UP Board Solutions for Class 4 Hindi Kalrav Chapter 11 टोकरी में क्या है?

UP Board Solutions for Class 4 Hindi Kalrav Chapter 11 टोकरी में क्या है?

टोकरी में क्या है? शब्दार्थ

आकृति = आकार, रूप
माल्टा = एक विशेष फल
करीब-करीब = लगभग, आसपास
शाबाश = खुश रहो, बहुत अच्छा।

टोकरी में क्या है? पाठ का सारांश

गर्मी की छुट्टी के आखिरी दिन अदिति नानी के पास से अपने गाँव लौट रही है। नानी ने एक टोकरी अदिति को दी। अदिति टोकरी में रखी चीज के विषय में पूछती है। नानी अनुमान लगाने के लिए कहती है। अदिति सोचती है। उसके विचार से टोकरी में मिठाई है या फल। नानी कहती है, ‘मिठाई नहीं फल है।’ अदिति सोचकर बताती है कि टोकरी में सेब होंगे। नानी इससे भी सहमत नहीं। अदिति नानी से पूछती है कि यह फल छोटे पौधे पर लगता है या पेड़ पर। नानी बताती है कि पेड़ पर लगता है। अदिति फिर नारंगी बताती है। नानी ‘ना’ कहती हैं। अदिति पूछती है कि फल पीला है या लाल। नानी ने कहा- ‘पीला’। अदिति उसे आम बताती है; परंतु नानी कहती हैं कि यह आम भी नहीं है।

अदिति फिर अमरूद का नाम लेती है; परंतु नानी कुछ और कहती है। अदिति उस फल का स्वाद पूछती है। नानी इसका स्वाद खट्टा बताती है। अदिति फौरन माल्टा कहती है। नानी ने थोड़ा और प्रयास करने को कहा। अदिति ने नानी से पूछा कि यह किस काम आता है। नानी का उत्तर था- ‘अचार या शरबत बनाने के काम आता है।’ अदिति ने फौरन उसे नींबू बताया और नानी ने उसे शाबाशी दी।

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टोकरी में क्या है? अभ्यास प्रश्न  

प्रश्न १.
उत्तर दो
(क) अदिति कहाँ रहती है?
उत्तर:
अदिति गाँव में रहती है।

(ख) क्या अदिति की नानी उसके साथ रहती हैं?
उत्तर:
नहीं, नानी अपने घर रहती हैं।

(ग) क्या अदिति फल को खोज पाई?
उत्तर:
हाँ, अदिति फल को खोज पाई।

(घ) वह फल कौन-सा था?
उत्तर:
वह फल नींबू था।

प्रश्न २.
नीचे लिखी पहेली को बूझो और पूरा करो- पहेली का उत्तर ‘मूली’ है। अब प्रश्नों का उत्तर देने में प्रतीक्षा की सहायता करो
दीक्षा – मैंने बाजार से कुछ खरीदा। यह मेरे थैले में है।
प्रतीक्षा – यह फल होगा या सब्जी?
दीक्षा – यह सब्जी है।
प्रतीक्षा – यह जमीन के ऊपर उगता है या अंदर?
दीक्षा – यह जमीन के अंदर उगता है।
प्रतीक्षा – यह सफेद है या रंगीन?
दीक्षा – यह सफेद है। प्रतीक्षा-तब यह मूली है।

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एक पहेली और
यहाँ तुम्हें प्रश्न बनाने हैं। उनके उत्तर दिए गए हैं। कोष्ठक में दिए गए संकेतों का उपयोग कर सुमन को प्रश्न बनाने में मदद करो
विमल – मेरे पास एक जानवर की तस्वीर है। क्या तुम बता सकती हो कि यह तस्वीर किसकी है?
सुमन – क्या यह जंगल में रहता है?
विमल – नहीं, यह घर में रहता है।
सुमन – क्या यह मांस खाता है?
विमल – नहीं, यह घास खाता है।
सुमन -विमल-नहीं इसके सींग नहीं होते हैं।
सुमन – क्या यह तेज दौड़ता है?
विमल – हाँ, यह तेज रफ्तार से दौड़ता है।
सुमन – क्या यह ताँगा खींचता है?
विमल – हाँ, यह ताँगा खींचता है।
सुमन – तब यह एक घोड़े की तस्वीर है।

अब करने की बारी

प्रश्न १.
इस प्रकार की पहेलियाँ तुम भी बनाकर अपने मित्रों से पूछो और आनंद लो।
नोट -विद्याथी स्वयं पहेली बनाएँ।

प्रश्न २.
(क) इसके ऊपर ताल बनाओ, इसके ऊपर नहरें, इसके ऊपर नदियाँ बहतीं, जिनमें उठती लहरें। कोई इसमें बाग लगाता कोई करता खेती, यह सबको देती है सब कुछ, पर किससे क्या लेती?
प्रश्न – बताओ कौन?
उत्तर:
पृथ्वी

(ख) बादल लेकर उड़ती हूँ, नहीं किसी को दिखती हूँ।
प्रश्न-बताओ-क्या?
उत्तर:
हवा

(ग) एक पहेली तुम भी ढूँढ़कर लिखो
नोट – विद्यार्थी पहेली स्वयं ढूँढकर लिखें।

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UP Board Solutions for Class 2 English Chapter 1 Capita Letters & Sounds

UP Board Solutions for Class 2 English Chapter 1 Capita Letters & Sounds (बड़े अक्षर और ध्वनियाँ)

Capita Letters & Sounds Activity 

Let us learn capital Alphabet
आइए बड़ी वर्णमाला सीखें।
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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 उपसर्ग-प्रकरण (व्याकरण)

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 7
Chapter Name उपसर्ग-प्रकरण (व्याकरण)
Number of Questions Solved 18
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 उपसर्ग-प्रकरण (व्याकरण)

जो शब्दांश धातु, संज्ञा और विशेषणादि के पूर्व जोड़े जाकर उनके अर्थ में विशेषता उत्पन्न कर देते हैं या सर्वथा अर्थ को बदल देते हैं, उन्हें उपसर्ग कहते हैं; जैसे-‘हार’ से पूर्व (प्र + हार), आ (आ + हार), सम् (सम् + हार), वि (वि * हार), परि (परि + हार)। उपसर्ग लगाने से धातु के अर्थों में अन्तर आ जाता है।

संस्कृत में कुल 22 उपसर्ग माने जाते हैं। उनके नाम और अर्थ इस प्रकार हैं–प्र (अधिक), परा (उल्टा, पीछे), अप (दूर, हीनता, न्यूनता, बुरा), सम् (अच्छी तरह), अनु (पीछे), अव (नीचे, दूर), निस् (बिना, बाहर), निर् (बाहर), दुस् (कठिन), दुर् (बुरा), वि (बिना, अलग), आ-आ (तक, कम), नि (नीचे, निषेध), अधि (ऊपर, श्रेष्ठ), अपि (निकट), अति (बहुत), सु (सुन्दर), उत् (ऊपर); अभि (सामने, ओर), प्रति (ओर, उल्टा), परि. (चारों ओर), उप (निकट)।
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लघुउतरिय प्रश्न संस्कृत व्याकरण

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का अर्थ लिखिए
(अ) सर्वे छात्राः इदानीम् उद्याने विहरन्ति।
(आ) ते उद्यानात् बहूनि फलानि आहरन्ति।
(इ) यदा कोऽपि पशुः उद्याने प्रविशति, उद्यानपालकः तान् लगुडेन प्रहरति।
(ई) अत्र सेवकाः नित्यं जलम् आनयन्ति। ते पादपान् सिञ्चन्ति। समयेन ते फलानि प्रतीक्षन्ते।
(उ) उद्यानपालकः बहु श्रम करोति।
(ऊ) तस्य पुत्रः तम् अनुकरोति।
(ए) यः कोऽपि कार्यं करोति, सः फलं प्राप्नोति।
(ऐ) अध्यापका बालान् उपकरोति, तेषां दुर्वचनानि तिरस्करोति।।
उत्तर:
(अ) सभी छात्र इस समय उद्यान में विहार कर रहे हैं।
(आ) वे उद्यान से बहुत फलों को लेते हैं।
(इ) जब कोई भी पशु उद्यान में प्रवेश करता है, उद्यानपालक (माली) उनको डण्डे के द्वारा मारता है।
(ई) यहाँ सेवक नित्य जल लेने आते हैं। वे पौधों को सींचते हैं। वे समय से फलों की प्रतीक्षा करते हैं।
(उ) उद्यानपालक (माली) बहुत मेहनत करता है।
(ऊ) उसका पुत्रं उसका अनुकरण करती है।
(ए) जो कोई भी कार्य करता है, वह फल प्राप्त करता है।
(ऐ) अध्यापक बालकों का उपकार करता है, उनके दुर्वचनों को दूर करता है।

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प्रश्न 2.
‘उद्यानम्’ पर पाँच वाक्य संस्कृत में लिखिए।
उत्तर:
‘उद्यानम्’ पर पाँच वाक्य निबन्ध-प्रकरण के अन्तर्गत ‘उद्यानम्’ शीर्षक निबन्ध से चुनकर स्वयं लिखिए।

वजनिक प्रश्नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए—
प्रश्न 1.
‘आगच्छति’ शब्द का क्या अर्थ है?
(क) जाता है।
(ख) आता है।
(ग) लौटता है।
(घ) दूर जाता है।

प्रश्न 2.
‘उप’ उपसर्ग का सामान्यतः क्या अर्थ होता है?
(क) छोटा
(ख) निषेध
(ग) विरोध
(घ) अधिक

