UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 3 संस्कृतभाषायाः महत्त्वम्

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Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name संस्कृतभाषायाः महत्त्वम्
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 3 संस्कृतभाषायाः महत्त्वम्

अवतरणों का सन्दर्भ अनुवाद

(1) धन्योऽयम् …………………………………………….. महर्षिभिः ।। [2017]
धन्योऽयम् भारतदेशः ………………………………….‘भाषातत्त्वविदिभ । [2010]
अस्माकं रामायण …………………………………………..: दृष्टेरविषयः ।
धन्योऽयम् ………………………………………………. दृष्टेरविषयः। (2015)
धन्योऽयम् …………………………………………………… लिखितानि सन्ति । [2012, 13]

[ समुल्लसति = सुशोभित है। भव्यभावोद्भाविनी (भव्यभाव + उद्भाविनी) = उच्च भावों को उत्पन्न करने वाली। शब्द-सन्दोह-प्रसविनी = शब्दराशि को जन्म देने वाली। निखिलेष्वपि (निखिलेषु + अपि) = सारे ही। प्रथिता = प्रसिद्ध। दृष्टेरविषयः (दृष्टेः + अविषयः) =अज्ञात नहीं (दृष्टि से ओझल नहीं)। सम्यगुक्तमाचार्यप्रवरेण दण्डिना (सम्यक् + उक्तम् + आचार्यप्रवरेण दण्डिना) =आचार्यश्रेष्ठ दण्डी ने ठीक ही कहा है। वागन्वाख्याता (वाक् + अन्वाख्याता) = वाणी कही गयी है। ]

सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के संस्कृतभाषायाः महत्त्वम् शीर्षक पाठ से उधृत है।
[विशेष—इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]
अनुवाद-यह भारत देश धन्य है, जहाँ मनुष्यों के पवित्र मनों को प्रसन्न करने वाली, उच्च भावों को उत्पन्न करने वाली, शब्दराशि को जन्म देने वाली देववाणी (संस्कृत) सुशोभित है। (वर्तमान काल में) विद्यमान समस्त साहित्यों में इसका साहित्य सर्वश्रेष्ठ एवं सुसमृद्ध है। यही भाषा संसार में संस्कृत के नाम से भी प्रसिद्ध है। हमारे रामायण, महाभारत आदि ऐतिहासिक ग्रन्थ, चारों वेद, सारे उपनिषद्, अठारह पुराण तथा अन्य महाकाव्य, नाटक आदि इसी भाषा में लिखे गये हैं। भाषाविज्ञानियों ने इसी भाषा को सारी आर्यभाषाओं की जननी माना है। संस्कृत का गौरव, उसमें अनेक प्रकार के ज्ञान का होना तथा उसकी व्यापकता किसी की दृष्टि से छिपी नहीं (किसी को अज्ञात नहीं) है। संस्कृत के गौरव को ध्यान में रखकर ही आचार्यश्रेष्ठ दण्डी ने ठीक ही कहा हैसंस्कृत को महर्षियों ने दिव्य वाणी (देवताओं की भाषा) कहा है।

(2) संस्कृतस्य साहित्यं ………………………………………………….. सजायन्ते । [2011, 14, 16, 17, 18]
संस्कृतस्य साहित्यं …………………………………………………… नान्यत्र तादृशी ।

[ किं बहुना =और अधिक क्या। किञ्चिदन्यत् (किञ्चित् + अन्यत्) = और कोई नहीं )। अनसूया = किसी से ईर्ष्या (या द्वेष) न करना। सजायन्ते = उत्पन्न होते हैं।].

अनुवाद-संस्कृत का साहित्य सरस है और (उसका) व्याकरण सुनिश्चित है। उसके गद्य और पद्य में लालित्य (सौन्दर्य), भावों का बोध (ज्ञान कराने) की क्षमता और अद्वितीय कर्णमधुरता (कानों को प्रिय लगना) है। अधिक क्या, चरित्र-निर्माण की जैसी उत्तम प्रेरणा संस्कृत साहित्य देता है वैसी (प्रेरणा) अन्य कोई (साहित्य) नहीं। मूलभूत मानवीय गुणों का जैसा विवेचन संस्कृत साहित्य में मिलता है, वैसा अन्य कहीं नहीं। दया, दान, पवित्रता, उदारता, ईष्र्या (या द्वेष) रहित होना, क्षमा तथा अन्यान्य अनेक गुण इसके साहित्य के अनुशीलन (अध्ययन एवं मनन) से (मनुष्य में) उत्पन्न होते हैं।

(3) संस्कृतसाहित्यस्य …………………………………………….. गीर्वाणभारती’ इति । [2015]
इयं भाषा: ……………………………………………. गीर्वाणभारती’ इति ।
संस्कृतसाहित्यस्य ………………………………………….. श्रेष्ठा चास्ति । [2014]
संस्कृतसाहित्यस्य ……………………………………………….. सुरक्षितं शक्यन्ते । [2009, 10, 15]

[ सुष्टूक्तम् (सुष्ठ+ उक्तम्) = ठीक कहा गया है। गीर्वाणभारती (गीर्वाण = देवता, भारती = वाणी)। ]
अनुवाद-संस्कृत साहित्य के आदिकवि वाल्मीकि, महर्षि वेदव्यास, कविकुलगुरु कालिदास, भासभारवि-भवभूति आदि अन्य महाकवि अपने श्रेष्ठ ग्रन्थों द्वारा आज भी पाठकों के हृदय में विराजते हैं (अर्थात् उनके ग्रन्थों को पढ़कर पाठक आज भी उन्हें याद करते हैं)। यह भाषा हमारे लिए माता के समान आदरणीया और पूजनीया है; क्योंकि भारतमाता की स्वतन्त्रता, गौरव, अखण्डता एवं सांस्कृतिक एकता संस्कृत के द्वारा ही सुरक्षित रह सकती है। यह संस्कृत भाषा (विश्व की) समस्त भाषाओं में सर्वाधिक प्राचीन एवं श्रेष्ठ है। इसलिए यह ठीक ही कहा गया है कि ‘(सब) भाषाओं में देववाणी (संस्कृत) मुख्य, मधुर और दिव्य (अलौकिक) है।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 2 आत्मज्ञः एव सर्वज्ञः

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Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name आत्मज्ञः एव सर्वज्ञः
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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 2 आत्मज्ञः एव सर्वज्ञः

अवतरणों का सन्दर्भ अनुवाद

(1) याज्ञवल्क्यो मैत्रेयीमुवाच ………………………….. उवाच-नेति।

[ उवाच = बोले। उद्यास्यन् अस्मि = ऊपर जाने वाला हूँ (इस गृहस्थाश्रम को छोड़कर ऊपर के आश्रम अर्थात् संन्यासाश्रम में जाने वाला हूँ)। अस्मात् स्थानात् = इस स्थान से (इस गृहस्थाश्रम से)। ततस्तेऽनया (ततः + ते + अनया) = तो तुम्हारा इस। विच्छेदम् = (सम्पत्ति का) बँटवारा। यदीयम् (यदि + इयम्) = यदि यह। तेनाहममृता (तेन + अहम् + अमृता) = उससे मैं अमर ]

सन्दर्भ-हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ में संकलित यह गद्यांश’ आत्मज्ञ एव सर्वज्ञः’ पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद-(ऋषि) याज्ञवल्क्य ने (अपनी पत्नी) मैत्रेयी से कहा-“मैत्रेयी! मैं इस स्थान (गृहस्थाश्रम) से ऊपर (संन्यासाश्रम में) जाने वाला हूँ, तो मैं तेरा इस (अपनी दूसरी पत्नी) कात्यायनी के साथ विच्छेद ((सम्पत्ति का बँटवारा) कर दें।” मैत्रेयी बोली-“यदि इस धन से सम्पन्न सारी पृथ्वी मेरी हो जाए तो क्या मैं उससे अमर हो सकती हूँ ?’ याज्ञवल्क्य ने कहा-“नहीं।’

