UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 (Section 4)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 आर्थिक नियोजन (अनुभाग – चार)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 आर्थिक नियोजन (अनुभाग – चार)

विरतृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर :

भारत की पंचवर्षीय योजनाएँ

स्वतन्त्रता के बाद देश के बहुमुखी विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ कार्यान्वित की गयीं। अब तक दस योजनाएँ पूर्ण हो चुकी हैं तथा ग्यारहवीं योजना चालू है। इन परियोजनाओं की प्राथमिकताएँ (उद्देश्य) तथा उपलब्धियाँ निम्नवत् रही हैं –

प्रथम योजना (1951-56 ई०) – इस योजना के तीन उद्देश्य थे—

  1. देश विभाजन के फलस्वरूप उत्पन्न आर्थिक असन्तुलन की समस्याओं का समाधान करना,
  2. देश की अर्थव्यवस्था को सन्तुलित बनाना तथा
  3. उत्पादन में वृद्धि करके जनसाधारण के जीवन स्तर में वृद्धि करना तथा धन के वितरण की असमानता को दूर करना। इसके लिए कृषि के विकास को प्राथमिकता दी गयी। इस दौरान आर्थिक प्रगति सन्तोषजनक रही। राष्ट्रीय आय (UPBoardSolutions.com) में वृद्धि के लक्ष्य से अधिक वृद्धि दर्ज की गयी। भूमि-सुधार कार्यक्रमों के फलस्वरूप कृषि उत्पादन में भी वृद्धि हुई। औद्योगिक उत्पादन 40% बढ़ा। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य तथा परिवहन के क्षेत्र में भी विकास हुआ, जिससे औद्योगिक विकास की भूमिका तैयार हो गयी।

द्वितीय योजना (1956-61 ई०) – इस योजना में औद्योगिक विकास पर बल दिया गया। आधारभूत तथा भारी उद्योगों की स्थापना की गयी। रोजगार सुविधाओं का विकास तथा आर्थिक विषमताओं को दूर करना इस योजना के अन्य लक्ष्य थे, किन्तु इस काल में खाद्यान्नों के उत्पादन का लक्ष्य पूरा न हो सका। राष्ट्रीय आय में भी आशा से कम वृद्धि हुई और भारतीय अर्थव्यवस्था आर्थिक संकट में डूब गयी।

तृतीय योजना (1961-66 ई०) – इस योजना के खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना, उद्योगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन में वृद्धि करना, आधारभूत उद्योगों का विस्तार करना, मशीनरी उद्योगों की स्थापना करना, बेरोजगारी दूर करना (UPBoardSolutions.com) आदि लक्ष्य थे किन्तु इन लक्ष्यों में भी वांछित सफलता न मिल सकी। चीन तथा पाकिस्तान के आक्रमणों के कारण देश का विकास बाधित रहा। इस योजना-काल में केवल आंशिक सफलताएँ ही प्राप्त हुईं।

तीन वार्षिक योजनाएँ – सन् 1966 से 1969 ई० तक तीन वर्षों के लिए पंचवर्षीय योजनाओं को स्थगित कर दिया गया और तीन वार्षिक योजनाएँ बनायी गयीं। इन वार्षिक योजनाओं की अवधि में साधनों का अभाव रहा, जिससे विकास की गति मन्द रही।

चौथी योजना (1969-74 ई०) – इस योजना का लक्ष्य विकास की दर को तेज करना, कृषि उत्पादन में उतार-चढ़ाव को कम करना, विदेशी सहायता पर निर्भरता को कम करना, जन-जीवन के स्तर को ऊँचा उठाना, दुर्बल वर्ग के लोगों की दशा सुधारना, सम्पत्ति, आय तथा आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण को रोकना आदि थे, किन्तु ये सभी लक्ष्य पूरे न हो सके। निर्यात के क्षेत्र में अवश्य वृद्धि हुई।

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पाँचवीं योजना (1974-79 ई०) – इस योजना के मुख्य लक्ष्य आत्मनिर्भरता प्राप्त करना, निर्धनता रेखा के नीचे रहने वालों का जीवन-स्तर सुधारना, मुद्रास्फीति (महँगाई) पर नियन्त्रण करना, राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना आदि थे। योजना को एक वर्ष पूर्व ही अर्थात् 1978 ई० में समाप्त कर दिया गया। इसका कारण देश में राजनीतिक उथल-पुथल के वातावरण का होना था।

दो वार्षिक योजनाएँ – इन दो वार्षिक योजनाओं (सन् 1978-79 एवं 1979-80) के (UPBoardSolutions.com)  द्वारा पिछड़े हुए। लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास किया गया।

छठी योजना (1980-85 ई०) – इस योजना में कृषि तथा उद्योग के आधारभूत ढाँचे को एक-साथ विकसित करने, रोजगार के अवसर जुटाने, गरीबी दूर करने, परिवार नियोजन का प्रसार करने, क्षेत्रीय विषमताओं को दूर करने आदि का लक्ष्य रखा गया। ग्रामीण क्षेत्रों के विकास पर अधिक बल दिया गया। सन्तुलित आर्थिक विकास के कार्यक्रम चलाये गये, किन्तु जनसंख्या की तीव्र दर से वृद्धि होने के कारण ये सभी कार्यक्रम लक्ष्यों को पूरा न कर सके। इस योजना ने सातवीं पंचवर्षीय योजना के लिए एक स्वस्थ वातावरण अवश्य तैयार किया।

सातवीं योजना (1985-90 ई०) इस योजना के प्रमुख उद्देश्य थे—सुनियोजित विकास, आम लोगों के जीवन-स्तर में सुधार, उत्पादन में वृद्धि, कमजोर वर्गों को संरक्षण, निर्धनता को दूर करना, रोजगार के अवसरों में वृद्धि, निर्यातों में वृद्धि, पर्यावरण-प्रदूषण दूर करना, ऊर्जा, परिवहन संचार आदि क्षेत्रों का विस्तार करना, आवासों के निर्माण में वृद्धि करना आदि। यह योजना निश्चित ही उपलब्धियों से पूर्ण थी।

दो वार्षिक योजनाएँ – आठवीं पंचवर्षीय योजना को ध्यान में रखकर तैयार की गयी इन वार्षिक योजनाओं (सन् 1990-91 एवं 1991-92)में मुख्य रूप से अधिकतम रोजगार प्रदान करने और सामाजिक स्थानान्तरण पर बल दिया गया।

आठवीं योजना (1992-97 ई०) – इस योजना में मानव संसाधन विकास पर विशेष बल दिया गया। इसके लिए गाँवों में पेयजल उपलब्ध कराना, सिर पर मैला उठाने की कुप्रथा को दूर करना, पर्यावरण स्वच्छ रखना, परिवहन, ऊर्जा, सिंचाई आदि का प्रसार करना तथा ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से शिक्षा, रोजगार तथा समाजकल्याण की योजनाओं का विकास करना मुख्य लक्ष्य निर्धारित किये गये। किन्तु ये उपलब्धियाँ हासिल न हो सकीं। गरीबों और दलितों को अपेक्षित लाभ न मिल सका। क्षेत्रीय विषमताओं में वृद्धि हुई। कृषि विकास के बावजूद कुल सम्भावनाओं का दोहन नहीं किया जा सका। अन्य आधारभूत (UPBoardSolutions.com) क्षेत्रों के लक्ष्य भी अधूरे रहे।

  • नवीं योजना (1997-2002 ई०) – विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 6 का उत्तर देखें।
  • दसवीं योजना (2002-2007 ई०) – विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 का उत्तर देखें।
  • ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) – लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 6 का उत्तर देखें।
  • बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) – विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 8 का उत्तर देखें।

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प्रश्न 2.
भारत में आर्थिक नियोजन के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘आर्थिक नियोजन’ क्यों आवश्यक है ? इसके उद्देश्य भी लिखिए। आर्थिक नियोजन के दो महत्त्व बताइट। [2010]
या
भारत में आर्थिक नियोजन के महत्व पर प्रकाश डालिए। [2018]
या
आर्थिक नियोजन के दो उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए। [2009, 10, 11]
या
आर्थिक नियोजन में चार उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए। [2013, 15,16, 18]
या
आर्थिक नियोजन की आवश्यकता क्यों होती है? दो कारण दीजिए। [2016]
उत्तर :

आर्थिक नियोजन की आवश्यकता

भारत एक विकासशील देश है, जो शताब्दियों तक गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहने के कारण आर्थिक शोषण का शिकार रहा। भारत में आर्थिक नियोजन की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है

1. आर्थिक संसाधनों के उचित प्रयोग के लिए – भारत में आर्थिक संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं, किन्तु उनका अभी तक सदुपयोग नहीं हुआ है। आर्थिक नियोजन का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि हमारे प्राकृतिक (आर्थिक) संसाधनों का विवेकपूर्ण तथा इष्टतम उपयोग हो सकेगा।

2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि के लिए – भारत एक जनसंकुल देश है। प्रति व्यक्ति (UPBoardSolutions.com) आय की दृष्टि से यह विश्व के निर्धन देशों में गिना जाता है। राष्ट्रीय तथा प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के लिए आर्थिक नियोजन की बहुत आवश्यकता है।

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3. धन के समान वितरण के लिए – भारत में राष्ट्रीय आय के वितरण में प्रादेशिक विषमताएँ अधिक हैं। नियोजित विकास से धन का न्यायपूर्ण तथा समान वितरण सम्भव है। समाजवादी नियोजन आर्थिक समानता के सिद्धान्त को आधार मानता है।

4. आत्मनिर्भरता के लिए – यद्यपि विश्व का कोई भी देश पूर्णत: आत्मनिर्भर नहीं है, तथापि भारत आत्मनिर्भर बनने के लिए चेष्टारत है। यह कार्य आर्थिक नियोजन द्वारा ही सम्भव है।

भारत में आर्थिक नियोजन का महत्त्व

भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक नियोजन का अत्यधिक महत्त्व है। टी०टी० कृष्णामाचारी के शब्दों में, आर्थिक क्षेत्र में नियोजन का वही महत्त्व है, जो आध्यात्मिक क्षेत्र में ईश्वर का है। आर्थिक नियोजन के महत्त्व को निम्नवत् स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. उपलब्ध सीमित संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग किया जाता है।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा योजनाबद्ध आर्थिक विकास के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध हो जाती है।
  3. स्वतन्त्रता से पूर्व युद्धकालीन जर्जरित अर्थव्यवस्था का स्वतन्त्रता के पश्चात् पुनरुत्थान सम्भव हुआ।
  4. आर्थिक नियोजन के द्वारा आर्थिक विकास की गति को तीव्र किया जा सकता है।
  5. आर्थिक नियोजन के द्वारा पूँजी-निर्माण की दर में वृद्धि होगी, विनियोग (UPBoardSolutions.com) में वृद्धि होगी और अर्थव्यवस्था को गरीबी के दुश्चक्र से बाहर निकाला जा सकेगा।
  6. भारत में बेरोजगारी एवं अर्द्ध-बेरोजगारी की व्यापक समस्या विद्यमान है। आर्थिक नियोजन के द्वारा ही । इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  7. नियोजन, आर्थिक एवं सामाजिक आधारिक संरचना (सड़क, रेल, बिजलीघर, शिक्षा एवं चिकित्सालय संस्थान आदि) का निर्माण जो निजी विनियोगों को प्रोत्साहन प्रदान करता है, में सहायक है।
  8. नियोजन द्वारा उत्पादन तकनीकी में परिवर्तन की गति को तीव्र किया जा सकता है।
    निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आर्थिक नियोजन देश के आर्थिक विकास में सहायक है।

उद्देश्य

भारत में आर्थिक नियोजन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में दीर्घकालीन वृद्धि।
  2. निर्धनता के दुश्चक्र की समाप्ति।
  3. देश को आत्मनिर्भर बनाना।
  4. प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों का उचित दोहन।
  5. देश की योजनाबद्ध एवं सन्तुलित आर्थिक विकास।
  6. देश में रोजगार के अवसरों का विस्तार।
  7. सामाजिक एवं आर्थिक आधारिक संरचना का निर्माण।
  8. शिक्षा, प्रशिक्षण एवं तकनीक के उच्च स्तर की प्राप्ति।
  9. संविधान के नीति-निदेशक सिद्धान्तों का क्रियान्वयन।
  10. समाजवादी ढंग से लोकतान्त्रिक समाज की स्थापना।

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प्रश्न 3.
दसवीं पंचवर्षीय योजना पर एक लेख लिखिए। [2009]
या
भारत की दसवीं पंचवर्षीय योजना के किन्हीं दो उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए। [2009]
उत्तर :

दसवीं पंचवर्षीय योजना (सन् 2002-2007 ई०)

1 सितम्बर, 2001 ई० को राष्ट्रीय विकास परिषद् (National Development Council) ने अपनी 49वीं बैठक में दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007 ई०) के दृष्टिकोण-पत्र को अपना अनुमोदन प्रदान किया। अनुमोदित दृष्टिकोण-पत्र के विशिष्ट (UPBoardSolutions.com) बिन्दु (उद्देश्य) निम्नलिखित थे

  1. सकल राष्ट्रीय उत्पाद के 8% वार्षिक दर का लक्ष्य प्राप्त करना।
  2. उद्योग क्षेत्र की वृद्धि दर 10% वार्षिक करनी।
  3. निर्धनता अनुपात 2007 ई० तक 20% तथा 2012 ई० तक 10% लाना।
  4. वर्ष 2007 तक सभी को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना।
  5. 2001-11 के दशक में जनसंख्या की दशकीय वृद्धि को 16.2% तक सीमित रखना।
  6. साक्षरता दर को 2007 ई० तक 72% तथा 2012 ई० तक 80% करना।
  7. सन् 2012 ई० तक सभी गाँवों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था करना।
  8. श्रम-शक्ति को लाभपूर्ण रोजगार उपलब्ध कराना।
  9. शिशु मृत्यु-दर को 45 प्रति हजार जीवित जन्मों तक कम करना।
  10. वनों और वृक्षों से घिरे क्षेत्र को 25% तक बढ़ाना।
  11. सभी मुख्य नदियों की सफाई करना।
  12. सकल बजटीय समर्थन में 18.3% वार्षिक की वृद्धि, जिससे 2007 ई० में इसे GDP के 5% तक लाया जा सके।
  13. GDP के प्रतिशत रुपये में सकल कर राजस्व (डीजल उपकर सहित) को वर्ष 2001-02 में 9.16% से बढ़ाकर 2006-07 ई० तक 11.7% करना।
  14. ‘सेवा कर के दायरे का विस्तार।
  15. विनिवेश में वृद्धि (2002-05) की अवधि में 16-17 (UPBoardSolutions.com) हजार करोड़ रुपये की वार्षिक निवेश प्राप्तियाँ।
  16. राजकोषीय घाटे को GDP के 5% से घटाकर 2.5% तक ले जाना।

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दसवीं पंचवर्षीय योजना के प्रारम्भ के समय यानि वर्ष 2002-03 में कृषि उत्पादन में गिरावट आ गयी। वर्ष 2003-04 में यह उत्पादन 10% बढ़ा, जब कि 2004-05 और 2005-06 में क्रमश: 0.7% और 2.3% की ही वृद्धि हुई। वर्ष 2002-03 में 7%, 2003-04 में 7.6%, 2004–05 में 8.6% और 2005-06 में 9% की दर से औद्योगिक उत्पादन बढ़ा। भारतीय अर्थव्यवस्था की संवृद्धि दर को आगे बढ़ाने में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका सेवाओं के क्षेत्र की रही है। सेवाओं में संवृद्धि की दर वर्ष 2002-03, 2003-04, 2004-05 और 2005-06 में क्रमश: 7.3,8.2, 9.9 और 9.8 प्रतिशत रही। आज सेवाओं का सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा 54.1% है। विनिर्माण के क्षेत्र में उत्पादने वर्ष 2004-05 के 7.1% की तुलना में 2005-06 में 9.4% की दर से बढ़ा है। शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक भी बढ़ (UPBoardSolutions.com) रहा है। यह 2004 ई० में 11% बढ़ा और 2005 ई० में 36% 6 फरवरी, 2006 ई० को दस हजार के अंक के ऊपर चला गया और बारह हजार के अंक तक चढ़ने के बाद ही गिरा। सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में निवेश वर्ष 2004-05 में 30.1% तक हो गया था।

दसवीं पंचवर्षीय योजना की समीक्षा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह योजना अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक सीमा तक अवश्य सफल हुई है।

प्रश्न 4.
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्यों पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
या
पंचवर्षीय योजनाओं के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर :
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य स्वतन्त्रता के पश्चात् देश का तेजी से आर्थिक विकास करने के लिए भारत में सरकारी स्तर पर सर्वप्रथम 1950 ई० में योजना आयोग की स्थापना की गयी। भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू इसके अध्यक्ष थे। देश की पहली पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1951 ई० से आरम्भ हुई। भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य निम्नलिखित रहे हैं –

