UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 10 पुष्य मूति वंश

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प्रश्न 1.
मानचित्र देखकर हर्ष के साम्राज्य विस्तार को लिखिए।
उत्तर :
मानचित्र के अनुसार – हर्ष का साम्राज्य उत्तर में थानेश्वर से लेकर मध्य भारत के साँची तक तथा पूर्व में पुण्ड्रवर्धन से लेकर पश्चिम में बलभी तक फैला हुआ था।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
हर्ष की बहन का क्या नाम था?
उत्तर :
हर्ष की बहन का नाम राज्यश्री था।

प्रश्न 2.
हर्षवर्धन की राजधानी कहाँ-कहाँ थी ?
उत्तर :
हर्षवर्धन जिस समय गद्दी पर बैठा उस समय उसकी राजधानी थानेश्वर थी। बाद में उसने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया।

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प्रश्न 3.
ह्वेनसांग ने हर्ष के विषय में क्या लिखा है ?
उत्तर :
हुवेनसांग ने हर्ष के विषय में लिखा है कि हर्षवर्धन एक प्रजापालक एवं उदार शासक था। उसने जिन राज्यों पर विजय प्राप्त की थी, उन राजाओं ने हर्ष की अधीनता स्वीकार कर ली हर्षवर्धन ने अपने सम्पूर्ण साम्राज्य की व्यवस्था के लिए उसे भुक्तियों (प्रांतों), विषयों (जिलों) तथा ग्रामों में विभाजित किया। उसके शासन में अपराध कम होते थे। अपराध करने वाले को कठोर दण्ड दिया जाता था। हर्ष को बौद्ध (UPBoardSolutions.com) धर्म से लगाव था। उसने कन्नौज में एक विशाल धर्म सभा भी बुलाई थी। वह बहुत दानी था। वह हर पाँच वर्ष में अपनी सारी संचित सम्पत्ति प्रयाग के मेले में दान कर देता था। उन्होंने कहा भारत महान देश हर्ष जैसे लोगों की वजह से ही है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित का उत्तर दो वाक्यों में लिखिए –
(अ) हर्षवर्धन और बौद्ध धर्म
(ब) शिक्षा के संरक्षक के रूप में हर्षवर्धन
उत्तर :
(अ) हर्षवर्धन और बौद्ध धर्म – हर्ष को बौद्ध धर्म से लगाव था। उसने कन्नौज में एक, विशाल धर्म सभा बुलाई।
(ब) शिक्षा के संरक्षक के रूप में हर्षवर्धन – हर्ष विद्वान और कला प्रेमी था। उसने संस्कृत में तीन नाटक – नागानन्द, रत्नावली व प्रियदर्शिका आदि लिखे। नालन्दा विश्वविद्यालय हर्ष के शासन में प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था।

प्रश्न 5.
सत्य और असत्य बताइए –

(अ) हर्षकालीन इतिहास जानने का मुख्य स्रोत चीनी यात्री फाह्यान का विवरण है। (असत्य)
(ब) हर्ष के दरबारी कवि बाणभट्ट थे। (सत्य)
(स) हर्षवर्धन की राजधानी कन्नौज थी। (सत्य)
(द) हर्षवर्धन के भाई का नाम राज्यवर्धन था। (सत्य)

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प्रश्न 6.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
(अ) वर्धनवंश का प्रथम शासक प्रभाकरनवर्धन था।
(ब) हर्षवर्धन ने तीन नाटक

  1. नागानंद
  2. रत्नावली
  3. प्रियदर्शिका कीरचना की।

(स) हर्षचरित्र के लेखक बाणभट्ट हैं।
(द) हर्षवर्धन की मृत्यु 647 ई० में हुई।

प्रोजेक्ट कार्य –
नोट – विद्यार्थी स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 12 केदारनाथ अग्रवाल (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 12 केदारनाथ अग्रवाल (काव्य-खण्ड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

(अच्छा होता)

1. अच्छा होता ……………………………………………………………………… कच्चा होता।

सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘अच्छा होता’ नामक कविता से उधृत की गयी हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि आदमी को एक अच्छा इन्सान बनाने की इच्छा करता है जो स्वार्थ रहित और सदचरित्र हो। क्योंकि आज व्यक्ति का चारित्रिक पतन हो चुका है। वह पूर्णतया स्वार्थी बन गया है। कवि एक स्वस्थ समाज की कल्पना करता है।

व्याख्या – कवि कहता है कि यह देश और समाज के लिए बहुत अच्छा होता जब एक आदमी दूसरे आदमी के हित में काम करता। वह स्वार्थी न होकर परोपकारी होता । उसकी नियति स्वच्छ और साफ होती तो यह देश और समाज के लिए बहुत अच्छा होता। वह स्वार्थी और दागी न होकर नि:स्वार्थी (UPBoardSolutions.com) और निष्कलंक होता तो बहुत बेहतर होता। आगे वह यह भी कहता है कि व्यक्ति को सचरित्र का होना चाहिए। कहीं भी व्यक्ति के चरित्र में खोट नहीं होना चाहिए। क्योंकि एक सद्चरित्रवान व्यक्ति ही अच्छे आचरण का व्यवहार करने में सक्षम है। कवि एक स्वच्छ समाज की कल्पना की है जिसमें जन-साधारण को भी कष्ट न हो।

काव्यगत सौन्दर्य

  • इन पंक्तियों में कवि एक स्वच्छ समाज की कल्पना की है, जो परोपकार एवं नि:स्वार्थपूर्ण हो।
  • भाषा-सहज, स्वाभाविक एवं बोधगम्य।

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2. अच्छा होता ……………………………………………………………………… बराती होता।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘अच्छा होता’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं।

प्रसंग – इन पंक्तियों में भी कवि ने समाज को मानवता का सन्देश दिया है। वह एक भयमुक्त एवं स्वार्थ-रहित समाज की कल्पना करता है।

व्याख्या – कवि कहता है कि यह कितना अच्छा होता कि जब आदमी, आदमी के लिए मर-मिटने को तैयार रहता। आदमी, आदमी के दु:ख-दर्द में शामिल होता। दूसरे का हित करने वाला, दूसरे के सुख-दु:ख को बाँटने वाला व्यक्ति सबको प्रिय होता है। आज आदमी ईमानदारी की धज्जियाँ उड़ा रहा है, ठगी में लिप्त है। चारों तरफ मौत का ताण्डव है। यदि ये सब न होते तो समाज कितना खुशहाल होता । (UPBoardSolutions.com) समाज में अमन-चैन कायम हो जाता समाज में आज इतनी ठगी है, हिंसा एवं रक्तपात है जिसके चलते एक स्वच्छ समाज की कल्पना साकार नहीं हो सकती है।

काव्यगत सौन्दर्य

  • प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मानवता का संदेश दिया है। मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में, ”वही मनुष्य, मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।”
  • भाषा-सरल एवं बोधगम्य।

(सितार-संगीत की रात)
1. आग के ओंठ ……………………………………………………………………… चन्द्रमा के साथ।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘सितार-संगीत की रात’ शीर्षक से उद्धृत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में सितार की बोल का वर्णन है।

व्याख्या – कवि कहता है कि सितार की ध्वनि जब निकलती है तो शहदयुक्त पंखुड़ियाँ खुलती चली जाती हैं। अँगुलियाँ नृत्य करने लगती हैं। रात के खुले आसमान पर चन्द्रमा के साथ जो ध्वनियाँ निकलती हैं, वह अत्यन्त मोहक होती हैं। कवि ने अग्निवत ओंठ के बोल की तुलना सितार के बोल से की है।

2. शताब्दियाँ ……………………………………………………………………… विचरण करती हैं।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘सितार-संगीत की रात’ शीर्षक से उद्धृत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में संगीत का वर्णन है।

व्याख्या – कवि कहता है कि अनंत आकाश की खिड़कियों से मानो शताब्दियाँ झाँक रही हों। संगीत के इस समारोह में कौमार्य झलकता है। हर्ष रूपी हंस मानो दूध पर तैर (UPBoardSolutions.com) रहा है। ऐसा मालूम पड़ रहा है जैसे धरती की सरस्वती हंस पर सवार होकर काव्य लोक में भ्रमण कर रही हैं।

प्रश्न 2.
केदारनाथ अग्रवाल की जीवनी एवं रचनाओं का परिचय दीजिए।
अथवा केदारनाथ की साहित्यिक सेवाओं एवं भाषा-शैली का उल्लेख कीजिए।

केदारनाथ अग्रवाल)
(स्मरणीय तथ्)

जन्म – 1 अप्रैल, सन् 1911 ई०।
मृत्यु – 22 जून, सन् 2000 ई०
जन्म – स्थान – बाँदा (कमासिन गाँव)।
पिता का नाम – श्री हनुमान प्रसाद
भाषा – सरल-सहज, सीधी-ठेठ।।

जीवन – परिचय-केदारनाथ अग्रवाल हिन्दी प्रगतिशील कविता के अन्तिम रूप से गौरवपूर्ण स्तम्भ थे। ग्रामीण परिवेश और लोकजीवन को सशक्त वाणी प्रदान करनेवाले कवियों में केदारनाथ अग्रवाल विशिष्ट हैं। परम्परागत प्रतीकों को नया अर्थ सन्दर्भ देकर केदार जी ने वास्तुतत्त्व एवं रूपतत्त्व दोनों में नयेपन के आग्रह को स्थापित किया है। अग्रवाल जी प्रज्ञा और व्यक्तित्व-बोध को महत्त्व देनेवाले प्रगतिशील सोच के अग्रणी कवि हैं।

अमर कवि केदारनाथ अग्रवाल बाँदा की धरती में कमासिन गाँव में 1 अप्रैल, 1911 ई० को पैदा हुए। इनकी माँ का नाम घसिट्टो एवं पिता हनुमान प्रसाद थे, जो बहुत ही रसिक प्रवृत्ति के थे। रामलीला वगैरह में अभिनय करने के साथ ब्रजभाषा में कविता भी लिखते थे। केदार बाबू ने काव्य के संस्कार अपने पिता से ही ग्रहण किये थे।

केदार बाबू की शुरुआती शिक्षा अपने गाँव कमासिन में ही हुई कक्षा तीन पढ़ने के बाद रायबरेली पढ़ने के लिए भेजे अये, जहाँ उनके बाबा के भाई गया बाबा रहते थे। छठी कक्षा तक रायबरेली में शिक्षा पाकर, सातवीं-आठवीं की शिक्षा प्राप्त करने के लिए कटनी एवं जबलपुर भेजे गये, वह सातवीं में (UPBoardSolutions.com) पढ़ ही रहे थे कि नैनी (इलाहाबाद) में एक धनी परिवार की लड़की पार्वती देवी से विवाह हो गया, जिसे उन्होंने पत्नी के रूप में नहीं प्रेमिका के रूप में लिया-गया, ब्याह में युवती लाने/प्रेम ब्याह कर संग में लाया।

विवाह के बाद उनकी शिक्षा इलाहाबाद में हुई। नवीं में पढ़ने के लिए उन्होंने इविंग क्रिश्चियन कालेज में दाखिला लिया। इण्टर की पढ़ाई पूरी करने के बाद केदार बाबू ने बी० ए० की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया।

यहाँ उनका सम्पर्क शमशेर और नरेन्द्र शर्मा से हुआ। घनिष्ठता बढ़ी। उनके काव्य संस्कारों में एक नया मोड़ आया। साहित्यिक गतिविधियों में सक्रियता बढ़ी। फलत: वह बी० ए० में फेल हो गये। इसके बाद वकालत पढ़ने कानपुर आये। यहाँ डी० ए० वी० कालेज में दाखिला लिया।

सन् 1937 में कानपुर से तकालत पास करने के बाद सन् 1938 में बाँदा आये इस समय उनके चाचा बाबू मुकुन्द लाल शहर के नामी वकीलों में से थे। उनके साथ रहकर वकालत (UPBoardSolutions.com) करने लगे। वकालत केदार जी के लिए कभी पैसा कमाने का जरिया नहीं रही। कचहरी ने उनके दृष्टिकोण को मार्क्स के दर्शन के प्रति और आधारभूत दृढ़ता प्रदान की।

सन् 1963 से 1970 तक सरकारी वकील रहे। सन् 1972 ई० में बाँदा में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन का आयोजन किया। सन् 1973 ई० में उनके काव्य संकलन, ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं के लिए उन्हें ‘सोवियतलैण्ड नेहरू’ सम्मान दिया गया। 1974 ई० में उन्होंने रूस की यात्रा सम्पन्न की। 1981 ई० में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थाने ने पुरस्कृत एवं सम्मानित किया। 1981 ई० में मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ ने उनके कृतित्व के मूल्यांकन के लिए महत्त्व केदारनाथ अग्रवाल’ का आयोजन किया। 1987 ई० में साहित्य अकादमी’ ने उन्हें उनके ‘अपूर्वा’ काव्य संकलन के लिए अकादमी सम्मान से सम्मानित किया। वर्ष 1990-91 ई० में (UPBoardSolutions.com) मध्य प्रदेश शासन ने उन्हें मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से सम्मानित किया। वर्ष 1986 ई० में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् द्वारा ‘तुलसी सम्मान’ से सम्मानित किया गया। वर्ष 1993-94 ई० में उन्हें बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय ने डी० लिट्० की उपाधि प्रदान की और हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग ने ‘साहित्य वाचस्पति’ उपाधि से सम्मानित किया, 22 जून, 2000 ई० को केदारनाथ अग्रवाल का 90 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया।

रचनाएँ – युग की गंगा (1947), नींद के बादल (1947), लोक और आलोक (1957), फूल नहीं रंग बोलते हैं। (1965), आग का आईना (1970), देश-देश की कविताएँ, अनुवाद (1970), गुल मेंहदी (1978), पंख और पतवार (1979), हे मेरी तुम (1981), मार प्यार की थापें (1981), कहे केदार खरी-खरी (1983), बम्बई का रक्त स्नान (1983), अपूर्वा (1984), बोले बोल अबोल (1985), जो शिलाएँ तोड़ते हैं (1985), जमुन जल तुम (1984), अनिहारी हरियाली (1990), खुली आँखें-खुले डैने (1992), आत्मगन्ध (1986), पुष्पदीप (1994), वसन्त में हुई प्रसन्न पृथ्वी (1996), कुहकी कोयल खड़े पेड़ की देह (1997), चेता नैया खेता (नयी कविताओं का संग्रह, परिमल प्रकाशन, इलाहाबाद)।

