UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 11 Concept of Reservation: Necessity, Scope, and Results

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter Chapter 11
Chapter Name Concept of Reservation: Necessity, Scope, and Results
(आरक्षण की अवधारणा-आवश्यकता, क्षेत्र तथा परिणाम)
Number of Questions Solved 38
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 11 Concept of Reservation: Necessity, Scope, and Results (आरक्षण की अवधारणा-आवश्यकता, क्षेत्र तथा परिणाम)

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
आरक्षण से आप क्या समझते हैं? भारत में आरक्षण व्यवस्था की आवश्यकता तथा प्रभाव पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए। [2016]
या
भारत में आरक्षण की आवश्यकता तथा प्रभाव का परीक्षण कीजिए। [2007]
या
आरक्षण क्या है? आरक्षण के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए। [2011]
या
भारत में आरक्षण नीति तथा आरक्षण के परिणामों का परीक्षण कीजिए। [2008]
उत्तर
आरक्षण का अर्थ
यदि किसी राजव्यवस्था और राजव्यवस्था से जुड़े समाज में समानता को न केवल सिद्धान्त, वरन् व्यवहार में भी लगभग सम्पूर्ण अंशों में मान्यता प्राप्त हो, तो आरक्षण की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन व्यवहार में स्थिति यह है कि लोकतान्त्रिक राजव्यवस्थाओं में भी समानता को केवल सिद्धान्त में ही स्वीकार किया गया है, व्यवहार में अधिकांश अंशों में असमानता की स्थिति विद्यमान है। व्यवहार में विद्यमान यह स्थिति ही आरक्षण की आवश्यकता को जन्म देती है।

आरक्षण शब्द अंग्रेजी शब्द ‘रिजर्वेशन’ (Reservation) का हिन्दी रूपान्तर है। इसका शाब्दिक अर्थ है-स्थिर रखना, सुरक्षित करना। लेकिन राजनीतिक सन्दर्भ में इस शब्द का अर्थ है-समाज के आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक रूप से पिछड़े वर्गों के उत्थान तथा कल्याण के लिए सरकार के द्वारा ऐसी नीतियों, कानूनों तथा कार्यक्रमों को प्रारम्भ करना जिससे वे समाज तथा राष्ट्र की मुख्य धारा से अपने आपको सम्बद्ध कर सकें। आरक्षण के द्वारा इन वर्गों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं, जिससे कि वे समाज के अन्य वर्गों की बराबरी कर सकें।

भारतीय राजनीति में आरक्षण’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड मिण्टो ने 1909 ई० में किया था। सन् 1909 ई० में भारतीय शासन अधिनियम पारित किया गया था, जिसे मार्ले-मिण्टो सुधार के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार ‘आरक्षण व्यवस्था अंग्रेजों की कूटनीतिक देन है, जिसका एकमात्र उद्देश्य भारत में अंग्रेजी राजे को दीर्घकाल तक बनाए रखना था। वर्तमान समय में आरक्षण व्यवस्था भारतीय राजनीति का एक अभिन्न अंग बन गई है। भारत में आरक्षण की व्यवस्था को स्वतन्त्रता की प्राप्ति से पहले ब्रिटिश सरकार ने कुछ निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए लागू किया था। उसके पश्चात् धीरे-धीरे आरक्षण की माँग का निरन्तर विस्तार होता गया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् जाति के आधार पर समाज की अन्य पिछड़ी जातियों (27%), अनुसूचित जातियों (15%) तथा जनजातियों (7.5%) को सरकारी सेवाओं, शिक्षण संस्थाओं, केन्द्रीय विधायिका, राज्य विधानमण्डलों तथा स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में भी सीटों का आरक्षण दिया गया है। भारत में प्रथम बार लिंग के आधार पर भी स्थान सुरक्षित किए गए हैं।

आरक्षण की आवश्यकता
1. सामाजिक और क्षेत्रीय विषमताओं के कारण आरक्षण आवश्यक – एक देश के अन्तर्गत जब कुछ वर्ग और क्षेत्र विकास की दृष्टि से बहुत अधिक पिछड़े हुए होते हैं, तब ये वर्ग और क्षेत्र अपना विकास तभी कर पाते हैं, समाज के अन्य वर्गों के समान स्तर पर तभी आ पाते हैं, जब उन्हें प्रतिनिधित्व और सेवाओं के क्षेत्र में विशेष सुविधाएँ, विशेष अवसर दिए जाएँ। इस प्रकार की विशेष सुविधाएँ और विशेष अवसर ही आरक्षण है। भारत में कुछ वर्ग (दलित जातियाँ) और कुछ क्षेत्र (जनजाति क्षेत्र) बहुत ही अधिक पिछड़े हुए हैं, अतः उनके लिए आरक्षण आवश्यक हो जाता है।

2. आरक्षण लोकतन्त्र और समानता के अनुकूल – लोकतन्त्र की माँग है कि समाज के सभी वर्गों को विकास के समुचित अवसर प्रदान किए जाएँ, लेकिन यह लोकतान्त्रिक समानता तभी वास्तविकता का रूप ले पाती है, जब पिछड़े हुए वर्गों को अपने जीवन और समाज में आगे बढ़ने के लिए विशेष अवसर दिए जाएँ। आरक्षण यही कार्य करता है तथा इस दृष्टि से आरक्षण लोकतन्त्र और समानता के अनुकूल है, प्रतिकूल नहीं। आरक्षण वह साधन है जो लोकतान्त्रिक समानता को मात्र कागजी नहीं, वरन् वास्तविकता का रूप देने का प्रयत्न करता है।

3. सामाजिक न्याय के लक्ष्य की प्राप्ति का साधन – सामाजिक न्याय लोकतन्त्र का एक आवश्यक अंग है और सामाजिक न्याय की माँग है कि राज्य के दुर्बल वर्गों को, अन्य व्यक्तियों की तुलना में कुछ विशेष अवसर और सुविधाएँ प्राप्त हों। यह आरक्षण के आधार पर ही सम्भव हो सकता है। इस दृष्टि से आरक्षण सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण साधन बन जाता है। इस बात को दृष्टि में रखते हुए ही भारत सहित विश्व के कुछ अन्य देशों में आरक्षण की व्यवस्था को अपनाया गया है।

4. भारत की परम्परागत सामाजिक व्यवस्था की दृष्टि से आरक्षण आवश्यक – भारत में हिन्दू वर्ग के अनुयायी परम्परागत रूप में दो वर्गों में विभाजित रहे हैं। प्रथम, सवर्ण हिन्दू अर्थात् उच्च जातियाँ और द्वितीय, निम्न जातियाँ। सवर्ण हिन्दुओं द्वारा तथाकथित निम्न जातियों का सैकड़ों वर्षों से शोषण किया जाता रहा है, उन्हें अपवित्र मानते हुए उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता रहा है। इस पृष्ठभूमि में हिन्दू समाज की निम्न जातियों के पिछड़ेपन का दायित्व समाज पर आता है और समाज के इन वर्गों को विशेष सुविधाएँ और अवसर प्रदान करने का औचित्य है।

5. क्षेत्रीय विषमताओं के कारण आरक्षण की आवश्यकता – क्षेत्र और जनसंख्या की दृष्टि से विशाल और विविधताओं से भरे इस देश में जातीय विषमताओं के समान ही क्षेत्रीय विषमताओं की स्थिति भी रही है। भारतीय संघ के विविध राज्यों में ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जहाँ स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय तक शहरी जीवन की सुविधाओं ने भी प्रवेश नहीं किया था। स्वाभाविक रूप से इन क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्ति घोर पिछड़ेपन में रहते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। इन क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों को आदिवासी, वनवासी, गिरिजन एवं जनजाति आदि नामों से पुकारा जाता रहा है। इन क्षेत्रों के घोर पिछड़ेपन का दायित्व भी सम्पूर्ण समाज और राजव्यवस्था पर आता है। अत: संविधान में इन्हें अनुसूचित जनजातियों का नाम दिया गया तथा इन्हें प्रतिनिधि संस्थाओं और सेवाओं में आरक्षण की सुविधा तथा विकास के लिए अन्य कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान की गईं।

अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान के भाग 16 ‘कुछ वर्गों के सम्बन्ध में विशेष उपबन्ध’ के अन्तर्गत की गई है तथा संविधान के इस भाग 16 का आधार संविधान का अनुच्छेद 46 है। अनुच्छेद 46 में कहा गया है-
“राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के विशिष्टतया अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के शिक्षा तथा अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा करेगा।’ संविधान जनता के दुर्बल वर्गों के शिक्षा तथा अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि और सामाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा की बात करता है और जनता के दुर्बल वर्गों में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों का उल्लेख करता है।

इस प्रकार संविधान जाति के आधार पर आरक्षण की अनुमति प्रदान करता है, लेकिन धर्म के आधार पर आरक्षण की कोई अनुमति प्रदान नहीं करता। भारतीय समाज के हिन्दू वर्ग में परम्परागत रूप से जाति व्यवस्था की जो स्थिति रही है, उसमें वर्ग के साथ जाति के जुड़ने और जातिगत आधार पर आरक्षण का औचित्य है।

सामाजिक न्याय लोकतान्त्रिक व्यवस्था का एक आवश्यक अंग है और सामाजिक न्याय की माँग है कि समाज के दुर्बल वर्गों को अन्य व्यक्तियों की तुलना में विकास के लिए कुछ विशेष अवसर और सुविधाएँ प्राप्त हों। यह आरक्षण के आधार पर सम्भव हो सकता है, इस दृष्टि से आरक्षण सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण साधन बन जाता है। आरक्षण के कुछ प्रमुख परिणाम इस प्रकार हैं-

1. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की स्थिति में कुछ सुधार, लेकिन अपेक्षित सुधार नहीं – आरक्षण की इस व्यवस्था से अनुसूचित जातियों और जनजातियों की स्थिति में कुछ सुधार अवश्य ही हुआ है। आज भारत की लोकसभा में अनुसूचित जातियों के 79 से अधिक और जनजातियों के 42 प्रतिनिधि हैं। यह स्थिति इन जातियों के लिए अच्छी है, लोकसभा या संसद के लिए भी उचित स्थिति है। यदि आरक्षण की व्यवस्था नहीं होती, तो इन जातियों के कुल मिलाकर इसके आधी संख्या के प्रतिनिधि भी लोकसभा के लिए निर्वाचित नहीं होते और ऐसी स्थिति में भारत की संसद या लोकसभा को भारत की समस्त जनता को प्रतिनिधि कह पाना बहुत कठिन हो जाता। लोक-सेवाओं, केन्द्रीय तथा राज्य सरकार के अधीन उच्च स्तर की लोक-सेवाओं में भी इन जातियों के सदस्यों ने पर्याप्त संख्या में प्रवेश पाया है। इसी प्रकार पिछड़ी जातियों को जो आरक्षण प्रदान किया गया है, उससे सेवाओं में इन जातियों के सदस्यों की संख्या में वृद्धि हुई है। प्रतिनिधि संस्थाओं और सेवाओं में यह स्थिति लोकतान्त्रिक व्यवस्था की दृष्टि से शुभ है।

2. इन जातियों में चेतना का उदय – आरक्षण की व्यवस्था और इस व्यवस्था से प्राप्त लाभों के परिणामस्वरूप अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों में चेतना का उदय हुआ है, जहाँ चेतना पहले से कुछ अंशों में विद्यमान थी, वहाँ चेतना में वृद्धि हुई है।

3. आरक्षण जातियों के आपसी मेल-मिलाप और समतावादी समाज की स्थापना में बाधक – अनुसूचित जातियों और जनजातियों को प्रदान की गयी विशेष सुविधाओं का मूल उद्देश्य इन जातियों को विकास के मार्ग पर आगे बढ़ाकर उन्हें राष्ट्र और समाज की मुख्य धारा में मिलाना था, परन्तु आरक्षण की यह व्यवस्था सभी जातियों के आपसी मेल-मिलाप में बाधा बनती जा रही है। हिन्दू समाज की तथाकथित उच्च जातियों में अनुसूचित जातियों के प्रति नवीन द्वेष की भावना उत्पन्न होती जा रही है और अनुसूचित जातियाँ सामाजिक मेल-मिलाप की चिन्ता न कर अपने इन विशेष अधिकारों को बनाये रखना चाहती हैं।

4. अन्य जातियों में आरक्षण का लाभ पाने की होड़ – अब तक जो जातियाँ आरक्षण के लाभ से वंचित हैं, इस सदी के अन्तिम दशक में वे आरक्षण का लाभ प्राप्त करने के प्रबल प्रयत्नों में जुट गयी हैं। इन जातियों के लिए अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों में प्रवेश पाना सरल नहीं है, लेकिन पिछड़े वर्ग या पिछड़ी जातियों की कोई निश्चित परिभाषा कर पाना सम्भव नहीं है; अतः वे अपने आपको विकास और शिक्षा की दृष्टि से पिछड़ी बतलाते हुए माँग कर रही हैं कि उन्हें भी पिछड़े वर्गों में शामिल किया जाना चाहिए। उत्तर भारत के जाट, महाराष्ट्र के मराठा, मध्य प्रदेश के कुर्मी, उत्तर प्रदेश के मुसलमान, गूजर, हरियाणा के सैनी, राजस्थान के मेव, कायमखानी और विश्नोई, आन्ध्र प्रदेश के रेड्डी और कर्नाटक के वोक्कालिंगा पिछड़े वर्गों में शामिल होने की माँग कर रहे हैं तथा सांसदों का एक वर्ग उनकी मॉग का समर्थन कर रहा है।

प्रश्न 2.
सरकारी सेवाओं में जातीय आधार पर आरक्षण के औचित्य का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। [2010]
या
आरक्षण पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए। [2011]
या
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार द्वारा आरक्षण व्यवस्था से सम्बन्धित प्रावधानों का विवेचन कीजिए। [2009]
या
वर्तमान आरक्षण नीति का आधार क्या है? विवेचना कीजिए। [2008]
या
सरकारी सेवाओं में जाति के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था में पदोन्नति (प्रोमोशन) को शामिल करने के औचित्य का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। [2013]
उत्तर
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात आरक्षण के सम्बन्ध में उठाए गए कदम।
भारतीय संविधान समानता एवं भ्रातृत्व (Equality and Fraternity) की अवधारणा पर आधारित है। अतः संविधान निर्माताओं ने यह विचार किया कि यदि समानता को वास्तविकता की स्थिति प्रदान करनी है तो समाज के अछूत, दलित तथा पिछड़े वर्गों को विशेष सुविधाएँ प्रदान करनी होंगी। इन विशेष सुविधाओं के आधार पर ही समाज के ये दलित और पिछड़े वर्ग अन्य वर्गों के समान विकास की स्थिति को प्राप्त कर सकेंगे। आरक्षण के सम्बन्ध में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण प्रावधान किए गए

संविधान में आरक्षण की व्यवस्था
सन् 1950 ई० में भारतीय संविधान को लागू किया गया तथा आरक्षण को संविधान में संवैधानिक आधार प्रदान किया गया। मूल अधिकारों से सम्बन्धित संविधान के भाग ३ अनुच्छेद 16 में स्पष्ट रूप से लिखा गया है-“सबै नागरिकों को सरकारी पदों पर नियुक्ति के समान अवसर प्राप्त होंगे और इस सम्बन्ध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग अथवा जन्म-स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर सरकारी नौकरी अथवा पद प्रदान करने में भेदभाव नहीं किया जाएगा। इस प्रकार से संविधान का यह अनुच्छेद भारत के समस्त नागरिकों को समान रूप से सरकारी नौकरियों में समान अवसर प्रदान करता है। परन्तु इस स्थिति के होते हुए भी सरकार अनुच्छेद 16(4) के अधीन सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए स्थानों का आरक्षण कर सकती है।