प्रश्न 3.
‘उद्भवति’ शब्द का क्या अर्थ है?
(क) होता है।
(ख) छिपाता है।
(ग) हराता है।
(घ) उत्पन्न होता है

प्रश्न 4.
उत्पत्ति’ शब्द का क्या अर्थ है?
(क) उड़ता है।
(ख) बैठता है।
(घ) चढ़ता है

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प्रश्न 5.
अध्यक्ष’ शब्द में कौन-सा उपसर्ग लगा है?
(क) अति
(ख) अभि
(घ) अध्य

प्रश्न 6.
‘अति’ उपसर्ग का क्या अर्थ है?
(क) पास
(ख) अधिक
(घ) अच्छा

प्रश्न 7.
‘नि’ उपसर्ग से कौन-सा अर्थ है?
(क) सम्मुख
(ख) श्रेष्ठ
(ग) निषेध
(घ) ऊपर

प्रश्न 8.
‘x’ उपसर्ग से कौन-सा अर्थ ध्वनित होता है?
(क) बुरा
(ख) सम्मुख
(ग) श्रेष्ठ
(घ) ऊपर

प्रश्न 9.
‘सु’ उपसर्ग का कौन-सा अर्थ उचित है?
(क) ऊपर
(ख) अच्छा
(ग) ऊँची
(घ) नीचा

प्रश्न 10.
‘प्रत्यासीदति’ के लिए कौन-सा विकल्प उपयुक्त है?
(क) प्रति
(ख) आ
(ग) प्रति और आ
(घ) प्रत्या

प्रश्न 11.
‘प्रवर्तते’ शब्द का कौन-सा अर्थ उचित है?
(क) देखता है
(ख) वापस जाता है।
(ग) घूमता है।
(घ) शुरू होता है।

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प्रश्न 12.
‘विप्रवदति’ का कौन-सा अर्थ सर्वोपयुक्त है?
(क) झगड़ता हैं।
(ख) ब्राह्मण कहता है।
(ग) चापलूसी करता है।
(घ) उत्तर देता है

प्रश्न 13.
‘परिसरति’ शब्द किस उपसर्ग-धातु के योग से बना है? .
(क) परि और सृ
(ख) प्र और सरति
(ग) परिसर और ति
(घ) परि और सरति

प्रश्न 14.
‘आक्रमति’ शब्द का कौन-सा अर्थ उचित है?
(क) निकलती है।
(ख) आक्रमण करता है।
(ग) मारता है।
(घ) ऊपर जाता है।

प्रश्न 15.
‘समास्यति’ शब्द का क्या अर्थ है?
(क) हराता है
(ख) संक्षिप्त करता है
(ग) जीतता है।
(घ) विलीन होता है।

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प्रश्न 16.
‘परि’ उपसर्ग का कौन-सा अर्थ नहीं है?
(क) आस-पास
(ख) चारों ओर
(ग) बाहर
(घ) पूर्ण
उत्तर:
1. (ख) आता है, 2. (क) छोटा, 3. (घ) उत्पन्न होता है, 4. (क) उड़ता है, 5. (ग) अधि, 6. (ख) अधिक, 7. (ग) निषेध, 8. (घ) ऊपर, 9. (ख) अच्छा , 10. (ग) प्रति और 
आ, 11. (घ)शुरू होता है, 12. (क) झगड़ता है, 13. (क) परि और से, 14. (घ) ऊपर जाता है, 15. (ख) संक्षिप्त करती है, 16. (ग) बाहर।

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi गद्य-साहित्य का विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name 173द्य-साहित्य का विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
Number of Questions 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi गद्य-साहित्य का विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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प्रश्न 8.
‘अष्टयाम’ की कौन-सी भाषा है ?
उत्तर:
‘अष्टयाम’ शीर्षक से चार लोगों-खुमान, हितहरिवंश, देव, नाभादास–ने रचनाएँ की हैं। इन चारों ही ‘अष्टयाम’ की भाषा ब्रजभाषा है।।

प्रश्न 9.
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प्रश्न 10.
भारतेन्दु युग के किन्हीं दो लेखकों की दो-दो कृतियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
(1) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र–

  • वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति तथा
  • अकबर और औरंगजेब।

(2) प्रतापनारायण मिश्र–

  • हठी हम्मीर तथा
  • देशी कपड़ा।

प्रश्न 11.
भारतेन्दु युग से पूर्व किन दो राजाओं ने हिन्दी गद्य के निर्माण में योग दिया ?
या
हिन्दी गद्य की उर्दूप्रधान तथा संस्कृतप्रधान शैलियों के पक्षधर दो राजाओं के नाम लिखिए।
या
भारतेन्दु के उदय से पूर्व की खड़ी बोली के दो भिन्न शैलीकार गद्य-लेखकों के नाम लिखिए।

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प्रश्न 12.
हिन्दी गद्य के विकास में ईसाई धर्म-प्रचारकों के योगदान का उल्लेख कीजिए।
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प्रश्न 13.
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प्रश्न 14.
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प्रश्न 15.
खड़ी बोली गद्य का व्यवस्थित विकास कब हुआ ?
उत्तर:
खड़ी बोली गद्य को व्यवस्थित विकास भारतेन्दु युग में हुआ।

प्रश्न 16.
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प्रश्न 17.
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उत्तर:
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प्रश्न 18.
भारतेन्दु युग में किन गद्य-विधाओं का विकास हुआ ?
उत्तर:
भारतेन्दु युग में नाटक, कहानी, उपन्यास एवं निबन्ध गद्य-विधाओं का विकास हुआ।

प्रश्न 19.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो पत्रिकाओं के सम्पादकों के नाम लिखिए-
(1) आनन्द कादम्बिनी
(2) हरिश्चन्द्र चन्द्रिका
(3) नया जीवन
उत्तर:

  1. आनन्द कादम्बिनी – सम्पादक : बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’
  2. हरिश्चन्द्र चन्द्रिका – सम्पादक : भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
  3. नया जीवन – सम्पादक : कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’

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प्रश्न 32.
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प्रश्न 33.
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प्रश्न 34.
मुंशी सदासुखलाल की भाषा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. भाषा में अस्पष्टता अधिक है तथा
  2. वाक्य-रचना पर फारसी शैली का प्रभाव है।

प्रश्न 35.
हिन्दी खड़ी बोली गद्य-साहित्य के विकास में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का योगदान बताइए।
या
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के गद्य की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने लोक-प्रचलित शब्दावली, कहावतों, लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रभावपूर्ण प्रयोग से अपनी भाषा को अधिकाधिक सशक्त एवं सजीव बनाया तथा नाटक, कहानी, निबन्ध 
आदि अनेक गद्य-विधाओं में रचनाएँ कीं। इसलिए इन्हें हिन्दी खड़ी बोली गद्य का जनक’ भी कहा जाता है।

प्रश्न 36.
छायावादी युग के गद्य की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. छायावादी युग का गद्य कलात्मक है तथा
  2. उसमें विशिष्ट अभिव्यंजना शक्ति, कल्पना की प्रधानता, स्वच्छन्द चेतना, अनुभूति की सघनता और भावुकता विद्यमान है।

प्रश्न 37.
किन्हीं दो छायावादी पद्य-लेखकों की एक-एक गद्य रचना का नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. जयशंकर प्रसाद — चन्द्रगुप्त (नाटक)
  2. महादेवी वर्मा – स्मृति की रेखाएँ (संस्मरण)

प्रश्न 38.
छायावादोत्तर हिन्दी गद्य (प्रगतिवादी गद्य) की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
छायावादोत्तर काल का हिन्दी गद्य सहज, व्यावहारिक और अलंकारविहीन था। उसमें भावुकतापूर्ण अभिव्यक्ति का स्थान चुटीली उक्तियों ने ले लिया था।

प्रश्न 39.
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प्रश्न 40.
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प्रश्न 41.
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प्रश्न 42.
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प्रन 43.
निम्नलिखित गद्य-लेखकों की एक-एक प्रसिद्ध गद्य-रचना का नाम लिखिए

  1. राजेन्द्र यादव तथा
  2. धीरेन्द्र वर्मा

उत्तर:

  1. लेखक-राजेन्द्र यादव, रचना-चेखव : ‘एक इण्टरव्यू, विधा–भेटवार्ता (काल्पनिक)
  2. लेखक–धीरेन्द्र वर्मा, रचना–मेरी कॉलेज डायरी, विधा-डायरी।

प्रश्न 44.
निम्नलिखित लेखकों की एक-एक प्रसिद्ध गद्य-रचना का नाम लिखिए

  1. महादेवी वर्मा तथा
  2. लक्ष्मीचन्द्र जैन

उत्तर:

  1. लेखिका-महादेवी वर्मा, रचना–पथ के साथी; अतीत के चलचित्र; स्मृति की रेखाएँ, विधा-संस्मरण; संस्मरण/रेखाचित्र।
  2. लेखक-लक्ष्मीचन्द्र जैन, रचना–भगवान् महावीर : एक इण्टरव्यू, विधा–भेटवार्ता । (काल्पनिक)।

प्रश्न 45.
निम्नलिखित लेखकों की एक-एक रचना का नाम लिखिए

  1. विद्यानिवास मिश्र,
  2. डॉ० नगेन्द्र,
  3. हजारीप्रसाद द्विवेदी,
  4. रघुवीर सिंह।

उत्तर:

  1. लेखक-विद्यानिवास मिश्र, रचना-मेरे राम का मुकुट भीग रहा है, विधा-निबन्ध।
  2. लेखक-डॉ० नगेन्द्र, रचना-हिन्दी साहित्य का बृहद् इतिहास, विधा-आलोचना।
  3. लेखक-हजारीप्रसाद द्विवेदी, रचना-कल्पलता (निबन्ध-संग्रह), विधा-निबन्ध।
  4. लेखक–रघुवीर सिंह, रचना–शेष स्मृतियाँ, विधा-संस्मरण।।

