UP Board Solutions for Class 8 Hindi व्याकरण

UP Board Solutions for Class 8 Hindi व्याकरण

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व्याकरण – जिन नियमों के अन्तर्गत किसी भाषा को शुद्ध बोलना, लिखना तथा ठीक प्रकार समझना आता है, उन्हें ही व्याकरण कहते हैं।

भाषा – भाषा के द्वारा मनुष्य अपने मन के विचार प्रकट करता है तथा दूसरों के भावों को स्वयं समझता है। विचारों को प्रकट करने के विभिन्न ढंग हैं किन्तु इनसे भाषा का रूप स्थिर नहीं रहने पाता है। व्याकरण (UPBoardSolutions.com) भाषा के रूप को स्थिर कर देती है।

लिपि – जिन चिह्नों द्वारा मन के विचार को चित्रित किया जाता है, उन्हें ‘लिपि’ कहा जाता है; जैसे-हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है।

व्याकरण के भाग

1. वर्ण विभाग,
2. शब्द विभाग,
3. वाक्य विभाग।

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(1. वर्ण विभाग)

वर्ण – वर्ण उस छोटी ध्वनि को कहते हैं जिसके टुकड़े नहीं हो सकते। इन्हें अक्षर भी कहते हैं। हिन्दी भाषा में कुल 44 वर्ण (अक्षर) हैं।
वर्गों के भेद-वर्ण दो प्रकार के होते हैं- 1. स्वर, 2. व्यंजन।
1. स्वर – जो वर्ण किसी दूसरे वर्ण की सहायता के बिना बोला जा सकता हो, उसे स्वर कहते हैं। यह 11 होते हैं। स्वर दो प्रकार के होते हैं| (1) ह्रस्व स्वर-जिन स्वरों को बोलने में बहुत कम समय लगता है, (UPBoardSolutions.com) वे ह्रस्व कहलाते हैं, जैसेअ, इ, उ, ए, ओ, ऋ।

(2) दीर्घ स्वर – इन स्वरों को बोलने में ह्रस्व स्वरों की अपेक्षा दुगुना समय लगता है, जैसेआ, ई, ऊ, ऐ, औ। मात्रा-स्वर का वह छोटा रूप जो व्यंजन से जोड़ा जाता है, मात्रा लगता है ‘अ’ स्वर की कोई मात्रा नहीं होती; जैसे
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2. व्यंजन – जो वर्ण स्वर की सहायता से बोल जाते हैं, उन्हें व्यंजन कहते हैं। यह 33 होते हैं। हिन्दी में व्यंजनों को पाँच वर्गों में बाँटा गया है।
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इनके अतिरिक्त हिन्दी में निम्न वर्ण भी हैं
संयुक्ताक्षर – जब दो वर्षों के बीच में स्वर नहीं रहता, तो उन्हें संयुक्त व्यंजन’ या ‘संयुक्ताक्षर कहते हैं, जैसा- क् + ष् + अ = क्ष, त् + * + अ = त्र, ज् + अ + अ = ज्ञ, श् + र् + अ = श्र।

हलंत – बिना स्वर के व्यंजन के नीचे एक तिरछी रेखा () बना दी जाती है। इसे हलंत कहते हैं, जैसे- ज्, प, ट् आदि।

अनुस्वार (अं) – वर्ण के ऊपर एक बिन्दु (-) को अनुस्वार कहते हैं; जैसे- पंख, शंख आदि।
विसर्ग (अ) – वर्ण के आगे दो बिन्दुओं (:) को ‘विसर्ग’ कहते हैं, जैसे- अतः, फलतः आदि।
अनुनासिक (*) – वर्ण के ऊपर चन्द्रबिन्दु में बिंदु (*) को ‘अनुनासिक’ कहते हैं, जैसे- आँख, आँच, पाँच आदि।

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(उपसर्ग और प्रत्यय)
(उपसर्ग )

उपसर्ग की परिभाषा – उपसर्ग वे शब्दांश हैं जो शब्दों के पूर्व जुड़कर उनके अर्थ बदल देते हैं या उनमें कोई विशेषता उत्पन्न कर देते हैं; जैसे- यश = कीर्ति जब इसके पूर्व में ‘अप’ उपसर्ग जुड़ जाता है। तो अप+यश = अपयश = बुराई का अर्थ हो जाता है। हिन्दी के प्रमुख उपसर्गों के उदाहरण देखिए
आजन्म, आगमन, आकर्षण, आदान, आकण्ठ आदि
उपे उपवन, उपग्रह, उपनाम, उपधर्म, उपयोग, उपसर्ग आदि
परि परिजन, परिच्छेद, परिक्रमा, परितोष, परिवार आदि
अप अपयश, अपवाद, अपमान, अपशब्द, अपकीर्ति आदि –
अव – अवगुण, अवतार, अवनति, अवज्ञा आदि – प्रसिद्ध, प्रयोग, प्रताप, प्रबल, प्रश्वास, प्रवचन आदि
परा – पराजय, पराभव, पराधीप, परास्त आदि अनु – अनुकूल, अनुचर, अनुसार, अनुमान आदि
निर् – निराकार, निर्भय, निर्जीव, निर्दोष, निर्मल आदि
दुर् – दुर्बुद्धि, दुर्गम, दुर्दशा, दुर्लभ, दुर्मति, दुराशा आदि

