UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 14 विवाह के कानूनी तथा जीवशास्त्रीय गुण

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Board UP Board
Class Class 12
Subject Home Science
Chapter Chapter 14
Chapter Name विवाह के कानूनी तथा जीवशास्त्रीय गुण
Number of Questions Solved 24
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 14 विवाह के कानूनी तथा जीवशास्त्रीय गुण

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
विवाह का शाब्दिक अर्थ है।
(a) वधू को घर के घर ले जाना
(b) वर को बापू के घर से जाना
(c) ‘a’ और दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) वधू को वर के घर से जाना

प्रश्न 2.
विवाह की विशेषताओं में शामिल हैं।
(a) आर्थिक सहयोग
(b) वैघ सन्तानोत्पत्ति का माध्यम
(c) धार्गिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 3.
अन्तर्विवाह ग आशय है।
(a) अपने समूह में विवाह करना
(b) समूह से बाहर विवाह 
‘ना।
(c) गाँव की सीमा से बार विवाह करना
(d) जमरो में से कोई नहीं ।
उत्तर:
(a) अपने समूह में विवाह करना

प्रश्न 4.
गोत्र शब्द के अर्थ हैं।
(a) गौशाता
(b) मा क गर
(c) किना या पर्गत 
में सभी
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से किस अधिनियम के द्वारा सपिण्ड बहिर्विवाह को। 
मान्यता प्रदान की गई है।
(a) धनियम, 1955
(b) अधिनियम, 1955
(c) अधिनियम, 1954
(d) अधिनियम, 1961
उत्तर:
(b) अधिनियम, 1955

प्रश्न 6.
अनुलोम विवाह में लइका विन्स कुत से सम्वन्ध रखता है?
(a) उच्च
(b) निम्न्
(c) उच्च या निम्न में से कोई भी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) उच्च

प्रश्न 7.
बाल विवाह निरोधक अधिनियम का पारित किया गया?
(a) वर्ष 1896
(b) वर्ष 1829
(c0 वर्ष 1929
(d) वर्ष 1937
उत्तर:
(c) वर्ष 1929

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
उसी मेयर ने विवाह को किस प्रकार परिभाषित किया है?
उत्तर:
लुसी मेयर ने विवाह को परिभाषित करते हुए लिखा है कि विवाह स्त्री-पुरुष 
का ऐसा योग है, जिससे जमी सन्तान वैध मानी जाती है।

प्रश्न 2.
बहिर्विवाह से क्या तात्पर्य है? ।
उत्तर:
बहिर्विवाह से तात्पर्य है एक व्यक्ति जिस समूह का सदस्य है इससे बाहर विवाह को अद। म विवाह में परिवार, गोत्र, प्रर, पिण्ड शम, डोटम आदि में चार विवाह करना पड़ता है।

प्रश्न 3.
ग्राम बहिर्विवाह का प्रचलन किन क्षेत्रों में पाया जाता है? गाँवों में ये क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
शाम बहिर्विवाह का प्रचलने उत्तरी भारत और पुतः पंजाब एवं दिल्ली के आस-पास है। गाँवों में इस प्रकार के विवाह को ‘खेड़ा बहिर्विवाह 
के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 4.
1937 का अधिनियम किस उद्देश्य से बना था?
उत्तर:
हिन्दू जी के विधवा होने पर मृत्त पति की सम्पत्ति में अधिकार प्रदान 
करने की दृष्टि से वर्ष 1997 में यह अधिनियम पारित किया गया है।

प्रश्न 5.
किस अधिनियम में हिन्दु विवाह-विच्छेद की व्यवस्था है?
उत्तर:
सामाजिक एवं कानूनी रूप से पति-पत्नी के विवाह सम्बन्धों को समाप्ति ही विवाह-विच्छेद कहलाता है। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 में 
विवाह-विच्छेद की व्यस्था की गई है।

प्रश्न 6.
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1966 किसलिए पारित किया गया 
था?
उत्तर:
स्त्रियों को पुरुष के समान अधिकार प्रदान करने की दृष्टि से हिन्दू 
उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 पारित किया गया।

प्रश्न 7.
दहेज़ निरोधक अधिनियम कब पारित हुआ?
उत्तर:
दहेज निरोधक अधिनियम 1961 में पारित किया गया। इस नियम के अनुसार दहेज लेना और देना दण्डनीय अपराध है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (3 अंक)

प्रश्न 1.
अनुलोम विवाह किस प्रकार सम्पन्न किया जाता है?
उत्तर:
जब एक उच्च वर्ण, जाति, उपजाति, कुल एवं गोत्र के लड़के का विवाह ऐसी हड़की से किया जाए, जिसका वर्ण, जाति, उपजात, कुल लड़के से नीचा हो तो ऐसे विवाह को अनुलोम विवाह कहते हैं। अन्य शब्दों में, इस प्रकार के विवाह में लड़का उच्च सामाजिक समूह का होता है और लड़की निम्न सामाजिक समूह को। उदाहरण के लिए, एक प्राण लवे का विवाह एक अत्रिय या वैश्य लड़की से होता है, तो इसे हम अलोम विवाह कहेंगे। वैदिककाल से लेकर स्मृतिकाल तक अनुलोम विवाहों का प्रचलन रहा है। मनुस्मृति में लिखा है कि एक ब्राह्मन को अपने से मि तन व अत्रिय, वैश्य एवं शुद की कन्या से, क्षत्रिय को अपने से निम दी य वैश्य एवं शूद से और वैश्य अपने वर्ग के अतिरिक्त शुद्र कन्या से भी विवाह कर सकता है, किन्तु मनु नपण संस्कार करने की स्वीकृति के गवर्ण विवाह के लिए ही देते हैं। याङ्गषम्य ने ब्राह्मण को चार, क्षत्रिय को तीन, वैश्य को दो एवं 
शूद्र को एक विवाह करने की बात कही है।

प्रश्न 2.
प्रतिलोम विवाह क्या है?
उत्तर:
प्रतिलोम विवाह अनुलोम विवाह का विपरीत रुप प्रतिलोम विवाह है। इस प्रकार के विवाह में लड़को उच्च वर्ण, आति, उपजाति, कुल या वेश की होती है और लड़का निम्न वर्ण, जाति, उपजाति, कुल या वंश का होता है। इसे परिभाषित करते हुए कपाडिया लिखते हैं, “एक मि पण के व्यक्ति का जय वर्ग को स्त्री के साक्ष वितार प्रतिलोम कालात का।” उदाहरण के लिए, यदि एक ब्राह्मण सड़की का विवाह किसी क्षत्रिय, वैश्य अपणा शूद्र सड़के से होता है, तो ऐसे विवाह को प्रतिलोम विवाह कहा जाता है। इस प्रकार के विवाह में स्त्री की स्थिति निम्न हो जाती है। स्मृतिकारों ने ऐसे विवाह को क्यु आलोचना की है। ऐसे विवाह को पन मान को ‘चाहत’ अथवा ‘निषाद कहा जाता हो। दू विवाह वैधता अधिनियम, 11 एवं हिन्दू विवाह अधिनियम, 1965 में अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह दोनों को ही वैध माना गया है।

प्रश्न 3.
विवाह की शारीरिक योग्यताओं को बताइट।
उत्तर:
विवाह की शारीरिक योग्यताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. विवाह की आयु विवाह का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि विशाह के समय वर एवं वम् की आयु परिपक्व होनी चाहिए। हिन्दू धर्म-शास्त्रों में विवाह की आयु को लेकर मतभेद पाया जाता है। वैदिक युग में 15 या 18 वर्ष की कन्या और 30 वर्ष के लड़के का विवाह होता था। गृहसूत्र में ‘नॉमिका’ अथवा ‘ननिका’ के क्विाह का सुझाव दिया गया है। 4 से 12 वीं की कन्या को ‘नन्का ‘ कहा गया है। वर्तमान में एक निश्चित आयु प्राप्त करने के पश्चात् ही वैधानिक रूप से उपयुक्त माना जाता है।
  2. स्वास्थ्य विवाह के पश्चात् दम्पत्ति को सन्तान उत्पत्ति के दायित्व का निर्वहन सना होता है, इसलिए दोनों का स्वस्थ होना अनिवार्य है। स्वास्थ्य खराब होने की स्थिति में परेशानी हो सकती हैं।
  3. संक्रामक रोग विवाह संक्रामक रोगों की जांच करके ही करना चाहिए, क्योकि पति-पत्र दोनों में तो किसी एक को भी यदि कोई संक्रामक रोग होता है तो विष पश्चात् एक-दूसरे को भी हो सकता है। इसके अतिरिक्त रात्र को भी वह रोग हो जाता है।
  4. प्रजनन सम्वन्धी रोग पति-पत्नी में से कोई भी यौन रोग आदि का शिकार नहीं होना चाहिए। इससे पारिवारिक स्थिति दु:खद होने के साथ ही सन्तान प्राप्ति का लक्ष्य पूरा होने में बाधाएँ आ सकता है। अत: दोनों संतान उत्पत्ति के योग्य हों और प्रजनन सम्बन्धी उत्तम स्वास्थ्य रखते हों।
  5. मानसिक रोग मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ होना भी विवाह का एक आवश्यक पास है। इसके अन्त में धात्य और कष्टमय हो सकता है। दोनों में से किसी को भी कोई अंग विकार नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 4.
विवाह-विचकुंद क्या है? विवाह किन परिस्थितियों में रद्द किया 
ज्ञा सकता हैं?
उत्तर:
सामाजिक एवं कानूनी रूप से पति-पत्नी के विवाह सम्बन्धों की समाप्ति हो विवाह-विच्छेद कहलाती है। विवाह विच्छेद पति-पत्नी के वैवाहिक एवं पारिवारिक जीवन में असामंजस्य एवं आसप्ता का सूचक है। इसका अर्थ यह है कि जिन उद्देश्यों को लेकर विवाह किया गया वे पूर्ण नहीं हुए हैं। यह एक दुःखद घटना है, विश्वास को समाप्त है, प्रतिज्ञा एवं मोह भंग की रियत है। यद्यपि भारत के विभिन्न प्रान्तों; जैसे- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात एवं केरल में तक के सम्बन्धित अधिनियम बनते रहे, किन्तु सम्पूर्ण भारत के सन्दर्भ में 1951 में विशेष विवाह अधिनियम तथा 1955 में हिन्दू विवाह 
अधिनियम’ तलाक की व्यवस्था है। विवाह रद्द होना विमांकित इशाओं में विवाह होने पर भी इसे रद्द किया जा सकता है।

  1. विवाह के समय दोनों पक्षों में से किसी एक का भी जीवन-साधी जीवित हो और उससे तलाक नहीं हुआ हो।
  2. विवाह के समय एक पक्ष नपुंसक हो।
  3. विशाह के समय कोई भी एक प जड़-बुद्धि य पागल हो।
  4. विवाह के एक वर्ष के अन्दर यह प्रमाणित हो जाए कि प्राय अपवा उसके संरक्षक की स्यीकृति बलपूर्वक या कपट से ली गई यौ।
  5. विवाह के एक वर्ष के भीतर यह प्रामाणित हो जाए कि विवाह के समय पानी किसी अन्य पुरुष गर्भवती दी और प्रार्थी इस बात से अनभिज्ञ था।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)

प्रश्न 1.
विवाह का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके उद्देश्य एवं विशेषताओं पर प्रकाशा हालिए।
उत्तर:
विवाह का अर्थ एवं परिभाषाएँ विवाह का शाब्दिक अर्थ है ‘उह’ अर्थात् वधू को वर के घर ले जाना। विवाह दो विषमलिगों का पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने की सामाजिक, धार्मिक एवं कानूनी स्वीकृति हैं। लूसी मेयर ने विवाह को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “शियडू स्त्री-पुरुष का ऐसा योग है, जिससे स्त्री से जन्मो सन्तान वैध मानी जाती है।” इस परिभाषा में विवाह को स्त्री व पुरुष के ऐसे सम्बन्धो के रूप में स्वीकार किया गया है, जो सन्तानों को जन्म देते हैं, उन्हें वैध घोधित करते है तथा इसके फलस्वरूप माता-पिता एवं बच्चों को समाज में कुछ अधिकार एवं प्रस्थितियाँ प्राप्त होती हैं।

बोगार्स के अनुसार, “विवाह स्त्री और पुरुष के पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने की संस्था है।” मजूमदार एवं मदान ने लिखा है कि, “विवाह में कानूनी या धार्मिक आयोजन के रूप में उन सामाजिक स्वीकृतियों का समावेश होता है, जो विषमतगयों की यौन-क्रिया और उससे सम्बन्धित सामाजिक-आर्थिक सम्बन्धों में सम्मिलित होने का अधिकार प्रदान करते हैं।”

बिल के अनुसार, “विवाह सामाजिक आदर्श-मनदण्डों की वह समग्रता है, जो विवाहित व्यतियों के आपसी सम्बन्धों को उनके रक्त सम्बन्धियों, सन्तानो तथा सत्र के साथ सम्बन्धों को परिभावित और नियन्त्रित करती है।” अतः विवाह के परिणामस्वरूप माता-पिता एवं बच्चों के बीच कई अधिकारों एवं दायित्वों का जन्म होता है।

विवाह के उददेश्य
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा सामाजिक संस्थाएँ, व्यक्ति के सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक इत्यादि पक्षों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निवाहन करती हैं। लिहू का उद्देश्य केवल यौन सन्तुष्टि ही नहीं होगा, वरना कभी-कभी तो यह केवल सामाजिक-सांस्कृतिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हो किया जाता है।

विवाह के अलग-अलग समजों में अलग-अलग उद्देश्य है; जैसे ईसाई धर्म में प्रमुख उद्देश्य यौन सन्तुष्टि है, तो हिन्दू समाज में धर्म की रक्षा करना या धार्मिक संस्कार करना, मुस्लिम समाजों में विवाह का उद्देश्य वैध सन्तानोत्पत्ति को जन्म देना, वहीं जनजातीय उद्देश्य साथ-साथ रहने का सामाजिक समझौता है, परन्तु समाजशास्त्रीय उद्देश्य स्त्री और पुरुष को एक प्रस्थिति देकर उसके अनुसार, भूमिकाओं का निर्वहन करना है। मजूमदार एवं मदान ने उद्देश्यों की चर्चा करते हुए लिखा है कि, “विवाह से वैयक्तिक स्तर पर या शारीरिक स्तर पर यौन सन्तुष्टि और मनोवैज्ञानिक स्तर पर सन्तान प्राप्त करना और सामाजिक स्तर पर पद की प्राप्ति होती है।

विवाह की प्रारम्भिक विशेषताएँ
विवाह की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिति हैं।

  • विवाह दो विषमलिनियों का सम्बन्ध है।
  • विवाह एक सार्वभौमिक सामाजिक संस्था है।
  • इसके माध्यम से किया सम्बन्धों का नियमन करता है।
  • बच्चों का पालन पोषण एवं समाजीकरण उपयुक्त तरीके से होता है।
  • विवाड़ में परिवार एवं समाज में अधिक सहयोग मिलता है।
  • विवाह मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है। इसके साप ही सामाजिक सुरक्षा भौ सम्भव हो पाती है।
  • विवाह द्वारा संस्कृति का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरण सूत्र हो पाता है।
  • वैद्य सन्तानोत्पत्ति प्राप्त करने का माध्यम है।
  • माता-पिता एवं बच्चों में नवीन अधिकारों, दायित्वों एवं भूमिकाओं को जन्म देना भी विवाह की विशेषता है।
  • यह पार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक उद्देश्यों की पूर्ति करता है। वेटरमार्क ने विवाह को एक सामाजिक संस्था के अतिरिक्त एक आर्थिक संस्था भी मना है।