प्रश्न 46.
निम्नलिखित कृतियों में से किन्हीं दो कृतियों के रचनाकार और उनकी विधाओं के नाम लिखिए-

  1. अतीत के चलचित्र,
  2. लहरों के राजहंस,
  3. श्रद्धा-भक्ति।

उत्तर:

  1. कृति–अतीत के चलचित्र, रचनाकार-महादेवी वर्मा, विधा–रेखाचित्र।
  2. कृति-लहरों के राजहंस, रचनाकार-मोहन राकेश, विधा–नाटक।

प्रश्न 47.
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प्रश्न 48.
छायावादोत्तर युग में प्रारम्भ एवं समृद्ध होने वाली प्रकीर्ण गद्य-विधाओं में से किन्हीं दो 
विधाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
जीवनी, आत्मकथा, यात्रावृत्त, गद्यकाव्य, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी, भेटवार्ता, पत्र-साहित्य आदि हिन्दी की गौण या प्रकीर्ण गद्य-विधाएँ हैं।

प्रश्न 49.
प्रकीर्ण गद्य-विधाओं का अभूतपूर्व विकास किस युग में हुआ ?
उत्तर:
प्रकीर्ण गद्य-विधाओं का अभूतपूर्व विकास छायावादोत्तर युग में हुआ।

प्रश्न 50.
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प्रश्न 51.
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प्रश्न 52.
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प्रश्न 53.
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प्रश्न 54.
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प्रश्न 55.
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प्रश्न 56.
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प्रश्न 57.
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प्रश्न 58.
कहानी अथवा आधुनिक कहानी किस उद्देश्य से लिखी जाती है ?
उत्तर:
कहानी का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ व्यक्ति या समाज के महत्त्वपूर्ण अनुभवों, अनुभूतियों एवं यथार्थ की कलात्मक अभिव्यक्ति करना है, जब कि मानव-जीवन की कुण्ठाओं, भटकाव, संत्रास, दिशाहीनता और यान्त्रिक जड़ता का यथार्थ और मार्मिक चित्रण करना आधुनिक कहानी के अन्यतम उद्देश्य हैं।

प्रश्न 59.
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प्रश्न 60.
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प्रश्न 61.
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प्रश्न 62.
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प्रश्न 63.
आधुनिक युग की किन्हीं दो महिला कथाकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. मन्नू भण्डारी तथा
  2. उषा प्रियंवदा

प्रश्न 64.
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प्रश्न 65.
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प्रश्न 66.
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प्रश्न 67.
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प्रश्न 68.
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प्रश्न 69.
हिन्दी के दो कहानी-संग्रहों और उनके लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी कहानियों के दो संग्रहों के नाम हैं-‘आकाशदीप’ तथा ‘ज्ञानदान’। इनके लेखकों के नाम क्रमश: हैं-जयशंकर प्रसाद तथा यशपाल।

प्रश्न 70.
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प्रश्न 71.
आधुनिक युग के किन्हीं दो कहानीकारों के नाम लिखिए।
या
प्रेमचन्द के बाद के किन्हीं दो प्रमुख कहानीकारों के नाम लिखिए।
या
छायावादोत्तर युग के किन्हीं दो कहानी-लेखकों के नाम लिखिए।

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प्रश्न 72.
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प्रश्न 73.
स्वतन्त्रता के पश्चात् के प्रमुख कंहानीकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् के प्रमुख कहानीकारों में विष्णु प्रभाकर, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश, निर्मल वर्मा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 74.
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प्रश्न 75.
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प्रश्न 76.
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प्रश्न 77.
द्विवेदी युग के दो प्रमुख उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
द्विवेदी युग के दो प्रमुख उपन्यासकार हैं-

  1. किशोरीलाल गोस्वामी तथा
  2. अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

प्रश्न 78.
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प्रश्न 79.
UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi गद्य-साहित्य का विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न img-55

प्रश्न 80.
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प्रश्न 81.
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प्रश्न 82.
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प्रश्न 83.
प्रेमचन्द के बाद होने वाले आधुनिक युग के प्रमुख उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
या
आधुनिक युग के किन्हीं दो उपन्यासकारों के नाम लिखिए।

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प्रश्न 84.
‘उपन्यास’ और ‘कहानी’ का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कहानी का रचना-फलक आकार में छोटा होता है, जब कि उपन्यास का पर्याप्त विस्तृत। कहानी में प्रायः किसी एक घटना अथवा मनोदशा का वर्णन होती है, जब कि उपन्यास में समग्र मानव-जीवन से सम्बन्धित विविध घटनाओं का समावेश किया जाता है।

प्रश्न 85.
उपन्यास का शाब्दिक अर्थ बताइट।
उत्तर:
उपन्यास का शाब्दिक अर्थ है-सामने रखना। इसमें प्रसादन’ अर्थात् प्रसन्न करने का भाव भी निहित है। अत: किसी घटना को इस प्रकार सामने रखना कि दूसरों को प्रसन्नता हो, उपन्यस्त करना कहा जाएगा।

प्रश्न 86.
उपन्यास की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
हिन्दी में उपन्यास को अंग्रेजी के नॉवेल ऍब्द का पर्याय माना जाता है। उपन्यास गद्य की वह विधा है, जिसमें जीवन का व्यापक चित्रण रोचक एवं संजीव शैली में किया गया हो।

प्रश्न 87.
उपन्यास को कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर:
विषय’ के आधार पर हिन्दी उपन्यासों को निम्नलिखित आठ भागों में विभाजित किया जा सकता है—

  1. सामाजिक
  2. राजनीतिक
  3. ऐतिहासिक
  4. पौराणिक
  5. मनोवैज्ञानिक
  6. आंचलिक
  7. तिलिस्मी/जासूसी
  8. क्रान्तिकारी आदि।

प्रश्न 88.
हिन्दी के दो प्रसिद्ध उपन्यासकारों एवं उनके उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी के दो उपन्यासकारों एवं उनके उपन्यासों के नाम निम्नलिखित हैं

  1. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी–बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचन्द्रलेख, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा।
  2. श्री भगवतीचरण वर्मा-चित्रलेखा, भूले-बिसरे चित्र, तीन वर्ष, टेढ़े-मेढ़े रास्ते।

प्रश्न 89.
हिन्दी के प्रमुख मनोवैज्ञानिक उपन्यासकारों एवं उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी के प्रमुख मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार एवं उनके उपन्यासों के नाम निम्नलिखित हैं

  1. जैनेन्द्र कुमार-परख, सुनीता, त्यागपत्र आदि।
  2. इलाचन्द्र जोशी-जहाज का पंछी, घृणापथ आदि।
  3. सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’–शेखर : एक जीवनी (दो भाग), नदी के द्वीप आदि।

प्रश्न 90.
भारतीय और पाश्चात्य दृष्टि से नाटक के तत्त्व बताइट।
उत्तर:
भारतीय आचार्यों ने नाटकों के पाँच तत्त्व माने हैं—

  1. वस्तु
  2. नेता
  3. रस
  4. अभिनय एवं
  5. वृत्ति

पाश्चात्य विद्वानों ने नाटक के छः तत्त्व स्वीकार किये हैं–

  1. कथावस्तु
  2. पात्र एवं चरित्र-चित्रण
  3. कथोपकथन
  4. देशकाल
  5. भाषा-शैली एवं
  6. उद्देश्य

प्रश्न 91.
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प्रश्न 92.

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प्रश्न 93.
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प्रश्न 94.
भारतेन्दु युग के प्रमुख नाटककारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारतेन्दु युग के प्रमुख नाटककारों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के अतिरिक्त बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, लाला श्रीनिवास दास आदि के नाम प्रमुख हैं।

प्रश्न 95.
जयशंकर प्रसाद के समकालीन प्रमुख नाटककारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद के समकालीन नाटककारों में प्रमुख हैं—

  1. हरिकृष्ण ‘प्रेमी’
  2. लक्ष्मीनारायण मिश्र
  3. गोविन्दवल्लभ पन्त
  4. सेठ गोविन्ददास आदि

प्रश्न 96.
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प्रश्न 97.
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प्रश्न 98.
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प्रश्न 99.
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प्रश्न 100.
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प्रश्न 101.
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प्रश्न 102.
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प्रश्न 103.
हिन्दी गद्य की विविध विधाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. नाटक
  2. उपन्यास
  3. एकांकी
  4. कहानी
  5. निबन्ध
  6. आलोचना
  7. आत्मकथा
  8. जीवनी
  9. यात्रावृत्त
  10. रेखाचित्र
  11. संस्मरण
  12. गद्यकाव्य
  13.  रिपोर्ताज
  14. डायरी
  15.  रेडियो-रूपक
  16.  भेटवार्ता आदि

प्रश्न 104.
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प्रश्न 105.
छायावादी युग के सबसे प्रसिद्ध आलोचना-लेखक (आलोचक) कौन थे ?
उत्तर:
छायावादी युग के सबसे प्रसिद्ध आलोचना-लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल थे।

प्रश्न 106.
हिन्दी के दो प्रसिद्ध आलोचकों के नाम बताइए।
उत्तर:
हिन्दी के दो प्रसिद्ध आलोचक है—

  1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और
  2. बाबू श्यामसुन्दर दास।

प्रश्न 107.
आधुनिक युग के किसी प्रसिद्ध गद्य-आलोचक का नाम लिखिए।
उत्तर:
आधुनिक युग में डॉ० नगेन्द्र हिन्दी के एक प्रसिद्ध गद्य-आलोचक हैं।

