UP Board Class 12 History Model Papers Paper 1

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject History
Model Paper Paper 1
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 History Model Papers Paper 1

समय: 3 घण्टे 15 मिनट
पूणक: 100
निर्देश
प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
नोट

  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
  • इस प्रश्न-पत्र में पाँच खण्ड हैं।
  • खण्ड ‘क’ में 10 बहुविकल्पीय प्रश्न हैं, खण्ड ‘ख’ में 05 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 50 शब्द) हैं।
  • खण्ड ‘ग’ में 06 लघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 100 शब्द) हैं।
  • खण्ड ‘घ’ में 03 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (लगभग 500 शब्द) हैं।
  • खण्ड ‘ङ’ में ऐतिहासिक तिथियों व मानचित्र से सम्बन्धित 05 प्रश्न हैं। शब्द सीमा में (कम या ज्यादा) 10% की छूट अनुमन्य है।
  • सभी प्रश्नों के निर्धारित अंक उनके सम्मुख अंकित हैं।

खण्ड-‘क’

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
तुजुक-ए-बाबरी’ को रचयिता था? [1]
(a) बाबर
(b) फैजी
(c) हुमायूँ
(d) फरिश्ता

प्रश्न 2.
औरंगजेब ने शाहजहाँ को कहाँ कैद कर रखा था?  [1]
(a) आगरा में
(b) दिल्ली में
(c) शाहजहानाबाद में
(d) फिरोजाबाद

प्रश्न 3.
मुगल साम्राज्य का अन्तिम सम्राट कौन था?  [1]
(a) बहादुरशाह प्रथम
(b) बहादुरशाह द्वितीय
(c) शाहआलम
(d) मुहम्मदशाह

प्रश्न 4.
शिवाजी की राजधानी थी?  [1]
(a) पुरन्दर
(b) रायगढ़
(c) सिंहगढ़
(d) पुणे

प्रश्न 5.
1833 ई. का चार्टर किस गर्वनर जनरल के समय पास हुआ? [1]
(a) लॉर्ड क्लाइव
(b) लॉर्ड वेलेजली
(c) लॉर्ड-कॉर्नवालिस
(d) लॉर्ड विलियम बैंण्टिक

प्रश्न 6.
ब्रह्म समाज के संस्थापक कौन थे  [1]
(a) राजाराम मोहन राय
(b) स्वामी विवेकानन्द
(c) स्वामी दयानन्द सरस्वती
(d) रामकृष्ण परमहंस

प्रश्न 7.
बंगाल विभाजन के समय भारत का वायसराय था   [1]
(a) लॉर्ड कर्जन
(b) लॉर्ड मिन्टो
(c) लॉर्ड रिपन,
(d) लॉर्ड डफरिन

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से गरम दल के नेता थे  [1]
(a) दादा भाई नौरोजी
(b) फिरोज शाह मेहता।
(c) बाल गंगाधर तिलक
(d) ए.ओ. ह्युम

प्रश्न 9.
निम्न में से कौन-सा आन्दोलन गाँधी जी से सम्बन्धित नहीं था? [1]
(a) असहयोग आन्दोलन
(b) होमरूल आन्दोलन
(c) सविनय अवज्ञा आन्दोलन
(d) भारत छोड़ो आन्दोलन

प्रश्न 10.
गाँधी जी ने डाण्डी मार्च प्रारम्भ किया था   [1]
(a) अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए कहने हेतु
(b) नमक कानून तोड़ने हेतु
(c) विदेशी सामानों के बहिष्कार हेतु
(d) हिन्दू मुस्लिम एकता हेतु

खण्ड-‘ख’

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 
प्रश्न 11.
राणा सांगा की पराजय के क्या परिणाम हुए? [2]

प्रश्न 12.
शेरशाह को ‘शेर खाँ’ की उपाधि क्यों दी गई?  [2]

प्रश्न 13.
पुरन्दर की सन्धि किस-किस के मध्य हुई? [2]

प्रश्न 14.
फ्रांसीसियों के विरुद्ध अंग्रेजों की सफलता के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए? [2]

प्रश्न 15.
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट क्या था? [2]

खण्ड-‘ग’

लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 16.
“हुमायूँ स्वयं अपना शत्रु था” स्पष्ट कीजिए?   [5]

प्रश्न 17.
‘अष्ट्र प्रधान के विषय में आप क्या जानते हैं?  [5]

प्रश्न 18.
1857 ई. की क्रान्ति का तात्कालिक कारण क्या था? [5]

प्रश्न 19.
खिलाफत आन्दोलन के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए? [5]

प्रश्न 20.
1947 के अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए? [5]

प्रश्न 21.
गुटनिरपेक्षता का क्या महत्त्व है? [5]

खण्ड-‘घ’

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 22.
“अकबर मुगल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था, इस कथन की विवेचना कीजिए। [10]
अथवा
“शाहजहाँ का काल मुगल साम्राज्य का स्वर्ण युग था’ क्या आप सहमत हैं? विवेचना कीजिए। [10]

प्रश्न 23.
(i) बक्सर के युद्ध के कारण तथा परिणामों पर प्रकाश डालिए [10]
अथवा
(ii) बंगाल के द्वैध-शासन के पक्ष-विपक्ष पर प्रकाश डालिए? [10]

प्रश्न 24.
‘भारत सरकार अधिनियम 1935’ की प्रमुख धाराओं का वर्णन कीजिए?  [10]
अथवा
1919′ के अधिनियम की प्रमुख धाराओं का उल्लेख कीजिए। [10]

खण्ड-‘ङ’

प्रश्न 25.
निम्नलिखित ऐतिहासिक तिथियों से सम्बन्धित घटनाओं का उल्लेख कीजिए। [10]
1. 1658 ई.
2. 1659 ई.
3. 1742 ई.
4. 1798 ई.
5. 1856 ई.
6. 1875 ई.
7. 1885 ई.
8. 1798 ई.
9. 1932 ई.
10. 1956 ई.

प्रश्न 26.
मानचित्र सम्बन्धी प्रश्न
दिए गए भारत के रेखा-मानचित्र में निम्नलिखित स्थानों का अंकन
(अ) चिह्न द्वारा दर्शाइए तथा उनके नाम भी लिखिए। सही नाम तथा सही स्थान दर्शाने के लिए 1+ 1 अंक निर्धारित है। |
(i) वह स्थान जहाँ से 1857 ई. की क्रान्ति की शुरुआत हुई। । [2]
(ii) वह स्थान जहाँ कांग्रेस का पहला अधिवेशन हुआ। । [2]
(iii) वह स्थान जहाँ जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ। । [2]
(iv) ‘राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956′ द्वारा 1 मई 1960 में किए गए परिवर्तन द्वारा गठित नया राज्य। [2]
(v) ‘2000 ई. में संसद द्वारा पारित विधेयक द्वारा गठित कोई एक राज्य। [2]

Answers

उत्तर 1.
(a) बाबर

उत्तर 2.
(b) दिल्ली में

उत्तर 3.
(c) शाहआलम

उत्तर 4.
(b) रायगढ़

उत्तर 5.
(d) लॉर्ड विलियम बैंण्टिक

उत्तर 6.
(a) राजाराम मोहन राय

उत्तर 7.
(a) लॉर्ड कर्जन

उत्तर 8.
(c) बाल गंगाधर तिलक

उत्तर 9.
(b) होमरूल आन्दोलन

उत्तर 10.
(b) नमक कानून तोड़ने हेतु

उत्तर 11.
राणा सांगा मेवाड़ के राजपूत शासक थे। 17 मार्च 1527 ई. को हुए खानवा के युद्ध में वे मुगल शासक बाबर से पराजित हो गए। इस | पराजय के निम्नलिखित परिणाम हुए।

  •  भारत पर मुगल साम्राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ।
  •  राजपूत सत्ता की पकड़ कमजोर हुई।

उत्तर 12.
शेरशाह को ‘शेर खाँ’ की उपाधि दक्षिण बिहार के सूबेदार बहार खाँ लोहानी के द्वारा एक शेर को मारने के उपलक्ष्य में प्रदान की गई थी। शेरशाह की बहादुरी से प्रभावित होकर लोहानी ने शेरशाह को अपने पुत्र जलाल खाँ का संरक्षक भी नियुक्त किया था।

उत्तर 13.
पुरन्दर की सन्धि शिवाजी और मुगल शासक औरंगजेब के मध्य 24 जून, 1665 को हुई। इस सन्धि के अनुसार, शिवाजी को अपने 33 में से 23 किले मुगलों को देने पड़े। उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में 5000 का मनसब दिया गया तथा शिवाजी ने मुगलों की तरफ से बीजापुर के विरुद्ध युद्ध एवं सेवा करने का वचन दिया। इस सन्धि के समय मनूची भी उपस्थित था।

उत्तर 14.
फ्रांसीसियों एवं अग्रेजों के मध्य तीन कर्नाटक युद्ध हुए। जिनमें फ्रांसीसियों की पराजय हुई। इन युद्धों में अंग्रेजों की सफलता के दो कारण निम्नलिखित थे।

(i) फ्रांसीसी सेनापति डुप्ले, बुसी, लाली की तुलना में अंग्रेज सेनापति क्लाइव, लॉरेन्स तथा आयरकूट की कुशलता।
(ii) इंग्लैण्ड की नौ-सेना की सर्वोच्चता।

उत्तर 15.
लॉर्ड लिटन के समय वर्ष 1878 में लागू वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट भारतीय भाषाओं में छपने वाले समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता को प्रतिबन्धित करने वाला एक कानून था। यह राष्ट्रवादी विचारों के प्रसार को रोकने के लिए लाया गया था। लॉर्ड रिपन ने 1882 ई. में इस एक्ट को रद्द कर दिया।

उत्तर 20.
1947 को अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अधिनियम है, जिसके आधार पर भारत एवं पाकिस्तान में विभाजन किया गया। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउण्ट बेटन की योजना पर आधारित यह विधेयक 4 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद में पेश किया गया और 18 जुलाई 1947 को शाही संस्तुति मिलने के बाद अधिनियम बना। इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं।

(i) भारतीय रियासतों को यह अधिकार दिया गया की वे अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में रह सकती हैं।
(ii) जब तक नया संविधान नहीं बन जाता, तब तक दोनों राज्यों का शासन भारत सरकार अधिनियम 1935 के द्वारा ही चलाया जाएगा।
(iii) भारत का विभाजन उसके स्थान पर भारत तथा पाकिस्तान नामक दो अधिराज्यों में होगा।
(iv) दोनों अधिराज्यों के पास अधिकार सुरक्षित होगा की वे इच्छानुसार राष्ट्रमण्डल में बने रहें या अलग हो जाएँ।
(v) ब्रिटेन में भारत ने मन्त्री के पद को समाप्त कर दिया गया।
(vi) 15 अगस्त, 1947 से भारत और पाकिस्तान में अलग-अलग गवर्नर जनरल कार्य करेंगे।
(vii) जब तक नए प्रान्तों में चुनाव नहीं हो जाते, उस समय तक प्रान्तों में पुराने विधानमण्डल कार्य कर सकेंगे।

उत्तर 23.
(ii) भारत में 17वीं शताब्दी तक ईस्ट-इण्डिया कम्पनी अपनी व्यापारिक स्थिति मजबूत कर चुकी थी। इसके बाद कम्पनी ने भारत के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करना प्रारम्भ कर दिया। कम्पनी के राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण ही बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला तथा कम्पनी के मध्य सम्बन्ध कटु हो गए। जिसके कारण 1757 ई. में इनके मध्य प्लासी का युद्ध हुआ और सिराजुद्दौला की हार हुई। इस जीत के बाद कम्पनी ने अपनी इच्छानुसार बंगाल में नवाब बदलने प्रारम्भ कर दिए।

सिराजुद्दौला के पश्चात् मीर जाफर बंगाल का शासक बना था, जो अंग्रेजों और इस कम्पनी के फायदे के लिए कार्य करता रहता था। तीन वर्ष पश्चात् कम्पनी ने मीर जाफर को पदच्युत करके मीर कासिम को नवाब बनाया जो मीर जाफर का दामाद था।

मीर कासिम एक योग्य व्यक्ति था, इसने बंगाल का नवाब बनते ही अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए प्रशासनिक कदम उठाए। जिसके कारण मीर कासिम और कम्पनी के सम्बन्ध बिगड़ गए, जिसके कारण 1764 ई. में बक्सर का युद्ध हुआ, जिसमें ब्रिटिशों ने मुगल सम्राट शाह आलम बंगाल के नवाब मीर कासिम एवं अवध के नवाब सिजाउद्दौला को पराजित किया। इसके बाद भारत में ब्रिटेन की ताकत और बढ़ गई एवं इस जानकारी के बाद ब्रिटेन ने दुबारा लार्ड क्लाइव को बंगाल का गवर्नर बनाकर भारत भेजा।

लॉर्ड क्लाइव ने यहाँ प्रशासनिक सुधारों के अतिरिक्त 12 अगस्त 1765 ई. में मुगल सम्राटशाह आलम ने इलाहाबाद की सन्धि की इस सन्धि के द्वारा बंगाल में दोहरी सरकार अथवा द्वैध-शासन की स्थापना हुई। इससे कम्पनी को दीवानी और निजामत के अधिकार मिल गए थे, परन्तु कर्मचारी को मालगुजारी वसूल करने तथा | शासन चलाने का अनुभव नहीं था, इसलिए उन्होंने अधिकारों का विभाजन कर दिया। क्लाइव द्वारा स्थापित दोहरी शासन प्रणाली जटिल थी इस व्यवस्था में बंगाल का समस्त कार्य नवाब के नाम से चलता था, परन्तु उसके पास शक्ति नाममात्र की थी। नवाब कम्पनी के पेंशनर थे, परन्तु कम्पनी उन्हें खर्च के लिए निश्चित राशि देती थी। कम्पनी शासन कार्य में नवाब का निर्देशन करती थी, परन्तु रक्षा के लिए जिम्मेदार नहीं थी। कम्पनी एक तरफ बंगाल के नवाब के अधीन होने का दिखावा करती थी तो दूसरी तरफ वास्तविक शक्ति ही कम्पनी के हाथों में थी।

क्लाइव की इस प्रणाली को द्वैध-शासन प्रणाली कहा जाता है। इसके पक्ष एवं विपक्ष में प्रमुख बातें निम्न प्रकार हैं।

पक्ष

(i) कम्पनी के कार्यों के लिए ऐसे कर्मचारियों की कमी थी, जो भारतीय भाषाओं तथा रीति-रिवाजों से परिचित हो, ऐसी स्थिति में कम्पनी ने शासन का उत्तरदायित्व भारतीयों पर डाल दिया, जिससे कम्पनी का शासन सुव्यवस्थित ढंग से चलने लगा एवं भारतीय खुश हो गए।
(ii) उस समय भारत के साथ युरोपीय, पुर्तगाली एवं फ्रांसीसी भी व्यापार करते थे, जो ईस्ट-इण्डिया कम्पनी के विरोधी थे, परन्तु क्लाइव ने द्वैध-शासन की सहायता से बंगाल के नवाब को समक्ष रखकर इन सभी से व्यापार किया और अपनी स्थिति भी मजबूत
की जिसके कारण संघर्ष की स्थिति उत्पन्न न हो सकी। |
(iii) द्घ-शासन के कारण ही कम्पनी मराठों की शक्ति से बच गई एवं इसे मराठों का सामना नहीं करना पड़ा। |
(iv) द्वैध-शासन के पूर्व कम्पनी तथा बंगाल नवाब के बीच परस्पर झगड़े होते रहते थे। जिससे जनता भी नाराज थी इस शासन व्यवस्था के बाद यह राजनीतिक संघर्ष बन्द हो गए। इसके बदले बंगाल नवाब को 53 लाख रुपए पेन्श्न के रूप में नवाब को दिए जाते थे, जो शासन चलाने के लिए काफी न थे।
(v) द्वैध-शासन के कारण भारतीय देशी राजाओं में किसी सन्देह की स्थिति उत्पन्न नहीं हो सकी जिससे कम्पनी एवं जनता को संघर्ष की अग्नि में नहीं जलना पड़ा।

विपक्ष

(i) कम्पनी के पास वास्तविक शक्ति एवं नवाब के पास नाममात्र की शक्ति के कारण कम्पनी नवाबों को कठपुतली की तरह इस्तेमाल करती थी, जिससे बंगाल की जनता के कल्याण सम्बन्धी कार्यों में बाधा उत्पन्न हुई।
(ii) द्वैध-शासन के कारण कम्पनी शासन प्रबन्ध की जिम्मेदार नहीं थी।
(iii) कम्पनी ने अपनी आय में वृद्धि के लिए करों की मात्रा में वृद्धि की जिससे कम्पनी के प्रति अराजकता एवं बंगाल में अव्यवस्था एवं अष्टाचार में वृद्धि हुई।
(iv) द्वैध-शासन के कारण कम्पनी ने सैन्य प्रशासन अपने हाथों में ले । लिया जिससे ब्राह्य युद्ध और शान्ति के लिए नवाब कम्पनी की प्रतिक्षा करता था।
(v) बंगाल में वैष-शासन के कारण न्याय व्यवस्था भंग हो गई, क्योंकि कम्पनी न्याय व्यवस्था में भी हस्तक्षेप करने लगी।
(vi) द्वेष-शासन के उद्योग एवं व्यापार को बहुत हानि हुई तथा बंगाल का सूती-वस्त्र उद्योग बर्बाद हो गया।
(vii) भूमि कर वसूली का कार्य ठेकेदार को सौंप दिया गया, जिससे बचत करने के लिए ठेकेदार कार्य करते थे, इसके कारण ही कृषि व्यवस्था भी बन्द हो गई।

उत्तर 25.
महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तिथियाँ एवं उनका घटनाक्रम

1. 1658  ई. औरंगजेब एवं मुराद द्वारा सामूगद के युद्ध में दारा की सेना पर निर्णायक विजया औरंगजेब को सिंहासनारोहण/शाहजहाँ का बन्दी बनाया जाना।
2. 1659  ई. शिवाजी द्वारा अफजल खाँ का बधा। औरंगजेब का द्वितीय (औपचारिक) राज्याभिषेक|
3. 1742  ई. व्यापारिक हित हेतु फ्रांसीसियों का भारत के | राजनीतिक क्षेत्र में हस्तक्षेप|
4. 1798  ई. हैदराबाद के निजाम द्वारा सहायक सन्धि को स्वीकार करना।
5. 1856  ई. विधवा पुनर्निवाह अधिनियम पारित किया गया।
6. 1875  ई. बम्बई में स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा आर्य समाज की स्थापना, अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो ऑरिएण्टल कॉलेज की सर सैयद अहमद खाँ द्वारा स्थापना, न्यूयॉर्क में थियोसॉफिकल सोसायटी की स्थापना।
7. 1885  ई. अवकाश प्राप्त अंग्रेज अधिकारी एलन अक्टोवियन ह्यूम (ए. ओ. ह्यूम) द्वारा मुम्बई (बम्बई) में कांग्रेस की स्थापना
8. 1929  ई. दिसम्बर 1929 में कांग्रेस के लाहौर | अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की माँग की गई।
9. 1932  ई. साम्प्रदायिक निर्णय के विरुद्ध गाँधीजी का | अनशन। गाँधीजी तथा बी. आर. अम्बेडकर के बीच पूना समझौता
10. 1956  ई. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम 1956 पारित किया गया।

उत्तर 26.
(i) मेरठ
(ii) बम्बई (मुम्बई)
(iii) अमृतसर
(iv) गुजरात
(v) झारखण्ड
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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency: Median (केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप : माध्यिका)

