UP Board Solutions for Class 6 English Chapter 4 The Donkey and The Dog

UP Board Solutions for Class 6 English Chapter 4 The Donkey and The Dog

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The Donkey and The Dog

TRANSLATION OF THE LESSON (पाठ का हिन्दी अनुवाद)

A washerman…………………………..donkey thought.
हिन्दी अनुवाद – एक धोबी के पास एक गधा और एक कुत्ता था। प्रतिदिन सुबह वह नदी पर कपड़े धोने जाता था। गधा कपड़ों का भार ढोता था। वह अपने मालिक के घर के बाहर छप्पर में रहता था और कुत्ता पूरे दिन घर के अन्दर रहता था। शाम के समय, कुत्ता अपने मालिक को देख बहुत प्रसन्न होता था। वह मालिक को चाटता और उसके ऊपर कूदता था। मालिक कुत्ते को अपने बाँहों में उठाता और घर के अन्दर ले जाता। ऐसा देखकर, गधा भी घर के अन्दर रहना चाहता था। उसने सोचा, “यदि मैं भी कुत्ते की तरह मालिक पर कूद जाऊँ, तब वह भी मुझे बाँहों में उठाएगा और घर के अन्दर ले जाएगा।”

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The next ………………………………………. are different.
हिन्दी अनुवाद – अगली शाम गथी घर के अन्दर गया। वह अपने मालिक पर कूदा और उसे चाटना शुरू कर दिया। मालिक ने गधे को नहीं उठाया । वह उसे छप्पर में ले गया। गधे को थपथपाते हुए मालिक ने उसे कहा, “तुम कुत्ते की तरह नहीं हो। तुम बहुत बड़े हो इसलिए तुम घर में नहीं आ सकते।” मालिक ने फिर कहा, “तुम भारी भी हो इसलिए तुम्हें मुझ पर नहीं कूदना चाहिए। मैं कुत्ते को उठा सकता हूँ लेकिन तुम्हें नहीं। परन्तु मैं तुमसे भी उतना ही प्यार करता हूँ जितना मैं कुत्ते से करता हूँ। तुम्हें समझ जाना चाहिए कि तुम अलग हो।”

EXERCISE (अभ्यास)

Comprehension Questions

Question 1.
Answer the following questions:
Answer:
Question a.
What did the donkey use to carry?
Answer:
The donkey used to carry the load of clothes.

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Question b.
Why could the washerman not lift the donkey? .
Answer:
The donkey was too big and too heavy to be lifted by the washerman.

Question c.
How did the washerman show his love for the dog?
Answer:
The master used to lift the dog in his arms and take him inside the house.

Question d.
Why did the donkey want to live in the house?
Answer:
The donkey was jealous of the dog who lived with the master in the house. So, it also wanted to five in the house.

Question e.
What did the washerman tell the donkey?
Answer:
The washerman told the donkey that he was much bigger so he couldn’t come inside the house to stay. He also said that the donkey was too heavy to be lifted. But he loved the donkey and the dog alike.

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Question f.
Why should we not copy others?
Answer:
We are all unique and different from others. Similarly, we have our own particular reputation and position which is unique. Therefore, we should not copy others.

Question 2.
Match the followings to form correct sentences :
Answer:
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Word Power

Question 1.
Fill in the blanks by choosing the correct word from the box:
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Answer:
a. Atul’s grandfather patted him for his bravery.
b. Lick your icecream before it melts.
c. The balloon seller was selling balloons of different colours.
d. People keep their cattle in shed.

Question 2.
Fill in the vowels in the given puzzle to complete the words :
Answer:
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Language Practice

Question 1.
Fill in the blanks with the correct prepositions from the list given below:
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Answer:
a. The aeroplane is flying over the clouds.
b. Roli distributed sweets among her friends.
c. The man jumped into the river.
d. I got a gift from my friend.
e. Keep the notebooks on the table.
f. His flat was above the shop.

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Question 2.
Make sentences using ‘used to’:
We use ‘used to’ to describe a habit of the past.
Answer:

  1. Tused to drink coffee.
  2. Reena used to live in a flat
  3. He used to play tennis.
  4. We used to exercise daily.
  5. Abdul and Agam used to work in a factory.
  6. They used to go to mosque everyday.
  7. She used to exercise daily.
  8. Her uncle used to live in a flat.

Note: Many such sentences can be framed in this way.

Activity
Do it yourself.

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के क्या कारण थे?
उत्तर:

  1. लोगों की आर्थिक स्थिति ने उनके वस्त्रों में अंतर ला दिया।
  2. स्त्रियों में सौन्दर्य की भावना ने उनके वस्त्रों में परिवर्तन ला दिया।
  3. समानता को महत्त्व देने के लिए लोग साधारण वस्त्र पहनने लगे।
  4. राजतंत्र व शासक वर्ग के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए।
  5. फ्रांसीसी क्रान्ति ने सम्प्चुअरी कानूनों को समाप्त कर दिया।
  6. फ्रांस के रंग लाल, नीला तथा सफेद, देशभक्ति के प्रतीक बन गए अर्थात् इन तीनों रंगों के वस्त्र लोकप्रिय होने लगे।
  7. लोगों की वस्त्रों के प्रति रुचियाँ अलग-अलग थीं।
  8. तंग लिबास व कॉर्सेट पहनने से युवतियों में अनेक बीमारियाँ तथा विरूपताएँ आने लगीं थीं।
  9. यूरोप में सस्ते व अपेक्षाकृत सुंदर भारतीय वस्त्रों की माँग बढ़ गयी थी।
  10. फांसीसी क्रान्ति के उपरान्त फ्रांस में महिलाएँ और पुरुष दोनों ही आरामदेह व ढीले-ढाले वस्त्र पहनने लगे थे, जिनका अन्य यूरोपीय देशों पर प्रभाव पड़ा।

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प्रश्न 2.
फ्रांस में सम्प्चुअरी कानून क्या थे?
उत्तर:
सन् 1294 से 1789 ई0 की फ्रांसीसी क्रान्ति तक फ्रांस के लोगों को सम्प्चुअरी कानूनों का पालन करना पड़ता था। इन कानूनों द्वारा समाज के निम्न वर्ग के व्यवहार को नियंत्रित (UPBoardSolutions.com) करने का प्रयास किया गया। फ्रांसीसी समाज के विभिन्न वर्गों के लोग किस प्रकार के वस्त्र पहनेंगे इसका निर्धारण विभिन्न कानूनों द्वारा किया जाता था।
इन कानूनों को सम्प्चुअरी कानून (पोशाक संहिता) कहा जाता था। फ्रांस में सम्प्चुअरी कानून इस प्रकार थे-

  1. किसी व्यक्ति के सामाजिक स्तर द्वारा यह निर्धारित होता था कि कोई व्यक्ति एक वर्ष में कितने कपड़े खरीद सकता था।
  2. साधारण व्यक्तियों द्वारा कुलीनों जैसे कपड़े पहनने पर पूर्ण पाबंदी थी।
  3. शाही खानदान तथा उनके संबंधी ही बेशकीमती कपड़े (एमइन, फर, रेशम, मखमल अथवा जरी आदि) पहनते थे।
  4. निम्न वर्गों के लोगों को खास-खास कपड़े पहनने, विशेष व्यंजन खाने, खास तरह के पेय (मुख्यतः शराब) पीने और शिकार खेलने की अनुमति नहीं थी।

यथार्थ में ये कानून लोगों के सामाजिक स्तर को प्रदर्शित करने के लिए बनाए गए थे। उदाहरण के लिए रेशम, फर, एर्माइन मखमल, जरी जैसी कीमती वस्तुओं का प्रयोग केवल राजवंश के लोग ही कर सकते थे। अन्य वर्गों के लोग इसका प्रयोग नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 3.
यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच दो फर्क बताइए।
उत्तर:
यूरोपीय और भारतीय पोशाक संहिता के बीच दो अंतर निम्नलिखित हैं-

  1. यूरोपीय पोशाक संहिता में तंग वस्त्रों को महत्त्व दिया जाता था जबकि भारतीय पोशाक संहिता में आरामदेह तथा ढीले- ढाले वस्त्रों को अधिक महत्त्व दिया जाता था।
  2. यूरोपीय पोशाक संहिता कानूनी समर्थन पर आधारित थी, जबकि भारतीय पोशाक संहिता को सामाजिक समर्थन प्राप्त था।
  3. यूरोप के लोग हैट पहनते थे जिसे वे स्वयं से उच्च सामाजिक स्तर के लोगों के सामने सम्मान प्रकट करने के लिए उतारते थे जबकि भारत के लोग अपने को गर्मी से बचाने के लिए पगड़ी पहनते थे और यह सम्मान का सूचक थी। इसे इच्छानुसार बार-बार नहीं उतारा जाता था।

प्रश्न 4.
1805 में अंग्रेज अफसर बेंजमिन होइन ने बंगलोर में बनने वाली चीजों की एक सूची बनाई थी, जिसमें निम्नलिखित उत्पाद भी शामिल थे-

  • अलग-अलग किस्म और नाम वाले जनाना कपड़े।
  • मोटी छींट।
  • मखमल।
  • रेशमी कपड़े।

बताइए कि बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों में इनमें से कौन-कौन से किस्म के कपड़े प्रयोग से बाहर चले गए होंगे, और क्यों?
उत्तर:
20वीं सदी के प्रारंभिक देशकों में इनमें से रेशमी और मखमल के कपड़ों का प्रयोग सीमित हो गया होगा क्योंकि-

  1. यह कपड़े यूरोपीय कपड़ों की तुलना में बहुत महंगे थे।
  2. स्वदेशी आंदोलन ने लोगों में रेशमी वस्त्रों का त्याग करने को प्रेरित किया।
  3. इस समय तक इंग्लैण्ड के कारखानों में बना सूती कपड़ा भारत के बाजारों में बिकने लगा था। यह कपड़ा देखने में सुंदर, हल्का व सस्ता था।

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प्रश्न 5.
उन्नीसवीं सदी के भारत में औरतें परंपरागत कपड़े क्यों पहनती रहीं जबकि पुरुष पश्चिमी कपड़े पहनने लगे थे? इससे समाज में औरतों की स्थिति के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
19वीं सदी में भारत में केवल उन्हीं उच्च वर्गीय भारतीयों ने पश्चिमी कपड़े पहनना आरंभ किया जो अंग्रेजों के संपर्क में आए थे। साधारण भारतीय समुदाय इस काल में परंपरागत भारतीय वस्त्रों को ही पहनता था। हमारा समाज मुख्यतः पुरुष प्रधान है और महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे पारिवारिक सम्मान को बनाए रखें। उनसे सुशील एवं अच्छी गृहिणी बनने की अपेक्षा की जाती थी। वे पुरुषों जैसे वस्त्र (UPBoardSolutions.com) नहीं पहन सकती थीं और इसलिए, उन्होंने पारंपरिक परिधान पहनना जारी रखा। यह सीधे तौर पर महिलाओं को समाज में निम्न दर्जा हासिल होने का सूचक है। इस काल में साधारण महिलाओं की सामाजिक स्थिति घरेलू जिम्मेदारियों के निर्वहन तक ही सीमित थी परंतु उच्च वर्गीय महिलाएँ शिक्षित होने के साथ-साथ राजनीति तथा समाजसेवा जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों से जुड़ी हुई थीं।

प्रश्न 6.
विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि महात्मा गाँधी ‘राजद्रोही मिडिल टेम्पल वकील से ज्यादा कुछ नहीं हैं और ‘अधनंगे फकीर का दिखावा कर रहे हैं। चर्चिल ने यह वक्तव्य क्यों दिया और इससे महात्मा गाँधी की पोशाक की प्रतीकात्मक शक्ति के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
इस समय महात्मा गाँधी की छवि भारतीय जनता में एक ‘महात्मा’ एवं मुक्तिदाता के रूप में उभर रही थी। गाँधी जी की वेशभूषा सादगी, पवित्रता और निर्धनता का प्रतीक थी जो भारतीय जनता के विचारों और स्थिति को प्रतिबिम्बित करती थी। इस कारण महात्मा गाँधी की पोशाक की प्रतीकात्मक शक्ति चर्चिल के साम्राज्यवाद का विरोध करती हुई प्रतीत हुई और उन्होंने महात्मा गाँधी के विषय में प्रश्नगत् टिप्पणी की।

प्रश्न 7.
समूचे राष्ट्र को खादी पहनाने का गाँधीजी का सपना भारतीय जनता के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित क्यों रहा?
उत्तर:
प्रत्येक भारतीय को खादी के वस्त्र पहनाने का आँधीजी का स्वप्न कुछ हिस्सों तक सीमित रहने के निम्नलिखित कारण थे-

  1. भारत का उच्च अभिजात्य वर्ग मोटी खादी के स्थान पर हल्के व बारीक कपड़े पहनना पसंद करता था।
  2. अनेक भारतीय पश्चिमी शैली के वस्त्रों को (UPBoardSolutions.com) पहनना आत्मसम्मान का प्रतीक मानते थे।
  3. सफेद रंग की खादी के कपड़े महंगे थे, तथा उनका रख-रखाव भी कठिन था, जिसके कारण निम्न वर्ग के मेहनतकश लोग इसे पहनने से बचते थे। इसलिए महात्मा गाँधी के विपरीत बाबा साहब अम्बेडकर जैसे अन्य राष्ट्रवादियों ने पाश्चात्य शैली का सूट पहनना कभी नहीं छोड़ा। सरोजनी नायडू और कमला नेहरू जैसी महिलाएँ भी हाथ से बुने सफेद, मोटे कपड़ों की जगह रंगीन व डिजाइनदार साड़ियाँ पहनती थीं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ब्रह्मिका साड़ी देश के किस भाग में अधिक लोकप्रिय थी?
उत्तर:
यह साड़ी प्रमुख रूप से बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में लोकप्रिय थी।

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प्रश्न 2.
रवीन्द्रनाथ टैगोर किस पोशाक को राष्ट्रीय पोशाक के रूप में डिजाइन करना चाहते थे?
उत्तर:
वे हिन्दू और मुसलमान दोनों प्रमुख समुदायों के मेल से पोशाक डिजाइन करना चाहते थे, जिसमें बटनदार लंबा कोट पुरुषों के लिए सबसे उपयुक्त पोशाक थी।

प्रश्न 3.
महात्मा गाँधी ने लुंगी-कुर्ता पहनने का प्रयोग कब शुरू किया?
उत्तर:
1913 ई० में डरबन (दक्षिण अफ्रीका) में महात्मा गाँधी ने पहली बार यह परिधान धारण किया।

प्रश्न 4.
फ्रांस में सम्प्चुअरी कब से कब तक लागू रहे?
उत्तर:
फ्रांस में सम्प्चुअरी कानून 1294 ई0 से 1789 ई0 तक प्रभावी रहा।

प्रश्न 5.
विक्टोरियाई समाज में महिलाओं की स्थिति बताइए। उत्तर- विक्टोरियाई समाज में बचपन से ही महिलाओं को आज्ञाकारी, खिदमती, सुशील तथा दब्बू होने की शिक्षा दी जाती थी। प्रश्न 6. पादुका सम्मान से क्या आशय है?
उत्तर:
अंग्रेजों की ऐसी सोच थी कि भारतीय किसी भी पवित्र स्थान में घुसने से पहले जूते उतारते हैं, इसलिए किसी भी सरकारी संस्था में प्रवेश करने से पहले उन्हें जूते उतारने चाहिए। इस नियम को ‘पादुका सम्मान के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 7.
1870 ई0 के दशक में अमेरिका में पोशाक सुधार के समर्थकों के क्या विचार थे?
उत्तर:

  1. कपड़ों को सरल बनाया जाए।
  2. कार्सेट का परित्याग किया जाए।
  3. स्कर्ट की लंबाई छोटी की जाए।

प्रश्न 8.
त्रावणकोर रियासत की शनार जाति पर लागू प्रतिबन्धों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. ऊँची जाति वालों के सामने शनार स्त्री-पुरुष शरीर के ऊपरी भाग को नहीं ढंक सकते थे।
  2. शनार लोग सोने के आभूषण नहीं पहन सकते थे।
  3. शंनार लोग जूते नहीं पहन सकते थे।
  4. शनार लोग छतरी लेकर नहीं चल सकते थे।

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प्रश्न 3.
20वीं सदी की शुरुआत में कृत्रिम रेशों से बने कपड़ों की माँग क्यों बढ़ गयी थी?
उत्तर:
ये कपड़े पूर्व प्रचलित कपड़ों की तुलना में सस्ते, हल्के, आरामदायक होते थे। इन कपड़ों को पहमनी और साफ करना आसान था।

प्रश्न 10.
दकियानूसी वर्ग के लोग क्यों पोशाक सुधार का विरोध कर रहे थे?
उत्तर:
उनका ऐसा मानना था कि इससे महिलाओं की शालीनता, खूबसूरती और जनानापन समाप्त हो जाएगा।

प्रश्न 11.
सम्प्चुअरी कानूनों के अंतर्गत राजा-रजवाड़े किस तरह की पोशाक पहन सकते थे?
उत्तर:
इस कानून के अन्तर्गत राजा-रजवाड़े एर्माइन, रेशम, फर, मखमल या जरी की बनी पोशाक ही पहन सकते थे।

प्रश्न 12.
विश्व युद्धों के कारण महिला परिधानों में आए किन्हीं दो बदलावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विश्व युद्धों के कारण महिला परिधानों में आए दो बदलाव –

  1. यूरोप में औरतों ने जेवर और बेशकीमती कपड़े पहनने छोड़ दिए।
  2. चटख रंगों के स्थान पर हल्के रंग के कपड़े पहने जाने लगे।

प्रश्न 13.
ब्रिटेन में नई सामग्री से नई प्रौद्योगिकी ने किस तरह के सुधार लाने में सहायता की?
उत्तर:
17वीं सदी से पहले फ्लैक्स, लिनेन या ऊन से बने बहुत कम कपड़े प्रयोग में लाए जाते थे। किंतु 1600 ई. के बाद भारत के साथ व्यापार के चलते सस्ती व रखरखाव में आसान भारतीय छींट यूरोप लाई गई। उन्नीसवीं सदी में यूरोप में अधिकाधिक लोगों की सूती कपड़ों तक पहुँच हो गई। बीसवीं (UPBoardSolutions.com) सदी के प्रारंभ तक सस्ते, टिकाऊ एवं रखरखाव तथा धुलाई में आसान कृत्रिम रेश से बने कपड़े प्रयोग किए जाने लगे।

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प्रश्न 14.
1830 के दशक में महिला पत्रिकाओं ने पारंपरिक वस्त्रों के पहनने से किस तरह के नकारात्मक प्रभावके बारे में बतलाया?
उत्तर:
महिला पत्रिकाओं ने बताना शुरू कर दिया कि तंग लिबास व कॉर्सेट पहनने से महिलाओं में विभिन्न तरह की बीमारियाँ और विरूपताएँ आ जाती हैं। ऐसे पहनावे जिस्मानी विकास में बाधा पहुँचाते हैं, इनसे रक्त प्रवाह भी अवरुद्ध होता है। मांसपेशियाँ अविकसित रह जाती हैं और रीढ़ झुक जाती है।

प्रश्न 15.
इंग्लैण्ड की लड़कियों को बचपन में क्या शिक्षा दी जाती थी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड की लड़कियों को बचपन में घर व स्कूल में यह शिक्षा दी जाती थी कि पतली कमर रखना उनका नारी सुलभ कर्तव्य है। सहनशीलता स्त्रीत्व का आवश्यक गुण है। आकर्षक व स्त्रियोचित दिखने के लिए उनका कॉर्सेट पहनना आवश्यक था। इसके लिए शारीरिक कष्ट या यातना भोगना मामूली बात मानी जाती थी।

प्रश्न 16.
जेकोबिन क्लब्ज़ के सदस्य स्वयं को क्या कहते थे?
उत्तर:
जेकोबिन क्लब्ज के लोग स्वयं को सेन्स क्लोट्टीज कहते थे।

प्रश्न 17.
इंग्लैण्ड में नेशनल डेस सोसाइटी’ की स्थापना कब की गयी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में सन् 1881 में नेशनल ड्रेस सोसाइटी की स्थापना की गयी।

