UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 35 पंडित जवाहरलाल नेहरू (महान व्यक्तिव)

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पाठ का सारांश

पंडित जवाहरलाल नेहरू कुशल राजनीतिज्ञ और उच्चकोटि के विचारक थे। ‘मेरी कहानी’, ‘विश्व इतिहास की झलक’ ‘भारत की खोज’ इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। ये खेल, संगीत और कला के लिए भी समय निकाल लेते थे। ये बच्चों को प्रिय थे। उनमें ये ‘चाचा-नेहरू के नाम से लोकप्रिय हैं। 14 नवम्बर को इनका जन्मदिवस ‘बाल-दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

पं० नेहरू का जन्म प्रयाग (इलाहाबाद) में 14 नवम्बर, 1889 ई० को हुआ। इनके पिता मोतीलाल नेहरू प्रसिद्ध वकील थे। माता स्वरूपरानी उदार महिला थीं। नेहरू जी की आरंभिक शिक्षा घर में ही हुई विलायत से (UPBoardSolutions.com) वकालत की शिक्षा पूरी कर इलाहाबाद में इन्होंने वकालत शुरू कर दी। उसी समय इनकी भेंट गांधी जी से हुई। वकालत छोड़कर ये स्वाधीनता संग्राम में देश को आजाद कराने के लिए सक्रिय हो गए।

सन 1919 ई० में जलियाँवाला बाग काण्ड से देश में क्रोध की ज्वाला धधक उठी। सन 1920 ई० में गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन शुरू कर दिया। सन 1921 ई० में प्रिंस ऑफ वेल्स भारत आए। उनके स्वागत का बहिष्कार किया गया। इलाहाबाद में विरोध का नेतृत्व नेहरू जी ने किया। ये पहली बार अपने पिता के साथ जेल गए। इसके बाद इन्होंने नौ बार जेलयात्रा की; किंतु ये विचलित नहीं हुए।

अन्ततः 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वाधीन हुआ और नेहरू जी प्रथम प्रधानमंत्री बने। देश की जर्जर आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए इन्होंने दूरदर्शिता और कर्मठता से कृषि और उद्योगों के विकास हेतु पंचवर्षीय योजनाओं की आधारशिला रखी। जिसके कारण आज देश में बड़े-बड़े कारखाने, वैज्ञानिक प्रयोगशालाएँ और विशाल बाँध दिखाई देते हैं। (UPBoardSolutions.com) नेहरू जी ने देश के विकास के लिए अनेक कार्य किए। देश को शक्ति सम्पन्न बनाने के लिए इन्होंने परमाणु आयोग की स्थापना की। नेहरू जी ने देश को विज्ञान और तकनीकि के क्षेत्र में समर्थ बनाया। 27 मई, 1964 को इनका निधन हो गया।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
नेहरू जी ने वकालत छोड़ने का निर्णय क्यों लिया?
उत्तर :
नेहरू जी ने देश को स्वाधीन कराने के लिए वकालत छोड़ने का निर्णय लिया।

प्रश्न 2.
देश के आर्थिक विकास के लिए नेहरू जी ने प्रधानमंत्री के रूप में क्या-क्या कदम उठाए?
उत्तर :
प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू जी ने कृषि और उद्योगों के विकास के उद्देश्य से पंचवर्षीय योजनाओं की आधारशिला रखी। इन्होंने देश को शक्ति-सम्पन्न बनाने के लिए परमाणु आयोग की स्थापना की। इन्होंने (UPBoardSolutions.com) देश को विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में समर्थ बनाया।

प्रश्न 3.
नेहरू जी को प्रथम बार कब और क्यों जेल जाना पड़ा?
उत्तर :
नेहरू जी को सन 1921 ई० में प्रथम बार जेल जाना पड़ा क्योंकि उन्होंने इलाहाबाद में प्रिंस ऑफ वेल्स के स्वागत के बहिष्कार में क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया था।

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प्रश्न 4.
‘प्रिंस ऑफ वेल्स’ के भारत आगमन पर उनके स्वागत का विरोध क्यों किया?
उत्तर :
‘प्रिंस ऑफ वेल्स’ के स्वागत का विरोध अँग्रेजों की दमनकारी नीतियों के कारण किया गया।

प्रश्न 5.
सही का मिलान कीजिए –
UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 35 पंडित जवाहरलाल नेहरू (महान व्यक्तिव) 1

प्रश्न 6.
(क) 14 नवंबर को बाल दिवस क्यों मनाया जाता है?
उत्तर :
14 नवंबर, यानी बाल दिवस चिल्डेंस डे। बच्चे देश के उज्जवल भविष्य हैं। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। पंडित नेहरू भारत की आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री बने। 14 नवंबर को भारत में इनके जन्मदिन को ही बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।

(ख) जवाहर लाल नेहरू को “चाचा नेहरू” क्यों कहते हैं?
उत्तर :
जवाहरलाल नेहरू एक कुशल राजनीतिज्ञ व उच्च कोटि के विचारक थे। ये खेल, संगीत, कला के बहुत प्रेमी थे। ये बच्चों को बहुत प्रिय थे। बच्चों से उनके लगाव के कारण ही बच्चे उन्हें चाचा नेहरू के नाम से पुकारते थे।

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प्रश्न 7.
अपने स्कूल में 14 नवंबर को साथियों के साथ मिलकर एक मेले का आयोजन कीजिए। इसके लिए कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं –

(क) यह तय कीजिए कि मेले में क्या-क्या होगा- खेल, प्रतियोगिताएँ, वाद-विवाद, नाटक,, सांस्कृतिक कार्यक्रम….
(ख) साथियों के बीच जिम्मेदारियाँ बाँटें- कौन क्या करेगा?
(ग) मेले में गाँव वालों (अपने माता-पिता) को भी साझीदार कैसे बनाएँगे ?
(घ) अपनी बनाई हुई चीजों की प्रदर्शनी लगवाएँ। (UPBoardSolutions.com)
(ड.) शिक्षिका/शिक्षक के साथ चर्चा कीजिए कि और क्या-क्या हो सकता है?