(2) यथैवोपकरणवतां जीवनं ………………………… अमृतत्व साधनम्।

[ यथैवोपकरणवताम् (यथा + एव + उपकरणवताम्) = वैसा ही जैसा धनिकों को। उपकरण = साधन उपकरणवताम् = साधनसम्पन्नों (या धनिकों का)। नाशास्ति (न + आशा + अस्ति) = आशा नहीं है। ]

सन्दर्भ-पूर्ववत्।।
अनुवाद–“जैसा साधनसम्पन्नों (धनिकों) का जीवन होता है, वैसा ही तुम्हारा भी जीवन होगा। धन से अमरता की आशा नहीं है।” (जैसे सभी धनवान् लोगों का अध्यात्म की ओर ध्यान ही नहीं है, वैसी ही तुम भी हो।) (तब) उस मैत्रेयी ने कहा–“जिससे मैं अमर न हो सकें, उसे (लेकर) क्या करूंगी?” भगवान् (आप) जो केवल अमरता (की प्राप्ति) का साधन जानते हो, वही मुझे बताएँ।” याज्ञवल्क्य बोले-“तू (पहले भी) मेरी प्रिया रही है और (इस समय भी) प्रिय बोल रही है (मुझे अच्छी लगने वाली बात कह रही है)। आ बैठ, तुझसे अमृतत्व (अमरता-प्राप्ति) के साधन की व्याख्या करूंगा।”

(3) याज्ञवल्क्य उवाच ……………………… विदितं भवति।
याज्ञवल्क्य उवाच …………………… सर्वं प्रियं भवति। | [2015]

[ कामाय = कामना के लिए (इच्छापूर्ति के लिए)। निदिध्यासितव्यः = ध्यान करने योग्य। ]

सन्दर्भ-पूर्ववत्।
अनुवाद-याज्ञवल्क्य बोले-“अरी मैत्रेयी! पति की इच्छापूर्ति के लिए (नारी को) पति प्रिय नहीं होता, अपनी ही इच्छापूर्ति के लिए पति प्रिय होता है। (अपने स्वार्थ से ही वह पति को चाहती अथवा प्रेम करती है।) अरी न ही, पत्नी की इच्छापूर्ति के लिए (पति को) पत्नी प्रिय होती है, (वरन्) अपनी इच्छापूर्ति के लिए पत्नी प्रिय होती है। न ही अरे, पुत्र या धन की कामना से पुत्र या धन प्रिय होता है, (वरन्) अपनी ही कामना (पूर्ति) के लिए पुत्र या धन प्रिय होता है। न ही सभी की कामना से सब प्रिय होते हैं, (वरन्) अपनी ही कामना (की पूर्ति) के लिए सब प्रिय होते हैं।” (आशय यह है कि मनुष्य जो कुछ भी कामना इस संसार में करता है, वह दूसरों के सुख के लिए नहीं, अपितु अपने ही सुख के लिए, अपनी ही आत्मा की तृप्ति के लिए करता है। मनुष्य का एकमात्र लक्ष्य दूसरे किसी को सुख देना नहीं, केवल अपने को ही सुख देना है। इस प्रकार आत्म-तृप्ति के लिए ही पति, पत्नी, पुत्र, सम्बन्धी का हित चाहना अथवा उन्हें सुख देना नहीं, केवल अपने को ही सुख देना है। इस प्रकार आत्म-तृप्ति के लिए ही पति, पत्नी, पुत्र, सम्बन्धी आदि प्रिय होते हैं।) इसलिए हे मैत्रेयी! आत्मा ही देखने योग्य है, देखने के लिए (अर्थात् यदि देखना हो तो उसके लिए वह) सुनने योग्य है, मनन करने योग्य है और ध्यान करने योग्य है। निश्चय ही आत्म-दर्शन से (आत्मा के स्वरूप के ज्ञान से) इस सबका ज्ञान हो जाता है।”

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 1 भोजस्यौदार्यम्

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Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name भोजस्यौदार्यम्
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 1 भोजस्यौदार्यम्

अवतरणों का ससदर्भ अनुवाद

(1) ततः कदाचिद् …………………………………… पुनरुद्धमुचितः।।
अये लाजानुच्चैः ……………………………….. पुनरुद्धर्तुमुचितः। [2010, 15]

[ कौपीनावशेषो (कौपीन + अवशेषः) = जिसके पास एकमात्र लँगोटी ही बच रही है (अति दरिद्र)। हर्षाभूणि (हर्ष + अश्रूणि) = हर्ष के आँसू। लाजानुच्चैः (लाजान् + उच्चैः) = खीलें (लेने का) उच्च (शब्द)। सुपिहितवती = अच्छी तरह बन्द कर दिये। दीनवदना = दीन मुख वाली (अर्थात् जिसके मुख से ही दीनता प्रकट हो रही है वह)। क्षीणोपाये (क्षीण + उपाये) = हीन साधन वाले (धनहीन) पर। दृशावश्रुबहुले (दृशौ + अश्रुबहुले) = आँसुओं से भरी दृष्टि। यदकृत (यत् + अकृत) = जो की (कर डाली)। (अकृत’ कृ धातु के परस्मैपद के सामान्यभूत या लङ् के प्रथम पुरुष एकवचन का रूप है)। तदन्तःशल्यम् (तत् + अन्तःशल्यम्) = हृदय में गड़े उस काँटे को। उद्धर्तुम् उचितः = निकालने में समर्थ।].

सन्दर्भ-यह गद्यखण्ड हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘भोजस्यौदार्यम्’ पाठ से उधृत है।
[ विशेष—इस पाठ के सभी अवतरणों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]
अनुवाद-इसके बाद तभी द्वारपाल ने आकर महाराज भोज से कहा, “देव, केवल लँगोटी पहने (अति दरिद्र) एक विद्वान् द्वार पर खड़े हैं।” (राजा बोले)-“प्रवेश कराओ। तब प्रविष्ट होकर उस कवि ने भोज को देखकर ‘आज मेरी दरिद्रता का नाश हो जाएगा यह मानकर (विश्वास कर) प्रसन्न हो खुशी के आँसू बहाये। राजा ने उसे देखकर कहा—“हे कवि, रोते क्यों हो ?” तब कवि बोला, “राजन् मेरे घर की दशा सुनिए’’
“(घर से बाहर) रास्ते पर (खील बेचने वाले के द्वारा) ऊँचे स्वर से ‘अरे, खीले लो’ की आवाज सुनकर मेरी दीन मुख वाली पत्नी ने बच्चों के कानों को सँभालकर बन्द कर दिया (जिससे कि वे सुनकर खोलें दिलवाने का हठ न करें) और मुझे दरिद्र पर जो आँसुओं से भरी दृष्टि डाली, वह मेरे हृदय में काँटे की तरह गड़ गयी, जिसे निकालने में आप ही समर्थ हैं।”

(2) राजा शिव, शिव ……………………………… भिक्षाटनम् ।।

[ उदीरयन् = कहते हुए। शिवसन्निधौ = शिवजी के समीप दानववैरिणा = भगवान विष्णु द्वारा। गिरिजयाप्यर्द्धम् (गिरिजया + अपि + अर्द्धम्) = पार्वती जी द्वारा भी आधा। शिवस्याहतम् (शिवस्य + आहृतम्) = शिवजी का ले लिया। देवेत्थम् (देव + इत्थम्) = हे देव! इस। पुरहराभावे (पुरहर + अभावे) = त्रिपुरारि शिव के अभाव में। समुन्मीलति = प्रकाशित करती है (सुशोभित करती है)। गङ्गासागरम् = गंगा सागर को। अम्बरं शशिकला = चन्द्रकला आकाश को। नागाधिपः = नागों के राजा (शेषनाग)। क्षपातलम् = पृथ्वीतल को (यहाँ, पृथ्वी के नीचे पाताल को)। सर्वज्ञत्वमधीश्वरत्वमगमत् (सर्वज्ञत्वम् + अधीश्वरत्वम् + अगमत्) = सर्वज्ञता और ईश्वरत्व
(शक्तिमत्ता, प्रभुता) प्राप्त हुई। भिक्षाटनम् = भिक्षा के लिए घूमते फिरना। ]