प्रश्न 18.
स्वदेशी आंदोलन ने किस बात पर विशेष बल दिया?
उत्तर:
भारत में बने माल का अधिक-से-अधिक देशवासियों द्वारा प्रयोग और विदेशी माल का बहिष्कार।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय पहनावे पर स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव बताइए।
उत्तर:
भारत में 20वीं शताब्दी के प्रथम दशक में बंगाल विभाजन के विरोधस्वरूप देश भर में स्वदेशी को अपनाने तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के निमित्त एक जन-आंदोलन आरंभ हुआ। इस आंदोलन के मूल में वस्त्रों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। सस्ते और हल्के ब्रिटिश कपड़ों के प्रचलन के कारण बड़ी संख्या में भारतीय बुनकर बेरोजगार हो गए थे। जब लॉर्ड कर्जन ने 1905 ई० में बंगाल को विभाजित करने का फैसला किया तो ‘बंग-भंग की प्रतिक्रिया में स्वदेशी आंदोलन ने जोर पकड़ा। देशवासियों से अपील की गई कि वे तमाम तरह के विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करें और माचिस तथा सिगरेट जैसी चीजों को बनाने के लिए खुद उद्योग लगाएँ। खादी का इस्तेमाल देशभक्ति का कर्तव्य बन गया। महिलाओं से अनुरोध किया गया कि रेशमी कपड़े व काँच की चूड़ियों को फेंक दें और शंख की चूड़ियाँ पहनें। हथकरघे पर बने मोटे कपड़े को लोकप्रिय बनाने के लिए अनेक प्रयास किए गए।

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प्रश्न 2.
अंग्रेजों ने भारत पर राजनैतिक नियंत्रण स्थापित करने के लिए अपने कपड़ा उद्योग को सुधारने के लिए किस प्रकार प्रयास किया?
उत्तर:
अंग्रेज सर्वप्रथम भारत में वस्त्रों को व्यापार करने के लिए आए थे। 17वीं शताब्दी तक विश्व के कुल वस्त्र उत्पादन का एक चौथाई भारत में होता था। किन्तु इंग्लैण्ड में हुई औद्योगिक क्रान्ति ने कताई और बुनाई का मशीनीकरण कर दिया। इसके फलस्वरूप कच्चे माल के रूप में कपास और नील (UPBoardSolutions.com) की माँग बढ़ गयी। परिणामस्वरूप विश्व बाजार में भारत की स्थिति बदल गयी। वस्त्र निर्यातक भारत अब कच्चे माल का निर्यातक बन गया।
अंग्रेजों ने भारत पर राजनैतिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए इसका दो तरीके से इस्तेमाल किया-

  1. वे भारतीय किसानों को नील जैसी फसल की खेती के लिए बाध्य कर पाए और अंग्रेजों द्वारा बनाया गया महीन वे सस्ता कपड़ा भारत में निर्मित मोटे कपड़े का स्थान लेने लगा।
  2. भारत पर राजनीतिक हुकूमत के सहारे ब्रिटेन ने भारतीय बाजार में सस्ते व मिल में बने हुए बारीक वस्त्र पेश किए।
    इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय वस्त्रों के माँग के अभाव में भारतीय बुनकर बड़ी संख्या में बेरोजगार हो गए। मुर्शिदाबाद, मछलीपट्टनम् और सूरत जैसे-प्रमुख सूती वस्त्र केन्द्रों का पतन हो गया जबकि इसी दौरान ब्रिटिश कपड़ा उद्योग केन्द्र का तेजी से विकास हुआ।

प्रश्न 3.
विक्टोरिया कालीन समाज में महिलाओं व पुरुषों की वस्त्र शैलियों की भिन्नता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटेन में महिलाओं एवं पुरुषों द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रों की शैलियों में पर्याप्त भिन्नता थी। इस काल में महिलाओं को बचपन से सुशील और आज्ञाकारी होने की शिक्षा दी जाती थी। आदर्श नारी उसे माना जाता था जो तमाम दुःख दर्द को सह कर भी चुप रहे। जहाँ पुरुषों से धीर-गंभीर, बलवान, आजाद और आक्रामक होने की उम्मीद की जाती थी वहीं औरतों को छुईमुई, निष्क्रिय व दब्बू माना जाता था। पहनावे के रस्मो-रिवाज में भी यह अंतर स्पष्ट रूप से झलकता था। बचपन से ही लड़कियों को सख्त फीतों से बँधे कपड़ों-स्टेज में (UPBoardSolutions.com) कसकर बाँधा जाता था जिससे उनका बदन इकहरा रहे। थोड़ी बड़ी होने पर लड़कियों को बदन से चिपके कॉर्सेट (चुस्त भीतरी कुर्ती) पहनने होते थे। टाइट फीतों से कसी पतली कमर वाली महिलाओं को आकर्षक, शालीन व सौम्य समझा जाता था। इस तरह विक्टोरियाई महिलाओं की अलग छवि बनाने में पोशाक ने अहम् भूमिका निभाई।

प्रश्न 4.
प्रथम विश्व युद्ध के बाद यूरोपीय महिलाओं के परिधान में क्या परिवर्तन आए?
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध (1914) के शुरू होने के साथ ही महिलाओं के पारंपरिक महिला परिधानों की समाप्ति हो गयी।
इन परिवर्तनों के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

  1. उन्नीसवीं शताब्दी तक बच्चो के नए स्कूल सादे वस्त्रों पर बल देने और साज-श्रृंगार को निरुत्साहित करने लगे। व्यायाम और खेलकूद लड़कियों के पाठ्यक्रम का अंग बन गए। खेल के समय लड़कियों को ऐसे वस्त्र पहनने पड़ते थे जो इनकी गतिविधि में बाधा न डालें। जब वे काम पर जाती थीं तो वे आरामदेह और सुविधाजनक वस्त्र पहनती थीं।
  2. अनेक यूरोपीय महिलाओं ने आभूषणों तथा विलासमय वस्त्रों का परित्याग कर दिया। फलस्वरूप सामाजिक बंधन टूट गए और उच्च वर्ग की महिलाएँ अन्य वर्गों की महिलाओं के समान दिखाई देने लगीं।
  3. प्रथम विश्व युद्ध की अवधि में अनेक व्यावहारिक आवश्यकताओं के कारण वस्त्रे छोटे हो गए। 1917 ई0 तक ब्रिटेन में 7,00,000 महिलाएँ गोला-बारूद के कारखानों में काम करने लगीं। कामगर महिलाएँ ब्लाउज, पतलून के अतिरिक्त स्कार्फ पहनती थीं जो बाद में खाकी (UPBoardSolutions.com) ओवरआल और टोपी में परिवर्तित हो गया। स्कर्ट की लंबाई कम हो गई। शीघ्र ही पतलून पश्चिमी महिलाओं की पोशाक का अनिवार्य अंग बन गई जिससे उन्हें चलने-फिरने में अधिक आसानी हो गई।
  4. भड़कीले रंगों का स्थान सादे रंगों ने ले लिया। अनेक महिलाओं ने सुविधा के लिए अपने बाल छोटे करवा लिए।

प्रश्न 5.
भारत में स्वदेशी आंदोलन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
लॉर्ड कर्जन ने ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति बढ़ते विरोध को नियंत्रित करने के लिए बंगाल विभाजन का निर्णय किया। बंगाल विभाजन के इस कदम ने भी भारत में स्वेदशी आंदोलन को बढ़ावा दिया। लोगों ने भारत में प्रचलित प्रत्येक प्रकार के विदेशी सामान का विरोध और बहिष्कार करना आरंभ किया। उन्होंने खादी का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया, यद्यपि यह मोटी, महँगी तथा रखरखाव में कठिन होती थी। उन्होंने माचिस एवं सिगरेट आदि सामानों के लिए अपने स्वयं के उद्योग स्थापित कर दिए। खादी का प्रयोग देशभक्ति के लिए कर्तव्य बन गया। महिलाओं ने अपने रेशमी कपड़े व काँच की चूड़ियाँ फेंक दीं और सादी शंख की चूड़ियाँ धारण करने लगीं। खुरदरे घर में बनाए गए कपड़ों को लोकप्रिय बनाने के लिए गीतों एवं कविताओं के माध्यम से इनका गुणगान किया गया। इसकी खामियों के बावजूद स्वदेशी के तजुर्बे ने महात्मा गाँधी को यह महत्त्वपूर्ण सीख अवश्य दी कि ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रतीकात्मक हथियार के रूप में कपड़े की कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

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प्रश्न 6.
शनार महिलाओं के सम्मुख उपस्थित समस्या और उनका समाधान प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
दक्षिणी त्रावणकोर के नायर जमींदारों के यहाँ काम करने वाली शनार (नाडर) ताड़ी निकालने वाली एक जाति थी। नीची जाति का माने जाने के कारण इन लोगों को छतरी लेकर चलने, जूते या सोने के गहने पहनने की मनाही थी। नीची जाति की महिलाओं व पुरुषों से अपेक्षा की जाती थी कि स्थानीय रीति-रिवाज के अनुसार ऊँची जाति वाले लोगों के सामने कभी भी ऊपरी शरीर कोई नहीं ढंकेगा।1820 ई0 के दशक में ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में आकर धर्मांतरित शनार महिलाओं ने अपने तन को ढंकने के लिए उच्च जाति (UPBoardSolutions.com) की महिलाओं की तरह सिले हुए ब्लाउज व कपड़े पहनना प्रारंभ कर दिया। उच्च जाति के लोगों ने शनार महिलाओं के लिए बहुत सी मुसीबतें खड़ी कीं लेकिन शनार महिलाओं ने कपड़े पहनने के तरीके में बदलाव नहीं किया। अंत में त्रावणकोर सरकार द्वारा एक घोषणा द्वारा शनार महिलाओं–चाहे हिंदू हों या ईसाई – को जैकेट आदि से ऊपरी शरीर को अपनी इच्छानुसार ढंकने की अनुमति मिल गई, लेकिन ठीक वैसे ही नहीं जैसे ऊँची जाति की महिलाएँ ढंकती थीं।

प्रश्न 7.
ब्रिटेन में 1915 ई० से पहले ब्रिटेन की महिलाओं के वस्त्रों में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से थे?
उत्तर:
इस अवधि में महिलाओं के परिधानों में निम्नलिखित परिवर्तन हुए-

  1. 1600 के बाद भारत के साथ व्यापार के कारण भारत की सस्ती, सुंदर तथा आसान रख-रखाव वाली भारतीय छींट इंग्लैंड (ब्रिटेन) पहुँचने लगी। अनेक यूरोपीय महिलाएँ इसे आसानी से खरीद सकती थीं और पहले से अधिक वस्त्र जुटा सकती थीं।
  2. 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के समय बड़े पैमाने पर सूती वस्त्रों का उत्पादन होने लगा। वह भारत सहित विश्व के अनेक भागों को सूती वस्त्रों का निर्यात भी करने लगा। इस प्रकार सूती कपड़ा बहुत बड़े वर्ग को आसानी से उपलब्ध होने लगा।
    20वीं शताब्दी के आरंभ तक कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों को और अधिक सस्ता कर दिया। इनकी धुलाई तथा उनको संभालना अधिक आसान था।
  3. 17वीं शताब्दी से पहले ब्रिटेन की अति साधारण महिलाओं के पास बहुत ही कम वस्त्र होते थे। ये फ्लैक्स, लिनिन तथा ऊन के बने होते थे जिनकी धुलाई कठिन थी इसलिए उन्होंने उन वस्त्रों को अपनाना आरंभ कर दिया जिनकी धुलाई तथा रख-रखाव अपेक्षाकृत सरल था।
  4. 1870 ई0 के दशक के अंतिम वर्षों में भारी भीतरी वस्त्रों का धीरे-धीरे त्याग कर दिया गया। अब वस्त्र पहले से अधिक हल्के, अधिक छोटे और अधिक सादे हो गए। फिर भी 1914 ई0 तक वस्त्रों की लंबाई में कमी नहीं आई। परंतु 1915 तक स्कर्ट की लंबाई एकाएक कम हो गई। अब यह घुटनों तक पहुँच गई थी।

प्रश्न 8.
विभिन्न भारतवासियों द्वारा राष्ट्रीय पोशाक का डिजाइन तैयार करने के प्रयासों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भारत में 19वीं सदी के अंत तक राष्ट्रीयता की भावना प्रबल रूप से बलवती हो उठी थी। ऐसे में अनेक भारतवासी राष्ट्रीय एकता की अभिव्यक्ति करने वाले सांस्कृतिक प्रतीकों के सृजन को तत्पर हो गए। इसी काल खण्ड में राष्ट्रीय पोशाक की खोज राष्ट्र की पहचान को प्रतीकात्मक ढंग से परिभाषित करने की प्रक्रिया का एक हिस्सा बन गयी। विभिन्न भारतवासियों द्वारा राष्ट्रीय पोशाक का डिजाइन तैयार करने के लिए अनेक प्रयास किए गए। 1870 ई0 के दशक में टैगोर खानदान ने भारतीय पुरुषों और महिलाओं के लिए राष्ट्रीय पोशाक (UPBoardSolutions.com) डिजाइन करने का प्रयास किया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सुझाव प्रस्तुत किया कि भारतीय व यूरोपीय पोशाक का मेल करने के बजाय हिन्दू और मुसलमान पोशाक, का मेल करके भारतीय राष्ट्रीय पोशाक निर्मित की जाए। इस तरह बटनदार लंबा कोट-पुरुषों के लिए सबसे उपयुक्त माना गया। इसी तरह पृथक्-पृथक् क्षेत्रों की पारंपरिक वेशभूषा से प्रेरणा ली गयी।

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प्रश्न 9.
‘सम्प्चुअरी कानूनों के खात्में का यह मतलब कत्तई नहीं था कि यूरोपीय देशों में हर कोई एक जैसी पोशाक पहनने लगा हो।’ इस कथन से क्या अर्थ निकलता है?
उत्तर:
सम्प्चुअरी कानूनों की समाप्ति के बाद भेदभाव मात्र कानूनी रूप से समाप्त किए गए थे। लेकिन इसका यह आशय कदापि नहीं था कि यूरोपीय देशों में प्रत्येक व्यक्ति एक जैसी पोशाक पहनने लगा हो। फ्रांसीसी क्रान्ति ने लोगों के सम्मुख समानता का प्रश्न उपस्थित किया तथा कुलीन विशेषाधिकारों तथा उनका समर्थन करने वाले कानूनों को समाप्त कर दिया। लेकिन सामाजिक वर्गों के बीच अंतर पूर्ववत् जारी रहा। स्पष्ट है कि गरीब न तो अमीरों जैसे कपड़े पहन सकते थे न ही वैसा खाना खा सकते थे। फर्क यह था कि अगर वे ऐसा करना चाहते तो अब कानून बीच में नहीं आने वाला था। इस तरह अमीर-गरीब की परिभाषा, उनकी वेशभूषा सिर्फ उनकी आमदनी पर निर्भर हो गई थी न कि सम्प्चुअरी कानूनों के द्वारा निर्धारित की जाती थी।

दीर्थ उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दो विश्व युद्धों के दौरान महिलाओं की पोशाकों में आए अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दो विश्व युद्धों के दौरान महिलाओं की पोशाक में बड़े पैमाने पर परिवर्तन हुए, जिन्हें निम्न रूप में प्रस्तुत किया गया है-

  1. पैंट पाश्चात्य महिलाओं की पोशाक का अहम् हिस्सा बन गई।
  2. सुविधा के लिए महिलाओं ने बाल कटवाना प्रारंभ कर दिया।
  3. बीसवीं सदी तक कठोर और सादगी-भरी जीवन-शैली गंभीरता और प्रोफेशनले अंदाज का पर्याय बन गयी।
  4. बच्चों के नए विद्यालयों में सादी पोशाक पर जोर दिया गया और तड़क-भड़क को हतोत्साहित किया गया।
  5. बहुत-सी यूरोपीय महिलाओं ने आभूषण (UPBoardSolutions.com) एवं कीमती परिधान पहनना बंद कर दिया।
  6. उच्च वर्गों की महिलाएँ अन्य वर्गों की महिलाओं से मिलने-जुलने लगीं जिससे सामाजिक अवरोधों का पतन हुआ।
  7. प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के मध्य इंग्लैण्ड में 70,000 से अधिक महिलाएँ आयुध कारखानों में काम करती थीं और उन्हें स्कार्फ के साथ ब्लाउज एवं पैंट की कामकाजी वेशभूषा के साथ अन्य चीजें पहननी पड़ती थीं।
  8. हल्के रंगों के वस्त्र पहने जाते थे। इस प्रकारे कपड़े सादे होते गए।
  9. स्कर्ट छोटी होती चली गई।

प्रश्न 2.
फ्रांसिसी क्रान्ति के बाद परिधान संहिता में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर:
सन् 1789 में फ्रांस में हुई क्रान्ति ने विभिन्न वर्गों के बीच व्याप्त पहनावे के अंतर को लगभग समाप्त कर दिया।
इस परिवर्तन का विवरण इस प्रकार है-

  1. लाल टोपी को स्वतंत्रता की निशानी के रूप में पहना जाने लगा।
  2. कीमती वस्त्रों के स्थान पर सादगीपूर्ण वस्त्रों का प्रचलन आरंभ हुआ, जिससे समानता की भावना प्रदर्शित होती थी।
  3. तिरछी टोपियाँ (कॉकेड) और लंबी पतलून भी प्रचलन में आ गई थी। फ्रांसिसी क्रांति के उपरांत यद्यपि परिधान संबंधी कानूनों का अंत हो गया था परंतु आर्थिक विभिन्नता के कारण अब भी निम्न वर्ग उच्च वर्गों के समान वस्त्र नहीं पहन सकता था।
  4. इस परिवर्तन का आरंभ जैकोबिन क्लब के सदस्यों द्वारा हुआ जब उन्होंने कुलीन वर्ग के फैशनदार घुटन्ना पहनने वाले लोगों से अलग दिखने के लिए धारीदार लंबी पतलून पहनने का निर्णय किया। इन सदस्यों को सौं कुलॉत’ (बिना घुटने वाले) कहा जाता था।
  5. महिलाओं और पुरुषों ने ढीले-ढाले आरामदेह वस्त्रों को पहनना आरंभ कर दिया।
  6. वस्त्रों के रंगों के चयन में फ्रांसिसी तिरंगों के तीनों रंगों (नीला, सफेद, लाल) को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा। इन्हें पहनना देशभक्ति का पर्याय बन गया।

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प्रश्न 3.
‘पादुका सम्मान’ विवाद क्या था?
उत्तर:
ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा 19वीं सदी की शुरुआत में शिष्टाचार की पालन करते हुए, शासन कर रहे देशी राजाओं व नवाबों के दरबार में जूते उतार कर जाने की परंपरा प्रचलित थी तत्कालीन कुछ अंग्रेज अधिकारी भारतीय वेशभूषा भी धारण करते थे। लेकिन सन् 1830 में सरकारी समारोहों में उन्हें भारतीय परिधान धारण करके जाने से मनाकर दिया गया। दूसरी ओर भारतीयों को भारतीय वेशभूषा ही धारण करनी होती थी। गवर्नर लार्ड एमहर्ट (1824-1828) इस बात पर दृढ़ रहा कि उसके सम्मुख उपस्थित होने वाले भारतीय सम्मान प्रदर्शित करने के लिए नंगे पाँव आए, लेकिन उसने इस नियम को कठोरतापूर्वक लागू नहीं किया।

लेकिन लॉर्ड डलहौजी ने भारत का गवर्नर जनरल बनने पर इस नियम को दृढ़तापूर्वक लागू किया। अब भारतीयों को किसी भी सरकारी संस्था में प्रविष्ट होते समय जूते उतारने पड़ते थे। इस रस्म को ‘पादुका सम्मान’ कहा गया। जो लोग यूरोपीय परिधान धारण करते थे, उन्हें इस नियम से छूट प्राप्त थी। सरकारी सेवा में कार्यरत बहुत से भारतीय इस नियम से स्वयं को पीड़ित महसूस करने लगे थे। | 1862 ई० में (UPBoardSolutions.com) सूरत की फौजदारी अदालत में लगाने आँकने वाले के पद पर कार्यरत मनोकजी कोवासजी एन्टी ने सत्र न्यायाधीश की अदालत में जूते उतारने से इन्कार कर दिया। अदालत में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई और उन्होंने विरोध जताते हुए बंबई के गवर्नर को पत्र लिखा।