प्रत्यय

प्रत्यय की परिभाषा – प्रत्यय वे शब्दांश हैं, जो शब्द के अन्त में जुड़कर उसके अर्थ व अवस्था में परिवर्तन कर देते हैं; ‘प्रभु’ शब्द के अन्त में जब ‘ता’ प्रत्यय लग जाता है तो ‘प्रभुता’ शब्द बन जाता है।
अतः प्रभुता में ‘ता’ प्रत्यय है। कुछ अन्य प्रत्ययों से बने उदाहरण देखिए
ता – पटुता, लघुता, पंशुता, महत्ता, दासता, प्रभुता
त्व, – चुम्बकत्व, पशुत्व, दासत्व, ईश्वरत्व, लघुत्व, महत्त्व
इमा – कालिमा, लालिमा, नीलिमा, हरीतिमा
इक – पारलौकिक, पारिवारिक, तार्किक, मौलिक, भौतिक, नैतिक
इत – पुष्पित, आनन्दित, हर्षित, प्रफुल्लित, मोहित
वान – दयावान, धनवान, बलवान, गाड़ीवान, वेगवान
मान – बुद्धिमान, श्रीमान
पन – बड़प्पन, पागलपन, बचपन, मोटापन, खोटापन
ईय – भारतीय, शासकीय, माननीय, शोचनीय
आहट – कड़वाहट, चिकनाहट, गरमाहट, घबराहट
पा – बुढ़ापा, मोटापा, छोटापा
आवट – लिखावट, बनावट, सजावट, दिखावट
आई – लिखाई, बुनाई, पढाई, सिलाई, मलाई, बुराई
अक – लेखक, पालक, गायक, पाठक, नायक, सेवक
इका – लेखिका, पालिका, गायिका, सेविका।
ना – रोना, खाना, पीना, बेलना, ओढ़ना, बिछौना (UPBoardSolutions.com)
आ – भूखा, सूखा, रूखा, भूसा, मृगया, रूठा

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(विलोम शब्द)

एक – दूसरे का विपरीत अर्थ बताने वाले शब्द विलोम या विपरीतार्थी शब्द कहलाते हैं। किसी शब्द का विलोम उसके भाव को प्रकट करता है। छात्रों के ज्ञान के लिए कुछ उपयोगी, विलोम शब्द नीचे दिए जा रहे हैं। छात्र इन्हें समझें और कण्ठस्थ करें।
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(समुच्चरित शब्द-समूह)

भाषा में कुछ ऐसे शब्द भी होते हैं जिनके उच्चारण में बहुत कुछ समानता होती है किन्तु उनके अर्थ में बहुत अन्तर होता है। इस प्रकार के कुछ शब्द नीचे दिए जा रहे हैं। इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए
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(समानार्थक शब्दों में अन्तर)

1. बुख – किसी वस्तु के अभाव में मन में पीड़ा।
शोक-किसी की मृत्यु आदि पर दु:ख।

2. अमूल्य – जिसका कोई मूल्य न हो।
दुर्मूल्य – उचित मूल्य से अधिक मूल्य।
बहुमूल्य – मूल्यवान

3. अस्त्र-
फेंककर प्रहार करने वाला हथियार।
शस्त्र – हाथ में लेकर प्रहार करने वाला हथियार।

4. आयु – 
सम्पूर्ण जीवन।
अवस्था – जन्म से वर्षों की गणना।

5. मित्र – 
सुख-दुख में साथ रहने वाला।
सखा – समाने आयु का मनुष्य व मित्र।

6. सन्देह – किसी भी निश्चय पर नहीं पहुँचना।
भ्रम – असत्य बात में सत्य का आभास होना।

7. आचार – साधारण बर्ताव।
व्यवहार – विशेष बर्ताव।

8. सहानुभूति – 
सुख-दुख में पूर्ण रूप से सहयोग देने की भावना।
संवेदना – दुख से दुखी होकर दूसरे को धैर्य देने की भावना।

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(अनेकार्थक शब्द)

अनेकार्थक शब्द – वे शब्द जिनके एक से अधिक अर्थ होते हैं, वे अनेकार्थक शब्द कहलाते हैं। कुछ उदाहरण देखिए
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(शब्द-समूह के लिए एक शब्द)

प्रायः भाषा में अनेक शब्दों के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग कर देने से भाषा का सौन्दर्य बढ़ जाता है; जैसे- मांस खाने वाला शब्द-समूह के लिए मांसाहारी’ शब्द अच्छा लगेगा। इसी प्रकार कुछ। अन्य उदाहरण आगे दिए जा रहे हैं। इनका प्रयोग अपनी भाषा में कीजिए।
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पर्यायवाची शब्द

समान अर्थ वाले शब्द एक-दूसरे के पर्यायवाची शब्द कहलाते हैं। नीचे कुछ उदाहरण दिए जा रहे। है। छात्र इन्हें भली प्रकार कण्ठस्थ करें
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(शब्दों के तत्सम रूप)

तत्सम शब्द का अर्थ – तत्सम शब्द का अर्थ संस्कृत भाषा से लिए गए शब्दों के शुद्ध स्वरूप से है। आगे कुछ तत्सम शब्द एवं उनके तद्भव रूप दिए जा रहे हैं। छात्र इन शब्दों को ध्यानपूर्वक पढ़ें
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(मुहावरे और उनका प्रयोग)

भाषा को अधिक सजीव, सुन्दर तथा प्रभावपूर्ण बनाने के लिए उसमें मुहावरों को प्रयोग किया जाता है। इसके अर्थ को ठीक-ठीक समझे बिना वाक्य के अर्थ का उचित ज्ञान नहीं हो पाता है। नीचे कुछ मुहावरों के अर्थ तथा उन्हें वाक्यों में प्रयोग करके दिखाया जा रहा है। छात्र इन्हें भली प्रकार पढ़े और समझें

