UP Board Solutions for Class 7 Maths Chapter 12 क्षेत्रमिति (मेंसुरेशन)

UP Board Solutions for Class 7 Maths Chapter 12 क्षेत्रमिति ( मेंसुरेशन)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 7 Maths. Here we have given UP Board Solutions for Class 7 Maths Chapter 12 क्षेत्रमिति ( मेंसुरेशन).

अभ्यास 12 (a)

प्रश्न 1.
निम्नांकित आकृतियों (UPBoardSolutions.com) के परिमाप ज्ञात कीजिए:
UP Board Solutions for Class 7 Maths Chapter 12 क्षेत्रमिति (मेंसुरेशन) 1

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हल :
(i)
आयत का परिमाप = 2 (ले० + चौ०)
= 2 (6 + 3) = 2 × 9 = 18 सेमी

(ii)
वर्ग का परिमाप = 4 × भुजा
= 4 × 10 = 40 मिमी

(iii) आयत का परिमाप = 2 (ल० + चौ०)
= 2 (10 + 1.5) = 2 × 11.5 = 23.0 मी

(iv) आकृति का परिमाप = 5 + 1.2 + 1.5 + 1.0 + 2.0 + 1.0 + 1.5 + 1.2
= 14.4 मी (UPBoardSolutions.com)

प्रश्न 2.
प्रश्न संख्या 1 में दी गई आकृतियों (UPBoardSolutions.com) के क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
हल :

  1. आयत का क्षेत्रफल = ल० × चौ० = 6 × 3 = 18 सेमी2
  2. वर्ग का क्षेत्रफल = भुजा × भुजा = 10 × 10 = 100 मिमी2
  3. आयत का क्षेत्रफल = ल० × चौ० = 10 × 1.5 = 15 मी2
  4. दी हुई आकृति का क्षेत्रफल = 5 × 1.2 + 1.0 × 2 = 6 + 2 = 8 मी2

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित सारणी को (UPBoardSolutions.com) पूरा कीजिए: (पूरा करके)
उत्तर :
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प्रश्न 4.
निशा के विद्यालय में खेल के मैदान की लम्बाई (UPBoardSolutions.com) 60 मीटर, चौड़ाई 50 मीटर है। खेल के मैदान का क्षेत्रफल एअर में बताइए।
हल :
आयत का क्षेत्रफल = (60 × 50) मीटर
= 3000 मी2
100 मी2 = 1 एअर
3000 मी2 = 30 एअर
अतः खेल के मैदान का क्षेत्रफल = 30 एअर

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प्रश्न 5.
अविनाश के कृषि फार्म की लम्बाई 240 मीटर (UPBoardSolutions.com) और चौड़ाई 110 मीटर है। कृषि फार्म का क्षेत्रफल हेक्टेयर में ज्ञात कीजिए।
हल :
फार्म का क्षेत्रफल = ल० × चौ०
= 240 × 110 = 26400 मी2
10000 मी2 = 1 हेक्टेयर
26400 मी2 = 2.64 हेक्टेयर
अतः कृषि फार्म का क्षेत्रफल = 2.64 हेक्टेयर

प्रश्न 6.
एक आयताकार मैदान का क्षेत्रफल 0.5 हेक्टेयर है। (UPBoardSolutions.com) यदि इस आयताकार मैदान की एक भुजा 125 मीटर है, तो दूसरी भुजा ज्ञात कीजिए।
हल :
मैदान का क्षेत्रफल = 0.5 हेक्टेयर = 5000 मी2
मैदान की एक भुजा = 125 मीटर
मैदान की दूसरी भुजा = [latex]\frac { 5000 }{ 125 }[/latex] = 40 मी
अतः मैदान की दूसरी भुजा की लम्बाई = 40 मी

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प्रश्न 7.
एक वर्गाकार टाइल की एक भुजा 12 सेमी है। टाइल को (UPBoardSolutions.com) क्षेत्रफल और परिमाप ज्ञात कीजिए।
हल :
वर्गाकार टाइल की एक भुजा = 12 सेमी
टाइल का क्षेत्रफल = 12 × 12 = 144 सेमी2
टाइल का परिमाप = 4 × 12 = 48 सेमी

प्रश्न 8.
एक आयताकार खेत की लम्बाई और चौड़ाई में 3:2 का अनुपात है। (UPBoardSolutions.com) खेत के चारों ओर मेड़ बनवाने का खर्च र 1.50 प्रति मीटर की दर से बताइए जबकि खेत का क्षेत्रफल 1.5 हेक्टेयर है।
हल :
माना खेत की लम्बाई = 3 × मी
तथा खेत की चौड़ाई = 2 × मी
परन्तु खेत का क्षेत्रफल = 3x × 2x
. = 1.5 हेक्टेयर = 15000 मी2
2x2 × 3x = 15000
6x2 = 15000
x = [latex]\frac { 15000 }{ 6 }[/latex] = 2500
x = [latex]\sqrt { 2500 }[/latex] = 50 मी
खेत की लम्बाई = 3x = 3 × 50 = 150 मी
तथा खेत की चौड़ाई = 2x = 2 × 50 = 100 मी
खेत का परिमाप = 2 (150 + 100) मी = 2 × 250 = 500 मी
∵ 1 मी मेड़ बनवाने का खर्च = ₹ 1.50
∵ 500 मी मेड़ बनवाने का खर्च = ₹ 500 × 1.50 = 750

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प्रश्न 9.
एक कार्यालय के 15 दरवाजों पर खस की टट्टियाँ लगानी है। (UPBoardSolutions.com) प्रत्येक दरवाजों की लम्बाई 2.5 मीटर और चौड़ाई 1.2 मीटर है। यदि खस की टट्टी लगाने का खर्च खस के मूल्य सहित ₹ 105.0 प्रति वर्ग मीटर हो, तो कुल कितना खर्च पड़ेगी।
हल :
दरवाजे की लम्बाई = 2.5 मी
दरवाजे की चौड़ाई = 1.2 मी
दरवाजे का क्षेत्रफल = 2.5 × 1.2 = 3 मी2
15 दरवाजों का क्षेत्रफल = 15 × 3 = 45 मी2
∵ 1 मी2 खस लगवाने का खर्च = ₹ 105.0
∵ 45 मी2 खस लगवाने का खर्च = 45 × 105.0 = 4725

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अभ्यास 12 (b)

प्रश्न 1.
आकृति 12.10 में अन्दर वाले आयत की (UPBoardSolutions.com) लम्बाई और चौड़ाई ज्ञात कीजिए
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हल :
अन्दर वाले आयत की लम्बाई = (30 – 2 – 2) मी
= (30 – 4) मी = 26 मी
अन्दर वाले आयत की चौड़ाई = (20 – 2 – 2) मी
= (20 – 4) मी = 16 मी

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प्रश्न 2.
आकृति 12.11 में बाहर वाले आयत की लम्बाई (UPBoardSolutions.com) और चौड़ाई ज्ञात कीजिए
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हल :
बाहरी आयत की लम्बाई = (25 + 3 + 3) मी
= (25 + 6) मी = 31 मी।
बाहरी आयत की चौड़ाई = (15 + 3 + 3) मी
= (15 + 6) मी = 21 मी

प्रश्न 3.
आकृति 12.12 में बने छायांकित रास्ते की चौड़ाई 3 मीटर है। (UPBoardSolutions.com) बड़े आयत, और रास्ते का क्षेत्रफल ज्ञात करके रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (पूर्ति करके)
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उत्तर :

  • बड़े आयत का क्षेत्रफल 200 मीटर
  • छोटे आयत का क्षेत्रफल 56 मीटर [(20 – 3 – 3) × (1043 – 3)] = 56
  • छायांकित रास्ते का क्षेत्रफल 144 मीटर (200 – 56) = 144

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प्रश्न 4.
एक हॉल की लम्बाई 20 मीटर और चौड़ाई 8 मीटर है। (UPBoardSolutions.com) इसकी दीवारों के चारों ओर फर्श में 2 मीटर चौड़ाई का संगमरमर लगा हुआ है। अपनी अभ्यास पुस्तिका पर एक रफ चित्र बनाकर संगमरमर लगे फर्श का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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हल :
हॉल की लम्बाई = 20 मी
हॉल की चौड़ाई = 8 मी
संगमरमर रहित हॉल की लम्बाई = 20 – 2 – 2 = 16 मी
संगमरमर रहित हॉल की चौड़ाई = 8 – 2 – 2 = 4 मी
हॉल का क्षेत्रफल = 20 × 8 = 160 मी2
संगमरमर रहित हॉल का क्षेत्रफल = 16 × 4 = 64 मी
अतः संगमरमर लगे फर्श का क्षेत्रफल = (160 – 64) मी = 96 मी2

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प्रश्न 5.
एक वर्गाकार बगीचे के चारों ओर 50 सेमी चौड़ाई का मार्ग बना हुआ है। (UPBoardSolutions.com) बगीचे की लम्बाई मार्ग सहित 51 मीटर है। बगीचे का क्षेफफल ज्ञात कीजिए।
हल :
वर्गाकार बगीचे की मार्ग सहित लम्बाई = 51 मी
मार्ग की चौड़ाई = 50 सेमी = 50 मी
वर्गाकार बगीचे की लम्बाई = (51 – 50 – 50) मी
= 50 मी
वर्गाकार बगीचे का क्षेत्रफल = 50 × 50 = 2500 मी2

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अभ्यास 12 (c)

प्रश्न 1.
आकृति 12.14 में चित्रों में छायांकित (UPBoardSolutions.com) भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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हल :
(i)
छायांकित भाग का क्षेत्रफल = लंबाई वाले रास्ते का क्षेत्रफल + चौड़ाई वाले रास्ते की क्षेत्रफल — बीच वाले उभयनिष्ठ वर्गाकार रास्ते का क्षेत्रफल
= (50 मीटर × 5 मीटर) + (40 मीटर × 5 मीटर) – (5 मीटर × 5 मीटर)
= 250 मीटर + 200 मीटर2 – 25 मीटर = 425 मीटर2

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हल :
(ii)
छायांकित भाग का क्षेत्रफल = (UPBoardSolutions.com) लम्बाई वाले रास्ते का क्षेत्रफल + चौड़ाई वाले रास्ते का । क्षेत्रफल – बीच वाले उभयनिष्ठ वर्गाकार रास्ते का क्षेत्रफल
= (70 मीटर × 2 मीटर) + (35 मीटर × 2 मीटर) – (2 मीटर × 2 मीटर)
= 140 मीटर2 + 70 मीटर – 4 मीटर = 206 मीटर

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प्रश्न 2.
एक आयताकार प्रांगण (Lawu) की लम्बाई 6 (UPBoardSolutions.com) मीटर और चौड़ाई 5 मीटर है। इसके मध्य में 2 मीटर चौड़े दो मार्ग इस प्रकार स्थित हैं कि प्रत्येक एक दूसरे को समकोण पर काटते हैं। एक मार्ग की लम्बाई के समान्तर और दूसरा मार्ग चौड़ाई के समान्तर है। मार्ग पर ₹ 25 प्रति वर्ग मीटर की दर से कंकड़ कुटवाने का व्यय ज्ञात कीजिए।
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हल :
मार्ग ABCD का क्षेत्रफल = 5 × 2 = 10 वर्ग मी
मार्ग EFGH को क्षेत्रफल = 6 × 2 = 12 वर्ग मी
उभयनिष्ठ वर्ग IJKL (UPBoardSolutions.com) का क्षेत्रफल = 2 × 2 = 4 वर्ग मी।
मार्ग का क्षेत्रफल = (12 + 10 – 4): 18 वर्ग मी
अतः ₹ 25 प्रति वर्ग मीटर की दर से कंकड़
कुटवाने का व्यय = 18 × 25 = ₹ 450

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प्रश्न 3.
आकृति 12.15 चित्रों में छायांकित (UPBoardSolutions.com) भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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हल :
पूरे आयत का क्षेत्रफल = 20 × 15 = 300 वर्ग मी
छाया रहित भाग का क्षेत्रफल = 15 × (15 – 3 – 3)
= 15 × 9 = 135 वर्ग मी
छायांकित भाग का क्षेत्रफल = (300 – 135) वर्ग मी
= 165 वर्ग मी।

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प्रश्न 4.
आकृति 12.16 में उस भाग का क्षेत्रफल (UPBoardSolutions.com) ज्ञात कीजिए जो छायांकित नहीं है।
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हल :
छाया रहित भाग की लम्बाई = 75 मी – 10 मी= 65 मी
छाया रहित भाग की चौड़ाई = 24 मी – 10 मी = 14 मी
अतः छाया रहित भाग का क्षेत्रफल = लम्बाई × चौड़ाई
= 65 × 14 = 910 मी

प्रश्न 5.
आकृति 12.17 में एक राजकीय भवन का मानचित्र दिया गया है। (UPBoardSolutions.com) इसमें सड़क को बिन्दुदार भाग से दिखाया गया है। इस सड़क की चौड़ाई 2 मीटर है।
(i) सड़क का क्षेत्रफल बताइए।
(ii) सड़क पर ईंट बिछवाने का खर्च ₹ 45 प्रति वर्ग मीटर की दर से क्या होगा?
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हल :
(i)

पार्क की लम्बाई = (30 – 2 – 2) = 26 मी
पार्क की चौड़ाई = (20 – 15 – 2) = 3 मी
पार्क का क्षेत्रफल = लम्बाई × चौड़ाई
= 26 × 3 = 78 मी2
संड़क सहित पार्क का क्षेत्रफल = 30 × (20 – 15) = 30 × 5
= 150 मी2
अतः सड़क का (UPBoardSolutions.com) क्षेत्रफल = 150 – 78
= 72 मी2
हल :
(ii)
₹ 45 प्रति वर्ग मीटर की दर से
सड़क पर ईंट बिछवाने का खर्च = 72 × 45 = ₹ 3240

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प्रश्न 6.
अमरूद के एक बाग की लम्बाई 180 मीटर और चौड़ाई 120 मीटर है। (UPBoardSolutions.com) बाग के बीचों-बीच एक दूसरे को समकोण पर काटते हुए 3 मीटर चौड़े दो रास्ते हैं। रास्तों पर मिट्टी डलवाने का खर्च ₹ 12 प्रति मीटर की दर से ज्ञात कीजिए।
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हल :
बाग के रास्ते का कुल क्षेत्रफल = 180 × 3 + 120 × 3 – 3 × 3
= 540 + 360 – 9 = 891 मीटर2
अतः रास्तों पर ₹ 12 प्रति मीटर की
दर से मिट्टी डलवाने का खर्च = 891 x 12 = ₹ 10692.00

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प्रश्न 7.
किसी स्कूल के छात्रों ने फाई अभियान के लिए एक रैली निकाली। (UPBoardSolutions.com) रैली कुछ समय बाद स्कूल से कुछ दूरी पर बने एक आयताकार पार्क में पहुँचीं जिसकी लम्बाई 40 मीटर, तथा चौड़ाई 25 मीटर है। छात्र तीन समूहों में बँट गये और चित्र के अनुसार पार्क में 5 मीटर चौड़े दो परस्पर लम्बवत् रास्तों के क्रमशः ABEF तथा GCDH भागों को प्रतिम समूह ने PEHS तथा FQRG भागों को द्वितीय समूह ने और EFGH भाग को तृतीय समूह ने साफ किया। प्रत्येक समूह द्वारा साफ किये गये क्षेक्रल ज्ञात कीजिए।
हल :
प्रथम समूह द्वारा साफ किया गया क्षे० = आकृति ABEF तथा GCDH का क्षेत्रफल
= आकृति ABCD का क्षेत्रफल – आकृति EFGH को क्षेत्रफल
= 40 × 5 – 5 × 5
= 200 – 25
= 175 वर्ग मीटर
दूसरे समूह द्वारा साफ किया गया क्षेत्रफल = आकृति PEHS तथा FORG को क्षेत्रफल
= आकृति PQRS का क्षेत्रफल – आकृति EFGH को क्षेत्रफल
= 25 × 5 – 5 × 5
= 125 – 25
= 100 वर्ग मीटर
तीसरे समूह द्वारा साफ किया गया क्षेत्रफल = आकृति EFGH का क्षे
= 5 × 5
= 25 वर्ग मीटर
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अभ्यास 12 (d)

प्रश्न 1.
निम्नांकित सारणी में (UPBoardSolutions.com) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (पूर्ति करके)
उत्तर :
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प्रश्न 2.
एक त्रिभुज का क्षेत्रफल 48 सेमी है। यदि उसकी ऊँचाई 8 सेमी हो, तो त्रिभुज का आधार बताइए।
हल :
त्रिभुज का क्षेत्रफल = 48 सेमी त्रिभुज की (UPBoardSolutions.com) ऊँचाई = 8 सेमी
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प्रश्न 3.
एक त्रिभुज का आधार 5 सेमी है। यदि त्रिभुज की ऊँचाई, आधार से दुगुनी है, तो त्रिभुज से घिरे क्षेत्र का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
हल :
त्रिभुज का आधार = 5 सेमी
त्रिभुज की ऊँचाई = 5 × 2 = 10 सेमी
त्रिभुज से घिरे क्षेत्र का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × आधार ४ ऊँचाई
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × 5 × 10 = 25 सेमी2

प्रश्न 4.
निम्नांकित त्रिभुजों के क्षेत्रफल वर्गमीटर में ज्ञात कीजिए, (UPBoardSolutions.com) जबकि उनके आधार और संगत ऊँचाई ज्ञात हैं
(i) आधार = 15 सेमी, ऊँचाई = 8 सेमी
(ii) आधार = 7.5 सेमी, ऊँचाई = 4 सेमी
(iii) आधार = 1.5 मी, ऊँचाई = 0.8 मी।
(iv) आधार = 32 सेमी, ऊँचाई = 105 सेमी
हल :
(i)
त्रिभुज का आधार = 15 सेमी = [latex]\frac { 15 }{ 100 }[/latex] = 15 मी
त्रिभुज की ऊँचाई = 8 सेमी = [latex]\frac { 8 }{ 100 }[/latex] = 08 मी
त्रिभुज का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × आधार × संगत ऊँचाई
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × 0.15 × 08 = .0006 मी (UPBoardSolutions.com)