इसके जवाब में अंग्रेजों का कहना था कि चूंकि भारतीय किसी भी पवित्र स्थान या घर में घुसने से पहले जूते उतारते ही हैं, तो वे अदालत में भी वैसा ही क्यों न करें। इस पर भारतीयों ने कहा कि पवित्र जगहों या घर पर जूते उतारने के दो कारण थे। घर पर वे धूल या गंदगी अंदर न जाने पाए इसलिए जूते उतारते थे और पवित्र स्थानों पर वे देवी-देवताओं के प्रति आदर प्रकट करने के लिए जूते उतारते थे और उनका रिवाज था। किन्तु अदालत जैसी सार्वजनिक जगह घरों से अलग थे।

प्रश्न 4.
भारतीय शैली के कपड़ों के प्रति अंग्रेजों की सोच स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में भारतीय लोग स्वयं को गर्मी के ताप से बचाने के लिए पगड़ी बाँधते थे। पगड़ी को इच्छानुसार कहीं भी उतारा नहीं जाता था। अंग्रेज लोग पगड़ी की जगह हैट पहनते थे जो कि उनके सामाजिक स्तर से ऊपर के लोगों के सामने सम्मान प्रदर्शित करने के लिए उतारना पड़ता था। इस सांस्कृतिक विविधता ने भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर दी थी।

ब्रिटिश लोग प्रायः इस बात से अप्रसन्न होते थे कि भारतीय लोग औपनिवेशिक अधिकारियों के सामने अपनी पगड़ी नहीं उतारते। दूसरी ओर कुछ भारतीय राष्ट्रीय अस्मिता को जताने के लिए जान-बूझकर पगड़ी पहनते। उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा शिष्टाचार का पालन करते हुए, शासन कर रहे देशी राजाओं व नवाबों के दरबार में जूते उतारकर जाने की परंपरा थी। 1824-1828 के बीच गवर्नर जनरल एमहर्ट इस बात पर अड़ा रहा कि उसके सामने पेश होने वाले हिंदुस्तानी आदर प्रदर्शित करने के लिए नंगे पाँव आएँ, लेकिन इसको सख्ती से लागू नहीं किया गया। जब लॉर्ड डलहौजी भारत का गवर्नर जनरल बना तो ‘पादुका सम्मान की यह रस्म सख्त हो गई और अब भारतीयों को किसी भी सरकारी संस्था में दाखिल होते समय जूते निकालने पड़ते थे। जो लोग यूरोपीय पोशाक पहनते थे उन्हें इस नियम से छूट मिली हुई थी। सरकारी सेवा में कार्यरत बहुत से भारतीय इस नियम से स्वयं को त्रस्त महसूस करने लगे।

1862 ई० में सूरत की फौजदारी अदालत में लगान आँकने वाले के पद पर कार्यरत मनोकजी कोवासजी एन्टी ने सत्र न्यायाधीश की अदालत में जूते उतारने से इन्कार कर दिया। अदालत में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई और उन्होंने विरोध जताते हुए बंबई के गवर्नर (UPBoardSolutions.com) को पत्र लिखा।
इसके जवाब में अंग्रेजों का कहना था कि चूंकि भारतीय किसी भी पवित्र स्थान या घर में घुसने से पहले जूते उतारते ही हैं, तो वे अदालत में भी वैसा ही क्यों न करें। किन्तु भारतीय उनके इस तर्क को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे।

प्रश्न 5.
सफ्रेज आन्दोलन व वस्त्र सुधार को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
1830 ई0 के दशक तक इंग्लैण्ड में महिलाओं ने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्ष आरंभ किया। अब महिलाओं ने कॉर्सेट पहनने का विरोध करना आरंभ किया। वोल्ड आंदोलन के गति पकड़ने के साथ ही पोशाक-सुधार की मुहिम चल पड़ी। महिला पत्रिकाओं ने महिलाओं को इस परिप्रेक्ष्य में जागरुक करना आरंभ किया कि तंग वस्त्रों और कॉर्सेट पहनने
से महिलाओं को कौन-कौन सी शारीरिक और सौन्दर्यपरक विद्रूपताएँ आ जाती हैं।
इस पहनावे से शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को निम्न रूप में प्रस्तुत किया गया-

  1. शरीर का प्राकृतिक रूप से विकास नहीं हो पाता है।
  2. रक्त प्रवाह बाधित होता है।
  3. रीढ़ की हड्डी झुक जाती है।
  4. मांसपेशियाँ अविकसित रह जाती हैं।

इंग्लैण्ड में शुरू हुए सफ्रेज आंदोलन ने यूरोप के बाहर अमेरिका को भी प्रभावित किया। महिलाओं ने अपने पहनावे से संबंधित समस्याओं को समाज के समक्ष रखना आरंभ कर दिया जैसे-

  1. स्कर्ट बहुत विशाल होते थे जिसके कारण चलने में परेशानी होती थी।
  2. लंबे स्कर्ट फर्श को साफ करते हुए चलते थे जो बीमारी का कारण थे।
  3. यदि पहनावे को आरामदायक बना दिया जाए तो वे भी कमाई कर सकती हैं और स्वतंत्र हो सकती हैं।

महिलाओं की इन माँगों का तीव्र विरोध भी हुआ उनके अनुसार पारंपरिक शैली छोड़ देने से महिलाओं की खूबसूरती, शालीनता तथा अन्य स्त्रियोचित गुणों का अभाव संभव था। इस प्रकार के विरोध के कारण ही महिला परिधानों में इस प्रकार के परिवर्तन प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत ही संभव हो सके।

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प्रश्न 6.
भारतीय वस्त्रों एवं महात्मा गाँधी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पोरबन्दर गुजरात में जन्में महात्मा गांधी बचपन में परंपरागत वस्त्र पहनते थे। लेकिन 19 वर्ष की आयु में जब वे कानून की पढ़ाई करने लंदन गए तो वे पश्चिमी पोशाकों की ओर आकृष्ट हुए। 1890 ई० के दशक में दक्षिण अफ्रीका में वकालत करने तक वे कोट-पैंट व पगड़ी पहनते थे। 1913 ई० में दक्षिण अफ्रीकी सरकार के विरोध में जब उन्होंने वहाँ भारतीय कोयला खदान मजदूरों का समर्थन किया तो (UPBoardSolutions.com) उन्हें पश्चिमी वस्त्र व्यर्थ प्रतीत हुए और उन्होंने लुंगी-कुर्ता पहनने का प्रयोग आरंभ किया। साथ ही विरोध करने के लिए खड़े हो गए।

1915 ई. में भारत वापसी पर उन्होंने काठियावाड़ी किसान का रूप धारण कर लिया। अंततः 1921 में उन्होंने अपने शरीर पर केवल एक छोटी-सी धोती को अपना लिया। गाँधीजी इन पहनावों को जीवन भर नहीं अपनाना चाहते थे। वह तो केवल एक या दो महीने के लिए ही किसी भी पहनावे को प्रयोग के रूप में अपनाते थे। परंतु शीघ्र ही उन्होंने अपने इस पहनावे को गरीबों के पहनावे का रूप दे दिया। इसके बाद उन्होंने अन्य वेशभूषाओं का त्याग कर दिया और जीवन भर एक छोटी सी धोती पहने रखी।

इस वस्त्र के माध्यम से वह भारत के साधारण व्यक्ति की छवि पूरे विश्व में दिखाने में सफल रहे। महात्मा गाँधी ने विदेशी वस्त्रों के स्थान पर खादी पहनने के लिए बल दिया। उन्होंने देशवासियों को प्रेरित किया कि वे चरखा चलाएँ और स्वयं के बनाए हुए वस्त्र पहनें। उनके लिए खादी शुद्धता, सादगी और राष्ट्रभक्ति का पर्याय थी। उनके प्रयासों से शीघ्र ही पूरे देश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने खादी को अपना लिया और खादी वस्त्र राष्ट्रभक्ति का प्रतीक बन गए।

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UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 1 शिक्षिका द्वारा प्रतिदर्श बजट का प्रदर्शन

UP Board Solutions for Class 10 Home Science  Chapter 1 शिक्षिका द्वारा प्रतिदर्श बजट का प्रदर्शन

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पारिवारिक बजट से आप क्या समझती हैं? पारिवारिक बजट के मुख्य उद्देश्यों का भी उल्लेख कीजिए। [2007, 09, 11, 12, 14, 15]
या
पारिवारिक बजट बनाने का अर्थ स्पष्ट कीजिए। [2007, 08, 09, 12, 17]
या
बजट बनाने के उद्देश्य  लिखिए। [2016]
उत्तर:
पारिवारिक बजट का अर्थ एवं परिभाषाएँ । परिवार एक ऐसा केन्द्र है जहाँ व्यक्ति की सभी प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यथा-सम्भव प्रयास किए जाते हैं। प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति के लिए कुछ-न-कुछ धन अवश्य व्यय (UPBoardSolutions.com) करना पड़ता है। प्रत्येक व्यय परिवार की आय में से ही किया जाता है।
परिवार में होने वाले इस आय-व्यय को सुनियोजित ढंग से लिखित रूप प्रदान करना ही पारिवारिक बजट बनाना कहलाता है।

पारिवारिक बजट में परिवार की आय को ध्यान में रखते हुए समस्त नियमित एवं सम्भावित व्ययों को नियोजित रूप से लिख लिया जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि परिवार में चलने वाली आय-व्यय की प्रक्रिया को व्यवस्थित रूप में अंकित कर देने वाला प्रपत्र ही पारिवारिक बजट कहलाता है।
यह आय-व्यय विवरण-प्रपत्र एक निश्चित अवधि के लिए होता है। यह अवधि सामान्य रूप से एक माह या एक वर्ष हुआ करती है।

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इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पारिवारिक बजट का अर्थ इन शब्दों में स्पष्ट किया जा सकता है, “पारिवारिक बजट किसी निश्चित अवधि में परिवार के होने वाले आय-व्यय को दर्शाने वाला प्रपत्र होता है। पारिवारिक बजट में आगामी माह या आगामी वर्ष के लिए प्रस्तावित आय-व्यय का अनुमानित प्रारूप भी समाविष्ट होता है।

बजट के सामान्य अर्थ को जान लेने के उपरान्त इस अवधारणा की व्यवस्थित परिभाषा का उल्लेख करना भी आवश्यक हो जाता है। बजट की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नवर्णित हैं

(1) वेबर द्वारा प्रतिपादित परिभाषा-“पारिवारिक बजट पारिवारिक आय को व्यवस्थित रूप से ऐसी बातों के लिए व्यय करने का तरीका है, जिससे कि अधिक-से-अधिक सदस्यों के सुख व कल्याण में वृद्धि हो सके। पारिवारिक बजट असावधानीपूर्वक तथा अव्यवस्थित रूप से व्यय करने के तरीके के स्थान पर योजनाबद्ध तथा विवेकपूर्ण व्यय को प्रतिस्थापित करने का तरीका है।”

(2) क्रेग तथा रश द्वारा प्रतिपादित परिभाषा-“बजट भूत के व्यय, भविष्य के अनुमानित व्यय और वर्तमान समय की मदों पर निश्चित व्यय का लेखा-जोखा है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं द्वारा पारिवारिक बजट का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। बजट वास्तव में वह अनुमानित व्यय विवरण है, जो किसी परिवार द्वारा एक निश्चित आगामी अवधि के लिए पर्याप्त सूझबूझ एवं उपलब्ध आर्थिक आँकड़ों को ध्यान में रखकर तैयार (UPBoardSolutions.com) किया जाता है। पारिवारिक आवश्यकताओं की समुचित पूर्ति तथा गृह-अर्थव्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए पारिवारिक बजट का बनाना तथा उसका पालन करना आवश्यक माना जाता है।

पारिवारिक बजट के मुख्य उद्देश्य
पारिवारिक बजट परिवार की अर्थव्यवस्था का सुनियोजित विवरण होता है। अत: प्रत्येक परिवार में इसका बुद्धिमत्तापूर्ण निर्माण अत्यन्त आवश्यक है। इसके निर्माण के मुख्य उद्देश्य अग्रलिखित हैं

  1. परिवार के सदस्यों की संख्या एवं उनकी कुल आय का सही विवरण रखना।
  2. सभी प्रकार के व्ययों का क्रमिक ज्ञान प्राप्त करना।
  3. पारिवारिक आवश्यकताओं एवं रहन-सहन के स्तर का ध्यान रखना।
  4. आकस्मिक कार्यों के लिए बचत का प्रावधान रखना।
  5. पारिवारिक आय में वृद्धि करने के लिए परिजनों को प्रेरित करना।
  6.  परिवार के सदस्यों द्वारा किए जाने वाले अनावश्यक व्यय को नियन्त्रित करना।
  7. उपर्युक्त विवरण से पारिवारिक बजट का अर्थ एवं मूल उद्देश्य सुस्पष्ट हैं। अतः प्रत्येक गृहिणी । को पारिवारिक आय-व्यय को बजट अवश्य ही बनाना चाहिए तथा उसी के अनुसार व्यय तथा बचत को नियमित करना चाहिए।

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प्रश्न 2.
पारिवारिक बजट के निर्माण एवं उसके क्रियान्वयन में मुख्य रूप से किन-किन सिद्धान्तों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है? स्पष्ट कीजिए। पारिवारिक बजट के निर्माणक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए [2007] पारिवारिक बजट के मुख्य सिद्धान्त कौन-कौन से होते हैं? [2007] पारिवारिक बजट तैयार करते समय किन-किन सिद्धान्तों को ध्यान में रखना आवश्यक है? [2018]
उत्तर:
पारिवारिक बजट के मूल सिद्धान्त पारिवारिक बजट का निर्माण स्वयं में एक (UPBoardSolutions.com) महत्त्वपूर्ण एवं व्यवस्थित कार्य है। पारिवारिक बजट बनाने तथा उसकी सफलता के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित सिद्धान्तों को ध्यान में रखना आवश्यक है-

  1.  कुल आय का ज्ञान-पारिवारिक आय प्रायः वेतन, व्यवसाय, ब्याज, सम्पत्ति का किराया आदि के रूप में प्राप्त होती है। बजट बनाने का पहला कदम परिवार की कुल आय का ज्ञान होना है। सैद्धान्तिक रूप से परिवार की सम्पूर्ण आय को जान लेने के उपरान्त ही बजट बनाने की प्रक्रिया प्रारम्भ की जानी चाहिए। पारिवारिक बजेट की सफलता के लिए आवश्यक है कि परिवार के सभी सदस्यों द्वारा अपनी-अपनी आय का सही विवरण प्रस्तुत किया जाए।
  2.  मूल आवश्यकताओं की जानकारी गृहिणी को परिवार की सम्भावित मूल आवश्यकताओं की जानकारी होनी चाहिए और आय का अधिकतर भाग इन पर ही व्यय करना चाहिए। यदि आय कम हो, तो मूल आवश्यकताओं की पूर्ति उनकी प्राथमिकता के क्रम में की जानी चाहिए।
  3. बचत की व्यवस्था सम्बन्धी सिद्धान्त-सैद्धान्तिक रूप से पारिवारिक बजट बनाते समय बचत का प्रावधान अवश्य रखना चाहिए। पारिवारिक अर्थव्यवस्था को सुचारु बनाए रखने के लिए बचत महत्त्वपूर्ण तथा आवश्यक होती है। बचत की दर का निर्धारण (UPBoardSolutions.com) आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सूझबूझपूर्वक होना चाहिए।
  4.  लचीला बजट-किसी भी परिवार में आय-व्यय का कठोरतापूर्वक संचालन, सदस्यों में असन्तोष एवं कलह का वातावरण उत्पन्न कर सकता है। अतः सैद्धान्तिक रूप से पारिवारिक बजट लचीला होना चाहिए, जिससे अनुमानों में यदि कुछ परिवर्तन भी करना पड़े, तो कोई विशेष कठिनाई न हो |
  5. आकस्मिक आवश्यकताओं के लिए व्यवस्था—पारिवारिक बजट बनाने की एक सैद्धान्तिक मान्यता यह है कि बजट में भी परिवार की कुछ आकस्मिक आवश्यकताओं तथा उनकी पूर्ति के लिए व्यय का प्रावधान रखा जाए। आकस्मिक आवश्यकताओं पर होने वाले व्यय का निर्धारण अनुमान द्वारा तथा विगत कुछ माह तक हुए आकस्मिक व्यय के विश्लेषण द्वारा किया जा सकता है।
  6. बजट का निरीक्षण एवं विश्लेषण–पारिवारिक आय प्रायः घटती-बढ़ती रहती है। इसी प्रकार विभिन्न वस्तुओं के मूल्यों में भी समय-समय पर गिरावट एवं वृद्धि होती रहती है। अत: बजट बनाते समय इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। गत बजट अथवा बजटों का निरीक्षण एवं विश्लेषण करने पर गृहिणी को विभिन्न आवश्यकताओं की सन्तुष्टि पर हुए उचित अथवा अनुचित, कम अथवा अधिक व्यय के विषय में प्रामाणिक जानकारी मिलती है। इसका उपयोग गृहिणी भविष्य में बनाए जाने वाले बजट में कर सकती है।
  7.  मासिक बजट का निर्माण वार्षिक बजट की पृष्ठभूमि में हो-पारिवारिक मासिक बजट को वार्षिक बजट की पृष्ठभूमि में ही तैयार करना चाहिए। इसका कारण यह है कि प्रत्येक परिवार में कुछ ऐसे व्यय होते हैं जो वर्ष के प्रत्येक माह में समान रूप से नहीं होते।
    किसी माह में कम होते हैं, तो किसी माह में अधिक। इसके अतिरिक्त यह भी सत्य है कि वर्ष के प्रत्येक माह में परिवार की आय भी समान नहीं होती। आय-व्यय सम्बन्धी इस अन्तर के ही कारण कहा जाता है कि पारिवारिक मासिक बजट वार्षिक बजट की पृष्ठभूमि में ही तैयार किया जाना चाहिए।
    उपर्युक्त विवरण द्वारा पारिवारिक बजट के निर्माण की प्रक्रिया के सैद्धान्तिक पक्ष का सामान्य परिचय प्राप्त हो जाता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि प्रत्येक परिवार की आर्थिक परिस्थितियों तथा आवश्यकताओं की प्राथमिकता भिन्न-भिन्न होती है। अतः पारिवारिक बजट को व्यावहारिक बनाने तथा उसको सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने के लिए, विशेष सूझ-बूझ एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक होता है।

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प्रश्न 3.
पारिवारिक बजट का क्या महत्त्व है? इससे परिवार को होने वाले लाभों का भी वर्णन कीजिए। [2018]
या
स्पष्ट कीजिए कि “बजट से न केवल गृहिणियाँ ही लाभान्वित होती हैं, बल्कि इससे अर्थशास्त्रियों, समाज-सुधारकों तथा सरकार को भी लाभ होता है।”
या
पारिवारिक बजट से गृहिणियों को क्या लाभ होता है? [2009, 10, 12, 13, 15, 17]
या
बजट बनाने से परिवार को होने वाले लाभों का वर्णन कीजिए। (2017)
या
“पारिवारिक बजट गृहिणी के आय-व्यय को नियन्त्रित करने के लिए आवश्यक है।” स्पष्ट कीजिए।[2009, 12, 13, 14]
या
घर का बजट बनाने के क्या लाभ हैं? एन्जिल के बजट बनाने के सिद्धान्त को विस्तारपूर्वक लिखिए।[ 2008, 11 ]
या
बजट बनाने के लाभ लिखिए। [2007, 11, 13, 14, 16, 17]
उत्तर:
पारिवारिक बजट का महत्त्व या लाभ पारिवारिक बजट परिवार की आर्थिक दशा का वह विवरण है जिसकी सहायता से गृहिणी परिवार के आय-व्यय के सन्तुलन को बनाये रख सकती है। पारिवारिक बजट से न केवल गृहिणियाँ ही लाभान्वित होती हैं, (UPBoardSolutions.com) बल्कि इससे अर्थशास्त्रियों, समाज-सुधारकों तथा सरकार को भी लाभ होता है।
पारिवारिक बजट बनाने के अनेक लाभ हैं। कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं
(क) गृहिणियों तथा परिवार को लाभ
पारिवारिक बजट से सर्वाधिक लाभ गृहिणियों तथा परिवार को ही होता है। पारिवारिक बजट से गृहिणियों को प्राप्त होने वाले लाभ का विवरण अग्रलिखित है