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Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 28
Chapter Name Measure of Central Tendency: Median (केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप : माध्यिका)
Number of Questions Solved 18
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency: Median (केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप : माध्यिका)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
मध्यका से आप क्या समझते हैं ? इसको परिभाषित करते हुए इसकी विशेषताओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए। [2011]
उत्तर:
माध्यिका या मध्यका समंक श्रेणी का वह गतिशील मूल्य है जो समंकमाला को दो बराबर भागों में इस प्रकार विभाजित करता है कि एक भाग के सारे मूल्य मध्यका से अधिक तथा दूसरे भाग के सारे मूल्य मध्यका से कम होते हैं। यदि किसी समंकमाला को आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाए तो श्रेणी के बीच के मूल्य को माध्यिका कहते हैं।

मध्यका की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
कॉनर के अनुसार, “मध्यका समंक श्रेणी का वह चर मूल्य है, जो क्रमबद्ध समंकमाला को दो बराबर भागों में इस प्रकार बाँटता है कि एक भाग में सारे मूल्य माध्यिका से अधिक और दूसरे भाग में सारे मुल्य उससे कम होते हैं।”
डॉ० बाउले के अनुसार, “यदि एक समूह के पदों को मूल्यों के आधार पर क्रमबद्ध किया जाए। तो लगभग मध्य पद का मूल्य ही मध्यको होगा।”

मध्यका की विशेषताएँ
मध्यका की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. मध्यका एक स्थिति सम्बन्धी माध्य है।
  2. यह आरोही या अवरोही समंकमाला को दो बराबर भागों में बाँट देती है।
  3. मध्यका के मूल्य पर अति सीमान्त इकाइयों का प्रभाव बहुत कम होता है।
  4. यह समंकमाला का केन्द्रीय मूल्य होता है।
  5. एक भाग के सभी मूल्य मध्यका से कम तथा दूसरे भाग के सभी मूल्य मध्यका से अधिक होते हैं।
  6. अन्य माध्यों की तरह मध्यका का गणितीय विवेचन नहीं करना होता।

प्रश्न 2
माध्यिका के गुण-दोष लिखिए। [2011]
उत्तर:
माध्यिका के गुण
माध्यिका या मध्यका के गुण निम्नलिखित हैं

  1. बुद्धिमत्ता, सुन्दरता आदि गुणात्मक विशेषताओं के अध्ययन के लिए अन्य माध्यों की अपेक्षा मध्यका श्रेष्ठ समझी जाती है।
  2. मध्यका को बिन्दुरेखीय पद्धति से भी ज्ञात किया जा सकता है।
  3. मध्यका की गणना हेतु श्रेणी के सभी मूल्यों का ज्ञान आवश्यक नहीं। केवल मदों की संख्या व मध्यका वर्ग का ज्ञान पर्याप्त है।
  4. मध्यका सीमान्त पदों से प्रभावित नहीं होती।
  5. मध्यको की गणना सरलता से की जा सकती है।
  6. यदि आवृत्तियों की प्रवृत्ति श्रेणी के मध्य समान रूप से विपरीत होने की हो तो मध्यका एक विश्वसनीय माध्य माना जाता है।
  7. मध्यको सदैव निश्चित एवं स्पष्ट होती है। सामान्य ज्ञान रखने वाले व्यक्ति के द्वारा भी इसे आसानी से ज्ञात किया जा सकता है।

माध्यिका के दोष माध्यिका या मध्यका के दोष निम्नलिखित हैं

  1. जब पदों की संख्या सम होती है तो मध्यका का सही मूल्य ज्ञात करना सम्भव नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में मध्यका का मान केवल अनुमानित रूप में ही ज्ञात होता है।
  2. मध्यका ज्ञात करते समय, यदि इकाइयों की संख्या में वृद्धि कर दी जाए तो इसका मूल्य बदल जाता है।
  3. जिन स्थानों पर श्रेणी के सीमान्त पदों का भार देना हो उन स्थानों के लिए मध्यको उपयुक्त नहीं रहती।।
  4. इसका प्रयोग बीजगणितीय क्रियाओं में नहीं किया जा सकता।
  5. इसकी गणना के लिए यह आवश्यक है कि पहले श्रेणी को आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाए।
  6. यदि मध्यका तथा पदों की संख्या दी गयी हो तो इनके गुणा करने पर मूल्यों का कुल योग प्राप्त नहीं किया जा सकता। समान्तर माध्य की तरह यह गुण मध्यका में नहीं होता।
  7. यदि मूल्यों का वितरण अनियमित हो तो मध्यका प्रतिनिधि अंक प्रस्तुत नहीं करता; जैसे – एक विद्यार्थी को 5 विषयों में क्रमश: 20, 10, 3, 1, 0 अंक प्राप्त हुए हों। मध्यको अंक 3 होगा जो कि उचित प्रतीत नहीं होता।

प्रश्न 3
मध्यका या माध्यिका की गणना हेतु विभिन्न श्रेणियों में प्रयुक्त रीतियों को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
विभिन्न प्रकार की श्रेणियों में मध्यका की गणना
(क) व्यक्तिगत श्रेणी में  – व्यक्तिगत श्रेणी में मध्यका निम्नलिखित विधि से ज्ञात की जाती है|
(1) सर्वप्रथम श्रेणी के सभी पदों को आरोही (Ascending) या अवरोही (Descending) क्रम में रखते हैं।
(2) पद, सम हो या विषम, मध्यका ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं
M = Value of [latex]\frac { N+1 }{ 2 }[/latex] th item
यहाँ पर, M = माध्यिका या मध्यका, N = पदों की संख्या।।

उदाहरण 1
निम्नलिखित समंकों से मध्यका ज्ञात कीजिए [2009]
18,   20,   25,   12,   15,   25,   28,   30,   10.
हल:
पदों को आरोही क्रम में व्यवस्थित करने परसंख्या
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 1
सूत्र – M = [latex]\frac { N+1 }{ 2 }[/latex] वें पद का मूल्य
अतः, M = [latex]\frac { 9+1 }{ 2 }[/latex] = [latex]\frac { 10 }{ 2 }[/latex] = 5वें पद का मूल्य
या, M = 5 वें पद का मूल्य = 20
अतः, मध्यका = 20
विशेष – व्यक्तिगत श्रेणी में यदि संख्या सम है तब [latex]\frac { N+1 }{ 2 }[/latex]th में मध्यका आकार पूर्णांक में नहीं होगा। ऐसी स्थिति में मध्यका की गणना निम्नलिखित उदाहरण में समझायी जा रही है

उदाहरण 2
निम्नलिखित समंकों की माध्यिका ज्ञात कीजिए
50,   10,   7,  5,   18,   22,   25,   36,   12.
हल:
पदों को आरोही क्रम में व्यवस्थित करने पर
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 2
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 3

(ख) खण्डित श्रेणी में – खण्डित श्रेणी में माध्यिका ज्ञात करने के लिए सर्वप्रथम बारम्बारता (आवृत्ति) को संचयी बारम्बारता में बदल देते हैं। इसके पश्चात् व्यक्तिगत श्रेणी में प्रयुक्त किये गये सूत्र [latex]\frac { N+1 }{ 2 }[/latex] द्वारा माध्यिका पद ज्ञात किया जाता है। वह पद जिस संचयी आवृत्ति में समाहित होता है, वही मध्यका होती है।

उदाहरण 3
कुछ परीक्षार्थियों के प्राप्तांक निम्नलिखित हैं। इनकी मध्यका ज्ञात कीजिए [2009, 10]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 4
हल:
मध्यका की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 5
यहाँ 16 वाँ पद संचयी बारम्बारता 19 में निहित है और 19वें पद का मूल्य = 38
अतः, मध्यका = 38

विशेष – मध्यका का मूल्य निर्धारित करने के लिए [latex]\frac { N+1 }{ 2 }[/latex] वें पद के मूल्य को सदैव संचयी आवृत्ति के कॉलम में देखा जाता है तथा उस संचयी आवृत्ति के सम्मुख का पद मध्यको होता है। यह आवश्यक नहीं है कि वह पद संचयी आवृत्ति के कॉलम में मिल ही जाए, किन्तु वह पद संचयी आवृत्ति के जिस पद में निहित होता है उसी के सामने का पद मध्यका होता है।

(ग) सतत् श्रेणी – सतत् या अविच्छिन्न श्रेणी में मध्यका अग्रलिखित क्रमिक पद्धति की सहायता से ज्ञात की जाती है

  1. सबसे पहले यदि दी गयी श्रेणी समावेशी (Inclusive) हो तो उसे अपवर्जी (Exclusive) श्रेणी में परिवर्तित करना चाहिए।
  2. इसके बाद साधारण आवृत्तियों को संचयी आवृत्तियों में परिवर्तित करते हैं।
  3. इसके बाद m = [latex]\frac { N}{ 2 }[/latex] की सहायता से मध्यका पद ज्ञात किया जाता है।
  4. मध्यका पद जिस संचयी आवृत्ति में निहित होता है उसका मूल्य उसके सम्मुख के वर्ग–अन्तराल में निहित होता है। मध्यका-मूल्य इस वर्गान्तर की उच्च और निम्न सीमाओं के बीच ही होता है। इसे ज्ञात करने के लिए आन्तरगणन या अन्तर्वेशन (Interpolation) के निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं

सूत्र – M = L1 + [latex]\frac { { L }_{ 2 }-{ L }_{ 1 } }{ f }[/latex] (m – c)
यहाँ पर, M = मध्यका,
L1 = मध्यका वर्ग की निम्न सीमा, L2 = मध्यका वर्ग की उच्च सीमा,
f = मध्यका वर्ग की बारम्बारती,
m = मध्य पद,
c = मध्यका वर्ग से पहले वाले वर्ग की संचयी बारम्बारता।

लघु उत्तरीय प्रश्न, (4 अंक)

उदाहरण 1
निम्नलिखित समंकों की सहायता से मध्यका ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 6
या
निम्न समंकों की सहायता से माध्यिका ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 7
या
निम्न समंकों में माध्यिका ज्ञात कीजिए [2014]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 8
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 9
मध्यका का आकार 44.5वें पद का मूल्य 52 संचयी आवृत्ति में निहित है और यह संचयी आवृत्ति 30-40 वर्ग में स्थित है; अतः माध्यिका मूल्य इस वर्ग के अन्तर्गत ही स्थित होगा।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 10

उदाहरण 2
निम्नांकित समंकों से मध्यका ज्ञात कीजिए [2009, 10]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 11
हल:
सर्वप्रथम समावेशी श्रेणी को अपवर्जी श्रेणी में निम्नलिखित रूप में बदला जाना चाहिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 12
स्पष्ट है कि मध्यका का आकार 62.5 वें पद का मूल्य संचयी आवृत्ति 90 में आता है और यह संचयी आवृत्ति 20.5 – 25.5 वर्ग में स्थित है; अतः मध्यका मूल्य इस वर्ग के अन्तर्गत ही स्थित होगा।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 13

उदाहरण 3
निम्नलिखित आवृत्ति वितरण का मध्यमान ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 14
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 15
मध्यका का आकार 28.5वें पद का मूल्य 33 संचयी आवृत्ति में निहित है और यह संचयी आवृत्ति 35-40 वर्ग में स्थित है, अतः मध्यका मूल्य इस वर्ग के अन्तर्गत ही स्थित होगा।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 16

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
9 छात्रों के अर्थशास्त्र विषय में अंक निम्नलिखित प्रकार से हैं
43,   47,   19,   26,   35,   36,   41,   29,   32.
इन अंकों से मध्यका ज्ञात कीजिए।
हल:
पदों को आरोही क्रम में लिखने पर व्यक्तिगत श्रेणी, संख्या
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 17

प्रश्न 2
माध्यमिक शिक्षा परिषद्, उत्तर प्रदेश की कक्षा 12 अर्थशास्त्र की परीक्षा में परीक्षार्थियों ने निम्नलिखित अंक प्राप्त किये
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 18
प्राप्तांकों की मध्यका ज्ञात कीजिए।
हल:
सर्वप्रथम पदों को आरोही क्रम में निम्नवत् व्यवस्थित कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 19
23वें पद को मूल्य संचयी आवृत्ति 27 में है; अत: 27वें पद का मूल्य = 28
अतः, मध्यका =28

प्रश्न 3
निम्नलिखित सारणी से मध्यका ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 20
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 21
मध्यका का आकार 21वें पद का मूल्य संचयी आवृत्ति 27 में निहित है और यह संचयी आवृत्ति 15-20 वर्ग में स्थित है; अत: मध्यका का मूल्य इस वर्ग के अन्तर्गत ही स्थित होगा।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 22

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
‘मध्यका’ (माध्यिका) का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। [2008, 14]
उत्तर:
मध्यका आरोही अथवा अवरोही क्रम में अनुविन्यसित समंकमाला के विभिन्न पदों के मध्य का मूल्य होती है और वह समंकमाला को दो भागों में इस प्रकार बाँटती है कि उसके एक ओर के सब पद उससे कम मूल्य के तथा दूसरी ओर के सब पद उससे अधिक मूल्य के होते हैं।

प्रश्न 2
यदि आँकड़ों की संख्या सम (Even) हो तो मध्यका ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 23

प्रश्न 3
यदि आँकड़ों की संख्या विषम हो तो मध्यका ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
मध्यका = [latex]\frac { N=1 }{ 2 }[/latex] th

प्रश्न 4
एक छात्र के नौ प्रश्न-पत्रों में निम्नलिखित प्राप्तांक थे
65, 36, 58, 62, 42, 40, 72, 82, 25 प्राप्तांकों की मध्यका ज्ञात कीजिए।
हल:
प्राप्तांकों को आरोही क्रम में व्यवस्थित करने पर,
25, 36, 40, 42, 58, 62, 65, 72, 82
यहाँ, N = 9 अर्थात् पदों की संख्या विषम है।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 24

प्रश्न 5
एक कार्यालय के दस कर्मचारियों का दैनिक वेतन (₹ में) निम्नलिखित है
10, 13, 22, 25, 8, 11, 19, 17, 31, 36.
हल:
यहाँ, N = 10 अर्थात् पदों की संख्या सम है।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 25

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
किसी भी सांख्यिकीय श्रेणी का मध्य मूल्य होता है
(क) समान्तर माध्य
(ख) मध्यका
(ग) बहुलक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) मध्यका।

प्रश्न 2
केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप के अन्तर्गत श्रेणी के मूल्यों को क्रमबद्ध करना आवश्यक होता है
(क) समान्तर माध्य में
(ख) मध्यका में
(ग) बहुलक में
(घ) इनमें से किसी में नहीं
उत्तर:
(ख) मध्यका में।

प्रश्न 3
श्रेणी को दो बराबर भागों में बाँटने वाला मूल्य कहलाता है
(क) समान्तर माध्य
(ख) बहुलक
(ग) मध्यका
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) मध्यका।

प्रश्न 4
अविच्छिन्न अथवा सतत् श्रेणी में मध्यका निकालने का सूत्र है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 26
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 28 Measure of Central Tendency Median 27

प्रश्न 5
एक परिवार के 8 सदस्यों की आयु (वर्षों में) निम्नवत है
2,   5,   8,   11,   31,   35,   55 तथा  59
(क) 8
(ख) 11
(ग) 21
(घ) 31
उत्तर:
(ग) 21

प्रश्न 6
निम्न समंकों में माध्यिका क्या है? [2015]
8, 10, 12, 13, 15, 17, 20
(क) 10
(ख) 13
(ग) 15
(घ) 20
उत्तर:
(ख) 13

प्रश्न 7
तोरण वक्रों का प्रतिच्छेदन बिन्दु प्रदर्शित करता है [2009]
(क) समान्तर माध्य
(ख) गुणोत्तर माध्य
(ग) माध्यिका
(घ) बहुलक
उत्तर:
(ग) माध्यिका।

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UP Board Solutions for Class 12 Civics दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस)

UP Board Solutions for Class 12 Civics दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) are part of UP Board Solutions for Class 12 Civics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Civics दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter 22 e
Chapter Name दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस)
Number of Questions Solved 24
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
दक्षेस (सार्क) की स्थापना और विधान पर प्रकाश डालिए। दक्षिण एशिया के देशों में आपसी सहयोग के प्रेरक तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
या
दक्षेस (सार्क) से आप क्या समझते हैं? इसकी आवश्यकता और उपयोगिता पर प्रकाश डालिए। [2007, 14]
या
सार्क से क्या अभिप्राय है ? इसके संगठन और उद्देश्य का उल्लेख कीजिए। [2007, 12]
या
दक्षेस (सार्क) से आप क्या समझते हैं? इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
या
दक्षेस से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व की विवेचना कीजिए। [2012]
उत्तर :
सार्क (SAARC-South Asian Association for Regional Co-operation) विश्व का नवीनतम अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है। हिन्दी में यह ‘दक्षेस’ (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) कहलाता है। इस संगठन की स्थापना 8 दिसम्बर, 1985 को बाँग्लादेश की राजधानी ढाका में दो-दिवसीय अधिवेशन में हुई। यह दक्षिण एशिया के 8 देशों का एक क्षेत्रीय संगठन है। इस संगठन के देश भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान हैं। सार्क ने इस क्षेत्र में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास में तेजी लाने और अखण्डता का सम्मान करते हुए परस्पर सहयोग से सामूहिक आत्मनिर्भरता में वृद्धि करने का लक्ष्य निर्धारित किया।

सार्क के उद्देश्य – दक्षेस के चार्टर में 10 धाराएँ हैं। इसमें संघ के उद्देश्यों, सिद्धान्तों और संस्थाओं को परिभाषित किया गया है। अनुच्छेद के अनुसार दक्षेस के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. दक्षिण एशियाई क्षेत्र की जनता के कल्याण एवं उनके जीवन-स्तर में सुधार करना।
  2. क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास में तेजी लाना और सभी व्यक्तियों को सम्मान के साथ जीने और अपनी पूर्ण निहित क्षमता को प्राप्त करने के अवसर देना।
  3. दक्षिण एशिया के देशों की सामूहिक आत्मनिर्भरता में वृद्धि करना।
  4. आपसी विश्वास व सूझ-बूझ द्वारा एक-दूसरे की समस्याओं का मूल्यांकन करना।
  5. आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग एवं पारस्परिक सहायता में वृद्धि करना।
  6. दूसरे विकासशील देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना।
  7. सामान्य हित के मामलों पर अन्तर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।

प्रमुख सिद्धान्त – अनुच्छेद 2 के अनुसार दक्षेस के मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. संगठन के ढाँचे के अन्तर्गत सहयोग, प्रभुसत्तासम्पन्न समानता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता, दूसरे देशों के आन्तरिक मामले में हस्तक्षेप न करना तथा आपसी हित के सिद्धान्तों का आदर करना।
  2. यह सहयोग द्वि-पक्षीय या बहु-पक्षीय सहयोग की अन्य किसी स्थिति का स्थान नहीं लेगा।

सामान्य – प्रावधान – अनुच्छेद 10 में निम्नलिखित सामान्य प्रावधान रखे गये हैं –

  1. सभी स्तरों पर निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाएँगे।
  2. द्वि-पक्षीय विवादास्पद मामलों को विचार-विमर्श से बाहर रखा जाएगा।

दक्षेस के चार्टर की भूमिका में संयुक्त राष्ट्र संघ तथा निर्गुट आन्दोलन में आस्था व्यक्त की गयी है।

संस्थाएँ – चार्टर के अनुसार दक्षेस की निम्नलिखित संस्थाओं की रचना की गयी है –

1. शिखर सम्मेलन – प्रतिवर्ष एक शिखर सम्मेलन का आयोजन होगा जिसमें सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष भाग लेंगे। 1985 से 2013 ई० तक इस प्रकार के सत्रह शिखर सम्मेलन क्रमशः ढाका, बंगलुरु, काठमाण्डू, इस्लामाबाद, माले, कोलम्बो, नई दिल्ली, थिम्पू, अदू सिटी और माले में आयोजित हो चुके हैं।