(ii) त्रिभुज का आधार = 7.5 सेमी = 0.075 मी
त्रिभुज की ऊँचाई = 4 सेमी = 0.04 मी
त्रिभुज का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × 0.075 × 0.04 = 0.0015 मी

(iii) त्रिभुज का (UPBoardSolutions.com) आधार = 1.5 मी
त्रिभुज की ऊँचाई = 0.8 मी।
त्रिभुज का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × 1.5 × 0.8 = 0.6 मी

(iv) त्रिभुज का आधार = 32 सेमी = 0.32 मी
त्रिभुज का आधार = 105 सेमी = 1.05 मी
अतः त्रिभुज का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × 0.32 × 1.05 = 0.168 मी

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प्रश्न 5.
निम्नांकित त्रिभुजों के क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
हल :
(i)
त्रिभुज का आधार = 6 सेमी 5 सेमी
त्रिभुज की संगत ऊँचाई = 8 सेमी
त्रिभुज का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × आधार × संगत ऊँचाई
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × 6 × 8 = 24 सेमी2

(ii) त्रिभुज का आधार = 12.5 +12.5 = 25 सेमी
त्रिभुज की संगत (UPBoardSolutions.com) ऊँचाई = 8 सेमी
त्रिभुजों का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × 25 × 8= 100 सेमी2
त्रिभुज का आधार = 15 सेमी
त्रिभुज की संगत ऊँचाई = 10 सेमी
त्रिभुज का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × 15 × 10 = 75 सेमी2
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प्रश्न 6.
एक सड़क के किनारे एक त्रिभुजाकार यातायात (UPBoardSolutions.com) संकेत बोर्ड लगा है जिस पर आगे स्कूल है। लिखा है। यदि संकेत बोर्ड की भुजाएँ क्रमशः 60 सेमी, 80 सेमी एवं 100 सेमी है, तो उसका क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
हुल :
त्रिभुजाकार बोर्ड की भुजाएँ क्रमशः 60 सेमी, 80 सेमी तथा 100 सेमी है।
त्रिभुजाकार बोर्ड का क्षेत्रफल (UPBoardSolutions.com) = [latex]\sqrt { s(s-a)\quad (s-b)\quad (s-c) }[/latex]
जहाँ a, b, c त्रिभुजाकार बोर्ड की भुजाएँ है।।
s = [latex]\frac { a+b+c }{ 2 }[/latex]
= [latex]\frac { 60+80+100 }{ 2 }[/latex] = [latex]\frac { 240 }{ 2 }[/latex]
= 120 सेमी
अतः त्रिभुजाकार बोर्ड का क्षेत्रफल = [latex]\sqrt { 120(120-60)(120-80)(120-100)}[/latex]
= [latex]\sqrt { 120\times 60\times 40\times 20}[/latex]
= [latex]\sqrt { 2\times 60\times 60\times 40\times 20}[/latex]
= [latex]\sqrt { 60\times 60\times 40\times 40}[/latex]
= 60 × 40
= 2400 वर्ग सेमी

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अभ्यास 12 (e)

प्रश्न 1.
निम्नांकित सारणी में दिये गये मापों से प्रत्येक (UPBoardSolutions.com) समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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हल :
समान्तर चतुर्भुज को आधार = 8 सेमी
समान्तर चतुर्भुज की ऊँचाई = 3 सेमी

समान्तर चतुर्भुज (1) का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई = 8, × 3 = 24 सेमी2
समान्तर चतुर्भुज का आधार = 2.8 सेमी
समान्तर चतुर्भुज = 5 सेमी

समान्तर चतुर्भुज (2) (UPBoardSolutions.com) का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
= 2.8 x 5 = 14.0 सेमी2
समान्तर चतुर्भुज का आधार = 12 मिमी = 1.2 सेमी
समान्तर चतुर्भुज की ऊँचाई = 8.7 सेमी।

समान्तर चतुर्भुज (3) का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
= 1.2 × 8.7 = 10.44 सेमी2
समान्तर चतुर्भुज का आधार = 6.5 सेमी
समान्तर चतुर्भुज की ऊँचाई = 4.8 सेमी

समान्तर चतुर्भुज (4) का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई।
= 6.5 x 4.8 = 31.20 सेमी
समान्तर चतुर्भुज का आधार = 1 मी 5 सेमी = 1.05 मी।
समान्तर चतुर्भुज की ऊँचाई = 45 सेमी = 45 मी

समान्तर चतुर्भुज (5) (UPBoardSolutions.com) का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
= 1.05 × 45 = 0.4725 मी2
समान्तर चतुर्भुज का आधार = 4.2 डेसीमी = .42 मी
समान्तर चतुर्भुज की ऊँचाई = 25 सेमी = .25 मी

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समान्तर चतुर्भुज (6)
का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
= 42 × 25 = 0.105 मी2

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प्रश्न 2.
निम्नांकित समान्तर चतुर्भुजों के (UPBoardSolutions.com) क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए:
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हल :
(i)
समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
= 20 × 27 = 540 सेमी2

(ii)
समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल (UPBoardSolutions.com) = आधार × ऊँचाई
= 8 × 16 = 128 सेमी2

(iii)
समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
= 8 × 18 = 144 सेमी2

(iv)
समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
= 13 × 24 = 312 सेमी2

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प्रश्न 3.
उस समान्तर चतुर्भुज की ऊँचाई ज्ञात कीजिए, (UPBoardSolutions.com) जिसका क्षेत्रफल 2.25 मी’ और आधार 25 डेसीमी है।
हल :
समान्तर चतुर्भुज का आधार = 25 डेसीमी, आधार = ॐ मी = 2.5 मी
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प्रश्न 4.
एक खेत समान्तर चतुर्भुज के आकार का है। इसको आधार 15, (UPBoardSolutions.com) डेकामी और ऊँचाई 8 डेकामी है। 5 प्रति वर्गमीटर की दर से सिंचाई कराने का खर्च ज्ञात कीजिए।
हल :
समान्तर चतुर्भुजाकार खेत को क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
= (15 × 10 मीटर) × (8 × 10 मीटर)
= 12,000 मीटर
1 वर्ग मीटर खेत की सिंचाई कराने का खर्च = ₹ 5
.:. 12,000 वर्ग मीटर खेत की सिंचाई कराने का खर्च = 12,000 × 5
= ₹ 60,000

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प्रश्न 5.
आकृति 12.28 में ABCD समान्तर चतुर्भुज है। (UPBoardSolutions.com) CFLAB I BGIADI
(i) यदि AB = 16 सेमी, AD = 12 सेमी और CF = 10 सेमी तो BG ज्ञात कीजिए।
(ii) यदि AD = 10 सेमी, CF = 8 सेमी और BG = 12 सेमी तो AB ज्ञात कीजिए।
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हल :
(i) समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
AD × BG = AB × CF
12 सेमी ×
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(ii) समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
AB × CF = AD × BG (UPBoardSolutions.com)
AB × 8 सेमी = 10 सेमी × 12 सेमी
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अभ्यास 12 (f)

प्रश्न 1.
नीचे सारिणी में समचतुर्भुज से सम्बन्धित (UPBoardSolutions.com) नापें दी हुई हैं। रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (पूर्ति करके)
उत्तर :
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प्रश्न 2.
आकृति 12.31 समचतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल 24 वर्ग सेमी और OD=3 सेमी। ज्ञात कीजिए:
(i) विकर्ण BD की लम्बाई
(ii) विकर्ण AC लम्बाई
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हलः
(i)
समचतुर्भुज के विकर्ण एक-दूसरे को (UPBoardSolutions.com) समकोण पर समद्विभाजित करते हैं।
विकर्ण BD = 2 × OD
= 2 × 3 = 6 सेमी

(ii) समचतुर्भुज का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × पहला विकर्ण × दूसरा विकर्ण
24 सेमी = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × AC × BD
AC = 24 × [latex]\frac { 2 }{ 6 }[/latex] = 8
विकर्ण AC = 8 सेमी

प्रश्न 3.

नीलिमा के समचतुर्भुजाकार प्लॉट का क्षेत्रफल 80 वर्ग मीटर है। (UPBoardSolutions.com) यदि इसके एक विकर्ण की लम्बाई 16 मीटर है, तो इसके दूसरे विकर्ण की लम्बाई ज्ञात कीजिए।
हल :
समचतुर्भुज का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × पहला विकर्ण × दूसरा विकर्ण
दूसरा विकर्ण = [latex]\frac { 80\times 2 }{ 16 }[/latex] = 10
दूसरा विकर्ण = 10 मीटर

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प्रश्न 4.
आकृति 12.32 में दी गई नापों के आधार पर समचतुर्भुज का क्षेत्रफल (UPBoardSolutions.com) ज्ञात कीजिए।
हल :
UP Board Solutions for Class 7 Maths Chapter 12 क्षेत्रमिति (मेंसुरेशन) 25
समचतुर्भुज का विकर्ण AC = 2 × OA
= 2 × 3 सेमी = 6 सेमी
विकर्ण BD = 2 × OD
= 2 × 4 सेमी = 8 सेमी
समचतुर्भुज का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × विकर्ण AC × विकर्ण BD
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × 6 सेमी × 8 सेमी
= 24 सेमी2

प्रश्न 5.
एक समचतुर्भुजाकार घास के खेत में 20 गायों के चरने के लिए घास है। (UPBoardSolutions.com) यदि इस समचतुर्भुज की प्रत्येक भुजा 25 मीटर और एक विकर्ण 30 मीटर है, तो प्रत्येक गाय को चरने के लिए इस घास के खेत का कितना क्षेत्रफल प्राप्त होगा?
हल :
UP Board Solutions for Class 7 Maths Chapter 12 क्षेत्रमिति (मेंसुरेशन) 26
समचतुर्भुज का प्रत्येक भुजा = 25 मीटर
विकर्ण BD की लम्बाई = 30 मीटर
OB = [latex]\frac { 30 }{ 2 }[/latex] = 15 मीटर
A OAB में, AB = OA + OB2
(25) = OA + (15)2
625 = OA2 + 225
OA = 625 – 225 = 400 (UPBoardSolutions.com)
OA = 400 = 20 मीटर
समचतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × विकर्णो का गुणनफल
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × 40 × 30
= 600 वर्ग मीटर
20 गायों के चरने के लिए घास (UPBoardSolutions.com) = समचतुर्भुज का क्षेत्रफल
= 600 वर्ग मीटर
1 गाय के चरने के लिए घास = [latex]\frac { 600 }{ 2 }[/latex] = 30 वर्ग मीटर

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अभ्यास 12 (g)

प्रश्न 1.
निम्नांकित सारणी में घनाभ की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई दी गई है। (UPBoardSolutions.com) प्रत्येक घनाभ का सम्पूर्ण पृष्ठ ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 7 Maths Chapter 12 क्षेत्रमिति (मेंसुरेशन) 27
(i) घनाप का सम्पूर्ण पृष्ठ = 2 (b + bh + hl)
= 2 (5 × 4 + 4 × 3 + 3 × 5) सेमी2
= 2 (20 + 12 + 15) सेमी।2
= 2 × 47 सेमी = 94 सेमी2

(ii) घनाभ का सम्पूर्ण पृष्ठ = 2 (/b + bh + hi)
= 2 (6 × 3 + 3 × 2 + 2 × 6) सेमी2
= 2 (18 + 6 + 12) सेमी2
= 2 × 36 सेमी = 72 सेमी2

(iii) घनाभ का सम्पूर्ण पृष्ठ = 2 (lb + bh + hi)
= 2 (10 × 8 + 8 × 5 + 5 × 10) सेमी2
= 2 (80 + 40 + 50) सेमी2
= 2 × 170 सेमी = 340 सेमी2

(iv) घनाभ का सम्पूर्ण पृष्ठ = 2 (lb + bh + hl)
= 2 (4 × 1.7 + 1.7 × 2.3 + 2.3 × 4)
= 2 (6.8 + 3.91 + 9.2) सेमी2
= 2 × 19.91 सेमी = 39.82 सेमी2

(v) घनाभ का सम्पूर्ण पृष्ठ = 2 (Ib + bh + hi) (UPBoardSolutions.com)
= 2([latex]\frac { 11 }{ 2 }[/latex] × 4 × 4 × [latex]\frac { 21 }{ 2 }[/latex] + [latex]\frac { 21 }{ 2 }[/latex] × [latex]\frac { 11 }{ 2 }[/latex])
= 2 (22 + 42 + [latex]\frac { 231 }{ 4 }[/latex] ) सेमी2
= 2 (64 + [latex]\frac { 231 }{ 4 }[/latex]) सेमी2
= [latex]{(2\times 64+\frac { 2\times 231 }{ 4 } \because)}[/latex] सेमी2
= (128 + 115.5) सेमी2
= 243.5 सेमी2

(vi) घना’ का सम्पूर्ण पृष्ठ = 2 (lb + bh + hl)
= 2 (16 × 8 + 8 × 6 + 6 × 16)
= 2 (128 + 48 + 96) सेमी2
= 2 × 272 सेमी = 544 सेमी2

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प्रश्न 2.
नीचे दी गई भुजा की नाप (UPBoardSolutions.com) वाले घन का सम्पूर्ण पृष्ठ ज्ञात कीजिए।
(i) भुजा = 18 सेमी
(ii) भुजा = 8.8 सेमी
(iii) भुजा = 1.2 सेमी।
(iv) भुजा = 110 सेमी
हल :
(i) घन का सम्पूर्ण पृष्ठ = 6 × (भुजा)2
= 6 × (18) सेमी2
= 6 × 324 सेमी2 = 1944 सेमी2

(ii) घन का सम्पूर्ण पृष्ठ = 6 × (भुजा)2
= 6 × (8.8) सेमी2
= 6 × 77.44 सेमी2 = 464.64 सेमी2

(iii) घर का सम्पूर्ण पृष्ठ = 6 × (भुजा)2
= 6 × 1.2 सेमी2
= 6 × 1.44 सेमी2 = 8.64 सेमी2

(iv) घर का सम्पूर्ण पृष्ठ = 6 × (भुजा)2
= 6 × (110) सेमी2
= 6 × 12100 सेमी2 = 72600 सेमी2

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प्रश्न 3.
दिए गए घनाभ के कुल पृष्ठ का (UPBoardSolutions.com) क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
हल :
UP Board Solutions for Class 7 Maths Chapter 12 क्षेत्रमिति (मेंसुरेशन) 28
घनाभ के कुल पृष्ठों का क्षेत्रफल
= 2 (/b + bh + hl)
= 2 (4 × 3.3 + 3.3 × 2.5 + 2.5 × 4) मी2
= 2 (13.2 + 8.25 + 10.0) मी2
= 2 (31.45) मी2
= 62.90 मी2

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प्रश्न 4.
अभिषेक के कमरे की लम्बाई 4 मीटर, चौड़ाई 3.5 (UPBoardSolutions.com) मीटर और ऊँचाई 3 मीटर है। इस कमरे की चारों दीवारों का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
हल :
कमरे की चारो दीवारों का क्षेत्रफल = 2 (लम्बाई + चौड़ाई) × ऊँचाई
= 2 (4 + 3.5) × 3 मी2
= 2 × 7.5 × 3 मी2
= 45 मी2

प्रश्न 5.
एक घनाकार बक्से की एक भुजा की लम्बाई 1 मीटर 30 सेमी है। बक्से का सम्पूर्ण पृष्ठ ज्ञात कीजिए।
हल :
घनाकार बक्से की भुजा (a) = 1 मीटर 30 सेमी
= (100 + 30) सेमी2 = 130 सेमी
.:. घनाकार बक्से का सम्पूर्ण पृष्ठ = 6 × (भुजा)2
= 6 × (130) सेमी2
= 6 × 16,900 सेमी2
= 1,01,400 सेमी2

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प्रश्न 6.रहीम के कमरे की लम्बाई 3.5 मीटर, चौड़ाई 3 मीटर, ऊँचाई 3 मीटर है। इसकी चारों दीवारों पर 15 प्रति वर्ग मीटर की (UPBoardSolutions.com) दर से सफेदी कराने का व्यय ज्ञात कीजिए।
हल :
कमरे की चारों दीवारों का क्षेत्रफल = 2 (लम्बाई + चौड़ाई) x ऊँचाई
= 2 (3.5 + 3) × 3 मी2
= 2 × 6.5 × 3 मी2
= 39 मी
अतः चारों दीवारों पर 15 प्रति वर्ग
मीटर की दर से सफेदी कराने का व्यय = ₹ 15 × 39
= ₹ 585

प्रश्न 7.
एक घनाकार डिब्बे की एक भुजा 10 सेमी है तथा एक अन्य घनाभ के (UPBoardSolutions.com) आकार के डिब्बे की लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई क्रमशः 12.5 सेमी, 10 सेमी तथा 8 सेमी है। किस डिब्बे का पार्श्व पृष्ठीय क्षेत्रफ अधिक है और कितना अधिक है?
हल :
घनाकार डिब्बे की भुजा = 10 सेमी
घनाकार डिब्बे का सम्पूर्ण पृष्ठ = 6 x (भुजा)2
= 6 × (10)2
= 6 × 100 = 600 वर्ग सेमी
घनाभ के आकार के डिब्बे की लम्बाई = 12.5 सेमी
चौड़ाई = 10 सेमी
ऊँचाई = 8 सेमी
घनाभ के आकार के डिब्बे का सम्पूर्ण पृष्ठ = 2(lb + bh + b)
=2 × (12.5 × 10 + 10 × 8+ 12.5 × 8)
= 2 × (125 + 80 + 100)
= 2 × 305 = 610 वर्ग सेमी
घनाभ के आकार के डिब्बे का सम्पूर्ण पृष्ठ अधिक है।
अन्तर = 610 – 600
= 10 वर्ग सेमी