  1. अनावश्यक व्यय के नियन्त्रण में सहायक-पारिवारिक समृद्धि के लिए अनिवार्य है कि अनावश्यक पारिवारिक व्यय को नियन्त्रित किया जाए। यदि सूझ-बूझपूर्वक पारिवारिक बजट तैयार करके उसके अनुसार ही व्यय किया जाता है तो अनावश्यक पारिवारिक व्यय स्वत: ही नियन्त्रित हो जाता है।
  2. आयव्यय में सन्तुलन बनाये रखने में सहायक-पारिवारिक बजट में पारिवारिक आय को ध्यान में रखकर ही व्यय का प्रावधान किया जाता है। इस व्यवस्था के कारण पारिवारिक आय तथा व्यय में परस्पर सन्तुलन बना रहता है तथा गृह अर्थव्यवस्था सुचारु ढंग से चलती रहती है।
  3.  मितव्ययिता की आदत के विकास में सहायक–यदि गृहिणियाँ पूर्व-निर्धारित बजट के अनुसार ही व्यय करती हैं तो व्यय की सीमाओं का ध्यान रखना पड़ता है। इससे मितव्ययिता की आदत विकसित हो जाती है। मितव्ययिता स्वयं ही एक आर्थिक सद्गुण है तथा इससे अनेक लाभ होते हैं।
  4.  पारिवारिक ऋण से बचाने में सहायक–पारिवारिक बजट के बनाने तथा उसके पालन की दशा में गृहिणियाँ अपने व्यय को निर्धारित सीमा में ही रखती हैं। इससे गृह-अर्थव्यवस्था के बिगड़ने तथा ऋणग्रस्तता के अवसर नहीं आते।
  5.  परिजनों की आवश्यकता-पूर्ति में सहायक–गृहिणी का कर्तव्य है कि वह परिवार के सभी सदस्यों की मुख्य आवश्यकताओं की समुचित पूर्ति का ध्यान रखे। पारिवारिक बजट गृहिणी के अपने इस कर्तव्य की पूर्ति में सहायक होता है। वास्तव में पारिवारिक बजट में परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता के आधार पर स्वीकार किया जाता है तथा उनकी पूर्ति के लिए व्यय का प्रावधान रखा जाता है।
  6. पारिवारिक बचत में सहायक-कुशल गृहिणियाँ पारिवारिक बचत को आवश्यक मानती हैं। उत्तम पारिवारिक बजट में बचत का अनिवार्य रूप से प्रावधान होता है। इस प्रकार बजट का पालन करके गृहिणियाँ बचत करने में सफल हो जाती हैं।
  7.  रहन-सहन के स्तर को उन्नत बनाने में सहायक-पारिवारिक बजट बनाकर गृहिणियाँ अपने पारिवारिक व्यय को व्यवस्थित बना लेती हैं तथा उसके आधार पर सूझ-बूझपूर्वक आय को इस ढंग से व्यय करती हैं, जिससे परिवार के रहन-सहन का स्तर उन्नत बना रहता है।
  8.  पारिवारिक सुख-शान्ति एवं समृद्धि में सहायक-सभी गृहिणियाँ चाहती हैं कि (UPBoardSolutions.com) उनके परिवार में सुख-शान्ति एवं समृद्धि का वातावरण बना रहे। पारिवारिक बजट का निर्माण तथा उसका पालन इस उद्देश्य की पूर्ति में सहायक होता है। पारिवारिक बजट परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक होता है तथा नियमित बचत के अवसर भी प्रदान करता है। इससे परिवार की अर्थव्यवस्था सुचारु बनी रहती है तथा परिणामस्वरूप पारिवारिक सुख-शान्ति एवं समृद्धि में वृद्धि होती है।

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(ख) अर्थशास्त्रियों को लाभ देश के अर्थशास्त्री भी पारिवारिक बजट से लाभान्वित होते हैं। विभिन्न परिवारों द्वारा बनाये जाने वाले पारिवारिक बजटों का व्यवस्थित अध्ययन एवं विश्लेषण अर्थशास्त्रियों द्वारा किया जाता है। इस अध्ययन द्वारा उन्हें समाज में प्रचलित आय-व्यय के प्रतिमानों की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
इस प्रकार की जानकारी विभिन्न प्रकार की नीतियों के निर्धारण में सहायक हो सकती है। अर्थशास्त्री इसी प्रकार की जानकारी के आधार पर आय-कर अथवा व्यय-कर सम्बन्धी नीतियों के विषय में सुझाव दे सकते हैं। पारिवारिक बजट के अध्ययन के आधार पर ही विभिन्न वर्गों के परिवारों को अपने रहन-सहन के स्तर को उन्नत बनाने के लिए उपयोगी सुझाव दिए जा सकते हैं।

(ग) समाज-सुधारकों को लाभ समाज-सुधारकों को मुख्य कार्य है समाज में व्याप्त समस्याओं के समाधान ढूँढ़ना। विभिन्न सामाजिक समस्याओं का सीधा सम्बन्ध समाज के परिवारों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति से होता है।
उदाहरण के लिए-गरीबी, ऋणग्रस्तता, नशाखोरी, भिक्षावृत्ति आदि समस्याएँ परिवार की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती हैं। इन समस्याओं के कारणों को जानने के लिए सम्बन्धित वर्ग के परिवारों के पारिवारिक बजट का अध्ययन करना अति आवश्यक होता है। समाज-सुधारक व्यवस्थित अध्ययन द्वारा समस्याओं के कारण एवं उनके हल ढूंढ़ा करते हैं।

(घ) शासन को लाभ पारिवारिक बजट के अध्ययन से शासन को भी लाभ होता है। देश की आर्थिक दशा को समझने के लिए, नागरिकों की समस्याओं को जानने के लिए तथा कर एवं बचत योजनाओं को लागू करने के लिए पारिवारिक बजटों से पर्याप्त सहायता मिलती है।
उदाहरण के लिए यदि किसी देश में प्रसाधन, दिखावे आदि पर अनावश्यक व्यय बढ़ रहा हो तो वहाँ शासन द्वारा इस प्रकार के व्यय को नियन्त्रित करने के लिए सम्बन्धित वस्तुओं पर कर में वृद्धि की जा सकती है।
उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि पारिवारिक बजट से अन्य पक्षों की तुलना में सर्वाधिक लाभ गहिणियों को ही प्राप्त होता है।

विशेष-‘एन्जिल द्वारा प्रतिपादित पारिवारिक बजट के सिद्धान्त के लिए विस्तृत (UPBoardSolutions.com) उत्तरीय प्रश्न 4 के अन्तर्गत ‘एन्जिल का सिद्धान्त’ देखें।

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प्रश्न 4.
एन्जिल द्वारा प्रतिपादित पारिवारिक बजट के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवरण । प्रस्तुत कीजिए। [2008, 09]
या
बजट बनाने हेतु एन्जिल के सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए। [2014]
उत्तर:
एन्जिल का सिद्धान्त
जर्मनी के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ० अर्नेस्ट एन्जिल (Dr. Earnest Engel) ने सन् 1857 में व्यय के विभिन्न मदों को भोजन, वस्त्र, आवास, ईंधन, प्रकाश, शिक्षा एवं स्वास्थ्य आदि में बाँटकर अपना नियम बनाया, जो कि उपभोग का नियम’ कहलाता है। इसे ही ‘एन्जिल द्वारा प्रतिपादित पारिवारिक बजट का सिद्धान्त’ भी कहा जाता है। इसके अनुसार

  1. आय में वृद्धि के साथ भोजन पर व्यय होने वाला प्रतिशत कम होता जाता है।
  2. आय में परिवर्तन होने पर वस्त्रों पर होने वाला व्यय लगभग (UPBoardSolutions.com) समान रहता है।
  3. आय घटने या बढ़ने पर आवास, प्रकाश व ईंधन पर व्यय का प्रतिशत लगभग स्थिर रहता है।
  4. आय बढ़ने पर शिक्षा, मनोरंजन, स्वास्थ्य एवं व्यक्तिगत सेवाओं पर प्रतिशत व्यय में वृद्धि होती जाती है।

उपर्युक्त नियमों के अनुसार यह निष्कर्ष निकलता है कि आय की वृद्धि मौलिक आवश्यकताओं पर होने वाले व्यय के प्रतिशत को प्रभावित नहीं करती, परन्तु विलासितापूर्ण आवश्यकताओं पर आय की वृद्धि के साथ व्यय का प्रतिशत बढ़ जाता है।
डॉ० एन्जिल ने परिवारों को निम्न, मध्यम तथा धनी वर्गों में बाँटकर इस बात का अध्ययन किया कि प्रत्येक वर्ग का मुख्य आवश्यकताओं पर हुआ व्यय उनकी आय का कितना प्रतिशत होता है। उनकी खोज के परिणाम निम्नवत् हैं
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एन्जिल द्वारा प्रतिपादित पारिवारिक बजट के सिद्धान्त का स्पष्टीकरण निम्नांकित रेखाचित्र के माध्यम से भी हो सकता है
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सिद्धान्त की अव्यावहारिकता अथवा आलोचना

सामान्य रूप से एन्जिल द्वारा प्रतिपादित पारिवारिक बजट का सिद्धान्त पर्याप्त लोकप्रिय रहा है, परन्तु वर्तमान परिस्थितियों में इस सिद्धान्त को व्यावहारिक तथा सैद्धान्तिक दोनों ही रूपों में दोषपूर्ण माना जाने लगा है। इस सिद्धान्त की अव्यावहारिकता अथवा कमियों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है

  1. भोजन के सम्बन्ध में-मध्यम व धनी वर्ग को भोजन के लिए अधिक धन दिया गया है।
  2.  आवासीय व्यवस्था-धनी व मध्यम वर्ग का आवासीय किराया आधुनिक युग के अनुरूप नहीं है। यह अपेक्षाकृत कम है। आधुनिक नगरीय क्षेत्रों में आवासीय किराए बहुत अधिक हो गए हैं।
  3.  शिक्षा, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन–प्रायः धनी व मध्यम वर्ग इन मदों (UPBoardSolutions.com) पर अधिक धन व्यय करते हैं।
  4. काश व्यवस्था-प्रकाश व्यवस्था पर होने वाले व्यय के प्रतिशत में वृद्धि, आय की वृद्धि के साथ-साथ ही होती है।
  5.  पारिवारिक बचत की अवहेलना-एन्जिल के बजट में बचत का कोई प्रावधान नहीं है। आधुनिक संघर्षमय युग में पारिवारिक बचत को अनिवार्य माना जाता है।

उपर्युक्त विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्तमान परिस्थितियों में एन्जिल का बजट सम्बन्धी सिद्धान्त पूर्णतया प्रासंगिक नहीं है। वास्तव में भिन्न-भिन्न आय वर्गों के लिए आवश्यक मदों पर व्यय के प्रतिशत को निर्धारित करना कठिन है।
उदाहरण के लिए वर्तमान परिस्थितियों में एक मध्यमवर्गीय परिवार द्वारा अपनी आय के 12% में आवास सुविधा उपलब्ध करनी सम्भव नहीं है। इसी प्रकार धनी वर्ग द्वारा भोजन पर आय का 50% व्यय नहीं होता। इसी प्रकार शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन आदि के लिए निर्धारित प्रतिशत व्यय अपर्याप्त है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए वर्तमान परिस्थितियों में एन्जिल के बजट सम्बन्धी सिद्धान्त में अभीष्ट परिवर्तन अनिवार्य है।

प्रश्न 5.
पारिवारिक आय और व्यय का लेखा रखना क्यों आवश्यक है? सामान्य रूपरेखा भी प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
परिवार का मासिक बजट बनाने के लिए वार्षिक आय-व्यय का लेखा अथवा चार्ट बनाना आवश्यक है। इसकी रूपरेखा निम्नलिखित है
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प्रायः कम आय अथवा धन के अपव्यय के कारण पूर्वानुमान वास्तविक व्यय से बहुत कम होता है। अत: मासिक बजट में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इनके निराकरण के निम्नलिखित उपाय सम्भव हो सकते हैं

  1. बजट की कुछ मदें; जैसे कि समाचार-पत्र, आवासीय किराया आदि; ऐसी हैं जिन पर होने वाले व्यय को कम नहीं किया जा सकता।
  2.  वस्त्र, उपहार, दान, मनोरंजन इत्यादि ऐसी मदें हैं जिन पर होने वाले व्यय को कम किया जा सकता है।
  3.  मितव्ययिता के आवश्यक तत्त्वों का पालन कर धने का कम-से-कम (UPBoardSolutions.com) व्यय कर अधिक आवश्यक मदों की पूर्ति की जा सकती है।
  4. परन्तु उपर्युक्त सभी उपाय तभी सम्भव हैं, जब कि पारिवारिक आय एवं व्यय का लेखा रखा जाए।

प्रश्न 6.
प्रतिदर्श बजट से आप क्या समझती हैं? 4800 मासिक आय वाले एक ऐसे परिवार का अनुमानित बजट बनाइए जो किराये के मकान में रहता है तथा उसमें पति-पत्नी के
अतिरिक्त दो बच्चे हैं।
या
एक मध्यम वर्ग के परिवार के बजट का नमूना बनाइए। , [2008, 11, 12, 14]
उत्तर:
प्रतिदर्श बजट मॉडल अथवा आदर्श बजट को प्रतिदर्श बजट कहते हैं। यह किसी विशिष्ट परिवार का बजट न होकर एक अनुमानित तथा सामान्य बजट होता है। प्रतिदर्श बजट के आधार पर किसी भी विशिष्ट परिवार का बजट बनाया जा सकता है। प्रतिदर्श बजट-निर्माण के निम्नलिखित चरण होते हैं

(1) प्रारम्भिक विभाग–यह सूचना-प्रधान चरण है। इसमें

  1. परिवार के सदस्यों की संख्या,
  2.  विभिन्न स्रोतों से होने वाली पारिवारिक आय,
  3.  बजट की अवधि (मासिक अथवा वार्षिक) इत्यादि सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं।

(2) अनुमान विभाग–इस चरण में उपभोग एवं व्यय के विषय में अनुमान लगाया जाता है; जैसे कि

  1. परिवार विशेष के व्यय की विभिन्न मदों का अनुमान,
  2.  उपभोग में आने वाली वस्तुओं की संख्या और मात्रा,
  3. वस्तुओं का मूल्य तथा उन पर व्यय किये जाने वाले कुल धन का पता लगाना।

(3) सारांश विभाग–बजट-निर्माण के तृतीय चरण में निम्नलिखित दो उप-चरण होते हैं|

  1. व्यय की विभिन्न मदों पर कुल आय का कितना प्रतिशत धन व्यय हुआ।
  2.  बजट के अन्त में कितनी बचत हो पाई अथवा धन की यदि (UPBoardSolutions.com) कमी हुई तो उसकी पूर्ति किस प्रकार की गई।

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संकेत-इसी आधार पर है 7200 अथवा १ 9600 मासिक आय वाले मध्यम वर्गीय परिवार के लिए बजट बनाया जा सकता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“पारिवारिक बजट गृहिणी के व्यय को नियन्त्रित करने के लिए आवश्यक है।” स्पष्ट कीजिए। [2012, 13, 14, 15]
या ।
आय और व्यय में सन्तुलन बनाए रखने के लिए आप क्या उपाय करेंगी? सोदाहरण समझाइए। [2016 ]
उत्तर:
पारिवारिक बजट द्वारा गृहिणी के व्यय का नियन्त्रण घरेलू एवं पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व सामान्यतया गृहिणी का ही होता है। इसके लिए गृहिणी को व्यय करना होता है। आवश्यकताएँ असीमित जब कि आय सीमित होती है। इस स्थिति में परिवार के सदस्यों की अधिक-से-अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विशेष सूझ-बूझपूर्वक तथा व्यवस्थित ढंग से व्यय करना आवश्यक होता है।
पारिवारिक व्यय को आय की सीमाओं में रखने के लिए आवश्यक है कि सम्पूर्ण अनुमानित व्यय को लिख लिया जाए तथा उसका लेखा-जोखा पारिवारिक आय के अनुरूप तैयार किया जाए। इस प्रक्रिया को ही पारिवारिक बजट बनाना कहते हैं। पारिवारिक बजट (UPBoardSolutions.com) बनाते समय आय को ध्यान में रखकर कुछ कम महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति को छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार आय के अनुसार व्यय को निर्धारित करके बनाए गए बजट का पालन करके व्यय को नियन्त्रित किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
पारिवारिक बजट के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए। आप किस प्रकार के बजट को उत्तम मानती हैं और क्यों? [2008, 15]
या ।
पारिवारिक बजट के प्रकार बताइए। [2010, 13, 14, 17]
या
आय-व्यय में सन्तुलन रखने के लिए कौन-सा बजट उत्तम होगा? [2008]
उत्तर:
पारिवारिक बजट के प्रकार । पारिवारिक बजट में मुख्य रूप से तीन तत्त्व होते हैं-आय, व्यय तथा बचत। इन तीनों तत्त्वों का समुचित ध्यान रखते हुए निम्नलिखित तीन प्रकार के पारिवारिक बजटों का निर्धारण किया जा सकता है

  1.  सन्तुलित बजट-इस प्रकार के बजट में अनुमानित आय के बराबर ही प्रस्तावित व्यय होता है। इसमें न बचत दिखाई जाती है और न ही घाटा दिखाया जाता है। सन्तुलित बजट में ऋण लेने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस प्रकार के पारिवारिक बजट को उत्तम बजट नहीं माना जा सकता। यह एक प्रकार से कामचलाऊ बजट होता है।
  2.  घाटे का बजट-इस प्रकार के बजट में अनुमानित आय की अपेक्षा प्रस्तावित व्यय अधिक होता है, जिसके कारण संचित धन का उपयोग करना पड़ता है या फिर ऋण लेना पड़ता है अथवा पारिवारिक आय को अन्य साधनों द्वारा बढ़ाना पड़ता है या वस्तुओं को बेचना पड़ता है। इस प्रकार का पारिवारिक बजट केवल मजबूरी में ही अल्प अवधि के लिए बनाया जाना चाहिए तथा पुनः परिस्थितियाँ अनुकूल हो जाने पर इसे छोड़ दिया जाना चाहिए। इस प्रकार के बजट को अच्छा नहीं माना जाता।
  3. बचत का बजट-इस प्रकार के बजट में अनुमानित आय की अपेक्षा प्रस्तावित व्यय सदैव कम होती है, (UPBoardSolutions.com) जिससे कुछ धनराशि भविष्य की आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बची रहती है। इस प्रकार के बजट पारिवारिक आर्थिक सुरक्षा की दृष्टि से बहुत लाभप्रद होते हैं।
    उपर्युक्त विवरण द्वारा पारिवारिक बजट के तीनों प्रकारों के गुण-दोषों की जानकारी प्राप्त हो जाती है। इस विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि ‘बचत का बजट’ सर्वोत्तम पारिवारिक बजट होता है।

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प्रश्न 3
पारिवारिक बजट के प्रमुख मद कौन-कौन से होते हैं? [2008, 10, 12, 13, 15, 17]
या
पारिवारिक बजट को प्रभावित करने वाले मद कौन-कौन से हैं? [2017]
या
घर के बजट की मुख्य मदों की सूची बनाइए। [2018, 18 ]
उत्तर:
पारिवारिक बजट में परिवार के सभी सदस्यों की अधिक-से-अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति को ध्यान में रखा जाता है; अतः पारिवारिक बजट का निर्माण करते समय विभिन्न मदों को उसमें सम्मिलित किया जाता है। इस स्थिति में पारिवारिक बजट में मुख्य रूप से निम्नवर्णित मदों को प्राथमिकता दी जाती है

  1. आहार एवं सम्बन्धित सामग्री
  2.  वस्त्र एवं परिधान सम्बन्धी मद
  3.  आवास सम्बन्धी मद,
  4. बच्चों की शिक्षा सम्बन्धित मद
  5.  स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सम्बन्धी मद
  6. यातायात एवं वाहन सम्बन्धी व्यय का मद
  7. अन्य घरेलू व्यय सम्बन्धी मद
  8.  व्यक्तिगत व्यय सम्बन्धी मद तथा
  9. पारिवारिक बचत सम्बन्धी मद।। पारिवारिक बजट में इन मदों की प्राथमिकता (UPBoardSolutions.com) का निर्धारण परिवार की पारिवारिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया जाता है। ये सभी मद पारिवारिक बजट को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 4.
बजट में बचत करना क्यों आवश्यक है? समझाइए। या बजट में बचत का क्या महत्त्व है? [2008]
उत्तर:
एक आदर्श बजट में बचत का प्रावधान सदैव ही रखा जाता है। परिवार के भविष्य की सुरक्षा एवं आकस्मिक कार्यों के लिए बचत ही एकमात्र विकल्प है। उदाहरण के लिए-आकस्मिक रोगों के उपचार के लिए आवश्यक धन बचत की मद से ही उपलब्ध होता है। इसी प्रकार (UPBoardSolutions.com) परिवार में विवाह आदि पर होने वाले व्यय, भवन-निर्माण एवं वृद्धावस्था में आत्मनिर्भरता इत्यादि महत्त्वपूर्ण कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए बचत द्वारा अर्जित किया धन उपयोग में आता है।

