UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi काव्य सौन्दर्य के तत्त्व रस्

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name संस्कृत दिग्दर्शिका काव्य सौन्दर्य के तत्त्व रस्
Number of Questions 2
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi काव्य सौन्दर्य के तत्त्व रस्

काव्य सौन्दर्य के तत्त्व

रस

प्रश्न 1:
रस क्या है? उसके अंगों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
श्रव्य काव्य पढ़ने या दृश्य काव्य देखने से पाठक, श्रोता या दर्शक को जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, उसे ‘रस’ कहते हैं। विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी (या संचारी) भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति (अभिव्यक्ति) होती है। मनुष्य के हृदय में रति, शोक आदि कुछ भाव हर समय सुप्तावस्था में रहते हैं, जिन्हें स्थायी भाव कहते हैं। ये स्थायी भाव अनुकूल परिस्थिति या दृश्य उपस्थित होने पर जाग्रत हो जाते हैं। सफल कवि द्वारा वर्णित वृत्तान्त को पढ़ या सुनकर काव्य के पाठक या श्रोता को एक ऐसे अलौकिक आनन्द का अनुभव होती है कि वह स्वयं को भूलकर आनन्दमय हो जाता है। यही आनन्द काव्यशास्त्र में रस कहलाता है।

रस के अंग

रस के प्रमुख चार अवयव (अंग) हैं – (1) स्थायी भाव, (2) विभाव, (3) अनुभाव, (4) संचारी भाव। इन अंगों को परिचय निम्नलिखित है

(1) स्थायी भाव
रति (प्रेम), जुगुप्सा (घृणा), अमर्ष (क्रोध) आदि भाव मनुष्य के मन में स्वाभाविक रूप से सदा विद्यमान रहते हैं, इन्हें स्थायी भाव कहते हैं। ये नौ हैं और इसी कारण इनसे सम्बन्धित रस भी नौ ही हैं

स्थायी भाव                                                 रस
(1) रति                                                         शृंगार
(2) हास                                                        हास्य
(3) शोक                                                       करुण
(4) उत्साह                                                      वीर
(5) अमर्ष (क्रोध)                                            रौद्र
(6) भय                                                         भयानक
(7) जुगुप्सा (घृणा)                                         वीभत्स
(8) विस्मय (आश्चर्य)                                      अद्भुत
(9) निर्वेद (उदासीनता)                                  शान्त

रति नामक स्थायी भाव के प्राचीन ग्रन्थों में तीन भेद किये गये हैं–(i) कान्ताविषयक रति (नर-नारी को पारस्परिक प्रेम), (i) सन्ततिविषयक रति और (iii) देवताविषयक रति। अपत्य (सन्तान) विषयक रति की रस-रूप में परिणति करके सूर ने दिखा दी; अतः अब वात्सल्य रस को एक स्वतन्त्र रस की मान्यता प्राप्त हो गयी है। इसी प्रकार गोस्वामी तुलसीदास जी के काव्य-कौशल के फलस्वरूप देवताविषयक रति की भक्ति रस में परिणति होने से भक्ति रस भी एक स्वतन्त्र रस माना जाने लगी है; अतः अब रसों की संख्या ग्यारह हो गयी है–उपर्युक्त नौ तथा
(10) वात्सल्य रसवत्सलता (स्थायी भाव) तथा
(11) भक्ति रस देवताविषयक रति (स्थायी भाव)।

(2) विभाव
स्थायी भाव सामान्यत: सुषुप्तावस्था में रहते हैं, इन्हें जाग्रत एवं उद्दीप्त करने वाले कारणों को विभाव कहते हैं। विभाव निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं

(1) आलम्बन विभाव – जो स्थायी भाव को उद्बुद्ध (जाग्रत) करे वह आलम्बन विभाव कहलाता है। इसके निम्नलिखित दो अंग होते हैं

  • आश्रय – जिस व्यक्ति के हृदय में स्थायी भाव जाग्रत होता है, उसे आश्रय कहते हैं।
  • विषय – जिस वस्तु या व्यक्ति के कारण आश्रय के हृदय में रति आदि स्थायी भाव जाग्रत होते हैं, उसे विषय कहते हैं।

(2) उद्दीपन विभाव – जो जाग्रत हुए स्थायी भाव को उद्दीप्त करे अर्थात् अधिक प्रबल बनाये, वह उद्दीपन विभाव कहलाता है।

उदाहरणार्थ – श्रृंगार रस में प्रायः नायक-नायिका एक-दूसरे के लिए आलम्बन हैं और वने, उपवन, चाँदनी, पुष्प आदि प्राकृतिक दृश्य या आलम्बन के हाव-भाव उद्दीपन विभाव हैं। भिन्न-भिन्न रसों में आलम्बन और उद्दीपन भी बदलते रहते हैं; जैसे—युद्धयात्रा पर जाते हुए वीर के लिए उसका शत्रु ही आलम्बन है; क्योंकि उसके कारण ही वीर के मन में उत्साह नामक स्थायी भाव जगता है और उसके आस-पास बजते बाजे, वीरों की हुंकार आदि उद्दीपन हैं; क्योंकि इनसे उसका उत्साह और बढ़ता है।

(3) अनुभाव
आलम्बन तथा उद्दीपन के द्वारा आश्रय के हृदय में स्थायी भाव के जाग्रत तथा उद्दीप्त होने पर आश्रय में जो चेष्टाएँ होती हैं, उन्हें अनुभाव कहते हैं। अनुभाव दो प्रकार के होते हैं – (i) सात्त्विक और (ii) कायिक।

(i) सात्त्विक अनुभाव – जो शारीरिक विकार बिना आश्रय के प्रयास के स्वतः ही उत्पन्न होते हैं, वे सात्त्विक अनुभाव कहलाते हैं। ये आठ होते हैं

  1. स्तम्भ,
  2. स्वेद,
  3.  रोमांच,
  4.  स्वरभंग,
  5. कम्प,
  6.  वैवर्य,
  7. अश्रु एवं
  8. प्रलय (सुध-बुध खोना)।।

(ii) कायिक अनुभाव – इनका सम्बन्ध शरीर से होता है। जो चेष्टाएँ आश्रये अपनी इच्छानुसार जान-बूझकर प्रयत्नपूर्वक करता है, उन्हें कायिक अनुभाव कहते हैं; जैसे – क्रोध में कठोर शब्द कहना, उत्साह में पैर पटकना, कूदना आदि।

(4) संचारी (या व्यभिचारी) भाव
जो भाव स्थायी भावों से उद्बुद्ध (जाग्रत) होने पर इन्हें पुष्ट करने में सहायता पहुँचाने तथा इनके अनुकूल कार्य करने के लिए उत्पन्न होते हैं, उन्हें संचारी (या व्यभिचारी) भाव कहते हैं; क्योंकि ये अपना काम करके तुरन्त स्थायी भावों में ही विलीन हो जाते हैं (संचरण करते रहने के कारण इन्हें संचारी और स्थिर न रहने के कारण व्यभिचारी कहते हैं)।

प्रमुख संचारी भावों की संख्या तैतीस मानी गयी है

  1. निर्वेद (उदासीनता)
  2.  आवेग
  3. दैन्य (दीनता)
  4. श्रम
  5.  मद
  6.  जड़ता।
  7.  औग्य (उग्रता)
  8.  मोह
  9. विबोध (अनुभूति)
  10.  स्वप्न
  11.  अपस्मार (मूच्र्छा)
  12. गर्व
  13. मरण
  14.  आलस्य
  15.  अमर्ष (क्षोभ)
  16.  निद्रा
  17.  अवहित्था (भावगोपन)
  18. औत्सुक्य (उत्सुकता)
  19.  उन्माद
  20.  शंका
  21.  स्मृति
  22.  मति
  23.  व्याधि
  24.  सन्त्रास
  25.  लज्जा
  26.  हर्ष
  27.  असूया (जलन)
  28. विषाद
  29.  धृति (धैर्य)
  30. चपलता
  31. ग्लानि
  32. चिन्ता
  33. वितर्क

संचारी भावों की संख्या असंख्य भी हो सकती है। ये स्थायी भावों को गति प्रदान करते हैं तथा उसे व्यापक रूप देते हैं। स्थायी भावों को पुष्ट करके ये स्वयं समाप्त हो जाते हैं।

प्रश्न 2:
रस कितने होते हैं? किसी एक रस का लक्षण उदाहरणसहित लिखिए।
उत्तर:
शास्त्रीय रूप से रस निम्नलिखित नौ प्रकार के होते हैं

(1) श्रृंगार रस

(क) परिभाषा – जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से ‘रति’ नामक स्थायी भाव रस रूप में परिणत होता है तो उसे श्रृंगार रस कहते हैं।

(ख) श्रृंगार रस के अवयव

स्थायी भाव – रति।।
आलम्बन (विभाव) – नायक या नायिका।
उद्दीपन (विभाव) – सुन्दर प्राकृतिक दृश्य तथा नायक-नायिका की वेशभूषा, विविध आंगिक चेष्टाएँ (हाव-भाव) आदि।
संचारी ( भाव) – पूर्वोक्त तैतीस में से अधिकांश।
अनुभाव – आश्रय की प्रेमपूर्ण वार्ता, अवलोकन, स्पर्श, आलिंगन, चुम्बन, कटाक्ष, अश्रु, वैवर्य आदि।

(ग) श्रृंगार रस के भेद – श्रृंगार के दो भेद हैं – संयोग और विप्रलम्भ (वियोग)।

संयोग श्रृंगार
संयोगकाल में नायक और नायिका की पारस्परिक रति को संयोग श्रृंगार कहते हैं। संयोग से आशय है – सुख को प्राप्त करना।

उदाहरण –                               राम कौ रूप निहारति जानकी, कंगन के नग की परछाहीं ।
                                                यातें सबे सुधि भूलि गयी, कर टेकि रहीं पल टारति नाहीं ॥       ( तुलसीदास)

स्पष्टीकरण – यहाँ सीताजी अपने कंगन के नग में पड़ रहे राम के प्रतिबिम्ब को निहारते हुए अपनी सुध-बुध भूल गयीं और हाथ को टेके हुए जड़वत् हो गयीं। इसमें जानकी आश्रये और राम आलम्बन हैं। राम का नग में पड़ने वाला प्रतिबिम्ब उद्दीपन है। रूप को निहारना, हाथ टेकना अनुभाव और हर्ष तथा जड़ता संचारी भाव है।
इस प्रकार विभाव, संचारी भाव और अनुभावों से पुष्ट रति नामक स्थायी भाव संयोग श्रृंगार की अवस्था को प्राप्त हुआ है।

वियोग श्रृंगार

प्रेम में अनुरक्त नायक और नायिका के परस्पर मिलन का अभाव वियोग श्रृंगार कहलाता है।

उदाहरण-                                                    हे खग-मृग, हे मधुकर त्रेनी,
                                                                      तुम देखी सीता मृग नैनी?                                    ( तुलसीदास)

स्पष्टीकरण – यहाँ श्रीराम आश्रय हैं और सीताजी आलम्बन, सूनी कुटिया और वन का सूनापन उद्दीपन हैं। सीताजी की स्मृति, आवेग, विषाद, शंका, दैन्य, मोह आदि संचारी भाव हैं। इस प्रकार विभावानुभावसंचारीभाव के संयोग से रति नामक स्थायी भाव पुष्ट होकर विप्रलम्भ श्रृंगार की रसावस्था को प्राप्त हुआ है।

(2) हास्ये रस

(क) परिभाषा – जब किसी वस्तु या व्यक्ति के विकृत आकार, वेशभूषा, वाणी, चेष्टा आदि से व्यक्ति को बरबस हँसी आ जाए तो वहाँ हास्य रस है।

(ख) हास्य रस के अवयव
स्थायी भाव – हास।
आलम्बन (विभाव) – विचित्र-विकृत चेष्टाएँ, आकार, वेशभूषा।
उद्दीपन (विभाव)—आलम्बन की अनोखी बातचीत, आकृति।
अनुभाव – आश्रय की मुस्कान, अट्टहास।।
संचारी भाव – हर्ष, चपलता, उत्सुकता आदि।

उदाहरण

नाना वाहन नाना वेषा। बिहँसे सिव समाज निज देखा ॥
कोउ मुख-हीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद-कर कोउ बहु पद-बाहू ॥     

 ( तुलसीदास)

स्पष्टीकरण – इस उदाहरण में स्थायी भाव हास के आलम्बन-शिव समाज, आश्रय-शिव, उद्दीपन-विचित्र वेशभूषा, अनुभाव-शिवजी का हँसना तथा संचारी भाव-रोमांच, हर्ष, चापल्य आदि। इनसे पुष्ट हुआ हास नामक स्थायी भाव हास्य-रसावस्था को प्राप्त हुआ है।

(3) करुण रस

(क) परिभाषा – किसी प्रिय वस्तु या वस्तु के विनाश से या अनिष्ट की प्राप्ति से करुण रस की निष्पत्ति होती

(ख) करुण रस के अवयव
स्थायी भाव – शोक।
आलम्बन (विभाव) – विनष्ट वस्तु या व्यक्ति।
उद्दीपन (विभाव)-इष्ट के गुण तथा उनसे सम्बन्धित वस्तुएँ।
अनुभाव – रुदने, प्रलाप, मूच्र्छा, छाती पीटना, नि:श्वास, उन्माद आदि।
संचारी भाव – स्मृति, मोह, विषाद , जड़ता, ग्लानि, निर्वेद आदि।
उदाहरण

जो भूरि भाग्य भरी विदित थी निरुपमेय सुहागिनी।
हे हृदयवल्लभ ! हूँ वही अब मैं महा हतभागिनी ॥
जो साथिनी होकर तुम्हारी थी अतीव सनाथिनी।।
है अब उसी मुझ-सी जगत् में और कौन अनाथिनी ॥             

( जयद्रथ-वध)

स्पष्टीकरण – अभिमन्यु की मृत्यु पर उत्तरा के इस विलाप में उत्तरा–आश्रय और अभिमन्यु की मृत्यु-आलम्बन है, पति के वीरत्व आदि गुणों का स्मरण-उद्दीपन है। अपने विगत सौभाग्य की स्मृति एवं दैन्य-संचारी भाव तथा (उत्तरा का) क्रन्दन–अनुभाव है। इनसे पुष्ट हुआ शोक नामक स्थायी भाव केरुण-रसावस्था को प्राप्त हुआ है।

वियोग श्रृंगार तथा करुण रस में अन्तर – वियोग श्रृंगार तथा करुण रस में मुख्य अन्तर प्रियजन के वियोग को होता है। वियोग श्रृंगार में बिछुड़े हुए प्रियजन से पुनः मिलन की आशा बनी रहती है; परन्तु करुण रस में इस प्रकार के मिलन की कोई सम्भावना नहीं होती।

(4) वीर रस

(क) परिभाषा – शत्रु की उन्नति, दीनों पर अत्याचार या धर्म की दुर्गति को मिटाने जैसे किसी विकट या दुष्कर कार्य को करने का जो उत्साह मन में उमड़ता है, वही वीर रस का स्थायी भाव है, जिसकी पुष्टि होने पर वीर रस की सिद्धि होती है।

(ख) वीर रस के अवयव

स्थायी भाव – उत्साह।
आलम्बन (विभाव) – अत्याचारी शत्रु।
उद्दीपन (विभाव) – शत्रु का अहंकार, रणवाद्य, यश की इच्छा आदि।
अनुभाव – गर्वपूर्ण उक्ति, प्रहार करना, रोमांच आदि।
संचारी भाव – आवेग, उग्रता, गर्व, औत्सुक्य, चपलता आदि।।

उदाहरण

मैं सत्य कहता हूँ सखे, सुकुमार मत जानो मुझे।
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा मानो मुझे ॥
है और की तो बात क्या, गर्व मैं करता नहीं।
मामा तथा निज तात से भी युद्ध में डरता नहीं ।। (मैथिलीशरण गुप्त)

स्पष्टीकरण – अभिमन्यु का यह कथन अपने सारथी के प्रति है। इसमें कौरव-आलम्बन, अभिमन्यु–आश्रय, चक्रव्यूह की रचना–उद्दीपन तथा अभिमन्यु के वाक्य–अनुभाव हैं। गर्व, औत्सुक्य, हर्ष आदि संचारी भाव हैं। इन सभी के संयोग से वीर रस की निष्पत्ति हुई है।

(5) रौद्र रस

(क) परिभाषा – अपना अपमान, बड़ों की निन्दा या उनका अपकार, शत्रु की चेष्टाओं तथा शत्रु या किसी दुष्ट अत्याचारी द्वारा किये गये अत्याचारों को देखकर अथवा गुरुजनों की निन्दा आदि सुनकर उत्पन्न हुए अमर्ष (क्रोध) के पुष्ट होने पर रौद्र रस की सिद्धि होती है।

(ख) रौद्र रस के अवयव
स्थायी भाव – क्रोध।।
आलम्बन (विभाव) – अनुचित व्यवहार करने वाला, विपक्षी।
उद्दीपन (विभाव) – विपक्षी की अनुचित बात और कार्य।
अनुभाव – दाँत पीसना, भौंहें चढ़ाना, मुख लाल होना, गर्जन, कम्प आदि।
संचारी भाव – उग्रता, मद, आवेग, अमर्ष, उद्वेग आदि।

उदाहरण (1) –  भाखे लखनु कुटिल भई भौंहें। रदपट फरकट नयन रिसौहें।
स्पष्टीकरण – इसमें सीता स्वयंवर में जनक के अपमानजनक कटु वचन–उद्दीपन, अमर्ष-संचारी तथा लक्ष्मण की भौंहें टेढ़ी होना, होंठ फड़कना, आँखें लाल होना–अनुभाव हैं। इनसे पुष्ट अमर्ष नामक स्थायी भाव रौद्र-रसावस्था को प्राप्त हुआ है।

उदाहरण (2) – उस काल मारे क्रोध के, तन काँपने उनका लगा।
मानो हवा के वेग से, सोता हुआ सागर जगा ।।

स्पष्टीकरण – प्रस्तुत पद्यांश में अभिमन्यु के वध का समाचार सुनकर अर्जुन के क्रोध का वर्णन किया गया है। इसमें स्थायी भाव-क्रोध, आश्रय–अर्जुन, विभाव–अभिमन्यु का वध, अनुभाव – मुख लाल होना एवं शरीर काँपना तथा संचारी भाव-उग्रता से पुष्ट रौद्र रस की अभिव्यक्ति हुई है।

(6) भयानक रस

(क) परिभाषा – किसी भयजनक वस्तु को देखने, घोर अपराध करने पर दण्डित होने के विचार, शक्तिशाली शत्रु या विरोधी के सामना होने की आशंका से उत्पन्न भय के पुष्ट होने पर भयानक रस की सिद्धि होती है।

(ख) भयानक रस के अवयव

भाव – भय।।
आलम्बन (विभाव) – शेर, सर्प, चोर, शून्य स्थान, भयंकर वस्तु आदि।।
उद्दीपन (विभाव) – भयंकर दृश्य, निर्जनता, हिंसक जीवों की भयानक चेष्टाएँ आदि।
अनुभाव – कम्पन, रोमांच, मूच्र्छा, पलायन, पसीना छूटना आदि।
संचारी भाव – चिन्ता, सम्भ्रम, दैन्य, त्रास, सम्मोह।

उदाहरण – लंका की सेना तो कपि के गर्जन-रव से काँप गयी।
हनूमान् के भीषण दर्शन से विनाश ही भाँप गयी।
उस कंपित शंकित सेना पर कपि नाहर की मार पड़ी।
त्राहि-त्राहि शिव त्राहि-त्राहि की चारो ओर पुकार पड़ी।

स्पष्टीकरण – यहाँ स्थायी भाव भय है। लंका की सेना – आश्रय और हनुमान्-आलम्बन हैं। गर्जन-रव और भीषण दर्शन – उद्दीपन हैं। काँपना तथा त्राहि-त्राहि करना-अनुभाव हैं। शंका, चिन्ता, सन्त्रास आदि संचारी भाव हैं। इन सबसे पुष्ट भय नामक स्थायी भाव भयानक रस की अवस्था को प्राप्त हुआ है।

(7) वीभत्स रस

(क) परिभाषा – गन्दी, घोर अरुचिकर, घृणित वस्तुओं; जैसे-पीव, हड्डी, रक्त, चर्बी, मांस, उनकी दुर्गन्ध आदि के वर्णन से मन में जो जुगुप्सा (घृणा) जगती है, वही पुष्ट होकर वीभत्स रस की स्थिति प्राप्त करती है।।

(ख) वीभत्स रस के अवयव
स्थायी भाव – जुगुप्सा या घृणा।
आलम्बन (विभाव) – घृणित व्यक्ति या दृश्य। उद्दीपन (विभाव)-कुरूपती, दुर्गन्ध, जानवरों द्वारा खाल खींचना, घायलों का कराहना आदि।
अनुभाव – नाक सिकोड़ना, मुंह फेर लेना, आँख बन्द कर लेना आदि।
संचारी भाव – ग्लानि, आवेग, व्याधि, चिन्ता, शंका, जड़ता आदि।

उदाहरण – सिर पर बैठ्यौ काग, आँखि दोउ खात निकारत।
खींचत जीवहिं स्यार, अतिहि आनँद उर धारत ॥
गिद्ध जाँघ कोह खोदि-खोदि कै मांस उपारत।
स्वान आँगुरिन काटि-कोटि कै खात बिदारत ॥

स्पष्टीकरण – यहाँ श्मशान का दृश्य-आलम्बन और जुगुप्सा स्थायी भाव का आश्रय पाठक है। कौवे, सियार, गिद्ध और कुत्ते द्वारा शव को खाया जाना – उद्दीपन है। यहाँ अनुभाव-विभावादि से पुष्ट जुगुप्सा
नामक स्थायी भाव की वीभत्स रस में व्यंजना हुई है।