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प्रश्न 8.
प्रदीप स्वीट स्टॉल को मिठाइयाँ पैक करने के लिए गत्ते के घनाभ के (UPBoardSolutions.com) आकार के 200 डिब्बे बनवाने हैं, जिनकी लम्बाई 25 सेमी, चौड़ाई 20 सेमी तथा ऊँचाई 5 सेमी है। यदि गत्ते का मूल्य ₹ 40 प्रति वर्ग मीटर है, तो डिब्बे बनवाने की कुल कीमत ज्ञात कीजिए।
हल :
घनाकार के डिब्बे की लम्बाई = 25 सेमी
चौड़ाई = 20 सेमी।
ऊँचाई = 5 सेमी
घनीभ के आकार के डिब्बे का सम्पूर्ण पृष्ठ = 2(lb + bh + b)
= 2 × (25 × 20 + 20 × 5 + 25 × 5)
= 2 × (500+ 100 + 125)
= 2 × 725 = 1450 वर्ग सेमी
200 डिब्बे का सम्पूर्ण पृष्ठ = 200 × 1450
= 290000 वर्ग सेमी
= 29 वर्ग मीटर
1 वर्ग मीटर गत्ते का मूल्य = ₹ 40
= 40 x 29
= ₹ 1160

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दक्षता अभ्यास – 12

प्रश्न 1.
निम्नांकित आकृति 12.38 में छायांकित भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 7 Maths Chapter 12 क्षेत्रमिति (मेंसुरेशन) 29
हल :
(i) बाहरी आयत का क्षेत्रफल = लम्बाई × चौड़ाई
= 15 मीटर × 10 मीटर = 150 मीटर2
भीतरी आयत का क्षेत्रफल = लम्बाई × चौड़ाई
= (15 – 4) मीटर × (10 – 4) मीटर2
= 11 × 6 मीटर2 = 66 मीटर2
अतः छायांकित भाग का क्षेत्रफल = 150 मीटर – 66 मीटर2 = 84 मीटर2

(ii) बाहरी आयते को क्षेत्रफल = 20 मीटर × 15 मीटर = 300 मीटर
भीतरी आयते की क्षेत्रफल (UPBoardSolutions.com) = (20 – 4) मीटर × (15 – 4) मीटर2
= 16 × 11 मीटर = 176 मीटर2
अंतः छायांकित भाग का क्षेत्रफल = 300 मीटर – 176 मीटर = 124 मीटर2

(iii) बाहरी आयत का क्षेत्रफल = 40 मीटर × 25 मीटर = 1,000 मीटर2
भीतरी आयते का क्षेत्रफल = (40-5) मीटर × (25-5) मीटर2
= 35 × 20 मीटर = 700 मीटर2
छायांकित भाग का क्षेत्रफल = 1000 मीटर’ – 700 मीटर2
= 300 मीटर।2

(iv) छायांकित भाग का क्षेत्रफल = लम्बाई वाले रास्ते का क्षेत्रफल +
चौड़ाई वाले रास्ते को क्षेत्रफलं (UPBoardSolutions.com) – बीच वाले उभयनिष्ठ भाग को क्षेत्रफल
= (120 × 5) + (80 × 5) – (5 × 5)
= 600 + 400 – 25 = 975 मीटर2

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प्रश्न 2.
एक वर्गाकार पार्क की सीमा से लगा हुआ पार्क के अन्दर चारों ओर 1 मीटर चौड़ाई का मार्ग है। पार्क की लंबाई 30 मीटर है। पार्क के शेष भाग में र6 प्रति वर्ग मीटर की दर से घास लगवाने का व्यय ज्ञात कीजिए।
हल :
वर्गाकार पार्क की बाहरी भुजा = 30 मीटर
वर्गाकार पार्क के अन्दर चारों ओर 1 मीटर चौड़ाई का मार्ग है।
वर्गाकार पार्क की भीतरी भुजा = (30 -2) मीटर = 28 मीटर
वर्गाकार पार्क का भीतरी क्षेत्रफल = (28 मीटर)2 = 784 मीटर2
अतः ₹ 6 प्रति वर्ग मीटर की दर से घास लगवाने का व्यय = 784 × ₹ 6
= ₹ 4704

प्रश्न 3.
उस त्रिभुज को क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए जिस का आधार 9.6 सेमी और ऊँचाई 5 सेमी है।
हल :
त्रिभुज का क्षेत्रफल = 1/2 × आधार × ऊँचाई
= 1 × 9.6 × 5 = 24 सेमी2

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प्रश्न 4.
उस त्रिभुज की ऊँचाई ज्ञात कीजिए जिसका क्षेत्रफल 45 सेमी है तथा आधार 15 सेमी है।
हल :
UP Board Solutions for Class 7 Maths Chapter 12 क्षेत्रमिति (मेंसुरेशन) 30

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प्रश्न 5.
आकृति 12.39 चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए, ₹ 2० जिसमें AC=48 सेमी, BF = 10 सेमी और DE=20 सेमी।
UP Board Solutions for Class 7 Maths Chapter 12 क्षेत्रमिति (मेंसुरेशन) 31
हल :
चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × AC × (BF +DE)
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] × 48 × (10 + 20) = 24 × 30 सेमी2
= 720 सेमी2

प्रश्न 6.
उस समान्तर चतुर्भुज का (UPBoardSolutions.com) क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए, जिसको आधार 7 सेमी और ऊँचाई 4.3 सेमी हो।
हल :
समान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
= 7 × 4.3 = 30.1 सेमी

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प्रश्न 7.
12 सेमी भुजा के दो घन सटाकर रखे गए हैं। (UPBoardSolutions.com) सटाकर रखने से बने घनाभ का सम्पूर्ण पृष्ठ ज्ञात कीजिए।
हल :
UP Board Solutions for Class 7 Maths Chapter 12 क्षेत्रमिति (मेंसुरेशन) 32
घनाभ की लम्बाई = 12 + 12 = 24 सेमी।
घनाभ की चौड़ाई = 12 सेमी (UPBoardSolutions.com)
घनाभ की ऊँचाई = 12 सेमी
घनाभ का सम्पूर्ण पृष्ठ क्षेत्रफल = 2 (ल० × चौ० + चौ० × ऊँ० + ऊँ० × ल०)
= 2 (24 × 12 + 12 × 12 + 12 × 24) सेमी2
= 2 (288 + 144 + 288)
= 2 × 720 = 1440 सेमी2

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UP Board Solutions for Class 7 Science Chapter 3 पदार्थ की संरचना एवं प्रकृति

UP Board Solutions for Class 7 Science Chapter 3 पदार्थ की संरचना एवं प्रकृति

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 7 Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 7 Science Chapter 3 पदार्थ की संरचना एवं प्रकृति.

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प को छांटकर अपनी अभ्यास पुस्तिका में लिखिए-
(क) इनमें से किसके अणुओं के बीच अन्तर-आणविक (UPBoardSolutions.com) आकर्षण बल सबसे अधिक होता है?
(अ) पानी।
(ब) बर्फ (✓)
(स) भाप
(द) ऑक्सीजन

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(ख) धावन सोडा है-
(अ) सोडियम कार्बोनेट (✓)
(ब) सोडियम बाइकार्बोनेट।
(स) सोडियम हाइड्रॉक्साइड।
(द) पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड।

(ग) कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड (UPBoardSolutions.com) का सही सूत्र है-
(अ) CaOH
(ब) Ca2OH
(स) Ca(OH)3
(द) Ca(OH)2 (✓)

(घ) इनमें से कौन प्रबल अम्ल हैं?
(अ) नाइट्रिक अम्ल (✓)
(ब) साइट्रिक अम्ल
(स) एसिटिक अम्ल
(द) टारटेरिक अम्ल

(ङ) इनमें से कौन सूचक (इंडिकेटर) नहीं है-
(अ) लाल लिटमस
(ब) मिथाइल ऑरेन्ज
(स) फिनॉलफ्थेलीन
(द) एन्टासिड (✓)

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(क) तत्व केवल एक ही प्रकार के  (UPBoardSolutions.com) परमाणु से बना होता है।
(ख) कम से कम दो तत्वों के संयोजन से यौगिक बनता है।
(ग) गैस के अणुओं के मध्य लगने वाले आकर्षण बल का मान नगण्य होता है।
(घ) जल की तीन अवस्थाएँ ठोस, द्रव, तरल है।
(ङ) अम्ल नीले लिटमस को लाले कर देते हैं।
(च) भस्म को स्वाद कड़वा तथा कसैला होता है।
(छ) भस्म पानी में घुल कर क्षार बनाते हैं।
(ज) अम्ल क्षार से क्रिया करके लवण तथा जल बनाते हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित कथनों में सही कथन के सम्मुख सही (✓) तथा गलत कथन के सम्मुख गलत (✗) का निशान लगाइए-
(क) पदार्थ ठोस, द्रव और गैस तीनों अवस्थाओं में पाये जाते हैं। (✓)
(ख) तत्व भिन्न-भिन्न प्रकार के परमाणुओं से मिल कर बनते हैं। (✗)
(ग) भिन्न-भिन्न पदार्थों के अणुओं के बीच लगने वाले आकर्षण बल को ससंजन बल कहते हैं। (✗)
(घ) अणुओं के मध्य रिक्त स्थान को (UPBoardSolutions.com) अन्तरावकाश कहते हैं। (✗)
(ङ) चाँदी (Ag) का लैटिन नाम अर्जेन्टम है। (✓)
(च) हाइड्रोजन की परमाणुकता 2 है। (✓)
(छ) रासायनिक अभिक्रियाओं में कुछ नए परमाणु भी जुड़ जाते हैं। (✗)

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित कथनों में से सही कथन को छाँट कर लिखिए-
(क) अम्लों का स्वाद खट्टा होता है। (✓)
(ख) सिरके में टारटेरिक अम्ल होता है।
(ग) फिनॉलफ्थेलीन का रंग क्षारीय (UPBoardSolutions.com) विलयन में गुलाबी हो जाता है। (✓)
(घ) साबुन में क्षारीय गुण होते हैं।
(ड़) सोडियम हाइड्रॉक्साइड एक क्षार है। (✓)
(च) साबुन को कास्टिक सोडा से बना सकते हैं। (✓)

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तत्वों के संकेत लिखिए-
हीलियम, आर्गन, चाँदी, सोडियम, (UPBoardSolutions.com) पोटैशियम, बेरियम, क्रोमियम
उत्तर-
हीलियम – He
आर्गन – Ar
चाँदी – Ag
सोडियम – Na
पोटैशियम-K,
बेरियम – Ba
क्रोमियम – Cr

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित तत्वों के (UPBoardSolutions.com) नाम लिखिए-
Na, C, Br, Mn, Ag, Au, Ba, Ca, Mg
उत्तर-
Na – सोडियम
C – कार्बन
Br – ब्रोमीन
Mn – मैग्नीज
Ag – सिल्वर
Au – गोल्ड
Ba – बेरियम
Ca – कैल्सियम
Mg – मैगनीशियम

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित यौगिकों में कौन-कौन (UPBoardSolutions.com) तत्व सम्मिलित हैं?
CaCl2, Al2(SO4)3, MgO, P2O5, CaCO3, C6H12O6, CO2
उत्तर-
CaCl2 – कैल्सियम, क्लोरीन
Al2(SO4)3 – एल्युमीनियम, सल्फर, ऑक्सीजन
MgO – मैगनीशियम, ऑक्सीजन
P2O5 – फॉस्फोरस, ऑक्सीजन
CaCO3 – कैल्सियम, कार्बन, ऑक्सीजन
C6H12O6 – कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन
CO2 – कार्बन, ऑक्सीजन

प्रश्न 8.
संक्षेप में उत्तर दीजिए-
(क) एक यौगिक का सूत्र NaOH है। (UPBoardSolutions.com) इसमें कौन-कौन से तत्व संयोजित हैं?
उत्तर-
यौगिक NaOH में सोडियम, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन तत्व संयोजित हैं।

(ख) ठोस पदार्थ किस प्रकार द्रव एवं गैसों से भिन्न हैं ?
उत्तर-
ठोस पदार्थ निम्न प्रकार द्रव एवं गैसों से भिन्न हैं- (UPBoardSolutions.com)

  • ठोस पदार्थों के अणु, द्रव एवं गैसों की अपेक्षा अत्यधिक निकट होते हैं।
  • ठोस पदार्थों के अणुओं के बीच आकर्षण बल, द्रव एवं गैसों की अपेक्षा बहुत अधिक होते हैं।
  • ठोस पदार्थों की आकृति एवं आयतन निश्चित होता है, जबकि द्रव पदार्थों की आकृति निश्चित नहीं होती, आयतन निश्चित होता है तथा गैसों की न तो आकृति निश्चित होती है और न ही आयतन निश्चित होता है।

(ग) रासायनिक तत्वों के प्रतीक उपयोग करने का क्या लाभ है ?
उत्तर-
रासायनिक तत्वों के प्रतीक का उपयोग करने से हमें रासायनिक अभिक्रिया दर्शाने में आसानी होती है। जिससे यह पता चलता है कि अभिक्रिया में तत्व के कितने अणु या परमाणु सम्मिलित हैं।

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(घ) H2 तथा 2H में क्या अन्तर है?
उत्तर-
H2 का प्रयोग हाइड्रोजन के एक (UPBoardSolutions.com) अणु को दर्शाने के लिए होता है, जबकि 2H का प्रयोग हाइड्रोजन के दो परमाणुओं को दर्शाने के लिए होता है।

(ङ) अम्ल क्या है ?
उत्तर-
वह पदार्थ जो स्वाद में खट्टे होते हैं, अम्ल कहलाते हैं।
अम्ल वे यौगिक हैं जो कि-

  • पानी में घुलकर H+ आयन देते हैं।
  • नीले लिट्मस को लाल कर देते हैं।
  • क्षारों से क्रिया करके लवण तथा पानी बनाते हैं।
    जैसे- सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4), हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) तथा नाइट्रिक अम्ल (HNO3) आदि।

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(च) सूचक किसे कहते हैं ? किन्हीं दो सूचक के नाम बताएँ तथा अम्ल और क्षार का इन पर क्या प्रभाव पड़ता है लिखिए।
उत्तर-
अम्ल एवं क्षारक की पहचान करने के लिए हम विशेष प्रकार के पदार्थों का उपयोग कर सकते हैं जो सूचक कहलाते हैं। इन सूचकों को अम्लीय या क्षारीय पदार्थों के विलयन में मिलाने पर इनका रंग बदल जाता है। नीले तथा लाल रंग वाला (UPBoardSolutions.com) लिटमस पत्र तथा गुड़हल की पंखुड़ियाँ प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सूचक हैं। नीला लिटमस पेपर अम्ल में डुबोने पर लाल हो जाता है और लाल लिटमस पत्र क्षारक-विलयन में डुबोने पर नीला हो जाता है। इसी प्रकार गुड़हल की पंखुड़ियाँ अम्लीय विलयनों का गहरा गुलाबी और क्षारीय विलयनों को हरा कर देती है।

(छ) अम्ल और क्षार की पारस्परिक क्रिया द्वारा लवण तथा पानी का बनना कौन सी क्रिया है?
उत्तर-
अम्ल और क्षार की पारस्परिक क्रिया द्वारा लवण तथा पानी का बनना उदासीनीकरण क्रिया है।

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से अम्ल, क्षार एवं लवण को (UPBoardSolutions.com) अलग-अलग छाँट कर लिखिए-
(क) नींबू का रस
(ख) कास्टिक सोडा
(ग) बुझा चूना
(घ) कैल्सियम सल्फेट
(ड़) सिरका
(च) जिंक ऑक्साइड
(छ) नमक
(ज) इमली का रस
(झ) मैगनीशियम क्लोराइड
उत्तर-
UP Board Solutions for Class 7 Science Chapter 3 पदार्थ की संरचना एवं प्रकृति 9

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित की क्रिया (UPBoardSolutions.com) से क्या बनता है ?
(क) NaOH + HCl NaCl (सोडियम क्लोराईड) + H2O (जल)
(ख) Na + Cl NaCl (सोडियम क्लोराइड)

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 अस्माकं राष्ट्रियप्रतीकानि (गद्य – भारती)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 अस्माकं राष्ट्रियप्रतीकानि (गद्य – भारती) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 अस्माकं राष्ट्रियप्रतीकानि (गद्य – भारती).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 2
Chapter Name अस्माकं राष्ट्रियप्रतीकानि (गद्य – भारती)
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 अस्माकं राष्ट्रियप्रतीकानि  (गद्य – भारती)

पाठ का साशंश

राष्ट्रीय प्रतीक-सभी राष्ट्रों में वहाँ के नागरिकों द्वारा उस राष्ट्र की विशेषता बताने वाली कुछ वस्तुएँ राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में स्वीकार की जाती हैं। इन प्रतींकों में उस राष्ट्र का गौरव, चरित्र और गुण झलकता है, इन्हीं को राष्ट्रीय चिह्न कहा जाता है। भारत में भी हमारी संस्कृति, चरित्र और महत्त्व को बताने वाली (UPBoardSolutions.com) ये पाँच वस्तुएँ राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में स्वीकार की गयी हैं- (1) मयूर, (2) चित्रव्याघ्र, (3) कमल, (4) राष्ट्रगान तथा (5) त्रिवर्ण ध्वज।।

(1) मयूर (मोर)–मयूर (मोर) भारत का राष्ट्रीय-पक्षी है। यह बहुत सुन्दर पक्षी है। इसके रंग-बिरंगे पंख और इसका नृत्य अत्यधिक चित्ताकर्षक होता है। यह मधुर ध्वनि करता हुआ भी विषधरों (सर्पो) को खाता है। उसकी इस प्रवृत्ति में हमारा राष्ट्रीय चरित्र झलकता है। हमें भी मोर की तरह मधुरभाषी होना चाहिए और सबके साथ मधुर व्यवहार करते हुए भी राष्ट्रद्रोहियों और राष्ट्रीय एकता के विघातक तत्त्वों को सर्प की तरह नष्ट कर देना चाहिए। |

