UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 8  सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 8  सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” (काव्य-खण्ड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

(दान)

1. निकला पहिला ……………………………………………………………………. आवेश-चपल। (Imp.)

शब्दार्थ-पहिला अरविन्द = यहाँ इसके दो अर्थ हैं-

  • सरोवर में खिला हुआ पहला कमल,
  • प्रात:काल का सूर्य (ज्ञान)

अनिन्द्य = सुन्दर, निर्दोष सौरभ-वसना = सुगन्धि के वस्त्र धारण किये हुए। क्षीण कटि = पतली कमर (धारा) वाली। नटी-नवल = नव-यौवना, नर्तकी।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित तथा सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘अपरा’ नामक काव्य ग्रन्थ से ‘दान’ शीर्षक कविता से ली गयी हैं।

प्रसंग – इस कविता में उन ढोंगी दानियों पर व्यंग्य किया गया है, जिनके हृदय में दया लेशमात्र भी नहीं है तथा जो धर्म के नाम पर केवल दान का ढोंग करते हैं। इन पंक्तियों में कवि ने प्रात:कालीन प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया है।

व्याख्या – प्रकृति के रहस्यमय सुन्दर श्रृंगार को देखने के लिए पौ फटते ही पहला कमल खिल गया अथवा प्रकृति के रहस्यों को निर्दोष भाव से देखने के लिए आज ज्ञान का प्रतीक सूर्य निकल आया है। आज ही पहली बार कवि को धर्म के बाह्य आडम्बर का स्वरूप देखकर वास्तविक ज्ञान प्राप्त हुआ है। सुगन्धिरूपी वस्त्र धारण कर वायु मन्द-मन्द बह रही है। वह जब कानों के निकट से गुजरती है तो ऐसा मालूम पड़ता है (UPBoardSolutions.com) कि वह प्राणों को पुलकित करनेवाला गतिशीलता का सन्देश दे रही हो। गोमती नदी में कहीं-कहीं पानी कम होने से वह एक पतली कमरवाली नवेली नायिका-सी जान पड़ती है। उसमें उठती-गिरती लहरों के कारण वह धारा मधुर उमंग से भरकर नृत्य करती हुई-सी जान पड़ती है।

काव्यगत सौन्दर्य – कवि ने गोमती तट पर प्रात:कालीन प्राकृतिक सौन्दर्य का सजीव वर्णन किया है।

  • गोमती नदी को नवयौवना नर्तकी कहकर नदी का मानवीकरण किया गया है।
  • भाषा-संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली।
  • शैली-प्रतीकात्मक, वर्णन
  • रस-शान्त, श्रृंगार।
  • शब्द-शक्ति-‘निकला पहिला अरविन्द आज’ में लक्षणा।
  • गुण-माधुर्य।
  • अलंकार-रूपक, मानवीकरण और अनुप्रास

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2. मैं प्रातः पर्यटनार्थ चला ……………………………………………………………………. वह पैसा एक, उपायकरण।
अथवा ढोता जो वह ……………………………………………………………………. उपाय करण।

शब्दार्थ-पर्यटनार्थ = भ्रमण के लिए। निश्चल = स्थिर। सदया = दया भाव से युक्त। कृष्णकाय = काले शरीरवाला।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘दान’ शीर्षक कविता से अवतरित है।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियों में दान का ढोंग करनेवालों पर व्यंग्य किया गया है। कवि ने ऐसी ही एक घटना का चित्रात्मक वर्णन किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि मैं एक दिन सवेरे गोमती नदी के तट पर घूमने के लिए गया और लौटकर पुल के समीप आकर खड़ा हो गया। वहाँ मैं सोचने लगा कि इस संसार के सभी नियम अटल हैं। प्रकृति दया-भाव से सब मनुष्यों को उनके कर्मों का फल प्रदान करती है अर्थात् मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार ही फल पाते हैं। इस प्रकार उनके सोचने के लिए कुछ भी नवीन नहीं होता। सौन्दर्य, गीत, विविध रंग, गन्ध, भाषा, मनोभावों को छन्दों में बाँधना और मनुष्य को प्राप्त होनेवाले ऊँचे-ऊँचे भोग तथा और भी कई प्रकार के दान, जो मनुष्य को प्रकृति ने प्रदान किये हैं या उसने अपने परिश्रम से प्राप्त किये हैं, इन सबमें मनुष्य श्रेष्ठ और सौभाग्यशाली है। (UPBoardSolutions.com) फिर निराला जी ने देखा कि गोमती के पुल पर बहुत बड़ी संख्या में बन्दर बैठे हुए हैं तथा सड़क के एक ओर दुबला-पतला काले रंग का मृतप्राय, जो हड़ियों का ढाँचामात्र था, ऐसा एक भिखारी बैठा हुआ है। वह भिक्षा पाने के लिए अपलक नेत्रों से ऊपर की ओर देख रहा है। उसका कण्ठ भूख के कारण बहुत कमजोर पड़ गया था और उसकी श्वास भी तीव्र गति से चल रही थी। ऐसा लग रहा था, मानो वह जीवन से बिल्कुल उदास होकर शेष घड़ियाँ व्यतीत कर रहा हो। न जाने इस जीवन के रूप में वह कौन-सा शाप ढो रहा था और किन पापों का फल भोग रहा था? मार्ग से गुजरनेवाले सभी लोग यही सोचते थे, किन्तु कोई भी इसका उत्तर नहीं दे पाता था। कोई अधिक दया दिखाता तो एक पैसा उसकी ओर फेंक देता।

काव्यगत सौन्दर्य

  • कवि ने मानव को प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना बताया है।
  • कवि का विचार है कि मनुष्य अपने पूर्वजन्म के कर्मों के कारण दु:ख भोगता है।
  • भाषा-संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली
  • शैली- वर्णनात्मक।
  • रस-शान्त
  • अलंकार-जीता ज्यों जीवन से उदास’ में अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा है।

3. मैंने झुक नीचे ……………………………………………………………………. श्रेष्ठ मानव!
अथवा मैंने झुक ……………………………………………………………………. तत्पर वानर।

शब्दार्थ-पारायण = अध्ययन। कपियों = बन्दरों सरिता-मजन = नदी में स्नान । इतर = दूसरा। दूर्वादल = दूब। तण्डुल = चावल।।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तके ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘दान’ शीर्षक कविता से अवतरित है।

प्रसंग – सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ ने अपनी ‘दान’ शीर्षक कविता में ढोंग करनेवाले दिखावटी धार्मिक लोगों पर तीखा व्यंग्य किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि मैंने झुककर पुल के नीचे देखा तो मेरे मन में कुछ आशा जगी । वहाँ एक ब्राह्मण स्नान करके शिव जी पर जल चढ़ाकर और दूब, चावल, तिल आदि भेंट करके अपनी झोली लिये हुए ऊपर आया। उसको देखकर बन्दर शीघ्रता से दौड़े। यह ब्राह्मण भगवान् राम का भक्त था। उसे भक्ति करने से कुछ मनोकामना पूरी होने की आशा थी। वह बारहों महीने भगवान् शिव की आराधना करता था। वे ब्राह्मण महाशय प्रतिदिन प्रात:काल रामायण का पाठ करने के बाद ‘ श्रीमन्नारायण’ मन्त्र का जाप करते हैं। वह (UPBoardSolutions.com) अन्धविश्वासी ब्राह्मण जब कभी दुःखी होता या असहाय दशा का अनुभव करता, तब हाथ जोड़कर बन्दरों से कहता कि वे उसका दु:ख दूर कर दें। कवि उस ब्राह्मण का परिचय देते हुए कहता है कि वे सज्जन मेरे पड़ोस में रहते हैं और प्रतिदिन गोमती नदी में स्नान करते हैं । उसने पुल के ऊपर पहुँचकर अपनी झोली से पुए निकाल लिये और हाथ बढ़ाते हुए बन्दरों के हाथ में रख दिये।

कवि को यह देखकर दुःख हुआ कि उसने बन्दरों को तो बड़े चाव से पुए खिलाये, परन्तु उधर घूमकर भी नहीं देखा, जिधर वह भिखारी कातर दृष्टि से देखता हुआ बैठा था। मानवीय करुणा की उपेक्षा और बन्दरों को पुए खिलाने के बाद वह अन्धविश्वासी ब्राह्मण बोला कि अब मैंने उन राक्षसी वृत्तियों से छुटकारा पा लिया है, जिनके कारण मैं दु:खी था, परन्तु निराला जी के मुख से निकला ‘ धन्य हो श्रेष्ठ मानव’। (UPBoardSolutions.com) भाव यह है कि जो मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है, उसकी इतनी दुर्गति कि उसे बन्दरों से भी तुच्छ समझा गया। मरणासन्न दशा में देखकर भी उसे भिक्षा के योग्य भी न समझा गया। मानवता का इससे बढ़कर क्रूर उपहास और क्या हो सकता है?