नोट – विद्यार्थी स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 3 नदी घाटी की सभ्यता – हड़प्पा सभ्यता

UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 3 नदी घाटी की सभ्यता – हड़प्पा सभ्यता

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अभ्यास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में सही विकल्प पर सही का निशान (✓) लगाइए :

(अ) सिन्धु घाटी की सभ्यता थी –
(क) ग्रामीण सभ्यता
(ख) नगरीय सभ्यता (✓)
(ग) अर्द्धनगरीय सभ्यता

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(ब) मोहनजोदड़ो के नगर बसे थे –
(क) आजकल के गाँवों की तरह
(ख) टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में
(ग) एक निश्चित योजना के अनुसार (✓)

प्रश्न 2.
रिक्त स्थान भरिए –

(क) मोहनजोदड़ो का अर्थ मृतकों का टीला है।
(ख) रोपड़ भारत के पंजाब राज्य में, कालीबंगा राजस्थान राज्य में है।
(ग) व्यापार इराक और सिन्धु घाटी के शहरों के बीच होता था।

प्रश्न 3.
सही जोड़े बनाइए (मिलाकर) –
UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 3 नदी घाटी की सभ्यता - हड़प्पा सभ्यता 1

प्रश्न 4.
प्रश्नों के उत्तर लिखिए –

(क) कांसे की बनी नर्तकी की मूर्ति कहाँ से प्राप्त हुई है?
उत्तर :
कांसे की बनी नर्तकी की मूर्ति हड़प्पाकालीन नगर मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है।

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(ख) हड़प्पा के लोगों का विदेश व्यापार किस देश के साथ होता था?
उत्तर :
हड़प्पा के लोगों का विदेश व्यापार मेसोपोटामिया इराक) के साथ होता था।

(ग) मगज का अविष्कार सर्वप्रथम कहाँ हुआ?
उत्तर :
कागज का आविष्कार सर्वप्रथम चीन में हुआ।

(घ) कौन सी सभ्यता नील नदी का वरदान’ नाम से प्रसिद्ध है?
उत्तर :
मिस्र सभ्यता नील नदी का वरदान’ नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 5.
मानचित्र देखकर हड़प्पा कालीन पुरास्थलों की सूची बनाइए।
उत्तर :
स्वयं करें। संकेत- मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल आदि

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प्रश्न 6.
टिप्पणी लिखिए –
उत्तर :
हड़प्पा कालीन नगर निर्माण योजना – हड़प्पा कालीन नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के आधार पर किया गया था। सड़कें चौड़ी थीं तथा वे छोटी-छोटी सड़कों एवं गलियों से जुड़ी थीं। सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं। सड़कों के किनारे पक्की नालियाँ बनी थीं। हर घर (UPBoardSolutions.com) की नाली बड़े नालों से मिल जाती थी। हर नाली में हल्की सी ढाल होती थी। ताकि पानी आसानी से बह सके। इससे पता चलता है कि इस सभ्यता के लोग सफाई और स्वच्छता के प्रति जागरूक थे।

हड़प्पा कालीन व्यापार – हड़प्पा के नगरों से पत्थर, हाथी दाँत, धातु एवं मिट्टी की बनी वस्तुएँ मिली हैं। कुछ विद्वान सोचते हैं कि ये वास्तव में व्यापारियों की मुहरें थीं। ये विभिन्न आकार की हैं। इन मुहरों पर आदमी की आकृतियाँ, कुछ पर जानवरों की, पौधों की और कुछ पर बर्तनों की आकृतियाँ बनी हुई हैं। व्यापारी जब एक जगह से दूसरी जगह सामान भेजते थे तो सामान बाँधकर उस पर गीली मिट्टी छापते होंगे और गीली मिट्टी पर अपनी मुहर से छाप बना देते होंगे ताकि उनके सामान की पहचान बनी रह सके। तौल और नाप के लिए बटखरे और पैमाने का प्रयोग करते थे। ऐसी मुहरें दूसरे देशों में भी पाई गई हैं- खासकर मेसोपोटामिया (इराक) में लगता है कि उन दिनों इराक और हड़प्पा के नगरों के बीच व्यापार होता था।

हड़प्पा कालीन रहन-सहन – चावल, गेहूँ और जौ हड़प्पा वासियो के मुख्य भोज्य पदार्थ थे। ये लोग सूती एवं ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे। यहाँ के निवासी गेहूँ, जौ, कपास, मटर, तिल और चावल की खेती करते थे। ऊँचे कंधों वाले बैल, गाय, भैंस, बकरी, भेड़, सुअर, हाथी और ऊँटे इनके पालतू (UPBoardSolutions.com) पशु थे। हार, कंगन, पाजेब (पायल), बाली, अंगूठी उनके प्रिय आभूषण थे। मनका बनाने का कारखाना चन्हूदड़ों से प्राप्त हुआ है।

हड़प्पा कालीन देवी-देवता – हड़प्पावासी मिट्टी से देवी-देवता की मूर्तियाँ बनाते थे। इस प्रकार की एक मातृदेवी की मूर्ति खुदाई में प्राप्त भी हुई है। इसके अलावा पत्थर के चौकोर पट्टे पर एक आकृति के सिर पर भैंसे के सींग का चित्र भी मिला है। उसके चारों तरफ कई जानवर बने हैं। संभवतः सिंधुवासी इन्हें पशुओं का देवता मानकर पूजते थे। कुछ मुहरों पर पीपल की पत्तियाँ और साँप की आकृतियाँ भी। बनी मिली हैं। शायद वे इनकी भी पूजा करते थे। इतिहासकार मानते हैं कि हड़प्पावासी मातृशक्ति की उपासना, शिव की पूजा, वृक्ष पूजा और पशु-पूजा करते थे।

प्रश्न 7.
सिन्धु घाटी के नगरों के बारे में लोगों को कैसे पता चला? हड़प्पा सभ्यता के नष्ट होने के क्या कारण हो सकते थे?
उत्तर :
सन् 1921 में पुरातत्व विदों ने पंजाब प्रांत में हड़प्पी नामक स्थल की खोज की जिसके अध्ययन से ज्ञात हुआ कि यह एक नगरीय सभ्यता के अवशेष हैं। इसी प्रकार सिंध प्रांत में मोहनजोदड़ो की खोज हुई। जब इन स्थलों की विस्तृत खुदाई हुई तो नीचे दबा हुआ पूरा का पूरा शहर निकल आया। (UPBoardSolutions.com) धीरे-धीरे खोज आगे बढ़ी और पता चला कि उस समय कई नगर थे। ये सभी नगर सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों की घाटी में बसे हुए थे। हड़प्पा सभ्यता के नष्ट होने के कई कारण हो सकते हैंबाढ़ या भूकंप, महामारी, आक्रमण, आग या फिर आर्यों का आगमन।

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प्रश्न 8.
किस कारण सभी प्राचीन सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे हुआ? (नदियों से विशेष लाभ क्या थे?)
उत्तर :
खेती के लिए पानी की उपलब्धता ने अधिक अन्न उत्पादन में मदद की। इससे व्यापार को बढ़ावा मिला जिससे नगरों का विकास संभव से सका। व्यापार के लिए जलमार्ग सुलभ था। साथ ही नदी मार्ग से व्यापार सस्ता, आसान तथा सुरक्षित था। नगरीय जीवन में कृषि की अपेक्षा अन्य काम-धंधों – को अधिक महत्व मिला। इन काम-धंधों के लिए कच्चे माल की उपलब्धता तथा उससे निर्मित वस्तुओं ने (UPBoardSolutions.com) नगरीय जीवन को और उन्नत बनाया। यही कारण है कि सभी प्राचीन सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे ही हुआ।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित तालिका पूरी करिए –
UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 3 नदी घाटी की सभ्यता - हड़प्पा सभ्यता 2

प्रश्न 10.
सिन्धु घाटी के नगरों से मिलने वाली मुहरों के बारे में चार मुख्य बातें बताइए।
उत्तर :
सिन्धु घाटी के शहरों से प्राप्त मुहरों पर आदमी, जानवरों, पौधों और बर्तनों की आकृतियाँ बनी हुई हैं। एक मिट्टी की मूर्ति मिली है जो शायद उन लोगों की देवी की मूर्ति थी। एक आकृति के सिर पर भैंस का चित्र है। शायद यह पशुओं का देवता था जो पूजा जाता था। एक मुहर पर पीपल की पत्तियाँ (UPBoardSolutions.com) और साँप बने हैं। शायद इनकी भी पूजा होती थी।

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प्रोजेक्ट वर्क –

  • नदियों से क्या-क्या लाभ होते हैं? अपने प्रदेश की मुख्य नदियों के किनारे बसे नगरों की सूची बनाइए।
  • आपके घर में मिट्टी से बनी भिन्न-भिन्न वस्तुओं का प्रयोग होता होगा। उन वस्तुओं की सूची बनाएँ। यह भी पता करें कि इन वस्तुओं को कौन बनाता है?