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(2) चित्रव्याघ्र ( बाघ)–पशुओं में बाघ हमारा राष्ट्रीय पशु है। इनमें चित्रव्याघ्र ओजस्वी, पराक्रमी और स्फूर्ति-सम्पन्न होता है। वह संकट को दूर से ही जानकर उसे दूर करने में सचेष्ट रहता है। हमें , व्याघ्र की तरह देश की सुरक्षा में सावधान तथा संकट आने पर उसे दूर करने का निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए। यह अपनी सीमा में घूमने वाले जंगली जानवर के रूप में संसार में प्रसिद्ध है।

(3) कमल–भारत में कमल को राष्ट्रीय पुष्प के रूप में स्वीकार किया गया है। इसकी कोमलता एवं पवित्रता को देखकर ही इसको काव्य में अत्यधिक महत्त्व दिया गया है। जिस प्रकार से कीचड़ में उत्पन्न होने वाला पंकज (कमल) जल का संसर्ग तथा शरद् ऋतु को प्राप्त कर बढ़ता और शोभित होता है, (UPBoardSolutions.com) उसी प्रकार किसी भी कुल में उत्पन्न होकर व्यक्ति को सुविधा और उपयुक्त अवसर को पाकर उन्नति करते रहना चाहिए, यही कमल का सन्देश है।

(4) राष्ट्रगान–प्रत्येक स्वतन्त्र राष्ट्र का एक अपना राष्ट्रगाने होता है। भारत का भी अपना एक राष्ट्रगान है। इसे महान् अवसरों पर गाया जाता है। अन्य देश के राष्ट्राध्यक्षों के आगमन पर उनके सम्मान में, बड़ी सभाओं के समापन पर तथा विद्यालयों में प्रार्थना के उपरान्त इसे गाया जाता है। इसकी रचना विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने की थी। इस राष्ट्रगान में भारत के प्रान्तों, विन्ध्य-हिमालय पर्वतों, गंगादि नदियों के उल्लेख द्वारा देश की विशालता और अखण्डता का वर्णन है। इसको गाने के लिए 52 सेकण्ड का समय निर्धारित है। इसे सावधान मुद्रा में खड़े होकर बिना किसी अंग-संचालन के श्रद्धापूर्वक गाया जाना चाहिए। इसकी ध्वनि सुनकर भी सावधान हो जाने का विधान है।

(5) त्रिवर्ण ध्वज(राष्ट्रीय ध्वज)–प्रत्येक स्वतन्त्र राष्ट्र का अपना एक राष्ट्रध्वज होता है तथा देश के निवासी प्राणपण से इसके सम्मान की रक्षा करते हैं। हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है। इसके मध्य में अशोक चक्र है। इसमें हरा रंग, सुख, समृद्धि और विकास का; श्वेत रंग ज्ञान, मैत्री सदाशयता आदि गुणों का तथा केसरिया रंग शौर्य और त्याग का प्रतीक है। ध्वज़ के मध्य में अशोक चक्र धर्म, सत्य और अहिंसा का बोध कराता है। (UPBoardSolutions.com) अशोक चक्र के मध्य में 24 शलाकाएँ पृथक् होती हुई चक्र के मूल में मिली हुई, भारत में विविध भाषा, धर्म, जाति और लिंग का भेद होने पर भी भारत के एक राष्ट्र होने का बोध कराती हैं। राष्ट्रध्वज सदा स्वच्छ, सुन्दर रंगों वाला और बिना कटा-फटी होना चाहिए। राष्ट्रीय शोक के समय इसे झुका दिया जाती है।
ये राष्ट्रीय प्रतीक हमें हमारी स्वतन्त्रता का बोध कराते हैं। हमें इनका आदर और सम्मान तो करना ही चाहिए, इनकी रक्षा भी प्राणपण से करनी चाहिए।

गघांशों का सासन्दर्भ अनुवाद

(1) सर्वेषु राष्ट्रेषु राष्ट्रियवैशिष्ट्ययुक्तानि वस्तूनि प्रतीकरूपेण स्वीक्रियन्ते तत्रत्यैः जनैः। तेषु प्रतीकेषु तद्राष्ट्रस्य गौरवं चारित्र्यं गुणाश्च प्रतिभासन्ते। तान्येव राष्ट्रियप्रतीकानि निगद्यन्ते।।

अस्माकं राष्ट्रे भारतेऽपि कतिपयानि प्रतीकानि स्वीकृतानि सन्ति। तान्यस्माकं चारित्र्यं संस्कृतिं महत्त्वं च व्यञ्जयन्ति। पक्षिषु कतमः पशुषु कतमः पुष्पेषुः कतमत् वाऽस्माकं राष्ट्रियमहिम्नः प्रातिनिध्यं विदधातीति विचार्यैव प्रतीकानि निर्धारितानि सन्ति।

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शब्दार्थ-
वैशिष्ट्ययुक्तानि = विशेषताओं से युक्त।
प्रतीकरूपेण = चिह्न के रूप में।
स्वीक्रियन्ते = स्वीकृत किये जाते हैं।
तत्रत्यैः जनैः = वहाँ के निवासियों के द्वारा।
प्रतिभासन्ते = झलकते हैं।
निगद्यन्ते = कहे जाते हैं।
कतिपयानि = कुछ।
तान्यस्माकम् (तानि + अस्माकम्) = वे हमारे।
व्यञ्जयन्ति = प्रकट करते हैं।
कतमः = कौन-सा।
राष्ट्रियमहिम्नः = राष्ट्रीय महत्त्व का।
विदधातीति (विदधाति + इति) = करता है, ऐसा।
विचार्यैव (विचार्य + एव) = विचार करके ही।
निर्धारितानि सन्ति = निर्धारित (निश्चित) किये गये हैं।

सन्दर्य प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ के ‘अस्माकं राष्ट्रियप्रतीकानि’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

संकेत
इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि प्रत्येक देश की भाँति हमारे देश में भी कुछ राष्ट्रीय प्रतीक निधार्रित किये गये हैं, जिनसे हमारे देश का गौरव और चरित्र झलकता है।।

अनुवाद
सभी राष्ट्रों में वहाँ के निवासियों के द्वारा राष्ट्र की विशेषताओं से युक्त वस्तुएँ प्रतीक रूप में स्वीकार की जाती हैं। उन प्रतीक-वस्तुओं में उस राष्ट्र का गौरव, चरित्र और गुण प्रतिबिम्बित होते हैं। उन्हें ही राष्ट्र के प्रतीक कहा जाता है। | हमारे राष्ट्र भारत में भी कुछ प्रतीक स्वीकार किये गये हैं। वे ही (UPBoardSolutions.com) हमारे देश के चरित्र, संस्कृति और महत्त्व को प्रकट करते हैं। पक्षियों में कौन-सा (पक्षी), पशुओं में कौन-सा (पशु) अथवा फूलों में कौन-सा (फूल) हमारे राष्ट्र की महिमा का प्रतिनिधित्व करता है, ऐसा विचार करके ही प्रतीक निर्धारित किये गये हैं।

(2) मयूरःपक्षिषु मयूरः राष्ट्रियपक्षिरूपेण स्वीकृतोऽस्ति। मयूरोऽतीव मनोहर: पक्षी वर्तते। चन्द्रकवलयसंवलितानि चित्रितानि तस्य पिच्छानि मनांसि हरन्ति। यदा गगनं श्यामलैर्मेधैरोच्छन्नं भवति तदा मयूरो नृत्यति। तस्य तदानीन्तनं नर्त्तनं नयनसुखकरमपि चेतश्चमत्कारकं भवति। मधुमधुरस्वरोऽपि मयूरो विषधरान् भुङ्क्ते। इदमेवास्माकं राष्ट्रियचारित्र्यं विद्यते। सर्वे सह मधुरं वाच्यं मधुरं व्यवहर्तितव्यं मधुरमाचरितव्यं किन्तु ये राष्ट्रद्रोहिणोऽत्याचारपरायणाः राष्ट्रियाखण्डतायाः राष्ट्रियैक्यस्य वा विघातकाः विषमुखाः सर्पतुल्याः मयूरेणैव राष्ट्रेण व्यापादयितव्याः।।

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शब्दार्थ-
मयूरोऽतीव (मयूरः + अति + इव), = मोर बहुत अधिक।
चन्द्रकवलयसंवलितानि = चन्द्रमा के आकार के वृत्त (गोलाकार चिह्न) से युक्त।
पिच्छानि = पूँछ के पंख।
श्यामलैमेघराच्छन्नं, (श्यामलैः + मेघेः + आच्छन्नम्) = काले बादलों से घिरे हुए।
तदानीन्तनम् = उस समय का।
नयनसुखकरम् = आँखों को सुख देने वाला, सुन्दर।
चेतः = मन।
विषधरान् = सर्पो को।
भुङ्क्ते = खाता है।
इदमेवास्माकं (इदं + एव + अस्माकं) = यह ही हमारा।
वाच्यं = बोलना चाहिए।
व्यवहर्तितव्यम् = व्यवहार करना चाहिए।
मधुरमाचरितव्यं (मधुरं + आचरितव्यम्) = मधुर आचरण करना चाहिए।
अत्याचारपरायणाः = अत्याचार में लगे हुए।
विघातकाः = नाशक।
विषमुखाः = विष से भरे मुख वाले।
मयूरेणेव (मयूरेण+ इव) = मोर के समान।
व्यापादयितव्याः = मारने योग्य।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकृत राष्ट्रय पक्षी मोर का वर्णन किया बंया है।

अनुवाद
मोर-पक्षियों में मोर को राष्ट्रीय पक्षी के रूप में स्वीकार किया गया है। मोर अत्यन्त सुन्दर पक्षी है। चन्द्राकार वृत्त (गोलाकार चिह्नों) से चित्रित उसकी पूँछ के पंख मन को हरते हैं, अर्थात् उसके रंग-बिरंगे पंखों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। जब आकाश काले बादलों से ढक जाता है, तब मोर नाचता है। उस समय का उसका नृत्य नेत्रों को सुख देने वाला और चित्त को आह्लादित करने वाला होता है। मधु के समान मीठे स्वर वाला होता हुआ भी मोर सर्पो को खाता है। यही हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। सबके साथ मधुर बोलना (UPBoardSolutions.com) चाहिए, सौहार्दपूर्ण व्यवहार करना चाहिए, शिष्ट आचरण करना चाहिए, किन्तु जो राष्ट्रद्रोही, अत्याचारी, राष्ट्र की अखण्डता या राष्ट्र की एकता के नाशक सर्प के समान विष से भरे हुए हैं, उन्हें उस राष्ट्र के नागरिकों द्वारा उसी प्रकार नष्ट कर देना चाहिए, जिस प्रकार मोर विषैले सर्यों को नष्ट कर देता है।

(3) व्याघ्रःपशुषु व्याघ्रः भारतस्य राष्ट्रियप्रतीकम्। व्याघ्षु चित्रव्याघ्रः बहुवैशिष्ट्य विशिष्टो विद्यते। को न जानाति चित्रव्याघ्रस्यौजः पराक्रमं स्फूर्तिञ्च? एतज्जातीयाः व्याघ्राः अस्मद्देशस्य वनेषुपलभ्यन्ते। एतेषां शरीरे स्थूलकृष्णरेखाः भवन्ति। व्याघोऽसावतीव तीव्रधावकः सततसा- वहितः सङ्कटं विदूरादेव जिघ्न् तदपनेतुं सचेष्टः स्वलक्ष्यमवाप्तुं कृतिरतः स्वसीम्नि एवं पर्यटन् वन्यो जन्तुर्विश्रुतो जगति।। |

शब्दार्थ-
चित्रव्याघ्रः = चितकबरा बाघ।
ओज = बल।
स्फूर्तिञ्च (स्फूर्तिम् + च) = और फूर्ती।
एताज्जातीयाः (एतद् + जातीयाः) = इस जाति के।
अस्मद्देशस्य (अस्मत् + देशस्य) = इस देश के।
वनेषुपलभ्यन्ते (वनेषु + उपलभ्यन्ते) = वनों में प्राप्त होते हैं।
व्याघ्रोऽसावतीव (व्याघ्रः + असौ + अति + इव) = यह बाघ बहुत अधिक।
सावहितः = सावधान।
विदूरादेव = अधिक दूर से ही।
जिघ्रन् = सँघता है।
अपनेतुम् = दूर करने के लिए।
अवाप्तुम् = प्राप्त करने के लिए।
कृतिरतः = कार्यशील।
स्वसीम्नि = अपनी सीमा में विश्रुतः = प्रसिद्ध।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में राष्ट्रीय पशु के प्रतीक के रूप में स्वीकृत बाघ का वर्णन किया गया है।

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अनुवाद-बाघ
पशुओं में बाघ भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है। बाघों में चितकबरा बाघ बहुत विशेषताओं से युक्त होता है। चितकबरे बाघ के बल, वीरता और स्फूर्ति को कौन नहीं जानता है; अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति जानता है। इस जाति के बाघ हमारे देश के वनों में मिलते हैं। इनके शरीर पर मोटी काली रेखाएँ होती हैं। यह बाघ अत्यधिक तेज दौड़ने वाला, सदा सावधान रहने वाला, संकट को दूर से ही सूंघने वाला और उसको दूर करने के (UPBoardSolutions.com) लिए प्रयत्नशील, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्यशील अपनी सीमा में ही घूमने वाला संसार में प्रसिद्ध जंगली जानवर है।

(4) कमलम्कमलं सरसिज पद्मं पङ्कजं शतदलमित्यादिनामभिः प्रथितं पुष्पमस्माकं राष्ट्रियप्रतीकत्वेन स्वीकृतं राष्ट्रियपुष्पस्य यशो विधते। तस्य कोमलत्वं मनोहरत्वं विकासशीलत्वं पवित्रत्वञ्चाभिलक्ष्यैव कविभिः तस्य बहुशः वर्णनं कृतम्। न कश्चिन्महाकविः संस्कृतभाषायां, हिन्दीभाषायां वा विद्यते येनैतस्य पुष्पस्य माहात्म्यं न गीतम्। देवानां स्तुतिप्रसङ्गे दिव्यकरचरणादीनामङ्गानां मानवहृदयस्य चोपमानीकृतं सत्सांस्कृतिकं महत्त्वं विभर्ति पुष्पमिदम्।

शब्दार्थ-
प्रथितम् = प्रसिद्ध।
पुष्पमस्माकम् (पुष्पम् + अस्माकम्) = हमारे फूल।
यशो विधत्ते = यश धारण करता है।
पवित्रत्वञ्चाभिलक्ष्यैव (पवित्रत्वं + च + अभिलक्षि + एव) = और पवित्रता का विचार करके ही।
बहुशः = अत्यधिक।
येनैतस्य (येन + एतस्य) = जिसने इसका।
चोपमानीकृतम् (च + उपमानीकृतम्) = और उपमान के रूप में प्रयुक्त किया गया।
बिभर्ति = धारण करता है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में राष्ट्रीय पुष्प के रूप में चयनित ‘कमल’ के फूल का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
कमले-कमल, सरसिज, पद्म, पंकज, शतदल इत्यादि नामों से प्रसिद्ध फूल हमारे राष्ट्र के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया, राष्ट्रीय पुष्प के यश को धारण करता है। उसकी कोमलता, सुन्दरता, विकासशीलता और पवित्रता को लक्ष्य करके ही कवियों ने उसका बहुत प्रकार से वर्णन किया है। संस्कृत भाषा या हिन्दी भाषा में ऐसा कोई महाकवि नहीं है, जिसने इस पुष्प के महत्त्व का गान न किया हो। देवताओं की स्तुति के (UPBoardSolutions.com) अवसर पर, सुन्दर हाथ-पैर आदि अंगों के और मानव हृदय के उपमान के रूप में प्रयोग किया गया यह फूल सुन्दर सांस्कृतिक महत्त्व को धारण करता है। |

(5) शरदत मनोहरं पुष्पमिदं यत्र तत्र जलसङ्कुलेषु तड़ागेषु सरसु चानायासेनोत्पद्यते वर्धते . रविकनिकरसंसर्गात् प्रस्फुटित। पङ्के जायते पङ्कजं जलसंयोगं शरत्कालञ्चावाप्य वर्धते शोभते । च तथैव कस्मिश्चित् कुले जातः जनः सौविध्यमुपयुक्तावसरञ्च लब्ध्वा वर्धितुं क्षमत इति तत्पुष्पस्य राष्ट्रकृते सन्देशः।।

शब्दार्थ-
शरद (शरद् + ऋर्ती) = शरद् ऋतु में।
चानायासेनोत्पद्यते (च + अनायासेन + उत्पद्यते) = और अनायास उत्पन्न होता है।
रविकरनिकरसंसर्गात् = सूर्य की किरणों के सम्पर्क से।
प्रस्फुटित = विकसित होता है।
सौविध्यमुपयुक्तोवसरञ्च (सौविध्यम् + उपयुक्त + अवसरं + च) = सुविधा और उपयुक्त अवसर को।

प्रसंग
पूर्ववत्।

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अनुवाद
शरद् ऋतु में यह सुन्दर फूल जहाँ-तहाँ जल से भरे तालाबों और पोखरों में सरलता से उत्पन्न होता है और बढ़ता है। सूर्य की किरणों के समूह के सम्पर्क से खिलता है। कीचड़ में (UPBoardSolutions.com) उत्पन्न होता है, उसी प्रकार किसी भी कुल में उत्पन्न हुआ मनुष्य सुविधा और उपयुक्त (अनुकूल) अवसर पाकर बढ़ने में समर्थ होता है। यही इस पुष्प की राष्ट्र के लिए सन्देश है। |