काव्यगत सौन्दर्य

  • कवि ने अन्धविश्वासी मानव के धार्मिक ढोंग पर तीव्र व्यंग्य किया है।
  • भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली।
  • शैली-व्यंग्यात्मक।
  • रस-शान्त।
  • अलंकार-अनुप्रास।

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प्रश्न 2.
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए। अथवा निराला जी की साहित्यिक सेवाओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए। अथवा निराला जी की साहित्यिक सेवाओं एवं काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालिए।

(सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ )
(स्मरणीय तथ्य )

जन्म – सन् 1897 ई०, मेदनीपुर (बंगाल)।
मृत्यु – सन् 1961 ई०।
पिता – पं० रामसहाय त्रिपाठी।
रचना – ‘राम की शक्ति-पूजा’, ‘तुलसीदास’, ‘अपरा’, ‘अनामिका’, ‘अणिमा’, ‘गीतिका’, ‘अर्चना’, ‘परिमल’, ‘अप्सरा’, ‘अलका’।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्य-विषय – छायावाद, रहस्यवाद, प्रगतिवाद, प्रकृति के प्रति तादात्म्य का भाव।
भाषा – खड़ीबोली जिसमें संस्कृत शब्दों की बहुलता है। उर्दू व अंग्रेजी के शब्दों तथा मुहावरों का प्रयोग।
शैली – 1. दुरूह शैली, 2. सरल शैली।। छन्द-तुकान्त, अतुकान्त, रबर छन्द।। अलंकार-उपमा, रूपक, अतिशयोक्ति, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय आदि।

जीवन-परिचय – हिन्दी के प्रमुख छायावादी कवि पं० सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म महिषा-दल, स्टेट मेदनीपुर (बंगाल) में सन् 1897 ई० की बसन्त पंचमी को हुआ था। वैसे ये उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ कोला गाँव के निवासी थे। इनके पिता पं० रामसहाय त्रिपाठी थे। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा बंगाल में हुई थी। 13 वर्ष की अल्पायु में इनका विवाह हो गया था। इनकी पत्नी बड़ी विदुषी और संगीतज्ञ थीं। उन्हीं के संसर्ग में रहकर इनकी रुचि हिन्दी साहित्य और संगीत की ओर हुई । निराला जी ने (UPBoardSolutions.com) हिन्दी, बंगला और संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। 22 वर्ष की अवस्था में ही पत्नी का देहान्त हो जाने पर अत्यन्त ही खिन्न होकर इन्होंने महिषादल स्टेट की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और स्वच्छन्द रूप से काव्य-साधना में लग गये। इन्होंने ‘समन्वय’ और ‘मतवाला’ नामक पत्रों का सम्पादन किया। इनका सम्पूर्ण जीवन संघर्षों में ही बीता और जीवन के अन्तिम दिनों तक ये आर्थिक संकट में घिरे रहे। सन् 1961 ई० में इनका देहान्त हो गया।

रचनाएँ – निराला जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कविता के अतिरिक्त इन्होंने उपन्यास, कहानी, निबन्ध, आलोचना और संस्मरण आदि विभिन्न विधाओं में भी अपनी लेखनी चलायी। परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, अपरा, बेला, नये पत्ते, आराधना, अर्चना आदि इनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं। इनकी अत्यन्त प्रसिद्ध काव्य-रचना ‘जुही की कली’ है। लिली, चतुरी चमार, (UPBoardSolutions.com) सुकुल की बीबी (कहानी संग्रह) एवं अप्सरा, अलका, प्रभावती इनके महत्त्वपूर्ण उपन्यास हैं। काव्यगत विशेषताएँ

(क) भाव-पक्ष-

  • हिन्दी साहित्य में निराला मुक्त वृत्त परम्परा के प्रवर्तक माने जाते हैं।
  • इनके काव्य में भाषा, भाव और छन्द तीनों समन्वित हैं।
  • ये स्वामी विवेकानन्द और स्वामी रामकृष्ण परमहंस की दार्शनिक विचारधारा से बहुत प्रभावित थे।
  • निराला के काव्य में बुद्धिवाद और हृदय का सुन्दर समन्वय है।
  • छायावाद, रहस्यवाद और प्रगतिवाद तीनों क्षेत्रों में निराला का अपना विशिष्ट महत्त्वपूर्ण स्थान है।
  • इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय प्रेरणा का स्वर भी मुखर हुआ है।
  • छायावादी कवि होने के कारण निराला का प्रकृति से अटूट प्रेम है। इन्होंने प्रकृति-चित्रण में प्रसाद जी की भाँति ही मानवीय भावों का आरोप करते। हुए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।

(ख) कला-पक्ष-
(1) भाषा-शैली-निराला जी की भाषा संस्कृतगर्भित खड़ीबोली है। यत्र-तत्र बंगला भाषा के शब्दों का भी प्रयोग मिल जाता है। इनकी रचनाओं में उर्दू और फारसी के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं। इनके काव्य में जहाँ हृदयगत भावों की प्रधानता है वहाँ भाषा सरल, मुहावरेदार और प्रवाहपूर्ण है। निराला के काव्य में प्राय: तीन प्रकार की शैलियों के दर्शन होते हैं

  • सरल और सुबोध शैली – (प्रगतिवादी रचनाओं में)
  • क्लिष्ट और दुरूह शैली – (रहस्यवादी एवं छायावादी रचनाओं में)
  • हास्य-व्यंग्यपूर्ण शैली – (हास्य-व्यंग्यपूर्ण रचनाओं में)

(2) रस-छन्द-अलंकारे-निराला के काव्य में श्रृंगार, वीर, रौद्र और हास्य रस का सुन्दर और स्वाभाविक ढंग से परिपाक हुआ है। निराला जी परम्परागत काव्य छन्दों से (UPBoardSolutions.com) सर्वथा भिन्न छन्दों के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनके मुक्तछन्द दो प्रकार के हैं। (1) तुकान्त (2) अतुकान्त। दोनों प्रकार के छन्दों में लय और ध्वनि का विशेष ध्यान रखा गया है।

अलंकारों के प्रति निराला जी की विशेष रुचि दिखलाई नहीं पड़ती। इन्होंने प्राचीन और नवीन दोनों प्रकार के उपमान की प्रयोग किया है। मानवीकरण और विशेषण जैसे अंग्रेजी के अलंकारों का भी इनके काव्य में प्रयोग मिलता है।

साहित्य में स्थान-निराला जी हिन्दी साहित्य के बहुप्रतिभा सम्पन्न कलाकार एवं साहित्यकार हैं। इन्होंने अपने परम्परागत क्रान्तिकारी स्वच्छन्द मुक्त काव्य-योजना का निर्माण किया। समय के परिवर्तन के साथ-साथ इनके काव्य में भी छायावाद, रहस्यवाद और प्रगतिवाद के दर्शन (UPBoardSolutions.com) हुए हैं। सब कुछ मिलाकर निराला भारतीय संस्कृति के युगद्रष्टा कवि हैं। छायावादी चार कवियों (प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा) में इनका प्रमुख स्थान है।

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प्रश्न 3.
निराला जी द्वारा रचित ‘दान’ कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा लिखित ‘दान’ कविता में दु:खी मानवों की उपेक्षा करके वानरों, कौओं आदि को भोजन खिलाने वाले मनुष्यों पर व्यंग्य किया गया है। ‘दान’ कविता का सारांश निम्न प्रकार है

सारांश – एक दिन प्रात:काल कवि घूमते-घूमते नदी के पुल पर जा पहुँचा और सोचने लगा कि यह प्रकृति-जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल देती है। संसार का सौन्दर्य, गीत, भाषा आदि सभी किसी-न-किसी रूप में प्रकृति का दान पाते हैं और सभी यही कहते हैं कि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है।

कवि ने देखा कि पुल के ऊपर बहुत से बन्दर बैठे हैं और मार्ग में एक ओर काले रंग का मरा हुआ-सा अत्यन्त दुर्बल भिखारी बैठा हुआ है। जैसे ही कवि ने झुककर नीचे की ओर देखा तो उन्हें वहाँ पर शिवजी के ऊपर चावल, तिल और जल चढ़ाते हुए एक ब्राह्मण दिखलायी दिया तत्पश्चात् वह ब्राह्मण एक झोली लेकर ऊपर आया। बन्दर उसे देखकर वहाँ आ गये। उसने बन्दरों को झोली से निकालकर पुए दे दिये और उसे भिखारी की ओर मुड़कर भी नहीं देखा। यह देखकर कवि को दुःख हुआ। वह व्यंग्य के साथ बोला–हे मानव, तू धन्य है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘दान’ शीर्षक कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर :
शीर्षक ‘दान’ निराला की चर्चित कविता है। प्रस्तुत पंक्तियों में दीनों, असहायों एवं शोषितों के प्रति संवेदना व्यक्त की गयी है। एक दिन निराला घूमते-फिरते नदी के पुल पर जा पहुँचे। पुल पर बहुत से बन्दर बैठे हुए थे। रास्ते में एक दुर्बल भिखारी भी बैठा हुआ है। नीचे शिवजी का मन्दिर (UPBoardSolutions.com) है। शिवजी के ऊपर चावल-तिल आदि चढ़ाने का ताँता लगा हुआ था। एक ब्राह्मण पूजा-पाठ करने के पश्चात् झोली लेकर पुल पर आया। झोली से पुए निकालकर बन्दरों को खिलाने लगा लेकिन भिखारी की ओर देखा तक नहीं। कवि को यह देखकर बहुत कष्ट होता है।

प्रश्न 2.
पुल पर खड़े होकर ‘निराला’ जी क्या सोचते हैं?
उत्तर :
पुल पर खड़े होकर सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ सोचते हैं कि इस सृष्टि का निर्माण करने वाले के नियम अटल हैं। यहाँ जो जैसा करता है उसे वैसे ही फल की प्राप्ति होती है।

प्रश्न 3.
निराला ने ‘दान’ कविता के माध्यम से किस पर प्रहार किया है?
उत्तर :
निराला ने ‘दान’ कविता के माध्यम से धनाढ्य लोगों पर प्रहार किया है, जो बन्दरों को मालपुए खिलाते हैं और निर्धन मनुष्य उन्हें बेबसी से देखते रह जाते हैं।

प्रश्न 4.
मानव के विषय में सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की धारणा पहले क्या थी?
उत्तर :
मानव को सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानते थे।

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प्रश्न 5.
‘कानों में प्राणों की कहती’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
जब सौरभ वसना समीर कानों के निकट से गुजरती है, वह मानो कानों में प्राणों को पुलकित करनेवाला प्रेम मन्त्र चुपचाप कह जाती है।

प्रश्न 6.
‘दान’ शीर्षक कविता में कवि द्वारा किये गये व्यंग्य की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
कविवर निराला ने ‘दान’ शीर्षक कविता में समाज की इस अमानवीय प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है कि भक्त लोग एक भूखे मनुष्य को भोजन कराने के स्थान पर बन्दरों को पुए खिलाते हैं और यह समझते हैं कि इससे उन्हें परम पुण्य की प्राप्ति होगी।