2. मन्त्रिपरिषद – सदस्य देशों के विदेश मन्त्रियों की परिषद् को मन्त्रिपरिषद् कहा गया है। इस परिषद् की बैठक 6 महीने में एक बार होनी अनिवार्य है। इसका कार्य परिषद् के नये क्षेत्रों को निश्चित करना और सामान्य हित के अन्य विषयों पर निर्णय करना है।

3. स्थायी समिति – यह सदस्य देशों के विदेश सचिवों की समिति है। उसका कार्य सहयोग के विभिन्न कार्यक्रमों को मॉनीटर करना तथा उनमें समन्वय पैदा करना है।

4. सचिवालय – इसका मुख्यालय नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में है। इसके महासचिव की नियुक्ति मन्त्रिपरिषद् द्वारा दो वर्ष के लिए की जाती है और सदस्य देश बारी-बारी से इसे पद पर किसी व्यक्ति को मनोनीत करते हैं।

5. समितियाँ – उपर्युक्त संस्थाओं के अतिरिक्त कुछ कार्यकारी और तकनीकी समितियों की भी रचना की गयी है।

6. वित्तीय व्यवस्थाएँ – सचिवालय के व्ययों को पूरा करने के लिए सदस्य देशों से अंशदान का निर्धारण इस प्रकार किया गया है-भारत 32%, पाकिस्तान 25%, नेपाल 11%, बांग्लादेश 11%, श्रीलंका 11%, भूटान 5% और मालदीव 5%।

सार्क सम्मेलन

प्रथम सम्मेलन – सार्क का प्रथम सम्मेलन दिसम्बर, 1985 ई० में बांग्लादेश में हुआ। वहाँ के राष्ट्रपति अताउर रहमान खान को इस संगठन का अध्यक्ष चुना गया। इसमें दक्षिण एशियाई देशों के बीच सहयोग बढ़ाने पर बल दिया गया तथा इस समूचे क्षेत्र में शान्ति बनाये रखने में सहयोग देने के लिए प्रयास करने की इच्छा व्यक्त की गयी।

दूसरा सम्मेलन – सार्क का दूसरा सम्मेलन नवम्बर, 1986 ई० में भारत में हुआ। भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी को इस संगठन का अध्यक्ष चुना गया। सदस्य देशों ने प्रौद्योगिकी, सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्र में परस्पर सहयोग का दृढ़ संकल्प लिया।

तीसरा सम्मेलन – सार्क का तीसरा सम्मेलन नवम्बर, 1987 ई० में नेपाल में हुआ। नेपाल नरेश महाराजाधिराज मारिख मान सिंह श्रेष्ठ को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस सम्मेलन में अनेक बातों पर बल दिया गया, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं –

  1. विकासशील देशों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक व्यवस्था में समान सहयोग।
  2. विकासशील देशों द्वारा बहुपक्षीय व्यापार को उदार बनाना और संरक्षणवादी अवरोधों को कम करना।
  3. परमाणु अप्रसार सन्धि पर शीघ्र निश्चय।
  4. आतंकवाद को समाप्त करने के कार्य में पारस्परिक सहयोग।

चौथा सम्मेलन – सार्क का चौथा सम्मेलन दिसम्बर, 1988 ई० को पाकिस्तान में हुआ। पाक प्रधानमन्त्री श्रीमती बेनजीर भुट्टो को इसका अध्यक्ष चुना गया। इस सम्मेलन में सार्क नेताओं ने निम्नलिखित बातों पर बल दिया –

  1. क्षेत्र के लोगों के जीवन-स्तर में आमूल सुधार लाने के उद्देश्य से 1989 ई० को मादक पदार्थ निरोधक वर्ष के रूप में मनाने का निश्चय किया गया।
  2. राष्ट्रीय विकास योजनाओं में बाल-कल्याण योजनाओं को प्रमुखता देने सम्बन्धी संकल्प दोहराया गया।
  3. महाशक्तियों से नि:शस्त्रीकरण के प्रयास तेज करने तथा बचे धन से विकासशील देशों की सहायता करने की अपील की गयी।
  4. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को अधिक सुदृढ़ और प्रभावकारी बनाने के लिए इसके काम-काजे में सुधार की माँग की गयी।

पाँचवाँ सम्मेलन सार्क का पाँचवाँ सम्मेलन 21-23 नवम्बर, 1990 को मालदीव की राजधानी माले में सम्पन्न हुआ। इसमें परस्पर सम्बन्धों को अधिक सुदृढ़ और मैत्रीपूर्ण बनाये जाने पर बल दिया गया।

छठा सम्मेलन – यह कोलम्बो में 21 दिसम्बर, 1991 को आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में सर्वप्रमुख रूप से दो प्रस्ताव रखे गये। प्रथम, श्रीलंका के राष्ट्रपति प्रेमदास ने प्रस्ताव रखा कि दक्षिण एशिया को अपनी एक पहचान बनाकर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर जाना चाहिए। द्वितीय, भारतीय

प्रधानमन्त्री ने सामूहिक आर्थिक सुरक्षा का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव में कहा गया कि विश्व अब राजनीतिक और सैनिक गठबन्धनों से ऊबकर आर्थिक सहयोग के नये-नये आयाम तलाश कर रहा है। अत: दक्षेस देशों को भी प्रकृति से प्राप्त संसाधनों का स्वाभाविक उपयोग करते हुए आपसी सहयोग के आधार पर आर्थिक और वाणिज्यिक विकास के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए।

सातवाँ सम्मेलन – यह सम्मेलन 10-11 अप्रैल, 1993 को ढाका में सम्पन्न हुआ। ‘दक्षिण एशिया वरीयता व्यापार समझौता’ इस सम्मेलन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी, जिसके अनुसार सदस्य देशों को व्यापार में वरीयता दी जाएगी। सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच व्यापार बाधाएँ दूर करने से सम्बन्धित ’63 सूत्री ढाका घोषणा-पत्र’ सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। इस समझौते से दक्षिण एशिया में आर्थिक सहयोग के एक नवीन युग का सूत्रपात हुआ।

सात देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने दक्षेस देशों के बीच आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सहयोग को गतिशीलता प्रदान करने का संकल्प लिया गया।

आठवों सम्मेलन – यह सम्मेलन 2 मई से 4 मई, 1995 को भारत की राजधानी दिल्ली में सम्पन्न हुआ। इसके अध्यक्ष भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री पी० वी० नरसिम्हाराव थे। इस सम्मेलन में आतंकवाद का सम्मिलित रूप से सामना करने और गरीबी को पूर्णतः समाप्त करने का संकल्प लिया गया।

नवम शिखर सम्मेलन (माले, 12-14 मई, 1997) – सदस्य देशों के बीच आर्थिक सम्पर्क बढ़ाने और संगठन को अधिक असरदार बनाने के संकल्प के साथ दक्षेस का नवम् शिखर सम्मेलन प्रारम्भ हुआ। सर्वसम्मति से नव-निर्वाचित अध्यक्ष मालदीव के राष्ट्रपति मैमून अब्दुल गयूम ने सम्मेलन का उद्घाटन किया।

सम्मेलन के अन्त में जारी किये गये घोषणा-पत्र में क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग की दिशा में तीव्र गति से आगे बढ़ने, गरीबी उन्मूलन, बालिका कल्याण और पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी। संगठन के सभी 7 सदस्य देशों ने क्षेत्रीय एकता, एकजुटता और समरसता के संकल्प के साथ तनाव और संघर्ष का मार्ग छोड़कर विश्व में दक्षेस की विशिष्ट पहचान बनाने के लिए सन् 2001 तक आपसी व्यापार को पूर्णतया मुक्त करने का निर्णय लिया गया। इसके साथ ही आतंकवाद व नशीली दवाओं की तस्करी की समाप्ति हेतु संगठित होने की बात कही गयी।

दसवाँ शिखर सम्मेलन (कोलम्बो, 29-31 जुलाई, 1998) – इस सम्मेलन में प्रमुख रूप से तीन बातों पर विचार हुआ। सदस्य देशों के बीच अधिकाधिक सहयोग, 2002 ई० तक सदस्य देशों के बीच स्वतन्त्र व्यापार व्यवस्था और आणविक नि:शस्त्रीकरण। सम्मेलन में दो प्रस्ताव पारित किये गये। पहले प्रस्ताव में विश्वव्यापी आणविक नि:शस्त्रीकरण की आवश्यकता पर बल दिया गया और दूसरे प्रस्ताव में विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों पर लगाये गये आर्थिक प्रतिबन्धों की आलोचना की गयी।

‘दक्षेस’ में भारत को महत्त्वपूर्ण स्थिति प्राप्त है। अपनी सुरक्षात्मक आवश्यकताओं के कारण भारत ने मई, 1998 में जो आणविक परीक्षण किये, पाकिस्तान के अतिरिक्त अन्य सभी दक्षेस देशों ने इन आणविक परीक्षणों का समर्थन किया।

ग्यारहवाँ शिखर सम्मेलन (काठमाण्डू, 4-6 जनवरी, 2002) – सात देशों के शासनाध्यक्षों का यह सम्मेलन मूलतः नवम्बर, 1999 ई० में प्रस्तावित था, किन्तु पाकिस्तान ने सेना द्वारा लोकतान्त्रिक सरकार का तख्ता पलट दिये जाने तथा उसके बाद भारत तथा पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति बने रहने के कारण यह शिखर सम्मेलन टलता ही रहा। इस सम्मेलन का आयोजन अन्ततः ऐसे समय में हुआ, जब भारत और पाकिस्तान के आपसी सम्बन्धों में गम्भीर तनाव की स्थिति चरम अवस्था में थी।

सम्मेलन की समाप्ति पर जारी 11 पृष्ठों के 56 सूत्रीय ‘काठमाण्डू घोषणा-पत्र’ में सभी सात शासनाध्यक्षों ने आतंकवाद के खात्मे के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की। इस सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र परिषद् द्वारा पारित प्रस्ताव संख्या 1373 (इसे 11 सितम्बर, 2001 की आतंकी घटना के परिप्रेक्ष्य में पारित किया गया था) के प्रति अपना पूर्ण समर्थन इन शासनाध्यक्षों ने व्यक्त किया। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर एवं अन्य अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों व सन्धियों के अनुरूप विस्तृत कार्य योजना तैयार करने पर इसमें बल दिया गया।

भारतीय प्रधानमन्त्री ने दक्षेस आन्दोलन को गतिशील बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि आर्थिक एजेण्डे को दक्षेस में सर्वोपरि समझा जाना चाहिए तथा क्षेत्र के देशों के बीच व्यापार संवर्द्धन के लिए प्रयत्न किये जाने चाहिए। इसके लिए ‘दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र का मसौदा 2002 ई० के अन्त तक तैयार करने के लिए कहा गया।

बारहवाँ शिखर सम्मेलन (इस्लामाबाद, 2-6 फरवरी, 2004) – इस्लामाबाद में सम्पन्न इस शिखर सम्मेलन में क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकास में तेजी लाने तथा सभी व्यक्तियों को सम्मान के साथ जीने और अपनी पूर्ण निहित क्षमता को प्राप्त करने के अवसर प्रदान करने सम्बन्धी मुद्दों पर चर्चा हुई।

तेरहवाँ शिखर सम्मेलन (ढाका 12-13 नवम्बर, 2005) – ढाका में सम्पन्न इस 13वें शिखर सम्मेलन में दक्षेस नेताओं ने सूचना व संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों के दोहन के लिए सहयोग पर सहमति जतायी। इसके अतिरिक्त दक्षेस के देशों ने दोहरे करों की व्यवस्था को समाप्त करने, वीजा प्रावधानों को उदार बनाने और दक्षेस पंचाट के गठन के सम्बन्ध में तीन महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये।।

इसी सम्मेलन में अफगानिस्तान को दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ का आठवाँ सदस्य बनाया गया।

चौदहवाँ शिखर सम्मेलन (नई दिल्ली 3-4 अप्रैल, 2007) – नई दिल्ली में सम्पन्न इस 14वें शिखर सम्मेलन में दक्षेस नेताओं ने वर्ष 2008 को अच्छे शासन (Good Governance) के वर्ष के रूप में मनाने का फैसला किया। सम्मेलन में स्वीकार किये गये 8 पृष्ठों के घोषणा-पत्र में गरीबी, आतंकवाद व संगठित अपराधों को क्षेत्रीय सुरक्षा और शान्ति के लिए खतरा मानते हुए संकल्प लिया गया है कि दक्षेस को घोषणा-पत्र के दौरे से निकालकर क्रियान्वयन के चरण में लाया जाएगा।

‘साप्टा’ पर सकारात्मक रुख अपनाते हुए इसके अमल पर घोषणा-पत्र में बल दिया गया है। वस्तुओं के आयात-निर्यात के साथ-साथ सेवाओं के व्यापार को भी इसमें शामिल किये जाने की आवश्यकता इसमें बतायी गयी है। आर्थिक मामलों एवं व्यापारिक क्षेत्र में और अधिक सहयोग के लिए रोडमैप तैयार कर उसे ‘कस्टम यूनियन’ और ‘साउथ एशियन इकोनॉमिक यूनियन’ तक चरणबद्ध ढंग से ले जाने की बात घोषणा-पत्र में स्वीकार की गई है।

पन्द्रहवाँ शिखर सम्मेलन (1-3 अगस्त, 2008) – दक्षेस का पन्द्रहवाँ शिखर सम्मेलन 1-3 अगस्त 2008 तक श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में हुआ। इसकी अध्यक्षता महिन्द्रा राजापक्षे ने की थीं। इस सम्मेलन में सार्क देशों के विकास तथा आतंकवाद के सुरक्षा के मामले में विचारविमर्श किया गया।

सोलहवाँ शिखर सम्मेलन (28-29 अगस्त, 2010) – दक्षेस का सोहलवाँ शिखर सम्मेलन 28-29 अप्रैल, 2010 को भूटान की राजधानी थिम्पू में हुआ था। इसकी अध्यक्षता जिगमे थिनले ने की थी। इस सम्मेलन में आपसी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध व औद्योगिक विकास से सम्बन्धित मामलों पर विचार-विमर्श किया गया।

सत्रहवाँ शिखर सम्मेलन (10-11 नवम्बर, 2011) – दक्षेस का सत्रहवाँ शिखर सम्मेलन 10-11 नवम्बर, 2011 को मालदीव के अदू नामक शहर में आयोजित किया गया था। इसकी अध्यक्षता मोहम्मद वाहिद हसन मानिक ने की थी। इस सम्मेलन में कृषि, उद्योग आदि मामलों पर विचार-विमर्श किया गया।

18 वाँ शिखर सम्मेलन 2014 में नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में तथा 19वाँ शिखर सम्मेलन का आयोजन सितम्बर, 2016 में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में किया जाना था, जो नहीं हुआ।

सार्क का महत्त्व – दक्षिण एशियाई क्षेत्र में इस संगठन का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा। इसे इस क्षेत्र के इतिहास में नयी सुबह की शुरुआत’ कहा जा सकता है। भूटान नरेश ने तो इसे सामूहिक बुद्धिमत्ता और राजनीतिक इच्छा-शक्ति का परिणाम बताया है, किन्तु व्यवहार में इस संगठन की सार्थकता कम होती जा रही है। सार्क ने पिछले दस वर्षों में एक ही ठोस काम किया है और वह है, खाद्य कोष बनाना। कृषि, शिक्षा, संस्कृति, पर्यावरण आदि 12 क्षेत्रों में सहयोग के लिए सार्क के देश (सिद्धान्ततः सहमत हैं। सार्क देशों में भारत प्रमुख और सर्वाधिक शक्तिशाली देश है, इसलिए कुछ सार्क देश) यह समझने लगे कि इस संगठन में भारत का प्रभुत्व छाया हुआ है। इस स्थिति में तो भारत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि हम इस क्षेत्र में अपनी चौधराहट स्थापित करना नहीं चाहते। हमारा उद्देश्य तो मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना है। इसके बावजूद भारत के बांग्लादेश, नेपाल वे श्रीलंका के साथ सम्बन्धों में दरार आ गयी। पाकिस्तान तो भारत के विरुद्ध विष उगलने लगा है। इसके अतिरिक्त सदस्य देशों की शासन-प्रणालियों और नीतियों में भिन्नता तथा द्वि-पक्षीय व विवादास्पद मामलों की छाया ने भी इस संगठन को निर्बल बनाये रखा है। इन कारणों और परस्पर अविश्वास के आधार पर यह संगठन केवल सैद्धान्तिक ढाँचा मात्र रह गया है, उसका कोई व्यावहारिक महत्त्व बने रहना सम्भव नहीं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
‘दक्षेस की सार्थकता पर टिप्पणी लिखिए। [2007]
उत्तर :
यद्यपि दक्षेस के गठन को दिसम्बर, 2013 ई० में 28 वर्ष पूर्ण हो जाएँगे, तथापि वर्तमान समय में 8 देशों का यह क्षेत्रीय संगठन अपनी ‘सार्थकता’ सिद्ध करने में प्रायः असफल ही रहा है। . दिसम्बर, 1985 ई० में गठित इस क्षेत्रीय संगठन के प्रत्येक वर्ष शिखर सम्मेलन तथा अन्य स्तर पर बैठकें तो प्रायः होती रही हैं, किन्तु उनकी कार्यवाहियाँ मात्र औपचारिकताएँ बनकर रह जाती हैं। यही एक प्रमुख कारण है कि आठवें दक्षेस शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में ही बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान तथा मालदीव के नेताओं ने अपनी-अपनी दुश्चिन्ताएँ व्यक्त करते हुए कहा कि दक्षेस इस लम्बी अवधि में भी यह कोई विशेष उन्नति नहीं कर पाया है और इसके लिए हमारे आपसी मतभेद ही जिम्मेदार रहे हैं।

दक्षेस के सदस्य देश इस वास्तविकता से भली प्रकार से परिचित हैं कि संगठन के दो बड़े सदस्य देश–भारत एवं पाकिस्तान में जो भारी मतभेद तथा वैमनस्यता है, वही सदस्य देशों की चिन्ता का मुख्य कारण है। इस सन्दर्भ में भारत की भूमिका को सार्क देश अच्छी तरह से जानते हैं, किन्तु वे मात्र संगठन की अखण्डता की सुरक्षार्थ पाकिस्तान के विरुद्ध खुलकर बोलना नहीं चाहते।

सदस्य देश इस कटु सत्य से भली प्रकार परिचित हैं कि पाकिस्तान के सर्वाधिक गहरे मतभेद भारत के साथ ही हैं और उसका सबसे बड़ा कारण ‘कश्मीर’ ही है। इस वास्तविकता को अप्रत्यक्षत: मालदीव के राष्ट्रपति मैमुन अब्दुल गयूम, भूटान नरेश जिग्मे सिंगे वांगचुक और बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री बेगम खालिदा जिया ने भी अपने भाषणों में स्पष्ट किया था। इतना ही नहीं, बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री बेगम खालिदा जिया ने श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा के सहयोग से न केवल दक्षेस की भूमिका में बल्कि ‘साप्टा’ के गठन में पाकिस्तानी अडूंगेबाजी को चुनौतीपूर्ण ढंग से नकारने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी और इससे दक्षेस तथा साप्टा’ की सार्थकता पर जो प्रश्न-चिह्न लगे हुए थे, वे सब स्वत: ही समाप्त हो गये।

UP Board Solutions for Class 12 Civics दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस)

प्रश्न 2.
दक्षिणी एशिया के देशों में आपसी सहयोग के मार्ग में जो कठिनाइयाँ हैं, उनका वर्णन कीजिए।
या
दक्षेस के मार्ग में आने वाली जटिलताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
आशावादी दृष्टिकोण के साथ-साथ दक्षेस के मार्ग में बहुत-सी ऐसी जटिलताएँ भी हैं जो इस संगठन के महत्त्व पर प्रश्न-चिह्न लगाती हैं, इन्हें अग्रलिखित बिन्दुओं द्वारा दर्शाया जा सकता है।