(6) राष्ट्रगानम्-सर्वेषां स्वतन्त्रदेशानां स्वकीयमेकं गानं भवति तदैव राष्ट्रगानसंज्ञयाऽवबुध्यते। प्रत्येकं राष्ट्रं स्वराष्ट्रगानस्य सम्मानं करोति। महत्स्ववसरेषु तद्गानं गीयते। मंदि कश्चिदन्यराष्ट्राध्यक्षोऽस्माकं देशमागच्छति तदा तस्य सम्मानाय तस्य राष्ट्रगानमस्मद्राष्ट्रगानं च वादकैः वाद्येते। महतीनां सभानां समापने तस्य गानमावश्यकम्। विद्यालयेषु प्रार्थनानन्तरं प्रतिदिनं राष्ट्रगानं गीयते।।

शब्दार्थ-
अवबुध्यते = जाना जाता है।
वाद्येते = बजाये जाते हैं।
समापने = समाप्ति पर।
अनन्तरं = बाद में।।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में राष्ट्रगान का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
राष्ट्रगान–सभी स्वतन्त्र देशों का अपना एक गान होता है, वही राष्ट्रगान’ इसे नाम से जाना जाता है। प्रत्येक राष्ट्र अपने राष्ट्रगान का सम्मान करता है। बड़े महत्त्वपूर्ण अवसरों पर उस गान। को गाया जाता है। यदि किसी दूसरे देश का राष्ट्राध्यक्ष (राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री) हमारे देश में आता है, तब (UPBoardSolutions.com) उसके सम्मान के लिए उसके देश का राष्ट्रगान और हमारा राष्ट्रगान वादकों के द्वारा बजाया जाता है। बड़ी सभाओं के समापन पर राष्ट्रगान का गायन ओवश्यक है। विद्यालयों में प्रार्थना के बाद प्रतिदिन राष्ट्रगान गाया जाता है।

(7) अस्माकं राष्ट्रगानं विश्वकविना कवीन्द्रेण रवीन्द्रेण रचितं ‘जनगणमन’ इति संज्ञया विश्वस्मिन् विश्वे विश्रुतं वर्तते। अस्माकं राष्ट्रगाने भारताङ्गभूतानामनेकप्रान्तानां विन्ध्यहिमालय-पर्वतयोः गङ्गायमुनाप्रभृतिनदी नाञ्चोल्लेखं कृत्वा देशस्य विशालत्वं राष्ट्रस्याखण्डत्वं संस्कृतेः गौरवञ्च विश्वकविना वर्णितम्।।

शब्दार्थ-
संज्ञया = नाम से विश्वस्मिन्
विश्वे = पूरे संसार में।
विश्रुतं = प्रसिद्ध।
प्रभृति = आदि।
अखण्डत्वं = अखण्डता।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में राष्ट्रगान के स्वरूप का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
हमारा राष्ट्रगान विश्वकवि कवीन्द्र रवीन्द्र द्वारा रचा गया ‘जन-गण-मन’ इस नाम से सारे संसार में प्रसिद्ध है। हमारे राष्ट्रगान में भारत के अंगस्वरूप अनेक प्रान्तों का, विन्ध्याचल और हिमालय पर्वतों का, गंगा-यमुना आदि नदियों का उल्लेख करके विश्वकवि ने देश की विशालता, राष्ट्र की अखण्डता और संस्कृति के गौरव का वर्णन किया है। |

(8) राष्ट्रगानमिदं द्वापञ्चाशत्पलात्मकं भवति। तस्य गाने द्वापञ्चाशत्पलात्मकः-समयोऽपेक्ष्यते। न ततोऽधिको न वा ततो न्यूनः। तस्यारोहावरोहापि निश्चितौ। तत्र विपर्ययः कर्तुं न (UPBoardSolutions.com) शक्यते। राष्ट्रगाने सदोत्थितैः जनैः सावधानमुद्रया गेयम्। राष्ट्रगानावसरेऽङ्गसञ्चालनं निषिद्धम्। चलतोऽपि कस्यचित्कर्णकुहरे गीयमानस्य राष्ट्रगानस्य ध्वनिः दूरादप्यापतति चेत्तदा तत्रैव सावधानमुद्रया तेनाविचलं स्थातव्यम्।राष्ट्रगानं श्रद्धास्पदं भवति।श्रद्धयैवेदं गेयम्। |

शब्दार्थ-
द्वापञ्चाशत्पलात्मकं (द्वांपञ्चाशत् + पल + आत्मकम्) = बावन पल (52 सेकन्ड) वाला।
अपेक्ष्यते = अपेक्षा होती है।
तस्यारोहावरोहापि (तस्य + आरोह + अवरोहौ + अपि) = उसके चढ़ाव और उतार भी।
विपर्ययः = परिवर्तन, विपरीत।
सावधानमुद्रया = सावधान की मुद्रा में।
निषिद्धम् = निषिद्ध, विपरीत।
कर्णकुहरे = कर्ण-छिद्र में।
आपतति = गिरती है, पड़ती है।
चेत् = यदि।
स्थातव्यम् = स्थित होना चाहिए।
श्रद्धास्पदं = श्रद्धा के योग्य।
श्रद्धयैवेदम् (श्रद्धया + एवं+ इदम्) = श्रद्धा से ही इसे। ।

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प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में राष्ट्रगान के गाने का समय, गाने की मुद्रा तथा इसके महत्त्व को बताया गया है।

अनुवाद
यह राष्ट्रगान बावन सेकण्ड का होता है। उसके गाने में बोवन सेकण्ड के समय की आवश्यकता होती है। न उससे अधिक की और न ही उससे कम की। उसके स्वरों का आरोह-अवरोह (चढ़ाव और उतार) भी निश्चित है। उसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रगान को सदा खड़े हुए लोगों के द्वारा (UPBoardSolutions.com) सावधान मुद्रा में गाया जाना चाहिए। राष्ट्रगान के अवसर पर अंग हिलाना भी वर्जित । है। यदि चलते हुए भी किसी व्यक्ति के कान के छेद में गाये जाते हुए राष्ट्रगान की ध्वनि दूर से भी आ पड़ती है, तब वहीं पर सावधान मुद्रा में उसे स्थिर खड़े हो जाना चाहिए। राष्ट्रगान श्रद्धायोग्य होता है।. श्रद्धापूर्वक ही इसे गाना चाहिए।

(9) राष्ट्रध्वजः सर्वेषु राष्ट्रप्रतीकेषु राष्ट्रध्वजस्य सर्वाधिक महत्त्वं वर्तते। सर्वस्य स्वतन्त्रराष्ट्रस्य स्वकीयो ध्वजो भवति। तद्देशवासिनो जनाः नराः नार्यश्च स्वराष्ट्रध्वजस्य सम्मानं प्राणपणेन रक्षन्ति।।
त्रिवर्णात्मको मध्येऽशोकचक्राङ्कितोऽस्माकं राष्ट्रध्वजः ‘तिरङ्गा’ शब्देन विश्वे विश्रुतो विद्यते।।

शब्दार्थ
सर्वाधिकम् = सबसे अधिक।
वर्तते = है।
प्राणपणेन = प्राणों के मूल्य से अर्थात् प्राणों की बाजी लगाकर।
त्रिवर्णात्मकः = तीन रंगों वाला।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में हमारे राष्ट्रीय प्रतीकों में राष्ट्रध्वज के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।

अनुवाद
राष्ट्रध्वज-सभी राष्ट्रीय-प्रतीकों में राष्ट्रध्वज का सबसे अधिक महत्त्व है। सभी स्वतन्त्र राष्ट्रों का अपना राष्ट्रध्वज होता है। उस देश के रहने वाले स्त्री और पुरुष अपने राष्ट्रध्वज के (UPBoardSolutions.com) सम्मान की रक्षा प्राणों की बाजी लगाकर करते हैं। तीन रंगों वाला, मध्य में अशोक चक्र से चिह्नित हमारा राष्ट्रध्वज तिरंगा’ शब्द से संसार में प्रसिद्ध है।

(10) ध्वजस्याधोभागः हरितवर्णात्मकः सुखसमृद्धिविकासानां सूचकः, मध्यभागे श्वेतवर्णः ज्ञान-सौहार्द-सदाशयादिसद्गुणानां द्योतकः, ऊर्श्वभागे च स्थितः गैरिकवर्णः त्यागस्य शौर्यस्य च बोधकः। ध्वजस्य मध्यभागस्थितश्वेतवर्णमध्येऽवस्थितमशोकचक्रं धर्मस्य सत्यस्याहिंसायाश्च प्रत्यायकम्। चक्रे चतु:विंशतिशलाकाः पृथगपि चक्रमूले एकत्र सम्बद्धाः भारते भाषाधर्मजातिवर्णालिङ्गभेदेषु सत्स्वपि भारतमेकं राष्ट्रमिति द्योतयन्ति। |

शब्दार्थ-
अधोभागः = निचला भाग।
सौहार्द = बन्धुत्व।
द्योतकः = बतलाने वाला।
गैरिकवर्णः = गेरुआ रंग।
प्रत्यायकम् = विश्वास दिलाने वाला।
चतुःविंशतिशलाकाः = चौबीस तीलियाँ।
सत्स्वपि (सत्सु + अपि) = होने पर भी।
द्योतयन्ति = सूचित करते हैं।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में राष्ट्रध्वज के रंगों के वास्तविक अर्थ का बोध कराया गया है। |

अनुवाद
ध्वज के हरे रंग का नीचे का भाग सुख, समृद्धि और विकास का सूचक है। बीच में सफेद रंग ज्ञान, मैत्री, सदाशयता आदि उत्तम गुणों का बोधक है। ध्वज के ऊपरी भाग पर स्थित केसरिया रंग त्याग और शौर्य (वीरता) को सूचक है। ध्वज के मध्य भाग में सफेद रंग के बीच में स्थित अशोक चक्र धर्म, सत्य (UPBoardSolutions.com) और अहिंसा का विश्वास दिलाने वाला है। चक्र में चौबीस रेखाएँ अलग होती हुई भी चक्र के मूल में एक जगह जुड़ी हुई भारत में भाषा, धर्म, जाति, वर्ण, लिंग के भेदों के होते हुए भी ‘भारत एक राष्ट्र है’ ऐसा सूचित करती हैं।

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(11) राष्ट्रध्वजो निर्धारितदीर्घविस्तारपरिमितो भवितव्यः। एषः सदा स्वच्छोऽविकृतवर्णः तिष्ठेत्। जीर्णः शीर्णो विदीर्णो वा ध्वजो नोपयोगयोग्यः। समुच्छ्यिमाणः ध्वजोऽस्तङ्गते सूर्ये समंवतार्य सुरक्षितः संरक्षितव्यः।राष्ट्रियशोकावसरेध्वजोऽर्धमुच्छ्रीयते।।
इत्येतानि राष्ट्रियप्रतीकान्यस्माकं स्वातन्त्र्यस्य प्रत्यायकानि समादृतव्यानि तु सन्त्येव प्राणपणैः रक्षितव्यानि च। |

शब्दार्थ-
परिमितः = निश्चित परिमाण वाला।.
अविकृतवर्णः = शुद्ध रंगों वाला; अर्थात् बिना बिगड़े रंग वाला।
जीर्णः = पुराना।
विदीर्णः = फटा हुआ।
नोपयोगयोग्यः (न + उपयोगयोग्यः) = उपयोग न करने योग्य।
समुच्छ्यिमाणः (सम् + उत् + श्रियमाण:) = ऊपर फहराता हुआ।
समवतार्य = ठीक से उतारकर।
संरक्षितव्य = सुरक्षित रख लेना चाहिए।
इत्येतानि = इस प्रकार ये।
समादृतव्यानि = अधिक आदर करने योग्य। सन्त्येव (सन्ति + एव) = हैं ही।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में राष्ट्रध्वज के स्वरूप एवं उसके फहराये जाने के नियम का उल्लेख है।

अनुवाद
राष्ट्रध्वज निश्चित विस्तार वाला होना चहिए। यह सदा साफ, भद्दे न हुए रंगों वाला होना चाहिए। पुराना, कटा-फटा ध्वज उपयोग के योग्य नहीं है। फहराता हुआ ध्वज सूर्य के छिपने पर उतारकर सुरक्षित रख लेना चाहिए। राष्ट्रीय शोक के अवसर पर ध्वज आधा (UPBoardSolutions.com) फहराया जाता है।
ये राष्ट्रीय प्रतीक हमारी स्वतन्त्रता का विश्वास दिलाने वाले हैं। ये आदर के योग्य तो हैं ही, साथ ही प्राणपण से रक्षा के योग्य भी हैं।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1
भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों की गणना कीजिए।
उत्तर
भारत के पाँच राष्ट्रीय प्रतीक हैं, जिनमें ‘मोर’ राष्ट्रीय पक्षी, ‘बाघ’ राष्ट्रीय पशु, ‘कमल’ राष्ट्रीय पुष्प, ‘जन गण मन’ राष्ट्रीय गान और तिरंगा राष्ट्रध्वज के रूप में स्वीकृत हैं। |

प्ररन 2
राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में स्वीकृत ‘मोर’ की विशेषता लिखिए। यह राष्ट्रवासियों को क्या सन्देश देता है?
उत्तर
मोर अत्यन्त सुन्दर पक्षी है और इसकी बोली भी अत्यधिक मधुर है। इसका भोजन विषैले सर्प हैं। यह हमें सन्देश देता है कि हमें भी सभी से मधुर वाणी में बोलना चाहिए, (UPBoardSolutions.com) अच्छा व्यवहार करना चाहिए और राष्ट्रीय एकता-अखण्डता को नष्ट करने वाले सर्प के समान दुष्ट व्यक्तियों को मार देना चाहिए।

प्ररन 3
राष्ट्रीय पुष्पकमल’ का राष्ट्र के लिए क्या सन्देश है? |
उत्तर
कमल’ कीचड़ में उत्पन्न होता है, शरद् ऋतु में बढ़ता है और खिलकर शोभा पाता है। यह राष्ट्रवासियों को सन्देश देता है कि प्रतिकूल परिस्थितियों के उत्पन्न होने पर भी उन्हें अपना धैर्य बनाये रखना चाहिए और अनुकूल अवसर की प्रतीक्षा करते रहना चाहिए।

प्ररन4
राष्ट्रीय ध्वज में प्रयुक्त अशोक चक्र का क्या महत्त्व है?
उत्तर
राष्ट्रीय ध्वज में प्रयुक्त अशोक चक्र सत्य, धर्म और अहिंसा का बोध कराता है। जिस प्रकार चक्र की शलाकाएँ अलग-अलग होते हुए भी केन्द्र में मिली होती हैं, उसी प्रकार हमें भी भाषा, धर्म, जाति आदि की भिन्नताओं के बाद भी एकजुट होकर रहना चाहिए। यही भावना अशोक चक्र के द्वारा प्रकट होती है।

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प्ररन 5
अपने राष्ट्र-गान और राष्ट्रध्वज की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
हमारा राष्ट्र-गान कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित है। इसमें कवि ने भारत के प्रान्तों, पर्वतों और नदियों का उल्लेख किया है, जो राष्ट्र की विशालता, अखण्डता, संस्कृति तथा गौरव को ध्वनित करता है। हमारा राष्ट्रध्वज तीन रंगों वाला है और ‘तिरंगा’ नाम से जाना जाता है। इसका हरा रंग सुख, (UPBoardSolutions.com) समृद्धि और विकास का सूचक है, सफेद रंग ज्ञान, भाईचारा, उच्च विचार जैसे सदगुणों का द्योतक है। और केसरिया रंग त्याग और शूरता का बोधक है। सफेद रंग के मध्य में स्थित चक्र ‘अनेकता में एकता’ को प्रकट करता है।

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi रस

UP Board Solutions for Class 10 Hindi रस

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रस

परिभाषा-‘रस’ का अर्थ है–‘आनन्द’ अर्थात् काव्य से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, वही ‘रस’ है। इस प्रकार किसी काव्य को पढ़ने, सुनने अथवा अभिनय को देखने पर पाठक, श्रोता या दर्शक को जो आनन्द प्राप्त होता है, उसे ‘रस’ कहते हैं। रस को ‘काव्य की आत्मा’ भी कहा जाता है।

रस के स्वरूप और उसके व्यक्त होने की प्रक्रिया का वर्णन करते हुए भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में लिखा है-‘विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः’ अर्थात् विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती (UPBoardSolutions.com) है। इस सूत्र में स्थायी भाव का स्पष्ट उल्लेख नहीं है; अत: इस सूत्र का पूरा अर्थ होगा कि स्थायी भाव ही विभाव, संचारी भाव और अनुभाव के संयोग से रस-रूप में परिणत हो जाते हैं।

अंग या अवयव-रस के चार अंग होते हैं, जिनके सहयोग से ही रस की अनुभूति होती है। ये चारों अंग या अवयव निम्नलिखित हैं–

  1. स्थायी भाव,
  2. विभाव,
  3. अनुभाव तथा
  4. संचारी भाव। स्थायी भाव

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जो भाव मानव के हृदय में हर समय सुप्त अवस्था में विद्यमान रहते हैं और अनुकूल अवसर पाते ही जाग्रत या उद्दीप्त हो जाते हैं, उन्हें स्थायी भाव कहते हैं। प्राचीन आचार्यों ने नौ रसों के नौ स्थायी भाव माने हैं, किन्तु बाद में आचार्यों ने इनमें दो रस और जोड़ दिये। इस प्रकार रसों की कुल संख्या ग्यारह हो गयी। रस और उनके स्थायी भाव निम्नलिखित हैं-

UP Board Solutions for Class 10 Hindi रस img-1

विभाव

जिन कारणों से मन में स्थित सुप्त स्थायी भाव जाग्रत या उद्दीप्त होते हैं, उन्हें विभाव कहते हैं। विभाव के दो भेद होते हैं|