1. उपलब्ध साधनों का सर्वोत्तम प्रयोग – भारत के सीमित उपलब्ध साधनों का पूर्ण दोहन नहीं हो पाया है; अत: उपलब्ध साधनों का अधिकतम और श्रेष्ठतम उपयोग योजनाबद्ध दोहन का प्रमुख पहलू

2. राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना – देश की गरीबी को दूर करने के लिए प्रत्येक योजना में राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करने के प्रयास किये जा रहे हैं।

3. जनसंख्या-वृद्धि पर नियन्त्रण – देश में तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। इसलिए प्रत्येक योजना में जनसंख्या वृद्धि को रोकने की प्रयत्न किया गया है।

4. जनता के जीवन-स्तर में सुधार करना – राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करके तथा जन्म-दर में कमी करके जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना योजनाओं का उद्देश्य रहा है।

5. समाजवादी समाज की स्थापना – भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना रहा है; अर्थात् इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि आर्थिक विकास का लाभ कुछ लोगों को न मिलकर सम्पूर्ण समाज़ के विशेष (UPBoardSolutions.com) रूप से पिछड़े और निर्धन लोगों को अधिक मिल सके।

6. सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार – भारत सरकार की नीति सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार की रही है। सरकारी क्षेत्र में इस्पात, रसायन, उर्वरक, तेल इत्यादि कारखानों की स्थापना, यातायात और संचार सेवाएँ, सिंचाई की सुविधा, सरकारी विपणन, बैंक व बीमा की सरकारी सेवाएँ इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रदान की गयी हैं।

7. रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना – नियोजन काल में नये-नये उद्योगों की स्थापना, पुराने उद्योगों और कृषि का सुधार, सरकारी कारखानों की संख्या में वृद्धि, कुटीर उद्योगों का विस्तार आदि का उद्देश्य रोजगार की अधिकाधिक सुविधाएँ प्रदान करना रहा है, जिससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सके तथा बढ़ती हुई बेरोजगारी कम हो सके।

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8. आर्थिक समानता लाना – योजनाओं में इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि योजनाओं का लाभ समाज के पिछड़े और गरीब लोगों को अधिक-से-अधिक मिल सके। इससे आर्थिक असमानता दूर होगी; क्योंकि समाज के कमजोर वर्गों का कल्याण सरकार ही कर सकती है।

9. जन-सुविधाओं का विस्तार – आर्थिक समानता लाने के लिए देश के पिछड़े हुए क्षेत्रों में, गाँवों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति व पिछड़े वर्गों के लोगों के लिए विभिन्न योजनाओं के द्वारा अच्छा भोजन, वस्त्र, मकान, स्कूल, अस्पताल, बिजली, पक्की सड़कें इत्यादि जन-सुविधाओं को निरन्तर बढ़ाया जा रहा है।

10. कल्याणकारी राज्य की स्थापना – देश की योजनाओं का उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। विशेषतः पाँचवीं और छठी योजना में जिस न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम पर बल दिया गया था उसका उद्देश्य देश की जनता के कल्याण को सरकारी स्तर पर बढ़ाना है। इसमें आवश्यक वस्तुओं की वितरण-व्यवस्था को सुधारना, गरीबों को उचित मूल्य पर वस्तुएँ प्रदान करना, मूल्य तथा मजदूरी आय में सन्तुलन लाना, शिक्षा, स्वास्थ्य व पौष्टिक आहार, पीने के पानी व आवास, वृद्धावस्था व अन्य आपत्तियों के समय सहायता करना इत्यादि से जन-कल्याण में वृद्धि की जा रही है। यही कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य होता है।

11. आत्मनिर्भरता की प्राप्ति – यद्यपि योजना के प्रारम्भ से ही देश में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का उद्देश्य रखा गया, लेकिन तीसरी योजना-अवधि में इस पर विशेष बल दिया गया कि बिना विदेशी सहायता के देश अपने पैरों पर खड़ा होकर आर्थिक विकास करे।

प्रश्न 5.
आर्थिक नियोजन की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
या
आर्थिक नियोजन की किन्हीं तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2010, 13, 17]
उत्तर :
आर्थिक नियोजन की विशेषताएँ आर्थिक नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. निश्चित उद्देश्य के लिए – आर्थिक नियोजन की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह सदैव विचारयुक्त होता है तथा इसका एक निश्चित उद्देश्य होता है। ये उद्देश्य भिन्न-भिन्न हो सकते हैं; जैसे-आर्थिक विकास की गति तीव्र करना या पूर्ण रोजगार (UPBoardSolutions.com) की स्थिति प्राप्त करना आदि।

2. केन्द्रीय नियोजन सत्ता – नियोजन के लिए यह आवश्यक है कि देश में एक केन्द्रीय सत्ता हो, जो नियोजन का कार्य करे। भारत में योजना आयोग इस कार्य को करता है।

3. सम्पूर्ण नियोजन – नियोजन सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का होता है। यह केवल कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए अर्थात् नियोजन आंशिक नहीं होना चाहिए।

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4. साधनों का विवेकपूर्ण विभाजन – आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत देश के सीमित साधनों का विवेकपूर्ण बँटवारा इस ढंग से किया जाता है, जिससे सामाजिक कल्याण अधिकतम किया जा सके।

5. नियोजन उत्पादन तक ही सीमित नहीं – एक नियोजित अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साथ-साथ वितरण का भी नियोजन किया जाता है। नियोजन जहाँ इस बात को निश्चित करता है कि क्या और कितना उत्पन्न किया जाए, वहाँ वह इस बात को भी निश्चित करता है कि बँटवारा किन लोगों के बीच किया जाए।

6. नियन्त्रण आवश्यक – अपने उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में नियन्त्रण लगाये जाते हैं।

7. जनसहयोग आवश्यक – आर्थिक नियोजन की सफलता के लिए जनता का सहयोग आवश्यक होता है। बिना जनता के सहयोग के आर्थिक नियोजन की प्रक्रिया सफल नहीं हो सकती।

8. दीर्घकालीन प्रक्रिया – आर्थिक नियोजन एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है। यह तभी सफल होती है, जबकि इसका आयोजन सतत व लम्बे समय के लिए किया जाए।

प्रश्न 6.
नवीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य, वित्त-व्यवस्था एवं उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर :

नवीं पंचवर्षीय योजना (सन् 1997-2002 ई०)

नवीं पंचवर्षीय योजना 1997 ई० से आरम्भ हुई थी और यह 2002 ई० (UPBoardSolutions.com) तक चली। इस योजना के उद्देश्य (प्राथमिकताएँ) तथा लक्ष्य निम्नलिखित थे
उद्देश्य – नवीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य (प्राथमिकताएँ) निम्नलिखित थे –

  1. पर्याप्त उत्पादक रोजगार सृजित करना
  2. कृषि एवं ग्रामीण विकास
  3. निर्धनता का उन्मूलन
  4. सभी के लिए स्वच्छ पेयजल
  5. प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएँ
  6. सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा
  7. आवास की सुविधाओं सहित न्यूनतम आवश्यकताओं की समयबद्ध आपूर्ति
  8. जनसंख्या-वृद्धि पर अंकुश
  9. महिलाओं व दलित वर्ग का उत्थान
  10. मूल्यों में स्थिरता आदि। नवीं पंचवर्षीय योजना की असफलताएँ एवं उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं

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1. आठवीं पंचवर्षीय योजना में सकल घरेलू उत्पाद की दर लगभग 6.7% थी, जो नवीं योजना में घटकर 5.35% हो गयी।
2. नवीं पंचवर्षीय योजना में कृषि विकास दर आठवीं पंचवर्षीय योजना के 4.7% से घटकर 2.1% रह गयी, जब कि संशोधित लक्ष्य 3.7% का था।
3. नवीं योजना में सार्वजनिक क्षेत्र में परिव्यय का आकार 18% घटा दिया गया।
4. नंवीं योजना में विनिर्माण क्षेत्र में विकास-दर आठवीं योजना के 7.6% से घटकर 4.5% रह गयी, जब कि लक्ष्य 8.2% का था।
5. नवी योजना बचत एवं निवेश के लक्ष्य को भी प्राप्त नहीं कर सकी। सकल (UPBoardSolutions.com) घरेलू उत्पाद में बचत-दर 23.3% रही, जब कि लक्ष्य 26.3% का था। इसी प्रकार सकल घरेलू उत्पाद में निवेश-दर 24.2% रही, जब कि लक्ष्य 28.3% का था।
6. नवीं योजना में बेरोजगारी की दर में भी वृद्धि हुई।
7. नवीं योजना में कर और सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में कमी आयी, परन्तु व्यय और सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में तुलनात्मक रूप से अधिक वृद्धि हुई।
8. नवीं योजना निर्यात-क्षेत्र में भी असफल सिद्ध हुई। 11.8% वृद्धि के लक्ष्य की तुलना में निर्यातों में मात्र 5% की वृद्धि हुई। संक्षेप में, नवी योजना अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रही।

प्रश्न 7.
भारतीय आर्थिक नियोजन की उपलब्धियों पर निबन्ध लिखिए।
या
आर्थिक नियोजन की किन्हीं तीन उपलब्धियों का वर्णन कीजिए। [2011, 13, 17]
या
योजना-काल में भारत के आर्थिक विकास पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :

आर्थिक नियोजन की उपलब्धियाँ

भारत की पहली पंचवर्षीय योजना 1951-52 ई० में आरम्भ हुई थी। नियोजित विकास के वर्षों के दौरान देश के आर्थिक विकास के प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं –

1. विकास दर – कुछ पंचवर्षीय योजनाओं को छोड़कर हम निर्धारित विकास दर को प्राप्त करने में सफल रहे हैं। प्रथम योजना काल में प्राप्त विकास दर 3.6% वार्षिक थी, जब कि लक्ष्य 2.1% वार्षिक का था। इसी प्रकार नवीं योजना में प्राप्त आर्थिक (UPBoardSolutions.com) विकास की दर का लक्ष्य 9 प्रतिशत है।

2. राष्ट्रीय आय – शुद्ध राष्ट्रीय आय में 6.8 गुनी वृद्धि हुई है। वर्ष 2010-11 में राष्ट्रीय आय (चालू मूल्यों पर) ₹ 6466860 करोड़ है। अतः सम्पूर्ण योजना-काल में शुद्ध राष्ट्रीय आय में निरन्तर वृद्धि हुई है।

3. प्रति व्यक्ति आय – इसमें चार गुनी वृद्धि हुई है। जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने के कारण प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि-दर आशा से कम ही रही है।

4. सकल घरेलू उत्पाद – सकल घरेलू उत्पाद में 6.9 गुनी वृद्धि हुई है।

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5. खाद्यान्न उत्पादन – यह 550 लाख टन (1950-51) से बढ़कर 2003-04 ई० में 2,135 लाख टन . हो गया है। वाणिज्यिक फसलों में आशातीत वृद्धि हुई है।

6. सिंचाई क्षमता – सन् 1950-51 ई० में बड़ी, मझोली और छोटी योजनाओं की कुल क्षमता 2 करोड़ 26 लाख हेक्टेयर थी, जो दसवीं योजना की मध्यावधि तक 8 करोड़ 93 लाख 10 हजार हेक्टेयर तक पहुँच गयी है।

7. विद्युत उत्पादन-क्षमता – 11वीं योजना में 62,374 मेगावाट के संशोधित क्षमता निर्माण के लक्ष्य के मुकाबले 54,964 मेगावट क्षमता बढ़ायी जा चुकी है, जिसमें केन्द्रीय क्षेत्र में 15,220 मेगावट, राज्य क्षेत्र में 16,732 मेगावाट और निजी क्षेत्र में 23,012 मेगावाट रहा। यह 10वीं योजना के मुकाबले ढाई गुना अधिक है। 2012 में प्रतिस्थिापित विद्युत क्षमता 1400 मेगावाट थी जो 31 मई, 2012 को बढ़कर 20297.03 मेगावाट हो गई, जिसमें 39,060.40 मेगावाट जल विद्युत, 134,635.18 मेगावाट तापीय । (गैस और डीजल सहित) बिजली, 4780.00 मेगावाट परमाणु ऊर्जा और 24,503.45 मेगावाट पवन सहित नवीकरणीय ऊर्जा शामिल है।

8. औद्योगिक विकास – सन् 1948 ई० के औद्योगिक नीति प्रस्ताव के साथ औद्योगिक विकास कार्यक्रम का आरम्भ हुआ। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र को प्रोत्साहन दिया गया। सन् 1956 ई० के औद्योगिक नीति प्रस्ताव में भी सार्वजनिक क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए निजी क्षेत्र के विकास की. व्यवस्था की गयी। सन् 1993 ई० की औद्योगिक नीति के बाद से भारतीय उद्योगों को मजबूती प्रदान करने तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की प्रक्रिया तेज हुई। फलतः अप्रैल, 2001 ई० से औद्योगिक नीति को अधिक उदार बनाया जा रहा है। अधिकांश उद्योगों में लाइसेन्स व्यवस्था समाप्त कर दी गयी है। रक्षा, पेट्रोलियम, (UPBoardSolutions.com) परमाणु, खनिज तथा रेल क्षेत्र को छोड़कर सभी उद्योगों को लाइसेन्स मुक्त कर दिया गया है। विदेशी पूँजी निवेश को बढ़ावा दिया गया है। परिणामतः सभी उद्योगों में उत्पादन की वृद्धि हुई है।

9. परिवहन एवं संचार – परिवहन एवं संचार के क्षेत्र में योजनी-काल में उल्लेखनीय प्रगति हुई। रेलवे लाइनों की लम्बाई 76,197 किमी, सड़कों की लम्बाई 33 लाख किमी तथा जहाजरानी की क्षमता 6.28 लाख G.R.T. हो गयी। हवाई परिवहन, बन्दरगाहों की स्थिति और आन्तरिक जलमार्गों को भी विकास किया गया है। संचार-व्यवस्था के अंन्तर्गत विकास के क्षेत्रों में डाकखानों, टेलीफोन, टेलीग्राफ, रेडियो स्टेशन एवं प्रसारण केन्द्रों की संख्या में भी पर्याप्त वृद्धि हुई है।

10. शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ – योजना-काल में शिक्षा का भी व्यापक प्रसार हुआ है। भारत में साक्षरता की दर 1951 ई० में 16.7% थी, जो 2011 ई० में 74.04% हो गयी। इसी प्रकार योजना-काल में देश में स्वास्थ्य सुविधाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

11. बैंकिंग संरचना – योजना-काल में बैंकिंग संरचना में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 30 जून, 1969 ई० को व्यापारिक बैंकों की शाखाओं की संख्या 8,262 थी; जो 30 जून, 2004 ई० को बढ़कर 67,283 हो गयी। राष्ट्रीयकरण के पश्चात् ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग शाखाओं का व्यापक विस्तार हुआ है।

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12. आत्मनिर्भरता – हमारा देश योजना-काल में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हुआ है। पहले जिन वस्तुओं का आयात किया जाता था, आज वे वस्तुएँ हमारे देश में ही बनने लगी हैं खाद्यान्न उत्पादन में हमारा देश लगभग आत्मनिर्भर हो चुका है तथा विदेशी सहायता में भी कमी आयी है।

13. सामाजिक न्याय – हमारे देश में आर्थिक नियोजन का लक्ष्य ‘सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक विकास’ रहा है। योजना-काल में समाज के निर्धन वर्ग के उत्थान के लिए तथा गरीबी व बेरोजगारी जैसी भयावह समस्याओं के समाधान के लिए सरकार द्वारा अनेक योजनाएँ चालू की गयी हैं, जिनके सार्थक परिणाम धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं।