संविधान के अध्याय 16 में 13 अनुच्छेदों (अनुच्छेद 330 से 342 तक) के द्वारा कुछ विशेष वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यह व्यवस्था अस्थायी है और इसे संविधान के लागू होने के बाद 10 वर्ष तक अर्थात् 1960 ई० तक बनाए रखने की व्यवस्था की गई थी, परन्तु बाद में संवैधानिक संशोधनों के द्वारा इन विशेष व्यवस्थाओं की अवधि बढ़ा गई। 8वें, 23वें और 45वें संवैधानिक संशोधन में से प्रत्येक के द्वारा आरक्षण की अवधि 10 वर्ष बढ़ाई गई तथा बाद में 62वें संविधान संशोधन (1990 ई०) के आधार पर 25 जनवरी, 2000 ई० तक के लिए बढ़ा दी गई। 79वें संवैधानिक संशोधन अक्टूबर (1999 ई०) के अनुसार अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए संसद तथा राज्य विधानमण्डलों के स्थान आरक्षित रखने की व्यवस्था को 26 जनवरी, 2010 ई० तक के लिए बढ़ा दिया गया जिसे अब अगले और दस वर्षों तक के लिए बढ़ाकर 2020 तक के लिए लागू किया गया है।

संविधान के अध्याय 16 को ‘कुछ वर्गों के सम्बन्ध में विशेष उपबन्ध’ का शीर्षक दिया गया है। और इस अध्याय में आंग्ल-भारतीय समुदाय, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़ी जातियों के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। इन विशेष प्रावधानों के उद्देश्य को संविधान के अनुच्छेद 46 में इस प्रकार स्पष्ट किया गया है-“राज्य जनता के दुर्बल वर्गों, विशेषतया अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी सुरक्षा करेगा।”

आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए आरक्षण सम्बन्धी व्यवस्थाएँ
आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए संविधान में दो प्रकार की आरक्षण सम्बन्धी विशेष व्यवस्थाएँ की गई हैं। प्रथम, संसद तथा राज्य विधानमण्डलों में स्थानों का आरक्षण तथा द्वितीय, सरकारी सेवाओं में विशेष सुविधाएँ। इस वर्ग के लिए सरकारी सेवाओं में विशेष सुविधाएँ अब समाप्त हो गई हैं, लेकिन संसद तथा राज्य विधानमण्डलों में स्थानों के आरक्षण की स्थिति इस वर्ग को अभी तक प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 331 के अन्तर्गत राष्ट्रपति को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि यदि लोकसभा में राष्ट्रपति के विचार में आंग्ल-भारतीय वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त न हुआ हो तो वह लोकसभा में अधिक-से-अधिक 2 आंग्ल-भारतीयों को नियुक्त कर सकता है। अनुच्छेद 333 के अन्तर्गत राज्य के राज्यपाल को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि यदि उसके विचार में राज्य की विधानसभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं हुआ है तो वह एक प्रतिनिधि को मनोनीत कर सकेगा।

अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों की आरक्षण सम्बन्धी व्यवस्थाएँ
अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के सम्बन्ध में प्रमुख रूप से निम्नलिखित व्यवस्थाएं की गई हैं-

1. प्रतिनिधित्व के सम्बन्ध में विशेष व्यवस्था – संविधान में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए जनसंख्या के आधार पर स्थान आरक्षित करने की व्यवस्था की गई है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इन जातियों के उम्मीदवार सुरक्षित स्थानों के अतिरिक्त अन्य निर्वाचन क्षेत्रों से भी चुनाव लड़ सकते हैं। लोकसभा में अनुसूचित जातियों के लिए 79 तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए 40 स्थान सुरक्षित किए गए हैं। राज्य के विधानमण्डलों में भी अनुसूचित जाति तथा जनजाति के उम्मीदवारों के लिए स्थान सुरक्षित किए जाने की व्यवस्था है।

2. सेवाओं तथा शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश हेतु विशेष आरक्षण – संविधान के अनुच्छेद 355 के अन्तर्गत अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के उम्मीदवारों के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों की प्रशासनिक सेवाओं में प्रशासनिक कुशलता के अनुरूप स्थान सुरक्षित रखने की व्यवस्था की गई है। संविधान आरक्षित स्थानों का प्रतिशत एवं समय-सीमा निर्धारित नहीं करता है। इन्हें प्रशासन द्वारा नियमों के अन्तर्गत निर्धारित करने की व्यवस्था की गई है। इन जातियों के लिए शासकीय सेवाओं में प्रतिनिधित्व देने के लिए जो रियायतें प्रदान की गई हैं, उनमें से प्रमुख हैं-आयु सीमा में छूट, योग्यता स्तर में छूट, कार्यकुशलता का निम्नतम स्तर पूरा न करने पर भी उनका चयन, नीचे की श्रेणियों में उनकी नियुक्ति तथा पदोन्नति का विशेष प्रबन्ध। 1950 ई० में गृह मन्त्रालय द्वारा पारित प्रस्ताव के अनुसार इन जातियों के लिए 12.5% से 16% तेक स्थान आरक्षित किए जाने की व्यवस्था थी। परन्तु बाद में यह व्यवस्था की गई कि अनुसूचित जातियों के लिए 15% तथा जनजातियों के लिए 7.5% स्थान आरक्षित किए जाएँगे।

3. विशेष आयोग – इन जातियों के हितों की सुरक्षा के लिए तथा उनसे सम्बन्धित विषयों की जाँच करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 388 में एक विशेष आयोग ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन किए जाने का प्रावधान किया गया है।

4. जाँच आयोग की नियुक्ति – संविधान के अनुच्छेद 340 के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति दो आयोगों की नियुक्ति करेगा। प्रथम अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासन व अनुसूचित जातियों के कल्याण सम्बन्धी मामलों की जाँच करेगा तथा दूसरा पिछड़ी जातियों की शैक्षणिक तथा सामाजिक स्थिति की जाँच करेगा। इसके अतिरिक्त वे आयोग उनकी उन्नति के उपायों की ओर संघ तथा राज्य सरकारों का ध्यान आकर्षित करेंगे। संविधान के द्वारा केन्द्र सरकार को यह अधिकार है कि वह प्रथम आयोग की सिफारिशों पर अमल करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दे। दूसरे आयोग की सिफारिशों को अपनाने के लिए केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को परामर्श तो दे सकती है, परन्तु निर्देश नहीं। उनका पालन करना राज्य सरकारों की इच्छा तथा साधनों पर निर्भर करता है। आयोगों के द्वारा तैयार किए गए प्रतिवेदन संसद के दोनों सदनों के सम्मुख प्रस्तुत किए जाते हैं।

5. कल्याणकारी योजनाओं को लागू करना – संविधान के अनुच्छेद 275 के अनुसार अनुसूचित जातियों के विकास के उद्देश्य से बनाई गई योजनाओं के लिए राज्य सरकारों को विशेष अनुदान देने की व्यवस्था है। अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियाँ दिए जाने, नि:शुल्क शिक्षा देने तथा प्राविधिक एवं व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों में स्थान सुरक्षित रखने का प्रावधान किया गया है। संविधान में यह भी व्यवस्था की गई है कि झारखण्ड, ओडिशा उड़ीसा, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश में जनजातियों के कल्याण के लिए एक मन्त्री होगा, जिसे अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए उत्तरदायी बनाया गया है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए
(क) 1909 ई० का मॉर्ले-मिण्टो सुधार अधिनियम,
(ख) पूना पैक्ट,
(ग) मण्डल आयोग।
उत्तर
(क) मॉर्ले-मिण्टो सुधार अथवा 1909 ई० के अधिनियम में आरक्षण की व्यवस्था
स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व ब्रिटिश शासन के द्वारा धर्म के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी। सर्वप्रथम मॉर्ले-मिण्टो सुधारों (1909 ई०) द्वारा मुसलमानों को निर्वाचनों में आरक्षण प्रदान किया गया था। 1909 ई० के अधिनियम द्वारा पृथक एवं साम्प्रदायिक निर्वाचन-पद्धति अपनाई गयी। सामान्य निर्वाचन तथा क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त को भारत के लिए अनुपयुक्त समझा गया। विभिन्न वर्गों, हितों तथा जातियों के आधार पर मुसलमानों के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था की गयी। इसके अतिरिक्त वाणिज्यिक संघों तथा जमींदारों आदि के लिए भी पृथक् निर्वाचन-क्षेत्रों की व्यवस्था की गयी। मुसलमानों के लिए साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व के आधार पर पृथक् निर्वाचन पद्धति के साथ-साथ अधिकार मतों (Weightage Votes) की भी व्यवस्था की गयी। मुसलमानों के पृथक् प्रतिनिधित्व को देखते हुए सिक्ख, हरिजन, आंग्ल-भारतीय आदि वर्ग भी पृथक् प्रतिनिधित्व की माँग करने लगे।

(ख) पूना पैक्ट (1932 ई०)
पूना पैक्ट में साम्प्रदायिक निर्णय की तुलना में अनुसूचित जातियों को अधिक स्थान प्रदान किये गये। पूना पैक्ट के द्वारा अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधियों के लिए 71 से बढ़ाकर 148 स्थानों को सुरक्षित कर दिया गया। इन सुरक्षित स्थानों के लिए चुनाव की द्विस्तरीय व्यवस्था को स्वीकार किया गया। इस व्यवस्था में यह प्रावधान था कि प्रथम चरण में प्रत्येक सुरक्षित स्थानों के लिए हरिजन प्रत्याशियों को चयनित किया जाएगा। अन्त में हिन्दू तथा हरिजन संयुक्त रूप से इन चार प्रत्याशियों में से एक प्रत्याशी को निर्वाचित करेंगे। यह विषय 30 वर्षों तक लागू रहेगा। हरिजनों को सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों में भी मत देने का अधिकार होगा।

(ग) मण्डल आयोग
आयोग ने अपनी रिपोर्ट 31 दिसम्बर, 1980 ई० को सरकार को सौंप दी, जिसे सरकार ने 30 अप्रैल, 1982 ई० को संसद में प्रस्तुत किया। आयोग ने पिछड़ी जातियों को परिभाषित किया तथा उनकी पहचान के लिए मानदण्ड प्रस्तुत करते हुए कुल 3,743 जातियों को पिछड़ी घोषित किया, जबकि प्रथम पिछड़ा आयोग (कालेलकर आयोग) ने केवल 2,399 जातियों को पिछड़ी जाति घोषित किया था। आयोग की रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिशें की गई थीं-

  1. सम्पूर्ण पिछड़ी जातियों की जनसंख्या 52% है तथा इनके लिए इसी अनुपात में स्थान आरक्षित किया जाना उचित है, परन्तु संविधान के अनुच्छेद 15(4) तथा 16(4) के प्रसंग में उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई व्यवस्था के अनुसार 50% से अधिक स्थान आरक्षित नहीं किया जा सकता है तथा 22.5% स्थान अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए पहले से ही आरक्षित है, अत: पिछड़ी जातियों की जनसंख्या 52% होने के बावजूद उनके लिए 27% स्थान आरक्षित करने की सिफारिश की जाती है। पिछड़े वर्ग के जो अभ्यर्थी खुली प्रतियोगिता के आधार पर चुन लिए जाते हैं, उन्हें आरक्षण के कोटे में. न माना जाए।
  2. सरकारी नौकरियों में भी पहले से नियोजित पिछड़े वर्ग के लिए पदोन्नति में भी 27% आरक्षण दिया जाए।
  3. यदि 27% आरक्षित स्थानों के लिए पिछड़े वर्ग के लोग किसी वर्ष न मिल पाएँ, तो आरक्षित स्थानों को अगले वर्ष के लिए आरक्षित कर दिया जाए तथा तीन वर्ष तक चालू रखा जाए।
  4. प्रत्यक्ष नियुक्ति में पिछड़े वर्गों के अभ्यर्थियों की आयु सीमा में अनुसूचित जनजातियों को दी जाने वाली छूट के बराबर छूट दी जाए।
  5. जिस प्रकार अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सरकारी सेवाओं के लिए सम्बद्ध अधिकारी रजिस्टर रखता है, उसी प्रकार पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए भी सम्बद्ध अधिकारी द्वारा रजिस्टर रखा जाए।
  6. यह 27% आरक्षण राज्य सरकार, राज्य सरकार के अधीन सार्वजनिक क्षेत्रों, केन्द्र सरकार के अधीन सरकारी क्षेत्रों तथा बैंकों की नियुक्तियों में भी लागू हो।
  7. निजी क्षेत्रों के उन उद्योगों में भी पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया जाए, जो किसी भी प्रकार से सरकारी अनुदान या सहायता प्राप्त करते हैं।
  8. पिछड़े वर्गों के लिए विश्वविद्यालय तथा कॉलेजों में प्रवेश के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था लागू हो।

वी०पी० सिंह सरकार की घोषणा
तत्कालीन प्रधानमन्त्री वी०पी० सिंह ने 7 अगस्त, 1990 ई० को संसद के दोनों सदनों में घोषित किया कि भारत सरकार की सेवाओं और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में पिछड़े वर्गों को 27% आरक्षण : प्राप्त होगा। प्रधानमन्त्री ने इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम बताया। 13 अगस्त, 1990 ई० को इस सम्बन्ध में सरकारी अधिसूचना जारी कर दी गई। यद्यपि यह रिपोर्ट श्रीमती इन्दिरा गांधी के कार्यकाल में ही आ गई थी, परन्तु उन्होंने तथा उनके बाद राजीव गांधी ने भी राजनीतिक कारणों से इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया। वी०पी० सिंह ने प्रधानमन्त्री बनने पर दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए सामाजिक न्याय के चक्र को प्रगति पथ पर बढ़ाते हुए इसे तुरन्त लागू कर दिया।

क्रीमी लेयर लाभ से वंचित
विधिक दृष्टि से उच्चतम न्यायालय ने 1 अक्टूबर, 1990 को मण्डल रिपोर्ट के क्रियान्वयन पर स्थगन आदेश जारी कर दिया। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि 13 अगस्त, 1990 ई० को सरकारी अधिसूचना पर रोक लगाई जाती है। लेकिन सरकार इस अधिसूचना के तहत लाभ पाने वाली जातियों को चिह्नित करने का काम जारी रख सकती है।

केन्द्र सरकार द्वारा आयोग की सिफारिश के आधार पर पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था 8 सितम्बर, 1993 ई० से लागू कर दी गई है। भारत सरकार के तत्कालीन कल्याण मन्त्री सीताराम केसरी ने घोषित किया, “केन्द्र सरकार की नौकरियों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण 8 सितम्बर, 1993 ई० से लागू हो गया है, लेकिन इन वर्गों के सम्पन्न वर्गों (क्रीमी लेयर) को इसका लाभ नहीं मिलेगा।” केसरी ने स्पष्ट किया कि पहले चरण में उन जातियों को आरक्षण मिलेगा, जिनके नाम मण्डल आयोग की रिपोर्ट तथा राज्य सरकार की सूचियों दोनों में शामिल हैं। ऐसी जातियों की संख्या लगभग 1,200 है।

पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए संसद में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम (1993 ई०) पारित किया गया, जिसके अधीन अगस्त 1993 ई० में न्यायमूर्ति आर० एन० प्रसाद की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना की गई।

केन्द्र सरकार के अधीन व केन्द्र सरकार से सहायता प्राप्त उच्च शिक्षण संस्थाओं में पिछड़े वर्गों के विद्यार्थियों के लिए प्रवेश में 27% आरक्षण के लिए दिसम्बर 2006 में यूपीए सरकार द्वारा लाए गए विधेयक को संसद के दोनों सदनों ने पारित कर दिया।

लघु उत्तरीय प्रश्ठा (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
पिछड़ी हुई जातियों के प्रसंग में आरक्षण की क्या स्थिति है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए आरक्षण की तुलना में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था के प्रयत्नों ने समस्त सामाजिक व्यवस्था में अधिक गम्भीर तनावों को जन्म दिया है। पिछड़े हुए वर्गों के लिए आरक्षण के प्रश्न को लेकर संवैधानिक और राजनीतिक विवाद बहुत अधिक तीव्र रूप से सामने आया है।

