान के प्राचीन जलोढ़कों को बांगर तथा नवीन जलोढ़कों को खादर कहते हैं। विशाल मैदान में कहीं-कहीं गर्त भी पाए जाते हैं। पटना के निकट के गर्त को जिल्ला तथा मोकाम के निकट के गर्त को ‘ढाल’ कहते हैं। इस मैदान में जलोढ़ झीलें हैं जिनका स्थानीय नाम ‘बिल’ हैं।

प्रश्न 17 दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-सिक्किम और दार्जिलिंग हिमालय अपने रमणीय सौन्दर्य वनस्पतिजात और प्राणिजात के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ तेज बहाव वाली तिस्ता नदी बहती है और कंचनजंगा जैसी ऊँची चोटियाँ एवं गहरी घाटियाँ स्थित हैं। इन पर्वतों के उच्च शिखरों पर लेपचा जनजाति और दक्षिणी में मिश्रित जनसंख्या है, जिसमें नेपाली, बंगाली तथा मध्य भारत की जनजातियाँ निवास करती हैं। हिमालय का यह भाग चाय उत्पादन के लिए आदर्श दशाएँ रखता है। इसलिए यहाँ चाय बागानों का पर्याप्त विकास हुआ है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत को प्रमुख भू-आकृतिक विभागों में बाँटिए और भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का वर्णन कीजिए।
या भारत को भौतिक विभागों में विभाजित कीजिए तथा उनमें से किन्हीं एक का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) स्थिति का विस्तार, (ख) प्राकृतिक स्वरूप।
या भारत को उच्चावच के आधार पर भौतिक विभागों में विभाजित कीजिए तथा उनमें से किसी एक की स्थिति, विस्तार एवं भौतिक स्वरूप का वर्णन कीजिए।
या भारत को विभिन्न भौतिक विभागों में बाँटिए और पूर्वी तथा पश्चिमी मैदानों की
विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर – भारत का प्राकृतिक स्वरूप (बनावट)।
भारत एक विशाल देश है। भू-आकृतिक संरचना की दृष्टि से भारत में अनेक विषमताएँ एवं विभिन्नताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। भारत का 29.3% भाग पर्वतीय, पहाड़ी एवं ऊबड़-खाबड़; 27.7% भाग पठारी तथा 43% भाग मैदानी है। भारत में अन्य देशों की अपेक्षा मैदानी क्षेत्रों का विस्तार अधिक है (विश्व का औसत 41%)। देश में एक ओर नवीन मोड़दार पर्वत-श्रृंखलाएँ हैं, तो दूसरी ओर विस्तृत तटीय मैदान, कहीं नदियों द्वारा समतल उपजाऊ मैदान हैं तो कहीं प्राचीनतम कठोर चट्टानों द्वारा निर्मित कटा-फटा पठारी भाग है। इस प्रकार जम्मू से कन्याकुमारी तक भारत को उच्चावच अथवा भू-आकृतिक संरचना के अनुसार निम्नलिखित पाँच भागों में विभाजित किया जा सकता है

  1. उत्तरीय पर्वतीय प्रदेश,
  2. उत्तरी भारत का विशाल मैदान,
  3. दक्षिण का पठार,
  4. समुद्रतटीय मैदान एवं द्वीप समूह,
  5. थार का मरुस्थल।

इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
1. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश-भारत के उत्तर में लगभग 2,500 किमी की लम्बाई तथा पूर्व में 150 किमी तथा पश्चिम में 400 किमी की चौड़ाई में उत्तरी अथवा हिमालय पर्वतीय प्रदेश का विस्तार है। यह पर्वत-श्रृंखला पूर्व से पश्चिम तक चाप के आकार में फैली हुई है। इस पर्वतीय प्रदेश का विस्तार लगभग 5 लाख वर्ग किमी है। यह मोड़दार पर्वतमाला तीन समानान्तर श्रेणियों-(i) महान् हिमालय (हिमाद्रि हिमालय), (ii) लघु हिमालय, (iii) बाह्य हिमालय (शिवालिक हिमालय) में विस्तृत है। महान् हिमालय की औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से अधिक होने के कारण ये श्रेणियाँ सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं। विश्व की सर्वोच्च पर्वत-श्रेणी माउण्ट एवरेस्ट इसी हिमालय पर्वतमाला में स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई 8,848 मीटर है। हिमालय पर्वत उत्तरी भारत की अधिकांश नदियों का उद्गम स्थल तथा हरे-भरे वनों का भण्डार है। यहाँ बहने वाली नदियाँ तीव्रगामी तथा अपनी युवावस्था में हैं। ये उत्तरी मैदानों में बहती हुई अरब सागर या बंगाल की खाड़ी में गिर जाती हैं। इनसे भारतीय उपमहाद्वीप की तीन प्रमुख नदियाँ सिन्धु, सतलुज तथा ब्रह्मपुत्र हिमालय के उस पार से निकलती हैं।

हिमालय अपनी सुन्दर और रमणीक घाटियों के लिए विश्वविख्यात है, जिनमें कश्मीर घाटी, दून घाटी, कुल्लू और काँगड़ा घाटी पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं।
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2. उत्तरी भारत का विशाल मैदान-उत्तरी भारत अथवा गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान हिमालय पर्वत के दक्षिण में और दक्षिणी पठार के उत्तर में भारत का ही नहीं वरन् विश्व का सबसे अधिक उपजाऊ और घनी जनसंख्या वाला मैदान है। इसका क्षेत्रफल लगभग 7 लाख वर्ग किमी से अधिक है। इस मैदान की पश्चिम से पूरब की लम्बाई 2,414 किलोमीटर तथा उत्तर-दक्षिण की चौड़ाई 150 से 500 किलोमीटर है। इस मैदान का ढाल लगभग 25 सेण्टीमीटर प्रति किलोमीटर है। अरावली पर्वत-श्रेणी को छोड़कर इसका कोई भी भाग समुद्र तल से 150 मीटर से ऊँचा नहीं है।

यह मैदान सिन्धु, सतलुज, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और उनकी अनेक सहायक नदियों द्वारा लाई गयी मिट्टी से बना है; अत: यह बहुत ही उपजाऊ है। इस मैदान के बीच में अरावली पर्वत आ जाने के कारण सिन्धु और उसकी नदियाँ पश्चिम में तथा गंगा और उसकी सहायक नदियाँ तथा ब्रह्मपुत्र पूर्व में बहती हैं। पश्चिमी मैदान का ढाल उत्तर से दक्षिण की ओर है और पूर्वी मैदान का ढाल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है। इस मैदान में गहराई नहीं पायी जाती। सम्पूर्ण गंगा का मैदान बाँगर तथा खादर से निर्मित है। यहाँ देश की 45% जनसंख्या निवास करती है। प्रति वर्ष नदियाँ इस मैदान में उपजाऊ काँप मिट्टी अपने साथ लाकर बिछाती रहती हैं।

3. दक्षिण का पठार (प्रायद्वीपीय पठार)–भारत के दक्षिण में प्राचीन ग्रेनाइट तथा बेसाल्ट की
कठोर शैलों से बना दकन का पठार है, जिसे दक्षिण का पठार भी कहते हैं। यह राजस्थान से लेकर कुमारी अन्तरीप तक और पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व की ओर पश्चिम बंगाल तक विस्तृत है। इसको आकार त्रिभुजाकार है एवं आधार उत्तर की ओर तथा शीर्ष दक्षिण की ओर है। पठार के उत्तर में अरावली, विन्ध्याचल और सतपुड़ा की पहाड़ियाँ हैं, पश्चिम में ऊँचे पश्चिमी घाट और पूरब में निम्न पूर्वी घाट और दक्षिण में नीलगिरि पर्वत हैं।

इसके पश्चिमी भाग पर ज्वालामुखी द्वारा निर्मित लावा के निक्षेप हैं, जो काली मिट्टी के उपजाऊ क्षेत्र हैं। इस पठारी क्षेत्र पर अधिकांश नदियों ने गहरी घाटियाँ बना ली हैं। इस पठार की औसत ऊँचाई 500 से 750 मीटर है। इसका धरातल बहुत ही विषम है। इस पठारी भाग का क्षेत्रफल लगभग 16 लाख वर्ग किमी है। दकन का पठारी क्षेत्र खनिज पदार्थों का विशाल भण्डार है। इस पठार पर बहुमूल्य मानसूनी वन सम्पदा पायी जाती है। सागौन एवं चन्दन की बहुमूल्य लकड़ी इसी पठारी भाग में मिलती है। यह कृषि-उपजों का भण्डार तथा उद्योग-धन्धों का महत्त्वपूर्ण केन्द्र भी हैं।

इस पठार पर बहने वाली अधिकांश नदियाँ दक्षिण-पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी ऐसी ही नदियाँ हैं। नर्मदा और ताप्ती नदियाँ भ्रंश घाटी में होकर बहती हैं तथा अरब सागर में गिरती हैं। अरब सागर में गिरने वाली अन्य नदियाँ बहुत छोटी तथा तीव्रगामी हैं।

4. समुद्रतटीय मैदान एवं द्वीप समूह–दकन के पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली पट्टी के रूप में जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं। इन मैदानों का निर्माण सागर की लहरों तथा नदियों ने अपनी निक्षेप क्रियाओं द्वारा लाये गये अवसाद से किया है। इस मैदानी क्षेत्र को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है

(i) पश्चिमी तटीय मैदान–यह मैदान पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक फैला हुआ है। इसकी औसत चौड़ाई 64 किलोमीटर है। इसमें बहने वाली नदियाँ अत्यन्त तीव्रगामी हैं। इसके दक्षिणी मार्ग में नावों के लिए अनेक अनूप (Lagoons) पाये जाते हैं। नया मंगलोर, कोचीन इन्हीं अनू” पर स्थित हैं। यहाँ चावल, केला, गन्ना व रबड़ खूब पैदा होता है। कांदला, मुम्बई व कोचीन इस तट पर स्थित अन्य प्रमुख बन्दरगाह हैं।

(ii) पूर्वी तटीय मैदान–पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा यह मैदान अधिक चौड़ा है। इसकी औसत चौड़ाई 161 से 483 किलोमीटर है। यह उत्तर में गंगा के मुहाने से दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक फैला हुआ है। कोलकाता, मद्रास (चेन्नई) व विशाखापत्तनम् इसे तट के प्रमुख बन्दरगाह हैं।

द्वीप समूह–भारत के मुख्य स्थल भाग के पश्चात् सागरों के बीच में जो आकृतियाँ स्थित हैं वे द्वीपसमूह के रूप में जानी जाती हैं। ये भारत का अभिन्न अंग हैं। छोटे-बड़े मिलाकर कुल 247 द्वीप हैं, जो स्थिति अनुसार निम्नलिखित दो भागों में बँटे हुए हैं

(i) अरब सागरीय द्वीप-ये द्वीप अरब सागर के मुख्य स्थल (केरल तट) के पश्चिम में स्थित हैं। इन द्वीपों की आकृति घोड़े की नाल या अँगूठी के समान है। इनका निर्माण अल्पजीवी सूक्ष्म प्रवाल जीवों के अवशेषों के जमाव से हुआ है। इसलिए इन्हें प्रवालद्वीप वलय (एटॉल) कहते हैं। इनमें लक्षद्वीप, मिनीकोय एवं अमीनदीवी प्रमुख हैं। इन द्वीपों पर नारियल के वृक्ष बहुत अधिक उगाये जाते हैं। इन द्वीपों की संख्या.43 है तथा लक्षद्वीप का क्षेत्रफल मात्र 32 वर्ग किलोमीटर है। कवरत्ति यहाँ की राजधानी है।

(ii) बंगाल की खाड़ी के द्वीप-बंगाल की खाड़ी में भी भारत के अनेक द्वीप हैं। इन्हें अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह के नाम से पुकारते हैं। ये द्वीप बड़े भी हैं और संख्या में भी अधिक हैं। ये जल में डूबी हुई पहाड़ियों की श्रृंखला पर स्थित हैं। इन द्वीपों में से कुछ की उत्पत्ति ज्वालामुखी के उद्गार से हुई है। भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी इन्हीं द्वीपों में एक बैरन द्वीप पर स्थित है। इनका विस्तार 590 किमी की लम्बाई तथा अधिकतम 50 किमी की चौड़ाई में अर्द्ध-चन्द्राकार रूप में बना हुआ है। ये द्वीप यहाँ एक समूह के रूप में पाये जाते हैं, जो एक-दूसरे से संकीर्ण खाड़ी द्वारा पृथक् होते हैं। इनकी कुल संख्या 204 है तथा पोर्ट ब्लेयर यहाँ की राजधानी है।।

5. थार का मरुस्थल-राजस्थान का उत्तर-पश्चिमी भाग रेगिस्तानी है जिसे ‘थार का मरुस्थल कहा जाता है। इस मरुस्थल का कुछ भाग पाकिस्तान में भी है। इस भाग में प्रतिदिन धूल व रेतभरी तेज हवाएँ चलती हैं, जो जगह-जगह रेत के टीले बना देती हैं। यहाँ 10 सेमी से भी कम वर्षा होती है, इसलिए यह भाग वर्ष भर शुष्क बना रहता है और पूरे भाग में पानी की कमी रहती है। अत: यहाँ ज्वार-बाजरा जैसी कम पानी वाली फसलें अधिक उगाई जाती हैं। यह मरुस्थलीय भाग 644 किमी लम्बा व लगभग 161 किमी चौड़ा है। इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 1,04,000 वर्ग किमी है तथा इसका विस्तार हरियाणा, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात राज्यों में है। इस प्रदेश में अत्यन्त विरल जनसंख्या निवास करती है। लूनी इस मरुस्थलीय प्रदेश की मुख्य मौसमी नदी है। यहाँ पर साँभर, डिंडवाना, लूनकरनसर, कुचामन तथा डेगाना खारे पानी की प्रमुख झीलें हैं, जिनसे नमक बनाया जाता है। कुछ भागों में ग्रेनाइट, नीस तथा शिस्ट चट्टानों की नंगी सतह दिखलायी पड़ती हैं। खनिज पदार्थों में ताँबा, जिप्सम पत्थर तथा मुल्तानी मिट्टी यहाँ मुख्यतः मिलती हैं। राजस्थान में झुंझुनू जिले के खेतड़ी नगर के पास ताँबे की अनेक खाने हैं। यहाँ ऊँट यातायात का प्रमुख साधन है, जिसे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है। मरुस्थलीय संरचना एवं जलवायु की विषमताओं के कारण यह क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। पूर्व की ओर इन्दिरा गांधी नहर के बन जाने से धीरे-धीरे सम्बद्ध क्षेत्रों में विकास हो रहा है।

प्रश्न 2. भारत के उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत की बनावट कैसी है? इस प्रदेश का भौगोलिक वर्णन कीजिए।
या हिमालय पर्वत से भारत को क्या लाभ हैं? स्पष्ट कीजिए।
या हिमालय के कोई दो महत्त्व लिखिए।
या हिमालय पर्वतों की तीन समान्तर शृंखलाओं के नाम लिखिए और प्रत्येक की एक-एक विशेषता लिखिए।
या भारत के हिमालय पर्वतीय प्रदेश का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) स्थिति एवं विस्तार, (ख) धरातलीय संरचना, (ग) जल-प्रवाह।
उत्तर-हिमालय पर्वत की संरचना
भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत चाप के आकार में तथा पश्चिम में सिन्धु नदी के मोड़ से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक 2,500 किमी की लम्बाई में चन्द्राकार रूप में फैले हैं। इसकी औसत चौड़ाई 150 से 400 किमी के बीच है। हिमालय; भारत और तिब्बत (चीन) के मध्य एक अवरोध के रूप में स्थित है। मुख्य हिमालय में विश्व की सर्वोच्च पर्वत-चोटियाँ पायी जाती हैं, जिनकी औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से भी अधिक है। एशिया महाद्वीप में 97 ऐसी ज्ञात चोटियाँ हैं, जिनकी ऊँचाई 7,500 मीटर से अधिक है। इनमें से 95 चोटियाँ भारत के इसी पर्वतीय प्रदेश में स्थित हैं। हिमालय की ये पर्वत-श्रेणियाँ सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं, इसलिए इस पर्वतमाला का नाम हिमालय रखा गया है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5 लाख वर्ग किमी है। भौगोलिक दृष्टि से हिमालय पर्वतीय प्रदेश को अग्रलिखित उपविभागों में बाँटा जा । सकता है

1. महान् या बृहद् हिमालय–हिमालय की यह पर्वत-श्रेणी सबसे ऊँची है, जिन्हें हिमाद्रि या वृहत्तर हिमालय भी कहा जाता है। इस पर्वत-श्रेणी की औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से अधिक होने के कारण यह वर्षभर बर्फ से आच्छादित रहती है। इस पर्वत-श्रेणी की लम्बाई सिन्धु नदी के मोड़ से अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक 2,500 किमी तथा औसत चौड़ाई 25 किमी है। इस क्षेत्र में गंगोत्री, जेमू तथा मिलाम जैसे विशाल हिमनद (Glaciers) पाये जाते हैं, जिनकी लम्बाई 20 किमी से भी अधिक है। माउण्ट एवरेस्ट, कंचनजंगा, मकालू, धौलागिरि, नंगा पर्वत, गॉडविन-ऑस्टिन, त्रिशूल, बदरीनाथ, नीलकण्ठ, केदारनाथ आदि इस क्षेत्र के प्रमुख पर्वत-शिखर हैं। इन पर्वत-श्रेणियों का निर्माण ग्रेनाइट, नीस, शिस्ट आदि कठोर और प्राचीन शैलों से हुआ है। माउण्ट एवरेस्ट (नेपाल देश में स्थित) विश्व की सर्वोच्च पर्वत-श्रेणी है, जिसकी ऊँचाई 8,848 मीटर है। महान् हिमालय में अनेक दरें पाये जाते हैं जिनमें शिपकीला, थांगला, नीति, लिपुलेख, बुर्जिल, माना, नाथुला तथा जैलेपला आदि मुख्य हैं। इन्हीं दरों के मार्ग द्वारा भारत की सीमा के पार जाया जा सकता है। महान् हिमालय की पूर्वी सीमा पर ब्रह्मपुत्र तथा पश्चिमी सीमा पर सिन्धु नदियाँ गहरी एवं सँकरी घाटियों से होकर प्रवाहित होती हैं। बृहद् हिमालय और श्रेणियों के मध्य दो प्रमुख घाटियाँ हैं—काठमाण्डू की घाटी (नेपाल) और कश्मीर की घाटी (भारत)।

2. लघु या मध्य हिमालय—यह पर्वत-श्रेणी महान् हिमालय के दक्षिण में उसके समानान्तर फैली हुई है, जो 80 से 100 किमी तक चौड़ी है। इस श्रेणी की औसत ऊँचाई 2,000 से 3,500 मीटर तक है तथा अधिकतम ऊँचाई 4,500 मीटर तक पायी जाती है। इस भाग में नदियाँ ‘वी’ (V) आकार की घाटियाँ तथा गहरी कन्दराएँ बनाकर बहती हैं, जिनकी गहराई 1,000 मीटर तक है। महान् और लघु हिमालय के मध्य कश्मीर, काठमाण्डू, काँगड़ा एवं कुल्लू की घाटियाँ महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। शीत-ऋतु में तीन-चार महीने यहाँ हिमपात होता है। ग्रीष्म-ऋतु में ये पर्वतीय क्षेत्र उत्तम एवं स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु तथा मनमोहक प्राकृतिक सुषमा के कारण पर्यटन के केन्द्र बन जाते हैं। कश्मीर की जास्कर और पीर पंजाल इसकी महत्त्वपूर्ण श्रेणियाँ हैं, जो अनेक भुजाओं वाली हैं। इस श्रेणी की ऊँचाई 4,000 मीटर है। चकरौता, शिमला, मसूरी, नैनीताल, रानीखेत, दार्जिलिंग आदि स्वास्थ्यवर्द्धक पर्वतीय नगर लघु हिमालय में ही स्थित हैं, जहाँ प्रति वर्ष लाखों पर्यटक सैर के लिए जाते हैं। इस श्रेणी के उत्तरी ढाल मन्द हैं, जब कि दक्षिणी ढाल तीव्र। इस पर्वतीय क्षेत्र में उपयोगी कोणधारी वृक्ष तथा ढालों पर घास उगती है। घास के इन मैदानों को कश्मीर में मर्ग (गुलमर्ग, खिलनमर्ग, सोनमर्ग) तथा उत्तराखण्ड में बुग्याल और पयार (गढ़वाल एवं कुमाऊँ हिमालय) के नाम से पुकारते हैं। इस भाग की संरचना में अवसादी
शैलों की प्रधानता है, जिनमें अधिकांश चूने की चट्टानें विस्तृत क्षेत्र में फैली हैं।

3. उप-हिमालय या शिवालिक श्रेणियाँ अथवा बाह्य हिमालय–हिमालय की सबसे निचली तथा दक्षिणी पर्वत-श्रेणियाँ इसके अन्तर्गत आती हैं, जिन्हें बाह्य हिमालय या शिवालिक श्रेणियों के नाम से भी पुकारते हैं। यह हिमालय का नवनिर्मित भाग है, जो पंजाब में पोतवार बेसिन के दक्षिण से आरम्भ होकर पूर्व में कोसी नदी अर्थात् 87° देशान्तर तक विस्तृत है। इन पर्वत-श्रेणियों का निर्माण-काल बीस लाख वर्ष से दो करोड़ वर्ष के मध्य माना जाता है। शिवालिक श्रेणियों का निर्माण नदियों द्वारा लायी गयी अवसाद में मोड़ पड़ने से हुआ है, इसलिए इन पर अपरदन की क्रियाओं का विशेष प्रभाव पड़ा है। तिस्ता और रायडॉक के निकट 50 किमी की चौड़ाई में इन पहाड़ियों का लोप हो जाता है। इनकी औसत चौड़ाई पश्चिम में 50 किमी और पूरब में 15 किमी है। ये पर्वत औसत रूप से 600 से 1,500 मीटर तक ऊँचे हैं। इस क्षेत्र में अनेक उपजाऊ तथा समतल विस्तृत घाटियाँ हैं, जिन्हें दून और द्वार कहते हैं, जैसे-देहरादून, पूर्वादून, कोठड़ीदून, : पाटलीदून, हरिद्वार, कोटद्वार आदि।

भौगोलिक महत्त्व/लाभ

हिमालय पर्वत ने हमारे देश के भौतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक स्वरूप का निर्माण किया है। इनके भौगोलिक महत्त्व/लाभ का वर्णन निम्नलिखित है

  1. ये पर्वत साइबेरिया और मध्यवर्ती एशिया की ओर से आने वाली बर्फीली, तूफानी और शुष्क हवाओं से भारत की रक्षा करते हैं।
  2. हिमालय की ऊँची-ऊँची हिमाच्छादित चोटियाँ उत्तरी भारत के तापमान एवं आर्द्रता (वर्षा) को प्रभावित करती हैं। इसी के फलस्वरूप हिमालय में हिम नदियाँ, सदावाहिनी नदियाँ प्रारम्भ होती हैं, जो उत्तरी मैदान को उपजाऊ बनाती हैं।
  3. हिमालय के हिमाच्छादित शिखरों और नैसर्गिक दृश्यों के कारण इन पर्वतों का पर्यटकों के लिए महत्त्व बढ़ गया है।
  4. हिमालय की घाटी में जैसे ही वृक्षों की सीमा समाप्त होती है, वहाँ छोटे-छोटे चरागाह पाये जाते हैं. जिन्हें मर्ग कहते हैं; जैसे—गुलमर्ग, सोनमर्ग आदि। यहाँ कश्मीरी गड़रिये भेड़-बकरियाँ चराते हैं।
  5. हिमालय पर्वत से निकलने वाली सदावाहिनी नदियाँ अपने प्रवाह-मार्ग में प्राकृतिक जल-प्रपातों की रचना करती हैं। ये जल-प्रपात जल-विद्युत शक्ति के उत्पादन में सहायक सिद्ध हुए हैं।
  6. शीत ऋतु में उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश से ठण्डी एवं बर्फीली पवनें दक्षिण की ओर चला करती हैं। हिमालय पर्वतमाला इन पर्वतों के मार्ग में बाधा बनकर भारत को ठण्ड से बचाती है।
  7. हिमालय पर्वत पर पर्याप्त मात्रा में कोयला, पेट्रोल तथा अन्य खनिज पदार्थ प्राप्त होने की | सम्भावना व्यक्त की गयी है, जिससे इसका आर्थिक महत्त्व और अधिक बढ़ गया है।
  8. हिमालय पर्वतमाला भारत के उत्तर में पहरेदार की भाँति एक अभेद्य दीवार के रूप में खड़ी है, जो । आक्रमणकारियों से भारत की रक्षा करती है।
  9. हिमालय की कश्मीर घाटी को फलों का स्वर्ग कहा जाता है। यहाँ सेब, अखरोट, आड़, खुबानी, अंगूर व नाशपाती आदि फल उगाये जाते हैं। पर्वतीय ढालों पर चाय, सीढ़ीदार खेतों में चावल व आलू की खेती भी की जाती है।
  10.  हिमालय पर्वत के दोनों ढालों पर उपयोगी वनों का बाहुल्य है। इन वनों से विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चे माल, उपयोगी इमारती लकड़ियाँ आदि प्राप्त होती हैं।
  11. हिमालय पर्वतमाला से अनेक जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं, जो अनेक रोगों की चिकित्सा में काम आती हैं। इसके अतिरिक्त हिमालय के वनों से शहद, आँवला, बेंत, गोंद, लाख, कत्था, बिरोजा आदि प्राप्त होते हैं, जो मानव की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। हिमालय के अनेक पर्वतीय नगर ग्रीष्म-ऋतु में पर्यटकों के भ्रमण के लिए आकर्षण के केन्द्र बन जाते हैं।