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प्रश्न 5
पारिवारिक बजट बनाने के मार्ग में आने वाली मुख्य बाधाओं का वर्णन कीजिए। या पारिवारिक बजट के निर्माण एवं सफलता के मार्ग में कौन-कौन सी बाधाएँ उत्पन्न हुआ करती हैं?[2014]
उत्तर:
पारिवारिक बजट के महत्त्व को हर कोई स्वीकार करता है, परन्तु व्यवहार में बहुत कम परिवार ही नियमित रूप से पारिवारिक बजट का निर्माण तथा उसका पालन करते हैं। पारिवारिक बजट के निर्माण एवं उसकी सफलता के मार्ग में मुख्य रूप से निम्नलिखित बाधाएँ उत्पन्न हुआ करती हैं

(1) अशिक्षा तथा अज्ञानता–हमारे समाज में सामान्य शिक्षा तथा ज्ञान की कमी है। अधिकांश गृहिणियाँ समुचित रूप से शिक्षित नहीं हैं। ऐसी स्थिति में व्यवस्थित पारिवारिक बजट बनाना तथा उसका पालन करना प्रायः सम्भव नहीं होता। अधिकांश गृहिणियाँ बजट के लाभ से भी परिचित नहीं हैं।

(2) बजट के प्रति उदासीनता-समाज में बहुत-सी गृहिणियाँ ऐसी भी हैं जो पारिवारिक बजट बना सकती हैं तथा यदा-कदा इसके लिए प्रयास भी करती हैं, परन्तु विभिन्न कारणों से वे पारिवारिक बजट के प्रति पूरी तरह से ईमानदार नहीं रह पातीं। वे शीघ्र ही पारिवारिक बजट को एक झंझट मानकर छोड़ देती हैं। गृहिणियों की बजट के प्रति यह उदासीनता भी पारिवारिक बजट की सफलता में बाधक होती है।

(3) समाज में प्रचलित कुप्रथाएँ-हमारे देश में पारिवारिक बजट-व्यवस्था की असफलता का एक कारण समाज में प्रचलित विभिन्न प्रकार की कुप्रथाएँ भी हैं। समाज में प्रचलित कुप्रथाएँ पारिवारिक बजट को दो प्रकार से प्रभावित करती हैं। अनेक परिवारों में गृहिणियों को अर्थव्यवस्था में अपना परामर्श एवं सक्रिय योगदान देने से वंचित रखने की प्रथा है। इस स्थिति में गृहिणियाँ पारिवारिक बजट का अनुपालन कैसे कर सकती हैं? इसके अतिरिक्त समाज में प्रचलित कुछ प्रथाएँ लोगों को अनावश्यक व्यय करने के लिए बाध्य कर देती हैं। नामकरण, कर्ण-छेदन, विवाह तथा अन्त्येष्टि आदि संस्कारों पर अनावश्यक व्यय के परिणामस्वरूप पारिवारिक बजट प्रायः असफल हो जाता है तथा सामाजिक प्रतिष्ठा आदि के लिए परिवार ऋणभार से दब जाते हैं।

प्रश्न 6
उच्च एवं निम्न वर्गों के बजट में क्या अन्तर है? समझाइए।
उत्तर:
उच्च एवं निम्न वर्गों के पारिवारिक बजटों में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। ये अन्तर निम्नलिखित हैं|

  1. भोजन व प्रतिशत व्यय-उच्च वर्ग के परिवार का भोजन पर प्रतिशत व्यय निम्न वर्ग के प्रतिशत व्यय से अपेक्षाकृत कम होता है।
  2.  शिक्षा, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन पर प्रतिशत व्यय-उच्च वर्ग के परिवार को शिक्षा, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन की मदों पर प्रतिशत व्यय निम्न वर्ग के प्रतिशत व्यय से अपेक्षाकृत अधिक होता है।
  3.  बचत की राशि-उच्च वर्ग को परिवार निम्न वर्ग के परिवार की अपेक्षा बचत करने की अधिक क्षमता रखता है। अतः उच्च वर्ग का परिवार अपेक्षाकृत अधिक बचत कर सकता है।
    उपर्युक्त अन्तर के अतिरिक्त उच्च वर्ग तथा निम्न वर्ग के बजटों में प्राय: वस्त्रों, आवास, (UPBoardSolutions.com) ईंधन एवं प्रकाश पर प्रतिशत व्यय में भी अन्तर हो सकता है।

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प्रश्न 7
पारिवारिक दैनिक व्यय लिखने की विधि उदाहरण सहित प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
पारिवारिक बजट को सफलतापवूक लागू करने के लिए आवश्यक है कि पारिवारिक दैनिक व्यय को हाथ के हाथ व्यवस्थित ढंग से लिख लिया जाए। इससे किसी प्रकार की भूल होने की आशंका नहीं रहती तथा पारिवारिक खर्चे का आसानी से विश्लेषण भी किया जा सकता है। पारिवारिक दैनिक व्यय को किसी कॉपी या डायरी में लिखना चाहिए। इस प्रकार के हिसाब-किताब को एक दैनिक उदाहरण निम्नवर्णित है
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प्रश्न 8.
मितव्ययिता का क्या अर्थ है? गृहिणी मितव्ययिता में किस प्रकार सहायता कर सकती है?
मितव्ययिता से आप क्या समझती हैं? गृह-व्यय में मितव्ययिता के लिए उपयोगी सुझाव दीजिए। या ।
मितव्ययिता किसे कहते हैं? घर के खर्च में मितव्ययिता के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? 2017
उत्तर:
मितव्ययिता का अर्थ
सुचारु गृह-अर्थव्यवस्था तथा पारिवारिक बजट की सफलता के लिए सर्वाधिक आवश्यक उपाय है-गृह-व्यय में मितव्ययिता को अपनाना। यहाँ यह बता देना उपयुक्त होगा कि मितव्ययिता कंजूसी नहीं है। यह अपव्यय से बचने का साधन है। मितव्ययिता में परिवार (UPBoardSolutions.com) की आवश्यकताओं की या नितान्त अवहेलना नहीं की जाती, बल्कि उन्हें सूझ-बूझ द्वारा रूपान्तरित किया जाता है। इस प्रकार मितव्ययिता के अन्तर्गत कंजूसी तथा फिजूलखर्ची दोनों से ही बचा जा सकता है।
मितव्ययिता के लिए उपयोगी सुझाव गृह व्यय में मितव्ययिता के लिए निम्नलिखित बातों को अनिवार्य रूप से ध्यान में रखना चाहिए.

  1.  केवल आवश्यकता की वस्तुएँ ही खरीदें। अनावश्यक अथवा आवश्यकता से अधिक वस्तुएँ कदापि न खरीदें।
  2.  वस्तुओं का सदैव नकद भुगतान करें। उधार लेने पर सदैव हानि होती है।
  3. आवश्यकता की समस्त वस्तुएँ सदैव विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें।
  4.  सदैव गुणवत्तापूर्ण खाद्य सामग्री ही खरीदें।
  5.  गेहूं, चावल आदि खाद्यान्न फसल के समय वर्ष भर की आवश्यकता के अनुरूप एक साथ खरीद लें।
  6. खाद्य-सामग्री के संरक्षण द्वारा भी मितव्ययिता के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
  7.  यदि कोई मजबूरी न हो तो गृह-कार्यों आदि के लिए कोई नौकर न रखें।
  8.  बच्चों को पढ़ाने का कार्य जहाँ तक सम्भव हो स्वयं ही करें।
  9.  घर की सभी वस्तुओं की देखभाल नियमित रूप से करें तथा आवश्यकता पड़ने पर उनकी मरम्मत भी करवा लें।
  10.  मितव्ययिता के लिए पानी, ईंधन व प्रकाश (विद्युत) का केवल आवश्यकतानुसार ही प्रयोग करें।

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प्रश्न 9.
पिछले माह के बजट का मूल्यांकन क्यों आवश्यक है? या माह के बजट का मूल्यांकन क्यों आवश्यक है? । 2017
उत्तर:
यह सत्य है कि पारिवारिक बजट पर्याप्त सूझ-बूझपूर्वक बनाया जाता है, परन्तु व्यवहार में इस बात की पर्याप्त सम्भावना होती है कि गृहिणी द्वारा तैयार किया गया बजट कुछ त्रुटियों से परिपूर्ण हो तथा यथार्थ में सफल बजट न हो। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सैद्धान्तिक रूप से यह सुझाव दिया जाता है कि आगामी माह का बजट तैयार करते समय गत माह के बजट का समुचित मूल्यांकन कर लिया जाए।

इस मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य यह जानना होता है कि हमारे पारिवारिक बजट में किसी अनावश्यक या कम महत्त्वपूर्ण व्यय को तो सम्मिलित नहीं किया गया अथवा किसी आवश्यक मद की अवहेलना तो नहीं हुई। इसके अतिरिक्त इस प्रकार के मूल्यांकन से यह भी ज्ञात (UPBoardSolutions.com) हो जाता है कि गत माह के बजट में परिवार के सभी सदस्यों की किसी अनिवार्य आवश्यकता की पूर्ति को ध्यान में नहीं रखा गया अथवा किसी प्रकार की फिजूलखर्ची तो नहीं हुई।
इसके साथ-साथ यह भी ज्ञात हो जाता है कि गत माह में परिवार द्वारा कुछ बचत की गयी है या नहीं। यदि बचत की गयी है तो कितनी बचत की गयी है? गत माह के बजट के समुचित मूल्यांकन से प्राप्त जानकारी आगामी माह के बजट के निर्धारण में विशेष रूप से सहायक सिद्ध होती है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर ही गत माह के बजट में मूल्यांकन के सिद्धान्त को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पारिवारिक बजट की संक्षिप्त परिभाषा लिखिए। [2008, 18 ]
पारिवारिक बजट क्या है? [2008, 10, 17 ]
या
पारिवारिक बजट किसे कहते हैं ? [2009, 11]
उत्तर:
“पारिवारिक बजट किसी निश्चित अवधि में परिवार के होने वाले आय-व्यय को दर्शाने वाला प्रपत्र होता है।”

प्रश्न 2.
बजट बनाना क्यों आवश्यक है? दो लाभ लिखिए। [2007, 11, 13, 14, 17}
उत्तर:
आय-व्यय एवं बचत की ठीक जानकारी के लिए तथा गृह-अर्थव्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए बजट बनाना आवश्यक है।

प्रश्न 3.
प्राथमिकता के आधार पर पारिवारिक बजट के तीन मदों का उल्लेख कीजिए। या बजट के प्रमुख मद कौन-कौन से हैं? [2009
उत्तर:
पारिवारिक बजट के प्रमुख मद हैं

  1.  भोजन,
  2. वस्त्र,
  3.  आवास,
  4. शिक्षा एवं स्वास्थ्य

प्रश्न 4.
एक अच्छे बजट की दो विशेषताएँ लिखिए।2018
उत्तर:

  1. यह अनावश्यक व्यय को नियन्त्रित करता है तथा
  2. प्राथमिकता के आधार पर अधिक से अधिक (UPBoardSolutions.com) आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

प्रश्न 5.
आय-व्यय में सन्तुलन बनाये रखने का सरल उपाय क्या है?[2018]
उत्तर:
आय-व्यय में सन्तुलन बनाये रखने का सरल उपाय है उसका अनुमानित बजट बनाकर उसी के अनुसार व्यय करना तथा व्यय का विधिवत् लेखा रखना।

प्रश्न 6.
पारिवारिक बजट का क्या अर्थ है? बजट निर्माण के विभिन्न सोपान बताइए।
उत्तर:
पारिवारिक बजट किसी निश्चित अवधि में परिवार के होने वाले आय-व्यय को दर्शाने वाला प्रपत्र होता है। इसके विभिन्न सोपान हैं— भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा एवं स्वास्थ्य

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प्रश्न 7.
पारिवारिक बजट का सर्वोत्तम प्रकार कौन-सा माना जाता है?
उत्तर:
‘बचत का बजट’ सर्वोत्तम प्रकार का पारिवारिक बजट माना जाता है।

प्रश्न 8.
किस प्रकार के बजट से सदैव बचना चाहिए?
उत्तर:
‘घाटे के बजट’ से सदैव बचना चाहिए।

प्रश्न 9.
पारिवारिक बजट में आय से अधिक व्यय के प्रावधान वाले बजट को कैसा बजट कहते हैं?
उत्तर:
घाटे का बजट।

प्रश्न 10.
‘एन्जिल का सिद्धान्त’ क्या है? [2008, 10, 14]
उत्तर:
जर्मनी के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ० अर्नेस्ट एन्जिल ने सन् 1857 में व्यय की विभिन्न मदों को भोजन, वस्त्र, आवास, ईंधन, प्रकाश, शिक्षा एवं स्वास्थ्य आदि में बाँटकर अपना नियम बनाया, जो कि ‘उपभोग का नियम’ कहलाती है। यही एन्जिल द्वारा प्रतिपादित ‘पारिवारिक (UPBoardSolutions.com) बजट का सिद्धान्त’ भी कहलाता है।

प्रश्न 11.
एन्जिल ने बजट के अध्ययन के लिए परिवारों को कौन-कौन सी श्रेणियों में विभाजित किया था?
उत्तर:
एन्जिल ने परिवारों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभाजित किया था

  1.  निम्न वर्ग,
  2. मध्यम वर्ग तथा
  3.  उच्च वर्ग।

प्रश्न 12.
पारिवारिक बजट बनाने में उत्पन्न होने वाली कोई दो बाधाएँ लिखिए।
उत्तर:
पारिवारिक बजट बनाने में अक्सर उत्पन्न होने वाली दो बाधाएँ हैं

  1. अज्ञानता या शिक्षा की कमी तथा
  2. बजट के प्रति उदासीनता।

प्रश्न 13.
मितव्ययिता का क्या अर्थ है? [2009, 10]
या
बजट में मितव्ययिता क्या है? [2010, 13]
उत्तर:
मितव्ययिता के अन्तर्गत कंजूसी तथा फिजूलखर्ची दोनों से ही बचते हुए परिवार की अधिक से-अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति का प्रयास किया जाता है।

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बहुविकल्पीय प्रश्न/ प्रश्न-निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1.
एक निश्चित अवधि के लिए पारिवारिक आय-व्यय के पूर्वानुमान को कहते है
(क) आय का विवरण
(ख) व्यय का विवरण
(ग) पारिवारिक बजेट
(घ) घरेलू हिसाब-किताब

प्रश्न 2.
आय-व्यय का सन्तुलन बनाए रखने के लिए किसकी आवश्यकता पड़ती है? (2010]
(क) बचत
(ख) बजट
(ग) ब्याज
(घ) बैंक

प्रश्न 3.
पारिवारिक बजट का कौन-सा मुख्य मद नहीं है? (2009, 10, 11]
या
कौन-सा बजट का मुख्य मद नहीं है? । [2009, 10, 11, 13, 14]
(क) मकान
(ख) भोजन
(ग) वस्त्र/शिक्षा
(घ) दुकान/फैशन

प्रश्न 4.
पारिवारिक बजट का मुख्य मद है [2018]
(क) भोजन
(ख) दुकान
(ग) मनोरंजन
(घ) फर्नीचर

प्रश्न 5.
मासिक बजट बनाना आवश्यक है [2015, 18]
(क) आय-व्यय में सन्तुलन बनाए रखने के लिए
(ख) आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए
(ग) बच्चों की पढ़ाई के लिए
(घ) उपहार देने के लिए

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प्रश्न 6.
पारिवारिक बजट बनाने का उद्देश्य है [2011, 12, 14, 15, 16, 17, 18
(क) बचत करना
(ख) व्यय पर नियन्त्रण
(ग) आय का ज्ञान
(घ) ये सभी

प्रश्न 7.
पारिवारिक बजट बनाने के लिए सबसे आवश्यक है
(क) आय में वृद्धि
(ख) व्यय पर नियन्त्रण
(ग) ऋण की व्यवस्था
(घ) आय-व्यय का पूर्वानुमान

प्रश्न 8.
गृह-अर्थव्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए आवश्यक हैया घर की आर्थिक व्यवस्था को ठीक रखने के लिए आवश्यक है [2013]
(क) पारिवारिक आय में वृद्धि
(ख) साधन सम्पन्न होना।
(ग) आय के अनुसार व्यय का बजट बनाना तथा उसका पालन करना
(घ) अधिक-से-अधिक कंजूसी करना

प्रश्न 9.
पारिवारिक बजट महत्त्वपूर्ण होता है
(क) गृहिणी एवं पूरे परिवार के लिए
(ख) अर्थशास्त्रियों के लिए
(ग) समाज-सुधारकों के लिए
(घ) इन सभी के लिए

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प्रश्न 10.
लोकप्रिय पारिवारिक बजट का सिद्धान्त प्रस्तुत किया- [2012, 16, 17] [2012, 16, 17] |
(क) माक्र्स ने
(ख) एन्जिल ने
(ग) टॉलस्टॉय ने
(घ) माइकेल एन्जिलो ने

प्रश्न 11.
पारिवारिक बजट द्वारा अनावश्यक व्यय को
(क) सहायता प्रदान की जाती है
(ख) प्रोत्साहन दिया जाता है।
(ग) नियन्त्रित किया जाता है।
(घ) स्वीकृति प्रदान की जाती है।

प्रश्न 12.
पारिवारिक बजट के मार्ग में मुख्य बाधाएँ हैं
(क) अज्ञानता तथा अशिक्षा
(ख) बजट के प्रति उदासीनता
(ग) समाज में प्रचलित कुप्रथाएँ।
(घ) ये सभी

प्रश्न 13.
आदर्श बजट माना जाता है [2008] या सर्वोत्तम (आदर्श) पारिवारिक बजट किसे माना जाता है? [2007, 08, 14]

(क) घाटे का बजट
(ख) सन्तुलित बजट
(ग) बचत का बजट
(घ) दैनिक बजट

प्रश्न 14.
एन्जिल के अनुसार कम आय वर्ग के परिवार की आय का अधिकांश प्रतिशत व्यय इस मद पर होता है
(क) वस्त्र
(ख) भोजन
(ग) आवास
(घ) ईंधन

प्रश्न 15.
बजट बनाने से पहले आवश्यक है 2014
(क) आय का पूर्वानुमान
(ख) आय पर नियन्त्रण
(ग) व्यय पर नियन्त्रण
(घ) ये सभी

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प्रश्न 16.
आय-व्यय में सन्तुलन हेतु कौन-सा साधन उपयुक्त होगा? 2015
(क) वार्षिक बजट
(ख) मासिक बजट
(ग) साप्ताहिक बजट
(घ) दैनिक बजट

उत्तर:

  1. (ग) पारिवारिक बजट
  2.  (ख) बजट
  3.  (घ) दुकान/फैशन
  4.  (क) भोजन
  5. (क) आय-व्यय में सन्तुलन बनाये रखने के लिए
  6.  (घ) ये सभी
  7. (घ) आय-व्यय का पूर्वानुमान
  8.  (ग) आय के अनुसार व्यय का बजट बनाना तथा उसका पालन करना
  9. (घ) इन सभी के लिए
  10. (ख) एन्जिल ने
  11.  (ग) नियन्त्रित किया जाता है
  12.  (घ) ये सभी
  13.  (ग) बचत को बजट
  14.  (ख) भोजन
  15. (क) आय का पूर्वानुमान
  16. (ख) मासिक बजट।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 7 इतिहास और खेल : क्रिकेट की कहानी

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 7 इतिहास और खेल : क्रिकेट की कहानी

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 7 इतिहास और खेल : क्रिकेट की कहानी.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
टेस्ट क्रिकेट कई मायनों में एक अनूठा खेल है। इस बारे में चर्चा कीजिए कि यह किन-किन अर्थों में बाकी खेलों से भिन्न है। ऐतिहासिक रूप से एक ग्रामीण खेल के रूप में पैदा होने से टेस्ट क्रिकेट में किस तरह की विलक्षणताएँ पैदा हुई हैं?
उत्तर:
टेस्ट क्रिकेट कई मायनों में एक विलक्षण खेल है। अन्य खेलों से यह निम्न रूप में भिन्न है-