गद्य साहित्य – समय-समय पर (1970), विचार बोध (1980), विवेक-विवेचन (1980), यात्रा संस्मरण-बस्ती खिले गुलाबों की (1974), दतिया (उपन्यास, 1985), बैल बाजी मार ले गये (अधूरा उपन्यास) जो साक्षात्कार मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् की पत्रिका में प्रकाशित।

काव्य-भाषा – प्रगितवादी काव्य में जनसाधारण की चेतना को स्वर मिला है, अतः उसमें एक सरसता विद्यमान है। छायावादी काव्य की भाँति उसमें दूरारूढ़ कल्पना की उड़ान नहीं है। प्रायः सभी कवियों ने काव्य-भाषा के रूप में जनप्रचलित भाषा को ही प्रगतिवादी काव्य में अपनाया है परन्तु केदार कुछ मामलों में अन्य कवियों से विशिष्ट हैं। उनकी काव्य-भाषा में जहाँ एक ओर गाँव की सीधी-ठेठ शब्दावली जुड़ (UPBoardSolutions.com) गयी है, वहीं प्राकृतिक दृश्यों की प्रमुखता के कारण भाषा में सरलता और कोमलता है। गाँव की गन्ध, वन-फूलों की महक, आँवई भाषा, सरल जीवन और आसपास के परिवेश को मिलाकर केदारनाथ अग्रवाल ने कविता को प्रगतिशील बौद्धिक चेतना से जोड़े रखकर भी मोहकता बनाये रखी है।

समग्रतः केदारनाथ अग्रवाल सूक्ष्म मानवीय संवेदनाओं, प्रगतिशील चेतना और सामाजिक परिवर्तन के पक्षधर कवि हैं। संवेदनशील होकर कला के प्रति बिना आग्रह रखे वे काव्य की जनवादी चेतना से जुड़े हैं। ‘युग की गंगा’ में उन्होंने लिखा है-”अब हिन्दी की कविता न रस की प्यासी है, न अलंकार की इच्छुक है और न संगीत के तुकान्त की भूखी है।” इन तीनों से मुक्त काव्य का प्रणयन करनेवाले केदारनाथ अग्रवाल के काव्य में रस, अलंकार और संगीतात्मकता के साथ प्रवहमान है और भावबोध एवं गहन संवेदना उनके काव्य की अन्यतम विशेषता है।

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प्रश्न 3.
‘अच्छा होता’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘अच्छा होता’ केदारनाथ अग्रवाल की चर्चित कविता है। प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि ने समाज में अमन-चैन एवं सच्ची मानवता की कामना की है। कवि कहता है कि व्यक्ति को व्यक्ति के सुख-दु:ख में साथ रहना चाहिए मनुष्य को मनुष्य के कष्ट में भागीदार होना चाहिए। व्यक्ति को नि:स्वार्थ (UPBoardSolutions.com) होकर अपनी नियति को साफ रखना चाहिए। सच्चे आचरण वाला होना चाहिए। आदमी को ईमानदार एवं जनप्रिय होना चाहिए। आदमी को ठगी एवं हिंसा में लिप्त नहीं होना चाहिए। तभी एक स्वच्छ समाज की कल्पना की जा सकती है। यदि व्यक्ति एवं समाज का भला होगा तो राष्ट्र भी उन्मति के पथ पर अग्रसर होगा।

प्रश्न 4.
‘सितार-संगीत की रात’ कविता का सारांश एवं मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘सितार-संगीत की रात’ समकालीन कवि केदारनाथ अग्रवाल की चर्चित रचना है। कवि कहता है कि सितार की ध्वनि जब निकलती है तो हर्ष एवं उल्लास का माहौल छा जाता है। (UPBoardSolutions.com) शहद से परिपूर्ण पंखुड़ियाँ खुलती चली जाती हैं। अँगुलियाँ जब सितार पर थिरकती हैं तो ऐसा मालूम पड़ता है जैसे वे नृत्य कर रही हैं। हर्ष रूपी हंस दूध पर तैरने लगता है जिस पर सवार होकर सरस्वती काव्यलोक में भ्रमण करती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘अच्छा होता’ में कवि ने मनुष्य की किन विशेषताओं को उजागर किया है?
उत्तर :
‘अच्छा होता’ कविता में कवि ने मनुष्य की सचरित्रता, ईमानदारी एवं नि:स्वार्थ जैसी विशेषताओं को उजागर किया है।

प्रश्न 2.
‘सितार-संगीत की रात’ कविता के आधार पर संगीत के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सितार के बोल जब बोलते हैं तो शहद से युक्त पंखुड़ियाँ खुल जाती हैं। हर्ष रूपी हंस दूध पर तैरने लगता है, जिस हंस पर सवार होकर सरस्वती काव्य लोक में विचरण करती हैं।

प्रश्न 3.
‘शहद की पंखुड़ियों’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
शहद की पंखुड़ियों से कवि का आशय है-ऐसी पंखुड़ियाँ जो शहद से भरी हुई हैं।

प्रश्न 4.
‘शताब्दियाँ झाँकती हैं’ कवि के इस कथन में छिपे भाव की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
‘शताब्दियाँ झाँकती हैं’ का अर्थ है-ऐसे तथ्य जो बरसों पहले घटित हुए हों, उनकी स्पष्ट झाँकी झलकती है।

प्रश्न 5.
‘हृदय की थाती’ का आशय समझाइए।
उत्तर :
हृदय की थाती का आशय है-हृदय को प्रिय

प्रश्न 6.
‘चरित्र का कच्चा’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
चरित्र का कच्चा का तात्पर्य है-चरित्रहीन मनुष्य को सचरित्र होना चाहिए जिससे वह मानवीय आचरण कर सके।

प्रश्न 7.
‘कौमार्य बरसता है’ शब्दों द्वारा कवि क्या बताना चाहता है?
उत्तर :
कुँआरापन झलकता है।

प्रश्न 8.
‘मौत का बाराती’ कहने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
आज समाज में हिंसा एवं रक्तपात मचा हुआ है। बेगुनाह लोग मारे जा रहे हैं। कवि को आशंका है कि यह सम्पूर्ण समाज कहीं मौत का बराती न बन जाय।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
केदारनाथ अग्रवाल किस काल के कवि हैं?
उत्तर :
आधुनिक (समकालीन) काल के।

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प्रश्न 2.
केदारनाथ अग्रवाल मूलतः कवि हैं या लेखक?
उत्तर :
कवि।

प्रश्न 3.
केदारनाथ अग्रवाल किस धारा के कवि हैं?
उत्तर :
समकालीन धारा के।

प्रश्न 4.
‘अच्छा होता’ कविता में ‘ठगैता ठाकुर’ को अर्थ क्या है?
उत्तर :
वर्तमान समाज में ठगी का बोलबाला है। आदमी आदमी को ही ठगने में लगा हुआ है। वह अपनी सारी दिगामी ऊर्जा दूसरे को परेशान करने में लगा रहा है।

प्रश्न 5.
‘हर्ष का हंस’ में अलंकार बताइए।
उत्तर :
अनुप्रास अलंकार।

प्रश्न 6.
‘अच्छा होता’ कविता कवि के किस काव्य में संकलित है?
उत्तर :
अपूर्वा में।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (✓) का चिह्न लगाइए
(अ) अच्छा होता’ कविता में कवि ने नैतिक मनुष्य की अभिलाषा की है। (✓)
(ब) ‘अच्छा होता’ कविता में कवि ने मनुष्य को ठगैत ठाकुर बताया है। (✗)
(स) दगैल-दागी मनुष्य ही नियति का सच्चा होता है। (✗)
(द) अनंत की खिड़कियों से शताब्दियाँ झाँकती हैं। (✓)

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
(अ) अगर आदमी आदमी के लिए।
(ब) राग पर राग करते हैं किलोल।
(स) संगीत के समारोह में कौमार्य बरसता है।
(द) हर्ष का हंस दूध पर तैरता है।
उत्तर :
(अ) काव्य-सौन्दर्य-

  • यदि आदमी आदमी के लिए जिये-मरे तथा उसके सुख-दु:ख का साथी बना रहे तो यह समाज खुशहाल बन सकता है।
  • अलंकार-अनुप्रास
  • भाषा-सरल एवं बोधगम्य।

(ब) काव्य-सौन्दर्य-

  • जब बीणा या सितार के बोल निकलते हैं तो यह अत्यन्त आकर्षक होता है।
  • राग पर राग में अनुप्रास अलंकार है।
  • भाषा-सरल, सहज एवं बोधगम्य

(स) काव्य-सौन्दर्य-

  • संगीत के समारोह में कौमार्य स्पष्ट झलकता है।
  • संगीत के समारोह में अनुप्रास अलंकार है।
  • भाषा–सरल एवं स्वाभाविक है।

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(द) काव्य-सौन्दर्य-

  • हर्ष रूपी हंस मानो दूध पर तैर रहा है।
  • हर्ष का हंस में अनुप्रास अलंकार है।
  • भाषा-सहज एवं स्वाभाविक है।

2.
‘आग के ओंठ’ का काव्य-सौन्दर्य बताइए।
उत्तर :
काव्य-सौन्दर्य-

  • ऐसा ओंठ जिससे आग की भाँति वचन निकलते हों।
  • आग के ओंठ में अनुप्रास अलंकार है।
  • भाषा-सरल एवं बोधगम्य।

3.
निम्नलिखित पंक्तियों में स्थायी भाव सहित रस का नाम लिखिए–
(अ) शताब्दियाँ झाँकती हैं, अनंत की खिड़कियों से।
(ब) हर्ष का हंस दूध पर तैरता है, जिस पर सवार भूमि की सरस्वती काव्य लोक में विचरण करती हैं।
उत्तर :
(अ)
शान्त रस-निर्वेद
(ब) श्रृंगार रस-रति

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 2 मंत्र (गद्य खंड)

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(विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये –
(1) मोटर चली गयी। बूढ़ा कई मिनट तक मूर्ति की भाँति निश्चल खड़ा रहा। संसार में ऐसे मनुष्य भी होते हैं, जो अपने आमोद-प्रमोद के आगे किसी की जान की भी परवाह नहीं करते, शायद इसका उसे अब भी विश्वास न आता था। सभ्य संसार इतना निर्मम, इतना कठोर है, इसका ऐसा मर्मभेदी (UPBoardSolutions.com) अनुभव अब तक न हुआ था। वह उन पुराने जमाने के जीवों में था, जो लगी हुई आग को बुझाने, मुर्दे को कन्धो देने, किसी के छप्पर को उठाने और किसी कलह को शान्त करने के लिए सदैव तैयार रहते थे। जब तक बूढ़े को मोटर दिखायी दी, वह खड़ा टकटकी लगाये उस ओर ताकता रहा।
प्रश्न
(1) प्रस्तुत गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) पुराने जमाने के जीवों का व्यवहार कैसा था?
(4) भगत को किस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था?
(5) भगत के अनुसार सभ्य संसार कैसा है?
[शब्दार्थ-आमोद-प्रमोद = मनोरंजन करना । जान = जीवन । परवाह = चिन्ता। निर्मम = निर्दय ।]
उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित ‘मंत्र’ नामक कहानी से अवतरित है। इसमें लेखक ने विरोधी घटनाओं और भावनाओं के चित्रण द्वारा कर्तव्य का बोध कराया है। यहाँ पर लेखक ने बूढ़े भगत तथा डॉ० चड्डा के व्यवहार का वर्णन किया है। |
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- बूढ़ा भगत अपने बीमार बेटे को दिखाने डॉ० चड्डा के पास आया । परन्तु डॉ० चड्डा ने उसकी प्रार्थना पर कोई ध्यान नहीं दिया और मोटर में सवार होकर खेलने चले गये। मोटर चली जाने के बाद बूढ़ा भगत सोचने लगा कि क्या संसार में ऐसे भी हृदयहीन व्यक्ति हैं, जो अपने मनोरंजन के सामने दूसरों के जीवन की कोई चिन्ता नहीं करते। वह ऐसे व्यवहार की लेशमात्र भी आशा नहीं करता था। उसे अपनी सरलता के कारण उनके इसे कठोर व्यवहार पर अब भी विश्वास नहीं हो रहा था। वह यह नहीं जानता था कि सभ्य संसार इतना हृदयहीन और कठोर होता है। इस बात का हँदयस्पर्शी (UPBoardSolutions.com) अनुभव उसे अभी तक कभी नहीं हुआ था। वह प्राचीन मान्यताओं और परम्पराओं को माननेवाला व्यक्ति था। वह उन व्यक्तियों में से था, जो सदैव परोपकार में लीन रहते हैं, जो दूसरों की आग को बुझाने, मुर्दो को कन्धा देने, किसी के छप्पर को उठाकर रखने और किसी के घर की लड़ाई को शान्त करने को ही अपना कर्त्तव्य समझते हैं । इस प्रकार बूढ़ा भगत निः। स्वार्थ सेवा करनेवाला और दूसरों के दु:ख में सहयोग तथा सहानुभूति रखनेवाला व्यक्ति था।
  3. पुराने जमाने के जीवों का व्यवहार सरलता से परिपूर्ण होते हैं।
  4. भगत को विश्वास नहीं हो रहा था कि संसार में ऐसे मनुष्य भी रहते हैं जो अपने आमोद-प्रमोद के आगे किसी की जान । की परवाह नहीं करते हैं।
  5. भगत के अनुसार सभ्य संसार बहुत निर्मम एवं कठोर है।