(1) आलम्बन-विभाव-जिस वस्तु या व्यक्ति के कारण किसी व्यक्ति में कोई स्थायी भाव जाग्रत हो जाये तो वह वस्तु या व्यक्ति उस भाव का आलम्बन-विभाव कहलाएगा; जैसे-जंगल से गुजरते समय अचानक शेर के दिखाई देने से भय नामक स्थायी भाव जागने पर ‘शेर आलम्बन-विभाव होगा।
आलम्बन-विभाव के भी दो भेद होते हैं—आश्रय और विषय। जिस व्यक्ति के मन में स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं उसे आश्रय तथा जिस व्यक्ति या वस्तु के कारण आश्रय के चित्त में स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, उसे विषय कहते हैं। इस उदाहरण में व्यक्ति को ‘आश्रय’ तथा शेर को ‘विषय’ कहेंगे।

(2) उद्दीपन-विभाव-जो कारण स्थायी भावों को उत्तेजित या उद्दीप्त करते हैं, (UPBoardSolutions.com) वे उद्दीपन- विभाव कहलाते हैं; जैसे—शेर की दहाड़। यह स्थायी भाव ‘भय’ को उद्दीप्त करता है।

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अनुभाव

मन में आने वाले स्थायी भाव के कारण मनुष्य में कुछ शारीरिक चेष्टाएँ उत्पन्न होती हैं, वे अनुभाव कहलाती हैं; जैसे–शेर को देखकर भाग खड़ा होना या बचाव के लिए जोर-जोर से चिल्लाना। इस प्रकार उसकी बाह्य चेष्टाओं से दूसरों पर भी यह प्रकट हो जाता है कि उसके मन में अमुक भाव जाग्रत हो गया है।

अनुभाव मुख्यत: चार प्रकार के होते हैं—

  1. कायिक,
  2. मानसिक,
  3. आहार्य तथा
  4. सात्त्विक

(1) कायिक अनुभाव–आश्रय द्वारा इच्छापूर्वक की जाने वाली आंगिक चेष्टाओं को कायिक, (शरीर से सम्बद्ध) अनुभाव कहते हैं; जैसे—भागना, कूदना, हाथ से संकेत करना आदि।

(2) मानसिक अनुभाव-हृदय की भावना के अनुकूल मन में हर्ष-विषाद आदि भावों के उत्पन्न होने से जो भाव प्रदर्शित किये जाते हैं, वे मानसिक अनुभाव कहलाते हैं।

(3) आहार्य अनुभाव-मन के भावों के अनुसार अलग-अलग प्रकार की कृत्रिम वेश-रचना करने को आहार्य अनुभाव कहते हैं।

(4) सात्त्विक अनुभाव-जिन शारीरिक विकारों पर आश्रय का कोई वश नहीं होता, अपितु वे स्थायी भाव के उद्दीप्त होने पर स्वत: ही उत्पन्न हो जाते हैं, वे सात्त्विक अनुभाव कहलाते हैं। ये आठ प्रकार के होते हैं—

  1. स्तम्भ (शरीर के अंगों का जड़ हो जाना),
  2. स्वेद (पसीने-पसीने हो जाना),
  3. रोमांच (रोंगटे खड़े हो जाना),
  4. स्वर-भंग (आवाज न निकलना),
  5. कम्प (काँपना),
  6. विवर्णता (चेहरे का रंग उड़ जाना),
  7. अश्रु (आँसू),
  8. प्रलय (सुध-बुध खो बैठना)।

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संचारी भाव

आश्रय के मन में उठने वाले अस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव कहते हैं। ये मनोविकार पानी के बुलबुलों की भाँति बनते-मिटते रहते हैं। संचारी भाव को व्यभिचारी भाव के नाम से भी पुकारते हैं। ये स्थायी भावों को अधिक पुष्ट करने में सहायक का कार्य करते हैं। (UPBoardSolutions.com) ये अपना कार्य करके तुरन्त स्थायी भावों में ही विलीन हो जाते हैं। प्रमुख संचारी भावों की संख्या तैंतीस मानी गयी है, जो इस प्रकार हैं-

  1. निर्वेद,
  2. आवेग,
  3. दैन्य,
  4. श्रम,
  5. मद,
  6. जड़ता,
  7. उग्रता,
  8. मोह,
  9. विबोध,
  10. स्वप्न,
  11. अपस्मार,
  12. गर्व,
  13. मरण,
  14. आलस्य,
  15. अमर्ष,
  16. निद्रा,
  17. अवहित्था,
  18. उत्सुकता,
  19. उन्माद,
  20. शंका,
  21. स्मृति,
  22. मति,
  23. व्याधि,
  24.  सन्त्रास,
  25. लज्जा,
  26. हर्ष,
  27. असूया,
  28. विषाद,
  29. धृति,
  30. चपलता,
  31. ग्लानि,
  32. चिन्ता और
  33. वितर्क।

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[विशेष—कक्षा 10 के पाठ्यक्रम में केवल हास्य और करुण रस ही निर्धारित हैं, किन्तु अध्ययन में परिपक्वता की दृष्टि से श्रृंगार और वीर रस को भी संक्षेप में यहाँ दिया जा रहा है; क्योंकि पद्यांशों का । काव्य-सौन्दर्य लिखने के लिए इनका ज्ञान भी आवश्यक है।]

(1) श्रृंगार रस

परिभाषा–स्त्री-पुरुष के पारस्परिक प्रेम (मिलन या विरह) के वर्णन से हृदय में उत्पन्न होने वाले आनन्द को श्रृंगार रस कहते हैं। यह रसराज कहलाता है। इसका स्थायी भाव ‘रति’ है।

भेद-श्रृंगार रस के दो भेद होते हैं–

  1. संयोग श्रृंगार तथा
  2. वियोग (विप्रलम्भ) श्रृंगार।

(1) संयोग श्रृंगार-जब नायक-नायिका के विविध प्रेमपूर्ण कार्यों, मिलन, वार्तालाप, स्पर्श आदि का वर्णन होता है, तब संयोग श्रृंगार होता है; उदाहरण-

बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनि हँसै, दैन कहै नटि जाय।

स्पष्टीकरण-

(1) स्थायी भाव–रति।
(2) विभाव—

  • आलम्बन-कृष्ण। आश्रय-राधा।
  • उद्दीपन-बतरस लालच।

(3) अनुभाव-बाँसुरी छिपाना, भौंहों से हँसना, मना करना।
(4) संचारी भाव-हर्ष, उत्सुकता, चपलता आदि।

(2) वियोग (विप्रलम्भ) श्रृंगार—प्रबल प्रेम होते हुए भी जहाँ नायक-नायिका के वियोग का । वर्णन हो, वहाँ वियोग श्रृंगार होता है; उदाहरण-

ऊधौ मन न भये दस बीस ।
एक हुतौ सो गयौ स्याम सँग, को अवराधै ईस ॥
इंद्री सिथिल भई केसव बिनु, ज्यौं देही बिनु सीस।
आसा लागिरहति तन स्वासा, जीवहिं कोटि बरीस ॥
तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस ।
सूर हमारें नंदनंदन बिनु, और नहीं जगदीस ॥

स्पष्टीकरण–

(1) स्थायी भाव–रति।
(2) विभाव—

  • आलम्बन–कृष्ण। आश्रय-गोपियाँ।
  • द्दीपन—उद्धव का योग सन्देश।

(3) अनुभाव-विषाद।।
(4) संचारी भाव-दैन्य, जड़ता, स्मृति आदि।

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(2) हास्य रस [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]

परिभाषा-किसी व्यक्ति के विकृत रूप, आकार, वेशभूषा आदि को देखकर (UPBoardSolutions.com) हृदय में जो विनोद का भाव उत्पन्न होता है, वही ‘हास’ कहलाता है। यही ‘हास’ नामक स्थायी भाव विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से पुष्ट होकर हास्य रस कहलाता है; उदाहरण-

बिन्ध्य के बासी उदासी तपोब्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे।
गौतम तीय तरी तुलसी, सो कथा सुनि भै मुनिबूंद सुखारे ॥
छैहैं सिला सब चन्द्रमुखी, परसे पद-मंजुल-कंज तिहारे।
कीन्हीं भली रघुनायक जू करुना करि कानन को पगु धारे॥ [2009]

स्पष्टीकरण–

  1.  स्थायी भाव-हास (हँसी)।
  2. विभाव—
    • आलम्बन–विन्ध्य के वासी तपस्वी। आश्रय-पाठक।
    • उद्दीपन-अहिल्या की कथा सुनना, राम के आगमन पर प्रसन्न होना, स्तुति करना।।
  3. अनुभाव-हँसना।।
  4. संचारी भाव–स्मृति, चपलता, उत्सुकता आदि।
    अन्य उदाहरण—

    • पूछति ग्रामवधू सिय सों, ‘कहौ साँवरे से, सखि रावरे क़ो हैं ?
    • आगे चना गुरुमात दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने ।
      स्याम कह्यो मुसकाय सुदामा सौं, चोरी की बान में हौ जू प्रवीने ।।
      पोटरी कॉख में चॉपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधारस भीने ।
      पाछिली बानि अजौ ने तजौ तुम, तैसेई भाभी के तन्दुल कीन्हे ।।

(3) करुण रस [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]

परिभाषा–प्रिय वस्तु तथा व्यक्ति के नाश या अनिष्ट से हृदय में उत्पन्न क्षोभ से ‘शोक’ उत्पन्न होता है। यही शोक नामक स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से पुष्ट हो जाता है तब ‘करुण रस’ दशा को प्राप्त होता है; उदाहरण-श्रवणकुमार की मृत्यु पर उसकी माता की यह दशा करुण रस की निष्पत्ति कराती है–

मणि खोये भुजंग-सी जननी,
फन-सा पटक रही थी शीश,
अन्धी आज बनाकर मुझको,
किया न्याय तुमने जगदीश ?

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स्पष्टीकरण–

  1. स्थायी भाव—शोक।
  2. विभाव—
    • आलम्बन-श्रवण। आश्रय–पाठक।
    • उद्दीपन-दशरथ की उपस्थिति।
  3. अनुभाव-सिर पटकना, प्रलाप करना आदि।
  4. संचारी भाव-स्मृति, विषाद आदि।

अन्य उदाहरण

(1) अभी तो मुकुट बँधा था माथ, हुए कल ही हल्दी के हाथ ।
खुले भी न थे लाज के बोल, खिले भी चुम्बन शून्य कपोल ।।
हाय रुक गया यहीं संसार, बना सिन्दूर अनल अंगारे ।
वातहत लतिका यह सुकुमार, पड़ी है। छिन्नाधार ।।

(2) सोक बिकल सब रोवहिं रानी। रूप सीले बल तेज बखानी ।।
करहिं बिलाप अनेक प्रकारा। परहिं भूमि तल बारहिं बारा ।। [2017]

(4) वीर रस

परिभाषा-शत्रु के उत्कर्ष को मिटाने, दोनों की दुर्दशा देख उनका उद्धार करने, (UPBoardSolutions.com) धर्म का उद्धार करने आदि में जो उत्साह कर्मक्षेत्र में प्रवृत्त करता है, वह वीर रस कहलाता है। वीर रस का स्थायी भाव ‘उत्साह’ है; उदाहरण-

मैं सत्य कहता हूँ सखे, सुकुमार मत जानो मुझे।
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा मानो मुझे ॥
है और की तो बात ही क्या, गर्व मैं करता नहीं।
मामा तथा निज तात से भी, समर में डरता नहीं ॥

स्पष्टीकरण-

  1. स्थायी भाव–उत्साह।
  2. विभाव-
    • आलम्बन-कौरव। आश्रय-अभिमन्यु।
    • उद्दीपन-चक्रव्यूह की रचना।
  3. अनुभाव-अभिमन्यु की उक्ति।
  4.  संचारी भाव-गर्व, हर्ष, उत्सुकता आदि।

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अभ्यास

प्रश्न 1
निम्नलिखित में कौन-सा रस है ? उसका स्थायी भाव एवं परिभाषा लिखिए
(1) बिपति बँटावन बंधु बाहु बिनु करौं भरोसो काको ?
(2) नाना वाहन नाना वेषा। बिहसे सिव समाज निज देखा ।।
कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद–कर कोऊ बहु-बाहू ।।
(3) जो भूरि भाग्य भरी विदित थी निरुपमेय सुहासिनी ।
हे हृदयवल्लभ! हूँ वही अब मैं महा हतभागिनी ।।
जो साथिनी होकर तुम्हारी थी अतीव सनाथिनी ।।
है अब उसी मुझ-सी जगत में और कौन अनाथिनी ।।
(4) जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फन करिबर कर हीना ।।
अस मम जिवन बन्धु बिन तोही। जौ जड़ दैव जियावइ मोही ।। [2010, 11]
(5) सीस पर गंगा हँसै, भुजनि भुजंगा हँसै ।
हास ही को दंगा भयो नंगा के विवाह में ।। [2010, 12, 14]
(6) हँसि हँसि भाजै देखि दूलह दिगम्बर को,
पाहुनी जे आवें हिमाचल के उछाह में। [2011, 12, 13, 15]
(7) हे जीवितेश ! उठो, उठो यह नींद कैसी घोर है।
है क्या तुम्हारे योग्य, यह तो भूमि सेज कठोर है।।
(8) हरि जननी मैं बालक तेरा। काहे न अवगुण बकसहु मेरा ।।
सुत अपराध करै दिन केते। जननी कैचित रहै न तेते ।।
कर गहि केस करे जो घाता। तऊ न हेत उतारै माता ।।
कहैं कबीर एक बुधि बिचारी। बालक दुःखी-दुःखी महतारी ।।
(9) जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेहिं न बिलोकी भूली ।।
पुनि पुनि मुनि उकसहिं अकुलानी। देखि दसा हर गन मुसुकाहीं ।। [2014]
(10) ब्रज के बिरही लोग दुखारे।
बिनु गोपाल ठगे से ठाढ़े, अति दुर्बल तन कारे ।।
नंद जसोदा मारग जोवति, निस दिन साँझ सकारे ।
चहुँ दिसि कान्ह कान्ह कहि टेरते, अँसुवन बहत पनारे ।।
(11) ऊधौ मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं ।।
वृंदावन गोकुल वन उपवन सघन कुंज की छाहीं ।।
(12) चहुँ दिसि कान्ह कान्हें कहि टेरत, अँसुवने बहत पनारे ।। [2013]
(13) तात तात हा तात पुकारी। परे भूमितल व्याकुल भारी ।।
चलत न देखन पायउँ तोही। तात न रामहिं सौंपेउ मोही ।। [2009, 10]
(14) हा! वृद्धा के अतुल धन, हा! मृदुता के सहारे ।
ही ! प्राणों के परमप्रिय, हा! एक मेरे दुलारे ।
(15) गोपी ग्वाल गाइ गो सुत सब, अति ही दीन विचारे ।
सूरदास प्रभु बिनु यौं देखियत, चंद बिना ज्यौं तारे ।।

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(16) प्रिय पति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है ।
दु:ख जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है ।।
लख मुख जिसका आज लौं जी सकी हूँ, |
वह हृदय हमारा नैन- तारा कहाँ है ।। [2011]
(17) करि विलाप सब रोवहिं रानी। महा बिपति किमि जाय बखानी ।।
सुन विलाप दुखहूँ दुख लागा। धीरजहूँ कर धीरज भागा ।।
(18) कौरवों का श्राद्ध करने के लिए।
या कि रोने को चिता के सामने।
शेष अब है रह गया कोई नहीं,
एक वृद्धा एक अन्धे के सिवा।। [2010, 12, 14]
(19) पति सिर देखत मन्दोदरी। मुरुछित बिकले धरनि खसि परी।।
जुबति बूंद रोवत उठि धाई। तेहि उठाइ रावन पहिं आई ।। [2012]
(20) राम-राम कहि राम (UPBoardSolutions.com) कहि, राम-राम कहि राम ।
तन परिहरि रघुपति विरहं, राउ गयउ सुरधाम् ।। [2012]
(21) मम अनुज पड़ा है, चेतनाहीन होके,
तरल हृदय वाली जानकी भी नहीं है ।
अब बहु दु:ख से अल्प बोला न जाता,
क्षण भर रह जाता है न उद्विग्नता से ।। [2013]
(22) बिलपहिं बिकलदास अरु दासी। घर घर रुदन करहिं पुरवासी ।
अँथयउ आजु भानुकुल भानू। धरम अवधि गुन रूप निधानू ।। [2018]
उत्तर
(1) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(2) रस — हास्य, स्थायी भाव – शोक।
(3) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(4) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(5) रस — करुण, स्थायी भाव शोक।
(6) रस — हास्य, स्थायी भाव – हास।
(7) रस – करुण, स्थायी भाव – शोक।
(8) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(9) रस — हास्य, स्थायी भावे – हास।
(10) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(11) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक!
(12) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(13) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(14) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(15) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(16) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(17) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(18) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(19) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(20) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(21) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।
(22) रस — करुण, स्थायी भाव – शोक।

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[ संकेत-परिभाषा के लिए सम्बन्धित रस की सामग्री का अध्ययन करें।]

प्रश्न 2
करुण रस का स्थायी भाव बताते हुए एक उदाहरण दीजिए। [2011]
या
करुण रस की परिभाषा लिखिए और उसका एक उदाहरण दीजिए। [2011, 12, 13, 14, 15, 16, 17]
या
करुण रस की परिभाषा सोदाहरण लिखिए।
उत्तर
[संकेत-करुण रस के अन्तर्गत दिये गये विवरण को पढ़िए।]

प्रश्न 3
हास्य रस की परिभाषा लिखिए और उसका स्थायी भाव भी बताइए। [2011]
या
हास्य रस की परिभाषा उदाहरण सहित  लिखिए। [2009, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17]
या
हास्य रस का लक्षण और उदाहरण दीजिए।
या
हास्य रस का स्थायी भाव लिखिए तथा एक उदाहरण बताइट। [2009, 11]
उत्तर
[ संकेत-हास्य रस के अन्तर्गत दिये गये विवरण को पढ़िए।]