प्रश्न 2.
विवाह के प्रतिबन्धों में अन्तर्विवाह का क्या आशय है? इसके 
कारण और प्रभाव बताइट।
उत्तर:
विवाह के प्रतिवन्धों में अन्तर्विवाह अन्तर्विवाह का तात्पर्य हैं एक व्यक्ति अपने जीवन साथी का चुनाव अपने ही समूह से करे। इसे परिभाषित करते हुए रियर्स ने लिखा है, “अनार्यवाह से अभिप्राय उन विनिमय से है, जिसमें अपने समूह में से ही विवाह कमायो चुनना अनिवार्य होता है।”

वैदिक एवं उतरवैदिक काल में द्विजों (ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य) का एक ही वर्ग वा और द्विज वर्ग के लोग अपने य (द्विज) में ही विवाह करते थे। शत्र वर्ग पृथक् था। स्मृतिकाल में अन्तर्षियाहों को स्पीकृति प्रदान की गई थी, लेकिन जब एक वर्ण कई जातियों एवं उपजातियों में विभक्त हुआ तो विवाह का दायरा सौमित होता गया और लोग अपनी जाति एवं उपजाति में विवाह करने लगे, इसे ही अन्तबिंबाह माना जाने लगा। 

कुछ उपजातियों में ‘गोल’, ‘एकड़ा’ आदि हैं, जो चुनाव के क्षेत्र को एक स्थानीय सीमा तक संवित कर देते हैं। वर्तमान समय में एक व्यक्ति अपनी ही जाति, उपजाति, प्रजाति, धर्म, क्षेत्र, भषा एवं वर्ग के सदस्यों से ही विवाह करता है। केतकर के अनुसार कुछ हिन्दु जातियाँ ऐसी हैं, जो पन्द्रह परिवारों के बाहर विवाह नहीं करतीं।

अन्तर्विवाह के कारण विवाह के क्षेत्र को इस प्रकार पॉम्ति करने के अनेक सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक रहे हैं। इनमें प्रमुख कारक निम्नलिखित है

  1. अन्तर्रजातीय मिश्रण को रोकने के लिए अन्तर्वर्ण विवाहों पर प्रतिबन्ध लगाए गए। विशेषतः आर्य एवं इविड़ प्रजातियों के बीच रस्त मिश्रण को रोकने के लिए ऐसा किया गया।
  2. प्रत्येक जाति और उपजाति अपनी सांस्कृतिक विशेषता को बनाए रखना चाहती थी, अल; न्। अ चाह पर बल दिया।
  3. जैन एवं बौद्ध धर्म में शिथिलता आने से ब्राह्मणों ने अपनी लोई प्रतिष्ठ को पुनः प्राप्त करने के लिए कठोर जातीय नियम बनाए।
  4. मध्य युग में बाल विवाह में वृद्धि के कारण जातीय नियमों पर बल दिया आने लगा।
  5. प्रत्येक गति का एक परम्परात्मक व्यवसाय पाया जाता है। अपने व्यावसायिक ज्ञान को गुप्त रखने की इच्छा ने भी अन्तर्निवाह को प्रोत्साहित किया।

अत्तर्विवाह का समाज पर प्रभाव

अन्तर्विवाह में समाज पर निम्नलिखित प्रभाव दिखाई दिए

  1. इससे लोगों के सम्पर्क का दायरा समंत हो गया, जिससे उपयुक्त वर-वधु चुनने में ना आने लगी।
  2. संकीर्णता की भावना पनपी, शारिक मृणा, द्वेष एवं कटुता में वृद्धि हुई।
  3. क्षेत्रोक्ता की भावना उत्पन हुई, जातिवाद बढ़ा।
  4. व्यावसायिक ज्ञान एक समूह तक ही सीमित हो गया।
  5. इससे समाज की प्रगति में अवर-द्धता आई।

प्रश्न 3.
बहिर्विवाह के विभिन्न स्वरूपों का ऊत्तेख कीजिए।
उत्तर:
बहिर्विवाह से तात्पर्य है एक व्यक्ति जिस समूह का सदस्य है उससे बाहर विवाह करे। रिवर्स के अनुसार विवाह वह विनिमय है, जिसमें एक सामाजिक समूह के सदस्य के लिए यह अनिवार्य होता है कि वह दूसरे सामाजिक समूह से अपने जीवनसाथी का चुनाव करे। हिन्दुओ में बहिर्विवाह के नियमानुसार एक व्यक्ति को अपने परिवार, गोत्र, प्रर, पिण्ड आदि समूहों से बाहर विवाह करना पड़ता है। जनजातियों में एक ही टोटम को मानने वाले मोगों को भी परस्पर विवाह करने की मनाही हैं। हिन्दुओं में प्रचलित बहिर्विवाह के विभिन्न स्वरूप निम्नलिखित है।

1. गोत्र बहिर्विवाह हिन्दुओं में सगोत्र विवाह निषेध हैं। गोत्र का सामान्य अर्थ उन व्यक्तियों के समूह से है, जिनकी उत्पत्ति एक आणि पर्यज से हुई हो। सवाषाड़ हिरण्यकेशी औतसूत्र के अनुसार, विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप और गस्त्य नामक आठ ऋषियों को सन्तानों को गोत्र के नाम से पुकारा गया।

गोत्र शब्द के तीन या चार अप हैं; जैसे- गौशाला, गाय का समूह, किला तया पर्वत। गोत्र का शाब्दिक अर्थ अर्थात् गायों के बांधने का स्थान (गौशाला या धावा) अथवा गौपालन करने वाले समूह में है। जिन लोगों की गाएँ एक स्थान पर बैधती थी, उनमें नैतिक सम्बन्ध बन आते थे और सम्पतः ये रक्त सम्बन्की भी होते थे, अत; वे परस्पर विवाह नहीं करते थे। विज्ञानेश्वर ने क्षेत्र का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा है कि वंश-परम्परा में जो नाम प्रसिद्ध होता है, उसी को गोत्र कहा जाता है। इस प्रकार एक गोत्र के सदस्यों द्वारा अपने गोत्र से बाहर विवाह करना ही गोत्र बहिनिंबाह कहलाता है।

2. सप्रवर बहिर्विवाह गोत्र से सम्बन्धित ही एक शब्द है प्रगार’ जिसका वैदिक इण्डेक्स के अनुसार शाब्दिक अर्थ है ‘आह्वान करना। (invitation Summon) कर्वे के अनुसार, “श्वर का अर्थ क्षत्रियों में गभग वंशकार वा कुलकर की तरह ही है। प्रवर का अर्थ है ‘महान् (Great on) आहाण लोग हवन-यज्ञ आदि के समय गोत्र व अंशकार के नाम का उच्चारण करते थे। इस अर्थ में प्रवर का तात्पर्य ‘श्रेष्ठ (The Excellent 00) से था। इस प्रकार समान पत्र और अमान मषियों के नाम का अरण करने वाले यति अपने को एक ही प्रवर से सम्बद्ध मानने लगे। एक प्रवर के व्यक्ति अपने को सामान्य आणि पूर्वजों से संस्कारात्मक एवं आध्यात्मिक रूप से सम्बन्धित मानते हैं, अतः वे परस्पर विवाह नहीं करते। हो,कपाडिया लिखते हैं, “प्रवर संस्कार अथवा ज्ञान के उस समुदाय की ओर संकेत करता है, जिसमें एक व्यक्ति सम्बन्धित होता है।” प्रवर आध्यात्मिक दृष्टि से परस्पर सम्बन्धित लोगों के समूह की ओर संकेत करता है न क र जान्थयों की ओर। हिन्दू विवाह अधिनियम द्वारा ‘सप्रखर विवाह सम्बन्धी निषेधों को समाप्त कर दिया गया है ।

3. सपिण्ड हेर्षियाहू सवर और सगोत्र बहिर्विवाह के नियम पिच पक्ष के । सम्यन्मियों में विवाह की स्वीकृति नहीं देते। सपिण्ड विषङ्ग निषेध के नियम मातृ एवं पितृ पक्ष की कुछ पीढ़ियों में विवाह पर रोक लगाते हैं। इरावती – कर्वे सपिण्हता का अर्थ बताती है स + पिण्ड (Together + thall of rice, abody) अर्थात् मृत व्यक्ति को पिण्ड दान देने वाले या उसके रक्त कण से सम्बन्धित लोग। स्मृति में सपिण्ड का प्रयोग दो अर्षों में हुआ है-

  • वे सभी व्यक्ति सपिण्डी है, जो एक व्यक्ति को पिण्ड दान करते हैं
  • मिताक्षरा के अनुसार वे सभी व्यक्ति जो एक ही शरीर में पैदा हुए हैं,

पिता और पुत्र सपिण्डी हैं, क्योंकि पिता के शरीर के अवयव पुत्र में आते हैं। इसी प्रकार से माँ व सन्ताने, दादा-दादी एवं पोते भी सपिण्ड हैं। सपिण्ड विवाह भी निषिद्ध रहे हैं। रामायण एवं महाभारत काल में सपिण्डता का निदम एक स्थान पर निवास करने वाले पितृपय लोगों पर लागू होता था। मध्ययुगीन टोकाकारों के अनुसार पिता की ओर से सात व माता की ओर से पाँच पीदियों में विवाह नहीं किया जाना चाहिए। हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 ने सपिण्ड बहिर्निवाह को मान्यता प्रदान की हैं। माता एवं पिता दोनों पक्षों से तीन तीन पीदियों के सपिडियों में परस्पर विवाह पा रोक लगा दी गई है। फिर भी यदि किमी मह व प्रथा अपना परम्परा इसे निषिद्ध नहीं है, तो सा विवाह भी वैध माना।

4. ग्राम बहिर्विवाड़ उत्तर भारत और प्रमुखत: पंजाब एवं दिल्ली के आस-पास यह नियम है कि एक व्यक्ति अपने ही गांव में विवाह नहीं करेगा। पंजाब में तो उन गाँवों में भी विवाह करने की मनाही है, जिनकी सीमा व्यक्ति के गाँव को सीमा को सूती हो। इस प्रकार के खिलाह का कारण गाँव की जनसंख्या का सीमित होना, उसमें एक ही गोत्र, वंश अथवा परिवार के सदस्यों का निवास होना, आदि रहे हैं। सगोत्री एवं सपड़ियों से विवाह के निषेध के कारण हो ऐसे विवाह प्रक्ष में आए। गांवों में इस प्रकार के विड़ को खेड़ा बहिर्नियाह’ के नाम से जाना जाता है।

5. टोटम बहिर्विवाह इस प्रकार के विवाह का नियम भारतीय जनजातियों में प्रचलित है। टोटम कोई भी एक पशु, पक्षी, पेड़-पौधा अथवा निर्जीव वस्तु हो सकती है, जिसे एक गोत्र के लोग आदर एवं श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं, उससे अपना आध्यात्मिक सम्बन्ध जोड़ते हैं। एक गोत्र का एक टोटन होता है और एक टोटम को मानने से परस्पर भाई-बहन समझे जाते हैं, अत: वे परस्पर विवाह नहीं कर सकते।

प्रश्न 4.
विवाह सम्वन्धी वैधानिक योग्यताओं में ब्रिटिश काल के 
अधिनियमों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
विवाह नामक संस्था प्रत्येक काल में देखने को मिलती है। यद्यपि इसका स्वरूप समय के अनुसार बदला रहा हैं। विशाह से सन्त अधिनियम भी बनाए गए, जिनमें ब्रिटिश काल में बने अधिनियम तथा स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सरकार द्वारा बनाए गए अधिनियम महत्वपूर्ण हैं। ब्रिटिश काल के विवाह सम्बन्धी वैधानिक प्रमुख अधिनियम इस प्रकार से है।
1. सती–प्रथा निषेध अधिनियम 1829 (Regulation o. XVII, 1529) 
1829 से पूर्व भारत में सती–प्रथा का प्रचलन था। एक ओर हिन्दुओं में बाल-विवाह का प्रचलन था और दूसरी ओर विधवा हो जाने पर स्त्रियों पति के साथ चिता में जल जाने के लिए मजबूर किया जाता था। उन्हें यह प्रलोभन दिया जाता था कि सती होने पर स्वर्ग मिलेगा। कई बार तो विधवाओं को जबरन मृत पति के साथ सती होने के लिए मजबूर किया जाता था और चिता में पकेल दिया जाता था। इस अमानुषिक प्रथा को समाप्त करने के लिए राजा राममोहन राय जैसे समाज सुधारको कठोर परिश्रम और आन्दोलन किया और उनके प्रयासों से 1829 में सती–प्रथा निषेध अपिनियम बना।

2. हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1858 (Hindu Widow marriage Act, 1866) 155 से पूर्व विधाओं को न तो पुननिता को स्वीकृति पी और न उन्हें अपने मूत पति को सम्पनि में कोई असर हो बाल-विवाह एवं बेमेल विवाह के कारण सत्र में विधवाओं की संख्या बढ़ गई थी त उनको दशा बड़ी दयनीय पी। कई विपाएँ तो धर्म परिवर्तन कर मुसलमान या ईसाई बन गई दी। आर्य सामान, ब्रहा सगाज, ईश्वरचन्द्र मिशागर राममोहन राय ने सरकार का इस समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया। इनके प्रयासों से 186 में हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम बना। इस अधिनियम द्वारा हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम बना। इस अधिनियम द्वारा हिन्दु विषयाओं के पुनर्विवाह को कानूनी बाधाओं को समाप्त कर दिया गया।

3. बाल-विवाह निरोधक अधिनियम, 1121 Child Murriat kaistraint Act, 1929 1929 बाल-विवाह रोकने का अधिनियम पारित किया गया। यद्यपि इससे पूर्व भो छोटे छोटे बच्चों के विवाह पर रोक लगाने के लिए 100 1 1881 में यह अधिनियम पारित का विवाह की आयु सङ्गकियों के लिए मशः 10 तथा 12 वर्ष कर दी गई थी, किन्तु 1929 में हरविलास शारदा के प्रयत्नों से बाल-विवाह विरोधक अधिनियम पारित हुआ, जिसे ‘शरदा एक्ट’ के नाम से भी जाना जाता हैं। इस अधिनियम को मुख्य बातें इस प्रकार है-इस अधिनियम के अनुसार विवाह के समय तड़के की आयु 18 वर्ष तथा सड़कों की आयु 15 वर्ष होनी चाहिए। इससे कम आयु के बिगह को बात-वि। माना जाएगा, कना या पनि बाल-विवाह को रोकने में अधिक सफल नहीं रहा। 1978 में इस अधिनियम में शोपन कर दिया गया। यह अधिनियम अन्य बाल-विवाह निरोधक (संशोधित) अधिनियम 1978 के नाम से जाना जाता है। इस नियम के अन्तर्गत सड़कों के लिए 1 का न्यूनतम आयु 21 वर्ष और सकियों के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष कर दी गई।

4. हिन्दू स्त्रियों को सम्पत्ति पर अधिकार अधिनियम, 1937 (Hindu Wom Rigtit to EProperty Act, 1937) हिन्दू स्त्री के विधवा होने पर मृत पति की सम्पत्ति में अधिकार प्रदान करने की दृष्टि से 1837 में यह अधिनियम पारित किया। गया है।