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(2) ‘अरे मूर्ख, यह क्यों नहीं कहता कि जो कुछ न होना था, हो चुका । जो कुछ होना था वह कहाँ हुआ? माँ-बाप ने बेटे का सेहरा कहाँ देखा? मृणालिनी का कामना-तरु क्या पल्लव और पुष्प से रंजित हो उठा? मन के वह स्वर्ण-स्वप्न जिनसे जीवन आनन्द का स्रोत बना हुआ था, क्या पूरे हो गये? (UPBoardSolutions.com) जीवन के नृत्यमय तारिका-मण्डित सागर में आमोद की बहार लूटते हुए क्या उसकी नौका जलमग्न नहीं हो गयी? जो न होना था, वह हो गया!’
प्रश्न
(1) प्रस्तुत गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) माँ-बाप ने क्या नहीं देखा?
(4) ‘नौका जलयान होना’ का क्या अर्थ है?
(5) मृणालिनी का कामना तरु क्या था?
[शब्दार्थ-सेहरा = पगड़ी। कामना तरु = इच्छारूपी वृक्ष । पल्लव = पत्ते । रंजित = युक्त, लहलहानी । स्वर्ण-स्वप्न = सुनहरी इच्छाएँ । स्रोत = झरना। नृत्यमय तारिका-मंडित = नाचते हुए तारों से सुशोभित । आमोद = प्रसन्नता । जलमग्न = पानी में डूब जाना।]
उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित ‘मंत्र’ नामक पाठ से लिया गया है। प्रस्तुत गद्यांश में उस समय का विवरण है, जबकि कैलाश के प्राण सर्पदंश द्वारा हर लिये जाते हैं तथा झाड़-फेंक के साधन भी उत्तर दे जाते हैं तो एक सज्जन कहते हैं
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- अरे मूर्ख ! आज इस घर में जो हुआ है वह नहीं होना चाहिए था क्योंकि कैलाश अभी नवयुवक है, जीवन के समस्त आनन्दों का रसास्वादन अभी उसके लिए शेष है। उसके माता-पिता तो उसका विवाह भी न देख पाये और मृणालिनी, उसकी कामनाएँ जो कैलाश के जीवित होने पर पुष्पित, पल्लवित थीं, कैलाश के आकस्मिक निधन से नष्टप्राय हो गयी है। जब जीवन के आनन्द का एकमात्र स्रोत कैलाश ही उसके जीवन में न रहा, तो वह अब किस अनिर्वचनीय (UPBoardSolutions.com) आनन्द की अनुभूति करे। उसके मन की अनेक इच्छाएँ एवं सुनहरे स्वप्न क्या कैलाश की मृत्यु के साथ अपूर्ण होकर नहीं रह गये । जिस प्रकार किसी सागर में आमोद-प्रमोद करती नाव सागर की उठती हुई तरंगों से सागर के गर्भ में समा जाती है उसी प्रकार कैलाशरूपी नौका के सवार भी जीवनरूपी सागर के जल में पूर्णतया डूब गये थे। भाव यह है कि कैलाश की मृत्यु उस समय हुई, जबकि उसे जीवन के प्रत्येक सुख को देखना था तथा उसकी मृत्यु से उसके माता-पिता, मृणालिनी आदि सभी पूर्णतया प्रभावित हुए हैं।
  3. माँ-बाप ने बेटे के सिर पर सेहरा नहीं देखा।
  4. नौका जलमग्न होने का तात्पर्य सहारा नष्ट हो जाना है जिससे मृणालिनी का विवाह होना था जब वही नहीं रहेगा तो इसे ही नौका का जलमग्न कहा जायेगा।
  5. मृणालिनी कल्पना तरु वैवाहिक जीवन का स्वर्ण-स्वप्न था जो जीवन-आनन्द का स्रोत बना हुआ था, जो समय पर पल्लव और पुष्प से रंजित होता।

(3)  वही हरा-भरा मैदान था, वही सुनहरी चाँदनी एक नि:शब्द संगीत की भाँति प्रकृति पर छायी हुई थी, वही मित्र-समाज था। वही मनोरंजन के सामान थे। मगर जहाँ हास्य की ध्वनि थी, वहाँ अब करुण-क्रन्दन और अश्रु-प्रवाह था।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यखण्ड का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) प्रकृति पर क्या छायी हुई थी?
उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित कहानी ‘मंत्र’ से उद्धृत है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- कैलाश के जन्मदिन समारोह के समय जो हँसीपूर्ण वातावरण था, चारों ओर हास्यपरिहास छाया था वहीं कैलाश को साँप के काट लेने पर करुण पुकार होने लगी, थी। सभी के नेत्रों से आँसू बह रहे थे। हर्ष का वातावरण शोक में बदल गया था।
  3. प्रकृति पर सुनहरी चाँदनी संगीत की भाँति छायी हुई थी।

(4) वह एक जड़ी कैलाश को सुंघा देता । इस तरह न जाने कितने घड़े पानी कैलाश के सिर पर डाले गये और न जाने कितनी बार भगत ने मन्त्र फेंका। आखिर जब ऊषा (UPBoardSolutions.com) ने अपनी लाल-लाल आँखें खोलीं, तो कैलाश की भी लाल-लाल आँखें खुल गयीं। एक क्षण में उसने अँगड़ाई ली और पानी पीने को माँगा। डॉक्टर चड्डा ने दौड़कर नारायणी को गले लगा लिया। नारायणी दौड़कर भगत के पैरों पर गिर पड़ी और मृणालिनी कैलाश के सामने आँखों में आँसू भरे पूछने लगी-‘अब कैसी तबीयत है?’
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) आँखें खुलते ही अँगड़ाई लेते हुए कैलाश ने क्या माँगा?
उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित ‘मंत्र’ नामक कहानी से अवतरित है। प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने विरोधी घटनाओं, परिस्थितियों और भावनाओं का चित्रण करके कर्तव्य-बोध का मार्ग समझाया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- बूढ़े भगत ने कैलाश को जड़ी सुंघाया और इसके बाद उसके सिर पर घड़े भर-भरकर पानी डाला गया। बूढ़े भगत ने इस बीच कई बार उस पर मंत्र फेंका। काफी समय बाद जब उषा ने कैलाश को देखने के लिए अपनी लाल-लाल आँखें खोलीं तो उसी समय अचानक कैलाश की भी लाल आँखें खुल गयीं। अँगड़ाई लेते हुए कैलाश ने पीने के लिए पानी (UPBoardSolutions.com) माँगा तो इतना सुनते ही डॉ० चड्ढा ने नारायणी को प्रसन्नता के आवेश में दौड़कर गले लगा लिया। नारायणी कृतज्ञ भाव से भरकर तुरंत ही भगत के पैरों पर गिर पड़ी। मृणालिनी आँखों में आँसू भरकर कैलाश से पूछने लगी, “अब तुम्हारी कैसी तबीयत है?”
  3. आँखें खुलते ही कैलाश ने अँगड़ाई लेते हुए पानी माँगा।

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(5) चड्रा – रात को मैंने नहीं पहचाना, पर जरा साफ हो जाने पर पहचान गया। एक बार यह एक मरीज को लेकर आया था। मुझे अब याद आता है कि मैं खेलने जा रहा था और मरीज को देखने से इनकार कर दिया था। आज उस दिन की बात याद करके मुझे जितनी ग्लानि हो रही है, उसे प्रकट नहीं (UPBoardSolutions.com) कर सकता। मैं उसे खोज निकालूंगा और पैरों पर गिरकर अपना अपराध क्षमा कराऊँगा । वह कुछ लेगा नहीं, यह जानता हूँ, उसका जन्म यश की वर्षा करने ही के लिए हुआ है। उसकी सज्जनता ने मुझे ऐसा आदर्श दिखा दिया है, जो अबे से जीवन-पर्यन्त मेरे सामने रहेगा।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) ग्लानि किसको हो रही थी?
(4) डॉ० चड्ढा किस आदर्श पर जीवन भर चलने का संकल्प लेते हैं?
(5) प्रस्तुत पंक्तियों में भगत की किस-चारित्रिक विशेषता का पता चलता है?
[शब्दार्थ-ग्लानि = दु:ख। जीवन-पर्यन्त = जीवन के अन्त तक।]

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित ‘मन्त्र’ नामक पाठ से लिया गया है। इसमें उन्होंने यह बताया है कि मनुष्य को अपनी गल्तियों का अनुभव तब होता है, जब उसके प्रायश्चित्त का समय निकल जाता है। अपने ऊपर उसी प्रकार की विपत्ति के आने से मनुष्य की आँखें खुल जाती हैं।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- बूढ़े के मन्त्र-तन्त्र के उपचार से कैलाश ठीक हो जाता है। डॉक्टर चड़ा उस बूढ़े को पहचानने का प्रयास करते हैं और अन्तत: उन्हें उस घटना का स्मरण हो आता है, जब वे गोल्फ खेलने के लिए जा रहे थे और वह बूढ़ा अपने इकलौते पुत्र को मृतप्राय अवस्था में उनके पास लेकर आया था, लेकिन वह उसको देखे बिना गोल्फ खेलने के लिए चले गये थे। आज बूढ़े द्वारा अपने ऊपर किये गये उपकार के कारण उन्हें अपने उस दिन के व्यवहार पर अपार दु:ख हो रहा है। वह आज (UPBoardSolutions.com) अपने उस अमानवीय व्यवहार का प्रायश्चित्त करना चाहते हैं। अपनी पत्नी नारायणी से वे कह रहे हैं कि यद्यपि मैं जानता हूँ कि वह बूढ़ा कुछ लेगा नहीं तथापि मैं उसे अवश्य खोजेंगा, वह अवश्य ही मेरे अपराध को क्षमा कर देगा। इस संसार में कुछ लोग दूसरों की भलाई के लिए ही जन्म लेते हैं, अपने लिये नहीं। वह बूढ़ा भी उन लोगों में से ही एक व्यक्ति था। लगता है कि भगवान् ने उसको यश की वर्षा करने के लिए ही जन्म दिया है। अपने नि:स्वार्थ सेवा-भावना से उसने मुझे सज्जनता का ऐसा आदर्श दिखा दिया है, जिसे मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक याद रखेंगा।।
  3. ग्लानि डॉक्टर चड्डी को हो रही थी।
  4. डॉ० चड्ढा भगत द्वारा दिखाये सज्जनता के आदर्श पर जीवन भर चलने का संकल्प लेते हैं।
  5. इन पंक्तियों में भगत की चारित्रिक विशेषता उसकी सज्जनता है। उसका जन्म यश की वर्षा करने ही के लिए हुआ था।

प्रश्न 2. मुंशी प्रेमचन्द के जीवन-परिचय एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 3. मुंशी प्रेमचन्द के जीवन एवं साहित्यिक परिचय का उल्लेख कीजिए।
अथवा मुंशी प्रेमचन्द की जीवनी एवं साहित्यिक सेवाएँ स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 4. मुंशी प्रेमचन्द के जीवन-परिचय एवं कृतियों का उल्लेख कीजिए। अथवा मुंशी प्रेमचन्द जी का साहित्यिक परिचय दीजिए तथा उनकी प्रमुख रचनाओं (कृतियों) का उल्लेख कीजिए।

मुंशी प्रेमचन्द
(स्मरणीय तथ्य )

जन्म-सन् 1880 ई०। मृत्यु-सन् 1936 ई० जन्म-स्थान-लमही (वाराणसी) उ० प्र०। पिता-अजायब राय । अन्य बातें-निर्धन, संघर्षमय जीवन, बी० ए० तक शिक्षा, पहले अध्यापक फिर सब-डिप्टी इंसपेक्टर।
साहित्यिक विशेषताएँ-उपन्यास सम्राट्, महान् कथाकार। यथार्थ और आदर्श का मिश्रण।
भाषा- सरल, रोचक, प्रवाहमयी।
शैली- निजी, वर्णनात्मक, विवेचनात्मक, भावात्मक, व्यंग्यात्मक आदि।

  • जीवन-परिचय- मुंशी प्रेमचन्द का जन्म वाराणसी जिले के लमही ग्राम में सन् 1880 ई० में हुआ था। इनके बचपन का नाम धनपतराय धा : प्रेमचन्द जी पहले उर्दू में नवाबराय के नाम से कहानियाँ लिखते थे। बाद में जब हिन्दी में आये तो इन्होंने प्रेमचन्द नाम से कहानियाँ लिखनी शुरू कीं। इनका जन्म एक साधारण कायस्थ-परिवार में हुआ था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो गयी थी। (UPBoardSolutions.com) इनके पिता का नाम अजायब राय था। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद भी इन्होंने बड़े ही परिश्रम से अपना अध्ययनक्रम जारी रखा। आरम्भ में कुछ वर्षों तक स्कूल की अध्यापकी करने के पश्चात् ये शिक्षा-विभाग में डिप्टी इंसपेक्टर हो गये। असहयोग आन्दोलन से प्रेरित होकर इन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और आजीवन साहित्य-सेवा करते रहे। इन्होंने कई पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। इनकी मृत्यु सन् 1936 ई० में हुई।
  • कृतियाँ- मुंशी प्रेमचन्द मुख्य रूप से कहानी और उपन्यासों के लिए प्रसिद्ध हैं, परन्तु उन्होंने नाटक, निबन्ध और सम्पादन-कला को भी अपनी समर्थ लेखनी का विषय बनाया। इनकी रचनाओं का विवेचन निम्न प्रकार है
    • (क) उपन्यास-गोदान, सेवासदन, कर्मभूमि, रंगभूमि, गबन, प्रेमाश्रम, निर्मला, वरदान और कायाकल्प नामक श्रेष्ठ उपन्यास लिखे। इनके उपन्यासों में मानव-जीवन के विविध पक्षों और समस्याओं का यथार्थ चित्रण हुआ है। |
    • (ख) कहानी-संग्रह- मुंशी प्रेमचन्द ने लगभग 300 कहानियाँ लिखीं। उनके कहानी संग्रहों में सप्तसुमन, नवनिधि, प्रेमपचीसी, प्रेम सदन, मानसरोवर (आठ भाग) प्रमुख हैं। इनकी कहानियों में बाल-विवाह, दहेज-प्रथा, रिश्वत, भ्रष्टाचार आदि विविध समस्याओं को यथार्थ चित्रण कर उनका समाधान प्रस्तुत किया गया है।
    • (ग) नाटक-संग्राम, प्रेम की वेदी, कर्बला- इन नाटकों में राष्ट्र-प्रेम और विश्व-बन्धुत्व का सन्देश दिया गया है।
    • (घ) निबन्ध-‘कुछ विचार’ और ‘साहित्य का उद्देश्य’ में मुंशी प्रेमचन्द जी के निबन्धों का संग्रह है।
    • (ङ) सम्पादन-माधुरी, मर्यादा, हंस, जागरण आदि।
      इनके अतिरिक्त इन्होंने ‘तलवार और त्याग’ जीवनी, बालोपयोगी साहित्य और कुछ अनूदित पुस्तकों द्वारा हिन्दी-साहित्य के भण्डार की अभिवृद्धि की है।
  • साहित्यिक परिचय- मुंशी प्रेमचन्द हिन्दी के युगांतरकारी कथाकार हैं। इनकी कहानियाँ समसामयिक आर्थिक परिस्थितियों के किताबी दस्तावेज हैं जिनमें किसानों की दयनीय दशा, सामाजिक बन्धनों में तड़पती नारियों की वेदना, वर्णव्यवस्था का खोखलापन, हरिजनों की पीड़ा आदि का बड़ा ही मार्मिक चित्रण है। सामयिकता के साथ ही इनके साहित्य में स्थायित्व प्रदान करनेवाले तत्त्व विद्यमान हैं।
  • भाषा-शैली- मुंशी प्रेमचन्द प्रारम्भ में उर्दू में लिखा करते थे, अत: इनकी रचनाओं पर उर्दू की छाया स्पष्ट है। शैली अत्यन्त ही सरल, सुबोध तथा स्वाभाविक है, जिसमें (UPBoardSolutions.com) मुहावरों और कविता के समावेश से और भी सजीवता आ गयी है। आवश्यकतानुसार भाषा में अंग्रेजी, अरबी, उर्दू, फारसी और पूर्वी के देशज शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषा की स्पष्टता एवं प्रभावशीलता के लिए कहीं-कहीं आलंकारिक एवं काव्यमय भाषा का प्रयोग किया गया है। प्रेमचन्द की शैली के रूप हैं–(1) व्यावहारिक और (2) संस्कृतनिष्ठ शैली। व्यावहारिक शैली पर उर्दू की स्पष्ट छाप है। भाषा सरल और मुहावरेदार है।