  1. क्रिकेट को ‘सभ्य लोगों का खेल’ (जेंटिलमैन गेम) कहा जाता है जबकि अन्य किसी खेल को यह उपाधि प्राप्त नहीं है।
  2. क्रिकेट का खेल मात्र अंग्रेज और राष्ट्रमण्डल देशों द्वारा खेला जाता है जबकि दूसरे खेल सम्पूर्ण विश्व में खेले जाते हैं।
  3. क्रिकेट विश्व का एकमात्र ऐसा खेल है जो दो देशों की टीम द्वारा 5 दिन तक खेला जाता है जबकि दूसरे खेलों में ऐसा नहीं है।
  4. क्रिकेट के खेल मैदान की लंबाई-चौड़ाई निश्चित नहीं होती जबकि अन्य खेलों के मैदान की लंबाई-चौड़ाई निश्चित होती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में पैदा होने के कारण क्रिकेट की विलक्षणताएँ-

  1. क्रिकेट की ग्रामीण जड़ों की पुष्टि टेस्ट मैच की अवधि से हो जाती है। शुरुआत में क्रिकेट मैच की समय सीमा नहीं होती थी। खेल तब तक चलता था, जब तक कि एक टीम दूसरी टीम को दोबारा पूरा आउट न कर दे।
  2. क्रिकेट मूलतः गाँव में कॉमन्स (ऐसे सार्वजनिक और खुले मैदान जिन पर पूरे समुदाय का सामुदायिक अधिकार होता था) में खेला जाता था। कॉमन्स का आकार प्रत्येक गाँव में अलग-अलग होता था। इसलिए न तो सीमा रेखा निर्धारित थी और न ही चौके। जब सीमा-रेखा क्रिकेट की नियमावली का हिस्सा बनीं तब भी विकेट से उसकी दूरी निर्धारित नहीं की गयी। नियम के अंतर्गत केवल यह व्यवस्था की गयी थी कि अंपायर दोनों कप्तानों से परामर्श करके खेल के क्षेत्र की सीमा निर्धारित करेगा।
  3. क्रिकेट में प्रयुक्त वस्तुओं को देखने से पता चलता है कि समय में आए परिवर्तन के बावजूद वह ग्रामीण पृष्ठभूमि से ही जुड़ा रहा। बल्ला, स्टम्प व गिल्लियाँ लकड़ी (UPBoardSolutions.com) की बनी हुई हैं जबकि गेंद चमड़े, ट्वाइन और काग (कॉर्क) से बना हुआ है। आज भी क्रिकेट का बल्ला व गेंद हाथ से ही बनाए जाते हैं, मशीन से नहीं। बल्ले की निर्माण सामग्री में अवश्य कुछ परिवर्तन आया है।

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प्रश्न 2.
एक ऐसा उदाहरण दीजिए जिसके आधार पर आप कह सकें कि उन्नीसवीं सदी में तकनीक के कारण क्रिकेट के साजो-सामान में परिवर्तन आया। साथ ही ऐसे उपकरणों में से भी कोई एक उदाहरण दीजिए जिनमें कोई बदलाव नहीं आया।
उत्तर:
वल्केनाइज्ड रबड़ की खोज के बाद 1848 ई० से क्रिकेट में पैड पहनने का प्रचलन शुरू हुआ। इसके शीघ्र बाद ही हाथों में पहनने के लिए दस्ताने अस्तित्व में आए। सिंथेटिक व हल्की सामग्री के बने हेलमेट के बिना तो आधुनिक क्रिकेट की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
उदाहरण-वल्केनाइज्ड रबड़ की खोज, हाथों में पहनने के लिए दस्ताने और हल्के हेलमेट इससे क्रिकेट के साजो-सामान में परिवर्तन आया।
लेकिन समय की निरंतर बदलती प्रकृति के बावजूद क्रिकेट के महत्त्वपूर्ण उपकरण बल्ला, स्टम्प और वेल्स में कोई परिवर्तन नहीं आया ये पहले की भांति आज भी प्रकृति (UPBoardSolutions.com) पर ही आश्रित हैं। क्रिकेट की गेंद का निर्माण आज भी चमड़े, ट्वाइन और कॉर्क की सहायता से किया जाता है।
उदाहरण-बल्ला, स्टम्प, वेल्स, गेंद। इन उपकरणों में कोई बदलाव नहीं आया है।

प्रश्न-3.
भारत और वेस्टइंडीज में ही क्रिकेट क्यों इतना लोकप्रिय हुआ? क्या आप बता सकते हैं कि यह खेल दक्षिणी अमेरिका में इतना लोकप्रिय क्यों नहीं हुआ? उत्तर:
भारत और वेस्टइंडीज में क्रिकेट का खेल लोकप्रिय होने के कारण इस प्रकार हैं-

  1. औपनिवेशिक पृष्ठभूमि के कारण भारत और वेस्टइंडीज में क्रिकेट का खेल लोकप्रिय हुआ। ब्रिटिशवादी कर्मचारियों ने क्रिकेट को नस्ली एवं सामाजिक उत्कृष्टता प्रदर्शित करने के लिए प्रयोग किया।
  2. अंग्रेजों ने इस खेल को जनसामान्य के लिए लोकप्रिय नहीं बनाया बल्कि औपनिवेशिक लोगों के लिए क्रिकेट खेलना ब्रिटिश लोगों के साथ नस्ली समानता का परिचायक था। क्रिकेट में सफलता से नस्ली समानता एवं राजनीतिक प्रगति का अर्थ लिया जाने लगा।
  3. स्वाधीनता संघर्ष के काल में अनेक अभिजात्य वर्गीय नेताओं को क्रिकेट में आत्मसम्मान और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा की संभावनाएँ परिलक्षित होती थीं। दक्षिण अमेरिका में क्रिकेट के लोकप्रिय न होने के कारण-दक्षिण अमेरिका में ब्रिटिश शासन नहीं था बल्कि वहाँ पर स्पेन, (UPBoardSolutions.com) पुर्तगाल आदि यूरोपीय देशों का शासन था। स्पेन और पुर्तगाल आदि देशों में क्रिकेट लोकप्रिय खेल नहीं था जिसके परिणामस्वरूप दक्षिण अमेरिका में क्रिकेट उस लोकप्रियता को प्राप्त न कर सका जिसे भारत और वेस्टइंडीज ने प्राप्त किया।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए-

  1. भारत में पहला क्रिकेट क्लब पारसियों ने खोला।
  2. महात्मा गाँधी पेंटांग्युलर टूर्नामेंट के आलोचक थे।
  3. आईसीसी का नाम बदल कर इंपीरियल क्रिकेट कांफ्रेंस के स्थान पर इंटरनेशनल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस कर दिया गया।
  4. आईसीसी का मुख्यालय लंदन की जगह दुबई में स्थानान्तरित कर दिया गया।

उत्तर:
(1) भारत में क्रिकेट का आरंभ करने का श्रेय बम्बई के छोटे से पारसी समुदाय को है। व्यापार के उद्देश्य से पारसी सबसे पहले अंग्रेजों के संपर्क में आए। इस तरह पश्चिम की संस्कृति से प्रभावित होने वाला भारत का पहला समुदाय पारसी था। पारसियों ने 1848 ई० में बम्बई (मुम्बई) में भारत का पहला क्रिकेट क्लब “ओरिएंटल क्रिकेट क्लब’ नाम से स्थापित किया। टाटा व वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी (UPBoardSolutions.com) पारसी क्लबों के प्रायोजक व वित्त पोषक थे। अंग्रेजों ने उत्साही पारसियों की क्रिकेट के विकास में कोई सहायता नहीं की बल्कि बॉम्बे जिमखाना क्लब और पारसी क्रिकेटरों के बीच पार्क के इस्तेमाल को लेकर झगड़ा भी हुआ।

पारसियों ने इस बात की शिकायत की कि बॉम्बे जिमखाना के पोलो टीम के घोड़ों द्वारा रौंदे जाने के बाद मैदान क्रिकेट खेलने लायक नहीं रह गया है। जब यह स्पष्ट हो गया कि अंग्रेज औपनिवेशिक अधिकारी अपने देशवासियों का पक्ष ले रहे हैं, तो पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए अपना खुद को जिमखाना ‘पारसी जिमखाना बनाया। पर पारसियों व नस्लवादी बॉम्बे जिमखाना के बीच की इस स्पर्धा का अंत अच्छा हुआ-पारसियों की एक टीम ने बॉम्बे जिमखाना को 1889 ई० में हरा दिया। यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के चार साल बाद हुआ और दिलचस्प बात यह है कि इस संस्था के मूल नेताओं में से एक दादाभाई नौरोजी, जो अपने वक्त के महान राजनेता व बुद्धिजीवी थे, पारसी ही थे।

(2) महात्मा गांधी ने पेंटाग्युलर टूर्नामेंट को सांप्रदायिक भेद-भाव के आधार पर बाँटनेवाला बताकर इसकी निंदा की। उनका विचार था कि यह मुकाबला सांप्रदायिक रूप (UPBoardSolutions.com) से अशांतिकारक था जो कि ऐसे समय में देश के लिए हानिकारक था जब वे विभिन्न धर्मों के लोगों एवं क्षेत्रों को धर्मनिरपेक्ष देश के लिए एकजुट करना चाह रहे थे।

(3) 1909 ई0 में इंग्लैण्ड में क्रिकेट को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने के लिए “इंपीरियल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस (आई.सी.सी.) की स्थापना की गयी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत धीरे-धीरे इंग्लैण्ड का साम्राज्यवादी स्वरूप नष्ट हो गया और उसके सभी उपनिवेश स्वतंत्र राष्ट्र बन गए परंतु क्रिकेट के अंतर्राष्ट्रीय आयोजन पर साम्राज्यवादी क्रिकेट कॉन्फ्रेंस का नियंत्रण बरकरार रहा।
आईसीसी पर, जिसका 1965 ई० में नाम बदलकर ‘इंटरनेशनल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस’ हो गया, इसके संस्थापक सदस्यों का वर्चस्व रहा, उन्हीं के हाथ में कार्यकलाप के वीटो अधिकार रहे। इंग्लैंड व ऑस्ट्रेलिया के विशेषाधिकार 1989 ई0 में जाकर खत्म हुए और वे अब सामान्य सदस्य रह गए।

(4) आईसीसी मुख्यालय लंदन से दुबई में इसलिए स्थानांतरित हुआ क्योंकि भारत दक्षिण एशिया में स्थित है। भारत में खेल के सबसे अधिक दर्शक थे और यह क्रिकेट खेलने वाले देशों में सबसे बड़ा बाजार था, इसलिए खेल का गुरुत्व औपनिवेशिक देशों से वि-औपनिवेशिक देशों (UPBoardSolutions.com) में स्थानांतरित हो गया। मुख्यालय का स्थानांतरण खेल में अंग्रेजी या साम्राज्यवादी प्रभुत्व के औपचारिक अंत का सूचक था।

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प्रश्न 5.
तकनीक के क्षेत्र में आए बदलावों, खासतौर से टेलीविजन तकनीक में आए परिवर्तनों से समकालीन क्रिकेट के विकास पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
समकालीन क्रिकेट के विकास एवं लोकप्रियता में वृद्धि करने में विकसित तकनीक विशेषकर उपग्रह टेलीविजन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। रंग-बिरंगे परिधान, रक्षात्मक हेलमेट, क्षेत्र रक्षण सम्बन्धी प्रतिबन्ध, दूधिया प्रकाश की रोशनी में क्रिकेट, सीमित ओवर के क्रिकेट मैच आदि ने इस पूर्व औद्योगिक ग्रामीण खेल को आधुनिक परिवेश में रूपांतरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। सेटेलाइट टेलीविजन के प्रचलन ने क्रिकेट को विश्व के कोने-कोने तक पहुँचा दिया है।
टेलीविजन तकनीक ने क्रिकेट के विकास को निम्न रूप में प्रभावित किया है-

  1. टेलीविजन प्रसारण ने क्रिकेट को एक बड़ा बाजार उपलब्ध कराया है।
    टेलीविजन कंपनियों ने विज्ञापन-समय व्यावसायिक कंपनियों को बेचने आरंभ कर दिए। व्यावसायिक कंपनियों को भी इतना बड़ा दर्शक-समूह और कहाँ मिलता इसलिए विज्ञापनों से टी.वी. कंपनियों तथा क्रिकेट बोर्डो की आय बहुत बढ़ गई। निरंतर टी.वी. कवरेज के (UPBoardSolutions.com) बाद क्रिकेटर सेलेब्रिटी बन गए और उन्हें अपने क्रिकेट बोर्ड से तो ज्यादा वेतन मिलने ही लगा, लेकिन उससे भी बड़ी कमाई के साधन टायर से लेकर कोला तक के टी०वी० विज्ञापन हो गए।
  2. टी.वी. कैमरे के उपयोग ने क्रिकेट के स्वरूप को भी प्रभावित किया। अब टी.वी. में ‘स्लो-मोशन’ द्वारा खेल की बारीकियों पर नजर रखी जाने लगी है। तीसरे अंपायर का निर्णय पूरी तरह कैमरे के कुशलतापूर्वक उपयोग पर ही निर्भर होता है।
  3. टी.वी. द्वारा दिखाए जाने वाले ‘री-प्ले’ ने खेल की रोचकता को और भी बढ़ा दिया है।
  4. टी.वी. प्रसारण से क्रिकेट का स्वरूप बिल्कुल ही बदल गया। टेलीविजन तकनीक के द्वारा क्रिकेट की पहँच छोटे शहरों व गाँवों के दर्शकों तक हो गई। इससे क्रिकेट का सामाजिक आधार भी व्यापक हुआ है। महानगरों से दूर रहने वाले बच्चे जो कभी बड़े मैच नहीं देख पाते थे, अब अपने नायकों को देखकर क्रिकेट की तकनीकें सीख सकते हैं।
  5. उपग्रह (सैटेलाइट) टी.वी. की तकनीक और बहु-राष्ट्रीय कंपनियों की दुनिया भर की पहुँच के चलते क्रिकेट का वैश्विक बाजार बन गया है। सिडनी में चल रहे मैच को अब सीधे सूरत में देखा जा सकता है।
  6. टेलीविजन दर्शकों को लुभाने के लिए (UPBoardSolutions.com) क्रिकेट में किए गए अनेक प्रयोग जैसे-रंगीन वर्दी, सीमित ओवर, रात-दिन का खेल, क्षेत्ररक्षण की पाबंदियाँ आदि, स्थायी सिद्ध हुए हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के प्रथम टेस्ट क्रिकेट कप्तान कौन थे?
उत्तर:
भारत के प्रथम टेस्ट क्रिकेट कप्तान सी.के.नायडू थे।

प्रश्न 2.
ब्रिटिशकालीन भारत के तीन प्रमुख क्रिकेटर कौन थे?
उत्तर:

  1. सी. के. नायडू,
  2. पावलंकर बालू,
  3. पालवंकर बिट्ठल।

प्रश्न 3.
पेंटांग्युलर टूर्नामेंट में शामिल होने वाली क्रिकेट टीमें किन समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थीं?
उत्तर:

  1. यूरोपीय समुदाय,
  2. हिन्दू समुदाय,
  3. पारसी समुदाय,
  4. मुस्लिम समुदाय,
  5. दरेस्ट (शेष भारतीय समुदाय)।

प्रश्न 4.
अंग्रेज बच्चों में क्रिकेट को किन गुणों को विकसित करने का माध्यम मानते थे?
उत्तर:

  1. अनुशासन,
  2. नेतृत्व क्षमता,
  3. ऊँच-नीच का बोध,
  4. स्वाभिमान।

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प्रश्न 5.
भारतीयों ने अंग्रेजों के बॉम्बे जिमखाना को पहली बार कब हराया था?
उत्तर:
अंग्रेजों के जिमखाना क्लब को भारतीयों ने पहली बार 1889 ई० में हराया था।

प्रश्न 6.
भारतीयों द्वारा स्थापित प्रथम क्रिकेट क्लब कौन-सा था?
उत्तर:
भारत में भारतीयों द्वारा स्थापित प्रथम क्रिकेट क्लब ‘ओरिएंटल क्रिकेट क्लब’ था।

प्रश्न 7.
वेस्टइंडीज में पहला गैर-गोरा क्लब कब बना?
उत्तर:
19वीं सदी के अंत में वेस्टइंडीज का पहला गैर-गोरा क्लब था ।

प्रश्न 8.
वेस्टइंडीज को प्रथम अश्वेत कप्तान कौन था?
उत्तर:
फ्रैंक वॉरेल वेस्टइंडीज के प्रथम अश्वेत कप्तान थे।

प्रश्न 9.
क्रिकेट पिच की लंबाई कितनी होती है?
उत्तर:
क्रिकेट पिच की लम्बाई 22 गज होती है।

प्रश्न 10.
एम.सी.सी. की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर:
एम.सी.सी. की स्थापना 1787 ई० में हुई थी?

प्रश्न 11.
एम.सी.सी. का पूरा नाम क्या हैं?
उत्तर:
एम.सी.सी. का पूरा नाम है- ‘मेरिलिबॉन क्रिकेट क्लब

प्रश्न 12.
क्रिकेट के नियमों को पहली बार कब लिखा गया?
उत्तर:
सन् 1774 ई० में क्रिकेट के नियमों को पहली बार लिपिबद्ध किया गया।

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प्रश्न 13.
क्रिकेट में गेंद को हवा में लहराकर फेंकने की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
1760-1770 ई0 के दशक में क्रिकेट में गेंद को हवा में लहराकर फेंकने की शुरुआत हुई।

प्रश्न 14.
क्रिकेट के गेंद को हवा में लहराकर फेंकने के दो लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. गेंद की गति बढ़ गई थी।
  2. गेंद को स्पिन एवं स्विंग कराना संभव हो गया था।

प्रश्न 15.
क्रिकेट का प्रसार किन देशों में हुआ?
उत्तर:
क्रिकेट का प्रसार प्रायः उन देशों में हुआ जिनमें इंग्लैण्ड का औपनिवेशिक शासन था। इन देशों में भारत, दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, वेस्टइंडीज, केन्या आदि शामिल हैं। इन देशों में क्रिकेट का प्रसार अंग्रेजों द्वारा किया गया।

प्रश्न 16.
19वीं सदी में क्रिकेट में आए परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. क्रिकेट की गेंदे का व्यास निश्चित किया गया।
  2. चोट लगने से बचाव के लिए पैड व दस्ताने पहनने का प्रचलन शुरू हुआ।
  3. वाइड बॉल का नियम प्रभावी हुआ।

प्रश्न 17.
1760 व 1770 ई0 के क्रिकेट में आए बदलाव को उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
इस अवधि में क्रिकेट की गेंद को जमीन पर लुढ़काने की जगह हवा में लहराकर बल्लेबाज के आगे पटकने का चलने शुरू हुआ। क्रिकेट की गेंद का वजन अब साढ़े पाँच से पौने छः औंस तक हो गया और बल्ले की चौड़ाई चार इंच कर दी गयी है। यह तब हुआ जब एक बल्लेबाज ने अपनी पूरी पारी विकेट जितने चौड़े बल्ले से खेल डाली।

प्रश्न 18.
भारत में क्रिकेट की शुरुआत कब हुई थी?
उत्तर:
भारत में क्रिकेट की शुरुआत बम्बई (मुंबई) से मिलती है। भारत में क्रिकेट खेलने वाला प्रथम समुदाय पारसी था। पारसी समुदाय के ज्यादातर लोग व्यापारी या पूंजीपति थे। (UPBoardSolutions.com) ये लोग व्यापार हेतु जब अंग्रेजों के संपर्क में आए तो इनमें क्रिकेट के प्रति रुचि बढ़ी।

प्रश्न 19.
भारत में पहला क्रिकेट क्लब कब खुला? अठाहरवीं सदी में क्रिकेट किन लोगों के बीच खेला जाता था?
उत्तर:
भारत में पहला क्रिकेट क्लब 1792 ई० में कलकत्ता क्रिकेट क्लब स्थापित किया गया। अठारहवीं सदी में भारत में क्रिकेट ब्रिटिश सैनिक व सिविल सर्वेट्स द्वारा केवल गोरे क्लबों व जिम्मखानों में खेले जानेवाला खेल बना रहा।