5. अलग रहने और भरण-पोषण हेतु स्त्रियों को अधिकार अधिनियम, 1946 इस अधिनियम के अनुसार हिन्दू स्त्रियों को कुछ परिस्थितियों में पति से अलग रहने पर। भरण-पोषण के अधिकार प्राप्त होते हैं। जौ को पाण-पोषण का अधिकार तभी मिलेगा जब

  • ति किसी ऐसे घृणित रोग से पीड़ित हो जो उसे पत्नी के संसर्ग से न हुआ हो।
  • पति निर्दयता का व्यवहार करता हो अथवा पत्नी पति के साथ रहना। खतरनाक समझी हो।
  • पत्नी को उसके पति ने छोड़ हो।
  • पति ने दूसरा विवाह कर लिया हो।
  • पति ने धर्म परिवर्तन का लिया हो।
  • पति किसी अन्य स्त्री से सम्बन्ध राखता हो।

विवाह के जीवशास्त्रीय योग्यताएँ

बियाह के लिए जीवशास्त्रीय योग्यताएँ निम्नलिखित हैं

  1. विवाह से सम्बन्धित लड़का व लहको दोनों शारीरिक एवं मानसिक रूप से परिपक्व
  2. लड़का एवं लड़की दोनों की आयु 18 अर्ष हों।
  3. विवाह में जाति वन्धन अनिवार्य नहीं है।
  4. जैविक रूप से लड़का एवं सड़की दोनों ही 18 वर्ष की आयु में विवाह के योग्य हो जाते हैं। अतः जैविक रूप से आयु को वन्धन नहीं माना जाता हैं।

प्रश्न 5.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात विवाह से सम्बन्धित अधिनियमों का 
उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् विवाह से सम्बन्धित प्राणु अधिनियम निम्नलिखित हैं।
1. विशेष विवाह अधिनियम, 1951 (Special Marrian Act, 1964) किसी भी 
धर्म को मानने वालों को पास्पर मिह को स्वीकृति देने के लिए 1872 ई. में विशेष विवाह अधिनयम पारित किया गया। 1921 में इस अधिनियम को संशोधित कर विभिन शनियों के बीच होने वाले विवाह को वैध घोषित किया गया।1951 के इस अधिनियम द्वारा विभिन्न धर्मों एवं जातियों के रोगों को परस्पर विवाह की स्वीकृति प्रदान कर दी गई। इस अधिनियम में एक-विया की व्यवस्था है तथा 21 वर्ष से कम आयु के लड़के व 18 वर्ष से कम आयु की लड़की का विवाह उनके माता-पिता अशा संरक्षकों की स्वीकृति से होगा।

2. हिन्दू विवाह अधिनियम, 1965 (Hindu Marriage Act. 1955) 18 मई, 1965 से अम्मू और कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में निवास करने वाले भो, जिनमें जैन, बौद्ध, सिक्छ । सम्मिलित है, हिन्दू विवाह अधिनियम लागू कर दिया गया। इस अधिनियम के द्वारा विवाह से सम्बन्धित पूर्व में पास किए गए सभी अधिनियम रद्द कर दिए गए और सभी हिंदुओं पर एकसमान कानून सगू किया गया। इस अधिनियम में हिंदू विवाह की प्रचलित विभिन्न विधियों को मान्यता प्रदान की गई है, साथ ही सभी जातियों के स्त्री-पुरुषों को विवाह एवं तलाक के अधिकार प्रदान किए गए। है। इसकी प्रमुख विशेषताओं पर इस अध्याय में पूर्व में विचार किया जा चुका है।

3. हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Butteesaian Act, 191sti) 1837 के हिन्दू स्त्रियों को सम्पत्ति पर अधिकार अधिनयम में विधवा को अपने मत पति की सम्पत्ति में समेत अधिकार प्रदा था तथा भिरा र दायभाग ही सम्पत्ति में। उत्तराधिकार के भिन्न-भिन्न नियम । सम्पत्ति अधिकार को बाधाओं को समाप्त करने और स्त्रियों को पुरुष के समान अधिकार प्रदान करने की दृष्टि से हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 पारित किया गया।

4. हिन्दू नाबालिग तथा संरक्षकता अधिनियम, 1956 (The Hindu Minority and Guardianship Act, 1956) अधिनियम के पूर्व नाबालिग बच्चे के पिता की मृत्यु होने पर संरक्षक बनने का अधिकार केवल पितृ पक्ष के लोगों को हो सम्पत्ति का दुरुपयोग होने पर भी मा छ नहीं कर सकती थी। इस अधिनियम ने इस कमी को दूर कर दिया हैं।

5. हिन्दू दत्तक ग्रहण ओर भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (Hindu Adaptation and Maintenance Act, 1956) अधिनियम में गोद ने । त्रों का उनके आश्रितों के भरण पोषण के बारे में विस्तार से व्यवस्था की गई है।

6. स्त्रियों व कन्याओं का अनतिक व्यापार निरोधक अधिनियम, 1956 (Suppression of Immoral Trafic in Women and Girls Act, 1958) वेश्यावृति और अनैतिक व्यवहार को रोकने की दृष्टि से भारत सरकार ने 1955 में यह अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम को मुख्य विशेषतई निम्न प्रकार हैं।

  • वेश्यावृत्ति एक दण्डनीय अपराध हैं। इस अधिनियम के अनुसार, “कोई भी स्त्री जो घन या वस्तु के बदले यौन सम्बन्ध के लिए अपना शरीर अर्पत करती है, वेश्या’ हैं तथा अपने शरीर को इस प्रकार यौनसम्बन्ध के लिए अर्पण करना ‘वेश्यागृति’ है।”
  • वेश्यालयों में रहने वाला व्यक्ति (सन्तान को छोड़कर) यदि यह 18 वर्ष से अधिक का है और वेश्या की आय पर आश्रित रहता है तो उसे दो वर्ष का कारावास अथवा एक हजार रुपये तक का दण्ड़ दिया जा सकता है।
  • वेश्यालय चलाने वाले व्यक्ति को 1 से 15 वर्ष तक का कारावास तथा दो हजार रुपये तक का जुर्माना आदि दड़ दिया जा सकता है।

7. दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 (Lowry Prohibition Act, 1961) हिन्दू समाज में दहेज की भीषण समस्या का समाधान करने के लिए मई, 1961 में ‘दहेज निरोधक अधिनियम’ पारित किया गया। इसकी प्रमुख विशेषताओं पर सो अध्याय में पूर्व में विचार किया जा चुका है। 1956 में दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 में संशोधन कर इसे और कठोर बनाया गया है। 

प्रश्न 6.
विवाह-विच्छेद किसे कहते हैं? विवाह-विच्छेद के लाभ और हानियों का वर्णन कीजिए। का विवाह विच्छंद से कौन-कौन से लाभ होते हैं?
उत्तर:
विवाह-विच्छेद इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 4 देखें। विवाह-विच्छेद से लाभ विवाह-विच्छेद में निम्नलिखित लाभ होते हैं।

  1. समानता का अधिकार वर्तमान में स्त्री-पुरुषों को सभी क्षेत्रों में समान अधिकार प्रदान किए गए हैं, ऐसी स्थिति में विवाह-विच्छेद का अधिकार केवल पुरुषों को ही नही वरन् स्त्रियों को भी प्राप्त होना चाहिए। उन्हें भी असाधारण परिस्थितियों में अपने पति को त्यागने का अधिकार होना चाहिए।
  2. पारिवारिक संगठन को सुदृढ़ बनाने के लिए वर्तमान में एकाकी परिवारों में पति के दुराचारी होने या वैवाहिक दायित्व न निभाने पर पत्नी व बच्चों को कोई अन्य सहारा नहीं होता। ऐसी दशा में स्त्री व बच्चों की रक्षा के लिए एवं परिवार को सुसंगठिा बनाने के लिए विशिष्ट परिस्पितियों में विवाह विच्छेद की स्पोति दी उनी चाहिए।
  3. स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए स्त्रियों को विवाह-विच्छेद का अश्किार मिलने पर उनकी पारिवारिक एवं सामवक प्रतिष्ठा में वृद्धि होंगी, साथ ही पुरुषों की मनमानी पर भी अंकुश लगेगा।
  4. वैवाहिक समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए हिन्दू विवाह से सम्बन्धित समस्याओं जैसे—बाल-विवाह, अनमेल विवाह, दहेज, विधवा विवाह निषेध आदि से छुटकारा पाने के लिए विवाह-विच्छेद का अधिकार स्त्री-पुरुषों को समान रूप से दिया जाना चाहिए।
  5. सामाजिक जीव को सन्तुलित बनाने के लिए स्त्रियों को विवाह के क्षेत्र में पुरुषों के समन अधिकार देने से समाज व्यवस्था में असन्तुलन पैदा होगा। इस स्थिति में बचने के लिए एवं मानवीय दृष्टिकोण से भी स्त्रियों को विवाह- विछंद का अधिकार प्राप्त होना चाहिए।
  6. परम्परा व संस्कृति को संरक्षण स्त्रियों को तलाक का अधिकार देने से भारत को प्राचीन परम्परा व संस्कृति को संरक्षण मि। वैदिक . कल और उसके काफी समय बाद तक दोनों पक्षों को तलाक देने के अधिकार थे। मध्य गुग में इन अधिकारों का रोक लगायी गई। इस प्रकार तलाक से हमारी भारतीय परम्परा व संस्कृति को कोई खतरा नहीं होगा, बल्कि इससे तो उनका क्षण ही होग
  7. स्त्रियों को तलाक का अधिकार देने से हिन्दू विवाह पर लगाया जाने वाला यह आरोप कि त एक तर अधध। पों के प में है, भिट जाएगा। यह दोनों पक्षों को समान रूप से सुदृढ़ बनाएगा।

विवाह-विच्छेद से हानियाँ
विवाह विच्छेद से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं।

  1. पारिवारिक विघटन की समस्या तलाक से पारिवारिक विघटन व सामाजिक विपटन भी होता है।
  2. स्त्रियों के भरण-पोषण की समस्या तलाक होने पर स्त्रियाँ बेसहारा, बेघर हो जाती है, उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कई आर अनैतिक स्थिति का भी सामान करना पड़ जाता है।
  3. बच्चों की समस्या तलाक के कारण बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उनके लालन पालन, शिक्षा दीक्षा की समस्या पैदा हो जाती है। माता-पिता के अभाव में उनके व्यक्तित्व का भी समुचित विकास नहीं हो पाता।
  4. तलाक की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन विवाह-विदद से तलाक की प्रवृत्ति बढ़ती है, इससे जीवन में ठहराव नहीं आता और समाज में अनतिका बड़ती है। तलाक से पुनर्बाह में भी वृद्धि होती है।
  5. तलाक के प्रभाव में मंगामक किट पैदा होता हैं नशा पति-पत्नी को आएँ टूट जाती है। उनमें हौन भावना पैदा होती है।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 4 चैक सम्बन्धी साधारण लेख्ने

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 4
Chapter Name चैक सम्बन्धी साधारण लेख्ने
Number of Questions Solved 16
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 4 चैक सम्बन्धी साधारण लेख्ने

बहुविकल्पीय प्रश्न ( 1 अंक)
                   

प्रश्न 1.
चैक पर लेखक के हस्ताक्षर होना। (2012)
(a) आवश्यक नहीं है
(b) वांछनीय है
(c) आवश्यक है
(d) ये सभी
उत्तर:
(c) आवश्यक है

प्रश्न 2.
चैक के मुख्य पृष्ठ पर बाईं ओर कोने पर दो तिरछी समानान्तर रेखाएँ खींच देने को कहते हैं।
(a) पृष्ठांकन
(b) रेखांकन
(C) बेचान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) रेखांकन

प्रश्न 3.
चैक का रेखांकन………….द्वारा नहीं किया जा सकता है। (2014)
(a) आहर्ता
(b) भुगतान पाने वाला
(c) पृष्ठांकन
(d) बैंक
उत्तर:
(b) भुगतान पाने वाला

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
आदाता द्वारा प्राप्त वाहक चैक को रेखांकित (2013)
(a) किया जा सकता है।
(b) नहीं किया जा सकता
(C) पता नहीं
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
रेखांकित चैक का भुगतान
(a) नकद मिल सकता है
(b) नकद नहीं मिल सकता
(C) ग्राहक के खाते में जमा होता है
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) ग्राहक के खाते में जमा होता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
चैक एक शर्तसहित/शर्तरहित आज्ञा-पत्र है।
उत्तर:
शर्तरहित

प्रश्न 2.
चैक की वैधता कितनी होती है?
उत्तर:
3 माह

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
चैक के रेखांकन का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
चैक के भुगतान को सुरक्षित करना।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
चैक क्या है? चैक के तीन पक्षकारों के नाम लिखिए। (2013)
उत्तर:
चैक एक शर्तरहित लिखित आज्ञा-पत्र होता है, जिसमें लेखक बैंक को चैक में लिखित व्यक्ति, उसके द्वारा आदेशित व्यक्ति या धारक को चैक में लिखित धनराशि भुगतान करने का आदेश देता है। चैक के निम्नलिखित तीन पक्षकार होते हैं

  1. लेखक या आहर्ता
  2. देनदार या आहर्ती
  3. लेनदार या आदाता

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
एक चैक को रेखांकित कैसे किया जाता है? इसके दो लाभ लिखिए। (2016)
अथवा
चैक को रेखांकित करने की विधि लिखिए। (2014)
उत्तर:
चैक को अत्यन्त सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से उसके मुख्य पृष्ठ पर बाईं ओर दो समानान्तर तिरछी रेखाएँ खींच दी जाती हैं, जिसे चैक का रेखांकन करना कहते हैं एवं इस प्रकार के चैक को रेखांकित चैक’ कहते हैं। चैक का रेखांकन ‘भुगतान (UPBoardSolutions.com) पाने वाला’ द्वारा नहीं किया जा सकता है। परन्तु आदाती द्वारा वाहेक चैक को रेखांकित किया जा सकता है। चैक का रेखांकन निम्नलिखित दो प्रकार से किया जा सकता है

1. साधारण रेखांकन
2. विशेष रेखांकन

इसके दो लाभ निम्नलिखित हैं

1. रेखांकित चैक के द्वारा भुगतान सुरक्षित रूप से किया जा सकता है।
2. रेखांकित चैक से भुगतान को प्रमाणित किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
चैक के अनादरण के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए। (2016)
अथवा
चैक के अनादरण के किन्हीं चार कारणों का उल्लेख कीजिए। (2018)
उत्तर:
निम्नलिखित दशाओं के कारण बैंक चैक का अनादरण कर देता है

  1. यदि चैक पर दिनांक न लिखी हो।
  2. किसी चैक पर आगे (भविष्य) की तारीख लिखी हुई हो।
  3. चैक पर 3 माह पूर्व की तारीख लिखी हुई हो।
  4. किसी व्यक्ति के खाते में चैक की राशि की अपेक्षा पर्याप्त धन न हो।