उदाहरण

  1. व्यावहारिक शैली –“बूढ़े ने पगड़ी उतार कर चौखट पर रख दी और रोकर बोला-हुजूर, एक निगाह देख लें। बस एक निगाह। लड़का हाथ से चला जायेगा। हुजूर, सात लड़कों में यही एक बच रहा है हुजूर ।’
  2. संस्कृतनिष्ठ शैली –“कितने ही सिद्धान्त जो एक जमाने में सत्य समझे जाते थे, आज असत्य सिद्ध हो गये हैं, क्योंकि उनका सम्बन्ध मनोभावों से है और मनोभावों में कभी परिवर्तन नहीं होता है।”

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. क्या ‘मंत्र’ एक मर्मस्पर्शी कहानी है और क्यों?
उत्तर- ‘मंत्र’ एक मर्मस्पर्शी कहानी है। भगत अपने पुत्र के जीवनदान की याचना डॉ० चड्ढा के समक्ष करता है, लेकिन चड्ढा के ऊपर उसका कोई असर नहीं हुआ। अपनी बीमारी के (UPBoardSolutions.com) कारण भगत का लड़का इस दुनिया से सिधार गया। डॉ० चड्ढा के लड़के को सर्प ने जब डस लिया तो चड्ढा ने बूढ़े भगत को इलाज के लिए बुलवाया था। पहले तो भगत ने ना कर दिया, लेकिन रात में चड्ढा के लड़के के उपचार के लिए जाता है। उसके उपचार से चड्ढा के लड़के की जान बच जाती है।

प्रश्न 2. “भगवान् बड़ा कारसाज है।” इस वाक्य का भाव स्पष्ट कीजिए। |
उत्तर- अच्छा और बुरा सब ईश्वर के हाथ में है। ईश्वर सब कुछ करने में समर्थ है। वह जिन्दा को मुर्दा कर सकता है और मुर्दा को जिन्दा।

प्रश्न 3. अंततः भगत डॉ० चड्ढा के पुत्र को बचाने क्यों चला गया?
उत्तर- डॉ० चड्ढा के पुत्र की हालत जानकर भगत से नहीं रहा गया। उसके मन में बदले की भावना नहीं थी। जीवन में इस तरह का उसने कभी भी कोई कार्य नहीं किया था। भगत के मन में दया थी। इसलिए डॉ० चड्ढा के पुत्र को बचाने चला गया।

प्रश्न 4. डॉ० चड्ढा के सामने भगत ने अपनी पगड़ी उतार कर क्यों रख दी?
उत्तर- अपने पुत्र की जान बचाने के लिए भगत ने अपनी पगड़ी डॉ० चड्ढा के सामने उतार कर रख दी।

प्रश्न 5. कैलाश को सर्प ने क्यों काट लिया था?
उत्तर- कैलाश ने सर्प की गर्दन को कसकर दाब दिया था जिससे सर्प क्रोधित हो उठा और गर्दन ढीली होते ही उसने कैलाश को काट लिया।

प्रश्न 6. ‘मंत्र’ कहानी का सन्देश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- ‘मंत्र’ कहानी को सन्देश यह है कि हमें अमीर-गरीब के साथ समान व्यवहार करना चाहिए तथा दूसरों के सुखदु:ख में समान रूप से भागीदार होना चाहिए।

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प्रश्न 7. नारायणी ने भगत के लिए क्या सोचा था? |
उत्तर- नारायणी ने सोचा था कि मैं उसे कोई बड़ी रकम देंगी।

प्रश्न 8. कैलाश के जन्म-दिवस की तैयारियों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- कैलाश के बीसवें सालगिरह पर हरी-हरी घास पर ‘कुर्सियाँ बिछी हुई थीं। शहर के रईस और हुक्काम इकठे हुए थे। बिजली के प्रकाश से सारा मैदान जगमगा रहा था। आमोद-प्रमोद के साधन भी थे।

प्रश्न 9. डॉ० चड्ढा और बूढ़े से सम्बन्धित दस वाक्य लिखिए। |
उत्तर- डॉ० चड्ढा ने खूब यश और धन कमाया, लेकिन इसके साथ ही अपने स्वास्थ्य की रक्षा भी की। पचास वर्ष की अवस्था में उनकी चुस्ती और फुर्ती युवकों को भी लज्जित करती थी। उनके प्रत्येक काम का समय निश्चित था। इस नियम से वह जौ-भर भी न टलते थे। डॉ० चड्ढा उपचार और संयम का रहस्य खूब समझते थे। बूढ़ा भगत विनम्र और दयालु था। वह पुत्र के निधन के बाद भी धैर्य धारण किये हुए था। वह (UPBoardSolutions.com) नियमित रूप से अपने जीवन निर्वाह के लिए कार्य करता था। भगत में बदले की भावना नहीं थी। वह जब चड्ढा के बेटे को साँप काटने की खबर सुनता है तो उससे रहा नहीं जाता और रात में चड्ढा के घर पहुँच जाता है-वहाँ वह झाड़-फेंक करता है। उसके झाड़-फेंक से डॉ० चड्ढा का लड़का ठीक हो जाता है।

प्रश्न 10. इस पाठ से आपको क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर- इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दूसरों के सुख-दुःख में समान रूप से भागीदार होना चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ‘भगवान् बड़ा कारसाज है।’ यह वाक्य कहानी में कितनी बार आया है?
उत्तर- ‘भगवान् बड़ा कारसाज है’ यह वाक्य कहानी में दो बार प्रयुक्त हुआ है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाइए
(अ) भगत कठोर हृदय का व्यक्ति नहीं था।                            (√)
(ब) कैलाश नारायणी का पुत्र था।                                            (√)
(स) बुढ़िया ने भगत को दूसरी बार डॉ० चड्ढा के यहाँ भेजा था। (×)
(द) अंततः कैलाश की मृत्यु हो गयी थी।                                   (×)

प्रश्न 3. मुंशी प्रेमचन्द का जन्म एवं मृत्यु सन् बताइए।
उत्तर- मुंशी प्रेमचन्द का जन्म सन् 1880 ई० तथा मृत्यु सन् 1936 ई० हुई।

प्रश्न 4. मुंशी प्रेमचन्द किस युग के लेखक हैं?
उत्तर- मुंशी प्रेमचन्द शुक्ल युग के लेखक हैं।

प्रश्न 5. कैलाश और मृणालिनी कौन थे?
उत्तर- कैलाश और मृणालिनी सहपाठी थे।

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प्रश्न 6. ‘हंस’ पत्रिका के संस्थापक कौन थे?
उत्तर- ‘हंस’ पत्रिका के संस्थापक मुंशी प्रेमचन्द थे।

व्याकरण-बोध

1. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ बताकर वाक्य-प्रयोग कीजिए –
आँखें ठण्डी होना, चैन की नींद सोना, किस्मत ठोंकना, कलेजा ठण्डा होना, हाथ से चला जाना, सूरत आँखों में फिरना।
उत्तर-

  • आँखें ठण्डी होना- (निष्प्राण होना)
    सर्प के काटने से कैलाश की आँखें ठण्डी हो गयी थीं।
  • चैन की नींद सोना- (बेफिक्र होना)
    परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर मैं चैन की नींद सोया।
  • किस्मत ठोंकना- (भाग्य को दोष देना)
    परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर मैंने किस्मत ठोंक ली।
  • कलेजा ठण्डा होना- (चैन पड़ना)
    राम के फेल होने पर श्याम का कलेजा ठण्डा हो गया।
  • हाथ से चला जाना- (प्रिय वस्तु का निकल जाना)
    दीनू की माँ का इकलौता बेटा बुरी संगति में पड़कर हाथ से चला गया।
  • सूरत आँखों में फिरना- (भूली हुई चीज याद आना)
    राधा के मुम्बई चले जाने पर उसकी सूरत बार-बार मेरे आँखों में फिरती है।

2. निम्नलिखित शब्दों को सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम लिखिएपल्लव, विद्यालय, सज्जन, औषधालय, निश्चल, निःस्वार्थ।
उत्तर-
पल्लव       – पत् + लव           – व्यंजन सन्धि
विद्यालय    – विद्या + आलय    – दीर्घ सन्धि
सज्जन        – सद् + जन         – व्यंजन संधि
औषधालय  – औषध + आलय – दीर्घ सन्धि
निश्चल         – निः + चल          – विसर्ग सन्धि
नि:स्वार्थ     – निः + स्वार्थ        – विसर्ग सन्धि

3. निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग बताइए –
उपदेशक, निर्दयी, निवारण, आमोद, प्रतिघात।
उत्तर- उप, निर, नि, आ, प्रति ।

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4. निम्नलिखित समस्त पदों में समास-विग्रह कीजिए और समास का नाम लिखिए
महाशय, कामना-तरु, सावन-भादौ, जीवनदान, जलमग्न, आत्मरक्षा, मित्र-समाज।
उत्तर-
समस्त पद          समास-विग्रह                  समास का नाम
महाशय        –  महान् है आशय जिसका     – बहुब्रीहि समास
कामना-तरु   – कामना रूपी तरु                – कर्मधारय समास
सावन-भादौ   – सावन और भादौ                – द्वन्द्व समास
जीवनदान      – जीवन के लिए दान             – सम्प्रदान तत्पुरुष
जलमग्न          – जल में मग्न                        – अधिकरण तत्पुरुष
आत्मरक्षा      – आत्मा की रक्षा                    – सम्बन्ध तत्पुरुष
मित्र-समाज    – मित्रों का समाज                – सम्बन्ध तत्पुरुष

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi धातु-रूप

UP Board Solutions for Class 10 Hindi धातु-रूप

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धातु-रूप

ध्यातव्य-अनुवाद में सहायक होने के कारण पाठ्यक्रम में निर्धारित (पठ्, हस, दृश्, पच्) धातुओं के अतिरिक्त कुछ अन्य धातुओं के रूप भी यहाँ दिये जा रहे हैं।

(1) पठ् धातु (पढ़ना) के रूप
लट् लकार (वर्तमानकाल)

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लुट् लकार (भविष्यत्काल)

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लङ् लकार (भूतकाल)

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लोट् लकार (‘आज्ञा’ अर्थ में)

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विधिलिङ् लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

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(2) हस् धातु (हँसना) के रूप
लट् लकार (वर्तमानकाल)

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लुट् लकार (भविष्यत्काल)

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लङ् लकार (भूतकाल)

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लोट् लकार (आज्ञा’ अर्थ में)

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विधिलिङ् लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

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(3) गम् धातु (जाना) के रूप
लट् लकार (वर्तमानकाल)

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लृट् लकार (भविष्यत्काल)

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लङ् लकार ( भूतकाल)

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लोट् लकार (आज्ञा’ अर्थ में)

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विधिलिङ् लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

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(4) कृ धातु (करना) के रूप
लट् लकार (वर्तमानकाल)

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लृट् लकार (भविष्यत्काल)

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लङ् लकार ( भूतकाल)

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लोट् लकार (आज्ञा’ अर्थ में)

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विधिलिङ् लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

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(5) पच् धातु (पकाना) के रूप
लट् लकार (वर्तमानकाल)

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लृट् लकार (भविष्यत्काल)

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लङ् लकार ( भूतकाल)

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लोट् लकार (आज्ञा’ अर्थ में)

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विधिलिङ् लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

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(6) दृश् धातु (देखना) के रूप
लट् लकार (वर्तमानकाल)

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लृट् लकार (भविष्यत्काल)

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लङ् लकार ( भूतकाल)

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लोट् लकार (आज्ञा’ अर्थ में)

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विधिलिङ् लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