1. शासन-पद्धति तथा नीतियों में अन्तर – दक्षेस के सदस्य राष्ट्रों में से चार देश इस्लामिक, दो बौद्ध, एक हिन्दू तथा एक धर्मनिरपेक्ष है तथा इनकी शासन पद्धतियों तथा धार्मिक नीतियों में भिन्नता है और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भी समस्त देशों के दृष्टिकोण भिन्न हैं। दूसरे, इन सम्पन्न सदस्य देशों में आपसी सामंजस्य का अभाव है।

2. पारस्परिक अविश्वास की भावना – दक्षेस के समस्त देश पारस्परिक अविश्वास की भावना से ग्रस्त हैं तथा अपनी समस्याओं के लिए वह निकटतम पड़ोसी देश को दोषी मानते हैं। श्रीलंका, तमिल समस्या को भारत की देन मानता है तो भारत, पंजाब तथा कश्मीर में। उपजे उग्रवाद को पाकिस्तान की देन कहता है।

3. विवादास्पद द्विपक्षीय मुद्दों की छाया – दक्षेस की स्थापना के समय द्विपक्षीय मुद्दों को विचार-विमर्श से बाहर रखा गया था, परन्तु वर्तमान में द्विपक्षीय मुद्दे ही दक्षेस की सार्थकता पर प्रश्न-चिह्न लगा रहे हैं। जब तक भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय मुद्दों का समाधान नहीं होगा तब तक दक्षेस सदस्यों में सहयोग, सद्भावना और विश्वास का वातावरण नहीं पनप सकता।

4. सन्दिग्ध भारतीय सद्भावना – इसमें कोई सन्देह नहीं कि दक्षेस के सदस्य देशों; जैसे भारत, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, मालदीव, भूटान तथा अफगानिस्तान में भारत की स्थिति सर्वोच्च है। भारत अन्य सदस्य देशों के साथ पूर्ण सद्भावना रखता है, लेकिन दक्षेस के सदस्य देश भारतीय सद्भावना के प्रति सन्देह प्रकट करते हैं। भारत ने सद्भावना के वशीभूत होकर ही श्रीलंका में 1987 ई० में शान्ति सेना भेजी थी तथा 1988 ई० में मालदीव सरकार के वैधानिक आग्रह पर सेना भेजनी पड़ी थी, लेकिन अमेरिका जैसे शक्ति सम्पन्न देश ने उन्हें ऐसा सोचने को विवश कर दिया कि भारत ‘क्षेत्रीय महाशक्ति’ बनकर उन पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है।

प्रश्न 3.
‘सार्क की स्थापना ने दक्षिण एशिया के राज्यों में पारस्परिक सहयोग के नये युग का सूत्रपात किया है।” स्पष्ट कीजिए।
या
दक्षिण एशिया के देशों में आपसी सहयोग के प्रेरक तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
दक्षिण एशिया के देशों के बीच कुछ ऐसे भौगोलिक, आर्थिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तत्त्व हैं, जो इन्हें न केवल एक-दूसरे से जोड़ते हैं, वरन् इनमें सहयोग की भावना को भी प्रशस्त करते हैं। दक्षेस के देशों को जोड़ने वाली बातें निम्नलिखित हैं –

1. भौगोलिक तत्त्व दक्षेस के देश समान भूगोल से ऐसे जुड़े हुए हैं कि इनके लिए एक-दूसरे से कटकर रहना सम्भव नहीं है। हिमालये, हिमालय से निकलने वाली नदियाँ और हिन्द महासागर ऐसी ही साझा कड़ियाँ हैं।

2. आर्थिक तत्त्व दक्षिण एशिया स्वयं में एक विशाल मण्डी है और सम्भावना इस बात की है। कि परस्पर आर्थिक सहयोग से इस क्षेत्र के सभी देशों को बहुत अधिक लाभ होंगे। उदाहरण के लिए, यह क्षेत्र समय पाकर बांग्लादेश के जूट; श्रीलंका, मालदीव और भारत के नारियल; बांग्लादेश और भारत के चावल; पाकिस्तान और भारत के गेहूं; नेपाल, भूटान और भारत के फलों एवं सूखे मेवों, खनिजों एवं मसालों की विशाल मण्डी का रूप ले लेगा।

3. ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक तत्त्व दक्षेस के देश एक ही इतिहास और संस्कृति से जुड़े हुए हैं। इन देशों में कई सामान्य रीति-रिवाज भी हैं। उदाहरण के लिए, भारत के पड़ोसी देशों में जो भाषाएँ बोली जाती हैं उनकी जड़े भारत में हैं। हिन्दी, उर्दू, तमिल तथा बांग्ला ऐसी ही भाषाएँ हैं; हिन्दू, बौद्ध तथा इस्लाम इन देशों के साझा धर्म हैं।

4. अन्य तत्त्व ये मुख्यतया निम्न प्रकार हैं –

  1. दक्षेस ने अपने जीवन के अल्पकाल में ही सहयोग के अनेक क्षेत्रों की पहचान कर ली है। ये क्षेत्र हैं – विज्ञान, तकनीकी ज्ञान, दूर संचार, यातायात, कृषि, ग्रामीण विकास, वन विकास, मौसम विज्ञान और संस्कृति आदि। इससे आशा की जाती है कि संगठन व्यापार, उद्योग, वित्त, मुद्रा और ऊर्जा आदि क्षेत्रों में भी सहयोग का विकास कर लेगा।
  2. विविध केन्द्रों की स्थापना से, जैसा कि मौसम केन्द्र, कृषि केन्द्र आदि से सूचनाओं का आदान-प्रदान होगा जो सहयोग को बढ़ावा देगा।
  3. दक्षेस के सभी देश निर्गुट आन्दोलन के सदस्य हैं। ये सभी देश शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं। यह तत्त्व क्षेत्र में शान्ति भावना को सुदृढ़ कर सकता

उपर्युक्त तत्त्वों से स्पष्ट है कि सार्क की स्थापना ने दक्षिण एशिया के राज्यों में पारस्परिक सहयोग के नये युग का सूत्रपात किया है।

प्रश्न 4.
दक्षेस (सार्क) पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
दक्षेस (सार्क) को ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation) के नाम से सम्बोधित किया जाता है। सार्क का पहला सम्मेलन 7 व 8 दिसम्बर, 1985 ई० को ढाका में सात देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सम्मिलित होने पर प्रारम्भ हुआ था। ये सात देश थे-भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और मालदीव। दक्षिण एशिया के सात देशों का एक साथ एकत्रित होना, क्षेत्रीय सहयोग का प्रथम अवसर था। दक्षेस की स्थापना के समय सातों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने काफी सहयोग बढ़ाने तथा तनाव घटाने के सम्बन्ध में ओजस्वी भाषण दिए। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि सातों देशों के बीच सद्भावना तथा भ्रातृत्व भाव से एक नवीन अध्याय प्रारम्भ होगा। सबने यह इच्छा व्यक्त की कि सातों राष्ट्रों के अध्यक्षों का मिलन एक युगान्तकारी घटना है और यह नए युग का प्रारम्भ है। दक्षिण एशिया के संघ के राष्ट्रों में लगभग 140 करोड़ स्त्री-पुरुष निवास करते हैं। अत: यह विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला क्षेत्र स्वीकार किया जाता है। इस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों, मानव शक्ति, प्रतिभा, बुद्धिमत्ता, वीरता आदि की न्यूनता नहीं है, किन्तु निर्धनता, अशिक्षा, कुपोषण अदि की समस्याएँ हैं। भारत तो खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है जबकि अन्य छह देशों को खाद्यान्न बाहर से मॅगाना पड़ता है।

दक्षेस या सार्क का विकास धीरे-धीरे हुआ है। दक्षिण एशियाई देशों का क्षेत्रीय संगठन बनाने का विचार बंगलादेश के पूर्व राष्ट्रपति जिया उर रहमान के मस्तिष्क में आया। उन्होंने 1977 से 1980 ई० की अवधि में भारत, पाकिस्तान, नेपाल तथा श्रीलंका की यात्रा की। उसके पश्चात् उन्होंने सार्क देशों के लिए घोषणा-पत्र (कार्य-योजना दस्तावेज) का निर्माण कराया। दक्षेस के विदेश सचिवों की एक बैठक अप्रैल 1981 ई० में बंगलादेश में हुई। सन् 1983 ई० में एक बैठक नई दिल्ली में हुई। तत्पश्चात् 1984 ई० में मालदीव और 1985 ई० में भूटान में बैठकें हुईं। इस प्रकार सार्क का संवैधानिक रूप तैयार किया गया। अब अफगानिस्तान के सदस्य बन जाने के पश्चात् सार्क देशों की संख्या 8 हो गई है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
दक्षेस (सार्क) के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
दक्षेस (सार्क) के उद्देश्य निम्नवत् हैं –

  1. दक्षिण एशियाई क्षेत्र की जनता के कल्याण एवं उसके जीवन-स्तर में सुधार करना।
  2. क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास में तेजी लाना और सभी व्यक्तियों को सम्मान के साथ जीने और अपनी पूर्ण निहित क्षमता को प्राप्त करने के अवसर देना।
  3. दक्षिण एशिया के देशों की सामूहिक आत्म-निर्भरता में वृद्धि करना।
  4. आपसी विश्वास व सूझ-बूझ द्वारा एक-दूसरे की समस्याओं का मूल्यांकन करना।
  5. आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग एवं पारस्परिक सहायता में वृद्धि करना।
  6. दूसरे विकासशील देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना।
  7. सामान्य हित के मामलों पर अन्तर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।

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प्रश्न 2.
दक्षेस चार्टर एवं ढाका घोषणा-पत्र में वर्णित चार उद्देश्य बताइए।
उत्तर :
दक्षेस के चार्टर में 10 धाराएँ हैं जिनमें संघ के उद्देश्यों, सिद्धान्तों और संस्थाओं की परिभाषा की गयी है। अनुच्छेद 1 के अनुसार संगठन (दक्षेस) के प्रमुख चार उद्देश्य इस प्रकार है –

  1. दक्षिण एशिया की जनता के कल्याण को बढ़ावा देना तथा उनके जीवन-स्तर में सुधार करना।
  2. क्षेत्र में आर्थिक उपज, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देना और प्रत्येक व्यक्ति को आदर, सम्मान के साथ जीवित रहने का अवसर प्रदान करना तथा उन्हें पूर्ण निहित शक्ति को प्राप्त करने का अवसर प्रदान करना।
  3. पारस्परिक विश्वास तथा समझदारी द्वारा एक-दूसरे की समस्याओं को समझना।
  4. दक्षिण एशियाई देशों के सामूहिक आत्म-विश्वास को बढ़ावा और बल देना।

प्रश्न 3.
हिमतक्षेस सम्मेलन (हिन्द महासागर तटीय क्षेत्र सहयोग सम्मेलन) 2002 ई० के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
हिन्द महासागर तटवर्ती राष्ट्र क्षेत्रीय सहयोग संगठन (हिमतक्षेस) की दो दिनों तक चली बैठक 23 जनवरी, 2002 को मस्कट में सम्पन्न हुई। इस बैठक में भारत के इस सुझाव को मान लिया गया कि संगठन के एजेण्डे में विवादित राजनीतिक मुद्दे सम्मिलित नहीं होंगे। । सम्मेलन में भारत, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, इण्डोनेशिया, श्रीलंका, सिंगापुर, ओमान, यमन, तंजानिया, केन्या, मोजाम्बिक, मेडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका और मॉरीशस तथा 5 नये सदस्य देशों में बांग्लादेश, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, सेशेल्स व थाईलैण्ड ने भाग लिया। संघ के सदस्य देशों की संख्या 19 हो गयी है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
‘दक्षेस का पूरा नाम क्या है?
उत्तर :
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ।

प्रश्न 2.
‘दक्षेस के कौन-कौन से सदस्य देश हैं? [2007, 12]
उत्तर :
भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, भूटान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान।

प्रश्न 3.
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (दक्षेस) का मुख्यालय किस नगर में है? [2008, 09]
उत्तर :
काठमाण्डू (नेपाल) में।

प्रश्न 4.
दक्षेस (सार्क) की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर :
7 दिसम्बर, 1985 को।

प्रश्न 5.
दक्षेस की स्थापना के मूल में किस राजनेता का नाम आता है?
उत्तर :
जिया उर रहमान (तत्कालीन राष्ट्रपति, बांग्लादेश)।

प्रश्न 6.
दक्षेस का चौदहवाँ शिखर सम्मेलन कहाँ आयोजित हुआ था?
उत्तर :
3 से 4 अप्रैल, 2007 को यह शिखर सम्मेलन नई दिल्ली में आयोजित हुआ था।

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प्रश्न 7.
सार्क संगठन (दक्षेस) के किन्हीं चार सदस्य देशों के नाम लिखिए। [2010, 11, 13]
उत्तर :

  1. श्रीलंका
  2. भारत
  3. बांग्लादेश तथा
  4. नेपाल।

प्रश्न 8.
भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित दो पड़ोसी देशों के नाम लिखिए। [2016]
उत्तर :
भूटान तथा बांग्लादेश।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

1.
सार्क के सदस्य राष्ट्रों की कुल संख्या कितनी है ? [2013]
(क) 10
(ख) 8
(ग) 7
(घ) 12

2. साप्टा समझौता किन राष्ट्रों के संगठन के तत्त्वावधान में हुआ था ?
(क) राष्ट्रमण्डल
(ख) सार्क
(ग) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन
(घ) आसियान

3. निम्नलिखित में से सार्क (दक्षेस) का सदस्य कौन-सा है?
(क) चीन
(ख) तिब्बत
(ग) म्यांमार
(घ) भूटान

4. सार्क की स्थापना कब की गई [2015, 16]
(क) 1950
(ख) 1970
(ग) 1985
(घ) 1980

5. सार्क का मुख्यालय किस देश में [2008, 12]
(क) भारत
(ख) पाकिस्तान
(ग) नेपाल
(घ) बांग्लादेश

6. दक्षेस का मुख्यालय कहाँ है [2007]
(क) नई दिल्ली
(ख) ढाका
(ग) कोलम्बो
(घ) काठमाण्डू

7. निम्नलिखित में से कौन-सा देश दक्षेस का सदस्य देश नहीं है ?
(क) भारत
(ख) पाकिस्तान
(ग) नेपाल
(घ) अमेरिका

8. दक्षेस का छठा शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ था
(क) कोलम्बो में
(ख) ऑस्ट्रेलिया में
(ग) भारत में
(घ) इराक में

उत्तर :

  1. (ख) 8
  2. (ख) सार्क
  3. (घ) भूटान
  4. (ग) 1985
  5. (ग) नेपाल
  6. (घ) काठमाण्डू
  7. (घ) अमेरिका
  8. (क) कोलम्बो में।

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UP Board Solutions for Class 12 Civics गुट-निरपेक्ष आन्दोलन

UP Board Solutions for Class 12 Civics गुट-निरपेक्ष आन्दोलन are part of UP Board Solutions for Class 12 Civics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Civics गुट-निरपेक्ष आन्दोलन.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter 22 d
Chapter Name गुट-निरपेक्ष आन्दोलन
Number of Questions Solved 21
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics गुट-निरपेक्ष आन्दोलन

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
गुट-निरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? गुट-निरपेक्षता के प्रमुख लक्षणों का वर्णन कीजिए।
या
गुट-निरपेक्षता के प्रमुख लक्षण बताइए। [2008, 10]
उत्तर :
गुट-निरपेक्षता

गुट-निरपेक्षता को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में ‘तटस्थता’ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है, लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय कानून और व्यवहार में तटस्थता का जो अर्थ लिया जाता है, गुट-निरपेक्षता उससे नितान्त भिन्न स्थिति है। तटस्थता और गुट-निरपेक्षता में भेद स्पष्ट करते हुए जॉर्ज लिस्का लिखते हैं –

“किसी विवाद के सन्दर्भ में यह जानते हुए कि कौन सही है और कौन गलत है किसी का पक्ष नहीं लेना तटस्थता है किन्तु गुट-निरपेक्षता का आशय सही और गलत में विभेद करते हुए सदैव सही का समर्थन करना है।”

गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रणेता पं० नेहरू ने 1949 ई० में अमेरिकी जनता के सम्मुख कहा था –

जब स्वतन्त्रता के लिए संकट उत्पन्न हो, न्याय पर आघात पहुँचे या आक्रमण की घटना घटित हो, तब हम तटस्थ नहीं रह सकते और न ही हम तटस्थ रहेंगे।” गुट-निरपेक्षता को स्पष्ट करते हुए उन्होंने आगे कहा, “हमारी तटस्थता का अर्थ है निष्पक्षता, जिसके अनुसार हम उन शक्तियों और कार्यों का समर्थन करते हैं जिन्हें हम उचित समझते हैं और उनकी निन्दा करते हैं जिन्हें हम अनुचित समझते हैं, चाहे वे किसी भी विचारधारा की पोषक हों।”

गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख लक्षण

गुट-निरपेक्षता के अर्थ और प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए इस नीति के लक्षणों का अध्ययन किया जा सकता है, जो निम्न प्रकार हैं –

1. शक्ति गुटों से पृथक रहने और महाशक्तियों के साथ सैनिक समझौता न करने की नीति – गुट-निरपेक्षता का सबसे प्रमुख लक्षण है-शक्ति गुटों से पृथक् रहने की नीति। इसमें यह बात भी निहित है कि गुट-निरपेक्ष देश किसी भी महाशक्ति के साथ सैनिक समझौता नहीं करेगा। गुट-निरपेक्षता का मूल विचार है कि विश्व के देशों को परस्पर विरोधी शिविरों में विभक्त करने के प्रयासों या महाशक्तियों के प्रभाव क्षेत्रों के विस्तार के प्रयासों ने विश्व में तनाव की स्थिति को जन्म दिया है और गुट-निरपेक्षता का उद्देश्य इन शक्ति गुटों से अलग रहते हुए तनाव की शक्तियों को निर्बल करना है।

2. स्वतन्त्र विदेश नीति – गुट-निरपेक्षता का आशय यह है कि सम्बद्ध देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में किसी शक्ति गुट के साथ बँधा हुआ नहीं है, वरन् उसका अपना स्वतन्त्र मार्ग है। जो सत्य, न्याय, औचित्य और शान्ति पर आधारित है। गुट-निरपेक्ष देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में किसी का पिछलग्गू नहीं होता वरन् राष्ट्रीय हित को दृष्टि में रखते हुए सत्य, न्याय, औचित्य और विश्वशान्ति की प्रवृत्तियों का समर्थन करता है। स्वतन्त्र विदेश नीति का पालन गुट-निरपेक्षता की नीति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है। इस नीति के कारण ही प्रत्येक गुट-निरपेक्ष देश प्रत्येक वैश्विक मामले पर गुण-दोष के आधार पर फैसला करता है।

3. शान्ति की नीति – गुट-निरपेक्षता का उदय विश्वशान्ति की आकांक्षा और उद्देश्य से हुआ है। यह शान्ति के उद्देश्यों और संकल्पों की अभिव्यक्ति है। इसका लक्ष्य है, तनाव की प्रवृत्तियों को कमजोर करते हुए शान्ति का विस्तार। गुट-निरपेक्षता की नीति को अपनाते हुए भारत ने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों (कोरिया, कांगो, साइप्रस) में शान्ति स्थापना के प्रयत्न किये और गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के सातवें शिखर सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए श्रीमती गांधी ने कहा था, ‘गुट-निरपेक्ष आन्दोलन इतिहास का सबसे बड़ा शान्ति आन्दोलन है।’

4. साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, शोषण एवं आधिपत्य विरोधी नीति – गुट-निरपेक्षता साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नव-उपनिवेशवाद, रंगभेद और शोषण तथा आधिपत्य के सभी रूपों का विरोध करने वाली नीति है। गुट-निरपेक्षता विभिन्न राष्ट्रों के आपसी व्यवहार में राष्ट्रीय प्रभुसत्ता, स्वतन्त्रता, समानता और विकास में विश्वास करती है; संघर्ष, अन्याय, दमन और असहिष्णुता का विरोध करती है एवं भूख तथा अभाव की स्थितियों को दूर करने पर बल देती है। विश्व के अनेक क्षेत्रों यथा एशिया व अफ्रीका में उपनिवेशवाद की समाप्ति में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

5. निरन्तर विकासशील नीति – गुट-निरपेक्षता एक स्थिर नीति नहीं वरन् निरन्तर विकासशील नीति है जिसे अपनाते हुए सम्बद्ध देशों द्वारा राष्ट्रीय हित और विश्व की बदलती हुई परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए अपने दृष्टिकोण और कार्य-शैली में परिवर्तन किया जा सकता है। 1971 की ‘भारत-सोवियत रूस मैत्री सन्धि’ गुट-निरपेक्षता की विकासशीलता की। परिचायक है। गुट-निरपेक्षता के समस्त सन्दर्भ में भी विकासशीलता का परिचय मिलता है। 1975 के पूर्व गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में राजनीतिक विषयों पर अधिक बल दिया जाता था। पिछले एक दशक में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के अन्तर्गत आर्थिक विषयों और आर्थिक विकास पर अधिक बल दिया जा रहा है।

6. गुट-निरपेक्षता एक आन्दोलन है, गुट नहीं – गुट-निरपेक्षता एक गुट नहीं वरन् एक आन्दोलन है। एक ऐसा आन्दोलन, जो राष्ट्रों के बीच स्वैच्छिक सहयोग चाहता है, प्रतिद्वन्द्विता या टकराव नहीं।

7. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन संयुक्त राष्ट्र का सहायक है, विकल्प नहीं – गुट-निरपेक्षता का विश्वास है कि “संयुक्त राष्ट्र के बिना आज के विश्व की कल्पना नहीं की जा सकती। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन संयुक्त राष्ट्र का विकल्प या उसका प्रतिद्वन्द्वी नहीं वरन् इस संगठन की सहायक प्रवृत्ति है, जिसका उद्देश्य है संयुक्त राष्ट्र को सही दिशा में आगे बढ़ाते हुए उसे शक्तिशाली बनाना।”

UP Board Solutions for Class 12 Civics गुट-निरपेक्ष आन्दोलन

प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को प्रारम्भ करने का क्या उद्देश्य था ? वर्तमान परिस्थितियों में इसका क्या महत्त्व है ? [2007, 12]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए तथा वर्तमान परिस्थितियों में इसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए।
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उसमें भारत की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए। [2014]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन कब और किसके द्वारा प्रारम्भ किया गया? वर्तमान विश्व की परिवर्तनशील परिस्थितियों में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की सार्थकता पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए [2013]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को पं० जवाहरलाल नेहरू के योगदान का उल्लेख कीजिए। [2014]
उत्तर :
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन

गुट-निरपेक्षता का आशय है, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सैनिक गुट की सदस्यता या किसी भी महाशक्ति के साथ द्वि-पक्षीय सैनिक समझौते से दूर रहते हुए शान्ति, न्याय और राष्ट्रों की समानता के सिद्धान्त पर आधारित स्वतन्त्र रीति-नीति का अवलम्बन।”

गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) – गुट-निरपेक्षता का सबसे प्रमुख लक्षण है-शक्ति गुटों से पृथक् रहने की नीति। गुट-निरपेक्ष देश का स्वतन्त्र मार्ग होता है तथा वह अन्तरष्ट्रिीय राजनीति में किसी का पिछलग्गू नहीं होता। गुट-निरपेक्षता का लक्ष्य है–तनाव की प्रवृत्तियों को कमजोर करते हुए शान्ति का विस्तार। गुट-निरपेक्षता साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नवउपनिवेशवाद, रंग-भेद और शोषण तथा आधिपत्य के सभी रूपों का विरोध करने वाली नीति है। गुट-निरपेक्षता एक गुट नहीं वरन् एक आन्दोलन है तथा निरन्तर विकासशील नीति है। गुट-निरपेक्षता को यह भी विश्वास है कि संयुक्त राष्ट्र के बिना आज के विश्व की कल्पना नहीं की जा सकती।

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को प्रारम्भ करने का उद्देश्य – वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुट-निरपेक्ष अथवा असंलग्नता का सिद्धान्त अत्यन्त प्रभावशाली और लोकप्रिय बन गया है। गुटनिरपेक्षता की नीति को सर्वप्रथम अपनाने का श्रेय भारत को प्राप्त है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का सबसे प्रमुख और दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य विश्व का दो विरोधी गुटों में बँट जाना था। एक गुट का नेता संयुक्त राज्य अमेरिका था और दूसरे गुट का नेता था सोवियत संघ। इन दोनों गुटों के बीच मतभेदों की एक ऐसी खाई उत्पन्न हो गयी थी और दोनों गुट एक-दूसरे के विरोध में इस प्रकार सक्रिय थे कि इसे शीतयुद्ध का नाम दिया गया। 1947 ई० में जब भारत स्वतन्त्र हुआ, तो एशिया और विश्व में भारत की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थिति को देखते हुए दोनों विरोधी गुटों के देशों द्वारा भारत को अपनी ओर शामिल करने के प्रयत्न प्रारम्भ कर दिये गये और परस्पर विरोधी गुटों के इन प्रयासों ने वैदेशिक नीति के क्षेत्र में भारत के लिए एक समस्या खड़ी कर दी। लेकिन इन कठिन परिस्थितियों में भारत के द्वारा अपने विवेकपूर्ण मार्ग का शीघ्र ही चुनाव कर लिया गया और वह मार्ग था, गुट-निरपेक्षता अर्थात् अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में दोनों ही गुटों से अलग रहते हुए विश्व शान्ति, सत्य और न्याय का समर्थन करने की स्वतन्त्र, विदेश नीति।

प्रारम्भ में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुट-निरपेक्षता को सही रूप में नहीं समझा जा सका। केवल दो महाशक्तियों ने इसे ‘अवसरवादी नीति’ बतलाया, वरन् अन्य देशों द्वारा भी यह सोचा गया कि ‘आज की अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में निरपेक्षता का कोई मार्ग नहीं हो सकता। लेकिन समय के साथ भ्रान्तियाँ कमजोर पड़ीं और शीघ्र ही कुछ देश गुट-निरपेक्षता की ओर आकर्षित हुए। ऐसे देशों में सबसे प्रमुख थे—मार्शल टीटो के नेतृत्व में यूगोस्लाविया और कर्नल नासिर के नेतृत्व में मिस्र। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुट-निरपेक्षता की एक त्रिमूर्ति बन गयी ‘नेहरू, नासिर और टीटो’। कालान्तर में, एशियाई-अफ्रीकी देशों ने सोचा कि गुट-निरपेक्षता को अपनाना न केवल सम्भव है, वरन् उनके लिए यह लगभग स्वाभाविक और उचित मार्ग है। 1961 ई० में 25 देशों ने इस मार्ग को अपनाया।

लेकिन अब इस आन्दोलन से जुड़े सदस्य देशों की संख्या 120 हो गयी है। ‘गुट-निरपेक्षता’। आज अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की सबसे अधिक लोकप्रिय धारणा बन गयी है और गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने आज अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की एक प्रमुख प्रवृत्ति का स्थान ले लिया है।

वर्तमान में गुट-निरपेक्षता का महत्त्व

बदलती परिस्थितियों में गुट-निरपेक्षता का स्वरूप भी बदला है, किन्तु इसका महत्त्व पहले से अधिक हो गया है। यही कारण है कि आज गुट-निरपेक्षता का पालन करने वाले राष्ट्रों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र में गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की आवाज प्रबल बन सकी है। विश्व के दो प्रतिस्पर्धी गुटों में सन्तुलन पैदा करने और विश्व-शान्ति बनाये रखने में गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। आज की अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति के सन्दर्भ में ‘निर्गुट आन्दोलन (NAM) पर महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी आ गयी है। आज की परिस्थितियों में निर्गुट देश ही अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शान्ति स्थापित करने और बनाये रखने में योग दे सकते हैं।

विश्व के परतन्त्र राष्ट्रों को स्वतन्त्र कराने और रंगभेद की नीति का विरोध करने में निर्गुट आन्दोलन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आज निर्गुट आन्दोलन निर्धन और पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर जोर दे रहा है। गुट-निरपेक्ष देशों की यह बराबर माँग रही है कि विश्व की ऐसी आर्थिक रचना हो, जिसमें विश्व की सम्पत्ति का न्यायपूर्ण ढंग से वितरण हो सके। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की मान्यता है ‘आर्थिक शोषण का अन्त किये बिना’ विश्व-शान्ति सम्भव नहीं है। विश्व में शान्ति, स्वतन्त्रता और न्याय की रक्षा के लिए गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इस आन्दोलन ने विश्व में तनाव, शैथिल्य में पर्याप्त योग दिया है। तीसरी दुनिया के आर्थिक विकास के लिए यह आन्दोलन आशा की किरण है। श्रीमती गाँधी ने निर्गुट आन्दोलन के सातवें शिखर सम्मेलन में ठीक ही कहा था-“गुट-निरपेक्षता का जो रूप था वह बदल गया है, किन्तु गुट-निरपेक्षता का युग नहीं बीता है।” उन्होंने आगे कहा-“गुट- निरपेक्षता मानव-व्यवहार का दर्शन है। इसमें समस्याओं के समाधान के लिए बल-प्रयोग का कोई स्थान नहीं है। गुट-निरपेक्षता का औचित्य कल भी उतना ही रहेगा, जितना आज है।”

[ संकेत – गुट-निरपेक्षता आन्दोलन में भारत की भूमिका हेतु लघु उत्तरीय प्रश्न (150 शब्द) प्रश्न 1 का अध्ययन करें। ]

प्रश्न 3.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की सार्थकता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2010, 16]
या
क्या गुट-निरपेक्ष आन्दोलन आज भी प्रासंगिक है? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए। [2014, 16]
या
आधुनिक विश्व के सन्दर्भ में गुटनिरपेक्षता की सार्थकता पर एक निबन्ध लिखिए। [2012]
उत्तर :
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की उपादेयता (सार्थकता)

वर्तमान समय में बदलती हुई अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में बहुत-से राजनीतिक विचारकों का यह दृष्टिकोण है कि गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की उपादेयता समाप्त हो चुकी है, अर्थात् गुटनिरपेक्ष आन्दोलन महत्त्वहीन हो गया है, अथवा आधुनिक परिस्थितियों में इस आन्दोलन की कोई आवश्यकता नहीं है, जबकि आधुनिक परिस्थितियों में इस आन्दोलन को और भी मजबूत बनाने की आवश्यकता है।

1. पहला दृष्टिकोण – गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अपनी उपादेयता खो चुका है-इस परिप्रेक्ष्य में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के विद्वानों ने यह मत प्रकट किया है कि आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का कोई सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक महत्त्व नहीं रह गया है। उनका यह मत इसे धारणा पर आधारित है कि 1991 ई० में सोवियत संघ के विघटन एवं शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के अस्तित्व की कोई आवश्यकता नहीं है। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना एवं विकास में शीतयुद्ध की राजनीति ने बहुत अधिक प्रभाव डाला था। एशिया तथा अफ्रीका के नवोदित स्वतन्त्र हुए राष्ट्रों ने इस विचारधारा को इसलिए अपनाया था कि वे दोनों महाशक्तियों की गुटबन्दियों से पृथक् रहकर अपना विकास कर सकें एवं अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति का संचालन कर सकें। परन्तु आधुनिक समय में विश्व राजनीति द्वि-ध्रुवीय के स्थान पर एक-ध्रुवीय अथवा बहु-ध्रुवीय रूप में परिवर्तित हो रही है। शक्ति के नये केन्द्र उदय हो रहे हैं। सैनिक शक्ति के स्थान पर आर्थिक शक्ति की महत्ता स्थापित होती जा रही है। क्षेत्रीय सहयोग के नये आयाम स्थापित हो रहे हैं। राज्यों की राजनीतिक व्यवस्था स्थिरता के स्थान पर गतिशील है। अतः ऐसे राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता पर प्रश्न-चिह्न लग गया है। शीतयुद्ध की राजनीति के कारण इस आन्दोलन का जन्म हुआ तथा जब शीतयुद्ध ही समाप्त हो गया है तो इस आन्दोलन का औचित्य निरर्थक है। अतः इसकी उपादेयता समाप्त हो चुकी है।

2. दूसरा दृष्टिकोण : मजबूत बनने की दिशा में सक्रिय – कुछ विचारकों का यह मत है। कि आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में भी गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की उपादेयता है तथा इसको अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है। इसका कारण यह है कि स्वयं गुट-निरपेक्ष राष्ट्र अभी इन परिस्थितियों से हतोत्साहित नहीं हुए हैं, वरन् वे सक्रिय रूप से इसको सुदृढ़ बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। विश्व के राष्ट्र इसकी भूमिका के प्रति आशावान हैं; क्योंकि गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की संख्या घटने के स्थान पर बढ़ती जा रही है, जिसका प्रमाण है सोलहवाँ शिखर सम्मेलन, जिसमें सदस्य राष्ट्रों की संख्या 120 हो गयी है। आज भी संयुक्त राष्ट्र संघ एवं अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों पर अमेरिका एवं पश्चिमी राष्ट्रों का आधिपत्य स्थापित है। ऐसे में इन विकासशील राष्ट्रों को संयुक्त संगठन की आवश्यकता है, जो कि अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर इन राष्ट्रों की एकाधिकारवाद की भावना को चुनौती दे सके तथा अपने विकास सम्बन्धी नियमों एवं व्यवस्थाओं की स्थापना करवा सकें। संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 राष्ट्रों में 120 निर्गुट राष्ट्रों की स्थिति पर्याप्त महत्त्व रखती है और इन राष्ट्रों की सहमति के बिना संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा कोई निर्णय लेने में असमर्थ है। ये राष्ट्र कुछ सामान्य समस्याओं; जैसे-आतंकवाद, नशीली दवाओं के प्रयोग, जाति भेद, रंग-भेद, गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ापन, निरक्षरता आदि; से पीड़ित हैं। इनका समाधान इन राष्ट्रों के पारस्परिक सहयोग से ही सम्भव है। यदि ये राष्ट्र संगठित होंगे तो ये अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को काफी सीमा तक प्रभावित कर सकते हैं।

3. भविष्य की सम्भावनाएँ – आधुनिक समय में संयुक्त राष्ट्र संघ के लगभग २/३ सदस्य। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों के हैं तथा इन्होंने इन अन्तर्राष्ट्रीय मंचों से विश्व शान्ति, उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद के अन्त, रंगभेद की समाप्ति, परमाणु शस्त्रों पर रोक, नि:शस्त्रीकरण, हिन्दमहासागर को शान्ति क्षेत्र घोषित करना आदि विषयों को उठाया, विचार-विमर्श किया तथा अनेक मुद्दों पर सफलताएँ भी प्राप्त की।

इस आन्दोलन के जन्म के पश्चात् से ही इसमें विसंगतियाँ आनी प्रारम्भ हो गयी थीं। इस आन्दोलन में धीरे-धीरे ऐसे राष्ट्रों का आगमन प्रारम्भ हो गया जो कि सोवियत संघ एवं अमेरिका से वैचारिक दृष्टिकोण के आधार पर जुड़ गए। क्यूबा साम्यवादी देश होने के बावजूद निर्गुट आन्दोलन से जुड़ गया। 1962 ई० में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो कोई भी गुट-निरपेक्ष राष्ट्र भारत की सहायता के लिए नहीं आया वरन् भारत को ब्रिटेन तथा अमेरिका से सैनिक सहायता प्राप्त हुई। 1965 ई० में पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत का पक्ष सोवियत संघ ने लिया। कश्मीर के मसले पर अनेक बार सोवियत संघ ने वीटो का प्रयोग किया। वियतनाम जैसे गुट-निरपेक्ष राष्ट्र पर 1979 ई० में चीन ने आक्रमण कर दिया और उसे सोवियत संघ से मैत्री करने पर मजबूर होना पड़ा। अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण तथा गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का मूकदर्शक बना रहना इसकी सार्थकता को कम करता है। अत: इस आन्दोलन के विकास के साथ इसके अर्थ एवं परिभाषाएँ भी बदलनी प्रारम्भ हो गईं। अब यह स्वीकार किया जाने लगा है कि विदेश नीति की स्वतन्त्रता ही गुट-निरपेक्षता का एकमात्र मापदण्ड है। किसी भी राष्ट्र के साथ किसी भी प्रकार की सन्धि करने पर गुट-निरपेक्षता की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

इस आन्दोलन के जन्म के पश्चात् से ही इसमें विसंगतियाँ आनी प्रारम्भ हो गयी थीं। इस आन्दोलन में धीरे-धीरे ऐसे राष्ट्रों का आगमन प्रारम्भ हो गया जो कि सोवियत संघ एवं अमेरिका से वैचारिक दृष्टिकोण के आधार पर जुड़ गए। क्यूबा साम्यवादी देश होने के बावजूद निर्गुट आन्दोलन से जुड़ गया। 1962 ई० में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो कोई भी गुट-निरपेक्ष राष्ट्र भारत की सहायता के लिए नहीं आया वरन् भारत को ब्रिटेन तथा अमेरिका से सैनिक सहायता प्राप्त हुई। 1965 ई० में पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत का पक्ष सोवियत संघ ने लिया। कश्मीर के मसले पर अनेक बार सोवियत संघ ने वीटो का प्रयोग किया। वियतनाम जैसे गुट-निरपेक्ष राष्ट्र पर 1979 ई० में चीन ने आक्रमण कर दिया और उसे सोवियत संघ से मैत्री करने पर मजबूर होना पड़ा। अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण तथा गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का मूकदर्शक बना रहना इसकी सार्थकता को कम करता है। अत: इस आन्दोलन के विकास के साथ इसके अर्थ एवं परिभाषाएँ भी बदलनी प्रारम्भ हो गईं। अब यह स्वीकार किया जाने लगा है कि विदेश नीति की स्वतन्त्रता ही गुट-निरपेक्षता का एकमात्र मापदण्ड है। किसी भी राष्ट्र के साथ किसी भी प्रकार की सन्धि करने पर गुट-निरपेक्षता की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की कमजोरी के लिए कुछ तो संरचनात्मक कमियाँ हैं; जैसे-स्थायी सचिवालय का न होना और इसके स्थान पर औपचारिक संगठनों; जैसे-समन्वय ब्यूरो तथा सम्मेलन; की स्थापना आदि उत्तरदायी हैं, तो दूसरी ओर सदस्य-राष्ट्रों के पारस्परिक मतभेद, विवाद एवं संघर्ष इसकी संगठित शक्ति को कमजोर कर रहे हैं। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के सदस्य होने पर भी भारत तथा पाकिस्तान के मध्य अनेक सैनिक युद्ध हो चुके हैं और अभी भी अघोषित युद्ध की स्थिति बनी हुई है। पाकिस्तान की परमाणु बम बनाने की क्षमता तथा अमेरिका एवं चीन से अत्याधुनिक हथियारों को खरीदने से भारत की शान्ति एवं सुरक्षा को गम्भीर खतरा पैदा हो गया है और यह सम्भव है कि भारत और पाकिस्तान का किसी भी समय भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो सकता है। भारत-चीन सीमा-विवाद, वियतनाम-कम्पूचिया विवाद, अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप, ईरान-इराक विवाद, इराक द्वारा कुवैत पर आक्रमण आदि अनेक समस्याएँ हैं जिनका कोई निश्चित समाधान गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के पास नहीं है। इस प्रकार स्पष्ट है कि ऐसे क्षेत्र स्पष्ट रूप से दिखायी देते हैं जहाँ इस आन्दोलन की आज भी प्रासंगिकता, उपादेयता एवं महत्त्वपूर्ण भूमिका है; जैसे –