(8) अदभुत रस

(क) परिभाषा – किसी असाधारण वस्तु या कार्य को देखकर हमारे मन में जो विस्मय होता है, वही पुष्ट होकर अदभुत रस में परिणत हो जाता है।

(ख) अद्भुत रस के अवयव
स्थायी भाव – विस्मय।
आलम्बन (विभाव) – आश्चर्ययुक्त अलौकिक वस्तु या व्यक्ति।
उद्दीपन (विभाव) – आश्चर्ययुक्त वस्तु या व्यक्ति के दर्शन या श्रवण।
अनुभाव – विस्मय से आँख फाड़कर देखना, दाँतों तले अँगुली दबाना, गद्गद होना, रोमांच, कम्प, स्वेद।
संचारी भाव – उत्सुकता, आवेग, हर्ष, जड़ता, मोह।

उदाहरण – बिनु पद चलै सुनै बिनु काना। कर बिनु कर्म करै बिधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।

स्पष्टीकरण – यहाँ स्थायी भाव-विस्मय, उक्त काव्य-पंक्तियाँ—आलम्बन तथा पाठक- आश्रय है। बिना शरीर के कार्य सम्पन्न होना–उद्दीपन है। इस प्रकार विस्मय स्थायी भाव, विभावादि से पुष्ट होकर वीभत्स रस की व्यंजना करा रहा है।

(9) शान्त रस

(क) परिभाषा – संसार की क्षणभंगुरता एवं सांसारिक विषय-भोगों की असारता तथा परमात्मा के ज्ञान से उत्पन्न निर्वेद (वैराग्य) ही पुष्ट होकर शान्त रस में परिणत होता है।

(ख) शान्त रस के अवयव

स्थायी भाव – निर्वेद (उदासीनता)।
आलम्बन (विभाव) – संसार की क्षणभंगुरती, परमात्मा का चिन्तन आदि।
उद्दीपन (विभाव) – सत्संग, शास्त्रों का अनुशीलन, तीर्थ-यात्रा आदि।
अनुभाव – अश्रुपात, पुलक, संसारभीरुता, रोमांच आदि।
संचारी भाव – हर्ष, स्मृति, धृति, निर्वेद, विबोध, उद्वेग आदि।

उदाहरण –                      मन पछितैहैं अवसर बीते।
दुर्लभ देह पाई हरिपद भजु, करम वचन अरु होते ॥
अब नाथहिं अनुराग, जागु जड़-त्यागु दुरासा जीते ॥
बुझे न काम अगिनी तुलसी कहुँ बिषय भोग बहु घी ते ॥

स्पष्टीकरण – यहाँ तुलसी (या पाठक)–आश्रय हैं; संसार की असारता-आलम्बन; अपना मनुष्य जन्म व्यर्थ होने की चिन्ता–उद्दीपन; मति-धृति आदि संचारी एवं वैराग्यपरक वचन–अनुभाव हैं। इनसे मिलकर शान्त रस की निष्पत्ति हुई है।

(10) वात्सल्य रस

(क) परिभाषा – बालकों के प्रति बड़ों का जो स्नेह होता है, वही वत्सले (अपत्यविषयक रति) है, जो पुष्ट होकर वात्सल्य रस में परिणत होता है।

(ख) वात्सल्य रस के अवयव

स्थायी भाव – वत्सलता, स्नेह।
आलम्बन (विभाव) – पुत्र, शिशु एवं शिष्य।
उद्दीपन (विभाव)-बाल चेष्टाएँ, तुतलाना, घुटनों के बल चलना, हठ करना आदि।
अनुभाव – गोद लेना, झुलाना, दुलारना, थपथपाना आदि।
संचारी भाव – हर्ष, मोह, गर्व, चिन्ता, शंका, आवेग।।

उदाहरण –                    स्याम गौर सुंदर दोऊ जोरी। निरखहिं छवि जननी तृन तोरी ॥
कबहूँ उछंग कबहुँ वर पलना। मातु दुलारईं कहि प्रिय ललना ॥

स्पष्टीकरण – यहाँ शिशु राम और उनके भाई-आलम्बन और माताएँ – आश्रय हैं। शिशुओं की सुन्दरता, वेशभूषा एवं घुटनों और हाथों के बल चलना – उद्दीपन है। माताओं का तृण तोड़कर देखना, गोद में लेना, पालने में झुलाना, दुलारनी–अनुभाव हैं। तृण तोड़ने में बच्चों को नजर लगने से बचाने का भाव उत्पन्न होने से शंका–संचारी है। इसमें हर्ष और गर्व – संचारी भाव हैं। इन सबसे पुष्ट होकर वत्सल स्थायी भाव वात्सल्य रस की अवस्था को प्राप्त हुआ है।

(11) भक्ति रस

(क) परिभाषा – देवताविषयक रति (भगवान् के प्रति अनन्य प्रेम) ही परिपुष्ट होकर भक्ति रस में परिणत हो जाती है।

(ख) भक्ति रस के अवयव

स्थायी भाव – देवताविषयक रति।।
आलम्बन (विभाव) – ईश्वर, देवता, राम, कृष्ण आदि।
उद्दीपन (विभाव)-सत्संग, ईश्वर के अद्भुत क्रिया-कलाप, भक्तों का समागम आदि।
अनुभाव – भजन-कीर्तन, ईश्वर का गुणगान, गद्गद होना।
संचारी भाव – निर्वेद, हर्ष, स्मृति, पुलक, मति, वितर्क आदि।

उदाहरण-                           पुलक गात हियँ सिय रघुबीरू। जीह नामु जप लोचन नीरू॥

स्पष्टीकरण – यहाँ श्रीभरत जी-आश्रय एवं श्रीरघुनाथ जी-आलम्बन हैं। श्रीराम के स्वरूप एवं गुणों का ध्यान – उद्दीपन है; पुलक गात – संचारी हैं; शरीर का पुलकित होना, नेत्रों से अश्रु बहना एवं जिह्वा से निरन्तर नामजप होना-अनुभाव हैं। इस प्रकार पुष्ट हुई भगवद् विषयक रति (स्थायी) भाव ही भक्ति रस की अवस्था को प्राप्त होती है।

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UP Board Solutions for Class 12 English Grammar Chapter 2 Synthesis

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UP Board Solutions for Class 12 English Grammar Chapter 2 Synthesis

Exercise 1

  1. He came in singing.
  2. Seeing a lion he ran away.
  3. Opening the cupboard, he took out his shirt.
  4. It being cold, we stayed indoors.
  5. While playing, I fell down.
  6. Beaten by the police, he fainted.
  7. Turning to the right you will reach my house.
  8. Seeing a large ship, I went to its captain at once
  9. I saw a beggar begging on the platform.
  10. The police arrested a thief running on the road.

Exercise 2

  1. The tired traveller sat in the shade of a tree.
  2. The letter was so badly written that I could not read it.
  3. The boy is searching for his lost books.
  4. The door being locked, we had to wait outside.
  5. Being interested in the movie they bought tickets.
  6. Nobody touched the rotten mangoes.
  7. He was not willing to go out in torn clothes.
  8. Being deceived by his friends, he was very sad.
  9. Accompanied by his brother, he went outside.
  10. I brought my mended fan home.

Exercise 3

  1. Having taught the students, the teacher went home.
  2. Having been rebuked by his father, the son left home.
  3. Having cooked the food, she put it into the cup board.
  4. Having relaxed for an hour, they started their journey again.
  5. The boat having anchored, we landed on the shore.
  6. Having been warned of the danger, he escaped unhurt.
  7. Having been caught by the police, the terrorist committed suicide.
  8. Having failed in her attempt twice, she gave up the idea of trying once more.
  9. The school having been closed, the children dispersed to their homes.
  10. Having finished the book, I put in on the shelf.

Exercise 4

  1. The door being locked we had to wait outside.
  2. The police arrested a thief running on the road.
  3. Having taken my breakfast I went to my school.
  4. Seeing a snake, some farmers ran away at once.
  5. Having reached the play ground the principal made a short speech.
  6. The principal found out some students copying.
  7. Having washed the clothes, the washerman went home.
  8. Having been punished by the teacher she began to weep.
  9. Having gone to Mumbai last year, I met a film star.
  10. Being unwilling to take any medicine, he went to sleep.
  11. Having received no reply, I sent him another letter.
  12. This poor man passed his life working and laughing

Exercise 5

  1. I hope to pass the examination this year.
  2. Inspite of every body’s dying one day, no body likes to die.
  3. He went to station to farewell, his guests.
  4. They will go to market to buy fruits.
  5. Give me some money to buy some books.
  6. We went to Delhi to see the Red Fort.
  7. She goes to gym daily to reduce her weight.
  8. I have sweets to be eaten.
  9. He has some files to be signed today.
  10. They congratulated me to hear about my son’s marriage.

Exercise 6

  1. On seeing the principal in the verandah, I ran away at once.
  2. For killing a man two murderers were caught red handed.
  3. I play all the games except playing hockey.
  4. On checking your all exercises, the teacher found many mistakes in them.
  5. After finishing his homework he went out to play.
  6. On finding two students copying the invigilator cancelled their examination.
  7. On having arms in their hands, the soldiers were marching with pride.
  8. On his winning the first prize of lottery my father is very happy.
  9. Inspite of his being ungrateful I help him much.
  10.  You can escape the punishment only after telling me the secret.

Exercise 7

  1. We have seen the Taj, one of the seven wonders of the world.
  2. I punished Ravindra, a naughty boy of his class.
  3. Columbus, a man of great courage, discovered America.
  4. Tagore, the author of Gitanjali, was a famous poet of India.
  5. Mr. Lal, the district magistrate, lived in Kolkata, one of the biggest cities of India.
  6. The cow gives us milk, the most nourishing food.
  7. His uncle, a great social worker, is the richest man of the town.
  8. Ramesh, the most intelligent boy of his class, has been selected in C.P.M.T.
  9. Marina, a very honest artist, is a photographer.
  10. Newton, a famous scientist, made many inventions.
  11. American President has arrived in Delhi, the capital of India.
  12. Mr. Verma, our smart principal, is a resident of Maharashtra.

Exercise 8

  1. The train having arrived, the passengers stood up.
  2. The second show being over, the people have gone to their houses.
  3. The sun having risen, the birds made a noise.
  4. The time being over, now stop writing.
  5. The papers having been distributed, the students started writing.
  6. The train having arrived, the hawkers made a noise.
  7. The officer being out of his office, the clerks made a lot of a noise.
  8. The curtain having been dropped, the people went to their houses.
  9. The fire having broken out, all the workers ran out of the factory.
  10. The match having been won, all the players are making merry.
  11. The police having arrived, all the strikers ran away in fear.
  12. The commander having blown his horn, all the scouts become alert.

Exercise 9

  1. Certainly he was a great favourite of his teachers.
  2. He regularly takes a balanced uiti.
  3. Regratefuly, they admitted their crime.
  4. Carelessly, he failed in the examination.
  5. Hurriedly, my friend came here.
  6. Luckily I got no injury in the accident.
  7. Slowly, the children grow up to be young.
  8. The dacoits murdered the old man cruelly.
  9. The people could not run fast.
  10. Rapidly, he progressed much.
  11. Unfortunately this cow will die soon.
  12. He fought the election in vain.

Exercise 10

  1. The principal punished Suresh.
  2. I have a Medico pen.
  3. I met a minister with my uncle.
  4. I met my friend Harish.
  5. A boy was running on the road.
  6. I live at Khatauli with my uncle.
  7. He purchased a T.V. and a cooler.
  8. I eat bread with butter.
  9. Will you tell me the aim of your life?
  10. He eats fruits and green vegetables daily.
  11. Please tell me your address.
  12. They sing poems as well as songs.

Exercise 11

  1. I do not like this dirty city.
  2. Kamal is a very honest leader.
  3. The boys are sitting on the green grass.
  4. Your brother is a very famous doctor.
  5. You live in a very airy house.
  6. My grandmother told me a very interesting story.
  7. Pt. Nehru was the first prime Minister of India.
  8. There was a very thirsty crow.
  9. In old age he lost his strength.
  10. I got many precious gifts.
  11. A rich man had a new car.
  12. I have read these very interesting books.

Exercise 12

  1. I do not know where the thief has run away.
  2. Tell me why you are not working hard.
  3. I asked him if he would go to Delhi on Monday.
  4. It is not known who entered the house.
  5. I believe in what he advises me.
  6. The news that he has won the election is wrong.
  7. Listen to what your teachers say.
  8. Iam worried why my son did not come.
  9. It is not certain how long I shall teach him.
  10. Will you tell me why you did not attend the marriage of your friend?
  11. The problem is who will bell the cat.
  12. Did you know that the teacher would be angry?

Exercise 13

  1. The boy who has lost his watch is very poor.
  2. The boy who was talking with you is our monitor.
  3. The boy who stood first this year is my friend.
  4. I shall go to Kanpur by the train which goes via Khurja.
  5. Take my pen which you like.
  6. Do not keep the company of the students who abuse others.
  7. This is the same house which I bought four years ago.
  8. Do you know the reason why he failed in the examination ?
  9. All know Makhan very well who is an artist.
  10. The teacher who teaches me is my father’s friend.
  11. I know the place where Shastriji was born.
  12. All things which glitter are not gold.

Exercise 14

  1. He failed in the examination because he did not work hard.
  2. Although I have no bicy e yet I will reach in time.
  3. As soon as the circus started, it began to rain heavily.
  4. Although we are free yet we are not happy.
  5. If he does not speak the truth, he will not be respected.
  6. Suresh ate so much that he fell ill.
  7. The lion is too weak to walk.
  8. Although he does not work hard yet he will pass.
  9. All love that boy because he is very gentle.
  10. He will engage a private tutor because he is weak in English.

Exercise 15

  1. He should either come to me or send his servant.
  2. The patient died nevertheless the doctor did not come on time.
  3. The sky was covered with clouds yet it did not rain.
  4. He is not only fat but ugly also.
  5. I went to the teacher and requested him for coaching.
  6. He does not reach his office in time yet his boss is happy with him.
  7. He is not only wise but intelligent also.
  8. He started a business for he wants to be rich.
  9. We shall face the enemy and sacrifice our lives.
  10. He did his all papers good yet he failed badly.

Exercise 16

  1. The sun rose and filled the sky with light.
  2. Good boys work but bad boys make mischiefs.
  3. He does not know anything so he pretends ignorance.
  4. Forests, besides giving us timber, also check soil erosion.
  5. We are all children of one God so we must love one another.
  6. The brave face the challenges but cowards flee.
  7. He could not go to the office because he was ill.
  8. Mosquitoes spread malaria so we must destroy them.
  9. He must either work regularly or leave the job.
  10. He was injured in an accident so he went to a hospital but the doctor was not available.

Exercise 17
(From U.P. Board Examination Papers) (2012)

1.
(i) My uncle cannot go for a morning walk because he is very weak.
(ii) Ram is wise as well as gentle.

2.
(i) The sun having set, the stars came up in the sky.
(ii) She and her friend are equally beautiful.

3.
(i) His arrival is not known.
(ii) He worked hard because he wanted to pass.

4.
(i) Do you know where has he gone?
(ii) A lame man is going to station.

5.
(i) An old woman was strolling on the road with a stick in her hand.
(ii) I cannot say that you are wrong.

6.
(i) The train had not arrived at the station by the time we reached there.
(ii) At the entry of the teacher in the class, the boys stood up. (2013)

7.
(i) The work having been done, we went back home.
(ii) Tell me where you have put my book.

8.
(i) It being cold, no one went out.
(ii) I bought a pen which was costly.

9.
(i) He has three sons to educate.
(ii) When he heard the news, he was glad.

10.
(i) He reads an old book.
(ii) The patient had died before the doctor came.

11.
(i) Although he is poor, he is happy.
(ii) He is too poor to buy a flat. (2014)

12.
(i) Wise men do not quarrel over the things which are small.
(ii) After finishing his work, he went home.

13.
(i) Having gone up the hill, Jack saw a python.
(ii) You must start now otherwise you will be late.

14.
(i) Although she is rich, she is not happy.
(ii) He is too fat to run fast.

15.
(i) Tulsidas, a great poet, wrote the Ramcharitmanas, the holy book of the Hindus.
(ii) Everything decays but books survive.

16.
(i) This is the fact that the sun rises in the East.
(ii) Mahatma Gandhi, a lover of peace and once a lawyer, preached non-violence. (2015)

17.
(i) Being caught in the net deer struggled hard to escape.
(ii) Do not delay in purchasing the book.

18.
(i) Ram, an intelligent boy studying in the 12th class, is very punctual.
(ii) My niece who practises law is pursuing her research-work.

19.
(i) He came to my father and welcomed him warmly.
(ii) On his being absent, I gave the message to his wife.

20.
(i) By giving them his advice, he helped them liberally.
(ii) As he could never get satisfaction, he gave up trying.

21.
(i) Though the rent is high, the house is satisfactory.
(ii) As he is ill he will not go to college.

22.
(i) Shakespeare, a great dramatist, wrote ‘The Merchant of Venice’.
(ii) Although I had seen the picture twice, I wanted to see it a third time. (2016)

23.
(i) Although he is rich, he leads a simple life.
(ii) Last night being very hot, I could not have a sound sleep.

24.
(i) Seeing a small child very adeptly, he was overjoyed.
(ii) It is known to one and all that he is intelligent, studious and has a generous mind.

25.
(i) That animal may be a fish or a serpent but it must be one of them.
(ii) No one knows where he is going.

26.
(i) He is a dull pupil yet he is very regular.
(ii) It is truly accepted by one and all that Abdul Kalam was a grea ted by one and all that Abdul Kalam was a great scientist, a popular teacher and the people’s president.

27.
(i) He has four children to support.
(ii) Being a true patriot, he will not betray his country.

28.
(i) He saw a blind man.
(ii) The boy was punished as well as fined.

29.
(i) A hungry tiger killed a hefty bullock.
(ii) He ran so quickly that he soon overtook his father, (2017)

30.
(i) He was so tired that he cannot stand.
(ii) I have no money to spare.

31.
(i) Tagore who was a great poet wrote a famous book, Gitanjali for which he was awarded with noble prize.
(ii) Wise men love truth whereas (while) fools shun it.

32.
(i) I and my brother did not go to Lucknow.
(ii) It is known to all that honesty is the best policy.

33.
(i) The sun having set, the stars came up in the sky.
(ii) I reached home before the sun had set.

34.
(i) It must be done whatever the cost is.
(ii) The sailors casted the anchor to prevent the ship from drifting.

35.
(i) Being ill, he went to school.
(ii) The boy failed many times so he gave up his studies.

36.
(i) He is intelligent and hardworking.
(ii) This is certain that good triumphs over evil in the end. (2018)

37.
(i) Delhi, the capital of India is an old city.
(ii) His complaint was that you had deceived him.

38.
(i) On hearing the news of her husband’s death, she fainted.
(ii) He was obstinate so he was punished.

39.
(i) Eat moderately let you should fall sick.
(ii) I am impressed with the boy whom you sent me yesterday.