UP Board Solutions

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
चैक का नमूना बनाइए। (2015)
अथवा
चैक से आप क्या समझते हैं? इसका नमूना बनाइए। (2008)
उत्तर:
चैक से आशय चैक एक शर्तरहित लिखित आज्ञा-पत्र होता है, जिसमें लेखक बैंक को चैक में लिखित व्यक्ति, उसके द्वारा आदेशित व्यक्ति या धारक को चैक में लिखित धनराशि भुगतान करने का आदेश देता है। भारतीय विनिमय साध्य विलेख अधिनियम, 1881 (UPBoardSolutions.com) की धारा 6 के अनुसार, “चैक एक ऐसा विनिमय-पत्र है जो किसी बैंक विशेष पर लिखा जाता है तथा जो केवल माँग पर देय होता है।”
चैक का नमूना
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 4 चैक सम्बन्धी साधारण लेख्ने
प्रश्न 2.
चैक की विशेषताएँ बताइए। चैक के विभिन्न भेदों को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चैक की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. यह एक शर्तरहित लिखित आज्ञा-पत्र होता है।
  2. इसका भुगतान माँगने पर ही दिया जाता है।
  3. इसमें किसी बैंक विशेष को आज्ञा दी जाती है।
  4. धनराशि का भुगतान उसी व्यक्ति को करना पड़ता है, जिसका नाम चैक पर लिखा हो अथवा उसके आदेशानुसार किसी अन्य व्यक्ति को किया जाता है।
  5. इस पर लेखक के हस्ताक्षर अवश्य होते हैं।
  6. इसका भुगतान करने की धनराशि निश्चित होती है।

चैक के मुख्य भेद
चैक मुख्यत: निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

1. वाहक चैक इस चैक का भुगतान उसमें उल्लेखित व्यक्ति को या वाहक अर्थात् बैंक की खिड़की पर प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति को कर दिया। जाता है। ऐसे चैक का हस्तान्तरण केवल सुपुर्दगी मात्र से ही हो जाता है। तथा चैक का पृष्ठांकन करने की आवश्यकता नहीं होती है। यदि कोई गलत व्यक्ति ऐसे चैक का भुगतान ले लेता है, तो इसमें बैंक की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है। ऐसे चैक को प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस चैक का कानूनी अधिकारी बन जाता है। भुगतान प्राप्त करने की दृष्टि से आदेशित चैकों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा गया है

  • खुला चैक जिस चैक का भुगतान बैंक की खिड़की पर प्रस्तुत करने पर तुरन्त प्राप्त हो जाता है, उसे खुला चैक कहते हैं।
  • रेखांकित चैक यदि किसी चैक को अत्यन्त सुरक्षित बनाने के लिएउसके (UPBoardSolutions.com) मुख्य पृष्ठ पर ऊपर बाईं ओर कोने में दो तिरछी समानान्तर रेखाएँ खींच दी जाती हैं, तो ऐसे चैक को रेखांकित चैक’ कहते हैं।

2. आदेशित चैक इस चैक का भुगतान उसमें उल्लेखित व्यक्ति को या उसके आदेशानुसार अन्य किसी व्यक्ति को ही दिया जाता है तथा इस चैक पर व्यक्ति के नाम के आगे ‘Or Order’ शब्द लिखा रहता है। ऐसे चैक के हस्तान्तरण के लिए चैक की सुपुर्दगी के साथ-साथ उसका पृष्ठांकन करना भी जरूरी होता है। व्यवहार में प्रायः इसी प्रकार के चैकों का प्रयोग होता है।

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
रेखांकन के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रेखांकन निम्नलिखित दो प्रकार का होता है-

1. सामान्य रेखांकन जब किसी चैक के मुख्य पृष्ठ पर दो समानान्तर तिरछी रेखाएँ। खींची गयी हों तथा उनके बीच & Co., Not Negotiable, आदि शब्द लिखे गए हों अथवा न लिखे गए हों, तो इसे सामान्य रेखांकन कहा जाता है।
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 4 चैक सम्बन्धी साधारण लेख्ने

2. विशेष रेखांकन जब किसी चैक के मुख्य पृष्ठ पर बैंक का नाम लिख दिया जाता है, (UPBoardSolutions.com) चाहे उसके साथ ‘Not Negotiable’ शब्द लिखा गया हो या नहीं, इसे विशेष रेखांकन कहा जाता है।
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अके)

प्रश्न 1.
चैक से आप क्या समझते हैं? चैक का अनादरण क्या है? चैक के अनादरण के दस कारणों का उल्लेख कीजिए। (2010)
उत्तर:
चैक से आशय इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न 1 देखें। चैक का अनादरण या चैक को वापस करना जब कोई बैंक किसी कारणवश चैक का भुगतान करने से इन्कार कर देता है, तो इसे चैक का अनादरण, अप्रतिष्ठित या तिरस्कृत होना’ (Dishonour of Cheque) कहते हैं। ग्राहक के द्वारा लिखे गए प्रत्येक चैक का भुगतान करना बैंक के लिए अनिवार्य होता है। यदि ग्राहक के खाते में पर्याप्त धन जमा है, तो बैंक चैक का अनादरण नहीं कर सकता है, परन्तु निम्न कारणों से बैंक चैक का अनादरण कर देता है

  1. दिनांक को न लिखा होना यदि किसी चैक पर दिनांक नहीं लिखी हो, तो बैंक ऐसे चैक पर ‘दिनांक नहीं’ शब्द लिखकर चैक को वापस कर देता है।
  2. आगामी दिनांक का चैक यदि किसी चैक पर आगामी दिनांक लिखी होती है, तो बैंक ऐसे चैक का भुगतान नहीं करता है एवं उस पर ‘आगामी दिनांक का चैक’ शब्द लिखकर चैक को वापस कर देता है।
  3. 3 माह पूर्व की तारीख यदि किसी चैक पर 3 माह पूर्व की तारीख लिखी हुई हो, तो इस दशा में बैंक चैक का भुगतान नहीं कर सकता है।
  4. अपर्याप्त धन का होना यदि किसी ग्राहक के खाते में चैक की राशि से (UPBoardSolutions.com) कम राशि जमा होती है, तो बैंक द्वारा इस दशा में चैक का भुगतान नहीं किया जाता है तथा चैक पर ‘अपर्याप्त धनराशि’ शब्द लिखकर चैक को वापस कर देता है।
  5. अंकों व शब्दों में अन्तर यदि चैक में लिखी गई धनराशि के अंकों व शब्दों में कोई अन्तर होता है, तो बैंक ऐसे चैक का भुगतान नहीं करता तथा चैक पर ‘अंकों वे शब्दों में अन्तर’ शब्द लिखकर चैक को वापस कर देता है।
  6. न्यायालय द्वारा रोक यदि किसी कारणवश न्यायालय द्वारा चैक का भुगतान रोक दिया गया हो, तो इस दशा में बैंक चैक का भुगतान नहीं कर सकता।
  7. विकृत चैक यदि चैक कटा-फटा हो या उसका रूप विकृत हो गया हो, तो ऐसे चैक को बैंक ‘विकृत चैक’ शब्द लिखकर वापस कर देता है।
  8. बेचान में शंका यदि किसी चैक को बेचान करते समय किसी प्रकार की शंका उत्पन्न हो, तो भी बैंक चैक का अनादरण कर देता है।
  9. लेखक की मृत्यु यदि चैक लिखने वाले की मृत्यु हो गई हो या वो पागल या दिवालिया हो गया हो और बैंक को इस बात की जानकारी हो, तो बैंक चैक का भुगतान करने से मना कर सकता है।
  10. हस्ताक्षरों में अन्तर यदि चैक पर किए गए लेखक के हस्ताक्षर उसके नमूने के हस्ताक्षर से भिन्न होते हैं तब बैंक ऐसे चैक को हस्ताक्षरों में अन्तर शब्द लिखकर वापस कर देता है।

क्रियात्मक प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित लेन-देन का 31 मार्च, 2007 को मोहन के जर्नल में लेखा कीजिए।

  1. मोहन ने रे 50,000 से चालू खाता खोला।
  2. ₹ 10,000 का माल खरीदा तथा भुगतान चैक से किया।
  3. ₹ 500 मजदूरी का चैक द्वारा भुगतान किया।
  4. निजी व्यय के लिए बैंक से ₹ 200 निकाले।
  5. सोहन को ₹ 6,000 का माल बेचा। (2008)

हल
जर्नल लेखे
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 4 चैक सम्बन्धी साधारण लेख्ने

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
निम्नलिखित लेन-देनों के लिए जर्नल में प्रविष्टियाँ कीजिए। (2007)
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 4 चैक सम्बन्धी साधारण लेख्ने

हल
जर्नल लेखे
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 4 चैक सम्बन्धी साधारण लेख्ने

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 6 नस्तीकरण या फाइलिंग

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 6
Chapter Name नस्तीकरण या फाइलिंग
Number of Questions Solved 21
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 6 नस्तीकरण या फाइलिंग

बहुविकल्पीय प्रश्न ( 1 अंक)

प्रश्न 1.
नस्तीकरण का उद्देश्य होता है
(a) पुनः आदेशों की पूर्ति के लिए
(b) मतभेदों का निपटारा करना
(c) पत्रों को सुरक्षित रखने हेतु
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 2.
फाइलिंग का सबसे पुराना तरीका है
(a) कार्ड-बोर्ड फाइल
(b) तार फाइल
(C) खड़ी फाइल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) तार फाइल

प्रश्न 3.
नस्तीकरण की किस प्रणाली के अन्तर्गत पत्रों को खड़ी अवस्था में रखा जाता है?
(a) नस्तीकरण की पट प्रणाली
(b) नस्तीकरण की तिरछी प्रणाली
(c) नस्तीकरण की खड़ी प्रणाली
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) नस्तीकरण की खड़ी प्रणाली

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
अनुपस्थिति कार्ड का प्रयोग किस फाइल में किया जाता है? (2014)
(a) कबूतरखाने वाली फाइल में
(b) तार फाइले में।
(c) शैनन फाइल में
(d) खड़ी फाइल में
उत्तर:
(d) खड़ी फाइल में

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
नस्तीकरण का एक लाभ लिखिए। (2015)
उत्तर:
नस्तीकरण के द्वारा पत्रों को क्रमबद्ध रूप में भविष्य के लिए सँभालकर रखा जाता है।

प्रश्न 2.
‘कबूतरखाने वाली फाइल’ में कितने खाने होते हैं?
उत्तर:
24 खाने

प्रश्न 3.
बैंक के लिए नस्तीकरण की कौन-सी विधि उपयुक्त होती है?
उत्तर:
खेड़ी फाइल

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
प्राप्त पत्रों को सुरक्षित रखने वाले विभाग का नाम बताइए। (2012)
उत्तर:
पत्राचार विभाग

प्रश्न 5.
बाहर जाने वाले पत्रों का रिकॉर्ड रखे जाने वाले रजिस्टर का नाम लिखिए। (2014, 12)
उत्तर:
पत्र-प्रेषित पुस्तक या रजिस्टर

प्रश्न 6.
जिस रजिस्टर में आने वाले पत्रों का विवरण लिखा जाता है, उसका नाम लिखिए। (2013)
उत्तर:
पत्र-प्राप्ति पुस्तक या (UPBoardSolutions.com) रजिस्टर

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
पड़ी या समतल फाइलिंग क्या है? इसके दो दोषों का उल्लेख कीजिए। (2013)
उत्तर:
इस प्रणाली में पत्रों को लेटी या पट अवस्था में रखा जाता है। इसमें पत्र तिथिवार फाइल किए जाते हैं अर्थात् जो पत्र पहले आता है, वह पहले रखा जाता है तथा जो बाद में आता है, वह बाद में रखा जाता है। यह छोटे-बड़े दोनों कार्यालयों में प्रयोग होती है। इस प्रणाली के दोष निम्नलिखित हैं

  1. असुरक्षा इस प्रणाली के अन्तर्गत जरा-सी असावधानी से पत्रों में धूल | जम जाती है, कीड़े-मकोड़े पत्रों को नष्ट कर सकते हैं। इस प्रकार असुरक्षा का भय रहता है।
  2. असुविधा इस प्रणाली में नीचे के पत्रों को निकालने में असुविधा (UPBoardSolutions.com) रहती है और पत्रों के गिर जाने का भय भी रहता है।

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
लेटी हुई नस्तीकरण प्रणाली की किन्हीं चार विधियों के नाम लिखिए। (2016)
उत्तर:
लेटी हुई नस्तीकरण प्रणाली की चार विधियों के नाम निम्नलिखित

  1. तार फाइल
  2. फोल्डर फाइल
  3. कार्ड-बोर्ड या दफ्ती की फाइल
  4. लोहे की मुड़ी हुई शलाकाओं वाली फाइल

प्रश्न 3.
डॉकेटिंग क्या है? (2014)
उत्तर:
पत्रों को मोड़ने के बाद उसके ऊपर हवाले के रूप में संक्षिप्त विवरण लिखा जाता है, जो डॉकेटिंग कहलाता है।

डॉकेटिंग का नमूना

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 6 नस्तीकरण या फाइलिंग 1

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प्रश्न 4.
खड़ी नस्तीकरण प्रणाली की चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2018, 16)
उत्तर:
खड़ी नस्तीकरण प्रणाली की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इस प्रणाली में गोपनीयता एवं सुरक्षा का गुण सर्वाधिक पाया जाता है
  2. इस प्रणाली के अन्तर्गत आवश्यकता के (UPBoardSolutions.com) समय पत्रों को शीघ्रता से ढूंढा जा सकता है
  3. यह प्रणाली काफी लोचदार है
  4. इस प्रणाली में पत्रों को संग्रहित करके रखने में सुविधा रहती है

प्रश्न 5.
नस्तीकरण की खड़ी प्रणाली के अन्तर्गत फोल्डरों को दराज में रखने के कितने क्रम हैं?
उत्तर:
नस्तीकरण की खड़ी प्रणाली के अन्तर्गत फोल्डरों को दराज में रखने के निम्नलिखित क्रम हैं

  1. वर्णमाला क्रम
  2. भौगोलिक क्रम
  3. संख्या क्रम
  4. वर्णमाला एवं संख्या दोनों के आधार पर रखने का क्रम
  5. विषय के अनुसार क्रम

प्रश्न 6.
‘नस्तीकरण’ की श्रेष्ठ प्रणाली कौन-सी है? (2017)
उत्तर:
नस्तीकरण की खड़ी प्रणाली सुव्यवस्थित, वैज्ञानिक एवं लोचदार है। अतः यह नस्तीकरण की सर्वोत्तम, आधुनिक तथा सर्वश्रेष्ठ प्रणाली मानी जाती है।

UP Board Solutions

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
पड़ी फाइलिंग के गुण एवं दोषों का वर्णन कीजिए। (2008)
उत्तर:
पड़ी फाइलिंग के गुण पड़ी फाइलिंग के गुण निम्नलिखित हैं

  1. सरलता पड़ी फाइल प्रणाली अत्यन्त सरल होती है। इस प्रणाली में पत्रों को आसानी से रखा जा सकता है और निकाला भी जा सकता है। इस प्रकार, यह प्रणाली अन्य प्रणालियों की तुलना में सरल है।
  2. सुरक्षा इस प्रणाली में पत्रों को बाँधकर रखा जाता है, जिससे पत्र सुरक्षित रहते हैं।
  3. सस्ती प्रणाली यह प्रणाली अन्य प्रणालियों की तुलना में अपेक्षाकृत सस्ती है, इसलिए यह प्रणाली काफी लोकप्रिय है।
  4. कम स्थान घेरना यह प्रणाली अन्य प्रणालियों से कम स्थान घेरती है।
  5. उपयुक्त प्रणाली यह प्रणाली छोटे व्यापारियों के लिए उपयुक्त होती है।
  6. प्रशिक्षण नहीं नया व्यक्ति भी इस प्रणाली को (UPBoardSolutions.com) सरलता से समझ सकता है। इसमें किसी प्रकार के विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं रहती है।
  7. अनुक्रमणिका (सूची) साथ में होना इस प्रणाली में अनुक्रमणिका साथ में होती है।