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अभ्यास

प्रश्न 1
निम्नलिखित धातुओं के निर्देशानुसार रूप लिखिए
उत्तर
(क) दृश्लृ ट् लकार (मध्यम पुरुष, एकवचन, बहुवचन) ।
(ख) दृश्, पच्-लोट् लकार (उत्तम पुरुष, एकवचन, द्विवचन)
(ग) पठ्, दृश्-विधिलिङ् लकार (मध्यम पुरुष, एकवचन व बहुवचन)
(घ) भू, पठ्ल ङ् लकार (मध्यम पुरुष, एकवचन तथा द्विवचन) ।
(ङ) दृश्, पच्-नृट् लकार (उत्तम पुरुष, एकवचन तथा बहुवचन)
(च) हस्, पच्–लुट् तथा लङ् लकार (उत्तम पुरुष, द्विवचन, बहुवचन)
(छ) हस्-लोट् लकार (उत्तम (UPBoardSolutions.com) तथा मध्यम पुरुष, बहुवचन)
(ज) पठ्, हस्, दृश्लृ ट् लकार (उत्तम पुरुष, एकवचन तथा बहुवचन)
(झ) पठ्, हस्, दृश्-लङ् लकार (मध्यम पुरुष, एकवचन तथा बहुवचन)
(ञ) हस्, पच्–लङ् लकार (द्विवचन तथा बहुवचन)
(ट) पठ्, हस्तृ ट् लकार (मध्यम पुरुष, एकवचन तथा बहुवचन),

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प्रश्न 2
निम्नांकित में से किसी एक के धातु, लकार, पुरुष और वचन लिखिए- [2011]
उत्तर
पक्ष्यथ, पश्यानि, हस, पठिष्यावः, द्रक्ष्यसि, पच, द्रक्ष्यामि, पठानि, पक्ष्यसि, पश्यथ, पठानि, पठेयुः, पठेयम्, अहसन्, अपठ, हसानि, भवेतम्, पठसि, अहसत्, पश्येत्, पठामि, हसिष्यति, पचेव, अपश्य, हंसथः, पठतः, हसेत।

प्रश्न 3
निम्नलिखित में से किसी एक धातु के रूप लिखिए [2012]
उत्तर
लृट् लकार के उत्तम पुरुष के बहुवचन–

  1. पठ्,
  2. हस्,
  3. दृश्।।

लोट् लकार के मध्यम पुरुष के एकवचन–

  1. पच्,
  2. पठ्,
  3. हस्।

प्रश्न 4
निम्नलिखित में से किसी एक धातु के रूप लिखिए [2013]
उत्तर
लट् लकार में–

  1. दृश्,
  2. पठ्,
  3. हँस।।

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प्रश्न 5
निम्नलिखित में से किसी एक के धातु, लकार, पुरुष तथा वचन का उल्लेख कीजिए– [2014]
उत्तर
पठाम:, हसन्तु, पश्याम:, हसतु, पश्यन्ति, पठामि, (UPBoardSolutions.com) अपचताम्, अहसाम, हससि, द्रक्ष्यसि, पचति, पठेः, अपचतम्, हसत, द्रक्ष्यामः, पठानि, पचेयुः पश्येताम्, पठत, अहसः, पश्यामि।

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UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1 कविकुलगुरुः कालिदासः (गद्य – भारती)

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1 कविकुलगुरुः कालिदासः (गद्य – भारती)

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परिचय

संस्कृत भाषा का साहित्य इतना समृद्ध है कि उसे विश्व की किसी भी भाषा के समक्ष प्रतिस्पर्धी रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। इस भाषा में महाकाव्यों, खण्डकाव्यों तथा नाटकों की परम्परा सहस्राब्दियों से प्रचलित है। संस्कृत भाषा के अनेक कवि और महाकवि हुए हैं, जिनमें कालिदास को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इनकी धवल-कीर्ति देश-देशान्तर तक फैली हुई है। इनके अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ नाटक के अध्ययनोपरान्त ही पाश्चात्य (UPBoardSolutions.com) विद्वानों की अभिरुचि संस्कृत साहित्य के अध्ययन की ओर हुई थी। प्रस्तुत पाठ महाकवि कालिदास के जीवन, व्यक्तित्व एवं उनकी रचनाओं से संस्कृत के छात्रों को परिचित कराता है।

पाठ-सारांश [2007,08,09, 12, 13, 14, 15]

कविकुलगुरु : महाकवि कालिदास संस्कृत के कवियों में सर्वश्रेष्ठ हैं। उनकी कीर्ति-कौमुदी विदेशों तक फैली हुई है। वे भारत के ही नहीं, अपितु विश्व के श्रेष्ठ कवि के रूप में भी जाने जाते हैं। इस महान् कवि के कुल, काल एवं जन्म-स्थान के विषय में अनेक मतभेद हैं। इन्होंने अपनी कृतियों में भी अपने जीवन के विषय में कुछ भी नहीं लिखा। समीक्षकों ने अन्त: और बाह्य साक्ष्यों के आधार पर इनका परिचय प्रस्तुत किया है।

जन्म, समय एवं स्थान : कालिदास विक्रमादित्य के सभारत्न थे। कोई विद्वान् इन्हें चन्द्रगुप्त द्वितीय का समकालीन मानता है तो कोई उज्जैन के राजा विक्रमादित्य का समकालीन। इस महान् कवि को सभी अपने-अपने देश में उत्पन्न हुआ सिद्ध करते हैं। कुछ विद्वान् इन्हें कश्मीर में उत्पन्न हुआ मानते हैं तो कुछ बंगाल में अनेक आलोचक इनका जन्म-स्थान उज्जैन भी मानते हैं।

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कुल : कालिदास की कृतियों में वर्ण-व्यवस्था के प्रतिपादन को देखकर इन्हें ब्राह्मण कुलोत्पन्न माना जाता है। ये शिवोपासक थे, फिर भी राम के प्रति इनकी अपार श्रद्धा थी। ‘रघुवंशम् महाकाव्य की रचना से यह बात स्पष्ट हो जाती है।

रचनाएँ : कालिदास ने ‘रघुवंशम्’ और ‘कुमारसम्भवम्’ नामक दो महाकाव्य, ‘मेघदूतम्’ और ‘ऋतुसंहार:’ नामक दो गीतिकाव्य तथा ‘मालविकाग्निमित्रम्’, ‘विक्रमोर्वशीयम्’ एवं ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ नामक तीन नाटकों की रचना की। रघुवंशम् में राजा दिलीप से लेकर अग्निवर्ण तक के समस्त इक्ष्वाकुवंशी राजाओं की उदारता का उन्नीस सर्गों में वर्णन किया गया है। कुमारसम्भवम् में स्वामी कार्तिकेय के जन्म का अठारह सर्गों में वर्णन है। मेघदूतम् में यक्ष और यक्षिणी के वियोग को लेकर विप्रलम्भ श्रृंगार का पूर्ण परिपाक हुआ है। ऋतुसंहारः में छः ऋतुओं का काव्यात्मक वर्णन है। मालविकाग्निमित्रम् नाटक में अग्निमित्र और मालविका (UPBoardSolutions.com) के प्रेम की कथा है। विक्रमोर्वशीयम् नाटक में पुरूरवा और उर्वशी का प्रेम पाँच अंकों में वर्णित है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् कालिदास का सर्वश्रेष्ठ नाटक है। इसके सात अंकों में मेनका के द्वारा जन्म देकर परित्यक्ता, पक्षियों द्वारा पोषित एवं कण्व महर्षि के द्वारा पालित पुत्री शकुन्तला के दुष्यन्त के साथ विवाह की कथा वर्णित है।

काव्य-सौन्दर्य : कालिदास ने अपनी रचनाओं में काव्योचित गुणों का समावेश करते हुए भारतीय जीवन-पद्धति का सर्वांगीण चित्रण किया है। उनके काव्यों में जड़ प्रकृति भी मानव की सहचरी के रूप में चित्रित की गयी है। ‘रघुवंशम्’ में दिग्विजय के लिए प्रस्थान करते समय रघु का वन के वृक्ष पुष्पवर्षा करके सम्मान करते हैं। ‘मेघदूतम्’ में बाह्य प्रकृति तथा अन्त:-प्रकृति का मर्मस्पर्शी वर्णन हुआ है। कवि के विचार में मेघ धूम, ज्योति, जलवायु का समूह ही नहीं, वरन् वह मानव के समान संवेदनशील प्राणी हैं। ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ नाटक में वन के वृक्ष शकुन्तला को आभूषण प्रदान करते हैं तथा हरिण-शावक उसका मार्ग रोककर अपना निश्छल प्रेम प्रदर्शित करता है।

कालिदास के काव्यों में प्रधान रस श्रृंगार है। शेष करुण आदि रस उसके सहायक होकर आये हैं। रस के अनुरूप प्रसाद और माधुर्य गुणों की सृष्टि की गयी है। कालिदास वैदर्भी रीति के श्रेष्ठ कवि हैं। वे अलंकारों के विशेषकर उपमा के प्रयोग में सिद्धहस्त हैं। उनके नाटकों में वस्तु-विन्यास अनुपम, चरित्र-चित्रण निर्दोष और शैली में सम्प्रेषणीयता है। उनके काव्यों में मानव-मूल्यों की प्रतिष्ठा की गयी है। दुष्यन्त शकुन्तला को देखने के पश्चात् क्षत्रिय द्वारा विवाह करने योग्य होने पर ही उससे विवाह करते हैं। कण्व की आज्ञा के बिना गान्धर्व विवाह करके दोनों तब तक दु:खी रहते हैं, जब तक तपस्या और प्रायश्चित्त से आत्मा को शुद्ध नहीं कर लेते।

‘रघुवंशम्’ में रघुवंशी राजाओं में भारतीय जन-जीवन का आदर्श रूप निरूपित किया गया है। रघुवंशी राजा प्रजा की भलाई के लिए ही प्रजा से कर लेते थे, सत्य वचन बोलते थे, यश के लिए प्राणत्याग हेतु सदा तैयार रहते थे तथा सन्तानोत्पत्ति के लिए गृहस्थ बनते थे।

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कालिदास ने हिमालय से सागरपर्यन्त भारत की यशोगाथा को अपने काव्य में निरूपित किया है। ‘रघुवंशम्’, ‘मेघदूतम्’ और ‘कुमारसम्भवम्’ में भारत के विविध प्रदेशों का सुन्दर और स्वाभाविक वर्णन मिलता है। संस्कृत के कवियों में कोई भी कवि कालिदास की तुलना नहीं कर पाया है।

गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1) महाकविकालिदासः संस्कृतकवीनां मुकुटमणिरस्ति। न केवलं भारतदेशस्य, अपितु समग्रविश्वस्योत्कृष्टकविषु स एकतमोऽस्ति। तस्यानवद्या कीर्तिकौमुदी देशदेशान्तरेषु प्रसृतास्ति। भारतदेशे जन्म लब्ध्वा स्वकविकर्मणा देववाणीमलङ्कुर्वाणः स न केवलं भारतीयः (UPBoardSolutions.com) कविः अपि तु विश्वकविरिति सर्वैराद्रियते। [2007,09,13]

शब्दार्थ मुकुटमणिः = मुकुट की मणि, श्रेष्ठ। उत्कृष्टकविषु = उच्च या श्रेष्ठ कवियों में। एकतमः = एकमात्र, अकेले। अनवद्या = निर्दोष, निर्मला कीर्तिकौमुदी = यश की चाँदनी। प्रसृतास्ति = फैली हुई है। लब्ध्वा = प्राप्त कर। देववाणीमलङ्कुर्वाणः (देववाणीम् + अलम् + कुर्वाणः) = देववाणी अर्थात् संस्कृत भाषा को अलंकृत करते हुए। सर्वैराद्रियते (सर्वैः + आद्रियते) = सबके द्वारा आदर पाते हैं।

सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के गद्य खण्ड ‘गद्य-भारती’ में संकलित ‘कविकुलगुरुः कालिदासः’ शीर्षक पाठ से उधृत है।

[संकेत इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में कालिदास की प्रशंसा की गयी है।

अनुवाद महाकवि कालिदास संस्कृत के कवियों की मुकुटमणि हैं अर्थात् श्रेष्ठ केवल भारत देश के ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण संसार के उत्कृष्ट कवियों में वे अद्वितीय हैं। उनकी निर्मल कीर्ति-चन्द्रिका देश-देशान्तरों में फैली हुई है। भारत देश में जन्म प्राप्त करके अपने कवि-कर्म (कविता) से देववाणी अर्थात् संस्कृत भाषा को अलंकृत करते हुए वे केवल भारत के कवि ही नहीं हैं, अपितु ‘विश्वकवि’ के रूप में सभी के द्वारा आदर किये जाते हैं।

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(2) वाग्देवताभरणभूतस्य प्रथितयशसः कालिदासस्य जन्म कस्मिन् प्रदेशे, काले, कुले, चाभवत्, किञ्चासीत् तज्जन्मवृत्तम् इति सर्वमधुनापि विवादकोटिं नातिक्रामति। इतरकवयः इव कालिदासः आत्मज्ञापने स्वकृतिषु प्रायः धृतमौन एवास्ति। अन्येऽपि कवयस्तन्नामसङकीर्तनमात्रादेव स्वीयां वाचं धन्यां मत्वा मौनमवलम्बन्ते। तथापि अन्तर्बहिस्साक्ष्यमनुसृत्य समीक्षकाः कविपरिचयं यावच्छक्यं प्रस्तुवन्ति। [2006]

वाग्देवताभरणभूतस्य ………………………………….. मौनमवलम्बन्ते। [2013]

शब्दार्थ वाग्देवताभरणभूतस्य = वाणी के देवता के आभूषणस्वरूप। प्रथितयशसः = प्रसिद्ध यश वाले। वृत्तम् = वृत्तान्त विवादकोटिम् = विवाद की श्रेणी को। नातिक्रामति = नहीं लाँघता है। इतर = दूसरे। आत्मज्ञापने = अपना परिचय देने में। धृतमौन = मौन (UPBoardSolutions.com) धारण किये हुए हैं। स्वीयां वाचं = अपनी वाणी को। अवलम्बन्ते = सहारा लेते हैं। अन्तर्बहिः साक्ष्यम् = अन्तः और बाहरी साक्ष्य। यावच्छक्यम् (यावत् + शक्यम्) = जितना सम्भव है। प्रस्तुवन्ति = प्रस्तुत करते हैं।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में कालिदास के जन्म-वृत्तान्त की अनभिज्ञता के बारे में बताया गया है।