  1. अगर मगर करना – (टाल मटोल करना) आपस में सन्धि कर लेने के बाद अगर-मगर करना धोखा देना है।
  2. प्रलय ढाना – (बहुत हानि करना) उपद्रवियों को दुकानों पर प्रलय ढाते देखकर मेरा तो हृदय काँप उठा।
  3. हिलोरें मारना – (उत्साहित होना) नेहरू जी के हृदय में देश-प्रेम की भावनाएँ सदा हिलोरें मारती थीं।
  4. अन्धे की लाठी – (गरीबी या बुढ़ापे का सहारा) किसी को सुपुत्र ही अन्धे की लाठी बन सकता है।
  5. अरमान निकालना – (इच्छा पूर्ण करना) वीर सैनिक तो युद्धस्थल पर ही अपने अरमान निकाल सकता है।
  6. आँखें खुल जाना – (होश में आना) परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर ही राम की आँखें खुलीं।।
  7. आँख लगी रहना – (आशा बनी रहना) श्रीकृष्ण के लौट आने की प्रतीक्षा में गोपियों की आँखें सदा लगी रहती थीं।
  8. ईंट का जवाब पत्थर से देना – (दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना) जब शत्रुओं ने . सहसा ही भारत के दो गाँवों पर अपना अधिकार जमा लिया तो भारतीय वीरों ने भी उसके चार गाँव छीन कर ईंट का जवाब पत्थर से दिया।
  9. चादर तानकर सोना – (निश्चित होना) भाई चादर तानकर सोने का समय नहीं रहा, काम करने से ही जीवन सफल हो सकता है।
  10. पर्दा डालना – (बुराइयों को छिपा देना) धूर्त व्यक्ति अपनी वास्तविकता पर पर्दा डालकर अपना भला चाहता है।
  11. पाँव उखड़ जाना – (हार कर भाग जाना) भारतीय सैनिकों के आगे पाकिस्तानियों के पाँव उखड़ गए।
  12. फूटी कौड़ी – (बिल्कुल धन न होना) आज तो मेरे पास (UPBoardSolutions.com) फूटी कौड़ी भी नहीं है।
  13. बाले बाँका होना – (कष्ट होना) यदि अरविन्द का बाल बाँका भी हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं।
  14. मिट्टी के मोल – (बहुत सस्ता) आज तो आप दो किलो अंगूर ले आए हो, क्या कहीं मिट्टी के मोल मिल गए थे।
  15. रंग जमाना – (प्रभाव डालना) नेता जी ने अपने भाषण से सभा पर ऐसा रंग जमाया कि सब वाह-वाह करने लगे।
  16. सिर मुड़ाते ही ओले पड़े –  (प्रारम्भ में ही काम बिगड़ना) नेता जी ने अभी प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली ही थी कि पूरे प्रदेश में भूकंप के कारण भयंकर तबाही मच गई। इसी को कहते हैं- सिर मुड़ाते ही ओले पड़ना।
  17. चोर की दाढ़ी में तिनका – (अपराधी का स्वयं ही सशंकित होना) अध्यापक ने कक्षा में कहा कि जिसने भी चोरी की होगी उसके हाथ धूल में गन्दे हो जाएँगे। यह सुनकर रमेश जल्दी-जल्दी । अपने हाथ साफ करने लगा। अध्यापक ने उसे देखकर कहा कि देखो, चोर की दाढ़ी में तिनका।

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(लोकोक्तियाँ (कहावतें))

लोकोक्ति का अर्थ है, संसार में प्रचलित उक्ति। ये लोक प्रचलित वाक्यांश होते हैं। लोगों के अनुभव से पूर्ण लोकोक्तियों का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया जाता है। अपने कथन को प्रभावशाली बनाने के लिए इनका स्वतन्त्र वाक्य के रूप में प्रयोग करना चाहिए। नीचे कुछ कहावतों का अर्थ तथा उनका वाक्य में प्रयोग दिया जा रहा है, इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए।

  1. अधजल गगरी छलकत जाए – (ओछा व्यक्ति ही डींगे मारता है) भाई, 6000 रुपये की नौकरी में क्यों इतराते हो? सुना नहीं ‘अधजल गगरी छलकत जाए’ व ती बात होगी।
  2. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात – (सुख के बाद दु:ख आना) राम! धन का घमण्ड मत करो, चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।’
  3. मान ने मान मैं तेरा मेहमान – (बिना सम्बन्ध के सम्बन्ध दिखाना) मैं तो आपको जानता भी नहीं हूँ और आप मुझे भाई कहते हैं। ठीक है, मान न मान मैं तेरा मेहमान।
  4. ऊँची दुकान फीका पकवान – बाह्य दिखावा कुछ और वास्तविकता कुछ और।
  5. एक पंथ दो काज – दोहरा लाभ होना।
  6. कागज की कोठरी – बदनामी का काम।
  7. तिलों में तेल नहीं – लाभ की आशा नहीं।
  8. नया नौ दिन पुराना सौ दिन – तड़क-भड़क थोड़े ही दिन रहती है। पुरानी वस्तु का अधिक उपयोगी होना।
  9. भैंस के आगे बीन बजाना – मूर्ख के सम्मुख अपनी कला का प्रदर्शन करना।
  10. सोने की चिड़िया – धनवान।
  11. अन्धे के आगे रोना अपना दीदा खोना – सहानुभूति न रखने वाले के सामने अपना दुखड़ा रोना व्यर्थ है।
  12. आगे नाथ न पीछे पगहा – किसी प्रकार का डर न होना।
  13. उलटा चोर कोतवाल को डाँटे – दोषी ही अच्छे व्यक्ति को दोषी बताए।
  14. भागते भूत की लँगोटी भली – पूर्ण लाभ न मिलने पर आंशिक लाभ पर ही सन्तोष करना।
  15. मन चंगा तो कठौती में गंगा – मन शुद्ध होने पर तीर्थयात्रा की आवश्यकता नहीं होती।