प्रश्न 108.
शुक्लोत्तर युग के आलोचना-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
डॉ० रामकुमार वर्मा, डॉ० नगेन्द्र, डॉ० रामविलास शर्मा आदि शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध आलोचना-लेखक हैं।

प्रश्न 109.
‘समालोचक पत्र किस युग में प्रकाशित हुआ था ?
उत्तर:
‘समालोचक’ पत्र, द्विवेदी युग में प्रकाशित हुआ था।

प्रश्न 110.
व्यावहारिक समीक्षा के क्षेत्र में ख्यात आलोचकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
व्यावहारिक समीक्षा के क्षेत्र में ख्यात प्रमुख आलोचक हैं-आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, डॉ० विनय मोहन शर्मा, डॉ० गोविन्द त्रिगुणायत आदि।।

प्रश्न 111.
मार्क्सवादी समीक्षा के क्षेत्र में ख्यातं आलोचकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मार्क्सवादी समीक्षा के क्षेत्र में ख्यात प्रमुख आलोचक हैं-डॉ० रामविलास शर्मा, शिवदान सिंह चौहान, डॉ० विश्वम्भरनाथ उपाध्याय आदि।।

प्रश्न 112.
जीवनी किसे कहते हैं ? हिन्दी में जीवनी-लेखन का कार्य किस युग में प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
किसी व्यक्ति विशेष के जीवन की जन्म से लेकर मृत्यु तक की घटनाओं के क्रमबद्ध विवरण को ‘जीवनी’ कहा जाता है। हिन्दी में जीवनी-लेखन का कार्य भारतेन्दु युग में प्रारम्भ हो चुका था।

प्रश्न 113.
जीवनी लिखने वाले किसी एक लेखक तथा उसकी रचना का नाम लिखिए।
उत्तर:
लेखक–अमृतराय। रचना-‘कलम का सिपाही’

प्रश्न 114.
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प्रश्न 115.
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प्रश्न 116.
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प्रश्न 117.
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प्रश्न 118.
निम्नलिखित जीवनियाँ के लेखक कौन हैं-,
(1) सुमित्रानन्दन पन्त : जीवन और साहित्य,
(2) निराला की साहित्य-साधना।
उत्तर:
(1) शान्ति जोशी एवं
(2) डॉ० रामविलास शर्मा।

प्रश्न 119.
छायावादोत्तर युग के दो प्रसिद्ध जीवनी-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. जैनेन्द्र कुमार तथा
  2. काका कालेलकर।

प्रश्न 120.
आत्मकथा का अर्थ बताइए और इसकी परिभाषा दीजिए। हिन्दी में प्रथम आत्मकथा का नाम बताइट।
उत्तर:
आत्मकथा का शाब्दिक अर्थ होता है-अपनी कहानी। यह लेखक को अपने जीवन से सम्बद्ध वर्णन है। अत: आत्मकथा किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा लिखा गया वह आख्यान या वृत्तान्त है जो वह बड़ी बेबाकी से अपने जीवन के बारे में प्रस्तुत करता है। जैन कवि बनारसीदास की ‘अर्द्धकथा’ को हिन्दी के आत्मकथा साहित्य की प्रथम आत्मकथा कहा जाता है।

प्रश्न 121.
हिन्दी के प्रमुख आत्मकथा-लेखकों के नाम लिखिए।’
उत्तर:
बाबू श्यामसुन्दर दास (मेरी आत्मकहानी), वियोगी हरि (मेरा जीवन प्रवाह), डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (मेरी आत्मकथा) आदि प्रमुख आत्मकथा लेखकों के अतिरिक्त डॉ० हरिवंशराय बच्चन, पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ तथा गुलाबराय आदि श्रेष्ठ आत्मकथाकार हैं।

प्रश्न 122.
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प्रश्न 123.
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प्रश्न 124.
रेखाचित्र अथवा आत्मकथा की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रेखाचित्र-

  1. रेखाचित्र में कम-से-कम शब्दों के प्रयोग द्वारा किसी व्यक्ति या वस्तु की विशेषता को उभारा जाता है।
  2. रेखाचित्र में लेखक पूर्णत: तटस्थ होकर, किसी वस्तु या व्यक्ति का चित्रात्मक शैली में सजीव तथा भाबपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है।

आत्मकथा-

  1. महापुरुषों द्वारा लिखी गयी आत्मकथाएँ पाठकों को उनके जीवन के आत्मीय पहलुओं से परिचय कराती हुई मार्गदर्शन करती हैं और प्रेरणा देती हैं।
  2. लेखक स्वयं अपने जीवन के प्रसंगों को पूर्ण निजता के साथ भावात्मक एवं रोचक शैली में प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 125.
रेखाचित्र किसे कहते हैं ? इसको परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
रेखाचित्र साहित्य की वह गद्यात्मक विधा है, जिसमें किसी विषय-विशेष का, उसकी बाह्य विशेषताओं को उभारते और तत्सम्बन्धित विभिन्न संक्षिप्त घटनाओं को समेटते हुए शब्द-रेखाओं के माध्यम से सजीव, सरस, मर्मस्पर्शी एवं प्रभावशाली चित्रे उभारा जाता है।

प्रश्न 126.
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प्रश्न 127.
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प्रश्न 128.
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प्रश्न 129.
संस्मरण की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
संस्मरण का शाब्दिक अर्थ होता है सम्यक् स्मरण, जिसके मूल में गम्भीर चिन्तन का भाव निहित होता है। मानव-जीवन की कटु, तिक्त एवं मधुर स्मृतियाँ अनुभूति और संवेदना का संसर्ग प्राप्त करके जब हृदय से निकलती हैं तब वे संस्मरण का रूप धारण कर लेती हैं।

प्रश्न 130.
संस्मरण और रेखाचित्र का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संस्मरण में साहित्यकार अपने जीवन में आये किसी व्यक्ति विशेष पर आधारित घटना को रोचक शैली में, यथार्थ रूप में और अपने व्यक्तित्व में रँगकर प्रस्तुत करता है; जैसे-महादेवी वर्मा कृत ‘प्रणाम। रेखाचित्र में लेखक कम-से-कम शब्दों का प्रयोग करके किसी वस्तु या व्यक्ति का चित्रात्मक शैली में सजीव भावपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है; जैसे–महादेवी वर्मा कृत ‘गिल्लू’।

प्रश्न 131.
‘संस्मरण’ की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. संस्मरण में व्यक्तियों, घटनाओं अथवा दृश्यों को स्मृति के सहारे पुन: कल्पना में मूर्त किया जाता है।
  2. संस्मरण में लेखक तटस्थ रहने के बाद भी स्वयं को चित्रित कर देता है।
  3. संस्मरण व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना के वैशिष्ट्य को लक्षित करने वाला होता है।

प्रश्न 132.
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प्रश्न 133.
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प्रश्न 134.
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प्रश्न 135.
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प्रश्न 136.
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प्रश्न 137.
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प्रश्न 138.
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प्रश्न 139.
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प्रश्न 140.
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प्रश्न 141.
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प्रश्न 142.
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प्रश्न 143.
‘रिपोर्ताज’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘रिपोर्ताज’ का सम्बन्ध अंग्रेजी के ‘रिपोर्ट’ शब्द से है। रिपोर्ट सामान्य रूप में समाचार-पत्रों में प्रकाशित करने तथा रेडियो-दूरदर्शन पर प्रसारित करने के लिए पत्रकार द्वारा तैयार की जाती है। यही कार्य जब सौन्दर्यचेता साहित्यकार द्वारा किया जाता है तो उसमें उसके व्यक्तित्व की विशिष्टताएँ, प्रतिक्रियाएँ और व्याख्याएँ भी समाहित हो जाती हैं। इस प्रकार साहित्यकार द्वारा विरचित घटना-विवरण ‘रिपोर्ताज’ कहलाता है।

प्रश्न 144.
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प्रश्न 145.
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प्रश्न 146.
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प्रश्न 147.
हिन्दी में डायरी विधा का आरम्भ किस युग से हुआ ? किसी डायरी लेखक की डायरी का नाम लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी में डायरी विधा का आरम्भ छायावाद युग से हुआ। डायरी लेखक-धीरेन्द्र वर्मा, रचना-मेरी कॉलेज डायरी।

प्रश्न 148.
हिन्दी की दो नवीन गद्य विधाओं व उन विधाओं के एक-एक प्रमुख लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. रिपोर्ताज’ हिन्दी गद्य की एक नयी विधा है। इस विधा के प्रमुख लेखक– कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ हैं।
  2. ‘डायरी’ हिन्दी की दूसरी नवीन गद्य विधा है। इस विधा के प्रमुख लेखक-धीरेन्द्र वर्मा हैं।

प्रश्न 149.
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प्रश्न 150.
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प्रश्न 151.
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प्रश्न 152.
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प्रश्न 153.
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प्रश्न 154.
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प्रश्न 155.
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प्रश्न 156.
हिन्दी में गद्यकाव्य की रचना करने वाले किन्हीं दो लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. राय कृष्णदास तथा
  2. वियोगी हरि

प्रश्न 157.
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प्रश्न 158.
‘भेटवार्ता’ अथवा ‘साक्षात्कार’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जब रचनाकार किसी विशिष्ट व्यक्ति से मुलाकात करके उसके व्यक्तित्व, भावों, क्रिया-कलापों आदि से सम्बन्धित साहित्य की रचना प्रश्न-उत्तर रूप में करता है, तो यह रचना ‘भेटवार्ता या साक्षात्कार कहलाती है। यह विधा वस्तुतः पत्रकारिता की देन है। यह वास्तविक भी हो सकती है और काल्पनिक भी।