अनुवाद सरस्वती देवी के अलंकारस्वरूप, प्रसिद्ध यश वाले कालिदास का जन्म किस प्रदेश में, काल में और कुल में हुआ तथा उनके जन्म का वृत्तान्त क्या था, यह अभी भी विवाद की सीमा से परे नहीं है अर्थात् विवादास्पद है। दूसरे कवियों के समान कालिदास अपना परिचय देने में अपनी रचनाओं में प्रायः मौन ही धारण किये हुए हैं। दूसरे कवि भी उनका नाम लेनेमात्र से ही अपनी वाणी को धन्य मानकर मौन हो जाते हैं; अर्थात् दूसरे कवियों द्वारा भी उनके बारे में कुछ नहीं लिखा गया है। इतने पर भी आन्तरिक और बाहरी साक्ष्यों का अनुसरण करके समीक्षक यथासम्भव कवि का परिचय प्रस्तुत करते हैं।

(3) एका जनश्रुतिः अतिप्रसिद्धास्ति यया कविकालिदासः विक्रमादित्यस्य सभारत्नेषु मुख्यतमः इति ख्यापितः। परन्तु अत्रापरा विडम्बना समुत्पद्यते। विक्रमादित्यस्यापि स्थितिकालः सुतरां स्पष्टो नास्ति। केचिन्मन्यन्ते यत् विक्रमादित्योपाधिधारिणो द्वितीयचन्द्रगुप्तस्य समकालिक आसीत् कविरसौ। कालिदासस्य मालविकाग्निमित्रनाटकस्य नायकोग्निमित्रः शुङ्गवंशीय आसीत् स एव विक्रमादित्योपाधि धृतवान् यस्य सभारत्नेष्वेकः कालिदासः आसीत्। तस्य राज्ञः स्थितिकालः खीष्टाब्दात्प्रागासीत्। स एव स्थितिकालः कवेरपि सिध्यति। कविकालिदासस्य जन्मस्थानविषयेऽपि नैकमत्यमस्ति। एतावान् कवेरस्य महिमास्ति यत् सर्वे एव तं स्व-स्वदेशीयं साधयितुं तत्परा भवन्ति। कश्मीरवासिविद्वांसः कश्मीरोदभवं तं मन्यन्ते, बङ्गवासिनश्च बङ्गदेशीयम्। अस्ति तावदन्योऽपि समीक्षकवर्गः यस्य मतेन कालिदास उज्जयिन्यां (UPBoardSolutions.com) लब्धजन्मासीत्। उज्जयिनीं प्रति कवेः सातिशयोऽनुराग एतन्मतं पुष्णाति।

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कविकालिदासस्य ………………………………….. एतन्मतं पुष्णाति।
एका जनश्रुतिः ………………………………….. कवेरपि सिध्यति। [2011, 12, 15]

शब्दार्थ जनश्रुतिः = लोकोक्ति, किंवदन्ती। ख्यापितः = बताया गया। अत्रापरा (अत्र + अपरा) = यहाँ दूसरी। समुत्पद्यते = उत्पन्न होती है। सुतरां = भली प्रकार विक्रमादित्योपाधिम् = विक्रमादित्य की उपाधि का। सभारलेष्वेकः (सभारत्नेषु + एकः) = सभारत्नों में से एक। ख्रीष्टाब्दात् = ईस्वी वर्ष से। प्राक् = पहले। सिध्यति = सिद्ध होता है। नैकमत्यमस्ति = एकमत नहीं हैं। एतावान् = इतनी। साधयितुम् = सिद्ध करने के लिए। लब्धजन्मासीत् = जन्म हुआ था। सातिशयः = अत्यधिक पुष्णाति = पुष्टि करता है।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में कालिदास के जन्म और स्थितिकाल के विषय में प्रचलित विभिन्न मत दिये गये हैं।

अनुवाद एक लोकोक्ति (किंवदन्ती) अत्यन्त प्रसिद्ध है, जिसके द्वारा कवि कालिदास विक्रमादित्य के सभारत्नों में प्रमुख बताये गये हैं, परन्तु इस विषय में दूसरी शंका उत्पन्न होती है। विक्रमादित्य का भी स्थितिकाल अच्छी तरह स्पष्ट नहीं है। कुछ लोग मानते हैं कि यह कवि ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण करने वाले चन्द्रगुप्त द्वितीय के समकालीन थे। कालिदास के ‘मालविकाग्निमित्रम्’ नाटक का नायक अग्निमित्र शुंग वंश का था। उसी ने विक्रमादित्य की उपाधि को धारण किया, जिसकी सभा के रत्नों में कालिदास एक थे। उस राजा का स्थितिकोल ईस्वी सन् से पूर्व था। वही स्थितिकाल कवि का भी सिद्ध होता है। कवि कालिदास (UPBoardSolutions.com) के जन्म-स्थान के विषय में भी एक मत नहीं है। इस कवि की ऐसी महिमा है कि सभी इसे अपने-अपने देश का सिद्ध करने में लगे हुए हैं। कश्मीर के निवासी विद्वान् उन्हें कश्मीर में उत्पन्न हुआ मानते हैं और बंगाल के निवासी बंगाल देश में उत्पन्न हुआ। दूसरा भी समीक्षकों का वर्ग है, जिसके मत से कालिदास का जन्म उज्जैन में हुआ था। उज्जयिनी के प्रति कवि का अत्यधिक प्रेम इस मत की पुष्टि करता है।

(4) देशकालवदेव कालिदासकुलस्यापि स्पष्टः परिचयो नोपलभ्यते। तस्य कृतिषु वर्णाश्रमधर्मव्यव्यवस्थायाः यथातथ्येन प्रतिपादनेन एतदनुमीयते यत् तस्य जन्म विप्रकुलेऽभवत्। भावनया स शिवानुरक्तश्चासीत् तथापि तस्य धर्मभावनायां मनागपि सङ्कीर्णता नासीत्। शिवभक्तोऽपि सन् रघुवंशे स रामं प्रति स्वभक्तिभावमुदारमनसा प्रकटयति। कालिदासस्य जीवनवृत्तं सर्वथा अज्ञानान्धकाराच्छन्नमस्ति। तद्विषयकाः अनेकाः जनश्रुतयः लब्धप्रसस्सन्ति किन्तु ताः सर्वाः ईष्र्याकलुषकषायितचित्तानां कल्पनाप्ररोहा एव, अत एवं सर्वथा चिन्त्याः सन्ति

शब्दार्थ नोपलभ्यते (न + उपलभ्यते) = प्राप्त नहीं होता है। यथातथ्येन = तथ्यों के अनुसार, वास्तविक रूप से। एतदनुमीयते = यह अनुमान किया जाता है। मनागपि = थोड़ा भी। अज्ञानान्धकाराच्छन्नम् (अज्ञान + अन्धकार + आच्छन्नम्) = अज्ञानरूपी अन्धकार से ढका हुआ। तद्विषयका = (UPBoardSolutions.com) उससे सम्बन्धित ईष्र्याकलुष-कषायितचित्तानां = ईष्र्या के कलुष से कसैले (कलुषित) चित्त वालों का। कल्पनाप्ररोहाः = कल्पना के अंकुर। चिन्त्याः = विचार करने योग्य।

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प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में कालिदास के कुल के विषय में विचार व्यक्त किया गया है।

अनुवाद देश और काल की तरह ही कालिदास के कुल का भी स्पष्ट परिचय प्राप्त नहीं होता है। उनकी रचनाओं में वर्ण, आश्रम और धर्म की व्यवस्था का उचित प्रतिपादन होने से यह अनुमान किया जाता है कि उनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। विचार से वे शिव में अनुरक्त थे तो भी उनकी धर्म-भावना में थोड़ी-सी भी संकीर्णता नहीं थी। शिव के भक्त होते हुए भी ‘रघुवंशम्’ में उन्होंने राम के प्रति अपनी भक्ति-भावना को उदार मन से प्रकट किया है। कालिदास का जीवन-वृत्त सभी प्रकार से अज्ञान के अन्धकार में छिपा हुआ है। उनके विषय में अनेक जनश्रुतियाँ फैली हुई हैं, किन्तु वे सभी ईर्ष्या और कालुष्य से कलुषित मन वालों की कल्पना के अंकुर ही हैं, अतएव सभी प्रकार से विचार करने योग्य हैं।

(5) कालिदासस्य नवनवोन्मेषशालिन्याः प्रज्ञायाः उन्मीलनं तस्य कृतिषु नास्ति कस्यचित्सुधियः परोक्षम्। संस्कृतकाव्यस्य विविधेषु प्रमुखप्रकारेषु स्वकौशलं प्रदर्य स सर्वानतीतानागतान कवीनतिशिश्ये। रघुवंशं कुमारसम्भवञ्च तस्य महाकाव्यद्वयम्, मेघदूतम्, ऋतुसंहारश्च खण्डकाव्ये, (UPBoardSolutions.com) मालविकाग्निमित्रं विक्रमोर्वशीयम् अभिज्ञानशाकुन्तलञ्च नाटकानि सन्ति। तत्र रघुवंशं नाम महाकाव्यं कविकुलगुरोः सर्वातिशायिनी कृतिरस्ति। अस्मिन् महाकाव्ये दिलीपादारभ्य अग्निवर्णपर्यन्तम् इक्ष्वाकुवंशावतंसभूतानां नृपतीनामवदाननिरूपणमस्ति। [2006,11]

शब्दार्थ नवनवोन्मेषशालिन्याः = नये-नये विकास से युक्त। प्रज्ञायाः = बुद्धि की। उन्मीलनम् = खोलने वाली। प्रदर्य = दिखाकर। सर्वान् = सभी। अतीतानागतान् = अतीत और भविष्य। अतिशिश्ये = अतिक्रमण कर गये। सर्वातिशायिनी = सर्वश्रेष्ठ। अवदाननिरूपणम् = उदारता का वर्णन।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में कालिदास की रचनाओं का संक्षिप्त वर्णन किया गया है।

अनुवाद कालिदास की नये-नये विकास से युक्त बुद्धि का उद्घाटन उनकी रचनाओं में नहीं है, ऐसा किसी विद्वान् का परोक्ष (अप्रसिद्ध) कथन है। संस्कृत-काव्य के अनेक प्रमुख प्रकारों में अपना कौशल दिखाकर वे अतीत और भविष्य के सभी कवियों में श्रेष्ठ हैं। उनके रघुवंशम्’ और ‘कुमारसम्भवम्’ दो महाकाव्य; ‘मेघदूतम् और ऋतुसंहार: दो खण्डकाव्य; ‘मालविकाग्निमित्रम्’, ‘विक्रमोर्वशीयम्’ और ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ नाटक हैं। इनमें ‘रघुवंशम्’ नाम का महाकाव्य कविकुलगुरु की सर्वश्रेष्ठ रचना है। इस महाकाव्य में दिलीप से आरम्भ करके अग्निवर्ण तक के इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न राजाओं की उदारता का वर्णन है।

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(6) एकोनविंशसर्गात्मकमिदं महाकाव्यं रमणीयार्थप्रतिपादकं सत् सचेतसां हृदयं सततमाह्लादयति। कुमारसम्भवे स्वामिकार्तिकेयस्य जन्मोपवर्णितम्। इदमपि काव्यम् अष्टादशसर्गात्मकमस्ति। केचन समीक्षका अष्टमसर्गपर्यन्तमेव काव्यमिदं (UPBoardSolutions.com) कालिदासप्रणीतमिति मन्यन्ते। मेघदूते यक्षयक्षिण्योः वियोगमाश्रित्य विप्रलम्भशृङ्गारस्य पूर्णपरिपाको दृश्यते। ऋतुसंहारे अन्वर्थतया षण्णामृतूणां वर्णनमस्ति। मालविकाग्निमित्रनाटके अग्निमित्रस्य मालविकायाश्च प्रेमाख्यानमस्ति। पञ्चाङ्कात्मके विक्रमोर्वशीये

पुरूरवसः उर्वश्याश्च प्रेमकथा वर्णिता। अभिज्ञानशाकुन्तलं स्वनामधन्यस्य अस्य कवेः सर्वश्रेष्ठा नाट्यकृतिरस्ति। नाटकेऽस्मिन् सप्ताङ्काः सन्ति। मेनकया प्रसूतोज्झितायाः शकुन्तैश्च पोषितायाः तदनु कण्वेन परिपालितायाः शकुन्तलायाः दुष्यन्तेन सहोद्वाहस्य कथा वर्णितास्ति।,शाकुन्तलविषये प्रथितैषा भणितिः

‘काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला’

एतन्नाटकं प्राच्यपौरस्त्यैः समीक्षकैः बहु प्रशंसितम् ।

एकोनविंशसर्गात्मकमिदं …………………………… नाट्य कृतिरस्ति। [2010]
कुमारसम्भवे स्वामि- …………………………… रम्या शकुन्तला। [2013]

शब्दार्थ सचेतसाम् = रसिकों के सततमाह्लादयति = नित्य प्रसन्न करता है। केचन = कुछ। अन्वर्थतया = अर्थ के अनुसार। प्रेमाख्यानम् = प्रेम कथा प्रसूतोज्झितायाः (प्रसूता + उज्झितायाः) = जन्म दे करके छोड़ी गयी। शकुन्तैः = पक्षियों के द्वारा उद्वाहस्य = विवाह की। प्रथिता = प्रसिद्ध भणितिः = कथन, उक्ति। प्राच्यपौरस्त्यैः = पूर्वी और पश्चिमी।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में कालिदास की रचनाओं का संक्षिप्त परिचय दिया गया है।