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(शब्दों के अर्थ व वाक्य प्रयोग)

  1. उत्तरोत्तर – (क्रमपूर्वक) विषम परिस्थितियों में भी पर्वतारोही उत्तरोत्तर चढ़ते ही चले गए।
  2. आशातीत – (आशा से भी परे) गत चुनावों में काँग्रेस दल को आशातीत सफलता मिली थी।
  3. उपलब्धि – (प्राप्ति) कविवर बिहारी को राजा जयसिंह से अपार धन की उपलब्धि हुई।
  4. रंग जमाना – (प्रभाव जमाना) त्यागी जी के भाषण से सभा में ऐसा रंग जमा कि उनके विरोधी भी देखते रह गए।
  5. अग्रसर – (आगे बढ़ना) विज्ञान के कारण आज हम उन्नति की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
  6. तटस्थ – (पक्ष-विपथ से दूर) भारत की तटस्थ रहने की नीति की प्रशंसा सब ओर हो रही है।
  7. संक्रामक – (छूत सम्बन्धी) हैजा एक संक्रामक रोग है।
  8. अस्त्र – (फेंककर चलाया जाने वाला हथियार) बाण, ब आदि प्राचीन अस्त्र हैं।
  9. शस्त्र – (हाथ में थामकर चलाया जाने वाला हथियार) तलवार, छुरी और खड्ग शस्त्र हैं।
  10. अध्ययन – (सामान्य पढ़ाई) मैंने विज्ञान का अध्ययन कभी नहीं किया है।
  11. अनुशीलन – (गहरा अध्ययन) मैं आजकल निबन्ध साहित्य का अनुशीलन कर रहा हूँ।
  12. अन्याय – (नियम विरुद्ध कार्य) अन्याये सब दिन नहीं चल सकता।
  13. अधर्म – (धर्म विरुद्ध कार्य) निर्बल को सताना अधर्म है।

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UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 23 सन्त गाडगे बाबा (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 23 सन्त गाडगे बाबा (महान व्यक्तित्व)

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पाठ का सारांश

सन्त गाडगे बाबा का पूरा नाम देव ‘डेबू जी’ झिंगराजी जाणोरकर था। इनका जन्म 23 फरवरी, सन् 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के शेणगाँव में हुआ था। इनके पिता का

नाम झिंगराजी जाणोरकर और माता सखूबाई थीं। ये हमेशा मिट्टी का गडुआ या मटका रखते थे, इस कारण इनको लोग गाडगे बाबा कहते थे। 8 वर्ष की आयु में इनके पिता का देहान्त हो गया। इनका पालन-पोषण बहुत गरीबी में हुआ। एका विवाह 16 वर्ष की आयु में कुन्ताबाई से हुआ। एक साहूकार की धोखाधड़ी के कारण इनके मामा का देहान्त हो गया। तब इन्होंने संकल्प लिया कि गरीब लोगों की सहायता करेंगे और उन्हें शिक्षित करेंगे ताकि गाँव वाले किसी के धोखे के शिकार न हों। इन्होंने मांस-मदिरा का सेवन करने वाले अन्धविश्वासी लोगों का अन्धविश्वास दूर किया। लोगों को अच्छे-बुरे का ज्ञान कराया।

इन्होंने 30 वर्ष की अवस्था में घर परिवार छोड़कर संन्यास ले लिया। 12 वर्ष तक उन्होंने साधना की। कबीर, तुकाराम, ज्ञानदेव, नामदेव, नानक, स्वामी विवेकानन्द, जैसे सन्तों के उदाहरणों को देकर वे अपने प्रवचन में साधारण बोल-चाल की भाषा का प्रयोग करते थे, जिस कारण लोग उनसे बहुत प्रभावित हुए। सन्त गाडगे बाबा ने मूर्ति पूजा का विरोध किया और कहा मन्दिर बनवाने से अच्छा धर्मशाला बनवाएँ, जहाँ लोग ठहर सकते हैं और भोजन प्राप्त कर सकते हैं। इन्होंने सैकड़ों स्कूल बनवाए। विद्यार्थियों को प्रभु की मूर्तियों की उपाधि दी। ये समाज की कुव्यवस्था और कुरीतियों से बहुत दुखी थे। इन्होंने दहेज प्रथा, बाल विवाह, छुआछूत जैसी बुराइयों को दूर करने के लिए संघर्ष किए। इनका कहना था “सच्चा ईश्वर दरिद्र नारायण के रूप में तुम्हारे सामने खड़ा है, उसकी सेवा करो।”

सन्त गाडगे की मुलाकात डॉ० भीमराव अम्बेडकर और गांधी जी से भी हुई। बाबा मधुमेह की बीमारी से पीड़ित थे। सन् 1955 में बाबा को अस्पताल में भर्ती कराया। अस्पताल का खर्च उठाना मुश्किल हो गया और (UPBoardSolutions.com) वे बिना बताए ही रात को अस्पताल से निकल गए। 6 दिसम्बर, 1956 को डॉ० भीमराव अम्बेडकर की मृत्यु का समाचार पाकर वे रो पड़े और खाना-पीना छोड़ दिया। 20 दिसम्बर, 1956 को सन्त गाडगे बाबा का स्वर्गवास हो गया।

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अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के उत्तर लिखो
(क) सन्त गाडगे जी का नाम क्या था?
उत्तर :
सन्त गाड़गे जी का नाम देव डेबू जी झिंगराजी जाणोरकर था।