प्रश्न 7.
‘दान’ शीर्षक कविता पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
एक दिन प्रात:काल कवि घूमते-घूमते नदी के पुल पर जा पहुँचा और सोचने लगा कि यह प्रकृति-जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल देती है। संसार का सौन्दर्य, गीत, भाषा आदि सभी किसी-न-किसी रूप में प्रकृति का दान पाते हैं और सभी यही कहते हैं कि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है।
कवि ने देखा कि पुल के ऊपर बहुत से बन्दर बैठे हैं और मार्ग में एक ओर काले रंग का मरा हुआ-सा अत्यन्त दुर्बल भिखारी बैठा हुआ है। जैसे ही कवि ने झुककर नीचे की ओर देखा तो उन्हें वहाँ पर शिवजी के ऊपर चावल, तिल और जल चढ़ाते हुए एक ब्राह्मण दिखलायी दिया। तत्पश्चात् (UPBoardSolutions.com) वह ब्राह्मण एक झोली लेकर ऊपर आया। बन्दर उसे देखकर वहाँ आ गये। उसने बन्दरों को झोली से निकालकर पुए दे दिये और उस भिखारी की ओर मुड़कर भी नहीं देखा। यह देखकर कवि को दु:ख हुआ। वह व्यंग्य के साथ बोला-हे मानव, तू धन्य है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निराला किस युग के कवि माने जाते हैं?
उत्तर :
निराला छायावाद युग के कवि माने जाते हैं।

प्रश्न 2.
निराला की दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
परिमल और अनामिका।

प्रश्न 3.
निराला की पुत्री का क्या नाम था?
उत्तर :
निराला की पुत्री का नाम सरोज था।

प्रश्न 4.
छायावाद के स्तम्भ कहे जाने वाले कवि का नाम लिखिए।
उत्तर :
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’।

प्रश्न 5.
निराला के काव्य की भाषा क्या है?
उत्तर :
खड़ीबोली।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से सही उत्तर के सम्मुख सही (NV) का चिह्न लगाइए
(अ) भिखारी का रंग काला था।
(ब) शिवभक्त बन्दरों को पुए खिला रहा था।
(स) निराला भारतेन्दु युग के कवि माने जाते हैं। काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध

1.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए–
(अ) सोचा ‘विश्व का नियम निश्चल’, जो जैसा उसको वैसा फल।
(ब) विप्रवर स्नान कर चढ़ा सलिल, शिव पर दूर्वा दल तण्डुल, तिल।

(अ) काव्यगत विशेषताएँ-

  • यह धरती का शाश्वत सत्य है कि जो जैसा करता है उसी के अनुसार फल मिलता है।
  • छन्द-नवीन प्रकार की अतुकान्त छन्द।
  • भाषा-संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली।
  • शैली-आलंकारिक, भावात्मक।
  • अलंकार-रूपक और अनुप्रास।
  • गुण-माधुर्य।
  • रस-शान्त ।

(ब) काव्यगत विशेषताएँ–

  • कवि ने मानव समाज की दयनीय दशा एवं थोथे आडम्बरों का सजीव चित्रण किया है।
  • भाषा-संस्कृतनिष्ठ एवं साहित्यिक खड़ीबोली।
  • अलंकार-अनुप्रास।
  • छन्द-तुकान्त।
  • रस-शान्त
  • गुण–प्रसाद।

2.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम बताइए
(अ) जीता ज्यों जीवन से उदास।
(ब) भाषा भावों के छन्द बद्ध।
(स) कहते कपियों के जोड़ हाथ।
उत्तर :
(अ) अनुप्रास,
(ब) अनुप्रास,
(स) अनुप्रास।

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3.
निम्नलिखित में समास-विग्रह करते हुए समास का नाम बताइए
कृष्णकाय           =      कृष्ण काय                 =     कर्मधारय
दूर्वादल              =      दूर्वादल (हरीघास)      =     कर्मधारय
सरिता-मज्जन     =      सरिता में मज्जन          =     अधिकरण तत्पुरुष
रामभक्त             =      राम का भक्त              =     सम्बन्ध तत्पुरुष

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UP Board Solutions for Class 8 Home Craft Chapter 10 पाक कला

UP Board Solutions for Class 8 Home Craft Chapter 10 पाक कला

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पाठ-10 पाक कला
अभ्यास

1. वस्तुनिष्ठ
प्रश्न
(1) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिएउत्तर
(क) उड़द की दाल को साफ करके छः घंटे पहले भिगो देते हैं।
(ख) लौकी की बरफी को थाली पर फैलाने से पहली घी लगाते हैं।
(ग) चावल के अतिरिक्त साबूदाना की भी खीर बनाई जा सकती है।

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(2) सही  (✔)  या गलत  (✗)  का चिह्न लगाइए (चिह्न लगाकर)
(क) आलू का भरवाँ पराठा बनाते समय उबले आलू को छीलते नहीं हैं।        (✗)
(ख) सूजी का हलुव बनाते समय महीन छन्नी से सूजी नहीं छाननी चाहिए।     (✗)
(ग) ब्रेड रोल बनाते समय ब्रेड पानी में नहीं भिगोना चाहिए।                          (✗)

2. अति लघु उत्तरीय
प्रश्न
(क): चावल की खीर में चीनी कब डालते हैं?
उत्तर : चावल के पक जाने और दूध के गाढ़ा हो जाने पर उसमें चीनी डालते हैं।

(ख) पकौड़ी गुलाबी और कुरकुरी बने, इसके लिए आँच कैसी रखेंगे?
उत्तर : मध्यम आँच रखनी चाहिए।

3. लघु उत्तरीय
प्रश्न
(क) गुलाक्जामुन बनाने की विधि लिखिए।
उत्तर : आवश्यक सामग्री- खोया- 200 ग्राम, चीनी- 250 ग्राम, मैदा- 30 ग्राम, घी- 500 ग्राम, बताशे- 50 ग्राम, केवड़ा, गुलाबजल-2,3 बूंदे, बर्तन- भगौना, कढ़ाही, कलछुल, पानी- 500 मिली लीटर) (UPBoardSolutions.com)
विधि : भगौने में पानी में चीनी से चासनी तैयार करते हैं। उसमें केवड़ा, गुलाबजल डालकर अलग रख देते हैं। मैदा छानकर खोए में मिलाते हैं। छोटी-छोटी गोलियों के बीच में एक बताशा रखकर पुनः गोली बना लेते हैं। कढ़ाही के गर्म घी में मध्यम आँच पर इन गोलियों को सुनहरा भूरा होने तक तल लेते हैं। इसके बाद तले हुए रसगुल्ला को तैयारे चासनी में डाल देते हैं। अच्छी तरह  फूल जाने पर परोसते हैं।

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(ख) पूरी का आटा गूंथते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर : थाली या परात में आटा डालकर उसमें अजवाइन, नमक, घी, (दो चम्मच) मिलाते हैं। अब आवश्यकतानुसार पानी मिलाकर मुलायम होने तक अच्छी तरह गूंध लेते हैं। पूरी का आटा मुलायम और रोटी के आटे से थोड़ा कड़ा होना चाहिए।

4. दीर्घ उत्तरीय
प्रश्न
(क) भुनी दाल की कचौड़ी बनाने की विधि सामग्री सहित लिखिए।
उत्तर : आवश्यक सामग्री- आटा- 500 ग्राम, उड़द क़ी चुनी दाल-250 ग्रा०, घी- 500 ग्राम, नमक, लाल मिर्च, सौंफ, धनिया, हींग, बर्तन- कढ़ाही, कलठ्ठन, परात या थाली।
विधि : उड़द की दाल छह घण्टे पले भिगो देते हैं। आटे को थान्नी या परात में रखकर 50 ग्राम नमक देते हैं। फिर .. थोड़ा-थोड़ा पानी डालकर मुलायम गूंथ लेते हैं। दाल महीन पीसकर हींग, धनियाँ, (UPBoardSolutions.com) सौंफ, लाल मिर्च, नमक व हरा धनियाँ मिलाकर भरावन तैयार करते हैं। गर्म घी में भरावन भून लेते हैं। आटे की छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर अँगूठे से बीच में दबाते हैं। गोलाई में चौड़ा व बड़ा करके भरावन भरकर मुँह बन्द कर लेते हैं। चकले पर बेलन से-छोटे आकार में बेलकर । कढ़ाही के गर्म घी में दोनों तरफ से सेक लेते हैं।

(ख) गाजर का हलुआ बंनाने की विधि सामग्री सहित लिखिए।
उत्तर : गाजर का हलवा – आवश्यक सामग्री गाजर-500 ग्राम, चीनी- 125 ग्राम, काजू- 50 ग्राम, बादाम- 50 ग्राम, खोया- 200 ग्राम, दूध- 750 ग्राम, बर्तन- बड़ी कढ़ाही, कलछुल, कद्दूकस।
विधि : गाजर धोकर, छीलकर कद्दूकस में कस लें। कढ़ाही में दूध डालकर उसमें गाजर पकने को डाल दें। थोड़ी गल जाने और दूध सूखने पर चीनी डालकर चलाएँ। चीनी घुल जाने पर खोया,
काजू व कटा बादाम मिलाएँ।

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प्रोजेक्ट कार्य :
नोट : विद्यार्थी स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 16 क्या निराश हुआ जाय (मंजरी)

UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 16 क्या निराश हुआ जाय (मंजरी)

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महत्त्वपूर्ण गद्यांश की व्याख्या

व्यक्ति-चित्त ………………………… देने लगे हैं।

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संदर्भ:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मंजरी’ के क्या (UPBoardSolutions.com) निराश हुआ जाय’ नामक निबन्ध से लिया गया है। यह निबन्ध हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखा गया है।

प्रसंग:
भारतवर्ष में भौतिक संग्रह को महत्त्व न देकर आन्तरिक तत्त्व पर बल दिया गया है। लोभ-मोह, काम-क्रोध पर समय का बन्धन रखे जाने का महत्त्व माना गया है। फिर भी भूख व बीमारी की दवा और परोपकारी कार्यों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