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पड़ी फाइलिंग के दोष पड़ी फाइलिंग प्रणाली के दोष निम्नलिखित हैं-

  1. सुरक्षा का अभाव इस प्रणाली में पत्रों को खुला रखा जाता है और साथ ही पत्र बँधे हुए रहते हैं, जिससे इनके निकलने की आशंका रहती है, अत: पत्र असुरक्षित रहते हैं।
  2. वर्गीकरण का अभाव इस प्रणाली में पत्रों को वर्गीकृत नहीं किया जाता है। इससे पत्रों को ढूंढने में असुविधा होती है।
  3. गोपनीयता का अभाव पड़ी फाइलिंग प्रणाली में अन्य प्रणालियों की तुलना में गोपनीयता का अभाव पाया जाता है।
  4. पत्र फटने का भय इस प्रणाली में पत्रों के बँधे होने के कारण उनके फटने का भय बना रहता है।
  5. लोचता पड़ी फाइलिंग प्रणाली में अन्य प्रणालियों से कम लोच पाई जाती है।
  6. पुरानी प्रणाली यह प्रणाली बहुत पुरानी है और अब यह बड़े व्यापारियों के लिए अनुपयुक्त सिद्ध हो गई है।

प्रश्न 2.
खड़ी फाइलिंग प्रणाली के गुण एवं दोषों का वर्णन कीजिए। (2007)
उत्तर:
नस्तीकरण की खड़ी फाइल प्रणाली के गुण नस्तीकरण की खड़ी फाइल प्रणाली के गुण निम्न हैं

  1. पत्रों को सुरक्षित रहना इस प्रणाली के अन्तर्गत पत्रों को फोल्डर में रखा जाता है, जिससे उनके कटने-फटने या आपस में मिल जाने का भय नहीं रहता है। अत: इस प्रणाली के उपयोग से पत्र सुरक्षित रहते हैं।
  2. पत्रों को निकालने व पुनः रखने में सुविधा इस प्रणाली में संकेत कार्ड द्वारा पत्रों को सरलता से प्राप्त किया जा सकता है वे अनुपस्थिति कार्ड के उपयोग द्वारा सरलता से पुनः रखा जा सकता है। अतः इस फाइल प्रणाली में पत्रों को लगाने एवं निकालने में समय एवं श्रम कम लगती है।
  3. सुव्यवस्थित व वैज्ञानिक प्रणाली यह प्रणाली सुव्यवस्थित एवं वैज्ञानिक है। अतः यह फाइलिंग की सबसे उत्तम, आधुनिक तथा सर्वश्रेष्ठ प्रणाली मानी जाती है।
  4. लोचदार प्रणाली यह प्रणाली लोचदार है। इसमें फोल्डरों की (UPBoardSolutions.com) संख्या को आवश्यकतानुसार घटाया-बढ़ाया जा सकता है।
  5. गोपनीयता का गुण इस प्रणाली में अलमारी एवं ताले की व्यवस्था होती है, जिससे पत्रों की गोपनीयता बनी रहती है।

नस्तीकरण की खड़ी फाइल प्रणाली के दोष नस्तीकरण की खड़ी फाइल प्रणाली के दोष निम्न हैं-

  1. पत्रों के बिखरने का भय इस प्रणाली के अन्तर्गत पत्रों को फोल्डर में खुला ही रखा जाता है, जिससे पत्रों के बिखरने का भय लगा रहता है।
  2. ढूँढने में समय लगना इस प्रणाली में यदि फोल्डर गलत स्थान पर रख दिया जाता है, तो उसे ढूंढने में अधिक समय वे श्रम लगता है।
  3. अधिक स्थान की आवश्यकता इस प्रणाली में लकड़ी या लोहे की अलमारी का प्रयोग किया जाता है, जो बहुत अधिक स्थान घेरती है।
  4. खर्चीली प्रणाली यह प्रणाली अधिक खर्चीली होती है, छोटे व्यवसायी इसका उपयोग नहीं कर पाते हैं।
  5. तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता इस प्रणाली हेतु विशेष तकनीकी ज्ञान एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
नस्तीकरण क्या है? नस्तीकरण के उद्देश्यों को भी लिखिए। (2014)
अथवा
नस्तीकरण की परिभाषा दीजिए। नस्तीकरण के क्या-क्या लाभ हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2011)
अथवा
फाइलिंग से आप क्या समझते हैं? फाइलिंग के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए। (2009)
उत्तर:
नस्तीकरण का अर्थ नस्तीकरण (Filing) विधि के अन्तर्गत आने वाले तथा जाने वाले व्यावसायिक पत्रों अथवा उनकी प्रतिलिपियों को इस प्रकार सुरक्षित रखा जाता है, जिससे कि आवश्यकता पड़ने पर किसी भी पत्र अथवा प्रतिलिपि को सरलतापूर्वक एवं शीघ्रता से प्राप्त किया जा सके। प्रो. मिल्स एवं स्टैडिंग फोर्ड के अनुसार, “नस्तीकरण वह कला है, जिसके द्वारा व्यापार सम्बन्धी सभी पत्रों तथा उनसे सम्बन्धित सभी मौलिक पत्रों अथवा (UPBoardSolutions.com) उनकी प्रतिलिपियों को इस प्रकार से रखा जाता है कि भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर इच्छित पत्र को शीघ्रता से प्राप्त किया जा सके।”

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नस्तीकरण के उद्देश्य या लाभ नस्तीकरण के उद्देश्य एवं लाभ निम्नलिखित है।

  1. पत्रों की सुरक्षा व्यापारिक पत्रों एवं दस्तावेजों को नस्तीकरण की विधि अपनाकर सुरक्षित रखा जा सकता है। नस्तीकरण के कारण पत्रों व प्रलेखों के इधर-उधर होने, चोरी होने, खो जाने, आदि का भय कम हो जाता है।
  2. पुनः आदेशों की पूर्ति के लिए पुनः आदेशों की पूर्ति के लिए पुराने ग्राहक प्रायः अपने पूर्व पत्र का सन्दर्भ देकर माल पुनः भेजने का आदेश देते हैं। ऐसी स्थिति में यदि उनके पिछले आदेश फाइल में नहीं होंगे, तो व्यापारी तथा ग्राहक दोनों को असुविधा होगी।
  3. भविष्य में सन्दर्भ के लिए पत्रों को सँभालकर रखे जाने से भविष्य में मतभेद होने पर परस्पर पत्र-व्यवहार सहायक सिद्ध होता है।
  4. पत्रों को क्रमबद्ध करने के लिए कार्यालय में पत्रों को एक निश्चित रूप से क्रमबद्ध करके रखा जाता है। इससे इनको देखने में सरलता रहती है। पत्रों की क्रमबद्धता के लिए पत्रों का नस्तीकरण आवश्यक हो जाता है।
  5. व्यापार के कम होने का कारण ज्ञात करना व्यापार के कम होने पर पिछले पत्रों एवं खातों को देखकर उसका कारण ज्ञात किया जा सकता है।
  6. अनुक्रमणिका का आधार नस्तीकरण अनुक्रमणिका का आधार है, इसलिए पत्र-व्यवहार में अनुक्रमणिका प्रणाली को अपनाने के लिए नस्तीकरण अत्यन्त आवश्यक है।
  7. पत्रों को निकालने की सुविधा नस्तीकरण की विधि द्वारा इच्छित पत्रों को आवश्यकता के समय शीघ्रता से तथा सुगमतापूर्वक निकाला जा सकता है। अन्यथा पत्रों को ढूंढने में समय और शक्ति दोनों नष्ट होते हैं।
  8. विकास योजनाएँ बनाने में सहायक विभिन्न प्रकार की विकास योजनाओं . के निर्माण के लिए भी पुराने पत्रों एवं प्रलेखों का उपयोग किया जाता है। ये पुराने दस्तावेज कई प्रकार की उपयोगी सूचनाएँ प्रदान करते हैं।
  9. तुलनात्मक अध्ययन के लिए समय-विशेष की आर्थिक स्थिति या | लाभ-हानि का तुलनात्मक अध्ययन उसी दशा में सम्भव हो सकता है, जबकि पुराना रिकॉर्ड या पत्र-व्यवहार सँभालकर रखा गया हो।
  10. न्यायालय में प्रमाण के लिए यदि किसी व्यापारी द्वारा किसी समय न्यायालय (UPBoardSolutions.com) में वाद प्रस्तुत किया जाता है, तो पत्रों की प्रतिलिपियों को साक्ष्य या प्रमाण के रूप में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है। अत: नस्तीकरण द्वारा ही पत्रों को आसानी से खोजा जा सकता है।
  11. वैधानिक आवश्यकता कुछ पत्र ऐसे होते हैं, जिन्हें कानूनन सुरक्षित रखना आवश्यक होता है; जैसे- बैनामे, रहन-नामे, बीमा-पत्र, वसीयतनामे, आदि।
  12. सरकार को आवश्यक सूचना भेजने में सहायता देना बहुत से पत्रों को सरकारी आज्ञानुसार सुरक्षित रखना पड़ता है। इनकी सहायता से सरकार द्वारा समय-समय पर माँगी जाने वाली वांछित सूचना सरलता से भेजी जा सकती है।

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प्रश्न 2.
नस्तीकरण से आप क्या समझते हैं? एक अच्छी नस्तीकरण प्रणाली की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2009, 08)
उत्तर:
नस्तीकरण का अर्थ नस्तीकरण (Filing) विधि के अन्तर्गत आने वाले तथा जाने वाले व्यावसायिक पत्रों अथवा उनकी प्रतिलिपियों को इस प्रकार सुरक्षित रखा जाता है, जिससे कि आवश्यकता पड़ने पर किसी भी पत्र अथवा प्रतिलिपि को सरलतापूर्वक एवं शीघ्रता से प्राप्त किया जा सके। प्रो. मिल्स एवं स्टैडिंग फोर्ड के अनुसार, “नस्तीकरण वह कला है, जिसके द्वारा व्यापार सम्बन्धी सभी पत्रों तथा उनसे सम्बन्धित सभी मौलिक पत्रों अथवा उनकी प्रतिलिपियों को इस प्रकार से रखा जाता है कि भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर इच्छित पत्र को शीघ्रता से प्राप्त किया जा सके।”

नस्तीकरण के उद्देश्य या लाभ नस्तीकरण के उद्देश्य एवं लाभ निम्नलिखित है।

  1. पत्रों की सुरक्षा व्यापारिक पत्रों एवं दस्तावेजों को नस्तीकरण की विधि अपनाकर सुरक्षित रखा जा सकता है। नस्तीकरण के कारण पत्रों व प्रलेखों के इधर-उधर होने, चोरी होने, खो जाने, आदि का भय कम हो जाता है।
  2. पुनः आदेशों की पूर्ति के लिए पुनः आदेशों की पूर्ति के लिए पुराने ग्राहक प्रायः अपने पूर्व पत्र का सन्दर्भ देकर माल पुनः भेजने का आदेश देते हैं। ऐसी स्थिति में यदि उनके पिछले आदेश फाइल में नहीं होंगे, तो व्यापारी तथा ग्राहक दोनों को असुविधा होगी।
  3. भविष्य में सन्दर्भ के लिए पत्रों को सँभालकर रखे जाने से भविष्य में मतभेद होने पर परस्पर पत्र-व्यवहार सहायक सिद्ध होता है।
  4. पत्रों को क्रमबद्ध करने के लिए कार्यालय में पत्रों को एक निश्चित रूप से क्रमबद्ध करके रखा जाता है। इससे इनको देखने में सरलता रहती है। पत्रों की क्रमबद्धता के लिए पत्रों का नस्तीकरण आवश्यक हो जाता है।
  5. व्यापार के कम होने का कारण ज्ञात करना व्यापार के कम होने पर पिछले पत्रों एवं खातों को देखकर उसका कारण ज्ञात किया जा सकता है।
  6. अनुक्रमणिका का आधार नस्तीकरण अनुक्रमणिका का आधार है, इसलिए (UPBoardSolutions.com) पत्र-व्यवहार में अनुक्रमणिका प्रणाली को अपनाने के लिए नस्तीकरण अत्यन्त आवश्यक है।
  7. पत्रों को निकालने की सुविधा नस्तीकरण की विधि द्वारा इच्छित पत्रों को आवश्यकता के समय शीघ्रता से तथा सुगमतापूर्वक निकाला जा सकता है। अन्यथा पत्रों को ढूंढने में समय और शक्ति दोनों नष्ट होते हैं।
  8. विकास योजनाएँ बनाने में सहायक विभिन्न प्रकार की विकास योजनाओं . के निर्माण के लिए भी पुराने पत्रों एवं प्रलेखों का उपयोग किया जाता है। ये पुराने दस्तावेज कई प्रकार की उपयोगी सूचनाएँ प्रदान करते हैं।
  9. तुलनात्मक अध्ययन के लिए समय-विशेष की आर्थिक स्थिति या | लाभ-हानि का तुलनात्मक अध्ययन उसी दशा में सम्भव हो सकता है, जबकि पुराना रिकॉर्ड या पत्र-व्यवहार सँभालकर रखा गया हो।
  10. न्यायालय में प्रमाण के लिए यदि किसी व्यापारी द्वारा किसी समय न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया जाता है, तो पत्रों की प्रतिलिपियों को साक्ष्य या प्रमाण के रूप में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है। अत: नस्तीकरण द्वारा ही पत्रों को आसानी से खोजा जा सकता है।
  11. वैधानिक आवश्यकता कुछ पत्र ऐसे होते हैं, जिन्हें कानूनन सुरक्षित रखना आवश्यक होता है; जैसे- बैनामे, रहन-नामे, बीमा-पत्र, वसीयतनामे, आदि।
  12. सरकार को आवश्यक सूचना भेजने में सहायता देना बहुत से पत्रों को सरकारी आज्ञानुसार सुरक्षित रखना पड़ता है। इनकी सहायता से सरकार द्वारा समय-समय पर माँगी जाने वाली वांछित सूचना सरलता से भेजी जा सकती है।

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उत्तर:
नस्तीकरण का अर्थ इसके लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1 देखें। एक अच्छी नस्तीकरण/फाइलिंग प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ एक आदर्श नस्तीकरण प्रणाली में निम्नलिखित गुण या विशेषताएँ होनी चाहिए