प्रश्न 159.
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प्रश्न 161.
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प्रश्न 162.
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प्रश्न 163.
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प्रश्न 164.
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प्रश्न 165.
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प्रश्न 166.
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प्रश्न 167.
हिन्दी के नयी पीढ़ी के चार साहित्यिक रचनाकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कमलेश्वर, हृदयेश, मनोहरश्याम जोशी तथा सुदीप नयी पीढ़ी के रचनाकार हैं।

प्रश्न 168.
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प्रश्न 169.
हिन्दी की दो प्राचीन साहित्यिक पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी की दो प्राचीन साहित्यिक पत्रिकाओं के नाम हैं—

  1. चरित्र एवं
  2. वचनका।

प्रश्न 170.
हिन्दी गद्य के विकास में ‘सरस्वती’ पत्रिका के योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से हिन्दी गद्य में व्याप्त व्याकरण सम्बन्धी भूलों को दूर किया गया, वाक्य-विन्यास को सुव्यवस्थित किया गया तथा लेखकों और कवियों को प्रेरणा देकर लेखन-कार्य के लिए प्रोत्साहित किया गया।

प्रश्न 171.
द्विवेदी युग के दो प्रसिद्ध सम्पादकों के नाम लिखिए।
उतर:
द्विवेदी युग के दो प्रसिद्ध सम्पादकों के नाम हैं—

  1. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी तथा
  2. श्री गणेश शंकर विद्यार्थी।

प्रश्न 172.
स्वतन्त्रता के बाद प्रकाशित किन्हीं दो साहित्यिक पत्रिकाओं और उनके सम्पादकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के बाद प्रकाशित होने वाली हिन्दी की दो साहित्यिक पत्रिकाएँ हैं-‘कादम्बिनी तथा ‘धर्मयुग’। इनके सम्पादकों के नाम हैं-राजेन्द्र अवस्थी तथा धर्मवीर भारती। वर्तमान में केवल ‘कादम्बिनी’ को प्रकाशन ही हो रहा है।

प्रश्न 173.
निस्नलिखित में से किन्हीं दो सम्पादकों की पत्रिकाओं के नाम लिखिए
(1) महावीरप्रसाद द्विवेदी,
(2) श्यामसुन्दर दास,
(3) महादेवी वर्मा,
(4) धर्मवीर भारती।
उत्तर:
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विशेष—इस सूची में दिये गये पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक उनकी प्रकाशनावधि के दौरान बहुधा परिवर्तित होते रहते थे। प्रस्तुत सूची में रचना-धर्मिता के कारण बहुचर्चित सम्पादकों के नामों को ही उल्लेख किया जा रहा है। प्रस्तुत सूची की अधिकांश पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन वर्तमान में बाधित है। आजकल मात्र ‘कादम्बिनी’ तथा ‘हंस’ ही नियमित प्रकाशित हो रही हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 कारक एवं विभक्ति प्रकरण (व्याकरण)

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 6
Chapter Name कारक एवं विभक्ति प्रकरण (व्याकरण)
Number of Questions Solved 32
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 कारक एवं विभक्ति प्रकरण (व्याकरण)

विश्व की समस्त भाषाओं में संस्कृत ही एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसके वाक्य-विन्यास में कर्ता, क्रिया एवं कर्म को कहीं भी प्रयुक्त किया जा सकता है; अर्थात् इन सबको किसी भी क्रम (UPBoardSolutions.com) में रखने पर वाक्यार्थ नहीं बदलता है। इसके मूल में भाषा का जो तत्त्व सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है, वह कारक है। कारक सम्बन्धी कोई भी त्रुटि संस्कृत में अक्षम्य है; अत: संस्कृत में कारक का ज्ञान होना अत्यावश्यक

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अर्थ व परिभाषा-‘कृ’ धातु में ‘ण्वुल्’ प्रत्यय के योग से कारक शब्द बनता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है—करने वाला। ‘साक्षात् क्रियान्वयित्वं कारकत्वम्’ अर्थात् क्रिया के साथ सीधा सम्बन्ध रखने वाले शब्दों को ही कारक कहते हैं; या दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि वाक्य में संज्ञा, सर्वनाम तथा क्रिया के मध्य पाया जाने वाला सम्बन्ध ही कारक है; यथा–प्रयागे राजा स्वहस्तेन , कोषात् निर्धनेभ्यः वस्त्राणि ददाति।

किसी वाक्य में कारक ज्ञात करने के लिए उसके क्रिया-पद के साथ विभिन्न प्रश्नात्मक पद लगाकर प्रश्न बनाये जाते हैं। उस प्रश्न के उत्तर में जो आता है, वही कारक है। अलग-अलग कारक को ज्ञात करने के लिए क्रिया-पद के साथ अलग-अलग प्रश्नवाचक शब्द लगाकर प्रश्न बनाये जाते हैं। ऊपर दिये गये वाक्य में इसी प्रकार से विभिन्न कारकों को ज्ञात किया जा सकता है–
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 कारक एवं विभक्ति प्रकरण (व्याकरण)

यहाँ पर ‘राजा’ आदि कारक पदों का ‘ददाति’ क्रिया-पद से सम्बन्ध है; अतः ये सभी कारक हैं। क्रिया से सम्बन्ध न होने के कारण ही ‘सम्बन्ध पद’ तथा ‘सम्बोधन पद’ कारक नहीं माने जाते; यथा-दशरथस्य पुत्र: वनम् अगमत्। यहाँ पर ‘दशरथस्य पद का सम्बन्ध ‘पुत्र’ (कर्ता) से तो है, किन्तु ‘अगमत् क्रिया से नहीं। इसी प्रकार प्रभो! रक्षा में प्रभो’ का क्रिया ‘रक्ष’ से कोई सम्बन्ध नहीं है।

इस प्रकार संस्कृत में कुल छः कारक हुए–कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान तथा अधिकरण। इनकी पुष्टि के लिए यह सूत्र कहा गया है

कर्ता कर्म च करणं सम्प्रदानं तथैव च।
अपादानमधिकरणं चेत्याहु कारकाणि षट्॥

विभक्ति- शब्द-रूप प्रकरण में यह बताया जा चुका है कि शब्दों के उत्तर (बाद) में ‘सु’, ‘औ’, ‘जस्’ इत्यादि प्रत्यय लगते हैं। ये प्रत्यय ‘सुपू’ कहलाते हैं। इन्हीं को ‘सुपु विभक्ति’ भी कहा जाता है। इसी प्रकार धातु के उत्तर (बाद) में ‘तिप्’, ‘तस्’, ‘अन्ति’ इत्यादि प्रत्यय लगते हैं। इन्हें ‘तिङ प्रत्यय कहा जाता (UPBoardSolutions.com) है। इन्हीं प्रत्ययों को ‘तिङ’ विभक्ति भी कहते हैं। ये विभक्तियाँ सात होती हैं-प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी तथा सप्तमी।।

प्रत्येक कारक के साथ एक विभक्ति लगती है, इसीलिए कारक और विभक्ति को भ्रमवश एक ही मान लिया जाता है, जब कि ये दोनों अलग-अलग हैं। विभक्तियाँ सात हैं, इसीलिए ‘सम्बन्ध’ को भी लोग कारक मान लेते हैं; क्योंकि इसमें षष्ठी विभक्ति होती है, जब कि वास्तव में ‘सम्बन्ध कारक नहीं है। यदि कारक एवं विभक्ति एक ही होते तो प्रथमा विभक्ति का प्रत्येक शब्द कर्ता या द्वितीया विभक्ति का प्रत्येक शब्द कर्म होता; किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता; उदाहरणार्थ-बालि रामेण हतः। प्रस्तुत वाक्य में ‘बालि’ कर्म है लेकिन उसमें प्रथमा विभक्ति का प्रयोग न होकर तृतीया चिभक्ति का प्रयोग हुआ है।

हिन्दी में कारक पदों के साथ इन विभक्तियों के चिह्न लगते हैं, जिनसे किसी पद में कारक की पहचान होती है, इसीलिए इन चिह्नों को ‘कारक-चिह्न’ कहा जाने लगा। कारक, विभक्ति और उनके चिह्नों को संक्षिप्त रूप में आगे दी गयी तालिका द्वारा समझा जा सकता है–
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 कारक एवं विभक्ति प्रकरण (व्याकरण)

जब कारकों के कारण किसी पद में विभक्ति प्रयुक्त होती है तो उसे ‘कारक-विभक्ति’ कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जब किन्हीं विशेष अव्यय शब्दों के कारण किसी पद में कोई विशेष विभक्ति लगती है तो उसे ‘उपपद विभक्ति’ कहते हैं। यहाँ ध्यान रखने योग्य बात यह है कि उपपद विभक्तियों से कारक विभक्तियाँ प्रबल होती है; यथा-‘रामं नमस्करोति।’

इस वाक्य में ‘न’ के योग के कारण चतुर्थी विभक्ति होनी चाहिए थी, किन्तु यहाँ ‘राम के कर्म होने के कारण उसमें द्वितीया कारक विभक्ति का प्रयोग हुआ है।

यहाँ कारकों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है तथा उसके साथ ही यह भी समझाया जा रहा है। कि उस कारक में किस नियम से कौन-सी कारक विभक्ति लगती है।

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कर्ता कारक (प्रथमा विभक्ति)