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प्रश्न 20.
पालवंकर बालू कौन थे?
उत्तर:
पालवंकर बालू का जन्म 1875 ई0 में पूना में हुआ था। वे धीमी गति की गेंदबाजी में अपने समय के सर्वश्रेष्ठ भारतीय गेंदबाज थे। बालू औपनिवेशिक काल के सबसे बड़े भारतीय क्रिकेट मुकाबले क्वाईंग्यूलर में हिन्दू टीम की ओर से खेलते थे। उन्हें कभी हिंदू टीम का कप्तान नहीं बनाया गया क्योंकि वह दलित समुदाय से थे। प्रश्न 21. विश्व का सबसे पहला क्रिकेट क्लब कौन था? इस क्लब की क्या उपलब्धियाँ थीं? उत्तर- दुनिया का पहला क्रिकेट क्लब हैम्बलडन में 1760 ई0 के दशक में बना और मेरिलिबॉन क्रिकेट (UPBoardSolutions.com) क्लब (एम. सी. सी.) की स्थापना 1787 ई० में हुई। इसके अगले साल ही एम. सी. सी. ने क्रिकेट के नियमों में सुधार किए और उनका अभिभावक बन बैठा। एम. सी. सी. के सुधारों से खेल के रंग-ढंग में ढेर सारे परिवर्तन हुए, जिन्हें 18वीं
सदी के दूसरे हिस्से में लागू किया गया।

प्रश्न 22.
सेटेलाइट टेलीविजन ने क्रिकेट के दर्शकों में किस प्रकार वृद्धि की?
उत्तर:
सेटेलाइट (उपग्रह) टेलीविजन ने दर्शकों में क्रिकेट के प्रति रुचि उत्पन्न की। लोगों को टेलीविजन पर मैच देखने से इस खेल के नियमों और बारीकियों की जानकारी हुई। यह संचार माध्यम लोगों को उसी प्रकार खेल का आनन्द देता था जैसे कि खेल के मैदान में दर्शकों को। टेलीविजन (UPBoardSolutions.com) के कम्प्युटराइज्ड सिस्टम ने इस खेल को और भी आकर्षक, बना दिया।

प्रश्न 23.
हॉकी खेल का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
अनेक परंपरागत खेलों के सम्मिलित रूप से आधुनिक हॉकी खेल का विकास हुआ। स्कॉट के शिंटी, इंग्लैण्ड व वेल्स के वेंडी व आयरिश हॉर्लिग को हॉकी का पूर्व रूप माना जा सकता है। भारत में हॉकी का आरंभ औपनिवेशिर्क काल में अंग्रेज सैनिकों द्वारा किया गया। भारत में पहले परंपरागत हॉकी क्लब की स्थापना 1885-86 में कलकत्ता (कोलकाता) में हुई। ओलंपिक खेलों की हॉकी प्रतिस्पर्धा में हॉकी को वर्ष 1928 ई० में पहली बार शामिल किया गया

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्रिकेट के शुरुआती दौर में बल्लेबाज को ही कप्तान क्यों बनाया जाता था?
उत्तर:
क्रिकेट के खेल आरंम्भिक दौर में इंग्लैण्ड में अभिजात्य वर्ग द्वारा खेला जाता था। अभिजात्य वर्ग इस खेल पर अपनी श्रेष्ठता बनाए रखना चाहता था। अतः ये लोग बल्लेबाज बनना पसन्द करते थे। उनका ऐसा मानना था कि गेंद फेंकने, से शक्ति (ऊर्जा) का क्षय होता है। इसलिए वे गेंद फेंकने का कार्य अन्य लोगों को देते थे और इस कार्य के बदले में उन्हें धन का भुगतान किया जाता था। धन लेकर गेंदबाजी करने वालों (UPBoardSolutions.com) को प्रोफेशनल (व्यवसायी) कहा जाता था। इन प्रोफेशनल लोगों पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए बल्लेबाज को ही कप्तान बनाया जाता था। इसीलिए आरंम्भिक काल में क्रिकेट को बल्लेबाजों का खेल कहा जाता था।

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प्रश्न 2.
ब्रिटिश समाज में क्रिकेट के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश समाज में क्रिकेट के महत्त्व को हम निम्न रूपों में स्पष्ट कर सकते हैं-

  1. अंग्रेज क्रिकेट के खेल को एक मैदानी खेल के अलावा खिलाड़ियों में अनुशासन, ऊँच-नीच की समझ, गुण, स्वाभिमान की रणनीति और नेतृत्व कौशल विकसित करने का एक माध्यम मानते थे।
  2. अंग्रेजों का मानना था कि क्रिकेट का खेल केवल विजय-पराजय की भावना से प्रेरित होकर नहीं खेला जाना चाहिए बल्कि इसे न्यायोचित खेल भावना से खेला जाना चाहिए।
  3. अंग्रेजों की मान्यता थी कि सभ्य लोगों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट से ही विद्यार्थियों में नैतिक चरित्र का विकास संभव है।

प्रश्न 3.
वेस्टइंडीज में क्रिकेट के प्रसार की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
वेस्टइंडीज में क्रिकेट के प्रसार की रूपरेखा को हम इस तरह प्रस्तुत कर सकते हैं-

  1. वेस्टइंडीज भारत की ही तरह इंग्लैण्ड का उपनिवेश था।
  2. 19वीं शताब्दी के अंत में वेस्टइंडीज में पहले स्थानीय क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई। इस क्लब के सभी सदस्य मुलेट्टो समुदाय के थे। मुलेटों समुदाय में मिश्रित यूरोपीय और अफ्रीकी मूल के लोग शामिल थे।
  3. वेस्टइंडीज के स्थानीय लोगों ने क्रिकेट के खेल को गोरी और काली प्रजाति, मध्य नस्ली समानता व राजनीतिक प्रगति के रूप में स्वीकार किया।
  4. वेस्टइंडीज के लोगों ने इस खेल को अपने आत्मसम्मान और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का प्रश्न माना। इसी भावना की परिणति थी कि जब इन लोगों ने 1950 ई0 के दशक में इंग्लैण्ड के विरुद्ध पहली टेस्ट श्रृंखला जीती तो इस जीत को वहाँ राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाया गया। फ्रैंक वारेलु 1960 ई0 में वेस्टइंडीज टीम के प्रथम अश्वेत कप्तान बने।

प्रश्न 4.
क्रिकेट के पहले लिखित नियमों के बारे में बताइए।
उत्तर:
क्रिकेट के पहले लिखित नियम 1744 ई० में बनाए गए। इन नियमों का विवरण इस प्रकार है-

  1. बल्ले के रूप व आकार पर कोई पाबंदी नहीं थी। ऐसा लगता है कि 40 नॉच या रन का स्कोर काफी बड़ा होता था, शायद इसलिए कि गेंदबाज तेजी से बल्लेबाज के नंगी, पैडरहित पिंडलियों पर गेंद फेंकते थे।
  2. हाजिर शरीफों में से दोनों प्रिंसिपल (कप्तान) दो अंपायर चुनेंगे, जिन्हें किसी भी विवाद को निपटाने की अंतिम अधिकार होगा।
  3. स्टंप 22 इंच ऊँचे होंगे, उनके बीच की गिल्लियाँ 6 इंच लंबी होंगी।
  4. गेंद का वजन 5 से 6 औंस के बीच होगा और स्टंप के बीच की दूरी 22 गज होगी।

प्रश्न 5.
पेशेवर व शौकिया क्रिकेटरों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पेशेवर व शौकिया क्रिकेटरों के बीच निम्नलिखित अन्तर हैं-

पेशेवर क्रिकेटर

शौकिया क्रिकेटर

1. पेशेवरों को तेज गेंदबाजी का मेहनतकश काम दिया जाता था। 1. शौकिया बल्लेबाज टीम में रहने का प्रयास करते थे।
2. उन्हें हीन समझा जाता था। 2. उन्हें सामाजिक श्रेष्ठता हासिल थी।
3. पेशेवर गरीब थे जो पैसे के लिए खेलते थे। पेशेवर  खिलाड़ियों का मेहनताना संरक्षकों द्वारा, चंदे, या गेट पर इकट्ठा किए गए पैसे से दिया जाता था। 3. शौकिया वे अमीर लोग थे जो खाली समय बिताने। के लिए क्रिकेट खेलते थे न कि पैसे के लिए।
4. वे आजीविका कमाने के लिए खेलते थे। 4. वे मजे के लिए खेलते थे।
5. उन्हें खिलाड़ी कहा जाता था। 5. उन्हें भद्र पुरुष कहा जाता था।

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प्रश्न 6.
19वीं शताब्दी के दौरान क्रिकेट के खेल में क्या महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए?
उत्तर:
19वीं सदी के दौरान क्रिकेट के खेल में निम्नलिखित परिवर्तन घटित हुए.-

  1. चोट से बचाने के लिए पैड व दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक उपकरण प्रयोग किए जाने लगे।
  2. बाउंड्री की शुरुआत हुई, जबकि पहले हरेक रन दौड़ कर लेना पड़ता था।
  3. ओवरआर्म बॉलिंग कानूनी ठहरायी गई।
  4. वाइड बॉल के लिए नियम लागू किया गया।
  5. गेंद का सटीक व्यास तय किया गया।

प्रश्न 7.
‘शौकिया खिलाड़ी’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
इंग्लैण्ड के समाज के ऐसे उच्चवर्गीय लोग जो अपना शौक पूरा करने के लिए क्रिकेट खेलते थे, उन्हें ‘शौकिया खिलाड़ी’ कहते थे।
शौकीनों की समाजिक श्रेष्ठता क्रिकेट की परंपरा का हिस्सा बन गई। शौकीनों को जहाँ ‘जेंटिलमैन’ की उपाधि दी गई तो वहीं पेशेवरों को ‘खिलाड़ी’ (प्लेयर्स) का अदना-सा नाम मिला। मैदान में घुसने के उनके प्रवेश-द्वार भी अलग-अलग थे। शौकीन जहाँ बल्लेबाज हुआ करते वहीं खेल में असली (UPBoardSolutions.com) मशक्कत और ऊर्जा वाले काम, जैसे तेज गेंदबाजी, पेशेवर खिलाड़ियों के हिस्से आते थे।

क्रिकेट में संदेह का लाभ (बेनेफिट ऑफ डाउट) हमेशा बल्लेबाज को ही मिलने की एक वजह यह भी है। क्रिकेट बल्लेबाजों का ही खेल इसीलिए बना क्योंकि नियम बनाते समय बल्लेबाजी करने वाले ‘जेंटिलमैन’ को तरजीह दी गई। शौकिया खिलाड़ियों की सामाजिक श्रेष्ठता का ही नतीजा था कि टीम की कप्तान पारंपरिक तौर पर बल्लेबाज ही होता था, इसलिए नहीं कि बल्लेबाज कुदरती तौर पर बेहतर कप्तान होते थे, बल्कि इसलिए कि बल्लेबाज तो आम तौर पर ‘जेंटिलमैन’ ही होते थे। चाहे क्लब की टीम हो या राष्ट्रीय टीम, कप्तान तो शौकिया खिलाड़ी ही होता था।

प्रश्न 8.
पेशेवर खिलाड़ी से क्या आशय है?
उत्तर:
ऐसे खिलाड़ी जो अपने जीवन-यापन के लिए क्रिकेट का खेल खेलते थे, पेशेवर खिलाड़ी कहलाते थे। पेशेवर खिलाड़ियों को वजीफा, चंदा अथवा मैदान के गेट पर इकट्ठा किए गए धन में से कुछ पैसा दिया जाता था। इंग्लैण्ड में क्रिकेट एक मौसमी खेल के रूप में खेला जाता है क्योंकि सर्दियों में तापमान बहुत कम होने के कारण क्रिकेट नहीं खेला जाता है। सर्दियों को क्रिकेट का ऑफ सीजन भी कहा जाता है। (UPBoardSolutions.com) ऑफ सीजन में पेशेवर खिलाड़ी प्रायः खदानों में अथवा अन्य स्थानों पर मजदूरी करते थे। पेशेवर खिलाड़ियों को कभी भी कप्तान नहीं बनाया जाता था। पहली बार 1930 ई0 के दशक में यार्कशायर के एक पेशेवर खिलाड़ी लेन हटन ने अंग्रेजी टीम की कप्तानी की थी।

प्रश्न 9.
क्रिकेट को एक औपनिवेशिक खेल क्यों माना जाता है?
उत्तर:
क्रिकेट को एक औपनिवेशिक खेल इसलिए माना जाता है क्योंकि इंग्लैण्ड के अलावा इस खेल का विस्तार उन्हीं देशों में हुआ जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य के उपनिवेश थे। क्रिकेट की पूर्व-औद्योगिक विषमताओं ने इसके अन्य देशों में गमन को कठिन बना दिया। इसलिए इसने उन्हीं देशों में अपनी जड़े जमाई जहाँ अंग्रेजों ने विजय प्राप्त की और शासन किया। इन ब्रिटिश उपनिवेशों (जैसे कि दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, वेस्टइंडीज और कीनिया) में क्रिकेट इसलिए लोकप्रिय खेल बन पाया क्योंकि गोरे (UPBoardSolutions.com) बाशिंदों ने इसे अपनाया या फिर जहाँ स्थानीय अभिजात वर्ग ने अपने औपनिवेशिक मालिकों की आदतों की नकल करने की कोशिश की, जैसे कि भारत में।

प्रश्न 10.
इंग्लैण्ड में क्रिकेट के विकास को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में क्रिकेट के विकास को हम निम्न रूप में स्पष्ट कर सकते हैं। इंग्लैंड के ग्रामीण इलाकों में ग्वालों व चरवाहों द्वारा खेले जाने वाले गेंद व डण्डे के खेल से क्रिकेट की उत्पत्ति हुई। ‘बैट’ अंग्रेजी का पुराना शब्द है, जिसका अर्थ है ‘डंडा’ या ‘कुंदा। 17वीं शताब्दी तक यह एक प्रचलित खेल के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था। सन् 1706 में विलियम गोल्ड ने अपनी कविता में एक क्रिकेट मैच का वर्णन किया था। सन् 1709 में लंदन और कैंट की टीमों के बीच पहला क्रिकेट मैच खेला गया था।

सन् 1710 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय तथा सन् 1729 में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी क्रिकेट खेला जाने लगा।
सन् 1760 में इंग्लैंड में प्रथम क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई। इस क्लब का नाम ‘हैम्बलडन क्लब’ रखा गया। सन् 1787 में इंग्लैण्ड में ‘मेरिलीबोन क्रिकेट क्लब’ (एम.सी.सी) की स्थापना की गई। लार्ड्स के प्रसिद्ध मैदान पर प्रथम मैच 27 जून, 1788 में खेला गया था। इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट की स्थापना सन् 1873 में हुई।

प्रश्न 11.
‘हॉकी’ का राष्ट्रीय खेल के रूप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक हॉकी खेल का विकास पूर्व काल में ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर खेले जाने वाले परंपरागत खेलों से हुआ। स्कॉटलैण्ड में खेले जाने वाले खेल शिंटी, इंग्लिश व वेल्श के खेल बेंडी व आयरिश हालिंग को आधुनिक हॉकी का आदिम रूप माना जाता है।
दूसरे अन्य खेलों की भाँति हमारे यहाँ भी हॉकी की शुरुआत औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश सेना द्वारा ही की गई थी। पहले हॉकी क्लब की स्थापना 1885-1886 ई0 में कलकत्ता में हुई। ओलंपिक खेलों की हॉकी प्रतिस्पर्धा में भारत को पहली बार 1928 ई० में शामिल किया गया था। इस प्रतिस्पर्धा में ऑस्ट्रिया, जर्मनी, डेनमार्क और स्विट्जरलैण्ड को हराते हुए भारत फाइनल तक जा पहुँचा। फाइनल में भारत ने इंग्लैण्ड को भी शून्य के मुकाबले तीन गोल से मात दे दी।

भारतीय हॉकी के जादूगर ध्यानचंद जैसे खिलाड़ियों के खेल-कौशल और तीक्ष्णता ने हमारे देश को ओलंपिक के कई स्वर्ण पदक द्वादिलाए। 1928 से 1956 ई0 के बीच भारतीय टीम ने लगातार छः ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। हॉकी की दुनिया में भारतीय वर्चस्व के इस (UPBoardSolutions.com) स्वर्ण युग में भारत ने ओलंपिक में कुल 24 मैच खेले और सभी में सफलता प्राप्त की। इन मैचों में भारतीय खिलाड़ियों ने 178 गोल (प्रति मैच औसतन 7.43 गोल) दागे और विपक्षी टीमें उनके खिलाफ केवल 7 ही गोल कर पाईं। हॉकी में भारत को दो स्वर्ण पदक 1964 ई० के टोकियो ओलंपिक और 1980 ई० के मास्को ओलंपिक में प्राप्त हुए थे।

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प्रश्न 12.
दक्षिण अफ्रीका को लंबे समय तक टेस्ट क्रिकेट से बाहर क्यों रखा गया?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम बहुत समय तक टेस्ट क्रिकेट से बाहर रही क्योंकि वहाँ पर सत्तारूढ़ सरकार ने रंगभेद की नीति अपनायी हुई थी। वहाँ के बहुसंख्यक मूल निवासी काले लोगों को उनके मूलभूत नागरिक अधिकारों से वंचित किया गया था। इन दक्षिण अफ्रीकी मूल निवासियों को क्रिकेट टीम में कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता था। लेकिन इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैण्ड ने दक्षिण अफ्रीका की टीम के साथ क्रिकेट खेलना जारी रखा। रंगभेद की नीति के कारण भारत, पाकिस्तान और वेस्टइंडीज के क्रिकेट (UPBoardSolutions.com) टीमों ने दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम का बहिष्कार किया। उस समय भारत-पाकिस्तान के पास आई.सी.सी. में इतनी शक्ति नहीं थी कि वे दूसरे देशों को दक्षिण अफ्रीका के साथ खेलने से रोक सकें। यह तभी संभव हुआ जब आई.सी.सी. में एशियाई और अन्य अफ्रीकी देशों का प्रभावबढ़ा। किन्तु वर्तमान में वहाँ नेल्सन मण्डेला के दीर्घकालिक लोकतांत्रिक संघर्ष के फलस्वरूप लोकतांत्रिक सरकार है और वहाँ रंगभेद की नीति समाप्त हो चुकी है। रंगभेद की नीति के समाप्ति के साथ अब आई.सी.सी. के सभी देशों के दक्षिण अफ्रीका के साथ क्रिकेट सम्बन्ध स्थापित हो चुके हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘औपनिवेशिक भारत में क्रिकेट नस्ल व धर्म के आधार पर संगठन था।’ इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
1721 ई० में कैम्बे में अंग्रेज जहाजियों द्वारा पहली बार भारत में क्रिकेट खेला गया। 1792 ई० में कलकत्ता (कोलकाता) में पहला क्रिकेट क्लब स्थापित किया गया। भारत में क्रिकेट की शुरुआत बम्बई (मुंबई) से मानी जाती है। पारसी भारत का पहला समुदाय था जिसने भारत में क्रिकेट खेलना शुरू किया। पारसियों ने 1848 ई० में बम्बई में पहले भारतीय ओरिएंटल क्रिकेट क्लब की स्थापना की। पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए खुद का जिमखाना बनाया। टाटा व वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी भारतीय (UPBoardSolutions.com) ओरिएंटल क्रिकेट क्लब के वित्त पोषक थे। पारसी जिमखाना क्लब के स्थापित होने के उपरांत यह अन्य भारतीयों के लिए एक उदाहरण बन गया और उन्होंने भी धर्म के आधार पर क्लब बनाने प्रारंभ कर दिए। 1890 के दशक में हिंदू व मुस्लिम जिमखाना के लिए पैसे इकट्टे करने में व्यस्त दिखाई दिए ताकि वे अपने-अपने जिमखाना क्लब स्थापित कर सकें। ब्रिटिश औपनिवेशवादी भारत को एक राष्ट्र नहीं मानते थे।