प्रश्न 8.
बारहवीं पंचवर्षीय योजना का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। [2013]
उत्तर :
बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017)–भारत की 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के निर्माण की दिशा का मार्ग अक्टूबर 2011 में उस समय प्रशस्त हो गया जब इस योजना के दृष्टि पत्र (दृष्टिकोण पत्र/दिशा पत्र/Approach Paper) को राष्ट्रीय विकास परिषद् (NDC) ने स्वीकृति प्रदान कर दी। 1 अप्रैल, 2012 से प्रारम्भ हो चुकी इस पंचवर्षीय योजना के दृष्टि पत्र को योजना आयोग की 20 अगस्त, 2011 की बैठक में स्वीकार कर लिया था तथा केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् ने इसका अनुमोदन 15 सितम्बर, 2011 की अपनी बैठक में किया था। प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय विकास परिषद् की नई दिल्ली में 22 अक्टूबर, 2011 को सम्पन्न हुई इस 56वीं बैठक में दिशा पत्र को कुछेक शर्तों के साथ स्वीकार किया गया। राज्यों द्वारा सुझाए गए कुछ संशोधनों को समायोजन योजना दस्तावेज तैयार करते समय योजना आयोग द्वारा किया जायेगा। 12वीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर का लक्ष्य 9 प्रतिशत है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में राज्यों के सहयोग (UPBoardSolutions.com) की अपेक्षा प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने की है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कृषि, उद्योग व सेवाओं के क्षेत्र में क्रमशः 4.0 प्रतिशत, 9.6 प्रतिशत व 10.0 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि प्राप्त करने के लक्ष्य तय किये गये हैं। इनके लिए निवेश दर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की 387 प्रतिशत प्राप्त करनी होगी। बचत की दर जीडीपी के 36.2 प्रतिशत प्राप्त करने का लक्ष्य दृष्टि पत्र में निर्धारित किया गया है। समाप्त हुई 11वीं पंचवर्षीय योजना में निवेश की दर 36.4 प्रतिशत तथा बचत की दर 34.0 प्रतिशत रहने का अनुमान था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर 8.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) में औसत वार्षिक वृद्धि लगभग 6.0 प्रतिशत अनुमानित था, जो 12वीं पंचवर्षीय योजना में 4.5 – 5.0 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य है। योजनावधि में केन्द्र सरकार को औसत वार्षिक राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.25 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य इस योजना के दृष्टि पत्र में निर्धारित किया गया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्थिक नियोजन से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए। [2009, 13, 14, 17, 18]
उत्तर :
नियोजन का शाब्दिक अर्थ ‘पहले से आयोजन करना है। यह एक ऐसी विवेकपूर्ण व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य किसी ‘न्यायपूर्ण आर्थिक विकास एवं अधिकतम सामाजिक कल्याण के लक्ष्य को प्राप्त करना है। आर्थिक नियोजन को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है –

आर्थिक नियोजन से आशय पूर्व-निर्धारित और निश्चित सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अर्थव्यवस्था के सभी अंगों को एकीकृत और समन्वित करते हुए राष्ट्र के संसाधनों के सम्बन्ध में सोच-विचारकर रूपरेखा तैयार करने और (UPBoardSolutions.com) केन्द्रीय नियन्त्रण से है।”

प्रश्न 2.
पंचवर्षीय योजनाओं से देश को क्या लाभ हुआ है ? [2014]
या
आर्थिक नियोजन के दो लाभों का उल्लेख कीजिए। [2009, 16, 17]
या
पंचवर्षीय योजनाओं के चार लाभों का उल्लेख कीजिए। [2014]
उत्तर :
पंचवर्षीय योजनाओं से देश को निम्नलिखित लाभ हुए हैं –

  1. उपलब्ध सीमित संसाधनों का दोहन एवं सर्वोत्तम उपयोग सम्भव हुआ है।
  2. कृषि जो देश के अर्थतन्त्र की रीढ़ है, उसका विकास हुआ है। कृषि उत्पादकता तथा उत्पादन में वृद्धि होने से देश खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर बन सका है। वाणिज्यिक फसलों का उत्पादन बढ़ने से कृषिपरक उद्योगों में भी विस्तार एवं वृद्धि हुई है।
  3. उद्योगों का विकास हुआ है। इससे देश की आर्थिक समृद्धि में वृद्धि हुई है।
  4. उद्योगों के नियोजित विकास से विदेशी व्यापार भी विकसित हुआ है।
  5. देश में परिवहन तथा संचार के साधनों तथा ऊर्जा उत्पादन में भी वृद्धि हुई है।
  6. आर्थिक विकास के फलस्वरूप रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है।
  7. शिक्षा, प्रशिक्षण, शोध, अनुसन्धान तथा तकनीकी क्षेत्रों में प्रगति के कारण देश का सामाजिक विकास सम्भव हुआ है।
  8. देशवासियों को जीवनस्तर ऊँचा उठा है।
  9. नियोजन काल में भारत में राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय दोनों में वृद्धि हुई है। इस प्रकार पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत भारत में तीव्र आर्थिक विकास हुआ है।
  10. देश में निवेश की मात्रा एवं निवेश-दर में निरन्तर वृद्धि (UPBoardSolutions.com) हुई है, जिससे देश का आर्थिक विकास हुआ है।
  11. नियोजन काल में देश के बड़े-बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। राष्ट्रीयकरण के पश्चात् बैंकिंग व्यवस्था सुदृढ़ हुई एवं उसका व्यापक विस्तार हुआ।
  12. ग्रामों का विद्युतीकरण, जल-व्यवस्था एवं गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों को ऊपर उठाने के प्रयास किये गये, जिनका लाभ समाज के कमजोर लोगों को प्राप्त हुआ है।

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प्रश्न 3.
विभिन्न योजना-काल की प्राथमिकताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भारत की विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में यद्यपि विकास का उद्देश्य समान रूप से देखने को मिलता है, लेकिन भिन्न-भिन्न योजनाओं की प्राथमिकताओं में भी परिवर्तन किये गये, जो निम्नलिखित हैं –

  1. पहली योजना में कृषि विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी।
  2. दूसरी योजना में औद्योगिक विकास को प्राथमिकता दी गयी।
  3. तीसरी योजना में कृषि एवं उद्योग दोनों को प्राथमिकता दी गयी।
  4. चौथी योजना में कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी।
  5. पाँचवीं योजना में गरीबी उन्मूलन, औद्योगिक विकास एवं खनन को प्राथमिकता दी गयी।
  6. छठी योजना में गरीबी उन्मूलन और आत्मनिर्भरता को प्रमुख लक्ष्य रखा गया।
  7. सातवीं योजना में आधारभूत वस्तुओं के उत्पादन को प्राथमिकता दी गयी।
  8. आठवीं योजना में रोजगार वृद्धि को प्राथमिकता दी गयी।
  9. नवी योजना में मानव संसाधनों के विकास पर (UPBoardSolutions.com) विशेष बल दिया गया।
  10. दसवीं योजना में सभी को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया।
  11. ग्यारहवीं योजना का प्रमुख उद्देश्य सभी गाँवों को फोन व ब्रॉड बैंड सुविधा देना था।
  12. बारहवीं योजना में वार्षिक विकास दर का लक्ष्य 9% रखा गया है।

प्रश्न 4.
आर्थिक नियोजन के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
यद्यपि ग्यारह पंचवर्षीय योजनाएँ एवं सात एकवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं और बारहवीं पंचवर्षीय योजना कार्यरत है, तथापि हम नियोजन के लक्ष्यों को पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं कर पाये हैं। देश में आर्थिक नियोजन के मार्ग में प्रमुख निम्नलिखित कठिनाइयाँ हैं –

  1. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की गति धीमी रही है।
  2. मूल्यों में तीव्र और निरन्तर वृद्धि ने योजनाओं की लागत को तेजी से बढ़ाया है।
  3. सार्वजनिक उपक्रमों का निष्पादन घटिया और अकुशल रहा है।
  4. श्रम-शक्ति में वृद्धि के अनुपात में रोजगार के अवसरों में वृद्धि नहीं हो पायी है।
  5. आर्थिक विषमताओं की बढ़ती खाई ने ‘सामाजिक न्याय के लक्ष्य को झुठला दिया है।
  6. सरकार की नियन्त्रण नीति दोषपूर्ण ही नहीं, अपितु एकांगी रही है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि लगभग सभी योजनाएँ विशाल आकार की रही हैं। इनका निर्माण भी गलत धारणाओं पर आधारित रहा है और योजनाओं की सफलता को आँकड़ों के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया गया है।

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प्रश्न 5.
आर्थिक नियोजन को सफल बनाने के लिए आप क्या सुझाव देंगे ?
उत्तर :
भारत में आर्थिक नियोजन को सफल बनाने के लिए कुछ सुझाव दिये जा सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति एवं उनके मूल्यों पर प्रभावी नियन्त्रण स्थापित किया जाना चाहिए।
  2. शिक्षा-प्रणाली को कार्यपरक बनाया जाना चाहिए।
  3. आर्थिक नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए।
  4. जनता का पूर्ण सहयोग प्राप्त करने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए।
  5. सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के उद्योगों में उचित समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए।
  6. गाँवों में गैर-कृषि क्षेत्रों (दुग्ध उद्योग, मुर्गीपालन, कुटीर उद्योग) का विकास किया जाना चाहिए।
  7. केन्द्र एवं राज्यों के बीच उचित सम्बन्ध स्थापित किये जाने (UPBoardSolutions.com) चाहिए, जिससे सम्पूर्ण राष्ट्र के समन्वित आर्थिक विकास को गति दी जा सके।
  8. योजनाओं का निर्माण साधनों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
  9. प्रशासकीय व्यवस्था को चुस्त एवं दुरुस्त किया जाना चाहिए।
  10. वित्त-प्रधान योजनाओं के साथ-साथ भौतिक योजनाओं की ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 6.
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उतर :
ग्यारहवीं योजना (2007-2012)–19 दिसम्बर, 2007 को नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय विकास परिषद् की 54वीं बैठक में 11वीं पंचवर्षीय योजना के प्रारूप को सर्वसम्मति से मंजूर कर लिया गया।

प्रमुख लक्ष्य

  1. 2012 तक सभी गाँवों को टेलीफोन से जोड़ना और ब्रॉडबैंड कनेक्शन उपलब्ध कराना।
  2. सभी गाँवों व निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों को 2009 तक बिजली व योजना के अंत तक 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराना।
  3. 2012 तक सभी भूमिहीनों को घर और जमीन उपलब्ध कराना।
  4. 0-3 वर्ष के बच्चों में कुपोषण को घटाकर आधा करना।
  5. प्रजनन दर को घटाकर 2-1 करना।
  6. वर्ष 2009 तक सभी को पीने का पानी उपलब्ध कराना।
  7. मातृ मृत्यु-दर को घटाकर 2 प्रतिशत करना और मातृ मृत्यु-अनुपात को एक हजार पर एक करना।
  8. विकास दर का लक्ष्य 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष
  9. 5.8 करोड़ नए रोजगार के अवसर पैदा करना।
  10. 2011-2012 तक प्राथमिक शिक्षा में बीच में स्कूल छोड़ने वालों की संख्या में 52.2 प्रतिशत से घटाकर 20 प्रतिशत की कटौती करना।
  11. उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या 10 से बढ़ाकर (UPBoardSolutions.com) 15 प्रतिशत करना।
  12. महिलाओं के लिए केन्द्र सरकार की योजनाओं में प्रत्यक्ष तौर पर 33 प्रतिशत आरक्षण करना।

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प्रश्न 7.
भारत में योजना आयोग की स्थापना क्यों की गयी ? दो कारण दीजिए।
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध एवं स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारत की आर्थिक स्थिति अत्यधिक बिगड़ चुकी थी और सरकार के सामने अनेक समस्याएँ एवं कठिनाइयाँ मुँह खोले खड़ी थीं। इन समस्याओं के समाधान हेतु 1950 ई० में भारत में योजना आयोग की स्थापना की गयी। योजना आयोग की स्थापना के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

1. आर्थिक संसाधनों के उचित प्रयोग के लिए – भारत में आर्थिक संसाधन प्रंचुर मात्रा में हैं, किन्तु उनका अभी तक सदुपयोग नहीं हुआ है। आर्थिक नियोजन का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि हमारे प्राकृतिक (आर्थिक) संसाधनों का विवेकपूर्ण तथा इष्टतम उपयोग हो सकेगा।

2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि के लिए – भारत एक जनसंकुल देश है। प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से यह विश्व के निर्धन देशों में गिना जाता है। राष्ट्रीय तथा प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के लिए आर्थिक नियोजन की बहुत आवश्यकता है।

प्रश्न 8.
तृतीय पंचवर्षीय योजना की वित्त-व्यवस्था लिखिए।
उत्तर :
तृतीय योजना के लक्ष्यों में खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना, उद्योगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन में वृद्धि करना, आधारभूत उद्योगों का विस्तार करना, मशीनरी उद्योगों की स्थापना करना, बेरोजगारी दूर करना, आर्थिक विषमताओं को यथासम्भव कम करना, राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना आदि थे। किन्तु इन लक्ष्यों में भी वांछित सफलता न मिल सकी। चीन (1962 ई०) तथा पाकिस्तान (1965 ई०) के आक्रमणों के कारण देश का विकास बाधित रहा। इन युद्धों के कारण महँगाई में 25% की वृद्धि हुई, विदेशी मुद्रा का अभाव उत्पन्न हुआ तथा अर्थव्यवस्था पर वित्तीय बोझ बढ़ा। इस अवधि में दो बार सूखा पड़ा, जिससे खाद्यान्न उत्पादन पूर्ववत् रहा तथा विदेशों से अनाज का भारी आयात करना पड़ा। तृतीय योजना का काल भारतीय अर्थव्यवस्था (UPBoardSolutions.com) के लिए कठिनाइयों का काल रहा। अधिक व्यय के बाद भी सामान्य रूप से इस योजना की प्रगति निराशाजनक रही। परिणामस्वरूप इस योजना-काल में केवल आंशिक सफलताएँ ही प्राप्त हुईं।

तीन वार्षिक योजनाएँ–सन् 1966 से 1969 ई० तक तीन वर्षों के लिए योजनाओं को स्थगित कर दिया गया। इसके लिए प्रमुख कारण थे(i) तृतीय योजना-अवधि में हुए दो युद्ध तथा (ii) वर्ष 1966-67 के दौरान पड़े दो सूखे। इन वार्षिक योजनाओं का प्रमुख उद्देश्य स्वयं स्फूर्त विकास, पूर्ण रोजगार तथा आर्थिक विषमताओं की समाप्ति के लिए सुदृढ़ आधार प्रदान करना था। यद्यपि इन वार्षिक योजनाओं की अवधि में साधनों का अभाव रहा, जिससे विकास की गति मन्द रही; तथापि इन योजनाओं ने चौथी पंचवर्षीय योजना को एक ठोस आधार प्रदान किया।

प्रश्न 9.
आठवीं पंचवर्षीय योजना के प्रमुख लक्ष्य क्या थे ?
उत्तर :
आठवीं योजना में मानव संसाधन विकास पर विशेष बल दिया गया। इसके लिए गाँवों में पेयजल उपलब्ध कराना, सिर पर मैला उठाने की कुप्रथा को दूर करना, पर्यावरण स्वच्छ रखना, परिवहन, ऊर्जा, सिंचाई आदि का प्रसार करना तथा ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से शिक्षा, रोजगार तथा समाजकल्याण की योजनाओं का विकास करना, खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता पैदा करना, 15-35 वर्ष के आयु-वर्ग के सभी व्यक्यिों को साक्षर बनाना आदि मुख्य लक्ष्य निर्धारित किये गये। किन्तु ये उपलब्धियाँ पूर्णरूप में प्राप्त न हो सकीं। गरीबों और दलितों को अपेक्षित लाभ न मिल सका, क्षेत्रीय विषमताओं में वृद्धि हुई, कृषि विकास के बावजूद कुल सम्भावनाओं का दोहन नहीं किया जा सका तथा अन्य आधारभूत क्षेत्रों के लक्ष्य भी अधूरे रहे। इस योजना की प्रमुख उपलब्धियाँ इस प्रकार रहीं–साधन-लागत पर जीडीपी (UPBoardSolutions.com) की वृद्धि दर लक्ष्य से अधिक रही। कृषि क्षेत्र में विकास की औसत वृद्धि दर तथा औद्योगिक क्षेत्र में औसत संवृद्धि दर लक्ष्य से अधिक रही। सेवा-क्षेत्र में भी औसत वार्षिक वृद्धि दर लक्ष्य से अधिक रही।

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प्रश्न 10
महिला समृद्धि योजना पर टिप्पणी लिखिए। [2014]
उत्तर :
ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से 2 अक्टूबर 1993 ई० को महिला समृद्धि योजना आरम्भ की गई थी। इसका लक्ष्य ग्रामीण महिलाओं में बचत की आदत डालना तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनाना था। हालांकि प्रारम्भ के दो वर्षों में इस योजना का प्रदर्शन निराशाजनक था परन्तु वर्तमान में यह योजना सफल भी हो रही है। इस योजना के अन्तर्गत 18 वर्ष से ऊपर उम्र की महिलाएँ अपना बचत खाता खोल सकती हैं। यह खाता निकटतम डाकघर में एक न्यूनतम धनराशि द्वारा 4 वर्ष या उसके गुणक में खोला जा सकता है। इस योजना के अन्तर्गत यदि खाताधारक महिला प्रथम वर्ष में धनराशि नहीं निकालती है तो उसमें जमाधन की 25% राशि सरकार उसे प्रोत्साहन के रूप में प्रदान करती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रथम पंचवर्षीय योजना की कार्य-अवधि क्या थी ? [2013, 16]
उत्तर :
1 अप्रैल, 1951 ई० से 31 मार्च, 1956 ई० तक।

