UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 19
Chapter Name देशी बैंकर्स
Number of Questions Solved 18
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भारत में देशी बैंकर्स के कार्य हैं
(a) जमा स्वीकार करना
(b) ऋण देना
(c) हुण्डियों का व्यवसाय करना
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स पर नियन्त्रण होता है
(a) केन्द्रीय सरकार का
(b) भारतीय रिज़र्व बैंक का
(c) भारतीय स्टेट बैंक का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स का कार्यक्षेत्र केवल शहरों/गाँवों तक ही सीमित रहता है।
उत्तर:
गाँवों तक

प्रश्न 2.
क्या देशी बैंकर्स की ब्याज दर ऊँची होती है?
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 3.
सभी देशी बैंकर्स की कार्यप्रणाली समान होती है/भिन्न-भिन्न होती है।
उत्तर:
भिन्न-भिन्न होती है

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प्रश्न 4.
क्या देशी बैंकर्स के पास पूँजी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है?
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 5.
देशी बैंकर्स भारतीय रिज़र्व बैंक के नियन्त्रण में हैं,नहीं हैं।
उत्तर:
नहीं हैं

प्रश्न 6.
क्या भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का महत्त्वपूर्ण स्थान है?
उत्तर:
हाँ

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स से क्या आशय है?
उत्तर:
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का (UPBoardSolutions.com) महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण देते हैं। देशी बैंकरों को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स की चार विशेषताएँ लिखिए। (2018)
उत्तर:
देशी बैंकर्स की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. सरल कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स के कार्य करने का तरीका सरल होता है। इससे ऋण लेने की प्रक्रिया भी सरलता व शीघ्रता से पूर्ण हो जाती है।
  2. भारतीय बहीखाता प्रणाली देशी बैंकर्स अपने हिसाब-किताब का लेखा भारतीय बहीखाता प्रणाली के अनुसार करते हैं।
  3. गोपनीयता देशी बैंकर्स अपने ग्राहकों के लेन-देन के (UPBoardSolutions.com) विवरणों की गोपनीयता बनाए रखते हैं, जिससे इनकी प्रतिष्ठा बनी रहती है।
  4. सीमित क्षेत्र इनके कार्य करने का क्षेत्र प्रायः गाँवों तक ही सीमित होता है।

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प्रश्न 3.
देशी बैंकर्स के दो कार्य बताइए।
उत्तर:
देशी बैंकर्स के दो कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. देशी बैंकर्स आवश्यकतानुसार जमाएँ स्वीकार करते हैं।
  2. देशी बैंकर्स ऋण प्रदान करते हैं।

प्रश्न 4.
देशी बैंकरों के चार गुण लिखिए। (2017)
उत्तर:
देशी बैंकरों के गुण निम्नलिखित हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना।
  2. उचित बीज एवं यन्त्रों की आपूर्ति करना।
  3. अनुत्पादक कार्यों हेतु ऋण प्रदान करना।
  4. सरल विधि द्वारा लेन-देन।

प्रश्न 5.
देशी बैंकर्स के चार दोष लिखिए। उत्तर देशी बैंकर्स के चार दोष निम्नलिखित हैं

  1. इनके द्वारा ऋणियों का शोषण किया जाता है।
  2. ये धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली से कार्य करते हैं।
  3. इनकी कार्यप्रणाली दोषपूर्ण होती है।
  4. इनके पास पूँजी का अभाव रहता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स क्या हैं? इनके दो दोषों का वर्णन कीजिए। (2012)
उत्तर:
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स (UPBoardSolutions.com) को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोष देशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स के कार्यों का वर्णन कीजिए। (2012, 08)
उत्तर:
देशी बैंकर्स के कार्य देशी बैंकर्स के कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा स्वीकार करना देशी बैंकर्स आवश्यकता के अनुसार जनता से जमा के रूप में धन स्वीकार करते हैं। ये इन जमाओं पर 9% से 15% तक ब्याज भी देते हैं। इस जमा राशि का भुगतान ग्राहक को माँगने पर तुरन्त कर दिया जाता है।

2. ऋण प्रदान करना देशी बैंकर्स का मुख्य कार्य ऋण प्रदान करना (UPBoardSolutions.com) होता है। ये किसानों, कारीगरों, मजदूरों, व्यापारियों, आदि को प्रत्येक प्रकार की जमानत पर ऋण देते हैं। ये उत्पादन कार्यों के साथ उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं। ये प्रतिज्ञा-पत्रों के आधार पर भी ऋण उपलब्ध करवाते हैं। इनकी ब्याज की दर जमानत के आधार पर तय की जाती है। इनकी ब्याज की दर 14% से 50% तक हो सकती है।

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3. हुण्डियों का व्यवसाय करना देशी बैंकर्स हुण्डियों को खरीदने, बेचने व भुनाने की कार्य भी करते हैं। जिन देशी बैंकर्स की बाजार में अधिक प्रतिष्ठा होती है, उनकी हुण्डियाँ बाजार में अधिक बिकती हैं।

4. अन्य कार्य करना ये उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते हैं

  • आयात-निर्यात में सहायता ये आयात-निर्यात के माल को बन्दरगाहों से देश में लाने तथा ले जाने के व्यय वहन करते हैं।
  • धन हस्तान्तरण में सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन भेजने में देशी बैंकर्स सहायक होते हैं।
  • परिकल्पना व्यापार करना ये परिकल्पना व्यापार अर्थात् सट्टा व्यापार करना; जैसे-सोना, चाँदी एवं शेयर्स, आदि में भी अपना धन लगाते हैं।
  • अन्य वस्तुओं में व्यापार करना देशी बैंकर्स अनाज, घी, आदि कई वस्तुओं का व्यापार भी करते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स के कार्यों, गुण एवं दोषों का वर्णन कीजिए। (2008)
उत्तर:
देशी बैंकर्स के कार्य

देशी बैंकर्स के कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा स्वीकार करना देशी बैंकर्स आवश्यकता के अनुसार जनता से जमा के रूप में धन स्वीकार करते हैं। ये इन जमाओं पर 9% से 15% तक ब्याज भी देते हैं। इस जमा राशि का भुगतान ग्राहक को माँगने पर तुरन्त कर दिया जाता है।

2. ऋण प्रदान करना देशी बैंकर्स का मुख्य कार्य ऋण प्रदान करना होता है। ये किसानों, कारीगरों, मजदूरों, व्यापारियों, आदि को प्रत्येक प्रकार की जमानत पर ऋण देते हैं। ये उत्पादन कार्यों के साथ उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं। ये प्रतिज्ञा-पत्रों (UPBoardSolutions.com) के आधार पर भी ऋण उपलब्ध करवाते हैं। इनकी ब्याज की दर जमानत के आधार पर तय की जाती है। इनकी ब्याज की दर 14% से 50% तक हो सकती है।