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UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 10 सुभाषचन्द्रः

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 10
Chapter Name सुभाषचन्द्रः
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 10 सुभाषचन्द्रः

अवतरणों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1) सप्तनवत्युत्तराष्टादशशततमेऽब्दे ……………….. स्वीकृतवान्।

[सप्तनवत्युत्तरराष्टादशशततमेऽब्दे (सप्तनवति-97 + उत्तर-ऊपर, अधिक + अष्टादशशततमे1800वें +अब्दे-वर्ष में = सन् 1897 ई० में। बङ्गभुवम् अलञ्चकार = बंगभूमि (बंगाल) को अलंकृत किया। राजकीय-प्राडिववाकः = सरकारी वकील। परीक्षामुत्तीर्यापि (परीक्षाम् + उत्तीर्य + अपि) = परीक्षा को “उत्तीर्ण करके भी। भृत्यत्वम् = दासता को।]

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषचन्द्रः’ नामक पाठ से उद्धृत है।

[ विशेष-इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

अनुवाद – सन् अठारह सौ सत्तानबे (1897) के जनवरी मास की तेईस तारीख को श्री सुभाष ने अपने जन्म से बंगाल को अलंकृत (सुशोभित) किया। इनके पिता जानकीनाथ वसु सरकारी वकील थे। सुभाष बचपन से ही बुद्धिमान्, धीर (धैर्यशाली), साहसी और प्रतिभासम्पन्न थे। इन्होंने कलकत्ता नगर में शिक्षा पाकर आई० ए० एस० (वस्तुतः आई० सी० एस०) की सम्मानित परीक्षा उत्तीर्ण करके भी विदेशी शासन की नौकरी स्वीकार न की।

(2) आङ्ग्लशासकानां ………………… बहिर्गतः।
आङ्ग्लशासकानां ……………………. नात्यजत् ।
आइग्लशासकानां ………………… अङ्गीकृतवान्।
अहिंसामात्रेण ………………………….. बहिर्गतः।
आङ्ग्लशासकानां ……………………. सम्पादिता।

[ भीताः = इरे हुए। अक्षिपन = डाला। सप्तत्रिंशदुतैरेकोनविंशतिशततमे (सप्तत्रिंशत्-37 +उत्तर-ऊपर, अधिक +एकोनविंशतिशततमे-1900वें में = सन 1937 में। वृतः = चुने गये। रथेऽस्य= रथ में इनकी। अस्योग्रक्रान्तेः (अस्य + उग्र + क्रान्तेः) = इनके उग्र क्रान्तिपरक विचारों से (या इनकी उग्र क्रान्ति से)। व्यदीर्यत = विदीर्ण हो गया, फट गया। स्वेष्टसिद्धिम् (स्व +इष्टसिद्धिम्) =अपने अभीष्ट की प्राप्ति को। कामयमानः = कामना (इच्छा) करता हुआ।]

अनुवाद – ‘अंग्रेज शासकों का भारत पर (कोई) अधिकार नहीं, वे विदेशी (लोग) यहाँ क्यों शासन कर रहे हैं? ऐसे चिन्तन से युक्त हो इन्होंने अपने प्रयत्न से भारतवर्ष की स्वतन्त्रता के लिए बहुत-से भारतीयों को अपने पक्ष में कर लिया। इनके ऐसे उग्र विचारों से भयभीत हुए अंग्रेज शासकों ने इन्हें बार-बार कारागार (जेल) में डाला, किन्तु इस वीर ने स्वतन्त्रता के लिए अपने प्रयास को न छोड़ा। सन् 1937 ई० में ये कांग्रेस के लिए त्रिपुरा अधिवेशन में सर्वसम्मति से सभापति चुने गये और इनके सम्मान में नागरिकों ने, पचास बैलों वाले रथ में इनकी शोभायात्रा (जुलूस) निकाली। ‘केवल अहिंसा से स्वतन्त्रता-प्राप्ति का प्रयत्न कल्पनामात्र ही है’ यह निश्चय करके इन्होंने क्रान्ति का पक्ष (मार्ग) स्वीकार किया। इनकी उग्र क्रान्ति से डरे हुए अंग्रेज शासकों ने इन्हें फिर से कलकत्ता नगरी के कारागार में बन्द कर दिया। इस दुःखदायी समाचार को सुनकर सुभाष-प्रेमी भारतीयों के हृदय को आघात पहुँचा। एक दिन रात में जेल के पहरेदारों के सो जाने पर यह वीर सहसा (अचानक) उठकर दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिए’ इस नीति के अनुसार अपने अभीष्ट (लक्ष्य) की प्राप्ति की कामना से सिद्धि (सफलता) देने वाली (भगवती) दुर्गा का स्मरण कर जेल से बाहर निकल गया।

(3) प्रातः सुभाषमनवलोक्य ……………….. इत्यासीत्।
प्रातः सुभाषमनवलोक्य ……………… जर्मनी देशं गतः।
प्रातः सुभाषमनवलोक्य ………….. (जापान) देशं गतः।

[सुभाषमनवलोक्य (सुभाषम् + अनवलोक्य) = सुभाष को न देखकर। भृशमन्विष्यापि (भृशम् + अन्विष्य +अपि) = बहुत हूँढ़कर भी। अवधानपूर्वकम् = सावधानी से। निरीक्षणे कृतेऽपि = चौकसी रखे
जाने पर भी। अभिवादनपदम् = अभिवादन (परस्पर नमस्कार) का शब्द। उद्घोषः = नारा।]

अनुवाद – प्रात:काल सुभाष को न देखकर जेल के सारे निरीक्षक आश्चर्यचकित रह गये (और) बहुत खोजने पर भी उन्हें न पा सके। कारागार से निकलकर सुभाष वेश बदलकर पेशावर गये। वहाँ उत्तमचन्द्र नामुक व्यापारी के घर में कुछ समय रहे। इसके बाद अंग्रेज शासकों द्वारा सावधानी से चौकसी रखे जाने पर भी ‘जियाउद्दीन’ नाम से जर्मनी देश गये। वहाँ के शासक हिटलर के साथ मित्रता करके वायुयान द्वारा जापान देश गये।
अपने संगठन-कौशल से उन्होंने मलाया में ‘आजाद हिन्द फौज’ नाम से सेना संगठित की। उनके इस संगठन में हिन्दू, मुसलमान आदि सभी धर्मों के अनुयायी राष्ट्रप्रेमी वीर सम्मिलित थे। इस संगठन का अभिवादन शब्द (परस्पर नमस्कार का शब्द) ‘जयहिन्द’ और नारा ‘दिल्ली चलो’ था।

(4) यूयं मह्यं …………………… चरणयोरर्पितानि।।

[रक्तमर्पयत् (रक्तम् +अर्पयत्) = खून दो। त्वरितमेव (त्वरितम् +एव) = शीघ्र ही। अवतीर्णः = उतर गया। ब्रह्मदेश – बर्मा। सुवर्णसूत्राण्यपि (सुवर्णसूत्राणि +अपि) = सुवर्णसूत्र अर्थात् मंगलसूत्र भी।]

अनुवाद – ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’-ये रोमांचित कर देने वाले शब्द सुभाष के मुख से जिसने भी सुने, वह तुरन्त ही उनके साथ स्वतन्त्रता-संग्राम में सैनिक के रूप में उतर पड़ा (सम्मिलित हो गया)। (आजाद हिन्द फौज के संगठन) उस समय बर्मा (अब म्यांमार) में रहने वाली स्त्रियों ने अपने आभूषणों के साथ सोने के सौभाग्यसूचक मंगलसूत्र भी सुभाष के चरणों में अर्पित कर दिये।

(5) ‘दिल्लीं चलत, …………………… इति सुनिश्चितम् ।

[ नातिदूरे (न +अतिदूरे) = अधिक दूर नहीं है। प्रस्थिताः = प्रस्थान किया। बन्दीकृताः = बन्दी बना लिये गये। सप्तचत्वारिंशदुत्तरैकोनविंशतिशततमेऽब्दे (सप्तचत्वारिंशत् + उत्तर + एकोनविंशति । शततमे +अब्दे) = 1947 ई० में।]

अनुवाद – दिल्ली चलो, दिल्ली अधिक दूर नहीं’ -सुभाष के इन उत्साहवर्द्धक शब्दों से (प्रेरित होकर) सैनिक दिल्ली को चल पड़े। इसी बीच दुर्भाग्यवश जापान की हार से सुभाष के सारे सैनिक अंग्रेजों द्वारा बन्दी बना लिये गये।
इस वीरश्रेष्ठ की स्वतन्त्रता-प्राप्ति की इच्छा सन् 1947 ई० में अगस्त महीने की 15 तारीख को पूरी हुई। आज हमारे बीच विद्यमान न होने पर भी सुभाष ‘जिसकी कीर्ति है वह जीवित है’ की उक्ति के अनुसार सदैव अमर हैं, यह निश्चित है।

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UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 14 Agricultural Crops

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 14 Agricultural Crops (कृषित उपजे) are part of UP Board Solutions for Class 12 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 14 Agricultural Crops (कृषित उपजे).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography
Chapter Chapter 14
Chapter Name Agricultural Crops (कृषित उपजे)
Number of Questions Solved 52
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 14 Agricultural Crops (कृषित उपजे)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
गेहूं के उत्पादन के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा ऑस्ट्रेलिया या चीन में उसकी खेती का विवेचन कीजिए। [2010]
या
संयुक्त राज्य अमेरिका के गेहूँ उत्पादक-क्षेत्रों का वर्णन कीजिए। [2010]
या
विश्व के दो प्रमुख गेहूँ उत्पादक देशों का वर्णन कीजिए। (2010)
या
गेहूं की खेती के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा विश्व के प्रमुख गेहूँ उत्पादक देशों का उल्लेख कीजिए। [2014, 16]
उत्तर
सामान्य परिचय – मानव की तीन आधारभूत आवश्यकताओं- भोजन, वस्त्र एवं आवास- में भोजन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। भोजन उपलब्ध कराने में गेहूं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गेहूँ में पोषक तत्त्वों एवं प्रोटीन की मात्रा अन्य खाद्यान्नों की अपेक्षा अधिक होती है। इसी कारण इसे ‘अन्नराज’ कहा जाता है। भूमध्यसागरीय क्षेत्रों को गेहूँ की जन्म-भूमि होने का गौरव प्राप्त है। गेहूं की खेती शीतोष्ण कटिबन्ध में उत्तरी गोलार्द्ध में 30° से 60° उत्तरी अक्षांशों के मध्य प्रमुख रूप से की जाती है, जहाँ विश्व का 90% गेहूं उत्पन्न होता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में 20 से 40° अक्षांशों के मध्य गेहूं की खेती की जाती है। इसके अतिरिक्त विषुवतीय कटिबन्ध के उच्च पठारी भागों में (अफ्रीका महाद्वीप के कीनिया आदि देशों में) तथा रूस के ध्रुवीय प्रदेशों में गेहूं की विस्तृत खेती की जाती है।

गेहूँ उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक कारक
Necessary Geographical Factors for Producing Wheat

गेहूँ की कृषि के लिए निम्नलिखित भौगोलिक कारक आवश्यक होते हैं –
(1) जलवायु – गेहूँ की कृषि के लिए सम-शीतोष्ण कटिबन्धीय जलवायु उपयुक्त रहती है।

  1. तापमान – गेहूँ बोते समय हल्की ठण्डे तथा पकते समय हल्की गर्मी आवश्यक होती है। बोते समय 15° सेग्रे तथा पकते समय 26° सेग्रे तापमान उपयुक्त रहता है। इसकी फसल के लिए 90 दिन धूप युक्त स्वच्छ मौसम उपयुक्त रहता है। गेहूं की फसल के लिए पाला, कोहरा एवं ओला हानिकारक होते हैं। भूमध्यसागरीय जलवायु गेहूं की कृषि के लिए आदर्श जलवायु मानी जाती है।
  2. वर्षा – इसकी खेती के लिए कम नमी की आवश्यकता होती है, अर्थात् 50 से 75 सेमी वर्षा उपयुक्त रहती है। इससे अथिक वर्षा हानिकारक होती है। इससे कम वर्षा वाले भागों में सिंचाई की आवश्यकता होती है।

(2) मिट्टी – गेहूं की खेती के लिए उपजाऊ भारी दोमट, नाइट्रोजनयुक्त काली मिट्टी, जिसे चरनोजम कहते हैं, अधिक उपयुक्त रहती है। इसके अतिरिक्त भारी चीका एवं रेतीली मिट्टी भी उपयुक्त होती है। इसी कारण गंगा-सतलुज का मैदान, ह्वांग्हो मैदान एवं दजला-फरात के मैदान गेहूं की कृषि के लिए बहुत ही उपयुक्त हैं। गेहूं के उत्पादन से मिट्टी के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। अत: मिट्टी की उर्वरता बनाये रखने के लिए अमोनियम सल्फेट, पोटैशियम, सोडियम नाइट्रेट जैसे रासायनिक उर्वरकों को देते रहना चाहिए।

(3) धरातल – इसकी कृषि के लिए समतल धरातल उपयोगी रहता है, क्योंकि इसमें आधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जा सकता है। यान्त्रिक विधियों द्वारा कृषि करने से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।

(4) मानवीय श्रम – कम जनसंख्या वाले भागों में, जहाँ श्रम महँगा होता है, वहाँ गेहूँ की कृषि आसानी से की जा सकती है, क्योंकि इसकी कृषि के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती। संयुक्त राज्य अमेरिका एवं रूस में यन्त्रों ने श्रम को सस्ता बना दिया है। यूरोपीय देशों में इसी कारण गेहूँ की सघन खेती की जाती है।

विश्व में गेहूं का उत्पादन
Production of Wheat in the World

विश्व में निम्नलिखित दो प्रकार का गेहूँ उगाया जाता है –
(1) शीतकालीन गेहूँ – विश्व का 75% गेहूँ शीतकालीन होता है। इसके मुख्य उत्पादक देश संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, मध्य चीन, उत्तरी-पश्चिमी भारत, अर्जेण्टाइना, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया आदि हैं।

(2) वसन्तकालीन गेहूं – अधिक शीत पड़ने वाले देशों में शीघ्र पकने वाला वसन्तकालीन गेहूँ उगाया जाता है। कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस का साइबेरिया प्रदेश एवं उत्तरी चीन इसे गेहूं के मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं।
विश्व में प्रत्येक माह किसी-न-किसी देश में जलवायु के अनुसार गेहूं बोया एवं काटा जाता रहता है। विश्व के गेहूँ उत्पादक देशों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है –

  1. पहली श्रेणी में वे देश आते हैं जो गेहूं का उत्पादन केवल अपने उपभोग के लिए करते हैं, अर्थात् माँग के अनुसार पूर्ति करते हैं। ऐसे देशों में यूरोपीय देश प्रमुख हैं।
  2. दूसरी श्रेणी में वे देश आते हैं जो गेहूँ का अधिक उत्पादन कर निर्यात करते हैं, अर्थात् माँग कम एवं पूर्ति अधिक होती है। इन देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया एवं अर्जेण्टाइन प्रमुख हैं।
  3. तीसरी श्रेणी में वे देश आते हैं जो गेहूं का उत्पादन तो अधिक करते हैं, परन्तु जनसंख्या अधिक होने के कारण गेहूं का आयात करते हैं। इनमें दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देश- चीन, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि मुख्य हैं।

विश्व में शीतोष्ण जलवायु के प्रदेशों में शीतकालीन गेहूँ उगाया जाता है, जब कि अधिक बर्फ गिरने वाले भागों में वसन्तकालीन गेहूँ उगाया जाता है। विश्व में गेहूं उत्पादक देशों का विवरण निम्नलिखित है –
(1) चीन – यह विश्व का वृहत्तम गेहूँ उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 17% गेहूँ उत्पन्न होता है। यहाँ गेहूँ उत्पादन के पाँच प्रमुख क्षेत्र निम्नवत् हैं –

  1. मंचूरिया क्षेत्र
  2. आन्तरिक मंगोलिया क्षेत्र
  3. ह्वांगहो तथा सहायक नदियों का घाटी-क्षेत्र
  4. लोयस का पश्चिमी भाग एवं
  5. याँग्त्सी घाटी क्षेत्र।

(2) भारत – यह विश्व का द्वितीय वृहत्तम गेहूँ उत्पादक देश है। ‘हरित-क्रान्ति’ के फलस्वरूप अब भारत में विश्व का लगभग 13% गेहूं उत्पन्न होता है। यहाँ शीतकालीन गेहूं उगाया जाता है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार व गुजरात क्रमश: बड़े गेहूँ उत्पादक राज्य हैं। यहाँ गेहूं की खेती में सिंचाई का विशेष महत्त्व है।

(3) CIS देश – ये विश्व के अग्रणी गेहूँ उत्पादक देश हैं। यहाँ विश्व का 16% से अधिक गेहूं उत्पन्न होता है। रूस की गेहूं पेटी का विस्तार लगभग 4,800 किमी लम्बाई व 650 किमी चौड़ाई में काला सागर तट से बैकाल झील तक समतल एवं उर्वर चरनोजम मिट्टी के क्षेत्र पर है। रूस में 2/3 गेहूँ वसन्तकालीन होता है। प्रमुख क्षेत्र वोल्गा बेसिन, यूराल प्रदेश, उत्तरी यूक्रेन व कजाकिस्तान हैं। शीतकालीन गेहूं के प्रमुख क्षेत्र यूक्रेन, क्रीमिया व उत्तरी काकेशस प्रदेश हैं। यह क्षेत्र पूर्व सोवियत संघ की ‘रोटी की टोकरी’ (Bread basket of Russia) कहलाता था। रूस में गेहूं की पेटी की सीमा के विस्तार (उत्तर में साइबेरिया एवं दक्षिण में शुष्क मरुस्थलीय भागों की ओर) के निरन्तर प्रयास किये जा रहे हैं। यहाँ सम्पूर्ण कृषि सरकारी फार्मों पर मशीनों द्वारा की जाती है।

(4) फ्रांस – यह विश्व का चौथा वृहत्तम गेहूँ उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 5.5% से अधिक गेहूँ पैदा होता है। पेरिस बेसिन में समस्त देश का आधा गेहूं उत्पन्न होता है। एक्वीटेन बेसिन व रोन घाटी अन्य मुख्य उत्पादक क्षेत्र निम्नवत् हैं।
(5) ऑस्ट्रेलिया – यह विश्व का पाँचवाँ वृहत्तम गेहूँ उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 4% गेहूँ उत्पन्न होता है। यहाँ विस्तृत कृषि फार्मों पर गेहूँ की शुष्क कृषि पूर्णत: यन्त्रीकृत है। गेहूँ उत्पादन के दो प्रमुख क्षेत्र हैं

  1. दक्षिणी-पूर्वी तथा दक्षिणी क्षेत्र – ग्रेट डिवाइडिंग रेन्ज के पश्चिम में आन्तरिक भागों की ओर इस क्षेत्र का विस्तार न्यूसाउथवेल्स, विक्टोरिया, दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया व क्वीन्सलैण्ड राज्य के भागों पर है। ब्रिस्बेन, सिडनी, मेलबोर्न व एडीलेड पत्तनों से गेहूँ निर्यात किया जाता है।
  2. दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र – पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया राज्य के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में भूमध्यसागरीय जलवायु के क्षेत्र गेहूँ के मुख्य उत्पादक हैं। फ्रीमेन्टल गेहूं का प्रमुख निर्यातक पत्तन है।

(6) संयुक्त राज्य अमेरिका – यह विश्व का छठा बड़ा गेहूँ उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 4% से अधिक गेहूं उत्पन्न होता है। देश के उत्तरी भाग में वसन्तकालीन एवं दक्षिणी भाग में शीतकालीन गेहूँ उत्पन्न होता है। किन्तु दक्षिणी राज्यों में अधिक तापमानों के कारण गेहूँ के रोगग्रस्त होने तथा कपास की वाणिज्यिक कृषि उपज से स्पर्धा होने के कारण गेहूँ उत्पादन सीमित है। इस देश में गेहूं उत्पादन के पाँच प्रमुख क्षेत्र निम्नवत् हैं –

  1. वसन्तकालीन गेहूँ क्षेत्र – इसका विस्तार मिनीसोटा राज्य में रेड नदी-घाटी से पश्चिम में रॉकी पर्वतों तक एवं उत्तर में कनाडा के प्रेयरी प्रदेश तक मोन्टाना, उत्तरी व दक्षिणी डकोटा एवं मिनीसोटा राज्यों पर है। मिनियापोलिस व डुलुथ प्रमुख गेहूँ मण्डियाँ हैं।
  2. शीतकालीन कठोर गेहूँ क्षेत्र – यह क्षेत्र संयुक्त राज्य के मध्य में कन्सास, नेब्रास्का, मिसौरी, ओकलाहामा, टैक्सास व कोलोरेडो राज्यों पर विस्तृत है। यहाँ गेहूं की अधिकांशत: स्थानीय खपत होती है। शेष गेहूँ गाल्वेस्टन, मोबाइल व न्यूआर्लियन्स पत्तनों द्वारा निर्यात किया जाता है।
  3. शीतकालीन कोमल गेहूँ क्षेत्र – इस प्रदेश का विस्तार देश के उत्तरी-पूर्वी भाग में ओहियो घाटी में ओहियो-इलिनॉयस, इण्डियाना, वर्जीनिया, पेन्सिलवेनिया, मैरीलैण्ड तथा न्यूयॉर्क राज्यों में हैं। बफैलो व शिकागो प्रमुख गेहूँ मण्डियाँ तथा निर्यातक पत्तन हैं।
  4. कोलम्बिया पठार का गेहूँ क्षेत्र – इस लघु क्षेत्र का विस्तार पूर्वी वाशिंगटन, उत्तरी ओरेगन तथा पश्चिमी इदाहो राज्यों पर है। यहाँ शीतकालीन कठोर गेहूँ एव वसन्तकालीन गेहूँ समान रूप से उगाये जाते हैं। सिएटल व पोर्टलैण्ड प्रमुख निर्यातक पत्तन हैं।
  5. कैलीफोर्निया गेहूँ क्षेत्र – कैलीफोर्निया राज्य की सान जोक्विन तथा सेक्रामेण्टो घाटियों में शीतकालीन गेहूं उगाया जाता है। सार्न फ्रांसिस्को प्रमुख निर्यातक पत्तन है।

(7) जर्मनी – यहाँ विश्व का लगभग 4% गेहूं उत्पन्न होता है। प्रमुख उत्पादक क्षेत्र- उत्तर में

  1. लोयस मिट्टी क्षेत्र व दक्षिण में
  2. डेन्यूब घाटी हैं।

(8) कनाडा – यहाँ विश्व का लगभग 4% गेहूँ उत्पादन होता है। यहाँ गेहूँ के दो प्रमुख उत्पादक क्षेत्र निम्नवत् हैं –

  1. वसन्तकालीन गेहूँ क्षेत्र – इसका विस्तार कनाडा के प्रेयरी प्रदेश (सस्केचवान, मैनीटोबा व अलबर्टा राज्य) तक है। विनिपेग गेहूं की विश्वविख्यात मण्डी है। पोर्ट आर्थर भी गेहूँ का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है।
  2. शीतकालीन कोमल गेहूँ क्षेत्र – इसका विस्तार महान् झीलतटीय क्षेत्र (ओण्टारिया व क्यूबेक राज्य) पर है। मॉण्ट्रियल, हैलीफैक्स तथा सेंट जॉन पत्तन गेहूँ के निर्यातक हैं।

(9) पाकिस्तान – यहाँ विश्व को 3.4% से अधिक गेहूं उत्पन्न होता है। पंजाब, सिन्ध व सीमा प्रान्तों के सिंचित भाग मुख्य गेहूँ उत्पादक हैं।
(10) अर्जेण्टाइना – यहाँ विश्व का 3% से अधिक गेहूँ उत्पन्न होता है। यह दक्षिणी अमेरिका का वृहत्तम गेहूँ उत्पादक देश है। पम्पा के विस्तृत समतल, उर्वर मैदानी भाग में अर्द्धचन्द्राकार गेहूँ क्षेत्र स्थित है। यहाँ हजारों एकड़ भूमि में विस्तृत कृषि फार्मों पर मशीनों द्वारा विस्तृत खेती की जाती है। ब्यूनस आयर्स व बाहिया ब्लांका प्रमुख गेहूँ निर्यातक पत्तन हैं।
(11) इटली – यहाँ विश्व का लगभग 2% गेहूँ उत्पन्न होता है। गेहूँ उत्पादन के तीन प्रमुख क्षेत्र –

  1. पो-बेसिन का लोम्बार्डी मैदान
  2. इमिलिया वे
  3. सिसली द्वीप हैं।

(12) ब्रिटेन – स्कॉटलैण्ड के दक्षिणी – पूर्वी भाग एवं इंग्लैण्ड के पूर्वी भाग में लोयस मिट्टी के क्षेत्र में गेहूं का उत्पादन अधिक होता है। यहाँ विश्व का 2% गेहूँ उत्पादन होता है।