अन्य पिछड़े वर्गों (OBCs) के सम्बन्ध की स्थिति – संविधान के भाग 16 तथा अन्य कुछ प्रावधानों में पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों और जनजातियों के साथ अन्य पिछड़े वर्गों शब्द का प्रयोग किया गया है, किन्तु पिछड़े वर्गों का सीमांकन करना कठिन है। इसमें अनेक ऐसी जातियाँ हैं, जो अनुसूचित जातियाँ नहीं हैं, किन्तु समाज की अन्य तथाकथित उच्च जातियों से पिछड़ी हुई हैं; जैसे-नाई, बढ़ई, धोबी, दर्जी, अहीर, कुर्मी आदि। यद्यपि संविधान में इस शब्द समूह का एक-से-अधिक स्थानों पर प्रयोग हुआ है (अनुच्छेद 16(4) तथा अनुच्छेद 340 में, पर इसकी परिभाषा नहीं की गयी हैं। ‘राजनीति कोश’ के अनुसार, “पिछड़े हुए वर्गों का अभिप्राय समाज के उन वर्गों से है, जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक नियोग्यताओं के कारण समाज के अन्य वर्गों की तुलना में निचले स्तर पर हों।”

संविधान अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा तथा अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि की बात जितनी स्पष्टता के साथ कहता है, अन्य पिछड़े वर्गों के सम्बन्ध में कोई बात ऐसी स्पष्टता और निश्चितता के साथ नहीं कहता। अनुच्छेद 16 ‘लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता’ का प्रावधान करता है तथा इसी प्रसंग में अनुच्छेद 16 के भाग (4) में कहा गया है कि “इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए व्यवस्था करने से नहीं रोकेगी। इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 340 में कहा गया है कि राष्ट्रपति पिछड़े वर्गों की दशाओं के लिए आयोग की नियुक्ति कर सकेगा। इस अनुच्छेद के अन्तर्गत अब तक प्रमुख रूप से दो आयोग स्थापित किये गये हैं-प्रथम ‘काका कालेलकर आयोग’ और द्वितीय ‘मण्डल आयोग’, जिसकी स्थापना जनता पार्टी के शासन काल (1977-79 ई०) में बिहार के भूतपूर्व मुख्यमन्त्री वी० पी० मण्डल की अध्यक्षता में की गयी।

द्वितीय, पिछड़ा वर्ग आयोग (मण्डल आयोग) की रिपोर्ट – इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 20 अप्रैल, 1982 को सरकार को प्रस्तुत की। आयोग ने पिछड़ी जातियों के लिए सरकारी, अर्द्धसरकारी एवं सार्वजनिक उद्योगों में 26 प्रतिशत स्थान आरक्षित करने की सिफारिश की। आयोग ने पिछड़ी जातियों की परिभाषा की है तथा उनकी पहचान के लिए मानदण्ड प्रस्तुत करते हुए कुल 3,743 जातियों को पिछड़ी घोषित किया गया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पिछड़ी जातियों की जनसंख्या 52 प्रतिशत है और इनके लिए इसी अनुपात में स्थान आरक्षित किया जाना उचित है, परन्तु संविधान की धारा 15 (4) और 16 (4) के प्रसंग में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णयों के अनुसार कुल मिलाकर 50 प्रतिशत से अधिक स्थान आरक्षित नहीं किये जा सकते और 22.5 प्रतिशत स्थान अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए पहले से आरक्षित हैं। इस विवशता के कारण पिछड़ी जातियों की जनसंख्या 52 प्रतिशत होने के बावजूद उनके लिए केवल 26 प्रतिशत स्थान आरक्षित करने की सिफारिश की जाती है।

आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि पिछड़ी जातियों की शिक्षा तथा उनके औद्योगिक एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए। आयोग ने यह भी कहा है कि केन्द्र सरकार को विभिन्न पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए राज्य सरकारों को उसी प्रकार वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए, जिस प्रकार से अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए प्रदान की जाती है।

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प्रश्न 2.
जाति-आधारित आरक्षण के भारतीय राजनीति पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिए। [2007]
उत्तर
संविधान में आरक्षण का प्रावधान समाज के कमजोर वर्ग के हितों की रक्षा और अभिवृद्धि के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन अब मूल उद्देश्य तो धुंधला हो गया है तथा आरक्षण का प्रश्न दलीय राजनीति और चुनावी राजनीति के साथ जुड़ गया है। जातियाँ यह सोचने लगी हैं। कि उन्हें अपने आप से संगठित कर और दबाव डालकर अपने लिए आरक्षण सुनिश्चित कर लेना चाहिए। वर्तमान गुजर-आन्दोलन इस विचारधारा का द्योतक है। जिन जातियों को आरक्षण प्राप्त है, वे ऐसा सोचती हैं कि राजनीतिक दबाव बनाए रखते हुए आरक्षण की अवधि बढ़ाई जा सकती है। राजनीतिक दल आरक्षण के प्रश्न पर वास्तविक पिछड़ेपन की दृष्टि से नहीं, वरन् वोट बैंक की दृष्टि से विचार करते हैं। अनुसूचित जातियाँ व जनजातियाँ एक लम्बे समय तक कांग्रेस का वोट बैंक रही हैं। अब अन्य राजनीतिक दल इस वोट बैंक को तोड़ने में लगे हैं। ये राजनीतिक दल सोचते हैं कि यदि आरक्षण का विरोध करने का साहस किया तो ये जातियाँ उनसे विमुख हो जाएँगी। उपर्युक्त तथ्य यह सिद्ध करते हैं कि आरक्षण का प्रश्न अब केवल चुनावी राजनीति से जुड़ा रह गया है।

आरक्षण की राजनीति ने आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के समस्त विचारों को पीछे छोड़ दिया है। अगड़ी जाति बनाम पिछड़ी जाति, हिन्दू बनाम मुस्लिम, पुरुष बनाम महिला की राजनीति ने समाज को गहरे रूप में विभाजित कर दिया है। परिणामस्वरूप अपनी जाति विशेष के हितों को साधने के लिए नये-नये स्थानीय राजनीतिक दल जन्म ले रहे हैं। वास्तव में विभाजित समाज विभाजित राजनीति को जन्म दे रहा है।

प्रश्न 3.
अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए दी गई दो सुविधाओं का वर्णन कीजिए। इन वर्गों के सम्पन्न व्यक्तियों को इन लाभों से वंचित रखने के लिए क्या प्रावधान किया गया है ?
उत्तर
अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सरकार ने निम्नलिखित सुविधाएँ दी हैं-

1. अन्य पिछड़ी जातियों को सरकार ने राजकीय और केन्द्रीय सेवाओं में 27% आरक्षण प्रदान किया है जिससे उनका सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्तर उठ सके। इसके अतिरिक्त सरकार में भागीदारी के लिए भी उन्हें चुनावों में हिस्सेदारी के लिए सीटों पर आरक्षण प्रदान किया गया है। इसके अतिरिक्त इन वर्गों को उच्च शिक्षा में भी आरक्षण प्रदान किया है जिसका उदाहरण अप्रैल, 2008 में आई०आई०एम० व आई०आई०टी० जैसी उच्च शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण बहाली की गई तथा इसे इन संस्थाओं ने लागू भी कर दिया

2. पिछड़े वर्गों के आर्थिक उत्थान के लिए स्वरोजगार हेतु कम ब्याज दरों पर सरकार ऋण उपलब्ध कराती है जिससे प्रशिक्षित व अर्द्धकुशल व्यक्ति अपना रोजगार शुरू कर सकें। इन वर्गों को नि:शुल्क प्रशिक्षण की सुविधा भी सरकार प्रदान करती है।
इन वर्गों के उन सम्पन्न व्यक्तियों को उपरोक्त सुविधाओं से वंचित रखा गया है, जो क्रीमीलेयर (जिनकी आय ₹ 3 लाख से अधिक है) में आते हैं।

प्रश्न 4.
विधानसभाओं में महिलाओं के आरक्षण के पक्ष में चार तर्क दीजिए। [2014, 16]
उत्तर
विधायी संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण
सन् 1990 ई० से ही भारतीय राजनीति में कहा जा रहा था कि विधायिकाओं में महिलाओं के लिए 1/3 स्थान आरक्षित किया जाना चाहिए। ग्यारहवीं लोकसभा के चुनाव के समय प्रमुख राजनीतिक दलों ने यह वादा किया था कि यदि उन्हें सत्ता प्राप्त हुई तो वे संवैधानिक व्यवस्था कर महिलाओं के लिए 1/3 स्थान विधायी संस्थाओं में आरक्षित करेंगे।

14 दिसम्बर, 1998 ई० को केन्द्र सरकार ने विधानसभाओं व लोकसभा में 33% आरक्षण देने से सम्बन्धित विधेयक को लोकसभा में प्रस्तुत किया। मार्च 2010 में राज्यसभा महिला विधेयक को पास कर चुकी है तथा इसे लोकसभा में पारित करने के लिए आम सहमति बनाई जा रही है। महिला आरक्षण विधेयक से यह स्पष्ट हो जाता है कि अब जाति के साथ-साथ लिंग के आधार पर भी आरक्षण की व्यवस्था को लागू करने का प्रयास किया जा रहा है। विधायिकाओं में तो अभी आरक्षण लागू नहीं हो पाया है, परन्तु स्थानीय स्वशासन की इकाइयों (पंचायती राजव्यवस्था) में महिलाओं के लिए 1/3 स्थान सुरक्षित कर दिए गए हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
अनुसूचित जातियों को रोजगार में आरक्षण देने के पक्ष व विपक्ष में एक-एक तर्क दीजिए। [2007, 11, 15]
उत्तर
अनुसूचित जातियाँ समाज का सबसे पिछड़ा वर्ग हैं। आरक्षण दिए जाने और न दिए जाने के सम्बन्ध में तर्क निम्नलिखित रूप में हो सकता है।
अनुसूचित जातियाँ समाज की सर्वाधिक पिछड़ी जातियाँ हैं। ये आर्थिक व शौक्षिक दोनों रूपों में ही पिछड़ी हुई हैं। अतः आरक्षण का सहारा देकर इन्हें समाज के उन्नत वर्ग के समकक्ष लाना आवश्यक है। आरक्षण न दिए जाने के सम्बन्ध में तर्क दिया जा सकता है कि इस वर्ग में कर्मठ व मेहनती जातियाँ हैं जिन्हें आरक्षण की वैसाखी की आवश्यकता नहीं है अपितु सामाजिक रूप से इन्हें सम्मान देकर तथा अच्छी शिक्षा-दीक्षा उपलब्ध कराकर अन्य उच्च वर्गों के समकक्ष लाया जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
आरक्षण के पक्ष में चार तर्क प्रस्तुत कीजिए। [2007, 11]
या
आरक्षण के दो लाभ बताइए।
या
अनुसूचित जातियों के आरक्षण के दो आधार बताइए। [2012]
उत्तर
आरक्षण के पक्ष में निम्नलिखित चार तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं-

  1. आरक्षण से कमजोर वर्गों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक निर्योग्यताओं में आमूल-चूल परिवर्तन होकर उनकी आर्थिक उन्नति सम्भव हुई है।
  2. लोकसेवाओं में आरक्षण द्वारा ही पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व बढ़ा है।
  3. पिछड़े वर्गों की गरीबी के निवारण का मार्ग आरक्षण द्वारा ही प्रशस्त हुआ है।
  4. कमजोर वर्गों को शिक्षा के प्रति जागरूक बनाने में आरक्षण ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। इससे उनमें राजनीतिक चेतना का भी संचार हुआ है।

प्रश्न 3.
आरक्षण का क्षेत्र बताइए।
उत्तर
भारत में अनुसूचित जातियों के निर्धारण का आधार जाति तथा अनुसूचित जनजाति के निर्धारण का आधार क्षेत्र एवं जाति है। 1931 ई० की जनगणना के आधार पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को अन्य जातियों से अलग माना गया। भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि राज्यपाल के परामर्श से राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा ऐसी जातियों का उल्लेख कर सकता है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रत्येक राज्य में वहाँ की जातियों के अनुसार इनकी अलग-अलग सूचियाँ निर्मित की गयी हैं।

सामान्यतया अनुसूचित जातियों में आर्थिक दृष्टि से कमजोर एवं सामाजिक दृष्टि से अछुत समझी जाने वाली जातियाँ सम्मिलित हो गयी हैं। ये जातियाँ पीढ़ियों से अप्रिय, अमान्य तथा अत्यधिक खराब समझे जाने वाले कार्य-झाडू देना, मल उठाना, मरे हुए जानवरों को उठाकर उनका चमड़ा उतारना तथा चर्म शोधन इत्यादि करती रही हैं।

प्रश्न 4.
अन्य पिछड़े वर्गों (ओ० बी० सी०) के आरक्षण के दो आधार लिखिए। [2007]
उत्तर
अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण के दो आधार निम्नवत् हैं-

1. जाति के आधार पर आरक्षण – संविधान के भाग 16 तथा अन्य कुछ प्रावधानों में पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों और जनजातियों के साथ अन्य पिछड़े वर्गों’ शब्द का प्रयोग किया गया है, किन्तु पिछड़े वर्गों का सीमांकन करना कठिन है। इसमें अनेक ऐसी जातियाँ हैं, जो अनुसूचित जातियाँ नहीं हैं, किन्तु समाज की अन्य तथाकथित उच्च जातियों से पिछड़ी हुई हैं; जैसे-नाई, बढ़ई, धोबी, दर्जी, अहीर, कुर्मी आदि।

2. सामाजिक व आर्थिक स्तर पर – अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण का एक आधार इन जातियों के सामाजिक व आर्थिक स्तर का निम्न होना है। ‘राजनीति कोश’ के अनुसार, “पिछड़े हुए वर्गों का अभिप्राय समाज के उन वर्गों से है, जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक निर्योग्यताओं के कारण समाज के अन्य वर्गों की तुलना में निचले स्तर पर हों।”

प्रश्न 5.
‘आरक्षण’ के सम्बन्ध में भारतीय संविधान में क्या व्यवस्था की गई है?
उत्तर
भारतीय संविधान के अन्तर्गत ‘आरक्षण’ को संवैधानिक आधार प्रदान किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 16 के अनुसार, “समस्त नागरिकों को सरकारी पदों पर नियुक्ति के समान अवसर प्राप्त होंगे तथा इस सम्बन्ध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग अथवा जन्म स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर सरकारी नौकरी अथवा पद प्राप्त करने में भेदभाव नहीं बरता जाएगा। परन्तु फिर भी सरकार द्वारा अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार सरकार नौकरियों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं पिछड़े वर्गों के लिए स्थानों का आरक्षण किया जा सकता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अक)

प्रश्न 1
आरक्षण के दो उद्देश्यों को लिखिए। [2011]
उत्तर

  1. सामाजिक समानता की स्थापना,
  2. दलित जातियों का उत्थान।

प्रश्न 2.
मण्डल आयोग का गठन कब किया गया?
उत्तर
1 जनवरी, 1979 को।

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प्रश्न 3.
मण्डल आयोग का अध्यक्ष कौन था? उत्तर श्री बिन्देश्वरी प्रसाद मण्डल।

प्रश्न 4.
मण्डल आयोग की रिपोर्ट लागू करने वाले प्रधानमन्त्री का नाम बताइए। [2009]
उत्तर
श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह।

प्रश्न 5.
मण्डल आयोग की सिफारिशों के अनुसार पिछड़े वर्गों के लिए भारत सरकार ने कितना आरक्षण करने की घोषणा की?
उत्तर
मण्डल आयोग की सिफारिशों के अनुसार भारत सरकार के तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण देने की घोषणा की।

प्रश्न 6.
मण्डल आयोग के फैसले के अन्तर्गत प्रथम नियुक्ति कब और किसकी हुई?
उत्तर
मण्डल आयोग के फैसले के अन्तर्गत प्रथम नियुक्ति 20 फरवरी, 1994 को की गयी। इस दिन तत्कालीन केन्द्रीय कल्याण मन्त्री श्री सीताराम केसरी ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग एवं विकास निगम’ में सहायक प्रबन्धक के पद पर आसूला’ जाति के बी० राज शेखराचारी की नियुक्ति की।