  1. नयी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिए प्रयास करना।
  2. उत्तर-दक्षिण संवाद के लिए पृष्ठभूमि तैयार करना।
  3. निरस्त्रीकरण के लिए प्रयास करना।
  4. मादक द्रव्यों की तस्करी एवं आतंकवाद को रोकने में पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देना।
  5. पर्यावरण की सुरक्षा के लिए प्रयास करना।
  6. दक्षिण-दक्षिण संवाद को प्रोत्साहन प्रदान करना।
  7. एक-ध्रुवीय व्यवस्था में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अमेरिका के बढ़ते हुए वर्चस्व को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास करना।

UP Board Solutions for Class 12 Civics गुट-निरपेक्ष आन्दोलन

प्रश्न 4.
गुट-निरपेक्षता की उपलब्धियों तथा विफलताओं का विवरण दीजिए। [2009, 10]
उत्तर :
गुट-निरपेक्षता की उपलब्धियाँ

गुट-निरपेक्षता विदेश-नीति का वह मूल सिद्धान्त है, जिसमें कोई भी राष्ट्र सम्मिलित हो सकता है। इस प्रकार गुट-निरपेक्षता का प्रादुर्भाव तथा विकास वर्तमान समय की सर्वाधिक लोकप्रिय तथा प्रभावशाली नीति है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रमुख उपलब्धियों को अध्ययन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है –

1. गुट-निरपेक्षता की नीति को मान्यता – विश्व के दोनों राष्ट्र-अमेरिका तथा सोवियत संघ यह समझते थे कि भुट-निरपेक्ष आन्दोलन सिवाय एक ‘धोखे’ के और कुछ नहीं है। अतः विश्व के राष्ट्रों को किसी एक गुट में अवश्य सम्मिलित हो जाना चाहिए, परन्तु गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अपनी नीतियों पर दृढ़ रहा। समय व्यतीत होने के साथ-साथ विश्व के दोनों गुटों के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आया। साम्यवादी देशों का विश्वास साम्यवादी विचारधारा से हटकर एक नवीन स्वतन्त्र विचारधारा की ओर आकर्षित होने लगा। उन्होंने विश्व में पहली बार इस बात को स्वीकार किया कि गुट-निरपेक्ष देश वास्तव में स्वतन्त्र हैं। उन्होंने यह भी अनुभव किया कि सोवियत संघ तथा गुट-निरपेक्ष देशों के समक्ष मूलभूत समस्याएँ समान हैं। पश्चिमी गुटों ने तो सातवें दशक में गुट-निरपेक्ष नीति को मान्यता प्रदान की। इस प्रकार गुटनिरपेक्ष देशों के प्रति सद्भावना तथा सम्मान का वातावरण उत्पन्न करने में आन्दोलनकारियों को जो सफलता प्राप्त हुई उसकी सराहना की जानी चाहिए।

2. शीत-युद्ध के भय को दूर करना – शीत-युद्ध के कारण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में तनाव का वातावरण व्याप्त था। परन्तु गुट-निरपेक्षता की नीति ने इस तनाव को शिथिलता की दशा में लाने के लिए भरसक प्रयत्न किया तथा इसमें सफलता भी प्राप्त की।

3. शीत-युद्ध को सक्रिय करना – अनेक गुट-निरपेक्ष देश चाहते थे कि विश्व के दोनों गुटों के मध्य शान्ति तथा सद्भावना का वातावरण बने। शीत-युद्ध के कारण अनेक देशों में भ्रम व्याप्त था कि यह शान्ति किसी भी समय युद्ध के रूप में भड़क सकती है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने शीत युद्ध को हथियारों के युद्ध में बदलने से रोका तथा अन्तर्राष्ट्रीय जगत में व्याप्त भ्रम को दूर किया। सर्वोच्च शक्तियाँ समझ गईं कि व्यर्थ में रक्त बहाने से कोई लाभ नहीं है।

4. विश्व के संघर्षों को दूर करना – गुट-निरपेक्षता की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसने विश्व में होने वाले कुछ भयंकर संघर्षों को टाल दिया। धीरे-धीरे उनके निदान ढूंढ़ लिये गये। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने आणविक अस्त्र के खतरों को दूर करके अन्तर्राष्ट्रीय जगत में शान्ति तथा सुरक्षा को बनाए रखने में योगदान दिया। विश्व के छोटे-छोटे विकासशील तथा विकसित राष्ट्रों को दो भागों में विभाजित होने से रोका। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने सर्वोच्च शक्तियों को सदैव यही प्रेरणा दी कि “संघर्ष अपने हृदय में सर्वनाश लेकर चलता है इसलिए इससे बचकर चलने में विश्व का कल्याण है। इसके स्थान पर यदि सर्वोच्च शक्तियाँ विकासशील राष्ट्रों के कल्याण के लिए कुछ कार्य करती हैं तो इससे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को बल मिलेगा।

5. अपनी प्रकृति के अनुसार पद्धतियों का आविष्कार करना – गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की एक उपलब्धि यह भी है कि इसने संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ जैसे देशों की नीतियों को नकराते हुए अपनी प्रकृति के अनुकूल पद्धतियों का विकास किया। इस प्रकार भारत ने विश्व-बन्धुत्व, समाज-कल्याण तथा समाज के समाजवादी ढाँचे के अनुसार गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों को चलने के लिए प्रेरित किया।

6. आर्थिक सहयोग का वातावरण बनाना – गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने विकासशील राष्ट्रों के बीच अपनी विश्वसनीयता का ठोस परिचय दिया जिसके कारण विकासशील राष्ट्रों को समय-समय पर आर्थिक सहायता प्राप्त हो सकी। कोलम्बो शिखर सम्मेलन में तो आर्थिक घोषणा-पत्रे तैयार किया गया जिससे गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों के मध्य अधिक-से-अधिक आर्थिक सहयोग की स्थिति निर्मित हो सके। एक प्रकार से गुट-निरपेक्षता का आन्दोलन आर्थिक सहयोग का एक संयुक्त मोर्चा है।

7. नयी अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की अपील – वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति ने नयी करवट बदली है। अत: नयी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की यह अपील तथा माँग है कि विश्व मंच पर ‘आर्थिक विकास सम्मेलन का आयोजन किया जाए जो विश्व में व्यापार की स्थिति सुधारे, विकासशील राष्ट्रों को व्यापार करने के अवसर प्रदान करे, ‘सामान्य पहल’ के अनुसार गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की तकनीकी तथा प्रौद्योगिकी दोनों प्रकार का अनुदान प्राप्त हो। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की पहल के परिणामस्वरूप 1974 ई० में संयुक्त राष्ट्र संघ ने छठा विशेष अधिवेशन आयोजित किया जिसमें नयी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था स्थापित करने की घोषणा का प्रस्ताव पारित किया गया। कुछ समय बाद इस घोषणा-पत्र के विषय पर विकसित राष्ट्रों ने भी विचार-विमर्श किया, जो गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।

8. निःशस्त्रीकरण तथा अस्त्र-नियन्त्रण की दिशा में भूमिका – गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के देशों ने नि:शस्त्रीकरण तथा अस्त्र-नियन्त्रण के लिए विश्व में अवसर तैयार किया। यद्यपि इस क्षेत्र में गुट-निरपेक्ष देशों को तुरन्त सफलता नहीं मिली, तथापि विश्व के राष्ट्रों को यह विश्वास होने लगा कि हथियारों को बढ़ावा देने से विश्व-शान्ति संकट में पड़ सकती है। यह गुट-निरपेक्षता का ही परिणाम है कि 1954 ई० में आणविक अस्त्र के परीक्षण पर प्रतिबन्ध लगा तथा 1963 ई० में आंशिक परीक्षण पर प्रतिबन्ध स्वीकार किए गए।

9. संयुक्त राष्ट्र संघ का सम्मान – गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने विश्व संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ का भी सदैव सम्मान किया, साथ ही संगठन के वास्तविक रूप को रूपान्तरित करने में भी सहयोग दिया। पहली बात तो यह है कि गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की संख्या इतनी है कि शीत-युद्ध के वातावरण को तटस्थता की नीति के रूप में परिवर्तन करने में राष्ट्रों के संगठन की बात सुनी गई। इससे छोटे राष्ट्रों पर संयुक्त राष्ट्र संघ का नियन्त्रण सरलतापूर्वक लागू हो सका। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के महत्त्व की वृद्धि करने में भी सहायता दी।

गुट-निरपेक्षता की विफलताएँ

गुट-निरपेक्षता की विफलताओं का अध्ययन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है –

1. सिद्धान्तहीन नीति – पश्चिमी आलोचकों का कहना है कि गुट-निरपेक्षता की नीति अवसरवादी तथा सिद्धान्तहीन है। ये देश साम्यवादी तथा पूँजीवादी देशों के साथ अवसरानुकूल ‘कार्य सम्पन्न करने में निपुण हैं। अत: ये देश दोहरी चाल चलते रहते हैं। इनका कोई निश्चित ध्येय नहीं है। ये देश अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने की गतिविधियों से नहीं चूकते हैं।

2. बाहरी आर्थिक तथा रक्षा सहायता पर निर्भरता – गुट-निरपेक्ष देशों पर विफलता का यह आरोप भी लगाया जाता है कि उन्होंने बाहरी सहायता का आवरण पूर्ण रूप से ग्रहण कर लिया है। चूंकि वे हर प्रकार की सहायता चाहते थे, इसलिए उन्होंने एक मार्ग निकालकर अपना कार्य सिद्ध करने की नीति अपना ली है। आलोचकों का कहना है कि यदि गुट-निरपेक्षता की भावना सत्य पर आधारित होती तो ये देश आत्म-निर्भरता की नीति को मानकर चलते। अतः गुट-निरेपक्ष राष्ट्रों ने स्वतन्त्रता के मार्ग में कील ठोंक दी है।

3. गुट-निरपेक्षता की नीति में सुरक्षा का अभाव – आलोचकों ने इस बात पर भी टीका टिप्पणी की है कि गुट-निरपेक्ष देश आर्थिक स्थिति सुधारने की ओर संलग्न रहते हैं। ये देश सुरक्षा को पर्याप्त नहीं मानते हैं। ऐसी दशा में यदि वे बाहरी सैनिक सहायता स्वीकार करते हैं तो उनकी गुट-निरपेक्षता धरी की धरी रह जाएगी। सन् 1962 में चीन से आक्रमण के समय भारत को यह विदित हो गया कि बाहरी शक्ति के समक्ष गुट-निरपेक्ष राष्ट्र मुँह ताकते रह जाते हैं। इस प्रकार बाहरी शक्ति का सामना करने के लिए बाहर से सैनिक सहायता पर निर्भर नहीं रहा जा सकता।

4. अव्यावहारिक सिद्धान्तों की नीति – आलोचकों के कथनानुसार गुट-निरपेक्षता के सिद्धान्त अव्यावहारिक हैं। ये व्यवहार में विफल हुए हैं। सिद्धान्तों के अनुसार गुट-निरपेक्ष देशों को स्वतन्त्रता की नीतियों को सुदृढ़ करना था, परन्तु वे अपने दायित्व को निभाने में असफल रहे। पश्चिमी राष्ट्रों का तो यहाँ तक कहना है कि गुट-निरपेक्षता साम्यवाद के प्रति सहानुभूति रखती है परन्तु विश्व राजनीति में उसे गुप्त रखना चाहती है। पं० नेहरू ने सदा साम्यवादी रूस की प्रशंसा की तथा भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण सोवियत संघ की नीतियों से प्रेरित होकर किया गया।

5. संकुचित नीति का पोषक – विदेश नीति का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है। इस सम्बन्ध में आलोचकों का कहना है कि गुट-निरपेक्षता का सीमित वृत्त इतने व्यापक वृत्त को कैसे अपने में समेट सकता है। अतः गुट-निरपेक्ष आन्दोलन एक प्रकार से अफसल है। गुटों से बाहर रहकर विश्व राजनीति में क्रियाशीलता का प्रदर्शन करना अत्यधिक कठिन है। विश्व की सम्पूर्ण नीति गुटों के चतुर्दिक घूमती है। अतः गुटों से पृथक् रहकर कोई भी राष्ट्र विकास के पथ पर नहीं पहुँच सकता।

6. राष्ट्रहित के स्थान पर नेतागिरी की नीति – कुछ आलोचकों का मानना है कि गुट निरपेक्षता की भावना ऊर्ध्वगामी है, जबकि विश्व राजनीति की जड़ें अधोगामी हैं। ऐसी स्थिति में इस नीति के केन्द्र में राष्ट्रहित की भावना नहीं दिखाई देती है।

7. गुट-निरपेक्षता एक दिशाहीन आन्दोलन – कुछ आलोचकों का मानना है कि विश्व की नवीन मुक्त व्यापार की नीति के अन्तर्गत गुटे-निरपेक्षता का आन्दोलन निरर्थक सिद्ध हो रहा है। आज अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच पर सद्भावना की आवश्यकता है, अलगावाद की नहीं। गुट-र्निरपेक्षता का आन्दोलन इस दृष्टि से दिशाहीनता का प्रदर्शन मात्र बनकर रह गया है।

8. गुट-निरपेक्षता की नीति से अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं – आलोचकों का कहना है कि गुट-निरपेक्षता की नीति ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में अभी तक कोई ठोस परिवर्तन नहीं किया है। शीत-युद्ध के समय में सारा विश्व प्रमुख शिविरों में विभक्त रहा। इन शिविरों ने गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के नेताओं के कहने में अपनी नीति में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं किया। भारत के विरोध करने के पश्चात् भी अमेरिका ने कोरिया में अभियान चलाया, चीन ने तिब्बत पर अधिकार कर लिया तथा लेबनान में अमेरिकी सेनाएँ। प्रविष्ट हो गईं। पश्चिमी एशिया में अरब-इजराइल युद्ध हुए। इस प्रकार गुट-निरपेक्षता की नीति निरर्थक सिद्ध हुई।

इस प्रकार गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का कोई ठोस आधार नहीं है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
‘गुट-निरपेक्ष आन्दोलन एवं भारत पर एक टिप्पणी लिखिए।
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका सदैव केन्द्रीय रही है। भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू को इस आन्दोलन का संस्थापक माना जाता है। 1947 से 1950 ई० तक पं० नेहरू के नेतृत्व में गुट-निरपेक्षता को सकारात्मक तटस्थता” के रूप में स्वीकार किया गया था। तत्पश्चात् 1977 से 1979 ई० तक मोरारजी देसाई के नेतृत्व में भारत ने अमेरिका व रूस दोनों के साथ अपने सम्बन्धों को सुधारों व= उनमें समन्वय स्थापित किया। इस काल को वास्तविक गुट-निरपेक्षता का काल कहा जाता है। 1980 ई० में भारत का नेतृत्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी के हाथों में सौंपा गया। इन्दिरा गाँधी के नेतृत्व में भारत ने 1983 ई० में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भाग लिया। इस काल में इन्दिरा गाँधी द्वारा दो समस्याओं पर प्रमुख रूप से ध्यान केन्द्रित किया गया, जिसमें प्रथम, शीतयुद्ध को समाप्त करने तथा द्वितीय, परमाणु अस्त्रों की होड़ को समाप्त करने से सम्बन्धित थी। आठवाँ शिखर सम्मेलन जो जिम्बाब्वे की राजधानी हरारे में सम्पन्न हुआ, में भारत का नेतृत्व प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी द्वारा किया गया था।

इस सम्मेलन में राजीव गाँधी द्वारा विकासशील राष्ट्रों के मध्य स्वतन्त्र संचार-प्रणाली’ की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया। इसके अतिरिक्त 1989 ई० में नवें शिखर सम्मेलन के समय भारत में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार थी जिसके नेतृत्व में भारत द्वारा “पर्यावरण की सुरक्षा पर बल देते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में “पृथ्वी संरक्षण कोष’ की स्थापना का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। 1992 ई० में होने वाले दसवें शिखर सम्मेलन में भारत द्वारा विश्व की प्रमुख समस्या परमाणु नि:शस्त्रीकरण वे राष्ट्रों के मध्य आर्थिक समानता कायम करने के प्रश्न को उठाया गया। इस सम्मेलन के अन्तर्गत दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नेल्सन मण्डेला ने अपने अध्यक्षीय भाषण में जम्मू-कश्मीर जैसे भारत के द्विपक्षीय मसले पर बोलकर भारतीय भावनाओं के आन्दोलन की मूल भावनाओं को ठेस पहुँचायी। यद्यपि तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा नेल्सन मण्डेला के अध्यक्षीय भाषण की आलोचना की गयी व अपने कूटनीतिक चातुर्य के द्वारा उन्होंने सम्मेलन में भारत की साख को बचा लिया, परन्तु इस घटना ने भारत को भविष्य के लिए सतर्क रहने की शिक्षा दी।

प्रश्न 2.
गुटनिरपेक्षता का महत्त्व बताइए।
उत्तर :
गुटनिरपेक्षता का महत्त्व

वर्तमान विश्व के सन्दर्भ में गुटनिरपेक्षता का व्यापक महत्त्व है, जिसे निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. गुटनिरपेक्षता ने तृतीय विश्वयुद्ध की सम्भावना को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  2. गुटनिरपेक्षता राष्ट्रों ने साम्राज्यवाद का अन्त करने और विश्व में शान्ति व सुरक्षा बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए हैं।
  3. गुटनिरपेक्ष के कारण ही विश्व की महाशक्तियों के मध्य शक्ति-सन्तुलन बना रही।
  4. गुटनिरपेक्ष सम्मेलनों ने सदस्य-राष्ट्रों के मध्य होने वाले युद्धों एवं विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान किया है।
  5. गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में एक-दूसरे को पर्याप्त सहयोग दिया है।
  6. गुटनिरपेक्षता ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को व्यापक रूप से प्रभावित किया है।
  7. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने विश्व के परतन्त्र राष्ट्रों को स्वतन्त्र कराने और रंग-भेद की नीति का विरोध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  8. यह आन्दोलन निर्धन तथा पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर बहुत बल दे रहा है।
  9. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन राष्ट्रवाद को अन्तर्राष्ट्रवाद में परिवर्तित करने तथा द्विध्रुवीकरण को बहु-केन्द्रवाद में परिवर्तित करने का उपकरण बना।
  10. इसने सफलतापूर्वक यह दावा किया कि मानव जाति की आवश्यकता पूँजीवाद तथा साम्यवाद के मध्य विचारधारा सम्बन्धी विरोध से दूर है।
  11. इसने सार्वभौमिक व्यवस्था की तरफ ध्यान आकर्षित किया तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में शीत-युद्ध की भूमिका को कम करने तथा इसकी समाप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  12. गुटनिरपेक्षता नए राष्ट्रों के सम्बन्धों में स्वतन्त्रतापूर्वक विदेशों से सम्बन्ध स्थापित करके तथा सदस्यता प्रदान करके उनकी सम्प्रभुता की सुरक्षा का साधन बनी है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
‘गुट-निरपेक्षता की नीति के आवश्यक तत्त्व बताइए।
उत्तर :
गुट-निरपेक्षता की नीति के आवश्यक तत्त्व

सन् 1961 में बेलग्रेड में आयोजित गुट-निरपेक्ष देशों के प्रथम शिखर सम्मेलन में असंलग्नता की नीति के कर्णधारों-नेहरू, नासिर और टीटो ने इस नीति के 5 आवश्यक तत्त्व माने हैं, जो निम्नलिखित हैं