अन्य उत्पादक देश Other Producing Countries

  • एशियाई देशों में – इराक, सीरिया, लेबनान, इजराइल, जोर्डन, अफगानिस्तान, जापान के कुछ भाग गेहूँ उत्पन्न करते हैं।
  • यूरोपीय देशों में – स्पेन का जमोरा क्षेत्र, पुर्तगाल का उत्तरी क्षेत्र; ऑस्ट्रिया, हंगरी, रूमानिया व बल्गेरिया के डेन्यूब घाटी-क्षेत्र; यूगोस्लाविया के उत्तर में बनाते क्षेत्र इटली का पो बेसिन आदि गेहूँ उत्पादक क्षेत्र हैं।
  • अफ्रीकी देशों में – मिस्र में नील नदी-घाटी, दक्षिणी अफ्रीका में केप प्रान्त, ट्रान्सवाल बिट्स वे रुस्टेनबर्ग क्षेत्र; मोरक्को, अल्जीरिया व ट्यूनिशियों के उत्तरी तटीय मैदानी भाग, अबीसीनिया के पठारी भाग तथा सोमालिया के तटीय भागों में गेहूं उत्पन्न होता है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार International Trade
विश्व में गेहूं के प्रमुख निर्यातक देश संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, अर्जेण्टाइना व ऑस्ट्रेलिया हैं। विश्व का 40% से अधिक गेहूँ निर्यात संयुक्त राज्य अमेरिका से होता है। प्रमुख आयातक देश चीन, यूरोपीय देश (ब्रिटेन, जर्मनी, पोलैण्ड, चेक गणराज्य एवं स्लोवाकिया) जापान एवं ब्राजील हैं। चीन वे भारत प्रमुख गेहूँ उत्पादक होने पर भी सघन जनसंख्या के कारण गेहूँ के आयातक देश हैं। विगत वर्षों में हरित क्रान्ति द्वारा भारत गेहूँ उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया है।

प्रश्न 2
विश्व में चावल के उत्पादन में सहायक भौगोलिक कारकों का विश्लेषण कीजिए तथा किसी एक महाद्वीप में उसके उत्पादक क्षेत्रों का विवरण दीजिए। (2008)
या
चावल की खेती हेतु अनुकूल भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा एशिया के प्रमुख चावल उत्पादक देशों के नाम बताइए।
या
चावल की खेती हेतु आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा विश्व के प्रमुख चावल उत्पादक देशों का उल्लेख कीजिए। [2013, 14, 15, 16]
या
चावल की उपज के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए और विश्व में चावल उत्पादक देशों के नाम बताइए। [2011]
उत्तर
विश्व में गेहूँ के बाद खाद्यान्नों में चावल प्रमुख स्थान रखता है। विश्व की 50 प्रतिशत जनता का भोजन चावले के ऊपर निर्भर करता है। अन्य खाद्यान्नों की अपेक्षा चावल अधिक लोगों की उदर-पूर्ति करने में सक्षम होता है। इससे चावल का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। जनाधिक्य वाले दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों में चावल ही जीवन-यापन का आधार है। एशिया को ही चावल की जन्मभूमि होने का सौभाग्य प्राप्त है। यहीं से इसका प्रचार अन्य देशों में हुआ था। चावल में मण्ड (Starch) की अधिक मात्रा होने से यह शीघ्र ही पच जाने का गुण रखता है। मानसूनी देशों में इसका प्रयोग मछली के साथ किया जाता है।

आवश्यक भौगोलिक दशाएँ
Necessary Geographical Conditions

चावल मानसूनी एवं उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र-जलवायु का पौधा है। मुख्य रूप से इसकी खेती कर्क एवं मकर रेखाओं के मध्य की जाती है। धान बोने की तीन मुख्य विधियाँ हैं-

  1. बिखेरकर
  2. रोपाई या पौध लुगाकर एवं
  3. छिद्रण द्वारा। इनमें रोपाई या पौध लगाने की विधि महत्त्वपूर्ण है, जिसे जापानी विधि’ भी कहते हैं।

(1) जलवायु – चावल की खेती के लिए उष्णार्द्र जलवायु महत्त्वपूर्ण होती है। मानसूनी जलवायु सबसे उपयुक्त रहती है

  1. तापमान – इसकी खेती के लिए अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। बोते समय 18° से 20° सेग्रे, बढ़ते समय 24° सेग्रे तथा पकते समय 27° सेग्रे तापमान एवं तेज धूप आवश्यक होती है। यही कारण है कि सबसे अधिक चावल आर्द्र-उष्ण कटिबन्ध के दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों में उगाया जाता है।
  2. वर्षा – इसके लिए अधिक नमी आवश्यक होती है। पानी से भरे खेतों में इसके पौधों की वृद्धि अधिक होती है। इसके लिए वर्षा 150 से 200 सेमी आवश्यक होती है। धान के खेतों में 60 से 90 दिनों तक जल भरा रहना चाहिए। पकते समय पानी बाहर निकाल देना चाहिए। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता होती है।

(2) मिट्टी – चावल की कृषि के लिए उपजाऊ चिकनी मिट्टी आवश्यक होती है। डेल्टाई एवं बाढ़ द्वारा निर्मित काँप मिट्टी, जिसमें नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है, चावल की कृषि के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। पहाड़ी भागों में सीढ़ीदार खेत बनाकर चावल उगाया जाता है। समतल एवं ढालू भूमि, जिसमें पानी भरे रहने एवं निकालने की सुविधा हो, उपयुक्त रहती है।

(3) मानवीय श्रम – इसकी खेती के लिए सस्ते एवं अधिक संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि जल से भरे खेतों में मशीनों से कार्य होना सम्भव नहीं है। यही कारण है कि चावल का उत्पादन सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में किया जाता है।

विश्व में प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्र
Main Rice Producing Areas in the World

विश्व में चावल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र 30° दक्षिणी अक्षांश से 45°उत्तरी अक्षांश के मध्य विस्तृत हैं। इस प्रकार दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों की यह मुख्य उपज है। एशिया महाद्वीप विश्व का 95% चावल उत्पन्न करता है, जबकि मानसूनी जलवायु के देशों में विश्व का 90% चावल उत्पन्न होता है। चीन, भारत, जापान एवं बांग्लादेश चारों मिलकर विश्व का 65% चावल उत्पन्न करते हैं। इन देशों के अतिरिक्त एशिया महाद्वीप में म्यांमार, इण्डोनेशिया, थाईलैण्ड, वियतनाम, कम्पूचिया, मलेशिया एवं श्रीलंका आदि देश मुख्य चावल उत्पादक हैं। एशिया महाद्वीप के अतिरिक्त अफ्रीका महाद्वीप में नील नदी का डेल्टा एवं मलागैसी; संयुक्त राज्य अमेरिका की कैलीफोर्निया घाटी; ब्राजील का पूर्वी तटीय भाग तथा यूरोप महाद्वीप में इटली की पो नदी का बेसिन प्रमुख हैं।

एशिया में चावल उत्पादक क्षेत्र
Rice Producing Areas in Asia

विश्व के कुल चावल उत्पादन का 90% दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों से प्राप्त होता है। दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों में अधिक चावल उत्पादन के कारण इस प्रदेश को विश्व का चावल पात्र (Rice bowl of the world) कहा जाता है। इस प्रदेश की सभ्यता को भी ‘चावल सभ्यता’ (Rice civilization) कहा गया है। यहाँ चावल के अधिक उत्पादन के निम्नलिखित कारण हैं –

  1. यहाँ नदियों की नवीन जलोढ़ मिट्टियाँ अत्यन्त उर्वर हैं। इन्हें प्रतिवर्ष खाद देने की भी आवश्यकता नहीं होती।
  2. यहाँ वर्ष भर उच्च तापमान तथा मानसूनों द्वारा 100 से 200 सेमी वर्षा प्राप्त होती है। नदियों व नहरों द्वारा सिंचाई की भी पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  3. सघन जनसंख्या के कारण प्रचुर मात्रा में सस्ते श्रमिक मिल जाते हैं।
  4. चावल यहाँ के निवासियों का प्रिय भोजन है।
  5. चावल की पोषण क्षमता अधिक होने के कारण यह सघन आबाद क्षेत्रों में प्रमुख खाद्यान्न है।

(1) चीन – यह विश्व का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 31% से अधिक चावल उत्पन्न होता है। यहाँ चावल उत्पादन के चार प्रमुख क्षेत्र हैं-

  1. जेचवान प्रान्त में पेंगटू का मैदान
  2. ह्वांगहो का निचला मैदान
  3. युन्नान तथा क्यांगसी प्रान्त
  4. दक्षिणी तटवर्ती प्रान्त-क्वान्तुंग, फुकिन, आहनह्वेई तथा चिक्यांग।

चीन की नदी-घाटियों, डेल्टाई प्रदेशों तथा दक्षिणी समुद्रतटीय भागों में तो एक वर्ष में चावल की तीन फसलें तक प्राप्त की जाती हैं। एशियाई देशों में जापान व चीन में चावल की प्रति हेक्टेयर सर्वाधिक उपज होती है।

(2) भारत – यहाँ विश्व का 22% से अधिक चावल उत्पादन होता है। प्रति हेक्टेयर चावल की उपज यहाँ कम है। चावल के चार प्रमुख क्षेत्र हैं –

  1. गंगा की मध्यवर्ती एवं निचली घाटी
  2. पूर्वीतटीय मैदान
  3. पश्चिमी तटीय मैदान एवं
  4. उत्तरी-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र। उत्तर प्रदेश की तराई एवं शिवालिक श्रेणियों में एक गौण क्षेत्र भी स्थित है।

(3) इण्डोनेशिया – यहाँ विश्व का 8.6% से अधिक चावल उत्पादन होता है। देश की 45% कृषित भूमि चावल के नीचे है। यहाँ उन्नत बीजों व शुष्क भागों में सिंचाई के साधनों के विकास तथा उर्वरकों के प्रयोग से प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि हुई है। यहाँ चावल उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र हैं-

  1. जावा का उत्तरी तटीय मैदानी भाग
  2. जावा का दक्षिणी तटीय मैदानी भाग
  3. सुमात्रा का उत्तरी-पूर्वी तथा उत्तरी- पश्चिमी तटीय प्रदेश
  4. जावा का दक्षिणी-पश्चिमी तटीय प्रदेश
  5. बोर्नियो (कालीमंटन) का पश्चिमी तट तथा
  6. सेलीबीज के तटीय भाग।

इन क्षेत्रों के अतिरिक्त बाली, लम्बोक व तिमोर द्वीपों पर भी चावल की खेती की जाती है। जावी, न्यूगिनी, सेलीबीज व बोर्नियो द्वीपों पर चावल के अन्तर्गत क्षेत्र का विस्तार किया जा रहा है।

(4) बांग्लादेश – यहाँ विश्व का लगभग 7% चावल उत्पादन होता है। गंगा, ब्रह्मपुत्र के डेल्टाई भागों में (देश की लगभग 50% कृषि योग्य भूमि पर) चावल उगाया जाता है। किन्तु इन्हीं भागों में चावल को जूट से स्पर्धा करनी पड़ती है। सघन जनसंख्या के पोषण के लिए वर्ष में तीन फसलें तक प्राप्त की जाती हैं।

(5) वियतनाम – यहाँ विश्व का 5.5% से अधिक चावल उत्पादन होता है। यह विश्व का पाँचवाँ बड़ा चावल उत्पादक देश है। देश की 80% कृषित भूमि पर चावल उत्पन्न किया जाता है। यहाँ चावल उत्पादन के दो प्रमुख क्षेत्र हैं-

  1. रेड नदी का डेल्टा व
  2. मीकांग नदी का डेल्टा डेल्टाई भागों में चावल की दो या तीन फसलें प्रतिवर्ष प्राप्त की जाती हैं।

(6) थाईलैण्ड – यहाँ विश्व का 4.4% से अधिक चावल उत्पादन होता है। देश की 90% कृषि योग्य भूमि पर चावल उगाया जाता है। चावल के निर्यात से राष्ट्र की आय होती है। मीनाम नदी के बाढ़ के मैदान व डेल्टाई भाग मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं। बैंकाक पत्तन से चावल का निर्यात भारत, सिंगापुर, इण्डोनेशिया, मलेशिया, चीन, जापान व क्यूबा आदि देशों को किया जाता है।

(7) म्यांमार – देश की 70% से अधिक भूमि पर चावल उगाया जाता है। यहाँ चावल के छः प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं –

  1. इरावदी की निचली घाटी व डेल्टा
  2. सालविन की निचली घाटी
  3. अक्याब का निकटवर्ती भाग
  4. मध्य इरावदी घाटी
  5. सितांग घाटी व डेल्टा तथा
  6. चिंदविन घाटी।

अकेले इरावदी घाटी में देश का 50% तथा सितांग घाटी में 20% चावल उत्पादन होता है। म्यांमार का चावल उत्तम किस्म का होता है। तटीय भागों में पर्याप्त वर्षा होती है। इरावदी की मध्यवर्ती घाटी में मांडले, श्रीबु व मीन नहरों से सिंचाई की सुविधाएँ प्राप्त हैं। जनसंख्या कम होने के कारण चावल की स्थानीय खपत कम है। अतएव बैंगोन (रंगून) तथा अक्याब पत्तनों से भारत, मलेशिया, इण्डोनेशिया, जापान आदि देशों को चावल निर्यात किया जाता है।

(8) फिलीपीन्स – यहाँ विश्व का 2.4% से अधिक चावल उत्पन्न होता है। देश की 60% कृषित भूमि पर चावल उगाया जाता है। यहाँ चावल के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं-

  1. लूजों द्वीप का मध्यवर्ती मैदान
  2. उत्तरी लूजों की घाटी एवं
  3. पनायाम का मैदान। पर्वतीय ढालों एवं घाटियों में चावल उगाया जाता है।

(9) जापान – यहाँ चावल को प्रति हेक्टेयर उत्पादन एशियाई देशों में सर्वाधिक है। यहाँ विश्व का लगभग 2% चावल उत्पादन होता है। देश का 20% चावल क्वांटो के मैदान से प्राप्त होता है। होंशू द्वीप के सिटांउची क्षेत्र प्रमुख चावल उत्पादक हैं। जापान में अधिकांश चावल पहाड़ी क्षेत्रों में सोपानी खेतों से प्राप्त होता है। पहाड़ी चावल को ‘टा’ एवं मैदानी चावल को ‘हा-टा’ कहा जाता है।
जापान में चावल की उपज अनेक कारणों से उल्लेखनीय तथा महत्त्वपूर्ण है –

  1. मध्य होंशू की जलवायु तथा पर्वतीय ढाल चावल की उपज के लिए उत्तम हैं।
  2. जापान की सघन आबादी के पोषण के लिए खाद्यान्नों की भारी माँग है। चावल की प्रति हेक्टेयर उपज अधिक होने तथा अधिक जनसंख्या का पोषण करने की सामर्थ्य के कारण इसकी उपज महत्त्वपूर्ण है।
  3. दक्षिणी व मध्यवर्ती जापान भी जलवायु की दृष्टि से चावल उत्पादन के लिए उपयुक्त है।
  4. धान की खेती में मशीन के बजाय मानव श्रम अपेक्षित है। सघन जनसंख्या के कारण प्रचुर व सस्ता श्रम उपलब्ध है।
  5. जापान एक द्वीपीय देश है जिसका मध्यवर्ती भाग पर्वतीय है। पहाड़ी ढलानों पर सोपानी खेतों में जापोनिका चावल की उत्तम उपज होती है।

(10) ब्राजील – जापानी आप्रवासियों द्वारा यहाँ जापानी विधि से चावल की खेती विकसित की गयी। यहाँ विश्व का लगभग 2% चावल उगता है।
(11) संयुक्त राज्य अमेरिका – यहाँ चावल उत्पादन के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं-

  1. गल्फ तटीय क्षेत्र
  2. अरकन्सास राज्य व
  3. कैलीफोर्निया घाटी। यहाँ विशाल फार्मों पर चावल की खेती में मशीनों का प्रयोग किया जाता है। स्थानीय मॉग कम होने के कारण यहाँ से यूरोपीय देशों को चावल निर्यात किया जाता है।

(12) द० कोरिया – यहाँ विश्व का 1.2% से अधिक चावल उगाया जाता है। दक्षिणी-पश्चिमी भाग में मैदानी चावल तथा पूर्वी तटीय भाग में पहाड़ी चावल उगाया जाता है।
(13) अन्य उत्पादक देश-पाकिस्तान – सिन्ध के डेल्टाई भाग एवं सीमा प्रान्त; इराक-दजला- फरात बेसिन; मलेशिया व श्रीलंका-तटीय मैदानी भाग; मित्र– नील डेल्टा; नाइजीरिया-सोकोतो, रीमा, नाइजर व बाको नदी घाटियों में; ऑस्ट्रेलिया-न्यूसाउथवेल्स में मुरमबिजी घाटी में; मैक्सिको–नदी-घाटियों व समुद्र तटीय भागों में; दक्षिणी अमेरिकी देशों में-गायना, कोलम्बिया, पीरू, इक्वेडोर के तटीय भाग; अफ्रीकी देशों में– तंजानिया, मलागासी, जंजीबार द्वीप में; यूरोपीय देशों में-दक्षिणी स्पेन, फ्रांस का रोन डेल्टा, मध्यवर्ती यूगोस्लाविया, इटली की पो घाटी, पीडमोण्ट, लोम्बार्डी मैदान, वेनेशिया व टस्केनी; रूस के अजरबैजान, उत्तरी काकेशिया, कजाकिस्तान में।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार International Trade
चावल का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं है। अधिकांश उपभोक्ता देश ही इसका उत्पादन करते हैं। कुछ सघन आबाद देशों ( भारत, जापान, इण्डोनेशिया, मलेशिया, बांग्लादेश, श्रीलंका) को चावल आयात करना पड़ता है।
चावल के निर्यातक देश – म्यांमार, थाईलैण्ड, वियतनाम व कम्पूचिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील, इटली व ऑस्ट्रेलिया हैं।

प्रश्न 3
विश्व में गन्ने के उत्पादन में सहायक भौगोलिक कारकों का विश्लेषण कीजिए तथा किसी एक महाद्वीप में उसके उत्पादक क्षेत्रों का विवरण दीजिए।
या
विश्व में गन्ने के वितरण, उत्पादन तथा व्यापार का वर्णन कीजिए।
या
गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा विश्व में इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। [2013]
या
विश्व में गन्ने की खेती का वर्णन अधोलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –
(क) उपयुक्त भौगोलिक दशाएँ
(ख) प्रमुख उत्पादन क्षेत्र
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार। (2014, 15, 16)
उत्तर
व्यावसायिक फसलों में गन्ने का महत्त्वपूर्ण स्थान है। चीनी प्राप्त होने वाले स्रोतों में गन्ना, चुकन्दर, शकरकन्द, ताड़, खजूर, नारियल, अंगूर, आलू, मेपुल आदि हैं, परन्तु इनमें गन्ना तथा चुकन्दर अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। दक्षिणी-पूर्वी एशिया को गन्ने की जन्म-भूमि होने का सौभाग्य प्राप्त है, जहाँ बागाती कृषि के रूप में इसका प्रारम्भ किया गया था। जैसे-जैसे यूरोपीय देशों में चीनी की माँग बढ़ती गयी, गन्ने के उत्पादन में भी उत्तरोत्तर वृद्धि होती गयी, परन्तु यूरोपीय देशों में चुकन्दर ने इसकी प्रतिस्पर्धा ले ली, फिर भी आज विश्व की 63% चीनी का उत्पादन गन्ने से ही किया जाता है। अतः गन्ना एक प्रमुख मुद्रादायिनी उपज है।

आवश्यक भौगोलिक दशाएँ
Necessary Geographical Conditions

(1) जलवायु – गन्ना उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र भागों की उपज है। इसके बोते समय आर्द्र जलवायु होनी चाहिए। उगते समय बीच-बीच में शुष्क एवं गर्म मौसम रहने से इसमें मिठास अधिक हो जाता है। इसकी फसल 10-12 महीनों में तैयार हो जाती है। गन्ने का उत्पादन क्षेत्र 32° उत्तरी अक्षांश से 36° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य विस्तृत है। क्यूबा में इसकी फसल 15 महीनों में तैयार होती है, जबकि हवाई द्वीप समूह में दो वर्ष तक लग जाते हैं।

  1. तापमान – गन्ना उत्पादन के लिए उच्च तापमान की आवश्यकता होती है, बोते समय औसत तापमान 20° सेग्रे तथा वृद्धि के समय 20° सेग्रे से 28° सेग्रे तक तापमान आवश्यक है। 34° सेग्रे से अधिक तापमान हानिकारक रहता है तथा 15° सेग्रे पर इसकी वृद्धि रुक जाती है। पाला एवं कोहरा इसकी फसल को हानि पहुँचाता है। पकते समय शुष्क मौसम गन्ने के रस एवं उसकी मिठास में वृद्धि कर देता है।
  2. वर्षा – गन्ने की कृषि के लिए आर्द्र जलवायु आवश्यक होती है। अत: 100 से 200 सेमी वर्षा वाले भागों में गन्ने की खेती की जाती है। नम सागरीय पवनें इसकी फसल के लिए बहुत ही लाभप्रद होती हैं। वर्षा वर्षभर निरन्तर होती रहनी चाहिए। कम वर्षा वाले भागों में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।

(2) मिट्टी – गन्ने के लिए उपजाऊ गहरी चिकनी मिट्टी आवश्यक होती है। जलोढ़ एवं लावायुक्त मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है। अच्छी फसल के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, कैल्सियम आदि रासायनिक उर्वरक लाभदायक रहते हैं, क्योंकि गन्ना मिट्टी के पोषक तत्त्वों का अधिक शोषण करता है।