किसी भी क्रिया को स्वतन्त्रतापूर्वक करने वाले को कर्ता कहते हैं। हिन्दी में इसका चिह्न ‘ने’ है; यथा-रहीम ने चोर को पकड़ा। कहीं-कहीं पर इस चिह्न का लोप भी हो जाता है; जैसे—गीतिका खाना खाती है। संस्कृत में कर्ता के तीन पुरुष–प्रथम (सः, तौ, ते, रामः, शिवः रमा आदि), मध्यम (त्वम्, युवाम्, यूयम्), उत्तम (अहम्, आवाम्, वयम्) तथा तीन लिंग-पुंल्लिग, स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग होते हैं।

वाक्य में कर्ता की स्थिति के अनुसार संस्कृत में वाक्य तीन प्रकार के होते हैं–

(1) कर्तृवाच्य- इस वाच्य में कर्ता की प्रधानता होती है और उसमें सदैव प्रथमा विभक्ति ही प्रयुक्त होती है; यथा-अञ्जु पठति।
(2) कर्मवाच्य- इस वाक्य में कर्म की प्रधानता होती है और उसमें सदैव प्रथमा विभक्ति तथा कर्ता में सदैव तृतीया विभक्ति होती है; यथा—रामेण ग्रन्थः पठ्यते।।
(3) भाववाच्य- इस वाक्य में भाव (क्रियात्व) की ही प्रधानता होती है। कर्ता में तृतीया विभक्ति और क्रिया सदैव प्रथम पुरुष, एकवचन (आत्मनेपद) की प्रयुक्त होती है; यथा—कृष्णेन गम्यते।

प्रथमा विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं–

  • ‘सम्बोधने च’ सूत्र के अनुसार सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति होती है; यथा—“भो राजेश! अत्र तिष्ठ।
  • अव्यय के साथ तथा किसी के विशिष्ट नाम को बताने के लिए प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है; यथा-“मदनमोहन मालवीय: महामना’ इति प्रसिद्धः अस्ति।”

कर्म कारक (द्वितीया विभक्ति)

पाणिनि ने कर्मकारक को परिभाषित करते हुए लिखा है कि ‘कर्तुरीप्सिततमं कर्म’; अर्थात् कर्ता जिस पदार्थ को सबसे अधिक चाहता है, वह कर्म है। सरल शब्दों में (UPBoardSolutions.com) कहा जा सकता है कि जिसके ऊपर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है; उसे कर्म कारक कहते हैं। हिन्दी में, कर्म कारक का चिह्न ‘को’ है; यथा—मोहन ने चोर को देखा। कहीं-कहीं ‘को’ चिह्न का लोप भी देखने को मिलता है; यथा–राम फल खाता है।

कर्मणि द्वितीया सूत्र के अनुसार कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति होती है। कर्म में द्वितीया विभक्ति केवल कर्तृवाच्य में होती है; यथा-“राम:’ फलं खादति।’ कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है; यथा ‘रामेण ग्रन्थः पठ्यते।” द्वितीया विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं–

(i) ‘अकथितं च सूत्र के अनुसार अप्रधान या गौण कर्म को अकथित कर्म कहते हैं। इसमें भी द्वितीया विभक्ति होती है। यह कर्म कभी अकेला प्रयुक्त नहीं होता, वरन् सदैव मुख्य कर्म के साथ ही प्रयुक्त होता है; यथा-“रामः धेनुं दुग्धं दोग्धि।” इस वाक्य में दूध (दुग्धं) मुख्य कर्म है और ‘दुह्’ धातु के योग के कारण गाय (धेनुं) कथित कर्म है। इस वाक्य से यह स्पष्ट होता है कि ‘दुह द्विकर्मक धातु है। द्विकर्मक धातुओं में 16 धातुएँ तथा इनके अर्थ वाली अन्य धातुएँ (यथा-‘ब्रु’ और ‘कथ्’ धातु के समान अर्थ हैं) सम्मिलित हैं, जो निम्नलिखित हैं

दुह (दुहना), याच् (माँगना), वच् (पकाना), दण्ड् (दण्ड देना), रुध् (रोकना, घेरना), प्रच्छ (पूछना), चि (चुनना, चयन करना), ब्रू (कहना, बोलना), शास् (शासन करना, कहना), जि (जीतना), मेथ् (मथना), मुष (चुराना), नी (ले जाना), ह (हरण करना), कृष् (खींचना), वह (ढोकर ले जाना)

(ii) ‘अधिशीङ्स्थासां कर्म’ सूत्र के अनुसार. शीङ (सोना), स्था (ठहरना) एवं आस् (बैठना) धातुएँ यदि ‘अधि’ उपसर्गपूर्वक आती हैं तो इनके आधार में द्वितीया विभक्ति होती है। यदि ये धातुएँ ‘अधि’ उपसर्गपूर्वक नहीं आती हैं तो इनके आधार में द्वितीया विभक्ति न होकर सप्तमी (UPBoardSolutions.com) विभक्ति प्रयुक्त होती है। . :
(iii) ‘अभितः परितः समया निकषा हा प्रतियोगेऽपि।’ सूत्र के अनुसार अभितः (सब ओर से), परितः (चारों ओर से), समया (निकट), निकषा (समीप), हा (धिक्कार या विपत्ति आने पर), प्रति (ओर) शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
(iv) ‘कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे’ सूत्र के अनुसार समय और दूरी की निरन्तरता बताने वाले कालवाची और मार्गवाची (दूरीवाची) शब्दों में द्वितीया विभक्ति होती है।

करण कारक (तृतीया विभक्ति)

‘साधकतमं करणम्’ अर्थात् क्रिया की सिद्धि में अत्यन्त सहायक वस्तु अथवा साधन को करण कारक कहते हैं। सरल शब्दों में कह सकते हैं कि जिसकी सहायता से या जिसके द्वारा कार्य पूर्ण होते हैं; उसमें करण कारक होता है तथा उसमें तृतीया विभक्ति होती है। हिन्दी में इसका चिह्न ‘से’ (with) तथा ‘के द्वारा है; यथा-सः हस्ताभ्यां कार्यं करोति (वह हाथों से कार्य करता है)। यहाँ पर हाथों के द्वारा कार्य सम्पन्न हो रहा है; अत: हस्ताभ्याम् में तृतीया विभक्ति है।

तृतीया विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं–

(i) ‘कर्तृकरणयोस्तृतीया’ सूत्र के अनुसार कर्मवाच्य एवं भाववाच्य वाले वाक्यों के कर्ता में तथा सभी प्रकार के करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है; यथा-रामः दण्डेन कुक्कुरं ताडयति (राम डण्डे से कुत्ते को मारता है)। यहाँ करण कारक में तृतीया विभक्ति है। कर्मवाच्य–रामेण ग्रन्थः पठ्यते(राम द्वारा ग्रन्थ पढ़ा जाता है)। भाववाच्य—कृष्णेन सुप्यते (कृष्ण द्वारा सोया जाता है।) यहाँ रामेण और कृष्णेन क्रमशः कर्मवाच्य एवं भाववाच्य के कर्ता हैं; अतः इनमें तृतीया विभक्ति है।

(ii) ‘सहयुक्तेऽप्रधाने’ सूत्र के अनुसार वाक्य में ‘साथ’ को अर्थ रखने वाले ‘सह, साकम्, समम्’ और ‘सार्धम् शब्दों के योग में अप्रधान शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है; यथा-सीता रामेण सह वनम् अगच्छत् (सीता राम के साथ वन गयी।) यहाँ पर प्रधान शब्द सीता है और अप्रधान शब्द राम; अत: राम में तृतीया विभक्ति है।

(iii) पृथग्विनानानाभिस्तृतीयान्यतरस्याम्’ सूत्र के अनुसार ‘पृथक्, विना, नाना’ शब्दों के योग में तृतीया, द्वितीया और पंचमी विभक्ति होती है; यथा–दशरथ: रामेण/रामात्/रामं वा विना/पृथक्/नाना प्राणान् अत्यजत्।।

(iv) येनाङ्गविकारः’ सूत्र के अनुसार जिस अंग से शरीर के विकार का ज्ञान होता है, उसमें तृतीया विभक्ति होती है; यथा-राहुल: पादेन खञ्जः अस्ति (राहुल पैर से लँगड़ा है।)

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सम्प्रदान कारक (चतुर्थी विभक्ति)

‘कर्मणा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम्।’ अर्थात् अत्यन्त इष्ट समझकर जिसको कोई वस्तु दी जाती है। या जिसके लिए कार्य किया जाता है, वह सम्प्रदान कारक है। हिन्दी में इसका चिह्न के लिए अथवा ‘को’ है।

‘चतुर्थी सम्प्रदाने’ सूत्र के अनुसार सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है; यथा— “नृपः विप्रेभ्यः गां ददाति’ (राजा ब्राह्मणों को गाय देता है)। यहाँ पर ब्राह्मण राजा के लिए इष्ट व्यक्ति हैं; अत: ‘विप्र’ में चतुर्थी विभक्ति (बहुवचन) है।

विशेष- यहाँ पर यह बात स्मरणीय है कि जिसको सदा के लिए वस्तु दी जाती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है, किन्तु जिसको कुछ समय के लिए कोई वस्तु दी जाती है, उसमें षष्ठी विभक्ति; यथा-उपर्युक्त उदाहरण में ब्राह्मणों को गाय सदैव के लिए दी गयी है, अतः विप्रेभ्यः में चतुर्थी विभक्ति है; (UPBoardSolutions.com) किन्तु “राम: रजकस्य वस्त्रं ददाति’ वाक्य में राम थोड़े समय के लिए ही धोबी को कपड़ा दे रहा है; अतः यहाँ रजकस्य में षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त हुई है।