(ख)
डेबूजी के पिता ने अन्तिम समय में डेबूजी की माँ से क्या कहा?
उत्तर :
डेबू जी के पिता ने अन्तिम समय में डेबू जी की माँ से कहा कि मैं कुछ दिन का मेहमान हूँ। डेबू जी का ध्यान रखना और मांस-मदिरा से दूर रहने की सलाह देना।

(ग)
मामा की मृत्यु के बाद डेबूजी ने क्या संकल्प किया? (UPBoardSolutions.com)
उत्तर :
मामी की मृत्यु के बाद डेबू जी ने संकल्प लिया कि गरीब लोगों की सहायता करेंगे और शिक्षित करेंगे ताकि गाँव वाले किसी के धोखे के शिकार न हो सकें।

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(घ) संत गाडगे बाबा ने कौन-कौन से कार्य किए ?
उत्तर :
सन्त गाडगे बाबा ने निम्न कार्य किए- उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया, दहेज प्रथा, बाल विवाह, छुआछूत जैसी बुराइयों को दूर करने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया।

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करो (पूर्ति करके)
(क) डेबूजी के पिता झिंगराजी जाणोरकर और माता सखूबाई थीं।
(ख) इनका विवाह 18 वर्ष की आयु में कुन्ताबाई से हो गया।
(ग) उनके पिता की मृत्यु का मुख्य कारण मदिरा थी।
(घ) भोजन में शुद्ध शाकाहारी भोजन परोसा गया। (UPBoardSolutions.com)
(ङ) वे मन्दिर बनवाने की अपेक्षा धर्मशाला बनवाना अच्छा समझते थे।

प्रश्न 3.
सही वाक्य के सामने सही (✓) तथा गलत वाक्य के सामने गलत (✗) का निशान लगाइए (निशान लगाकर)
उत्तर :
(क) सन्त गाडगे जी के पिता का नाम झिंगराजी जाणोरकर और माता सखूबाई थीं। (✓)
(ख) 20 दिसम्बर, 1956 को सन्त गाडगे बाबा की मृत्यु हो गई। (✓)
(ग) डेबू जी आँत की बीमारी से पीड़ित थे। (✗)
(घ) सन्त गाडगे बाबा मूर्ति पूजा के विरोधी थे। (✓)

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UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 21 लाला लाजपत राय (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 21 लाला लाजपत राय (महान व्यक्तित्व)

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पाठ का सारांश

लाला लाजपत राय का जन्म फिरोजपुर जिले के ढोडिके गाँव में 28 जनवरी सन् 1865 ई० में हुआ। इनके पिता राधाकिशन स्कूल में अध्यापक और माता गुलाबी देवी थी।

लाला लाजपत राय ने अपने पिता से पढ़ने-लिखने का उत्साह पाया। सन् 1882 ई० में जब वे लाहौर कालेज में छात्र थे, आर्य समाज में शामिल हो गए। 23 वर्ष की अवस्था में ये सन् 1888 ई० में कांग्रेस में शामिल हुए और इन्होंने कांग्रेस का ध्यान जनता की गरीबी और निरक्षरता की ओर दिलाया।

लाला लाजपत राय की आस्था और विश्वास के कारण उन्हें पंजाब केसरी और शेरे पंजाब की उपाधि दी गई। ब्रिटिश सरकार की निर्मय आलोचना करने के कारण उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया। अँग्रेजों ने मई 1907 ई० में लाला जी को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। कांग्रेस के भीतर और बाहर उन्हें कांग्रेस का योग्य नेता समझा जाता था। भारत का नेतृत्व करने और समर्थन पाने के लिए वे इंग्लैण्ड और यूरोप कई बार गए।

लाला लाजपतराय ने 30 अक्टूबर, 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन का बहिष्कार करने वाली जनता का शान्तिपूर्ण ढंग से नेतृत्व किया। लाठियों के प्रहार के फलस्वरूप लाला जी को गंभीर चोटें (UPBoardSolutions.com) आईं और 16 नवम्बर, 1929 ई० में रात में दशा खराब होने से प्रातः उनकी मृत्यु हो गई।

लाला जी राजनैतिक गतिविधियों के अलावा सामाजिक सुधार कार्यक्रमों और शिक्षा के प्रसार के लिए भी सक्रिय थे। जनता के उत्थान के लिए वे शिक्षा को अनिवार्य मानते थे। वे हृदय से शिक्षा शास्त्री थे। उनका महिलाओं की समस्याओं को देखने का दृष्टिकोण प्रगतिशील था। सन् 1896 ई० में उत्तर भारत में भीषण अकाल के समय जनता को राहत पहुँचाने के कार्य में वे सबसे आगे थे। इसी प्रकार पंजाब में भूकम्प पीड़ितो को राहत पहुँचाने और उनकी सहायता में अग्रणी रहे। राहत कार्य के दौरान इन्होंने ‘सर्वेट्स ऑफ पीपुल सोसाइटी’ की स्थापना की। जिसके सदस्य देशभक्त थे और जिसका ध्येय जनसेवा था।

लाला लाजपतराय ने कई पुस्तकें लिखीं जैसे- ए हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, महाराज अशोक, वैदिक ट्रैक्ट और अनहैप्पी इण्डिया। इन्होंने कई पत्रिकाओं की स्थापना और सम्पादन भी किया। देशवासियों के लिए उनका योगदान, त्याग और बलिदान चिरस्मरणीय रहेगा।

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अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
लाला लाजपत राय का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर :
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी सन् 1865 ई० में फिरोजपुर जिले के ढोडिके गाँव में हुआ।