  1. सरलता नस्तीकरण प्रणाली में सरलता होनी चाहिए, जिससे इसे आसानी से समझा जा सके और प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी विशेष प्रशिक्षण के इसे प्रयोग कर सके।
  2. मितव्ययिता नस्तीकरण प्रणाली मितव्ययी होनी चाहिए, जिससे कि इसे अपनाने में अधिक व्यय न करना पड़े।
  3. सुरक्षा पत्रों को धूल, मिट्टी, पानी, आग, कीड़े-मकोड़े, दीमक, आदि से सुरक्षित रखा जाना चाहिए। नस्तीकरण प्रणाली में ताले लगाने की भी व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि किसी भी महत्त्वपूर्ण पत्रों व प्रलेखों, आदि की चोरी न हो।सके।
  4. लोचदार नस्तीकरण प्रणाली इस प्रकार की होनी चाहिए, कि उसमें व्यापार की क्षमता के अनुसार वृद्धि या कमी की जा सके, क्योंकि पत्र-व्यवहार की कोई निश्चित सीमा नहीं होती। पत्र कभी अधिक तो कभी कम हो सकते है।
  5. शीघ्रता नस्तीकरण प्रणाली इस प्रकार की होनी चाहिए, जिससे कि आवश्यकता के समय पत्रों को शीघ्रता से रखा और निकाला जा सके।
  6. अल्प स्थान नस्तीकरण में पत्र संग्रह प्रणाली इस प्रकार होनी चाहिए, जिसमें | अल्प स्थान की आवश्यकता हो तथा व्यापारी को अधिक स्थान की व्यवस्था ने करनी पड़े।
  7. शीघ्र पहुँच नस्तीकरण का कार्य ऐसी जगह पर होना चाहिए, जहाँ पहुँचने में (UPBoardSolutions.com) किसी भी कर्मचारी को किसी भी प्रकार की कठिनाई न हो।
  8. गोपनीयता नस्तीकरण प्रणाली ऐसी होनी चाहिए, जिससे कि पत्र-व्यवहार गोपनीय रखा जा सके तथा बाहर का कोई भी व्यक्ति सरलतापूर्वक उसे देख न सके।
  9. अनुकूलता वही नस्तीकरण प्रणाली आदर्श मानी जाती है, जो व्यापार के अनुकूल हो, जैसे कि एक छोटे व्यापारी के लिए पट फाइलिंग उत्तम रहती है।
  10. टिकाऊपन आदर्श फाइलिंग प्रणाली में टिकाऊपन का गुण होना अत्यन्त आवश्यक होता है, ताकि एक बार व्यय करके दीर्घकाल तक पत्रों को सुरक्षित रखा जा सके।

प्रश्न 3.
लेटी हुई फाइलिंग प्रणाली की विभिन्न पद्धतियों का वर्णन कीजिए। (2007)
उत्तर:
लेटी हुई फाइल प्रणाली इस प्रणाली का आजकल सबसे अधिक प्रयोग होता है। छोटे तथा मध्यम श्रेणी के व्यापारी, पेशेवर व्यक्ति, सरकारी कार्यालय, स्कूल व छोटे कॉलेज, आदि सभी अधिकांश रूप से इस प्रणाली का प्रयोग करते हैं। लेटी हुई फाइलिंग प्रणाली की विभिन्न पद्धतियाँ/प्रकार नस्तीकरण की लेटी या पट प्रणालियाँ निम्नलिखित पद्धतियाँ/प्रकार की हो सकती हैं-

1. तार फाइल नस्तीकरण की यह सबसे सस्ती, सरल एवं प्राचीन पद्धति है। यह फाइल एक तकली की भाँति होती है। इसमें एक मोटे तार का प्रयोग किया जाता है, जिसका ऊपर का सिरा नुकीला और मुड़ा हुआ होता है। इसके निचले सिरे पर लकड़ी का एक गोल या चौकोर टुकड़ा लगा रहता है। कभी-कभी नीचे से तार को मोड़कर भी काम चलाया जा सकता है। तार के ऊपर नुकीले सिरे से पत्रों को पिरोया जाता हैं, जो नीचे तख्ती पर टिकते जाते हैं। बाद में इस तार को किसी कील या बँटी पर लटका दिया जाता है। यह प्रणाली तार फाइल छोटे व्यापारियों के लिए उपयुक्त रहती है।
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2. फोल्डर फाइल यह फाइल एक मोटे गत्ते की बनी होती है। गत्ता बीच में से मोड़ देते हैं, जिससे दोनों परतें बराबर हो जाती हैं, इसलिए इसे फोल्डर फाइल कहा जाता है। यह निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

  1. टैग वाली फाइल इस फाइल में दफ्ती के एक कोने पर एक छिद्र होता है, जिसमें एक टैग लगा होता है। इसमें पत्रों को लगाने से पूर्व छिद्रक मशीन के द्वारा छिद्र कर लिया जाता है और तब उस पत्र को टैग में पिरोकर फाइल में लगा दिया जाता है। इसमें (UPBoardSolutions.com) भी पत्र तिथिवार लगाए जाते हैं।
  2. टीन की पत्ती वाली फाइल इसमें दफ्ती के मध्य में दो छेद होते हैं, जिसमें एक टीन की पत्ती लगी होती है। इस पत्ती में ऊपर से एक छिद्र वाली पत्ती और लगा दी जाती है। इस पत्ती को कसने के लिए दो रिंग लगाए जाते हैं। पत्रों को मशीन द्वारा छिद्र करके पत्ती में पिरोकर ऊपर से दूसरी पत्ती डालकर रिंग्स को कस दिया जाता है।

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3. कार्ड-बोर्ड या दफ्ती की फाइल यह मोटी दफ्ती के कागज की 1 फीट लम्बी व लगभग 9 इंच चौड़ी फाइल होती है। इस दफ्ती में दोनों ओर मध्य में रैक्सीन के टुकड़े लगे होते हैं, जिनके ऊपर बीच में एक फीता लगा होता है। पत्र को एक के ऊपर एक क्रमवार रखकर फीते से बाँध दिया जाता है। पत्रों का विषय दफ्ती के दोनों ओर लगे कागजों पर लिख दिया जाता है, अधिक सुरक्षा के लिए इसे अलमारी में रख दिया जाता है। यह प्रणाली केवल छोटे व्यापारियों के लिए ही उपयुक्त है।
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4. लोहे की मुड़ी हुई शलाकाओं वाली फाइल यह मोटे गत्ते की फाइल होती है, जो बीच में से मुड़ी हुई होती है। इसमें कुछ दूरी पर दो लोहे की खोखली सलाखें लगी होती हैं। इन सलाखों के पास एक लीवर लगा होता है, जिसे दबाने से सलाखें खुलती एवं बन्द होती हैं। (UPBoardSolutions.com) इसमें पत्रों को लगाने से पूर्व पत्रों में छिद्रक मशीन से दो छिद्र कर दिए जाते हैं और फिर उन पत्रों को इन सलाखों में पिरो दिया जाता है। इसी प्रकार, जब किसी पत्र को निकालना होता है, तब इन सलाखों को खोलकर निकाल लिया जाता है। यह प्रणाली छोटे व्यापारियों के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
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5. शैनन फाइल लेटी हुई फाइलों में सबसे उत्तम प्रणाली ‘शैनन फाइल’ की होती है। इस फाइल के लिए एक दराजदार अलमारी प्रयोग में लाई जाती है। इस अलमारी में 4 से 24 दराजों वाले खाने हो सकते हैं। प्रत्येक दराज केवल आगे से बन्द होती है तथा उसमें बाहर दीवार पर एक छोटा-सा टीन का फ्रेम लगा होता है, जिसमें सूची-पत्र लगा होता है। दराज के भीतरी ओर तलों से दो सीधी कीलें निकली होती हैं, जिन पर दो मुड़ी हुई सलाखें होती हैं। इन सलाखों को एक लीवर से दबाकर उठाया जाता है। दराजों के नीचे लोहे की रेलें लगी होती हैं तथा दराजों में छोटे-छोटे पहिए लगे होते हैं, जिससे कि दराज बाहर निकलकर गिर न जाए। इसमें ताला लगाने की व्यवस्था भी होती है।
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6. कबूतर के खानों वाली फाइल इस प्रणाली को ‘पिजन होल प्रणाली’ भी । कहते हैं। यह प्रणाली:अत्यन्त प्राचीन है। इसका प्रयोग छोटे तथा मध्यम वर्ग के व्यापारियों द्वारा किया जाता है। नस्तीकरण की इस प्रणाली में एक लकड़ी की अलमारी प्रयोग में लाई जाती है। इस अलमारी में कबूतर के दड़बों जैसे 24 छोटे-छोटे खाने बने होते हैं, इसीलिए इसे ‘कबूतर के खानों वाली फाइल’ भी कहते हैं। प्रत्येक खाने के बाहर वर्णमाला का एक अक्षर लिखा होता है। अन्तिम खाना X, Y, Z तीन अक्षरों के लिए होता है। पत्रों की सुरक्षा के लिए इस अलमारी को बन्द करने के लिए दरवाजा एवं ताले की व्यवस्था भी की जाती है।
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7. सन्दूकनुमा या बॉक्स फाइल यह एक सन्दूकनुमा फाइल होती है। यह सन्दूक मजबूत मोटे गत्ते, लकड़ी अथवा लोहे का बना होता है। कुछ सन्दूकों में पत्रों को दबाकर रखने के लिए स्प्रिग भी लगी होती है। पत्र बिना बँधे एक के ऊपर एक क्रम में रखे जाते हैं। पत्रों को सन्दूक (UPBoardSolutions.com) में बन्द कर दिया जाता है, जिससे वह कीड़े-मकोड़े, दीमक, मिट्टी, आदि से सुरक्षित रहें।
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8. गार्ड फाइल यह फाइल एक सामान्य रजिस्टर की भाँति होती है, जिसमें कागज की आधी कटी हुई कुछ कतरनें लगी रहती हैं। इन कतरनों पर ही। पत्रों या प्रलेखों को तिथिवार चिपकाया जाता है। डॉकेटिंग पत्रों को मोड़ने के बाद उसके ऊपर हवाले के रूप में संक्षिप्त विवरण लिखा जाता है, जो डॉकेटिंग कहलाता है।

प्रश्न 4.
नस्तीकरण की खड़ी व पड़ी प्रणाली में अन्तर बताइए तथा एक अच्छी फाइलिंग प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। (2008)
उत्तर:
खड़ी फाइल तथा लेटी फाइल प्रणाली में अन्तर
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एक अच्छी फाइलिंग प्रणाली की विशेषताएँ
लेटी हुई फाइल प्रणाली इस प्रणाली का आजकल सबसे अधिक प्रयोग होता है। छोटे तथा मध्यम श्रेणी के व्यापारी, पेशेवर व्यक्ति, सरकारी कार्यालय, स्कूल व छोटे कॉलेज, आदि सभी अधिकांश रूप से इस प्रणाली का प्रयोग करते हैं। लेटी हुई फाइलिंग प्रणाली की विभिन्न पद्धतियाँ/प्रकार नस्तीकरण की लेटी या पट प्रणालियाँ निम्नलिखित पद्धतियाँ/प्रकार की हो सकती हैं-

1. तार फाइल नस्तीकरण की यह सबसे सस्ती, सरल एवं प्राचीन पद्धति है। यह फाइल एक तकली की भाँति होती है। इसमें एक मोटे तार का प्रयोग किया जाता है, जिसका ऊपर का सिरा नुकीला और मुड़ा हुआ होता है। इसके निचले सिरे पर लकड़ी का एक गोल या चौकोर (UPBoardSolutions.com) टुकड़ा लगा रहता है। कभी-कभी नीचे से तार को मोड़कर भी काम चलाया जा सकता है। तार के ऊपर नुकीले सिरे से पत्रों को पिरोया जाता हैं, जो नीचे तख्ती पर टिकते जाते हैं। बाद में इस तार को किसी कील या बँटी पर लटका दिया जाता है। यह प्रणाली तार फाइल छोटे व्यापारियों के लिए उपयुक्त रहती है।
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2. फोल्डर फाइल यह फाइल एक मोटे गत्ते की बनी होती है। गत्ता बीच में से मोड़ देते हैं, जिससे दोनों परतें बराबर हो जाती हैं, इसलिए इसे फोल्डर फाइल कहा जाता है। यह निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

  1. टैग वाली फाइल इस फाइल में दफ्ती के एक कोने पर एक छिद्र होता है, जिसमें एक टैग लगा होता है। इसमें पत्रों को लगाने से पूर्व छिद्रक मशीन के द्वारा छिद्र कर लिया जाता है और तब उस पत्र को टैग में पिरोकर फाइल में लगा दिया जाता है। इसमें भी पत्र तिथिवार लगाए जाते हैं।
  2. टीन की पत्ती वाली फाइल इसमें दफ्ती के मध्य में दो छेद होते हैं, जिसमें एक टीन की पत्ती लगी होती है। इस पत्ती में ऊपर से एक छिद्र वाली पत्ती और लगा दी जाती है। इस पत्ती को कसने के लिए दो रिंग लगाए जाते हैं। पत्रों को मशीन द्वारा छिद्र करके पत्ती में पिरोकर ऊपर से दूसरी पत्ती डालकर रिंग्स को कस दिया जाता है।

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3. कार्ड-बोर्ड या दफ्ती की फाइल यह मोटी दफ्ती के कागज की 1 फीट लम्बी व लगभग 9 इंच चौड़ी फाइल होती है। इस दफ्ती में दोनों ओर मध्य में रैक्सीन के टुकड़े लगे होते हैं, जिनके ऊपर बीच में एक फीता लगा होता है। पत्र को एक के ऊपर एक क्रमवार रखकर (UPBoardSolutions.com) फीते से बाँध दिया जाता है। पत्रों का विषय दफ्ती के दोनों ओर लगे कागजों पर लिख दिया जाता है, अधिक सुरक्षा के लिए इसे अलमारी में रख दिया जाता है। यह प्रणाली केवल छोटे व्यापारियों के लिए ही उपयुक्त है।
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4. लोहे की मुड़ी हुई शलाकाओं वाली फाइल यह मोटे गत्ते की फाइल होती है, जो बीच में से मुड़ी हुई होती है। इसमें कुछ दूरी पर दो लोहे की खोखली सलाखें लगी होती हैं। इन सलाखों के पास एक लीवर लगा होता है, जिसे दबाने से सलाखें खुलती एवं बन्द होती हैं। इसमें पत्रों को लगाने से पूर्व पत्रों में छिद्रक मशीन से दो छिद्र कर दिए जाते हैं और फिर उन पत्रों को इन सलाखों में पिरो दिया जाता है। इसी प्रकार, जब किसी पत्र को निकालना होता है, तब इन सलाखों को खोलकर निकाल लिया जाता है। यह प्रणाली छोटे व्यापारियों के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
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5. शैनन फाइल लेटी हुई फाइलों में सबसे उत्तम प्रणाली ‘शैनन फाइल’ की होती है। इस फाइल के लिए एक दराजदार अलमारी प्रयोग में लाई जाती है। इस अलमारी में 4 से 24 दराजों वाले खाने हो सकते हैं। प्रत्येक दराज केवल आगे से बन्द होती है तथा उसमें बाहर दीवार पर एक छोटा-सा टीन का फ्रेम लगा होता है, जिसमें सूची-पत्र लगा होता है। दराज के भीतरी ओर तलों से दो सीधी कीलें निकली होती हैं, जिन पर दो मुड़ी हुई सलाखें होती हैं। इन सलाखों को एक लीवर से दबाकर उठाया जाता है। दराजों के नीचे लोहे की रेलें लगी होती हैं तथा दराजों में छोटे-छोटे पहिए लगे होते हैं, जिससे कि दराज बाहर निकलकर गिर न जाए। इसमें ताला लगाने की व्यवस्था भी होती है।
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6. कबूतर के खानों वाली फाइल इस प्रणाली को ‘पिजन होल प्रणाली’ भी । कहते हैं। यह प्रणाली:अत्यन्त प्राचीन है। इसका प्रयोग छोटे तथा मध्यम वर्ग के व्यापारियों द्वारा किया जाता है। नस्तीकरण की इस प्रणाली में एक लकड़ी की अलमारी प्रयोग में लाई जाती है। इस (UPBoardSolutions.com) अलमारी में कबूतर के दड़बों जैसे 24 छोटे-छोटे खाने बने होते हैं, इसीलिए इसे ‘कबूतर के खानों वाली फाइल’ भी कहते हैं। प्रत्येक खाने के बाहर वर्णमाला का एक अक्षर लिखा होता है। अन्तिम खाना X, Y, Z तीन अक्षरों के लिए होता है। पत्रों की सुरक्षा के लिए इस अलमारी को बन्द करने के लिए दरवाजा एवं ताले की व्यवस्था भी की जाती है।
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7. सन्दूकनुमा या बॉक्स फाइल यह एक सन्दूकनुमा फाइल होती है। यह सन्दूक मजबूत मोटे गत्ते, लकड़ी अथवा लोहे का बना होता है। कुछ सन्दूकों में पत्रों को दबाकर रखने के लिए स्प्रिग भी लगी होती है। पत्र बिना बँधे एक के ऊपर एक क्रम में रखे जाते हैं। पत्रों को सन्दूक में बन्द कर दिया जाता है, जिससे वह कीड़े-मकोड़े, दीमक, मिट्टी, आदि से सुरक्षित रहें।
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8. गार्ड फाइल यह फाइल एक सामान्य रजिस्टर की भाँति होती है, जिसमें कागज की आधी कटी हुई कुछ कतरनें लगी रहती हैं। इन कतरनों पर ही। पत्रों या प्रलेखों को तिथिवार चिपकाया जाता है। डॉकेटिंग पत्रों को मोड़ने के बाद उसके ऊपर हवाले के रूप में संक्षिप्त विवरण लिखा जाता है, जो डॉकेटिंग कहलाता है।