प्रश्न 2.
भारत की कौन-सी पंचवर्षीय योजना एक वर्ष पूर्व समाप्त हो गयी थी ?
उत्तर :
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना को एक वर्ष पूर्व समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 3.
दसवीं पंचवर्षीय योजना की समयावधि क्या थी ?
उत्तर :
1 अप्रैल, 2002 से 31 मार्च, 2007 तक।

प्रश्न 4.
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना की कार्य-अवधि क्या थी?
उत्तर :
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 2007 से 31 मार्च, 2012 तक चली।

प्रश्न 5.
भारत में योजना आयोग की स्थापना कब और क्यों हुई ? एक उद्देश्य लिखिए।
उत्तर :
भारत में योजना आयोग की स्थापना सन् (UPBoardSolutions.com) 1950 ई० में हुई थी। इसका एक उद्देश्य देश में रोजगार अवसरों का विस्तार करना था।

प्रश्न 6
आर्थिक नियोजन के किन्हीं दो लाभों को लिखिए। [2009, 16, 17] 
उत्तर :

  1. उपलब्ध सीमित संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग किया जाता है।
  2. आर्थिक नियोजन के द्वारा आर्थिक विकास की गति को तीव्र किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
भारतीय आर्थिक आयोजन की किन्हीं तीन असफलताओं की ओर संकेत कीजिए।
उत्तर :
भारतीय आर्थिक आयोजन की तीन असफलताएँ इस प्रकार हैं-

  1. प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में असन्तोषजनक प्रगति
  2. धन तथा आय की असमानता में वृद्धि तथा
  3. जनसंख्या पर नियन्त्रण तथा बेरोजगारी की समस्या के समाधान में असफलता।

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प्रश्न 8.
पंचवर्षीय योजना क्या है ?
उत्तर :
आर्थिक योजना का वह प्रारूप जिसकी अवधि 5 (UPBoardSolutions.com) वर्ष होती है; अर्थात् जिसमें लक्ष्य प्राप्ति की अवधि 5 वर्ष रखी जाती है, पंचवर्षीय योजना कहलाती है।

प्रश्न 9.
छठवीं पंचवर्षीय योजना का प्रारम्भ कब हुआ ?
उत्तर :
छठवीं पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1980 ई० को प्रारम्भ हुई थी।

प्रश्न 10.
आठवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि लिखिए।
उत्तर :
आठवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि थी-1 अप्रैल, 1992 से 31 मार्च, 1997 ई० तक।

प्रश्न 11.
आठवीं योजना के दो मुख्य उद्देश्य लिखिए।
उत्तर :
आठवीं योजना के दो मुख्य उद्देश्य थे—

  1. जनसंख्या-वृद्धि दर को नियन्त्रित करना तथा
  2. रोजगार के अधिकाधिक अवसरों का सृजन करना।

प्रश्न 12.
देश की कौन-सी पंचवर्षीय योजना केवल चार वर्ष चली ?
उत्तर :
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना केवल चार वर्ष चली थी।

प्रश्न 13.
नवीं योजना का कार्यकाल क्या था ?
उत्तर :
नवीं योजना का कार्यकाल 1 अप्रैल, 1997 से 31 मार्च, 2002 ई० था।

प्रश्न 14.
नवीं पंचवर्षीय योजना में उद्योगों के विकास पर व्यय हेतु कितनी धनराशि प्रस्तावित की गयी है ?
उत्तर :
नवीं पंचवर्षीय योजना (संशोधित) में उद्योग व खनिज पर (UPBoardSolutions.com) ₹ 69,972 करोड़ का व्यय प्रस्तावित किया गया था।

प्रश्न 15.
दसवीं योजना के प्रमुख उद्देश्य क्या थे ?
उत्तर :
दसवीं योजना में यह प्रमुख उद्देश्य रखा गया है कि विकास दर बढ़े और सामाजिक न्याय के उद्देश्य को पाया जा सके। दसवीं योजना में कृषि पर विशेष ध्यान दिया गया है।

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प्रश्न 16.
भारत में योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष कौन होता है ?
उत्तर :
भारत में योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष भारत का प्रधानमन्त्री होता है।

प्रश्न 17.
आर्थिक नियोजन के दो उद्देश्य लिखिए। [2010, 12, 15, 18]
उत्तर :
आर्थिक नियोजन के दो उद्देश्य हैं –

  1. देश को आत्मनिर्भर बनाना तथा
  2. देश में रोजगार के अवसरों का विस्तार।

प्रश्न 18.
बारहवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि लिखिए। [2013]
उत्तर :
बारहवीं पंचवर्षीय योजना 2012 से 2017 ई० तक चलेगी।

प्रश्न 19.
भारतीय योजना आयोग के चार कार्य लिखिए। [2013]
या
योजना आयोग के दो प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए। [2009, 10, 11, 13]
उत्तर :
भारतीय योजना आयोग के अनेक उद्देश्य तथा कार्य हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं

  1. देश में उपलब्ध समस्त भौतिक, आर्थिक तथा मानवीय संसाधनों का आकलन करना
  2. सभी संसाधनों के सन्तुलित तथा इष्टतम (UPBoardSolutions.com) उपयोग की योजना बनाना
  3. योजना को लागू करने के लिए प्रशासन तन्त्र की रूपरेखा बनाना
  4. योजना के प्रत्येक चरण पर उसके क्रियान्वयन का मूल्यांकन करना।

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बहुविकल्पीय प्रश्न

1. योजना आयोग कब गठित किया गया? [2009, 10, 14, 15, 16, 17]

(क) 1947 ई० में
(ख) 1948 ई० में
(ग) 1949 ई० में
(घ) 1950 ई० में

2. भारत में अब तक कुल कितनी पंचवर्षीय योजनाएँ लागू हो चुकी हैं? [2015, 16]

(क) दस
(ख) ग्यारह
(ग) बारह
(घ) तेरह

3. इस समय कौन-सी पंचवर्षीय योजना चल रही है?

(क) आठवीं
(ख) नवीं
(ग) दसवीं
(घ) बारहवीं

4. किस पंचवर्षीय योजना में प्रथम बार उद्योगों के विकास पर बल दिया गया?

(क) प्रथम
(ख) द्वितीय
(ग) तृतीय
(घ) चतुर्थ

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5. किस पंचवर्षीय योजना में गरीबी उन्मूलन को प्राथमिकता दी गई?

(क) तृतीय
(ख) चतुर्थ
(ग) पाँचवीं
(घ) छठी

6. रोजगार तथा पर्यावरण विकास किस पंचवर्षीय योजना की प्राथमिकता थे?

(क) आठवीं
(ख) सातवीं
(ग) छठी
(घ) नवीं

7. आठवीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल निम्नलिखित में से कौन-सा है?

(क) 1990-95 ई०
(ख) 1991-96 ई०
(ग) 1992-97 ई०
(घ) 1993-98 ई०

8. योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष होता है [2009, 11, 12, 14, 15]

(क) योजना मन्त्री
(ख) राष्ट्रपति
(ग) उपराष्ट्रपति
(घ) प्रधानमन्त्री

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9. नवीं पंचवर्षीय योजना में कितने प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि-दर निर्धारित की गई थी?

(क) 6%
(ख) 8%
(ग) 7%
(घ) 5%

10. दसवीं पंचवर्षीय योजना में कितने प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि-दर निर्धारित की गई थी?

(क) 6%
(ख) 8%
(ग) 7%
(घ) 9%

11. निम्नलिखित में से कौन-सी पंचवर्षीय योजना निर्धारित समय से पहले समाप्त हो गई? [2015]

(क) तृतीय
(ख) चतुर्थ
(ग) पंचम
(घ) सातवीं

12. भारत की किस पंचवर्षीय योजना में प्रति व्यक्ति आय सर्वाधिक रही?

(क) द्वितीय
(ख) प्रथम
(ग) चतुर्थ
(घ) तृतीय

13. भारत की दसवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि क्या थी?

(क) 1995-2000 ई०
(ख) 1999-2004 ई०
(ग) 2001-2006 ई०
(घ) 2002-2007 ई०

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14. प्रधानमन्त्री रोजगार योजना कब आरम्भ की गई?

(क) पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में
(ख) सातवीं पंचवर्षीय योजना में
(ग) आठवीं पंचवर्षीय योजना में
(घ) नवीं पंचवर्षीय योजना में

15. आर्थिक नियोजन का अर्थ है [2015, 18]

(क) प्रत्येक व्यक्ति की आय को बराबर करना
(ख) संसाधनों का उचित उपयोग करना।
(ग) आर्थिक प्रतियोगिता को प्रोत्साहित करना
(घ) साम्प्रदायिक सद्भावना उत्पन्न करना

16. भारत में आर्थिक नियोजन का प्रमुख उद्देश्य है

(क) देश की सामाजिक कुरीतियों को दूर करना
(ख) हिन्दू धर्म का प्रसार करना
(ग) समाजवादी समाज की स्थापना करना
(घ) साम्प्रदायिक सद्भावना पैदा करनी

17. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना की समयावधि क्या थी?

(क) 2008-13
(ख) 2007-12
(ग) 2006-11
(घ) इनमें से कोई नहीं

18. बारहवीं पंचवर्षीय योजना की समयावधि क्या है? [2013]

(क) 2011-16
(ख) 2012-17
(ग) 2013-18
(घ) 2010-15

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19. निम्नलिखित में से कौन-सा आर्थिक नियोजन का प्रमुख उद्देश्य है? [2015, 18]

(क) आर्थिक प्रतियोगिता को प्रोत्साहित करना
(ख) संसाधनों का जनकल्याण में समुचित उपयोग करना
(ग) सामुदायिक सद्भाव उत्पन्न करना
(घ) राजनैतिक लक्ष्य प्राप्त करना।

20. ‘योजना आयोग’ के स्थान पर किस आयोग का गठन वर्ष 2015 में किया गया? [2018]

(क) वाणिज्य आयोग
(ख) नीति आयोग
(ग) वित्त आयोग
(घ) सूचना आयोग

21. राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान (नीति आयोग) का अध्यक्ष कौन होता है? [2018]

(क) भारत का राष्ट्रपति
(ख) प्रधानमंत्री
(ग) वित्तमंत्री
(घ) मानव संसाधन विकास मंत्री

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 (Section 4)

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 are helpful to complete your homework.

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Little Things Class 6 English Chapter 13 Question Answer UP Board Solutions

UP Board Class 6th English Chapter 13 Little Things Questions and Answers

कक्षा 6 अंग्रेजी पाठ 13 के प्रश्न उत्तर

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 6 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 6 English Chapter 13 Little Things.

Little Things

TRANSLATION OF THE LESSON (पाठ का हिन्दी अनुवाद)

Little drops of …………………………….. Of eternity.
हिन्दी अनुवाद – पानी की छोटी बूंदें, मिट्टी के छोटे कण, शक्तिशाली महासागर बनाते हैं, और सुहावनी भूमि बनाते हैं। इसलिए छोटे पल, चाहे कितने विनम्र, छोटे हों, बनाते हैं शक्तिशाली युग, अनन्तकाल के लिए।

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Thus our little ……………………………………………………………… heaven above.
हिन्दी अनुवाद – इसलिए हमारी छोटी गलतियाँ, हमारी आत्मा को दूर ले जाती हैं, नैतिक गुणों के रास्ते से, दूर पाप में भटकाकर। दयालुता के छोटे कार्य, छोटे प्यार के शब्द, इस पृथ्वी को खुश बनाने में मदद करते हैं, जिस प्रकार से ऊपर स्वर्ग है।

EXERCISE (अभ्यास)

Comprehension Questions

Question 1.
Answer the following questions :
Answer:
Question a.
What makes the ocean mighty?
Answer:
Little drops of water in it make the ocean mighty.

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Question b.
Where do our little errors lead the soul?
Answer:
Our little errors lead our soul to (UPBoardSolutions.com) stray in sin, away from virtuous path.

Question c.
Which are the things that make the earth more like heaven?
Answer:
Little deeds of compassion and kindness and little words expressing love and care make the earth more like heaven.

Word Power

Question 1.
What do they make :
Answer:
a. Little drops of water mighty ocean
b. Little grains of sand. pleasant land
c. Little moments mighty ages
d. Little deeds of kindness happy earth

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Question 2.
Write one more rhyming words :
Answer:
UP Board Solutions for Class 6 English Chapter 13 Little Things img-1

Activity
Do it yourself.

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 13 खाद्य पदार्थों का संगठन, वर्गीकरण और उनके कार्य

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 13 खाद्य पदार्थों का संगठन, वर्गीकरण और उनके कार्य

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 13 खाद्य पदार्थों का संगठन, वर्गीकरण और उनके कार्य.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
आहार या भोजन से आप क्या समझती हैं? आहार के आवश्यक पोषक तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
आहार या भोजन का अर्थ एवं पोषक तत्व

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि कोई भी जीवित प्राणी आहार या भोजन के अभाव में अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकता। वास्तव में सभी जीवित प्राणियों का एक अनिवार्य लक्षण है—नियमित रूप से आहार ग्रहण करना। आहार की आवश्यकता भूख के रूप में अनुभव की जाती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सामान्य रूप से यह मान लिया जाता है कि जो खाद्य-सामग्री ग्रहण करने से भूख शान्त हो जाए वह व्यक्ति का आहार या भोजन है, परन्तु आहार का यह अर्थ न तो पूर्ण है और न ही सही। वास्तव में मनुष्य के लिए आहार ग्रहण (UPBoardSolutions.com) करने के विभिन्न उद्देश्य हैं। भूख को शान्त करने के अतिरिक्त आहार से ही हम शक्ति प्राप्त करते हैं। आहार शरीर की वृद्धि एवं विकास में भी योगदान प्रदान करता है। शरीर के रख-रखाव में भी आहार का ही मुख्य योगदान होता है। आहार से ही हमारा शरीर रोगों से बचने की क्षमता प्राप्त करता है। आहार के इन समस्त उद्देश्यों एवं उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए आहार के अर्थ को हम इन शब्दों में प्रस्तुत कर सकते हैं, ”वह ठोस या तरल सामग्री आहार कहलाती है, जिसे ग्रहण करने से भूख मिटती है, शरीर शक्ति प्राप्त करता है, शरीर की वृद्धि एवं विकास होता है, शरीर के अन्दर होने वाली टूट-फूट की मरम्मत होती है तथा प्राणी रोगों से लड़ने की क्षमता प्राप्त करता है।”
आहार का अर्थ जान लेने के उपरान्त यह स्पष्ट कर देना भी आवश्यक है कि वास्तव में आहार के रूप में हम जो खाद्य सामग्री ग्रहण करते हैं उसका विशेष महत्त्व नहीं होता, बल्कि उससे प्राप्त होने वाले पोषक तत्त्वों का मुख्य महत्त्व है। हमारे शरीर एवं स्वास्थ्य के लिए कुछ पोषक या अनिवार्य तत्त्व
आवश्यक होते हैं। ये पोषक तत्त्व हैं क्रमशः

  1.  प्रोटीन,
  2.  कार्बोहाइड्रेट,
  3.  वसा,
  4. खनिज,
  5. विटामिन,
  6. जल।

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प्रश्न 2:
आहार के पोषक तत्त्व के रूप में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या
कार्बोहाइड्रेट के संगठन, प्राप्ति के स्रोत, उपयोगिता तथा अधिकता से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
या
प्रोटीन के विषय में आप क्या जानती हैं?प्रोटीन की उपयोगिता, आहार में कमी तथा अधिकती के परिणाम बताइए।
या
‘वसा’ के विषय में आप क्या जानती हैं? वसा की उपयोगिता, आहार में कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(I) कार्बोहाइड्रेट

ये कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन से निर्मित यौगिक हैं, जिनमें हाइड्रोजन व ऑक्सीजन सदैव दो-एक के अनुपात (2:1) में होती हैं। इनमें विभिन्न प्रकार की शर्करा व स्टार्च सम्मिलित किए जाते हैं। शर्करा को मीठे फलों; जैसे अंगूर, खजूर, सेब आदि से प्राप्त किया जा सकता है। बड़े पैमाने पर शर्करा गन्ने (UPBoardSolutions.com) एवं चुकन्दर से प्राप्त की जाती है। अंगूरी-शर्करा, ग्लूकोस, अन्य फलों से प्राप्त शर्करा फ्रक्टोज तथा व्यापारिक शर्करा सुक्रोस कहलाती है। स्टार्च प्राय: गेहूं, चावल, आलू, साबूदाना व अरवी इत्यादि
से प्राप्त होता है। स्टार्च प्राय: जल में अविलेय होता है।