  1. सम्बद्ध देश स्वतन्त्र नीति का अनुसरण करता हो।
  2. वह उपनिवेशवाद का विरोध करता हो।
  3. वह किसी भी सैनिक गुट का सदस्य न हो।
  4. उसने किसी भी महाशक्ति के साथ द्विपक्षीय सैनिक समझौता नहीं किया हो।
  5. उसने किसी भी महाशक्ति को अपने क्षेत्र में सैनिक अड्डा बनाने की स्वीकृति न दी हो।

उपर्युक्त आवश्यक तत्त्वों के अनुसार गुट-निरपेक्षता का आशय ‘‘अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सैनिक गुट की सदस्यता या किसी भी महाशक्ति के साथ द्विपक्षीय सैनिक समझौते से दूर रहते हुए शान्ति, न्याय और राष्ट्रों की समानता के सिद्धान्त पर आधारित रीति-नीति का अवलम्बन है।

प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

  1. स्वतन्त्र राष्ट्रों के मध्य पारस्परिक एकता व शान्तिपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना हेतु।
  2. नवस्वतन्त्र राष्ट्रों के मध्य व्यापारिक व तकनीकी सम्बन्धों की स्थापना करना।
  3. पर्यावरण प्रदूषण पर नियन्त्रण करना।
  4. स्वतन्त्रता की रक्षा करना।
  5. साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद व रंगभेद जैसी नीतियों का विरोध करना।
  6. मानव अधिकारों का समर्थन करना।
  7. निरस्त्रीकरण का समर्थन व युद्धों का विरोध करना।
  8. अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को कम करने हेतु प्रयत्न करना।
  9. सैनिक गुटबन्दी से दूर रहना।
  10. परस्पर सहयोग द्वारा विकास की गति में वृद्धि करना।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
गुट-निरपेक्षता की त्रिमूर्ति से क्या आशय है?
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दो संस्थापकों के नाम लिखिए। [2011, 13]
उत्तर :
गुट-निरपेक्षता की त्रिमूर्ति से आशय पं० जवाहरलाल (प्रधानमन्त्री भारत), कर्नल नासिर (राष्ट्रपति मिस्र) तथा मार्शल टीटो (राष्ट्रपति यूगोस्लाविया) से है।

प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन कहाँ और कब सम्पन्न हुआ था? [2011]
उत्तर :
गुट-निरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन यूगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड में 1961 ई० में हुआ था।

प्रश्न 3.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के प्रणेता कौन थे? [2013]
उत्तर :
गुट-निरपेक्ष की नीति के प्रणेता पं० जवाहरलाल नेहरू थे।

UP Board Solutions for Class 12 Civics गुट-निरपेक्ष आन्दोलन

प्रश्न 4.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का 12वाँ शिखर सम्मेलन कहाँ आयोजित हुआ था?
उत्तर :
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का 12वाँ शिखर सम्मेलन डरबन (दक्षिण अफ्रीका) में 1998 ई० में आयोजित हुआ था। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का 12वाँ विदेश मन्त्री सम्मेलन 1997 ई० में नयी दिल्ली में सम्पन्न हुआ था।

प्रश्न 5.
किन्हीं चार गुट-निरपेक्ष देशों के नाम अंकित कीजिए। [2007, 10, 11]
उत्तर :
भारत, मिस्र, मलेशिया एवं यूगोस्लाविया

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
गुट-निरपेक्षता की नीति का प्रतिपादन किसने किया था ?
(क) इन्दिरा गाँधी ने
(ख) पं० जवाहरलाल नेहरू ने
(ग) लाल बहादुर शास्त्री ने
(घ) राजीव गाँधी ने

प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रथम शिखर सम्मेलन कहाँ हुआ था ? [2013]
(क) काठमाण्डू
(ख) कोलम्बो
(ग) बेलग्रेड
(घ) नयी दिल्ली

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा एक गुट-निरपेक्ष देश नहीं है ? [2011, 14]
(क) ब्रिटेन
(ख) श्रीलंका
(ग) मिस्र
(घ) इण्डोनेशिया

प्रश्न 4.
गुट निरपेक्ष आन्दोलन नरम पड़ता जा रहा है क्योंकि [2012]
(क) इसके नेतृत्व में दूरदर्शिता का अभाव है।
(ख) इसके सदस्य राष्ट्रों की सभी समस्याओं का समाधान हो गया है।
(ग) विश्व में अब एक ही गुट प्रभावशाली रह गया है।
(घ) गुट-निरपेक्षता का विचार वैश्वीकरण के कारण अप्रासंगिक हो गया है।

प्रश्न 5.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की नींव कब पड़ी? [2013]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रारम्भ हुआ था। [2016]
(क) 1960
(ख) 1961
(ग) 1962
(घ) 1965

प्रश्न 6.
वर्ष 2012 में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का शिखर सम्मेलन कहाँ आयोजित हुआ था? [2013]
(क) इराक
(ख) ईरान
(ग) चीन
(घ) अमेरिका

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन गुट-निरपेक्ष आन्दोलन से सम्बन्धित नहीं है? [2012]
(क) मिस्र के कर्नल नासिर
(ख) यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो
(ग) भारत के पं० जवाहरलाल नेहरू
(घ) चीन के चाऊ-एनलाई

प्रश्न 8.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक नेता कौन थे? [2015]
(क) पं० मोतीलाल नेहरू, सुहात, यासर अराफात
(ख) इंदिरा गांधी, फिडेल कास्त्रो, कैनिथ कौन्डा
(ग) नासिर, जवाहरलाल नेहरू, टीटो।
(घ) श्रीमावो भण्डारनाईके, अनवर सदात, जुलियस नायरेरे

उत्तर :

  1. (ख) पं० जवाहरलाल नेहरू ने
  2. (ग) बेलग्रेड
  3. (क) ब्रिटेन
  4. (घ) गुटनिरपेक्षता का विचार वैश्वीकरण के कारण अप्रासंगिक हो गया है
  5. (ख) 1961
  6. (ख) ईरान
  7. (घ) चीन के चाऊ-एनलाई
  8. (ग) नासिर, जवाहरलाल नेहरू, टीटो।

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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency: Arithmetic Mean

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 27
Chapter Name Measure of Central Tendency: Arithmetic Mean (केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप : समान्तर माध्य)
Number of Questions Solved 44
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency: Arithmetic Mean (केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप : समान्तर माध्य)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
समान्तर माध्य से आप क्या समझते हैं ? समान्तर माध्य के प्रकार बताइए। [2010]
उत्तर:
साधारण बोलचाल की भाषा में समान्तर माध्य को औसत कहते हैं। समान्तर माध्य केन्द्रीय प्रवृत्ति का एक मापक है। वह संख्या जो किसी समूह विशेष के सभी आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करती है, समान्तर माध्य कहलाती है। समान्तर माध्य वह मान है जो दिये हुए पदों के योगफल में पदों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए-यदि छ: बालकों की आयु क्रमशः 5, 7, 9, 11, 13 व 15वर्ष है तो इसका समान्तर माध्य = [latex]\frac { 5+7+9+11+13+15 }{ 6 }[/latex] = [latex]\frac { 60 }{ 6 }[/latex] = 10 वर्ष होगा।

समान्तर माध्य निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया जा सकता है
प्रो० होरेस सैक्रिस्ट के अनुसार, “एक समंकमाला के पदों के मूल्यों के योग को उनकी संख्या से भाग देने पर जो संख्या प्राप्त होती है, उसे ‘माध्य’ कहते हैं।”
क्रॉक्सटन व क्राउड़न के अनुसार, “माध्य समंकों के विस्तार के अन्तर्गत स्थित एक ऐसा मूल्य है जिसका प्रयोग श्रेणी के सभी मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता है, क्योंकि माध्य समंकों के विस्तार के अन्तर्गत ही कहीं होता है; अत: यह केन्द्रीय मूल्य का माप कहा जाता है।”

गणितीय माध्य या समान्तर माध्य के प्रकार
गणितीय या समान्तर माध्य के निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं
1. सरल समान्तर माध्य तथा
2. भारित समान्तर माध्य।

1. सरले समान्तर माध्य – सरल समान्तर माध्य में समूह के सभी पदों या समंकों को समान महत्त्व दिया जाता है तथा इसकी गणना पदों के योगफल में पदों की संख्या से भाग देकर की जाती है।
2. भारित समान्तर माध्य – भारित समान्तर माध्य में प्रत्येक पद को उसके महत्त्व के अनुसार कम या अधिक भार प्रदान किया जाता है। पद मूल्यों को उसके महत्त्व के अनुसार भार देकर समान्तर माध्य निकालना ही भारित समान्तर माध्य कहलाता है।

प्रश्न 2
समान्तर माध्य के गुण-दोष लिखिए। [2008, 11, 12, 13, 15]
उत्तर:
समान्तर माध्य के गुण- समान्तर माध्य में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं

  1. सरलता – समान्तर मध्य में सरलता का गुण पाया जाता है। एक साधारण व्यक्ति भी इसकी गणना सरलतापूर्वक कर सकता है, क्योंकि इसको समझना आसान होता है।
  2. समस्त पदों का प्रतिनिधित्व – समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए सम्पूर्ण समंकों का प्रयोग किया जाता है; अत: यह सभी पदों का प्रतिनिधित्व करता है।
  3. निश्चितता – संमान्तर मध्य सदैव एक ही होता है। श्रेणी चाहे जिस ढंग से लिखी जाए, इसमें कोई अन्तर नहीं आता; अत: इसमें निश्चितता का गुण पाया जाता है।
  4. तुलना का आधार – समान्तर माध्य के द्वारा विभिन्न समंकों में तुलना की जा सकती है; अतः समान्तर माध्य तुलना का आधार प्रस्तुत करता है।
  5. बीजगणितीय विवेचन सम्भव होता है – समान्तर माध्य का प्रयोग बीजगणितीय क्रियाओं में सम्भव है; अत: इस माध्य का प्रयोग उच्च-स्तरीय सांख्यिकीय विश्लेषण में किया जाता है।

समान्तर माध्य के दोष – समान्तर माध्य में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं

  1. समान्तर माध्य ज्ञात करते समय सभी पदों को महत्त्व दिया जाता है, परन्तु बड़े मूल्यों के पद माध्य को अधिक प्रभावित करते हैं, जिसके कारण समान्तर माध्य श्रेणी का ठीक प्रतिनिधित्व करने में असफल रहता है; जैसे – किसी कार्यालय के प्रबन्धक का वेतन ₹14,000 और दो लिपिकों का वेतन क्रमशः ₹3,000 और ₹4,000 है तो इस समूह के वेतन का माध्य हैं ₹7,000 होगा, जो कि श्रेणी का उचित प्रतिनिधित्व नहीं करता।
  2. समान्तर माध्य द्वारा कभी-कभी अशुद्ध परिणाम भी निकल जाते हैं। उदाहरण के लिए-यदि तीन फर्मों के विभिन्न वर्षों के लाभ निम्नवत् हैं
    UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 1
    उपर्युक्त लाभ को देखने से स्पष्ट होता है कि तीनों फर्मों का औसत लाभ या समान्तर माध्य 50,000 है। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि तीनों फर्म समान प्रगति पर हैं, परन्तु फर्म A प्रगति पथ पर है और फर्म B की स्थिति शोचनीय।
  3. गुणात्मक सामग्री का समान्तर माध्य ज्ञात नहीं किया जा सकता है। इस कारण गुणात्मक सामग्री के लिए यह अनुपयुक्त है।
  4. समान्तर माध्य के द्वारा कभी-कभी विचित्र व हास्यास्पद परिणाम प्राप्त होते हैं; जैसे-एक व्यक्ति के पास 4 गाय हैं और दूसरे व्यक्ति के पास 3 गाय हैं तो इनका समान्तर माध्य 3.5 होता है। जबकि 3.5 गाय नहीं होती हैं; अत: जिन वस्तुओं का विभाजन असम्भव है उनके समान्तर माध्य को ज्ञात करना कठिन है।
  5. समान्तर माध्य का बिन्दुरेखीय प्रदर्शन या रेखाचित्र असम्भव है।
  6. समंकमाला को देखकर समान्तर मध्य का अनुमान लगाना कठिन होता है।
  7. सम्पूर्ण समंकों में से यदि कोई एक समंक गायब हो जाता है, तो ऐसी स्थिति में समान्तर माध्य ज्ञात करना कठिन होता है।
  8. समान्तर माध्य छोटे पदों को कम और बड़े पदों को अधिक महत्त्व देता है।

प्रश्न 3
समान्तर माध्य की गणना हेतु प्रयुक्त प्रत्यक्ष एवं लघु रीतियों को उदाहरण सहित समझाइए। [2010]
उत्तर:
समान्तर माध्य ज्ञात करने की दो विधियाँ हैं- 1. प्रत्यक्ष विधि (Direct Method) तथा 2. परोक्ष विधि या लघु विधि (Indirect or Short-cut Method)

1. प्रत्यक्ष विधि – समान्तर माध्य ज्ञात करने की यह विधि अत्यन्त सरल है, परन्तु यदि समंकों का मूल्य बड़ा होता है और उनकी संख्या भी अधिक होती है तो इस विधि का प्रयोग उचित नहीं रहता, क्योंकि गणना करने में अधिक समय व श्रम का व्यय होता है।

2. परोक्ष विधि या लघु विधि – इस विधि को अप्रत्यक्ष विधि या कल्पित माध्य विधि भी कहते हैं। इसमें दिये हुए पद-मूल्यों में से किसी एक को अथवा पद-मूल्यों से भिन्न किसी दूसरी संख्या को कल्पित माध्य (Assumed Mean) मान लेते हैं तथा कल्पित माध्य को प्रत्येक पद-मूल्य में से घटाकर धनात्मक या ऋणात्मक विचलन ज्ञात कर लेते हैं। कल्पित माध्य से प्रत्येक पद-मूल्य के विचलनों के योग को पदों की संख्या से भाग देते हैं। इस प्रकार जो भागफल प्राप्त होता है यदि वह धनात्मक (+) धनात्मक या ऋणात्मक विचलन ज्ञात कर लेते हैं। कल्पित माध्य से प्रत्येक पद-मूल्य के विचलनों के योग को पदों की संख्या से भाग देते हैं। इस प्रकार जो भागफल प्राप्त होता है यदि वह धनात्मक (+) होता है तो उसे कल्पित माध्य में जोड़ देते हैं और यदि ऋणात्मक (-) होता है तो उसे कल्पित माध्य से घटा देते हैं। जो मूल्य प्राप्त होता है वही समान्तर माध्य होता है। यदि समंकों का मूल्य बड़ा हो तथा समंकों की संख्या भी अधिक हो तो इस विधि का प्रयोग उचित होता है, क्योंकि गणना करने में समय व श्रम का कम व्यय होता है।

विशेष – समंक तीन प्रकार की श्रेणियों में मिल सकते हैं

  1. व्यक्तिगत श्रेणी (Individual Series) में,
  2. खण्डित श्रेणी (Discrete Series) में तथा
  3. सतत् (अखण्डित) श्रेणी (Continuous Series) में। प्रत्येक प्रकार की श्रेणी का समान्तर मध्य प्रत्यक्ष या परोक्ष दोनों ही विधियों से ज्ञात किया जा सकता है।

व्यक्तिगत श्रेणी में समान्तर माध्य की गणना

(अ) प्रत्यक्ष विधि – व्यक्तिगत श्रेणी में सभी पदों के मूल्यों को जोड़कर, कुल योग को पदों की संख्या से भाग देते हैं।
सूत्र रूप में:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 2
यहाँ, [latex]\overline { X }[/latex] संकेताक्षर का प्रयोग सरल समान्तर माध्य के लिए है। x1, x2, x3, x4, आदि व्यक्तिगत पद-मूल्य हैं तथा n पदों की संख्या है।
Σ(Sigma) ग्रीक भाषा का अक्षर है, जिसका अर्थ दिये गये समस्त पद-मूल्यों का योग है।

(ब) अप्रत्यक्ष विधि या लघु रीति – अप्रत्यक्ष विधि को कल्पित माध्य रीति भी कहते हैं। इसमें दिये हुए पद-मूल्यों में से किसी एक को अथवा पद-मूल्यों में से भिन्न किसी दूसरी संख्या को कल्पित माध्य मान लेते हैं, फिर निम्नलिखित क्रियाएँ करनी पड़ती हैं
सूत्र [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma dx }{ n } [/latex]
यहाँ
n A = offrea FTET (Assumed Mean)
Σdx = कल्पित माध्य से विचलन (Deviations from Assumed Mean)
n = पदों की संख्या

उदाहरण 1
एक कक्षा के 12 विद्यार्थियों के भार सम्बन्धी ऑकड़े निम्नलिखित हैं। प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य की गणना कीजिए
भार (किग्रा में) : 45         42       47        55      58        60          61       44      49         52         48        45
हल:
समान्तर माध्य की गणना (प्रत्यक्ष विधि से)
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 3

हल:
समान्तर माध्य की गणना (अप्रत्यक्ष विधि से)
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 4

खण्डित श्रेणी में समान्तर साध्य की गणना
खण्डित श्रेणी में प्रत्येक पद-मूल्य की तत्सम्बन्धी आवृत्तियाँ दी हुई रहती हैं। इस श्रेणी में भी समान्तर माध्य दोनों विधियों से ज्ञात किया जा सकता है।

(अ) प्रत्यक्ष विधि द्वारा – खण्डित श्रेणी में प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए पद-मूल्यों को सम्बन्धित आवृत्तियों से गुणा करके गुणनफलों के योग में कुल आवृत्तियों का भाग दे देते हैं।
सूत्र [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma fx }{ n } [/latex]
इस सूत्र में- fx = आवृत्ति का उसके मूल्य का गुणनफल।
Σfx = सभी गुणनफलों का योग।
n = आवृत्तियों का योग अर्थात् Σf

(ब) अप्रत्यक्ष (लघु) विधि – कल्पित माध्य से पद-मूल्यों का विचलन निकालकर सम्बन्धित आवृत्तियों से गुणा करते हैं। गुणनफलों के योग में कुल आवृत्तियों का भाग देने पर प्राप्त भागफल यदि धनात्मक है तो उसे कल्पित माध्य में जोड़ देते हैं और यदि ऋणात्मक है तो उसे कल्पित माध्य से घटा देते हैं। इस प्रकार समान्तर माध्य ज्ञात हो जाता है।
सूत्र [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma fdx }{ n } [/latex]
यहाँ A = कल्पित माध्य;
Σfdx = कल्पित माध्य से पद-मूल्यों के विचलनों व आवृत्तियों के गुणनफल का योग;
n = पदों की संख्या।

उदाहरण 2
निम्नांकित श्रेणी के समान्तर माध्य की गणना प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रीति से कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 5
हल:
प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 6
अप्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 7

सतत या अखण्डित श्रेणी में समान्तर माध्य की गणना
सतत् श्रेणी में मूल्य (x) वर्गों में दिये हुए रहते हैं; अतः सर्वप्रथम प्रत्येक वर्गान्तर का मध्य बिन्दु (mid point) या मध्य मूल्य (mid value) ज्ञात करते हैं। यह मध्य मूल्य M.V. को x यानि पद-मूल्य मानकर आगे की गणना की जाती है। इस प्रकार सतत् श्रेणी खण्डित श्रेणी में परिवर्तित हो जाती है। इसके बाद वे सभी क्रियाएँ करनी पड़ती हैं जो खण्डित श्रेणी में की जाती हैं। सतत् श्रेणी में समान्तर माध्य ‘प्रत्यक्ष विधि तथा ‘लघु विधि’ दोनों प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है।