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3. हुण्डियों का व्यवसाय करना देशी बैंकर्स हुण्डियों को खरीदने, बेचने व भुनाने की कार्य भी करते हैं। जिन देशी बैंकर्स की बाजार में अधिक प्रतिष्ठा होती है, उनकी हुण्डियाँ बाजार में अधिक बिकती हैं।

4. अन्य कार्य करना ये उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते हैं

  • आयात-निर्यात में सहायता ये आयात-निर्यात के माल को बन्दरगाहों से देश में लाने तथा ले जाने के व्यय वहन करते हैं।
  • धन हस्तान्तरण में सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन भेजने में देशी बैंकर्स सहायक होते हैं।
  • परिकल्पना व्यापार करना ये परिकल्पना व्यापार अर्थात् सट्टा व्यापार करना; जैसे-सोना, चाँदी एवं शेयर्स, आदि में भी अपना धन लगाते हैं।
  • अन्य वस्तुओं में व्यापार करना देशी बैंकर्स अनाज, घी, आदि कई वस्तुओं का व्यापार भी करते हैं।

देशी बैंकर्स के गुण एवं दोष

देशी बैंकर्स के गुण देशी बैंकर्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित होते हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना ये किसानों, कारीगरों, व्यापारियों, आदि को व्यक्तिगत जमानत के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं। ये उन्हें अपने पास किसी वस्तु को धरोहर के रूप में रखने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।
  2. कार्य-प्रणाली सरल और लचीली इनकी कार्यप्रणाली सरल और (UPBoardSolutions.com) लचीली होती है, जिससे अशिक्षित व्यक्ति भी इससे सरलतापूर्वक लेन-देन कर सकता है।
  3. बीज, खाद व यन्त्र, आदि की सुविधा देना देशी बैंकर्स किसानों के लिए बीज, खाद व कृषि यन्त्रों, आदि को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं व उन्हें आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं।
  4. गोपनीयता इनके द्वारा किए गए लेन-देन को गोपनीय रखा जाता है।
  5. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना देशी बैंकर्स निर्धन, गरीब किसानों व कारीगरों को उनके सामाजिक उत्सवों; जैसे-विवाह, मुण्डन, श्राद्ध, मृत्यु भोज, आदि अनुत्पादक कार्यों के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।
  6. कुटीर उद्योगों के लिए ऋण ये कुटीर उद्योगों; जैसे-मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के लिए भी ऋण प्रदान करके इनके विकास में सहायक होते हैं।
  7. किस्तों में भुगतान स्वीकार करना देशी बैंकर्स ऋण का भुगतान ऋणी की सुविधानुसार सरल किस्तों में प्राप्त करते हैं।
  8. माल का क्रय करना ये किसानों की फसल उचित मूल्य पर क्रय करके उन्हें मण्डी या बाजार में जाने की परेशानी से बचाते हैं।
  9. घरेलू उद्योगों को पूँजी प्रदान करना ये घरेलू उद्योगों को चलाने हेतु ऋण प्रदान करते हैं।

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देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ निम्नलिखित हैं

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऊँची ब्याज दर इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक एवं चक्रवृद्धि ब्याज दर होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।
  3. धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली इस कार्य-पद्धति में धोखेबाजी की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि इसमें लेन-देन करने वाले सभी ग्राहक अशिक्षित होते हैं। देशी बैंकर्स ऋण देते समय अनुचित व्यवहार करते हैं।
  4. दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली यह प्रणाली शोषण एवं धोखेबाजी के कार्यों से (UPBoardSolutions.com) भरपूर है। इसमें ऋण लेने वालों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है।
  5. पूँजी का अभाव इनके पास पर्याप्त पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिससे किसानों को उनकी आवश्यकता के समय पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध नहीं हो पाता है।
  6. सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा ये उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं, जिससे लोगों में अपव्ययिता व फिजूलखर्ची में वृद्धि होती है। अत: इससे सामाजिक बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है।
  7. मजदूरी लेना ये किसानों व अन्य ऋणियों से विवाह आदि के अवसर पर मजदूरी या बेगार भी लेते हैं।
  8. परिकल्पना अथवा सट्टे का कार्य करना इनके द्वारा सट्टे का कार्य करने से इनकी बैंकिंग कार्यक्षमता में कमी होती है।
  9. खातों का अप्रकाशन देशी बैंकर्स खातों का नियमित रूप से अंकेक्षण नहीं करते हैं व खातों की सूचनाओं का प्रकाशन भी नहीं करते हैं, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।
  10. परम्परागत कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स द्वारा परम्परागत आधार पर कार्य किया जाता है, जिससे इनका निरीक्षण भी नहीं किया जा सकता है।
  11. जमाओं को प्रोत्साहन प्रदान न करना ये लोगों की बचत को जमा कराने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं।
  12. सरकारी अनियन्त्रण देशी बैंकर्स पर सरकारी नियन्त्रण नहीं होने के कारण ये मनमानी करते हैं।

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प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स कौन होते हैं? भारत में देशी बैंकरों के गुण व दोषों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2011)
उत्तर:
देशी बैंकर्स से आशय
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार (UPBoardSolutions.com) करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोषदेशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

देशी बैंकर्स के गुण देशी बैंकर्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित होते हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना ये किसानों, कारीगरों, व्यापारियों, आदि को व्यक्तिगत जमानत के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं। ये उन्हें अपने पास किसी वस्तु को धरोहर के रूप में रखने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।
  2. कार्य-प्रणाली सरल और लचीली इनकी कार्यप्रणाली सरल और लचीली होती है, जिससे अशिक्षित व्यक्ति भी इससे सरलतापूर्वक लेन-देन कर सकता है।
  3. बीज, खाद व यन्त्र, आदि की सुविधा देना देशी बैंकर्स किसानों के लिए बीज, खाद व कृषि यन्त्रों, आदि को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं व उन्हें आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं।
  4. गोपनीयता इनके द्वारा किए गए लेन-देन को गोपनीय रखा जाता है।
  5. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना देशी बैंकर्स निर्धन, गरीब किसानों व कारीगरों को उनके सामाजिक उत्सवों; जैसे-विवाह, मुण्डन, श्राद्ध, मृत्यु भोज, आदि अनुत्पादक कार्यों के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।
  6. कुटीर उद्योगों के लिए ऋण ये कुटीर उद्योगों; जैसे-मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के लिए भी ऋण प्रदान करके इनके विकास में सहायक होते हैं।
  7. किस्तों में भुगतान स्वीकार करना देशी बैंकर्स ऋण का भुगतान ऋणी की (UPBoardSolutions.com) सुविधानुसार सरल किस्तों में प्राप्त करते हैं।
  8. माल का क्रय करना ये किसानों की फसल उचित मूल्य पर क्रय करके उन्हें मण्डी या बाजार में जाने की परेशानी से बचाते हैं।
  9. घरेलू उद्योगों को पूँजी प्रदान करना ये घरेलू उद्योगों को चलाने हेतु ऋण प्रदान करते हैं।

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देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ निम्नलिखित हैं