उपयोगिता

  1.  ये शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  2.  ये शरीर का ताप बनाए रखते हैं।
  3. ये शारीरिक भूख शान्त करने के लिए सर्वोत्तम एवं सस्ते खाद्य पदार्थ हैं।
  4. कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करके प्रोटीन तथा वसा को अन्य उद्देश्यों के लिए बचाए रखने .. में सहायक होता है।
  5.  बकार्बोहाइड्रेट शरीर में कैल्सियम के शोषण में सहायक होता है।
  6. सेलुलोस आदि के रूप में कार्बोहाइड्रेट शरीर से मल विसर्जन में सहायक होता है। इसीलिए आहार में रेशेदार भोज्य-पदार्थ सम्मिलित किए जाते हैं।
  7.  कार्बोहाइड्रेट युक्त भोज्य पदार्थ विभिन्न खनिज लवणों तथा विटामिनों के उत्तम स्रोत होते हैं।

कार्बोहाइड्रेट की कमी से हानियाँ:
यदि व्यक्ति के आहार में कार्बोहाइड्रेट की कम मात्रा का समावेश होता है, तो हमारा शरीर आवश्यक ऊर्जा, प्रोटीन तथा वसा से प्राप्त करता हैं इससे शरीर में प्रोटीन-कार्बोहाइड्रेट कुपोषण की स्थिति आ जाती है। इस स्थिति में शरीर का वजन घटने लगता है तथा त्वचा पर झुर्रियाँ पड़ने लगती हैं। (UPBoardSolutions.com) त्वचा ढीली पड़ जाने के कारण लटकने लगती है, व्यक्ति दुर्बलता महसूस करने लगता है तथा उसके चेहरे की सामान्य चमक घटने लगती है।

कार्बोहाइड्रेट्स की अधिकता से हानियाँ:
कार्बोहाइड्रेट्स की अधिकता से हमारे शरीर में कुछ हानियाँ हो सकती हैं; जैसे—इनकी अधिकता से पाचन क्रिया बिगड़ सकती है, दस्त हो सकते हैं तथा शरीर में मोटापा आ सकता है। शर्कराओं के अधिक प्रयोग से मधुमेह का रोग हो सकती है।

(II) प्रोटीन

हमारे आहार को एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व ‘प्रोटीन भी है। ये जटिल रासायनिक अणु होते हैं जो कि कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन के बने होते हैं। इन्हें (UPBoardSolutions.com) नाइट्रोजीन्स अथवा नाइट्रोजनयुक्त खाद्य पदार्थ भी कहते हैं। कुछ प्रकार की प्रोटीन्स में सल्फर व फॉस्फोरस भी होते हैं। सभी प्रोटीन्स अमीनो अम्ल के संयोग से बने होते हैं। प्राप्ति के आधार पर प्रोटीन्स दो प्रकार के होते हैं

(क) प्राणिजन्य प्रोटीन:
इस वर्ग की प्रोटीन्स मांस, मछली, अण्डे, दूध व दूध से बनी खाद्य सामग्रियों से प्राप्त होती हैं। इससे प्राप्त प्रोटीन का प्रतिशत इस प्रकार है

(1) अण्डा (एल्ब्यूमिन)           13.3%
(2) मछली                             21.5%
(3) मांस                                20%
(4) दूध                                   4 %
(5) खोया                               20%
सामान्यतः प्राणिजन्य प्रोटीन सुपाच्य एवं सर्वोत्तम होते हैं

(ख) वनस्पतिजन्य प्रोटीन:
इस वर्ग की प्रोटीन मुख्य रूप से दालों (चना, मटर, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन आदि) से प्राप्त होती है। सोयाबीन में प्रोटीन की मात्रा सर्वाधिक होती है। विभिन्न मेवों, गेहूं, चावल आदि से प्रोटीन की प्राप्ति होती है। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त प्रोटीन्स की प्रतिशत मात्रा निम्नलिखिते होती है

(1) सोयाबीन                                                           43%
(2) मूंग, मसूर, अरहर, उड़द, मटर आदि             20-24%
(3) मूंग व चावल                                                   12-14%
(4) मूंगफली                                                            26%
(5) काजू                                                                 20%
(6) बादाम                                                               21%

उपयोगिता:

  1. शरीर के तन्तुओं, नाड़ियों तथा आन्तरिक अंगों के निर्माण एवं टूट-फूट की क्षतिपूर्ति में प्रोटीन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहती है।
  2.  शरीर के स्वस्थ एवं समुचित विकास के लिए प्रोटीन की आवश्यकता सर्वोपरि होती है।
  3.  प्रोटीन पाचक रसों, आन्तरिक रसों अथवा हॉर्मोन्स तथा किण्व के निर्माण में सहायता करता है। लगभग सभी किण्व प्रोटीन के बने होते हैं।
  4.  प्रोटीन मानसिक शक्ति में वृद्धि करता है।
  5.  आवश्यकता पड़ने पर कभी-कभी प्रोटीन शरीर को ऊष्मा एवं ऊर्जा प्रदान करते हैं। रोगों के फलस्वरूप उत्पन्न दुर्बलता के निवारण के लिए प्रोटीन बहुत महत्त्वपूर्ण रहते हैं।
  6.  प्रोटीन से रोग-निरोधक क्षमता का भी समुचित विकास होता है।

प्रोटीन की कमी से हानियाँ:
शरीर के भार के अनुसार हमें (1 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से) प्रतिदिन प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इसकी कमी से निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है

  1.  शरीर अस्वस्थ रहता है तथा अनेक रोगों के पनपने का भय रहता है।
  2. शरीर के विकास की गति रुक जाती है।
  3. शिशुओं एवं बालकों में समुचित वृद्धि नहीं होती है।
  4. यकृत के आकार में वृद्धि हो जाती है।
  5. रक्तचाप निम्न हो जाता है तथा मनुष्य दुर्बलता अनुभव करता है।
  6.  त्वचा पर चित्तियाँ पड़ जाती हैं व बाल झड़ने लगते हैं।
  7. प्रोटीन की निरन्तर कमी के परिणामस्वरूप क्वाशरकोर, पैलेग्रा तथा यकृत सम्बन्धी कुछ रोग भी हो जाते हैं।

प्रोटीन की अधिकता से हानियाँ:
जिस प्रकार प्रोटीन की कमी से अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं, ठीक उसी प्रकार अधिक एवं अनावश्यक प्रोटीन का उपयोग भी अनेक शारीरिक विषमताओं को जन्म देता है। प्रोटीन की अधिकता से निम्नलिखित शारीरिक हानियाँ सम्भव हैं

  1. शरीर में गर्मी अधिक उत्पन्न होती है।
  2. प्रोटीन के आधिक्य को निष्कासित करने के लिए गुर्दो को अधिक कार्य करना पड़ता है; जिससे उनके दुर्बल होने का भय रहता है।
  3.  ठण्डे प्रदेशों में प्रोटीन का अधिक उपयोग कम हानिकारक होता है, परन्तु गर्म देशों (जैसे कि भारतवर्ष) में अधिक प्रोटीन न प्रयोग करना ही हितकर है।

(III) वसा एवं तेल

वसा कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन से निर्मित होती है। इनमें ऑक्सीजन की अल्प मात्रा होती है। ये वसीय अम्लों एवं ग्लिसरॉल के संयोग से बनते हैं। वसा प्रायः निम्नलिखित दो प्रकार की होती है
(क) प्राणिजन्य वसा:
पशुओं की चर्बी, अण्डों की जर्दी, मछली का तेल आदि वसा के मुख्य स्रोत हैं। इनके अतिरिक्त पशुओं (गाय व भैंस आदि) का दूध, मक्खन व घी वसा के अधिक सामान्य एवं महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।

(ख) वनस्पतिजन्य वसी:
सरसों, नारियल, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी तथा तिल के तेल वसा के सामान्य स्रोत हैं। इनके अतिरिक्त बादाम, काजू व अखरोट आदि मेवों में भी प्रचुर मात्रा में वसा पाई जाती है।

उपयोगिता:
वसा एवं वसायुक्त भोज्य पदार्थों का सेवन करने से हमें लाभ तथा हानियाँ दोनों ही होती हैं। इनका क्रमबद्ध विवरण निम्नलिखित है

लाभ:

  1. कार्बोहाइड्रेट्स के समान ये भी ऊर्जा के अच्छे स्रोत हैं।
  2.  ये बाह्य गर्मी एवं सर्दी से शरीर की रक्षा करते हैं।
  3.  अधिक मात्रा में लेने पर शरीर में संचित हो जाते हैं तथा आन्तरिक अंगों एवं हड्डियों को बाह्य आघात से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  4.  ये मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं।
  5.  कई विटामिन्स (जैसे ‘ए’, ‘ई’, ‘के’ एवं ‘डी’) के लिए ये विलायक का कार्य करते हैं।
  6.  वसा शरीर के ताप के नियमन में सहायता प्रदान करती है।
  7.  वसा पाचन-संस्थान को चिकना बनाए रखती है तथा उसकी (आँतों एवं आमाशय की) क्रियाशीलता को सुचारु बनाती है।
  8. वसायुक्त आहार स्वादिष्ट बन जाता है।
  9. वसा शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करके प्रोटीन की बचत में भी योगदान प्रदान करती है।
  10.  वसा युक्त भोजन ग्रहण करने से व्यक्ति को अधिक समय तक भूख नहीं लगती।

हानियाँ:

  1.  इनकी अधिकता से मोटापा बढ़ता है।
  2. इनकी अधिकता से रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है। रक्त नलिकाओं को दीवारों में कोलेस्ट्रॉल के जमने के कारण रक्त वाहिनियाँ संकुचित हो जाती हैं; अतः हृदय रोग की सम्भावनाभों में वृद्धि हो जाती है।
  3.  वसा की अधिक मात्रा ग्रहण करने से पाचन-क्रिया बिगड़ जाती है तथा अपच या दस्त होने लगते हैं।

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प्रश्न 3:
आहार के आवश्यक तत्त्व के रूप में खनिज लवणों का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
खनिज लवण-शारीरिक स्वास्थ्य तथा सुचारु क्रियाशीलता के लिए खनिज लवण नितान्त आवश्यक हैं। जहाँ एक ओर ये शरीर की विभिन्न रोगों से रक्षा करते हैं, वहीं दूसरी ओर शरीर निर्माण में भी सहायक हैं। शरीर से होने वाली अनेक रासायनिक क्रियाओं, विभिन्न रसों के निर्माण, रक्त का निर्माण, हड्डियों तथा दाँतों के लिए खनिज-लवण विशेष उपयोगी होते हैं। शरीर को सुदृढ़ एवं शक्तिशाली बनाने में भी लवण (UPBoardSolutions.com) सहायता प्रदान करते हैं। शरीर का लगभग 1/25वाँ भाग खनिज लवणों का बना होता है। लगभग 20 खनिज तत्त्व जिनसे अनेक खनिज लवण बनते हैं, स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक हैं। इनमें कैल्सियम, फॉस्फोरस, आयोडीन, सोडियम क्लोराइड (सामान्य नमक), लोहा, मैग्नीशियम, ताँबा एवं गन्धक आदि अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।

उपयोगिता:

  1.  शरीर के समुचित विकास के लिए आवश्यक है।
  2. हड्डियों के स्वस्थ, स्वरूप के लिए कैल्सियम व फॉस्फोरस अति महत्त्वपूर्ण हैं।
  3. रक्त में लाल-रुधिर कोशिकाओं के निर्माण के लिए लौह तत्त्व की आवश्यकता पड़ती है।
  4.  थायरॉइड ग्रन्थियों की क्रियाशीलता एवं विकास के लिए आयोडीन आवश्यक है।
  5. विभिन्न लवण शरीर के पाचक रसों को उत्प्रेरित करते हैं तथा परिणामस्वरूप पाचन-क्रिया सुचारु बनी रहती है।
  6.  लवण शरीर में अम्ल-क्षार के सन्तुलन को बनाए रखते हैं।
  7. लवणों के प्रभाव से शरीर में उपस्थित विभिन्न पदार्थ घुलनशील बनते हैं तथा उन्हें शरीर के विभिन्न अवयवों तक जाने में सरलता होती है।

प्रश्न 4:
आहार के आवश्यक तत्त्व के रूप में विटामिनों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
विटामिन्स:
शरीर के स्वस्थ एवं समुचित विकास के लिए सूक्ष्म मात्रा में विटामिन्स की आवश्यकता पड़ती है। विटामिन्स को सुरक्षात्मक तत्त्व (protective nutrients) कहा जाता है। ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’, ‘ई’ व ‘के’ आवश्यक विटामिन्स हैं जो कि अनेक प्रकार से हमें लाभान्वित करते

उपयोगिता:
हमारे शरीर तथा स्वास्थ्य के लिए विटामिनों की उपयोगिता का सामान्य विवरण निम्नवर्णित है

  1.  विभिन्न विटामिनों की समुचित मात्रा ग्रहण करने से शरीर में विभिन्न रोगों से मुकाबला करने तथा उनसे बचे रहने की क्षमता प्राप्त होती है। इसके विपरीत विटामिनों की न्यूनता से व्यक्ति विभिन्न प्रकार के रोगों का शिकार हो जाता है।
  2. विभिन्न विटामिन ग्रहण करने से व्यक्ति चुस्त एवं स्वस्थ बना रहता है। विटामिन मनुष्य को स्वस्थ रहने में सहायता प्रदान करते हैं। इनकी कमी की स्थिति में व्यक्ति के शरीर की चुस्ती-फुर्ती कम हो जाती है।
  3. समुचित मात्रा में विटामिन ग्रहण करने से व्यक्ति को भूख ठीक प्रकार से लगती है। इसके विपरीत यदि विटामिन की न्यूनता या अभाव हो जाए तो व्यक्ति को भूख कम लगती है, चुस्ती बनी रहती है तथा व्यक्ति को नींद अधिक आने लगती है।
  4.  विटामिन की न्यूनता से शरीर अत्यधिक क्षीण एवं दुर्बल हो जाता है।

प्रश्न 5:
शरीर के लिए जल की उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शरीर का लगभग 70% भाग जल होता है। जल को प्रायः सीधे पीकर ग्रहण किया जाता है। इसके अतिरिक्त भोजन, शाक-सब्जियों, फलों एवं पेय पदार्थों के माध्यम से भी जल शरीर में प्रवेश
करता है।

उपयोगिता:

  1. प्यास शरीर की नैसर्गिक आवश्यकता है। जल द्वारा ही प्यास बुझती है।
  2.  जल शरीर के तापक्रम को सामान्य बनाए रखता है।
  3.  यह सर्वोत्तम विलायक है; अत: अधिकांश पौष्टिक तत्त्व इसमें घुलकर शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचते हैं। उत्सर्जन क्रिया में शरीर से विसर्जित होने वाले पदार्थ भी जल में घुलकर ही शरीर से पसीने व मल-मूत्र आदि के रूप में बाहर निकलते हैं।
  4.  भोजन के पाचन व अवशोषण के लिए जल अति आवश्यक है।
  5.  रक्त में लगभग 90% जल होता है।
  6.  शरीर में विद्यमान विभिन्न ग्रन्थियों से कुछ रसों का स्राव होता है। इन रसों को तरलता प्रदान करने का कार्य जल ही करता है।
  7. जल हमारे शरीर की त्वचा को कोमल तथा चिकना बनाने में भी सहायकं होता है।
  8.  जल के सेवन से व्यक्ति की सुस्ती, थकाने तथा उदासीनता भी दूर होती है।
  9.  शारीरिक सफाई के लिए जल आवश्यक है। हम जल से ही स्नान करते हैं।

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प्रश्न 6:
विटामिन की सामान्य विशेषताओं का उल्लेख करते हुए विभिन्न विटामिनों की । उपयोगिता, स्रोत तथा कमी के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विटामिन क्या हैं विटामिन्स जटिल कार्बनिक यौगिक होते हैं। ये प्राय: जल में (जैसे ‘बी’ व ‘सी’) अथवा वसा में (जैसे ‘ए’, ‘डी’, ‘ई’ व ‘के’) विलेय (घुलनशील) होते हैं। इनकी अन्य विशेषताएँ हैं

  1. ये शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अति आवश्यक हैं।
  2.  इनकी आवश्यकता सूक्ष्म मात्रा में होती है तथा इनकी आवश्यकता से अधिक मात्रा प्रायः शरीर से विसर्जित हो जाती है।
  3. ये प्रायः उत्प्रेरक अथवा किण्व के समान कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त इनके विशिष्ट कार्य भी होते हैं।
  4.  ये प्रायः विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों से प्राप्त होते हैं। आजकल इनका निर्माण प्रयोगशालाओं में भी किया जाता है।
  5.  दैनिक भोज्य पदार्थों में इनकी कमी प्रायः अनेक रोगों का कारण बनती है।