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प्रश्न 4.
नस्तीकरण की खड़ी व पड़ी प्रणाली में अन्तर बताइए तथा एक अच्छी फाइलिंग प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। (2008)
उत्तर:
खड़ी फाइल तथा लेटी फाइल प्रणाली में अन्तर
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 6 नस्तीकरण या फाइलिंग
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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi राष्ट्रीय भावनापरक निबन्ध

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Name राष्ट्रीय भावनापरक निबन्ध
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi राष्ट्रीय भावनापरक निबन्ध

राष्ट्रीय एकता

सम्बद्ध शीर्षक

  • राष्ट्रीय एकीकरण और उसके मार्ग की बाधाएँ
  • राष्ट्रीय एकता और अखण्डता
  • राष्ट्रीय एकता के पोषक तत्त्व
  • वर्तमान परिवेश में राष्ट्रीय एकता का स्वरूप
  • राष्ट्रीय एकता एवं सुरक्षा

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देश की प्रगति में विद्यार्थियों की भूमिका

सम्बद्ध शीर्षक

  • राष्ट्र निर्माण में युवा-शक्ति का योगदान
  • राष्ट्रीय विकास एवं युवा-शक्ति
  • वर्तमान युवा : दशा और दिशा
  • छात्र जीवन तथा राष्ट्रीय दायित्व.
  • छात्र-संघों का गठन : वरदान या अभिशाप
  • समय नियोजन और विद्यार्थी जीवन
  • भारत की सुरक्षा और युवा पीढ़ी

प्रमुख विचार-बिन्दु–

  1. प्रस्तावना,
  2. विद्यार्थी जीवन का महत्त्व,
  3. कुप्रथाओं का उन्मूलन एवं ग्रामोत्थान,
  4. शहरी सभ्यताओं का मोह-त्याग,
  5. भ्रष्टाचार व दुराचार का उन्मूलन,
  6. काले धन की समाप्ति हेतु प्रयास,
  7. चरित्र-निर्माण से ही देश की उन्नति सम्भव,
  8. उपसंहारी

प्रस्तावना-विद्यार्थी राष्ट्र का भावी नेता और शासक है। देश की उन्नति और भावी विकास का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व उसके सबल कन्धों पर आने वाला है। वास्तव में राष्ट्र की उन्नति और प्रगति के लिए वह मुख्य धुरी का काम कर सकता है। जिस देश का विद्यार्थी सतत जागरूक, सतर्क और सावधान होता है वह देश प्रगति की दौड़ में कभी पीछे नहीं रह सकता। विद्यार्थी एक नवजीवन का सशक्त संवाहक होता है। उसमें रूढ़ियों और परम्पराओं के अटकाव नहीं होते, पूर्वाग्रह से उसकी दृष्टि धूमिल नहीं होती, वरन् वह नये विचारों एवं योजनाओं को क्रियान्वित करने की भरपूर क्षमता से ओतप्रोत होता है।

विद्यार्थी जीवन का महत्त्व-बिद्यार्थी शब्द की संरचना है-‘तिद्या + अर्थी’ अर्थात् जो विसर्जन में सदा संलग्न रहने वाला हो। विद्या प्राप्त करने के लिए परिश्रम और लगन की आवश्यकता होती है। जिस विद्यार्थी को विद्योपार्जन की सच्ची लालसा हो, उसे सभी सुख-सुविधाओं का त्याग करना पड़ता है। चाणक्य ने ठीक ही कहा है, “सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ और विद्या चाहने वाले को सुख कहाँ ? सुख चाहने वाला विद्या को छोड़ दे और विद्या चाहने वाला सुख छोड़ दे।” विद्यार्थी के जीवन में आत्म-संयम, इन्द्रिय-निग्रह, सद्-असद् का विवेक, दया, प्रेम, क्षमा, औदार्य, परोपकार आदि सद्गुण होने चाहिए। शास्त्रों में आदर्श विद्यार्थी को एकाग्रचित्त, सजग, चुस्त, कम भोजन करने वाला और चरित्रसम्पन्न बताया गया है–

काकचेष्टा वकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च।
अल्पाहारी सदाचारी विद्यार्थी पञ्चलक्षणम् ॥

अर्थात् विद्यार्थी कौवे के समान चेष्टा वाला, बगुले के समान ध्यान वाला, कुत्ते के समान नींद वाला, भूख से कम भोजन करने वाला और सदाचार का पालन करने वाला होता है। इसके साथ विद्यार्थी में नम्रतो, अनुशासन, परिश्रम, संयम और अनासक्ति भाव होना चाहिए।

उपर्युक्त गुणों से युक्त विद्यार्थियों को कला, साहित्य, चिकित्सा, अभियान्त्रिकी आदि का पूर्ण अध्ययन-अभ्यास.करके अपने विषय का विशेषज्ञ बनना चाहिए। एक अच्छा साहित्यिक विद्यार्थी सत् साहित्य का सृजन कर देशवासियों में देशभक्ति की भावना उजागर कर सकता है। देश की एकता व संगठन की भावना को सबल बनाकर भावात्मक एकता को पुष्ट कर सकता है। एक सच्चा चिकित्सक देश को स्वस्थ व नीरोग बनाने के लिए अपनी सेवाएँ समर्पित कर सकता है। एक सच्चा अभियन्ता राष्ट्र-निर्माण के अनेक कार्यों को निष्ठापूर्वक सम्पन्न कर देश की महान् सेवा कर सकता है।

कुप्रथाओं का उन्मूलन एवं ग्रामोत्थान-आज देश में कई अन्धविश्वास, रूढ़ियाँ तथा कुप्रथाएँ प्रचलित हैं। इससे देश की यथोचित प्रगति नहीं हो पा रही है। विद्यार्थियों को इन रूढ़ियों और कुप्रथाओं के उन्मूलन के लिए बीड़ा उठाना होगा। आज भी गाँवों में बाल-विवाह, अशिक्षा व अज्ञान का बोलबाला है। गाँव के लोग ऋणग्रस्त और शोषण के शिकार हैं। भारत की अधिकांश जनता गाँवों में रहती है; अतः जब तक ग्रामोत्थान का बिगुल नहीं बजाया जाता, तब तक भारत प्रगति नहीं कर सकता। विद्यार्थियों को गाँवों में जाकर साक्षरता, सहकारिता आदि कार्यक्रम चलाने में सहयोग करना चाहिए। गाँवों में लघु और कुटीर उद्योगों के प्रचलन के लिए प्रयत्न करना चाहिए। पशुधन व गोपालन को लोकप्रिय बनाना चाहिए। इसके लिए डेयरी उद्योग, कपड़ा बुन्ना, मधुमक्खी-पालन आदि का महत्त्व ग्रामीण भाइयों को समझाकर उनके विकास के लिए प्रोत्साहित कर इस कार्य में मार्गदर्शन किया जा सकता है। विद्यार्थियों को ग्रामोत्थान की ओर आकर्षित करने के लिए उन्हें आवश्यक रूप से वहाँ कुछ सुविधाएँ; जैसे—आवागमन के साधन, विद्युत उपकरण, सरकारी अनुदान आदि उपलब्ध कराने चाहिए। साथ ही उन्हें पर्याप्त प्रशंसा, प्रोत्साहन व सम्मान भी देना चाहिए, अन्यथा यह केवल एक आदर्श स्वप्न बनकर ही रह जाएगा।

‘शहरी, सभ्यताओं का मोह-त्याग-आज के अधिकांश शिक्षित व्यक्ति, शिक्षक, चिकित्सक, अभियन्ता गाँवों में सेवा देने से कतराते हैं। यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है। युवाओं को शहरी जीवन की सुख-सुविधाओं को त्यागकर देश की प्रगति और उत्थान को लक्ष्य में रखकर काम करना है।

भ्रष्टाचार व दुराचार का उन्मूलन–आज देश में सर्वत्र भ्रष्टाचार व्याप्त है। एक साधारण चपरासी से लेकर बड़ा अफसर, कर्मचारी, नेता तथा मन्त्री सभी इसमें लिप्त हैं। कोई भी कार्य रिश्वत के बिना नहीं चलता। पुलिस व न्यायालय-कर्मचारी खुले रूप में रिश्वत माँगते हैं। रक्षक ही भक्षक बन गये हैं। व्यापारी वर्ग भी खाद्य-पदार्थों में मिलावट करते हैं। मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति बढ़ गयी है। इस भ्रष्टाचार से लड़ना कोई सामान्य बात नहीं है। इसके लिए निर्भीक विद्यार्थियों को आगे आकर इस भ्रष्टाचाररूपी दानव से लड़ना होगा। जब तक देश से भ्रष्टाचार दूर नहीं होगा, देश की प्रगति होना मुमकिन नहीं है। इसके लिए विद्यार्थियों को सूझ-बूझ, धैर्य और साहस के साथ संघर्ष करने के लिए तत्पर होना होगा। “

देश में दुराचार की विभीषिका भी बढ़ती जा रही है। लूटपाट, हत्याएँ और बलात्कार की घटनाओं से । समाचार-पत्रों के पृष्ठ के पृष्ठ रँगे रहते हैं। प्रजातन्त्र की व्याख्या करते हुए कहा जाता है कि प्रजा द्वारा प्रजा के लिए प्रजा का शासन, किन्तु लगता है कि देश में प्रचलित शासन-व्यवस्था भले और ईमानदार आदमियों के हाथों में न रहकर भ्रष्ट, बदमाश, सफेदपोश लोगों के हाथों में चली गयी है। इस विषम काल में हर आदमी सन्त्रस्त और दु:खी है। इससे लोहा लेने के लिए विद्यार्थी वर्ग ही तत्पर हो सकता है। स्वच्छ और सुन्दर प्रशासन के लिए नि:स्वार्थ सेवाभाव रखने वाले और कार्यकुशल व्यक्तियों की आवश्यकता है। इस अभाव की पूर्ति विद्यार्थी वर्ग ही कर सकता है। उसे इस महामारी से लड़कर इसका उन्मूलन करना होगा, तब ही देश को प्रगति की राह पर आगे बढ़ाया जा सकता है।

काले धन की समाप्ति हेतु प्रयास-काला धन अथवा काला बाजाररूपी महादानव भी बड़ा शक्तिशाली, दुर्धर्ष और महा भयंकर है। आज काले धन वालों की समानान्तर सरकार शासन-सत्ता को दबोचे हुए है। करोड़ों की हेरा-फेरी करने वाले आबाद हो रहे हैं। उनको कोई आँख नहीं दिखा सकता। दो रुपये की चोरी करने वालों पर कहर बरसाया जाता है। महँगाई हनुमान जी की पूँछ की तरह बढ़ती जा रही है। ईमानदारीरूपी सोने की लंका जलती जा रही है। ऐसी विकराल परिस्थिति में सबकी बुद्धि पर पत्थर पड़ गये हैं। जनता किसी ऐसे सहयोग व नेतृत्व की आकांक्षा रखती है, जो इस विषम स्थिति से देश की रक्षा कर सके। इससे लोहा लेने के लिए भी विद्यार्थी वर्ग ही तत्पर हो सकता है।

चरित्र-निर्माण से ही देश की उन्नति सम्भव-बड़े-बड़े कल-कारखाने खोलने से तथा बड़े-बड़े बाँध बनाने से राष्ट सच्चे अर्थों में विकास नहीं कर सकता। हमें आने वाली पीढ़ियों के चरित्र-निर्माण की ओर विशेष ध्यान देना है। चरित्र-निर्माण ही शिक्षा का मुख्य व पवित्र उद्देश्य होना चाहिए। जिस देश में चरित्रवान् लोग रहते हैं, उस देश का सिर गौरव से सदा ऊँचा रहता है। आज के विद्यार्थी को राष्ट्र-भक्ति की भावना से भी ओत-प्रोत होना चाहिए। उसे स्वयं को राष्ट्रीय गौरव का आभूषण बनाये रखना चाहिए। उसे कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे देश की मान-मर्यादा को ठेस पहुँचती हो। राष्ट्र-निर्माण ही उसका लक्ष्य होना चाहिए। अपने जीवन के उत्थान के लिए उसे भौतिकता की ओर उन्मुख न होकर आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख होना चाहिए। इतिहास भी इस बात का साक्षी है कि विश्व के किसी भी क्षेत्र में भौतिक शक्ति आध्यात्मिक शक्ति के सम्मुख ठहर नहीं सकी है।

उपसंहार–किसी देश की वास्तविक उन्नति उसके परिश्रमी, लगनशील, पुरुषार्थी और चरित्रवान् पुरुषों से ही सम्भव है। भारत के विद्यार्थी भी चरित्रशील बनकर देश में वर्तमान में व्याप्त सभी बुराइयों का उन्मूलन कर देश की प्रगति में सच्चा योगदान कर सकते हैं। आज का विद्यार्थी वर्ग राजनैतिक पार्टियों के चक्कर में उलझकर अपने भविष्य को अन्धकारमय बना रहा है। घटिया किस्म के नेता इनके द्वारा अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में आज के विद्यार्थी को इन सबसे अलग रहकर अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। उसकी भावना राष्ट्र को उन्नति की ओर अग्रसर करने की होनी चाहिए। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ‘द्वापर’ काव्य में युवा-शक्ति का आह्वान करते हुए लिखा है

रखते हो तो दिखलाओ कुछ आभा, उगते तारे,
आओ तेज, साहस के दुर्लभ दिन हैं यही हमारे।
X                          X                              X
एक एक, सौ सौ अन्यायी कंसों को ललकारो।
अपनी पुण्यभूमि पर धन-जीवन सब वारो॥

स्वदेश-प्रेम

सम्बद्ध शीर्षक

  • जननीजन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

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फाँसी के फन्दे को चूम लिया। ऐसे ही वीरों के बलिदान को ध्यान में रखकर कवि ने कहा है

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यदि मैं शिक्षामन्त्री होता

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UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 14 क्लासेज एवं ऑब्जेक्ट्स

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Computer
Chapter Chapter 14
Chapter Name क्लासेज एवं ऑब्जेक्ट्
Number of Questions 16
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 14 क्लासेज एवं ऑब्जेक्ट्स