अनुवाद–राजा ने ‘शिव शिव’ कहते हुए (अर्थात् अत्यधिक करुणा प्रकट करते हुए) प्रत्येक अक्षर के लिए एक-एक लाख (रुपये) देकर कहा, “तुरन्त घर जाओ। तुम्हारी पत्नी दु:खी हो रही होगी।” दूसरे दिन (अन्य किसी दिन) भोज शिवजी को प्रणाम करने शिवालय गये। वहाँ किसी ब्राह्मण ने शंकर के समीप जाकर कहा-
भगवान् शंकर की आधी देह दानव वैरी अर्थात् भगवान् विष्णु ने ले ली, आधी पार्वती जी ने। (तब) हे देव ? इस पृथ्वीतल पर गंगा भगवान् शिव के देहरहित हो जाने पर सागर को सुशोभित करने लगीं (सागर को चली गयीं), चन्द्रकला आकाश को, शेषनाग पृथ्वीतल से नीचे (पाताल को), सर्वज्ञता और ईश्वरता (शक्तिमत्ता या प्रभुता) आपको प्राप्त हुई और भीख माँगते फिरना मुझे (इस प्रकार भगवान् शंकर के समस्त गुण विभिन्न स्थानों पर बँट गये)।

(3) राजा तुष्टः ……………………….. लक्ष्मीनुद्यमिनामिव ।।
विरलविरला: ………………………………………… लक्ष्मीनुद्यमिनामिव। [ 2013]

[ स्थूलास्ताराः = बड़े तारे। विरलविरलाः = थोड़े-थोड़े। कलाविव (कलो + इव) = जैसे कलियुग में। प्रसन्नमभून्नभः (प्रसन्नम् + अभूत् + नभः) = आकाश निर्मल हो गया। ध्वान्तम् – अन्धकार। चित्तात्सतामिव (चित्तात् + सताम् + इव) = जैसे सज्जनों के चित्त से। लक्ष्मीनुद्यमिनामिव (लक्ष्मीः + अनुद्यमिनाम् + इव) = उद्यमरहित (आलसी या पुरुषार्थहीन) लोगों की सम्पदा के समान।]

अनुवाद–राजा ने सन्तुष्ट होकर उसे प्रत्येक अक्षरे पर एक-एक लाख (रुपये) दिये। अन्य किसी दिन राजा ने पास में स्थित सीता (नाम की किसी कवयित्री) से कहा, “देवि ! प्रभात का वर्णन करो।’ सीता ने कहा-(इस प्रभात बेला में) बड़े तारे कलियुग में सज्जनों के समान बहुत कम हो गये हैं, मुनियों के मन (या अन्त:करण) के सदृश आकाश सर्वत्र निर्मल (स्वच्छ) हो गया है, अन्धकार सज्जनों के चित्त से दुर्जनों (के कुकृत्यों की स्मृति) के समान दूर हो गया है और रात्रि उद्योगरहित (पुरुषार्थहीन) व्यक्ति की समृद्धि के समान शीघ्र समाप्त होती जा रही है (अर्थात् जो व्यक्ति धन कमाने में उद्योग न करके पहले से जमा धन ही व्यय किये जाता है, जिस प्रकार उसकी समृद्धि शीघ्रतापूर्वक घटती जाती है, उसी प्रकार रात भी शीघ्रता से समाप्त होती जा रही है)।

(4) राजा तस्यै लक्षं …………………………………………….. लक्षं दद।
अभूत् प्राची ………………………………………… द्रविणरहितानामिव गुणाः। [2011, 14]

[ प्राची = पूर्व दिशा। पिङ्गा = पीली। रसपतिरिव (रसपतिः + इव) = पारे के समान। गतच्छायश्चन्द्रः = चन्द्रमा कान्तिमान हो गया। ग्राम्यसदसि = आँवारों की सभा में। द्रविणरहितानाम् इव = धनहीनों के समान।]

अनुवाद-राजा ने उसे एक लाख (रुपये) देकर कालिदास से कहा, “मित्र तुम भी प्रभात का वर्णन करो।’ तब कालिदास ने कहा-
पूर्व दिशा उसी प्रकार पीली हो गयी है जैसे सुवर्ण के संयोग से पारा (पीला हो जाता है), चन्द्रमा उसी प्रकार कान्तिहीन ((फीका) दिख पड़ता है जैसे गॅवारों (मूर्खा) की सभा में विद्वान्। तारे क्षणभर में ((सहसा) उसी प्रकार क्षीण हो गये हैं जैसे उद्योगरहित राजागण की राज्यश्री (क्षीण हो जाती है) और दीपक उसी प्रकार शोभा नहीं पाते जैसे धनहीन व्यक्तियों के गुण। (निर्धन व्यक्ति चाहे कितना भी गुणी हो, समाज में उसके गुणों का उचित मूल्यांकन या आदर नहीं होता और धनी व्यक्ति गुणहीन हो, तो भी समाज उसे आदर देता है।)
राजा ने अति सन्तुष्ट होकर उसे प्रत्येक अक्षर पर एक लाख (रुपये) दे दिये।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्य-साहित्यका विकास प्रमुख काव्यकृतियाँ और उनके रचनाकार

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Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name काव्य-साहित्यका विकास प्रमुख काव्यकृतियाँ और उनके रचनाकार
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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्य-साहित्यका विकास प्रमुख काव्यकृतियाँ और उनके रचनाकार

प्रमुख काव्यकृतियाँ और उनके रचनाकार

प्रायः परीक्षा में अतिलघु उत्तरीय अथवा बहुविकल्पीय प्रश्नों के रूप में प्रमुख काव्यकृतियों के नाम देकर उनके रचनाकार कवि का नाम पूछा जाता है अथवा किसी कवि का नाम देकर उसकी रचना का नाम पूछा जाता है। निम्नांकित तालिका विद्यार्थियों के लिए दोनों रूपों में सहायक सिद्ध होगी।
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UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 5 Population Problems and Their Solution

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 5 Population Problems and Their Solution (जनसंख्या की समस्याएँ एवं उनका निराकरण) are part of UP Board Solutions for Class 12 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 5 Population Problems and Their Solution (जनसंख्या की समस्याएँ एवं उनका निराकरण).

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Subject Geography
Chapter Chapter 5
Chapter Name Population Problems and Their Solution (जनसंख्या की समस्याएँ एवं उनका निराकरण)
Number of Questions Solved 13
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UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 5 Population Problems and Their Solution (जनसंख्या की समस्याएँ एवं उनका निराकरण)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
जनाधिक्य की समस्या एवं उसके निराकरण के उपायों की विवेचना कीजिए।
या
जनसंख्या-वृद्धि के मुख्य कारण बताते हुए उसे रोकने के उपाय प्रस्तावित कीजिए।
या
विश्व की जनसंख्या-वृद्धि के कारण बताइए तथा वृद्धि को कम करने के उपाय सुझाइए।
या
जनसंख्या का घनत्व क्या है? जनाधिक्य के मानव-जीवन पर पड़ने वाले चार प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
या
जनाधिक्य की समस्याओं की विवेचना कीजिए तथा इसके समाधान हेतु सुझाव दीजिए।
या
जनसंख्या अतिरेक की समस्याओं की विवेचना कीजिए और इसमें समाधान के उपाय सुझाइए।
या
जनसंख्या की द्रुत वृद्धि की अवस्थाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर

जनसंख्या का घनत्व
Density of Population

जनसंख्या का घनत्व एक ऐसा सूचकांक है जिसके द्वारा मनुष्य और भूमि के निरन्तर परिवर्तनशील सम्बन्ध की सूचना मिलती है। यह जनसंख्या बसाव की दर होती है, जो कि निम्नलिखित प्रकार की होती है –
(i) गणितीय घनत्व – किसी प्रदेश के क्षेत्रफल तथा वहाँ निवास करने वाली जनसंख्या को अनुपात गणितीय घनत्व कहलाता है। जनसंख्या में क्षेत्रफल से भाग देने पर प्रति वर्ग किलोमीटर घनत्व प्राप्त हो जाता है।
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(ii) आर्थिक घनत्व – प्रदेश के आर्थिक संसाधनों की क्षमता तथा वहाँ के सम्पूर्ण जनसंख्या अनुपात को आर्थिक घनत्व कहते हैं।
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(iii) कृषि क्षेत्रीय घनत्व – किसी क्षेत्र की कृषिगत भूमि तथा सम्पूर्ण जनसंख्या का अनुपात कृषि क्षेत्रीय घनत्व होता है।
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(iv) कृषि घनत्व – प्रदेश की कृषिगत भूमि के क्षेत्रफल तथा वहाँ कृषि-कार्य में लगी जनसंख्या के अनुपात से यह घनत्व निकाला जाता है।
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विश्व में जनसंख्या की समस्या
Problem of Population in the World