नोट – विद्यार्थी अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 8 कुम्भमेला (अनिवार्य संस्कृत)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 8 कुम्भमेला (अनिवार्य संस्कृत)

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अस्माकं …………………………………………………………………. कुम्भमेला लगति।

हिन्दी अनुवाद – हमारे प्रदेश के मध्य-दक्षिण भाग में अति प्राचीन प्रयाग नगर स्थित है। इसके उत्तर में गंगा और दक्षिण में यमुना नदियाँ बहती हैं। वहाँ सरस्वती नदी की भी कोई अदृश्य धारा बहती है, ऐसा पुराणों में वर्णित है। उस नगर की पूर्व दिशा में तीनों नदियों का कोई संगम शोभित है। इसलिए ” वह स्थान त्रिवेणी या तीन नदियों का (UPBoardSolutions.com) संगम शोभित है। इसलिए वह स्थानं त्रिवेणी या तीन नदियों का संगम, इस नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध है। यहाँ पर तीनों नदियों की धारा आपस में मिलकर एक हो जाती है। उनकी ही त्रिवेणी संगम तट पर प्रत्येक बारह वर्ष में कुम्भ मेला लगता है।

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अस्ति श्रीमद्भागवतादि …………………………………………………………………. चेति सन्ति।

हिन्दी अनुवाद – श्रीमद्भागवत आदि महापुराणों में समुद्रमन्थन की प्रसिद्ध कथा का वर्णन है। पहले सतयुग में देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मन्थन किया। इससे चौदह रत्न निकले। इनमें स्वर्ण कुम्भ हाथ में लेकर उत्पन्न हुए धन्वतंरि एक रत्न थे। उस स्वर्ण कुम्भ में अमृत था। श्री विष्णु की आज्ञा से उनका वाहन गरुड़ उस स्वर्णकुम्भ को हर ले चला। इसके बाद दानव उस अमृत को प्राप्त करने के लिए उसके पीछे दौड़े। पीछा करते हुए उन दानवों को लौटाने के लिए गरुड़ का उनके साथ चार स्थानों पर युद्ध हुआ। उस युद्ध में हाथ से गिरा उस अमृत के घड़े से कुछ अमृत चार स्थानों में गिर पड़ा। इसलिए उन चार स्थानों में अमृत प्राप्त करने के लिए लोग कुम्भ मेले का आयोजन करते हैं। वे चार स्थान-हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन हैं।

प्रयागे त्रिवेणीतटे …………………………………………………………………. भविष्यति।

हिन्दी अनुवाद – प्रयाग में लोग माघ महीने में मकर राशि पर सूर्य स्थित होने पर यद्यपि एक मास का कल्पवास (संगम क्षेत्र में ही नियमपूर्वक रहने का संकल्प लेकर आवास करना) करने के लिए आते हैं, तब भी बारहवें वर्ष में कुम्भ पर्व और छठे वर्ष में अर्द्ध कुम्भ मेले प्रचलित हैं। संवत् दो हजार सत्तावन के माघ मास में और उसके अनुसार सन् 2001 ई० के जनवरी मास में यह कुम्भ मेला सम्पन्न हुआ क्योंकि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जनवरी मास की चौदह तारीख से सूर्य मकर राशि में और बृहस्पति वृष राशि में प्रवेश करते हैं। यह ज्योतिष योग दुबारा बारह वर्ष के बाद आएगा। तब फिर कुम्भ मेला होगा।

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अस्यां मेलायां …………………………………………………………………. आगन्तव्यम्।

हिन्दी अनुवाद – इस मेले के पर्व में लाख से अधिक लोग आएँगे। उनमें श्रद्धालु, गृहस्थ वाले, साधु, यति और हजारों से ज्यादा संन्यासी एक मास तक निवास करेंगे। इन सब लोगों के आवास के लिए शासन सब प्रकार की सार्वजनिक सुविधा प्रदान करेगा। मेले की व्यवस्था के लिए शासन में एक पृथक् विभाग भी स्थापित हो चुका है। इसलिए (UPBoardSolutions.com) यहाँ मनुष्यों की भीड़ के लिए कोई असुविधा और असुरक्षा नहीं होती। इससे इस विश्व के प्रमुख कुम्भ मेले को देखने के लिए सभी लोगों को आना चाहिए।

अभ्यास

प्रश्न 1.
उच्चारण करें
नोट – विद्यार्थी स्वयं उच्चारण करें।

प्रश्न 2.
एकपद में उत्तर दें
(क) सङगमतटे प्रतिद्वादशवर्ष का लगति?
उत्तर : कुम्भमेला।
(ख) सुवर्णकुम्भं हस्तयोः धृत्वा कः उत्पन्नः?
उत्तर : धन्वन्तरि।
(ग) कनककुम्भे किम् आसीत्?
उत्तर : अमृतं।
(घ) कल्पवासं कर्तुं जनाः कस्मिन् मासे जनाः आगच्छति?
उत्तर : माघमासे।

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प्रश्न 3.
एक वाक्य में उत्तर दें
(क) समुद्रमन्थनस्य प्रसिद्ध कथा कुत्र वर्णिता?
उत्तर :
समुद्रमन्थनस्य प्रसिद्धा कथा श्रीमदभागवतादि महापुराणेषु वर्णिता अस्ति।

(ख)
सत्ययुगे के मिलित्वा समुद्रम् अमथ्नन्?
उत्तर :
सत्ययुगे देवा दानवाश्च मिलित्वा समुद्रम् अमथ्नन्।

(ग)
त्रिवेणीतटे जनाः कदा कल्पवासं कर्तुम् आगच्छन्ति?
उत्तर :
त्रिवेणीतटे जनाः माघमासे कल्पवासं कर्तुम् आगच्छन्ति।

(घ)
को द्रष्ट सर्वैः जनैः प्रयागे आगन्तव्यम्?
उत्तर :
विश्वस्य प्रमुखां कुम्भमेला द्रष्टुं सर्वेः जनैः प्रयागे आगन्तव्यम्।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित पदों का सन्धि-विच्छेद करें
पद                                  सन्धि-विच्छेद
यस्योत्तरतः                       यस्या + उत्तरतः
अप्येकम्                         अपि + एकम्
नाम्नापि                            नाम्ना + अपि
काप्यसुविधा                     का + असुविधा

प्रश्न 5.
रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण करें प्रश्न
(क) कनककुम्भे अमृतम् आसीत्।
प्रश्न : अमृतम् कुत्र आसीत?