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऊँची ब्याज दर इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक एवं चक्रवृद्धि ब्याज दर होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।
  3. धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली इस कार्य-पद्धति में धोखेबाजी की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि इसमें लेन-देन करने वाले सभी ग्राहक अशिक्षित होते हैं। देशी बैंकर्स ऋण देते समय अनुचित व्यवहार करते हैं।
  4. दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली यह प्रणाली शोषण एवं धोखेबाजी के कार्यों से भरपूर है। इसमें ऋण लेने वालों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है।
  5. पूँजी का अभाव इनके पास पर्याप्त पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिससे किसानों (UPBoardSolutions.com) को उनकी आवश्यकता के समय पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध नहीं हो पाता है।
  6. सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा ये उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं, जिससे लोगों में अपव्ययिता व फिजूलखर्ची में वृद्धि होती है। अत: इससे सामाजिक बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है।
  7. मजदूरी लेना ये किसानों व अन्य ऋणियों से विवाह आदि के अवसर पर मजदूरी या बेगार भी लेते हैं।
  8. परिकल्पना अथवा सट्टे का कार्य करना इनके द्वारा सट्टे का कार्य करने से इनकी बैंकिंग कार्यक्षमता में कमी होती है।
  9. खातों का अप्रकाशन देशी बैंकर्स खातों का नियमित रूप से अंकेक्षण नहीं करते हैं व खातों की सूचनाओं का प्रकाशन भी नहीं करते हैं, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।
  10. परम्परागत कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स द्वारा परम्परागत आधार पर कार्य किया जाता है, जिससे इनका निरीक्षण भी नहीं किया जा सकता है।
  11. जमाओं को प्रोत्साहन प्रदान न करना ये लोगों की बचत को जमा कराने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं।
  12. सरकारी अनियन्त्रण देशी बैंकर्स पर सरकारी नियन्त्रण नहीं होने के कारण ये मनमानी करते हैं।

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प्रश्न 3.
देशी बैंकर्स से क्या आशय है? देशी बैंकर्स व आधुनिक बैंकर्स में क्या अन्तर है? देशी बैंकर्स के महत्त्व का भी वर्णन कीजिए। (2012)
उत्तर:
देशी बैंकर्स से आशय
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोष देशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

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देशी बैंकर्स एवं आधुनिक बैंकर्स में अन्तर
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ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का महत्त्व देशी बैंकर्स की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया गया है

  1. कृषि विकास में सहायक देशी बैंकर्स मुख्य रूप से किसानों को ऋण प्रदान करते हैं। इस ऋण के माध्यम से किसान अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं को सरलता से प्राप्त कर लेते हैं, जिससे कृषि विकास सुलभ हो जाता है।
  2. जमाएँ स्वीकार करना ये बैंकर्स जनता की जमाओं को भी स्वीकार करते हैं। ये किसानों की बचतों को जमा करके उन्हें सुरक्षित रखते हैं। साथ ही ये इन जमाओं पर ब्याज भी देते हैं।
  3. सरल कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स की कार्यप्रणाली को एक साधारण व्यक्ति भी समझ सकता है। इससे किसानों को ऋण लेने में शीघ्रता व सुलभता प्राप्त होती है।
  4. आपत्तिकाल में सहायक देशी बैंकर्स किसानों की आवश्यकता के समय हमेशा ऋण देने को तत्पर रहते हैं। इससे किसानों के आवश्यक कार्य समय पर पूर्ण हो जाते हैं।
  5. उपभोग हेतु ऋण की सुविधाएँ देशी बैंकर्स किसानों को दैनिक जीवन व सामाजिक कार्यों हेतु भी ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं।
  6. उदार ऋण नीति देशी बैंकर्स किसानों को ऋण प्रदान करने में अनावश्यक (UPBoardSolutions.com) औपचारिकताएँ नहीं करते हैं। ये किसानों को बिना जमानत के ऋण प्रदान कर देते हैं।
  7. आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ ये बैंकर्स अन्य व्यापारिक बैंकों से भी लेन-देन का कार्य करते हैं, जिससे इनके ग्राहकों को आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ सरलता से प्राप्त हो जाती हैं।
  8. कुटीर उद्योगों को सहायता देशी बैंकर्स कुटीर उद्योगों को संचालित करने व उनका विकास करने के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 4.
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स की भूमिका का परीक्षण कीजिए। (2007)
अथवा
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत एक कृषिप्रधान देश है। भारत के अधिकतर किसान गरीब होते हैं। यहाँ के किसान वित्त व्यवस्था के लिए साहूकारों पर निर्भर रहते हैं। भारत में प्राचीनकाल से ही उधार लेन-देन की प्रथा प्रचलन में थी। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक बैंकों का विकास नहीं होने के कारण (UPBoardSolutions.com) किसानों को देशी बैंकर्स पर ही निर्भर रहना पड़ता है। भारत में कृषि साख की 20% पूर्ति देशी बैंकरों द्वारा की जाती है। ये बैंकर्स किसानों को बीज, खाद, कृषि उपकरण, आदि को खरीदने के लिए ऋण प्रदान करते हैं। ये बैंकर्स या संस्था किसानों को उनकी आवश्यकतानुसार समय-समय पर ऋण उपलब्ध करवाते हैं।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स की भूमिका (महत्त्व)

देशी बैंकर्स से आशय

देशी बैंकर्स एवं आधुनिक बैंकर्स में अन्तर
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ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का महत्त्व देशी बैंकर्स की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया गया है

  1. कृषि विकास में सहायक देशी बैंकर्स मुख्य रूप से किसानों को ऋण प्रदान करते हैं। इस ऋण के माध्यम से किसान अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं को सरलता से प्राप्त कर लेते हैं, जिससे कृषि विकास सुलभ हो जाता है।
  2. जमाएँ स्वीकार करना ये बैंकर्स जनता की जमाओं को भी स्वीकार करते हैं। ये किसानों की बचतों को जमा करके उन्हें सुरक्षित रखते हैं। साथ ही ये इन जमाओं पर ब्याज भी देते हैं।
  3. सरल कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स की कार्यप्रणाली को एक साधारण व्यक्ति भी समझ सकता है। इससे किसानों को ऋण लेने में शीघ्रता व सुलभता प्राप्त होती है।
  4. आपत्तिकाल में सहायक देशी बैंकर्स किसानों की आवश्यकता के समय हमेशा (UPBoardSolutions.com) ऋण देने को तत्पर रहते हैं। इससे किसानों के आवश्यक कार्य समय पर पूर्ण हो जाते हैं।
  5. उपभोग हेतु ऋण की सुविधाएँ देशी बैंकर्स किसानों को दैनिक जीवन व सामाजिक कार्यों हेतु भी ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं।
  6. उदार ऋण नीति देशी बैंकर्स किसानों को ऋण प्रदान करने में अनावश्यक औपचारिकताएँ नहीं करते हैं। ये किसानों को बिना जमानत के ऋण प्रदान कर देते हैं।
  7. आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ ये बैंकर्स अन्य व्यापारिक बैंकों से भी लेन-देन का कार्य करते हैं, जिससे इनके ग्राहकों को आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ सरलता से प्राप्त हो जाती हैं।
  8. कुटीर उद्योगों को सहायता देशी बैंकर्स कुटीर उद्योगों को संचालित करने व उनका विकास करने के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 5.
‘देशी बैंकर’ पर एक लेख लिखिए। (2017)
उत्तर:
देशी बैंकर्स

देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन (UPBoardSolutions.com) साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोषदेशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

देशी बैंकर्स के कार्य

देशी बैंकर्स के कार्य देशी बैंकर्स के कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा स्वीकार करना देशी बैंकर्स आवश्यकता के अनुसार जनता से जमा के रूप में धन स्वीकार करते हैं। ये इन जमाओं पर 9% से 15% तक ब्याज भी देते हैं। इस जमा राशि का भुगतान ग्राहक को माँगने पर तुरन्त कर दिया जाता है।

2. ऋण प्रदान करना देशी बैंकर्स का मुख्य कार्य ऋण प्रदान करना होता है। ये किसानों, कारीगरों, मजदूरों, व्यापारियों, आदि को प्रत्येक प्रकार की जमानत पर ऋण देते हैं। ये उत्पादन कार्यों के साथ उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं। ये प्रतिज्ञा-पत्रों के आधार पर भी ऋण उपलब्ध करवाते हैं। इनकी ब्याज की दर जमानत के आधार पर तय की जाती है। इनकी ब्याज की दर 14% से 50% तक हो सकती है।

3. हुण्डियों का व्यवसाय करना देशी बैंकर्स हुण्डियों को खरीदने, बेचने व भुनाने की कार्य भी करते हैं। जिन देशी बैंकर्स की बाजार में अधिक प्रतिष्ठा होती है, उनकी हुण्डियाँ बाजार में अधिक बिकती हैं।

4. अन्य कार्य करना ये उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते हैं

  • आयात-निर्यात में सहायता ये आयात-निर्यात के माल को बन्दरगाहों से देश में लाने तथा ले जाने के व्यय वहन करते हैं।
  • धन हस्तान्तरण में सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन भेजने में देशी बैंकर्स सहायक होते हैं।
  • परिकल्पना व्यापार करना ये परिकल्पना व्यापार अर्थात् सट्टा व्यापार करना; जैसे-सोना, चाँदी एवं शेयर्स, आदि में भी अपना धन लगाते हैं।
  • अन्य वस्तुओं में व्यापार करना देशी बैंकर्स अनाज, घी, आदि कई वस्तुओं का व्यापार भी करते हैं।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

देशी बैंकर्स के गुण व दोष

देशी बैंकर्स से आशय
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के (UPBoardSolutions.com) लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोषदेशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

देशी बैंकर्स के गुण देशी बैंकर्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित होते हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना ये किसानों, कारीगरों, व्यापारियों, आदि को व्यक्तिगत जमानत के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं। ये उन्हें अपने पास किसी वस्तु को धरोहर के रूप में रखने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।
  2. कार्य-प्रणाली सरल और लचीली इनकी कार्यप्रणाली सरल और लचीली होती है, जिससे अशिक्षित व्यक्ति भी इससे सरलतापूर्वक लेन-देन कर सकता है।
  3. बीज, खाद व यन्त्र, आदि की सुविधा देना देशी बैंकर्स किसानों के लिए बीज, खाद व कृषि यन्त्रों, आदि को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं व उन्हें आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं।
  4. गोपनीयता इनके द्वारा किए गए लेन-देन को गोपनीय रखा जाता है।
  5. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना देशी बैंकर्स निर्धन, गरीब किसानों व कारीगरों को उनके सामाजिक उत्सवों; जैसे-विवाह, मुण्डन, श्राद्ध, मृत्यु भोज, आदि अनुत्पादक कार्यों के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।
  6. कुटीर उद्योगों के लिए ऋण ये कुटीर उद्योगों; जैसे-मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के लिए भी ऋण प्रदान करके इनके विकास में सहायक होते हैं।
  7. किस्तों में भुगतान स्वीकार करना देशी बैंकर्स ऋण का भुगतान ऋणी की सुविधानुसार सरल किस्तों में प्राप्त करते हैं।
  8. माल का क्रय करना ये किसानों की फसल उचित मूल्य पर क्रय करके उन्हें मण्डी या बाजार में जाने की परेशानी से बचाते हैं।
  9. घरेलू उद्योगों को पूँजी प्रदान करना ये घरेलू उद्योगों को चलाने हेतु ऋण प्रदान करते हैं।

देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ निम्नलिखित हैं-

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  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऊँची ब्याज दर इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक एवं चक्रवृद्धि ब्याज दर होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।
  3. धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली इस कार्य-पद्धति में धोखेबाजी की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि इसमें लेन-देन करने वाले सभी ग्राहक अशिक्षित होते हैं। देशी बैंकर्स ऋण देते समय अनुचित व्यवहार करते हैं।
  4. दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली यह प्रणाली शोषण एवं धोखेबाजी के कार्यों से भरपूर है। इसमें ऋण लेने वालों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है।
  5. पूँजी का अभाव इनके पास पर्याप्त पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिससे किसानों को उनकी आवश्यकता के समय पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध नहीं हो पाता है।
  6. सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा ये उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं, जिससे लोगों में अपव्ययिता व फिजूलखर्ची में वृद्धि होती है। अत: इससे सामाजिक बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है।
  7. मजदूरी लेना ये किसानों व अन्य ऋणियों से विवाह आदि के अवसर पर मजदूरी या बेगार भी लेते हैं।
  8. परिकल्पना अथवा सट्टे का कार्य करना इनके द्वारा सट्टे का कार्य करने से इनकी बैंकिंग कार्यक्षमता में कमी होती है।
  9. खातों का अप्रकाशन देशी बैंकर्स खातों का नियमित रूप से अंकेक्षण नहीं करते हैं व खातों की सूचनाओं का प्रकाशन भी नहीं करते हैं, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।
  10. परम्परागत कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स द्वारा परम्परागत आधार पर कार्य किया (UPBoardSolutions.com) जाता है, जिससे इनका निरीक्षण भी नहीं किया जा सकता है।
  11. जमाओं को प्रोत्साहन प्रदान न करना ये लोगों की बचत को जमा कराने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं।
  12. सरकारी अनियन्त्रण देशी बैंकर्स पर सरकारी नियन्त्रण नहीं होने के कारण ये मनमानी करते हैं।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 14 बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 14
Chapter Name बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व
Number of Questions Solved 19
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 14 बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक एक संस्था है, जो
(a) मुद्रा में लेन-देन करती है
(b) धन का निवेश करती है।
(c) ऋण प्रदान करती है
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 2.
औद्योगिक बैंक निम्नलिखित में से किसके विकास के लिए ऋण प्रदान करते हैं? (2014)
(a) उद्योग
(b) भूमि
(c) ‘a’ और ‘b’ दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) उद्योग