दिन-प्रतिदिन विश्व की जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण कुछ प्रदेशों में भूमि पर मानव का भार बढ़ता जा रहा है। सन् 2010 में विश्व की जनसंख्या लगभग 6.90 अरब है। विश्व की यह जनसंख्या 135 करोड़ वर्ग किमी क्षेत्रफल पर निवास करती है। जहाँ एक ओर उत्तरी अमेरिका महाद्वीप का क्षेत्रफल विश्व का 16% है, वहाँ विश्व की केवल 7% जनसंख्या ही निवास करती है तथा विश्व की 45% आय का उपभोग होता है। दूसरी ओर एशिया महाद्वीप का क्षेत्रफल विश्व का 18% है, जबकि यहाँ विश्व की 60.8% जनसंख्या का निवास है तथा यह महाद्वीप विश्व की 12% आय का उपभोग करता है। अतः स्पष्ट है कि अधिक जनसंख्या वाले प्रदेश आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं।

इन क्षेत्रों के निवासियों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता और जो भोजन मिलता है वह भी पौष्टिक नहीं होता। इस दृष्टि से विश्व की लगभग 60% जनसंख्या अधनंगी, भूखी, अस्वस्थ, अशिक्षित, दरिद्र एवं कुपोषण की शिकार हो गयी है, जो विश्व-शान्ति के लिए स्थायी खतरा बन गयी है। कुछ देशों की विस्तारवादी नीति इसी तथ्य की प्रतिफल है। इसके परिणामस्वरूप जनसंख्या एवं उपलब्ध संसाधनों में असन्तुलन की स्थिति बन गयी है। अत: जनसंख्या-वृद्धि पर रोक लगाना नितान्त आवश्यक हैं।
जनसंख्या को यह असहनीय भार विश्व के निम्नलिखित चार क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से दिखलाई पड़ती है –

1. दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देश – इसके अन्तर्गत चीन, भारत, पाकिस्तान एवं जापान सम्मिलित हैं। भारत के अतिरिक्त ये देश अपनी विस्तारवादी नीति में उलझकर रह गये हैं। ये प्रयास बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैण्ड, लाओस, कम्पूचिया एवं वियतनाम, भारत और रूस जैसे देशों की सीमा सम्बन्धी विवादों के रूप में प्रकट हुए हैं। फिलीपीन्स, इण्डोनेशिया एवं मलेशिया की राजनीतिक हलचलें स्थिति को और भी अस्थिर बनाये हुए हैं।

2. मध्य एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका – यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र विश्व का दूसरा बड़ा अस्थिर क्षेत्र है। यहाँ पर आन्तरिक हलचलें विश्व के लिए सदैव खतरे की सूचना देती रहती हैं। इराक एवं ईरान युद्ध इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।

3. दक्षिणी अमेरिका – यद्यपि दक्षिणी अमेरिका विरल जनसंख्या रखने वाला महाद्वीप है, परन्तु यह विश्व के लिए खतरे की घण्टी कहा जा सकता है। यहाँ जनसंख्या-वृद्धि के साथ-साथ नगरीकरण तीव्र गति से बढ़ रहा है जिससे लोगों का जीवन-स्तर घट रहा है एवं नागरिक जीवन में अस्थिरता उत्पन्न हो गयी है।

4. अफ्रीका – इस महाद्वीप के सहारा प्रदेश में, विशेष रूप से मध्यवर्ती अफ्रीका जहाँ जन्म-दर अधिक तथा मृत्यु दर कम है, तीव्र जनसंख्या वृद्धि हो रही है।
पाश्चात्य विद्वानों ने इन प्रदेशों को जनसंख्या के विस्फोटक क्षेत्रों की संज्ञा प्रदान की है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमानों के अनुसार इन प्रदेशों में न केवल भूतकाल में ही जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई है, बल्कि भविष्य में भी ये प्रदेश तीव्र जनसंख्या वृद्धि के लिए उत्तरदायी होंगे।

विद्वानों की धारणा है कि विकासशील देशों में तीव्र जनसंख्या-वृद्धि विकसित देशों के लिए खतरे की घण्टी है। जनसंख्या की यह वृद्धि विश्व-शान्ति के लिए एटमबम से भी अधिक खतरनाक है। अतः इस स्थिति पर नियन्त्रण लगाने के लिए आवश्यक है कि मानव की जन्म-दर पर रोक लगायी जाए, क्योंकि प्रकृति के पास इस बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए न तो पर्याप्त खाद्य भण्डार हैं एवं न ही उद्योगों के लिए पर्याप्त खनिज एवं ऊर्जा संसाधन। स्थिति अधिक गम्भीर न होने पाये, इसलिए इस वृद्धि को पहले ही रोकने के प्रयास किये जाने चाहिए और विश्व की जनसंख्या को सीमित कर दिया जाना चाहिए।

जनसंख्या-वृद्धि के कारण
Causes of Population Growth

विश्व में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं –
1. ऊँची जन्म – दर तथा कम मृत्यु-दर-पिछड़े एवं विकासशील देशों में जन्म-दर बहुत ऊँची है। एशिया, अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका आदि महाद्वीपों में जन्म-दर 40 से 50 प्रति हजार तक है। इन महाद्वीपों में मृत्यु-दर पर्याप्त नीची है। सामाजिक सुरक्षा, पौष्टिक आहार तथा स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हो जाने से एशिया, अफ्रीको तथा दक्षिणी अमेरिका में मृत्यु-दर अत्यन्त नीची हो गयी है। जन्म-दर की अपेक्षा मृत्यु-दर कम होने से विश्व में जनाधिक्य तेज़ी से हो गया है।

2. गर्म जलवायु – एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका के देशों में गर्म जलवायु पायी जाती है। गर्म जलवायु में स्त्री-पुरुष की प्रजनन-शक्ति अधिक होती है। शीघ्र विवाह सूत्र में बँधकर नवदम्पति सन्तानोत्पत्ति में लगकर जनसंख्या बढ़ाते हैं।

3. अशिक्षा और रूढ़िवादिता – अशिक्षा और रूढ़िवादिता भी जनाधिक्य का प्रमुख कारण है। अशिक्षित व्यक्ति जनसंख्या बढ़ाने में बहुत योग देते हैं। वे सन्तान को भाग्य और ईश्वरीय देन मानकर जनसंख्या बढ़ाते रहते हैं। अशिक्षित और रूढ़िवादी लोग प्रजनन-शक्ति का भरपूर उपयोग करके जनाधिक्य में सहायक बन जाते हैं।

4. बहुपत्नी प्रथा – जिन देशों में एक से अधिक स्त्रियों के साथ विवाह करने की प्रथा है, वहाँ जनाधिक्य के द्वार स्वत: खुले हुए हैं। बहुपत्नी प्रथा वाले देशों में कई पत्नियों के अधिक सन्ताने जन्म लेती हैं, जो जनसंख्या को बढ़ाने में बहुत योग देती हैं।

5. सामाजिक एवं धार्मिक अन्धविश्वास – पिछड़े हुए समाजों में सामाजिक संकीर्णता एवं धार्मिक कठोरता अधिक सन्तान उत्पत्ति को बढ़ावा देते हैं। इस्लाम धर्मानुयायी सन्तति को धर्म के विरुद्ध मानकर सन्तान उत्पत्ति में लगे रहते हैं। भारत में पुत्र मोह में कई कन्याएँ होने पर भी सन्तानोत्पादन का प्रचलन है, जो जनाधिक्य का कारण बनता है।