प्रश्न 3. दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठार की भौगोलिक रचना तथा आर्थिक महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
या भारत के दक्षिणी पठारी भाग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए
(क) स्थिति,
(ख) विस्तार,
(ग) खनिज सम्पदा।
या भारत के दक्षिणी पठारी भाग के किन्हीं तीन खनिज संसाधनों का वर्णन कीजिए।
या भारत के दक्षिणी पठारी भाग की छ: विशेषताएँ बताइए।
या भारत के दक्षिणी पठारी भाग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(अ) धरातल,
(ब) जल-प्रवाह प्रणाली,
(स) भौगोलिक महत्त्व।
या दकन के पठार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर- दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार की भौगोलिक रचना (धरातल)
भारत के दक्षिण में प्राचीन ग्रेनाइट तथा बेसाल्ट की कठोर शैलों से निर्मित द्रकन (दक्षिण) का पठार है। यह विशाल प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन गोण्डवानालैण्ड का ही एक अंग है, जो भारतीय उपमहाद्वीप का, सबसे प्राचीन भूभाग है। यह पठारी प्रदेश 16 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल में विस्तृत है। इसकी आकृति । त्रिभुजाकार है। इसके उत्तर में गंगा-सतलुज-ब्रह्मपुत्र का मैदान, पूर्व में पूर्वी तटीय मैदान एवं बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिन्द महासागर तथा पश्चिम में पश्चिमी तटीय मैदान एवं अरब सागर स्थित है। इस पठार पर अनेक पर्वत विस्तृत हैं, जो मौसमी क्रियाओं; अर्थात् अपक्षय; द्वारा प्रभावित हैं। इस भौतिक प्रदेश में सबसे अधिक धरातलीय विषमताएँ मिलती हैं। समुद्र-तल से इस पठार की औसत ऊँचाई 500 से 700 मीटर है।

इस पठारी प्रदेश का विस्तार उत्तर में राजस्थान से लेकर दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक 1,700 किमी की लम्बाई तथा पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में पश्चिम बंगाल तक 1,400 किमी की चौड़ाई में है। प्राकृतिक दृष्टिकोण से इसकी उत्तरी सीमा अरावली, कैमूर तथा राजमहल की पहाड़ियों द्वारा निर्धारित होती है। यहाँ मौसमी क्रियाओं द्वारा चट्टानों को अपक्षरण होता रहता है। नर्मदा नदी की घाटी सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र को दो असमान भागों में विभाजित कर देती है। उत्तर की ओर के भाग को मालवा का पठार तथा दक्षिणी भाग को दकन ट्रैप या प्रायद्वीपीय पठार के नाम से पुकारते हैं। इस प्रदेश में निम्नलिखित स्थलाकृतिक विशिष्टताएँ पायी जाती हैं

1. मालवा का पठार-मालवा का पठार ज्वालामुखी से प्राप्त लावे द्वारा निर्मित हुआ है, जिससे यह समतल हो गया है। इस पठार पर बेतवा, माही, पार्वती, काली-सिन्धु एवं चम्बल नदियाँ प्रवाहित होती हैं। चम्बल एवं उसकी सहायक नदियों ने इस पठार के उत्तरी भाग को बीहड़ तथा ऊबड़-खाबड़ गहरे खड्डों में परिवर्तित कर दिया है, जिससे अधिकांश भूमि खेती के अयोग्य हो। गयी है। शेष भूमि समतल और उपजाऊ है। इस पठार का ढाल पूर्व तथा उत्तर-पूर्व की ओर है। विन्ध्याचले की पर्वत-श्रृंखलाएँ यहीं पर स्थित हैं।

2. विन्ध्याचल श्रेणी–प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पश्चिमी भाग पर विन्ध्याचल श्रेणी का विस्तार है। इस श्रेणी के उत्तर-पश्चिम (राजस्थान) में अरावली श्रेणी स्थित है। यह श्रेणी अत्यधिक अपरदन के कारण निचली पहाड़ियों के रूप में दृष्टिगोचर होती है। विन्ध्याचल श्रेणी के दक्षिण में नर्मदा की घाटी स्थित है। नर्मदा घाटी के दक्षिण में सतपुड़ा श्रेणी का विस्तार है, जो महानदी और गोदावरी के बीच स्थित है।

3. बुन्देलखण्ड एवं बघेलखण्ड का पठार—यह पठार मालवा पठार के उत्तर-पूर्व में स्थित है। यमुना एवं चम्बल नदियों ने इस पठार को काट-छाँटकर बीहड़ खड्डों का निर्माण किया है, जिससे यह असमतल तथा अनुपजाऊ हो गया है। इस पठार पर नीस, ग्रेनाइट, बालुका-पत्थर की चट्टानें तथा पहाड़ियाँ मिलती हैं।

4. छोटा नागपुर का पठार—यह पठार एक सुस्पष्ट पठारी इकाई है। इसके उत्तर व पूर्व में गंगा का मैदान है। इसका पश्चिमी मध्यवर्ती भाग 100 मीटर ऊँचा है, जिसे ‘पाट क्षेत्र’ कहते हैं। झारखण्ड राज्य के गया, हजारीबाग तथा राँची जिलों में यह पठार विस्तृत है। महानदी, सोन, स्वर्ण-रेखा एवं दामोदर इस पठार की प्रमुख नदियाँ हैं। यहाँ ग्रेनाइट एवं नीस की-शैलें पायी जाती हैं। यह पठार खनिज पदार्थों में बहुत धनी है। इसकी औसत ऊँचाई 400 मीटर है।

5. मेघालय का पठार-उत्तर-पूर्व में इस पठार को मिकिर की पहाड़ियों के नाम से पुकारते हैं। | इसका उत्तरी ढाल खड़ा है, जिसमें ब्रह्मपुत्र तथा उसकी सहायक नदियाँ प्रवाहित होती हैं। इसी
पठार में गारो, खासी तथा जयन्तिया की पहाड़ियाँ विस्तृत हैं।

6. दकन का पठार—यह महाराष्ट्र पठार के नाम से भी जाना जाता है। इसका क्षेत्रफल 5 लाख वर्ग किमी है। इसका विस्तार मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, पश्चिमी तमिलनाडु एवं आन्ध्र प्रदेश राज्यों पर है। यह पठार बेसाल्ट शैलों से निर्मित है तथा खनिज पदार्थों में धनी है। यह पठार दो भागों में विभाजित है-तेलंगाना एवं दकन का पठार।।

7. प्रायद्वीपीय पठार की प्रमुख पर्वत-श्रेणियाँ-यह पठारी प्रदेश अनाच्छादन की क्रियाओं से प्रभावित है। यहाँ विन्ध्याचल, सतपुड़ा एवं अरावली की पहाड़ियाँ प्रमुख हैं। इनकी औसत ऊँचाई 300 से 900 मीटर तक है। .

8. पश्चिमी घाट–इन्हें सह्याद्रि की पहाड़ियों के नाम से भी पुकारा जाता है। ये पश्चिमी.तंट के समीप उसके समानान्तर विस्तृत हैं। इनकी औसत चौड़ाई 50 किमी है। इनका विस्तार मुम्बई के उत्तर से दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक लगभग 1,600 किमी है। थाकेघाट, भोरघाट व पालघाट यहाँ के प्रमुख दरें हैं। इस श्रेणी के उत्तर-पूर्व में पालनी तथा दक्षिण में इलायची की पहाड़ियाँ हैं।
अनाईमुडी इसका सर्वोच्च शिखर (2,695 मीटर) है।

9. पूर्वी घाट–इस श्रेणी का विस्तार महानदी के दक्षिण में उत्तर-पूर्व दिशा से दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर नीलगिरि की पहाड़ियों तक 1,300 किमी की लम्बाई में है। इनकी औसत ऊँचाई 615 मीटर तथा औसत चौड़ाई उत्तर में 190 किमी तथा दक्षिण में 75 किमी है। इन घाटों को काटकर महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियाँ पश्चिमी भागों से पूर्व की ओर बहती हुई उपजाऊ मैदान में डेल्टा बनाती हैं।

जल-प्रवाह प्रणाली

दक्षिण पठारी भाग की जल प्रवाह प्रणाली में नर्मदा, ताप्ती, महानदी, कृष्णा, कावेरी, पेन्नार आदि नदियों का योगदान है। इनमें नर्मदा व ताप्ती पश्चिम की ओर बहकर अरब सागर में गिरती हैं। नर्मदा अमरकण्टक की पहाड़ियों से निकलती है तथा ताप्ती मध्य प्रदेश के बैतूल जिले से निकलती है। यह दोनों नदियाँ सतपुड़ा के दक्षिण में सँकरी तथा गैहरी भ्रंश घाटियों से होकर बहती हैं।

महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी तथा पेन्नार नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। साबरमती व माही नदियाँ कच्छ की खाड़ी में गिरती हैं।

भौगोलिक महत्त्व

प्रायद्वीपीय पठार के भौगोलिक-आर्थिक महत्त्व का वर्णन निम्नलिखित है
1. प्राचीन आग्नेय कायान्तरित शैलों से निर्मित होने के कारण यह भू-भाग खनिज सम्पन्न है। मध्य प्रदेश में मैंगनीज, संगमरमर, चूना-पत्थर, बिहार व उड़ीसा (ओडिशा) में लोहा व कोयला, | कर्नाटक में सोना, आन्ध्र प्रदेश में कोयला, हीरा आदि आर्थिक महत्त्व के खनिज उपलब्ध होते हैं।

2. लावा की मिट्टी कपास व गन्ने की खेती के लिए अत्युत्तम है। पहाड़ी क्षेत्रों में लैटेराइट मिट्टियाँ चाय, कहवा तथा रबड़ के लिए उपयुक्त हैं। गर्म मसाले, काजू, केला अन्य महत्त्वपूर्ण उपजें हैं।

3. वनों में चन्दन, साल, सागौन, शीशम आदि बहुमूल्य लकड़ी तथा लाख, बीड़ी बनाने के लिए तेन्दू व टिमरु वृक्ष के पत्ते, हरड़, बहेड़ा, आँवला, चिरौंजी, अग्नि व रोशा घास आदि आर्थिक महत्त्व की गौण वन-उपजे प्राप्त होती हैं।

4. पठारी धरातल पर प्रवाहित होने वाली नदियों के प्रपाती मार्ग में अनेक स्थानों पर जल-विद्युत शक्ति के विकास की सम्भावनाएँ उपलब्ध हैं। कठोर चट्टानी धरातल होने के कारण वर्षा के जल को एकत्रित करने के लिए जलाशय में बाँध की सुविधाएँ प्राप्त हैं।

5. सामान्यतः प्रायद्वीपीय पठार की जलवायु उष्ण है, किन्तु उटकमण्ड, पंचमढ़ी, महाबलेश्वर आदि * सुरम्य एवं स्वास्थ्यवर्द्धक स्थल पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र हैं।

6. विषम धरातल होने के कारण यहाँ आवागमन के साधनों का समुचित विकास नहीं हो सका है। उत्तरी मैदान की तुलना में यहाँ कृषि भी अधिक विकसित नहीं है। चम्बल व अन्य नदियों के बीहड़ लम्बी अवधि तक डाकुओं व असामाजिक तत्वों के शरणस्थल रहे हैं। विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा पर्वत प्राचीन काल से ही उत्तर एवं दक्षिण भारत के मध्य प्राकृतिक व सांस्कृतिक अवरोध रहे हैं; अतएव दक्षिणी भारत में उत्तर भारत से सर्वथा भिन्न संस्कृति विकसित हुई है।

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UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 1 India Location

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 1 India Location (भारत: स्थिति)

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से उपयुक्त उत्तर का चयन कीजिए
(i) निम्नलिखित में से कौन-सा अक्षांशीय विस्तार भारत की सम्पूर्ण भूमि के विस्तार के सन्दर्भ में प्रासंगिक है?
(क) 8°41′ उ० से 37°7′ उ०
(ख) 8° 4′ उ० से 35°6′ उ०
(ग) 8° 4′ उ० से 37°6′ उ०
(घ) 6°45′ उ० से 37°6′ उ०
उत्तर – (ग) 8° 4′ उ० से 37°6′ उ०।

(ii) निम्नलिखित में से किस देश की भारत के साथ सबसे लम्बी स्थलीय सीमा है?
(क) बाँग्लादेश
(ख) पाकिस्तान
(ग) चीन
(घ) म्यांमार
उत्तर – (क) बाँग्लादेश।

(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा देश क्षेत्रफल में भारत से बड़ा है?
(क) चीन
(ख) फ्रांस
(ग) मिस्र
(घ) ईरान
उत्तर – (क) चीन। |

(iv) निम्नलिखित याम्योत्तर में से कौन-सा भारत का मानक याम्योत्तर है?
(क) 69° 30′ पूर्व
(ख) 75° 30′ पूर्व
(ग) 82° 30′ पूर्व
(घ) 90° 30′ पूर्व
उत्तर – (ग) 82° 30′ पूर्व।

(v) अगर आप एक सीधी रेखा में राजस्थान से नागालैण्ड की यात्रा करें तो निम्नलिखित नदियों में से किस एक को आप पार नहीं करेंगे? |
(क) यमुना
(ख) सिन्धु
(ग) ब्रह्मपुत्र
(घ) गंगा
उत्तर – (ख) सिन्धु।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों का लगभग 30 शब्दों में उत्तर दें
(i) क्या भारत को एक से अधिक मानक समय की आवश्यकता है? यदि हाँ, तो आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
उत्तर – वास्तव में भारत को एक से अधिक मानक समय की आवश्यकता नहीं है। यदि एक से अधिक मानक समय होगा तो स्थानीय समय निर्धारण में कठिनाइयाँ आएँगी। एक से अधिक मानक समय की आवश्यकता केवल उन देशों को होती है जिनका पूर्व-पश्चिम विस्तार अधिक होता है। जैसे—संयुक्त राज्य अमेरिका में है, जहाँ लगभग छह समय कटिबन्ध पाए जाते हैं।

(ii) भारत की लम्बी तटरेखा के क्या प्रभाव हैं?
उत्तर – भारत की सम्पूर्ण तटरेखा द्वीप समूहों सहित 7,516.6 किलोमीटर है। देश की बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के रूप में लम्बी तटरेखा समुद्री यातायात और पर्यावरणीय दृष्टि से लाभदायक है। लम्बी तटरेखा जहाँ एक ओर सस्ता जल यातायात प्रदान करती है वहीं यह समुद्री संसाधन प्रदान करने और स्थानीय जलवायु की दृष्टि से भी लाभप्रद होती है।

(iii) भारत का देशान्तरीय फैलाव इसके लिए किस प्रकार लाभप्रद है?
उत्तर – भारत का देशान्तरीय फैलाव पूर्व में अरुणाचल प्रदेश तक 68°07′ पूर्वी देशान्तर से 97°5′ पूर्वी देशान्तर (गुजरात तक) है अर्थात् कुल देशान्तरीय विस्तार केवल 28°55′ है। इतने कम देशान्तरीय विस्तार के कारण ही भारत की एक मानक समय रेखा (82°30′ पूर्व) है। यह देशान्तर रेखा देश के मध्य से गुजरती है, इसलिए इस रेखा को देश को मानक समय माना जाता है। वास्तव में, यदि देश का देशान्तरथ विस्तार बहुत अधिक होता तब हमें कई मानक कटिबन्धों की आवश्यकता होती। अत: देश का वर्तमान देशान्तरीय फैलाव मानक समय की दृष्टि से लाभप्रद है।।

(iv) जबकि पूर्व में, उदाहरणतः नागालैण्ड में, सूर्य पहले उदय होता है और पहले ही अस्त होता है, फिर कोहिमा और नई दिल्ली में घड़ियाँ एक ही समय क्यों दिखाती हैं?
उत्तर – यह सत्य है कि भारत के पूर्व में सूर्य पहले उदय होता है और पहले ही अस्त होता है, किन्तु देश की घड़ियाँ समय एक ही दिखाती हैं, क्योंकि घड़ियों के समय का निर्धारण केन्द्रीय देशान्तर या 8230′ पूर्व मानक याम्योत्तर द्वारा होता है। यही कारण है कि कोहिमा और नई दिल्ली में घड़ियाँ एक ही समय दिखाती हैं।

प्रश्न 3. परिशिष्ट-1 पर आधारित क्रियाकलाप
(i) एक ग्राफ पेपर पर मध्य प्रदेश, कर्नाटक, मेघालय, गोवा, केरल तथा हरियाणा के जिलों की संख्या को आलेखित कीजिए। क्या जिलों की संख्या का राज्यों के क्षेत्रफल से कोई सम्बन्ध हैं?
UP Board Solutions for Class 11 Geography Indian Physical Environment Chapter 1 India Location (भारत स्थिति) img 1
उत्तर – 
UP Board Solutions for Class 11 Geography Indian Physical Environment Chapter 1 India Location (भारत स्थिति) img 2
ग्राफ (चित्र 1.1) से स्पष्ट है कि राज्यों के क्षेत्रफल एवं जिलों की संख्याओं में धनात्मक सम्बन्ध है। अर्थात् जिस राज्य को क्षेत्रफल अधिक है उसमें जिलों की संख्या भी अधिक है तथा जिस राज्य का क्षेत्रफल कम है उसमें जिले भी कम हैं। मध्य प्रदेश तथा गोवा इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

(ii) उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, त्रिपुरा, राजस्थान तथा जम्मू और कश्मीर में से कौन-सा राज्य सर्वाधिक घनत्व वाला और कौन-सा एक न्यूनतम जनसंख्या घनत्व वाला राज्य है?
उत्तर – सर्वाधिक घनत्व वाला राज्य (904 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी) पश्चिम बंगाल तथा सबसे कम घनत्न वाला राज्य (13 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी) अरुणाचल प्रदेश है।

(iii) राज्य के क्षेत्रफल व जिलों की संख्या के बीच सम्बन्ध को ढूंढिए।
उत्तर – राज्य के क्षेत्रफल व जिलों की संख्या के बीच सामान्यत: धनात्मक सम्बन्ध पाया जाता है। यदि राज्य का क्षेत्रफल अधिक होता है तो जिलों की संख्या भी अधिक पाई जाती है। |

(iv) तटीय सीमाओं से संलग्न राज्यों की पहचान कीजिए।
उत्तर – तटीय सीमाओं पर स्थित राज्य निम्नलिखित हैंअरब सागर की ओर-गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक एवं केरल। बंगाल की खाड़ी की ओर-तमिलनाडु, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा तथा प० बंगाल।

(v) पश्चिम से पूर्व की ओर स्थलीय सीमा वाले राज्यों का क्रम तैयार कीजिए।
उत्तर – पश्चिम से पूर्व की ओर स्थित स्थलीय सीमा वाले राज्य क्रमश: इस प्रकार हैं–जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, प० बंगाल तथा अरुणाचल प्रदेश।

प्रश्न 4. परिशिष्ट II पर आधारित क्रियाकलाप
(i) उन केन्द्रशासित क्षेत्रों की सूची बनाइए जिनकी स्थिति तटवर्ती है।
(ii) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली तथा अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्रफल और जनसंख्या में अन्तर की व्याख्या आप किस प्रकार करेंगे?
(iii) एक ग्राफ पेपर पर दण्ड आरेख द्वारा केन्द्रशासित प्रदेशों के क्षेत्रफल व जनसंख्या को आलेखित कीजिए।
उत्तर – अध्यापक की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत किस महाद्वीप में स्थित है?
(क) यूरोप में
(ख) अफ्रीका में
(ग) एशिया में
(घ) ऑस्ट्रेलिया में
उत्तर – (ग) एशिया में।

प्रश्न 2. भारत किस कटिबन्ध में स्थित है?
(क) उपोष्ण
(ख) उष्ण ।
(ग) शीतोष्ण
(घ) शीत
उत्तर – (क) उपोष्ण।।

प्रश्न 3. भारत की वह नदी जो ज्वारनदमुख बनाती है–
(क) ताप्ती
(ख) महानदी
(ग) गोदावरी
(घ) लूनी
उत्तर – (क) ताप्ती।

प्रश्न 4. ‘शिपकी-ला दर्रा भारत को जोड़ता है
(क) पाकिस्तान से
(ख) चीन से
(ग) भूटान से
(घ) नेपाल से
उत्तर – (ख) चीन से।

प्रश्न 5. भारत के दक्षिण में स्थित देश का नाम है
(क) श्रीलंका
(ख) नेपाल
(ग) चीन
(घ) म्यांमार
उत्तर – (क) श्रीलंका।।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. उन देशों के नाम लिखिए जिनकी सीमाएँ भारत की उत्तरी सीमा से मिलती हैं।
उत्तर–भारत की उत्तरी सीमा से मिलने वाले देशों के नाम इस प्रकार हैं–(1) चीन, (2) अफगानिस्तान, (3) पाकिस्तान, (4) नेपाल, (5) भूटान।

प्रश्न 2. भारत के उन राज्यों के नाम लिखिए जो बांग्लादेश की सीमा बनाते हैं।
उत्तर–भारत के राज्य जिनकी सीमाएँ बांग्लादेश से मिलती हैं, उनके नाम हैं-पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा तथा मिजोरम।

प्रश्न 3. भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालय पर्वत को पार करने में सहायक चार दरों के नाम लिखिए।
उत्तर–हिमालय पर्वत को पार करने में सहायक चार दरें हैं-(1) काराकोरम, (2) शिपकीला, (3) नाथुला, (4) बोमडिला।।

प्रश्न 4. उत्तरी-पूर्वी पर्वतीय राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर-(1) अरुणाचल प्रदेश, (2) असम, (3) नागालैण्ड, (4) मणिपुर, (5) मिजोरम, (6) त्रिपुरा, (7) मेघालय।।

प्रश्न 5. भारत के अक्षांशीय एवं वेशान्तरीय विस्तार को लिखिए।
उत्तर–भारत हिन्द महासागर के शीर्ष पर स्थित एक विशाल देश है। इसका क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी है। भारत 8°4′ उत्तर से 37°6′ उत्तरी अक्षांश और 68°7′ से 97°25′ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है।

प्रश्न 6. भारत की सीमाओं पर स्थित पडोसी देशों के नाम लिखिए।
उत्तर–भारत की पूर्वी सीमा बांग्लादेश तथा म्यांमार से, पश्चिमी सीमा पाकिस्तान व अफगानिस्तान से, उत्तरी सीमा चीन, नेपाल और भूटान से तथा दक्षिण में श्रीलंका से मिलती है।

प्रश्न 7. क्षेत्रफल में भारत से बड़े छः देशों के नाम बताइए।
उत्तर-भारत का विश्व में क्षेत्रफल की दृष्टि से सातवाँ स्थान है। इससे बड़े छः अन्य देश हैं-(1) रूस, (2) संयुक्त राज्य अमेरिका, (3) कनाडा, (4) चीन, (5) ब्राजील, (6) आस्ट्रेलिया।

प्रश्न 8. भारत-पाकिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय सीमा-रेखा का वर्णन कीजिए।
उत्तर-भारत और पाकिस्तान के बीच निर्धारित कृत्रिम सीमा रेखा 1,120 किमी लम्बी है। यह सीमा-रेखा प्राकृतिक नहीं है। भारत के गुजरात, राजस्थान, पंजाब एवं जम्मू-कश्मीर राज्यों की सीमाएँ पाकिस्तान को भारत से पृथक् करती हैं।

प्रश्न 9. भारत के मध्य से कौन-सी देशान्तर एवं अक्षांश रेखाएँ गुजरती हैं?
उत्तर-82°30′ पूर्वी देशान्तर रेखा उत्तर-दक्षिण में तथा 23°30′ उत्तरी अक्षांश (कर्क रेखा) भारत के मुध्य से गुजरती है।

प्रश्न 10. भारत की तट रेखा की कुल लम्बाई कितनी है?
उत्तर-भारत की तट रेखा की कुल लम्बाई 7,516.6 किमी है।

प्रश्न 11. भारत का कुल क्षेत्रफल कितना है?
उत्तर–भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है।

प्रश्न 12. क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में सातवाँ स्थान है।

प्रश्न 13. भारत किस गोलार्द्ध में स्थित है?
उत्तर-भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है।

प्रश्न 14. भारत का दक्षिणतम बिन्दु (सिरा) कौन-सा है तथा कहाँ स्थित है?
उत्तर-भारत का दक्षिणतम बिन्दु इन्दिरा प्वॉइण्ट है जो निकोबार द्वीपसमूह के दक्षिण में स्थित है।

प्रश्न 15. भारत के सुदूरवर्ती पूर्वी राज्य का नाम बताइए।
उत्तर–भारत के सुदूरवर्ती पूर्वी राज्य का नाम अरुणाचल प्रदेश है।

प्रश्न 16. भारत का कौन-सा पश्चिमी राज्य कच्छ क्षेत्र में स्थित है?
उत्तर-भारत का पश्चिमी राज्य गुजरात कच्छ क्षेत्र में स्थित है।

प्रश्न 17. भारत का पूर्व-पश्चिम विस्तार कितने देशान्तरों के बीच फैला है?
उत्तर–भारत का पूर्व-पश्चिम विस्तार लगभग 30 देशान्तरों के बीच फैला है।

प्रश्न 18. भारत किस महासागर के शीर्ष पर स्थित है?
उत्तर–भारत हिन्द महासागर के शीर्ष पर स्थित हैं।

प्रश्न 19. भारत के उत्तर में स्थित किन्हीं दो देशों के नाम लिखिए।
उत्तर-(1) चीन तथा (2) नेपाल।।

प्रश्न 20. भारत का कौन-सा राज्य क्षेत्रफल एवं जनसंख्या में प्रथम स्थान रखता है?
उत्तर-राजस्थान क्षेत्रफल एवं उत्तर प्रदेश जनसंख्या में देश में प्रथम स्थान रखता है।

प्रश्न 21. भारत के दक्षिण में कौन-से दो द्वीपीय देश स्थित हैं?
उत्तर–भारत के दक्षिण में मालदीव व श्रीलंका दो द्वीपीय देश स्थित हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत का अक्षांशीय विस्तार बताइए। इसके प्रभाव को समझाइए।
उत्तर–भारत का अक्षांशीय विस्तार भूमध्य रेखा के उत्तर में 8°4′ उत्तरी से 37°6′ उत्तरी अक्षांशों के मध्य है। इस देश का उत्तर-दक्षिण विस्तार 3,200 किलोमीटर है। इस विस्तृत भाग पर अक्षांशों के प्रभाव को निम्नांकित तथ्यों में स्पष्ट किया जा सकता है|
(i) अक्षांशीय विस्तार के कारण भारत के दक्षिणी भागों में सूर्यातप की मात्रा उत्तरी भागों की अपेक्षा अधिक है।
(ii) भारत के दक्षिणी भाग की अपेक्षा उत्तरी भाग में रात और दिन की अवधि का अन्तर बढ़ता जाता
(iii) ऐसा देखा गया है कि भारत के सुदूर दक्षिण भाग में जब दिन और रात का अन्तर केवल 45 मिनट होता है तो उत्तर को जाते हुए यह अन्तर सुदूर उत्तरी क्षेत्रों में पाँच घण्टे तक हो जाता है।
(iv) प्रायद्वीपीय भारत, जो भूमध्य रेखा के अधिक निकट है, की जलवायु गर्म रहती है तथा यहाँ शीत ऋतु नहीं होती है, जबकि भूमध्य रेखा से दूर उत्तरी भारत की जलवायु विषम रहती है, यहाँ गर्मियों | में अधिक गर्मी और सर्दियों में अधिक सर्दी होती है।