(3) धरातल एवं मानवीय श्रम – गन्ने की कृषि के लिए समतल धरातल एवं पानी निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। समतल धरातल पर सिंचाई एवं आवागमन के साधन सुलभ रहते हैं। इसकी कृषि के लिए अधिक श्रमिकों की आवश्यकता रहती है, इसीलिए गन्ना सघन जनसंख्या वाले देशों में अधिक उगाया जाता है।

विश्व में गन्ने के उत्पादक देश
Sugarcane Producing Countries in the World

विश्व में प्रमुख गन्ना उत्पादक देश निम्नलिखित हैं –
(1) ब्राजील – गन्ना उत्पादन में ब्राजील का विश्व में प्रथम स्थान है। यह विश्व का 54% गन्ना पैदा करता है। यहाँ पुर्तगालियों द्वारा गन्ने की खेती का श्रीगणेश किया गया है। इस देश की जलवायु, दशाएँ एवं भौगोलिक परिस्थितियाँ गन्ना उत्पादन के अधिक अनुकूल हैं। अनुकूल जलवायु, सस्ता एवं कुशल श्रम, उपजाऊ भूमि, गन्ना उत्पादन की विस्तृत क्षेत्रफल, रासायनिक उर्वरकों का अधिकाधिक प्रयोग आदि कारक गन्ना उत्पादन में सहायके हुए हैं। अलागोस, बाहिया, मिनास-गेरास, पेरानाम्बुके आदि राज्य गन्ने के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।

(2) भारत – वर्तमान में भारत का विश्व में गन्ना उत्पादन में दूसरा स्थान है, जहाँ विश्व का 22.8% गन्ना उगाया जाता है। उष्ण एवं शुष्क जलवायु होने के कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम है तथा गन्ने के रस में चीनी की मात्रा भी कम पायी जाती है। गन्ना उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र मध्ये गंगा घाटी एवं समुद्रतटीय मैदान हैं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु तीनों राज्य मिलकर 70% गन्ने का उत्पादन करते हैं, जब कि गंगा के मैदान में देश का 50% गन्ना उत्पन्न किया जाता है। उत्तरी भारत गन्ने का प्रमुख क्षेत्र है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोरखपुर, गोण्डा, बस्ती, बलिया एवं आजमगढ़ जिले गन्ने के प्रमुख उत्पादक हैं, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलन्दशहर, गाजियाबाद, अलीगढ़, मुरादाबाद आदि जिले मुख्य स्थान रखते हैं।

दक्षिणी भारत में तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र राज्यों का स्थान मुख्य है। यहाँ समुद्री जलवायु के कारण गन्ना अच्छा पनपता है तथा उत्तरी भारत की अपेक्षा प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी अधिक होता है।

(3) चीन – गन्ना उत्पादन में विश्व में चीन का तीसरा स्थान है। यहाँ विश्व का 8.3% गन्ना उगाया जाता है। दक्षिणी चीन में गन्ने का उत्पादन सबसे अधिक होता है। सीक्यांग बेसिन एवं तटीय क्षेत्र गन्ना उत्पादन में प्रमुख स्थान रखते हैं। ताईवान द्वीप में भी गन्ने का उत्पादन किया जाता है।

(4) पाकिस्तान – यहाँ विश्व को 3.5% गन्ना पैदा होता है। पाकिस्तान के शुष्क भागों में जहाँ पर्याप्त सिंचाई की सुविधाएँ विद्यमान हैं, वहाँ गन्ने की कृषि की जाती है, परन्तु प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम है। लाहौर, लायलपुर, मुल्तान, स्यालकोट एवं रावलपिंडी आदि प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

(5) वियतनाम – वियतनाम में विश्व का 1.2% गन्ना पैदा होता है। जावा द्वीप प्रमुख गन्ना उत्पादक है। इस देश में गन्ने के उत्पादन के लिए भौगोलिक दशाएँ क्यूबा जैसी ही उपलब्ध हैं। ज्वालामुखी उद्गारों से प्राप्त लावा मिट्टी तथा उष्ण जलवायु ने गन्ने की कृषि का विकास किया है। यहाँ बागाती कृषि के रूप में गन्ना उत्तरी तटीय मैदान तथा पूर्वी भागों में उगाया जाता है। गन्ना उत्पादन में इस देश को सबसे बड़ी सुविधा चीनी मिलों का गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थापित किया जाना है।

(6) फिलीपीन्स – गन्ना उत्पादन फिलीपन्स का प्रमुख व्यवसाय है। यहाँ विश्व का 2.2% गन्ना पैदा होता है। यहाँ पर इसकी कृषि के लिए सबसे बड़ी सुविधा ज्वालामुखी से प्राप्त लावा मिट्टी है, जो गन्ने की उत्पत्ति में बहुत ही उपजाऊ है। नेग्रोस, पनाय तथा लूजोन द्वीपों पर समुद्रतटीय भागों में गन्ने का उत्पादन किया जाता है।
इनके अतिरिक्त थाईलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, मारीशस, हवाई द्वीप-समूह, पीरू, अर्जेण्टाइना, मिस्र तथा अफ्रीका के कांगो बेसिन में भी गन्ने का उत्पादन किया जाता है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
International Trade

गन्ने का कोई विदेशी व्यापार नहीं किया जाता। गन्ने को कच्चे संसाधन के रूप में प्रयुक्त कर चीनी एवं गुड़ आदि तैयार किये जाते हैं। इससे निर्मित चीनी का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में बड़ा महत्त्व है। सामान्यत: विश्व की कुल चीनी का लगभग 50% विकासशील देश, 30% विकसित देश तथा 20% साम्यवादी देश उत्पन्न करते हैं, किन्तु विश्व में कुल निर्यात मात्रा का 75% भाग विकासशील देशों से। प्राप्त होता है।

विश्व में चीनी के मुख्य आयातक राष्ट्र-संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जापान, जर्मनी, इटली, नाइजीरिया, कनाडा आदि हैं। चीनी के निर्यातक देशों में क्यूबा, भारत, जावा, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, फिलीपीन्स, थाईलैण्ड, मॉरीशस आदि मुख्य हैं।

प्रश्न 4
बागाती कृषि का वर्णन कीजिए। [2011, 16]
या
विश्व में चाय की खेती का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –
(i) भौगोलिक दशाएँ,
(ii) वितरण,
(iii) व्यापार। [2011, 12, 13, 15, 16]
चाय की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा विश्व में इसकी पैदावार के प्रमुख क्षेत्र बताइए। [2007]
या
किसी एक व्यापारिक फसल की कृषि अनुकूल भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए। चाय के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की विवेचना कीजिए। [2007]
या
चाय की कृषि के लिए चार उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए। [2007, 09]
उत्तर
बागाती कृषि प्रमुख रूप से उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में विकसित है। इस कृषि के लिए शीतकाल का तापमान 60° से 65° फारेनहाइट आवश्यक होता है। यहाँ पर उगाई जाने वाली फसलों में चाय ही एक अपवाद कहा जा सकता है जो 37° उत्तरी अक्षांश एवं कुछ शीत-प्रधान क्षेत्रों में उगाई जाती है।

विशेष प्रकार की सब्जियों एवं फलों की कृषि को भी बागाती कृषि कहा जाता है। सं० रा० अमेरिका में इसे ‘टूक फार्मिंग’ कहते हैं। इस खेती में अधिकांश कार्य हाथों द्वारा किया जाता है जिसमें अधिक मेहनत एवं सावधानी रखनी पड़ती है। खेतों से अधिक उपज लेने के लिए उपयुक्त समय पर उचित मात्रा में रासायनिक खाद, पानी एवं अन्य उपकरणों की व्यवस्था आवश्यक होती है। इसमें अधिकांशत: दक्ष श्रमिक लगे होते हैं।

बागाती कृषि की विशेषताएँ
Characteristics of Plantation Agriculture

बागाती कृषि में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं –

  1. यह कृषि फार्मों अथवा बागानों में की जाती है। अधिकांश बागानों पर विदेशी कम्पनियों का आधिपत्य रहा है।
  2. इसके अन्तर्गत विशिष्ट उपजों का ही उत्पादन किया जाता है; जैसे- केला, रबड़, कहवा, चाय, कोको आदि।
  3. इन कृषि के उत्पादों का उपयोग समशीतोष्ण कटिबन्धीय देशों के निवासियों द्वारा किया जाता है।
  4. बागानों में ही कार्यालय, माल तैयार करने, सुखाने तथा श्रमिकों के निवास आदि होते हैं।
  5. यहाँ पर अधिकांश तकनीकी एवं वैज्ञानिक पद्धतियाँ समशीतोष्ण देशों से आयात की गयी हैं।
  6. प्रारम्भ में यूरोपवासियों द्वारा प्राय: सभी महाद्वीपों में इसे कृषि को आरम्भ किया गया था। मलेशिया में रबड़ के बागान अंग्रेजों ने, ब्राजील में कॉफी के बागान पुर्तगालियों ने तथा मध्य अमेरिकी देशों में केले की कृषि स्पेनवासियों ने आरम्भ की थी।
  7. इनके उत्पादों का उपभोग समशीतोष्ण कटिबन्धीय देशों द्वारा किया जाता है। इसलिए इनके अधिकांश उत्पाद निर्यात कर दिये जाते हैं। इसी कारण इनके बागान तटीय क्षेत्रों अथवा पत्तनों के पृष्ठ प्रदेश में स्थापित किये जाते हैं।

प्रमुख बागाती पेय फसल : चाय
Main Plantation Bevearage : Tea

चाय विश्व में सबसे लोकप्रिय एवं सस्ता पेय-पदार्थ है। अब चाय का उपयोग शीत-प्रधान देशों के साथ-साथ उष्ण देशों में भी किया जाने लगा है। अनुमान किया जाता है कि आज से लगभग 2,700 वर्षों पहले चीन में चाय का उपयोग होता था। चाय पीने में स्वादिष्ट और थकान को दूर करने वाली होती है। चाय का पौधा झाड़ीनुमा 1.5 मीटर ऊँचा एवं सदाबहार होता है जिसकी पत्तियाँ चुनकर एवं सुखाकर चाय तैयार की जाती है। इसकी पत्तियाँ वर्ष में 3-4 बार चुनी जाती हैं। इन्हें मशीनों द्वारा सुखाकर डिब्बों में बन्द कर उपभोक्ताओं तक भेजा जाता है।

चाय के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ
Necessary Geographical Conditions for Tea

चाय की कृषि के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ आवश्यक होती हैं –
(1) जलवायु – चाय के लिए उष्णार्द्र एवं उपोष्ण जलवायु उपयुक्त रहती है। इसके लिए मानसूनी भूमि, उच्च तापमान, लम्बा उत्पादन काल एवं अधिक वर्षा आवश्यक होती है।

  1. तापमान – चाय के पौधे के विकास के लिए उच्च तापमान की आवश्यकता होती है, अर्थात् 25° से 30° सेग्रे ताप उपयुक्त रहता है। 20° सेग्रे से कम तापमान पर इसकी वृद्धि रुक जाती है, परन्तु असम में चाय का उत्पादन 35° सेग्रे तापमान वाले भागों में भी किया जाता है। इसकी उपज के लिए स्वच्छ एवं धूपदार मौसम उत्तम रहता है, जब कि पाला एवं कोहरा हानिकारक रहता है।
  2. वर्षा – इसके लिए अधिक आर्द्रता की आवश्यकता पड़ती है। वर्षा की मात्रा 75 से 150 सेमी पर्याप्त रहती है, परन्तु 250 सेमी से अधिक वर्षा वाले ढालू प्रदेशों में इसका उत्पादन बहुतायत से किया जाता है, जहाँ पौधों की जड़ों में पानी न रुकता हो। वर्षा वर्ष-भर समान रूप से होनी चाहिए। ओस तथा धुन्धयुक्त वातावरण उत्तम रहता है।

(2) मिट्टी एवं धरातल – चाय के लिए ढालू भूमि आवश्यक होती है जिसमें पानी न ठहरता हो। गहरी बलुई, पोटाश, लोहांश एवं जीवांशों से युक्त मिट्टी उपयुक्त रहती है। वनों से साफ की गयी मिट्टी में चाय बागान अधिक लगाये जाते हैं, क्योंकि इस मिट्टी की उर्वरा शक्ति बहुत अधिक होती है।
(3) मानवीय श्रम – इसकी कृषि के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ता एवं कुशल श्रम उपयुक्त रहता है। स्त्रियाँ एवं बच्चे श्रमिक अधिक उपयोगी होते हैं। जनाधिक्य के कारण ही दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों में चाय का उत्पादन किया जाता है।

विश्व में चाय का उत्पादन
Production of Tea in the World

विश्व में चाय का उत्पादन 40° दक्षिण से 50° उत्तरी अक्षांशों के मध्य किया जाता है, परन्तु चाय के प्रधान उत्पादक क्षेत्र दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देश हैं, जहाँ विश्व की 72% से अधिक चाय का उत्पादन होता है। इसके अतिरिक्त अफ्रीका में केन्या, मलावी, युगाण्डा, तंजानिया, जाम्बिया में 11%; जार्जिया (पूर्व सोवियत संघ) के ट्रांस-काकेशिया प्रदेश में 6% तथा शेष ब्राजील एवं अर्जेण्टाइना आदि देशों में उगाई जाती है। एशिया में भारत, चीन, श्रीलंका, बांग्लादेश, तुर्की, ईरान, वियतनाम आदि देश मुख्य हैं।
भारत, श्रीलंका एवं बांग्लादेश, तीनों मिलकर विश्व की 39%, जापान एवं चीन 25%, इण्डोनेशिया एवं वियतनाम 8% चाय का उत्पादन करते हैं, जब कि जार्जिया विश्व की केवल 5% चाय उगाता है।

(1) चीन – यह विश्व का प्रथम चाय उत्पादक देश है। यहाँ विश्व की 46% से अधिक चाय उत्पन्न होती है। यहाँ चाय के अन्तर्गत क्षेत्र संसार में सर्वाधिक है। यहाँ छोटे बागान यांग्टीसी व सिक्यांग की घाटियों में पर्वतीय ढलानों पर पाये जाते हैं। चीन में चाय के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं –

  1. पूर्वी तटीय क्षेत्र-कैण्टन व शंघाई के बीच पर्वतीय ढलानों पर चाय के बागान स्थित हैं।
  2. यांग्टीसी घाटी-यहाँ हुनान, क्यांगसी तथा चिक्यांग आदि पर्वतीय राज्यों में चाय के बागीन पाये जाते हैं।
  3. जेचवान बेसिन – यहाँ पर्वतीय घाटियों में चाय के बागान मिलते हैं। चीन में चाय की ईंटें बनाने का प्रचलन है। चाय की रूढ़िपूर्ण खेती के कारण उत्पादन अधिक नहीं है। यहाँ की चाय भी उत्तम किस्म की न होने के कारण स्पर्धा में अन्य देश आगे निकल गये हैं।

(2) भारत – यह विश्व में चाय का द्वितीय प्रमुख उत्पादक देश है। यहाँ 3.7 लाख हेक्टेयर भूमि पर विस्तृत चाय के बागानों में विश्व की लगभग 30% चाय प्राप्त होती है। देश का 3/4 से अधिक उत्पादन उत्तरीपूर्वी हिमालय के ढालों पर असम व पश्चिम बंगाल राज्यों में होता है। ब्रह्मपुत्र की ऊपरी घाटी, सुरमा घाटी, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग व जलपाईगुड़ी के पर्वतीय भागों, बिहार के पर्वतीय भागों, छोटा नागपुर के पठारी भागों, उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय जिलों (कांगड़ा) एवं दक्षिणी भारत में नीलगिरी की पहाड़ियों पर (केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु राज्यों में) चाय का उत्पादन होता है।

(3) केन्या – यह विश्व में चाय का तीसरा वृहत्तम उत्पादक देश है। देश के निर्यात पदार्थों में चाय प्रमुख है। गत वर्षों में यहाँ चाय का उत्पादन तीव्रता से बढ़ा है। यहाँ विश्व की लगभग 8% चाय उत्पन्न होती है। कैरिचो व लिमुरु क्षेत्र प्रमुख उत्पादक हैं। समस्त उत्पादन का 80% निर्यात पर दिया जाता है।

(4) श्रीलंका – यह विश्व का चौथा वृहत्तम चाय उत्पादक देश है। मध्यवर्ती पर्वतीय भाग के ढलानों पर कैन्डी से दक्षिण की ओर चाय के बागान मिलते हैं। यहाँ 19वीं शताब्दी में चाय की बागाती । खेती का विस्तार हुआ। 19वीं शताब्दी के मध्य में यहाँ केवल 4 हेक्टेयर भूमि पर चाय के बागान थे, आज यहाँ 2.4 लाख हेक्टेयर भूमि पर बागानों का विस्तार है। यहाँ विश्व की लगभग 10% चाय उत्पन्न होती है तथा भारी मात्रा में निर्यात होता है। श्रीलंका का अर्थतन्त्र चाय के उत्पादन पर आधारित है।

(5) टर्की – यहाँ विश्व की लगभग 6% चाय उत्पन्न होती है। काला सागर के पूर्वी तटीय ढालों एवं देश के पश्चिमी तटीय भागों में चाय के बागान अधिक पाये जाते हैं।
(6) वियतनाम – यहाँ विश्व की 2.5% चाय पैदा होती है।

(7) इण्डोनेशिया – यहाँ प्राचीन काल से ही चाय की खेती का प्रचलन रहा। जावा की गहरी । लाल लावा की मिट्टियों व अन्य भौगोलिक सुविधाओं से सम्पन्न द्वीप में चाय के विस्तृत बागात हैं। सुमात्रा में उत्तरी-पूर्वी भाग में पर्वतीय ढलानों पर चाय के बागान पाये जाते हैं। यहाँ विश्व की 5% से अधिक चाय उत्पन्न की जाती है। विदेशों को चाय का निर्यात भी किया जाता है।

(8) जापान – यहाँ विश्व की लगभग 3% चाय उत्पन्न होती है। पर्वतीय ढलानों पर चाय के बागानों का विस्तार है। सस्ते श्रमिक, उत्तम भौगोलिक दशाओं एवं नवीनतम वैज्ञानिक तथा प्राविधिक विकास के कारण यहाँ चाय की खेती व्यापक रूप से होती है। होन्शू द्वीप पर शिजुओका प्रान्त व टोकियो तथा नगोया के मध्यवर्ती भाग पर चाय के बागानों का विस्तार पाया जाता है। जापान की उत्तम हरी चाय विश्वविख्यात है। इसका निर्यात भी किया जाता है।

(9) बांग्लादेश – यहाँ विश्व की 2% से अधिक चाय उत्पन्न होती है। सिलहट जिले में चाय का अधिक उत्पादन होता है।
(10) अन्य उत्पादक देश – ईरान, मलावी, अर्जेण्टाइना, युगाण्डा, मलेशिया, मोजाम्बिक, तन्जानिया आदि देश विश्व की 1% से अधिक चाय उत्पन्न करते हैं। छोटे उत्पादकों में जायरे, थाईलैण्ड, म्यांमार, पाकिस्तान, पीरू, इक्वेडोर, ब्राजील, ताइवान आदि हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार International Trade
चाय का प्रचलन व्यापक तथा उत्पादन सीमित होने के कारण इसका व्यापार महत्त्वपूर्ण है। इसका उत्पादन विकासशील देशों में तथा अधिक उपभोग विकसित देशों में होता है। संयुक्त राज्य, कनाडा, सोवियत संघ, ब्रिटेन व ऑस्ट्रेलिया चाय के प्रमुख आयातक देश हैं। ब्रिटेन चाय का सबसे बड़ा आयातक देश है। निर्यातक देशों में भारत, श्रीलंका, इण्डोनेशिया, बांग्लादेश व केन्या हैं।

प्रश्न 5
विश्व में कहवा की खेती के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों को भी बताइए।
या
किसी एक व्यापारिक फसल की कृषि की अनुकूल भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
या
कहवा की कृषि के लिए चार प्रमुख आवश्यक भौगोलिक दशाओं की विवेचना कीजिए। [2008]
या
विश्व में कहवा उत्पादन का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए-
(क) उपयुक्त भौगोलिक दशाएँ
(ख) उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र
(ग) विश्व व्यापार। [2014, 16]
उत्तर
कहवा भी चाय की भाँति आधुनिक युग का एक पेय-पदार्थ है। अबीसीनिया के पठारी क्षेत्रों (इथोपिया-अफ्रीका) पर यह पौधा सबसे पहले उगा था। यहीं से इसकी कृषि का प्रचार अरब देशों में हुआ। यमन में इसका प्रसार अधिक हुआ है। यूरोपीय देशों में इसका प्रचार-प्रसार 17 वीं शताब्दी में हुआ। भारत में भी पश्चिमी समुद्रतटीय प्रदेश के दक्षिणी भाग में इसका विकास हुआ। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में इसका इतिहास केवल 100 वर्ष पुराना है।
कहवी एक वृक्ष के बीजों को सुखाकर तथा उन्हें भूनकर बारीक चूरे के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह चाय की अपेक्षा अधिक गर्म तथा नशीला होता है।

आवश्यक भौगोलिक दशाएँ
Necessary Geographical Conditions

(1) जलवायु – कहवा उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु का पौधा है। यह 28° उत्तरी अक्षांशों से 38° दक्षिणी अक्षांशों तक उगाया जाता है, परन्तु 90% उत्पादन विषुवत् रेखा के दोनों ओर 24° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य 500 मीटर से 1,800 मीटर की ऊँचाई वाले भागों में किया जाता है। उष्णार्द्र जलवायु इसके लिए अधिक उपयुक्त रहती है।