(ख)
अमृतं प्राप्तुं जानाः कुम्भमेलाम् आयोजयन्ति।
प्रश्न : अमृतम् प्राप्तुं जनाः का आयोजयन्ति?

(ग)
अमृतकुम्भात् किञ्चिद् अमृतं चतुषु  स्थानेषु अपतत्।
प्रश्न : कस्मात् कुम्भात् अमृतं चतुषु स्थानेषु अपतत्?

(घ)
गरुडः अमृतकुम्भम् अहरत्।
प्रश्न : अमृतकुम्भम् कः अहरत्?

प्रश्न 6.
संस्कृत में अनुवाद करें
(क) नगर की पूर्व दिशा में नदियों का संगम है।
संस्कृत अनुवाद – नगरस्य प्राच्यां दिशि नदीनां संगमः अस्ति।

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(ख) देवों और दानवों ने मिलकर समुद्र मथा।
संस्कृत अनुवाद – देवा दानवाश्च मिलित्वा समुद्रं अमथ्नन्।

(ग)
भारत के चार स्थानों पर अमृत की बूंदें पड़ीं।
संस्कृत अनुवाद – भारतस्य चतुषु स्थानेषु अमृतं कणानि अपतत्।

(घ)
प्रत्येक बारह वर्ष पर कुम्भ मेला लगता है।
संस्कृत अनुवाद – प्रतिद्वादशवर्ष कुम्भमेलाम् आयोजयन्ति।

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UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 22 रोगी को स्पंज कराना गर्म सेंक, बफारा देना, बर्फ की टोपी का प्रयोग

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 22 रोगी को स्पंज कराना गर्म सेंक, बफारा देना, बर्फ की टोपी का प्रयोग

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
किसी रोगी को स्नान तथा स्पंज किस प्रकार कराया जाता है?
या
सविस्तार वर्णन कीजिए। या। स्पंज करना किसे कहते हैं? रोगी का कब और क्यों स्पंज किया जाता है? [2009, 13]
या
स्पंज करना क्या है? स्पंज करने की विधि लिखिए। [2009, 10, 12, 18]
या
स्पंज कराने से क्या तात्पर्य है? स्पंज कराते समय क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए? [2013, 16, 17]
या
किस प्रकार के रोगी को स्पंज कराते हैं? इसके लाभ लिखिए। [2010]
उत्तर:
रोगी को स्नान कराना

शरीर से पसीने आदि की दुर्गन्ध दूर करने के लिए त्वचा की सफाई करना (UPBoardSolutions.com) आवश्यक है। यदि रोगी चलने-फिरने योग्य है, तो उसके स्नानघर जाने से पूर्व निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना
आवश्यक है

  1.  रोगी को स्नान कराने से पूर्व चिकित्सक से परामर्श अवश्य ही कर लेना चाहिए।
  2. रोगी के वस्त्र, तौलिया, साबुन व तेल इत्यादि स्नानघर में तैयार रखे होने चाहिए।
  3. स्नानघर का दरवाजा अन्दर की ओर से बन्द नहीं किया जाना चाहिए।
  4.  रोगी को अधिक समय तक स्नान करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
  5.  रोगी के स्नान करते समय परिचारिका को स्नानघर के पास ही रहना चाहिए।
  6. स्नान कराने से पूर्व ही परिचारिका को रोगी के दाँत व नाखून आदि साफ कर देने चाहिए।
  7. रोगी यदि स्नानघर में जाने योग्य न हो तो उसे कमरे में ही स्नान करा देना उचित रहता है।
  8. रोगी में यदि दुर्बलता अधिक है, तो परिचारिका को उसे स्नान कराने में सहायता करनी चाहिए।

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रोगी को स्पंज कराना

कुछ दशाओं में रोगग्रस्त अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को खुले पानी से स्नान कराना उचित नहीं माना जाता। इन दशाओं में व्यक्ति की शारीरिक सफाई के लिए स्नान के विकल्प के रूप में एक अन्य उपाय को अपनाया जाता है। शारीरिक सफाई के इस उपाय को स्पंज कराना कहा जाता है। इसके अतिरिक्त कभी-कभी तीव्र ज्वर की दशा में भी शरीर के तापमान को कम करने के लिए ठण्डे जल से स्पंज कराया जाता है। रोगी को स्पंज कराने का कार्य परिचारिका अथवा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है। स्पंज कराने की विधियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. सामान्य विधि:
इसमें आवश्यकतानुसार ठण्डा या गर्म पानी प्रयोग में लाया जाता है। यदि साबुन का प्रयोग करना है, तो उसे रोगी के तौलिए पर ही लगाना होता है। स्पंज कराने के लिए तौलिए को पानी में भिगोकर निचोड़ लिया जाता है तथा इससे धीरे-धीरे रोगी के शरीर की सफाई की जाती है। स्पंज का प्रारम्भ रोगी के चेहरे से किया जाता है। बाद में गर्दन, बाँह, हाथ-पैर आदि को क्रमिक रूप से स्पंज करना चाहिए। इसके बाद रोगी के शरीर पर कोई अच्छा पाउडर छिड़ककर धुले हुए वस्त्र पहना देने चाहिए। स्पंज कराने के बाद रोगी का बिस्तर भली-भाँति साफ कर देना चाहिए। रोगी को
पीने के लिए कोई गर्म पेय देना चाहिए। स्पंज कराने के तुर’ बाद रोगी को कोई उपयुक्त कपड़ा ओढ़ाना चाहिए। अन्त में रोगी को आराम करने के लिए अथवा सो जाने के लिए निर्देश करना उपयुक्त रहता है।

2. ठण्डे पानी से स्पंज कराना:
यह विधि रोगी के शरीर का तापमान अधिक होने की अवस्था में प्रयोग में लाई जाती है। रोगी के शरीर का ताप कम करने के लिए उसके शरीर को ठण्डे पानी में भीगे तौलिए से कई बार पोंछा जाता है। इस कार्य को करते समय रोगी के नीचे रबर-शीट अथवा मोमजामे का टुकड़ा बिछाया जाता है। रोगी के लगभग सभी कपड़ों को उतारकर उसे कम्बल ओढ़ा दिया जाता है और तौलिए को भली-भाँति निचोड़कर रोगी के शरीर पर फैलाकर (UPBoardSolutions.com) ढक देना चाहिए। यह तौलिया थोड़ी देर में गर्म हो जाता है और फिर इसे उसी प्रकार ठण्डे पानी में भिगोकर तथा निचोड़कर यही क्रिया अपनानी चाहिए। यह क्रिया रोगी के शरीर का ताप सामान्य होने तक दोहराई जाती है। अब रोगी के शरीर को स्वच्छ एवं सूखे तौलिए से पोंछकर कम्बल से ढक देते हैं। अब बिस्तर को भली-भाँति साफ एवं व्यवस्थित कर रोगी को आराम करने एवं सोने का निर्देश देना चाहिए।