प्रश्न 2. भारत के देशान्तरीय विस्तार के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–भारत के देशान्तरीय विस्तार का प्रभाव उसके पूर्व-पश्चिम विस्तार से व्यापक महत्त्व रखता है। अपने इसी विस्तार के कारण इसके पड़ोसी देशों की दूरी का निर्धारण होता है। देशान्तरीय विस्तार के कारण भारत के पूर्व में स्थित देश; जैसे–म्यांमार, थाईलैण्ड, सिंगापुर, मलेशिया व वियतनाम तथा पश्चिम में स्थित देश; जैसे-पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक आदि भारत के निकट स्थित हैं। इसीलिए इन देशों से भारत के आर्थिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्ध प्राचीनकाल से रहे हैं। अपने विस्तृत पूर्वी-पश्चिमी विस्तार के कारण भारत जहाँ पूर्व की ओर चीन, जापान व ऑस्ट्रेलिया के निकट है, वहीं पश्चिम की ओर अफ्रीकी और यूरोपीय देशों से भी इसकी निकटता है। इस प्रकार भारत अपने देशान्तरीय विस्तार के कारण सुगमता से विश्व के सभी देशों के साथ व्यापारिक व सांस्कृतिक सम्बन्ध स्थापित कर सकता है।

प्रश्न 3. पूर्वी गोलार्द्ध में भारत की स्थिति केन्द्रीय है, क्यों?
उत्तर-पूर्वी गोलार्द्ध का देशान्तरीयं विस्तार 0° से 180° पूर्व है। इसकी मध्य स्थिति 90° पूर्वी देशान्तर रेखा पर है, जबकि 87°30′ पूर्वी देशान्तर भारत की केन्द्रीय मध्याह्न रेखा है। यह भारत से ही होकर गुजरती है। इसी प्रकार भारत का अक्षांशीय विस्तार 8°4′ उत्तर से आरम्भ होता है, जो विषुवत् रेखा के अति निकट है। इसी आधार पर कहा जा सकता है कि पूर्वी गोलार्द्ध में भारत की स्थिति लगभग केन्द्रीय है। केन्द्रीय स्थिति होने के कारण ही भारत के विदेशों से व्यापारिक एवं वाणिज्यिक सम्बन्ध बहुत प्रगाढ़ हुए हैं। इस प्रकार भारत पश्चिमी औद्योगिक देशों को पूर्वी खेतिहर देशों से मिलाने के लिए एक कड़ी का कार्य करता है।

प्रश्न 4. भारत को उपमहाद्वीप क्यों कहा जाता है?
उत्तर-भारतीय उपमहाद्वीप एक सुस्पष्ट भौगोलिक इकाई है, जो एशिया महाद्वीप के उच्चावच स्वरूप को देखते ही स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आती है। यहाँ एक विशिष्ट संस्कृति का विकास हुआ है। भारत सहित उसके पड़ोसी देशों–पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका एवं मालदीव की भौगोलिक स्थिति, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति, मिट्टी तथा जनसंख्या विशेषताओं में विभिन्नताएँ एवं विविधताएँ होते हुए भी एकरूपता दिखाई देती है। इसी कारण इसे उपमहाद्वीप कहा जाता है। एशिया महाद्वीप में भारतीय उपमहाद्वीप की स्थिति वास्तव में एशिया से पृथक् दिखाई देती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत का भौगोलिक वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए
(क) स्थिति एवं विस्तार,
(ख) भू-आकृति (उच्चावच)।
उत्तर- (क) भारत की स्थिति एवं विस्तार
हिन्द महासागर के शीर्ष पर स्थित भारत एक विशाल देश है। इसका क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी (2.43%) है। भारत 894 से 37°6′ उत्तरी अक्षांशों और 687′ से 9725 पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। निकोबार द्वीप समूह में स्थित इन्दिरा प्वॉइण्ट’ भारत का दक्षिणतम बिन्दु है। मुख्य स्थल पर कन्याकुमारी भारत का सबसे दक्षिण में स्थित बिन्दु है जबकि जम्मू-कश्मीर राज्य में स्थित ‘इन्दिरा कोल’ सबसे उत्तरी बिन्दु। 26 दिसम्बर, 2009 में सूनामी के कारण भारत के सबसे दक्षिणी बिन्दु ‘इन्दिरा प्वॉइण्ट’ ने जल समाधि ले ली। 82°30′ पूर्वी देशान्तर रेखा भारत की प्रामाणिक देशान्तर रेखा है, जो इलाहाबाद से होकर गुजरती है। कर्क वृत्त (23°30′ उत्तरी अक्षांश) देश के लगभग मध्य में होकर गुजरती है; अत: क्षेत्र का उत्तरी भाग उपोष्ण (सम-शीतोष्ण) कटिबन्ध में तथा दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है। भारतीय मानक समय रेखा भारत के पाँच राज्यों-उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आन्ध्र प्रदेश से गुजरती है। भारत का दक्षिणी भाग, जिसमें प्रायद्वीपीय भारत सम्मिलित है, उष्ण कटिबन्ध में आता है। उत्तरी भाग, जिसमें मुख्यतः उत्तर का पर्वतीय मैदानी भाग है, उपोष्ण कटिबन्ध में आता है। तीन ओर से सागरों से घिरा होने के कारण यहाँ विशिष्ट मानसूनी जलवायु पायी जाती है, जो देश के समूचे अर्थतन्त्र को प्रभावित करती है। भारत यूरोप से ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिणी और पूर्वी एशियाई देशों के व्यापारिक मार्गों पर स्थित है। इसलिए प्राचीन काल से ही यहाँ विदेशी व्यापार उन्नत रहा है।

भारतीय उपमहाद्वीप एक सुस्पष्ट भौगोलिक इकाई है जिसमें एक विशिष्ट संस्कृति का विकास हुआ है। इस महाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान, केन्द्र में भारत, उत्तर में नेपाल, उत्तर-पूर्व में भूटान तथा पूर्व में बांग्लादेश सम्मिलित हैं। हिन्द महासागर में स्थित द्वीपीय देश श्रीलंका और मालदीव हमारे दक्षिणी पड़ोसी देश हैं। इन प्रदेशों की भौगोलिक स्थिति, जलवायु, प्राकृतिक मिट्टी तथा जनसंख्या की विशेषताओं में विभिन्नताएँ तथा विविधताएँ होते हुए भी उनमें एकात्मकता दिखाई पड़ती है। इसीलिए इसे उपमहाद्वीप कहा जाता है।

भारत विषुवत रेखा के उत्तर में स्थित है। इस कारण यह उत्तरी गोलार्द्ध में आता है। प्रधान मध्याह्न रेखा (ग्रीनविच रेखा) के पूर्व में स्थित होने के कारण भारत पूर्वी गोलार्द्ध में आता है। हम जानते हैं कि मध्याह्न रेखा की मध्य स्थिति 90° पूर्वी देशान्तर है, जो भारत से ही होकर गुजरती है। 82°30 पूर्वी

मध्याह्न रेखा भारत की मानक मध्याह्न रेखा है। इससे पूर्वी गोलार्द्ध में भारत की केन्द्रीयं स्थिति स्पष्ट हो जाती है।

भारत एशिया महाद्वीप के दक्षिण मध्य प्रायद्वीप में स्थित है। एशिया संसार में सबसे बड़ा तथा सबसे अधिक जनसंख्या वाला महाद्वीप है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण ही भारत को प्राचीन काल से ही आर्थिक लाभ प्राप्त हुए हैं।

(ख) भारत का उच्चावच अथवा प्राकृतिक स्वरूप (बनावट)
उच्चावच से तात्पर्य किसी भू-भाग के ऊँचे व नीचे धरातल से है। सभी प्रकार के पहाड़ी, पठारी व मैदानी तथा मरुस्थलीय क्षेत्र मिलकर किसी क्षेत्र के उच्चावच का निर्माण करते हैं। उच्चावच की दृष्टि से भारत में अनेक विभिन्नताएँ मिलती हैं। इनका मूल कारण अनेक शक्तियों और संचालनों का परिणाम है, जो लाखों वर्ष पूर्व घटित हुई थीं। इसकी उत्पत्ति भूवैज्ञानिक अतीत के अध्ययन से स्पष्ट की जा सकती है। आज से 25 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप विषुवत् रेखा के दक्षिण में स्थित प्राचीन गोण्डवानालैण्ड का एक भाग था। अंगारालैण्ड नामक एक अन्य प्राचीन भूखण्ड विषुवत् रेखा के उत्तर में स्थित था। दोनों प्राचीन भूखण्डों के मध्य टेथिस नामक एक सँकरा, लम्बा, उथला सागर था। इन भूखण्डों की नदियाँ टेथिस में अवसाद जमा करती रहीं, जिससे कालान्तर में टेथिस सागर पट गया। पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण दोनों भूखण्ड टूटे। गोण्डवानालैण्ड से भारत का प्रायद्वीप अलग हो गया तथा भूखण्डों के टूटे हुए भाग विस्थापित होने लगे। आन्तरिक हलचलों से टेथिस सागर के अवसादों की परतों में भिंचाव हुआ और उसमें विशाल मोड़ पड़ गए। इस प्रकार हिमालय पर्वत-श्रृंखला की रचना हुई। इसी कारण हिमालय को वलित पर्वत कहा जाता है।

हिमालय की उत्पत्ति के बाद भारतीय प्रायद्वीप और हिमालय के मध्य एक खाई या गर्त शेष रह गया। हिमालय से निकलने वाली नदियों ने स्थल का अपरदन करके अवसादों के उस गर्त को क्रमश: भरना शुरू किया जिससे विशाल उत्तरी मैदान की रचना हुई। इस प्रकार भारतीय उपमहाद्वीप की भू-आकृतिक इकाइयाँ अस्तित्व में आयीं।

भारत एक विशाल देश है। भू-आकृतिक संरचना की दृष्टि से भारत में अनेक विषमताएँ एवं विभिन्नताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। भारत का 29.3% भाग पर्वतीय, पहाड़ी एवं ऊबड़-खाबड़, 27.7% भाग पठारी तथा 43% भाग मैदानी है। भारत में अन्य देशों की अपेक्षा मैदानी क्षेत्रों का विस्तार अधिक है (विश्व का औसत 41%)। देश में एक ओर नवीन मोड़दार पर्वत-श्रृंखलाएँ हैं तो दूसरी ओर क्स्तृित तटीय मैदान, कहीं नदियों द्वारा निर्मित समतल उपजाऊ मैदान हैं तो कहीं प्राचीनतम कठोर चट्टानों द्वारा निर्मित कटा-फटी पठारी भाग है।

प्रश्न 2. भारत की भौगोलिक स्थिति के दो महत्त्वपूर्ण प्रभाव बताइए।
उत्तर-भारत की भौगोलिक स्थिति की अमिट छाप इसके समग्र प्रतिरूप पर पाई जाती है। चाहे जलवायु की बात हो या व्यापार की, उद्योग की बात हो या कृषि की, राजनीति की बात हो या धर्म की; सभी क्षेत्रों में इसकी भौगोलिक स्थिति का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है; यथा—
1. भौगोलिक स्थिति का जलवायु पर प्रभाव-
हिन्द महासागर में भारत का प्रायद्वीपीय भाग लगभग 1,600 किमी तक प्रवेश कर गया है, जिसके कारण अरब सागर और बंगाल की खाड़ी अपना समकारी प्रभाव सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय भारत की जलवायु पर डालते हैं और उत्तरी भारत की जलवायु को भी प्रभावित करते हैं। हिन्द महासागर और हिमालय पर्वत का ही प्रभाव है कि भारत का लगभग दो-तिहाई भाग उपोष्ण कटिबन्ध में स्थित होते हुए भी भारत उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु का देश कहलाता है। हिमालय पर्वत भारत की जाड़ों में उत्तर से आने वाली अत्यन्त शीतल एवं बर्फीली पवनों से रक्षा करता है और गर्मियों में मानसूनी पवनों को रोककर पर्वतीय ढालों पर वर्षा कराता है।

2. हिन्द महासागर का व्यापार पर प्रभाव-
हिन्द महासागर ने न केवल भारत की जलवायु को ही प्रभावित किया है, वरन् तटीय व विदेशी व्यापार को भी प्रभावित किया है। हिन्द महासागर को तीन । महाद्वीप-अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया-घेरे हुए हैं तथा इसके तटों पर संसार की लगभग एक-चौथाई जनसंख्या निवास करती है। इस महासागर के शीर्ष पर स्थित होने से भारत इस जनसंख्या से सीधा व्यापारिक सम्पर्क कर सकता है। हिन्द महासागर से होकर संसार का प्रसिद्ध समुद्री मार्ग स्वेज नहर गुजरता है, जिसका लाभ भारत को ठीक उसी प्रकार प्राप्त है जैसे कोई नगर किसी व्यस्त सड़क मार्ग का लाभ उठाता है। स्वेज नहर मार्ग द्वारा भारत पश्चिम में यूरोप और उत्तरी अमेरिकी देशों से जुड़ा है। इसी प्रकार पूरबे में मलक्का जलडमरूमध्य द्वारा यह
जापान, चीन, दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों और ऑस्ट्रेलिया से जुड़ा है।

प्रश्न 3. हिन्द महासागर के शीर्ष पर भारत की केन्द्रीय स्थिति किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर-पूर्वी गोलार्द्ध में भारत की स्थिति लगभग केन्द्रीय है। अपनी केन्द्रीय स्थिति के कारण ही प्राचीन काल में भारत के पश्चिम में अरब देशों से तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया एवं सुदूरपूर्व के देशों के साथ सांस्कृतिक, व्यापारिक एवं वाणिज्यिक सम्बन्ध स्थापित हो गए थे। हिन्द महासागर के शीर्ष पर भारत की स्थिति पूर्वी गोलार्द्ध में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। पश्चिम से पूर्व तथा पूर्व से पश्चिम जाने वाले महत्त्वपूर्ण जलमार्ग तथ वायुमार्ग भारत से होकर गुजरते हैं। इसकी केन्द्रीय स्थिति का महत्त्व इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है

  1. केन्द्रीय स्थिति के कारण भारत अन्तर्राष्ट्रीय जलमार्गों का केन्द्र हैं। पूर्व से पश्चिम तथा पश्चिम से | पूर्व जाने वाले सभी जलयान भारत से ही होकर गुजरते हैं (देखिए चित्र 1.2)।
  2. भारत हिन्द महासागर द्वारा अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों से जुड़ा हुआ है। इसकी केन्द्रीय स्थिति विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने में बहुत सहायक रही है।
  3. केन्द्रीय स्थिति के फलस्वरूप ही भारत पूर्व और पश्चिम के लिए अन्तर्राष्ट्रीय वायुमार्गों का संगम
    स्थल है। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्क स्थापित करने में भारत को बड़ी सहायता मिली है।
  4. भारत के समीपवर्ती अधिकांश दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश औद्योगिक दृष्टि से बहुत पिछड़े हुए हैं। अतः भारत के विनिर्मित माल आसानी से इन देशों में बिक जाते हैं।
  5. प्रायद्वीपीय भारत तीन ओर से समुद्र द्वारा घिरा है। इसकी तट रेखा सपाट एवं विशाल है। अत: इसके पत्तन वर्षभर सभी देशों के जल परिवहन के लिए खुले रहते हैं।
  6. सन् 1865 ई० से स्वेज नहर जलमार्ग के खुल जाने से पश्चिमी देशों के बीच भारत की दूरी लगभग 7,000 किमी कम हो गई है। अत: भारत पूर्व एवं पश्चिम को जोड़ने वाली एक कड़ी के रूप में कार्य करता है।

प्रश्न 4. भारत की सीमाओं का वर्णन कीजिए। भारत के समीपवर्ती देशों से सम्पर्क स्थापित करने में भौगोलिक कठिनाइयों को बताइए।
उत्तर- भारत की सीमाओं का वर्णन इस प्रकार है
1. चीन से लगने वाली उत्तरी सीमा–भारत की उत्तरी सीमा चीन, नेपाल तथा भूटान देशों से मिलती है। यहाँ हिमालय पर्वतमाला एक प्राकृतिक सीमारेखा के रूप में कार्य करता है। भारत चीन के मध्य की सीमा को मैकमोहन रेखा कहते हैं जो सिक्किम राज्य से म्यांमार की सीमा तक 4,248 किमी लम्बी है। सामरिक दृष्टि से यह सीमारेखा बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।

2. पाकिस्तान से लगने वाली पश्चिमी सीमा-भारत की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से मिलती है, जो अप्राकृतिक है तथा जिसकी लम्बाई 1,120 किमी है। भारत के अनुसार, राजस्थान, पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर राज्यों की सीमाएँ पाकिस्तान को पृथक् करती हैं।

3. बांग्लादेश तथा म्यांमार से लगने वाली सीमा-पूर्व की ओर भारत की सीमा बांग्लादेश से मिलती है, जो अप्राकृतिक है। इसके सीमान्त पर पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्य स्थित हैं। म्यांमार और भारत के मध्य हिमालय की अराकानयोमा पर्वत-श्रेणी है। इस सीमान्त पर अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मणिपुर तथा मिजोरम राज्य स्थित हैं।

UP Board Solutions for Class 11 Geography Indian Physical Environment Chapter 1 India Location (भारत स्थिति) img 3

4. भारत की तटरेखा–भारत की तटरेखा पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लेकर हिन्द महासागर के शीर्ष से होती हुई पश्चिम में कच्छ की खाड़ी (अरब सागर) तक विस्तृत है। अरब सागर में लक्षद्वीप मिनीकॉय एवं अमीनदीवी द्वीपसमूह तथा बंगाल की खाड़ी में अण्डमान-निकोबार द्वीपसमूह स्थित हैं। इस क्षेत्र में भारत की सीमा पाक जलडमरूमध्य द्वारा श्रीलंका से मिलती है। समीपवर्ती देशों से सम्पर्क स्थापित करने में भारत की भौगोलिक कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं
(i) भारत का उत्तरी भाग अत्यन्त ही दुर्गम है; अत: हिमालय पर्वतमाला के कारण केवल कुछ दर्रा मार्गों द्वारा ही इसे पार किया जा सकता है।
(ii) भारत की उत्तरी सीमा पर पाकिस्तान एवं चीन हैं। इन दोनों ही देशों से सामरिक खतरों के कारण इस संवेदनशील क्षेत्र में सम्पर्क स्थापित करना कठिन है।
(iii) विदेश नीति के कारण भी दुर्गम सीमान्त क्षेत्रों में सम्पर्क स्थापित करना कठिन है।

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UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 3 Plant Kingdom 

UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 3 Plant Kingdom (वनस्पति जगत)

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अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
शैवालों के वर्गीकरण का क्या आधार है?
उत्तर :
शैवालों का वर्गीकरण मुख्यतया उनमें उपस्थित वर्णक (pigments), (UPBoardSolutions.com) फ्लेजिला (flagella), संगृहीत खाद्य पदार्थ (storage food product) और कोशिका भित्ति की रासायनिक संरचना (chemical structure of cell wall) के आधार पर किया जाता है।

प्रश्न 2.
लिवरवर्ट, मॉस, फर्न, जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म के जीवन चक्र में कहाँ और कब निम्नीकरण विभाजन (reduction division) होता है?
उत्तर :
लिवरवर्ट तथा मॉस में निम्नीकरण विभाजन कैप्सूल (capsule) की बीजाणु मातृ कोशा (spore mother cell) में होता है। फर्न में निम्नीकरण विभाजन स्पोरेन्जिया (sporangia) की बीजाणु मातृ कोशा (spore mother cell) में होता है। जिम्नोस्पर्म में निम्नीकरण विभाजन माइक्रोस्पोरेन्जियम (microsporangium) में माइक्रोस्पोर (परागकण) के निर्माण के समय तथा मेगास्पोरेन्जियम में मेगास्पोंर (megaspore) के निर्माण के समय होता है। एन्जियोस्पर्म में निम्नीकरण विभाजन परागकोश (anther) की    माइक्रोस्पोरेन्जियम तथा अण्डाशय (ovule) की मेगास्पोरेन्जियम में होता है।

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प्रश्न 3.
पौधों के तीन वर्गों के नाम लिखिए जिनमें स्त्रीधानी (archaegonia) होती है। इनमें से किसी एक के जीवन-चक्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए
उत्तर :
ब्रायोफाइटा, टेरिडोफाइटा तथा जिम्नोस्पर्म वर्ग के पौधों में स्त्रीधानी पाई जाती है।

मॉस (ब्रायोफाइट पादप) को जीवन-चक्र

इसकी प्रमुख अवस्था युग्मकोभिद् (gametophyte) होती है। युग्मकोभिद् की दो अवस्थाएँ पाई जाती हैं

(क)
शाखामय, हरे, तन्तुरूपी प्रोटोनीमा (protonema) :
का निर्माण अगुणित बीजाणुओं के अंकुरण से होता है। इस पर अनेक कलिकाएँ (UPBoardSolutions.com) विकसित होती हैं जो वृद्धि करके पत्तीमय अवस्था का निर्माण करती हैं।

(ख)
पत्तीमय अवस्था पर नर तथा मादा जननांग समूह के रूप में बनते हैं। नर जननांग को पुंधानी (antheridium) तथा मादा जननांग को स्त्रीधानी (archegonium) कहते हैं। पुंधानी में द्विकशाभिक पुंमणु (antherozoids) तथा स्त्रीधानी में अण्डाणु (ovum) बनता है।निषेचन जल की उपस्थिति में होता है। पुमणु तथा अण्डाणु संलयन के फलस्वरूप द्विगुणित युग्मनज (oospore) बनाते हैं। युग्मनजे से वृद्धि तथा विभाजन द्वारा द्विगुणित बीजाणुउभिद् (sporophyte) का निर्माण होता है। यह युग्मकोभिद् पर अपूर्ण परजीवी होता है।

बीजाणुउभिद् के तीन भाग होते हैं

  1. पाद (foot)
  2.  सीटा (seta) तथा
  3.  सम्पुट (capsule)
    UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 3 Plant Kingdom image 1

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सम्पुट के बीजाणुकोष्ठ में स्थित द्विगुणित बीजाणु मातृ कोशिकाओं से अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित बीजाणु (spores) बनते हैं।
सम्पुट के स्फुटन से बीजाणु मुक्त हो जाते हैं। बीजाणुओं का प्रकीर्णन वायु द्वारा होता है। अनुकूल (UPBoardSolutions.com) परिस्थितियाँ मिलने पर बीजाणु अंकुरित होकर तन्तुरूपी, स्वपोषी प्रोटोनीमा (protonema) बनाते हैं।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित की सूत्रगुणता (ploidy) बताइए मॉस की प्रथम तन्तुक कोशिका, द्विबीजपत्री के प्राथमिक भ्रूणपोष का केन्द्रक, मॉस की पत्तियों की कोशिका, फर्न के प्रोथैलस की कोशिकाएँ, मारकेंशिया की जेमा कोशिका, एकबीजपत्री की मेरिस्टेम कोशिका, लिवरवर्ट के अण्डाशय तथा फर्न के युग्मनज।
उत्तर :
इनकी सूत्रगुणता निम्नवत् है

  1. मॉस की प्रथम तन्तुक कोशिका – अगुणित (Haploid-X)
  2.  द्विबीजपत्री के प्राथमिक भ्रूणपोष का केन्द्रक – त्रिगुणित (Triploid-3X)
  3.  मॉस की पत्तियों की कोशिका – अगुणित (Haploid-X)
  4.  फर्न के प्रोथैलस की कोशिकाएँ – अगुणित (Haploid-X)
  5.  मारकेंशियां की जेमा कोशिका – अगुणित (Haploid-X)
  6. एकबीजपत्री की मेरिस्टेम कोशिका – द्विगुणित (Diploid-2X)
  7. लिवरवर्ट का अण्डाशय – अगुणित (Haploid-X)
  8. फर्न का युग्मनज  – द्विगुणित (Diploid-2X)

प्रश्न 5.
शैवाल तथा जिम्नोस्पर्म के आर्थिक महत्त्व पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
शैवाल का आर्थिक महत्त्व

1. भोजन के रूप में (Algae as Food) :
पृथ्वी पर होने वाले प्रकाश संश्लेषण का 50% शैवालों द्वारा होता है। शैवाल कार्बोहाइड्रेट, खनिज तथा विटामिन्स से भरपूर होते हैं पोरफाइरा (Porphyra), एलेरिया (Alaria), अल्वा (Ulva),सारगासम (Sargassum), लेमिनेरिया (Luminaria) आदि खाद्य पदार्थ (UPBoardSolutions.com) के रूप में प्रयोग किए जाते हैं क्लोरेला (Chlorella) में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन्स तथा विटामिन्स पाए जाते हैं। इसे भविष्य के भोजन के रूप में पहचाना जा रहा है इससे हमारी बढ़ती जनसंख्या की खाद्य समस्या के हल होने की पूरी सम्भावना है

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2. शैवाल व्यवसाय में (Algae in Industry) :

  1. डायटम के जीवाश्म/मृत शरीर डायटोमेशियस मृदा (diatomaceous earth or Kiselghur) बनाते हैं। यह मृदा 1500°C ताप सहन कर लेती है। इसका उद्योगों में विविध प्रकार से उपयोग किया जाता है; जैसे–धातु प्रलेप, वार्निश, पॉलिश, टूथपेस्ट, ऊष्मारोधी सतह आदि।
  2. कोन्ड्रस (Chondrus), यूक्यिमा (Eucheuma) आदि शैवालों से कैरागीनिन (carrageenin) प्राप्त होता है। इसका उपयोग शृंगार-प्रसाधनों, शैम्पू आदिबनाने में किया जाता है
  3. एलेरिया (Alaria), लेमिनेरिया (Laminaria) आदि से एल्जिन (algin) प्राप्त होता है। इसका उपयोग अज्वलनशील फिल्मों, कृत्रिम रेशों आदि के निर्माण में किया जाता है  यह शल्य चिकित्सा के समय रक्त प्रवाह रोकने में भी प्रयोग किया जाता है।
  4. अनेक समुद्री शैवालों से आयोडीन, ब्रोमीन आदि प्राप्त की जाती है।
  5.  क्लोरेला से प्रतिजैविक (antibiotic) क्लोरेलीन (Chlorellin) प्राप्त होती है। यह जीवाणुओं को नष्ट (UPBoardSolutions.com) करती है। कारा (Chara) तथा नाइटेला (Nitella) शैवालों की उपस्थिति से जलाशय के मच्छर नष्ट होते हैं; अतः ये मलेरिया उन्मूलन में सहायक होते हैं
  6.  लाल शैवालों से एगार-एगार (agar-agar) प्राप्त होता है, इसका उपयोग कृत्रिम संवर्धन के लिए  किया जाता है।