  1. तापक्रम – कहवा का वृक्ष 15° से 30° सेग्रे तक तापमानों में उत्पन्न होता है। तेज धूप से रक्षा के लिए इसे छायादार वृक्षों के साथ उगाया जाता है। पाला इसके लिए अधिक हानिकारक होता है। ताजी वायु एवं प्रकाश में इसकी वृद्धि अधिक होती है।
  2. वर्षा – कहवा के पौधों को पर्याप्त आर्द्रता की आवश्यकता होती है। इसके लिए 150 से 250 सेमी वर्षा उपयुक्त रहती है, परन्तु पौधों की जड़ों में जल नहीं भरा रहना चाहिए तथा पकते समय वर्षा नहीं होनी चाहिए।

(2) मिट्टी एवं धरातल – पहाड़ी या पठारी ढालू भूमि उपयुक्त रहती है। कहवा मिट्टी के पोषक तत्त्वों को अधिक ग्रहण करता है; अतः उपजाऊ एवं घनी दोमट, जीवांशयुक्त, लौह एवं चूनायुक्त, खनिज एवं लावायुक्त मिट्टी उपयोगी रहती है। कांपयुक्त डेल्टाई मिट्टी में भी कहवा उगाया जाता है।

(3) मानवीय श्रम – कहवे की खेती के लिए सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक रूपसे कहवे के पौधे 15 मीटर तक ऊँचे होते हैं। अतः फल तोड़ने, बीज निकालने, सुखाने एवं कहवे की विभिन्न किस्में तैयार करने में प्रचुर मानवीय श्रम आवश्यक होता है।

विश्व में कहवा के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
Main Coffee Producing Areas in the World

अरब से विश्व के अनेक देशों में कहवे का प्रचार हुआ। किसी समय में इण्डोनेशिया में इसके बागात विकसित थे। श्रीलंका व भारत में भी कहवे के बागान लगाये गये, जो रोगग्रस्त हो गये। पश्चिमी द्वीप समूह में भी बागान लगाये गये, किन्तु अब वहाँ भी इसका महत्त्व घट गया है। वर्तमान समय में विश्व के कहवा उत्पादन देशों को निम्नलिखित चार वर्गों में रखा जा सकता है –
(1) दक्षिण अमेरिकी देश – ये देश विश्व का 3/4 कहवा उत्पन्न करते हैं। इनमें ब्राजील मुख्य उत्पादक देश है, जो विश्व का लगभग 1/3 कहवा उत्पन्न करता है। कोलम्बिया, इक्वेडोर, वेनेजुएला, गयाना अन्य उत्पादक देश हैं।

(2) मध्य अमेरिका व पश्चिमी द्वीप समूह – ये देश संसार को लगभग 1/8 कहवा उत्पन्न करते हैं। मैक्सिको, साल्वाडोर, ग्वाटेमाला, निकारागुआ, पोटरिको, डोमीनिकन, कोस्टारिका, होन्डुरास, क्यूबा, हैटी, जमैका, ट्रिनिडाड आदि देश इसमें सम्मिलित हैं।

(3) अफ्रीकी देश – पश्चिमी व दक्षिणी-पश्चिमी अफ्रीकी देश-घाना, अंगोला, केन्या, इथोपिया, आइवरी कोस्ट, युगाण्डा, तन्जानिया, जायरे, कैमरून गणतन्त्र आदि इस क्षेत्र के प्रमुख कहवी उत्पादक देश हैं।

(4) दक्षिणी एशिया – इण्डोनेशिया, फिलीपीन्स, श्रीलंका, भारत, यमन आदि देश कहवा उत्पन्न करते हैं। इनका विस्तृत वर्णन अग्रलिखित है –

  • ब्राजील – यह विश्व का वृहत्तम कहवा उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 1/3से अधिक कहवी उत्पन्न किया जाता है। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में यहाँ विश्व का 3/4 कहवा उत्पन्न होता था। मिनास ग्रेस व साओपॉलो प्रमुख कहवा उत्पादक राज्य हैं। अकेले साओपॉलो राज्य से देश का 2/3 कहवा प्राप्त होता है। यहाँ हजारों हेक्टेयर में कहवा के बागान (फाजेन्डा) विस्तृत हैं। लौह तत्त्व युक्त टेरारोसा मिट्टियाँ एवं काली मिट्टी अत्यन्त उर्वर हैं। इटालवी श्रमिकों व टेक्नीशियनों की देख-रेख, सरकारी नियन्त्रण एवं प्रोत्साहन के कारण कहवा उत्पादन अत्यन्त विकसित है। साण्टोस बरियो डिजेनेरो पत्तनों से कहवा निर्यात किया जाता है। ‘कॉफी बीटिल’ नामक कीटाणु से कहवा क्षतिग्रस्त होता है।
  • कोलम्बिया – यह विश्व का तृतीय वृहत्तम कहवा उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का लगभग 10% कहवी उत्पन्न होता है। यहाँ मध्यवर्ती श्रेणियों के पूर्वी तथा पश्चिमी ढालों पर 1,200 से 2,100 मीटर की ऊँचाई पर लावा की उर्वर मिट्टियाँ पायी जाती हैं। बोगोटा के पश्चिम में मागडालेना व दक्षिण में मैडेलीन नदियों के समीपवर्ती भागों में अधिक कहवा उत्पन्न किया जाता है। यहाँ के बागान छोटे आकार के हैं किन्तु कहवा उत्तम किस्म का है। यहाँ प्रति हेक्टेयर उत्पादन (632 किग्रा), ब्राजील (412 किग्रा) से अधिक है। काल्डास प्रदेश तथा एन्टीकुमा क्षेत्र में कहवा उत्पन्न मुख्य रूप से होता है। यहाँ कहवा के बागान ‘ग्वामो’ नामक छतरीनुमा वृक्षों की छाया में लगाये जाते हैं।
  • इण्डोनेशिया – यहाँ विश्व का 7% से अधिक कहवा उत्पन्न होता है। पूर्वी जावा में पर्वतीय ढाल प्रमुख कहवा उत्पादक हैं। यहाँ अक्सर कहवे की सम्पूर्ण फसल रोगग्रस्त होकर नष्ट हो जाती है।
  • भारत – यहाँ कहवे की बागाती खेती 1840 ई० में आरम्भ हुई। यहाँ विश्व का 4% से अधिक कहवा उत्पन्न किया जाता है। देश का 3/4 कहवा कर्नाटक राज्य से प्राप्त होता है। तमिलनाडु व केरल अन्य उत्पादक राज्य हैं।
  • इथोपिया – यहाँ विश्व का 3% से अधिक कहवा प्राप्त होता है। पूर्वी पठारी भाग पर जीमा, हरार उच्च भूमि एवं कॉफी प्रमुख उत्पादक हैं।
  • मैक्सिको – यहाँ विश्व का लगभग 4% कहवा उत्पन्न होता है। खाड़ी तटीय भाग एवं उत्तरी-पश्चिमी पर्वतीय ढाल प्रमुख उत्पादक हैं। यहाँ से संयुक्त राज्य को कहवा निर्यात किया जाता है।
  • आइवरी कोस्ट – यहाँ विश्व का 4% कहवा उत्पन्न होता है। गिनी खाड़ी का तटीय भाग मुख्य कहवा उत्पादक है। बड़ी मात्रा में कहवे का निर्यात होता है।
  • ग्वाटेमाला – यहाँ विश्व का लगभग 4% कहवा उत्पन्न होता है। यहाँ सान मारकोस, साण्टा रोजा, तिजालते, नागो व सुचिते पेकेज मुख्य उत्पादक प्रान्त हैं।
  • कोस्टारिका – यह मध्य अमेरिकी देश विश्व का 2% से अधिक कहवा उत्पन्न करता है। यहाँ से संयुक्त राज्य को कहवा निर्यात किया जाता है।
  • फिलीपीन्स – यहाँ विश्व का लगभग 2% कहवा उत्पन्न होता है।
  • अन्य उत्पादक देश – अफ्रीका में – जायरे, कैमरून, मलागासी, केन्या, अंगोला, गैबोन: एशिया में– यमन; दक्षिणी अमेरिका में इक्वेडोर, पीरू, अर्जेण्टाइना तथा ओशेनिया में-पापुआ न्यूगिनी अन्य महत्त्वपूर्ण कहवा उत्पादक हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार International Trade
चाय की भाँति कहवे का उपभोग भी विकसित राष्ट्रों में अधिक होता है, जबकि इसका उत्पादन विकासशील तथा अविकसित देशों में होता है। विश्व में कुल कहवा आयात में 90% विकसित राष्ट्रों को योगदान है। अकेला संयुक्त राज्य ही कुल आयात का आधा भाग आयात करता है। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली आदि विकसित राष्ट्र अन्य प्रमुख आयातक हैं। निर्यातक देशों में ब्राजील, कोलम्बिया, मैक्सिको, अफ्रीकी देश, मध्य अमेरिकी देश, भारत, यमन व फिलीपीन्स हैं। कुल निर्यात का लगभग 45% ब्राजील व कोलम्बिया से, 25% अफ्रीकी देशों से, 20% मध्य अमेरिकी देशों व 5% इण्डोनेशिया से प्राप्त होता है।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 14 Agricultural Crops

प्रश्न 6
कपास की कृषि के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा विश्व में उसके उत्पादन के प्रमुख क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। [2007, 12, 14, 15]
या
कपास की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं की समीक्षा करते हुए विश्व में इसके वितरण को समझाइए। [2009]
या
कपास की खेती के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाओं की व्याख्या कीजिए तथा विश्व के किसी एक देश में इसकी खेती का वर्णन कीजिए। [2008]
या
कपास की कृषि के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाओं का उल्लेख कीजिए तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की कपास मेखला का वर्णन कीजिए। [2012]
या
कपास की कृषि हेतु निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत वर्णन कीजिए –
(अ) भौगोलिक दशाएँ
(ब) उत्पादन के क्षेत्र
(स) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार। (2012, 14, 16)
उत्तर
कपास एक रेशेदार तथा व्यापारिक फसल है जिससे सूती वस्त्रों का निर्माण किया जाता है। प्रमुख रूप से उष्ण जलवायु वाले प्रदेशों में सूती वस्त्र पहने जाते हैं। यह एक प्रमुख मुद्रादायिनी फसल है।
भारत में मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा संस्कृति में आज से 5,000 वर्ष पूर्व सूती वस्त्रों का प्रचलन था। इस आधार पर भारत को कपास का मूल स्थान माना जा सकता है। इसके बाद इसका प्रचार चीन तथा अन्य देशों में हुआ। सिकन्दर के आक्रमण के बाद इसका प्रचार यूनान में हुआ तथा धीरे-धीरे यह सम्पूर्ण विश्व में फैल गया।

कपास का पौधा गॉसीपियम नामक पौधे का वंशज है जो झाड़ीनुमा होता है। यह 1.5 मीटर से 2.0 मीटर तक ऊँचा होता है। इनमें श्वेत फूल तथा इनके स्थान पर बोडियाँ निकल आती हैं। इनके खिलने पर रेशों का गुच्छा निकलता है, जिन्हें सुखाकर बीज (बिनौले) अलग किये जाते हैं। इसके पश्चात् रेशों को चुनकर धागा तैयार किया जाता है और कपड़ा बुना जाता है। कपास से निकले बिनौलों का उपयोग पशुओं को खिलाने तथा वनस्पति तेल बनाने में किया जाता है।

कपास हेतु अनुकूल भौगोलिक दशाएँ
Favourable Geographical Conditions for Cotton

कपास मुख्यत: उपोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों की उपज है, परन्तु उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में भी कपास उगायी जाती है। प्रमुख रूप से इसका उत्पादन 40°उत्तरी अक्षांशों से 30°दक्षिणी अक्षांशों के मध्य स्थित देशों में किया जाता है।
(1) जलवायु – कपास के लिए उष्ण एवं कम आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। उत्पादन काल के लगभग 7 महीनों तक (200 से 210 दिनों तक) पालारहित मौसम होना चाहिए।

  1. तापमान – इसकी खेती के लिए उच्च तापमान वाले क्षेत्र उपयुक्त रहते हैं। उगते समय 20°से 30° सेग्रे तथा पकते समय 25° से 35° सेग्रे तापमान आवश्यक होता है। इसकी खेती में पाला बहुत ही हानिकारक होता है। कपास के रेशे की वृद्धि के लिए समुद्रतटीय नम पवनें बहुत ही लाभदायक रहती हैं। पकते समय स्वच्छ आकाश, तेज गर्मी एवं धूप लाभदायक होती है।
  2. वर्षा – इसके पौधों को पर्याप्त नमी आवश्यक होती है। वर्षा की मात्रा 75 से 100 सेमी पर्याप्त रहती है, परन्तु वर्षा का जल पौधों की जड़ों में रुकना हानिकारक रहता है। कम वर्षा वाले भागों में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। सिंचित कपास का रेशा लम्बा एवं सुदृढ़ होता है।

(2) मिट्टी – कपास का पौधा मिट्टी के उर्वरकं तत्त्वों का अधिक शोषण करता है। लत्वा निर्मित उपजाऊ काली मिट्टी सर्वश्रेष्ठ रहती है, क्योंकि इसमें नमी धारण करने की पर्याप्त क्षमता होती है। कैल्सियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम आदि लवणों से युक्त मिट्टी भी उपयुक्त रहती है। इसके लिए समतल एवं सुप्रवाहित धरातल का होना आवश्यक होता है।

(3) मानवीय श्रम – कपास को बोने, निराई-गुड़ाई करने, चुनने आदि के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। कपास चुनने का कार्य स्त्रियों एवं बच्चों द्वारा कराया जाना अधिक उपयुक्त एवं कम खर्चीला रहता है। संयुक्त राज्य एवं स्वतन्त्र देशों के राष्ट्रकुल में चुनाई का कार्य मशीनों द्वारा किया जाता है।

विश्व में कपास उत्पादक देश
Cotton Producing Countries in World

विश्व में कपास के प्रमुख उत्पादक देश निम्नलिखित हैं –
(1) चीन – कपास के उत्पादन में चीन का विश्व में प्रथम स्थान है। यहाँ विश्व की 18.9% कपास उत्पन्न की जाती है। यहाँ पर अनुकूल जलवायु एवं उपजाऊ भूमि कपास की कृषि में सहायक है तथा भारतीय किस्म की कपास का उत्पादन किया जाता है। यहाँ कपास के मुख्य उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं –

  1. मध्य-पूर्वी चीन में यांगटिसीक्यांग की घाटी एवं समुद्रतटीय मैदान
  2. ह्वांगहो तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियाँ
  3. पश्चिमी चीन तथा सीक्यांग के शुष्क प्रदेशों में सिंचित क्षेत्र
    चीन में कपास उत्पादने का अधिकांश भाग जनसंख्या अधिक होने के कारण देश में ही उपभोग कर लिया जाता है, क्योंकि घरेलू खपत बहुत अधिक है।

(2) संयुक्त राज्य अमेरिका – कपास के उत्पादन में संयुक्त राज्य अमेरिका को विश्व में दूसरा स्थान है। यह संयुक्त राज्य की प्रमुख मुद्रादायिनी फसल है। यहाँ पर कपास उत्पादन के विशाल क्षेत्र को, जिसकी पश्चिमी सीमा 200 दिन पालारहित रेखा द्वारा निर्धारित होती है, कपास की पेटी’ के नाम से पुकारते हैं। संयुक्त राज्य विश्व का 15.6% कपास उत्पन्न करता है। यहाँ पर कपास उत्पादन के निम्नलिखित दो क्षेत्र उल्लेखनीय हैं –

  1. कपास की पेटी – इसका विस्तार 37° उत्तरी अक्षांश के दक्षिण में उत्तरी कैरोलिना राज्य से लेकर टेक्सास राज्य तक है। कैरोलिना, जोर्जिया, अलाबामा, टेनेसी, अरकंसास, मिसीसिपी, ओक्लोहामा आदि राज्यों में यह पेटी विस्तृत है। कपास की यह पेटी निम्नलिखित क्षेत्रों में विशिष्टीकरण कर गयी है –
    • आन्तरिक समुद्रतटीय क्षेत्र
    • पर्वतीय क्षेत्र
    • टेनेसी घाटी क्षेत्र
    • मिसीसिपी नदी की निम्नघाटी
    • टेक्सास राज्य का मध्य एवं काली मिट्टी का क्षेत्र
    • पश्चिमी टेक्सास एवं ओक्लोहामा का घास क्षेत्र तथा
    • टेक्सास राज्य का दक्षिणी समुद्रतटीय मैदानी क्षेत्र।
  2. पश्चिमी क्षेत्र – वर्तमान में कपास की यह पेटी पश्चिम की ओर स्थानान्तरित हो रही है, क्योंकि दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्रों में अब सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना प्रारम्भ हो गयी है। कैलीफोर्निया एवं एरिजोना राज्यों में कपास को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

(3) पाकिस्तान – कपास के उत्पादन में पाकिस्तान का विश्व में तीसरा स्थान है। यहाँ विश्व की 6.5% कपास पैदा होती है। सिन्धु तथा उसकी सहायक नदियों के मैदानों में लायलपुर, मोण्टगोमरी, मुल्तान, सक्खर, लाहौर, शेखूपुरा आदि मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं।

(4) भारत – कपास के उत्पादन में भारत का विश्व में चौथा स्थान है। यहाँ सबसे अधिक भूमि कपास के उत्पादन में लगी है, परन्तु प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम है। भारत में छोटे रेशे वाली कपास अधिक उगायी जाती है। भारत विश्व की 6.2% कपास उगाता है। यहाँ कपास का उत्पादन मुख्यत: काली मिट्टी के क्षेत्रों में किया जाता है। महाराष्ट्र का कपास के उत्पादन में प्रथम स्थान है। अन्य कपास उत्पादक राज्यों में पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं आन्ध्र प्रदेश आदि राज्य मुख्य हैं।

(5) उज्बेकिस्तान – सन् 1970 से पूर्व सोवियत संघ का कपास के उत्पादन में प्रथम स्थान था, परन्तु 1991 ई० में विघटन के बाद इसका महत्त्व घट गया है। सोवियत संघ के स्वतन्त्र देशों में उज्बेकिस्तान तथा तुर्कमेनिस्तान में सिंचाई द्वारा कपास का उत्पादन होता है। उज्बेकिस्तान में विश्व की 4.3% कपास पैदा होती है।

(6) ब्राजील – विश्व की 3.1% कपास का उत्पादन ब्राजील में होता है। यहाँ तटीय भागों में कपास का उत्पादन किया जाता है। मिनास-गैरास, पैरानाम्बुको, बाहिया, सॉओपालो प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र हैं।

(7) मिस्र – कपास इस देश की प्रमुख उपज है। यद्यपि विश्व के कपास उत्पादक देशों में इसका स्थान नगण्य है। यहाँ पर विश्व की सर्वोत्तम एवं लम्बे रेशे वाली कपास का उत्पादन किया जाता है। मिस्र में नील नदी की उपजाऊ काँप मिट्टी में कपास उगायी जाती है। मिस्र की मुख्य निर्यातक वस्तु कपास है। कृषि योग्य भूमि के 20% क्षेत्रफल पर कपास का उत्पादन किया जाता है। विश्व में मिस्र कपास का मुख्य निर्यातक देश है। भारत, चीन, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य एवं यूरोपियन देश यहाँ की कपास के प्रमुख ग्राहक हैं।

(8) मैक्सिको – मैक्सिको में कपास उत्पादन के निम्नलिखित चार उत्पादक क्षेत्र हैं –

  1. कोलोरेडो नदी का डेल्टाई भाग
  2. रियोग्रादे नदी की घाटी
  3. आन्तरिक प्रदेश एवं लैगुना क्षेत्र
  4. समुद्रतटीय भाग। कुछ भागों को छोड़कर सम्पूर्ण काँप मिट्टी क्षेत्रों में कपास उगायी जाती है। अधिकांश नमी सिंचाई अथवा बाढ़ों द्वारा प्राप्त होती है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार – कपास का औद्योगिक महत्त्व होने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्त्वपूर्ण स्थान है। विश्व के कुल उत्पादन को एक-तिहाई भाग निर्यात कर दिया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, पाकिस्तान, मिस्र, सूडान, मैक्सिको, ब्राजील, तुर्की, सीरिया, भारत तथा चीन कपास के प्रमुख निर्यातक देश हैं। जापान, ब्रिटेन, चीन, जर्मनी, कोरिया, फ्रांस, पोलैण्ड आदि आयातक देश हैं।

प्रश्न 7
रबड़ की कृषि के लिए उपयुक्त भौगोलिक देशाओं की विवेचना कीजिए तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया के रबर उत्पादक प्रमुख क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
या
रबड़ की खेती के अनुकूल भौगोलिक दशाओं का उल्लेख कीजिए तथा उसको विश्व-वितरण बताइए।
या
विश्व में रबड़ की खेती का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए-
(अ) अनुकूल भौगोलिक दशाएँ
(ब) उत्पादक देश
(स) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार। [2008, 10, 11, 14]
उतर
रबड़ एक हैविया नामक पौधे का दूध (Latex) होता है जो विषुवत्रेखीय सदाबहार के वनों से प्राप्त होता है। इसे गाढ़ा करके रबड़ तैयार की जाती है। सर्वप्रथम जंगली रूप में यह अमेजन बेसिन (ब्राजील) में उगती थी। यहीं से ब्रिटेनवासियों द्वारा इसे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में ले जाया गया। व्यावसायिक स्तर पर इसका प्रयोग 18वीं शताब्दी से प्रारम्भ किया, परन्तु अब से लगभग 500 वर्ष पहले। यह केवल विद्यार्थियों द्वारा पेन्सिल के निशान मिटाने के ही काम आती थी। वर्तमान समय में सभ्य देशों में इसकी मॉग में वृद्धि होती जा रही है।

रबड़ का पौधा सात वर्षों में तैयार होता है। एक एकड़ से औसत रूप में 500 से 1,000 लीटर तक दूध की वार्षिक उपज प्राप्त होती है। इस दूध को बाल्टियों में एकत्र कर कारखानों तक भेजा जाता है तथा रबड़ तैयार की जाती है।