प्रश्न 2.
लाला लाजपत राय को कौन-सी उपाधि दी गई थी और क्यों?
उत्तर :
लाला लाजपत राय को आस्था और विश्वास के कारण पंजाब केसरी तथा शेरे पंजाब की उपाधि दी गई।

प्रश्न 3.
लाला लाजपत राय अंग्रेजों के विशेष निशाने पर क्यों रहते थे?
उत्तर :
ब्रिटिश सरकार की निर्भय आलोचना, अपने दृढ़ विश्वास और (UPBoardSolutions.com) भारतीय जनता में अपनी गहरी पैठ के कारण वे अंग्रेजों के विशेष निशाने पर रहते थे।

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प्रश्न 4.
लाला लाजपत राय का सामाजिक कार्यों में क्या योगदान रहा?
उत्तर :
लाला जी का सामाजिक कार्यों में बड़ा योगदान था। वे गरीबों की सहायता और शिक्षा के प्रसार की दिशा में सक्रिय रहे। अकाल और भूकम्प के समय पीड़ित जनता के लिए राहत कार्यों में वे आगे रहते थे। उन्होंने लोगों में राष्ट्रीयता की भावना और देशभक्ति की प्रेरणा भरने की कोशिश की। उन्होंने शिक्षण संस्थाओं के अस्तित्व के लिए अपनी बचत से 40000 रुपये दान दिया।

प्रश्न 5.
लाला लाजपत राय की किन्हीं तीन रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
लाला लाजपत राय की रचनाओं के नाम ए हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, महाराज अशोक और वैदिक ट्रैक्ट हैं।

प्रश्न 6.
“लाला लाजपत राय हृदय से शिक्षाशास्त्री थे।” पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
लाला लाजपत राय ने अति वंचित एवं पिछड़े लोगो के लिए एक शिक्षण संस्था की स्थापना की। इसके बाद इस तरह की कई संस्थाएँ खोली गई। इनके लिए उन्होनें अपनी बचत से 40,000 रुपया दान दिया। लाला लाजपत राय हृदय से शिक्षा शास्त्री थे। उनका विश्वास था कि जनता के उत्थान लिए शिक्षा अनिवार्य है।

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प्रश्न 7.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (पूर्ति करके)

  • लाला लाजपत राय की माता ने उन्हें धर्म की शिक्षा दी। (UPBoardSolutions.com)
  • लाला लाज़पत राय का विचार था कि जनता के उत्थान के लिए शिक्षा अनिवार्य है।
  • पंजाब में भूकम्प पीड़ितों के लिए राहत कार्य के लिए उन्होंने सर्वेट्स ऑफ पीपुल सोसाइटी की स्थापना की।
  • लाला लाजपत राय का सारा समय जन-कल्याण तथा सारा जीवन राष्ट्र की सेवा में बीता।

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UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 20 स्वामी विवेकानन्द (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 20 स्वामी विवेकानन्द (महान व्यक्तित्व)

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पाठ का सारांश

स्वामी विवेकानन्द का बचपन का नाम नरेन्द्र (नरेन) था। इनका जन्म 12 जनवरी 1863 ई० को कोलकाता में हुआ। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। अधिक प्यार के कारण नरेन्द्र, हठी बन गया था। जब वह शरारत करता तो माँ शिव, शिव कहकर उसके सिर पर पानी के छींटें देती। इससे ये शान्त हो जाता क्योंकि इनकी शिव में अगाध श्रद्धा थी।

नरेन्द्र की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। कुश्ती, बॉक्सिंग, दौड़, घुड़दौड़ और व्यायाम उनके शौक थे। उनके आकर्षक व्यक्तित्व को लोग देखते ही रह जाते। उन्होंने बी०ए० तक शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने पाश्चात्य और भारतीय संस्कृति का विस्तृत अध्ययन किया। दार्शनिक विचारों के अध्ययन से उनके मन में सत्य को जानने की इच्छा जाग्रत् हुई। सन् 1881 ई० में उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से प्रश्न किया, “क्या आपने ईश्वर को देखा है?” उत्तर मिला, “हाँ देखा है, जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूँ।” नरेन्द्र मौन हो गए।

उनका संशय दूर हुआ और उनकी आध्यात्मिक शिक्षा शुरू हो गई। स्वामी रामकृष्ण ने भावी युग प्रवर्तक और संदेश वाहक को पहचान कर टिप्पणी की, “नरेन एक दिन संसार को आमूले झकझोर डालेगा।” (UPBoardSolutions.com) रामकृष्ण की मृत्यु के पश्चात् नरेन्द्र ने भारत में घूमकर उनके विचारों का प्रचार करना शुरू कर दिया। उन्होंने तीन वर्ष तक पैदल घूमकर सारे भारत का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने अपने जीवन को पहला उद्देश्य धर्म की पुनस्र्थापना निर्धारित किया।

उनका दूसरा कार्य था- हिन्दू धर्म और संस्कृति पर हिन्दुओं की श्रद्धा जमाना और तीसरा कार्य था- भारतीयों को संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिक परम्पराओं का योग्य उत्तराधिकारी बनाना। उन्होंने अपना नाम विवेकानन्द रखा और 1893 ई० के शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लिया। इनकी बोलने की बारी सबसे बाद में आई क्योंकि वहाँ इन्हें कोई नहीं जानता था। इनके सम्बोधन से सभा-भवन तालियों से गूंज उठा और इन्हें सर्वश्रेष्ठ व्याख्याता माना गया। इनके विदेशी मित्रों में मार्गरेट नोब्ल (सिस्टर निवेदिता) और जे जे गुडविन सेवियर दम्पत्ति जैसे प्रसिद्ध विद्वान विशेष प्रभावित हुए।