6. निम्न जीवन-स्तर – निर्धनता के कारण व्यक्ति का जीवन-स्तर निम्न होता है। अविकसित तथा पिछड़े देशों में लोग निर्धन होते हुए भी जीवन-स्तर के सुधार की ओर ध्यान न देकर सन्तानोत्पत्ति में लगे रहते हैं। उच्च जीवन-स्तर के लोग अपेक्षाकृत कम सन्तान पैदा करते हैं।

7. मनोरंजन के साधनों का अभाव – निर्धन और पिछड़े देशों के लोगों के पास मनोरंजन के स्वस्थ साधन नहीं हैं। उनके पास स्त्रियाँ ही मनोरंजन का साधनमात्र हैं, जिसका परिणाम होता है. अधिक सन्तानं। इस प्रकार मनोरंजन के साधनों का अभाव तीव्र जनसंख्या वृद्धि का कारण बन जाता है।

8. उपजाऊ भूमि – समतल तथा उपजाऊ भूमि कृषि की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। उपजाऊ भूमि में वर्ष भर कृषि कार्य होता रहता है। यह अधिक जनसंख्या को भोजन देने में सक्षम है। एशिया की उपजाऊ तथा चावल उत्पादक भूमि घनी जनसंख्या को भोजन प्रदान करके जनाधिक्य में सहायक हो जाती है।

9. उद्योग-धन्धे-उद्योग – धन्धे जनसंख्या को पर्याप्त आजीविका के साधन उपलब्ध कराते हैं। उत्तरी-पश्चिमी यूरोप में उद्योग-धन्धों का पर्याप्त विकास होने से ही यह क्षेत्र सघन जनसंख्या को क्षेत्र बन गया है। इस प्रकार उद्योग-धन्धों का विकास तीव्र जनाधिक्य का एक प्रमुख कारण है।

10. सरकार की नीति – सरकार की उदार नीतियाँ भी जनाधिक्य का मुख्य कारण हैं। जिन देशों में सरकार ने जनसंख्या के सम्बन्ध में कोई निश्चित नीति तय नहीं की है तथा परिवार कल्याण कार्यक्रमों की ओर ध्यान नहीं दिया है, वहाँ जनसंख्या का संकेन्द्रण हो गया है। सरकार की ढुलमुल नीतियाँ भी जनसंख्या-वृद्धि में सहायक रही हैं। भारत, पाकिस्तान, चीन तथा जापान देश इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

जनसंख्या-वृद्धि की समस्याएँ
Problems of Population Growth

सामान्यत: तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की निम्नलिखित समस्याएँ हैं –

  1. विश्व में पिछले कई दशकों से जनसंख्या बड़ी तीव्र गति से बढ़ रही है और भविष्य में भी इसके और अधिक बढ़ने की सम्भावनाएँ हैं, जो अविकसित भागों में अधिक हो सकती हैं।
  2. इसी असीमित वृद्धि के फलस्वरूप विकासशील देशों में राजनीतिक उथल-पुथल, आन्तरिक अस्थिरता एवं युद्ध की सम्भावनाएँ प्रकट हुई हैं। ये देश अन्य देशों के लिए संकट बन गये हैं।
  3. जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हुई है, उसी अनुपात में खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि नहीं हो पायी है। फलस्वरूप विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या का जीवन-स्तर निम्न, कुपोषण और दरिद्रता से भरा हुआ है।
  4. बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए उपलब्ध भूमि बहुत ही सीमित है।

जनसंख्या-वृद्धि के दुष्परिणाम या प्रभाव
Effects or Demerits of Population-Growth

जनसंख्या की वृद्धि या जनाधिक्य किसी देश के लिए अनेक दुष्प्रभाव उत्पन्न करती है, जो संक्षेप में निम्नलिखित हैं –

  1. विकासशील देशों में जनाधिक्य की समस्या बढ़ रही है। इसका सबसे महत्त्वपूर्ण दुष्परिणाम यह हुआ है कि कृषि उपयोगी भूमि पर जनसंख्या का भार बढ़ गया है, क्योंकि विकासशील देशों के भूमि तथा अन्य संसाधन सीमित हैं, जबकि जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। भारत, चीन तथा बांग्लादेश इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
  2. जनसंख्या की तीव्र वृद्धि से खाद्यान्न की समस्या उत्पन्न होती है। प्रति व्यक्ति भोजन के लिए आवश्यक कैलोरी तक प्राप्त नहीं होती। इससे निवासियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वे कुपोषण के शिकार होते हैं।
  3. जनसंख्या की वृद्धि होने से रोजगार के अवसरों में कमी आती है। बेरोजगारों की संख्या बढ़ जाती है। लोगों का जीवन-स्तर गिर जाता है।
  4. जनाधिक्य से किसी भी देश के अर्थतन्त्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उसका विदेशी व्यापार असन्तुलित हो जाता है। इससे देश का विकास रुक जाता है।

जनसंख्या वृद्धि की समस्या का निवारण 
Remedies to solve the Problem of Population-Growth

बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या का निवारण शीघ्र हो जाना अति आवश्यक है। इसके लिए सभी बड़े राष्ट्र प्रयत्नशील हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने जनसंख्या विशेषज्ञों की एक समिति बनाई हुई है, जिसमें जनसंख्या के सभी पक्षों का अध्ययन किया जाता है तथा उनके निवारण के उपाय सुझाये जाते हैं। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि को रोकने के लिए निम्नलिखित उपायों पर जोर दिया जाना चाहिए –
1. परिवार नियोजन – सुदृढ़ राष्ट्र के लिए उसके निवासियों को स्वस्थ होना अति आवश्यक है। आधुनिक गर्भ निरोधक ओषधियों अथवा नसबन्दी द्वारा परिवार कल्याण कार्यक्रमों को अपनाया जाना चाहिए। ऐसी नीति अपनानी चाहिए कि एक परिवार में 2 या 3 से अधिक बच्चे न हो।

2. विवाह की आयु में वृद्धि – लड़के एवं लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाई जानी चाहिए। यह कम-से-कम लड़कियों के लिए 20 वर्ष तथा लड़कों के लिए 30 वर्ष तक हो सकती है। उष्ण जलवायु के देशों में यह उम्र क्रमशः 18 एवं 25 वर्ष हो सकती है। विवाह जितनी देर से किया जाएगा, वैवाहिक जीवन में उतने ही कम बच्चे उत्पन्न हो सकेंगे।

3. सन्तति सुधार – जनसंख्या में गुणात्मक सुधार करना भी आवश्यक है। सन्तति-सुधार कार्यक्रम में छूत या संक्रामक रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों के विवाह और सन्तानोत्पत्ति पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए।

4. सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार – देशवासियों की आर्थिक क्षमता बनाये रखने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सफाई आदि पर ध्यान देना अति आवश्यक है। यद्यपि चिकित्सा विज्ञान ने कई असाध्य रोगों पर नियन्त्रण पा लिया है, परन्तु उष्ण कटिबन्धीय देशों में अभी भी बहुत-से रोगों पर नियन्त्रण पाया जाना आवश्यक है।

5. शिक्षा का प्रचार-प्रसार – परिवार के आकार को सीमित बनाये रखने के लिए शिक्षा का प्रचार-प्रसार बहुत आवश्यक है। शिक्षित मानव अधिक उत्तरदायी एवं विवेकपूर्ण हो जाता है। उसकी दृष्टि एवं विचार विस्तृत हो जाते हैं। उसे परिवार के आकार एवं गर्भ निरोधक विधियों के प्रसार का ज्ञान भली-भाँति हो जाता है।

6. भूमि का सर्वोत्तम उपयोग – बढ़ती हुई जनसंख्या के भार को कम करने का एक कारगर उपाय भूमि का वैज्ञानिक एवं उचित उपयोग करना अति आवश्यक है। भूमि के उचित उपयोग से आशय उपलब्ध भूमि का सर्वोत्तम उपयोग करना है अर्थात् अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करना है।