जिम्नोस्पर्म का आर्थिक महत्त्व

1. सजावट के लिए (Ornamental Plants) :
सोइकस, पाइनस, एरोकेरिया (Arqucurid), गिंगो (Ginkgo), थूजा (Thujq), क्रिप्टोमेरिया (Cryptomeria) आदि पौधों का उपयोग सजावट के लिए किया जाता है।

2. भोज्य पदार्थों के लिए (Plants of Food value) :
साइकस, जैमिया से साबूदाना (sago) प्राप्त होता है। चिलगोजा (Pinus gerardiana) के बीज खाए जाते हैं। नीटम (Gnetum), गिंगो (Ginkgo) व साइकस के बीजों को भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है।

3. फर्नीचर के लिए लकड़ी :
चीड़ (Pinus), देवदार (Cedrus), कैल (Pinus wallichiana), फर (Abies) से प्राप्त लकड़ी का उपयोग फर्नीचर तथा इमारती लकड़ी के रूप में किया जाता है।

4. औषधियाँ (Medicines) :
साइकस के बीज, छाल व गुरुबीजाणुपर्ण को पीसकर पुल्टिस बनाई जाती है। टेक्सस बेवफोलिया (Taxus brevfolia) से टेक्साल औषधि प्राप्त होती है। जिसका उपयोग कैन्सर में किया जाता है। थूजा (Thuja) की पत्तियों को उबालकर बुखार, खाँसी, गठिया रोग के निदान के लिए प्रयोग किया जाता है।
5. एबीस बालसेमिया (Abies balsamea) :
से कैनाडा बालसम, जूनिपेरस (Juniperus) से सिडार वुड ऑयल (cedar wood oil), पाइनस से तारपीन का तेल प्राप्त होता है।

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प्रश्न 6.
जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म दोनों में बीज होते हैं फिर भी उनका वर्गीकरण अलग-अलग क्यों है?
उत्तर :
जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म दोनों का वर्गीकरण अलग-अलग इसलिए किया जाता है क्योंकि जिम्नोस्पर्म में बीज नग्न (naked seeds) होते हैं, फल अनुपस्थित होते हैं, फूल अनुपस्थित होते हैं, भ्रूणपोष (endosperm) अगुणित (haploid) होता है तथा निषेचन से पहले बनता है। द्विनिषेचन (UPBoardSolutions.com) (double fertilization) अनुपस्थित होता है। वर्तिकाग्र (stigma) अनुपस्थित होता है तथा स्त्रीधानी (archaegonia) पाई जाती है, जबकि एन्जियोस्पर्म के बीज फल से घिरे रहते हैं, फूल उपस्थित होते हैं, भ्रूणपोष त्रिगुणित (triploid) होता है तथा द्विनिषेचन के पश्चात् बनता है। वर्तिकाग्र (stigma) पाया जाता है। तथा स्त्रीधानी (archaegonia) नहीं पाई जाती है।

प्रश्न 7.
विषम बीजाणुकता क्या है? इसकी सार्थकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। इसके दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
एक पौधे में दो प्रकार के बीजाणुओं (छोटा माइक्रोस्पोर तथा बड़ा मेगास्पोर) की उपस्थिति विषम बीजाणुकता (heterospory) हलाती है। यह कुछ टेरिडोफाइट; जैसे-सिलेजीनेला (Seluginella), साल्वीनिया (Savinia), मालिया (Marsiled) आदि में तथा सभी जिम्नोस्पर्म व एन्जियोस्पर्म में पाई जाती है। विषम बीजाणुकता का विकास सर्वप्रथम टेरिडोफाइट में हुआ था। विषम बीजाणुकता बीज निर्माण प्रक्रिया की शुरूआत मानी जाती है जिसके  फलस्वरूप बीज का विकास हुआ। विषम बीजाणुकता ने नर एवं मादा युग्मकोभिद् (male and female gametophyte) के विभेदने में सहायता की तथा मादा युग्मकोभिद् जो मेगास्पोरेन्जियम के अन्दर विकसित (UPBoardSolutions.com) होता है कि उत्तरजीविता बढ़ाने में सहायता की।

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प्रश्न 8.
उदाहरण सहित निम्नलिखित शब्दावली का संक्षिप्त वर्णन कीजिए

  1. प्रथम तन्तु
  2. पुंधानी
  3. स्त्रीधानी
  4. द्विगुणितक
  5. बीजाणुपर्ण तथा
  6. समयुग्मकी

उत्तर :
1.प्रथम तन्तु (Protonema) :
यह हरी, अगुणित (haploid), प्रकाश-संश्लेषी, स्वतन्त्र प्रारम्भिक युग्मकोभिद् (gametophytic) संरचना है जो मॉस (ब्रायोफाइट) में पाई जाती है। यह बीजाणुओं (spores) के अंकुरण से बनती है तथा नये युग्मकोभिद् पौधे का निर्माण करती है।

2. पुंधानी (Antheridium) :
यह बहुकोशिकीय, कवच युक्त (jacketed) नर जनन अंग (male sex organ) है जो ब्रायोफाइट व टेरिडोफाइट में पाया जाता है। पुंधानी में नर युग्मक (male gamete or antherozoids) बनते हैं।

3. स्त्रीधानी (Archaegonium) :
यह बहुकोशिकीय, फ्लास्क के समान मादा जनन अंग (female sex organ) है जो ब्रायोफाइट, टेरिडोफाइट तथा कुछ जिम्नोस्पर्म में पाई जाती है। यह ग्रीवा (neck) तथा अण्डधा (venter) में विभाजित होती है। इसमें एक अण्ड (egg) बनता है।

4. द्विगुणितक (Diplontic) :
यह जीवन-चक्र का एक प्रकार है जिसमें पौधा द्विगुणित (2n) होता है तथा इस पर युग्मकीय अर्धसूत्री (UPBoardSolutions.com) विभाजन (gametic meiosis) द्वारा अगुणित (haploid) युग्मक (gametes) बनते हैं। उदाहरण-फ्युकस, सारगासम।

5. बीजाणुपर्ण (Sporophyll) :
फर्न (टेरिडोफाइट) में बीजाणु (spores) बीजाणुधानियों (sporangia) में पाए जाते हैं। इन बीजाणुधानियों के समूह को सोरस (sorus) कहते हैं। ये पिच्छक या पत्ती (pinna or leaf) की नीचे की सतह (lower surface) पर मध्य शिरा (mid rib) के दोनों ओर दो पंक्तियों में शिराओं के सिरे पर लगी रहती हैं। इन सोराई धारण करने वाल पत्तियों को बीजाणुपर्ण (sporophyll) कहते हैं।

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6. समयुग्मकी (Isogamy) :
यह एक प्रकार का लैंगिक जनन है जिसमें संलयन करने वाले युग्मक (gametes) संरचना तथा कार्य में समान होते हैं।

उदाहरण :

  1. यूलोथ्रिक्स (Ulothrs)
  2. क्लेमाइडोमोनास(Chlamydomonas)
  3. तथा एक्ट्रोकार्पस (Ectocarpus)

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में अन्तर कीजिए लाल शैवाल तथा भूरे शैवाल

  1. लिवरवर्ट तथा मॉस
  2.  समबीजाणुक तथा विषमबीजाणुक (UPBoardSolutions.com) टेरिडोफाइट
  3.  युग्मक संलयन तथा त्रिसंलयन

उत्तर :

(i)
लाल शैवाल तथा भूरे शैवाल में अन्तर

UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 3 Plant Kingdom image 2
(ii)
लिवरवर्ट तथा मॉस में अन्तर

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(iii)
समबीजाणुक तथा विषमबीजाणुक टेरिडोफाइट में अन्तर

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(vi)
युग्मक संलयन तथा त्रिसंलयन में अन्तर

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प्रश्न 10.
एकबीजपत्री को द्विबीजपत्री से किस प्रकार विभेदित करोगे?
उत्तर :

एकबीजपत्री व द्विबीजपत्री पौधे में अन्तर
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प्रश्न 11.
स्तम्भ I में दिए गए पादपों का स्तम्भ-II में दिए गए पादप वर्गों से मिलाने कीजिए
स्तम्भ-I (पादप)                    स्तम्भ-II (वर्ग)
(a) क्लेमाइडोमोनास               (i) मॉस
(b) साइकस                           (ii) टेरिडोफाइट
(c) सिलैजिनेला                       (iii) शैवाल
(d) स्फेगनम                           (iv) जिम्नोस्पर्म
उत्तर :
(a) (iii)
(b) (iv)
(c) (ii)
(d) (i)

प्रश्न 12.
जिम्नोस्पर्म के महत्त्वपूर्ण अभिलक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
जिम्नोस्पर्म के महत्त्वपूर्ण अभिलक्षण ये सामान्यत: ‘नग्नबीजी पौधे’ कहलाते हैं। इनके मुख्य अभिलक्षण निम्नलिखित हैं

  1. अधिकतर पौधे मरुद्भिदी, (xerophytic), काष्ठीय (woody), बहुवर्षीय (perennial) वृक्ष या झाड़ी होते हैं।
  2. पत्तियाँ प्राय: दो प्रकार की होती हैं-शल्क पर्ण और सत्य पर्ण (scale leaves and foliage leaves) स्टोमेटो निचली सतह पर तथा गत में स्थित होते हैं।
  3. तने में संवहन पूल (vascular bundles), संयुक्त (conjoint), कोलेटरल (UPBoardSolutions.com) m(collateral) तथा खुले (open) होते हैं।
  4. जाइलम (xylem) में वाहिकाओं (vessels) तथा फ्लोएम (phloem) में सह कोशिकाओं श(A) (companion cells) का अभाव होता है।
  5. पौधे विषमबीजाणुक (heterosporous) होते हैं-लघुबीजाणु (microspores) तथा गुरुबीजाणु (megaspores)।
  6. पुष्प शंकु (cones) कहलाते हैं। प्रायः नर और मादा शंकु अलग-अलग होते हैं। पौधे एकलिंगाश्रयी (monoecious) होते हैं। नर शंकु का निर्माण लघुबीजाणुपर्णो (micro SHOOT sporophylls) तथा मादा शंकु का निर्माण गुरुबीजाणुपर्णो से होता है।
  7. नर युग्मकोभिद् (male gametophyte) अत्यन्त ह्रासित (reduced) होता है। परागनलिका (pollen tube) बनती है।
  8. मादा युग्मकोभिद् (female gametophyte) एक गुरुबीजाणु (megaspore) से बनता है। यह बहुकोशिकीय (multicellular) होता है। यह पोषण के लिए पूर्णत: बीजाणुभि पर निर्भर करता है।
  9. भ्रूणपोष अगुणित होता है। यह निषेचन से पहले बनता है।
  10. इन पौधों में सामान्यतः वायु परागण (wind pollination) होता है।
  11. प्राय: बहुभ्रूणता (polyembryony) पाई जाती है; किन्तु अंकुरण के समय केवल एक ही धूण
    विकसित होता है।
  12. नग्न बीजाण्ड से निषेचन तथा परिवर्द्धन के बाद नग्न बीज बनाता है। फल (fruits) नहीं बनते।

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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सभी शैवालों में पाया जाता है
(क) पर्णहरित-a तथा पर्णहरित-b
(ख) पर्णहरित-b तथा कैरोटीन्स
(ग) पर्णहरित-a तथा कैरोटीन्स
(घ) फाइकोबिलिन्स तथा कैरोटीन्स
उत्तर :
(क) पर्णहरित-a तथा पर्णहरित-b

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा शैवाल भूमि में वातावरण की नाइट्रोजन स्थिर करता है?
(क) ऐनाबीना
(ख) यूलोथ्रिक्स
(ग) स्पाइरोगायरा
(घ) म्यूकर
उत्तर :
(क) ऐनाबीना

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प्रश्न 3.
ऐसीटेबुलेरिया नामक शैवाल के प्रयोगों द्वारा केन्द्रक के महत्व को सर्वप्रथम बताया
(क) वाट्सन ने
(ख) हैमरलिंग ने
(ग) नीरेनबर्ग ने
(घ) रॉबर्ट ब्राउन ने
उत्तर :
(ख) हैमरलिंग ने

प्रश्न 4.
ऐसीटेबुलेरिया है एक
(क) एककोशिकीय हरी शैवाल
(ख) बहुकोशिकीय हरी शैवाल
(ग) एककोशिकीय लाल शैवाल
(घ) बहुकोशिकीय लाल शैवाल
उत्तर :
(क) एककोशिकीय हरी शैवाल

प्रश्न 5.
एल्सिनेट्स, एल्जिनिक अम्ल के लवण हैं जो कोशिका भित्ति में पाये जाते हैं।
(क) रोडोफाइसी के सदस्यों में
(ख) मिक्सोफाइसी के सदस्यों में
(ग) फियोफायसी के सदस्यों में
(घ) क्लोरोफाइसी के सदस्यों में
उत्तर :
(ग) फियोफायसी के सदस्यों में

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प्रश्न 6.
निम्न में से कौन-सा ब्रायोफाइट मृतोपजीवी है?
(क) फ्यूनेरियो
(ख) रिक्सिया
(ग) बक्सबोमिया
(घ) ये सभी
उत्तर :
(ग) बक्सबोमिया

प्रश्न 7.
टेरिडोफाइट्स………..भी कहलाते हैं
(क) फैनेरोगैम्स
(ख) वैस्कुलर क्रिप्टोगैम्स
(ग) क्रिप्टोगैम्स
(घ) एन्जिओस्पर्स
उत्तर :
(ख) वैस्कुलर क्रिप्टोगैम्स।

प्रश्न 8.
प्रवालाभ जड़े (coralloid roots) पायी जाती हैं
(क) साइकस में
(ख) फ्यूनेरिया में
(ग) टेरिस में
(घ) लाइकोपोडियम में
उत्तर :
(क) साइकस में

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से किसमें चूषक परीगनली पायी जाती है?
(क) पाइनस में
(ख) साइकस में
(ग) हिबिस्कस में
(घ) एलियम में
उत्तर :
(ख) साइकस में

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लाइकेन के दोनों घटकों का नाम लिखिए।
उत्तर :

  1. कवक
  2.  शैवाल

प्रश्न 2.
चाय की पत्तियों पर लाल किट्ट (Red rust) रोग किस कारण होता है? या एक परजीवी शैवाल का नाम लिखिए।
उत्तर :
सीफैल्यूरोस (Cephaluros) शैवाल से।

प्रश्न 3.
नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने वाले दो नीले-हरे शैवालों के नाम लिखिए। या किसी शैवाल का नाम लिखिए जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण में भाग लेता है।
उत्तर :
नॉस्टॉक तथा ऐनाबीना।

प्रश्न 4.
उस एककोशिकीय शैवाल का नाम लिखिए जो प्रकाश संश्लेषण के अनुसन्धान में प्रयुक्त होता है।
या किस शैवाल में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाई जाती है?
उत्तर :
क्लोरेला (Chlorella)

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प्रश्न 5.
एक शैवाल का नाम बताइए जिसमें सर्पिल हरितलवक होते हैं
उत्तर :
स्पाइरोगायरा

प्रश्न 6.
नीले-हरे शैवालों और जीवाणुओं में क्या समानताएँ हैं? या नीले-हरे शैवालों को सायनोबैक्टीरिया क्यों कहते हैं?
उत्तर :

नीले :
हरे शैवाल और जीवाणु दोनों ही मृदा में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं। नीले-हरे शैवालों में क्लोरोफिल पाया जाता है जिसकी सहायता से वे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं इसीलिए उन्हें सायनोबैक्टीरिया कहते हैं।

प्रश्न 7.
ब्रायोफाइटा के दो प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर :

  1. इस समुदाय के अधिकांश पौधे हरे होते हैं तथा पृथ्वी पर नम एवं छायादार स्थानों पर उगते हैं। (UPBoardSolutions.com) किन्तु इनमें निषेचन (fertilization) के लिए जल की आवश्यकता होती है, अत: इन्हें पादप जगत का उभयचर (amphibians of the plant kingdom) कहते हैं।
  2. ये पौधे छोटे और थैलस की तरह (thalloid) होते हैं। कुछ उच्च श्रेणी के ब्रायोफाइट्स में वास्तविक (true) जड़े, तना तथा पत्तियाँ तो नहीं होतीं, परन्तु पौधे में तने तथा पत्ती के समान संरचनाएँ मिलती हैं। जड़ों के स्थान पर मूलांग (rhizoids) होते हैं। ये मूलांग पौधों को स्थिर रखने और भूमि से खनिज-लवण का अवशोषण करने में सहायक होते हैं।

प्रश्न 8.
फ्यूनेरिया के परिमुख में कितने दाँत पाये जाते हैं?
उत्तर :
32 दाँत पाये जाते हैं, जो दो कतारों में (प्रत्येक कतार में 16 दाँत) में व्यवस्थित होते हैं।

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प्रश्न 9.
उस पौधे का नाम लिखिए जिसमें परिमुख (peristome) पाया जाता है।
उत्तर :
परिमुख (peristome) अनेक ब्रायोफाइट्स विशेषकर मॉस (mosses), जैसे–फ्यूनेरिया (Fundria) में पाया जाता हैं।

प्रश्न 10.
उस ब्रायोफाइट का नाम लिखिए जिसमें पाइरीनॉइड पाया जाता है।
उत्तर :
एन्थोसिरोस (Anthoceros)

प्रश्न 11.
किस टेरिडोफाइटा का उपयोग जैव उर्वरक के रूप में किया जाता है?
उत्तर :
जलीय टेरिडोफाइट ऐजोला (Azolla) का, क्योंकि इसमें नीला-हरा शैवाल ऐनग्बीना (Anabaena) पाया जाता है।

प्रश्न 12.
टेरिडोफाइटस में रम्भ (स्टील) की विचारधारा किसने प्रस्तुत की थी?
उत्तर :
वान टोघम (Van Tiegham) एवं डुलिट (Doulit) ने।

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प्रश्न 13.
टेरिडोफाइट्स के चार प्रमुख लक्षण लिखिए। उत्तर–टेरिडोफाइट्स के चार प्रमुख लक्षण निम्नवत् हैं

  1. मुख्य पौधा बीजाणुभिद् (sporophyte) होता है जो प्रायः जड़, पत्ती तथा स्तम्भ में विभेदित रहता है।
  2. ऊतक तन्त्र विकसित होता है, संवहन बण्डल उपस्थित, इनमें संवहन (UPBoardSolutions.com) ऊतक (vascular tissue), जाइलम एवं फ्लोएम में भिन्नत होता है।
  3. इसमें जाइलम में वाहिकाओं (vessels) तथा फ्लोएम में सह-कोशिकाओं (companion cells) का अभाव होता है।
  4. द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) अनुपस्थित, अपवाद स्वरूप आइसोइट्स (Isoetes) में द्वितीयक वृद्धि होती है।

प्रश्न 14.
किस पौधे से तारपीन का तेल प्राप्त किया जाता है? उसका नाम लिखिए।
उत्तर :
अनावृतबीजी पौधे पाइनस से।

प्रश्न 15.
बीरबल साहनी के योगदानों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
प्रो० बीरबल साहनी विश्व के जाने-माने जीवाश्म वनस्पति विज्ञानी (palaeobotanist) थे। उन्हें भारतीय जीवाश्म वनस्पति विज्ञान का जनक (Father of Indian Palaeobotany) कहा जाता है। उनका विशेष योगदान जुरैसिक युग (Jurassic age) के अनावृतबीजी (gymnosperm) विशेषकर एक वर्ग पेण्टोजाइली (pentoxylae) पर शोध कार्य है। उनके प्रयत्नों से, सन् 1946 में विश्व मान्य ‘बीरबल साहनी इन्स्टीट्यूट ऑफ पेलियोबॉटेनी’ (Birbal Sahni Institute of Palaeobotany) लखनऊ की स्थापना हुई। पेलियोबॉटेनिकल सोसायटी ऑफ इण्डिया (Palaeobotanical Society of India) की स्थापना भी उनके ही विशिष्ट प्रयत्नों से हुई।

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प्रश्न 16.
उस संरचना का नाम बताइए जो साइकस की पर्णिका में पाश्र्वशिरा का कार्य करती है।
उत्तर :
संचरण ऊतक (transfusion tissue) जिसकी कोशिकाएँ अनुप्रस् रूप में लम्बी होती हैं।

प्रश्न 17.
अनावृतबीजी पौधों के चार प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) लिखिए। या अनावृतबीजी पौधों की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
अनावृतबीजी पौधों के चार प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) निम्नवत् हैं।

  1. इस वर्ग के पौधे प्रायः बहुवर्षीय तथा काष्ठीय होते हैं।
  2. ये मरुद्भिद् स्वभाव के होते हैं जिनमें रन्ध्र पत्ती में धंसे होते हैं तथा बाह्यत्वचा पर उपत्वचा की परत चढ़ी रहती है।
  3.  भ्रूणपोष अगुणित होता है तथा इसका निर्माण निषेचन के पूर्व ही होता है।
  4.  युग्मकोभिद् पीढ़ी बहुत कम विकसित तथा बीजाणुभिद् पीढ़ी पर ही निर्भर होती है।

प्रश्न 18.
भारतीय जीवाश्म वनस्पति विज्ञान (पुरावनस्पति-विज्ञान) का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर :
प्रो० बीरबल साहनी को।

प्रश्न 19.
साइकस तथा फर्न की समानताओं की तुलना कीजिए।
उत्तर :
साइकस तथा फर्न में निम्नलिखित समानताएँ हैं

  1. बीजाणुभिद् का जड़, तना व पत्ती में विभेदन
  2.  अनावृतबीजीयों के गण साइकेडेल्स के सदस्यों की संयुक्त पत्ती में फर्न की भाँति कुण्डलिन विन्यास (circinate venation)
  3. संवहन ऊतक का विकास, दारु या जाइलम में वाहिनियाँ व पोषवाह या (UPBoardSolutions.com) फ्लोएम में सह-कोशिकाएँ अनुपस्थित।
  4. विषमबीजाणुकता (heterospory)
  5. युग्मकोभिद् के आकार में ह्रास।
  6.  बीजाणुभिद् की जटिलता में क्रमिक वृद्धि।
  7. कुछ अनावृतबीजीयों गण साइकेडेल्स, गिंगोएल्स (order Cycadales, Ginkgoales) में बहुपक्ष्माभीय चलनशील पुंमणु (antherozoids)
  8. निषेचन से पूर्व भ्रूणपोष का विकास।

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प्रश्न 20.
उभयलिंगी पादप किसे कहते हैं? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
वे पादप जिनमें नर पुष्प एवं मादा पुष्प दोनों अलग-अलग एक ही पादप पर उपस्थित होते हैं, उभयलिंगी पादप कहलाते हैं।

उदाहरणार्थ :

  1. सिडूस देवदार

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यूलोथ्रिक्स और स्पाइरोगाइरा के लैगिक जनन की तुलना कीजिए। या राइजोपस तथा स्पाइरोगाइरा के लैगिक प्रजनन की तुलना कीजिए। 
या चित्रों की सहायता से यूलोथ्रिक्स में लैगिक जनन का वर्णन कीजिए।
उत्तर :

यूलोथ्रिक्स तथा स्पाइरोगाइरा के लैगिक जनन की तुलना

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राइजोपस तथा स्पाइरोगाइरा के लैगिक जनन की तुलना
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प्रश्न 2.
शैवाल तथा कवक में अन्तर बताइए।

उत्तर :
शैवाल तथा कवक में अन्तर

UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 3 Plant Kingdom image 13

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित को ओसवाल्ड टिप्पो के वर्गीकरण के अनुसार वर्गीकृत कीजिए
(i) यूलोथ्रिक्स
(ii) राइजोपस
(iii) साइकस
(iv) गुड़हल (हिबिस्कस)
(v) प्याज (एलियम)
(vi) एलब्यूगो
(vii) अरहर
(viii) पाइनस
(ix) आलू
उत्तर :

(i) यूलोथ्रिक्स

जगत (kingdom)  – पादप (plantae)
उप-जगत (sub -kingdom)  – थैलोफाइटा (thallophyta)
संघ (phylum)   – क्लोरोफाइटा (chlorophyta)
वर्ग (class)    – क्लोरोफाइसी (chlorophyceae)
क्रम (order)   – यूलोट्राइकेल्स (ulotrichales)
उप-क्रम (sub-order)  – यूलोट्राइकिनी (ulotrichineae)
कुल (family)  – यूलोट्राइकेसी (ulotrichaceae)
वंश (genus)  – यूलोथ्रिक्स (Ulothrix)
जाति (species)   – जोनेटा (zonata)

(ii) राइजोपस

जगत व उप-जगत    – यूलोथ्रिक्स के समान
संघ    – यूमाइकोफाइटा (eumycophyta)
वर्ग    – फाइकोमाइसीट्स (phycomycetes)
उप-वर्ग   – जाइगोमाइसीट्स (zygomycetes)
क्रम     – म्यूकोरेल्स (mucorales)
कुल    – म्यूकोरेसी (mucoraceae)
वंश     – राइजोपस (Rhizopus)
जाति    – निग्रीकैन्स (nigricans)

(iii) साइकस

जगत        – पादप (plantae)
उप-जगत – एम्ब्रयोफाइटा (embryophyta)
संघ       – ट्रैकियोफाइटा (tracheophyta)
उप-संघ – टेरॉप्सिडा (pteropsida)
वर्ग         – जिम्नोस्पर्मी (gymnospermae)
उप-वर्ग  – साइकेडोफाइटी (cycadophytae)
क्रम      – साइकेडेल्स (cycadales)
वंश      – साइकस (Cycus)