व्याख्या:
मनुष्य हमेशा उच्च आदर्शों को आधार मानकर ही आगे नहीं बढ़ता। कुछ विकार जैसेलोभ, मोह विकसित होकर उसे लक्ष्य से डिगाते रहे हैं। उच्च आदर्श और संयम आदि नगण्य हो गए हैं। जो कुछ विपरीत हुआ है, उससे उच्च आदर्शो, संयम और विधानोक्त कर्मों की उपयोगिता अब और अधिक सामने (UPBoardSolutions.com) आ गई है।

समाज के ऊपरी …………… संग्रह करते हैं।

संदर्भ: पूर्ववत्।

प्रसंग:
आजकल लोग कानून की त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, जबकि कानून को दिया जा सकता है।

व्याख्या:
अब यह आम धारणा बन गई है कि भारतवर्ष में धर्म, कानून से बड़ी चीज है। आस्तिकता, सत्य, ईमानदारी, मानव प्रेम आदि की मान्यता अब भी है और रहेगी। दूसरों को पीड़ा पहुँचाना, ठगी, चोरी, डकैती, तस्करी, आदि महापाप हैं। (UPBoardSolutions.com) परहित, दरिद्र सेवा, नारी सम्मान और मानव प्रेम आज भी परम पुण्य माने जाते हैं। सभी व्यक्ति इन गुणों को अपने अन्दर अच्छा समझते हैं और नैतिक समर्थन देते हैं।

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पाठ का सर (सारांश)

लेखक का मन वर्तमान की घटनाओं से आशंकित है। बेईमानी के माहौल में ईमानदारी से जीविका चलाने वाले पिस रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है। ऐसी स्थिति में प्रश्न उठता है कि क्या निराश हुआ जाय। वस्तुतः मनुष्य की उन्नति के जितने विधान बनाए गए हैं, उतनी ही मात्रा में लोभ, मोह जैसे विकार भी विस्तृत हो गए। इससे भारत के पुराने आदर्श और भी अधिक महान और उपयोगी दिखाई देने लगे हैं। (UPBoardSolutions.com) लेखक ने एक टिकट बाबू की ईमानदारी और एक बस कंडक्टर की कर्तव्यपरायणता का उदाहरण देकर सन्तोष व्यक्त किया है। उसने लिखा है कि जीवन में ऐसी घटनाएँ भी घटित हुईं, जब लोगों ने अकारण ही सहायता की। निराश मन को ढाँढस बँधाया और हिम्मत दिलाई। इसीलिए अभी भी आशा की ज्योति बुझी नहीं है। महान् भारतवर्ष को पाने की सम्भावना बनी हुई है। और बनी रहेगी।

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प्रश्न-अभ्यास

  • कुछ करने को                                       नोट-विद्यार्थी स्वयं करें।
  • विचार और कल्पना                               नोट-विद्यार्थी स्वयं करें।
  • निबन्ध से

प्रश्न 1:
क्या कारण है कि आजकल हर व्यक्ति संदेह की दृष्टि देखा जा रहा है?
उत्तर:
आजकल लोग दोषी अधिक और गुणी कम दिखाई देते हैं। इसका कारण यह है कि गुणों पर कम ध्यान दिया जाता है और दोषों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाने लगा है।

प्रश्न 2:
जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्थाएँ क्यों हिलने लगी हैं?
उत्तर:
आजकल समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। आरोप-प्रत्यारोप का कुछ ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी रह नहीं गया है। हर व्यक्ति सन्देह की दृष्टि से देखा जा रहा है। (UPBoardSolutions.com) जो जितने ऊँचे पद पर हैं, उनमें उतने ही अधिक दोष दिखाए जाते हैं। बेईमान, स्वार्थी, धूर्त लोग फल-फूल रहे हैं किन्तु गरीब, ईमानदार और श्रमजीवी लोग दिनोंदिन पिस रहे हैं। समाज में जो भीरु और बेबस लोग हैं, उन्हें दबाया जाता है। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है। जीवन के महान नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों का मजाक उड़ाया जा रहा है। इसलिए जीवन के महान मूल्यों के बारे में आज हमारी आस्था हिलने लगी है।

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प्रश्न 3:
किन घटनाओं के आधार पर लेखक को लगा कि मनुष्यता अभी समाप्त नहीं हुई है?
उत्तर:
एक टिकट-बाबू की ईमानदारी और एक बस कंडक्टर की कर्तव्यपरायणता की घटनाओं के आधार पर लेखक को यह लगा कि मनुष्यता अभी समाप्त नहीं हुई है।

प्रश्न 4:
‘बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है।’ क्यों?
उत्तर:
लेखक कहता है कि लोग एक-दूसरे की बुराई को बड़ा रस लेकर उद्घाटित करते हैं, जो बहुत बुरी बात है। किन्तु दूसरे की अच्छाई को उतना ही रस लेकर प्रकट करने में संकोच करना तो और भी बुरी बात है। हमारे आस-पास असंख्य घटनाएँ ऐसी घटती हैं, (UPBoardSolutions.com) जिन्हें यदि उजागर (प्रकट) किया जाए, तो लोगों के दिल में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जाग सकती है। अतः अच्छाई को प्रकट करने में कभी पीछे नहीं रहना चाहिए।

प्रश्न 5:
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए

(क) ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है।
उत्तर:
वर्तमान समय में धन का महत्व इतना बढ़ गया है बेईमानी से कमाए गए धन से धनवान लोग भी सम्मान की नजरों से देखे जाते हैं। समाज में उनकी खूब प्रतीष्ठा है। फलतः लोग चालाकी से, बेईमानी से धन कमाने में लगे हैं। जो ईमानदार बने रहने की कोशिश करता है, समाज उसे मूर्ख समझता है क्योंकि उसके पास धन का अभाव होता है। सच्चाई का पालन करने वाले वास्तव में बेबस लोग ही हैं यानी जो गलत कार्य करने से डरते हैं या (UPBoardSolutions.com) जिनके पास गलत तरीके से धन कमाने का कोई रास्ता नहीं है, वही सच्चे और ईमानदार बने हुए हैं।

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(ख) केवल उन्हीं बातों का हिसाब रखो, जिनमें धोखा खाया है तो जीवन कष्टकर हो। जाएगा।
उत्तर:
यदि हम केवल जीवन उन्हीं बातों को ध्यान में रखें, जिनमें हमारे साथ धोखा हुआ है या हमें किसी तरह से तकलीफ पहुँचाई गई हो तो हमारा जीवन कष्टकर हो जाएगा। ऐसे में हम जीवन का आनंद नहीं ले सकेंगे और अतीत की बुरी घटनाओं की याद में उलझे रहेंगे। (UPBoardSolutions.com) आशय यह है कि हमें नकारात्मक घटनाओं पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए बल्कि जीवन में घटने वाली संकारात्मक घटनाओं से आशान्वित होना चाहिए।

(ग) भूख की उपेक्षा नहीं की जा सकती, बीमार के लिए दवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
उत्तर:
हमारे देश में वैसे तो भौतिक वस्तुओं के संग्रह और लोभ-मोह-क्रोध जैसे विकारों को ‘महत्व नहीं दिया गया है परंतु यदि कोई व्यक्ति भूखा है तो उसे अपने लिए भोजन जुटाने का उपाय
करना ही पड़ेगा। वैसे ही यदि कोई व्यक्ति बीमार है तो वह बीमारी की उपेक्षा नहीं कर सकता, उसे दवा हर हाल में चाहिए। ठीक इसी प्रकार यदि समाज में या देश में कोई व्यक्ति गलत काम करने लगा है, कानून का उल्लंघन कर मनमानी करने लगा है, अपराध में लिप्त हो गया है तो उसे सुधारने के लिए उसे सजा देनी ही पड़ेगी अन्यथा वह दूसरों को दुखी करता रहेगा।

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(घ) महान भारतवर्ष के पाने की सम्भावना बनी हुई है, बनी रहेगी।
आशय:
लेखक का कथन हमें यह सन्देश देता है कि केवल कुछ बुराइयों को देखकर निराश नहीं हो जाना चाहिए। इस देश में ईमानदार, कर्तव्यपरायण और अच्छे लोगों की कमी नहीं है। हमारा देश बुराइयों पर अवश्य विजय प्राप्त कर लेगा। (UPBoardSolutions.com) अतः महान भारतवर्ष को पाने की पूरी सम्भावना है।

भाषा की बात

प्रश्न 1:
नीचे कुछ अव्यय शब्द दिए गये हैं, उनकी प्रयोग करते हुए एक-एक वाक्य बनाइए
क्योंकि, किन्तु, परन्तु, अथवा, इसलिए, चूंकि, तथा, अतः
उत्तर:
क्योंकि                       –                     मैं यहाँ रुकना नहीं चाहती क्योंकि यहाँ मेरा मन नहीं लग रहा है।
किंतु                          –                    वह गरीब था, किन्तु उसकी ईमानदारी में कोई कमी नहीं थी।
परन्तु                         –                    वह आपसे ही मिलने आया था परन्तु आप शहर से बाहर थे।
अथवा                        –                    तुम अंग्रेजी अथवा हिंदी में कोई एक भाषा चुन लो।।
इसलिए                      –                    रमा मेरी बात नहीं मानती इसलिए मैंने उससे कुछ कहना ही छोड़ दिया है।
चूंकि                          –                    चूँकि तुम एक मंत्री के बेटे हो, इसलिए तुम किसी पर भी अपनी मर्जी थोप सकते हो?
तथा                           –                     ईमानदारी, सच्चाई, कर्तव्यनिष्ठा, स्वाभिमान, साहस तथा आत्मनिर्भरता वीर पुरुषों के गुण है।
अतः                           –                    वह आपसे मिलना नहीं चाहता अतः आप यहाँ से चले जाएँ।