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प्रश्न 4
निम्नांकित पद्यांश में वर्णित रस का उल्लेख करते हुए उसका स्थायी भाव बताइए-
मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाँईं परै, स्याम हरित दुति होय ॥
उत्तर
प्रस्तुत दोहे के एक से अधिक अर्थ हैं। एक अर्थ के आधार पर इसे भक्ति रस का दोहा माना जाता है तथा दूसरे अर्थ के आधार पर श्रृंगार रस का। भक्ति रस का स्थायी भाव है—देव विषयक रति तथा शृंगार रस का स्थायी (UPBoardSolutions.com) भाव है-रति।
[ संकेत–उपर्युक्त दोनों ही रस पाठ्यक्रम में निर्धारित नहीं हैं।]

प्रश्न 5
‘भक्ति रस’ और ‘वात्सल्य रस’ में क्या अन्तर है ? कोई एक उदाहरण लिखिए।
या
वात्सल्य रस की उदाहरण सहित परिभाषा लिखिए।
उत्तर
देवताविषयक रति अर्थात् भगवान् के प्रति अनन्य प्रेम ही विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट होकर भक्ति रस में परिणत हो जाता है;
उदाहरण-

पुलक गात हिय सिय रघुबीरू। जीह नामु जप लोचन नीरू॥ पुत्र, बालक, शिष्य, अनुज आदि के प्रति रति को भाव स्नेह कहलाता है। इसका वत्सल नामक स्थायी भाव; विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट होकर वात्सल्य रस में परिणत हो जाता है; उदाहरण-

जसोदा हरि पालने झुलावै ।
हलराउँ, दुलरावें, मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावें ॥

[संकेत-उपर्युक्त दोनों ही रस पाठ्यक्रम में निर्धारित नहीं हैं।]

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प्रश्न 6
सिसु सब राम प्रेम बस जाने। प्रीति समेत निकेत बखाने ।।
निज-निज रुचि सब लेहिं बुलाई। सहित सनेह जायँ दोउ भाई ।।
उपर्युक्त चौपाई में निहित रस तथा उसका स्थायी भाव लिखिए।
उत्तर
प्रश्न में दी गई चौपाई में श्रृंगार रस है, जिसका स्थायी भाव ‘रति’ है।

[संकेत-यह रस पाठ्यक्रम में निर्धारित नहीं है।

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 6 अजन्ता (गद्य खंड)

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जीवन-परिचय एवं कृतियाँ

प्रश्न 1.
भगवतशरण उपाध्याय के जीवन-परिचय एवं साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालिए। [2009, 10]
या
भगवतशरण उपाध्याय का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी एक रचना का नामोल्लेख कीजिए। [2011, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
संस्कृत-साहित्य तथा पुरातत्त्व के समर्थ अध्येता एवं हिन्दी-साहित्य के प्रसिद्ध उन्नायक भगवतशरण उपाध्याय अपने मौलिक और स्वतन्त्र विचारों के लिए प्रसिद्ध हैं। ये प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के प्रमुख अध्येता और व्याख्याकार होते हुए भी रूढ़िवादिता एवं परम्परावादिता से ऊपर रहे हैं। |

जीवन-परिचय-भगवतशरण उपाध्याय का जन्म सन् 1910 ई० में बलिया (उत्तर प्रदेश) जिले के ‘उजियारपुर’ नामक ग्राम में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने ग्राम में हुई। उच्च शिक्षा-प्राप्ति के लिए ये बनारस आये और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। ये संस्कृत-साहित्य और पुरातत्त्व के अध्येता तथा हिन्दी-साहित्य के उन्नायक रहे हैं। ये प्रयाग एवं लखनऊ संग्रहालयों (UPBoardSolutions.com) के पुरातत्त्व विभाग के अध्यक्ष भी रहे हैं। इन्होंने पिलानी स्थित बिड़ला महाविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर भी कार्य किया। तत्पश्चात् विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्राचीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष पद पर कार्य करके अवकाश ग्रहण किया और देहरादून में स्थायी रूप से निवास करते हुए साहित्य-सेवा में जुट गये। अगस्त, सन् 1982 ई० में इसे मनीषी साहित्यकार ने इस असारे संसार से विदा ले ली।

रचनाएँ–उपाध्याय जी ने हिन्दी में तो विपुल साहित्य की रचना की ही है, किन्तु अंग्रेजी में भी इनकी कुछ एक प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनकी उल्लेखनीय रचनाएँ निम्नलिखित हैं

  1. पुरातत्त्व-‘मन्दिर और भवन’, ‘भारतीय मूर्तिकला की कहानी’, ‘भारतीय चित्रकला की कहानी’, ‘कालिदास का भारत’। इन पुस्तकों में प्राचीन भारतीय संस्कृति, साहित्य और कला का सूक्ष्म वर्णन हुआ है।। |
  2. इतिहास–‘खून के छींटे’, ‘इतिहास साक्षी है’, ‘इतिहास के पन्नों पर’, ‘प्राचीन भारत का इतिहास’, ‘साम्राज्यों के उत्थान-पतन’ आदि। इन पुस्तकों में प्राचीन इतिहास को साहित्यिक सरसता के साथ प्रस्तुत किया गया है।
  3. आलोचना-‘विश्व साहित्य की रूपरेखा’, ‘साहित्य और कला’, ‘कालिदास’ आदि। इन ग्रन्थों में साहित्य के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। |
  4. यात्रा-वृत्तान्त-‘कलकत्ता से पीकिंग’, ‘सागर की लहरों पर’, ‘मैंने देखा लाल चीन’ आदि। इनमें इनकी विदेश-यात्राओं का सजीव विवरण है।
  5. संस्मरण और रेखाचित्र--‘मैंने देखा’, ‘इँठा आम’। इनमें स्मृति के साथ-साथ संवेदना के रंगों से भरे सजीव शब्द-चित्र उभारे गये हैं।
  6. अंग्रेजी ग्रन्थ-‘इण्डिया इन कालिदास’, ‘वीमेन इन ऋग्वेद’ तथा ‘एंशियेण्ट इण्डिया’।

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साहित्य में स्थान-उपाध्याय जी पुरातत्त्व और संस्कृति के महान् विद्वान् हैं। उन्होंने अपने गम्भीर और सूक्ष्म अध्ययन को अपनी रचनाओं में साकार रूप प्रदान किया है। वे हिन्दी के पुरातत्त्वविद्, भारतीय

संस्कृति के अध्येता, रेखाचित्रकार और महान् शैलीकार थे। विदेशों में दिये गये उनके व्याख्यान हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। इन्होंने सौ से भी अधिक पुस्तकें लिखकर हिन्दी-साहित्य में अपना उल्लेखनीय स्थान बनाया है।

गद्यांशों पर आधारित प्रश्न

प्रश्न-पत्र में केवल 3 प्रश्न (अ, ब, स) ही पूछे जाएँगे। अतिरिक्त प्रश्न अभ्यास एवं परीक्षोपयोगी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण दिए गये हैं।
प्रश्न 1.
जिन्दगी को मौत के पंजों से मुक्त कर उसे अमर बनाने के लिए आदमी ने पहाड़ काटा है। किस तरह इंसान की खूबियों की कहानी सदियों बाद आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचायी जाए, इसके लिए आदमी ने कितने ही उपाय सोचे और किये।  उसने चट्टानों पर अपने संदेश खोदे, ताड़ों-से ऊँचे धातुओं-से चिकने पत्थर के खम्भे खड़े किये, ताँबे और पीतल के पत्तरों पर अक्षरों के मोती बिखेरे और उसके जीवन-मरण की कहानी सदियों के उतार पर सरकती चली आयी, चली आ रही है, जो आज हमारी अमानत-विरासत बन गयी है। [2011]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?
  2. व्यक्ति ने आगामी पीढ़ी तक अपनी  बातों को पहुँचाने के लिए क्या-क्या किया है ?
  3. आगामी पीढ़ी तक पहुँचायी गयी बातें आज हमारे लिए क्या स्थान रखती हैं ?
  4. लेखक की दृष्टि में अजन्ता की गुफाओं के निर्माण का क्या उद्देश्य रहा है ?

[ सरकती = फिसलती। अमानत = सुरक्षित रखने के लिए दी गयी वस्तु, धरोहर। विरासत = पूर्वजों से। प्राप्त सम्पत्ति या गुण, उत्तराधिकार।]

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उत्तर
(अ) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड’ में संकलित तथा भारतीय पुरातत्त्व के महान् विद्वान् श्री भगवतशरण उपाध्याय द्वारा लिखित ‘अजन्ता’ शीर्षक निबन्ध से उद्धृत है। अथवा निम्नवत् लिखेंपाठ का नाम-अजन्ता। लेखक का नाम—भगवतशरण उपाध्याय।।
[विशेष—इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के प्रश्न ‘अ’ (UPBoardSolutions.com) के लिए यही उत्तर इसी रूप में लिखा जाएगा।]

(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्यो-मनुष्य का जीवन क्षणभंगुर है। मृत्यु सबको निगल जाती है। मृत्यु से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है, वह है कृति (रचना)। मनुष्य को कुछ ऐसी रचना कर देनी चाहिए, जो अनन्तकाल तक स्थायी रहे। जब तक वह रचना विद्यमान रहेगी, उसके रचयिता का नाम जीवित रहेगा। लोग उसे भी याद करेंगे। किसी व्यक्ति विशेष को अगली पीढ़ियाँ जानें और सैकड़ों-हजारों वर्षों के बाद आने वाली पीढ़ियाँ भी अपने महान् पूर्वजों की विशेषताओं और इतिहास से परिचित हों, इसके लिए मनुष्य ने अनेक उपाय सोचे और उन उपायों को कार्यरूप में परिणत भी किया।

द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या–लेखक का कहना है कि अपनी बातों को अग्रिम पीढ़ी तक पहुँचाने के उद्देश्य से मनुष्य ने पत्थर की विशाल चट्टानों पर सन्देश खुदवाये जिससे आने वाली सन्तति उन्हें पढ़े और जाने। कभी मनुष्य ने ताड़ के वृक्षों के समान ऊँचे चिकने पत्थरों से स्तम्भ बनवाये तथा ताँबे और पीतल के पत्रों पर सुन्दर मोती जैसे अक्षरों में लेख लिखवाये जो आगे आने वाली पीढ़ियों को उनके पूर्वजों की कहानी सुनाएँ। इसी प्रकार मानव-जाति का इतिहास एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चला आ रहा है। ये पहाड़ों की गुफाएँ, चट्टान, स्तम्भ तथा लेख आज हमारे समाज की धरोहर हैं। ये हमारे पूर्वजों की परम्परा से चली आती हुई हमारी सम्पत्ति हैं। हम इन पर गर्व करते हैं।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहना चाहता है कि अमरत्व प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को कला का सहारा लेना चाहिए।
  2. अपनी बातों को आगामी पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए व्यक्ति ने पत्थर की चट्टानों पर सन्देश खुदवाये, ऊँचे-चिकने पत्थरों के खम्भे बनवाये, ताँबे-पीतल के पत्रों पर लेख लिखवाये तथा पर्वतों पर गुफा-मन्दिर बनवाये।
  3. आगामी पीढ़ी तक विभिन्न माध्यमों से पहुँचायी गयी बातें आज हमारे लिए धरोहर को स्थान रखती हैं, जो पूर्वजों की परम्परा से आयी हमारी सम्पत्ति हैं।
  4. लेखक की दृष्टि में अजन्ता की गुफाओं के निर्माण का (UPBoardSolutions.com) उद्देश्य यह है कि सैकड़ों-हजारों वर्षों के बाद आने वाली पीढ़ियाँ भी अपने पूर्वजों की विशेषताओं और अपने देश के इतिहास से परिचित हो सकें।

प्रश्न 2.
जैसे संगसाजों ने उन गुफाओं पर रौनक बरसायी है, चितेरे जैसे रंग और रेखा में दर्द और दया की कहानी लिखते गये हैं, कलावन्त छेनी से मूरतें उभारते-कोरते गये हैं, वैसे ही अजन्ता पर कुदरत का नूर बरस पड़ा है, प्रकृति भी वहाँ थिरक उठी है। बम्बई के सूबे में बम्बई और हैदराबाद के बीच, विन्ध्याचल के पूरब-पश्चिम दौड़ती पर्वतमालाओं से निचौंधे पहाड़ों का एक सिलसिला उत्तर से दक्खिन चला गया है, जिसे सह्याद्रि कहते हैं। (2015)
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने किस स्थान का और कैसा चित्रण किया है ?
  2. अजन्ता के गुफा मन्दिर किस पहाड़ की श्रृंखला को सनाथ करते हैं ?
  3. सह्याद्रि की भौगोलिक स्थिति को स्पष्ट कीजिए।

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[ संगसाज = शिल्पी, पत्थरों पर चित्र कुरेदने वाले। रौनक = सुन्दरता। कलावन्त = कलाकार। कुदरत = प्रकृति। नूर = आभा, चमक। निचौंधे = नीचे का। गुहा = गुफा।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-अजन्ता की गुफाओं को देखकर ऐसा लगता है कि पत्थरों को काटकर मूर्ति बनाने वाले कलाकारों ने इन गुफाओं में चारों ओर सौन्दर्य की वर्षा कर दी है। चित्रकारों ने रंगों और रेखाओं के माध्यम से पीड़ा और (UPBoardSolutions.com) करुणा की भावनाओं को व्यक्त करने वाले सजीव चित्र अंकित कर दिये हैं। शिल्पकारों ने अपनी छेनी की चोटों से पत्थरों को काटकर और उभारकर सजीव मूर्तियाँ बना दी हैं। अजन्ता की गुफाओं में प्रकृति ने भी विशेष सौन्दर्य बरसाया है। ऐसा लगता है कि प्रकृति भी उस कलात्मक सौन्दर्य को देखकर आनन्द से नृत्य करने लगी है।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अजन्ता की गुफाओं के चारों ओर की प्राकृतिक वैभव की छटा, गुफाओं के पत्थरों पर भावपूर्ण चित्र एवं जीवन्त मूर्तियों का बड़ा सजीव, हृदयग्राही और आलंकारिक चित्रण किया है।
  2. अजन्ता के गुफा मन्दिर; जो देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं; सह्याद्रि की पर्वतश्रृंखला को सनाथ करते हैं।
  3. बम्बई प्रदेश (स्वतन्त्रता पूर्व बम्बई एक प्रदेश था, अब महाराष्ट्र प्रदेश में मुम्बई नाम का एक महानगर) में बम्बई और हैदराबाद के मध्य में विन्ध्याचल की पूर्व-पश्चिम की ओर जाती हुई पर्वतश्रेणियों के नीचे से पर्वतों की एक श्रृंखला उत्तर से दक्षिण की ओर चली गयी है। इस पर्वत-श्रृंखला का नाम सह्याद्रि’ है। इसी पर्वत-श्रृंखला को लेखक ने पहाड़ी जंजीर कहा है। इसी पर अजन्ता के गुफा-मन्दिर स्थित हैं।

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प्रश्न 3.
अजन्ता गाँव से थोड़ी दूर पर पहाड़ों के पैरों में साँप-सी लोटती बाधुर नदी कमान-सी मुड़ गयी है। वहीं पर्वत का सिलसिला एकाएक अर्द्धचन्द्राकार हो गया है, कोई दो-सौ पचास फुट ऊँचा हरे वनों के बीच मंच पर मंच की तरह उठते पहाड़ों का यह सिलसिला हमारे पुरखों को भा गया और उन्होंने उसे खोदकर भवनों-महलों से भर दिया। सोचिए, जरा ठोस पहाड़ की चट्टानी छाती और कमजोर इंसान का उन्होंने मेल जो किया, तो पर्वत का हिया दरकता चला गया और वहाँ एक-से-एक बरामदे, हॉल और मन्दिर बनते चले गये।
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?
  2. अजन्ता की भौगोलिक स्थिति का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

[ अर्द्धचन्द्राकार = आधे चन्द्रमा के आकार का। पुरखे = पूर्वज। भा गया = अच्छा लगा।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक श्री भगवतशरण उपाध्याय जी का कहना है कि दो-सौ पचास फुट ऊँचे पर्वतों की अर्द्धचन्द्राकार पंक्ति हमारे पूर्वजों को बहुत अच्छी लगी और उन्होंने वहाँ पर्वतों को काट-छाँटकर भवन और महल बना दिये। (UPBoardSolutions.com) विचार करके देखिए कि दुर्बल मनुष्य और कठोर चट्टानों का जो मेल हुआ उससे पर्वतों का हृदय कटता चला गया और वहाँ एक-से-एक सुन्दर बरामदे, हॉल और मन्दिरों का निर्माण होता चला गया। मनुष्य के दुर्बल हाथों ने पर्वतों की कठोर चट्टानों को काटकर सुन्दर भवन, उनके विभिन्न भाग और मन्दिरों का निर्माण कर डाला।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि लगन और परिश्रम से मनुष्य कठिन से कठिन कार्य भी कर सकता है। ।
  2. अजन्ता गाँव से कुछ ही दूरी पर बाधुर नदी पर्वत की तलहटी में साँप की भाँति लोटती हुई धनुष के आकार में मुड़ गयी है। इसी स्थान पर पर्वत भी आधे चन्द्रमा के आकार के हो गये हैं। हरे-भरे वनों के बीच में ऐसा लगता है कि जैसे पर्वतों ने मंच के ऊपर मंच का निर्माण कर दिया हो।