स्वामी जी तीन वर्ष तक इंग्लैण्ड और अमेरिका में रहे। इन्होंने वहाँ पर संयम और त्याग का महत्त्व समझाया। मानव मात्र के प्रति प्रेम और सहानुभूति उनका स्वभाव था। सेवा के उद्देश्य से उन्होंने 1897 ई० में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। मिशन का लक्ष्य सर्वधर्म समभाव था। कोलकाता में प्लेग फैलने पर इन्होंने प्लेग ग्रस्त लोगों की सेवा की।

स्वामी जी के हृदय में नारियों के प्रति असीम उदारता का भाव था। वे उन्हें महाकाली की साकार प्रतिमाएँ कहकर सम्मान देते थे। 4 जुलाई 1902 ई० को उनतालीस वर्ष की अल्पायु में उनका देहावसान हो गया। संघर्ष, त्याग और तपस्या का प्रतीक यह महापुरुष भारतीयों के हृदयों में चिरस्मरणीय रहेगा।

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अभ्यास-प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
नरेन्द्र का नाम विवेकानन्द कैसे हुआ?
उत्तर :
अपने शिष्य खेतरी नरेश के प्रस्ताव पर उन्होंने अपना नाम विवेकानन्द धारण किया।

प्रश्न 2.
नरेन्द्र के बारे में रामकृष्ण परमहंस ने क्या टिप्पणी की थी?
उत्तर :
नरेन्द्र के बारे में रामकृष्ण परमहंस ने टिप्पणी की थी, “नरेन (नरेन्द्र) एक दिन संसार को आमूल झकझोर डालेगा।”

प्रश्न 3.
स्वामी विवेकानन्द ने जीवन के क्या लक्ष्य निर्धारित किए?
उत्तर :
स्वामी विवेकानन्द के जीवन का पहला लक्ष्य- धर्म की पुनस्र्थापना का लक्ष्य- हिन्दू धर्म और संस्कृति पर हिन्दुओं की श्रद्धा जमाना और तीसरा लक्ष्य था- भारतीयों को उनकी संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिक (UPBoardSolutions.com) परम्पराओं का योग्य उत्तराधिकारी बनाना निर्धारित किया।

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प्रश्न 4.
स्वामी विवेकानन्द विदेश यात्रा के समय किन-किन लोगों से मिले?
उत्तर :
स्वामी विवेकानन्द विदेश यात्रा के समय मित्र के रूप में जे०जे० गुडविन, सेवियर दम्पति और मर्णरेट नोबल से मिले। सहयोगी के रूप में भगिनी निवेदिता मिली तथा विदेश यात्रा के दौरान ही उनकी भेंट प्रसिद्ध विद्वान मैक्समलर से हुई।

प्रश्न 5.
शिकागो धर्म सभा में स्वामी जी को सबसे बाद में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया क्योंकि
(क) वे देर से पहुँचे थे।
(ख) वे पहले बोलने में झिझक रहे थे।
(ग) उन्होंने ही ऐसी इच्छा जताई थी।
(घ) वहाँ न तो कोई उन्हें पहचानता था, न समर्थक था। (✓)

प्रश्न 6.
शिकागो धर्म सम्मेलन में किस बात पर श्रोता देर तक तालियाँ बजाते रहे?
उत्तर :
शिकागो धर्म सम्मेलन में सम्बोधन, “अमेरिकावासी भाइयों और बहिनो” पर श्रोता देर तक तालियाँ बजाते रहे।

प्रश्न 7.
स्वामी विवेकानन्द के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं ने आपको सबसे ज्यादा प्रभावित किया और क्यों? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
स्वामी विवेकानन्द के व्यक्तित्व की विशेषताएँ- संघर्ष, त्याग, तपस्या, साधना, दलितों के लिए सेवा और उनका उद्धार, उनकी व्याख्यान क्षमता आदि ने हमें विशेष प्रभावित किया है। हम उनसे (UPBoardSolutions.com) इसलिए प्रभावित हैं कि उन्होंने अल्पायु में अनेक कार्य करके यह सिद्ध कर दिया कि जंग लगकर मरने की अपेक्षा कुछ करके मरना अच्छा है।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए

  • विग्रह नहीं समन्वय और शान्ति के पथ पर बढ़ो।
    आशय स्पष्ट – अलगाव ओर टकराव के स्थान पर मेल-जोल और सद्भावना का पथ श्रेष्ठ है।
  • मैं भारत में लोहे की माँसपेशियाँ और फौलाद की नाड़ियाँ देखना चाहता हूँ।
    आशय स्पष्ट – अच्छा स्वास्थ्य और साहस व दृढ़ निश्चय वाले कर्मठ व्यक्ति।
  • वास्तविक पूजा निर्धन और दरिद्र की पूजा है, रोगी और कमजोर की पूजा है।
    आशय स्पष्ट – गरीब लोगों की सेवा और सहायता करना।
  • जो जाति नारी का सम्मान करना नहीं जानती, वह न तो अतीत में उन्नति कर सकी, न आगे कर सकेगी।
    आशय स्पष्ट – नारियों की अवहेलना करने वाले कभी तरक्की नहीं कर पाए और न कर सकेंगे।
  • भारत यदि समाज संघर्ष में पड़ा तो नष्ट हो जाएगा।
    आशय स्पष्ट – समाज में विखण्डन और भेद-भाव नीति भारत के लिए हानिकारक है।
  • जंग लगकर मरने की अपेक्षा कुछ करके मरना अच्छा है। उठो, जागो और अपने अन्तिम लक्ष्य की पूर्ति हेतु कर्म में लग जाओ।
    आशय स्पष्ट – आलस्य छोड़कर, साहस से पुरुषार्थ करके जीवन में सफलता प्राप्त करना।