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प्रश्न 2:
ईमानदार’ तथा ‘मूर्ख’ शब्द गुणवाचक विशेषण हैं, इनमें क्रमशः ई” तथा “ता’ प्रत्यय लगाकर भाववाचक संज्ञा शब्द ‘ईमानदारी’ तथा ‘मूर्खता’ बनाया गया है। नीचे लिखे गये विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए- निर्भीक, जिम्मेदार, (UPBoardSolutions.com) कायर, अच्छा, लघु, बुरा।
उत्तर:
शब्द                                        भाववाचक संज्ञा
निर्भीक                                         निर्भीकता
जिम्मेदार                                      जिम्मेदारी
कायर                                           कायरता
अच्छा                                            अच्छाई
लघु                                                 लघुता
बुरा                                                 बुराई

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प्रश्न 3:
इस पाठ में सरल, मिश्र और संयुक्त तीनों प्रकार के वाक्य आये हैं। नीचे दिये गये वाक्यों को पढ़िए और बताइए कि वे किस प्रकार के वाक्य हैं
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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 15 प्राथमिक चिकित्सा के प्रमुख सिद्धान्त

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 15 प्राथमिक चिकित्सा के प्रमुख सिद्धान्त.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्राथमिक चिकित्सा का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा उसके सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
या
प्राथमिक चिकित्सा किसे कहते हैं? प्राथमिक चिकित्सा के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा का अर्थ

सामान्य रूप से, कोई भी दुर्घटना होने पर अथवा आकस्मिक बीमारी होने पर डॉक्टर अथवा चिकित्सक के पास जाया जाता है, परन्तु हर समय तथा हर स्थान पर चिकित्सक को तुरन्त उपलब्ध होना प्रायः सम्भव नहीं होता, क्योंकि दुर्घटना तो कहीं भी घटित हो सकती है। इस स्थिति में डॉक्टर अथवा चिकित्सक को रोगी या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के पास लाने या ले जाने में काफी समय लग सकता है, परन्तु दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति को तुरन्त सहायता की आवश्यकता होती है। यह सहायता इसलिए आवश्यक होती है ताकि दुर्घटनाग्रस्त (UPBoardSolutions.com) व्यक्ति की दशा और अधिक न बिगड़े अथवा उसे सांत्वना प्राप्त हो जाए। इस प्रकार की सहायता दुर्घटनास्थल पर ही उपस्थित व्यक्तियों द्वारा तुरन्त दी जाती है। इस प्रकार की तुरन्त दी जाने वाली सहायता को प्राथमिक चिकित्सा कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है। कि- ”आकस्मिक रूप से रोगी अथवा घायल हुए व्यक्ति को डॉक्टर अथवा चिकित्सक के आने से पूर्व दी जाने वाली सहायता एवं उपचार ही प्राथमिक चिकित्सा है।” प्राथमिक चिकित्सा के अर्थ को एक व्यावहारिक उदाहरण द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। सड़क पर चलते हुए यदि कोई व्यक्ति किसी वाहन से टकरा जाए तथा उसकी बाँह एवं घुटना घायल हो जाए तथा वह गिर (UPBoardSolutions.com) जाए तो सड़क पर चलते हुए अन्य व्यक्तियों द्वारा उसे उठाया जाता है, आराम से लिटाया या बैठाया जाता है तथा उसके घाव पर पट्टी अथवा रूमाल बाँध दिया जाता है। ये सभी कार्य वास्तव में प्राथमिक चिकित्सा ही है। इसी प्रकार घर पर गर्म तवे से हाथ जल जाने पर तुरन्त बरनॉल लगाना भी प्राथमिक चिकित्सा ही है।

प्राथमिक चिकित्सा के सिद्धान्त अथवा नियम

रोगी अथवा दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा सहायता देने वाला व्यक्ति प्राथमिक चिकित्सक कहलाता है। प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक को हर परिस्थिति में निम्नलिखित सिद्धान्तों को पालन करना चाहिए

(1) रोगी की अवस्था का अनुमान:
प्राथमिक चिकित्सक को सर्वप्रथम पीड़ित व्यक्ति की अवस्था का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करना चाहिए। जैसे कि रोगी का कौन-सा अंग प्रभावित हुआ है, रक्तस्राव हो रहा है अथवा नहीं, हड्डियाँ टूटी हैं अथवा नहीं आदि। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पीड़ित व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए।

(2) चिकित्सक से सम्पर्क:
यदि दुर्घटना गम्भीर हो तो प्राथमिक चिकित्सक को तुरन्त किसी योग्य चिकित्सक से भी सम्पर्क स्थापित करना चाहिए। इस स्थिति में दुर्घटना की प्रकृति तथा घायल व्यक्ति की स्थिति को ध्यान में रखकर ही सम्बन्धित चिकित्सक से सम्पर्क किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए–यदि दुर्घटना (UPBoardSolutions.com) ग्रस्त व्यक्ति की हड्डी टूट गई हो तो किसी हड्डी विशेषज्ञ से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए तथा यदि व्यक्ति मूर्च्छित हो या उसे किसी साँप ने काट लिया हो तो उस दशा में काय-चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित किया जाना चाहिए।

(3) सहायता की सीमा:
प्राथमिक चिकित्सक को पूर्ण चिकित्सक बनने का प्रयास नहीं करना चाहिए। उसे रोगी को तत्काल केवल जीवन-रक्षक सहायता तब तक देनी चाहिए जब तक कि उपयुक्त चिकित्सा सहायता उपलब्ध न हो।

(4) सांत्वना देना व धैर्य बँधाना:
कई बार चोट से अधिक दुर्घटना का सदमा पीड़ित व्यक्ति की अधिक हानि करता है। अतः प्राथमिक चिकित्सक का कर्तव्य है कि वह पीड़ित व्यक्ति को सांत्वना दे तथा उसे धैर्य बँधाए।

(5) कृत्रिम श्वसन की सहायता:
डूबने, विद्युत करन्ट लगने तथा आत्महत्या के प्रयास में प्रायः पीड़ित व्यक्ति को श्वास अवरुद्ध हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को तुरन्त कृत्रिम श्वास दिलाना चाहिए।

(6) हृदय गति अवरुद्ध होने पर सहायता देना:
कई बार श्वसन क्रिया के साथ-साथ पीड़ित व्यक्ति की हृदय गति भी अवरुद्ध हो जाती है। यदि तत्काल विधिवत् सहायता उपलब्ध हो जाए, तो कई बार पीड़ित व्यक्ति की जीवन रक्षा हो जाती है।

(7) शरीर को गर्म रखना:
यदि व्यक्ति घायल हो गया हो तथा शरीर से रक्त बह रहा हो तो उस व्यक्ति के शरीर को गर्म रखने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए व्यक्ति को गर्म दूध या चाय पिलानी चाहिए। ध्यान रहे ऐसी स्थिति में कभी भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को ठण्डा पानी नहीं पिलाना चाहिए।

(8) मूर्छित अवस्था में सहायता:
यदि पीड़ित व्यक्ति मूर्च्छित अवस्था में है तो उसके चारों ओर भीड़ न लगने दें तथा उसे खुले व हवादार स्थान पर लिटाएँ। उसके सीने के वस्त्रों को बटन खोलकर ढीला कर दें तथा ठण्डे पानी के छीटें देकर मूच्छ दूर करने का प्रयास करें।

(9) रक्त-स्राव रोकना:
घायल व्यक्ति का रक्त-स्राव रोकना प्राथमिक चिकित्सा का सर्वाधिक आवश्यक नियम या सिद्धान्त है, क्योंकि अधिक रक्तस्राव के कारण भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों की प्रायः आकस्मिक मृत्यु हुआ करती है। इसके लिए बन्द लगाना या टूर्नीकट का प्रयोग करना चाहिए। घायल व्यक्ति को (UPBoardSolutions.com) इस प्रकार लिटाना चाहिए कि उसका सिर शेष शरीर से कुछ नीचा रहे, जिससे कि मस्तिष्क तक रक्त संचार में रुकावट न उत्पन्न हो।

(10) भीड़ न करें:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के आस-पास अधिक लोगों को एकत्रित नहीं होना चाहिए। जो लोग पास रहें, वे भी शान्त रहें। भीड़ होने पर रोगी व्यक्ति घुटन महसूस कर सकता है क्योंकि वातावरण में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।

(11) घाव पर पट्टी बाँधना:
घायल व्यक्ति के घावों पर कोई नि:संक्रामक लगाकर कसकर पट्टी बाँधनी चाहिए। पट्टी न होने पर कोई स्वच्छ कपड़ा अथवा रूमाल घाव पर कसकर बाँध देना चाहिए।

(12) कम से कम हिलाना:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को कम-से-कम हिलाना-डुलाना चाहिए, क्योंकि इससे रक्तस्राव बढ़ सकता है तथा यदि पीड़ित व्यक्ति के फ्रेक्चर है, तो निम्नलिखित सावधानियाँ रखें

  • (क) जटिल फ्रेक्चर वाले व्यक्ति को पहले रक्तस्राव बन्द करने का उपाय करें तथा फिर उसे किसी योग्य चिकित्सक की देख-रेख में ही अस्पताल तक ले जाएँ।
  • (ख) सरल फ्रेक्चर वाले व्यक्ति के फ्रेक्चर के दोनों ओर खरपच्चियाँ बाँधे तथा फिर उसे सहारा देकर अथवा स्ट्रेचर पर लिटाकर अस्पताल तक ले जाएँ।

(13) विष-पीड़ित व्यक्ति की सहायता:
विष का सेवन किए व्यक्ति को वमन कराना प्रायः लाभप्रद रहता है। अस्पताल ले जाते समय पीड़ित व्यक्ति के वमने का नमूना तथा विष की खाली शीशी ले जाना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि विष के प्रकार की जानकारी पीड़ित व्यक्ति को शीघ्र एवं सही चिकित्सा उपलब्ध करा सकती है।