प्रश्न 7.
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार आरक्षण का अधिकतम प्रतिशत कितना निर्धारित किया गया ?
उत्तर
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार आरक्षण का अधिकतम प्रतिशत किसी भी स्थिति में 50% से अधिक नहीं हो सकता।। प्रश्न 8 आरक्षण के सम्बन्ध में जातियों का वर्गीकरण किस प्रकार से किया गया ? उत्तर आरक्षण के सम्बन्ध में जातियों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया—अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ी जाति।

प्रश्न 9.
स्थानीय स्वशासन इकाइयों में महिलाओं को कितने प्रतिशत आरक्षण की सुविधा दी गयी है?
उत्तर
महिलाओं को इन संस्थाओं में 335% आरक्षण की सुविधा दी गयी है।

प्रश्न 10.
लोक सेवाओं में आरक्षण के किसी एक आधार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
जाति का आधार–अनुसूचित जाति।

प्रश्न 11.
भारत में अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण के पक्ष में एक तर्क दीजिए।
उत्तर
भारत में अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण के पक्ष में एक तर्क यह दिया जा सकता है। कि इसके माध्यम से निम्न व पिछड़े वर्गों को प्रदान की जाने वाली विशेष सुविधाओं के कारण वे समाज के अन्य वर्गों की बराबरी कर सकेंगे।

प्रश्न 12.
केन्द्र सरकार की सेवाओं में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण कब से लागू हुआ?
उत्तर
केन्द्र सरकार की सेवाओं में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण 8 सितम्बर, 1993 को लागू हुआ।

प्रश्न 13.
आरक्षण का एक लाभ बताइए। [2011]
उत्तर
आरक्षण द्वारा समाज के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से पिछड़े वर्गों को विशेष सुविधाएँ उपलब्ध हो जाती हैं जिससे वे समाज के अन्य वर्गों की बराबरी कर सकें।

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प्रश्न 14.
भारत में आरक्षण की व्यवस्था को कब और किस आधार पर लागू किया गया?
उत्तर
भारत में आरक्षण की व्यवस्था को 1909 ई० में धर्म (सम्प्रदाय) के आधार पर लागू किया गया।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
प्रतिनिधि संस्थाओं में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को आरक्षण कब तक प्राप्त है?
(क) 25 जनवरी, 2010 तक
(ख) 26 जनवरी, 2010 तक
(ग) 25 जनवरी, 2015 तक
(घ) 26 जनवरी, 2020 तक

प्रश्न 2.
मण्डल आयोग की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की गयी [2016]
(क) 30 जनवरी, 1983 को
(ख) 26 जनवरी, 1984 को
(ग) 30 अप्रैल, 1982 को
(घ) 8 सितम्बर, 1982 को

प्रश्न 3.
केन्द्रीय सेवाओं में पिछड़ी जातियों हेतु आरक्षण कब से लागू किया गया?
(क) 31 दिसम्बर, 1980 से
(ख) 7 अगस्त, 1990 से
(ग) 8 सितम्बर, 1993 से
(घ) 14 दिसम्बर, 1998 से।

प्रश्न 4.
हमारे प्रदेश में राज्य सेवाओं में पिछड़ी हुई जातियों हेतु कितने प्रतिशत स्थान आरक्षित हैं?
(क) 33%
(ख) 27%
(ग) 35%
(घ) 17%

प्रश्न 5.
महिला आरक्षण विधेयक संसद में प्रस्तुत किया गया
(क) 1980 ई० को
(ख) 1985 ई० को
(ग) 1990 ई० को
(घ) 1999 ई० को

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किस वर्ग को राजकीय सेवाओं में आरक्षण प्राप्त है?
(क) सिख सम्प्रदाय
(ख) ईसाई सम्प्रदाय
(ग) अन्य पिछड़े वर्ग
(घ) मुस्लिम सम्प्रदाय

प्रश्न 7.
राजकीय सेवाओं में जनजातियों के आरक्षण का प्रतिशत है- [2008, 14]
(क) 7.5%
(ख) 15.5%
(ग) 2%
(घ) 27%

प्रश्न 8.
अनुसूचित जातियों सम्बन्धी आरक्षण नीति के मूल में मुख्य अवधारणा क्या है ? [2008]
(क) समाज की पुरानी परम्पराओं को समाप्त करना
(ख) जाति विशेष को विशेषाधिकार प्रदान करना
(ग) सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास करना
(घ) राजनीतिक दबाव समूहों को तुष्ट करना।

प्रश्न 9.
इनमें से किस वर्ग को राजकीय सेवाओं में आरक्षण प्राप्त नहीं है?
(क) अनुसूचित जातियाँ
(ख) अनुसूचित जनजातियाँ
(ग) अन्य पिछड़े वर्ग
(घ) मुस्लिम सम्प्रदाय

प्रश्न 10.
अनुसूचित जनजाति के निर्धारण का आधार रहा है-
(क) क्षेत्र
(ख) जाति
(ग) ये दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं।

प्रश्न 11.
अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण के सम्बन्ध में सर्वप्रथम संस्तुति की थी [2010, 16]
(क) वी० पी० सिंह ने
(ख) काका कालेलकर ने
(ग) आर० एन० प्रसाद ने
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 12.
पिछड़ी जातियों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था किस आयोग की सिफारिश पर की गयी थी? [2016]
(क) सरकारिया आयोग
(ख) मण्डल आयोग
(ग) प्रसाद आयोग
(घ) अल्पसंख्यक आयोग

उत्तर

  1. (घ) 26 जनवरी, 2020 तक,
  2. (ग) 30 अप्रैल, 1982 को,
  3. (ग) 8 सितम्बर, 1993 से,
  4. (ख) 27%,
  5. (घ) 1999 ई० को,
  6. (ग) अन्य पिछड़े वर्ग,
  7. (ग) 2%,
  8. (ग) सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास करना,
  9. (घ) मुस्लिम सम्प्रदाय,
  10. (ग) ये दोनों,
  11. (ख) काका कालेलकर ने,
  12. (ख) मण्डल आयोग

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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 17 Source of Income and Items of Expenditure of Local Governing Body

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 17
Chapter Name Source of Income and Items of Expenditure of Local Governing Body (स्थानीय निकाय की आय के स्रोत व व्यय की मदें)
Number of Questions Solved 18
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 17 Source of Income and Items of Expenditure of Local Governing Body (स्थानीय निकाय की आय के स्रोत व व्यय की मदें)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
स्थानीय निकाय की आय के स्रोतों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। [2010, 11]
उत्तर:
आधुनिक युग में स्थानीय निकायों का विशेष महत्त्व है। साधारण रूप से स्थानीय प्रकृति के कार्यों को स्थानीय संस्थाओं को सौंप देने से राज्य सरकारें अपने दायित्वों से मुक्त हो जाती हैं। स्थानीय आवश्यकताओं के कार्य स्थानीय संस्थाओं द्वारा अधिक कुशलतापूर्वक सम्पन्न किये जा सकते हैं। स्थानीय संस्थाओं के सीमित कार्यक्षेत्र होने पर भी उनके दायित्व अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। स्थानीय संस्थाओं की आय के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं
(अ) कर स्रोत,
(ब) गैर-कर स्रोत।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 17 Source of Income and Items of Expenditure of Local Governing Body 1

(अ) कर-स्रोत – स्थानीय संस्थाओं को कर से पर्याप्त आय प्राप्त होती है, जो कि कुल आय का 70% भाग तक होती है। करों में निम्नलिखित दो प्रकार के कर आते हैं

  1. स्थानीय संस्थाओं द्वारा लगाये गये कर।
  2.  राज्य सरकारों द्वारा लगाये व वसूल किये गये करों में स्थानीय संस्थाओं का भाग।

(ब) गैर-कर स्रोत – गैर-कर स्रोतों में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जा सकता है

  •  सहायता अनुदान,
  • ऋण तथा उपादान तथा
  •  अन्य साधन।

स्थानीय निकायों में नगर निगम, नगरपालिकाएँ, छावनी बोर्ड, अनुसूचित क्षेत्र समिति, नगर क्षेत्र समिति, जिला परिषद् और ग्राम पंचायतों को शामिल किया जाता है।

स्थानीय संस्थाओं की आय के साधन:

  •  कर स्रोत आय तथा
  • गैर-कर स्रोत आय।

कर-स्रोत आय
1. प्रत्यक्ष कर – प्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है

  • सम्पत्ति कर – सम्पत्ति कर प्रायः वे कर होते हैं जो कि अचल सम्पत्ति के क्रय-विक्रय पेड़ लगाये जाते हैं। यह स्थानीय संस्थाओं की आय का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। सम्पत्ति कर चार प्रकार के होते हैं-सुधार कर, भूमि पर उपकर, भवन पर कर एवं सम्पत्ति के हस्तान्तरण पर कर।
  • हैसियत कर – यह कर व्यक्ति की आर्थिक अवस्था, सामाजिक स्थिति एवं परिवार के सदस्यों की संख्या को ध्यान में रखकर लगाया जाता है।
  •  गाड़ियों पर कर – यह कर स्थानीय संस्थाओं द्वारा रिक्शा, ठेले आदि पर लगाया जाता है।
  •  बाजार कर – यह कर बाजारों में माल बेचने वाले व्यक्तियों पर नगरपालिकाओं द्वारा लगाये जाते हैं।
  •  पशु कर – यह कर जानवरों; जैसे – गाय, बैल, भैंस, कुत्ते आदि पालतू पशुओं पर लगाये जाते हैं।
  • मार्ग शुल्क – यह कर उन पुलों से गुजरने वाले व्यक्तियों एवं माल पर लगाया जाता है। जिनकी लागत के ₹5 लाख से अधिक होती है।

2. अप्रत्यक्ष कर – अप्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित करों को सम्मिलित किया जाता है

  •  चुंगी कर – चुंगी कर ऐसा कर है जो किसी विशेष स्थानीय क्षेत्र में उपभोग करने अथवा वहाँ पर बिक्री के लिए आने वाली वस्तुओं पर लगाया जाता है। यह कर वस्तु की मात्रा या मूल्य के आधार पर लगाया जा सकता है।
  •  सीमा कर – जब कोई सामान नगरपालिका की सीमा में प्रवेश करे या सीमा से बाहर जाए या सीमा से गुजरे तो उस पर लगने वाले कर को सीमा कर कहते हैं। रेलों से यात्रा करने वाले यात्रियों के रेल-भाड़े में सीमा कर सम्मिलित होता है, जो रेल-भाड़े के साथ वसूल करके नगर निकायों को दे दिया जाता है।
  •  सुधार कर – विकास प्रन्यासों द्वारा सम्पत्ति के मूल्य बढ़ाने पर लगने वाले कर को सुधार कर कहते हैं। इन संस्थाओं द्वारा ऐसे कार्य किये जाते हैं, जिससे सम्पत्ति के मूल्य बढ़ जाते हैं और इस बढ़े हुए मूल्य को कर के रूप में प्राप्त करते हैं।
  •  अन्य कर – स्थानीय सरकारों द्वारा लगाये जाने वाले अन्य करों में थियेटर कर, विज्ञापन कर आदि हैं।

गैर-कर स्रोत आय
गैर-कर स्रोत में निम्नलिखित प्रकार की आय को सम्मिलित करते हैं
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 17 Source of Income and Items of Expenditure of Local Governing Body 2

(a) अनुदान – सभी राज्यों में राज्य सरकारों द्वारा स्थानीय निकायों को अनुदान दिये जाते हैं। सामान्यतः अनुदान शिक्षा, चिकित्सालय तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं और सड़क, जलापूर्ति इत्यादि की सहायता के लिए प्रदान किये जाते हैं।
(b) ऋण तथा उपदान – नगर पालिकाओं एवं अन्य स्थानीय संस्थाओं को जलापूर्ति, नालियों की व्यवस्था, गन्दी बस्तियों की सफाई आदि कार्यों के लिए ऋण एवं उपादान प्राप्त करने होते हैं।
(c) अन्य साधन – स्थानीय संस्थाओं को प्राप्त होने वाली आय के अन्य साधनों में निम्नलिखित को सम्मिलित करते हैं

  1.  विनियोग से आय,
  2. चिकित्सालयों से प्राप्त आय,
  3.  भूमि का लगान एवं मकानों के किराये की आय,
  4. भूमि एवं भूमि की उपज से आय,
  5. शिक्षण संस्थाओं से आय,
  6.  बाजारों से प्राप्त आर्य आदि।

प्रश्न 2
जिला परिषदों (जिला पंचायतों) की आय के स्रोतों और व्यय की प्रधान मदों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
या
जिला परिषद् की आय के प्रमुख स्रोतों को समझाइए। [2007]
उत्तर:
जिला परिषदों (जिला पंचायतों) की आय के प्रमुख स्रोत

1. हैसियत एवं सम्पत्ति – कर-जिला पंचायत अपने क्षेत्र में व्यक्तियों की हैसियत एवं सम्पत्ति पर अथवा उद्योगों व व्यापार पर कर लगाती है। इससे जिला परिषद् को आय प्राप्त होती है। इस कर की प्रकृति प्रगतिशील होती है, अर्थात् अमीर व्यक्तियों पर यह कर ऊँची दर से लगाया जाता है।

2. भूमि पर उपकर – यह जिला पंचायत की आय का प्रमुख स्रोत है। इस मद से सम्पूर्ण आय का लगभग 70% भाग प्राप्त होता है। इस कर को लगान के साथ राज्य सरकारें वसूल करती हैं और वह इसे जिला परिषद् में वितरित कर देती हैं। उत्तर प्रदेश में यह कर राज्य सरकार लगान के साथ ही वसूल करती है तथा जिला पंचायतों को प्रतिकारी अनुदान (Compensatory grant) प्रदान करती है।

3. मार्ग शुल्क – जिला पंचायत अपने क्षेत्र में नदियों के पुल, घाट, सड़क आदि पर कर लेती है। जो व्यक्ति अपने पशु अथवा वाहन इन पुलों, सड़कों या घाट से लाते व ले जाते हैं, उन्हें यह मार्ग शुल्क देना पड़ता है।

4. काँजी हाउस से आय – आवारा घूमने वाले पशुओं को कॉजी हाउस में बन्द कर दिया जाता है। जब उनके मालिक उन्हें छुड़ाने आते हैं तो उनसे जुर्माना प्राप्त किया जाता है। इस मद से भी जिला पंचायत को आय प्राप्त होती है।

5. मेलों, प्रदर्शनियों व बाजारों से आय – जिला पंचायतों के क्षेत्र में जिन प्रमुख मेलों व प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है, उसका प्रबन्ध जिला पंचायत को करना पड़ता है। इनके आयोजन से जो आय प्राप्त होती है वह जिला पंचायत की आय है; उदाहरण के लिए-मुजफ्फरनगर में शुक्रताल, गढ़मुक्तेश्वर में गंगास्नान मेला आदि। इनसे प्राप्त होने वाली आय जिला पंचायतों को प्राप्त होती है।

6. किराया व शुल्क – जिला पंचायत के भूमि, मकानों, दुकानों, डाक-बंगलों आदि के किराये से आय प्राप्त होती है। स्कूलों में अस्पतालों से कुछ शुल्क भी आय के रूप में मिलता है।

7. राज्य सरकारों से प्राप्त अनुदान – राज्य सरकार जिला पंचायतों को अनुदान के रूप में आर्थिक सहायता प्रदान करती है। राज्य सरकारें यह अनुदान उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा आदि के विकास के लिए देती हैं। जिला पंचायतों की आय की यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मद है।

8. अनुज्ञा-पत्र शुल्क – जिला परिषद् कसाइयों से, गोश्त की दुकानों से, वनस्पति घी की दुकानों से, आटे की चक्की के रूप में आय प्राप्त करती है।

9. कृषि उपकरणों की बिक्री से आय – जिला पंचायत खाद, बीज, कृषि यन्त्र आदि की बिक्री की भी व्यवस्था करती है। इनकी बिक्री से भी लाभ के रूप में कुछ आय प्राप्त होती है।

जिला पंचायतों की व्यय की प्रमुख मदें
जिला पंचायत की व्यय की मदें निम्नलिखित हैं

1. शिक्षा पर व्यय – जिला पंचायत सबसे अधिक व्यय शिक्षा पर करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रचार व प्रसार का उत्तरदायित्व जिला पंचायतों पर है। इसके लिए जिला पंचायत गाँवों में प्राइमरी स्कूल तथा जूनियर हाईस्कूल खोलती है। गाँवों में वाचनालय एवं पुस्तकालयों की भी व्यवस्था करती है।