प्रश्न 2:
ठण्डी सेंक कब दी जाती है? ठण्डी सेंक देने की विधियाँ बताइए। [2008, 09, 10, 11, 16]
या
बर्फ की थैली क्या है? बर्फ की थैली का प्रयोग करते समय क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए ? [2007]
या
बर्फ की टोपी का प्रयोग कब, क्यों और कैसे करते हैं? इससे किस प्रकार के रोगी को आराम मिलता है? समझाइए। [2007, 12, 13, 14, 15]
उत्तर:
ठण्डी सेंक व उसकी विधियाँ

तीव्र ज्वर की अवस्था में शरीर के तापमान को सामान्य स्तर पर लाने के दृष्टिकोण से ठण्डी सेंक का अत्यधिक महत्त्व है। इसके लिए ठण्डी पट्टियों एवं बर्फ की थैली का प्रयोग निम्नलिखित रूप से किया जाता है

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(1) ठण्डा स्पंज:
इसके लिए सामान्य रूप से ठण्डे पानी जिसका तापक्रम 10-12° सेण्टीग्रेड होता है, का प्रयोग किया जाता है। पट्टियों अथवा तौलिए को इस पानी में भिगोकर व निचोड़कर लगभग 20 मिनट तक रोगी का स्पंज किया जाता है। स्पंज करते समय रोगी की नाड़ी तथा तापमान का विशेष ध्यान रखा जाता है।

(2) ठण्डी पट्टी:
इस विधि में रोगी के शरीर के चारों ओर ठण्डे पानी में भिगोकर निचोड़ा हुआ कपड़ा लपेट दिया जाता है। चिकित्सक के परामर्श के अनुसार रोगी को इस अवस्था में 15 से 30 मिनट तक रखा जाता है। इसके बाद शीघ्र ही रोगी के शरीर को सुखाकर तथा उसे स्वच्छ कपड़े पहनाकर बिस्तर पर लिटा दिया जाता है। ठण्डी पट्टी के प्रयोग के पहले और बाद में शरीर का तापमान नोट कर लेना आवश्यक है।

(3) बर्फ की थैली:
इस थैली में बर्फ भरकर तथा उसका मुँह बन्द कर उसके अन्दर की हवा बाहर (UPBoardSolutions.com) निकाल दी जाती है। थैली में बर्फ को लगभग आधा भरकर उसमें एक चम्मच नमक मिला देने से बर्फ । अधिक देर में पिघलती है। थैली के बीच में लिण्ट का टुकड़ा रख देने पर यह नमी को सोखता रहता है।
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 22 रोगी को स्पंज कराना गर्म सेंक, बफारा देना, बर्फ की टोपी का प्रयोग
इससे ठण्ड से उत्पन्न हुई सनसनी कम हो जाती है। बर्फ के पूरी तरह से पिघलने के पूर्व ही थैली की बर्फ । बदल दी जाती है। बर्फ की थैली का प्रयोग प्रायः माथे वे सिर में ठण्डक पहुँचाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए, क्योंकि इसका अधिक समय तक प्रयोग स्नायुओं को हानि पहुँचा सकता है। कुछ दशाओं में शरीर से होने वाले रक्त स्राव को रोकने के लिए बर्फ की टोपी या थैली का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3:
गर्म सेक से क्या लाभ होता है? गर्म सेंक की विधियाँ लिखिए। [2008, 09, 10, 11, 16]
या
गर्म पानी की बोतल के प्रयोग की विधि लिखिए।
या
सेंक से आप क्या समझते हैं? गर्म सेंक की विभिन्न विधियाँ लिखिए। [2008]
या
सेंक क्या है? इसका प्ररण कब और क्यों करते हैं? [2011]
या
गर्म पानी की थैली की उपयोगिता लिखिए। [2015]
उत्तर:
गर्म सेंक व उसकी विधियाँ

गर्म पानी की बोतल द्वारा सेंक अथवा शुष्क गर्म सेंक वात रोग, पेट, गले, दाँत आदि के दर्द तथा क्षय रोग में लाभप्रद रहती है। गर्म सेंक की प्रचलित विधियाँ निम्नलिखित हैं

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(1) गर्म पानी की सेक:
इस विधि में एक तौलिया, मलमल के टुकड़े, चिलमची व गर्म पानी की केतली आदि की आवश्यकता पड़ती है। कपड़े को तौलिये में लपेटकर चिलमची के ऊपर रख देते हैं और तौलिये पर गर्म पानी डालते हैं। अब तौलिये को दोनों सिरों से पकड़कर निचोड़ते हैं। अब मलमल के कपड़े को निकालकर हाथ पर रखकर उसकी गर्माहट का अनुमान लगाते हैं। अब इस कपड़े से किसी भी अंग की सिकाई की जा सकती है। यह सेंक रोगी को 10-15 मिनट तक दी (UPBoardSolutions.com) जा सकती है। सेंक देते समय रोगी की हवा से रक्षा करना अति आवश्यक है।
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(2) शुष्क सेंक देना:
यह निम्नलिखित विधियों द्वारा दी जा सकती है

(अ) गर्म पानी की बोतल द्वारा:
यह रबर की एक थैली होती है। सूजन आने, या पीड़ा होने पर गर्म पानी की बोतल द्वारा सिकाई करना प्राय: लाभदायक रहता है। बोतल में गर्म पानी भरकर उसकी हवा निकालकर उसका मुँह बन्द कर देते हैं। पानी अधिक गर्म होने पर बोतल के चारों ओर तौलिया लपेटकर सिकाई की जाती है। गर्म पानी की बोतल से सिकाई करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. गर्म पानी से बोतल का केवल दो-तिहाई भाग ही भरा जाना चाहिए।
  2. थैली का मुँह डाट द्वारा कसकर बन्द किया जाना चाहिए, क्योंकि इसके खुल जाने से रोगी के जल जाने का भय रहता है।
  3. थैली के चारों ओर फलालेन का कपड़ा लपेट देने से यह अधिक समय तक गर्म बनी रहती है।
  4. किसी अंग पर बोतल को अधिक देर तक न रखकर इसे खिसकाते रहना चाहिए।

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(ब) रेत की थैली द्वारा:
रेत को ट्रे में रखकर आग पर गर्म किया जाता है। अब इसे थैली में भरकर किसी भी अंग की सिकाई की जा सकती है। रेत में गर्मी अधिक देर तक टिकती है; अतः इसका प्रयोग सूजन व दर्द दूर करने के लिए अधिक लाभकारी है।

(स) सामान्य शुष्क सेंक:
इस विधि में रूई यो तह किए कपड़े आदि को किसी तवे पर सीधे गर्म कर रोगी के पीड़ित अंगों की सिकाई की जाती है।