उपयोगिता, स्रोत तथा कमी के प्रभाव:
विभिन्न विटामिनों की उपयोगिता प्राप्ति के स्रोतों तथा कमी के प्रभावों को निम्न तालिका द्वारा दर्शाया गया है
सारणी-विटामिन्स : प्रकार, स्रोत, उपयोगिता तथा कमी के प्रभाव विटामिन का नाम व स्रोत | कार्य या उपयोगिता
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 13 खाद्य पदार्थों का संगठन, वर्गीकरण और उनके कार्य
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प्रश्न 7:
हमारे लिए आवश्यक खनिज लवण व उनके प्राप्ति स्रोत कौन-कौन से हैं? शरीर में इनकी कमी से क्या हानि होती है?
उत्तर:
हमारे शरीर के स्वस्थ एवं समुचित विकास के लिए निम्नलिखित खनिज लवणों की आवश्यकता होती है

  1.  कैल्सियम,
  2.  फॉस्फोरस,
  3.  आयोडीन,
  4.  सोडियम,
  5.  मैग्नीशियम,
  6. गन्धक,
  7. लोहा,
  8. ताँबा।

(1) कैल्सियम:
हमें 500 मिली ग्राम से 1 ग्राम कैल्सियम की प्रतिदिन आवश्यकता होती है। यह :: हमें दूध, दही, पनीर व अण्डे की जर्दी से प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो सकता है। मेथी, पालक, (UPBoardSolutions.com) गाजर व मूली के पत्तों तथा बन्द गोभी व फूल गोभी में भी पाया जाता है। कैल्सियम दाँतों, हड्डियों व मांसपेशियों ” को स्वस्थ एवं क्रियाशील रखने के लिए अति आवश्यक है।

कैल्सियम की कमी से हानि:

  1.  हड्डियाँ कमजोर व विकृत हो जाती हैं। बच्चों में सूखा रोग व महिलाओं में मृदुलास्थि रोग हो जाते हैं।
  2. दाँत दुर्बल व बेडौल हो जाते हैं।
  3. रक्त जमने में अधिक समय लगता है।

(2) फॉस्फोरस:
बढ़ते हुए बालक को 1 ग्राम तथा सामान्य मनुष्य को 500 मिली ग्राम फॉस्फोरस की आवश्यकता होती है। यह हमें पनीर, अण्डा, मांस, मछली, आलू, कच्ची मक्का, पालक और दूध आदि से प्राप्त होता है।

फॉस्फोरस की कमी से हानि:

  1. अस्थियाँ व स्नायु संस्थान दुर्बल हो जाते हैं।
  2.  रक्त में अम्ल व क्षार का सन्तुलन नहीं रहता।

(3) आयोडीन:
इसकी दैनिक आवश्यकता 60-100 मिली ग्राम है। यह हमें प्याज, समुद्री मछली, मछली का तेल, आयोडाइज्ड नमक व पीने के पानी से प्राप्त होती है। यह थायरॉइड ग्रन्थियों के विकास एवं क्रियाशीलता के लिए आवश्यक खनिज तत्त्व है।

आयोडीन की कमी से हानि:

  1.  बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास रुक जाता है।
  2.  गले में थायरॉइड ग्रन्थि के बढ़ जाने के कारण, गलगण्ड अथवा घेघा (गोइटे) नामक रोग हो। जाता है।

(4) सोडियम:
हमें इसकी आवश्यकता सामान्य नमक (सोडियम क्लोराइड) तथा सोडियम कार्बोनेट के रूप में होती है। ये हमें दूध, मांस, शलजम, प्याज, सेब, केला तथा अमरूद आदि से प्राप्त होते हैं। सामान्य नमक का उपयोग हम अपने दैनिक जीवन में अनेक प्रकारे से करते हैं।

सोडियम की कमी से हानि:

  1. सोडियम क्लोराइड की कमी से शरीर में कब्ज उत्पन्न होता है, रुधिर चाप कम हो जाता है तथा रक्त के संगठन में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।
  2. सोडियम कार्बोनेट की कमी से रक्त में अम्ल व क्षार का सन्तुलन नहीं रहता है तथा पाचन-क्रिया ठीक नहीं रहती।

(5) मैग्नीशियम:
यह लगभग सभी प्रकार के भोज्य-पदार्थों विशेष रूप से हरी शाक-सब्जियों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह शरीर में उपस्थित किण्वों को तथा स्नायु-तन्त्र को क्रियाशील रखता है।

मैग्नीशियम की कमी से हानि

  1.  पाचन-क्रिया गड़बड़ा जाती है।
  2.  स्नायुमण्डल दुर्बल हो जाता है।

(6) गन्धक:
प्रोटीनयुक्त भोजन करने से गन्धक की आवश्यकता स्वत: ही पूरी हो जाती है। शरीर में होने वाली ऑक्सीकरण क्रियाओं में गन्धक का महत्त्वपूर्ण योगदान रहती है।

गन्धक की कमी से हानि

  1.  बालों की वृद्धि रुक जाती है।
  2.  नाखूनों की वृद्धि में अवरोध उत्पन्न हो जाता है।
  3.  शरीर में होने वाली अनेक जैव-रासायनिक क्रियाएँ कुप्रभावित होती हैं।

(7) लोहा:
यह रक्त के वर्णक तत्त्व हीमोग्लोबिन का आवश्यक अंग है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में लौह तत्त्व की आवश्यकता अधिक होती है; परन्तु 50-55 वर्ष की आयु में मासिक धर्म बन्द हो जाने पर स्त्रियों एवं पुरुषों में इसकी आवश्यकता समान हो जाती है। लोहा प्राप्त करने के लिए मांस, मछली, (UPBoardSolutions.com) गाजर, पालक, खीरे (हेरी शाक-सब्जियाँ), प्याज, सेब, मेवे, अनाज इत्यादि का सेवन लाभप्रद रहता है। अधिक कमी होने पर इसे गोलियों, कैप्सूल तथा टॉनिक इत्यादि का सेवन कर प्राप्त किया जा सकता है।

लोहे की कमी से हानि

  1.  रक्ताल्पता (ऐनीमिया) नामक रोग हो जाता है।
  2. त्वचा का रंग पीला अथवा भूरा हो जाता है।
  3. हृदय गति बढ़ जाती है तथा श्वसन क्रिया धीमी पड़ जाती है।
  4. पीड़ित व्यक्ति उदासी, दुर्बलता एवं थकावट का अनुभव करता है।

(8) ताँबा:
ताँबा अथवा कॉपर लोहे के साथ मिलकर रक्त का उपयुक्त संगठन बनाए रखता है। यह अनाजों (गेहूँ, चावल, मक्का, जौ, बाजरा आदि) •का सेवन करके प्राप्त किया जा सकता है। ताँबे
की कमी से होने वाली हानियाँ लगभग लोहे के समान होती हैं।

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प्रश्न 8:
निम्नलिखित खाद्य पदार्थों पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए
(क) अनाज,
(ख) दालें,
(ग) मेवे,
(घ) सब्जी व फल,
(ङ) मांस। या दालें और मेवों में कौन-सा पौष्टिक तत्त्व होता है?
उत्तर:

(क) अनाज:
अनाजों में प्राय: गेहूं, चावल, मक्का, जौ, ज्वार तथा बाजरे का अधिकतर प्रयोग किया जाता है। ये सभी अनाज विभिन्न पौधों के बीज होते हैं तथा इन्हें विभिन्न प्रकार से आहार में सम्मिलित किया जाता है। इनमें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन्स आदि पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। विभिन्न अनाजों के संगठन इस प्रकार हैं

(i) गेहूँ:
यह सर्वोत्तम अनाज है। इसके आटे से चपातियाँ तथा अन्य प्रकार की भोज्य सामग्रियाँ बनाई जाती हैं। 71.2% कार्बोहाइड्रेट्स, 15% वसा तथा लगभग 2% खनिज लवण होते हैं। चोकर में प्रोटीन, सेल्यूलोज तथा लवण प्रचुर मात्रा में होते हैं; अतः आटे से चोकर को अलग नहीं करना चाहिए। (UPBoardSolutions.com) चोकर में विटामिन ‘बी’ भी पाया जाता है। अंकुरित गेहँ में विटामिन ‘सी’ तथा ‘ई’ भी पाया जाता है। हम अपने आहार में गेहूं का सर्वाधिक प्रयोग उसके आटे के रूप में करते हैं। वैसे आटे के अतिरिक्त गेहूं से मैदा तथा सूजी भी तैयार किए जाते हैं। गेहूँ से दलिया बना कर भी प्रयोग में लाया जाता है। दलिए में गेहूं के सभी पोषक तत्त्व पूर्णरूप में पाए जाते हैं।

(ii) चावल:
यह भी गेहूं के समान महत्त्वपूर्ण अनाज है। इसमें 78.8% कार्बोहाइड्रेट्स तथा 6% वसा होती है। इसके अतिरिक्त चावल में प्रोटीन, विटामिन ‘बी’ तथा खनिज लवण भी होते हैं जो कि व्यापारिक स्तर पर मशीन से कुटे चावल में प्राय: नष्ट हो जाते हैं। हाथ से कुटे धान से बना चावल अधिक पौष्टिक होता है।

(iii) मक्का:
इसमें कार्बोहाइडेटस अधिक होते हैं, परन्तु प्रोटीन गेहूं व चावल की अपेक्षा कम होती है। विटामिन्स का मक्का में प्राय: अभाव ही होता है। केवल मक्का ही खाने से पेलैग्रा नामक रोग हो जाता है।

(iv) जौ:
जौ अथवा बारले गेहूं की अपेक्षा हल्का अनाज है। इसमें प्रोटीन व लवण की मात्रा अधिक होती है। यह भूख बढ़ाने वाला तथा शीतल प्रभाव का अनाज है। इसमें कार्बोहाइड्रेट्स 69.3%, प्रोटीन 11.5%, वसा 1.3% तथा लवण 3% होते हैं।

(v) ज्वार एवं बाजरा:
इसमें प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट्स प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। विटामिन ‘बी’ इनमें गेहूं के समान होता है, परन्तु खनिज लवण की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है।

(ख) दालें

मूंग, अरहर, उड़द, मसूर, मटर, चना, राजमा तथा लोबिया आदि हमारे देश की प्रमुख दालें हैं। शाकाहारी व्यक्तियों के लिए दालें व दूध ही प्रोटीन के वैकल्पिक स्रोत हैं। विभिन्न दालों में 57-60% कार्बोज तथा प्रोटीन 22-25% तक पाई जाती है। सोयाबीन में प्रोटीन की प्रतिशत मात्रा सबसे अधिक (UPBoardSolutions.com) लगभग 43% होती है। दालों में नाइट्रोजनयुक्त पदार्थ, लोहा व फॉस्फोरस भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। भीगी हुई अंकुरित दालों का प्रयोग करने पर उनसे विटामिन ‘ए’, ‘बी’ व ‘सी’ भी प्राप्त किए जा सकते हैं। अतः दालें प्रायः सभी व्यक्तियों के लिए महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी आहार हैं।

(ग) मेवे

मेवों में प्रोटीन, वसाएँ तथा कार्बोहाइड्रेट्स काफी मात्रा में मिलते हैं। अनेक मेवों; जैसे बादाम में प्रोटीन की अत्यधिक मात्रा होती है, जबकि शर्कराओं की अधिक मात्रा किशमिश, छुआरा, मुनक्का आदि मेवों में अधिक है। मेवे में खनिज पदार्थों की भी काफी मात्रा होती है। इस प्रकार मेवे अत्यन्त पौष्टिक पदार्थ हैं।

(घ) सब्जी व फल

सब्जियाँ–सब्जियाँ प्राय: दो प्रकार की होती हैं

(i) मूल एवं कन्द:
जैसे-आलू, गाजर, चुकन्दर, मूली, शलजम, प्याज, लहसुन तथा अरवी इत्यादि। इनमें कार्बोज की मात्रा अधिक होती है।

(ii) हरी शाक-सब्जियाँ:
जैसे- गोभी, भिण्डी, बैंगन, मेथी, पालक, लोकी, तोरई, टिण्डे, टमाटर व नींबू इत्यादि। इनमें कार्बोज की मात्रा कम होती है; परन्तु खनिज लवण तथा विटामिन ‘ए’, ‘बी’ एवं ‘सी’ प्रचुर मात्रा में होते हैं। विटामिन हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करते हैं, इसलिए हरी शाक-सब्जियों को सुरक्षात्मक भोजन कहते हैं। कुछ प्रमुख सब्जियों में विभिन्न तत्त्व निम्न प्रकार से पाए जाते हैं।
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फल:
कुछ फलों (केला, अंगूर, सेब, आम, अंजीर आदि) से हमें शक्तिवर्द्धक शर्करा (ग्लूकोस) प्राप्त होती है। इन्हें भोज्यफल कहते हैं। कुछ फलों (सन्तरा, मौसमी, नींबू आदि) के रस में विटामिन ‘ए, ‘बी’ व ‘सी’ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। इन रोग-प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करने वाले फलों को सुरस फल कहते हैं। कुछ प्रमुख फलों में पोषक तत्त्वों की प्रतिशत मात्रा निम्नलिखित है
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(ङ) मांस:
सामान्यत: भेड़, बकरी, सूअर, हिरन, खरगोश व मुर्गा आदि का मांस उत्तम श्रेणी का माना जाता है।

मांस के प्रमुख पोषक तत्त्व:
मांस में प्रायः 18% प्रोटीन, 20% वसा तथा 60% जल होता है। मांस की प्रोटीन अधिक सुपाच्य तथा उत्तम श्रेणी की होती है। यकृत एवं गुर्दी में न्यूक्लिया प्रोटीन तथा सफेद ऊतकों में, कोलेटन व एलेस्जिन नामक प्रोटीन पाई जाती है। वसा अधिक मात्रा में होने के कारण मांस ऊर्जा-प्राप्ति के (UPBoardSolutions.com) लिए सर्वोत्तम भोजन है। मांस में विटामिन ‘ए’, ‘बी’ व ‘डी’ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। मास में पाए जाने वाले लवणों में फॉस्फोरस व लोहा प्रमुख हैं। इस प्रकार मास एक पौष्टिक भोजन है।

अच्छे मांस की विशेषताएँ

  1.  गुलाबी अथवा हल्के लाल रंग का मांस अच्छा होता है।
  2.  अच्छा मांस छूने पर सख्त एवं लचीला होता है।
  3.  अच्छे मांस की वसा पूर्णरूप से सफेद व सख्त होती है।
  4.  अच्छा मांस पकाने पर संकुचित नहीं होता है।
  5.  यह पानी में गीला नहीं होता।
  6. मांस सदैव ताजा ही उपयोग में लाना चाहिए।
  7. कभी भी बीमार पशु-पक्षी का मांस नहीं खाना चाहिए।
  8. मांस को अच्छी प्रकार से उच्च ताप पर पकाकर ही खाना चाहिए। इससे रोगाणुओं के संक्रमण की आशंका नहीं रहती।

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प्रश्न 9:
दूध को ‘सम्पूर्ण आहार’ क्यों माना जाता है? इसके प्रमुख तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
या
‘दूध एक पूर्ण आहार है। इसे सिद्ध कीजिए।
या
सिद्ध कीजिए कि दूध एक उपयोगी एवं पौष्टिक पेय पदार्थ है।
या
दूध से बनाए जाने वाले कुछ मुख्य खाद्य पदार्थों के नाम लिखिए।
या
दूध एक सम्पूर्ण आहार क्यों कहलाता है?
उत्तर:
दूध को एक ऐसा आहार माना जाता है जो प्रायः सभी पोषक तत्वों से परिपूर्ण है। इसमें अन्य सभी खाद्य पदार्थों की अपेक्षा अधिक पोषक तत्त्व उपस्थित रहते हैं। बच्चे के जन्म के समय से ही जीव का प्रमुखं आहार दूध होता है। वह अपने शरीर की वृद्धि के लिए माता के दूध पर पूर्णरूप से निर्भर रहता (UPBoardSolutions.com) है। जब वह बड़ा हो जाता है तो उसे गाय, भैंस, बकरी इत्यादि का दूध पिलाया जाता है। आहार सम्बन्धी सभी आवश्यक तत्त्व; जैसे—प्रोटीन, खनिज-लवण इत्यादि दूध में उपस्थित रहते हैं। दूध में प्रोटीन केसीन तथा लैक्टा एल्ब्यूमिन के रूप में पाई जाती है, जिसे प्राप्त करके एक स्वस्थ मनुष्य अपने शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

प्राप्ति स्रोत:
दूध एक महत्त्वपूर्ण पशु प्रदत्त भोज्य पदार्थ है। दूध हमें सामान्यतः गाय, भैंस व बकरी से प्राप्त होता है। हमारे देश में गाय का दूध अधिक सुपाच्य एवं उत्तम माना जाता है।

दूध से बनने वाले पदार्थ:
दूध को उसके प्राकृतिक रूप में प्रयोग क़िए जाने के अतिरिक्त उससे अनेक पदार्थ बनाए जाते हैं। इनका अपना अलग-अलग उपयोग एवं महत्त्व है। दूध से बनने वाले विभिन्न पदार्थ निम्नलिखित हैं