7. औद्योगीकरण – जनाधिक्य वाले देशों में औद्योगीकरण एक आवश्यक प्रक्रिया है। इसके लिए अधिकतर लघु एवं घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाहिए, क्योंकि लघु उद्योग़ जब व्यवस्थित हो जाते हैं तो कृषि एवं वृहत् उद्योगों के बीच एक आवश्यक समन्वय स्थापित कर लेते हैं। इससे मानव की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि मानव अधिकांश समय अपने खाद्यान्न-प्राप्ति तथा सामाजिक कार्यों में ही लगा रहता है। इन देशों के निवासियों को यौन सम्बन्धों के अतिरिक्त भी मानसिक सन्तुष्टि के अन्य साधन उपलब्ध हो जाते हैं। आर्थिक उन्नति और शिक्षा के उच्च स्तर तक पहुँचने पर नगरीय-औद्योगिक सभ्यता के प्रसार के साथ-साथ यह वृद्धि कम हो जाती है; अर्थात् पहले मृत्यु-दर में कमी होती है तथा उसके बाद जन्म-दर भी तेजी से घट जाती है।

8. प्रवास या स्थानान्तरण – आज भी विश्व में अनेक देश ऐसे हैं, जहाँ पृथ्वी पर मानव-भार असह्य होता जा रहा है; जैसे- चीन, भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, इण्डोनेशिया आदि। यहाँ पर अधिकांश मानवता अर्द्ध-वस्त्रधारी एवं भूखी रहती है। इसके अतिरिक्त विश्व में ऐसे भी विस्तृत क्षेत्र हैं जहाँ जनशक्ति के अभाव में स्वच्छन्दता से भेड़-बकरी आदि पशु पाले जाते हैं; जैसे-ऑस्ट्रेलिया, अर्जेण्टाइना, उत्तरी-पश्चिमी अफ्रीका एवं अमेरिका, कनाडा तथा दक्षिणी अमेरिकी देशों में। इस प्रकार आर्थिक एवं सामाजिक विषमताएँ विश्व-शान्ति के लिए बाधा के रूप में हैं। इन बाधाओं के कारण नये देशों की प्रगति अवरुद्ध हो गयी है तथा मानव उनसे वंचित हो गया है। इस समस्या के निवारण हेतु अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों द्वारा प्रवास को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 5 Population Problems and Their Solution

प्रश्न 2
जनसंख्या के स्थानान्तरण (प्रवास) को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए। (2016)
या
जनसंख्या स्थानान्तरण के विभिन्न प्रकारों की विवेचना कीजिए। उदाहरण सहित उनके कारणों की व्याख्या कीजिए। [2008, 16]
या
जनसंख्या स्थानान्तरण के प्रकार एवं कारणों की विवेचना कीजिए। [2014]
उत्तर
प्रागैतिहासिक काल से ही मानव एक स्थान से दूसरे स्थान को एक समूह के रूप में प्रवास करता रहा है। ”पृथ्वी के विभिन्न भागों में एक प्रदेश से दूसरे स्थान को मानव-वर्गों का प्रवसन होता रहा है, इसे हम जनसंख्या का स्थानान्तरण कहते हैं।” स्थानान्तरण के निम्नलिखित दो भेद हैं –
1. प्रवास (Emigration) – इसके द्वारा मानव वर्ग एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते हैं; जैसे- यूरोपियन उत्तरी अमेरिकी, दक्षिणी अमेरिकी, ऑस्ट्रेलिया आदि को गये। यह प्रवास कठोर जलवायु, बाढ़, सूखा, जीवन-निर्वाह अथवा अन्य कोई सामाजिक या राजनीतिक कठिनाई के कारण होता है।

2. आवास (Immigration) – बाह्य स्थानों से मानव किसी प्रदेश या स्थान के अन्दर आते हैं। उदाहरण के लिए, उत्तरी अमेरिका में ब्रिटेन, इटली, फ्रांस आदि देशों से मानव-वर्गों का आवास होता रहा है। जिन देशों में आजीविका तथा मानवीय मूल्यों की सुविधाएँ अधिक होती हैं, वे विदेशियों के आवास को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। मध्य एशिया से अनेक बार जनसंख्या का आवास चीन, भारत एवं यूरोपीय देशों को होता रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में जो जनसंख्या है, उसकी वृद्धि एवं विकास यूरेशिया महाद्वीप से बार-बार हुए मानव-वर्गों के स्थानान्तरण से हुआ है।

स्थानान्तरण के पक्ष
Aspects of Migration

देश, काल, संख्या और स्थिरता के विचार से स्थानान्तरण के अग्रलिखित भेद होते हैं –
UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 5 Population Problems and Their Solution 5

जनसंख्या के स्थानान्तरण (प्रवास) के कारण
Causes of Migration of Population

जनसंख्या के स्थानान्तरण में निम्नलिखित दो प्रकार की शक्तियों या क्रियाओं का प्रभाव पड़ता है –
(i) प्रवासकारी शक्तियाँ (Emigrating Forces) – इन शक्तियों के द्वारा किसी प्रदेश का मानव-वर्ग बाहर की ओर स्थानान्तरित हो जाता है। जब किसी प्रदेश में बाढ़, अकाल आदि कोई भौतिक आपदा आती है तो उस प्रदेश से बाहर की ओर मानव-प्रवास होता है। उदाहरण के लिए, मध्य एशिया की शुष्क एवं विषम जलवायु तथा जीवन-यापन की कठिनाइयों के कारण मानव-वर्ग बाहर की ओर प्रवास कर गये थे।

(ii) आवासकारी शक्तियाँ (Immigrating Forces) – इन शक्तियों के कारण किसी प्रदेश में अन्दर की ओर मानव-वर्गों का आवास होता है। अमेरिका की विस्तृत कृषि भूमि ने पश्चिमी यूरोप के सघन प्रदेशों से मानव-वर्गों को आवास के लिए आकर्षित किया था। | उपर्युक्त स्थानान्तरणकारी शक्तियों को उत्पन्न करने वाले निम्नलिखित चार कारक प्रमुख हैं –
(1) भौतिक कारक (Physical Factors) – भौतिक कारकों में जलवायु सबसे प्रभावशाली है। हिमयुग में जलवायु के परिवर्तन से मानव-जातियों के स्थानान्तरण बड़े पैमाने पर होते रहे थे। शीत-प्रधान टुण्ड्रा प्रदेशों एवं हिमाच्छादित प्रदेशों से मानव-वर्ग शीत ऋतु में गर्म प्रदेशों की ओर प्रवास कर जाते हैं तथा ग्रीष्म ऋतु आने पर पुनः इन ठण्डे प्रदेशों में चले आते हैं। हिमालय प्रदेश में इस प्रकार के मौसमी स्थानान्तरण प्रतिवर्ष नियमित रूप से होते रहते हैं।
अन्य भौतिक कारकों में नदियों की बाढ़ एवं मार्ग परिवर्तन, अतिवर्षा, वर्षा का न होना, अकील, भूकम्प, ज्वालामुखी उद्गार, हिमराशियों का घटना-बढ़ना, मिट्टियों का अनुपजाऊ होना, समुद्री तटों का ऊपर उठना या नीचे धंसना मुख्य स्थान रखते हैं।

(2) आर्थिक कारक (Economic Factors) – आर्थिक कारकों में जीविकोपार्जन की सुविधाएँ । सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। जिन प्रदेशों में जीवन-निर्वाह के साधन उपलब्ध नहीं होते या उनमें कठिनाइयाँ होती हैं, वहाँ से मानव-वर्ग उन प्रदेशों को प्रवास कर जाते हैं जहाँ आर्थिक संसाधन पर्याप्त मात्रा में सुलभ होते हैं। निम्नलिखित आर्थिक कारक प्रमुख स्थान रखते हैं –