चतुर्थी विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं–

(i) ‘रुच्यर्थानां प्रीयमाणः’ सूत्र के अनुसार ‘रुचि के अर्थ वाली धातुओं के योग में जिसको वस्तु अच्छी लगती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है; यथा—मह्यं मोदकं रोचते (मुझे लड्डू अच्छा लगता है।)

(ii) ‘क्रुधद्हेष्यसूयार्थानां यं प्रति कोपः’ सूत्र के अनुसार क्रुध् (क्रोध करना), द्रुह (द्रोह करना), ई (ईष्र्या करना), असूय् (गुणों में दोष निकालना या जलना) धातुओं एवं इनके समान अर्थ वाली धातुओं के योग में जिसके प्रति क्रोध, द्रोह, ईष्र्या और असूया की जाती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है; यथा-कृष्णः कंसाय क्रुध्यति (कृष्ण कंस से क्रोध करता है।)।

विशेष- यदि ये धातुएँ उपसर्गपूर्वक प्रयुक्त होती हैं तो इनके योग में चतुर्थी के स्थान पर द्वितीया विभक्ति होती है; यथा—सः रामम् अभिक्रुध्यति (वह राम से गुस्सा करता है।)

(iii) ‘स्पृहेरीप्सितः’ सूत्र के अनुसार ‘स्पृह’ (चाहना) धातु के योग में ईप्सित अर्थात् जिस वस्तु को चाहा जाता है, उस वस्तु में चतुर्थी विभक्ति होती है; यथा–रामः धनाय स्पृहयति (राम धन को चाहता है।)

(iv) ‘नमः स्वस्तिस्वाहास्वधाऽलंवषड्योगाच्च’ सूत्र के अनुसार नमः (नमस्कार), स्वस्ति (कल्याण), स्वाहा (आहुति), स्वधा (बलि), अलम् (समर्थ, पर्याप्त), वषट् (आहुति) के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।

अपादान कारक (पञ्चमी विभक्ति)

‘धुवमपायेऽपादानम्’ अर्थात् जिस वस्तु से किसी का पृथक् होना पाया जाता है, उसे अपादान कारक कहते हैं। हिन्दी में इसका चिह्न ‘से’ (from) है।

अपादाने पञ्चमी सूत्र के अनुसार अपादान कारक में पञ्चमी विभक्ति होती है; यथा-वृक्षात् पत्राणि पतन्ति (वृक्ष से पत्ते गिरते हैं)। यहाँ पर वृक्ष से पत्ते पृथक् हो रहे हैं; अतः वृक्षात् में पञ्चमी विभक्ति प्रयुक्त हुई है।

मंचमी विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं–

(i) ‘जुगुप्साविरामप्रमादार्थानामुपसण्यानम्’ सूत्र के अनुसार जुगुप्सा (घृणा), विराम (बन्द होना, छोड़ देना, हटना) तथा प्रमाद (भूल या असावधानी करना) के समान (UPBoardSolutions.com) अर्थ वाली धातुओं के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है; यथा–कृष्ण: पापात् जुगुप्सते (कृष्ण पाप से घृणा करता है)। सः पापात् विरमति (वह पाप से हटता है)। फ्ज़ र्मात् न प्रमदते (राजा धर्म से प्रमाद नहीं करता है)।

(ii) ‘भीत्रार्थानां भयहेतुः’ सूत्र के अनुसार ‘भय’ तथा ‘रक्षा’ अर्थ वाली धातुओं के योग में जिससे डरा जाता है या रक्षा की जाती है, उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है; यथा—बालकः चौरात् बिभेति (बालक चोर से डरता है)। सैनिकाः शत्रोः देशं रक्षन्ति (सैनिक शत्रु से देश की रक्षा करते हैं)।

(iii) ‘आख्यातोपयोगे’ सूत्र के अनुसार नियम (विधि) पूर्वक विद्या ग्रहण करने में जिससे विद्या ग्रहण की जाती है, उसमें पंचमी विभक्ति होती है; यथा-महेशः उपाध्यायात् वेदम् अधीते (महेश उपाध्याय से वेद पढ़ता है)।

सम्बन्ध (षष्ठी विभक्ति)

‘षष्ठी शेषे’ सूत्र के अनुसार कर्म आदि कारक संज्ञा की विवक्षा न होने पर शेष कहलाता है और उसमें षष्ठी विभक्ति होती है। वस्तुत: सम्बन्ध (षष्ठी) कारक नहीं है; क्योंकि यह वाक्य में प्रयुक्त एक संज्ञा का दूसरी संज्ञा के साथ सम्बन्ध दर्शाता है; यथा-राजू रामपालसिंहस्य पुत्रः अस्ति (राज रामपालसिंह का पुत्र है)। षष्ठी विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं

(i) “षष्ठी हेतुप्रयोगे’ सूत्र के अनुसार हेतु’ शब्द के प्रयुक्त होने पर षष्ठी विभक्ति होती है। ‘कारण’ अथवा ‘प्रयोजनवाचक’ शब्द तथा ‘हेतु’ शब्द दोनों में ही षष्ठी विभक्ति होती है; यथा-सः अध्ययनस्य हेतोः अत्र वसति (वह अध्ययन के लिए यहाँ रहता है)।

(ii) ‘क्तस्य च वर्तमाने’ सूत्र के अनुसार ‘क्त’ प्रत्ययान्त शब्दों के वर्तमानकालवाची होने पर षष्ठी विभक्ति होती है जब कि ‘क्त’ प्रत्यय भूतकालिक है; यथा-अहं राज्ञः अर्चितः (UPBoardSolutions.com) (मैं राजा का अर्चित हूँ)। यहाँ ‘अर्चित: ‘क्त’ प्रत्ययान्त शब्द है।

(iii) ‘षष्ठी चानादरे’ सूत्र के अनुसार जिसका अनादर करके कोई कार्य किया जाता है, उसमें षष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है; यथा–आहूयमानस्य गतः अथवा आहूयमाने गतः (बुलाते हुए का तिरस्कार करके गया)।

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अधिकरण कारक (सप्तमी विभक्ति)

‘आधारोऽधिकरणम्’ अर्थात् जिस वस्तु अथवा स्थान पर कार्य किया जाता है, उस आधार में अधिकरण कारक होता है। इसके चिह्न ‘में, पर, ऊपर हैं।

‘सप्तम्यधिकरणे च’ सूत्र से अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है; यथा-कृष्णः गोकुले वसति (कृष्ण गोकुल में रहता है)। यहाँ पर रहने का कार्य गोकुल में हो रहा है; अतः आधार होने के कारण वह अधिकरण कारक है। | सप्तमी विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं

(i) ‘साध्वसाधु प्रयोगे च’ सूत्र के अनुसार ‘साधु’ तथा ‘असाधु’ शब्दों के प्रयोग में जिसके प्रति साधुता अथवा असाधुता प्रदर्शित की जाती है, उसमें सप्तमी विभक्ति होती है; यथा–अस्मधुः कृष्णः शत्रुषु (शत्रुओं के लिए कृष्ण बुरे थे)।

(ii) यतश्च निर्धारणम्’ सूत्र के अनुसार समूह में से किसी एक की विशिष्टता प्रदर्शित करने के लिए यदि उसे समूह से पृथक् किया जाये तो समूहवाचक शब्द में षष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है; यथा—मनुष्याणं क्षत्रियः शूरतमः अथवा मनुष्येषु क्षत्रियः शूरतमः (मनुष्यों में क्षत्रिय सबसे अधिक वीर होता है)।

सम्बोधन

जिसे पुकारा जाता है, सम्बोधित किया जाता है अथवा आकृष्ट किया जाता है, वह सम्बोधन है। इसके चिह्न ‘हे’, ‘भो’, ‘अरे’ इत्यादि हैं। सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति ही होती है; यथा-हे राम! अत्र आगच्छ (हे राम! यहाँ आओ)। मोहन! त्वं कुत्र गच्छसि (मोहन! तुम कहाँ जा रहे हों?) यहाँ राम और मोहन को पुकारा जाता है; अतः यहाँ राम और मोहन में सम्बोधन है।

ध्यातव्य- सर्वनाम शब्दों में सम्बोधन नहीं होता। संस्कृत में सम्बन्ध तथा सम्बोधनको कारक नहीं माना जाता।।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर सात व्याकरण से

प्रश्न 1.
कारक किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
किसी वाक्य में क्रिया के साथ जिसका अन्वय (सम्बन्ध) रहता है, उसको कारक कहते हैं; यथा—प्रयागे राजा स्वहस्तेन कोषात् निर्धनेभ्यः वस्त्राणि ददाति।

प्रश्न 2.
विभक्तियाँ कितनी हैं? प्रत्येक का परिचय दीजिए।
उत्तर:
विभक्तियाँ सात होती हैं प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी तथा सप्तमी। कर्ता कारक में प्रथमा, कर्म कारक में द्वितीया, करण कारक में तृतीया, सम्प्रदान (UPBoardSolutions.com) कारक में चतुर्थी, अप्रादान कारकं में पञ्चमी, सम्बन्ध में षष्ठी तथा अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है।

प्रश्न 3.
सूत्र लिखकर निम्नांकित कारकों के उदाहरण दीजिएकर्म, करण, अपादान, अधिकरण।
उत्तर:
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प्ररन 4.
कारक विभक्तियों तथा उपपद विभक्तियों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी पद में कारक के कारण प्रयुक्त होने वाली विभक्तियाँ ‘कारक विभक्ति तथा किसी अव्यय के कारण प्रयुक्त होने वाली विभक्तियाँ ‘उपपद विभक्ति’ कहलाती हैं।