(1) स्किम्ड अथवा सप्रेटा दूध:
यन्त्र द्वारा दूध से क्रीम (वसा) अलग कर देने के पश्चात् स्किम्ड दूध शेष बचता है।

(2) कन्डेन्स्ड दूध:
यन्त्रों की सहायता से दूध का लगभग 2/3 जलांश दूर करके कन्डेन्स्ड दूध बनाया जाता है।

(3) शुष्क दूध:
यान्त्रिक विधि से दूध को पूर्णत: जलरहित कर उसका शुष्क पाउडर बना लिया जाता है।

(4) दही:
दूध से निर्मित एक मुख्य खाद्य पदार्थ ‘दही है। यदि दूध में लैक्टिक अम्ल का समावेश हो जाए, तो उसमें विद्यमान प्रोटीन जम जाती है तथा दूध दही के रूप में परिवर्तित हो जाता है। हाँडी में दही जमाने के लिए सामान्य तापक्रम वाले दूध में जामन लगाई जाती है। इस जामन में लैक्टिक (UPBoardSolutions.com) अम्ल तथा लैक्टोबेसीलाई बैक्टीरिया होते हैं जिनके प्रभाव से दूध में विद्यमान लैक्टोस लैक्टिक एसिड के रूप में बदल जाता है तथा दूध की कैनीन नामक प्रोटीन जम जाती है। दही दूध की अपेक्षा सुपाच्य होता है।

(5) मलाई एवं क्रीम:
उबले हुए दूध को ठण्डा करने पर इसकी सतह पर चिकनाईयुक्त मलाई जम जाती है। यान्त्रिक विधि द्वारा दूध को मथकर उससे क्रीम निकाली जाती है।

(6) मक्खन:
दही को मथने पर इसका हल्का भाग मक्खन के रूप में ऊपर तैरने लगता है। इसे ठण्डा करने पर यह जमकर ठोस मक्खन बन जाता है। मक्खन में वसा की मात्रा अत्यधिक होती है। सामान्य रूप से मक्खन में 85% भाग वसा ही होती है।

(7) छाछ अथवा मट्ठा:
मक्खन अलग हो जाने पर शेष दही छाछ अथवा मट्ठा कहलाती है।

(8) घी:
मक्खन को गर्म करके जलांश का वाष्पीकरण करने पर घी शेष बचता है। यह पूर्णरूप से वसा है। घी को बहुत समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है, क्योंकि इसमें जल की बिल्कुल भी मात्रा नहीं होती।

(9) पनीर:
दूध को दही, नींबू अथवा टाटरी से फाड़कर बारीक कपड़े में छानने पर इसका जलांश छन जाता है तथा पनीर शेष बचता है। वास्तव में दूध के फटने के साथ-साथ दूध में विद्यमान प्रोटीन थक्कों के रूप में जम जाती है तथा शेष भाग पानी के रूप में अलग हो जाता है। पनीर में मुख्य रूप से केसीन नामक प्रोटीन होता है।

(10) खोया अथवा मावा:
दूध को धीमी आँच पर वाष्पीकृत किया जाता है। अन्त में सम्पूर्ण जलांश दूर होने पर खोया शेष बचता है। खोया या मावा से विभिन्न मिठाइयाँ तथा अन्य व्यंजन बनाए जाते हैं। मावा एक गरिष्ठ खाद्य पदार्थ है। इसका पाचन मुश्किल से होता है।

दूध के पौष्टिक तत्त्व एवं उनका महत्त्व

  1.  दूध में लगभग 3.5% प्रोटीन होती है, जिसे केसीनोजन कहते हैं। दूध में (विशेषत: माता के दूध में) एक और महत्त्वपूर्ण प्रोटीन (लेक्टो-एल्ब्यूमिन) पाई जाती है। अत: प्रोटीनयुक्त दूध शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
  2.  दूध में 3.5-4% वसा घुलनशील रूप में उपस्थित होती है। यह अधिक सुपाच्य होती है तथा शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है।
  3.  दूध में कैल्सियम, पोटैशियम तथा फॉस्फोरस आदि तत्त्व पाए जाते हैं। आंशिक रूप से दूध में मैग्नीशियम, सोडियम तथा आयोडीन भी पाए जाते हैं। इनसे अस्थियाँ एवं स्नायु सुदृढ़ होते हैं तथा रक्त का संगठन ठीक बना रहता है।
  4. दूध में आंशिक रूप से लगभग सभी विटामिन पाए जाते हैं। दूध में विटामिन ‘ए’ एवं ‘डी’ अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इनके कारण दूध नेत्रों के लिए अति उपयोगी रहता है। दूध पीने वाले बच्चों को सूखा रोग एवं पुरुषों तथा महिलाओं को रतौंधी का भय नहीं रहता।
  5. दूध में 4-6% तक कार्बोज होता है। यह लैक्टोस अथवा दुग्ध-शर्करा के रूप में पाया जाता है। यह शरीर को स्वाभाविक ऊर्जा प्रदान करता है।
  6.  उपयुक्त मात्रा में जल होने के कारण दूध सुपाच्य होता है।
  7.  विभिन्न स्रोतों से प्राप्त दूध में पौष्टिक तत्वों की प्रतिशत मात्रा निम्न प्रकार से होती है

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उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि दूध में लगभग सभी पौष्टिक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं, जिसके फलस्वरूप दूध शरीर की लगभग सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है। अतः स्पष्ट है। कि दूध प्रत्येक दृष्टिकोण से एक सम्पूर्ण आहार है। दूध सभी वर्गों के व्यक्तियों के लिए उपयोगी आहार है। शैशवावस्था में तो दूध ही एकमात्र आहार होता है। नवजात शिशु के लिए माता का दूध ही एकमात्र आहार है। (UPBoardSolutions.com) बाल्यावस्था में शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए दूध का विशेष महत्त्व स्वीकार किया गया है। किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था तथा वृद्धावस्था में भी दूध का विशेष महत्त्व होता है। दूध एक सम्पूर्ण आहार है, यह सुपाच्य है तथा साथ-ही-साथ स्वादिष्ट भी होता है। दूध का उपयोग अनेक प्रकार से किया जा सकता है।

प्रश्न 10:
विभिन्न दालों का संगठन, वर्गीकरण और कार्य लिखिए।
उत्तर:
सामान्यतः उपयोग में आने वाली दालों में पाए जाने वाले आवश्यक पोषक पदार्थों के लिए अग्रांकित सारणी का अवलोकन करें
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दालों के कार्य

  1. दालें शाकाहारियों के लिए प्रोटीन का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। अतः ये शरीर के स्वास्थ्य एवं समुचित विकास तथा आवश्यक ऊर्जा एवं पाचक रसों के निर्माण के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं।
  2. दालों से प्रचुर मात्रा में कार्बोज की प्राप्ति होती है।
  3.  दालों से कई आवश्यक खनिज लवण मिलते हैं जो कि स्वस्थ शरीर के लिए बहुत आवश्यक हैं।
  4. भीगी हुई अंकुरित दालों से विटामिन ‘ए’, ‘बी’ व ‘सी’ प्राप्त होते हैं।
  5. मूंगफली से 40.1% तथा सोयाबीन से 19.5% खाद्य तेल प्राप्त होता है। इस प्रकार दालों से दैनिक जीवन के लिए आवश्यक खाद्य तेल भी प्राप्त होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
घर में अनाजों की सुरक्षा आप कैसे करेंगी?
उत्तर:
अधिकांश घर-परिवारों में सुविधा एवं बचत के दृष्टिकोण से पूरे वर्ष के व्यय के अनुसार फसल आने के समय अनाज क्रय कर लिया जाता है। अनाज को कीड़ों से सुरक्षित रखने के लिए कुछ उपाय किए जाते हैं। इनमें पारे की गोलियाँ डालना, नीम की सूखी पत्तियाँ रखना, सल्फास की गोलियों (UPBoardSolutions.com) को कपड़े में बाँधकर डालना इत्यादि कुछ महत्त्वपूर्ण उपाय हैं। इस प्रकार अनाज कीड़ों से सुरक्षित रहता है तथा इसे प्रयोग करने में स्वास्थ्य भी कुप्रभावित नहीं होता।

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प्रश्न 2:
सब्जियों को रक्षात्मक पदार्थ क्यों कहा जाता है?
या
हरी सब्जियों को खाने के चार लाभ बताइए।
उत्तर:
हरी सब्जियाँ रक्षात्मक भोजन हैं, क्योंकि ये विभिन्न खनिज लवणों तथा विटामिनों की उत्तम स्रोत हैं।

हरी सब्जियों के सेवन से लाभ

  1. हरी सब्जियाँ सस्ती होने पर भी स्वास्थ्य के लिए गुणकारी हैं।
  2.  इनका रंग एवं स्वाद भोजन को रुचिपूर्ण बनाता है।
  3.  इनका सेवन पाचन क्रिया को उत्प्रेरित करता है।
  4.  इनमें पाए जाने वाले खनिज तत्त्व; जैसे लोहा, फॉस्फोरस तथा विटामिन्स आदि हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करते हैं।
  5. सब्जियों में रेशे की मात्रा अधिक होती है; अतः इनके सेवन से सामान्य रूप से कब्ज की शिकायत नहीं होती।

प्रश्न 3:
टिप्पणी लिखिए-वसा और तेल-बीज।
उत्तर:
यदि हम अपने सम्पूर्ण आहार का विश्लेषण करें तो स्पष्ट हो जाएगा कि हमारे आहार में वसा तथा तेल-बीजों का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। तेल-बीजों की प्राप्ति का स्रोत वनस्पति जगत् ही है। तेल प्राप्ति के मुख्य स्रोत हैं—सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन, सूरजमुखी, बिनौला, नारियल तथा अरण्डी आदि। इन विभिन्न पौधों के बीजों से प्राप्त होने वाले तेल मुख्य रूप से वसी ही होते हैं। इन तेलों में वसा के अतिरिक्त कुछ अन्य पोषक तत्त्व भी न्यूनाधिक मात्रा में पाए जाते हैं। हम अपने आहार में तेल-बीजों से प्राप्त होने वाले वसी रूपी तेलों (UPBoardSolutions.com) को अनेक प्रकार से सम्मिलित करते हैं। अधिकांश व्यंजन तैयार करने के लिए तेलों को ही माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। तेलों के समावेश से आहार अधिक स्वादिष्ट भी बन जाता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना भी आवश्यक है कि तेलों के अधिक समावेश से हमारा आहार गरिष्ठ बन जाता है। इस प्रकार का आहार देर से तथा मुश्किल से पचता है, अतः कमजोर पाचन-शक्ति वाले व्यक्तियों को अधिक वसायुक्त तथा तले हुए भोज्य पदार्थों का केवल सीमित मात्रा में ही सेवन करना चाहिए। वसा एवं तेल-बीजों का अधिक सेवन उचित नहीं माना जाता।

प्रश्न 4:
गर्भवती स्त्री के लिए दूध क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
दूध में प्रोटीन, वसा, कार्बोज एवं लवण पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। दूध में विटामिन ‘ए’ एवं ‘डी’ आधिक्य में पाए जाते हैं, जिससे दूध नेत्रों के लिए अधिक उपयोगी रहता है। इससे बच्चों को सूखा रोग तथा पुरुष एवं महिलाओं को रतौंधी का भय नहीं रहता। दूध एक सम्पूर्ण, सन्तुलित एवं सुपाच्य आहार है। अतः गर्भवती स्त्री को स्वयं के एवं होने वाली सन्तान के स्वास्थ्य के लिए दूध का सेवन करना आवश्यक है।

प्रश्न 5:
अण्डे के पोषक तत्त्व बताइए। या अण्डे में मुख्य पौष्टिक तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
अण्डे में मुख्य पौष्टिक तत्त्वों की प्रतिशत मात्रा निम्न प्रकार से होती है

प्रोटीन                         13.50%
वसा                            13.70%
खनिज लवण               1.10%
कार्बोज                       0.70%
जल                             74. 40%
विटामिन ‘ए’ व ‘डी’      पर्याप्त मात्रा में

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प्रश्न 6:
मछली के भोजन में कौन-कौन से प्रमुख तत्त्व पाए जाते हैं?
उत्तर:
मछलियों में विभिन्न पौष्टिक तत्त्वों की प्रतिशत मात्रा निम्न प्रकार से होती है
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प्रश्न 7:
विटामिन ‘ए’ की कमी से कौन-कौन से रोग होते हैं?
या
विटामिन ‘ए’ की कमी से होने वाले तीन रोगों के नाम बताइए।
उत्तर:
विटामिन ‘ए’ की कमी से होने वाले रोग हैं

  1. नेत्र रोग जैसे कि रतौंधी।
  2. शारीरिक वृद्धि में गतिरोध।
  3.  त्वचा के रोग जैसे कि त्वचा का शुष्क होना अथवा शल्कीभवन।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
आहार से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
वह ठोस या तरल सामग्री आहार कहलाती है, जिसे ग्रहण करने से भूख मिटती है, शरीर शक्ति प्राप्त करता है, शरीर की वृद्धि एवं विकास होता है, शरीर के अन्दर होने वाली टूट-फूट की मरम्मत होती है तथा रोगों से लड़ने की क्षमता प्राप्त होती है।

प्रश्न 2:
वनस्पति जगत से प्राप्त होने वाले प्रमुख खाद्य-पदार्थ कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
वनस्पति जगत से प्राप्त होने वाले प्रमुख खाद्य-पदार्थ हैं-अनाज, दालें, संब्जियाँ तथा फल।

प्रश्न 3:
प्राणी जगत से प्राप्त होने वाले प्रमुख खाद्य-पदार्थ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
प्राणी जगत से प्राप्त होने वाले प्रमुख खाद्य-पदार्थ हैं दूध, मांस तथा अण्डे।

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प्रश्न 4:
आहार के आवश्यक पोषक तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आहार के आवश्यक पोषक तत्त्व हैं—प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, विटामिन, खनिज तथा जल।

प्रश्न 5:
ऐसे तीन फलों के नाम लिखिए जिनमें विटामिन ‘सी’ पाया जाता है।
उत्तर:

  1.  सन्तरा,
  2.  मौसमी,
  3.  नींबू।

प्रश्न 6:
दालों का आहार में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
दालों में प्रोटीन अधिक होती है; अतः शाकाहारी व्यक्तियों के लिए ये अति महत्त्वपूर्ण आहार है।

प्रश्न 7:
सोयाबीन स्वास्थ्य के लिए क्यों उपयोगी है?
उत्तर:
सोयाबीन में प्रोटीन की मात्रा सर्वाधिक होती है; अतः इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए अति उपयोगी है।

प्रश्न 8:
स्कर्वी रोग किस विटामिन की कमी से होता है? या विटामिन ‘सी’ की कमी से कौन-सा रोग होता है?
उत्तर:
शरीर में विटामिन ‘सी’ की कमी से स्कर्वी नामक रोग हो जाता है।

प्रश्न 9:
सोयाबीन में कौन-सा तत्त्व प्रमुख रूप से पाया जाता है?
उत्तर:
सोयाबीन में प्रोटीन तत्त्व 43.5% पाया जाता है।

प्रश्न 10:
कार्बोज का क्या संगठन है?
उत्तर:
ये कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से निर्मित यौगिक होते हैं, जिनमें हाइड्रोजन और ऑक्सीजन सदैव 2 : 1 में होते हैं।

प्रश्न 11:
कार्बोहाइड्रेट का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर:
कार्बोहाइड्रेट का मुख्य कार्य शरीर को ऊर्जा प्रदान करना है।

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प्रश्न 12:
शरीर में वसा के मुख्य कार्य क्या हैं?
उत्तर:
वसा शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है, सुरक्षा प्रदान करती है, ताप का नियमन करती है तथा शरीर को सुडौल बनाती है।

प्रश्न 13:
वसा की अधिकता से क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
वसा की अधिकता से व्यक्ति मोटापे अथवा ओबेसिटी का शिकार हो जाता है।

प्रश्न 14:
दूध में कौन-कौन से विटामिन पाए जाते हैं?
उत्तर:
दूध में विटामिन ‘ए’ एवं ‘डी’ पाए जाते हैं।

प्रश्न 15:
दूध में किस विटामिन का प्रायः अभाव ही होता है ?
उत्तर:
दूध में विटामिन ‘सी’ का प्रायः अभाव ही होता है।

प्रश्न 16:
फलों का आहार में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
फलों से हमें शक्तिवर्द्धक शर्करा (ग्लूकोस) तथा रोग-प्रतिरोधक विटामिन ‘ए’, ‘बी’ व ‘सी’ तथा विभिन्न खनिज लवण प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 17:
रोग-प्रतिरोधक विटामिन का नाम बताइए।
उत्तर:
विटामिन ‘ए’, ‘बी’ व ‘सी’ हमें रोग-प्रतिरोधक शक्ति प्रदान करते हैं।