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प्रश्न 4.
पहले पहाड़ काटकर उसे खोखला कर दिया गया, फिर उसमें सुन्दर भवन बना लिए गए, जहाँ खंभों पर उमादी मूरतें विहँस उठीं। भीतर की समूची दीवारें और छतें रगड़कर चिकनी कर ली गयीं और तब उनकी जमीन पर चित्रों की एक दुनिया ही बसा दी गयी। पहले पलस्तर लगाकर आचार्यों ने उन पर लहराती रेखाओं में चित्रों की काया सिरज दी, फिर उनके चेले कलावन्तों ने उनमें रंग भरकर प्राण फेंक दिए। फिर तो दीवारें उमग उठीं, पहाड़ पुलकित हो उठे। [2014]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश का सन्दर्भ (पाठ और लेखक का नाम) लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स) पहाड़ों को किस प्रकार जीवन्त बनाया गया?
[ मूरतें = मूर्तियाँ। विहँस = मुसकराना, खिलना। सिरजना = बनाना। कलावन्तों = कलाकारों। प्राण फेंक देना = जीवन्त बना देना।]
उत्तर
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहते हैं कि सर्वप्रथम गुफाओं के अन्दर की दीवारों और छतों को रगड़-रगड़कर अत्यधिक चिकना बना लिया गया। तत्पश्चात् उस चिकनी पृष्ठभूमि पर चित्रकारों के द्वारा अनेकानेक चित्र (UPBoardSolutions.com) बना दिये गये, जिनको देखकर ऐसा लगता है। कि चित्रों की एक नयी दुनिया ही निर्मित कर दी गयी हो।।
द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का कहना है कि गुफा की भीतरी दीवारों पर चित्रकारों के द्वारा विभिन्न चित्रों को बाहरी रेखाओं के द्वारा प्रदर्शित किया गया और उसके बाद उनके शिष्यों ने उन चित्रों को रँगकर ऐसा बना दिया कि वे सजीव लगने लगे।

(स) पहाड़ों को काटकर भवन का रूप दिया गया। दीवारों, छतों और खम्भों को चिकना कर उन पर सजीव चित्र निर्मित किये गये। चित्रों में रंग भी भरा गया। इस प्रकार पहाड़ों को जीवन्त बना दिया गया।

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प्रश्न 5.
कितना जीवन बरस पड़ा है इन दीवारों पर; जैसे फसाने अजायब का भण्डार खुल पड़ा हो। कहानी से कहानी टकराती चली गयी है। बन्दरों की कहानी, हाथियों की कहानी, हिरनों की कहानी, क्रूरता और भय की, दया और त्याग की। जहाँ बेरहमी है, वहीं दया का भी समुद्र उमड़ पड़ा है। जहाँ पाप है, वहीं क्षमा की सोता फूट पड़ा है। राजा और कैंगले, विलासी और भिक्षु, नर और नारी, मनुष्य और पशु सभी कलाकारों के हाथों सिरजते चले गये हैं। हैवान की हैवानी को इंसान की इंसानियत से कैसे जीता जा सकता है, कोई अजन्ता में जाकर देखे। बुद्ध का जीवन हजार धाराओं में होकर बहता है। जन्म से लेकर निर्वाण तक उनके जीवन की प्रधान घटनाएँ कुछ ऐसे लिख दी गयी हैं कि आँखें अटक जाती हैं, हटने का नाम नहीं लेतीं। [2009, 12, 14, 17]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. अजन्ता की दीवारों पर किनकी कहानियाँ चित्रित हैं ?
  2. अजन्ता की गुफाओं में किस महापुरुष के जीवन को विस्तार से चित्रित किया गया है?
  3. अजन्ता की गुफाओं में किन-किन विरोधी भावों और व्यक्तियों का चित्रण है ? या दीवारों पर बने चित्र किन-किन से सम्बन्धित हैं ?
  4. कलाकारों के हाथों क्या सिरजते चले गये हैं?

[ फसाने = कहानियाँ। बेरहमी = निर्दयता। सिरजना = बनाना। हैवान = क्रूर। हैवानी = क्रूरता। इंसान = मनुष्य। इंसानियत = मानवता।]

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उत्तर
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहते हैं कि अजन्ता की गुफाओं की दीवारों पर बने चित्र इतने सुन्दर हैं कि उन्हें देखकर लगता है कि इन दीवारों पर मानो जीवन स्वयं ही उतर आया है। अजन्ता के इन भित्ति-चित्रों में आश्चर्यजनक कथा-कहानियाँ एक-दूसरे से जुड़ती हुई चली गयी हैं। इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि आश्चर्यजनक कथाओं का एक विशाल भण्डार ही यहाँ स्थित है। बन्दरों, हाथियों और (UPBoardSolutions.com) हिरणों की चित्र-कथाओं द्वारा क्रूरता, भय, दया और त्याग की भावनाओं का यहाँ सजीव चित्रण हुआ है। किसी चित्र में क्रूरता है तो किसी में असीम दया की कहानी चित्रित है। कहीं पाप का दृश्य अंकित है तो कहीं क्षमा का भी दृश्य है।

द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या-श्री भगवतशरण उपाध्याय जी का कहना है कि अजन्ता की गुफाओं में राजा हो या दरिद्र, विलासी हो या भिखारी, पुरुष हो या स्त्री, मनुष्य हो या पशु कलाकारों ने इन सभी के चित्रों में रंग-रेखाओं के द्वारा जीवन भर दिया है और यह भाव व्यक्त किया है कि ‘असाधु साधुना जयेत्’ अर्थात् दुष्ट को सज्जनता से जीतना चाहिए, क्योंकि मानवता के सामने हैवानियत नतमस्तक हो जाती है। अजन्ता की गुफाओं में बने ऐसे चित्रों को देखकर कोई भी व्यक्ति सत्प्रेरणा ग्रहण कर सकता है।
(स)

  1. अजन्ता की दीवारों पर बन्दरों की, हाथियों की, हिरनों की, क्रूरता और भय की, दया और त्याग की कहानियाँ चित्रित हैं। ।
  2. अजन्ता की गुफाओं में भगवान् बुद्ध के सम्पूर्ण जीवन की; जन्म से लेकर निर्वाण तक; सभी प्रधान घटनाओं को इतनी खूबसूरती से चित्रित किया गया है कि उन चित्रों पर से आँखें हटती ही नहीं।
  3. अजन्ता की गुफा में बेरहमी और दया, पाप और क्षमा आदि विरोधी भावों का तथा राजा और रंक, विलासी और भिक्षु, नर और नारी, मनुष्य और पशु आदि विरोधी व्यक्तियों का चित्रण है।
  4. कलाकारों के हाथों राजा और रंक, विलासी और भिक्षु, नर (UPBoardSolutions.com) और नारी, मनुष्य और पशु आदि विरोधी व्यक्तियों के चित्र सिरजते (बनते) चले गये हैं।

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प्रश्न 6.
यह हाथ में कमल लिये बुद्ध खड़े हैं, जैसे छवि छलकी पड़ती है, उभरे नयनों की जोत पसरती जा रही है। और यह यशोधरा है, वैसे ही कमल-नाल धारण किये त्रिभंग में खड़ी। और यह दृश्य है। महाभिनिष्क्रमण का-यशोधरा और राहुल निद्रा में खोये, गौतम दृढ़ निश्चय पर धड़कते हिया को सँभालते। और यह नन्द है, अपनी पत्नी सुन्दरी का भेजा, द्वार पर आए बिना भिक्षा के लौटे भाई बुद्ध को जो लौटाने आया था और जिसे भिक्षु बन जाना पड़ा था। बार-बार वह भागने को होता है, बार-बार पकड़कर संघ में लौटा लिया जाता है। उधर वह यशोधरा है बालक राहुल के साथ। [2013]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में क्या वर्णित किया गया है ? या प्रस्तुत गद्यांश में कहाँ के दृश्यों का चित्रण किया गया है ?
  2. “महाभिनिष्क्रमण’ क्या है ? इसके दृश्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।

(जोत = प्रकाश। त्रिभंग = शरीर को तीन जगह से टेढ़ा करके खड़ा होना। दृढ़ निश्चय = पक्का इरादा।]
उत्तर
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक भगवान् बुद्ध के घर त्यागते समय के अजन्ता के चित्रों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि एक तरफ हाथ में कमल पकड़े हुए भगवान् बुद्ध खड़े हैं जिनका सौन्दर्य सर्वत्र छलककर बिखरता प्रतीत हो रहा है और उनकी आँखों का प्रकाश सर्वत्र फैल रहा है। उनकी पत्नी यशोधरा भी, वैसा ही कमल का फूल, कमल-नाल पकड़कर त्रिभंगी (तीन स्थान से बल पड़ी हुई) मुद्रा (UPBoardSolutions.com) में खड़ी हुई चित्रित की गयी हैं। यह चित्र बड़ा ही जीवन्त लग रहा

द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक भगवान् बुद्ध के गृह-त्याग के पश्चात् भिक्षा माँगने के एक चित्र का वर्णन करते हुए कहते हैं कि एक चित्र में गौतम बुद्ध के साथ उनका भाई नन्द है, जो अपनी पत्नी सुन्दरी के द्वारा भेजा गया है गौतम बुद्ध को वापस लौटा लाने के लिए। सुन्दरी ने भिक्षा माँगने आए गौतम बुद्ध को बिना भिक्षा दिये द्वार से ही वापस कर दिया था। लेकिन नन्द बुद्ध को वापसे तो नहीं लौटा पाता वरन् उनके उपदेशों से प्रभावित होकर स्वयं भिक्षु बन जाता है।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में अजन्ता की गुफाओं में चित्रित भगवान् बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण (गृह-त्याग) के दृश्य का चित्र-रूप में अत्यधिक भावात्मक और विस्तृत वर्णन किया गया है।
  2. संसार से वैराग्य होने पर शान्ति की खोज जैसे महान् उद्देश्य के लिए गौतम बुद्ध द्वारा अपनी पत्नी, पुत्र, परिवार और राजप्रासाद को त्यागकर निष्क्रमण कर जाने की क्रिया ‘महाभिनिष्क्रमण’ कहलायी। इस चित्र में गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रामग्न और गौतम बुद्ध को अपने धड़कते हृदय को सँभालते हुए गृह-त्याग की दृढ़ निश्चयी मुद्रा में चित्रित किया गया है। .

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प्रश्न 7.
और उधर वह बन्दरों का चित्र है, कितना सजीव-कितना गतिमान्। उधर सरोवर में जल-विहार करता वह गजराज कमलदण्ड तोड़-तोड़कर हथिनियों को दे रहा है। वहाँ महलों में प्यालों के दौर चल रहे हैं, उधर वह रानी अपनी जीवन-यात्रा समाप्त कर रही है, उसका दम टूटा जा रहा है। खाने-खिलाने, बसने-बसाने, नाचने-गाने, कहने-सुनने, वन-नगर, ऊँच-नीच, धनी-गरीब के जितने नज़ारे हो सकते हैं, सब आदमी अजन्ता की गुफाओं की इन दीवारों पर देख सकता है। [2012]
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) आदमी अजन्ता की गुफाओं की दीवारों पर क्या देख सकता हैं ?
[ सरोवर = तालाब। गजराज = हाथियों का राजा।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक अजन्ता की गुफाओं में चित्रित चित्रों का वर्णन करते हुए लिख रहे हैं कि गुफा में एक ओर सरोवर में जल-क्रीड़ा करते हुए गजराज और हथिनियों को चित्रित किया है, जिसमें वह सरोवर में उगे हुए कमल-नाल को तोड़कर साथ में क्रीड़ा करने वाली हथिनियों को दे रहा है तो दूसरे चित्र में महलों में मनाये जाने वाले किसी उत्सव का चित्रण है। इस चित्र में लोगों को मद्यपान (UPBoardSolutions.com) करते हुए दिखाया गया है। जहाँ एक ओर महल में कुछ लोग जश्न मना रहे हैं तो दूसरी ओर एक रानी को प्राण-त्याग करते हुए दर्शाया गया है। यह चित्र इतना सजीव है कि ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी जीवन-लीला अब समाप्त होने ही वाली है। ऐसे सजीव दृश्य अजन्ता की गुफा की दीवारों पर ही देखे जा सकते हैं, अन्यत्र कहीं नहीं।

(स) व्यक्ति अजन्ता की गुफा की दीवारों पर खाने-खिलाने, बसने-बसाने, नाचने-गाने, कहने-सुनने, वन-नगर, ऊँच-नीच, अमीर-गरीब से सम्बन्धित जितने भी सम्भव दृश्य हो सकते हैं, उन सभी को देख सकता है।

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प्रश्न 8.
इन पिछले जन्मों में बुद्ध ने गज, कपि, मृग आदि के रूप में विविध योनियों में जन्म लिया था और संसार के कल्याण के लिए दया और त्याग का आदर्श स्थापित करते वे बलिदान हो गये थे। उन स्थितियों में किस प्रकार पशुओं तक ने मानवोचित व्यवहार किया था, किस प्रकार औचित्य का पालन किया था, यह सब उन चित्रों में असाधारण खूबी से दर्शाया गया है और उन्हीं को दर्शाते समय चितेरों ने अपनी । जानकारी की गाँठ खोल दी है। [2013]
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए। (ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) अपनी जानकारी की गाँठ खोलने का क्या आशय है ?
[कपि = बन्दर। औचित्य = उचित होने का भाव। चितेरों = चित्रकारों। गाँठ खोलना = बात प्रकट करना।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अजन्ता की गुफाओं में चित्रित चित्रों का वर्णन किया है। बुद्ध के अनेक योनियों में जन्म लेने की कथा ‘जातक’ नामक ग्रन्थ में वर्णित है। वे लिखते हैं कि जब बुद्ध का जन्म विविध जानवरों की योनियों में हुआ था, उस समय विद्यमान अन्य जानवरों ने भी ऐसा व्यवहार किया था, जो कि मनुष्यों के लिए उचित हो। उन सभी ने किस प्रकार औचित्य अथवा उपयुक्तता का निर्वाह किया था यह सब कुछ अजन्ता के चित्रों में अत्यधिक खूबी के साथ चित्रित किया गया है। आशय यह है कि बुद्ध के पूर्वजन्मों के समस्त विवरणों का विशेष चित्रांकन किया गया है।

(स) अपनी जानकारी की गाँठ खोलने का आशय यह है कि अपने ज्ञान को विस्तार से प्रकट कर देना।।

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प्रश्न 9.
अजन्ता संसार की चित्रकलाओं में अपना अद्वितीय स्थान रखता है। इतने प्राचीन काल के इतने सजीव, इतने गतिमान, इतने बहुसंख्यक कथा-प्राण चित्र कहीं नहीं बने। अजन्ता के चित्रों ने देश-विदेश सर्वत्र की चित्रकला को प्रभावित किया। उसका प्रभाव पूर्व के देशों की कला पर तो पड़ा हीं, मध्य-पश्चिमी एशिया भी उसके कल्याणकर प्रभाव से वंचित न रह सका। [2014]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स) अजन्ती की कला का प्रभाव किन-किन देशों पर पड़ा ? या अजन्ता की चित्रकला का बाहर के देशों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक का कथन है कि अजन्ता की चित्रकला अद्भुत और बेजोड़ है। संसार में उसका उपमान नहीं है। निस्सन्देह, विश्व में चित्रकला का यह सर्वोत्कृष्ट नमूना है। दुनिया में कोई दूसरा ऐसा स्थान नहीं, जहाँ (UPBoardSolutions.com) इतने प्राचीन और इतने सजीव चित्र पाये जाते हों। ऐसी कोई चित्रशाला नहीं, जहाँ ऐसे गतिशील तथा इतनी बड़ी संख्या में चित्र मिलते हों, जिनमें कथाओं को चित्रित कर दिया गया हो। ऐसे स्थान समस्त संसार में दुर्लभ हैं। इसीलिए देश और विदेश की चित्रकलाओं पर अजन्ता की चित्रकला का विशेष प्रभाव पड़ा है।

द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का कहना है कि अजन्ता की चित्रकला का विशेष प्रभाव अपने देश पर ही नहीं विदेश की चित्रकलाओं पर भी पड़ा है। चीन, जापान, इण्डोनेशिया आदि पूर्व के देशों में इसके जैसे प्रयोग स्पष्ट रूप से देखने को मिलते हैं। साथ ही ईरान, मिस्र आदि मध्य-पश्चिमी एशिया के देशों की चित्रकला भी इसके प्रभाव से अपने को मुक्त नहीं कर सकी है।

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(स) अजन्ता की कला का प्रभाव चीन, जापान, इण्डोनेशिया आदि पूर्व के देशों के साथ-साथ ईरान, मिस्र आदि मध्य-पश्चिमी एशिया के देशों की चित्रकला पर भी पर्याप्त रूप से पड़ा।

व्याकरण एवं रचना-बोध

प्रश्न 1
निम्नलिखित शब्दों से उपसर्ग पृथक् कीजिए-
सन्देश, अभिराम, सनाथ, विहँस, बेरहमी, अद्वितीय।।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 6 अजन्ता (गद्य खंड) img-1

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प्रश्न 2
निम्नलिखित उपसर्गों के योग से तीन-तीन शब्दों की रचना कीजिए-
अति, उप, सु, वि, परि, अ।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 6 अजन्ता (गद्य खंड) img-2

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प्रश्न 3
प्रत्ययरहित और प्रत्ययसहित शब्द-युग्म यहाँ दिये जा रहे हैं। इनका स्वरचित वाक्यों में इस प्रकार प्रयोग कीजिए कि इनके अर्थ का अन्तर स्पष्ट हो जाए।
कला-कलावन्त, हैवान-हैवानी, इंसान-इंसानियत, सुरक्षा-सुरक्षित, कल्याण-कल्याणकर।
उत्तर
कला-कलावन्त–कला की उपासना को कलावन्त अपना धर्म मानते हैं।
हैवान-हैवानी-हैवान की हैवानी के सम्मुख सभी विवश हो जाते हैं।
इंसान-इंसानियत-इंसान को कभी भी इंसानियत नहीं छोड़नी चाहिए।
सुरक्षा-सुरक्षित–कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था के बावजूद (UPBoardSolutions.com) मन्त्री जी, सुरक्षित नहीं रह सके।
कल्याण-कल्याणकर-केवल कल्याणकर योजनाएँ बनाकर ही समाज का कल्याण नहीं हो सकता।

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