(14) जले हुए व्यक्ति को सहायता:
जलने की दुर्घटना या तो आग के द्वारा हो सकती है या फिर रासायनिक पदार्थों (अम्ल आदि) के कारण होती है। आग से जलने पर पीड़ित व्यक्ति के घावों को तुरन्त एक स्वच्छ कपड़े से ढक दें तथा यदि वह होश में है तो उसे पर्याप्त मात्रा में पानी, चाय, कॉफी व दूध आदि पिलाएँ। अम्ल से जलने पर प्रभावित स्थान पर पर्याप्त ठण्डा पानी डालें तथा जलन कम होने पर घाव को स्वच्छ कपड़े से ढक दें। उपर्युक्त दोनों प्रकार के व्यक्तियों को शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुँचाएँ।

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प्रश्न 2:
प्राथमिक चिकित्सक में होने वाले आवश्यक गुणों का वर्णन कीजिए।
या
प्राथमिक चिकित्सक के वांछित गुणों का वर्णन कीजिए।
या
प्राथमिक चिकित्सक में किन गुणों का होना आवश्यक है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा एक महत्त्वपूर्ण मानवीय-सामाजिक कार्य है। एक प्राथमिक चिकित्सक यदि योग्य, दूरदर्शी एवं मानवीय गुणों से युक्त है तो वह जीवन-रक्षा जैसे अमूल्य एवं अतिप्रशंसनीय कार्य को सम्पादित कर सकता है।

प्राथमिक चिकित्सक के गुण

एक सरल प्राथमिक चिकित्सक में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है

(1) दुरदर्शी एवं फुर्तीला:
प्राथमिक चिकित्सक दूरदर्शी एवं फुर्तीला होना चाहिए, ताकि दुर्घटना स्थल पर पहुँचते ही पीड़ित व्यक्तियों की आवश्यकतानुसार तुरन्त सहायता कर सकें। दूरदर्शी व्यक्ति घटित होने वाली दुर्घटना के दूरगामी परिणामों का भी अनुमान लगा लेता है तथा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की स्थिति के अनुकूल ही निर्णय लेता है।

(2) स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ट:
प्राथमिक चिकित्सक अच्छे स्वास्थ्य का व्यक्ति होना चाहिए। उसका मानसिक एवं शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट होना भी आवश्यक है, क्योंकि उसे शीघ्र ही पीड़ित व्यक्तियों (UPBoardSolutions.com) की देखभाल तथा उनका अस्पताल तक स्थानान्तरण करना होता है। दुर्घटना स्थल का दृश्य अनेक बार बहुत ही हृदयविदारक होता है। ऐसी स्थिति में केवल मजबूत हृदय वाला व्यक्ति ही दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को सहायता प्रदान करता है।

(3) चतुर एवं विवेकशील:
एक चतुर एवं विवेकशील प्राथमिक चिकित्सक सही समय पर सही निर्णय ले सकता है तथा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों की आवश्यकता को समझकर उन्हें सांत्वना दे सकता है।

(4) धैर्यवान एवं सहनशील:
रोगी एवं दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति प्रायः चिड़चिड़े हो जाते हैं; अतः प्राथमिक चिकित्सक को धैर्यवान व सहनशील होना चाहिए।

(5) मृदुभाषी एवं सेवाभाव रखने वाला:
रोगी एवं दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति सहानुभूति एवं मृद व्यवहार के पात्र होते हैं। अत: प्राथमिक चिकित्सक अपना दायित्व सफलतापूर्वक तब ही निभा सकता है। जबकि वह मृदुभाषी हो तथा सेवाभाव रखता हो।

(6) आत्मविश्वासी:
प्राथमिक चिकित्सक को पूर्णरूप से आत्मविश्वासी होना चाहिए, क्योंकि दुर्बल आत्मविश्वास रखने वाला प्राथमिक चिकित्सक किसी बड़ी दुर्घटना को देखकर घबरा सकता है। अथवा बौखला सकता है।

(7) साधन सम्पन्नता:
प्राथमिक चिकित्सा के लिए रोगी अथवा घायल व्यक्ति को कुछ औषधियाँ अथवा अन्य सहायता दी जाती है। अतः यह आवश्यक है कि प्राथमिक चिकित्सक के पास उपचार एवं सहायता के लिए अनिवार्य साधन उपलब्ध हों। सामान्य रूप से प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स’ में इस प्रकार की आवश्यक सामग्री रखी जाती है।

(8) शारीरिक विज्ञान का पर्याप्त ज्ञान:
प्राथमिक चिकित्सक को मानव शरीर की बाह्य एवं आन्तरिक रचना का पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है। गम्भीर रोगों एवं गम्भीर रूप से घायल व्यक्तियों का प्राथमिक उपचार करते समय उपर्युक्त ज्ञान उसे अतिरिक्त सहायता प्रदान करेगा।

(9) प्राथमिक चिकित्सा का अधिकाधिक ज्ञान:
प्राथमिक चिकित्सा करने वाले व्यक्ति को भली प्रकारे सम्बन्धित विषय में प्रशिक्षित होना चाहिए। उदाहरण के लिए उसे तीव्र ज्वर के रोगी के प्रारम्भिक उपचार की जानकारी (UPBoardSolutions.com) होनी चाहिए। इसी प्रकार डूबने, विद्युत करन्ट लगने तथा जलने वाले व्यक्तियों का प्राथमिक उपचार किस प्रकार किया जाता है आदि का उसे अपेक्षित ज्ञान होना चाहिए।

(10) पर्याप्त दक्षता:
प्राथमिक चिकित्सक पर्याप्त दक्ष होना चाहिए ताकि वह सोचने में समय व्यर्थ न करके घायलों की तुरन्त सहायता कर सके तथा विधिपूर्वक उनका स्थानान्तरण अस्पताल तक करा सके।

(11) सीमाओं का ज्ञान:
प्राथमिक चिकित्सक को अपने कर्तव्य की सीमाओं का ज्ञान होना चाहिए। उसे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह प्राथमिक चिकित्सक है, कोई डिग्री प्राप्त चिकित्सक नहीं। अतः उसे पीड़ित व्यक्तियों को शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुँचाने अथवा पहुँचवाने का प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 3:
‘प्राथमिक चिकित्सा बक्से में आप कौन-कौन से आवश्यक उपकरण एवं औषधियाँ रखेंगी?
या
प्राथमिक चिकित्सा हेतु आवश्यक वस्तुओं की सूची बनाइए।
या
घर में प्राथमिक सहायता पेटिका रखना क्यों आवश्यक है? इसमें आप क्या-क्या रखेंगी?
उत्तर:
‘प्राथमिक चिकित्सा बक्से’ (फर्स्ट एड बॉक्स) से अभिप्राय सरलतापूर्वक इधर-उधर ले। जाए जा सकने वाले बक्से से है, जिसमें कि प्राथमिक चिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरण एवं औषधियाँ रखी होती हैं। प्रत्येक घर, सार्वजनिक एवं राजकीय प्रतिष्ठान तथा स्कूल-कॉलेज में प्राथमिक चिकित्सा बक्से के रखने से, अनेक लाभ हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

  1. घर में होने वाली आकस्मिक दुर्घटनाओं; जैसे-जलना, चोट लगना आदि के समय प्राथमिक उपचार के लिए आवश्यक सामग्री सुविधापूर्वक एवं तुरन्त उपलब्ध हो जाती है।
  2.  स्कूल व कॉलेज आदि के खेल के मैदान में अथवा अन्य अवसरों पर विद्यार्थियों को लगने वाली चोटों की प्राथमिक चिकित्सा तुरन्त सम्भव हो जाती है।
  3.  बस व ट्रेन में यात्रा करते समय अथवा पिकनिक के समय होने वाली आकस्मिक दुर्घटनाओं से पीड़ित व्यक्तियों की प्राथमिक चिकित्सा के लिए प्राथमिक चिकित्सा बक्से में व्यवस्थित रूप से रखी सामग्री अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होती है।

प्राथमिक चिकित्सा बक्से का निर्माण

इसे बनाने के लिए आवश्यक सामग्री को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

(क) आवश्यक उपकरण तथा
(ख) अत्यावश्यक औषधियाँ।

(क) आवश्यक उपकरण:
प्राथमिक चिकित्सा के लिए उपयोगी उपकरणों की सूची निम्नलिखित ह

  1.  कैंची
  2.  चाकू
  3. चिमटी
  4.  सेफ्टी पिन
  5.  सुई-धागा
  6.  गिलास व चम्मच
  7. स्वच्छ रुई
  8. नि:संक्रमित गॉज
  9.  छोटी-बड़ी पट्टियाँ
  10. गर्म पानी की बोतल
  11.  बर्फ की टोपी
  12. स्वच्छ कपड़ा
  13. छोटा तौलिया
  14.  साबुन
  15.  खपच्चियाँ
  16. तीली तथा तैयार फुरेरी
  17.  मोमबत्ती व दियासलाई
  18. टार्च।

(ख) उपयोगी औषधियाँ:
प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स में प्रायः निम्नलिखित औषधियाँ रखी जाती हैं

  1.  अमृतधारा
  2.  पुदीनहरा
  3.  कोरामिन
  4. बरनौल
  5.  फ्यूरासिन
  6. पचनोल
  7. नावलजिन
  8.  आयोडेक्स
  9. ग्लिसरीन
  10.  ऐक्रीफ्लेविन
  11.  सुंघाने वाले लवण
  12.  ग्लूकोस
  13. पोटैशियम परमैंगनेट
  14. डिटॉल
  15.  स्प्रिट
  16. विक्स
  17. बाम
  18.  सामान्य नमक

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
हम जानते हैं कि अनेक बार आकस्मिक दुर्घटनाएँ घातक एवं भयंकर भी हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में यदि दुर्घटना होते ही तुरन्त सम्बन्धित व्यक्ति को आवश्यक सहायता दे दी जाए, तो उसका जीवन बचाया जा सकता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्राथमिक चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य (UPBoardSolutions.com) दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति का जीवन बचाना है। इसके अतिरिक्त प्राथमिक चिकित्सा का एक उद्देश्य रोगी अथवा घायल व्यक्ति को सांत्वना देना भी होता है। इससे रोगी का मनोबल बढ़ता है तथा वह अधिक नहीं घबराता। प्राथमिक चिकित्सा मिल जाने से रोगी की दशा अधिक बिगड़ने से बच जाती है।