प्रश्न 4:
टिप्पणी लिखिए-बफारा या भाप लेना।
या
बफारा कब, कैसे और क्यों लेना चाहिए ? इससे किस प्रकार के रोगी को आराम मिलता है? [2009, 13]
उत्तर:
बफारा लेना:
बारा लेना, भाप से सिकाई करने का एक तरीका है। गले के रोग; जैसेगले का दर्द व टॉन्सिल्स: शरीर के रोग; जैसे—गठिया बाय आदि; में बफारा लेना लाभप्रद रहता है। इसके लिए अग्रलिखित विधियाँ अपनायी जाती हैं

  1. यदि बफारे में कोई औषधि मिलानी है, तो इसे खौलते जल में डाल दिया जाता है अन्यथा सादा बफारा ही लिया जाता है।
  2.  किसी छोटे मुँह के बर्तन में खौलता जल डालकर उसे किसी ऊँची मेज अथवा स्टूल पर रख बफारा लिया जाता है।
  3. सिर पर एक बड़ा तौलिः डाल दिया जाता है। यह रोगी के (UPBoardSolutions.com) सिर के साथ बर्तन इत्यादि को भी ढक लेता है।
  4. अब धीरे-धीरे श्वास लेने पर भाप श्वसन नली में प्रवेश करती रहती है तथा सेंक देती रहती है।
  5. इसी प्रकार अन्य अंगों यहाँ तक कि पूरे शरीर को भी बफारा दिया जा सकता है।

मुँह पर बफारा लेने के पश्चात् अथवा अन्य किसी अंग पर बफारा लेने के बाद मुंह अथवा अन्य अंग को कुछ समय तक ढककर रखना चाहिए जिससे कि इसे हवा न लगने पाए।

प्रश्न 5:
पुल्टिस किस काम आती है? पुल्टिस कितने प्रकार की होती है?
या
पुल्टिस क्या है ? दो प्रकार की पुल्टिस बनाने की विधि लिखिए। [2009, 12]
या
पुल्टिस का प्रयोग कब और क्यों करते हैं? दो प्रकार की पुल्टिस बनाने की विधियों का वर्णन कीजिए। [2011, 14, 16]
उत्तर:
पुल्टिस का प्रयोग

गर्म सेक को एक रूप या प्रकार पुल्टिस बांधना भी है। पुल्टिस के प्रयोग से गुम चोट व मोच की पीड़ा कम होती है तथा सूजन में लाभ होता है। कई बार फोड़े व फुन्सियों के समय पर न पकने से भयंकर पीड़ा होती है। पुल्टिस का प्रयोग करने पर फोड़े व फुन्सियाँ मुलायम हो जाती हैं, ठीक प्रकार से पक जाती हैं तथा उनके फूटकर पस निकल जाने पर पीड़ा दूर हो जाती है। इस प्रकार पुल्टिस घावों को भरने व फोड़े-फुन्सियों को पकाने के लिए अति उत्तम है।

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पुल्टिस के प्रकार
(1) आटे की पुल्टिस:
इसके लिए दो चम्मच आटा, दो चम्मच सरसों का तेल तथा दो चम्मच पानी की आवश्यकता होती है। पानी को एक चौड़े बर्तन में उबालकर उसमें आटे व तेल को डाल दिया जाता है। गाढ़ा होने तक इसे चम्मच से चलाते रहते हैं। गाढ़ा होने पर पुल्टिस तैयार हो जाती है। इसका निम्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है

  1.  पुल्टिस लगाए जाने वाले अंग को भली प्रकार साफ कर लेना चाहिए।
  2. एक चौड़े कपड़े की पट्टी को समतल स्थान पर फैलाना चाहिए।
  3.  एक चम्मच द्वारा गर्म पुल्टिस पट्टी के बीच में फैलानी चाहिए।
  4. पट्टी का शेष भाग मोड़कर पुल्टिस को ढक देना चाहिए।
  5. पुल्टिस के उपयुक्त ताप का अनुमान लगाकर इसे प्रभावित अंग पर बाँध देना चाहिए।
  6.  ठण्डी पुल्टिस का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  7. एक बार प्रयोग में लाई गई पुल्टिस का दोबारा प्रयोग नहीं करना चाहिए।

(2) प्याज की पुल्टिस:
इसके लिए एक गाँठ प्याज, कुछ नमक व दो चम्मच सरसों के तेल की आवश्यकता होती है। प्याज को सिल पर महीन पीस लिया जाता है। सरसों के तेल को किसी चौड़े बर्तन में गर्म कर लेते हैं। इसमें पिसी हुई प्याज व नमक को मिला दिया जाता है। गाढ़ा होने तक तेल को गर्म करते हुए चम्मच से चलाते रहते हैं। इसके बाद इसे आग से उतारकर आटे की पुल्टिस की तरह रोगी के अंग पर सावधानीपूर्वक बाँध देते हैं। प्याज की पुल्टिस घावों को भरने व फोड़े-फुन्सियों को पकाने में प्रयुक्त की जाती है।

(3) राई की पुल्टिस:
इसका प्रयोग प्राय: वयस्कों के लिए किया जाता है। यह बहुत गर्म होती है तथा इससे फोड़े शीघ्र फूट जाते हैं। इसे बनाने के लिए प्रायः एक भाग राई, पाँच भाग अलसी का, आटा तथा दो बड़े चम्मच पानी की आवश्यकता पड़ती है। राई को पीसकर अलसी के आटे में मिला लें। अब उबलते पानी को इस पर धीरे-धीरे डालते हुए चम्मच से मिलाते रहें। गाढ़ा पेस्ट होने पर पुल्टिस तैयार हो जाती है। पुल्टिस को प्रयोग करते समय 5-10 मिनट के बाद पुल्टिस का (UPBoardSolutions.com) कोना उठाकर देख लेना चाहिए कि कहीं चमड़ी अधिक लाल तो नहीं हो गई है; यदि आवश्यक समझे तो पुल्टिस को हटा देना चाहिए। राई की पुल्टिस को चार-चार घण्टे बाद लगाना चाहिए। पुल्टिस के ठण्डी होने पर इसे हटाकर घाव को ऊन से ढक देते हैं।

(4) अलसी की पुल्टिस:
इसके लिए अलसी का आटा, जैतून का तेल, चिलमची, खौलते हुए पानी की केतली, पुरानी जाली का टुकड़ा, ग्रीस-प्रूफ कागज, रूई, पट्टी, बहुपुच्छ पट्टियाँ, मेज तथा दो गर्म की हुई तश्तरियों की आवश्यकता होती है।
खौलते पानी को गर्म की गयी एक तामचीनी की कटोरी में डालकर अलसी के आटे को इसमें धीरे-धीरे मिलाना चाहिए। मिलाते समय इसे चम्मच से हिलाते रहना चाहिए। गाढ़ा पेस्ट बन जाने पर इसे मेज पर रखे लिएट के कपड़े पर एक समान मोटी तह के रूप में बिछा देना चाहिए। लिण्ट के सिरों को अलसी की तह पर मोड़ देना चाहिए। इस पर अब थोड़ा-सा जैतून का तेल डाल देना चाहिए तथा पुल्टिस को दोहरा करके व गर्म तश्तरियों के बीच में रखकर रोगी के बिस्तर के पास ले जाना चाहिए। इस गर्म पुल्टिस को रोगी के प्रभावित अंग पर लगाया जाता है।