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा बैंक को दायित्व है?
(a) ऋण
(b) निवेश
(c) जमाराशि
(d) भुने तथा खरीदे बिल
उत्तर:
(c) जमाराशि

प्रश्न 4.
बैंक का सामान्य कार्य कौन-सा है?
(a) साधारण ऋण
(b) पत्र-मुद्रा का निर्गमन करना
(c) नकद साख
(d) ऋण के रूप में उधार देना
उत्तर:
(b) पत्र-मुद्रा का निर्गमन करना

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
आधुनिक ढंग का बैंक सबसे पहले कहाँ स्थापित हुआ? (2014)
उत्तर:
1401 ई. में स्पेन के बारसिलोना (UPBoardSolutions.com) नगर में

प्रश्न 2.
बैंकिंग कम्पनी अधिनियम सन् 1949/1956 में लागू किया गया।
उत्तर:
सन् 1949 में

प्रश्न 3.
आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंक का एक उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
बचत की आदत को प्रोत्साहित करना।

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प्रश्न 4.
बैंक से चैक/पे-इन-स्लिप द्वारा रोकड़ निकाली जा सकती है। (2007)
उत्तर:
चैक

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5(b) के अनुसार, “बैंक उस कम्पनी को कहते हैं, जो बैंकिंग कार्य करती है। बैंकिंग का अर्थ जनता को ऋण देने अथवा विनियोग करने के लिए उन निक्षेपों (जमाओं) को प्राप्त करना है, जो (UPBoardSolutions.com) माँगने पर इसका भुगतान चैक, ड्राफ्ट, ऑर्डर अथवा किसी अन्य रूप से करती है।”

प्रश्न 2.
एक बैंक के चार कार्य बताइए। (2017)
उत्तर:
बैंक के कार्य निम्नलिखित हैं

  1. जमाएँ प्राप्त करना।
  2. ऋण देना।
  3. प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना।
  4. साख-पत्रों का निर्गमन करना।

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प्रश्न 3.
समाशोधन-गृह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रो. टॉजिंग के अनुसार, “समाशोधन-गृह (Clearing House) किसी एक स्थान के बैंकों का ऐसा सामान्य संगठन है, जिसका मुख्य उद्देश्य बैंकों द्वारा निर्मित परस्पर दायित्व का चैकों द्वारा निपटारा या भुगतान करना होता है।”

प्रश्न 4.
“बैंकों में जमा धन पूँजी है।” टिप्पणी कीजिए। (2018)
उत्तर:
जब व्यवसायी व्यवसाय आरम्भ करता है, तो वह कुछ धन (UPBoardSolutions.com) व्यवसाय के चालू खाते में जमा करता है। इस धन की प्रयोग व्यवसायी आवश्यकता पड़ने पर करता है। अतः हम यह कह सकते हैं कि बैंक में व्यवसायी का जमा धन पूँजी है।

प्रश्न 5.
किन्हीं चार निजी बैंकों के नाम बताइए। (2018)
उत्तर:
चार निजी बैंकों के नाम निम्नलिखित हैं

  1. आई सी आई सी आई बैंक
  2. येस बैंक
  3. एक्सिस बैंक
  4. एच डी एफ सी बैंक

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
नकद साख पर टिप्पणी लिखिए। (2008)
उत्तर:
भारत में बैंकों द्वारा ऋण देने की यह एक महत्त्वपूर्ण विधि है। इसमें बैंक ग्राहक को एक निश्चित मात्रा तक ऋण प्राप्त करने का अधिकार देता है। ग्राहक अपनी सीमा तक बैंक से कभी भी ऋण ले सकता है। बैंक इस प्रकार का ऋण देने के लिए ग्राहक (UPBoardSolutions.com) का माल, चल सम्पत्ति या प्रतिभूतियों को जमानत के रूप में अपने पास रखता है तथा बैंक ग्राहक को एक खाता अपने यहाँ खोल देता है। और ऋणी उसमें से अपनी आवश्यकतानुसार लेन-देन करता रहता है। बैंक ग्राहक से उतनी ही राशि पर ब्याज वसूलता है, जितनी राशि ग्राहक बैंक से ऋण के रूप में निकालता है। इस प्रकार यह सुविधा पर्याप्त जमानत के आधार पर दी जाती है। वर्तमान समय में भारत में यह पद्धति लोकप्रिय है।

प्रश्न 2.
बैंक द्वारा साख का सृजन किस प्रकार किया जाता है? (2008)
उत्तर:
बैंक द्वारा साख का सृजन निम्न प्रकार से किया जाता है-

1. नोटों के निर्गमन द्वारा साख का निर्माण बैंक नोटों का निर्गमन करके साख का निर्माण करते हैं। प्रारम्भ में अनेक बैंकों द्वारा नोट निर्गमन की व्यवस्था प्रचलित थी, इसलिए सभी बैंक नोट निर्गमन द्वारा साख सृजन करते थे। किन्तु आधुनिक समय में देश का केन्द्रीय बैंक नोट निर्गमन का कार्य करता है। व्यापारिक बैंकों को नोट निर्गमन का अधिकार नहीं होता है। केन्द्रीय बैंक निश्चित मात्रा में धातुकोष रखकर नोट निर्गमन करता है।

2. विनिमय बिलों की कटौती द्वारा साख सृजन व्यापारिक बैंक विनिमय बिलों, प्रतिज्ञा-पत्रों, हुण्डियों, प्रतिभूतियों, आदि की कटौती एवं क्रय-विक्रय द्वारा भी साख का निर्माण करते हैं।

3. नकद जमा तथा साख जमा द्वारा साख निर्माण व्यापारिक बैंक नकद जमाओं एवं साख जमाओं के द्वारा भी साख का निर्माण करते हैं। बैंक अपने पास जमा राशि से ऋण देते हैं और जमाएँ उत्पन्न करते हैं।

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4. अधिविकर्ष सुविधा द्वारा बैंक द्वारा अच्छी साख वाले एवं विश्वसनीय ग्राहकों को अधिविकर्ष की सुविधा दी जाती है। इस सुविधा के अन्तर्गत अधिविकर्ष की राशि पर निकाली गई अवधि तक का ब्याज लिया जाता है। इस आधार पर भी बैंक साख का सृजन करते हैं।

प्रश्न 3.
आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंकों का महत्त्व बताइए। (2008)
उत्तर:
आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंकों का महत्त्व बैंक आधुनिक अर्थव्यवस्था का आधार है। किसी भी देश की व्यापारिक अथवा औद्योगिक समृद्धि सुदृढ़ बैंकिंग व्यवस्था पर ही निर्भर करती है। आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंक के महत्त्व अथवा लाभ को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है