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(iv) गुड़हल

जगत से उप-संघ तक  – साइकस के समान
वर्ग          – एन्जियोस्पर्मी (angiospermae)
उप-वर्ग   – डाइकॉटीलीडनी (dicotyledonae)
विभाग    – पॉलीपिटेली (polypetalae)
श्रेणी       – थैलेमीफ्लोरी (thalamiflorae)
क्रम        – मालवेल्स (malvales)
कुल        – मालवेसी (malvaceae)
वंश        – हिबिस्कस (Hibiscus)
जाति     – रोजासिनेन्सिस (rosasinensis)

(v) प्याज

जगत -से उप-संघ तक – साइकस के समान
वर्ग              – एन्जियोस्पर्मी (angiospermae)
उप-वर्ग       – मोनोकॉटीलीडनी (monocotyledonae)
श्रेणी            – कॉरोनेरी (coronarieae)
कुल             – लिलिएसी (liliaceae)
वंश             – एलियम (Allium)
जाति           – सीपा (cepa)

(vi) एलब्यूगो

जगत           – पादप (plantae)
उप-जगत    – थैलोफाइटा (thallophyta)
संघ             – यूमाइकोफाइटा (eumycophyta)
वर्ग             – फाइकोमाइसिटीज (phycomycetes)
वंश             – एलब्यूगो (Albugo)
जाति           – कैन्डिडा (candida)

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(vii) अरहर

जगत            – पादप (plantae)
उप-जगत     – एम्ब्रयोफाइटा (embryophyta)
संघ              – ट्रैकियोफाइटा (tracheophyta)
उप-संघ      – टेरॉप्सिडा (pteropsida)
वर्ग              – एन्जियोस्पर्मी (arigiospermae)
उप-वर्ग      – डाइकॉटीलीडनी (dicotyledonae)
वंश            – कजानस (Cajanus)
जाति          – कजन (cajan)

(viii) पाइनस

जगत          – पादप (plantae)
उप-जगत   – एम्ब्रयोफाइटा (embryophyta)
संघ            – ट्रैकियोफाइटा (tracheophyta)
उप-संघ     – टेरॉप्सिडा (pteropsida)
वर्ग             – जिम्नोस्पर्मी (gymnospermae)
उप-वर्ग      – कोनिफेरोफाइटी (coniferophytae)
गण            – कोनिफेरेल्स (Coniferales)
वंश            – पाइनस (Pinus)
जाति          – रॉक्सबर्थी (roxburghii)

(ix) आलू

जगत          – पादप (plantae)
गण            – सोलेनेल्स (solanales)
कुल           – सोलेनेसी (solanaceae)
वंश            – सोलेनम (Solanum)
जाति          – ट्यूबेरोसम (tuberosum)

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प्रश्न 4.
मॉस (फ्यूनेरिया) सम्पुटिका की अनुदैर्घ्य (ऊर्ध्व) काट का नामांकित चित्र बनाइए (वर्णन की आवश्यकता नहीं है) या फ्यूनेरिया के बीजाणुभिद् की अनुदैर्ध्य काट का एक नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर :

मॉस (फ्यूनेरिया) सम्पुटिका (बीजाणुभिद्) 
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प्रश्न 5.
ब्रायोफाइट्स एवं टेरिडोफाइट्स में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर :
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प्रश्न 6.
निम्नलिखित के केवल नामांकित चित्र बनाइए
(क) साइकस के सूक्ष्मबीजाणुधानी की लम्ब काट
(ख) साइकस के पत्रक (पर्णक) की अनुप्रस्थ काट
(ग) साइकस के बीजाण्ड की अनुदैर्घ्य काट
उत्तर :

(क)
साइकस के सूक्ष्मबीजाणुधानी की लम्ब काट

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(ख)
साइकस के पत्रक (पर्णक) की अनुप्रस्थ काट

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(ग)
साइकस के बीजाण्ड की अनुदैर्घ्य काट

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प्रश्न 7.
साइकस की कोरैलॉइड जड़ की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए। यह साइकस की सामान्य जड़ से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर :
साइकस की कोरैलॉइड जड़ की सामान्य जड़ से भिन्नता साइकस की कोरैलॉइड जड़ (coralloid root) सामान्य जड़ से निम्नलिखित विशेषताओं में भिन्न होती है

  1.  कोरैलॉइड जड़े वायवीय (aerial) होती हैं, जबकि सामान्य जड़े भूमिगत होती हैं।
  2. कोरैलॉइड वल्कुट (cortex) बाहरी, मध्य तथा आन्तरिक वल्कुटों में विभक्त होता है जबकि सामान्य जड़ों में सम्पूर्ण वल्कुट एक ही होता है।
  3. कोरेलॉइड जड़ का मध्य वल्कुट वास्तव में एक शैवालीय क्षेत्र (algal zone) होता है (UPBoardSolutions.com) जिसके बड़े-बड़े अन्तराकोशिकीय स्थानों (intercellular spaces) में एनाबीना (Anabaed), नॉस्टॉक (Nostoc) आदि नीले-हरे शैवाल रहते हैं, जो सामान्य जड़ों में नहीं पाये जाते हैं। साइकस की कोरैलॉइड जड़ की अनुप्रस्थ काट
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित के आर्थिक महत्त्व का वर्णन कीजिए
(क) कवक (फफूद)
(ख) टेरिडोफाइट्स
उत्तर
(क) कवकों का आर्थिक महत्त्व कवकों से निम्नलिखित लाभ हैं

1. भोज्य पदार्थों के रूप में (As food) :
अनेक कवकों में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन तथा विटामिन होते हैं अतः इन कवकों को भोजन के रूप में काम में लाया जा सकता है। उदाहरण-सब्जी । के रूप में (vegetables) कुकुरमुत्ते (mushrooms), गुच्छी (Morchella), लाइकोपरडॉन (Lycoperdon) आदि। खमीर (yeast) अनेक प्रकार से भोज्य पदार्थों को सुधारने, उनमें विटामिन इत्यादि की मात्रा बढ़ाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

2 औषधि निर्माण में (In medicines) :
अनेक कवकों से अब प्रतिजैविक (antibiotics) प्राप्त किये जाते हैं। एण्टीबायोटिक्स का उपयोग प्रमुखतः जीवाणु रोगों (bacterial diseases) में कियाजाता है। उदाहरण-पेनिसिलिन (penicillin), पेनिसिलियम की जातियों (Penicillium notatum, p chrysogenum), अरगट (ergot) नामक औषधि क्लेविसेप्स परप्यूरिया (Claviceps purpurea) से प्राप्त की जाती है जो रुधिरस्राव (bleeding) रोकने के लिए (विशेषकर प्रसव के समय) प्रयोग में लायी जाती है।

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3. उद्योगों में (In industry) :
कवकों से अनेक प्रकार के कार्बनिक अम्ल (organic acids); जैसे— ऑक्सेलिक, लैक्टिक, साइट्रिक अम्ल आदि तथा ऐल्कोहॉल्स’ (alcohols), विकर (enzymes), विटामिन्स (vitamins) आदि रासायनिक पदार्थ बनाये जाते हैं जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं।

उदाहरण :
यीस्ट के द्वारा शराबों का निर्माण।
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पौधों की वृद्धि के लिए जिबरेलिन्स (gibberellins) उपयोगी सिद्ध हुए हैं। ये जिबरेला फ्यूजीकोराई (Gibberella jugikordi) से तैयार किये जाते हैं। ऐस्पर्जिलस (Aspergillus) तथा पेनिसिलियम (Penicillium) आदि यीस्ट (yeast) के अतिरिक्त पनीर बनाने के काम आते हैं। बेकिंग (baking) उद्योग में यीस्ट अत्यन्त उपयोगी है। अनेक विकर (enzymes) तथा विटामिन्स (vitamins) को औद्योगिक निर्माण यीस्ट, एस्पर्जिलस, राइजोपस (Rhizopus), पेनिसिलियम आदि कवकों के द्वारा किया जाता है। कवक ऑडियम लैक्टिस (Oidium lactis) प्लास्टिक उद्योग में काम आता है।

4. मृदा उर्वरता बनाये रखने में (In maintenance of soil fertility) :
कवक जीवाणुओं की तरह प्राकृतिक अपमार्जक (natural scavengers) का कार्य करते हैं और इस प्रकार भूमि की उर्वरता बढ़ाते हैं। जल को रोकने की शक्ति, ह्यूमस (humus) बनाने में सहयोग, लवणों को। अवशोषित कर उन्हें रोके रखने की शक्ति भी भूमि में उत्पन्न करते हैं।

5. पौधों के पोषण में (In nutrition of plants) :
अनेक पौधों की जड़ों पर या उनके अन्दर कुछ कवक (fungi) रहते हैं। इन्हें क्रमशः एक्टोट्रॉफिक माइकोराइजा तथा एण्डोट्रॉफिक माइकोराइजी (ectotrophic and endotrophic mycorrhiza) कहते हैं। अनेक ऑरकिड्स (orchids), मोनोटोपा यूनीफ्लोरा (Monotropd uniflora), साराकोड्स (Sardcodes), पाइनस (Pinus), जैमिया (Zamia) आदि इसके उदाहरण हैं।

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(ख)
टेरिडोफाइट्स का आर्थिक महत्त्व

टेरिडोफाइट्स से निम्नलिखित लाभ हैं

1. जैव उर्वरक के रूप में (As Biofertilizer) :
एजोला के अन्दर एनाबीना ऐजोली (Anabdena gzotlae) नामक नीला-हरा शैवाल वास करता है। यह शैवाल स्वतन्त्र नाइट्रोजन को स्थिरीकरण करता है।
इस कारण से एजोला को धान आदि के खेतों में उर्वरक (fertilizer) के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह पौधा तालाब की सतह पर अधिक वृद्धि करके मच्छर के लार्वा को साँस लेने में अवरोध करता है।

2. सजावट के लिए (Ornamental Plants) :
फर्न की विभिन्न जातियाँ घरों व बगीचों में सुन्दरता के लिए लगाई जाती हैं; जैसे-लाइकोपोडियम (ground pines) तथा सैलाजिनेला (spike mosses) आदि।

3. खाद्य पदार्थ के रूप में (As Food) :
क्विलक्स (आइसोइट्स- Isoetes) के घनकन्द (corms), मनुष्यों, पालतू व जंगली जन्तुओं द्वारा खाए जाते हैं।

4. मनोरंजन हेतु (For Entertainment) :
सैलाजिनेला की कुछ मरुभिद् जातियों को पुनर्जीवनी पौधे (resurrection plant) कहा जाता है, इन्हें कौतुहल वश बाजार में बेचा जाता है। ये पौधे सूख जाने पर मुड़कर छोटी गेंद (balls) के रूप में बदल जाते हैं और पूर्णतया मृत प्रतीत होते हैं। पुन: जल में डाल दिए जाने पर पौधे तेजी से पूर्णतया खुलकर हरे हो जाते हैं।

5. जीवाश्म ईंधन का निर्माण (Formation of Fossil Fuel) :
टेरिडोफाइट्स जीवाश्म ईंधन (fossil fuel) के जमा होने में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। आदि काल में ये विशाल हार्सटेल्स (giant horsetails), क्लब मॉस आदि दलदली वनस्पति (swampy vegetation) का प्रमुख अंश थे। दलदल धीरे-धीरे डूबने लगे और पौधों के विभिन्न भाग एकत्रित होते गए। जल में ऑक्सीजन के अभाव में इन पौधों को जीवाणु विघटित (decompose) नहीं कर पाए। इन परिस्थितियों के कारण कालान्तर में कोयले (coal) का निर्माण हुआ।

6. जीवनाशक के रूप में (As Pesticides) :
लाइकोपोडियम (Lycopodium) की अनेक जातियाँ नाइट्रोजनयुक्त रसायन (alkaloids) बनाती हैं। यह विष का कार्य करता है। अत: कुछ देशों में इसे जीवनाशक (pesticides) के रूप में प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 2.
उपयुक्त नामांकित चित्रों के द्वारा फर्न के जीवन चक्र का वर्णन कीजिए। मॉस के वयस्क पौधे की समानता फर्न के जीवन चक्र की किस अवस्था से की जा सकती है? कारण सहित लिखिए। या पीढी एकान्तरण की परिभाषा लिखिए। नामांकित चित्रों की सहायता से इसे फर्न के जीवन चक्र के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

पीढी एकान्तरण

लैंगिक जनन (sexual reproduction) के समय जब दो युग्मकों (gametes) के संलयन (fusion) से युग्मज (Zygote) का निर्माण होता है तो एम्ब्रयोफाइटा (embryophyta) समूह के पोधों में यह सूत्री विभाजन के द्वारा एक बहुकोशिकीय (multicellular) स्पष्ट भ्रूण (embryo) का निर्माण करता है। यह भ्रूण एक द्विगुणित संरचना है तथा एक विशेष अवस्था है जो एक द्विगुणित पीढ़ी या सन्तति (diploid generation) का निर्माण करती है। इस पीढ़ी को बीजाणुभिद् (sporophyte) कहते हैं। बीजाणुभिद् बीजाणुओं (spores) द्वारा जननकरता है, जो अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) के बाद बनते हैं और अगुणित (haploid) होते हैं। प्रत्येक बीजाणु अंकुरित होता है और सामान्य सूत्री विभाजनों द्वारा बहुकोशिकीय अवस्था अर्थात्यु ग्मकोभिद् (gametophyte) पीढ़ी का निर्माण करता है। इसी पीढ़ी से युग्मकों का निर्माण होता है। उपर्युक्त के अनुसार, एक एम्ब्रयोफाइटिक पौधे (embryophytic plant) में दो पीढ़ियाँ (generations), युग्मकोद्भिद् तथा बीजाणुभिद् एक जीवन चक्र (life cycle) को बनाती हैं। इस प्रकार युग्मकोभिद् पीढ़ी से बीजाणुभिद् पीढ़ी तथा बीजाणुभिद् पीढ़ी से युग्मकोभिद् पीढ़ी का एक के बाद एक आना पीढ़ियों का एकान्तरण (alternation of generations) कहलाता है।

एक फर्न, टेरिस या ड्रायोप्टेरिस का जीवन चक्र

विभाग ट्रैकियोफाइटा (tracheophyta) के उपविभाग टेरोफाइटा या फिलिकोफाइटा (pterophyta or filicophyta), वर्ग लेप्टोस्पोरैन्जियोप्सडा (leptosporangiopsida), गण फिलिकेल्स (filicales) के सदस्य सामान्यत: फर्न (fern) कहलाते हैं। इन पौधों के जीवन चक्र सामान्य रूप से समान प्रकार के होते हैं। यहाँ वर्णन प्रमुखतः ड्रायोप्टेरिस फिलिक्स मैस (Dryoteris filix mas) नामक पौधे के सन्दर्भ में है।
1. बीजाणुभिद् (Sporophyte) :
यह फर्न का मुख्य पौधा होता है। इसके तीन प्रमुख भाग होते हैं

  1.  प्रकन्द (rhizome), जो भूमि में तिरछा उगता है। इसका केवल अगला शीर्ष भाग ही भूमि से बाहर निकला रहता है।
  2.  प्रकन्द से निकलने वाली अनेक पत्तियाँ तथा
  3.  अपस्थानिक जड़े। फर्न के पौधे में पत्तियाँ विशेष रूप से काफी बड़ी सामान्यतः द्विपिच्छाकार संयुक्त (bipinnate compound) होती हैं और ये पौधे की प्रमुख पहचान हैं।

2. बीजाणुपर्ण (Sporophylls) :
कुछ सामान्य पत्तियाँ ही बीजाणुपर्ण (sporophylls) का कार्य करती हैं। इन पत्तियों के पर्णकों की निचली सतह पर अनेक बीजाणुधानियाँ (sporangia) समूहों के रूप में लगी रहती हैं। बीजाणुधानियों के समूहों को सोराई (sori) कहा जाता है।

3. सोरस तथा उसकी बीजाणुधानियाँ (Sorus and its sporangia) :
प्रत्येक सोरस में कई बीजाणुधानियाँ होती हैं। प्रत्येक बीजाणुधानी की भित्ति एक कोशिका मोटी होती है तथा इसमें 12 से 16 तक बीजाणु मातृ कोशिकाएँ (spore mother cells) होती हैं। प्रत्येक बीजाणु मातृकोशिका (2n) से अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) के द्वारा चार अगुणित (haploid=n) बीजाणुओं (spores) का निर्माण होता है। इस प्रकार फर्न का पौधा जो एक बीजाणुभिद् होता है, बीजाणुओं के द्वारा अलैंगिक जनन (asexual reproduction) करता है।

4. बीजाणुधानी का स्फुटन तथा बीजाणुओं का प्रकीर्णन (Dehiscence of sporangium and dispersal of spores) :
शुष्क अवस्थाओं में सोरस तथा बीजाणुधानी का स्फुटन एक विशेष प्रकार से होता है। इससे बीजाणु (spores) दूर तक छिटक जाते हैं तथा वायु में तैरतेहुए भूमि पर पहुँचकर अंकुरित होते हैं।

5. युग्मकोभिद् (Gametophyte) :
प्रत्येक बीजाणु अनुकूल अवस्थाओं में अंकुरित होकर एक नयी पीढ़ी को जन्म देता है। यह एक पूर्णतः (UPBoardSolutions.com) स्वतन्त्रजीवी, पौधे की तरह की संरचना बनाता है। इसे प्रोथैलस (prothallus) कहते हैं। यही फर्न की प्रमुख युग्मकोभिद् (gametophyte) अवस्था है।

6. प्रोथैलस (Prothallus) :
यह एक हरे रंग की चपटी, पतली, हृदयाकार (heart shaped) तथा शयान (prostrate) संरचना होती है और भूमि पर लेटी हुई दशा में बढ़ती है। इसका अग्र भाग चौड़ा होता है तथा इसके मध्य भाग में एक गर्त (notch) होता है जिसके दोनों ओर की पालियाँ एक-दूसरे को ढकने वाली (overlapping) होती हैं। प्रोथैलस के पश्च, संकरे सिरे के निचले भागे से मूलाभास (rhizoids) निकलते हैं। यह स्वपोषी (autotrophic) होता है।

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7. जननांग (Reproductive organs) :
फर्न का प्रोथैलस एक उभयलिंगाश्रयी (monoecious) संरचना है अर्थात् एक ही प्रोथैलस पर नर तथा मादा जननांग बन जाते हैं यद्यपि केवल परनिषेचन (cross fertilization) ही होता है। नर जननांग पुंधानियाँ (antheridia) होती हैं तथा मादा जननांग
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स्त्रीधानियाँ (archegonia) होती हैं। जननांग प्रोथैलस के मध्य तथा पश्च भाग तक फैले अधिक मोटे (thick), गद्दी (cushion) के समान भाग पर बनते हैं। स्त्रीधानियाँ गर्त (notch) के आस-पास किन्तु पुंधानियाँ पश्च भाग में बनती हैं।

8. पुंधानी तथा नर युग्मक (Antheridium and male gametes) :
एक परिपक्व पुंधानी प्रोथैलस के तल से बाहर उभरी होती है। यह एक गोल, एककोशिका मोटी भित्ति वाली संरचना होती है। इसके अन्दर 20-50 तक नर युग्मक (male gametes) अर्थात् पुमणुओं (antherozoids) का निर्माण होता है। पुमणु एक सिंप्रग के समान कुण्डलित, (UPBoardSolutions.com) बहुपक्ष्माभिकी (multicilliate) तथा सचल (motile) होते हैं। ये रसायन अनुचलित (chemotactic) होते हैं और जल में तैरकर स्त्रीधानी तक पहुँचते हैं।

9. स्त्रीधानी तथा मादा युग्मक (Archegonium and female gamete) :
एक परिपक्व स्त्रीधानी (archegonium) फ्लास्क के समान तिरछी गर्दन वाली संरचना होती है। इसकी गर्दन, चार ऊर्ध्व पंक्तियों में लगी कोशिकाओं से बनी होती है। इसके फूले हुये भाग अण्डधा (venter) का कोई अपना स्तर नहीं होता। यह प्रोथैलस में ही धंसी रहती है। इसकी गर्दन में ग्रीवा नाल कोशिका (neck canal cell) एक ही, किन्तु द्विकेन्द्रकीय (binucleate) होती है। इसके अतिरिक्त एक अण्डधा नाल कोशिका (venter canal cell) तथा सबसे भीतरी फूले हुये भाग में एक अण्डाणु (oosphere) होता है। अण्डाणु ही अचल (non-motile) मादा युग्मक है।

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10. निषेचन (Fertilization) :
निषेचन की क्रिया के लिए जल आवश्यक होता है। स्त्रीधानी के परिपक्व होने पर इसका मुँह खुल जाता है। इस समय मुंह पर उपस्थित कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं, साथ ही ग्रीवा नाल कोशिका तथा अण्डधा नाल कोशिका नष्ट होकर श्लेष्मक बना लेती हैं। श्लेष्मक मुँह से भी बाहर निकलने लगता है जिसमें उपस्थित मैलिक अम्ल (malic acid) से आकर्षित होकर पुमणु जल में तैरते हुये स्त्रीधानी में घुस आते हैं। इनमें से एक अण्डाणु (oosphere) में प्रवेश कर इसे निषेचित (fertilize) करता है। इस प्रकार अण्डाणु से द्विगुणित (diploid = 2n) युग्मनज (zygote) बनता है। शीघ्र ही युग्मनज अपने चारों ओर एक मोटी भित्ति का निर्माण करता है और निषिक्ताण्ड (oospore) में बदल जाता है।
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11. भ्रूण तथा नये बीजाणुभिद् का निर्माण (Formation of embryo and new sporophyte) :
निषिक्ताण्ड (oospore) सामान्य सूत्री विभाजनों (mitotic divisions) से बार-बार एक विशेष पैटर्न में विभाजित होता है तथा एक भ्रूण (embryo) का निर्माण करता है। एक प्रोथैलस पर यद्यपि कई स्त्रीधानियों में निषेचन तथा उससे आगे की अन्य क्रियाएँ हो सकती हैं, किन्तु सामान्यतः भ्रूण एक ही निर्मित हो पाता है। यही भ्रूण बढ़ते हुये अण्डधा द्वारा बनाये गये कैलिप्ट्रा (calyptra) को भी तोड़-फोड़ देता है। इसका एक भाग पाद की तरह प्रोथैलस से सम्बन्धित (UPBoardSolutions.com) रहता है, किन्तु शीघ्र ही एक मूल कुछ दूरी तक प्रोथैलस के साथ बढ़कर बढ़ते हुये भ्रूण को मृदा में जमा देती है। उधर प्ररोह शीर्ष पर लगी प्राथमिक पत्ती प्रोथैलस के गर्त में से होकर ऊपर निकल आती है और हरी हो जाती है। शीर्ष अब प्रकन्द (rhizome) में बदल जाता है। इस प्रकार एक छोटा-सा नया बीजाणुभिद् (new sporophyte) तैयार हो जाता है। उपर्युक्त विवरण स्पष्ट करता है कि यहाँ पीढ़ियों को एकान्तरण दो स्पष्ट, स्वतन्त्रजीवी, स्वपोषी सन्ततियों अर्थात् प्रोथैलस (युग्मकोद्भिद्) तथा मुख्य पौधे (बीजाणुभिद्) के मध्य होता है मॉस का वयस्क पौधा (adult plant of moss) मॉस के जीवन चक्र की युग्मकोभिदी (gametophytic) पीढ़ी है। फर्न के जीवन चक्र में प्रमुख युग्मकोभिद् इसका प्रोथैलस (prothallus) होता है।

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निम्नलिखित कारण इसे स्पष्ट करते हैं

  1. दोनों की कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या अगुणित (n) होती है।
  2.  दोनों का निर्माण बीजाणु (spore) के अंकुरण से बने सूत्राकार संरचनाओं पर होता है।
  3. दोनों ही लैंगिक जनन के लिए नर तथा मादा जननांगों अर्थात् पुंधानियाँ व स्त्रीधानियाँ (antheridia and archegonia) तथा उनसे क्रमश: नर व मादा युग्मकों अर्थात् एन्थ्रोजोइड्स (antherozoids) व अण्डाणु (oosphere) का निर्माण करते हैं।
  4. निषेचन के बाद दोनों के ऊपर नये बीजाणुभिदों (sporophytes) का निर्माण होता है।
  5. निषेचन तथा बीजाणुभिद् के परिवर्द्धन की अवस्थाओं आदि में भी काफी समानता होती है।

प्रश्न 3.
नामांकित चित्रों की सहायता से आवृतबीजी पौधों के जीवन चक्र का वर्णन कीजिए। या एक द्विबीजपत्री पौधे के जीवन चक्र का नामांकित रेखीय चित्र बनाइए।
उत्तर :
आवृतबीजी (द्विबीजपत्री) पौधे का जीवन चक्र एक आवृतबीजी पौधा एक अत्यधिक विकसित तथा जटिल शरीर वाला बीजाणुभिद् (sporophyte) होता है अर्थात् यह द्विगुणित (diploid = 2n) होता है। इसके जीवन चक्र की प्रमुख अवस्थाएँ

निम्नलिखित होती हैं

1. पौधे पर पुष्प (flowers) लगते हैं जिनमें लैंगिक अंग (sexual organs) क्रमशः नर तथा मादा पुंकेसर (stamens) और स्त्रीकेसर या अण्डप (carpels) होते हैं।

2. प्रत्येक पुंकेसर का जनन भाग विशेष अंग परागकोष (anther) होता है जिसके अन्दर विशेष  कोशिकाओं द्विगुणित  (diploid=2n) लघुबीजाणु मातृ कोशिकाओं (microspore mother cells) में अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) के द्वारा अगुणित (haploid=n) लघुबीजाणुओं (microspores) का निर्माण होता है। लघुबीजाणु ही युग्मकोभिद् (gametophyte) की प्रथम अवस्था है

3. प्रत्येक स्त्रीकेसर या अण्डप (carpel) में अण्डाशय (ovary) के अन्दर बीजाण्ड (ovule) बनते हैं, जो इसकी गुरुबीजाणुधानियाँ (megasporangia) हैं।

4. बीजाण्ड के मुख्य भाग बीजाण्डकाय (nucellus) में एक बीजाणु मातृ कोशिका (megaspore mother cell) से चार गुरुबीजाणुओं (megaspores) का निर्माण होता है जो इसके मादा युग्मकोभिद् (female gametophyte) की प्रारम्भिक अवस्था है

5. प्रत्येक बीजाण्ड में बनने वाले चार गुरुबीजाणुओं में से केवल एक बढ़कर भ्रूणकोष (embryo sac) बनाता है। यही इसका मादा युग्मकोभिद् है जिसमें प्राय: केवल आठ केन्द्रक ही होते हैं, इनमें एक मादा युग्मक (female gamete) या अण्ड (ovum or egg cell) भी सम्मिलित है।