(5) रोटी की पुल्टिस:
रोटी के टुकड़े को थैली में रखकर उबलते हुए पानी के प्याले में डाल दिया जाता है। लगभग पन्द्रह मिनट पश्चात् थैली को चपटा फैलाकर तथा निचोड़कर घाव पर लगाते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
राई का पलस्तर कैसे बनता है? इसका क्या उपयोग है?
उत्तर:
राई का पलस्तर बनाने के लिए आटे व राई की कुचलन को समान मात्रा में लेकर (UPBoardSolutions.com) गर्म पानी में लेई के समान बना लिया जाता है। इसे किसी कपड़े या कागज के टुकड़े पर समान रूप से फैलाकर तह के रूप में बिछा दिया जाता है। इसे सूजन वाले भाग पर लगाने से सूजन कम हो जाती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सामान्य दशाओं में स्पंज का उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:
सामान्य दशाओं में स्पंज का उद्देश्य शरीर की सफाई होती है। जब रोगी को स्नान कराना सम्भव न हो, तब स्पंज किया जाता है।

प्रश्न 2:
स्पंज करने से क्या लाभ हैं? [2010]
उत्तर:
सामान्य रूप से स्पंज द्वारा शरीर की सफाई की जाती है। यदि तीव्र ज्वर हो, तो ठण्डे पानी से स्पंज करके ज्वर को नियन्त्रित किया जाता है।

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प्रश्न 3:
गर्म सेंक क्या है? यह कब दी जाती है? इसकी क्या उपयोगिता है? [2012, 14, 17]
उत्तर:
शरीर के किसी कष्ट के निवारण के लिए सम्बन्धित अंग को ताप प्रदान करना ही गर्म सेंक कहलाता है। वात रोग, पेट दर्द, गले में दर्द तथा दाँत में दर्द के निवारण में गर्म सेक उपयोगी होता है। इसके अतिरिक्त गुम चोट, मोच, सूजन तथा फोड़े-फुन्सी को पकाने में भी गर्म सेंक उपयोगी है।

प्रश्न 4:
गर्म सेंक की विभिन्न विधियाँ बताइए। [2009, 10, 11]
या
गर्म सेंक की दो विधियों का नाम लिखिए। [2009]
उत्तर:
गर्म सेंक की मुख्य विधियाँ हैं-शुष्क गर्म सेंक, पुल्टिस बाँधना, गर्म पानी की बोतल का प्रयोग करना, बफारा लेना तथा गरारे करना।

प्रश्न 5:
गरारा करने के लिए पानी में क्या विशेषताएँ होनी च.हिए?
उत्तर:
गरारा करने का पानी गर्म होना चाहिए तथा इसमें नमक या फिटकरी अथवा लाल दवा मिलाना प्रभावकारी रहता है।

प्रश्न 6:
गरारा करने से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
गरारा करने से गले में दर्द;-टॉन्सिल्स व जुकाम में लाभ होता है।

प्रश्न 7:
जलन में आराम पहुँचाने वाली औषधियाँ कौन-सी है।
उत्तर:
जलन दूर करने में प्रयुक्त होने वाली सामान्य औषधियाँ हैं

  1.  आयोडीन,
  2.  राई का पत्ता,
  3.  राई का पलस्तर तथा
  4.  मरहम

प्रश्न 8:
पुल्टिस की उपयोगिता लिखिए। या पुल्टिस का प्रयोग कब किया जाता है? [2018]
उत्तर:
शरीर के किसी अंग को गरम सेंक देने के लिए पुल्टिस का प्रयोग किया (UPBoardSolutions.com) जाता है। पुल्टिस बाँधने से दर्द में आराम मिलता है, सूजन घटती है तथा फोड़े-फुन्सी शीघ्र पक जाते हैं एवं मवाद निकल जाती है।

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प्रश्न 9:
पुल्टिस बनाने के लिए सामान्यतः किन-किन वस्तुओं को उपयोग में लाया जाता है?
उत्तर:
पुल्टिस बनाने के लिए प्रायः आटा, अलसी, राई, प्याज, सरसों का तेल, नमक व गर्म पानी इत्यादि वस्तुएँ काम में लाई जाती हैं।

प्रश्न 10:
बफारे का प्रयोग कब किया जाता है?
उत्तर:
बफारे का प्रयोग प्राय: गले में सूजन, दर्द, टॉन्सिल्स व श्वास मार्ग में बलगम जमा होने तथा गठिया आदि रोग में किया जाता है।

प्रश्न 11:
बर्फ की टोपी व गर्म पानी की बोतल किस पदार्थ की बनी होती हैं?
उत्तर:
ये दोनों वस्तुएँ प्रायः रबर की बनी होती हैं।

प्रश्न 12:
ठण्डी सेंक कब दी जाती है? [2008, 10, 11, 12]
या
ठण्डी सेंक कब दी जाती है? ठण्डी सेंक देने की विधियाँ भी बताइए।
उत्तर:
(1) तीव्र ज्वर की अवस्था में शरीर का तापमान सामान्य करने के ध्येय से।
(2) आन्तरिक रक्तस्राव को रोकने के लिए तथा माथे व सिर को ठण्डक पहुँचाने के लिए।
ठण्डी सेंक देने की विधियाँ-ठण्डा स्पंज, ठण्डी पट्टी और बर्फ की थैली।

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प्रश्न 13:
बर्फ की टोपी का प्रयोग कब किया जाता है? [2008, 09]
उत्तर:
तीव्र ज्वर की अवस्था में रुधिर का बहाव रोकने के लिए तथा सिर (UPBoardSolutions.com) में चोट लगने के समय बर्फ की टोपी का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 14:
रिंग कुशन क्या है? इसकी उपयोगिता लिखिए। [2015]
या
रिंग कुशन का प्रयोग कब करते हैं? [2009, 11, 13, 15]
या
रिंग कुशन का प्रयोग कब और कैसे करते हैं? [2010, 16]
उत्तर:
रिंग कुशन का प्रयोग शैय्याघाव की दशा में करते हैं। घाव वाले स्थान पर हवा भरकर रिंग कुशन रखते हैं। इससे घाव को बिस्तर की रगड़ नहीं लगती तथा वह धीरे-धीरे ठीक हो जाता है।

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प्रश्न 15:
ठण्डी और गर्म सेंक में अन्तर लिखिए। [2016]
उत्तर:
ठण्डी सेंक मुख्य रूप से रक्त-स्राव को रोकने, सूजन एवं दर्द को घटाने तथा तेज बुखार को कम करने में दी जाती है। जबकि गर्म सेंक वात रोग, पेट, गले, दाँत आदि के दर्द तथा रोग में दी जाती है। ठण्डी सेंक में बर्फ की थैली जबकि गर्म सेंक में रबड़ की बोतल (UPBoardSolutions.com) में गर्म पानी का प्रयोग किया जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न:
निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. तीव्र ज्वर की अवस्था में रोगी को लाभप्रद रहती है
(क) ठण्डी सेक
(ख) गर्म सेक
(ग) बफारा
(घ) पुल्टिस