2. सामान्य प्रशासन एवं करों की प्राप्ति पर व्यय – जिला पंचायत को अपने कार्यालय में कर्मचारियों के वेतन तथा करों की वसूली पर भी व्यय करना पड़ता है।

3. सार्वजनिक स्वास्थ्य – जिला पंचायतें ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल एवं जच्चा-बच्चा गृहों की व्यवस्था करती हैं। ये गाँवों में हैजा, चेचक, प्लेग आदि संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए टीके लगवाने की व्यवस्था करती हैं।

4. सार्वजनिक निर्माण कार्य – जिला पंचायत अपने क्षेत्र में सड़कें बनवाना, वृक्ष लगवाना, पुलों को निर्माण एवं मरम्मत की व्यवस्था करती है। इन कार्यों पर जिला पंचायत को पर्याप्त व्यय करना पड़ता है।

5. मेले तथा प्रदर्शनी पर व्यय – जिला पंचायत को जिले में लगने वाले मेलों तथा प्रदर्शनियों की व्यवस्था पर भी व्यय करना पड़ता है।

6. पंचायतों की आर्थिक सहायता – जिला पंचायत, ग्राम पंचायतों तथा क्षेत्रीय समितियों के कार्यों का निरीक्षण करती है तथा अनुदान के रूप में ग्राम पंचायतों को आर्थिक सहायता भी देती है।

7. ऋण पर ब्याज – जिला पंचायत कभी- कभी जिले के आर्थिक विकास के लिए ऋण भी ले लेती है। इन ऋणों पर उसे ब्याज देना पड़ता है।

8. अन्य मदें – जिला पंचायतें दीन-दु:खियों तथा अपाहिजों की सहायता करती हैं, जन्म-मृत्यु का विवरण रखती हैं, कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करती हैं तथा पशुओं आदि की बीमारी से रोकथाम की व्यवस्था करती हैं। इन सब कार्यों के लिए जिला पंचायते पर्याप्त धन व्यय करती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
अपने राज्य की नगर महापालिकाओं की आय के स्रोतों की व्याख्या कीजिए।
या
नगर महापालिकाओं की आय की प्रमुख मदें (मुख्य स्रोत) लिखिए।
उत्तर:
नगर महापालिकाओं की आय के प्रमुख स्रोत (प्रमुख मदें)
नगर महापालिकाओं की आय के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं

1. सम्पत्ति-कर – यह नगर महापालिकाओं की आय का एक प्रमुख स्रोत है। यह कर नगर महापालिकाओं की सीमा में स्थित भूमि, मकान तथा सम्पत्तियों के स्वामियो पर लगाया जाता है। यह दो प्रकार का होता हैं

  • गृह कर – भवन कर नगर महापालिका की आय का एक प्रमुख स्रोत है। यह कर नगर महापालिकाओं की सीमा में स्थित भूमि, मकान तथा सम्पत्तियों से वसूल किया जाता है।
  •  विकास कर – नगर महापालिकाओं द्वारा जब किसी क्षेत्र में विकास; जैसे–सड़कों का निर्माण, पुलों का निर्माण आदि किया जाता है तो नगर महापालिका कर वसूल करती है। इसे विकास कर कहते हैं।

2. जल-कर – नगर महापालिकाएँ अपने नागरिकों के लिए स्वच्छ पीने के पानी की व्यवस्था करती हैं। इसके बदले में वे जल-कर प्राप्त करती हैं।

3. चुंगी कर – चुंगी कर के द्वारा नगर महापालिकाओं को पर्याप्त आय होती है। चुंगी उन वस्तुओं पर लगायी जाती है जिनका नगर महापालिकाओं के क्षेत्र में आयात होता है अर्थात् जो वस्तुएँ नगर की सीमा से बाहर के क्षेत्रों से नगर की सीमा में आती हैं। उत्तर प्रदेश में अब यह कर बन्द कर दिया गया है।

4. सीमा कर – यह कर उन वस्तुओं पर लगाया जाता है जो रेल द्वारा नगर महापालिका के क्षेत्र में आती हैं।।

5. मार्ग कर – यह कर नगर महापालिकाओं की सीमा में पड़ने वाले पुलों, सड़कों, नदियों पर से गुजरने वाले व्यक्तियों, पशुओं तथा वाहनों पर उनके भार अथवा संख्या के आधार पर लगाया जाता है।

6. यात्री कर – यह कर तीर्थस्थानों की नगर महापालिकाओं या नगर पालिकाओं द्वारा लगाया जाता है। नगर महापालिकाएँ बाहर से आने वाले यात्रियों की सुविधा के लिए अतिरिक्त व्यय स्वास्थ्य, सफाई व जलापूर्ति पर करती हैं। इस कारण वे यह कर वसूल करती हैं। अब इस कर को केन्द्रीय सरकार ने अपने हाथ में ले लिया है।

7. तहबाजारी – यह कर अस्थायी दुकानदारों से वसूल किया जाता है। जो दुकानदार सड़क की पटरियों पर रखकर सामान बेचते हैं; जैसे-खोमचे वाले, फेरी वाले, हॉकर्स आदि; इनसे यह कर प्रतिदिन वसूल किया जाता है।

8. वाहन कर या लाइसेंस से आय – नगर महापालिकाएँ मोटरों, ऊँटगाड़ियों, बैलगाड़ियो. घोड़े-ताँगों, ठेलों, रिक्शा आदि पर कर लगाती हैं तथा उन्हें लाइसेंस प्रदान करती हैं।

9. राज्य सरकार से अनुदान – राज्य सरकार नगर महापालिकाओं को उनके व्यय की पूर्ति हेतु अनुदान देती है।

प्रश्न 2
नगर महापालिकाओं की व्यय की मदों को लिखिए। [2010]
उत्तर:
नगर महापालिकाओं के व्यय की मदें।

1. प्रशासन और कर-संग्रह पर व्यय – नगर महापालिकाओं को अपने प्रशासन हेतु कार्यालय व्यवस्था करनी होती है। अत: कार्यालयों के कर्मचारियों के वेतन तथा सामग्री पर व्यय करना पड़ता है। करों को वसूल करने में भी आय का पर्याप्त भाग व्यय होता है।

2. सार्वजनिक सुरक्षा पर व्यय – नगर महापालिकाएँ सार्वजनिक सुरक्षा की दृष्टि से आग बुझाने के लिए दमकलें रखती हैं, सड़कों के चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस के उड़े होने के लिए चबूतरे बनवाती हैं तथा सार्वजनिक स्थानों पर बिजली व रोशनी का प्रबन्ध करती हैं। इन मदों पर भी प्रतिवर्ष काफी व्यय होता है।

3. सार्वजनिक स्वास्थ्य व चिकित्सा – नगर महापालिकाएँ नि:शुल्क चिकित्सा व्यवस्था प्रदान करती हैं। चेचक, हैजा, प्लेग आदि रोगों की रोकथाम के लिए टीके लगवाती हैं, नगर की सफाई की व्यवस्था करती हैं तथा बाजार में बिकने वाली अशुद्ध वस्तुओं पर रोक लगाती हैं। इन सब कार्यों को पूरा करने के लिए नगर महापालिकाओं का पर्याप्त धन व्यय होता है।

4. शिक्षा पर व्यय – नगर महापालिकाएँ अपने क्षेत्र में प्राइमरी शिक्षा की व्यवस्था करती हैं। कुछ नगर महापालिकाएँ जू० हा० स्कूल, हाईस्कूल व इण्टरमीडिएट कॉलेज भी चलाती हैं। इस मद पर भी नगर महापालिकाएँ धन व्यय करती हैं।

5. सार्वजनिक निर्माण कार्य – नगर महापालिकाओं को उद्योगों व पार्को की व्यवस्था करनी पड़ती है। खेल के मैदान एवं व्यायामशालाओं आदि का निर्माण भी करना पड़ता है तथा अपने क्षेत्र में टूटी-फूटी सड़कों का निर्माण एवं मरम्मत भी करानी पड़ती है। इन सभी कार्यों को सम्पादित करने में प्रतिवर्ष पर्याप्त धन व्यय करना पड़ता है।

6. पेयजल की व्यवस्था पर व्यय – नगर महापालिकाओं का एक प्रमुख कर्तव्य अपने क्षेत्र के नागरिकों को पीने के लिए शुद्ध जल की व्यवस्था करना है। इस कार्य के लिए नगर महापालिकाएँ नलकूपों का निर्माण कराकर टंकियों के माध्यम से पेयजल की व्यवस्था करती हैं। सार्वजनिक स्थानों पर नल भी लगवाती हैं। इस मद पर भी धन व्यय करना पड़ता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
स्थानीय संस्थाओं की व्यय की मदों का उल्लेख कीजिए। [2012]
उत्तर:
स्थानीय संस्थाओं की व्यय की मदें निम्नलिखित हैं

  1.  चिकित्सा व स्वास्थ्य – इस कार्य में अस्पताल, दवा, डॉक्टर आदि का व्यय सम्मिलित होता है।
  2. परिवहन – स्थानीय संस्थाओं को परिवहन पर भी पर्याप्त व्यय करना पड़ता है। सड़कों के निर्माण पर अधिक व्यय किया जाता है।
  3.  शिक्षा – माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा की मुफ्त व्यवस्था की गयी है।
  4.  नागरिक सेवाएँ – इसमें सफाई, जन स्वास्थ्य, प्रकाश, विद्यालयों की देख-रेख व जल की व्यवस्था सम्मिलित की जाती है।
  5. कल्याण कार्य  – समाज कल्याण कार्यों को इसमें सम्मिलित किया जाता है; जैसे – मनोरंजन व्यय, कल्याण केन्द्र, विश्राम-गृह आदि।।
  6. विकास कार्य – कृषि, परिवहन, उद्योग, सिंचाई आदि के विकास पर आवश्यक धन व्यय करना होता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
राज्यों की आय के दो कर-स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) भू-राजस्व या मालगुजारी तथा
(2) विद्युत कर।

प्रश्न 2
जिला परिषद् की आय के दो साधन बताइए।
उत्तर:
(1) हैसियत या सम्पत्ति कर तथा
(2) राज्य सरकार से अनुदान।

प्रश्न 3
इस प्रदेश की जिला परिषद् की व्यय की दो प्रमुख मदों को लिखिए।
उत्तर:
(1) शिक्षा पर व्यय तथा
(2) करों की प्राप्ति पर व्यय।

प्रश्न 4
नगर महापालिकाओं की आय के दो साधन लिखिए।
उत्तर:
(1) सम्पत्ति-कर या गृहकर तथा
(2) जल-कर।

प्रश्न 5
नगर महापालिकाओं की व्यय की दो प्रमुख मदों को लिखिए।
उत्तर:
(1) शिक्षा तथा
(2) सार्वजनिक स्वास्थ्य व चिकित्सा।

प्रश्न 6
उत्तर प्रदेश के नगर निगमों के नगरों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) कानपुर,
(2) आगरा,
(3) वाराणसी,
(4) इलाहाबाद,
(5) लखनऊ,
(6) मेरठ,
(7) बरेली,
(8) गोरखपुर, झॉसी, मथुरा, सहारनपुर, गाजियाबाद, मुरादाबाद, अलीगढ़।।

प्रश्न 7
स्थानीय निकाय की आय का एक स्रोत लिखिए। [2006]
उत्तर:
गृह-कर।

प्रश्न 8
स्थानीय निकाय की व्यय की दो मदों के नाम लिखिए। [2016]
उत्तर:
(1) शिक्षा,
(2) सार्वजनिक स्वास्थ्य व चिकित्सा।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
नगर निगम के मुख्य पदाधिकारी को कहते हैं
(क) जिलाधीश
(ख) नगर-प्रमुख
(ग) स्वास्थ्य अधिकारी
(घ) पुलिस अधीक्षक
उत्तर:
(ख) नगर-प्रमुख।

प्रश्न 2
जिला पंचायत एक संस्था है
(क) स्थायी
(ख) अस्थायी
(ग) स्थायी एवं अस्थायी दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) स्थायी।

प्रश्न 3
स्थानीय निकायों को अनुदान दिये जाते हैं
(क) राज्य सरकार द्वारा
(ख) केन्द्रीय सरकार द्वारा
(ग) केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा
(घ) इनमें से किसी के द्वारा नहीं।
उत्तर:
(क) राज्य सरकार द्वारा।

प्रश्न 4
निम्नलिखित में से कौन-सा कर स्थानीय निकायों द्वारा लगाया जाता है? [2006, 15]
(क) गृह-कर
(ख) बिक्री-कर
(ग) भू-राजस्व
(घ) आय-कर
उत्तर:
(क) गृह-कर।

प्रश्न 5
कौन-सी सरकार गृह कर लगाती है? [2013, 15]
(क) केन्द्र सरकार
(ख) राज्य सरकार
(ग) स्थानीय सरकार
(घ) येसभी
उत्तर:
(ग) स्थानीय सरकार।

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UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 2

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Model Paper Paper 2
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 2

पूर्णाक : 70
समय : 3 घण्टे 15 मिनट

निर्देश: प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
नोट:

  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
  • आवश्यकतानुसार अपने उत्तरों की पुष्टि नामांकित रेखाचित्रों द्वारा कीजिए।
  • सभी प्रश्नों के निर्धारित अंक उनके सम्मुख

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए।
(क) टर्नर सिण्ड्रोम के लिए निम्न में से कौन-सा संकेत सही है? [1]
(A) AAXO
(B) AAXYY
(C) AAXXY
(D) AAXXX

(ख) उपदंश उत्पन्न करने वाला जीवाणु है [1]
(A) ट्रिपोनिमा पैलिडम
(B) नाइसीरिया गोनोरी
(C) लिस्टेरिया मोनोसिस्टोजेन्स
(D) परसिनिया पेस्टिस

(ग) निम्न में से संक्रामक रोग है [1]
(A) पीलिया
(B) मलेरिया
(C) तपेदिक
(D) हैजा

(घ) मोनोक्लोनल प्रतिरक्षी के लिए हाइब्रिडोमा तकनीक की खोज की [1]
(A) नीरेनबर्ग तथा खुराना ने
(B) जेम्स एलरिक ने
(C) जॉर्ज कोहलर ने
(D) जेम्स ग्रिफिथ ने

प्रश्न 2.
(क) निषेचन के बाद पादप के किस भाग से फल तथा बीज का निर्माण होता है? [1/2+1/2]
(ख) मेण्डल द्वारा कराए गए द्विगुण संकरण में F-पीढ़ी में प्राप्त फीनोटाइप (लक्षण प्रारूप) बताइए। [1]
(ग) भक्षकाणु या फैगोसाइट्स क्या होते हैं? [1]
(घ) जैव-प्रौद्योगिकी की परिभाषा लिखिए। [1]
(ङ) आयु का घण्टीनुमा पिरामिड क्या प्रदर्शित करता है? [1]

प्रश्न 3.
(क) जर्मप्लाज्म सिद्धान्त क्या है?
(ख) ग्राफियन पुटिका क्या है? अण्डोत्सर्ग में इनकी क्या भूमिका होती है? [1+1]
(ग) जैविक खाद क्या होती है? एक उदाहरण दो। [1+1]
(घ) वह कौन-सी परत है, जो पृथ्वी पर पराबैंगनी किरणों को आने से रोकती है? इसे परत के अपक्षय के कारण बताइए। [1+1]
(ङ) बायोपाइरेसी से आप क्या समझते हैं? उदाहरण दीजिए। [2]

प्रश्न 4.
(क) डार्विन की फिंचों के अनुकूली विकिरण को समझाइए। [3]
(ख) अपूर्ण प्रभाविता क्या है? इसकी खोज किसने की? [2+1]
(ग) जैव-प्रौद्योगिकी में सहयोगी एन्जाइमों का उल्लेख कीजिए। [3]
(घ) रेगिस्तान में उगने वाले पादपों को क्या कहते हैं? इनमें कौन-से शारीरिक अनुकूलन पाए जाते हैं? [1+2]

प्रश्न 5.
(क) निम्न रोगों के रोगकारक के नाम बताइए। [1/2 x 6]