अनुवाद उन्नीस सर्गों वाला यह (रघुवंशम्) महाकाव्य सुन्दर (रमणीय) अर्थ का प्रतिपादक होने के कारण रसिकों के हृदय को निरन्तर प्रसन्न करता है। ‘कुमारसम्भवम्’ काव्य में स्वामी कार्तिकेय के जन्म का वर्णन है। यह काव्य भी अठारह सर्गों वाला है। कुछ आलोचक आठ सर्ग तक ही इस काव्य को कालिदास के द्वारा रचा हुआ मानते हैं। ‘मेघदूतम्’ में यक्ष-यक्षिणी के वियोग को आधार बनाकर विप्रलम्भ श्रृंगार का पूर्ण परिपाक दिखाई देता है। ‘ऋतुसंहारः’ में (UPBoardSolutions.com) अर्थ के अनुसार छः ऋतुओं का वर्णन है। ‘मालविकाग्निमित्रम् नाटक में अग्निमित्र और मालविका के प्रेम की कथा है। पाँच अंकों वाले ‘विक्रमोर्वशीयम्’ नाटक में पुरूरवा और उर्वशी के प्रेम की कथा वर्णित है। ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ स्वनामधन्य इस कवि की सर्वश्रेष्ठ नाट्य-रचना है। इस नाटक में सात अंक हैं। मेनका के द्वारा जन्म देकर त्यागी गयी, पक्षियों के द्वारा पोषण की गयी और उसके बाद कण्व के द्वारा पालन की गयी शकुन्तला के दुष्यन्त के साथ विवाह की कथा वर्णित है। ‘शाकुन्तलम्’ (नाटक) के विषय में यह उक्ति प्रसिद्ध है–काव्यों में नाटक सुन्दर होता है, उसमें शकुन्तला (अभिज्ञानशाकुन्तलम् ) सुन्दर है। इस नाटक की पूर्वी और पश्चिमी आलोचकों ने बहुत प्रशंसा की है।

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(7) वस्तुतः कालिदासः मूर्धन्यतमः भारतीयः कविरस्ति। एकतस्तस्य कृतिषु काव्योचितगुणानां समाहारः दृश्यते अपरतश्च भारतीयजीवनपद्धतेः सर्वाङ्गीणतो तत्र राराजते। काव्योत्कर्षदृष्ट्या तस्य काव्येषु मानवमनसः सूक्ष्मानुभूतीनामिन्द्रधनुः कस्यापि सहृदयस्य चित्तमावर्जयितुं पारयति। प्रकृतिरपि स्वजडत्वं विहाय सर्वत्र मानवसहचरीवाचरति। रघुवंशे दिग्विजयार्थं प्रस्थितस्य रघोः सभाजनं वनवृक्षाः प्रसूनवृष्टिभिः सम्पादयन्ति। मेघे विरहोत्कण्ठितस्य यक्षस्य प्रेमविह्वलतायाः अद्वितीय सृष्टिः परिलक्ष्यते। तत्र बाह्यान्तः प्रकृत्योः मर्मस्पृग्वर्णनमस्ति। कविदृष्ट्या मेघः धूमज्योतिस्सलिलमरुतां सन्निपातो न भूत्वा एकः संवेदनशीलः मानवोपमः प्राणी अस्ति। स रामगिरेः आरभ्यालकां यावत् यस्य कस्यापि सन्निधि लभते तस्मै हर्षोल्लासौ वितरति। शाकुन्तलनाटके पतिगृहगमनकाले आश्रमपादपाः स्वभगिन्यै शकुन्तलायै आभरणानि समर्पयन्ति। हरिणार्भकः तस्याः मार्गावरोधं कृत्वा स्वकीयं निश्छलं प्रेम प्रकटयति। एवमेव नद्यः प्रेयस्य इवाचरन्ति। सूर्यः अरुणोदयवेलायां स्वप्रियतमायाः नलिन्याः तुषारबिन्दुरूपाणि अश्रूणि स्वकरैः परिमृजति।

रघुवंशे दिग्विजयांर्थं ……………………………………….. हर्षोल्लासौ वितरति। [2006, 08]
वस्तुतः कालिदासः ………………………………………………… सम्पादयन्ति। [2008, 11]
शाकुन्तलनाटके …………………………………….. स्वकरैः परिमृजति।

शब्दार्थ मूर्धन्यतमः = सर्वश्रेष्ठ। एकतः = एक ओर। समाहारः = समावेश। अपरतः = दूसरी ओर। राराजते = अत्यन्त सुशोभित हो रही है। सूक्ष्मानुभूतीनामिन्द्रधनुः (सूक्ष्म + अनुभूतीनां + इन्द्रधनुः) = सूक्ष्म अनुभूतियों का इन्द्रधनुष। आवर्जयितुम् = प्रभावित करने में पारयति = समर्थ होता है। विहाय = त्यागकर। सहचरीव = साथ रहने वाली के समान। आचरति = आचरण करती है। सम्पादयन्ति = पूर्ण करते हैं। परिलक्ष्यते = दिखाई देती है। बाह्यान्तः प्रकृत्योः = बाहरी और आन्तरिक प्रकृतियों का। मर्मस्पृक् = मर्मस्पर्शी, हृदय को छूने वाला। धूमज्योतिस्सलिलमरुतां = धुआँ, प्रकाश, पानी और वायु सन्निपातः = समूह। न भूत्वा = न होकर। (UPBoardSolutions.com) आरभ्य-अलकां = आरम्भ करके अलका को। सन्निधिम् = समीपता को। स्वभगिन्यै = अपनी बहन के लिए। आभरणानि = आभूषणों को। अर्भकः = बच्चा। मार्गावरोधं कृत्वा = मार्ग को रोककर। प्रकटयति = प्रकट करता है। नलिन्याः = कमलिनी के। स्वकरैः = अपनी किरणों (हाथों) से। परिमृजति = पोंछता है।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में यह कहा गया है कि कालिदास की रचनाएँ कितनी माधुर्यपूर्ण हैं।

अनुवाद वास्तव में कालिदास सर्वश्रेष्ठ भारतीय कवि हैं। एक ओर (जहाँ) उनकी रचनाओं में काव्य के लिए उचित गुणों का समावेश दिखाई देता है तो दूसरी ओर उनमें भारतीय जीवन-पद्धति की सर्वांगीणता भी सुशोभित होती है। काव्य की श्रेष्ठता की दृष्टि से उनके काव्यों में मानव-मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का इन्द्रधनुष किसी भी सहृदय को प्रभावित करने में समर्थ है। प्रकृति भी अपनी जड़ता को छोड़कर सभी जगह (काव्यों में) मानव की सहचरी के समान आचरण करती है। रघुवंशम्’ में दिग्विजय के लिए प्रस्थान किये हुए रघु का सम्मान वन के वृक्ष पुष्पों की वर्षा से सम्पादित करते हैं। ‘मेघदूतम्’ में विरह से उत्कण्ठित यक्ष की प्रेम-विह्वलता की अद्वितीय सृष्टि परिलक्षित होती है। उसमें बाह्यप्रकृति और अन्त:प्रकृति का मर्मस्पर्शी वर्णन है। कवि की दृष्टि में मेघ धुआँ, प्रकाश, जल, वायु का समूह न होकर एक संवेदनशील (UPBoardSolutions.com) मानव के समान प्राणी है। वह रामगिरि से लेकर अलका तक जिस किसी की समीपता प्राप्त करता है, उसे हर्ष और उल्लास प्रदान करता है। ‘शाकुन्तलम्’ नाटक में पति के घर जाते समय आश्रम के वृक्ष अपनी बहन शकुन्तला को आभूषण प्रदान करते हैं। हिरन का बच्चा (शावक) उसका रास्ता रोककर अपने निष्कपट प्रेम को प्रकट करता है। इसी प्रकार नदियाँ भी प्रेमिका की तरह आचरण करती हैं। सूर्य अरुणोदय (प्रथम किरण निकलने) के समय अपनी प्रियतमा कमलिनी के ओस की बूंदरूपी आँसुओं को अपनी किरणों (हाथों) से पोंछता है।

(8) कालिदासकाव्येषु अङ्गीरसः शृङ्गारोऽस्ति। तस्य पुष्ट्यर्थं करुणादयोऽन्ये रसाः अङ्गभूताः। रसानुरूपं क्वचित प्रसादः क्वचिच्च माधुर्यं तस्य काव्योत्कर्षेः साहाय्यं कुरुतः। वैदर्भीरीतिः कालिदासस्य वाग्वश्येव सर्वत्रानुवर्तते। अलङ्कारयोजनायां कालिदासोऽद्वितीयः। यद्यपि उपमाकालिदासस्येत्युक्तिः उपमायोजनायामेव कालिदासस्य वैशिष्ट्यमाख्याति तथापि उत्प्रेक्षार्थान्तरन्यासादीनामलङ्काराणां विनियोगः तेनातीव सहजतया कृतः। कालिदासस्य नाट्यकृतिषु विशेषतः शाकुन्तले वस्तुविन्यासः अनुपमः, चरित्रचित्रणं सर्वथानवद्यं संवादशैली सम्प्रेषणीयास्ति। सममेव भारतीयसंस्कृत्यनुमतानां धर्मार्थकाममोक्षमूलानां मानवमूल्यानां प्रकाशनं कालिदासस्य वैशिष्ट्यमस्ति। आश्रमवासिनीं शकुन्तला निर्वयँ मनसि कामप्ररोहमनुभूय दुष्यन्तः तावच्छान्ति न लभते यावत्तां क्षत्रियपरिग्रहक्षमा विश्वामित्रस्य दुहितेयमिति नार्वेति। (UPBoardSolutions.com) कण्वस्यानुज्ञां विना गन्धर्वविधिना कृतः विवाहः उभावपि तावत्प्रताडयति यावदेकतः शकुन्तला मारीचाश्रमे तपश्चरणेन अवज्ञाजनितं कलुषं न क्षालयति, अपरतः दुष्यन्तः अङ्गुलीयलाभेन लब्धस्मृतिः सन् भृशं पीयमानः प्रायश्चित्ताग्नौ आत्मशुद्धि न कुरुते। तदनन्तरमेव तयोः दाम्पत्यप्रेम निष्कलुषं भवति पुत्रोपलब्धौ च परिणमते।

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कालिदासस्य नाट्यकृतिषु …………………………. च परिणमते। [2007]
कालिदासकाव्येषु …………………………………. सहजतया कृतः। [2007,11]
कालिदासस्य नाटयकृतिषु …………………………….. इति नावैति। [2009]

शब्दार्थ अङ्गीरसः = प्रधान रस। अङ्गभूताः = सहायक, गौण रूप में। क्वचित् = कहीं। काव्योत्कर्षेः = काव्य की उन्नति में। वाग्वश्येव (वाक् + वश्या + इव) = वाणी के वश में होने वाली के समान। अनुवर्तते = अनुसरण करती है। आख्याति = बताती है। विनियोगः = प्रयोग। तेनातीव = उसने अधिकता से। सहजतया = सरलता से। वस्तुविन्यासः = कथावस्तु का संघटन। अनवद्यम् = निर्दोष सम्प्रेषणीया = प्रेषण गुण से युक्त। सममेव = साथ ही। निर्वण्र्य = देखकर। कामप्ररोहमनुभूय (UPBoardSolutions.com) (काम + प्ररोहम् + अनुभूय) = काम-भाव की उत्पत्ति का अनुभव करके। क्षत्रियपरिग्रहक्षमाम् = क्षत्रिय द्वारा विवाह के योग्य। दुहितेयमिति (दुहिता + इति + इयम्) = पुत्री है यह ऐसा। नावैति = नहीं जान लेता है। कण्वस्यानुज्ञाम् = कण्व की अनुमति के उभावपि (उभौ + अपि) = दोनों को। अवज्ञाजनितम् = अपमान से उत्पन्न। कलुषम् = पाप। क्षालयति = धो देती है। लब्धस्मृतिः = स्मृति पाकर (याद करके)। भृशं = अधिक। प्रायश्चित्ताग्नौ = प्रायश्चित्त रूपी अग्नि में। तदनन्तरमेव = इसके बाद ही। निष्कलुषम् = निर्मल, पापरहित परिणमते = फलित होता है।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में कालिदास के काव्यों की भावपक्षीय व कलापक्षीय विशेषताओं; यथा–रस, शैली, अलंकार आदि का वर्णन किया गया है।

अनुवाद कालिदास के काव्यों में मुख्य रस श्रृंगार है। उसकी पुष्टि के लिए करुण आदि अन्य रस सहायक रूप में हैं। रस के अनुरूप कहीं प्रसाद गुण और कहीं माधुर्य गुण उनके काव्य के विकास में सहायता प्रदान करते हैं। वैदर्भी रीति कालिदास की वाणी के वश में हुई-सी सभी जगह अनुसरण (वाणी का) करती है। अलंकारों की योजना में कालिदास अद्वितीय हैं। यद्यपि ‘उपमा कालिदासस्य’ यह कथन उपमा की योजना में कालिदास की विशेषता बताता है, फिर भी उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यास आदि अलंकारों का प्रयोग उन्होंने अत्यधिक स्वाभाविक ढंग से किया है। कालिदास की नाट्य रचनाओं में, विशेषकर ‘शाकुन्तलम्’ नाटक में, कथावस्तु (UPBoardSolutions.com) की योजना अनुपम है; चरित्र-चित्रण सभी प्रकार से निर्दोष और संवाद-शैली प्रेषण गुण से समन्वित है। साथ ही भारतीय संस्कृति के मतानुसार धर्म, अर्थ, काम, मोक्षस्वरूप मानव-मूल्यों का प्रकाशन कालिदास की विशेषता है। आश्रम में निवास करने वाली शकुन्तला को देखकर, मन में काम के अंकुर की अनुभूति करके दुष्यन्त तब तक शान्ति प्राप्त नहीं करते हैं, जब तक उसे क्षत्रिय के द्वारा विवाह के योग्य विश्वामित्र की पुत्री नहीं जान लेते हैं। कण्व की आज्ञा के बिना गन्धर्व विधि से किया गया विवाह दोनों को ही तब तक सताता रहता है, जब तक एक ओर शकुन्तला मारीच ऋषि के आश्रम में तपस्या के आचरण से (दुर्वासा के) अपमान से उत्पन्न पाप को नहीं धो डालती, दूसरी ओर दुष्यन्त अँगूठी के मिलने से स्मृति (याद) पाकर अत्यन्त पीड़ित होते हुए प्रायश्चित्त की अग्नि में आत्मशुद्धि नहीं कर लेते हैं। इसके बाद ही उन दोनों का दाम्पत्य-प्रेम निष्पाप (शुद्ध) होता है और पुत्र की प्राप्ति में प्रतिफलित होता है।