  1.  सघन जनसंख्या एवं उनके निवास क्षेत्रों में जीविकोपार्जन के साधनों की कमी
  2. बाह्य प्रदेशों में कृषि-कार्यों के लिए नयी भूमि की प्राप्ति
  3. अधिक उपजाऊ भूमि का आकर्षण
  4. सिंचाई के साधनों की सुविधा
  5. खनिज-पदार्थों की प्राप्ति
  6. वन-संसाधनों की प्राप्ति
  7. यातायात एवं परिवहन के साधनों की सुलभता
  8. औद्योगीकरण एवं औद्योगिक केन्द्रों का आकर्षण
  9. व्यापारिक सुविधाएँ।

पश्चिमी यूरोप, मध्य एशिया, पूर्वी चीन आदि क्षेत्रों की अत्यधिक जनसंख्या दूसरे देशों को प्रवास करती रही है। उदाहरण के लिए, सन् 1920 से 1940 तक जापान में जनसंख्या अधिक हो जाने के कारण बहुत-से जापानी कोरिया, मंचूरिया एवं ब्राजील आदि देशों में जा बसे थे। पूर्वी चीन से लोग मलेशिया, इण्डोनेशिया और वियतनाम में जाकर बस गये थे। नदियों के बेसिनों; जैसे–सिन्धु-गंगा का मैदान, यांगटिसीक्यांग बेसिन तथा समुद्रतटीय मैदानों में उपजाऊ भूमि के कारण अन्य प्रदेशों से जनसंख्या आकर बस गयी थी।

ऑस्ट्रेलिया में कालगूर्ती एवं कूलगर्जी सोने की खाने उष्ण मरुस्थल में स्थित हैं। और 560 किमी लम्बी पाइप लाइन द्वारा जल ले जाकर वहाँ मानवीय बस्तियाँ बसाई गयी हैं। दक्षिणी अफ्रीका एवं एण्डीज पर्वत पर खनिज पदार्थों के आकर्षण के कारण मानव के निवास खानों के समीप विकसित हुए हैं। मध्य एशिया में तेल के कुओं के समीप सघन जनसंख्या खनिज तेल के आकर्षण द्वारा विकसित हुई है। औद्योगिक केन्द्रों के समीप आर्थिक उन्नति की सुलभता के कारण जनसंख्या आकर्षित होती है।

3. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक (Socio-cultural Factors) – सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों से भी जनसंख्या का स्थानान्तरण होता है। निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा इसकी पुष्टि होती है –

  1. भारत से हजारों व्यक्ति अपना धार्मिक एवं सांस्कृतिक प्रचार करने के लिए म्यांमार, श्रीलंका, हिन्द चीन, मलेशिया, थाईलैण्ड, जावा, बाली आदि देशों को पाँचवीं शताब्दी तक स्थानान्तरण कर गये थे।
  2. अरब से बाहर की ओर प्रवास करने वाले इस्लाम धर्मावलम्बियों ने अपनी सभ्यता को मिस्र, सूडान, ईरान, अफगानिस्तान, तुर्की, सीरिया, इराक, ओमान, यमन, मालदीव, सुमात्रा, मलाया एवं पूर्वी द्वीप समूह तक फैला दिया था।
  3. धार्मिक भावनाओं के कारण स्पेन के लोग मैक्सिको में जाकर बसे तथा फ्रांसीसी कनाडा में जाकर बसे। धार्मिक स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए यहूदी लोग जर्मनी एवं रूस से भागकर अमेरिकी देशों को चले गये थे।
  4. सन् 1947 में भारत-विभाजन के समय भारत से लाखों मुसलमान पाकिस्तान चले गये तथा पाकिस्तान से करोड़ों हिन्दू भागकर भारत आ गये थे।
  5. अरब में मक्का-मदीना में हज के लिए प्रत्येक वर्ष हजारों मुस्लिम व्यक्ति भारत, पाकिस्तान, जावा, ईरान, मिस्र आदि देशों से अरब को जाते हैं और हज के बाद अपने देशों को वापस लौट आते हैं।
  6. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि देशों के निवासी भारत की सामाजिक अवस्था और संस्कृति को समझने में रुचि रखने लगे हैं। भारत से भी प्रतिवर्ष हजारों विद्यार्थी, वैज्ञानिक, शिक्षक-प्रशिक्षक आदि उच्च अध्ययन के लिए विदेशों को जाते रहते हैं। विदेशों से भी बहुत-से लोग इन कार्यों की प्राप्ति के लिए भारत में आते रहते हैं।
  7. पर्यटक, खिलाड़ी, कलाकार, संगीतज्ञ, नाटककार, राजनीतिज्ञ, व्यापारी आदि लोगों का एक देश से दूसरे देशों को आना-जाना बना रहता है तथा उनमें से कुछ स्थायी रूप से भी वहीं बस जाते हैं। | (viii) कुछ देशों; जैसे-जर्मनी, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि ने भारत के विभिन्न आर्थिक विकास कार्यक्रमों में सहयोग दिया है तथा वे अस्थायी रूप से यहाँ पर निवास कर रहे हैं। इस प्रकार सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों से अन्तर्राष्ट्रीय स्थानान्तरण दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है।

4. राजनीतिक कारक (Political Factors) – इस प्रकार का स्थानान्तरण निम्नलिखित चार प्रकार की क्रियाओं द्वारा होता है –

  1. आक्रमण एवं उसके परिणाम
  2. विजय
  3. उपनिवेशन तथा
  4. स्वतन्त्र स्थानान्तरण।

आक्रमण द्वारा मानव – वर्ग के स्थानान्तरण के उदाहरण सिकन्दर, महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी, बाबर, चंगेज खाँ, तैमूर आदि शासकों के समय में हुए हैं, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया तथा उनके साथ आये बहुत-से सैनिक भारत में बस गये थे।
जब अंग्रेज लोग भारत आये तो वे मात्र व्यापारी थे। इस कम्पनी ने धीरे-धीरे भारतीय राजाओं के आपसी झगड़ों का लाभ उठाकर भारत में अंग्रेजी राज्य की नींव डाल दी। धीरे-धीरे इन्होंने राजाओं एवं नवाबों को परास्त कर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। तब ब्रिटेन से बहुत-से लोग प्रशासन चलाने के लिए भारत में बस गये थे।

इसी प्रकार चीन ने मंचूरिया प्रदेश को जीतकर अपनी बढ़ती जनसंख्या को मंचूरिया में बसा दिया था। द्वितीय महायुद्ध से पूर्व जापान ने कोरिया एवं मंचूरिया पर अपना आधिपत्य जमाकर इनमें अपनी जनसंख्या बसा दी थी। उपनिवेश के द्वारा फ्रांसीसी एवं अंग्रेजों ने अफ्रीका महाद्वीप में नयी बस्तियों को बसाया था। इसी प्रकार उन लोगों ने इण्डोनेशिया में तथा स्पेनी एवं पुर्तगालियों ने 16वीं शताब्दी में दक्षिणी अमेरिका में अपने उपनिवेश बनाये थे। 18वीं एवं 19वीं शताब्दी में अफ्रीका से बहुत-से नीग्रो लोगों को पकड़कर जबरदस्ती दास बनाकर संयुक्त राज्य अमेरिका में मजदूरी करने के लिए भेजा गया था। स्वतन्त्र स्थानान्तरण में लोगों को प्रवास करने में अपनी छाँट बनी रहती है। यह आर्थिक लाभ की प्राप्ति तथा सम्पन्न जीवन व्यतीत करने के लिए किया जाता है।

क्या स्थानान्तरण से जनाधिक्य की समस्या का समाधान हो सकता है?
जनाधिक्य की समस्या के निराकरण के लिए प्रवास एक उपाय के रूप में सुझाया जाता है। जनाधिक्य के सम्बन्ध में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री माल्थस का यह कथन सत्य है कि ”जनसंख्या में ज्यामितीय दर से तथा उत्पादन में गणितीय दर से वृद्धि होती है। अतः जनाधिक्य की समस्या तब उत्पन्न होती है। जब किसी देश की जनसंख्या एवं उत्पादन में असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है; अर्थात् जनसंख्या की अपेक्षा उत्पादन कम होता है। विश्व में अनेक देश ऐसे हैं जहाँ पर जनसंख्या-वृद्धि आदर्श बिन्दु को पार कर गयी है। वास्तव में आदर्श जनसंख्या वह होती है जो उस देश के संसाधनों के साथ सन्तुलन बनाये रखती है।