अनुकूल भौगोलिक दशाएँ
Favourable Geographical Conditions

(1) जलवायु – रबड़ उष्ण कटिबन्धीय उपज है; अतः इसका अधिकांश उत्पादन विषुवतरेखीय जलवायु प्रदेशों में किया जाता है। उष्णार्द्र जलवायु इसके लिए उपयुक्त रहती है। दक्षिण-पूर्वी एशिया, मध्य अफ्रीका एवं ब्राजील में इस प्रकार की जलवायु दशाएँ मिलती हैं।

  1. तापक्रम – रबड़ सदाबहार पौधा होने के कारण उष्ण तापमान में पनपता है। इसके लिए 25° से 30° सेग्रे तापमान आवश्यक होता है, परन्तु 21° सेग्रे से कम तापमान में इसके पौधों का विकास नहीं हो पाता है।
  2. वर्षा – रबड़ के पौधों के लिए अधिक आर्द्रता की आवश्यकता होती है; अत: 200 से 300 सेमी वर्षा उपयुक्त रहती है। इससे कम वर्षा हानिकारक रहती है। वर्षा भी संवाहनिक पद्धति से आवश्यक होती है तथा वर्ष भर समान रूप से होती रहनी चाहिए। नमी के अभाव में वृक्षों का दूध सूख जाता है।

(2) मिट्टी – रबड़ के लिए सामान्य ढाल वाली भूमि होनी चाहिए जिससे उसकी जड़ों में पानी न ठहर सकता हो। उपजाऊ जलोढ़ एवं दोमट मिट्टी से अधिक उत्पादन प्रप्त होता है, दलदली भूमि सर्वथा अनुपयुक्त होती है, क्योंकि इसमें बीमारी का भय बना रहता है।
(3) मानवीय श्रम – रबड़ के बागान लगाने, देखभाल करने तथा वृक्षों से दूध एकत्र करने के लिए अधिक संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इसी कारण रबड़ की कृषि सघन जनसंख्या वाले देशों में की जाती है।

विश्व में रबड़ का उत्पादन
Rubber Production in the World

विश्व में रबड़ के उत्पादन में दक्षिण-पूर्वी एशिया का महत्त्वपूर्ण स्थान है, जहाँ विश्व की 95% रबड़ उत्पन्न की जाती है। विश्व में दो प्रकार की स्क्ड़ उगाई जाती हैं जंगली तथा बागाती। कुल उत्पादन का 2% जंगली तथा 98% बागाती रबड़ होती है। सन् 1950 के बाद रबड़ के उत्पादन में 65% वृद्धि हुई है।

दक्षिण-पूर्वी एशिया में रबड़ का उत्पादन
Production of Rubber in South-East Asia

(1) थाईलैण्ड – विश्व के रबड़ उत्पादन में थाईलैण्ड का प्रथम स्थान है। अधिकांश रबड़ का उत्पादन छोटे कृषकों द्वारा किया जाता है। विश्व की 40% रबड़ का उत्पादन थाईलैण्ड में किया जाता है। प्रायद्वीपीय भागों के दक्षिणी-पश्चिमी छोर पर रबड़ के बागाने लगे हैं। रबड़ के निर्यात से 15% राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है।

(2) इण्डोनेशिया – विश्व रबड़ उत्पादन में इण्डोनेशिया का दूसरा स्थान है। यहाँ विश्व की 35% रबड़ उगाई जाती है। उष्ण जलवायु, उपजाऊ भूमि तथा पर्याप्त वर्षा रबड़ उत्पादन में सहायक सिद्ध हुई। है। निर्यातक वस्तुओं में रबड़ का स्थान दूसरा है। यहाँ पर सभी द्वीपों (जावा, सुमात्रा तथा कालीमन्तन) में रबड़ की कृषि की जाती है। रबड़ की कृषि का विकास डच लोगों द्वारा किया गया था। इण्डोनेशिया में रबड़ के निर्यात से 44% राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है। जावा के दक्षिण, सुमात्रा के मध्यवर्ती एवं कालीमन्तन के तटीय क्षेत्रों में रबड़ के बागान लगाये गये हैं। जकार्ता पत्तन से रबड़ का निर्यात किया जाता है।

(3) मलेशिया – रबड़ के उत्पादन में विश्व में मलेशिया का तीसरा स्थान है, जहाँ कृषि-योग्य भूमि के 2/3 भाग पर रबड़ के बागान हैं। यहाँ विश्व की 12% रबड़ का उत्पादन किया जाता है तथा देश की 42% जनसंख्या रबड़ उत्पादन में लगी है। जोहोर, मलक्का, पेराक, पेनांग, डिडिंगे, सेलागोंर प्रदेश रबड़ के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। मलाया के दक्षिणी तथा पश्चिमी भागों में रबड़ के बागान लगाये गये हैं। रबड़ उत्पादन के लिए इस देश में उपयुक्त जलवायु, उपजाऊ मिट्टी, बागाती कृषि, सस्ता जल यातायात, रेल एवं सड़क-मार्गों का रबड़ क्षेत्रों से सीधा सम्बन्ध, सस्ता श्रम एवं सरकारी प्रोत्साहन जैसी भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्त हैं। सिंगापुर पत्तन द्वारा रबड़ का निर्यात किया जाता है।

(4) भारत – भारत का रबड़ के उत्पादन में चौथा स्थान होने पर भी यह देश रबड़ का आयात करता है। सन् 1955 से रबड़ का आयात बन्द कर दिया गया है, केवल कृत्रिम रबड़ का आयात किया जाता है। केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक तथा बंगाल की खाड़ी में स्थित अण्डमान-निकोबार द्वीप-समूह में रबड़ का उत्पादन किया जाता है। तमिलनाडु राज्य में प्रति हेक्टेयर उत्पादन देश में सर्वाधिक है। यहाँ विश्व की 10% रबड़ पैदा होती है।
दक्षिण-पूर्वी एशिया में रबड़ की कृषि के केन्द्रीकरण के कारण

  1. सघन जनसंख्या तथा सस्ता श्रम
  2. कम कृषि विकास तथा रबड़ के लिए उत्तम जलवायु और अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में रबड़ के मूल्य का ऊँचा होना,
  3. पश्चिमी देशों का प्रबन्ध, तकनीकी एवं बढ़ती हुई माँग तथा
  4. तटीय क्षेत्रों में यातायात की सुविधाएँ तथा 5-6 वर्षों में ही आर्य की प्राप्ति हो जाना।

दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के अतिरिक्त विश्व में रबड़ को उत्पादन ब्राजील (अमेजन बेसिन), लाइबीरिया, नाइजीरिया तथा जेरे आदि देशों में होता है तथा यह इन देशों की दो-तिहाई अर्थव्यवस्था का आधार है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार International Trade
अन्य कृषिगत कच्चे पदार्थों की भाँति प्राकृतिक रबड़ का उत्पादन भी विकासशील देशों में होता है, जब कि इसकी अधिकांश खपत उन्नतशील देशों में है। अत: इसका उपयोग 10% से भी कम उत्पादक देशों में तथा 90% से अधिक भाग निर्यात कर दिया जाता है। प्राकृतिक रबड़ का निर्यात मलेशिया, इण्डोनेशिया, थाईलैण्ड एवं फिलीपीन्स देशों में किया जाता है।

प्राकृतिक रबड़ का सबसे बड़ा आयातक संयुक्त राज्य अमेरिका है। इसके अतिरिक्त जापान एवं यूरोपीय देश प्रमुख स्थान रखते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, कनाडा तथा यूरोपीय देशों में कृत्रिम रबड़ का उत्पादन बढ़ता जा रहा है जिससे प्राकृतिक रबड़ की माँग पर प्रभाव पड़ा है।

प्रश्न 8
जूट की कृषि के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाओं का वर्णन करते हुए विश्व में जूट उत्पादक देशों के नाम बताइए। (2008)
उत्तर
जूट एक रेशेदार एवं मुद्रादायिनी कृषि उपज है। यह एक पौधे के तने पर छाल के नीचे से प्राप्त होता है। अनुमान किया जाता है कि सन् 1743 में चीन में जूट के रेशे का उपयोग किया जाता था। बंगाल में जूट के बोरे बनाने का उल्लेख 16वीं तथा 17 वीं शताब्दी में मिलता है तथा सम्भावना व्यक्त की गयी है कि भारत से ही जूट का पौधा अन्य देशों में फैला। इसकी कृषि देश के उन्हीं क्षेत्रों में विकसित हुई। है, जहाँ पर मिट्टी एवं जलवायु चीन के समान थी। जूट से प्राप्त रेशे से टाट, बोरे, सुतली, कालीन, पैकिंग करने के वस्त्र तथा अन्य मोटे प्रकार के वस्त्र आदि वस्तुएँ बनायी जाती हैं। इस प्रकार इसके औद्योगिक महत्त्व को देखते हुए इसे स्वर्णिम रेशा नाम दिया गया है।

जूट के लिए भौगोलिक दशाएँ
Geographical Conditions for Jute

(1) जलवायु – जूट मानसूनी जलवायु की उपज है। यह उष्णाई प्रदेशों का पौधा है, परन्तु सभी उष्णार्द्र प्रदेशों में नहीं उगाया जाता।

  1. तापमान – जूट की कृषि के लिए उच्च तापमान होना आवश्यक है। इसके लिए 27° से। 37° सेग्रे तापमान उपयुक्त रहता है। स्वच्छ आकाश एवं तेज धूप इसकी फसल के लिए अधिक उपयुक्त रहती है।
  2. वर्षा – जूट के पौधे के विकास के लिए 180 से 250 सेमी वार्षिक वर्षा अधिक उपयुक्त रहती है। यदि वर्षा एवं धूप बारी-बारी से मिलती रहें तो इसके पौधे का विकास तीव्रता से होता है, परन्तु खेतों में जल हर समय भरा रहना चाहिए।

(2) मिट्टी – जूट चिकनी मिट्टी से लेकर बलुई-दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है, परन्तु नदियों के बाढ़ वाले मैदानों तथा क्षारयुक्त मिट्टी में इसका उत्पादन सरलता से किया जा सकता है। इसी कारण डेल्टाई भागों की नवीन कांप मिट्टी में इसकी कृषि अधिक की जाती है। जूट का पौधा मिट्टी के उर्वरक तत्त्वों का शोषण अधिक करता है; अतः भूमि को समय-समय पर रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता पड़ती है।

(3) धरातल – जूट के पौधों को अपेक्षाकृत ऊँचे खेतों में बोया जाता है। प्रायः इसकी खेती समुद्रतट पर ही होती है। सामान्यत: चावल उत्पन्न करने वाले खेतों में इसे साथ ही उगाया जा सकता है।

(4) मानवीय श्रम – जूट बोने, पौधों की कटाई करने तथा रेशा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इसी कारण एशिया महाद्वीप के सघन जनसंख्या वाले प्रदेशों में इसकी खेती की जाती है।

विश्व में जूट का उत्पादन
Production of Jute in the World

विभाजन से पूर्व भारत विश्व में सर्वाधिक जूट उत्पन्न करने वाला देश था, परन्तु देश के विभाजन के बाद जूट उत्पादन का अधिकांश क्षेत्र बांग्लादेश में चला गया। अत: इसकी कृषि के लिए भारत को पुन: प्रयास करने पड़े। जूट उत्पादन में देश अब आत्मनिर्भर हो गया है तथा विदेशों को निर्यात भी करने लगा है। इस प्रकार जूट उत्पादन का 24.4% भाग बांग्लादेश से, 5.3% चीन से तथा 62.8% भारत से प्राप्त होता है। शेष उत्पादन ब्राजील, हिन्द-चीन, इण्डोनेशिया, ताईवान, नेपाल, जायरे (कांगो गणतन्त्र) से प्राप्त होता है।

(1) भारत – भारत का जूट उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान है, जहाँ विश्व के 62.8% जूट का उत्पादन किया जाता है। गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टाई भाग जूट के उत्पादन के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं। कुल जूट उत्पादन का 90% भाग पश्चिम बंगाल, बिहार एवं असम राज्यों से प्राप्त होता है। गंगा नदी के दक्षिणी मुहाने पर जूट की खेती कम की जाती है, क्योंकि यहाँ पर भूमि नीची होने के कारण जूट उत्पादन के अनुकूल नहीं है। इन राज्यों में उपयुक्त जलवायु के साथ-साथ कुछ अन्य सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. सस्ते एवं कुशल श्रमिक
  2. सिंचाई एवं आवागमन के सस्ते साधन
  3. विश्व बाजार में एकाधिकार
  4. उत्पादकों का परम्परागत अनुभव एवं
  5. सरकारी तथा गैर-सरकारी प्रोत्साहन।

वर्तमान समय में भारत के जूट उत्पादन को कुछ समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है। कुछ देशों में अन्य रेशों का भी प्रचार बढ़ा है; जैसे-रूस एवं अर्जेण्टाइना में सन, फ्लेक्स; कनाडा, अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया में कागज, प्लास्टिक एवं कपड़े से बने बोरों का उपयोग जूट के बोरों के प्रतिस्थापन के रूप में किया जाने लगा है, परन्तु भारत में जूट से बने बोरे अन्य पदार्थों से बने बोरों से अधिक लाभदायक हैं; अतः जूट का उत्पादन भारत के लिए वरदान सिद्ध हुआ है।

(2) बांग्लादेश – जूट के उत्पादन में बांग्लादेश विश्व में 1970 ई० से प्रथम स्थान पर था, परन्तु अब दूसरे स्थान पर हो गया है तथा कुल उत्पादन में इसका भाग कम होता जा रहा है। यहाँ विश्व का एक-चौथाई जूट का उत्पादन ही शेष है। बांग्लादेश में जूट उत्पादन की सभी आवश्यक भौगोलिक सुविधाएँ मिलती हैं, परन्तु अन्य देशों में जूट का उत्पादन प्रारम्भ हो जाने से बांग्लादेश का प्रतिशत विश्व जूट उत्पादन में गिरता जा रहा है। यहाँ जूट के प्रमुख उत्पादक जिले बोगरा, दिनाजपुर, खुलना, जैस्सोर, रंगपुर, देबरा, सिरसागंज, पवना, ढाका, मैमनसिंह एवं फरीदपुर हैं जो मेघना एवं ब्रह्मपुत्र नदियों की बाढ़ों द्वारा प्रभावित हैं। जूट बांग्लादेश की प्रमुख उपज हे तथा राष्ट्रीय आय में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।

(3) चीन – जूट के उत्पादन में चीन विश्व में तीसरे स्थान पर है। यहाँ विश्व का 5.3% जूट पैदा होता है। यहाँ जूट की खेती विस्तृत पैमाने पर की जाने लगी है। चीन में जूट उत्पादन की सभी अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियाँ पायी जाती हैं। दक्षिणी-पूर्वी तटीय क्षेत्रों में जूट यांगटिसीक्यांग एवं सीक्यांग नदियों के डेल्टाई भागों में उगाई जाती है। दक्षिणी-पूर्वी तटीय क्षेत्रों में जूट उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई है तथा चीन में जूट का भविष्य इस क्षेत्र के उत्पादन पर निर्भर करता है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार – जूट का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसकी अधिक माँग कृषि-प्रधान तथा औद्योगिक देशों में रहती है।
भारत से कच्चे जूट का निर्यात बहुत ही कम किया जाता है, बल्कि भारत कच्चे जूट का अधिकांश आयात बांग्लादेश से करता है तथा अपने कारखानों द्वारा माल तैयार कराकर विदेशों को निर्यात कर देता है।
आयातक देश – संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि।
निर्यातक देश – भारत, चीन, बांग्लादेश, थाईलैण्ड, म्यांमार, ब्राजील आदि।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
गेहूँ के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं का प्रमुख स्थान है। गेहूं के कुल उत्पादन के 22% भाग का विश्व-व्यापार किया जाता है। विश्व के कुछ देशों में आवश्यकता से अधिक गेहूं का उत्पादन होता है। तथा कुछ में आवश्यकता से कम; अतः अधिक उत्पादन वाले देश विदेशों को गेहूं का निर्यात करते हैं, जबकि कम उत्पादन वाले देश आयात करते हैं।

प्रश्न 2
ब्राजील के कहवा उत्पादन पर एक टिप्पणी लिखिए। ब्राजील में कहवा उत्पादन विस्तृत रूप में होने के कारण बताइए।
उत्तर
विश्व में कहवा उत्पादन में ब्राजील का प्रथम स्थान है। यहाँ पर कहवा के बागानों को ‘फजेण्डा’ कहते हैं। 19वीं सदी के अन्त तक ब्राजील विश्व का 3/4 कहवा उत्पन्न करता था, परन्तु अन्य देशों में उत्पादन बढ़ जाने के कारण इसका प्रतिशत घटकर लगभग एक-चौथाई (25%) रह गया है। मध्य पर्वतीय ढाल एवं साओपालो कहवा के मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं। इसके अतिरिक्त मिनास-गिरास, पराना, रियो-डि-जेनरो तथा बाहिया राज्य अन्य प्रमुख उत्पादक हैं। इस प्रकार ब्राजील विश्व की सबसे बड़ा कहवा निर्यातक देश बन गया है। ब्राजील में कहवा का उत्पादन विस्तृत रूप में होने के कारण निम्नलिखित हैं –

  1. उत्तम लावा मिट्टी
  2. उत्साहवर्द्धक समुद्री पवनें एवं पाले से सुरक्षा
  3. 900 से 1,000 मीटर के मध्य अनुकूल तापमान वितरण
  4. कहवा विकास हेतु पूर्णतः सरकारी एवं गैर-सरकारी सुविधाएँ तथा
  5. कहवा यातायात, निर्यात व भण्डारण की बन्दरगाहों पर पूर्ण व द्रुतगामी व्यवस्था।

प्रश्न 3
बांग्लादेश में जूट की खेती का विवरण दीजिए तथा वहाँ इसकी पैदावार के उपयुक्त कारण बताइए।
उत्तर
बांग्लादेश विश्व का प्रमुख जूट उत्पादक देश है। विश्व का आधे से भी अधिक जूट यहाँ उत्पन्न किया जाता है। यह इस देश में सबसे महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक एवं विदेशी मुद्रा कमाने वाली फसल है। बांग्लादेश में जूट की उपज के लिए निम्नलिखित दशाएँ उपलब्ध हैं –

  1. गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टाई भाग जूट के लिए उपयुक्त क्षेत्र हैं, जहाँ नदियों द्वारा लाई हुई उपजाऊ मिट्टी जमा होती रहती है।
  2. समस्त बांग्लादेश में 200 सेमी वार्षिक वर्षा का औसत है, जो जूट की उपज के लिए उपयुक्त जल-आपूर्ति करता है।
  3. देश में उष्ण – आर्द्र तापमान (17°C से 37°C) जूट के लिए उपलब्ध है।
  4. बांग्लादेश में सस्ते और कुशल श्रमिक प्रचुर संख्या में उपलब्ध हैं।

उत्पादन क्षेत्र – बांग्लादेश में जूट उत्पादन करने वाले प्रमुख क्षेत्र हैं- मेमनसिंह, नारायण गंज, राजशाही, दिनाजपुर, खुलना, जैस्सोर, बोगरा, रंगपुर, देबरा, सिरसागंज आदि।

प्रश्न 4
रेशे के आधार पर कपास कितने प्रकार की होती है? उत्तर भौगोलिक परिस्थितियों का प्रभाव कपास के रंग तथा रेशे की लम्बाई पर पड़ता है। धागा तैयार करने के लिए रेशे की लम्बाई अधिक महत्त्वपूर्ण होती है, इसलिए रेशा ही कपास की किस्म का आधार बन गया है। रेशे के आधार पर कपास निम्नलिखित प्रकार की होती है –

  1. लम्बे रेशे वाली कपास – इसका रेशा 3 सेमी से 6.45 सेमी तक लम्बा होता है। यह सबसे अच्छी कपास कहलाती है। इसे ‘समुद्र-द्वितीय कपास’ (Sea Island Cotton) भी कहते हैं। उत्तरी अमेरिका में फ्लोरिडा, जार्जिया तथा कैरोलिना, ऑस्ट्रेलिया, मिस्र तथा फिजी द्वीपों में यह कपास अधिक उत्पन्न की जाती है।
  2. मध्य रेशे वाली कपास – इस कपास का रेशा 2 से 3 सेमी लम्बा होता है। इसका रेशा रेशम की भाँति चमकीला होता है। यह कपास उत्तरी अमेरिका, मिस्र, मैक्सिको, ब्राजील, पीरू, रूस, चीन, अर्जेण्टाइना आदि देशों में उगाई जाती है।
  3. छोटे रेशे वाली कपास – यह उपर्युक्त दोनों से घटिया होती है। इसके रेशे की लम्बाई 2 सेमी से भी कम होती है। इसका उत्पादन मुख्यतः भारत, चीन, बांग्लादेश, ब्राजील आदि में होता है।

प्रश्न 5
मिस्र में कपास की खेती के लिए उत्तरदायी किन्हीं दो प्रमुख कारकों की समीक्षा कीजिए।
या
कपास की खेती के लिए चार उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर
मिस्र में कपास की खेती के लिए दो प्रमुख उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं –

  1. उपयुक्त जलवायु – कपास के लिए उष्ण तथा कम आर्द्र जलवायु अपेक्षित है। उगते समय 20° से 25° सेग्रे तथा पकते समय 25° से 35° सेग्रे तापमान तथा लगभग सात महीनों तक पालारहित मौसम आवश्यक है। ये दशाएँ मिस्र में उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त समुद्री पवनें कपास की खेती के लिए उत्तम सिद्ध होती हैं। पकते समय खुली धूप, स्वच्छ आकाश, तेज गर्मी भी प्राप्त होती है।
  2. उर्वर जलोढ़ (कांप) मिट्टियाँ – कपास के पौधे के लिए लावा निर्मित उपजाऊ काली मिट्टी रहती है, क्योंकि इसमें नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है। सर्वश्रेष्ठ कैल्सियम, फॉस्फोरस एवं मैग्नीशियम आदि लवणों से युक्त मिट्टी उपयुक्त रहती है। नील नदी की घाटी तथा डेल्टा की उर्वर जलोढ़ मिट्टियाँ कपास के लिए आदर्श हैं। कपास के लिए समतल तथा सुप्रवाहित धरातल आवश्यक है, जो नील नदी के मैदान में प्राप्त है।
  3. वर्षा – कपास के पौधे के लिए 75 से 100 सेमी पर्याप्त वर्षा की आवश्यकता रहती है, परन्तु इसका पानी रुकना नहीं चाहिए। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  4. मानवीय श्रम – कपास को बोने, निराई-गुड़ाई, चुनने आदि के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। कपास चुनने का कार्य स्त्रियों एवं बच्चों द्वारा कराया जाना अधिक उपयुक्त रहता है।