6. परिपक्व नर युग्मकोभिद् या परागकण केवल दो ही कोशिकाओं का बना होता है तथा इसी अवस्था में परागण के लिए यह परागकोष से बाहर निकलता है।

7. परागण (pollination) की क्रिया के द्वारा परागकण मादा अंग जायांग के वर्तिकाग्र पर किसी साधन से पहुँचते हैं और यहीं अंकुरित होकर पराग नलिका (pollen tube) बनाते हैं। प्रत्येक पराग नलिका के सिरे पर नर युग्मकोभिद् का वर्दी केन्द्रक या नलिका केन्द्रक (tube nucleus) (UPBoardSolutions.com) तथा थोड़ा जनन केन्द्रक (generative nucleus) होता है, जो बाद में पराग नलिका में ही विभाजित होकर दो नर युग्मक (male gametes) बनाता है। पराग नलिका वर्तिका से होती हुई अण्डाशय में तथा बाद में बीजाण्ड के अन्दर प्रवेश करके नर युग्मकों (male gametes) को भ्रूणकोष (embryo sac) के अन्दर पहुँचाती है।

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8. दो नर युग्मकों में से, एक मादा युग्मक (अण्ड कोशिका) से संयुग्मित होता है तथा दूसरा नर युग्मक द्वितीयक केन्द्रक (secondary nucleus) से संयुक्त होता है। इस प्रकार, इन पौधों में दिनिषेचन (double fertilization) की क्रिया होती है।

9. द्वितीयक केन्द्रक पहले ही दो ध्रुवीय केन्द्रकों के मिलने से बनता है; अत: द्विनिषेचन के अन्त में दौ भिन्न-भिन्न प्रकार के केन्द्रक बनते हैं–एक द्विगुणित (diploid=2n) अब भ्रूणीय कोशिका (embryonal cell) में उपस्थित तथा दूसरा प्रायः त्रिगुणित (triploid=3n) अर्थात् भ्रूणपोष केन्द्रक (endospermic nucleus) जो सम्पूर्ण भ्रूणकोष का प्रतिनिधित्व करने वाले जीवद्रव्य में स्थित होता है।

10. भ्रूणीय कोशिका (embryonal cell) से भ्रूण (embryo) का निर्माण होता है। भ्रूणपोषीय केन्द्रक (endospermic nucleus) भ्रूणकोष के जीवद्रव्य के साथ एक पोषक संरचना भ्रूणपोष (endosperm) का निर्माण करता है।

11. सम्पूर्ण बीजाण्ड भ्रूण और भ्रूणपोष के बनने से बीज में बदल जाता है, जबकि अण्डाशय फल (UPBoardSolutions.com) (fruit) बनाता है। बीज के अन्दर भ्रूण नया बीजाणुभिद् (sporophyte) है; अतः ये जब भी अंकुरित होते हैं तो नये पौधे बनाते हैं।

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UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 1 The Living World

UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 1 The Living World (जीव जगत)

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अभ्यास के अ न्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जीवों को वर्गीकृत क्यों करते हैं?
उत्तर :
जीवों का वर्गीकरण निम्नलिखित कारणों से किया जाता है

  1.  जीवों की सरलता से पहचान हेतु।
  2. अन्य स्थानों के जीवों के अध्ययन हेतु।
  3. जीवाश्मों के अध्ययन हेतु।
  4. समूह बनाकर सभी जीवों का अध्ययन किया जा सकता है जबकि सभी जीवों का पृथक अध्ययन असम्भव है।
  5.  वर्गीकरण से जीवों में समानता व असमानता का पता चलता (UPBoardSolutions.com) है जिससे विभिन्न जीव समूहों के बीच सम्बन्ध का ज्ञान होता है।
  6. विभिन्न टैक्सा के विकास (evolution) को पता चलता है।

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प्रश्न 2.
वर्गीकरण प्रणाली को बार-बार क्यों बदलते हैं?
उत्तर :
नये उपकरणों और प्रौद्योगिकी के विकास के साथ-साथ वैज्ञानिक अध्ययन का भी लगातार विकास होता रहता है। प्राचीन काल में वैज्ञानिक जीवों का वर्गीकरण उनके आवास तथा गुण के आधार पर करते थे। उसके पश्चात् बाह्य आकारिकी (external morphology) वर्गीकरण का मुख्य आधार बन गई। उसके पश्चात् सूक्ष्मदर्शी (microscope) व अन्य उपकरणों की खोज के पश्चात् आन्तरिक संरचना (anatomy) तथा भौणिकी (embryology) का उपयोग वर्गीकरण हेतु होने लगा। वर्तमान में कोशिकीय संरचना (cellular structure), गुणसूत्र (chromosomes), जैव रासायनिक विश्लेषण (biochemical analysis), जीन संरचना (gene structure) (UPBoardSolutions.com) तथा DNA में समानता का भी उपयोग जीवों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने में तथा वर्गीकरण में किया जा रहा है। इसलिए वर्गीकरण प्रणाली समय के साथ-साथ परिवर्तित एवं विकसित की जाती रही है।

प्रश्न 3.
जिन लोगों से आप प्रायः मिलते रहते हैं, आप उनको किस आधार पर वर्गीकृत करना पसंद
करेंगे? [संकेत-ड्रेस, मातृभाषा, प्रदेश जिसमें वे रहते हैं; आर्थिक स्तर आदि।]
उत्तर :

  1.  परिवार के सदस्य (Family members)
  2. रिश्तेदार (Relatives)
  3. पारिवारिक मित्र (Family friends)
  4. स्कू ल मित्र (School friends)
  5.  सहपाठी (Classmates)
  6. वयस्क, अपने से बड़े, अपने से छोटे, समान उम्र वाले (Adults, seniors, juniors, same age)
  7. लिंग-स्त्री या पुरुष (Sex : Female or male)
  8. ऊँचाई (Height)
  9.  खेल मित्र (Playmates)

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प्रश्न 4.
व्यष्टि तथा समष्टि की पहचान से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर : 
व्यष्टि (Individual) : 
प्रत्येक व्यष्टि में कुछ विशिष्ट लक्षण होते हैं जो उसकी समष्टि के अन्य व्यष्टियों में नहीं पाए जाते हैं। समष्टि (Population)

  1.  प्रत्येक समष्टि जनन में पृथक (reproductively isolated) होती है।
  2. एक समष्टि के सदस्य आपस में अन्तरे प्रजनन (interbreed) करके नये जीव को जन्म दे सकते हैं।
  3.  एक समष्टि के सदस्यों में समानता होती है तथा (UPBoardSolutions.com) ये अन्य समष्टि से असमान दिखाई देते हैं।
  4. समष्टि के प्रत्येक सदस्य का कैरियोटाइप (karyotype) समान होता है।
  5. एक समष्टि के सदस्यों में आन्तरिक संरचना में समानता पायी जाती है।

प्रश्न 5.
आम का वैज्ञानिक नाम निम्नलिखित है। इनमें से कौन- सा सही है ? मैंजीफेरा इंडिका, मैजीफेरा इंडिका
उत्तर :
मैंजीफेरा इंडिका (Mangifera indica).

प्रश्न 6.
टैक्सोन की परिभाषा दीजिए। विभिन्न पदानुक्रम स्तर पर टैक्सा के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
टैक्सोन, किसी भी स्तर को वर्गिकी समूह होता है। (Taxon is a taxonomic group of any rank). यह किसी भी स्तर पर जीवों के समूह को निरूपित करता है। उदाहरणार्थ-मक्का (species), रोजेज (genus), घास (family), कोनिफर (order), (UPBoardSolutions.com) द्विबीजपत्री (class), बीजीय पौधे (division) शब्द टैक्सोन (taxon) सर्वप्रथम 1956 में  ICBN (International Code of Botanical Nomenclature) ने प्रतिपादित किया था तथा मेयर (1964) ने इसकी परिभाषा ‘किसी भी स्तर के वर्गिकी समूह’ के रूप में दी थी।

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प्रश्न 7.
क्या आप वर्गिकी संवर्ग का सही क्रम पहचान सकते हैं ?

(a) जाति (Species) → गण (Order) →संघ (Phylum) → जगत (Kingdom)
(b) वंश (Genus) → जाति (Species) → गण (Order) → जगत (Kingdom)
(c) जाति (Species) → वंश (Genus)→ गण (Order) → संघ (Phylum)

उत्तर: 
(c) जाति (Species) → वंश (Genus) → गण (Order) → संघ (Phylum)

प्रश्न 8.
‘जाति’ शब्द के सभी मानवीय वर्तमान कालिक अर्थों को एकत्र कीजिए। क्या आप अपने शिक्षक से उच्च कोटि के पौधों, प्राणियों तथा बैक्टीरिया की स्पीशीज का अर्थ जानने के लिए चर्चा कर सकते हैं?
उत्तर :

  1.  जाति (species) एक प्राकृतिक जनसंख्या अथवा समान आकारिकी (morphology), आन्तरिक संरचना (anatomy), कार्यिकी (physiology) तथा कोशिकीय संरचना (cellular structure) वाले जीवों की प्राकृतिक जनसंख्या है।
  2.  जाति (species), वर्गीकरण की आधारीय इकाई (basic unit) है जिसमें एक जाति के जीव | समान आनुवंशिक गुण रखते हैं।
  3.  जाति (species) ऐसे संरचनात्मक रूप से समान जीवों का समूह है जो आपस में मुक्त (UPBoardSolutions.com) लैंगिक जनन (freely sexual reproduction) द्वारा संतान उत्पन्न कर सकते हैं परन्तु अन्य जाति के जीवों से जनन में पृथकता (reproductively isolated) दर्शाते हैं।

उच्च पादप तथा जन्तुओं (higher plants and animals) में लैंगिक जनन होता है। अतः इनकी जाति निर्धारण के लिए जनन पृथकता (reproductive isolation) का उपयोग किया जाता है। अत: परिभाषा (3) सही है। जीवाणुओं (bacteria) में मुक्त प्रजनन (free reproduction) तथा जनन पृथकता (reproductive isolation) नहीं पाया जाता है। इसलिए जीवाणुओं की जाति का निर्धारण आकारिकी (morphology) के आधार पर किया जाता है। अत: परिभाषा (1) सही है।

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित शब्दों को समझिए तथा परिभाषित कीजिए

(i) संघ
(ii) वर्ग
(iii) कुल
(iv) गण
(v) वंश

उत्तर :

(i) संघ (Phylum) :
समान गुणों वाले वर्गों (class) को एक संघ (phylum) में रखा जाता है, जैसे मत्स्य, उभयचर, सरीसृप (reptiles), पक्षी तथा स्तनधारी जंतुओं को एक ही संघ कॉडेटा (chordata) में रखा गया है। इन सभी जंतुओं में रीढ़ की हड्डी पाई जाती है। पौधों में समान गुणों वाले वर्गों (class) को एक डिविजन (division) में वर्गीकृत किया जाता है।

(ii) वर्ग (Class) :
समान गुणों वाले गण (order) को एक वर्ग (class) में रखा जाता है। गण प्राइमेटा (order primata) में बंदर, गोरिल्ला, चिंपैंजी आदि को एक ही वर्ग मैमेलिया (mammalia) में शेर, कुत्ता, बिल्ली आदि के साथ रखा गया है, क्योंकि ये सभी स्तनधारी श्रेणी में रखे गए हैं।

(iii) कुल (Family) :
जिस प्रकार समान गुणों वाली जाति को एक वंश में रखते हैं उसी प्रकार समान गुणों वाले सभी वंशों को एक कुल या कुटुंब (family) में रखते हैं। जैसे आलू, टमाटर, बैंगन में कई गुण समान होते हैं इसलिए इन्हें एक ही कुल सोलेनेसी (solanaceae) में रखा गया है। कुटुंब को वर्धिक (vegetative) तथा जननीय लक्षणों (reproductive characters) के आधार पर विशेषीकरण (characterization) किया जाता है। उदाहरण के लिए, शेर, बाघ तथा तेंदुआ (UPBoardSolutions.com) को वंश पैथेरा (Panthera) में बिल्ली (Felis) के साथ कुटुंब फेलिडी (Felidae) में रखा गया है। इसी प्रकार कुत्ता और बिल्ली में कुछ समानताएँ तथा कुछ अन्तर होते हैं। इन्हें दो अलग-अलग कुटुंबों क्रमशः कैनिडी (Canidae) तथा फेलिडी (Felidae) में रखा गया है।

(iv) गण (Order) :
समान गुणों वाले कुलों को एक गण (order) में रखा जाता है। उदाहरण के लिए, बिल्ली, कुत्ता तथा शेर को एक ही ऑर्डर कार्निवोरा (carnivora) में रखा गया है। पौधों में कानवॉल्वुलेसी (convolvulaceae) तथा सोलेनेसी (solanaceae) कुटुंब को एक गण | पॉलीमोनिएल्स (polemoniales) में पुष्पीय गुणों के आधार पर रखा गया है।

(v) वंश (Genus) :
वंश, सम्बन्धित स्पीशीज का एक समूह है। (Genus is a group of related species)। वर्गीकरण में वंश का बहुत महत्त्व है। द्विपद-नाम-पद्धति (binomial nomenclature) के अनुसार किसी भी स्पीशीजे को तब तक कोई नाम नहीं दिया जा सकता जब तक कि वह किसी वंश के साथ न हो।

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प्राय: एक ही वंश की जाति के गुणों में काफी समानता होती है। सामान्य गुणों के ऐसे समूह को सह-संबंधित गुण (correlated characters) कहा जाता है। ऐसी जाति को एक वंश के अन्तर्गत रखा जाता है। एक वंश के अन्दर कई जाति हो सकती हैं, जैसे आम का वंश है मैंजीफेरा (Mangifera), जिसके अन्तर्गत 35 जातियों को रखा गया है। मैंजीफेरा इंडिका (Mangifera indica) 35 जातियों में से एक है। एक वंश के अन्तर्गत केवल एक जाति भी (UPBoardSolutions.com) हो सकती है। जैसे वंश जिंगो (Ginkgo) में केवल एक जाति है-जिंगो बाइलोबा (Ginkgo biloba)। ऐसे वंश, जिनमें केवल एक ही जाति होती है-मोनोटिपिक जीनस (monotypic genus) कहलाते हैं।

प्रश्न 10.
जीव के वर्गीकरण तथा पहचान में कुंजी किस प्रकार सहायक है?

उत्तर :
कुंजी एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा विभिन्न वर्गों में स्थित प्रत्येक प्रकार के जीव की पहचान की जा सकती है। वैज्ञानिक जीवों की पहचान उनके गुणों के आधार पर बनाई गई कुंजी (keys) से करते हैं। कुंजी (key) पौधों तथा जन्तुओं के समान तथा असमान गुणों के आधार पर बनाई जाती है। वर्गिकी कुंजी (taxonomic key) दो विपरीत लक्षणों पर आधारित होती है। इनमें से एक को स्वीकार किया जाता है जबकि दूसरे को अस्वीकृत कर दिया जाता है। कुल, वंश तथा जाति के लिए अलग-अलग कुंजी का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
पौधों तथा प्राणियों के उचित उदाहरण देते हुए वर्गिकी पदानुक्रम का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
वर्गीकरण एकल सोपान प्रक्रम नहीं है, बल्कि इसमें पदानुक्रम सोपान (hierarchy of steps) होते हैं जिसमें प्रत्येक सोपान पद अथवा वर्ग (rank or category) को प्रदर्शित करता है। चूंकि संवर्ग (category) समस्त वर्गिकी व्यवस्था है इसलिए इसे वर्गिकी संवर्ग (taxonomic category) कहते हैं। और तभी सारे संवर्ग मिलकर वर्गिकी पदानुक्रम (taxonomic hierarchy) बनाते हैं। प्रत्येक संवर्ग वर्गीकरण की एक इकाई को प्रदर्शित करता है। वास्तव में, यह एक पद को दिखाता है और इसे प्रायः वर्गक (टैक्सोन) कहते हैं। वर्गिकी संवर्ग तथा पदानुक्रम का वर्णन एक उदाहरण द्वारा कर सकते। हैं। कीट (insects) जीवों के एक वर्ग को दिखाता है जिसमें एक समान गुण जैसे तीन जोड़ी संधिपाद (टाँगे) होती हैं। इसका अर्थ है कि कीट संघ स्वीकारणीय सुस्पष्ट जीव है जिसका वर्गीकरण किया जा सकता है, इसलिए इसे एक पद (rank) अथवा संवर्ग (UPBoardSolutions.com) (category) का दर्जा दिया वर्ग (क्लास) गया है। स्मरण रहे कि वर्ग (group) संवर्ग (category) को दिखाता है। प्रत्येक पदे (rank) अथवा वर्गक (taxon) वास्तव में, वर्गीकरण की एक इकाई को बताता है। ये वर्गिकी वर्ग/संवर्ग सुस्पष्ट जैविक है ना कि केवल आकारिकीय समूहन। सभी ज्ञात जीवों के वर्गिकीय अध्ययन से सामान्य संवर्ग जैसे जगत । (kingdom), संघ (phylum) अथवी भाग (पौधों के लिए), वर्ग (class), गण (order), कुल (family), वंश (genus) तथा जाति (species) का विकास हुआ। पौधों तथा प्राणियों दोनों में जाति । सबसे निचले संवर्ग में आती है। इनका वर्गीकरण संलग्न चित्र के अनुसार होता है।
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मनुष्य तथा आम का वर्गिकी पदानुक्रम में वर्गीकरण निम्न प्रकार है

पदानुक्रम                                                      मनुष्य
जगत (Kingdom)                                एनीमेलिया (Animalia)
संघ/डिविजन (Phylum/Division)    कॉडेंटा (Chordata)
वर्ग (Class)                                           मैमेलिया (Mammalia)
गण (Order)                                          प्राइमेटा (Primata)
कुल (Family)                                       होमोनीडी (Homonidae)
वंश (Genus)                                         होमो (Homo)
जाति (Species)                                    होमो सेपियन्स(Homo sapiens)
पदानुक्रम                                                            आम
जगत (Kingdom)                                  प्लाण्टी (Plantae)
संघ/डिविजन (Phylum/Division)  एन्जियोस्पर्मी (Angiospermae)
वर्ग (Class)                                             डाइकोटिलीडनी (Dicotyledonae)
गण (Order)                                           सेपिंडेल्स (Sapindales)
कुल (Family)                                         एनाकाडेंसी (Anacardiaceae)
वंश (Genus)                                          मैंजीफेरा (Mangifera)
जाति (Species)                                     मैंजीफेरा इंडिका (Mangifera indica)

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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मछलियों का अध्ययन जीव विज्ञान की किस शाखा के अन्तर्गत करते हैं?

(क) हरपेटोलॉजी
(ख) हेल्मिन्थोलॉजी
(ग) ओफियोलॉजी
(घ) इक्थियोलॉजी
उत्तर : 
(घ) इक्थियोलॉजी

प्रश्न 2.
जन्तु किन लक्षणों में पादपों से मिलते हैं?

(क) ये दिन-रात श्वसन करते हैं।
(ख) ये केवल दिन में श्वसन करते हैं।
(ग) ये केवल रात में श्वसन करते हैं।
(घ) ये जब चाहें श्वसन करते हैं।
उत्तर :
(क) ये दिन-रात श्वसन करते हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“जीव विज्ञान” शब्द का प्रयोग सबसे पहले किसने किया था?
उत्तर :
“जीव विज्ञान (Biology) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1802 ई० में लैमार्क (Lamarck) और ट्रैविरैनस (Treviranus) द्वारा किया गया।

प्रश्न 2.
जीव विज्ञान, जन्तु विज्ञान तथा वनस्पति विज्ञान के पिता का नाम लिखिए। या जन्तु विज्ञान के जनक कौन थे?
उत्तर :
जीव विज्ञान       → अरस्तू (Aristotle)
जन्तु विज्ञान       → अरस्तू (Aristotle)
वनस्पति विज्ञान → थियोफ्रेस्टस (Theophrastus)

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प्रश्न 3.
सजीव एवं निर्जीव में अन्तर बताइए।
उत्तर :
सभी सजीवों में जीवद्रव्य उपस्थित होता है जोकि सभी सजीवों (जीवधारियों) की भौतिक आधारशिला है। इसके विपरीत निर्जीवों में यह अनुपस्थित होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जीव विज्ञान की दो परम्परागत शाखाओं के नाम लिखिए तथा इनमें अन्तर बताइए।
उत्तर : 
जीव विज्ञान की दो परम्परागत शाखाएँ निम्नवत् हैं

  1. जन्तु विज्ञान (Zoology)
  2. वनस्पति विज्ञान (Botany)

जन्तु विज्ञान शाखा के अन्तर्गत जन्तुओं (animals) का अध्ययन किया जाता है, जबकि वनस्पति विज्ञान शाखा के अन्तर्गत वनस्पतियों (plants) का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
सजीवों के किन्हीं दो लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :

1. श्वसन (Respiration) :
जीवधारियों में श्वसन हर समय होता रहता है। इस क्रिया में जीव वायुमण्डल से ऑक्सीजन (O,) लेते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड (CO,) बाहर निकालते हैं। इस क्रिया में कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीन का ऑक्सीकरण (Oxidation) होता है और ऊर्जा मुक्त होती है। (UPBoardSolutions.com) इस मुक्त ऊर्जा से ही जीवधारियों की समस्त जैविक-क्रियाएँ संचालित होती हैं। श्वसन क्रिया एक अपचयी क्रिया (catabolic reaction) है।

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2. जनन (Reproduction) :
जनन भी जीवों का अभिलक्षण है। बहुकोशिक जीवों में जनने (लैंगिक जनन-sexual reproduction) का अर्थ अपनी संतति उत्पन्न करना है जिसके अभिलक्षण लगभग उसके अपने माता-पिता से मिलते हैं। जीव अलैंगिक जनन (asexual reproduction) भी करते हैं। फंजाई (कवक) लाखों अलैंगिक बीजाणुओं (asexual spores द्वारा गुणन करती है और सरलता से फैल जाती है। निम्न कोटि के जीवों; जैसे- यीस्ट तथा हाइड्रा में मुकुलन (budding) द्वारा जनन होता है। प्लैनेरिया (चपटा कृमि) में वास्तविक पुनर्जनन (true regeneration) होता है अर्थात् एक खंडित जीव अपने शरीर के लुप्त अंग को पुनः प्राप्त (जीवित) कर (UPBoardSolutions.com) लेता है और इस प्रकार एक नया जीव बन जाता है। फंजाई, तंतुमयी शैवाल, मॉस का प्रथम तंतु (protonema of moss) सभी विखण्डन (fragmentation) विधि द्वारा गुणन करते हैं।

प्रश्न 3.
पौधों तथा जन्तुओं में मुख्य अन्तर बताइए।
उत्तर : 
पौधों तथा जन्तुओं में मुख्य अन्तर निम्नवत्
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प्रश्न 4.
अजायबघर या म्यूजियम किसे कहते है? म्यूजियम एवं चिड़ियाघर में अन्तर बताइए।
उत्तर :
संग्रहालय (Museum) :
संग्रहालय प्रायः शैक्षिक संस्थानों; जैसे विद्यालय तथा कॉलेजों में स्थापित किए जाते हैं। संग्रहालय में अध्ययन के लिए परिरक्षित पौधों तथा प्राणियों के नमूने होते हैं। पौधे तथा प्राणियों के नमूनों को सुखाकर परिरक्षित करते हैं। कीटों को एकत्र करके मारने के बाद डिब्बों में पिन लगाकर रखते हैं। बड़े प्राणी; जैसे–पक्षी तथा स्तनधारी; को प्रायः परिरक्षित घोल में डालकर जारों में भरकर परिरक्षित करते हैं। संग्रहालय में प्राय: प्राणियों के कंकाल भी रखे जाते हैं।

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प्रमुख संग्रहालय

  1. नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम, लंदन
  2.  फॉरेस्ट म्यूजियम, अण्डमान-निकोबार द्वीप
  3. नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री, दिल्ली
  4. प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम, मुम्बई
  5. इण्डियन म्यूजियम, कोलकाता
  6. महाराजा सवाई मान सिंह म्यूजियम, जयपुर

प्राणी उपवन अथवा चिड़ियाघर (Zoological Park) :
इन उपवनों में अधिकांशतः वन्य आवासी जीवित प्राणी रखे जाते हैं। इनसे हमें वन्य जीवों की मानव की देख-रेख में आहार-प्रकृति तथा व्यवहार को सीखने का अवसर प्राप्त होता है। जहाँ तक संभव होता है; चिड़ियाघरों में विभिन्न प्राणी उपलब्ध कराए जाते हैं। चिड़ियाघर में सभी प्राणियों को उनके प्राकृतिक आवासों वाली परिस्थितियों में रखने का प्रयास किया जाता है। इन उद्यानों को प्रायः चिड़ियाघर (zoos) कहते हैं। इसे देखने के लिए बहुत-से लोग तथा बच्चे आते हैं।

प्रश्न 5.
वानस्पतिक उद्यानों का क्या महत्त्व है? भारतवर्ष के किन्हीं दो वानस्पतिक उद्यानों के नाम लिखिए। या पादप (वानस्पतिक) उद्यान को समझाइए।
उत्तर :
विभिन्न प्रकार के पौधों की जातियाँ लगाकर उसे सुरक्षित करने हेतु सम्पूर्ण क्षेत्रफल को चारों ओर से घेर देते हैं। इन्हें ही वानस्पतिक या पादप उद्यान कहते हैं। वानस्पतिक उद्यानों से निम्नलिखित लाभ हैं जिसके कारण इनका बहुत महत्त्व है।

  1. वर्गीकरण अध्ययन हेतु जीवित जातियों को वानस्पतिक उद्यानों से प्राप्त किया जाता है।
  2. यहाँ पर विदेशों से भी लाकर नई जातियाँ लगाई जाती हैं तथा उनका (UPBoardSolutions.com) विकास किया जाता है।
  3. अनुसंधान के लिए यहाँ पर पौधों को लगाकर रखा जाता है।
  4.  अनुसंधान द्वारा यहाँ नई जातियों का विकास किया जाता है।
  5. विलुप्त होने वाली पादप जातियों को यहाँ संरक्षण प्रदान किया जाता है।

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भारत के दो प्रमुख वानस्पतिक उद्यान निम्नवत् हैं