  1. मलेरिया
  2. सुजाक
  3. अफ्रीकी निद्रा रोग
  4. फीलपाँव
  5. दाद
  6. पोलियो

(ख) यदि कोई व्यक्ति वृद्धिरोधक का प्रयोग करते हुए अनिषेकजनन को प्रेरित करता है, तो आप प्रेरित अनिषेकजनन के लिए कौन-सा फल चुनते हैं तथा क्यों? [1  1/2+1  1/2]
(ग) मिलर का प्रयोग क्या था? इससे उन्होंने क्या निष्कर्ष निकाला? [2+1]
(घ) GM फसलें क्या हैं? इनके लाभ बताइए। [1+2]

प्रश्न 6.
(क) विभ्रमक व ओपिएट्स औषधियाँ क्या हैं? उदाहरण सहित बताइए। [1  1/2+1  1/2]
(ख) बन्ध्यता क्या है? स्त्रियों में बन्ध्यता के कोई चार कारण बताइए। [1+2]
(ग) एक तालाब के पारिस्थितिकी तन्त्र के विभिन्न घटकों का वर्णन कीजिए। [3]
(घ) तुलनात्मक शारीरिकी से विकास के क्या प्रमाण मिलते हैं? [3]

प्रश्न 7.
मरुक्रमक की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए। [5]
अथवा
द्विबीजपत्री पादपों में निषेचन एवं भ्रूणोद्भव की सम्पूर्ण प्रक्रिया का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। [5]

प्रश्न 8.
चिकित्सा के क्षेत्र में जैव-प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए। [5]
अथवा
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के सम्बन्ध में ओपेरॉन परिकल्पना का वर्णन कीजिए। [5]

प्रश्न 9.
जैव-प्रबलीकरण किसे कहते हैं? इसके विभिन्न प्रकारों तथा विधियों का वर्णन करते हुए इसके लाभ तथा हानि की विवेचना कीजिए। [1+2+2]
अथवा
पुष्पी पादपों में पर-परागण की विभिन्न युक्तियों तथा माध्यमों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। [5]

Answers

उत्तर 1.
(क) (A)
(ख) (A)
(ग) (C)
(घ) (C)

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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 16 Source of Income and Items of Expenditure of U.P. Government

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Subject Economics
Chapter Chapter 16
Chapter Name Source of Income and Items of Expenditure of U.P. Government (उत्तर प्रदेश सरकार की आय के स्रोत तथा व्यय की मदें)
Number of Questions Solved 27
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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 16 Source of Income and Items of Expenditure of U.P. Government (उत्तर प्रदेश सरकार की आय के स्रोत तथा व्यय की मदें)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
अपने राज्य की सरकार की आय के प्रमुख स्रोतों और व्यय की प्रमुख मदों का विवरण दीजिए। [2006, 09, 11, 12]
या
प्रदेश सरकार की आय के किन्हीं तीन स्रोतों तथा व्यय की किन्हीं तीन मदों का वर्णन कीजिए। [2013]
या
राज्य सरकार की कर आय के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए। [2015, 16]
उत्तर:
प्रदेश सरकार की आय के प्रमुख स्रोत

1. मालगुजारी – यह राज्य सरकार की आय का एक प्रमुख स्रोत है। यह बहुत प्राचीन समय से चला आ रहा है तथा उन व्यक्तियों को देना होता है जिनके पास कृषि भूमि होती है। मालगुजारी निर्धारित करते समय देश के विभिन्न राज्यों में पृथक्-पृथक् नीतियाँ अपनायी गयी हैं। यह भूमि पर लगाया गया एक अवरोही कर है, क्योंकि यह निर्धन तथा धनवान लोगों को समान रूप से देना होता है। मालगुजारी या तो स्थायी होती है अथवा समय-समय पर राज्य सरकार द्वारा निश्चित की जाती है। मालगुजारी या भू-राजस्व का एक प्रमुख गुण यह है कि इनसे राज्य सरकारों को एक निश्चित धनराशि प्राप्त होती है तथा दूसरा प्रमुख गुण यह है कि यह कर सुविधाजनक है, क्योंकि यह कृषकों से उनके निवास स्थान से फसल आने के पश्चात् अमीनों द्वारा वसूल किया जाता है तथा यदि फसल खराब हो जाती है तो सरकार लगान माफ भी कर देती है अथवा कुछ छूट देती है।

2. राज्य उत्पादन कर – भारत के नवीन संविधान के अनुसार केन्द्रीय उत्पादन कर का एक भाग तो राज्य सरकारों को प्राप्त होता ही है, साथ ही उन्हें कुछ नशीली वस्तुओं; जैसे-शराब, अफीम तथा औषधियों पर उत्पादन करे लगाने का अधिकार दिया गया है। ऐसी वस्तुओं के उत्पादन पर राज्य सरकार द्वारा लगाये गये कर ही राज्य उत्पादन कर’ के नाम से जाने जाते हैं। इस कर से उन राज्यों को पर्याप्त आय होती है जिनमें मद्य निषेध लागू नहीं हैं। इस कर को दो उद्देश्यों से लगाया जाता है-प्रथम, आय प्राप्त करने के लिए और द्वितीय, मादक पदार्थों के उपभोग को कम करने के लिए। अब भारत में कुछ राज्यों ने अपने यहाँ मद्य-निषेध लागू कर दिया है।

3. कृषि आयकर – भारत के संविधान के अनुसार राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्य में कृषि आयकर लगाने का अधिकार दिया गया है। यह कर कृषकों पर प्रगतिशील दरों पर लगाया जाता है तथा उन व्यक्तियों पर ही लगाया जाता है जिनके पास सीमा से अधिक भूमि होती है।

4. बिक्री-कर – बिक्री-कर राज्य की आय का एक प्रमुख स्रोत है। समाचार-पत्रों को छोड़कर अन्य वस्तुओं की बिक्री पर कर लगाने का अधिकार संविधान के अनुसार राज्य सरकारों को दिया गया है। यह कर एक अवरोही कर होता है। इसका भार निर्धन व्यक्तियों पर अधिक पड़ता है, क्योंकि निर्धन व्यक्ति अपनी आय का लगभग शत-प्रतिशत अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को खरीदने पर व्यय करते हैं।

5. प्रशासनिक प्राप्तियाँ – राज्य को अपने प्रशासनिक विभागो, जैसे न्यायालय, जेल, पुलिस, शिक्षा चिकित्सा आदि से फीस और शुल्क के रूप में भी कुछ आय प्राप्त होती है।

6. राजकीय व्यवसाय से प्राप्त आय – राज्य सरकार को सार्वजनिक व्यवसायों से भी आय प्राप्त होती है, उनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं

  •  सार्वजनिक उद्योग – राज्य सरकार कुछ व्यावसायिक कार्यों का संचालन करती है जिनसे उन्हें प्रतिवर्ष कुछ आय प्राप्त होती हैं; जैसे – चुर्क सीमेण्ट का कारखाना आदि से आय।
  •  सिंचाई कार्य – सरकार ने सिंचाई व्यवस्था के लिए नहरें एवं नलकूपों की व्यवस्था की हुई है। सरकारी नहरों व नलकूपों से सिंचाई शुल्क के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार को आय प्राप्त होती है।
  • सार्वजनिक निर्माण कार्य – उत्तर प्रदेश सरकार को सरकारी सम्पत्तियों, जैसे – सरकारी मकान, सड़कें, पुल आदि से भी आय प्राप्त होती है।
  •  वनों से आय – राज्य सरकारों को वनों से भी आय प्राप्त होती है। वनों को ठेकों पर देकर तथा उनकी लकड़ी, छाल, कत्था आदि की बिक्री से भी आय प्राप्त होती है।
  •  सड़क तथा जल परिवहन – उत्तर प्रदेश सरकार को सड़क परिवहन तथा जल परिवहन सेवाओं से भी आय प्राप्त होती है।

7. आय-प्राप्ति के अन्य साधन – उत्तर प्रदेश सरकार को अन्य साधनों से भी आय प्राप्त होती है, जिनमें कुछ निम्नलिखित हैं

  • विद्युत शुल्क – राज्य सरकार को विद्युत शुल्क से आय प्राप्त होती है।
  •  यात्री कर – जो व्यक्ति राज्य सड़क परिवहन की बसों में यात्रा करते हैं, उन्हें किराये के अतिरिक्त यात्रा कर भी देना होता है, जिससे राज्य सरकार को आय प्राप्त होती है।
  • स्टाम्प शुल्क – सरकार को स्टाम्प की बिक्री से भी आय प्राप्त होती है।
  •  रजिस्ट्रेशन शुल्क – अचल सम्पत्तियों की बिक्री के लिए सम्पत्ति की रजिस्ट्री कराना अनिवार्य है इसके लिए रजिस्ट्रेशन शुल्क लिये जाते हैं इसी प्रकार संस्था समितियों आदि का रजिस्ट्रेशन कराने पर भी रजिस्ट्रेशन शुल्क देना होता है जिससे सरकार को पर्याप्त आय प्राप्त होती है।
  • मनोरंजन कर – उत्तर प्रदेश सरकार चल-चित्रों, थियेटरो नाटक व अन्य मनोरंजन के साधनों पर कर लगाती है। इससे भी उत्तर प्रदेश सरकार को पर्याप्त आय प्राप्त होती है।

8. आयकर में राज्यों का भाग – आय कर लगाने और वसूल करने का अधिकार केन्द्रीय सरकार का है, परन्तु इस आय में से एक निश्चित भाग राज्यों में बाँटा जाता है। केन्द्रीय उत्पादन करों में राज्यों का हिस्सा – वित्त आयोग की सिफारिश पर केन्द्रीय उत्पादन करों से प्राप्त आय में से एक निश्चित धनराशि प्राप्त होती है।
9. सहायता एवं अनुदान – केन्द्रीय सरकार राज्य सरकारों को अनुदान देती है जिससे वे अपनी पंचवर्षीय योजनाओं एवं विकास कार्यों को क्रियान्वित कर सकें। उत्तर प्रदेश सरकार को भी केन्द्रीय सरकार से अनुदान प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त राज्यों को बाढ़, सूखा, भूकम्प आदि प्राकृतिक विपदाओं से निपटाने के लिए भी केन्द्रीय सरकार विशेष सहायता प्रदान करती है।

उत्तर प्रदेश सरकार की व्यय की प्रमुख मदें
राज्य सरकार के होने वाले समस्त व्ययों को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित कर सकते हैं
(अ) विकास व्यय तथा
(ब) गैर-विकास व्यय।

(अ) विकास व्यय

विकास व्यय को पुन: निम्नलिखित दो भागों में विभाजित कर सकते हैं
(क) प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक विकास करने वाली मदे – राज्य सरकारें अपने राज्यों में प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक विकास करने के लिए अग्रलिखित मदों पर व्यय करती हैं

1. कृषि – प्रदेश की सरकार कृषि विकास हेतु विभिन्न कार्यों पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये व्यय करती है; जैसे-कृषि प्रदर्शनियों का आयोजन, आदर्श कृषि फार्मों की स्थापना, पौधों के संरक्षण की व्यवस्था, कृषि शिक्षा, कृषि अनुसन्धान आदि।

2. सहकारिता – राज्य सरकार सहकारिता विभाग का संचालन करने के लिए तथा सहकारी समितियों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए प्रतिवर्ष बड़ी मात्रा में धन खर्च करती है।

3. पशुपालन – पशुपालन सम्बन्धी कार्यों पर हमारे प्रदेश की सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये व्यय करने होते हैं; जैसे-पशुओं की चिकित्सा, पशु चिकित्सालयों की व्यवस्था करना, पशुओं की नस्ल में सुधार, कृत्रिम गर्भाधान की व्यवस्था आदि।

4. उद्योग – धन्धे प्रदेश की सरकार अपने प्रदेश में लघु उद्योगों तथा बड़े उद्योगों का विकास करने के लिए प्रतिवर्ष पर्याप्त मात्रा में धन व्यय करती है। औद्योगिक एवं तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था हेतु राज्य सरकार के व्यय में वृद्धि जा रही है।

5. सिंचाई – सिंचाई की प्रदेश में उचित व्यवस्था करने के लिए प्रदेश सरकार बड़ी मात्रा में धन व्यय करती है। यह राज्य सरकार के व्यय का एक प्रमुख साधन है। इसके अन्तर्गत नहरों व नलकूपों को खोदने व उसकी मरम्मत पर होने वाले व्यय, बाँध-निर्माण आदि व्यय होते हैं। सूखा एवं कम वर्षा की कठिनाइयों को दूर करने के लिए सिंचाई सुविधाओं का विस्तार आवश्यक है।

6. सार्वजनिक कार्य – इस मद के अन्तर्गत सड़कों, सरकारी मकानों आदि के निर्माण एवं उनकी मरम्मत पर होने वाले व्यय सम्मिलित किये जाते हैं। सरकार की आय का यह बड़ा भाग इन निर्माण कार्यों पर व्यय होता है।

7. सामुदायिक विकास परियोजनाएँ – इन परियोजनाओं का प्रमुख उद्देश्य गाँवों का सर्वांगीण विकास करना तथा कृषि की उन्नति करना है। अतः अनेक परियोजनाओं को चालू करने में बहुत-सा धन व्यय करना पड़ता है।

8. यातायात – इसके अन्तर्गत सड़क एवं जल परिवहन पर होने वाले व्यय सम्मिलित किये जाते हैं। इस मद पर भी राज्य सरकार को बड़ी धनराशि व्यय करनी पड़ती है।

9. ऋण सेवाएँ – राज्य सरकार अपने राज्य में विभिन्न विकास योजनाओं को चालू करने के लिए जो ऋण लेती है, उसका ब्याज उसे प्रतिवर्ष चुकाना पड़ता है। अतः यह राज्य के व्यय का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। राज्य सरकार द्वारा निरन्तर आन्तरिक ऋण लिये जाने के परिणामस्वरूप ऋण सेवाओं पर ब्याज तथा अन्य भुगतानों की राशि बढ़ती ही जा रही है। राज्य सरकार द्वारा निरन्तर आन्तरिक ऋण लिये जाने के परिणास्वरूप ऋण सेवाओं पर ब्याज तथा अन्य भुगतानों की राशि बढ़ती ही जा रही है।

(ख) परोक्ष रूप से आर्थिक विकास करने वाली मदें – इस प्रकार के कार्यों की मदों का वर्णन हम संक्षेप में निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं

1. शिक्षा – उत्तर प्रदेश की सरकार की व्यय की मदों में शिक्षा पर होने वाले व्यय का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके अन्तर्गत शिक्षा सम्बन्धी सुविधाओं के प्रसार पर होने वाले समस्त व्यय सम्मिलित हैं। अब इस मद पर होने वाले व्यय की राशि में भी निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।
2. समाज कल्याण – समाज कल्याण से सम्बन्धित कार्यों को करने के लिए भी उत्तर प्रदेश सरकार को बहुत-सा धन व्यय करना पड़ता है; जैसे-वृद्ध व्यक्तियों तथा विधवाओं को पेंशन, अनाथ बच्चों की सहायता करना, पतितों का उद्धार करना आदि।
3. श्रम एवं रोजगार – उत्तर प्रदेश सरकार को श्रमिकों के कल्याण कार्यों तथा उन्हें रोजगार दिलाने की उचित व्यवस्था करने पर प्रतिवर्ष बड़ी मात्रा में धन व्यय करना पड़ता है।
4. चिकित्सा तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य – चिकित्सा तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य के अन्तर्गत राज्य सरकार के द्वारा अस्पतालों तथा प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों को खोलने के व्यय तथा नि:शुल्क चिकित्सा की सुविधा प्रदान करने वाले व्यय सम्मिलित किये जाते हैं।
5. पिछड़े वर्ग के लोगों की सहायतार्थ कार्य – उत्तर प्रदेश सरकार अपने प्रदेश के उन लोगों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए कार्य कर रही है जो कि पिछड़े हुए हैं।

(ब) गैर-विकास व्यय
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित कुछ प्रमुख व्यय की मदें आती हैं