प्रश्न 6
दक्षिण-पूर्वी एशिया में चावल की खेती के लिए उत्तरदायी दो प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
दक्षिण-पूर्वी एशिया में विश्व का 60% चावले उत्पादन होता है। इसके लिए उत्तरदायी दो प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं –

  1. यहाँ मानसूनी तथा उष्णार्द्र जलवायु मिलती है। चावल की खेती के लिए उपयुक्त तापमान (20° से 27° सेग्रे तक) तथा पर्याप्त वर्षा (औसत रूप से 100 सेमी या अधिक) प्राप्त होती है।
  2. इन देशों की नदी-घाटियों एवं डेल्टाओं में उर्वर जलोढ़ मिट्टियाँ पायी जाती हैं, जो चावल की खेती के लिए आदर्श हैं। घने बसे क्षेत्र होने के कारण सस्ता तथा प्रचुर श्रम भी उपलब्ध होता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
गेहूँ किस जलवायु प्रदेश की उपज है?
उत्तर
गेहूँ शीतोष्ण जलवायु प्रदेश की उपज है।

प्रश्न 2
चावल की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी उपयक्त है?
उत्तर
चावल की खेती के लिए चिकनी अथवा गहरी चिकनी मिट्टी अधिक उपयुक्त है।

प्रश्न 3
चावल की खेती के लिए किस प्रकार की खाद देना आवश्यक है?
उत्तर
चावल की खेती के लिए हरी खाद अथवा रासायनिक खाद देना आवश्यक होता है।

प्रश्न 4
विश्व का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश कौन-सा है?
उत्तर
विश्व का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश चीन है।

प्रश्न 5
व्यावसायिक फसलों के नाम बताइए।
उत्तर
व्यावसायिक फसलों के अन्तर्गत गन्ना, कपास, जूट व रबड़ की फसलें आती हैं।

प्रश्न 6
विश्व के प्रमुख पेय-पदार्थ कौन-कौन से हैं?
उत्तर
विश्व के प्रमुख पेय-पदार्थ हैं-चाय, कहवा, कोको और तम्बाकू।

प्रश्न 7
कहवा का जन्म किस देश में हुआ?
उत्तर
कहवा का जन्म अबीसीनिया देश में हुआ।

प्रश्न 8
कहवे का पौधा कितनी ऊँचाई पर उत्पन्न किया जा सकता है?
उत्तर
कहवे का पौधा 1,500 मीटर की ऊँचाई तक उत्पन्न किया जा सकता है।

प्रश्न 9
चाय का पौधा कैसे तैयार किया जाता है एवं इसकी बुआई कब होती है?
उत्तर
चाय का पौधा बीज से तैयार किया जाता है एवं इसकी बुआई अक्टूबर से मार्च तक की जाती है।

प्रश्न 10
विश्व के किन्हीं दो जूट उत्पादक देशों के नाम बताइए। [2011, 12]
या
जूट उत्पादन के दो प्रमुख देशों के नाम बताइए। [2014, 16]
उत्तर

  1. भारत तथा
  2. बांग्लादेश।

प्रश्न 11
विश्व के किन्हीं दो प्रमुख चाय उत्पादक देशों के नाम लिखिए। [2011, 13, 14]
उत्तर

  1. भारत तथा
  2. श्रीलंका।

प्रश्न 12
संयुक्त राज्य अमेरिका की दो शस्य पेटियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. गल्फ तटीय क्षेत्र तथा
  2. उत्तरी व दक्षिणी डकोटा।

प्रश्न 13
चीन की दो प्रमुख फसलों के नाम बताइए। [2011]
उत्तर

  1. कपास तथा
  2. गेहूँ।

प्रश्न 14
विश्व के रबर उत्पादक दो प्रमुख देशों के नाम लिखिए। (2007, 12, 14, 16)
उत्तर

  1. थाईलैण्ड, तथा
  2. इण्डोनेशिया।

प्रश्न 15
विश्व के दो प्रमुख कहवा उत्पादक देशों के नाम बताइए। [2012, 13]
उत्तर

  1. ब्राजील तथा
  2. कोलम्बिया।

प्रश्न 16
विश्व का सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश कौन-सा है?
उत्तर
विश्व का सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश भारत है।

प्रश्न 17
गन्ने की फसल तैयार होने में कितना समय लगता है?
उत्तर
गन्ने की फसल वार्षिक फसल मानी जाती है। इसे तैयार होने में 8 से 12 महीने लग जाते हैं।

प्रश्न 18
कपास पौधे के किस अंग से प्राप्त होती है?
उत्तर
कपास के पौधे के फूल (डोडो) से कपास प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 19
रबड़ के वृक्ष का नाम बताइए।
उत्तर
रबड़ के वृक्ष का नाम हैविया, ब्रेसिलियेन्सिस अथवा पारा है जो अमेजन बेसिन के जंगलों में प्राकृतिक अवस्था में पैदा होता है।

प्रश्न 20
जूट के लिए कितने तापमान की आवश्यकता होती है?
उत्तर
जूट की कृषि के लिए 27° सेग्रे से 37° सेग्रे तापमान अधिक उपयुक्त रहता है।

प्रश्न 21
विश्व के कपास उत्पादन के दो प्रमुख देशों के नाम लिखिए। [2010, 13]
उत्तर

  1. चीन तथा
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका।

प्रश्न 22
किन्हीं दो प्रमुख व्यापारिक फसलों के नाम लिखिए। [2007]
उत्तर

  1. कपास तथा
  2. चुकन्दर।

प्रश्न 23
ब्राजील की किन्हीं दो व्यावसायिक फसलों का उल्लेख कीजिए। (2007)
उत्तर

  1. गन्ना तथा
  2. कवा।

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
निम्नलिखित में से किस देश की भौगोलिक दशाएँ गन्ने की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं? [2011]
(क) ब्राजील
(ख) भारत
(ग) क्यूबा
(घ) इण्डोनेशिया
उत्तर
(क) ब्राजील।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से किस देश की भौगोलिक परिस्थितियाँ चाय की खेती के लिए सर्वाधिक अनुकूल हैं? [2016]
या
निम्नलिखित में से चाय का सर्वाधिक उत्पादक देश कौन है? [2012]
(क) कनाडा
(ख) चिली
(ग) श्रीलंका
(घ) चीन
उत्तर
(घ) चीन।

प्रश्न 3
कहवा प्राप्त किया जाता है –
(क) पौधे की पत्तियों से
(ख) पौधे की जड़ों से
(ग) बीजों को पीसकर
(घ) पौधों को पीसकर
उत्तर
(ग) बीजों को पीसकर।

प्रश्न 4
निम्नलिखित में से किस देश की भौगोलिक परिस्थितियाँ रबर उत्पादन के लिए सर्वाधिक अनुकूल हैं?
(क) इण्डोनेशिया
(ख) चीन
(ग) संयुक्त राज्य अमेरिका
(घ) अर्जेण्टाइना
उत्तर
(क) इण्डोनेशिया।

प्रश्न 5
निम्नलिखित में से किस देश की भौगोलिक परिस्थितियाँ रबर की बागाती खेती के लिए सर्वाधिक अनुकूल हैं? (2011)
(क) अर्जेण्टाइना
(ख) चीन
(ग) फ्रांस
(घ) मलेशिया
उत्तर
(घ) मलेशिया।

प्रश्न 6
निम्नलिखित में से कौन-सा देश कहवा का प्रमुख उत्पादक है – [2010, 12, 13, 14, 15]
(क) फ्रांस
(ख) भारत
(ग) मिस्त्र
(घ) ब्राजील
उत्तर
(घ) ब्राजील।

प्रश्न 7
निम्नलिखित में से किस देश की भौगोलिक दशाएँ कहवा की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं?
(क) अर्जेण्टाइनो
(ख) संयुक्त राज्य अमेरिका
(ग) ब्राजील
(घ) मिस्र
उत्तर
(ग) ब्राजील।

प्रश्न 8
निम्नलिखित में से कौन-सा देश कपास के उत्पादन में अग्रणी है? [2012]
(क) चीन
(ख) रूस
(ग) भारत
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका
उत्तर
(क) चीन।

प्रश्न 9
निम्नलिखित में से कौन-सा विश्व में रबड़ उत्पादक देश है? (2008)
(क) इण्डोनेशिया
(ख) थाईलैण्ड
(ग) मलेशिया
(घ) ब्राजील
उत्तर
(ख) थाईलैण्ड।

प्रश्न 10
निम्नलिखित में से कौन-सा देश गेहूँ का सर्वाधिक उत्पादक देश है? (2010, 11, 13)
(क) भारत
(ख) चीन
(ग) कनाडा
(घ) ऑस्ट्रेलिया
उत्तर
(ख) चीन।

प्रश्न 11
निम्नलिखित में से कौन-सा देश विकसित है? [2012]
(क) ब्राजील
(ख) डेनमार्क
(ग) इराक
(घ) भारत
उत्तर
(क) ब्राजील।

प्रश्न 12
निम्नलिखित में से कौन एक खाद्यान्न नहीं है? [2013]
(क) धान
(ख) गेहूँ।
(ग) चाय
(घ) मक्का
उत्तर
(ग) चाय।

प्रश्न 13
संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रमुख महत्त्वपूर्ण आर्थिक पेटी है – [2013]
(क) गेहूँ पेटी
(ख) मक्का पेटी
(ग) कपास पेटी
(घ) तम्बाकू पेटी
उत्तर
(ग) कपास पेटी।

प्रश्न 14
आय का प्रमुख निर्यातक देश है – [2013]
(क) भारत
(ख) ब्राजील
(ग) मैक्सिको
(घ) पाकिस्तान
उत्तर
(ग) मैक्सिको।

प्रश्न 15
निम्नलिखित में से कौन एक खाद्यान्न है?
(क) चाय
(ख) कहवा
(ग) धान
(घ) रबर
उत्तर
(ग) धान।

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UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 9 चतुरश्चौरः

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 9
Chapter Name चतुरश्चौरः
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 9 चतुरश्चौरः

अवतरणों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1) आसीत् …………………………. विचक्षणाः।।
संवर्द्धनञ्च साधूनां ………….. नीति-विचक्षणाः।।

[तत्रैकदा (तत्र +एकदा) = वहाँ एक बार। चोरयन्तः = चुराते हुए। चत्वारः चौराः = चार चोर। सन्धिद्वारि = सेंध के मुहाने पर प्रशास्तृपुरुषैः = सिपाहियों के द्वारा घातकपुरुषान् = जल्लादों
(वधिकों) को। आदिष्टवान =आज्ञा दी। विमर्दनम् = दमन करना। बुधाः = विद्वानों ने। प्राहुः = कहा है। | दण्डनीति- विचक्षणाः = दण्डनीति में कुशल। ]

सन्दर्भ – यह गद्यखण्ड हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘चतुरश्चौरः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

[ विशेष – इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

अनुवाद – काञ्ची नाम की राजधानी थी। वहाँ सुप्रताप नाम का राजा (राज्य करता) था। वहाँ एक बार किसी धनी का धन चुराते हुए चार चोरों को सेंध के मुख पर सिपाहियों ने जंजीर से बाँधकर राजा से निवेदन किया (राजा के सामने उपस्थित किया और कहा कि इन चारों को सेंध के द्वार पर पकड़ा है। आदेश दें कि क्या दण्ड दिया जाए।) और राजा ने वधिकों (जल्लादों) को आदेश दिया-अरे वधिको! इन्हें ले जाकर मार दो;
क्योंकि

दण्डनीति में कुशल विद्वानों ने सज्जनों की वृद्धि (उन्नति) और दुष्टों के दमन को ही राजधर्म (राजा का कर्तव्य) कहा है।

(2) ततो राजाज्ञया ……………………… नरः।
‘प्रत्यासन्नेऽपि मरणे ……………………. प्रतीकारपरो नरः।

[ राजाज्ञया = राजा की आज्ञा से। शूलम् आरोष्य हताः = सूली पर चढ़ाकर मार दिये गये। प्रत्यासन्नेऽपि = निकट होने पर भी। विधीयते = मारा जाता हुआ। भूभुजा = राजा द्वारा प्रत्यायाति = वापस लौट आता
है। प्रतीकारपरः = उपाय करने में लगा।]

अनुवाद – तब राजा की आज्ञा से तीन चोर सूली पर चढ़ाकर मार दिये गये। चौथे ने सोचामृत्यु निकट होने पर भी (मनुष्य को अपनी) रक्षा का उपाय करना चाहिए। उपाय के सफल होने पर रक्षा हो जाती है (और) निष्फल (व्यर्थ) होने पर मृत्यु से अधिक (बुरा तो) और कुछ (होने वाला) नहीं। रोग से पीड़ित होने या राजा द्वारा मरवाये जाने पर भी मनुष्य यदि (अपने बचाव के) उपाय में तत्पर हो, तो यम के द्वार से (मृत्यु के मुख से) भी लौट आता है।

(3) चौरोऽवदत् ………………………. तिष्ठतु।

[ राजाज्ञया (राजा +आज्ञया) = राजा की आज्ञा से राजसन्निधानं कृत्वा = राजा के पास ले जाकर। यतोऽहमेकाम् (यतः + अहम् + एकाम्) – क्योंकि मैं एक मर्त्यलोके = पृथ्वी पर, संसार में।]

अनुवाद – चोर बोला-“अरे वधिको! तीन चोर तो तुम लोगों ने राजा की आज्ञा से मार ही दिये, किन्तु मुझे राजा के पास ले जाकर मारना; क्योंकि मैं एक महती (बड़ी महत्त्वपूर्ण) विद्या जानता हूँ। मेरे मरने पर वह विद्या लुप्त हो जाएगी। राजा उस (विद्या) को लेकर (सीखकर) मुझे मार दे, जिससे वह विद्या मृत्युलोक (पृथ्वी) में तो रह जाये।

(4) घातका अब्रुवन् …………………….. दातव्या।

[ पापपुरुषाधम = पापी, नीच। किमपरं जीवितुमिच्छसि ? (किम् +अपरम् +जीवितुम् +इच्छसि) = क्या अभी और जीना चाहता है ? पूजयितव्या = सम्मानित होगी। ज्ञातुमिच्छति (ज्ञातुम् + इच्छति) = जानना चाहता है। गृह्णातु – ग्रहण करे। दातव्या = देने योग्य।]

अनुवाद – वधिक बोले-“अरे चोर! पापी! नीच! तू वधस्थल (मारने के स्थान) पर लाया जा चुका है। क्या अभी और जीना चाहता है ? कौन-सी विद्या जानता है ? तुझ नीच की विद्या भेला राजा द्वारा क्यों सम्मानित होगी?” चोर बोला, “अरे वधिको! क्या कह रहे हो ? राजकार्य में विघ्न डालना चाहते हो ? तुम लोग जाकर निवेदन कर दो। राजा यदि जानना चाहे तो वह विद्या ले ले (सीख ले)। उसे (उस विद्या को) भला मैं तुम लोगों को कैसे दे दें ?”

(5) ततश्चौरस्य …………………. वप सुवर्णम्।
ततश्चौरस्य वचनैः ……………………. पश्यतु।
देव ! सर्षप …………………….. वप सुवर्णम्।
राजा च सकौतुकं ………………. वप सुवर्णम्।
ततश्चौरस्य वचनैः ……………. संख्याकानि भवन्ति।

[ राजकार्यानुरोधेन (राजकार्य + अनुरोधेन) = राजकाज (राजा के काम) के महत्व को समझते हुए। सकौतुकम् = कुतूहलपूर्वका सर्षपपरिमाणानि = सरसों के (दाने के) बराबर। उप्यन्ते = बोये जाते हैं। कन्दल्यों – अंकुर। रक्तिकामात्रेण = रत्ती भर पल = 4 कर्ष की एक प्राचीन तौल। एक कर्ष 16 माशे या 80 रत्ती के बराबर था। इस प्रकार पल 64 माशे (या 320 रत्ती) के बराबर था। यहाँ ‘बहुसंख्यक’ से आशय है। पुरतः = सामने। कस्यासत्यभाषणे (कस्या + असत्यभाषणे) = किसकी झूठ बोलने में। व्यभिचरितम्-झूठ हो। ममाप्यन्तो (मम +अपि +अन्तः) = मेरा भी अन्त (या मृत्यु)। वप = बोओ।]

अनुवाद – इसके पश्चात् चोर की बात से और राजा के कार्य के महत्त्व से उन्होंने वह बात राजा से निवेदित की। राजा ने कुतूहलपूर्वक चोर को बुलाकर पूछा—“अरे चोर! कौन-सी विद्या जानते हो ?’ चोर बोला, “महाराज, सरसों के बराबर सोने के बीज बनाकर भूमि में बोये जाते हैं। महीने भर में ही (उनमें) अंकुर और फूल आ जाते हैं। वे फूले सोने के ही होते हैं। रत्तीभर बीज से बहुसंख्या (या बहुत परिमाण में) हो जाते हैं। उसे महाराज स्वयं देख लें।” राजा ने कहा, “चोर! क्या यह सच है ?” चोर बोला, “महाराज के सामने झूठ बोलने की किसमें शक्ति है ? यदि मेरी बात झूठ निकले तो महीनेभर बाद मेरा अन्त (मृत्यु) हो ही जाएगा।” राजा बोला, “भद्र ( भले आदमी)! सोना बोओ।”

(6) ततश्चौरः ………………….. किं न वपति ?
ततश्चौरः सुवर्णः ……………….. स वपतु।

[ ततश्चौरः (ततः + चौरः) = तब चोर ने। दाहयित्वा = तपाकर। परमनिगूढस्थाने = बड़े गुप्त (सुरक्षित) स्थान में। भूपरिष्कारं कृत्वा = जमीन साफ करके। वप्ता = बोने वाला। ]

अनुवाद – तब चोर ने सोने को तपाकर सरसों (के दानों) के बराबर बीज बनाकर राजा के अन्त:पुर के क्रीड़ा सरोवर के किनारे अत्यधिक सुरक्षित स्थान में भूमि साफ करके कहा, “महाराज, खेत और बीज तैयार हैं, कोई बोने वाला दीजिए।” राजा ने कहा, “तुम्हीं क्यों नहीं बोते ?” चोर बोला, “महाराज, यदि सोना बोने का मेरा ही अधिकार होता तो मैं इस विद्या से (अर्थात् इस विद्या के रहते) दु:खी (दरिद्र) क्यों होता ? किन्तु चोर को सोना बोने का अधिकार नहीं है। जिसने कभी कोई चोरी न की हो, वह बोये। महाराज (आप) ही क्यों नहीं बोते ?’

(7) राजाऽवदत् ……………………. चोरिताः।

[ तातचरणानाम् = पूज्य पिताजी का। राजोपजीविनः (राजा +उपजीविनः) = राजा के आश्रित, सेवक। कथमस्तेयिनो (कथम् + अस्तेयिनः) = कैसे चोरी न करने वाले (होंगे)। स्तेय = चोरी। स्तेयी = चोर।
अस्तेयी = जो चोर न हो।]

अनुवाद – राजा ने कहा-“मैंने चारणों ( भाटों) को देने के लिए पूज्य पिताजी का धन चुराया था।” चोर बोला, “तब मन्त्री लोग बोयें।’ मन्त्रियों ने कहा, “हम राजा के सेवक (या आश्रित) हैं। भला चोरी न करने वाले कैसे हो सकते हैं ?” तो चोर बोला, “तब धर्माधिकारी (न्यायाधीश) बोये।” धर्माधिकारी ने कहा-“मैंने बाल्यावस्था में माता के लड्डू चुराये थे।”

(8) चौरोऽवदत् ……………………. वल्लभतां गतः।
चौरोऽवदत् …………………….. स्वसन्निधाने धृतः।।

[ मारणीयोऽस्मि (मारणीयः + अस्मि) = मारने योग्य हैं। हसितवन्तः = हँसे। हास्यरसापनीतक्रोधो (हास्यरस +अपनीत + क्रोधः) – हँसी से क्रोध दूर होने पर। सन्निधाने = समीप। प्रस्तावे = (उपयुक्त) अवसर पर खेलयतु = खिलाये (मनोरंजन करे)| समुच्छिद्य = काटकर वल्लभताम् = प्रेम को। गतः = प्राप्त हुआ। ]

अनुवाद – चोर बोला, “यदि तुम सभी चोर हो, तो अकेला मैं ही मारने योग्य क्यों हूँ ?’ उस चोर की बात सुनकर सभी सभासद हँस पड़े। राजा भी हँसी के कारण क्रोध दूर हो जाने पर हँसकर बोला, “अरे चोर! तू मारने योग्य नहीं है। हे मन्त्रियो! दुर्बुद्धि (बुरी बुद्धि वाला) होने पर भी यह चोर बुद्धिमान् और हास्यरस में कुशल है। तो (यह) मेरे ही पास रहे, (और उपयुक्त) अवसर पर मुझे हँसाये तथा खिलाये (मेरा मनोरंजन करे)।’ यह कहकर राजा ने उस चोर को अपने समीप रख लिया।
चोर से अधिक नीच और कोई नहीं। वह भी हास्य की विद्या से (हँसाने की कला में निपुण होने से) मृत्यु के फन्दे को काटकर राजा का प्रिय बन गया।

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