  1. आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंक का मुख्य उद्देश्य बचत की आदत को प्रोत्साहित करना होता है।
  2. बैंक लोगों की छोटी-छोटी बचतों को जमा करके (UPBoardSolutions.com) देश में पूँजी का निर्माण करते हैं।
  3. बैंक द्वारा चैक व ड्राफ्ट के माध्यम से भुगतान शीघ्रता व सरलता से किया जा सकता है।
  4. बैंक किसानों को कृषि यन्त्र, खाद, बीज, आदि खरीदने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके देश के विकास में योगदान देते हैं।
  5. बैंक साख की मात्रा में कमी या वृद्धि करके मुद्रा की पूर्ति को सन्तुलित बनाए रखते हैं।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक की परिभाषा दीजिए। बैंक के प्रमुख कार्यों का भी वर्णन कीजिए। (2007,06)
अथवी
बैंक के कार्यों को संक्षेप में समझाइए। (2012, 07)
उत्तर:
बैंक का अर्थ बैंक से तात्पर्य उस संस्था से है, जो जनता से जमा के रूप में धन प्राप्त करती है और ऋण के रूप में अथवा जमाकर्ताओं की माँग पर धन उधार देती है। इस प्रकार बैंक वे संस्थाएँ हैं, जो धन का लेन-देन करती हैं। आधुनिक युग में बैंकिंग विकास के साथ-साथ बैंकों के कार्यों में भी वृद्धि हुई है। बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5(b) के अनुसार, “बैंक उस कम्पनी को कहते हैं, जो बैंकिंग कार्य करती है। बैंकिंग का (UPBoardSolutions.com) अर्थ जनता को ऋण देने अथवा विनियोग करने के लिए उन निक्षेपों (जमाओं) को प्राप्त करना है, जो माँगने पर इसका भुगतान चैक, ड्राफ्ट, ऑर्डर अथवा किसी अन्य रूप से करती है।” वेब्सटर शब्दकोश के अनुसार, “बैंक वह संस्था है, जो मुद्रा में व्यवसाय करती है। यह एक संस्थान है, जहाँ धन का संग्रहण, संरक्षण एवं निर्गमन होता है, ऋण की तथा बिलों की कटौती की सुविधाएँ दी जाती हैं और मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने की व्यवस्था की जाती है।”

बैंक की सेवाएँ या कार्य मुख्य रूप से बैंक के कार्यों को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

I. मुख्य कार्य बैंक द्वारा किए जाने वाले मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा के रूप में धन प्राप्त करना बैंक जनता से विभिन्न प्रकार के खातों के माध्यम से धन प्राप्त करने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। बैंक मुख्य रूप से चालू खाता, बचत  खाता, सावधि निक्षेप खाता, आवर्ती जमा खाता, आदि खातों के माध्यम से धन प्राप्त करता है।

2. ऋण के रूप में धन उधार देना बैंक का दूसरा प्रमुख कार्य जनता को धन उधार देना है। बैंक अपने पास जमा कुल धनराशि का एक निश्चित भाग नकद कोष में रखकर शेष धनराशि को उधार देता है। ऋण देते समय बैंक व्यक्ति की आवश्यकता, साख वे जमानत का भी ध्यान रखता है। यह निम्नलिखित प्रकार से ऋण प्रदान करता है

  1. साधारण ऋण इस प्रकार का ऋण जमानत मिलने पर एक निश्चित समयावधि के लिए दिया जाता है। साधारण ऋण (Simple Loan) पर ब्याज उसी दिन से प्रारम्भ हो जाती है, जिस दिन से ग्राहक के खाते में ऋण राशि जमा की जाती है।
  2. अधिविकर्ष बैंक अपने विश्वसनीय ग्राहकों को उनके खाते में जमा धनराशि से भी अधिक धनराशि निकालने की सुविधा देता है, जिसे अधिविकर्ष (Overdraft) कहते हैं।
  3. नकद साख बैंक चल अथवा अचल सम्पत्ति की जमानत पर एक निश्चित मात्रा में ग्राहक को ऋण लेने का अधिकार प्रदान करता है। बैंक इस धनराशि पर ब्याज भी वसूल करता है।
  4. विनिमय-विपत्रों को भुनाना बैंक विनिमय-विपत्रों, हुण्डियों और व्यापारिक विपत्रों को बट्टे पर भुनाकर भी अल्पकाल के लिए ऋण देता है विनिमय-विपत्रों को भुनाने में (Discounting of Bills of Exchange) बैंक मितीकाटा ब्याज लेता है।

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II. सामान्य बैंकिंग कार्य बैंक के सामान्य कार्य निम्नलिखित हैं

  1. साख-पत्रों का निर्गमन बैंक ग्राहकों के लिए बैंक ड्राफ्ट, (UPBoardSolutions.com) यात्री चैक, हुण्डी व साख-पत्र, आदि के निर्गमन की सुविधा देता है, जिससे वर्तमान समय में धनराशि एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलतापूर्वक भेजी जा सकती है।
  2. पत्र-मुद्रा का निर्गमन बैंक द्वारा पत्र-मुद्रा का निर्गमन भी किया जाता है। यह कार्य वर्तमान में रिज़र्व बैंक ही करता है।
  3. विदेशी विनिमय का क्रय-विक्रय बैंक ग्राहकों की सुविधा के लिए विदेशी मुद्रा भी उपलब्ध करवाता है।

III. एजेन्सी सम्बन्धी कार्य बैंक के एजेन्सी सम्बन्धी कार्य निम्नलिखित हैं

  1. ग्राहक की ओर से भुगतान करना ब्याज, बीमा किस्त व ऋण, आदि का भुगतान भी बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से किया जाता है।
  2. अभिगोपन का कार्य करना बैंक औद्योगिक एवं व्यापारिक इकाइयों के अंश एवं ऋणपत्रों के अभिगोपन का कार्य भी करते हैं।
  3. ग्राहकों की ओर से भुगतान संग्रह करना बैंक अपने ग्राहक के लिए किराया, ब्याज, ऋण की किस्त, आदि की वसूली का कार्य भी करते हैं।
  4. प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना बैंक अपने ग्राहक की ओर से उसके आदेशानुसार प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय का कार्य भी करते हैं। बैंक अपने ग्राहक के लिए चैक, बिल व हुण्डी, आदि की वसूली का कार्य भी करते हैं।
  5. धन का स्थानान्तरण बैंक अपने ग्राहकों के लिए धन के स्थानान्तरण की सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर उचित माध्यम से शीघ्र व सस्ते माध्यम से प्रदान करता है।

IV. अन्य कार्य बैंक द्वारा किए जाने वाले अन्य कार्य निम्नलिखित हैं

  1. समाशोधन-गृह का कार्य करना बैंक अपने ग्राहकों की सुविधा के लिए समाशोधन-गृह का कार्य भी करता है।
  2. सरकार को आर्थिक सहायता देना बैंक सरकार को आवश्यकता होने पर ऋण प्रदान करते हैं।
  3. व्यापारिक आँकड़ों का प्रकाशन बैंक व्यापार एवं उद्योगों (UPBoardSolutions.com) से सम्बन्धित आँकड़ों का प्रकाशन करते हैं।
  4. बहुमूल्य वस्तुओं की सुरक्षा बैंक ग्राहकों को लॉकर्स की सुविधा प्रदान करके उनकी बहुमूल्य वस्तुओं की सुरक्षा करते हैं।
  5. व्यापारिक सूचना प्रदान करना बैंक अनेक आवश्यक सूचनाएँ अपने ग्राहकों तक पहुँचाकर उनकी व्यापार वृद्धि में सहायता करते हैं।