  1. पुलिस – प्रत्येक राज्य अपने क्षेत्र में शान्ति एवं सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस रखता है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् इस मद पर होने वाले व्यय में भी निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।
  2. सामान्य प्रशासन – सामान्य प्रशासन पर भी उत्तर प्रदेश सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये व्यय करने पड़ते हैं। इस मद के अन्तर्गत राज्यपाल, मुख्यमन्त्री, मन्त्रियों, सचिवालयों, आयुक्तों, जिलाधीशों एवं अन्य सरकारी कर्मचारियों के वेतन आदि से सम्बन्धित व्यय सम्मिलित किये जाते हैं।
  3. जेल – उत्तर प्रदेश सरकार को जेलों पर भी व्यय करना पड़ता है।
  4. न्याय – प्रदेश में न्यायालयों की उचित व्यवस्था करने के लिए भी प्रदेशीय सरकार को धन व्यय करना पड़ता है।
  5. कर वसूली पर आय – राज्य सरकार अपने राज्य में अनेक प्रकार के कर लगाती है। करदाताओं से इन करों को वसूल करने में राज्य सरकार को कुछ धन व्यय करना होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
उत्तर प्रदेश सरकार की आय, व्यय की अपेक्षा कम है, क्यों? कारण बताइए।
उत्तर:
उत्तर प्रदेश सरकार की आय, व्यय की अपेक्षा कम होने के कारण – स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् राज्य सरकार की आय व व्यय दोनों में वृद्धि हुई है, परन्तु व्यय में वृद्धि आय की अपेक्षा अधिक हुई है। इसका कारण निम्नलिखित है

  1. विकास व्यय में वृद्धि।
  2. ऋण सेवाओं के व्यय में वृद्धि।
  3.  प्रशासनिक व्यय में वृद्धि।
  4.  जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होना।

उपर्युक्त कारणों से राज्य सरकार का व्यय निरन्तर बढ़ता जा रहा है।
राज्य सरकार की आय कम होने के कारण

  1. राज्य सरकार की आय के स्रोत अपर्याप्त एवं बेलोच हैं।
  2. राज्य सरकार का पर्याप्त ऋण प्राप्त करने में असफल रहना है।
  3. आय का एक बड़ा भाग प्रशासनिक व्यवस्था एवं जनतन्त्रीय संस्थाओं पर व्यय किया जाता है।
  4.  करों का भार निर्धनों पर अधिक तथा धनिकों पर कम होना है।
  5.  उपर्युक्त कारणों से उत्तर प्रदेश सरकार की आय, व्यय की अपेक्षा कम है।

प्रश्न 2
उत्तर प्रदेश सरकार अपने बढ़ते हुए व्यय को किस प्रकार कम कर सकती है?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश की आय एवं व्यय दोनों में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है, परन्तु व्यय में वृद्धि आय की अपेक्षा अधिक हुई है। इसका प्रमुख कारण विकास व्यय, ऋण-सेवाएँ व्यय एवं प्रशासनिक व्यय में तीव्र गति से वृद्धि होना है।
उत्तर प्रदेश सरकार की आय बढ़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए

  1.  प्रशासनिक एवं अनावश्यक व्यय कम किये जाने चाहिए।
  2. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से अधिक आय प्राप्त करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
  3.  करों की चोरी रोकने हेतु प्रभावशाली कदम उठाये जाने चाहिए।
  4.  नवीन करों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  5.  करों को प्राप्त करने के लिए करों पर होने वाला व्यय कम किया जाए।
  6.  प्रदेश में आवश्यक रूप से बना विशाल मन्त्रिमण्डल का आकार छोटा किया जाने की आवश्यकता है।
    उपर्युक्त उपायों के द्वारा प्रदेश सरकार बढ़ते हुए व्यय के साथ समायोजन कर सकती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
उत्तर प्रदेश सरकार की आय के साधन कम होने के चार कारण लिखिए।
उत्तर:
उत्तर प्रदेश सरकार की आय के साधन अग्रलिखित कारणों से कम हैं

  1. आय स्रोतों में लोच का अभाव है।
  2. राज्य सरकार को केन्द्र पर निर्भर रहना पड़ता है।
  3.  उत्तर प्रदेश की जनसंख्या अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक है।
  4. भू-राजस्व आदि से आय बहुत कम होती है।

प्रश्न 2
राज्य सरकार द्वारा लगाये जाने वाले दो करों के नाम लिखिए।
उत्तर:
राज्य सरकार द्वारा लगाये जाने वाले दो कर निम्नलिखित हैं

  1. कृषि आयकर – भारत के संविधान के अनुसार राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्य में कृषि आयकर लगाने का अधिकार दिया गया है। यह कर कृषकों पर प्रगतिशील दरों पर लगाया जाता है तथा उन व्यक्तियों पर ही लगाया जाता है जिनके पास सीमा से अधिक भूमि होती है।
  2. बिक्री-कर – बिक्री-कर राज्य की आय का एक प्रमुख स्रोत है। समाचार-पत्रों को छोड़कर अन्य वस्तुओं की बिक्री पर कर लगाने का अधिकार संविधान के अनुसार राज्य सरकारों को दिया गया है। यह कर एक अवरोही कर होता है। इसका भार निर्धन व्यक्तियों पर अधिक पड़ता है, क्योंकि निर्धन व्यक्ति अपनी आय का लगभग शत-प्रतिशत अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को खरीदने पर व्यय करते हैं।

प्रश्न 3
राज्य सरकार द्वारा लगाये जाने वाले किन्हीं दो प्रत्यक्ष और किन्हीं दो अप्रत्यक्ष करों के नाम लिखिए। [2013]
उत्तर:
राज्य सरकार द्वारा लगाये जाने वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर निम्नवत् हैं

प्रत्यक्ष कर – (1) कृषि आयकर तथा (2) सम्पत्ति कर।
अप्रत्यक्ष कर – (1) मनोरंजन कर तथा (2) बिक्री-कर।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
भू-राजस्व के दो गुण बताइए।
उत्तर:
भू-राजस्व के दो गुण हैं

  1.  भू-राजस्व से निश्चित आय प्राप्त होती है तथा
  2. यह कर पर्याप्त सुविधाजनक है।

प्रश्न 2
भू-राजस्व के दो दोष बताइए।
उत्तर:
भू-राजस्व के दो दोष हैं

  1. यह कर अन्यायपूर्ण है तथा
  2.  कर को वसूल करने में कठिनाइयाँ आती हैं।

प्रश्न 3
उत्तर प्रदेश सरकार की आय की दो प्रमुख मदों को लिखिए।
उत्तर:
(1) भू-राजस्व या मालगुजारी तथा
(2) बिक्री-कर।

प्रश्न 4
उत्तर प्रदेश सरकार की व्यय की दो प्रमुख मदों को लिखिए।
उत्तर:
(1) करों, शुल्कों को वसूल करने पर व्यय तथा
(2) सामान्य प्रशासन पर व्यय।

प्रश्न 5
उत्तर प्रदेश सरकार की आय कम होने के दो कारण लिखिए। [2007]
उत्तर:
आय कम होने के दो कारण हैं

  1. राज्य सरकार की आय के स्रोत अपर्याप्त एवं बेलोच हैं तथा
  2.  जनसंख्या का तीव्र गति से बढ़ना।

प्रश्न 6
राज्य सरकार के व्यय को कम करने के दो उपाय बताइए।
उत्तर:

  1.  प्रशासनिक व्यय में कटौती की जाए तथा
  2. अनावश्यक व्यय कम किये जाएँ।

प्रश्न 7
राज्य सरकार द्वारा लगाये जाने वाले किन्हीं चार करों के नाम लिखिए। [2006]
उत्तर:
(1) कृषि आयकर
(2) बिक्री-कर
(3) राज्य उत्पादन कर
(4) मनोरंजन कर।

प्रश्न 8
उत्तर प्रदेश सरकार की व्यय की दो प्रमुख मदों को लिखिए।
उत्तर:
उत्तर प्रदेश सरकार की व्यय की दो प्रमुख मदें हैं

  1.  सार्वजनिक या सामान्य प्रशासन पर व्यय तथा
  2. चिकित्सा, सार्वजनिक स्वास्थ्य व परिवार कल्याण पर व्यय।।

प्रश्न 9
रजिस्ट्री शुल्क किस सरकार की आय का स्रोत है ?
उत्तर:
रजिस्ट्री शुल्क उत्तर प्रदेश सरकार की आय का स्रोत है।

प्रश्न 10
बिक्री-कर किस सरकार के द्वारा लगाया जाता है ?
उत्तर:
बिक्री-कर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगाया जाता है।

प्रश्न 11
उत्तर प्रदेश सरकार की आय में प्रत्यक्ष करों का अंश अप्रत्यक्ष करों की अपेक्षा कैसा है?
उत्तर:
कम है।

प्रश्न 12
व्यापार कर कौन-सी सरकार लगाती है? [2007]
उत्तर:
व्यापार कर राज्य सरकार लगाती है।

प्रश्न 13:
मनोरंजन कर किसे सरकार के राजस्व से सम्बन्धित है? [2007, 11, 13, 16]
या
मनोरंजन कर कौन-सी सरकार लगाती है? [2014, 16]
उत्तर:
राज्य सरकार।

प्रश्न 14
भारत में कृषि आय कर कौन लगाता है? [2008]
उत्तर:
राज्य सरकार।

प्रश्न 15
भारत में बिक्री कर किस सरकार की आय का प्रमुख स्रोत है? [2014]
उत्तर:
राज्य सरकार की।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
निम्नलिखित में उत्तर प्रदेश सरकार की आय की मद कौन-सी है? [2010]
(क) बिक्री कर
(ख) उपहार कर
(ग) आय कर
(घ) मृत्यु कर
उत्तर:
(क) बिक्री कर।

प्रश्न 2
भू-राजस्व किसकी आय का स्रोत है?
(क) केन्द्रीय सरकार की
(ख) भू स्वामी की
(ग) राज्य सरकार की
(घ) स्थानीय सरकार की
उत्तर:
(ग) राज्य सरकार की।

प्रश्न 3
राज्य उत्पादन शुल्क लगाया जाता है
(क) केन्द्रीय सरकार द्वारा
(ख) राज्य सरकार द्वारा
(ग) स्थानीय सरकार द्वारा।
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) राज्य सरकार द्वारा।

प्रश्न 4
कौन-सा कर राज्य सरकार की आय का स्रोत नहीं है? [2006]
(क) निगम कर
(ख) व्यापार कर
(ग) मूल्य-संवर्धित कर
(घ) मनोरंजन कर
उत्तर:
(क) निगम कर।

प्रश्न 5
सिनेमा पर मनोरंजन कर का भुगतान किसके द्वारा किया जाता है? [2007, 12]
(क) निर्माता द्वारा
(ख) वित्त प्रबन्धक द्वारा
(ग) निर्देशक द्वारा
(घ) दर्शक द्वारा
उत्तर:
(घ) दर्शक द्वारा।

प्रश्न 6
निम्नलिखित में से कौन राज्य सरकारों की आय का सीधा स्रोत नहीं है? [2012]
(क) व्यापार कर
(ख) आय कर
(ग) मनोरंजन कर
(घ) रजिस्ट्री शुल्क
उत्तर:
(ग) मनोरंजन कर।

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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 15 Sources of Income and Items of Expenditure of Central Government

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 15
Chapter Name Chapter 15 Sources of Income and Items of Expenditure of Central Government (केन्द्रीय सरकार की आय के स्रोत तथा व्यय की मदें)
Number of Questions Solved 29
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 15 Sources of Income and Items of Expenditure of Central Government (केन्द्रीय सरकार की आय के स्रोत तथा व्यय की मदें)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
भारत में केन्द्र सरकार की आय के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए। [2009, 10, 12, 14, 16]
या
भारत में केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाले प्रमुख करों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। [2013, 16]
या
भारत में केन्द्र सरकार की आय के प्रमुख स्रोत क्या हैं? विवेचना कीजिए। [2015]
उत्तर:
केन्द्र सरकार की आय के स्रोत
केन्द्र सरकार की आय के स्रोतों को मुख्यत: निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

(अ) करों से प्राप्त आय
विभिन्न प्रकार के करों के द्वारा केन्द्र सरकार को आय प्राप्त होती है, जिनमें मुख्य कर निम्नलिखित हैं

1. संघीय उत्पादन शुल्क – संघीय उत्पादन कर केन्द्रीय सरकार की आय का प्रमुख स्रोत है। यह कर देश में उत्पन्न होने वाली वस्तुओं पर लगाया जाता है। कुछ वस्तुओं को छोड़कर (जैसे-शराब-भाँग आदि) देश में उत्पन्न होने वाली प्राय: सभी वस्तुओं पर संघ सरकार द्वारा उत्पादन कर लगाया जाता है; जैसे-कपड़ा, चीनी, दियासलाई, टायर-ट्यूब, बिजली के सामान, रेडियो, मोटरगाड़ियाँ आदि। इस कर से प्राप्त आय का एक पूर्वनिश्चित भाग राज्यों में बाँट दिया जाता है।

2. आयकर – यह एक प्रत्यक्ष कर है जो गैर-कृषि आय पर लगाया जाता है। इस कर को लगाने व वसूल करने का अधिकार केन्द्र सरकार को है। आयकर से प्राप्त निवल आय का विभाजन केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच होता है। आयकर भारत में प्रगतिशील कर है। इस कर से केन्द्र सरकार को पर्याप्त आय प्राप्त होती है।

3. निगम कर – निगम कर से अभिप्राय, देशी व विदेशी कम्पनियों की वार्षिक आय पर लगाये गये अति कर Super Tax से है। यह कर सम्पूर्ण आय पर एक निश्चित दर से लगाया जाता है। सरकार को इससे भी आय होती है।

4. सम्पत्ति कर – भारत में यह कर 1957-58 से लागू किया गया है। जिन व्यक्तियों के पास 15, लाख रुपये से अधिक की सम्पत्ति होती है, उन्हें सम्पत्ति कर देना पड़ता है। इस कर से कुछ खम्पत्तियों को मुक्त रखा गया है; जैसे – कृषि भूमि, गाँवों में रहने के मकान, धार्मिक स्थानों की सम्पत्ति, बीमा व भविष्य निधि कोष आदि। इस कर की दर आरोही है। केन्द्रीय सरकार को इस कर से भी आय प्राप्त होती है।

5. उपहार कर – यह कर केन्द्रीय सरकार द्वारा 1958-59 ई० से लागू किया गया। यह कर उन व्यक्तियों पर लगाया जाता है जो अपने जीवन काल में निश्चित मूल्य से अधिक के उपहार अपने सम्बन्धियों या अन्य व्यक्तियों को देते हैं। इस कर का उद्देश्य मृत सम्पत्ति, कर की चोरी रोकना तथा धन के वितरण की विषमता को कम करना है। अब इस कर को समाप्त कर दिया गया है।

6. सीमा शुल्क-आयात – निर्यात कर को ही सीमा शुल्क कहते हैं। जब ये शुल्क मूल्य के आधार पर लगाये जाते हैं, तब इन्हें मूल्यानुसार शुल्क और जब ये शुल्क परिमाण या संख्या के अनुसार लगाये जाते हैं, तब इन्हें परिमाणानुसार शुल्क कहते हैं। भारत में ये दोनों प्रकार के शुल्क लगाये जाते हैं।
केन्द्रीय सरकार को निर्यात शुल्क की अपेक्षा आयात शुल्क से अधिक आय प्राप्त होती है। विगत दस, बारह वर्षों में सीमा शुल्कों से प्राप्त आय में निरन्तर वृद्धि हो रही है।

(ब) गैर-कर आय
भारत सरकार की आय के कुछ गैर-कर साधन निम्नलिखित हैं

1. ब्याज एवं लाभांश से प्राप्तियाँ – केन्द्रीय सरकार राज्य सरकारों के अन्य संस्थाओं को एक बहुत बड़ी मात्रा में ऋण देती है। अत: इसको प्रतिवर्ष इन ऋणों की ब्याज से करोड़ों रुपये की आय होती है।

2. प्रशासनिक प्राप्तियाँ – केन्द्रीय सरकार नागरिक प्रशासन, न्याय, शान्ति एवं व्यवस्था आदि के रूप में मनुष्यों को अनेक महत्त्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान करती है जिनसे उसे प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की आय होती है।