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
क्लास किंस प्रोग्रामिंग सिद्धान्त का केन्द्र बिन्दु होता है?
(a) ऑब्जेक्ट ओरिएण्टेड
(b) क्लास ओरिएण्टेड
(c) ऑब्जेक्ट
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(a) ऑब्जेक्ट ओरिएण्टेड

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा कथन असत्य है?
(a) C++ क्लास में डाटा आइटम तथा फंक्शन होते हैं।
(b) C++ क्लास में मात्र फंक्शन होते हैं।
(c) एक क्लास में अनेक ऑब्जेक्ट डिक्लेयर किए जाते हैं।
(d) ऑब्जेक्ट का प्रारूप क्लास की भाँति होता है।
उत्तर
(b) दिए गए विकल्पों में (b) असत्य है, क्योंकि C++ क्लास फंक्शन के साथ-साथ डाटा आइटम भी रखता है।

प्रश्न 3.
सदस्य फंक्शन को कितने प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है?
(a) तीन
(b) चार
(c) दो
(d) एक
उत्तर
(c) सदस्य फंक्शन को दो प्रकार से परिभाषित किया जा सकता हैक्लास बॉडी के अन्दर तथा क्लास बॉडी के बाहर।

प्रश्न 4.
फंक्शन को क्लास के बाहर परिभाषित करने के लिए किस चिह्न का प्रयोग किया जाता है?
(a) :
(b) :
(c) : ?
(d) ::
उत्तर
(d) ::

प्रश्न 5.
क्लास में प्रयुक्त एक्सेस स्पेसीफायर कितने प्रकार के होते हैं?
(a) तीन
(b) दो
(c) चार
(d) पाँच
उत्तर
(a) एक्सेस स्पेसीफायर तीन प्रकार के होते हैं –
private, protected 24 public

प्रश्न 6.
किस क्लास के डाटा आइटम व फंक्शन को अन्य क्लास द्वारा एक्सेस किया जा सकता है?
(a) public
(b) private
(c) protected
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(a) public क्लास में परिभाषित डाटा आइटम व फंक्शन को किसी भी अन्य क्लास द्वारा एक्सेस किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
निम्न में से ऑब्जेक्ट को परिभाषित करने का प्रारूप कौन-सा है?
(a) class_name object_name
(b) class_name object_name;
(c) object_name class_name;
(d) object_name;
उत्तर
(b) class_name object_name;

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
क्लास का अर्थ समझाइट। (2011, 06)
उत्तर
क्लास एक ऐसा डाटा तत्त्व है, जिसमें प्रोग्राम के सभी डाटा सदस्यों व फंक्शनों को एक संरचना में व्यवस्थित किया जाता है।

प्रश्न 2.
क्लास के सदस्य कौन होते हैं?
उत्तर
क्लास में प्रयुक्त डाटा आइटम तथा फंक्शन क्लास के सदस्य होते हैं।

प्रश्न 3.
स्कोप रिजोल्यूशन ऑपरेटर की व्याख्या केवल एक वाक्य में कीजिए। (2018)
उत्तर
फंक्शन को क्लास के बाहर परिभाषित करने के लिए :: चिह्न का प्रयोग किया जाता है, जिसे स्कोप रिजोल्यूशन ऑपरेटर कहते हैं।

प्रश्न 4.
क्लास में प्रयुक्त protected वई क्या है?
उत्तर
protected एक एक्सेस स्पेसीफायर है, जो प्रोग्राम में किसी क्लास के अन्दर प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 5.
ऑब्जेक्ट क्या होते हैं? (2016, 13)
उत्तर
किसी वस्तु, स्थान, व्यक्ति अथवा अन्य इकाई या कार्य को ऑब्जेक्ट कहा जाता है।

प्रश्न 6.
ऑब्जेक्ट को कैसे पहचाना जाता है?
उत्तर
ऑब्जेक्ट को ऑब्जेक्ट के नाम से पहचाना जाता है।

प्रश्न 7.
फ्रेण्ड फंक्शन की व्याख्या केवल एक वाक्य में कीजिए। (2018)
उत्तर
फ्रेण्ड फंक्शन का प्रयोग friend की-वर्ड के साथ किया जाता है। ये क्लास के मेम्बर फंक्शन नहीं होते, परन्तु उस क्लास के private और protected मेम्बर को एक्सेस कर सकता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न। (2 अंक)

प्रश्न 1.
क्लास से क्या तात्पर्य है? किसी क्लास को किस प्रकार से डिक्लेयर किया जा सकता है? समझाइए। (2008)
उत्तर
क्लास एक ऐसा डाटा तत्त्व है, जिसमें प्रोग्राम के सभी डाटा सदस्यों व फंक्शनों को एक संरचना में व्यवस्थित किया जाता है। C++ भाषा में, क्लास को class की-वर्ड द्वारा परिभाषित किया जाता है।
क्लास को डिक्लेयर करना क्लास को डिक्लेयर करते समय, क्लास के सभी डाटा सदस्य व फंक्शन को क्लास के अन्दर ही व्यवस्थित किया जाता है।
प्रारूप

class class_name
{
private:
Variable declarations;
Function declarations;
public:
Variable declarations;
Function declarations;
};

प्रश्न 2.
क्लासेज तथा ऑब्जेक्ट के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। (2006)
अथवा
क्लासेज तथा ऑब्जेक्ट का वर्णन कीजिए। (2018, 09)
उत्तर
क्लास क्लास एक ऐसा तत्त्व है, जिसमें प्रोग्राम के सभी डाटा सदस्यों व फंक्शनों को एक संरचना में व्यवस्थित किया जाता है। वस्तुओं को उनके समान व्यवहार और सम्भव स्थितियों के अनुसार समूहों में बाँटा जाता है, ऐसे प्रत्येक समूह को क्लास कहा जाता है।
ऑब्जेक्ट किसी वस्तु, स्थान, व्यक्ति अथवा अन्य इकाई या कार्य को ऑब्जेक्ट कहा जाता है। कोई ऑब्जेक्ट किसी क्लास का एक बिन्दु या तत्त्व होता है, जो उस क्लास के नाम से बनाया जा सकता है।

प्रश्न 3.
किसी ऑब्जेक्ट को कैसे बनाया जाता है? समझाइए।
उत्तर
कोई ऑब्जेक्ट किसी क्लास का एक बिन्दु या तत्त्व होता है, जो उस क्लास के नाम से बनाया जा सकता है। ऑब्जेक्ट बनाने का प्रारूप इस प्रकार है –
class_name object_name;
यहाँ, class_name उस क्लासे का नाम है, जिसका ऑब्जेक्ट बनाना है। और object_name उस ऑब्जेक्ट का नाम है, जिसे परिभाषित करना है।
उदाहरण
student S;
यहाँ, क्लास Student का एक ऑब्जेक्ट S है।

लघु उत्तरीय प्रश्न।। (3 अंक)

प्रश्न 1.
सदस्य या मेम्बर फंक्शन को कितने प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है? उदाहरण सहित समझाइए। (2008)
उत्तर
सदस्य या मेम्बर फंक्शन को दो प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है, जो निम्न प्रकार हैं
(i) क्लास की बॉडी के अन्दर यदि कोई सदस्य फंक्शन बहुत छोटा होता है, तो उसे क्लास की बॉडी में ही परिभाषित कर दिया जाता है ऐसे सदस्यों को इनलाइन माना जाता है।
उदाहरण

class student
{
private:
char name [20];
public:
void enter ()
{
gets (name);
}
void show ()
{
puts (name);
}
};

(ii) क्लास की बॉडी के बाहर यदि फंक्शन बड़े होते हैं, तो क्लास के बाहर ही परिभाषित किए जाने चाहिए, जिसे :: चिह्न का प्रयोग करके परिभाषित किया जाता है। इस चिह्न को स्कोप रिजोल्यूशन ऑपरेटर (Scope resolution operator) कहा जाता हैं।
उदाहरण

class student
{
private:
chiar name [20];
public:
void enter ();
void show ();
};
void Student :: enter ()
{
gets (name);
}
void Student :: show ()
{
puts (name);
}

प्रश्न 2,
पब्लिक सदस्य, प्राइवेट सदस्य व प्रोटेक्टेड सदस्य में भेद कीजिए। (2008)
अथवा
डाटा हाइडिंग क्या है? क्लास के माध्यम से इसे कैसे प्राप्त किया जाता है? उदाहरण सहित समझाइए। (2006)
उत्तर
वैरिएबल और फंक्शन की घोषणा private की-वर्ड के द्वारा करने पर इसकी उपलब्धता फंक्शन के बाहर नहीं रहती है अर्थात् इनका प्रयोग उसी फंक्शन में किया जा सकता है, जिस फंक्शन में इन्हें घोषित किया गया है। क्लास की घोषणा का यह गुण डाटा हाइडिंग कहलाता है।
C++ में प्रयुक्त private, public तथा protected सदस्यों को एक्सेस स्पेसीफायर कहा जाता है, जो डाटा हाइडिंग में भी प्रयुक्त होते हैं।
इनका विवरण निम्न है –

  1. private किसी भी क्लास के private भाग में परिभाषित डाटा आइटम व फंक्शन केवल उसी क्लास के सदस्य फंक्शन द्वारा एक्सेस किए जा सकते हैं।
  2. protected किसी भी क्लास के protected भाग में परिभाषित डाटा आइटम व फंक्शन उस क्लास के सदस्य फंक्शन तथा डिराइब्ड क्लास के सदस्य फंक्शन द्वारा एक्सेस किए जा सकते हैं।
  3. public किसी क्लास के public भाग में परिभाषित डाटा आइटम व फंक्शन प्रोग्राम में किसी के भी द्वारा एक्सेस किए जा सकते हैं।

उदाहरण

class Employee
{
private:
char name;
public:
int emp-id;
void input ();
protected:
float salary;
void output ();
};

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)

प्रश्न 1.
क्लास की परिभाषा का प्रारूप लिखिए और उसके प्रत्येक भाग का अर्थ समझाइए। (2014)
उत्तर
क्लास एक ऐसा डाटा तत्त्व है, जिसमें प्रोग्राम के सभी डाटा सदस्यों व फंक्शनों को एक संरचना में व्यवस्थित किया जाता है। C++ भाषा में, क्लास को class कीवर्ड द्वारा परिभाषित किया जाता है।
क्लास को घोषित करने का प्रारूप

class class_name
{
private:
Variable declaration 1;
Function declaration 1;
public:
Variable declaration 2;
Function declaration 2;
};

उपरोक्त प्रारूप में, class एक की-वर्ड है, जो किसी क्लास की शुरुआत करता है। class_name उस क्लास का नाम है, जो यूजर द्वारा रखा जाता है।

  • private इसे एक्सेस स्पेसीफायर कहा जाता है, जिसमें परिभाषित डाटा आइटम व फंक्शन केवल उसी क्लास के सदस्य फंक्शन द्वारा एक्सेस किए जा सकते हैं।
  • Variable declaration 1 यह क्लास में परिभाषित डाटा आइटम है, जो private भाग में परिभाषित हैं। यह केवल इसी क्लास के अन्दर इसके सदस्य फंक्शन द्वारा एक्सेस किए जा सकते हैं।
  • Function declaration 1 यह क्लास में परिभाषित फंक्शन है, जो private भाग के अन्दर परिभाषित है। यह केवल इसी क्लास के अन्दर इसके सदस्य फंक्शन द्वारा एक्सेस किए जा सकते हैं।
    public यह एक एक्सेस स्पेसीफायर है, जिसमें परिभाषित डाटा आइटम व फंक्शन किसी के भी द्वारा एक्सेस हो सकते हैं।
  • Variable declaration 2 यह क्लास में परिभाषित पब्लिक डाटा आइटम है, जो प्रोग्राम में किसी के भी द्वारा एक्सेस किए जा सकते हैं।
  • Function declaration 2 यह क्लास में परिभाषित पब्लिक फक्शन है, जो प्रोग्राम में किसी के भी द्वारा एक्सेस किए जा सकते हैं।

}; यह क्लास के अन्त को प्रदर्शित करता है।
उदाहरण

class Teacher
{
public:
int Id;
void Subject ();
private:
int no_of_lecture;
void Department ();
};

प्रश्न 2.
किसी विद्यार्थी की सूचना प्रदर्शित करने वाले एक ऐसे क्लास की संरचना करें, जिसमें निम्न सदस्य हों (2006)
डाटा सदस्य

  • विद्यार्थी का रोल न.                  विद्यार्थी का नाम
  • विद्यार्थी का विषय                     विद्यार्थी का एड्रेस

सदस्य फंक्शन

  • डाटा सदस्यों को वैल्यू देना
  • विद्यार्थी का रोल न., नाम, विषय व एड्रेस प्रदर्शित करना। सदस्य फंक्शनों का कोड भी लिखिए।

उत्तर

class student
{
private:
int roll;
char name [30], subject [20];
char address [50];
public:
void Input ();
void Show ();
};
void Student :: Input ()
{
cout<<"Enter Roll No."<>roll;
cout<<"Enter Name"< gets (name);
cout<<"Enter Subject"< gets (subject);
cout<<"Enter Address" gets (address);
}
void Student :: Show ()
{
cout<<"Student DetailsK"< cout<<"Roll No. : "<<roll< cout<<"Name: ";
puts (name);
cout<<"Subject: ";
puts (subject);
cout<<"Address: ";
puts (address);
}

प्रश्न 3.
क्लास व ऑब्जेक्ट का प्रयोग करके किसी कर्मचारी (Employee) का ब्योरा (Detail) इनपुट कराके उसे प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर

#include<iostrean.h>
#include<conio.h>
#include<stdio.h>
class Employee
{
int code;
char name [20], dept [20];
float salary;
public:
void Enter();
void Display();
};
void Employee: : Enter()
{
cout<<"Enter Employee Code:"<<end1; cin>>code;
cout<<"Enter Employee Name:"<<end1;
gets (name);
cout<<"Enter Employee Department:
"<<end1;
gets (dept);
cout<<"Enter Employee Salary:"
<<end1; cin>>salary;
}
void Employee :: Display ( )
{
cout<<"Employee Code:"<<code<<end1;
cout<<"Employee Name:";
puts (name);
cout<<"Employee Department:";
puts (dept);
cout<<"Employee Salary:"<<salary;
}
void main()
{
clrscr();
Employee E;
E.Enter();
E.Display();
getch();
}

आउटपुट
Enter Employee Code:
2550
Enter Employee Name:
Sonam Sharma
Enter Employee Department:
Coordinator
Enter Employee Salary:
35000
Employee Code:2550
Employee Name:Sonam Sharma
Employee Department:Coordinator
Employee Salary:35000

प्रश्न 4.
C++ में प्रोटेक्टेड मेम्बर फंक्शन द्वारा m की घात n के मान ज्ञात कीजिए।
उत्तर

#include<iostream.h>
#inclde<conio.h>
class Pow
{
int P, r;
public:
Pow()
{
p=1;
}
protected:
int comp_pow (int a, int b)
{
int i;
for (i=1; i<=b; i++)
p=p*a;
return p;
}
public:
void Result (int m, int n)
{
r=comp_pow (m, n) ;
cout<<"m to the power of n = "<<r;
}
};
void main()
{
clrscr();
Pow obj:
int m, n;
cout<<"Enter the values of m and n:"; cin>>m>>n;
obj. Result (m, n) ;
getch();
}

आउटपुट
Enter the values of m and n: 5
3
m to the power of n = 125

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