जनसंख्या एवं संसाधनों में सन्तुलन बनाये रखने के लिए प्रवास या स्थानान्तरण आवश्यक हो जाता है। अतः कम संसाधन होने पर जनसंख्या का स्थानान्तरण किया जा सकता है। ऐसा देखने में आता है कि प्रवास आर्थिक आकर्षण के कारण होता है, जबकि उस स्थान पर पोषण शक्तियों का शोषण पूर्ण रूप से नहीं हुआ हो। ऐसी स्थिति में जनसंख्या प्रवास को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए।

प्रवास द्वारा जनाधिक्य की समस्या का समाधान पूर्ण रूप से नहीं किया जा सकता । इसके लिए जनसंख्या के आदर्श बिन्दु की खोज करना नितान्त आवश्यक है। यदि आदर्श बिन्दु प्राप्त नहीं हुआ है तो देश की पोषण शक्ति के शोषण के लिए नवीनतम योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए। स्थानान्तरण तो एक अस्थायी साधन है। इसे रोकने के लिए बहुत-से देशों की सरकारों ने कड़े प्रतिबन्ध, नियम ऍवं कानूनों को बना दिया है जिससे जनसंख्या का प्रवास तुरन्त न हो सके।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
जनसंख्या की द्रुत गति से वृद्धि की दो समस्याओं का उल्लेख कीजिए। (2010, 11, 14, 15)
उत्तर
जनसंख्या की द्रुत गति से वृद्धि की दो समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

  1. खाद्य पदार्थों की समस्या – जिस गति से जनसंख्या की वृद्धि हुई है, उसी अनुपात में खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि नहीं हो पायी है। फलस्वरूप विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या का जीवन-स्तर निम्न, कुपोषण और दरिद्रता से भरा हुआ है।
  2. बेरोजगारी एवं सामाजिक अव्यवस्था – जनसंख्या में द्रुत गति से वृद्धि के कारण सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव पड़ा है, जिससे बेरोजगारी के साथ-ही-साथ समाज में असन्तोष भी बढ़ रहा है। कानून और प्रशासन की समस्या उत्पन्न हो गयी है। आर्थिक और सामाजिक अपराधों में वृद्धि हुई है तथा उग्रवाद प्रबल हुआ है। मदिरापान और जानलेवा अन्य नशीले पदार्थों का सेवन भी बढ़ी है।

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प्रश्न 2
टिप्पणी लिखिए-जनसंख्या का स्थानान्तरण।
या
जनसंख्या के अन्तर्राष्ट्रीय स्थानान्तरण के कारणों की विवेचना कीजिए। [2007]
उत्तर
जनसंख्या के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में प्रवसन को जनसंख्या का स्थानान्तरण कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है –

  1. प्रवास अर्थात् मानव को एक स्थान से दूसरे स्थान को जाना तथा
  2. आवास अर्थात् मानव को बाहर से किसी प्रदेश के अन्दर आना। किसी क्षेत्र से जनसंख्या का प्रवास निम्नलिखित कारणों से होता है –
    1. बाढ़, अकाल, भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसी क्षेत्र की जनसंख्या अन्यत्र स्थानान्तरण करती है।
    2. प्राचीन काल में बड़े पैमाने पर हिमानीकरण होने पर भी जनसंख्या का स्थानान्तरण हुआ।
    3. जब किसी क्षेत्र में जीविकोपार्जन के साधनों की कमी हो जाती है तो वहाँ के लोग अन्य क्षेत्रों में प्रवास करते हैं।
    4. धार्मिक कारणों से भी मिशनरी लोग अन्य देशों में प्रवास करते हैं।
    5. किसी देश के विभाजन के फलस्वरूप भी जनसंख्या का स्थानान्तरण होता है।
    6. पर्यटक, खिलाड़ी, कलाकार, संगीतज्ञ आदि भी किसी दूसरे देश से आकर्षित होकर प्रवास करते हैं और वहीं बस जाते हैं।
    7. प्राचीन तथा मध्य युग में अनेक आक्रान्ताओं ने दूसरे देशों पर आक्रमण किये और वहीं बस गये।
    8. व्यापार के उद्देश्य से अंग्रेज, डच, फ्रांसीसी आदि लोगों ने एशियाई तथा अफ्रीकी देशों में प्रवास किया।

जनसंख्या का आवास भी अनेक कारणों से होता है, जिनमें मुख्य हैं –

  1. प्राकृतिक रूप से सुरक्षित स्थानों पर जनसंख्या का बसना।
  2. किसी क्षेत्र में उपलब्ध आर्थिक सुविधाओं का आकर्षण।
  3. धर्म-प्रचार के लिए किसी देश में स्थायी रूप से बस जाना।
  4. राजनीतिक कारणों से किसी देश में लोगों का शरण लेना।

उपर्युक्त प्रवास या आवास अनेक प्रकार के होते हैं –

  1. दीर्घकालिक और अल्पकालिक
  2. अन्तर्महाद्वीपीय, अन्तर्देशीय, अन्तर्राज्यीय तथा स्थानीय
  3. स्थायी और अस्थायी तथा
  4. बड़े पैमाने पर और छोटे पैमाने पर।

प्रश्न 3
जनाधिक्य के चार प्रभावों का वर्णन कीजिए। [2014]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 के अन्तर्गत ‘जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम या प्रभाव शीर्षक देखें।

प्रश्न 4
तीव्र जनसंख्या वृद्धि की दो समस्याओं का वर्णन कीजिए। [2010, 12]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 के अन्तर्गत ‘जनसंख्या वृद्धि की समस्याएँ’ शीर्षक देखें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
जनसंख्या के स्थानान्तरण को कौन-सी दो शक्तियाँ प्रभावित करती हैं?
उत्तर
जनसंख्या के स्थानान्तरण को प्रवासकारी एवं आवासकारी शक्तियाँ प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 2
जनसंख्या के स्थानान्तरण के किन्हीं दो कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर

  1. किसी देश के विभाजन के कारण जनसंख्या स्थानान्तर सर्वविदित है; जैसे कि भारतपाकिस्तान बनने पर हुआ था।
  2. प्राकृतिक आपदा, जैसे बाढ़ व अकाल में भी जनसंख्या स्थानान्तर कर जाता है।

प्रश्न 3
जनसंख्या का स्थानान्तरण किसे कहते हैं?
उत्तर
कठोर जलवायु, बाढ़, सूखा, जीवन-निर्वाह, सामाजिक या राजनीतिक कठिनाई के कारण पृथ्वी के विभिन्न भागों में एक प्रदेश से दूसरे स्थान को मानव वर्गों का प्रवसन होता रहा है। इसे ही जनसंख्या का स्थानान्तरण कहते हैं।

प्रश्न 4
किन राजनीतिक कारकों से स्थानान्तरण होता है?
उत्तर
निम्नलिखित चार क्रियाएँ स्थानान्तरण के राजनीतिक कारक हैं –

  1. आक्रमण एवं उसके परिणाम
  2. विजय
  3. उपनिवेश तथा
  4. स्वतन्त्र स्थानान्तरण।

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
स्थानीय स्थानान्तरण है –
(क) गाँवों से शहरों की ओर
(ख) शहरों से गाँवों की ओर
(ग) अन्तक्षेत्रीय प्रवसन
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी।

प्रश्न 2
अन्तक्षेत्रीय स्थानान्तरण किसके बीच होता है?
(क) ग्रामीण क्षेत्र से नगर की ओर
(ख) नगर से उपनगर की ओर
(ग) नगर से महानगर की ओर
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 5 Population Problems and Their Solution

प्रश्न 3
निम्नलिखित में से स्थानीय प्रवसन का प्रकार कौन-सा है –
(क) नगर से गाँव की ओर
(ख) अन्तक्षेत्रीय प्रवसन
(ग) गाँव से नगर की ओर
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी।

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