प्रश्न 2:
प्राथमिक चिकित्सा की दो विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा की निम्नलिखित दो मुख्य विशेषताएँ हैं

(1) जीवन रक्षा:
प्राथमिक चिकित्सा की सर्वोपरि विशेषता गम्भीर रोगी अथवा गम्भीर रूप से घायल व्यक्ति की जीवन-रक्षा के प्रयास करना है।
(2) तत्काल उपचार:
प्रायः दुर्घटना स्थल पर उपयुक्त चिकित्सा देर से सुलभ होती है। ऐसे विपरीत समय में प्राथमिक चिकित्सा दैवी सहायता के समान होती है।

प्रश्न 3:
प्राथमिक चिकित्सक के कोई चार महत्त्वपूर्ण कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सक के कर्तव्यों की कोई सीमा नहीं है, परन्तु प्राथमिकता के आधार पर उसके निम्नलिखित चार कर्तव्यों को अति महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है

(1) धैर्यपूर्वक तत्काल उपचार करना:
प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक को दुर्घटना स्थल पर बिना घबराए पीड़ित व्यक्तियों का तुरन्त उपचार प्रारम्भ कर देना चाहिए, क्योंकि ऐसे समय पर शीघ्र उपचार प्रायः जीवन-रक्षक सिद्ध होता है।

(2) आपातकालीन सेवा प्रदान करना:

प्राथमिक चिकित्सक को दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को कृत्रिम श्वास देना, रक्त-स्राव रोकना तथा अवरुद्ध हृदय-गति को चालू करने के प्रयास करना आदि
आपातकालीन सेवाएँ तुरन्त प्रदान करनी चाहिए।

(3) सांत्वना देना एवं धैर्य बँधाना:

दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों के लिए कई बार दुर्घटना का मानसिक आघात घातक सिद्ध होता है। अतः प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक का एक मुख्य कर्तव्य है कि वह दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को सांत्वना दे तथा उनका साहस बढ़ाए।

(4) उपयुक्त चिकित्सा उपलब्ध कराना:

प्राथमिक चिकित्सक का कर्तव्य है कि पीड़ित व्यक्तियों के प्राथमिक उपचार के तुरन्त पश्चात् सबसे पास के डॉक्टर अथवा अस्पताल को दुर्घटना की सूचना दे।

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प्रश्न 4:
गृहिणी के लिए प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
अनेक बार आकस्मिक दुर्घटनाएँ घातक एवं भयंकर हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में यदि दुर्घटना होते ही तुरन्त दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को आवश्यक सहायता दे दी जाए, तो उसका जीवन बचाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्राथमिक चिकित्सा का एक उद्देश्य रोगी अथवा घायल व्यक्ति को सांत्वना देना भी होता है, इससे रोगी का मनोबल बढ़ता है और वह घबराता नहीं। प्राथमिक चिकित्सा मिल जाने से रोगी की दशा (UPBoardSolutions.com) अधिक बिगड़ने से बच जाती है। अतः गृहिणी को प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना नितान्त आवश्यक है, क्योंकि समय-समय पर घर में छोटी-छोटी घटनाएँ घटती रहती हैं। प्राथमिक चिकित्सा के ज्ञान के अभाव में ये घटनाएँ ही कभी-कभी भयंकर रूप धारण कर सकती हैं। इसीलिए स्पष्ट है कि गृहिणी को प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना सर्वोपरि कार्य है।

प्रश्न 5:
प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता की मुख्य दशाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वैसे तो किसी दुर्घटना के घटित होने अथवा व्यक्ति के रोगग्रस्त हो जाने पर तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता होती है। यहाँ कुछ ऐसी सामान्य दशाओं का उल्लेख किया जा रहा है, जिनमें प्राथमिक चिकित्सा की अनिवार्य रूप से आवश्यकता होती है

  1. चोट लगने से अथवा गिर जाने से हड्डी टूट गई हो।
  2.  विद्युल का झटका लग गया हो।
  3.  किसी भी नशे का अधिक मात्रा में सेवन कर लिया गया हो।
  4. किसी विषैले जानवर अथवा कीड़े ने काट लिया हो।
  5.  कोई व्यक्ति पानी में डूब जाए तथा उसके पेट में पानी भर जाने पर उसे बाहर निकाल कर तुरन्त उपचार देना।
  6.  आग से जल जाने या झुलस जाने पर।
  7.  कोई व्यक्ति जान-बूझकर अथवा अनजाने में किसी विष को अथवा जलाने वाली वस्तु को खा या पी ले।
  8.  व्यक्ति के किसी भी अंग से रक्त बह निकले।
  9. व्यक्ति को श्वास लेने में कठिनाई हो रही हो।
    उपर्युक्त आकस्मिक दुर्घटनाओं के अतिरिक्त किसी भी प्रकार की दुर्घटना के होते ही प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता पड़ सकती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्राथमिक चिकित्सा क्या है?
उत्तर:
रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को विशिष्ट चिकित्सा सहायता उपलब्ध होने से पूर्व दुर्घटनास्थल पर ही प्रदान की जाने वाली सामान्य परन्तु आवश्यक चिकित्सा सहायता को प्राथमिक चिकित्सा कहते हैं।

प्रश्न 2:
क्या प्राथमिक चिकित्सा के लिए मान्यता प्राप्त चिकित्सक होना आवश्यक है?
उत्तर:
नहीं, कोई भी सेवाभाव रखने वाला व्यक्ति आवश्यक प्रशिक्षण ग्रहण करने पर प्राथमिक चिकित्सा करने योग्य बन सकता है।

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प्रश्न 3:
प्राथमिक चिकित्सा कौन प्रदान कर सकता है?
उत्तर:
दुर्घटना स्थल पर उपस्थित कोई भी व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा प्रदान कर सकता है।

प्रश्न 4:
क्या आवश्यकता पड़ने पर लड़कियाँ भी प्राथमिक चिकित्सा प्रदान कर सकती हैं?
उत्तर:
नि:सन्देह, आवश्यकता पड़ने पर लड़कियाँ भी प्राथमिक चिकित्सा प्रदान कर सकती हैं।

प्रश्न 5:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम उद्देश्य है- दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की जान बचाना।

प्रश्न 6:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम सिद्धान्त है- दुर्घटना की वास्तविकता तथा गम्भीरता को । जानना तथा प्राथमिकता के आधार पर आवश्यक कार्यवाही तुरन्त प्रारम्भ करना।

प्रश्न 7:
प्राथमिक चिकित्सा बक्सा क्यों बनाया जाता है?
उत्तर:
जिससे कि समय पड़ने पर प्राथमिक चिकित्सा सम्बन्धी आवश्यक सामग्री एक ही स्थान पर तुरन्त उपलब्ध हो सके।

प्रश्न 8:
क्या एक प्राथमिक चिकित्सक के लिए अतिविशिष्ट औषधियों का प्रयोग करना उचित है?
उत्तर:
कदापि नहीं, अतिविशिष्ट औषधियों का प्रयोग एक मान्यता प्राप्त चिकित्सक को करना चाहिए।

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प्रश्न 9:
कृत्रिम श्वसन की कब आवश्यकता होती है? या कृत्रिम श्वसन कब दिया जाता है?
उत्तर:
प्राय: डूबने व विद्युत करन्ट लगने वाले व्यक्ति की सामान्य श्वास गति अवरुद्ध हो जाती है, अत: उसे तुरन्त कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 10:
यदि कोई दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति मूर्च्छित हो तथा उसके शरीर से रक्त बह रहा हो, तो । प्राथमिक चिकित्सक को सर्वप्रथम क्या करना चाहिए?
उत्तर:
इस स्थिति में सर्वप्रथम शरीर से रक्त का बहना रोकने के उपाय करने चाहिए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) दुर्घटनास्थल पर दी जाने वाली तुरन्त सहायता को कहते हैं
(क) औपचारिक चिकित्सा,
(ख) अनावश्यक चिकित्सा,
(ग) प्राथमिक चिकित्सा,
(घ) कृत्रिम चिकित्सा।

(2) प्राथमिक चिकित्सक होता है
(क) कोई भी सामान्य व्यक्ति
(ख) कुशल डॉक्टर
(ग) सम्बन्धित दुर्घटना का अनुभवी व्यक्ति
(घ) जिसे प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान हो

(3) प्राथमिक चिकित्सक में निम्नलिखित दोष नहीं होना चाहिए
(क) धैर्यवान,
(ख) दूरदर्शी,
(ग) चिड़चिड़ा,
(घ) मृदुभाषी।

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(4) प्राथमिक चिकित्सा की विशेषता है
(क) घायलों की मरहम पट्टी,
(ख) पीड़ितों की जीवन-रक्षा,
(ग) दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को धैर्य बँधाना,
(घ) ये सभी।

(5) दुर्घटना घटने पर हमारा कर्तव्य है ।
(क) तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करना,
(ख) मूक दर्शक बनकर खड़े रहना,
(ग) अनदेखा कर देना,
(घ) तुरन्त घटनास्थल से भाग जाना।

(6) दुर्घटना में पीड़ित जटिल फ्रेक्चर वाले व्यक्ति का सर्वप्रथम
(क) हड्डी टूटने का उपचार करना चाहिए,
(ख) रक्तस्राव रोकना चाहिए,
(ग) हाथ पकड़कर अस्पताल ले जायें,
(घ) खपच्चियाँ लगाए।

(7) कृत्रिम विधि से श्वास कब दिलाई जाती है ।
(क) दम घुटने पर,
(ख) जल में डूबने पर,
(ग) फाँसी लगाने पर,
(घ) तीनों अवस्थाओं में।

(8) टूर्नीकेट का प्रयोग किया जाता है
(क) टूटी हुई हड्डी जोड़ने में,
(ख) घाव पर पट्टी को रोकने में,
(ग) रक्तस्राव को रोकने में अथवा विष को अधिक दूर तक न फैलने देने के लि
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

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(9) आकस्मिक घटना के समय प्राथमिक चिकित्सा दी जाती है
(क) अल्पकालीन,
(ख) दीर्घकालीन,
(ग) तत्काल,
(घ) निरुद्देश्य।

उत्तर:
(1) (ग) प्राथमिक चिकित्सा,
(2) (घ) जिसे प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान हो,
(3) (ग) चिड़चिड़ा,
(4) (घ) ये सभी,
(5) (क) तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करना,
(6) (ख) रक्तस्राव रोकना चाहिए,
(7) (घ) तीनों अवस्थाओं में,
(8) (ग) रक्तस्राव को रोकने में अथवा विष को अधिक दूर तक न फैलने देने के लिए,
(9) (ग) तत्काल।

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UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 15 मनभावन सावन (मंजरी)

UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 15 मनभावन सावन (मंजरी)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 7 Hindi . Here we have given UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 15 मनभावन सावन (मंजरी).