उनके लिए तो यह जातियों, नस्लों व धर्मों के लोगों का एक समुच्चय था और वे स्वयं को इस उपमहाद्वीप के स्तर पर एकीकृत करने का श्रेय देते थे। उन्नीसवीं सदी के अंत में कई हिन्दुस्तानी संस्थाएँ व आंदोलन जाति व धर्म के आधार पर ही बने क्योंकि औपनिवेशिक सरकार भी इन बँटवारों (UPBoardSolutions.com) को बढ़ावा देती थी और समुदाय आधारित संस्थाओं को तत्काल ही मान्यता दे देती थी। इस प्रकार ऐसी सामुदायिक श्रेणियों के द्वारा दिए गए आवेदन जिनकी औपनिवेशिक सरकार पक्षधर थी, उन्हें मान्यता मिलने के अवसर कहीं अधिक होते थे।

औपनिवेशिक भारत में सबसे मशहूर क्रिकेट टूर्नामेंट खेलनेवाली टीमें क्षेत्र के आधार पर नहीं बनती थीं, जैसा कि आजकल रणजी ट्रॉफी में होता है, बल्कि धार्मिक समुदायों से बनती थीं। इस टूर्नामेंट को शुरू-शुरू में क्वाईंग्युलर या चतुष्कोणीय कहा गया, क्योंकि इसमें चार टीमें-यूरोपीय, पारसी, हिन्दू व मुसलमान खेलती थीं। बाद में यह पेंटांग्युलर या पाँचकोणीय हो गया और द रेस्ट नाम की नई टीम में भारतीय ईसाई जैसे अवशिष्ट समुदायों को सहभागिता दी गई।

प्रश्न 2.
क्रिकेट के नियमों में समयानुसार परिवर्तन की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
क्रिकेट के खेल का महत्त्व आज इसलिए बढ़ गया है क्योंकि इस खेल को रोचक बनाने के लिए इसमें निरन्तर परिवर्तन किए जाते रहे।
क्रिकेट के खेल में किए गए परिवर्तनों को हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं-
(1) क्रिकेट का मैदान – क्रिकेट के खेल के मैदान का आकार निश्चित नहीं होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि क्रिकेट के खेल को नियंत्रित एवं संचालित करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था आई.सी.सी. ने इस सम्बन्ध में कोई निश्चित नियम नहीं बनाया है। इंग्लैण्ड में क्रिकेट कॉमन्स (गाँव की सामूहिक भूमि) पर खेला जाता था और प्रत्येक गाँव में इस मैदान का आकार पृथक्पृथक् होता था। इसलिए वर्तमान में भी क्रिकेट के (UPBoardSolutions.com) मैदान का आकार अलग-अलग होता है, जोकि स्टेडियम के आकार पर निर्भर करता है। इसमें विकेट से विकेट के बीच की दूरी (पिच) 22 गज (17.68 मी.) होती है।

(2) क्रिकेट की गेंद – क्रिकेट की गेंद का निर्माण चमड़े, ट्वाइन और कॉर्क की सहायता से किया जाता है। पहले गेंद का वजन साढ़े पाँच औंस होता था जो बाद में बढ़ाकर पौने छः औंस हो गया। वर्तमान में इसका वजन 156 ग्राम तथा गेंद की परिधि 8 से 9 इंच होती है। गेंद का रंग दिन के मैच में लाल तथा रात के मैच में सफेद होता है।

(3) बल्ले का आकार – क्रिकेट के बल्ले की आकृति 18वीं सदी के मध्य तक हॉकी-स्टिक की तरह नीचे से मुड़ी हुई होती थी। बल्ले को बाद में लकड़ी के एक साबुत टुकड़े से बनाया जाने लगा। वर्तमान में बल्ले के दो हिस्से होते हैं—ब्लेड या फट्टा जो विलों (बैद) नामके पेड़ की लकड़ी से बनता है और हत्था (हैंडल) बेंत से बनता है। नए नियमों के अनुसार बल्ले की चौड़ाई 44 इंच (10.8 सेमी) तथा इसकी लम्बाई 38 इंच (96.5 सेमी) निर्धारित की गई हैं।

(4) गेंद फेंकने का तरीका – शुरुआती दिनों में क्रिकेट की गेंद को पिच पर लुढ़काकर (अण्डर आर्म) फेंका जाता था। 1761-70 के दशक में गेंद को हवा में लहरा कर फेंकने का प्रज्वलन आरंभ हुआ। इससे गेंदबाजों को विभिन्न लंबाइयों की गेंद फेंकने के साथ-साथ गेंद को घुमाने में भी सहायता मिली। इसके कारण गेंदबाजी में गति, स्पिन तथा स्विंग जैसी तकनीकों का समावेश हुआ। भारतीय उपमहाद्वीप के गेंदबाजों ने ‘रिवर्स स्विंग’ और ‘दूसरा’ के रूप में गेंदबाजी की नवीन तकनीकों का विकास किया है।

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प्रश्न 3.
‘वाटरलू का युद्ध ईटन के खेल के मैदान में जीता गया।’ इस कथन का क्या निहितार्थ है?
उत्तर:
इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि ब्रिटेन की सैन्य सफलता का रहस्य उसके उत्कृष्ट पब्लिक स्कूलों में बच्चों को शिक्षण के दौरान सिखाए गए नैतिक मूल्यों में निहित था। इन पब्लिक स्कूलों में ईटन सर्वाधिक प्रसिद्ध था। अंग्रेजी आवासीय विद्यालय में अंग्रेज लड़कों को शाही इंग्लैण्ड के तीन अहम् संस्थानों-सेना, प्रशासनिक सेवा व चर्च में कैरियर के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। उन्नीसवीं सदी के शुरुआत (UPBoardSolutions.com) तक टॉमस आर्नल्ड-जो मशहूर रग्बी स्कूल के हेडमास्टर होने के साथ-साथ आधुनिक पब्लिक स्कूल प्रणाली के प्रणेता थे-रग्बी व क्रिकेट जैसे टीम खेलों को पढ़ाई का एक सुनियोजित तरीका मानते थे।

अंग्रेज लड़के अनुशासन, अनुक्रम का महत्त्व, कौशल, स्वाभिमान की रीति-नीति और नेतृत्व क्षमता सीखते थे जो उनकी ब्रिटिश साम्राज्य चलाने में सहायता करते थे। विक्टोरियाई साम्राज्य-निर्माता दुसरे देशों की जीत को यह कह कर सही ठहराते थे कि उन्हें जीतना निःस्वार्थ समाज सेवा थी जिससे पिछड़े समाज ब्रितानी कानून व पश्चिम ज्ञान के संपर्क में आकर सभ्यता का सबक सीख सकते थे।
क्रिकेट ने अभिजात अंग्रेजों की इस शौकिया आत्मछवि को पुष्ट करने में मदद की-जहाँ पर क्रिकेट फायदे या जीत के लिए न होकर केवल सीखने के लिए  और ‘स्पिरिट ऑफ फेयरप्ले’ (न्यायोचित खेल भावना) के लिए खेला जाता था।

प्रश्न 4.
क्रिकेट के खेल को ग्रामीण पृष्ठभूमि से किस प्रकार जोड़ा जा सकता है?
उत्तर:
क्रिकेट के खेल की प्रारंभिक पृष्ठभूमि ग्रामीण ही थी। शुरुआत में इसमें समय की कोई सीमा नहीं थी। ग्रामीण इंग्लैण्ड में यह खेल तब तक चलता था जब तक कि एक टीम दूसरी टीम को दोबारा पूरा आउट न कर दे। उल्लेखनीय है। कि ग्रामीण जीवन की गति मंद होती है और क्रिकेट के नियम औद्योगिक क्रान्ति से पहले बनाए गए थे। क्रिकेट के मैदान का आकार अनिश्चित होना भी उसकी ग्रामीण पृष्ठभूमि को इंगित करता है। क्रिकेट मूलतः गाँव की शामिलात जमीन अर्थात् कॉमन्स में खेला जाता था। कॉमन्स का आकार हरेक गाँव में अलग-अलग होता था, इसलिए न तो बाउंड्री तय थी और न ही चौके। जब गेंद भीड़ में घुस जाती तो लोग क्षेत्ररक्षक या फील्डर के लिए रास्ता बना देते थे, ताकि वह आकर गेंद वापस ले जाए। जब सीमा रेखा क्रिकेट की नियमावली का

हिस्सा बनी तब भी, विकेट से उसकी दूरी तय नहीं की गई। क्रिकेट के ग्रामीण पृष्ठभूमि व पूर्व औद्योगिक होने का संकेत इसमें प्रयोग होने वाले सामान से भी मिलता है। (UPBoardSolutions.com) आज भी बल्ला, स्टंप व गिल्लियाँ लकड़ी से बनी होती हैं जबकि गेंद चमड़े, सुतली (ट्वाइन) और कॉर्क से।
‘क्रिकेट के कानून’ बहत वर्षों पहले 1744 ई0 में औद्योगिक क्रांति से पहले लिखे गए थे। उस समय केवल टेस्ट क्रिकेट ही खेला जाता था और इस विशेष खेल की गति उस समय के गाँव के लोगों की सुस्त रफ्तार जिंदगी का सूचक है।

प्रश्न 5.
भारत में क्रिकेट के प्रसार का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भारत में क्रिकेट की शुरुआत औपनिवेशिक शासन काल में हुई। 1721 ई० में अंग्रेज जहाजियों ने कैम्बे में अपना प्रथम मैच भारत में खेला। भारत में पहला क्रिकेट क्लब कलकत्ता में 1792 ई० में स्थापित किया गया। शुरुआत में भारत में क्रिकेट अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित था। यह खेल भारत में 18वीं शताब्दी में अंग्रेज सैनिकों और सिविल सर्वेट्स द्वारा उनके (गोरे लोगों के लिए अधिकृत) क्लबों और जिमखानों में खेला जाता था। भारतीयों द्वारा इस खेल की शुरुआत का श्रेय पारसी समुदाय को जाता है।

अंग्रेजों के संपर्क में आकर सबसे पहले पारसियों ने 1848 ई0 में प्रथम भारतीय क्रिकेट क्लब ‘ओरिएंटेल क्रिकेट क्लब’ की स्थापना बंबई में की। इस क्लब के प्रायोजक टाटा और वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी थे। अंग्रेज प्रायः इनके पार्क को घोड़ों द्वारा रौंदकर खराब कर देते थे परंतु (UPBoardSolutions.com) प्रशासन ने इनकी कोई सहायता नहीं की। पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए ‘पारसी जिमखाना क्लब’ की स्थापना की। 1889 में पारसियों की एक टीम ने अंग्रेजों के बोम्बे जिमखाना को एक मैच में हरा कर भारतीय श्रेष्ठता सिद्ध की।

पारसी जिमखाना क्लब की स्थापना के पश्चात् अन्य भारतीय समुदायों ने भी धर्म के आधार पर क्लब बनाने की शुरुआत की। इससे भारत में सांप्रदायिक एवं नस्ली आधार पर क्लबों का प्रचलन आरंभ हुआ। शीघ्र ही भारत में एक क्वाड्रेग्युलर (चतुष्कोणीय) टूर्नामेंट आरंभ हुआ जिसमें धर्म के आधार पर चार टीमें (यूरोपीय, पारसी, हिंदू तथा मुस्लिम) खेलती थीं। कुछ समय पश्चात् इस टूर्नामेंट में ‘द रेस्ट’ के नाम से पाँचवीं टीम को शामिल किया गया जिसमें भारतीय ईसाई जैसे बचे-खुचे समुदायों को प्रतिनिधित्व दिया गया। धर्म के (UPBoardSolutions.com) आधार पर होने वाले इस टूर्नामेंट के विरुद्ध महात्मा गाँधी सहित अनेक भारतीय नेताओं ने आवाज उठाई परंतु यह टूर्नामेंट 1947 ई० तक चलता रहा। 1947 ई0 में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत इस टूर्नामेंट के स्थान पर नेशनल क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन शुरू हुआ जिसे वर्तमान में रणजी ट्राफी के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 6.
क्रिकेट के अतंर्राष्ट्रीय विस्तार का संक्षेप में विवरण दीजिए।
उत्तर:
क्रिकेट का अंतर्राष्ट्रीय विस्तार इस प्रकार है-
(क) इंग्लैण्ड और ऑस्ट्रेलिया के बीच सन् 1871 में खेले गए क्रिकेट मैच में ऑस्ट्रेलिया की जीत हुई। इस पराजय के विरोध में कुछ अंग्रेज महिलाओं ने ‘वेल्स को जलाकर इंग्लिश क्रिकेट का दाह संस्कार सा कर दिया। वेल्स की उस राशि को ऑस्ट्रेलिया की टीम को सौंप दिया गया। तभी से ये दोनों टीमें एक-दूसरे के विरुद्ध एसेज के लिए खेलती हैं।

(ख) इंग्लैण्ड में 1909 ई0 में ‘इंपीरियल क्रिकेट कान्फ्रेंस’ (आई.सी.सी.) की स्थापना हुई तथा इसी के साथ क्रिकेट को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता भी मिली। इंग्लैण्ड के अलावा आस्ट्रेलिया व दक्षिण अफ्रीका भी इसके सदस्य बने। सन् 1926 में भारत, वेस्टइंडीज एवं न्यूजीलैंड भी इसके सदस्य बन गए। सन् 1952 में पाकिस्तान भी इसका सदस्य बन गया। सन् 1971 में रंगभेद नीति के कारण दक्षिण अफ्रीका की (UPBoardSolutions.com) सदस्यता समाप्त कर दी गई। सन् 1965 में इस कांफ्रेंस का नाम बदलकर इंटरनेशनल क्रिकेट कांफ्रेंस’ (आई.सी.सी.) रख दिया गया। समय के साथ-साथ अन्य देश भी (राष्ट्रमंडल देशों के अतिरिक्त) इसके सदस्य बनते गए।

वर्तमान समय में इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, भारत, श्रीलंका, वेस्टइंडीज, न्यूजीलैण्ड, पाकिस्तान, अमेरिका, अर्जेंटीना, कनाडा, डेनमार्क, कीनिया, जिम्बाब्वे, बांग्लादेश, हॉलैंड, बरमूडा, फिजी, सिंगापुर, हांगकांग, इजराइल व मलेशिया आदि देश इसके सदस्य या सहसदस्य हैं। क्रिकेट के इतिहास का प्रथम एकदिवसीय मैच 5 जनवरी, 1971 ई० को इंग्लैण्ड और आस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था। इसमें 40 ओवर प्रति पारी रखे गए। एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैचों के आयोजन व विकास का श्रेय भी इंग्लैण्ड को जाता है। इंग्लैण्ड के प्रयासों के फलस्वरूप ही इंग्लैण्ड में प्रथम विश्वकप का आयोजन हुआ। इस विश्व कप क्रिकेट में आठ देशों की टीमों ने भाग लिया था। इस विश्व कप में क्रिकेट के फाइनल में वेस्टइंडीज ने आस्ट्रेलिया को 17 रनों से हराया था।

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UP Board Solutions for Class 9 English Suplementary Reader Chapter 4 On A Winter’s Night (Based on Munshi PremChand’s Story) (Poos Ki Raat)

UP Board Solutions for Class 9 English Suplementary Reader Chapter 4 On A Winter’s Night (Based on Munshi PremChand’s Story) (Poos Ki Raat)

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(A) SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS AND THEIR ANSWERS
Answer the following questions in not more than 25 words each :

Question 1.
Why did Halku not buy a blanket?
हल्कू ने कम्बल क्यों नहीं खरीदा?
Answer:
Halku did not buy a blanket because he wanted to pay his debt first.
हल्कू ने कम्बल इसलिए नहीं खरीदा क्योंकि वह पहले अपना कर्ज चुकाना चाहता था।

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Question 2.
Why did Halku want to give the money to Sohana?
हल्कू सोहन के रुपये क्यों देना चाहता था?
Answer:
Halku wanted to give the money to Sohana because he did not like that Sohana should abusehim for debt.
हल्कू सोहन के रुपये इसलिए देना चाहता था क्योंकि (UPBoardSolutions.com) वह नहीं चाहता था कि सोहन उसे कर्ज के लिए गाली दे।

Question 3.
What did Halku’s wife want him to do after giving up farming?
हल्कू की पत्नी उससे खेती छोड़ने के बाद क्या करने को कह रही थी?
Answer:
Halku’s wife wanted him to work as labourer after giving up farming.
हल्कू की पत्नी चाहती थी कि वह खेती का काम छोड़कर मजदूर के रूप में काम करें।

Question 4.
Who enjoyed the fruits of labour of the farmers?
किसानों के परिश्रम के फल का आनन्द कौन उठाता था?
Answer:
The rich land-owners enjoyed the fruits of labour of the farmers.
धनी जमींदार किसानों के परिश्रम के फल का आनन्द उठात थे।

Question 5.
Name three things that Halku did to keep himself warm that night.
वे तीन कार्य बताइये जो हल्कू ने उस रात अपने को पं रखने के लिए किये थे।
Answer:
Halku did the following things to keep himself warın :
हल्कू ने अपने को गर्म रखने के लिए निम्नलिखित कार्य किये–
(i) He smoked his clay-pipe ten times.
उसने अपनी चिलम को दस बार पिया।
(ii) He kept Jhabra sleep next to him.
उसने झबरा को अपने बगल में सुलाया।
(iii) He lit fire in the orchard.
उसने बगीचे में आग जलायी।

Question 6.
Give one example to show that Jhabra loved Halku.
एक उदाहरण देकर बताइये कि झबरा हल्कू से प्यार करता था।
Answer:
Jhabra slept beside Halku and it barked at cattle when they entered his field. This shows that Jhabra loved Halku.
झबरा हल्कू के बगल में सोया और जब जानवर उसके खेत में घुसे थे तब वह उन पर भौंक रहा था। यह प्रदर्शित करता है कि झबरा हल्कू से प्रेम करता था।

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Question 7.
“I had severe stomach ache!” Why did Halku say this to his wife?
मेरे पेट में जोर का दर्द था।” हल्कू ने अपनी पत्नी से क्यों कहा?
Answer:
Halku said these words to his wife so that she might not be angry for not driving the cattle away.
हल्कू ने अपनी पत्नी से इसलिये कहे ताकि वह (UPBoardSolutions.com) जानवरों को न भगाने के लिए उससे नाराज न हो।

(B) MULTIPLE CHOICE QUESTIONS
1.Select the most suitable alternative to complete each of the following statements :
निम्नलिखित कथनों में से प्रत्येक को पूरा करने के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प चुनिए :
(i) Halku’s wife gave three rupees to Halku because :
(a) she wanted to invest them in the land
(b) she wanted to eat her bread in peace
(c) Halku wanted to buy some bread with them
(d) Halku was ill-treated by the money-lender
(ii) Halku’s wife wanted him to :
(a) pay all his debts
(b) give up farming
(c) invest money in the land
(d) work hard
(iii) Halku went out unwillingly because :
(a) he had no money to buy a blanket
(b) his wife had not treated him well
(c) he did not want to part with his savings
(d) he wanted to pay his debts
(iv) Halku could not sleep because :
(a) Jhabra lay under his cot
(b) he had only an old cotton sheet to wrap himself with
(c) the dog was barking
(d) the cattle were eating his crop
Answers:
(i) (d) Halku was ill-treated by the money-lender.
(ii) (b) give up farming
(iii) (d) he wanted to pay bis debts.
(iv) (b) he had only an old cotton sheet to wrap himself with.
(C) Say whether each of the following statements is ‘true’ or ‘false’ :
बताइये कि निम्नलिखित कथनों में से प्रत्येक ‘सत्य’ है अथवा ‘असत्य’ :
(i) Sohana, the money-lender, owed money to Halku.
(ii) Sohana demanded some money from his wife to buy a blanket.
(iii) Halku and his wife were very poor and were under heavy debt.
(iv) Halku’s wife did not want anyone to abuse her husband.
(v) Jhabra and Halku kept on sleeping while the cattle kept on eating his crop.
(vi) Halku could not sleep in the night because he had a stomachache.
(vii) Halku lit a fire in the orchard to frighten away the cattle.
(viii) Jhabra loved his master very much.
(ix) Halku was poor but not dishonest.
Answers:
(i) F, (ii) F, (iii) T,(iv) T, (v) F,(vi) F, (vii) F,(viii) T,(ix) T.

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ASSIGNMENT ( कार्य) :
(D) Fill in the blanks with missing letters to complete the spelling of the following words :
निम्नलिखित शब्दों की वर्तनी को पूरा करने के लिए लुप्त अक्षरों की सहायता से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
sh-v-r; ab-s–; 1-mb; inst–d; rel–f
Answers:
shiver; abuses; numb; instead; relief