1. Royal Botanical Garden (Kolkata)
2. National Botanical Garden (Lucknow)

प्रश्न 6.
हरबेरियम किसे कहते हैं? इसे तैयार करने में किन चीजों की आवश्यकता होती है?
उत्तर :
हरबेरियम पौधों या पौधों के भागों का संग्रहालय होता है जिसे मान्य वर्गीकरण पद्धति के अनुसार व्यवस्थित रखा जाता है। इसे हरबेरियम शीट या पादपालय पत्र पर चिपकाकर व्यवस्थित ढंग से रखा जाता है। हरबेरियम को तैयार करने के लिए निम्नलिखित चीजों की (UPBoardSolutions.com) आवश्यकता होती है|

  1. कैंची
  2. चाकू
  3. नमूनों को रखने हेतु वैस्कुलम नामक बॉक्स
  4.  पादप प्रेस
  5.  अखबार
  6.  लेंस आदि

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UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 2 Biological Classification 

UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 2 Biological Classification (जीव जगत का वर्गीकरण)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 Biology . Here we  given UP Board Solutions for Class 11 Biology chapter 2 Biological Classification

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वर्गीकरण की पद्धतियों में समय के साथ आए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
वर्गीकरण पद्धति (classification system) जीवों को उनके लक्षणों की समानता और असमानता के आधार पर समूह तथा उपसमूहों में व्यवस्थित करने की प्रक्रिया है। प्रारम्भिक पद्धतियाँ कृत्रिम थीं। उसके पश्चात् प्राकृतिक तथा जातिवृतीय वर्गीकरण पद्धतियों का विकास हुआ।

1. कृत्रिम वर्गीकरण पद्धति (Artificial Classification System) :
इस प्रकार के वर्गीकरण में वर्षी लक्षणों (vegetative characters) या पुमंग (androecium) के आधार पर पुष्पी पौधों का वर्गीकरण किया गया है। कैरोलस लीनियस (Carolus Linnaeus) ने पुमंग के आधार पर वर्गीकरण प्रस्तुत किया था। परन्तु, कृत्रिम (UPBoardSolutions.com) लक्षणों के आधार पर किए गए वर्गीकरण में जिन पौधों के समान लक्षण थे उन्हें अलग-अलग तथा जिनके लक्षण असमान थे उन्हें एक ही समूह में रखा गया था। यह वर्गीकरण की दृष्टि से सही नहीं था।ये वर्गीकरण आजकल प्रयोग नहीं होते।

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2. प्राकृतिक वर्गीकरण पद्धति (Natural Classification System) :
प्राकृतिक वर्गीकरण पद्धति में पौधों के सम्पूर्ण प्राकृतिक लक्षणों को ध्यान में रखकर उनका वर्गीकरण किया जाता है। पौधों की समानता निश्चित करने के लिए उनके सभी लक्षणों—विशेषतया पुष्प के लक्षणों का अध्ययन किया जाता है। इसके अतिरिक्त पौधों की आंतरिक संरचना, जैसे शारीरिकी. भ्रौणिकी एवं फाइटोकेमेस्ट्री (phytochemistry) आदि को भी वर्गीकरण करने में सहायक माना जाता है। आवृतबीजियों का प्राकृतिक लक्षणों पर आधारित वर्गीकरण जॉर्ज बेन्थम (George Bentham) तथा जोसेफ डाल्टन हूकर (Joseph Dalton Hooker) द्वारा सम्मिलित रूप में प्रस्तुत किया गया जिसे उन्होंने जेनेरा प्लेंटेरम (Generg Plantarum) नामक पुस्तक में प्रकाशित किया। यह वर्गीकरण प्रायोगिक (practical) कार्यों के लिए अत्यन्त सुगम तथा प्रचलित वर्गीकरण है।

3. जातिवृत्तीय वर्गीकरण पद्धति (Phylogenetic Classification System) :
इस प्रकार के वर्गीकरण में पौधों को उनके विकास और आनुवंशिक लक्षणों को ध्यान में रखकर वर्गीकृत किया गया है। विभिन्न कुलों एवं वर्गों को इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है जिससे उनके वंशानुक्रम का ज्ञान हो। इस प्रकार के वर्गीकरण में यह माना जाता है कि एक प्रकार (UPBoardSolutions.com) के टैक्सा (taxa) का विकास एक ही पूर्वजों (ancestors) से हुआ है। वर्तमान में हम अन्य स्रोतों से प्राप्त सूचना को वर्गीकरण की समस्याओं को सुलझाने में प्रयुक्त करते हैं। जैसे कम्प्यूटर द्वारा अंक और कोड का प्रयोग, क्रोमोसोम्स का आधारे, रासायनिक अवयवों का भी उपयोग पादप वर्गीकरण के लिए किया गया है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित के बारे में आर्थिक दृष्टि से दो महत्वपूर्ण उपयोगों को लिखिए 
(a) परपोषी बैक्टीरिया
(b) आद्य बैक्टीरिया
उत्तर :

(a) परपोषी बैक्टीरिया (Heterotrophic Bacteria) :
परपोषी बैक्टीरिया का उपयोग दूध से दही बनाने, प्रतिजीवी (antibiotic) उत्पादन में तथा लेग्युमीनेसी कुल के पौधों की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण (nitrogen fixation) में किया जाता है।

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(b) आद्य बैक्टीरिया (Archaebacteria) :
आद्य बैक्टीरिया का उपयोग गोबर गैस (biogas) निर्माण तथा खानों (mines) में किया जाता है।

प्रश्न 3.
डाइएटम की कोशिका भित्ति के क्या लक्षण हैं?
उत्तर :
डाइएटम की कोशिका भित्ति में सिलिका (silica) पाई जाती है। कोशिका भित्ति दो भागों में विभाजित होती है। ऊपर की एपिथीका (epitheca) तथा नीचे की हाइपोथीका (hypotheca)। दोनों साबुनदानी की तरह लगे होते हैं। डाइएटम की कोशिका भित्तियाँ (UPBoardSolutions.com) एकत्र होकर डाइएटोमेसियस अर्थ (diatomaceous earth) बनाती हैं।

प्रश्न 4.
शैवाल पुष्पन (algal bloom) तथा ‘लाल तरंगें (red tides) क्या दर्शाती हैं?
उत्तर :
शैवालों की प्रदूषित जल में अत्यधिक वृद्धि शैवाल पुष्पन (algal bloom) कहलाती है। यह मुख्य रूप से नीली-हरी शैवाल द्वारा होती है। डायनोफ्लैजीलेट्स जैसे गोनेयूलैक्स के तीव्र गुणन से समुद्र के जल का लाल होना लाल तरंगें (red tide) कहलाता है।

प्रश्न 5.
वाइरस से वाइरॉयड कैसे भिन्न होते हैं?
उत्तर :
वाइरस तथा वाइरॉयड में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं
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प्रश्न 6.
प्रोटोजोआ के चार प्रमुख समूहों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :

प्रोटोजोआ जन्तु

ये जगत प्रोटिस्टा (protista) के अन्तर्गत आने वाले यूकैरियोटिक, सूक्ष्मदर्शीय, परपोषी सरलतम जन्तु हैं। ये एककोशिकीय होते हैं। कोशिका में समस्त जैविक क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। ये परपोषी होते हैं। कुछ प्रोटोजोआ परजीवी होते हैं। इन्हें चार प्रमुख समूहों में बाँटा जाता है

(क) अमीबीय प्रोटोजोआ (Amoebic Protozoa) :
ये स्वच्छ जलीय या समुद्री होते हैं। कुछ नम मृदा में भी पाए जाते हैं। समुद्री प्रकार के अमीबीय प्रोटोजोआ की सतह पर सिलिका का कवच होता है। ये कूटपाद (pseudopodia) की सहायता से प्रचलन तथा पोषण करते हैं। एण्टअमीबा जैसे कुछ अमीबीय प्रोटोजोआ (UPBoardSolutions.com) परजीवी होते हैं। मनुष्य में एण्टअमीबा हिस्टोलाइटिका के कारण अमीबीय पेचिश रोग होता है।

(ख) कशाभी प्रोटोजोआ (Flagellate Protozoa) :
इस समूह के सदस्य स्वतन्त्र अथवा परजीवी होते हैं। इनके शरीर पर रक्षात्मक आवरण पेलिकल होता है। प्रचलन तथा पोषण में कशाभ (flagella) सहायक होता है। ट्रिपैनोसोमा (Trypanosoma) परजीवी से निद्रा रोग, लीशमानिया से कालाअजार रोग होता है।
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(ग) पक्ष्माभी प्रोटोजोआ (Ciliate Protozoa) :
इस समूह के सदस्य जलीय होते हैं एवं इनमें अत्यधिक पक्ष्माभ पाए जाते हैं। शरीर दृढ़ पेलिकल (UPBoardSolutions.com) से घिरा होता है। इनमें स्थायी कोशिकामुख (cytostome) व कोशिकागुद (cytopyge) पाई जाती हैं। पक्ष्माभों में लयबद्ध गति के कारण भोजन कोशिकामुख में पहुँचता है।

उदाहरण :

पैरामीशियम (Paramecium)

(घ) स्पोरोजोआ प्रोटोजोआ (Sporozoans) :
ये अन्त: परजीवी होते हैं। इनमें प्रचलनांग का अभाव होता है। कोशिका पर पेलिकल का आवरण होता है। इनके जीवन चक्र में संक्रमण करने योग्य बीजाणुओं का निर्माण होता है। मलेरिया परजीवी-प्लाज्मोडियम (Plasmodium) के कारण कुछ दशक पूर्व होने वाले मलेरिया रोग से मानव आबादी पर कुप्रभाव पड़ता था।
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प्रश्न 7
पादप स्वपोषी हैं। क्या आप ऐसे कुछ पादपों को बता सकते हैं जो आंशिक रूप से परपोषित हैं
उत्तर :
कीटभक्षी पौधे (insectivorous plants) जैसे-यूट्रीकुलेरिया (Utricularia), ड्रोसेरा (Drosera), (UPBoardSolutions.com) नेपेन्थीस (Nepenthes) आदि आंशिक परपोषी (partially heterotrophic) हैं। ये पौधे हरे तथा स्वपोषी हैं परन्तु नाइट्रोजन के लिए कीटों (insects) पर निर्भर रहते हैं।

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प्रश्न 8.
शैवालांश (phycobiont) तथा कवकांश (mycobionts) शब्दों से क्या पता लगता है?
उत्तर :
लाइकेन (lichen) में शैवाल व कवक सहजीवी रूप में रहते हैं। इसमें शैवाल वाले भाग को शैवालांश (phycobiont) तथा कवक वाले भाग को कवकांश (mycobiont) कहते हैं। शैवालांश भोजन निर्माण करता है जबकि कवकांश सुरक्षा एवं जनन में सहायता करता है।

प्रश्न 9.
कवक (Fungi) जगत के वर्गों का तुलनात्मक विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत कीजिए
(a) पोषण की विधि
(b) जनन की विधि
उत्तर :

(a) पोषण की विधि
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(b) जनन की विधि
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प्रश्न 10.
यूग्लीनॉइड के विशिष्ट चारित्रिक लक्षण कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
यूग्लीनॉइड के चारित्रिक लक्षण

  1. अधिकांश स्वच्छ, स्थिर जल (stagnant fresh water) में पाए जाते हैं।
  2. इनमें कोशिका भित्ति का अभाव होता है।
  3. कोशिका भित्ति के स्थान पर रक्षात्मक प्रोटीनयुक्त लचीला आवरण पेलिकल (pellicle) पाया जाता है।
  4.  इनमें 2 कशाभ (flagella) होते हैं, एक छोटा तथा दूसरा बड़ा कशाभ।
  5.  इनमें क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है।
  6. सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ये प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा भोजन निर्माण कर लेते हैं (UPBoardSolutions.com) और प्रकाश के अभाव में जन्तुओं की भॉति सूक्ष्मजीवों का भक्षण करते हैं अर्थात् परपोषी की तरह व्यवहार करते हैं।

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उदाहरण :
युग्लीना (Euglena)

प्रश्न 11.
संरचना तथा आनुवंशिक पदार्थ की प्रकृति के सन्दर्भ में वाइरस का संक्षिप्त विवरण दीजिए। वाइरस से होने वाले चार रोगों के नाम भी लिखिए।
उत्तर :
वाइरस दो प्रकार के पदार्थों के बने होते हैं :
प्रोटीन (protein) और न्यूक्लिक एसिड (nucleic acid)। प्रोटीन का खोल (shel), जो न्यूक्लिक एसिड के चारों ओर रहता है, उसे कैप्सिड (capsid) कहते हैं। प्रत्येक कैप्सिड छोटी-छोटी इकाइयों का बना होता है, जिन्हें कैप्सोमियर्स (capsomeres) कहा जाता है। ये कैप्सोमियर्स न्यूक्लिक एसिड कोर के चारों ओर एक जिओमेट्रिकल फैशन (geometrical fashion) में होते हैं। न्यूक्लिक एसिड या तो RNA या DNA के रूप में होता है। पौधों तथा कुछ जन्तुओं के वाइरस का न्यूक्लिक एसिड RNA (ribonucleic acid) होता है, जबकि अन्य जन्तु वाइरसों में यह DNA (deoxyribonucleic acid) के रूप में होता है। वाइरस का संक्रमण करने वाला भाग आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) है। वाइरस आनुवंशिक पदार्थ निम्न प्रकार का हो सकता है

  1.  द्विरज्जुकीय DNA (double stranded DNA); जैसे – T,, T,, बैक्टीरियोफेज, हरपिस वाइरस, हिपेटाइटिस -B
  2. एक रज्जुकीय DNA (single stranded DNA) जैसे – कोलीफेज ф x 174
  3. द्विरज्जुकीय RNA (double stranded RNA) जैसे -रियोवाइरस, ट्यूमर वाइरस
  4. एक रज्जुकीय RNA (single stranded RNA) जैसे – TMV, खुरपका-मुँहपका वाइरस पोलियो वाइरस, (UPBoardSolutions.com) रिट्रोवाइरस। वाइरस से होने वाले रोग एड्स (AIDS), सार्स, (SARS), बर्ड फ्लू, डेंगू, पोटेटो मोजेक।

प्रश्न 12.
अपनी कक्षा में इस शीर्षक “क्या वाइरस सजीव हैं अथवा निर्जीव’, पर चर्चा करें।
उत्तर :
वाइरस (Virus) :
इनकी खोज सर्वप्रथम इवानोवस्की (Iwanovsky, 1892), ने की थी। ये प्रूफ फिल्टर से भी छन जाते हैं। एमडब्ल्यू० बीजेरिन्क (M.W. Beijerinck, 1898) ने पाया कि संक्रमित (रोगग्रस्त) पौधे के रस को स्वस्थ पौधो की पत्तियों पर रगड़ने से स्वस्थ पौधे भी रोगग्रस्त हो जाते हैं। इसी आधार पर इन्हें तरल विष या संक्रामक जीवित तरल कहा गया। डब्ल्यू०एम० स्टैनले (W.M. Stanley, 1935) ने वाइरस को क्रिस्टलीय अवस्था में अलग किया। डालिंगटन (Darlington, 1944) ने खोज की कि वाइरस न्यूक्लियोप्रोटीन्स से बने होते हैं। वाइरस को सजीव तथा निर्जीव के मध्य की कड़ी (connecting link) मानते हैं।

वाइरस के सजीव लक्षण

  1. वाइरस प्रोटीन तथा न्यूक्लिक अम्ल (DNA या RNA) से बने होते हैं।
  2. जीवित कोशिका के सम्पर्क में आने पर ये सक्रिय हो जाते हैं। वाइरस का न्यूक्लिक अम्ल पोषक कोशिका में पहुँचकर कोशिका की उपापचयी क्रियाओं पर नियन्त्रण स्थापित करके स्वद्विगुणन करने लगता है और अपने लिए आवश्यक प्रोटीन का संश्लेषण भी कर लेता है। इसके (UPBoardSolutions.com) फलस्वरूप विषाणु की संख्या की वृद्धि अर्थात् जनन होता है।
  3.  वाइरस में प्रवर्धन केवल जीवित कोशिकाओं में ही होता है।
  4.  इनमें उत्परिवर्तन (mutation) के कारण आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
  5. वाइरस ताप, रासायनिक पदार्थ, विकिरण तथा अन्य उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया दर्शाते हैं।

वाइरस के निर्जीव लक्षण

  1. इनमें एन्जाइम्स के अभाव में कोई उपापचयी क्रिया स्वतन्त्र रूप से नहीं होती।
  2. वाइरस केवल जीवित कोशिकाओं में पहुँचकर ही सक्रिय होते हैं। जीवित कोशिका के बाहर ये निर्जीव रहते हैं।
  3. वाइरस में कोशा अंगक तथा दोनों प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल (DNA और RNA) नहीं पाए जाते।
  4. वाइरस को रवों (crystals) के रूप में निर्जीवों की भाँति सुरक्षित रखा जा सकता है। रवे (crystal) की अवस्था में भी इनकी संक्रमण शक्ति कम नहीं होती।

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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
द्विनाम पद्धति को किसने प्रतिपादित किया था?
(क) जॉन रे
(ख) मंडल
(ग) लीनियस
(घ) बेन्थम तथा हुकर
उत्तर :
(ग) लीनियस

प्रश्न 2.
मोनेरा जगत का सदस्य है
(क) बैक्टीरिया
(ख) अमीबा
(ग) हाइड्रा
(घ) केंचुआ
उत्तर :
(क) बैक्टीरिया

प्रश्न 3.
जीवाणुओं में नहीं होता है
(क) कोशिका भित्ति
(ख) राइबोसोम
(ग) माइटोकॉण्ड्रिया
(घ) जीवद्रव्य
उत्तर :
(ग) माइटोकॉण्ड्रिया

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प्रश्न 4.
दलहनी पौधों की जड़ों की ग्रन्थियों में पाए जाने वाले जीवाणु का नाम लिखिए जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण में भाग लेता है
(क) क्लॉस्ट्रिडियम
(ख) ऐजोटोबैक्टर
(ग) राइजोबियम लेग्युमिनोसेरम
(घ) क्लोरोबियम
उत्तर :
(ग) राइजोबियम लेग्युमिनोसेरम

प्रश्न 5.
प्रोटिस्टा जगत के प्राणी होते हैं
(क) पूर्वकेन्द्रकीय एककोशीय
(ख) सुकेन्द्रकीय बहुकोशीय
(ग) पूर्वकेन्द्रकीय बहुकोशीय
(घ) सुकेन्द्रकीय एककोशीय
उत्तर :
(घ) सुकेन्द्रकीय एककोशीय

प्रश्न 6.
प्रोटोजोआ के उस वर्ग का क्या नाम है जिसमें अमीबा आता है?
(क) मैस्टिगोफोरा
(ख) ओपेलाइनेटा
(ग) राइजोपोडा
(घ) सीलिएटा
उत्तर :
(ग) राइजोपोडा

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन खाद्य कवक है?
(क) म्यूकर
(ख) मॉर्केला
(ग) पक्सिनिया
(घ) अस्टिलेगो
उत्तर :
(ख) मॉर्केला

प्रश्न 8.
गेहूँ के कीट रोग का कारक जीव है
(क) पक्सीनिया
(ख) आल्टरनेरिया
(ग) म्यूकर
(घ) अस्टिलैगो
उत्तर :
(क) पक्सीनिया

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प्रश्न 9.
मानव में कवकों द्वारा उत्पन्नं एक सामान्य व्याधि है
(क) कॉलेरा
(ख) टायफॉइड
(ग) टिटेनस
(घ) रिंगवर्म
उत्तर :
(घ) रिंगवर्म

प्रश्न 10.
पेनिसिलिन प्राप्त होता है
(क) पेनिसिलियम नोटेटम से
(ख) पेनिसिलियम ट्रायसोजिनक से
(ग) इन दोनों से
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ग) इन दोनों से

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
द्विपद नाम पद्धति क्या है? आधुनिक वर्गीकरण के जनक का नाम बताइए।
उत्तर :
नामकरण की वह पद्धति जिसमें नाम का प्रथम पद वंश (genus) तथा द्वितीय पद जाति (species) को निर्दिष्ट करता है, द्विपद नाम पद्धति कहलाती है। आधुनिक वर्गीकरण अर्थात् द्विपद नाम पद्धति के जनक का नाम कैरोलस लीनियस है।

प्रश्न 2.
मोनेरा एवं प्रोटिस्टा का उदाहरण सहित एक प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर :
मोनेरा के जीवधारियों में केन्द्रक के स्थान पर कोशिका में केन्द्रकाभ पाया (UPBoardSolutions.com) जाता है, जिसे वलयाकार डी०एन०ए० कहते हैं।

उदाहरणार्थ :
जीवाणु, सायनोबैक्टीरिया, आर्किबैक्टीरिया इत्यादि। प्रोटिस्टा के जीवधारियों में कोशिका का वास्तविक केन्द्रक पूर्ण विकसित होता है। उदाहरणार्थअमीबा, पैरामीशियम, यूग्लीना इत्यादि।

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प्रश्न 3.
जगत प्रोटिस्टा के दो लक्षण तथा दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर :

लक्षण :

  1. इसके अन्तर्गत सभी एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव आते हैं तथा
  2. ये प्रायः जलीय जीव होते हैं

उदाहरण :

  1. अमीबा
  2. पैरामीशियम

प्रश्न 4.
कण्डुआ (smut) रोग उत्पन्न करने वाले एक फफूद (कवक) का नाम लिखिए।
उत्तर :
अस्टिलैगो (Ustilago) नामक परजीवी कवक की अनेक जातियाँ विभिन्न अनाजों के पौधों पर कण्डुआ (smut) रोग उत्पन्न करती हैं;जैसे-अस्टिलैगो न्यूडा (Ustilogo nuda) गेहूं में श्लथ कण्ड (loose smut) उत्पन्न करता है।

प्रश्न 5.
उस कवक का नाम लिखिए जिससे पेनिसिलिन प्राप्त होती है।
उत्तर :
पेनिसिलिन (penicillin) पेनिसिलियम (Penicillium) की जातियों; जैसे- पे० नोटेटम (UPBoardSolutions.com) (P, notatum), पे० क्राइसोजीनम, (P, chrysogenum) आदि से प्राप्त होती है।

प्रश्न 6.
उस कवक का वानस्पतिक नाम लिखिए जिसमें आभासीय कवकजाल पाया जाता है।
उत्तर :
बेटेकोस्पर्मम (Batruchospermum)

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प्रश्न 7.
बेकरी उद्योग में जिस कवक का प्रयोग किया जाता है उसका वानस्पतिक नाम लिखिए।
उत्तर :

यीस्ट :
कैरोमाइसीज सेरेविसी (Saccharomyces cerevisiae)

प्रश्न 8.
पेनिसिलिन की खोज करने वाले वैज्ञानिक का नाम लिखिए।
उत्तर :
पेनिसिलिन एन्टीबायोटिक की खोज एलेक्जेन्डर फ्लेमिंग (Alexander Fleming) ने 1928 में की थी

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जन्तु जगत तथा पादप जगत के प्रमुख लक्षण बताइए। या जन्तुओं को परिभाषित करने वाले किन्हीं चार लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

जन्तु जगत के मुख्य लक्षण

  1. कोशिका भित्ति (cell wall) तथा केन्द्रीय रिक्तिका (central vacuole) का अभाव।
  2. जन्तु समभोजी पोषण (holozoic nutrition)।
  3. उत्सर्जी अंग, संवेदी अंग तथा तंत्रिका तंत्र की उपस्थिति।
  4. प्रकाश संश्लेषण व पर्णहरिम का अभाव।
  5.  तारककाय (centrosome) तथा लाइसोसोम की उपस्थिति।

पादप जगत के मुख्य लक्षण

  1. कोशिका भित्ति (cell wall) की उपस्थिति।
  2. कोशिका में केन्द्रीय रिक्तिका (central vacuole) की उपस्थिति।
  3. कोशिका में अकार्बनिक लवणों (inorganic salts) की उपस्थिति।
  4. उत्सर्जी अंग (excretory organs), संवेदी अंग (UPBoardSolutions.com) (sense organs) तथा तंत्रिका तंत्र (nervousystem) की अनुपस्थिति।
  5. प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) द्वारा भोजन निर्माण की क्षमता तथा पर्णहरिम | (chlorophyll) की उपस्थिति।

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प्रश्न 2.
पाँच जगत वर्गीकरण की विशेषता बताइए। या जीवन के पाँच जगत का नाम एवं इस वर्गीकरण का आधार लिखिए।
उत्तर :

  1. जगत–मोनेरा
  2. जगत–प्रोटिस्टा
  3.  जगत-कवक
  4.  जगत-पादप
  5.  जगत-जन्तु

पाँच जगत वर्गीकरण की विशेषताएँ निम्नवत् हैं

  1.  इस वर्गीकरण में प्रोकैरियोट को पृथक् कर मोनेरा जगत बनाया गया। प्रोकैरियोट संरचना, कायिकी तथा प्रजनन आदि में यूकैरियोट से भिन्न होते हैं।
  2. एककोशिक यूकैरियोट को बहुकोशिक यूकैरियोट से पृथक् कर प्रोटिस्टा जगत में स्थान दिया गया।
  3. कवक को पादपों से अलग करके एक कवक जगत बनाया गया। (UPBoardSolutions.com) ये विषमपोषी होते हैं तथा भोजन अवशोषण से ग्रहण करते हैं।
  4. प्रकाश संश्लेषी बहुकोशिक जीवों (पौधों) को अप्रकाश संश्लेषी, बहुकोशिक जीवों (जन्तु) से पृथक् कर दिया गया।
  5. जैव संगठन की जटिलता, पोषण विधियों तथा जीवन शैली के आधार पर बनाया गया यह वर्गीकरण विकास के क्रम को प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 3.
यीस्ट कोशिका का एक नामांकित चित्र बनाइए तथा यीस्ट की महत्त्वपूर्ण क्रियाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

यीस्ट कोशिका
UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 2 Biological Classification image 6

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यीस्ट की महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ

यीस्ट कोशिकाओं की कुछ महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ निम्न प्रकार हैं।
लाभदायक क्रियाएँ