(अ) प्रत्यक्ष विधि – सतत् श्रेणी में प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए वर्गों के ‘मध्य मूल्य निकाले जाते हैं। तत्पश्चात् उनको आवृत्तियों (f) से गुणा करते हैं। गुणनफल के योग में
आवृत्तियों के योग से भाग दे देते हैं।
सूत्र [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma fx }{ n } [/latex]
इस सूत्र में – fx = आवृत्ति का सम्बन्धित मध्य मूल्य से गुणनफल।
Σfx = सभी गुणनफलों का योग।
n = आवृत्तियों का योग अर्थात् Σf ।

(ब) अप्रत्यक्ष या लघु विधि – सतत् श्रेणी में लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात करना प्रत्यक्ष विधि की अपेक्षा सरल होता है। लघु विधि में समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित क्रियाएँ करनी पड़ती हैं

  1. सर्वप्रथम वर्गान्तरों के मध्य मूल्य ज्ञात करते हैं।
  2. मध्य मूल्य में से एक मूल्य या कोई अन्य कल्पित माध्य (A) मान लिया जाता है।
  3. कल्पित माध्य को प्रत्येक मूल्य में से घटाकर विचलन (dx) ज्ञात करते हैं।
  4. dx को तत्सम्बन्धी आवृत्तियों से गुणा कर fdx ज्ञात करते हैं।
  5. गुणनफलों का योग करके Σfdx ज्ञात करते हैं।
  6. समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं

सूत्र- [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma fdx }{ n } [/latex]
यहाँ, A = कल्पित माध्य;
fdx = कल्पित माध्य से विचलन X आवृत्ति;
Σfdx = आवृत्ति तथा विचलन के गुणनफल का योग;
n = पदों की संख्या।

उदाहरण 3
निम्नलिखित तालिका में दिये गये आँकड़ों के आधार पर समान्तर माध्य की गणना प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रीति से कीजिए विद्यार्थियों की संख्या
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 8
हल:
प्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 9
अप्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 10
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 11

संचयी आवृत्तियाँ दिये रहने पर समान्तर माध्य की गणना
सतत् श्रेणी में संचयी आवृत्तियाँ दो प्रकार से हो सकती हैं
(1) ‘से अधिक’ तथा (2) ‘से कम। दोनों प्रकार से दी गयी संचयी आवृत्तियों में समान्तर माध्य की गणना उदाहरण 4 तथा 5 द्वारा स्पष्ट की जा रही है।

उदाहरण 4
निम्नलिखित आवृत्ति वितरण से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 86
हल:
उपर्युक्त प्रश्न ‘से अधिक के आधार पर संचयी आवृत्ति में दिया हुआ है। इसमें वर्गों की निम्न सीमाएँ दी गयी हैं; अत: इसे सर्वप्रथम सतत् श्रेणी में बदलेंगे। श्रेणी को देखने से ज्ञात होता है कि श्रेणी में वर्गान्तर 10 का है। अत: पहला वर्ग 10-20 का बनेगा तथा पहले संचयी आवृत्ति में से अगली संचयी आवृत्ति को घटाते जाएँगे, अर्थात् संचयी आवृत्ति से सामान्य आवृत्ति बनाएँगे; अब साधारण श्रेणी में प्रश्न निम्नलिखित प्रकार से बनेगा
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 12
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 13
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 14

उदाहरण 5
निम्नलिखित आवृत्ति-वितरण से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 15
हल:
उपर्युक्त प्रश्न ‘से कम के आधार पर संचयी आवृत्ति में दिया हुआ है। इसमें वर्गान्तर की उच्च सीमाएँ दी हैं। हम देखते हैं कि श्रेणी के प्रत्येक वर्ग में अन्तर 10 का है। सर्वप्रथम हम इसे सतत् श्रेणी में बदलेंगे। हमारा पहला वर्ग 10-20 का होगा। प्रत्येक वर्ग की आवृत्ति ज्ञात करने के लिए अगले वर्ग की संचयी आवृत्ति में से पहले वर्ग की संचयी आवृत्ति घटा देंगे। सतत् श्रेणी में प्रश्न निम्नलिखित प्रकार से बनेगा
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 16
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 17

उदाहरण 6
निम्नलिखित श्रेणी से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 18
हल:
विशेष – समानान्तर माध्य ज्ञात करने की दोनों विधियाँ (प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष) इस प्रश्न के हल हेतु दर्शायी गयी हैं
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 19

विशेष – समान्तर माध्य ज्ञात करने की यह कोई भिन्न विधि नहीं है, वरन् लघु विधि की सहायक विधि ही है। इस विधि में कल्पित माध्य से अन्तर की संख्याओं को किसी उभयनिष्ठ संख्या से भाग दे दिया जाता है, जिससे पद-विचलन बहुत छोटे हो जाते हैं। इस प्रकार इन छोटे पद-विचलनों में उनकी आवृत्तियों से गुणा करने पर कुल विचलन ज्ञात हो जाते हैं। अन्त में विचलनों के योग में उक्त उभयनिष्ठ संख्या का गुणा कर दिया जाता है। शेष विधि वही रहती है जिसे लघु विधि के अन्तर्गत समझाया गया है। चिह्नों के अर्थ भी वही होते हैं जिन्हें लघु रीति के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

उदाहरण 7
एक परीक्षा में 50 विद्यार्थियों द्वारा प्राप्तांक नीचे तालिका में दिये गये हैं। अंकगणितीय माध्य की गणना कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 20
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 21
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 22

उदाहरण 8
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 23
या
निम्न समंकों में से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए [2014]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 24
या
निम्नलिखित श्रेणी के समान्तर माध्य की गणना कीजिए [2014]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 25
या
निम्नलिखित आवृत्ति वितरण में समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए [2014]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 26
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 27
प्रश्न 4
भारित समान्तर माध्य क्या है? भारित समान्तर माध्य ज्ञात करने की विधि उदाहरण के द्वारा समझाइए।
उत्तर:
आर्थिक समस्याओं के अध्ययन में भारित समान्तर माध्य का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। यह वह माध्य होता है जिसमें पदों को उनके सापेक्षिक महत्त्व के अनुसार भार देकर माध्य की गणना की जाती है। अनेक स्थितियों में तुलना करने के लिए भारित समान्तर माध्य ही उपयुक्त विधि होती है। उदाहरणार्थ-एक कारखाने के कर्मचारियों की औसत आय ज्ञात करने के लिए व्यवस्थापक के वेतन तथा कर्मचारियों के वेतन को समान महत्त्व देना अनुचित होगा; क्योंकि कारखाने में व्यवस्थापक तो एक होगा तथा कर्मचारियों की संख्या अधिक होगी। उचित औसत आय तब ही प्राप्त हो सकती है, जब हम व्यवस्थापक तथा कर्मचारियों को उनके महत्त्व के अनुसार भार दें। इसके लिए भारित समान्तर माध्य ही उपयुक्त है।

भारित समान्तर माध्य ज्ञात करने की विधियाँ – भारित समान्तर माध्य भी प्रत्यक्ष विधि एवं अप्रत्यक्ष या लघु विधि से ज्ञात किया जा सकता है

(क) प्रत्यक्ष विधि से भारित समान्तर माध्य – (1) प्रत्येक पद को उसके महत्त्व के आधार पर भार (w) प्रदान किया जाता है।
(2) प्रत्येक मूल्य (x) को उसके भार (W) से गुणा करके गुणनफल (Wx) ज्ञात करते हैं। इसके बाद गुणनफलों का योग करके ΣWx निकालते हैं। ।
(3) गुणनफलों (Σwx) में भारों के योग (ΣW) का भाग देकर समान्तर माध्य निकालते हैं। सूत्र रूप में
[latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma Wx }{ \Sigma W } [/latex]
यहाँ, [latex]\overline { X }[/latex] w = भारित समान्तर माध्य है।
ΣWx = मूल्यों तथा भारों के गुणनफलों का योग है।
Σw = भारों का योग है।

(ख) लघु रीति से भारित समान्तर माध्य – इस विधि द्वारा भारित समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित क्रियाएँ करनी पड़ती हैं

  1. प्रत्येक पद को महत्त्व के अनुसार भार देना।
  2. कल्पित माध्य (A) मानकर मूल्यों से विचलन (dx) ज्ञात करना।
  3. विचलनों को तत्सम्बन्धी भार से गुणा करके गुणनफल ज्ञात करना तथा उनका योग करना। इस प्रकार ΣWdx ज्ञात हो जाएगा।
  4. निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करके भारित समान्तर माध्य ज्ञात किया जाएगा

[latex]\overline { X }[/latex]W = A + [latex]\frac { \Sigma Wdx }{ \Sigma W } [/latex]
यहाँ परे, [latex]\overline { X }[/latex]W = भारित समान्तर माध्य;
A = कल्पित माध्य।
ΣWdx = कल्पित माध्य से प्राप्त विचलनों और तत्सम्बन्धी भारों के गुणनफल का योग।
Σw = भारों का योग।

उदाहरण 9
एक व्यक्ति ने निम्नलिखित वस्तुएँ विविध मूल्यों पर नीचे दी गयी तालिका के अनुसार खरीदी हैं। उनका भारित समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 28
हल:
प्रत्यक्ष विधि द्वारा भारित समान्तर माध्य की गणना।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 29
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 30
लघु रीति द्वारा भारित समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 31

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
निम्नांकित समंकों की सहायता से प्राप्तांकों का समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए। प्रश्न-पत्र के अधिकतम अंक 50 थे
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 32
हल:
[ संकेत–उपर्युक्त प्रश्न व्यक्तिगत श्रेणी के अन्तर्गत आता है। ] ।
समान्तर माध्य सूत्र
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 33

प्रश्न 2
निम्नलिखित आँकड़ों से लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
7, 10, 13, 18, 24, 30
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 34
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 35

प्रश्न 3
उत्तर प्रदेश सरकार के निम्नलिखित वार्षिक व्यय के माध्य की गणना कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 36
हल:
समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 37
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 38

प्रश्न 4
लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 39
हल:
लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 40

प्रश्न 5
8 व्यक्तियों के समूह के मासिक व्यय का समान्तर माध्य ₹5,000 है। 12 व्यक्तियों के एक समूह का समान्तर माध्य ₹6,000 है। सभी 20 व्यक्तियों के मासिक व्यय का समान्तर माध्य ज्ञात करें।
हल:
समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 41
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 42

प्रश्न 6
एक शहर के 100 परिवारों की मासिक आय निम्नवत है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 43
उपर्युक्त आँकड़ों की सहायता से इस शहर के परिवारों की मासिक आय का समान्तर माध्य लघु विधि द्वारा ज्ञात कीजिए।
हल:
विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 44

प्रश्न 7
निम्नांकित श्रेणी से समान्तर माध्य की गणना प्रत्यक्ष तथा लघु दोनों रीति से कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 45
हल:
प्रत्यक्ष एवं लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 46
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 47
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 48

प्रश्न 8
निम्नलिखित का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विधियों द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 49
हल:
संकेत – सर्वप्रथम वर्गान्तर समान अन्तराल के बनाने होंगे; क्योकि पहले वर्गान्तर में 1 का अन्तर है, दूसरे व तीसरे में 2 का तथा चौथे व पाँचवें में 5 का। अतः सुविधा के लिए पहले, दूसरे व तीसरे को मिलाकर एक वर्गान्तर बना लेंगे, जिसमें 5 का अन्तर होगा।

प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 50
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 51
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 52

प्रश्न 9
निम्नांकित का लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 53
हल:
लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 54
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 55

प्रश्न 10
क, ख और ग आगरा के किसी इण्टरमीडिएट कॉलेज के परीक्षार्थी हैं। इन्होंने निम्नलिखित प्रश्न का समान्तर माध्य निकाला। तीनों परीक्षार्थियों के उत्तर एक-दूसरे से भिन्न थे। क का उत्तर 347, जबकि ख और ग के उत्तर क्रमशः 35 और 37 थे। समान्तर माध्य की गणना करके ज्ञात कीजिए कि इन परीक्षार्थियों में किसका उत्तर सही है?
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 56
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 57

प्रश्न 11
एक विद्यार्थी के पाँच विषयों में प्राप्त अंकों का समान्तर माध्य 40 है। छठे विषय में प्राप्त अंकों को सम्मिलित कर लेने पर समान्तर माध्य 46 हो जाता है। छठे विषय में उसे कितने अंक मिले?
हल:
पाँच विषयों में प्राप्त अंकों का समान्तर माध्य = 40
पाँच विषयों में कुल प्राप्त अंक = 40 x 5 = 200
छः विषयों में प्राप्त अंकों का समान्तर माध्य = 46
छः विषयों में कुल प्राप्त अंक। = 46 x 6 = 276
छठे विषय में प्राप्तांक = छः विषयों के कुल प्राप्तांक-पाँच विषयों के कुल प्राप्तांक
छठे विषय के प्राप्तांक = 276 – 200 = 76

प्रश्न 12
निम्नलिखित आँकड़ों से लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 58
हल:
लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 59

प्रश्न 13
निम्नलिखित आँकड़ों से प्राप्तांकों का समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 60
हल:
सर्वप्रथम वर्गान्तर को अपवर्जी श्रेणी बनाकर तथा संचयी आवृत्ति को सामान्य आवृत्ति में बदल लेंगे, तत्पश्चात् प्रश्न को अग्रवत् हल करेंगे
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 61

प्रश्न 14
10 छात्रों के अंक इस प्रकार हैं
10, 28, 32, 12, 18, 20, 25, 15, 26, 14. प्रत्यक्ष विधि से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए।
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 62

प्रश्न 15
निम्नलिखित समंकों में से प्रत्यक्ष रीति द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 63
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 64
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 65

प्रश्न 16
निम्नलिखित समंकों में से अप्रत्यक्ष विधि से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 66
हल:
समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 67

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
समान्तर माध्य की गणना हेतु व्यक्तिगत श्रेणी की प्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 68

प्रश्न 2
एक आदर्श माध्य के गुण बताइए।
उत्तर:
एक आदर्श माध्य में निम्नलिखित आवश्यक गुण होने चाहिए

  1. स्पष्ट परिभाषा।
  2. श्रेणी के सभी पदों पर आधारित।
  3. माध्य सरल होना चाहिए।
  4. अंकगणितीय एवं बीजगणितीय विवेचन सम्भव।
  5. उच्चावचनों का कम प्रभाव।
  6. माध्य से निकाली गयी संख्या निश्चित एवं निरपेक्ष होनी चाहिए।

प्रश्न 3
एक व्यक्ति की मासिक आय रुपये में नीचे दी गयी है। प्रत्यक्ष विधि से समान्तर माध्य कीजिए [2008]
1400, 1350, 1500, 1750, 1100
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 69

प्रश्न 4
निम्नलिखित आवृत्ति सारणी के आधार पर छात्रों को प्राप्त अंकों का समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए [2007]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 70
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 71

निश्चित उतरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
समान्तर माध्य किसे कहते हैं? [2008, 11, 12, 13, 15]
या
समान्तर माध्य को परिभाषित कीजिए। [2013, 14]
उत्तर:
समान्तर माध्य वह मान है जो दिये हुए पदों के योगफल में पदों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होता है।
या
वह संख्या जो किसी समूह विशेष के सभी आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करती है, उस समूह का समान्तर माध्य कहलाती है।

प्रश्न 2
समान्तर माध्य कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
समान्तर माध्य दो प्रकार के होते हैं

  1. सरल समान्तर माध्य तथा
  2. भारित समान्तर माध्य।

प्रश्न 3
सरल समान्तर माध्य से क्या अभिप्राय होता है?
उत्तर:
सरल समान्तर माध्य की गणना पदों के योगफल में पदों की संख्या से भाग देकर की जाती है। सरल समान्तर माध्य में समूह के सभी पदों या समंकों को समान महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 4
भारित समान्तर माध्य से क्या अभिप्राय होता है? [2009, 11]
उत्तर:
भारित समान्तर माध्य में प्रत्येक पद को उसके महत्त्व के अनुसार कम या अधिक भार प्रदान किया जाता है।
पद मूल्यों को उसके महत्त्व के अनुसार भार देकर समान्तर माध्य ज्ञात करना भारित समान्तर माध्य है।

प्रश्न 5
समान्तर माध्य की तीन सीमाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(1) समान्तर माध्य की गणना करते समय सभी समंक समान गुण वाले होने चाहिए।
(2) उच्चावचनों का कम प्रभाव होना चाहिए।
(3) समान्तर माध्य की गणना योग्य एवं कुशल व्यक्ति के द्वारा की जानी चाहिए जिससे कि समान्तर माध्य शुद्ध प्राप्त हो सके।

प्रश्न 6
अप्रत्यक्ष विधि से समान्तर माध्य ज्ञात करने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 72

प्रश्न 7
समान्तर माध्य के दो गुण बताइए।
उत्तर:
(1) समान्तर माध्य में सरलता का गुण पाया जाता है।
(2) समान्तर माध्य सभी पदों का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न 8
समान्तर माध्य के दो दोष लिखिए।
उत्तर:
(1) समान्तर माध्य ज्ञात करने में सभी पदों को महत्त्व दिया जाता है। किन्तु बड़े मूल्यों के पद समान्तर माध्य को अधिक प्रभावित करते हैं।
(2) समान्तर माध्य द्वारा कभी-कभी अशुद्ध परिणाम भी निकल जाते हैं।

प्रश्न 9
समान्तर माध्य की गणना हेतु व्यक्तिगत श्रेणी की प्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 73

प्रश्न 10
समान्तर माध्य की गणना हेतु व्यक्तिगत श्रेणी की अप्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए। [2009,11]
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 74

प्रश्न 11
समान्तर माध्य की गणना हेतु खण्डित श्रेणी की प्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए। [2009, 11]
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 75

प्रश्न 12
समान्तर माध्य की गणना हेतु खण्डित श्रेणी की अप्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 76

प्रश्न 13
भारित समान्तर माध्य की गणना हेतु लघु विधि का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
भारित समान्तर माध्य का लघु विधि का सूत्र
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 77

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
केन्द्रीय प्रवृत्ति की एक माप है
(क) समान्तर माध्य
(ख) माध्य विचलन
(ग) प्रमाप विचलन
(घ) सह-सम्बन्ध
उत्तर:
(क) समान्तर माध्य।

प्रश्न 2
समान्तर माध्य का मूल्य श्रेणी के सभी चरों के मूल्य के
(क) योग के बराबर होता है।
(ख) वर्गों के योग के बराबर होता है।
(ग) योग में चरों की संख्या से गुणा करने पर प्राप्त मूल्य के बराबर होता है।
(घ) योग में चरों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त मूल्य के बराबर होता है ।
उत्तर:
(घ) योग में चरों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त मूल्य के बराबर होता है।

प्रश्न 3
खण्डित या विच्छिन्न श्रेणी में प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य निकालने का सूत्र है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 78
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 79

प्रश्न 4
खण्डित या विच्छिन्न श्रेणी में अप्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य निकालने का सूत्र है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 79
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 81

प्रश्न 5
अविच्छिन्न अथवा सतत् श्रेणी में प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य निकालने का सूत्र है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 82
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 83

प्रश्न 6
अविच्छिन्न अथवा सतत् श्रेणी में अप्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य निकालने का सूत्र है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 84
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 85

प्रश्न 7
53 छात्रों के प्राप्तांकों का समान्तर माध्य 53 है। यदि प्रत्येक छात्र के प्राप्तांकों में 3 की वृद्धि कर दी जाए तो प्राप्तांकों का समान्तर माध्य
(क) 53 +[latex]\frac { 3 }{ 53 }[/latex] = 53 [latex]\frac { 3 }{ 53 }[/latex] हो जाएगा।
(ख) 53 + 3 = 56 हो जाएगा।
(ग) 53 +[latex]\frac { 3 }{ 4 }[/latex] = 54[latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] हो जाएगा।
(घ) 53 + 32 = 62 हो जाएगा।
उत्तर:
(ख) 53 +3 = 56 हो जाएगा।

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