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UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 19 रामकृष्ण परमहंस (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 19 रामकृष्ण परमहंस (महान व्यक्तित्व)

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पाठ का सारांश

रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी, 1836 को बंगाल प्रांत के एक छोटे से गाँव कामरपुकुर में एक निर्धन परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम खुदीराम तथा माता का नाम चंद्रमणि था। इनके बचपन का नाम गदाधर था। इनमें बचपन से ईश्वर के प्रति अटूट आस्था, अपार श्रद्धा एवं प्रबल प्रेम था। सत्रह वर्ष की आयु में ये कोलकाता आ गए। कोलकाता आने के बाद इन्होंने मन ही मने संकल्प किया कि वे अपना जीवन केवल आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने में लगाएँगे। कोलकाता आने के थोड़े समय बाद ही ये कोलकाता के दक्षिणेश्वर स्थित मशहूर काली मंदिर के पुजारी बन गए। ये दिन-रात साधना में लीन रहते। (UPBoardSolutions.com) दूर-दूर से लोग उनके दर्शन को आने लगे। इसी समय मुरु के रूप में इनको एक महान संत तोता राम जी मिले, जिनके सानिध्य में इन्हें देवी दर्शन एवं ज्ञान की प्राप्ति हुई। एक महान विचारक व उपदेशक के रूप में इन्होंने बहुत से लोगों को प्रेरित किया। रामकृष्ण परमहंस का महाप्रयाग 16 अगस्त 1866 को हुआ। इनके परम शिष्य परम तेजस्वी स्वामी विवेकानंद ने ‘राम कृष्ण मिशन’ की स्थापना की। विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस के संदेशों का भारत तथा विश्व में अन्य देशों में प्रचार-प्रसार किया तथा विश्व पटल पर भारत को गौरवान्वित किया।

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अभ्यास-प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर :
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी, 1836 को बंगाल प्रांत के एक छोटे से गाँव कामारपुकुर में हुआ था।

प्रश्न 2.
सत्रह वर्ष की आयु में कोलकाता आने पर रामकृष्ण ने क्या अनुभव किया?
उत्तर :
सत्रह वर्ष की आयु में कोलकाता आने पर रामकृष्ण ने अनुभव किया कि सभी प्रकार के सांसारिक ज्ञान का लक्ष्य केवल भौतिक उन्नति ही है।।

प्रश्न 3.
रामकृष्ण की भक्ति देखकर लोग क्यों आश्चर्य करते थे?
उत्तर :
रामकृष्ण दिन-रात साधना में लीन रहते थे। अतः लोग राम कृष्ण की भक्ति देखकर आश्चर्य करते थे।

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प्रश्न 4.
रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख उपदेशों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख उपदेश निम्नलिखित हैं

  • कर्म के लिए भक्ति का आधार होना आवश्यक है।
  • उसका जन्म वृथा है जो दुर्लभ मानव जनम पाकर भी इसी जीवन में भगवान को पाने की चेष्टा नहीं करता।
  • जिसने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया, उस पर काम और लाभ का विष नहीं चढ़ता। (UPBoardSolutions.com)
  • जब हवा चलने लगे तो पंखा छोड़ देना चाहिए परन्तु ईश्वर की कृपा जब होने लगे तो प्रार्थना तपस्या नहीं छोड़नी चाहिए।
  • यदि तुम ईश्वर की दी गई शक्तियों को सदुपयोग नहीं करोगे तो वह अधिक नहीं देगा अर्थात ईश-कृपा के योग्य बनने के लिए भी पुरुषार्थ चाहिए।
  • पानी और उसका बुलबुला एक ही चीज है उसी प्रकार जीवात्मा और परमात्मा एक ही चीज है।
  • मैले शीशे से सूर्य की किरणों का प्रतिबिंब नही पड़ता, उसी प्रकार जिनका अंत:करण मलिन और अपवित्र है उनके हृदय में ईश्वर के प्रकाशं का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता।
  • मैं भौतिक सुखों को प्रदान करने वाली विद्या नहीं चाहता हूँ। मैं उस विद्या का चाहता हूँ। जिससे हृदय में ज्ञान का उदय होता है।

प्रश्न 5.
रामकृष्ण परमहंस के व्यक्तित्व की विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
रामकृष्ण परमहंस बहुत ही सरल इंसान थे। सत्रह वर्ष की आयु में वे अपने गाँव से कोलकाता आ गए। कोलकाता आने के कुछ दिनों बाद वे कोलकाता के नजदीक दक्षिणेश्वर स्थित काली मंदिर के पुजारी बन गए। वहाँ वे दिन रात साधना में लीन रहते थे। इसी समय एक महान संत तोताराम उन्हें गुरु के रूप में मिले, जिनके सानिध्य (UPBoardSolutions.com) में इन्हें देवी दर्शन एवं ज्ञान की प्राप्ति हुई। रामकृष्ण जी ने अपनी आध्यात्मिक साधना के बल पर अनेक सिधियों को प्राप्त किया। एक महान विचारक एवं उपदेशक के रूप में उन्होंने बहुत से लोगों को प्रेरित किया। उनके परम शिष्य परम तेजस्वी स्वामी विवेकानंद थे। विवेकानंद जी ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की एवं इनके. उपदेशों की भारत सहित विश्व के अनेक देशों में प्रचारित किया।

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