प्रश्न 18:
किस विटामिन की कमी होने पर मनुष्य रतौंध से ग्रस्त होता है?
उत्तर:
विटामिन ‘ए’ की कमी होने पर मनुष्य रतौंधी से ग्रस्त हो जाता है।

प्रश्न 19:
विटामिन ‘बी’ की कमी से कौन-सा रोग होता है?
उत्तर:
विटामिन ‘बी’ की कमी से बेरी-बेरी नामक रोग हो जाता है।

प्रश्न 20:
विटामिन डी की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है?
उत्तर:
विटामिन डी की कमी से ‘रिकेट्स’ या ‘अस्थि-विकृति’ नामक रोग हो जाता है।

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प्रश्न 21:
विटामिन ‘डी’ को आहार के अतिरिक्त किस स्रोत से भी प्राप्त किया जा सकता है?
उत्तर:
विटामिन ‘डी’ को आहार के अतिरिक्त सूर्य के प्रकाश के प्रभाव से भी शरीर द्वारा विकसित किया जा सकता है।

प्रश्न 22:
प्रोटीन का क्या कार्य है?
उत्तर:
शरीर के तन्तुओं, नाड़ियों तथा आन्तरिक अंगों का निर्माण एवं उनकी टूटे-फूट की क्षतिपूर्ति करना प्रोटीन का मुख्य कार्य है।

प्रश्न 23:
प्रोटीन की कमी से बच्चों में कौन-से रोग हो जाते हैं?
उत्तर:
प्रोटीन की कमी से बच्चों में क्वॉशरकार तथा मरास्मस नामक रोग हो जाते हैं।

प्रश्न 24:
हरी पत्ते वाली सब्जियों में कौन-से पोषक तत्त्व मिलते हैं?
उत्तर:
हरी पत्ते वाली सब्जियों में विटामिन (विशेष रूप से ‘सी’) व खनिज लवण भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।

प्रश्न 25:
आयोडीन की कमी से शरीर में क्या हानि होती है?
उत्तर:
आयोडीन की कमी से

  1. बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास रूक जाता है,
  2.  गले में थायरॉइड ग्रन्थि के बढ़ जाने के कारण गलगण्ड अथवा घेघा नामक रोग हो जाता है।

प्रश्न 26:
दूध को सम्पूर्ण आहार क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
हमारे आहार के लगभग सभी आवश्यक पोषक तत्त्व दूध में समुचित मात्रा तथा अनुपात में विद्यमान होते हैं, अतः इस तथ्य के आधार पर दूध को सम्पूर्ण आहार माना जाता है।

प्रश्न 27:
बच्चों के लिए दूध क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
दूध बच्चों के लिए सुपाच्य आहार होता है तथा उनकी स्वाभाविक वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है, अत: बच्चों के लिए दूध आवश्यक माना जाता है।

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प्रश्न 28:
उत्तेजक पेय पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
चाय, कॉफी तथा कोको सामान्य उत्तेजक पेय पदार्थ हैं।

प्रश्न 29:
चाय का अधिक प्रयोग क्यों हानिकारक है?
उत्तर:
चाय के अधिक प्रयोग से हमारी भूख पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, नींद घटती है तथा पेट में गैस एवं जलन की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इन्हीं कारणों से चाय का अधिक प्रयोग हानिकारक माना जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न में चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) विटामिन ‘सी’ की कमी से कौन-सा रोग होता है?
(क) जुकाम,
(ख) स्कर्वी,
(ग) रिकेट्स,
(घ) बेरी-बेरी।

(2) विटामिन ‘ए’ अधिक पाया जाता है
(क) पालक के साग में,
(ख) कहूं में,
(ग) मूली में,
(घ) प्याज में।

(3) आयोडीन लवण की कमी से कौन-सा रोग होता है?
(क) घेघा रोग,
(ख) टिटेनस,
(ग) मलेरिया,
(घ) स्कर्वी।

(4) जल में घुलनशील विटामिन कौन-सा है?
(क) ‘ए’,
(ख) ‘बी’,
(ग) ‘ई’,
(घ) ‘डी’।

(5) अण्डे में भोजन के किस तत्त्व का अभाव होता है?
(क) वसा,
(ख) कार्बोज,
(ग) प्रोटीन,
(घ) विटामिन।

(6) अनाज के अंकुर में कौन-सा तत्त्वे रहता है?
(क) खनिज लवण,
(ख) विटामिन,
(ग) वसा,
(घ) प्रोटीन।

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(7) शाक-भाजी किन भोज्य पदार्थों की श्रेणी में आते हैं?
(क) रक्षात्मक,
(ख) शक्तिदायक,
(ग) वृद्धिकारक,
(घ) स्वादिष्ट।

(8) भोजन में ऊर्जा का मुख्य साधन क्या है?
(क) कार्बोज,
(ख) खनिज लवण,
(ग) वसा,
(घ) प्रोटीन।

(9) इनमें से कौन-सा आहार सम्पूर्ण है?
(क) फल,
(ख) दूध,
(ग) दही,
(घ) मांस।

(10) सोयाबीन में सबसे अधिक क्या पाया जाता है?
(क) शक्तिवर्द्धक तत्त्व,
(ख) प्रोटीन,
(ग) कार्बोज,
(घ) विटामिन।

(11) विटामिन ‘डी’ की कमी से कौन-सा रोग होता है?
(क) जुकाम,
(ख) स्कर्वी,
(ग) रिकेट्स,
(घ) बेरी-बेरी।

(12) खट्टे रसदार फलों में कौन-सा विटामिनं पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
(क) विटामिन ‘ए’,
(ख) विटामिन ‘बी’,
(ग) विटामिन सी,
(घ) विटामिन ‘डी’।

(13) विटामिन बी, की कमी से कौन-सा रोग होता है?
(क) घेघा,
(ख) रिकेट्स,
(ग) बेरी-बेरी,
(घ) स्कर्वी।

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(14) विटामिन ‘डी’ किसमें पाया जाता है?
(क) फलों में,
(ख) हरी सब्जियों में,
(ग) अल्ट्रावायलेट रेज में,
(घ) मसालों में।

उत्तर:
(1) (ख) स्कर्वी,
(2) (ग) मूली में,
(3) (क) घेघा रोग,
(4) (ख) बी,
(5) (ख) कार्बोज,
(6) (ख) विटामिन,
(7) (क) रक्षात्मक,
(8) (क) कार्बोज,
(9) (ख) दूध,
(10) (ख) प्रोटीन,
(11) (ग) रिकेट्स,
(12) (ग) विटामिन ‘सी’,
(13) (ग) बेरी-बेरी,
(14) (ग) अल्ट्रावायलेट रेज में।

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UP Board Solutions for Class 8 Home Craft Chapter 4 सामान्य बीमारियाँ एवं बचाव

UP Board Solutions for Class 8 Home Craft Chapter 4 सामान्य बीमारियाँ एवं बचाव

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पाठ-4   सामान्य बीमारियाँ एवं बचाव
अभ्यास

1. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
(1) सही मिलान करिए
UP Board Solutions for Class 8 Home Craft Chapter 4 सामान्य बीमारियाँ एवं बचाव image 1

(2) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर :
(क) विश्व मलेरिया दिवस 25 अप्रैल को मनाया जाता है।
(ख) चिकनगुनिया एडीज एजिट टी मच्छर के काटने से होता है।
(ग) मस्तिष्क ज्वर का प्रकोप जुलाई से अक्टूबर माह में अधिक होता है।

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2. अति लघु उत्तरीय प्रश्न ।
(क) मलेरिया किस मच्छर के काटने से होता है?
उत्तर : मलेरिया रोग एनोफलीज मादा मच्छर के काटने से होता है। यह (UPBoardSolutions.com) मच्छर जब स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो उसके रक्त में मलेरिया के कीटाणु प्रवेश करके रोग उत्पन्न करते हैं।

(ख) निमोनिया में कौन सा अंग प्रभावित होता है?
उत्तर : निमोनिया में प्रायः एक ही फेफड़ा प्रभावित होता है। कभी-कभी दोनों ही फेफड़ा साथ-साथ या एक के बाद एक रोग से प्रभावित होता है।
(ग)  इ०ई०एस० का पूरा नाम क्या है।
उत्तर : एक्यूट इन्सिफेलाइटिस सिण्ड्रोम।

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3. लघु उत्तरीय प्रश्न ।
(क) जुकाम होने के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर : जुकाम के कारण

  1. तापमान में परिवर्तन- बन्द तथा गर्म स्थान से खुली ठण्डी जगह में आना।
  2. मुख, नाक व गर्दन में दोष पैदा होना।

(ख) डेंगू बुखार के कोई चार लक्षण लिखिए।
उत्तर :

  1. कभी-कभी रोगी के शरीर में आंतरिक रक्तस्राव भी होता है, जिससे शरीर में प्लेट्लेट्स का स्तर कम हो जाता है।
  2. सरदर्द, आँखों में दर्द, बदन दर्द, जोड़ों में दर्द होना।
  3. भूख कम लगना, जी मिचलाना; दस्त लगना।।
  4. त्वचा पर लाल (UPBoardSolutions.com) चकत्ते आना।

4. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(क) चिकनगुनिया के रोग के लक्षण एवं उससे बचने के उपाय लिखिए।
उत्तर : लक्षण

  • सिर दर्द, जुकाम व खाँसी ।
  • जोड़ों में दर्द व सूजन।
  •  तेज बुखार, नींद न आना।
  • शरीर पर लाल रंग के चकत्ते का होना।
  • आँखों में दर्द व कमजोरी।

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(ख) मस्तिष्क ज्वर के कारण एवं लक्षण लिखिए।
उत्तर : कारण

  1. यह रोग फ्लेविवायरस से संक्रमित मच्छर के काटने से फैलता है। इस रोग का प्रकोप वर्षा ऋतु एवं उसके उपरांत (जुलाई से अक्टूबर) अधिक होता है, जिस समय मच्छरों की संख्या अधिक होता है।
  2. जापानी इन्सिफेलाइटिस वायरस के मुख्य वाहक (UPBoardSolutions.com) सुअर हैं। यदि एक भी मच्छर इन्हें काटने के बाद स्वस्थ व्यक्ति को काट ले तो इस रोग का संक्रमण उस व्यक्ति को हो जाता है।

कारण

  • तेज बुखार आना, चिड़िचिड़ापन होना।
  •  सिर में तेज दर्द, शरीर में थकावट होना।
  • बोलने में परेशानी होना।
  • आँखें लाल एवं चढ़ी-चढ़ी होना।
  • बेहोशी आना।
  •  दाँत बँध जाना। हाथ-पैरों में अकड़न
  • झटके लगना एवं मुँह से झाग निकलन

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प्रोजेक्ट कार्य :
नोट : विद्यार्थी स्वयं करें।

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Safety Saves Class 6 English Chapter 12 Question Answer UP Board Solutions

UP Board Class 6th English Chapter 12 Safety Saves Questions and Answers

कक्षा 6 अंग्रेजी पाठ 12 के प्रश्न उत्तर

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 6 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 6 English Chapter 12 Safety Saves.

Safety Saves

TRANSLATION OF THE LESSON (पाठ का हिन्दी अनुवाद)

Kunal was ……………………………………. follow it.
हिन्दी अनुवाद – कुनाले एक लापरवाह लड़का था। वह ज्यादातर काम लापवाही से करता था। उसके माता-पिता हमेशा उसे लापरवाही के लिए डाँटते रहते थे। एक सुबह, वह बहुत परेशान था क्योंकि उसे अपनी कमल नहीं मिल रही थी। उसे अंग्रेजी की परीक्षा के लिए कलम की आवश्यकता थी। उसने प्रत्येक स्थान पर उसे ढूँढा परन्तु उसे कहीं न मिली। क्योंकि विद्यालय जाने के लिए देर हो रही थी, वह बस पकड़ने के लिए सड़क पर तेज़ी से भागा । उसने एक बड़ी लाल ।

बस को बस स्टॉप से निकलते देखा। वह उसके पीछे भागा और चलती बस में कूदकर चढ़ गया। (एक बूढ़ा आदमी जो बस में बैठा था कहता है)। (UPBoardSolutions.com)
बूढ़ा आदमी : क्या तुम नहीं जानते, एक चलती बस को पकड़ने की कोशिश जानलेवा हो सकती है?
कुनाल : मैं जल्दी में हूँ। आज मेरी परीक्षा है। मैं अपनी परीक्षा को छोड़ना नहीं चाहता था।
बूढ़ा आदमी : अपने बाकी बचे जीवन को छोड़ देने से बेहतर है.एक परीक्षा छोड़ देना।
कुनाल : माफ कीजिए श्रीमान्, मैं इसे ध्यान में रखेंगा और पालन करूँगा।

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The bus ……………………………. much ma’am.
हिन्दी अनुवाद – बस में बहुत भीड़ थी। कुनाल ने अपने मित्रों को ढूंढा परन्तु वहाँ कोई नहीं था। उसने पाया कि वह गलत बस में चढ़ गया था। उसका चेहरा पीला पड़ गया। वह चलती बस से नीचे कूद गया। वह धूड़ाम से सड़क पर गिरा। पीछे से स्कूटर आ रहा था। वह उससे कुछ इंच की दूरी पर सका। स्कूटर चलाने वाली महिला चिल्लाती हुई बोली
महिला : क्या तुम अपने को चोट पहुँचाना चाहते हो? (UPBoardSolutions.com)
कुनाल : नहीं, मैडम। मुझे क्षमा कीजिए। मुझे स्कूल के लिए देर हो रही है।
महिला : इसका मतलब है कि तुम बस से कूद जाओगे? क्या तुम नहीं जानते कि चलती बस से नीचे कूदना खतरनाक है? (कुनाल ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। उसे बुरी तरह से चोट आई थी। उसने उस महिला को सारी घटना सुनाई। उसने ध्यान से पूरी घटना सुनी ।) ।
महिला : याद रखो, ‘सुरक्षित’ होना हमेशा ‘अफसोस करने से बेहतर है।
कुनाल : अब मैं क्या करूँ, मैडम? क्या आप कृपया करके मुझे डॉक्टर के पास ले जाएंगी?
महिला : बिल्कुल! ऐसी परिस्थितियों में मैं तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकती।
कुनाल : बहुत बहुत धन्यवाद आपका मैडम्।

On the way……………………………… becareless.
हिन्दी अनुवाद – रास्ते में महिला ने कुनाल को एक कविता सुनाई कभी सड़क पर मत खेलों, कभी सड़क पर मत दौड़ो, कभी समूह में मत चलो, कभी यातायात-नियमों को मत तोड़ो। कभी बस से मत कूदो, कभी चलती बस पर मत चढ़ो, कभी अपने हाथ या सिर बाहर मत निकालो, कभी मत चीखो-चिल्लाओ। यह सब करके तुम सदैव सुरक्षित रहोगे, तुम और तुम्हारे आसपास सभी सुरक्षित होंगे।

कुनाल एक सबक सीख चुका था। उसने दोबारा कभी लापरवाही न करने का वादा किया।

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EXERCISE (अभ्यास)

Comprehension Questions

Question 1.
Answer the following questlons :
Answer:
Question a.
What kind of a boy was Kunal?
Answer:
Kunal was a careless boy.

Question b.
Why did Kunal need a pen?
Answer:
Kunal needed a pen to write his English test.

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Question c.
Why is it dangerous to catch a running bus?
Answer:
It is dangerous to catch a running buz because we may trip, fall and injure ourselves . badly. It can also lead to death.

Question d.
Why did Kunal jump off the bus?
Answer:
When Kunal found out he was on the wrong bus, his face turned pale and he jumped off the bus.

Question e.
How did the woman help Kunal?
Answer:
The woman offered Kunal a lift and took him to the doctor as he was injured.

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Question f.
What lesson did Kunal learn?
Answer:
Kunal learned a lesson on road safety rules that one should follow for one’s own safety as well as everyone’s safety.

Word Power

Question 1.
Underline the silent letters in the given words:
Answer:
UP Board Solutions for Class 6 English Chapter 12 Safety Saves img-1

Language Practice

Question 1.
Make new words by adding ‘ly’ to the following. One is done for you-
Sad + ly = sadly
Answer:

  1. loudly
  2. carelessly.
  3. badly .
  4. carefully
  5. lightly
  6. beautifully
  7. friendly
  8. weekly
  9. monthly
  10. yearly

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Question 2.
Fill in the blanks with the correct adverbs :
Answer:
a. She sings sweetly.           (sweetly/neatly)
b. She speaks clearly.         (highly/clearly)
c. He shouts loudly.           (sadly/loudly)
d. He writes neatly.             (neatly/brightly)
e. A tortoise walks slowly. (badly/slowly)

Activity
Do it yourself.

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