प्रश्न 5.
निम्नांकित पदों में प्रयुक्त विभक्तियों का कारण लिखिए
उत्तर:
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प्रश्न 6.
अपनी गद्य पुस्तक के किसी एक पाठ में प्रयुक्त द्वितीया, चतुर्थी, पञ्चमी तथा सप्तमी विभक्तियों से युक्त पदों को छाँटिए तथा उनमें प्रयुक्त विभक्तियों का कारण लिखिए।
उत्तर:
सम्बद्ध उदाहरण ‘पुण्यसलिला गङ्गा’ पाठ से उद्धृते हैं
(क) सर्वे एकस्मिन्नेव घट्टे स्नानं कुर्वन्ति।
(ख) सौभाग्यात् भारतीयशासनेन गङ्गाप्रदूषणस्य विनाशाय महती योजना सञ्चालिता।
वाक्य
(क) के, ‘एकस्मिन्’ तथा घट्टे में अधिकरण कारक के कारण सप्तमी विभक्ति है। इसी वाक्य में स्नानं’ पद में कर्म कारक के कारण द्वितीया विभक्ति है।
वाक्य
(ख) के ‘सौभाग्यात्’ पद में अपादान कारक के कारण पञ्चमी, ‘भारतीयशासनेन’ पद में करण कारक के कारण तृतीया तथा ‘विनाशाय’ पद में सम्प्रदान कारक के कारण चतुर्थी विभक्ति है।

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प्ररन 7.
निम्नांकित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उत्तर:
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विस्तुनिष्ठनोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

प्रश्न 1.
विभक्तियों और कारकों की संख्या होती है’
(क) दस और सात
(ख) छ: और आठ
(ग) आठ और छः
(घ) पाँच और सात

प्रश्न 2.
कर्ता कारक का सूत्र कौन-सा है? ‘:
(क) कर्तुरीप्सिततमं कर्म
(ख) स्वतन्त्रः कर्ता
(ग) कर्तृकरणयोस्तृतीया
(घ) सहयुक्तेऽप्रधाने

प्रश्न 3.
सामान्यतया प्रथमा विभक्ति होती है
(क) सम्प्रदान कारक में
(ख) कर्म कारक में
(ग) कर्ता कारक में
(घ) करण कारक में

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प्रश्न 4.
द्विकर्मक धातुओं के योग में कौन-सी विभक्ति होती है?
(क) चतुर्थी
(ख) तृतीया,
(ग) प्रथमा
(घ) द्वितीया

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में कौन-सी धातु द्विकर्मक है?
(क) भू
(ख) याच्
(ग) पठ्
(घ) गम्

प्रश्न 6.
किस सूत्र से कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति होती है?
(क) “कर्मणि द्वितीया’ से
(ख) ‘कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे’ से।
(ग) “अकथितञ्च’ से।
(घ) “अधिशीङ्स्थासां कर्म’ से

प्रश्न 7.
‘अक्षयः•••••••••• कुक्कुरं ताडयति’ में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी।
(क) दण्डानि’ से
(ख) “दण्डेन’ से
(ग) “दण्ड:’ से
(घ) “दण्डम्’ से

प्रश्न 8.
“पादेन खञ्जः’ में रेखांकित पद में किस सूत्र से तृतीया विभक्ति हुई है?
(क) ‘साधकतमं करणम्’ से ।
(ख) ‘सहयुक्तेऽप्रधाने से
(ग) “येनाङ्गविकारः’ से :
(घ) “कर्तृकरणयोस्तृतीया’ से

प्रश्न 9.
‘सहयुक्तेऽप्रधाने’ सूत्र किस कारक और विभक्ति के लिए प्रयुक्त होता हैं?
(क) सम्प्रदान और चतुर्थी
(ख) करण और तृतीया
(ग) अपादान और पंचमी
(घ) अधिकरण और सप्तमी

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प्रश्न 10.
‘विना’ के योग में कौन-सी विभक्ति प्रयुक्त होगी?
(क) चतुर्थी
(ख) तृतीया
(ग) षष्ठी
(घ) प्रथमा

प्रश्न 11.
‘कर्मणा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम्’ किस कारक की परिभाषा है?
(क) कर्म कारक की
(ख) सम्प्रदान कारक की
(ग) कर्ता कारक की
(घ) करण कारक की

प्रश्न 12.
‘नृपः विप्रेभ्यः गां ददाति’ में रेखांकित पद में कौन-सी विभक्ति है?
(क) तृतीया
(ख) चतुर्थी
(ग) पञ्चमी
(घ) षष्ठी

प्रश्न 13.
‘नमः’, ‘स्वस्ति’, ‘स्वाहा’ और ‘स्वधा’ के योग में कौन-सी विभक्ति होती है?
(क) द्वितीया
(ख) तृतीया
(ग) चतुर्थी
(घ) सप्तमी

प्रश्न 14.
‘मह्यं मोदकं रोचते’ में चतुर्थी विभक्ति के प्रयोग का क्या कारण है?
(क) सम्प्रदान कारक।
(ख) मोदक शब्द
(ग) अस्मद् शब्द
(घ) रुच् धातु

प्रश्न 15.
किस मूत्र के अनुसार ‘रुच्’ धातु के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है?
(क) ‘स्पृहेरीप्सितः’ के अनुसार
(ख) ‘रुच्यर्थानां प्रीयमाणः के अनुसार
(ग) “भीत्रार्थानां भयहेतुः’ के अनुसार
(घ) “चतुर्थी सम्प्रदाने के अनुसार

प्रश्न 16.
निम्नलिखित में अपादान कारक का कौन-सा सूत्र है?
(क) आख्यातोपयोगे
(ख) ध्रुवमपायेऽपादानम्
(ग) अपादाने पञ्चमी
(घ) भीत्रार्थानां भयहेतुः

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प्रश्न 17.
सैनिकः अश्वात् पतति।’ में किस सूत्र में पञ्चमी विभक्ति हो रही है?
(क) ध्रुवमपायेऽपादानम्
(ख) अपादाने पञ्चमी
(ग) भीत्रार्थानां भयहेतुः
(घ) आधारोऽधिकरणम्

प्रश्न 18.
‘भी’ तथा ‘रक्ष’ धातुओं के योग में कौन-सी विभक्ति होती है? .
(क) सप्तमी
(ख)-द्वितीया
(ग) तृतीया
(घ) पञ्चमी

प्रश्न 19.
क्त प्रत्ययान्त शब्दों के किस कालवाची होने पर षष्ठी विभक्ति होती है?
(क) आज्ञार्थककालवाची
(ख) भविष्यत्कालवाची
(ग) भूतकालवाची
(घ) वर्तमानकालवाची

प्रश्न 20.
‘यतश्च निर्धारणम्’ सूत्र में किन-किन विभक्तियों का विधान होता है?
(क) षष्ठी-सप्तमी विभक्तियों को
(ख) प्रथमा-द्वितीया विभक्तियों को
(ग) चतुर्थी-पञ्चमी विभक्तियों को
(घ) तृतीया-सप्तमी विभक्तियों का

प्रश्न 21.
आधार में कौन-सा कारक होता है?
(क) अपादान
(ख) कमें।
(ग) अधिकरण
(घ) करण

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प्रश्न 22.
‘विनीतः मातरि साधुः।’ के रेखांकित पद में कौन-सी विभक्ति और सूत्र प्रयुक्त हुआ है?
(क) सप्तमी और साध्वसाधु प्रयोग च
(ख) तृतीया और सहयुक्तेऽप्रधाने
(ग) षष्ठी और षष्ठी हेतुप्रयोगे
(घ) द्वितीया और अकथितं च

प्रश्न 23.
कृष्णः गोकुले वसति।’ में रेखांकित पद में किस सूत्र से सप्तमी विभक्ति हो रही है?
(क) यतश्च निर्धारणम्’ सूत्र से
(ख) ‘आधारोऽधिकरणम्’ सूत्र से
(ग) “सप्तम्यधिकरणे च सूत्र से
(घ) “साध्वसाधु प्रयोगे च सूत्र से

प्रश्न 24.
‘पृथक्’ के योग में कौन-सी विभक्ति नहीं होती है?
(क) द्वितीय
(ख) तृतीया
(ग) पञ्चमी
(घ) सप्तमी

प्रश्न 25.
यदि ‘शी’, ‘स्था’ एवं ‘आस्’ धातुएँ अधि’ उपसर्गपूर्वक नहीं आती हैं, तो आधार में कौन-सी विभक्ति होती है?
(क) द्वितीया
(ख) तृतीया
(ग) पञ्चमी

उत्तर:
1. (ग) आठ और छः, 2. (ख) स्वतन्त्रः कर्ता, 3. (ग) कर्ता कारक में, 4. (घ) द्वितीया, 5. (ख) याच्, 6. (क) “कर्मणि द्वितीया’ सूत्र से, 7. (ख) ‘दण्डेन’ से, 8. (ग) येनाङ्गविकार:’ से, 9. (ख) करण और तृतीया, 10. (ख) तृतीया, 11. (ख) सम्प्रदान कारक की, 12. (ख) चतुर्थी, 13. (ग) चतुर्थी, 14. (घ) रुच् धातु, 15. (ख) ‘रुच्यर्थानां प्रीयमाणः’ के अनुसार, 16. (ख) ध्रुवमपायेऽपादानम्, 17. (ख) अपादाने पञ्चमी, 18. (घ) पञ्चमी, 19. (घ) वर्तमानकालवाची, 20. (क) षष्ठी-सप्तमी विभक्तियों का, 21. (ग) अधिकरण 22. (क) सप्तमी और साध्वसाधु प्रयोगे च, 23. (ग) “सप्तम्यधिकरणे च’ सूत्र से, 24. (घ) सप्तमी, 25. (घ) सप्तमी।

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