1. बेकरी उद्योग में (In Baking Industry) :
यीस्ट का उपयोग डलबरोटी बनाने में किया जाता है। गीले मैदे में यीस्ट कोशिकाएँ मिलाकर किण्वीकरण (fermentation) की क्रिया कराई जाती है। यीस्ट मण्ड (starch) को शर्करा में तथा शर्करा को जाइमेस विकर (2ymase enzyme) की सहायता से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) व एथिल ऐल्कोहॉल (C2HSOH) में परिवर्तित कर देती है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) छोटे-छोटे उभारों के रूप में बाहर निकलती है। इस मैदे को डबलरोटी के साँचों में भरकर गर्म भट्टी में रख देते हैं जिससे डबलरोटी फूल जाती है तथा सरन्ध्र (porous) हो जाती है।

2. औषधियों में (In Medicines) :
यीस्ट को विटामिन (B1, B12 व C) के साथ मिलाकर  गोलियाँ (tablets) बनाई जाती हैं। ये गोलियाँ पेट के रोगों में काम आती हैं।

3. खाद्य रूप में (As Food) :
क्योंकि यीस्ट में बहुत से प्रोटीन, विटामिन व विकर (enzymes) होते हैं। (UPBoardSolutions.com) इनकी गोलियाँ बनाकर भोजन के रूप में प्रयोग में लाई जाती हैं।

4. शराब उद्योग में (In Alcohol Industry) :
यीस्ट कोशिकाएँ किण्वीकरण (fermentation) द्वारा शर्करा के घोल को शराब में परिवर्तित करती हैं। इस क्रिया में यीस्ट द्वारा उत्पन्न इन्वटेंस व जाइमेस एन्जाइम्स भाग लेते हैं। कुछ यीस्ट शर्करा घोल के ऊपर तैरती रहती हैं इन्हें टॉप यीस्ट (top yeast) कहते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ दूसरी यीस्ट जो शराब बनाने में प्रयोग की जाती हैं घोल के नीचे की ओर रहती हैं। इन्हें बॉटम यीस्ट (bottom yeast) कहते हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 2 Biological Classification image 7

हानिकारक क्रियाएँ

  1. यीस्ट के द्वारा बहुत से भोज्य-पदार्थ, उदाहरण-फल व पनीर, आदि नष्ट हो जाते हैं।
  2. यीस्ट की कुछ जातियाँ मनुष्य में कुछ बीमारियाँ उत्पन्न कर देती हैं तथा इनका प्रभाव त्वचा, फेफड़ों, इत्यादि पर भी पड़ता है। क्रिप्टोकोकस नियाफोरमेन्स (Cryptococcus neoformans) मस्तिष्क के रोग उत्पन्न करता है जिसे क्रिप्टोकोकस मेनिनजाइटिस (UPBoardSolutions.com) (Cryptococcus meningitis) कहते हैं। ये त्वचा, फेफड़ों, नाखूनों का रोग भी फैलाते हैं जिसे मोनिलिएसिस (moniliasis) कहते हैं।
  3. यीस्ट की कुछ जातियाँ पौधों में रोग फैलाती हैं (टमाटर, कपास, इत्यादि में)।
  4. यीस्ट सिल्क उद्योग में काम आने वाले कीड़ों को हानि पहुँचाता है।

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प्रश्न 4.
लाइकेन्स क्या हैं? इनके आर्थिक महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर :

लाइकेन्स

लाइकेन एक जटिल व द्विप्रकृति (dual nature) वाले पौधों का विशेष वर्ग है जिनकी शरीर रचना में दो भिन्न पौधे एक शैवाल (alga) तथा एक कवक (fungus) भाग लेते हैं। इसमें शैवाल को शैवालांश (phycobiont) तथा कवक को कवकांश (mycobiont) कहते हैं। लाइकेन में पोषण, शैवाल के समान तथा जनन, कवक के समान होता है। लाइकेन में शैवाल सहभागी या शैवालांश अपनी प्रकाश-संश्लेषण योग्यता द्वारा अपने साथी कवक सहभागी (कवकांश) के लिए भोजन निर्माण करता है। कवक के तन्तुओं का जाल वर्षा के जल को स्पंज की भाँति अवशोषित करके शैवालांश (phycobiont) को जल की पूर्ति कर सहायता करता है। (UPBoardSolutions.com) यही नहीं कवक सहभागी अपने नाइट्रोजनयुक्त (nitrogenous) अवशेष एवं श्वसन द्वारा मुक्त कार्बन डाइऑक्साइड (CO, ) को अपने शैवालीय सहभागी या शैवालांश (phycobiont) को प्रकाश-संश्लेषण एवं भोजन निर्माण हेतु प्रदान करता है। इस प्रकर लाइकेन (शैवाक), शैवाल व कवक सहजीवन (Symbiosis) का अति उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जिसमें दोनों ही सहजीवी एक-दूसरे को लाभ पहुंचाते हैं।

लाइकेनों का आर्थिक महत्त्व

1. भोजन व चारे के रूप में (As food and fodder) :
लाइकेन्स में पॉलिसैकेराइड्स, कुछ एन्जाइम्स तथा विटामिन्स पाये जाते हैं। अतः इनकी अनेक जातियों को भोजन व पशुओं के चारे के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। भारत में पार्मेलिया (Parmelia) को करी पाउडर (curry powder) के रूप में प्रयोग किया जाता है। इजराइल में लेकानोरा (Lecanora) खाया जाता है। एवर्निआ (Evernig) को मिस्रवासी, डबलरोटी बनाने में प्रयुक्त करते हैं। आर्कटिक भागों में रेइन्डियर मॉस (Reindeer moss = Cladonia rangifering) को रेइन्डियर व अन्य चौपाए खाते हैं। इनके अतिरिक्त विभिन्न लाइकेन्स का कीट व लार्वी भी भक्षण करते हैं।

2. स्त्र व सौन्दर्य प्रसाधनों में (In perfumes and cosmetics) :
लाइकेन के थैलाई में तीव्र  गन्ध वाले पदार्थ होते हैं, अतः इनका उपयोग इत्र व अन्य सुगन्धित द्रव्य बनाने में किया जाता है। एवर्निआ
(Evermia) तथा रामालिना (Ramalina) से प्राप्त सुगन्धित तेल का उपयोग साबुन बनाने में किया जाता है।

3. टेनिंग व रंग बनाने में (In tanning and dyeing) :
रोक्सेला (Roccella) तथा लेकानोरा (Lecanora) लाइकेन्स से ऑर्चिल (orchill) नामक नीला रंग (blue dye) प्राप्त होता है। रोक्सेला से लिटमस (litmus) निकाला जाता है जिसका प्रयोग अम्लीयता के परीक्षण में किया जाता है।

4. ऐल्कोहॉल बनाने में (In alcohol industry) :
कुछ लाइकेन्स जैसे, सिट्रेरिया इस्लेण्डिका (Cetrgrig islandica) से कुछ ऐल्कोहॉल बनाए जाते हैं।

5. दवाइयों के रूप में (As medicines) :
अस्निक अम्ल (Usnic acid) एक विस्तृत क्षेत्र (broad spectrum) वाला महत्त्वपूर्ण एण्टीबायोटिक है जिसे अस्निया (Usneq = old man’s beard) तथा क्लेडोनिया (Cladonia) से तैयार किया जाता है। यह अनेक प्रकार के संक्रमण में तथा घावों के लिए मरहम बनाने (UPBoardSolutions.com) में काम आता है। पीलिया (jaundice) रोग में जैन्थोरिआ (Xanthorig porienting) तथा मिर्गी रोग (epilepsy) में पार्मेलिया (Parmelia sexatilis) लाइकेन प्रयोग किए जाते हैं। इसी प्रकार से अस्निया (Usnia burbate) लाइकेन बालों को सुदृढ़ करने तथा गर्भाशय सम्बन्धी रोगों में पेल्टिजेरा (Peltizera camorna) लाइकेन, हाइड्रोफोबिया (hydrophobia) में तथा लोबारिआ (Lobaria pulmonaria) का उपयोग फेफड़ों सम्बन्धी रोगों के उपचार में किया जाता है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संघ प्रोटोजोआ के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए तथा विशिष्ट लक्षणों एवं उदाहरणों सहित वर्ग तक वर्गीकरण कीजिए। या संघ प्रोटोजोआ के सामान्य लक्षणों का वर्णन कीजिए तथा स्टोरर एवं यूसिंजर के अनुसार उदाहरणों सहित वर्ग तक वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर :
संघ प्रोटोजोआ के प्रमुख लक्षण

  1. इस संघ के जन्तु सूक्ष्मदर्शीय (microscopic) एवं एककोशिकीय (unicellular) होते हैं। ये | आद्य (primitive) तथा जीवद्रव्य श्रेणी (protoplasmic type) के जन्तु हैं।
  2. ये जल, कीचड़, सड़ी-गली कार्बनिक वस्तुओं में स्वाश्रयी (free living) अथवा अन्य जन्तुओं यो पेड़-पौधों के शरीर में परजीवियों (parasites) के रूप में पाये जाते हैं।
  3. ये एकाकी (single) अथवा संघीय (colonial) जीवन व्यतीत करते हैं।
  4. इनमें शरीर की आकृति भिन्न, परन्तु प्राय: वातावरणीय दशाओं एवं गमन की आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तनशील होती है।
  5.  इनमें गमन के लिए रोमाभ (cilia), कशाभिकाएँ (flagella) तथा कूटपाद अथवा पादाभ (pseudopodia) पाये जाते हैं।
  6. ये एकलकेन्द्रकीय (uninucleate), द्विकेन्द्रकीय (binucleate) अथवा बहुकेन्द्रकीय (multinucleate) होते हैं।
  7. श्वसन विसरण द्वारा शरीर सतह से होता है।
  8. उत्सर्जन संकुचनशील धानियों (contractile vacuoles) द्वारा शरीर सतह (body surface) से होता है।
  9. जनन लैंगिक तथा अलैंगिक दोनों प्रकार से होता है।
  10. इनमें कायिक द्रव्य तथा जनन द्रव्य में विभेदन नहीं होता है, इस कारण इनकी प्राकृतिक मृत्यु नहीं होती है।

उदाहरण :

  1. अमीबा प्रोटियस तथा
  2. प्लाज्मोडियम वाइवैक्स

संघ प्रोटोजोआ का वर्गीकरण

गमनांगों (organs of locomotion) एवं केन्द्रकों (nuclei) के आधार पर प्रोटोजोआ संघ को अग्रलिखित चार उपसंघों में विभाजित किया गया है

(क)
उपसंघ-सार्कोमैस्टिगोफोरा

इस उपसंघ के प्राणियों में केन्द्रक एक अथवा अधिक, परन्तु एक जैसे तथा गमनांग कूटपाद अथवा कशाभिकाएँ होते हैं। इन्हें निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा गया है।

1. वर्ग-मैस्टिगोफोरा अथवा फ्लेजिलैटा :
(class-mastigophora or flagellata) इस वर्ग के प्राणियों में

(i) एक या कई कशाभिकाएँ (flagella) होती हैं
(ii) कुछ सदस्यों में पर्णहरित (chlorophyll) पाया जाता है

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उदाहरण :

  1. युग्लीना (Euglena)
  2. ट्रिपैनोसोमा (Trypanosoma) आदि

2. वर्ग-सार्कोडिना अथवा राइजोपोडा :
(class-sarcodina or rhizopoda) इस वर्ग के प्राणियों में

(i) शारीरिक आकृति प्रायः परिवर्तनशील होती है।
(ii) गमनांग कूटपाद होते हैं।

उदाहरण :

  1. अमीबा (Amoeba)
  2. एण्टअमीबा (Entamoeba) आदि

3. वर्ग-ओपैलाइनैटा (class-opalinata) :

(i) ये प्रायः चपटे व संघ एम्फीबिया के प्राणियों की आँत के परजीवी होते हैं।
(ii) इनमें सिस्टम नहीं पाया जाता।
(iii) इनमें केन्द्रक दो-या-दो से अधिक होते हैं।
(iv) इनके गमनांग अनेक रोमाभ (cilia) होते हैं।

उदाहरण :
ओपैलाइना (Opalina)

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(ख) उपसंघ :
स्पोरोजोआ

इस उपसंघ के प्राणियों में विशिष्ट गमनांग एवं संकुचनशील रिक्तिकाएँ नहीं पायी (UPBoardSolutions.com) जाती हैं। ये प्रायः अन्तः परजीवी (endoparasites) होते हैं। इनमें सामान्य रूप से बीजाणुजनन (sporulation) पाया जाता है। इन्हें निम्नलिखित दो वर्गों में बाँटा जाता है।

1. वर्ग टीलोस्पोरिया  :

(i) (class-telosporia) इसमें बीजाणुज
(ii) (sporozoites) लम्बवत् होते हैं

उदाहरण :

  1. प्लाज्मोडियम (Plasmodium)
  2. मोनोसिस्टिस (Monocystis) आदि

2. वर्ग पाइरोप्लाज्निया :
(class-piroplasmea)

(i) ये पशुओं के लाल रुधिराणुओं के परजीवी होते हैं।
(ii) इनमें बीजाणु नहीं बनते।

उदाहरण :
बेबेसिया (Babesia)

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(ग)
उपसंघ :
निडोस्पोरा

इस उपसंघ के प्राणि भी अन्य जन्तुओं पर परजीवी होते हैं। इनमें गमनांग नहीं पाये जाते। इनमें बीजाणुजनन होता है तथा बीजाणुओं में ध्रुवीय तन्तु (polar filaments) उपस्थित होते हैं। इन्हें भी निम्नलिखित दो वर्गों में बाँटा गया है

1. वर्ग-मिक्सोस्पोरिया (class-mixosporia) :
इन प्राणियों में

(i) बीजाणुओं का विकास कई केन्द्रकों से होता है।
(ii) बीजाणु दो या तीन कपाटों का बना होता है।

उदाहरण :
सिरेटोमिक्सा (Ceratomyxa)

2. वर्ग-माइक्रोस्पोरिया (Class-microsporia) :
इनमें

(i) बीजाणु एक ही केन्द्रक से बनते हैं।
(ii) बीजाणु-खोल भी एक ही कपाट का बना होता है।

उदाहरण :
नोसिमा (Nosema)

(घ)
उपसंघ :
सीलियोफोरा

इस उपसंघ के प्राणियों में गमनांग रोमाभ होते हैं। इनमें केन्द्रक छोटे व बड़े (micro and macro) दी। प्रकार के होते हैं। इस उपसंघ के सभी सदस्यों को एक ही वर्ग में सम्मिलित किया जाता है। वर्ग-सीलिएटा (class-ciliata)-ये स्वाश्रयी व परजीवी दोनों प्रकार के होते हैं।

उदाहरण :

  1. पैरामीशियम (Paramecium)
  2.  बैलेण्टीडियम (Balantidium) आदि

प्रश्न 2.
यूग्लीना का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए तथा इसके जन्तु लक्षण लिखिए।
उत्तर :

युग्लीना

UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 2 Biological Classification image 8

यूग्लीना के जन्तु लक्षण निम्नवत् हैं।

  1. यह अपने फ्लैजिला का प्रयोग करके गमन कर सकता है।
  2. यह भोजन को ग्रहण कर सकता है।

प्रश्न 3.
अमीबा प्रोटिअस में द्विखण्डन तथा बीजाणुजनन का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर :
अमीबा प्रोटिअस में द्विखण्डन यह अलैंगिक जनन की सबसे सरल एवं सामान्य विधि है, जो वातावरणीय अनुकूल परिस्थितियों में अर्थात् पर्याप्त भोजन, ताप, जल आदि उपस्थित होने पर सम्पन्न होती है। इस विधि में केन्द्रक समसूत्री विभाजन (mitosis) द्वारा विभाजन करता है। विभाजन की प्रोफेज अवस्था में अमीबा कूटपादों को समेट कर गोलाकार हो जाता है। संकुचनशील रिक्तिका लुप्त हो जाती है तथा केन्द्रकद्रव्य में गुणसूत्र प्रकट हो जाते हैं। मेटाफेज अवस्था में गुणसूत्र स्पिण्डल की मध्य रेखा पर व्यवस्थित हो जाते हैं। ऐनाफेज अवस्था में कई परिवर्तन होते हैं। क्रोमैटिड्स पृथक् होकर स्पिण्डल के विपरीत ध्रुवों पर चले जाते हैं। इससे पूर्व ही सम्पूर्ण कोशिकाद्रव्य भी मध्य में दबकर संकरा होता जाता है तथा एक डम्बल का आकार (dumbel shaped) बना लेता है। कूटपाद कुछ बड़े हो जाते हैं तथा केन्द्रक (UPBoardSolutions.com) दो सन्तति केन्द्रकों में विभक्त हो जाता है। टीलोफेज अवस्था में अमीबा का लम्बा हुआ शरीर मध्य भाग में सिकुड़कर टूट जाता है तथा दो सन्तति अमीबी (daughter Amoebae) में विभक्त हो जाता है, जिनमें से प्रत्येक में एक सन्तति केन्द्रक होता है। अमीबा प्रोटिअस में बीजाणुजनन अमीबा में इस प्रकार का प्रजनन प्रतिकूल वातावरणीय परिस्थितियों में होता है। प्रजनन की इस विधि में केन्द्रक कला (nuclear membrane) के टूट जाने के कारण क्रोमैटिन कण छोटे-छोटे समूहों में कोशिकाद्रव्य में फैल जाते हैं। अब प्रत्येक समूह के चारों ओर फिर से केन्द्रककला के बन जाने से अनेक (लगभग 200) छोटे-छोटे केन्द्रक बन जाते हैं। अमीबा का कोशिकाद्रव्य छोटे-छोटे पिण्डों में टूट जाता है। प्रत्येक पिण्ड एक केन्द्रक को चारों ओर से घेरकर एक सन्तति अमीबी (daughter Amoebae) बनाता है। इस प्रकार अनेक सन्तति अमीबी (Amoebae) बन जाते हैं। अब प्रत्येक सन्तति अमीबी के कोशिकाद्रव्य का बाहरी स्तर कड़ा होकर एक बीजाणु आवरण (spore wall) बना लेता है। यह सम्पूर्ण रचना बीजाणु (spore) कहलाती है। जनक कोशिका के नष्ट हो जाने पर बीजाणु मुक्त होकर जलाशय के तल में डूब जाते हैं। वातावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल होने पर बीजाणु आवरणों को तोड़कर नन्हें अमीबी (Amoebae) मुक्त हो जाते हैं तथा वृद्धि कर वयस्क बन जाते हैं।

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प्रश्न 4.
परासरण नियन्त्रण की परिभाषा दीजिए। अमीबा के सन्दर्भ में इसके महत्त्व की विवेचना कीजिए। या अमीबा में परासरण नियन्त्रण की क्रिया का वर्णन कीजिए और संकुचनशील रसधानी के कार्य बताइए।
उत्तर :
परासरण नियन्त्रण ताजे अथवा अलवणीय जल (fresh water) में पाये जाने वाले अमीबा तथा प्रोटोजोआ संघ के अनेक सदस्यों में यह क्रिया पायी जाती है। अमीबा का कोशिकाद्रव्य बाहरी अलवणीय जल से सदैव अतिपरासरी (hypertonic) रहता है, जिसके फलस्वरूप बाहरी जल निरन्तर परासरण द्वारा अमीबा के शरीर में प्रवेश करता रहता है। कुछ उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप विशेष रूप से खाद्य धानियों (food vacuoles) में भी जल की उत्पत्ति होती है। अमीबा में एक विशेष प्रकार की संकुचनशील रसधानी (contractilevacuole) पायी जाती है। यह अतिरिक्त जल को एकत्रित कर समय-समय पर कोशिका से बाहर की ओर फटकर जल को फेंकती रहती है। इस प्रकार यह अतिरिक्त जल को कोशिका से बाहर निकालने का कार्य करती रहती है। इसके फटकर समाप्त होने की अवस्था को सिस्टोल (systole) तथा पुनः उत्पन्न होकर बड़ा आकार प्राप्त कर लेने की अवस्था को डायस्टोल (diastole) कहते हैं। अतः शरीर में जल की निश्चित मात्रा को बनाये रखने एवं अनावश्यक मात्रा को निष्कासित करने की प्रक्रिया परासरण नियन्त्रण कहलाती है।

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संकुचनशील रसधानी के मुख्य कार्य

इसके मुख्य कार्य इस प्रकार हैं

  1.  संकुचनशील रसधानी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य परासरण नियन्त्रण अथवा जल नियमन (osmoregulation) है।
  2.  यह अनावश्यक जल के साथ उसमें घुले उत्सर्जी पदार्थों को भी निष्कासित करती है। इस प्रकार यह उत्सर्जन (excretion) में भी योगदान देती है।
  3.  यह कार्बन डाइऑक्साइड की कुछ मात्रा का निष्कासन कर श्वसन में भी योगदान देती है।  यदि अलवणीय अथवा सामान्य जल के अमीबा को समुद्र के खारे जल अथवा नमक के विलयन में रखा जाता है तो इसका कोशिकाद्रव्य समुद्री जल के समपरासरी अथवा निम्नपरासरी (isotonic or hypotonic) हो जाता है, अत: बाहरी जल के अमीबा के शरीर में पहुंचने की सम्भावना समाप्त हो जाती है। ऐसी अवस्था में अमीबा को परासरण नियन्त्रण की आवश्यकता नहीं रहती है अथवा इसको अधिकतम जल कोशिका से बाहर परासरित हो जाता है; अत: इसकी संकुचनशील रसधानी धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 5.
उपयुक्त चित्रों की सहायता से राइजोपस में लैंगिक जनन का वर्णन कीजिए। या विषमजालिकता (विषम लैगिकता) से आप क्या समझते हैं? उदाहरण देकर समझाइए। या विषमजालिकता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
राइजोपस में लैगिक जनन राइजोपस में लैंगिक जनन प्रायः प्रतिकूल वातावरण में विशेषकर भोज्य पदार्थों की कमी के समय होता है। यह क्रिया दो एक-जैसी रचनाओं, समयुग्मकधानियों (isogametangia) के बीच होने वाले संयुग्मन (conjugation) के द्वारा सम्पन्न होती है। समयुग्मकधानियाँ यद्यपि समान आकार-प्रकार की दिखाई देती हैं, किन्तु विषम लैंगिकता (heterothallism) प्रदर्शित करती हैं तथा कार्यिकी दृष्टि से भिन्न-भिन्न प्रकार के कवक जालों से आनी चाहिए। इनमें से एक को + तथा दूसरे को – विभेद (strain) का मानते हैं अर्थात् यहाँ विषमजालिकता (heterothallism) पायी जाती है। सर्वप्रथम ए० एफ० ब्लेकेसली (A.E Blakeslee) ने 1904 में म्यूकर म्यूसिडो (Mucor mucedo) नामक कवक में इसका अध्ययन किया। प्रारम्भिक अवस्था में, जब दो विषमजालिक (+ तथा – विभेद) कवक तन्तु एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तो सम्पर्क के स्थान पर दोनों पाश्र्वीय शाखाएँ उभरने लगती हैं। ये पाश्र्वीय शाखाएँ छोटी तथा मुग्दराकार (club-shaped) होती हैं और प्राक्युग्मकधानियाँ या प्रोगैमेटेन्जिया (progametangia) कहलाती हैं। ये लम्बाई में बढ़ने के साथ सिरे पर फूलती हैं जो जीवद्रव्य, भोज्य पदार्थ आदि के संग्रह से सम्भव होता है। शीघ्र ही यह फूला हुआ भाग एक पट (septum) द्वारा अ लग कर दिया जाता है। इस प्रकार, दो भाग बनते हैं—सिरे पर समयुग्मकधानी या संकोशी युग्मकधानी जिसमें बहुत सारे केन्द्रक पाये जाते हैं और पिछला शेष भाग निलम्बक (suspensor) कहलाता है।परिपक्व होने पर दोनों युग्मकधानियों के बीच की भित्ति गल जाती है। इसमें होकर दोनों युग्मकधानियों के संकोशी युग्मक (coenogametes) आपस में मिल जाते हैं। इससे बना हुआ संयुक्त आकार युग्माणु (zygospore) कहा जाता है। युग्माणु में शीघ्र ही कुछ और भित्ति की (UPBoardSolutions.com) परतें बनती हैं जिससे वह मोटी, कड़ी तथा काली हो जाती है। इसमें से सबसे बाहरी परत, सबसे अधिक मोटी, कंटकयुक्त (spinous) होती है और काइटिन की बनी होती है। इसे बाह्य कवच (exosporium) कहा जाता है। युग्माणु पर यह कड़ा कवच होने के कारण यह प्रतिकूल वातावरण को आसानी से सहन करता है। विश्राम का यह समय एक युग्माणु के लिए पाँच से नौ माह तक हो सकता है। संयुग्मन (conjugation) से लेकर विश्राम की किसी अवस्था में + तथा – विभेद के केन्द्रक आपस में जोड़ा बनाते हैं। सामान्यतः यह क्रिया देर की अवस्थाओं में ही होती हुई समझी जाती है। ये जोड़े संयुक्त (fuse)”होकर द्विगुणित (diploid) केन्द्रक भी बनाते हैं, किन्तु इनमें से एक द्विगुणित केन्द्रक को छोड़कर शेष सभी नष्ट हो जाते हैं। क्रियाशील द्विगुणित केन्द्रक अर्द्धसूत्री विभाजन से विभाजित होकर चार अगुणित haploid = n) केन्द्रक बनाता है। इनमें से दो + तथा अन्य दो – विभेद के होते हैं। इनमें से भी अन्त में एक ही क्रियाशील रहता है, तीन नष्ट हो जाते हैं। सामान्यतः अनुकूल वातावरण आने पर जल अवशोषित करके (नमी सोखकर) युग्माणु (zygospore) अंकुरित होता है। इस समय बाह्य कवच को तोड़कर अन्तःकवच (intine) जो मुलायम होता है, नलिका के रूप में बाहर आता है। एकमात्र केन्द्रक बार-बार विभाजित होकर अब तक जीवद्रव्य को संकोशीय या बहुकेन्द्रकी (coenocytic) बना देता है जो नलिका (germ tube) या प्राक्कवक तन्तु (promycelium) के सिरे में एकत्रित होने लगता है। बाद में, इस शाखा से अन्य शाखाएँ भी निकल सकती हैं, किन्तु सामान्यतः एक शाखा के सिरे पर कॉल्यूमैला रहित

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बीजाणुधानी (sporangium) का निर्माण होता है। यह बीजाणुधानी शेष प्राक्कवक तन्तु (UPBoardSolutions.com) या अब, बीजाणुधानीधर से एक पट (septum) के द्वारा अलग हो जाती है। बीजाणुधानी के फटने पर बीजाणु स्वतन्त्र हो जाते हैं।

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