3. मुद्रा एवं टकसाल – केन्द्रीय सरकार को नोट छापने व सिक्कों को ढालने का एकाधिकार प्राप्त है जिससे सरकार को आय होती हैं। सरकार की ओर से यह कार्य देश में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया’ करता है।

4. सरकारी व्यवसायों में विशुद्ध आय – इस मद के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार को निम्नलिखित स्रोतों से आय होती है

  • डाक एवं तार विभाग से आय-इस पर भी केन्द्रीय सरकार का एकाधिकार है। इससे सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की आय प्राप्त होती है।
  •  रेलों से आय-इस पर भी केन्द्रीय सरकार का एकाधिकार है। इससे सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये आय प्राप्त होती है।
  • अन्य स्रोतों से आय-इसके अन्तर्गत अफीम, जंगलात, सड़क यातायात आदि से भी केन्द्रीय सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की आय प्राप्त होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
भारत में केन्द्र सरकार के व्यय के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए। [2009, 10, 12, 16]
उत्तर:
केन्द्र सरकार के व्यय के स्रोत (मदे)
केन्द्र सरकार अपनी आय को निम्नलिखित मदों पर व्यय करती है

1. करों को एकत्रित करने पर व्यय – केन्द्रीय सरकार को प्रतिवर्ष करों की धनराशि को एकत्रित करने पर बहुत बड़ी धनराशि व्यय करनी पड़ती है।

2. ऋण सेवाओं पर व्यय – केन्द्रीय सरकार ने अपनी विभिन्न प्रकार की योजनाओं को पूरा करने के लिए अनेक प्रकार के ऋण लिये हैं। इन ऋणों पर दी जाने वाली ब्याज की धनराशि इस शीर्षक के अन्तर्गत आती है। इस मद पर भी केन्द्रीय सरकार का व्यय निरन्तर बढ़ता जा रहा है।

3. रक्षा व्यय – चीन व पाकिस्तान के आक्रमण के भय के कारण हमारी सरकार को अपने देश की रक्षा पर प्रतिवर्ष होने वाले व्यय पर वृद्धि करनी पड़ रही है। इसके अन्तर्गत जल, थल और नभ सेनाओं पर होने वाला व्यय सम्मिलित किया जाता है।

4. नागरिक प्रशासन पर व्यय – इस मद के अन्तर्गत संसद, मन्त्रिपरिषद्, राष्ट्रपति, सचिवालय, सामान्य प्रशासन, न्याय, पुलिस लेखा परीक्षण आदि पर होने वाले व्यय सम्मिलित हैं। इस मद पर होने वाले व्यय में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।

5. मुद्रा एवं टकसाल पर व्यय –  केन्द्रीय सरकार, जो नोट छापने व सिक्कों को ढालने का कार्य करती है, इस पर होने वाले व्यय में प्रतिवर्ष वृद्धि कर रही है।

6. सामाजिक विकास पर व्यय – इस मद में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, चिकित्सा, पिछड़ी तथा परिगणित जातियों के कल्याण, सामाजिक कल्याण पर किया जाने वाला व्यय आदि सम्मिलित होते हैं। प्रत्येक सरकार को उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है; अतः इस मद पर होने वाले व्यय में अत्यधिक वृद्धि हुई है।

7. पेन्शन व्यय – केन्द्रीय सरकार को प्रतिवर्ष अवकाश प्राप्त कर्मचारियों एवं अधिकारियों को पेन्शन देनी होती है। अवकाश प्राप्त कर्मचारियों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होने के कारण इस मद पर व्यय होने वाली धनराशि में भी वृद्धि होती जा रही है।

8. राज्यों को अनुदान – केन्द्रीय सरकार राज्यों को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये का अनुदान देती है। विकास कार्यों में वृद्धि होने के कारण इस मद में होने वाले व्यय में भी निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।

9. अन्य व्यय – उपर्युक्त प्रमुख मदों के अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार को अन्य कई मदों पर व्यय करने होते हैं; जैसे-अकाल, बाढ़, सूखा, भूकम्प, शिक्षा संस्थाओं को दिया गया अनुदान आदि।

प्रश्न 2
केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाले किन्हीं चार करों का उल्लेख कीजिए। [2015]
उत्तर:
केन्द्र सरकार की आय के स्रोतों को मुख्यत: निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

(अ) करों से प्राप्त आय
विभिन्न प्रकार के करों के द्वारा केन्द्र सरकार को आय प्राप्त होती है, जिनमें मुख्य कर निम्नलिखित हैं

1. संघीय उत्पादन शुल्क – संघीय उत्पादन कर केन्द्रीय सरकार की आय का प्रमुख स्रोत है। यह कर देश में उत्पन्न होने वाली वस्तुओं पर लगाया जाता है। कुछ वस्तुओं को छोड़कर (जैसे-शराब-भाँग आदि) देश में उत्पन्न होने वाली प्राय: सभी वस्तुओं पर संघ सरकार द्वारा उत्पादन कर लगाया जाता है; जैसे-कपड़ा, चीनी, दियासलाई, टायर-ट्यूब, बिजली के सामान, रेडियो, मोटरगाड़ियाँ आदि। इस कर से प्राप्त आय का एक पूर्वनिश्चित भाग राज्यों में बाँट दिया जाता है।

2. आयकर – यह एक प्रत्यक्ष कर है जो गैर-कृषि आय पर लगाया जाता है। इस कर को लगाने व वसूल करने का अधिकार केन्द्र सरकार को है। आयकर से प्राप्त निवल आय का विभाजन केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच होता है। आयकर भारत में प्रगतिशील कर है। इस कर से केन्द्र सरकार को पर्याप्त आय प्राप्त होती है।

3. निगम कर – निगम कर से अभिप्राय, देशी व विदेशी कम्पनियों की वार्षिक आय पर लगाये गये अति कर Super Tax से है। यह कर सम्पूर्ण आय पर एक निश्चित दर से लगाया जाता है। सरकार को इससे भी आय होती है।

4. सम्पत्ति कर – भारत में यह कर 1957-58 से लागू किया गया है। जिन व्यक्तियों के पास 15, लाख रुपये से अधिक की सम्पत्ति होती है, उन्हें सम्पत्ति कर देना पड़ता है। इस कर से कुछ खम्पत्तियों को मुक्त रखा गया है; जैसे – कृषि भूमि, गाँवों में रहने के मकान, धार्मिक स्थानों की सम्पत्ति, बीमा व भविष्य निधि कोष आदि। इस कर की दर आरोही है। केन्द्रीय सरकार को इस कर से भी आय प्राप्त होती है।

5. उपहार कर – यह कर केन्द्रीय सरकार द्वारा 1958-59 ई० से लागू किया गया। यह कर उन व्यक्तियों पर लगाया जाता है जो अपने जीवन काल में निश्चित मूल्य से अधिक के उपहार अपने सम्बन्धियों या अन्य व्यक्तियों को देते हैं। इस कर का उद्देश्य मृत सम्पत्ति, कर की चोरी रोकना तथा धन के वितरण की विषमता को कम करना है। अब इस कर को समाप्त कर दिया गया है।

6. सीमा शुल्क-आयात – निर्यात कर को ही सीमा शुल्क कहते हैं। जब ये शुल्क मूल्य के आधार पर लगाये जाते हैं, तब इन्हें मूल्यानुसार शुल्क और जब ये शुल्क परिमाण या संख्या के अनुसार लगाये जाते हैं, तब इन्हें परिमाणानुसार शुल्क कहते हैं। भारत में ये दोनों प्रकार के शुल्क लगाये जाते हैं।
केन्द्रीय सरकार को निर्यात शुल्क की अपेक्षा आयात शुल्क से अधिक आय प्राप्त होती है। विगत दस, बारह वर्षों में सीमा शुल्कों से प्राप्त आय में निरन्तर वृद्धि हो रही है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
वित्त आयोग पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की धारा 180 के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गयी है कि भारत का राष्ट्रपति प्रति पाँच वर्ष के लिए एक वित्त आयोग का गठन करेगा। इसका कार्य केन्द्र व राज्यों के बीच आय, अनुदान आदि को सुनिश्चित करना तथा वित्त सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण सुझाव देना है।

प्रश्न 2
घाटे की वित्त-व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
घाटे की वित्त-व्यवस्था एक ऐसी स्थिति को बतलाती है जिसमें सरकार का व्यये उसकी कुल आय से अधिक होता है। सरकार बजट के इस घाटे को पूरा करने के लिए या तो केन्द्रीय बैंक से अथवा जनता से ऋण लेती है या नई मुद्रा जारी करती है। इस प्रकार कोई भी व्यय जो सार्वजनिक ऋण से पूरा किया जाता है, घाटे की वित्त-व्यवस्था के अन्तर्गत आ जाता है। किसी प्रकार के वित्त-प्रबन्ध को घाटे की वित्त-व्यवस्था कहने से पूर्व इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि उसके परिणामस्वरूप समाज में मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि होती है अथवा नहीं। जब सरकार की आये उसके द्वारा किये जाने वाले व्यय से कम रह जाती है तो बजट में इस प्रकार उत्पन्न होने वाले घाटे को पूरा करने के लिए जो व्यवस्था की जाती है, उसे घाटे की वित्त-व्यवस्था कहते हैं। ऐसा दो प्रकार से किया जा सकता है

  • नई मुद्रा के निर्गमन द्वारा तथा
  • संचित नकद बकाया को खातों से निकालकर।

रोजगार बढ़ाने, मन्दी की दशाओं को दूर करने तथा आर्थिक विकास की योजनाओं को पूरा करने के लिए विकासशील देशों में घाटे की वित्त-व्यवस्था को अपनाया जाना आवश्यक है, किन्तु इसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए हर सम्भव प्रयास किये जाने चाहिए।

निश्चित उतरीय प्रश्न, (1 अंक)

प्रश्न 1
केन्द्र सरकार द्वारा कौन-कौन से कर लगाये जाते हैं ?
या
केन्द्र सरकार की कर-आय के दो प्रमुख स्रोतों के नाम बताइए। [2010]
या
केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाले किन्हीं दो करों के नाम लिखिए। [2013]
उत्तर:
केन्द्र सरकार द्वारा लगाये जाने वाले कर हैं

  1. सीमा कर,
  2. संघीय उत्पादन कर,
  3. आयकर,
  4. सम्पत्ति कर,
  5. उपहार कर आदि।

प्रश्न 2
संघीय उत्पादन शुल्क के दो उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
संघीय उत्पादन शुल्क के दो उद्देश्य हैं

  1. आर्थिक विकास के कार्यों को कार्यान्वित करने के लिए तथा,
  2. देश में मुद्रास्फीति की दशाओं पर रोक लगाने के लिए।

प्रश्न 3
आयात शुल्क लगाने के दो उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
आयात शुल्क लगाने के दो उद्देश्य हैं

  1. आय प्राप्त करना तथा
  2. स्वदेशी उद्योगों को संरक्षण प्रदान करना।

प्रश्न 4
भारत में ‘आयकर’ किस प्रकार का कर है ?
उत्तर:
भारत में आयकर प्रगतिशील कर है, क्योंकि कर की दर, आय की वृद्धि के साथ बढ़ती जाती है।

प्रश्न 5
केन्द्रीय सरकार की व्यय की सबसे बड़ी मद कौन-सी है?
उत्तर:
केन्द्रीय सरकार की व्यय की सबसे बड़ी मद प्रतिरक्षा सेवा है।

प्रश्न 6
आयकर किसके द्वारा लगाया जाता है ? [2009, 11, 12, 13]
उत्तर:
आयकर केन्द्रीय सरकार द्वारा लगाया जाता है।

प्रश्न 7
केन्द्रीय सरकार की व्यय को दो मदें लिखिए। [2011]
उत्तर:

  1. देश की सुरक्षा पर व्यय तथा
  2. विकास योजनाओं पर व्यय।

प्रश्न 8
केन्द्र सरकार की विकास व्यय की मदें क्या हैं ?
उत्तर:

  1. सामाजिक एवं सामुदायिक सेवाएँ तथा
  2.  सामान्य आर्थिक सेवाएँ।

प्रश्न 9
भारत सरकार की आय में किस प्रकार के करों का अधिक महत्त्व है ?
उत्तर:
भारत सरकार की आय में परोक्ष करो का अधिक महत्त्व है।

प्रश्न 10
काले धन को बाहर निकालने के लिए सरकार ने कौन-सी योजना चलाई ?
उत्तर:
केन्द्र सरकार ने काले धन को बाहर निकालने के लिए 12 जनवरी, 1981 ई० को ‘विशेष धारक बॉण्ड योजना प्रारम्भ की।

प्रश्न 11
विशेष धारक बॉण्ड योजना क्या है ?
उत्तर:
विशेष धारक बॉण्ड योजना में यह घोषित किया गया कि जो लोग इस योजनान्तर्गत विशेष बॉण्ड खरीदेगे, उनसे यह नहीं पूछा जाएगा कि यह धन उनके पास कहाँ से आया।

प्रश्न 12
भारत में योजना आयोग का अध्यक्ष कौन होता है ?
उत्तर:
भारत में योजना आयोग का अध्यक्ष प्रधानमन्त्री होता है।

प्रश्न 13
ऐसे कर जिनका प्रभाव सम्पूर्ण देश पर पड़ता है, लगाने का अधिकार किसे है ?
उत्तर:
ऐसे कर जिनका प्रभाव सम्पूर्ण देश पर पड़ता है, को लगाने का अधिकार केन्द्र सरकार को है।

प्रश्न 14
उत्पाद शुल्क किस सरकार से सम्बन्धित है? [2006]
उत्तर:
केन्द्र सरकार।

प्रश्न 15
निगम कर कैसा कर है? [2007]
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 16
निगम कर किसके द्वारा लगाया जाता है? [2007, 12]
उत्तर:
केन्द्र सरकार द्वारा।

प्रश्न 17
प्रतिरक्षा व्यय को कौन-सी सरकार वहन करती है ? [2010, 12, 16]
उत्तर:
प्रतिरक्षा व्यय’ को केन्द्रीय सरकार वहन करती है।

प्रश्न 18
कौन-सी सरकार सेवा कर लगाती है? [2010]
उत्तर:
केन्द्रीय सरकार।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
निम्नलिखित में से किस कर को केन्द्रीय सरकार नहीं लगाती है ? [2006]
या
निम्नलिखित में से कौन-सा कर राज्य सरकार द्वारा लगाया जाता है? [2015]
(क) आय कर
(ख) निगम कर
(ग) सम्पत्ति कर
(घ) मनोरंजन कर
उत्तर:
(घ) मनोरंजन कर।

प्रश्न 2
संघीय सरकार की व्यय की सबसे बड़ी मद कौन-सी है ?
(क) प्रतिरक्षा सेवा
(ख) सामाजिक तथा विकासार्थ व्यय
(ग) ऋण सेवा
(घ) प्रशासनिक सेवा
उत्तर:
(क) प्रतिरक्षा सेवा।

प्रश्न 3
निम्नलिखित में से किस कर को केन्द्रीय सरकार लगाती है ? [2013]
(क) आय कर
(ख) बिक्री कर
(ग) मनोरंजन कर
(घ) भू-राजस्व
उत्तर:
(क) आय कर।

प्रश्न 4
भारत के वर्तमान वित्त मन्त्री हैं
(क) मनमोहन सिंह
(ख) पी० चिदम्बरम्
(ग) अटल बिहारी वाजपेयी
(घ) अरुण जेटली
उत्तर:
(घ) अरुण जेटली।

प्रश्न 5
भारत में योजना आयोग का अध्यक्ष होता है।
(क) राष्ट्रपति
(ख) प्रधानमन्त्री
(ग) वित मन्त्री
(घ) योजना मन्त्री
उत्तर:
(ख) प्रधानमन्त्री।

प्रश्न 6
भारत में आय कर लगाया जाता है [2014]
(क) केन्द्र सरकार द्वारा
(ख) राज्य सरकार द्वारा
(ग) स्थानीय सरकार द्वारा
(घ) इन सभी के द्वारा
उत्तर:
(क) केन्द्र सरकार द्वारा।

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