समत पाशों की व्याख्या

झमे-झम …………………………… बूंदें झलमल।

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संदर्भ:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मंजरी’ के ‘मनभावन सावन’ नामक कविता से ली गई हैं। (UPBoardSolutions.com) इसके रचयिता सुमित्रानन्दन पन्त हैं।

प्रसंग:
प्रस्तुत कविता में कवि ने सावन के बरसते बादल का मनोरम चित्र खींचा है। कविता के अन्त में कवि ने जन-जन के जीवन में सावन का उल्लास भरने की कामना की है।

व्याख्या:
प्रस्तुत कविता में कवि ने सावन के बरसते बादल का मनोरम चित्र खींचा है। कवि कहता है कि सावन के बादल झम झम करके तेज वर्षा करते हैं। बादलों की बूंदें पेड़ों पर गिरती हैं और उनसे
छनकर पृथ्वी पर छम-छम की आवाज करके गिरती हैं। बादल से चमचम करके बार-बार बिजली चमकती है। दिन में अँधेरा हो जाता है और आदमी रुक-रुक कर सोचने लगता है, मानो स्वप्न देख रहा हो। ताड़ के पत्ते पंखों से नजर आते हैं, लम्बी-लम्बी अँगुलियाँ (UPBoardSolutions.com) और हथेली के साथ उन पर पानी की धार तड़-तड़ करके पड़ती है। हाथ और मुँह से बूंदें झिल-मिल करती हुई उप-टप गिरती हैं।

नाच रहे पागल …………………….. भरते गर्जन।

संदर्भ एवं प्रसंग: पूर्ववत्।

व्याख्या:
कवि ने सावन के बरसते बादलों का मनोरम चित्र खींचा है। वर्षा के कारण पीपल के पत्ते मानो ताली बजाकर नाच रहे हैं और नीम की पत्तियाँ आनन्दित हो झूम रही हैं। हरसिंगार के फूल झर रहे हैं और बेलों की कली प्रत्येक क्षण बढ़ रही है। (UPBoardSolutions.com) ऐसी सुखद हरियाली में मेंढकों की टर-टर और झिल्ली की झन-झन, मोर की ‘म्याव’ और पपीहे की ‘पीट-पीउ’ सुनाई देती है। बगुले सुखी होकर अपनी बोली बोलकर उड़ रहे हैं। बादल घुमड़-घुमड़ कर आ रहे हैं और आकाश को अपनी गर्जना से भर दिया है।

रिमझिम-रिमझिम ……………………. सावन मनभावन।

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संदर्भ एवं प्रसंग: पूर्ववत्।

व्याख्या:
कवि ने बरसते बादलों का सुन्दर चित्रण किया है, रिमझिम करके बूंदें आवाज कर रही हैं, मानो कुछ कह रही हैं। उससे रोमांच हो जाता है और हृदय पर प्रभाव पड़ता है। पानी की गिरती धाराओं से धरती के कण-कण में हरे-भरे अंकुर फूट रहे हैं। कवि का मन पानी की धार रूपी रस्सी के सहारे झूलना चाहता है और सबके द्वारा घिरकर उनसे सावन के गीत गाने को कहता है। कवि इन्द्रधनुष के झूले में सबको मिलकर झूलने के लिए कहता है (UPBoardSolutions.com) और कामना करता है कि यह मन को अच्छा लगने वाला सावन बार-बार आकर जीवन को सुखी बनाए।

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प्रश्न-अभ्यास

कुछ करने को

प्रश्न 1:
निम्नलिखित शब्दों की सहायता से एक कविता स्वयं बनाइए
बादल, बरसात, पानी, बिजली, हरियाली, दादुर, मोर, पंख, फुहार, काले।
उत्तर:
बरसात आई, बरसात आई
काले बादल घिरकर आए।
मनभावन हरियाली लाए।।
बिजली चमक रही घन माही।
छम-छम बरस रहा है पानी।। (UPBoardSolutions.com)
नन्हीं-नन्हीं पड़े फुहार।
मोर नाचता पंख पसार।।
दादुर-ध्वनि चहुंओर सुहाई।
बरसात आई, बरसात आई।।

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प्रश्न 2:
नोट- विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 3:
नोट– विद्यार्थी स्वयं करें।

विचार और कल्पना

प्रश्न 1:
कविता को पढ़कर आप के मन में (UPBoardSolutions.com) सावन का जो चित्र उभरता है, उसे लिखिए।
उत्तर:
कविता को पढ़कर मन में सावन की हरियाली का चित्र उभरता है।

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प्रश्न 2:
सावन में चारों ओर हरियाली फैल जाती है। दादुर, मोर, चातक, सोनबलाक सभी खुशी से बोलने लगते हैं। आपको सावन कैसा लगता है- दस-पन्द्रह पंक्तियों में लिखिए।
उत्तरे:
हमें सावन अच्छा लगता है। सावन में चारों ओर हरियाली छा जाती है। पेड़-पौधे और वनस्पतियाँ सभी हरे-भरे हो जाते हैं। गर्मी और सूखे रेत के दब जाने से राहत मिलती है। चारों ओर हँसी-खुशी का वातावरण होता है। (UPBoardSolutions.com) पशु-पक्षी, जीव-जन्तु सभी प्रसन्न रहते हैं। गरजते बादल अच्छे लगते हैं। उनमें चमकती बिजली देखकर बच्चे खुश होते हैं। नीम के वृक्ष हिलते हुए अच्छे लगते हैं। बच्चे और स्त्रियाँ सावन में झूले पर झूलती हैं और सावन के गीत गाती हैं। मेंढक, मोर, चातक और सोनबालक आदि पक्षी खुशी से अपनी-अपनी बोली बोलते हैं। प्रकृति में मनमोहक दृश्य दिखाई देता है, जो बच्चों को खुश करता है। नदी-नाले सब पानी से परिपूर्ण होते हैं।

कविता से

प्रश्न 1:
ताड़ के पत्ते किस रूप में दिखायी पड़ रहे हैं ?
उत्तर:
ताड़ के पत्ते पंखों के रूप में दिखाई दे रहे हैं जिनमें अंगुलियाँ और चौड़ी हथेली हैं।

प्रश्न 2:
हरसिंगार और बेला के फलों पर सावन की बूंदों का क्या प्रभाव पड़ रहा है?
उत्तर:
हरसिंगार के फूल झर रहे हैं और बेला के (UPBoardSolutions.com) फूलों की कलियाँ प्रतिपल बढ़ रही हैं।

प्रश्न 3:
निम्नलिखित भाव कविता की किन पंक्तियों में आये हैं?

(क) पीपल के पत्ते मानो ताली बजाकर नाच रहे हैं और नीम आनंदित हो झूम रही हैं।
उत्तर:
नाच रहे पागल हो ताली दे-दे चल-चल झूम-झूम सिर नीम हिलातीं सुख से विह्वल।

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(ख) पानी की गिरती धाराओं से धरती के कण-कण में हरे-भरे
उत्तर:
धाराओं पर धाराएँ झरती धरती पर रज के कण-कण में तृण-तृण का पुलकावलि भर।।

प्रश्न 4:
निम्नलिखित पंक्तियों के भाव स्पष्ट कीजिए

(क) उड़ते सोनबलाक, आर्द-सुख से कर क्रन्दन।
भाव: बरसात में सुखी होकर आवाज करते हुए बगुले उड़ते हैं।

(ख) रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अन्तर।
भाव:  बरसात को देखकर रोमांच होता है (UPBoardSolutions.com) जिसका दिल पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

(ग) फिर फिर आये जीवन में सावन मनभावन।
भाव:  मन को अच्छा लगने वाला सावन जीवन में बार-बार आए और जीवन में खुशियाँ भर दे।

प्रश्न 5:
कविता की अन्तिम पंक्तियों में कवि ने क्या इच्छा व्यक्त की है?
उत्तर:
कवि ने इच्छा व्यक्त की है कि मनभावन (UPBoardSolutions.com) सावन जीवन में बार-बार आए।

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भाषा की बात

प्रश्न 1:
‘झम-झम, झम-झम मेघ बरसते हैं सावन के’ – इसमें ‘झम-झम’ ध्वनि सूचक शब्द है। कविता में अन्य कई ध्वनि सूचक शब्दों का प्रयोग हुआ है, जिससे सावन की बरसात का बड़ा सहज एवं सरस चित्रण हुआ है। इस प्रकार के ध्वनि सूचक शब्दों को चुनकर लिखिए।
उत्तर:
छम-छम, तड़-तड़, टप-टप, चम-चम, थम-थम, झूम-झूम, घुमड़-घुमड़, झन-झन आदि।

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प्रश्न 2:
कविता की उन पंक्तियों को चुनकर (UPBoardSolutions.com) लिखिए जिनमें अनुप्रास अलंकार है।
उत्तर:
झम-झम, झम-झम मेघ बरसते हैं, सावन के,
छम-छम-छम गिरती बूंदें तरुओं से छन के।

प्रोजेक्ट कार्य- विद्यार्थी स्वयं करें।

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