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प्रश्न 2.
समाशोधन-गृह से आप क्या समझते हैं? समाशोधन-गृह के गुण व दोषों को बताइए। (2015)
उत्तर:
समाशोधन-गृह से आशय समाशोधन-गृह का तात्पर्य उस संस्था से है, जो बैंकों को पारस्परिक लेन-देन की सुविधा प्रदान करती है। यह एक बड़ा बैंक होता है, जो अनेक बैंकों के पारस्परिक लेन-देन को लेखा करता है, जिससे लेन-देन में कम-से-कम नकद मुद्रा का प्रयोग होता है, इन्हें ‘निकासी-गृह’ (Clearing House) भी कहा जाता है। प्रो. टॉजिंग के अनुसार, “समाशोधन-गृह किसी एक स्थान के बैंकों का एक ऐसा सामान्य संगठन है, जिसका मुख्य उद्देश्य बैंकों द्वारा निर्मित परस्पर दायित्व का चैकों द्वारा निपटारा या भुगतान करना होता है।”

समाशोधन-गृह के गुण या लाभ समाशोधन-गृह के लाभ/गुण निम्नलिखिते हैं-

  1. बैंकों की कार्यक्षमता में वृद्धि समाशोधन-गृह के कारण बैंकों के समय व व्यय में कमी आती है, जिससे बैंकों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
  2. जोखिम से मुक्ति इनके उपलब्ध होने के कारण धन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने व ले जाने का जोखिम समाप्त हो जाता है।
  3. भुगतान में सुविधा इनकी सहायता से बैंकों के पारस्परिक भुगतान शीघ्र व सरलता से किए जा सकते हैं।
  4. नकद कोष में कमी इनके कारण बैंकों को अधिक मात्रा में नकद (UPBoardSolutions.com) कोष रखने की आवश्यकता नहीं होती है।
  5. बैंकों के पारस्परिक सहयोग में वृद्धि समाशोधन-गृहों से बैंकों के पारस्परिक सहयोग की भावना में वृद्धि होती है।
  6. मुद्रा के उपयोग में मितव्ययिता समाशोधन-गृह के कारण बैंकों के आपसी लेन-देन नकद में न होकर सीधे खाते में नाम या जमा होते हैं। इससे मुद्रा के प्रयोग में मितव्ययिता आती है।

समाशोधन-गृह के दोष समाशोधन-गृह के दोष निम्नलिखित हैं-

  1. समाशोधन-गृहों की संख्या कम होना समाशोधन-गृहों की संख्या कम होने के कारण लेन-देन करने में परेशानी होती है।
  2. सदस्यता नियमों में कठोरता होना समाशोधन-गृह में सदस्य बनने के नियमों का कठोरता से पालन किया जाता है।
  3. सभी समाशोधन-गृहों के नियमों में भिन्नता होना सभी समाशोधन-गृहों के नियम अलग-अलग होते हैं, जिससे इनके द्वारा लेन-देन करने में कठिनाई होती है।

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प्रश्न 3.
बैंकिंग क्षेत्र में आधुनिक प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए। (2018)
उत्तर:
पिछले एक दशक में बैंकिंग क्षेत्र में बहुत तेजी से आधुनिकीकरण हुआ है, जिससे बैंकिंग प्रणाली में सरलता व विश्वसनीयता की वृद्धि हुई है। इसके लिए बैंकों द्वारा कुछ आधुनिक विधियाँ अपनाई गई हैं, जिन्हें निम्न शीर्षकों द्वारा समझा जा सकता है

1. साख-पत्र साख-पत्र वह पत्र है, जिसके आधार पर साख-पत्र धारी देश-विदेश में विभागीय भण्डारों, होटलों तथा अन्य प्रमुख संस्थानों से बिना रकम दिए माल अथवा सेवा प्राप्त कर सकता है। इस पत्र का स्पष्ट अर्थ है कि ग्राहक या साख-पत्र धारी को कहीं भी किसी भी परिस्थिति में कोई भी अधिकृत विभागीय भण्डार, होटल या अन्य संस्था उधार माल या सेवा प्रदान कर सकती है और इसका भुगतान बैंक द्वारा ग्राहक के खाते से कर दिया जाता है। इसके लिए बैंक ग्राहक से उस धनराशि पर कुछ दर से ब्याज वसूलता है।

2. यन्त्रीकरण एवं आधुनिकीकरण बैंक अपनी वर्तमान कार्य प्रणाली में सुधार करने, बेहतर व शीघ्र सेवा प्रदान करने के दृष्टिकोण से यन्त्रीकरण व कम्प्यूटरीकरण पर अधिक ध्यान दे रहे हैं, जिससे ग्राहक तथा बैंक कर्मचारियों के समय व श्रम की बचत होती है।

3. यन्त्रीकृत चैक एवं समाशोधन-गृह 1 जुलाई, 2013 से सभी बैंक CTS-2010 मापदण्ड के चैक जारी कर रहे हैं। इन चैकों का महत्त्व यह है कि यह चैक सम्बन्धित बैंक की किसी भी शाखा से भुनाए जा सकते हैं। इसके लिए बैंकों के प्रतिनिधि दो दिन में एक (UPBoardSolutions.com) बार एक अधिकृत व सुरक्षित स्थान पर इन चैकों का बैंकों के अनुसार आपस में आदान-प्रदान करते हैं। जिस स्थान पर इन चैकों का आदान-प्रदान किया जाता है, उसे समाशोधन-गृह कहते हैं।

4. सभी भाषाओं को प्रोत्साहन वर्तमान में बैंक के कर्मचारी व बैंक के उपकरण या यन्त्र सभी भाषाओं (हिन्दी, अंग्रेजी एवं उर्दू) का प्रयोग करते हैं, जिससे ग्राहक की उसकी स्वयं की भाषा में कर्मचारी व उपकरण कार्य कर सकें। इसका महत्त्व अधिक इसलिए है, क्योंकि जिन लोगों को हिन्दी या अंग्रेजी नहीं आती थी तो वे बैंक में रुचि नहीं रखते थे, परन्तु अब ग्राहक की भाषा के अनुसार बैंक कार्य करता है।

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5. दूरसंचार नेटवर्क वर्तमान में सभी बैंकों ने अपने दूरसंचार नेटवर्क को मजबूती व तीव्र गति प्रदान की है, जिससे जो कार्य पहले दो या तीन दिन में हुआ करता था, वर्तमान में वह कार्य कुछ ही मिनटों में हो जाता है। जैसे-रकम का खाते से खाते में हस्तान्तरण, डिमाण्ड ड्राफ्ट का भुनाना, इत्यादि।