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(9) रघुवंशे कालिदासः रघुवंशिनां चित्रणं तथा करोति यथा भारतीयजनजीवनस्योदात्तादर्शानां सम्यग् दिग्दर्शनं भवेत्। रघुकुलजाः राजानः प्रजाक्षेमाय बलिमाहरन्। मितसंयतभाषिणस्ते सदा सत्यनिष्ठाः आसन्। यशस्कामास्ते तदर्थं प्राणानपि त्यक्तं सदैवोद्यता अभवन्। केवल सन्तत्यर्थे ते गृहमेधिनो बभूवुः। शैशवे विद्यार्जनं यौवने रञ्जनम्। वार्द्धक्ये मुक्त्यर्थं मुनिवदाचरणं तेषां व्रतमासीत्। बाल वृद्धवनितादीनां यदाचरणं कालिदासकाव्ये निरूपितं तत्सर्वथा भारतीयसंस्कृतिगौरवानुरूपमेव। [2009,14]

शब्दर्थ उदात्तादर्शानाम् = श्रेष्ठ आदर्शों का सम्यग् = भली प्रकार दिग्दर्शनम् = वर्णन। क्षेमाय = भलाई के लिए। बलिम् = टैक्स, कर। आहरन् = लेते थे। मितसंयतभाषिणस्ते = सीमित और संयमपूर्ण वचन बोलने वाले वे। यशस्कामास्ते = यश चाहने वाले वे| उद्यताः = तैयार। सन्तत्यर्थे = सन्तानोत्पत्ति के लिए। गृहमेधिनः = गृहस्थ धर्म वाले। रञ्जनम् = भोग। वार्धक्ये = वृद्धावस्था में। मुनिवदाचरणम् (मुनिवत् + आचरणम्) = मुनियों के समान आचरण। वनिता = स्त्री। निरूपितम् = वर्णन किया गया है, वर्णित है। अनुरूपम् = समान।

प्रसग प्रस्तुत गद्यांश में रघुवंशी राजाओं के आचरण का वर्णन किया गया है।

अनुवाद ‘रघुवंशम्’ में कालिदास रघुवंशी राजाओं का चित्रण उस प्रकार करते हैं, जिससे भारतीय जनजीवन के श्रेष्ठ आदर्शों का अच्छी तरह वर्णन हो सके। रघुकुल में उत्पन्न हुए राजा लोग प्रजा की भलाई के लिए कर (टैक्स) लेते थे। परिमित और सधी हुई वाणी बोलने वाले वे सदा सत्यनिष्ठ होते थे। (UPBoardSolutions.com) यश की इच्छा करने वाले वे उसके लिए प्राणों को भी छोड़ने हेतु सदैव तैयार रहते थे। केवल सन्तान के लिए ही वे गृहस्थ धर्म वाले होते थे। बचपन में विद्या-प्राप्ति, युवावस्था में भोग और वृद्धावस्था में मुक्ति के लिए मुनियों के समान आचरण करना उनका व्रत था। बालक, वृद्ध, स्त्री आदि का जो आचरण कालिदास के काव्य में निरूपित हुआ है, वह सभी तरह से भारतीय संस्कृति के गौरव के अनुरूप ही है।

(10) आहिमवतः सिन्धुवेलां यावत् विकीर्णाः भारतगौरवगाथाः कालिदासेन स्वकृतिषुपनिबद्धाः। रघुवंशे, मेघे, कुमारसम्भवे च भारतदेशस्य विविधभूभागानां गिरिकाननादीनां यादृक्स्वा भाविकं मनोहारि च चित्रणं लभ्यते, स्वचक्षुषाऽनक्लोक्य तदसम्भवमस्ति। तथाविधं तस्य देशप्रेम तस्य काव्योत्कर्ष समुद्रढयति। सन्तु तत्रानल्पा संस्कृतकवयः किन्तु कस्यापि कालिदासेन साम्यं नास्ति। साधूक्तम् केनचित् कालिदासानुरागिणा –

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पुरा कवीनां गणनाप्रसङ्गे कनिष्ठिकाधिष्ठितकालिदासः।
अद्यापि तत्तुल्यकवेरभावादनामिका सार्थवती बभूव [2005]

आहिमवतः …………………………………… साम्यं नास्ति। [2006, 11, 15]

शब्दार्थ आहिमवतः = हिमालय से लेकर। सिन्धुवेलां यावत् = समुद्र तट तक। विकीर्णाः = बिखरी हुई, फैली हुई। स्वकृतिषुपनिबद्धाः (स्वकृतिषु + उपनिबद्धाः) = अपनी रचनाओं में सम्मिलित की है। यादृक् = जैसा। लभ्यते = प्राप्त होता है। अनवलोक्य = देखे बिना। तदसम्भवमस्ति (तत् + असम्भवम् + अस्ति) = असम्भव है।

समुद्रढयति = अच्छी तरह दृढ करता है। अनल्पाः = बहुत-से। साम्यम् = समानता, बराबरी। साधूक्तम् = ठीक कहा है। अनुरागिणा = प्रेमी ने। गणनाप्रसङ्गे = गणना के अवसर पर। कनिष्ठिकाधिष्ठित = कनिष्ठिका (छोटी) अँगुली पर रखा गया। अद्यापि = आज भी। अनामिका = अँगूठे की ओर से चौथी अँगुली, बिना नाम वाली। सार्थवती = सार्थक, अर्थात् अर्थ साथ रखने वाली। बभूव = हो गयी।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में संस्कृत के कवियों में कालिदास की सर्वश्रेष्ठता बतायी गयी है।

अनुवाद हिमालय से लेकर समुद्रपर्यन्त भारत के गौरव की जितनी गाथाएँ फैली हैं, वे कालिदास ने अपनी रचनाओं में निबद्ध की हैं। रघुवंशम्’, ‘मेघदूतम्’ और ‘कुमारसम्भवम्’ में भारत देश के विविध भू-भागों, पर्वत और वनों का जैसा स्वाभाविक और मनोहर चित्रण मिलता है, अपनी (UPBoardSolutions.com) आँख से देखे बिना वह (ऐसा वर्णन) असम्भव है। उस प्रकार का उनका देश-प्रेम उनके काव्य की श्रेष्ठता को दृढ़ करता है। भले ही संस्कृत में बहुत-से कवि हों, किन्तु किसी की भी कालिदास के साथ समानता नहीं है। कालिदास के किसी प्रेमी ने ठीक कहा है –

प्राचीनकाल में, कवियों की गणना करने के प्रसंग में कालिदास का नाम कनिष्ठिका (सबसे छोटी) अँगुली पर रखा गया, अर्थात् सर्वप्रथम गिना गया। आज भी उनके बराबर (समान स्तर) के कवि के न होने से अनामिका (बिना नाम वाली) अँगुली सार्थक हो गयी है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कालिदास की काव्य-शैली का परिचय दीजिए।
उत्तर :
कालिदास के काव्यों में प्रधान रस ‘श्रृंगार’ है। शेष करुण आदि रस उसके सहायक होकर आये हैं। रस के अनुरूप प्रसाद और माधुर्य गुणों की सृष्टि की गयी है। कालिदास वैदर्भी रीति के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। ये अलंकारों के, विशेषकर उपमा के प्रयोग में सिद्धहस्त हैं। इनके नाटकों में वस्तुविन्यास अनुपम, चरित्र-चित्रण निर्दोष और शैली में सम्प्रेषणीयता है। इनके काव्यों में मानव-मूल्यों की प्रतिष्ठा की गयी है।

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प्रश्न 2.
महाकवि कालिदास के ग्रन्थों ( रचनाओं) के नाम लिखिए। [2007,08, 10, 11]
या
महाकवि कालिदास के नाटकों के नाम लिखिए। [2012, 13]
या
महाकवि कालिदास रचित दो महाकाव्यों के नाम लिखिए। [2007, 08, 14]
या
कालिदास रचित विविध ग्रन्थों के नाम लिखिए। [2015]
या
‘रघुवंशम्’ महाकाव्य किसकी रचना है? [2007]
उत्तर :
कालिदास को देववाणी का विलास कहा जाता है। संस्कृत भाषा को समस्त सौन्दर्य इनकी रचनाओं में साकार हो गया है। इन्होंने ‘रघुवंशम्’ और ‘कुमारसम्भवम्’ दो महाकाव्य, ‘मेघदूतम्’ और ‘ऋतुसंहार: दो गीतिकाव्य तथा ‘मालविकाग्निमित्रम्’, ‘विक्रमोर्वशीयम्’ एवं (UPBoardSolutions.com) ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ तीन नाटकों की रचना की है।

प्रश्न 3.
महाकवि कालिदास के विषय में क्या जनश्रुति प्रसिद्ध है? [2006]
उत्तर :
कालिदास के विषय में यह जनश्रुति प्रसिद्ध है कि ये विक्रमादित्य के सभारत्न थे, किन्तु विडम्बना यह है कि कोई विद्वान् इन्हें चन्द्रगुप्त द्वितीय का समकालीन मानता है तो कोई उज्जैन के राजा विक्रमादित्य का समकालीन। इस महान् कवि को सभी अपने-अपने देश में उत्पन्न हुआ सिद्ध करते हैं। कुछ विद्वान् इन्हें कश्मीर में उत्पन्न हुआ मानते हैं तो कुछ बंगाल में उत्पन्न हुआ।

प्रश्न 4.
कालिदास को सर्वश्रेष्ठ कवि कहे जाने का कारण बताइए।
या
कालिदास को ‘कविकुलगुरु’ क्यों कहा जाता है? [2012]
उत्तर :
कालिदास की रचनाओं में काव्योचित गुणों के साथ-साथ भारतीय जीवन पद्धति की सर्वांगीणता भी सुशोभित होती है। उनका काव्य सहृदय-जनों को प्रभावित करने में समर्थ है। हिमालय से लेकर समुद्रपर्यन्त तक जितनी भी भारत के गौरव की गाथाएँ हैं, उन सभी को कालिदास ने अपनी (UPBoardSolutions.com) रचनाओं में निबद्ध किया है। बालक, वृद्ध, स्त्री आदि का आचरण इनके काव्य में भारतीय संस्कृति के गौरव के अनुरूप ही निरूपित हुआ है। ये सभी कारण कालिदास की सर्वश्रेष्ठता को प्रमाणित करते हैं। इसीलिए कालिदास को ‘कविकुलगुरु’ कहा जाता है।

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प्रश्न 5.
महाकवि कालिदास की रचनाओं का परिचय दीजिए।
उत्तर :
[ संकेत ‘पाठ-सारांश’ के उपशीर्षक ‘रचनाएँ’ शीर्षक की सामग्री अपने शब्दों में लिखें। ]

प्रश्न 6.
‘मेघदूत’ में कवि ने किसका वर्णन किया है? [2010, 11, 12]
उत्तर :
‘मेघदूत’ में महाकवि कालिदास ने विरह से उत्कण्ठित यक्ष की प्रेमविह्वलता तथा बाह्य-प्रकृति व अन्त:-प्रकृति का मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।

प्रश्न 7.
कालिदास का जीवन-परिचय लिखिए। [2006,07]
उत्तर :
महाकवि कालिदास संस्कृत के कवियों में मूर्धन्य तथा विश्व के महानतम कवियों में से एक हैं। इनका जन्म कब और कहाँ हुआ, इस विषय में विद्वान् एकमत नहीं हैं। एक जनश्रुति के अनुसार ये विक्रमादित्य के सभारत्न थे तो कुछ विद्वान् इन्हें चन्द्रगुप्त द्वितीय का समकालीन मानते हैं। (UPBoardSolutions.com) कुछ विद्वान् इन्हें कश्मीर में उत्पन्न हुआ मानते हैं तो कुछ बंगाल में। इनकी रचनाओं में वर्णित तथ्यों के आधार पर इन्हें ब्राह्मण कुल में जन्म लिया हुआ तथा शिव व राम का भक्त माना जाता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है। कि इनका जीवन-वृत्त सभी प्रकार से अज्ञान के अन्धकार में छिपा हुआ है।

प्रश्न 8.
कालिदास का जन्म किस कुल में हुआ था? [2009]
उत्तर :
कालिदास के कुल का स्पष्ट परिचय प्राप्त नहीं होता है। इनकी रचनाओं में वर्ण, आश्रम और धर्म की व्यवस्था का उचित प्रतिपादन होने के कारण विद्वानों का अनुमान है कि इनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था।

प्रश्न 9.
कवि-गणना में कनिष्ठिका पर किस कवि को गिना गया है? [2010]
उत्तर :
कवि-गणना में कनिष्ठिका अर्थात् सबसे छोटी अँगुली पर कालिदास को गिना गया है, अर्थात् सर्वप्रथम गिना गया है।

प्रश्न 10.
अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ कथा के नायक-नायिका का क्या नाम है? [2013]
उत्तर :
‘अभिज्ञानशाकुन्तलम् कथा के नायक हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त’ और नायिका अप्सरा मेनका की पुत्री ‘शकुन्तला’ है।

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प्रश्न 11
‘मेघदूतम्’ में कवि ने किसको दूत बनाकर कहाँ भेजा है? [2013]
उत्तर :
‘मेघदूतम्’ में कवि कालिदास ने मेघ (बादल) को यक्ष का दूत बनाकर यक्षिणी अलका के पास सन्देश भेजा है।

प्रश्न 12.
कालिदास के नाटकों का संक्षिप्त परिचय दीजिए। [2013]
उत्तर :
महाकवि कालिदास ने ‘मालविकाग्निमित्रम्’, ‘विक्रमोर्वशीयम्’ एवं ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ नामक तीन नाटकों की रचना की है। ‘मालविकाग्निमित्रम्’ नाटक में अग्निमित्र और मालविका के प्रेम की कथा है। पाँच अंकों वाले ‘विक्रमोर्वशीयम्’ नाटक में पुरूरवा और उर्वशी के प्रेम की कथा वर्णित है। (UPBoardSolutions.com) ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम् कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है, जिसमें सात अंक हैं। इसमें मेनका नामक अप्सरा के द्वारा जन्म देकर त्यागी गयी और कण्व के द्वारा पालन की गयी शकुन्तला के दुष्यन्त के साथ प्रेम और विवाह तत्पश्चात् वियोग और पुनर्मिलन की कथा वर्णित है।

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