2. बर्फ की टोपी का प्रयोग किया जाता है [2009, 13, 14, 15]
(क) तीव्र ज्वर में
(ख) तीव्र दर्द में
(ग) अधिक रक्त दाब में
(घ) चाहे जब

3. बर्फ की टोपी में बर्फ को अधिक समय तक न पिघलने देने के लिए प्रयोग करते हैं
(क) नमक
(ख) सिरका
(ग) कपड़ा
(घ) लाल दवा

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4. सेंक करने से क्या लाभ होता है?
(क) ज्वर घटता है
(ख) सूजन घटती है
(ग) ठण्डक पहुँचती है
(घ) कोई लाभ नहीं होता

5. आन्तरिक रक्तस्राव में रोगी को क्या देते हैं?
(क) गर्म सेंक
(ख) ठण्डी सेंक
(ग) बफारा
(घ) ये तीनों

6. पुल्टिस लगाने से क्या लाभ होता है? [2011, 13]
(क) दर्द को कम करता है
(ख) सूजन बढ़ाता है
(ग) ठण्डक पहुँचाता है
(घ) इनमें से कोई नहीं

7. गुम चोट का दर्द कम करने के लिए बाँधी जाती है
(क) पट्टी
(ख) पुल्टिस
(ग) ठण्डी पट्टी
(घ) मोटा कपड़ा

8. गर्म सेंक किन अवस्थाओं में दी जाती है ?
(क) तीव्र दर्द में
(ख) तीव्र ज्वर में
(ग) स्पंज करते समय
(घ) इनमें से कोई नहीं

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उत्तर:
1. (क) ठण्डी सेक,
2. (क) तीव्र ज्वर में,
3. (क) नमक,
4. (ख) सूजन घटती है,
5. (ख) ठण्डी सेंक,
6. (क) दर्द को कम करता है,
7. (ख) पुल्टिस,
8. (क) तीव्र दर्द में

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UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 2 पाषाण काल

UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 2 पाषाण काल (आखेटक, संग्राहक एवं उत्पादक मानव)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 6 History. Here we have given UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 2 पाषाण काल (आखेटक, संग्राहक एवं उत्पादक मानव)

अभ्यास

प्रश्न 1.
रिक्त स्थान भरिए (रिक्त स्थान भरकर) –

(क) आग की खोज पुरापाषाण युग में हुई।
(ख) पुरापाषाण कालीन पत्थर के औजार बेडौल एवं भौड़ी आकृति वाले थे।
(ग) पहिए का आविष्कार नव पाषाण काल में हुआ।

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प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए –

(क) पाषाण युग को किसकी विशेषताओं के आधार पर बाँटा गया है ?
उत्तर :
पाषाण अर्थात पत्थर, काल अर्थात समय। मानव ने अपनी रक्षा और भूख मिटाने के लिए सर्वप्रथम पत्थर के औजारों का ही सबसे अधिक उपयोग किया, इसलिए इस युग को पाषाण काल कहते हैं। पत्थर से बने औजारों में समय-समय पर परिवर्तन हुए हैं, इसी आधार पर पाषाण युग को तीन (UPBoardSolutions.com) भागों में बाँटा गया है- पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल और नवपाषाण काल।

(ख) मानव ने आग जलाना कैसे सीखा?
उत्तर :
प्राचीन मानव औजार बनाने के लिए एक पत्थर पर दूसरे पत्थर से चोट मारते थे। इस प्रक्रिया में पत्थरों के आपस में टकराने पर चिनगारी निकली होगी और इस प्रकार मानव ने आग जलाना सीख लिया होगा।

(ग) पुरातत्वविद् नवपाषाण काल का प्रारम्भ कब से मानते हैं?
उत्तर :
पुरातत्वविद् नवपाषाण काल का आरंभ तब से मानते हैं, जब से मानव ने भली-भाँति खेती करना प्रारंभ कर दिया।

(घ) पाषाण युगीन मानव अपने औजार किन-किन वस्तुओं से बनाते थे?
उत्तर :
पाषाणयुगीन मानव अपने औजार प्रारम्भ में पत्थरों से बनाते थे। बाद में वे ताँबे, जस्ते, काँसे आदि धातुओं के प्रयोग से अपने औजार बनाने लगे।

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(ड.) प्रारम्भिक मानव अपना भोजन किस प्रकार प्राप्त करते थे?
उत्तर :
प्रारंभिक मानव पत्थर से बने औजारों से पशुओं का शिकार कर अपना भोजन प्राप्त करते थे।

(च) मध्यपाषाण काल में हुए प्राकृतिक परिवर्तन का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
मध्यपाषाण काल में प्रकृति में अनेक परिवर्तन हुए। जिसका प्रभाव मानव जीवन पर पड़ा। नई परिस्थिति से तालमेल बैठाने के लिए उसने छोटे उपकरण बनाना प्रारंभ कर किया जलवायु पुहले की अपेक्षा गर्म हुई तो पृथ्वी की उर्वरा शक्ति बढ़ी और घास- व वनस्पतियों के मैदान विकसित हुए। (UPBoardSolutions.com) घास को खानेवाले छोटे जानवर जैसे हिरण, खरगोश, भेड़ बकरी पैदा हुए। मानव इन घासों को एकत्र करने लगी। इन घासों में कई आज के अनाजों की पूर्वज थीं। इनका प्रयोग मानव ने भोजन में किया। इस प्रकार मध्यपाषाण युग में मानव संग्राहक बन गया और उसने कुत्ता पालना शुरू कर दिया।

प्रश्न 3.
सही कथन के आगे सही (✓) का और गलत कथन के आगे गलत (✗) का निशान लगाएँ (निशान लगाकर)

(क) मानव ने अपनी जरूरतों के लिए पत्थर के औजारों का निर्माण नहीं किया। (✗)
(ख) पाषाण युग को तीन भागों में बाँटा गया है। (✓)
(ग) मध्य पाषाण कालीन पत्थर के औजार आकार में बड़े थे। (✗)
(घ) कुत्ता मानव का प्रथम पालतू पशु है। (✓)
(छ) हत्थेदार कुल्हाड़ी एवं हँसिया नवपाषाण काल के महत्त्वपूर्ण औजार नहीं थे। (✗)
(च) मानव ने ताँबे व जस्ते को मिलाकर मिश्रित धातु काँसा बनाना सीख लिया। (✓)

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प्रश्न 4.
मानव ने इधर-उधर घूमने के बजाय एक ही स्थान पर रहना प्रारम्भ कर दिया क्योंकि –

(क) उन्हें एक ही स्थान पर जरूरत भर का पानी उपलब्ध था।
(ख) उनके पशुओं के लिये चारा पर्याप्त था।
(ग) उन्होंने खेती करना शुरू कर दिया था।
(घ) जंगली जानवर पर्याप्त मात्रा में मिलने लगे।

UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 2 पाषाण काल (आखेटक, संग्राहक एवं उत्पादक मानव) 1

उपर्युक्त में जो सही हो उससे सम्बन्धित गोले को काला करिए।

प्रोजेक्ट कार्य –
नोट – विद्यार्थी स्वयं करें।

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