6. बैंकिंग एप्लीकेशन्स वर्तमान में प्रत्येक बैंक द्वारा अपनी एक एप्लीकेशन लॉन्च की गयी है, जिसके माध्यम से ग्राहक कहीं भी कभी भी अपने खाते से राशि/रकम दूसरे व्यक्ति के खाते में हस्तान्तरित कर सकता है और अपने खाते की स्थिति विवरण प्राप्त कर सकता है। इस (UPBoardSolutions.com) एप्लीकेशन के माध्यम से ग्राहक/खाताधारक मोबाईल रिचार्ज व बिलों का भुगतान कर सकता है, खरीदारी के साथ-साथ अन्य कार्य भी कर सकता है।
बैंकिंग एप्लीकेशन ऑनलाइन बैंकिंग का आधुनिक स्वरूप है।

7. ऑटोमेटिड टेलर मशीन (ए. टी. एम.) ए. टी. एम. को एनी टाइम मनी के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इस मशीन से 24 घण्टे जब चाहे पैसा निकाला जा सकता है। ए. टी. एम. से ग्राहक पैसा निकाल सकते हैं, जमा कर सकते हैं, एक खाते से दूसरे खाते में हस्तान्तरण करा सकते हैं, नई चैक बुक जारी करा सकते हैं और बैंक खाते का विवरण ले सकते हैं।

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UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 10 कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट्स

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Computer
Chapter Chapter 10
Chapter Name कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट्स
Number of Questions Solved 35
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 10 कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट्स

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
if, if-else तथा switch स्टेटमेण्ट्स हैं।
(a) ब्रांचिंग
(b) जम्पिंग
(c) लूपिंग
(d) कण्डीशन
उत्तर:
(a) ब्रांचिंग

प्रश्न 2
निम्न में से कौन-सा लूप स्टेटमेण्ट नहीं है? [2013]
(a) if
(b) do-while
(c) while
(d) for
उत्तर:
(a) if एक ब्रांचिंग स्टेटमेण्ट है, जो प्रोग्राम में निर्णय लेने के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3
default की-वई किसमें प्रयोग किया जाता है?
(a) goto
(b) if
(c) if-else
(d) switch
उत्तर:
(d) switch

प्रश्न 4
break स्टेटमेण्ट का प्रयोग निम्न में से किससे बाहर जाने में किया जा सकता है?
(a) for लूप
(b) while लूप
(c) Switch स्टेटमेण्ट
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 5
निम्न में से कौन-सा प्रोसेस संख्याओं को निश्चित अंक तक चलाने के लिए उच्चतम है?
(a) for
(b) while
(c) do-while
(d) ये सभी
उत्तर:
(a) for लूप अन्य सभी स्टेटमेण्ट से उच्चतम है।

प्रश्न 6
निम्न में से i++; स्टेटमेण्ट किसके समान है?
(a) i = i +i;
(b) i = i+1;
(c) i = i-1;
(d) i–;
उत्तर:
(b) i++; स्टेटमेण्ट से तात्पर्य है कि उसमें 1 अंक जुड़ जाए, इसलिए 1 = 1+ 1; इसके समान है।

प्रश्न 7. Unconditional branching statement का उदाहरण है [2007]
(a) if else
(b) go to
(c) switch
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) go to

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
कोई नम्बर 2 से विभाजित है अथवा नहीं इसके लिए स्टेटमेण्ट लिखिए।
उत्तर:
if (n%2 == 0)

प्रश्न 2
switch स्टेटमेण्ट का प्रयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
switch स्टेटमेण्टे का प्रयोग प्रोग्राम में दिए गए अनेक मार्गों में से किसी एक का चयन करने में किया जाता है।

प्रश्न 3
लूपिंग किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी प्रोग्राम में निर्देश या निर्देशों के समूहों को एक से अधिक बार एक्जीक्यूट करने को लूपिंग कहते हैं।

प्रश्न 4
जब हमें एक निश्चित संख्या में दोहराव (Repetition) करना हो, तो किस लूप का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
for लूप द्वारा निश्चित संख्या में दोहराव लाया जाता है।

प्रश्न 5
while लूप और do-while लूप में क्या अन्तर है? [2007]
उत्तर:
while लूप में पहले कण्डीशन चैक की जाती है। इसके बाद लूप की बॉडी एक्जीक्यूट होती है, जबकि do-while में पहले लूप की बॉडी एक्जीक्यूट होती है फिर कण्डीशन चैक की जाती है।

प्रश्न 6. किस स्टेटमेण्ट का प्रयोग किसी लूप के शेष स्टेटमेण्टों को छोड़कर
आगे बढ़ जाने के लिए किया जाता है? उत्तर continue स्टेटमेण्ट का प्रयोग किया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न I (2 अंक)

प्रश्न 1
ब्रांचिंग पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए। [2003]
उत्तर:
जब C++ प्रोग्राम में किसी स्टेटमेण्ट पर ऐसी स्थिति आती है कि वहाँ से आगे बढ़ने के लिए एक से अधिक मार्ग होते हैं, तो ऐसी स्थिति ब्रांचिंग कहलाती है। ब्रांचिंग स्थिति को हल करने के लिए ब्रांचिंग कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट का प्रयोग किया जाता है, जो निम्न है।

  1. if स्टेटमेण्ट
  2. if-else स्टेटमेण्ट
  3. switch स्टेटमेण्ट
प्रश्न 2
लूप्स की नेस्टिंग उपयुक्त उदाहरण देकर व्याख्या कीजिए। [2018]
उत्तर:
जब हम एक लूप के अन्दर दूसरी लुप लगाते हैं, तो इस प्रकार की लूप नेस्टिड लूप या लूप्स की नेस्टिंग कहलाती है।
उदाहरण
#include<iostream.h>
void main( )
{
int n, i;
for (n = 1; n< = 10; n = n+ 1)
cout <<"Table is : "<<endl;
for (1 = 1; i< = 10; i ++)
{
cout <<n*i <<endl;
}
cout <<endl;
}
}

प्रश्न 3
break एवं continue स्टेटमेण्ट की उपयोगिता को उदाहरण सहित समझाइए। [2006]
अथवा
break व continue में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2007]
अथवा
उपयुक्त उदाहरण देकर break व countinue स्टेटमेण्ट्स में भेद करें। [2018]
उत्तर:
break व continue में अन्तर निम्न हैं।

break लूप से बाहर निकलने के लिए break स्टेटमेण्ट का प्रयोग होता है।
continue लूप के शेष स्टेटमेण्टों को छोड़कर आगे बढ़ जाने के लिए continue स्टेटमेण्ट का प्रयोग होता है।
उदाहरण
for
(inti = 1; i<= 5; i ++)
{
if(1%2==0)
break;
cout<<i;

उदाहरण
for(inti=1; i<= 5; 1 ++)
{
if(i%2= =0)
continue;
cout<<i;
}
प्रश्न 4
किसी संख्या का फैक्टोरियल निकालने हेतु C++ में प्रोग्राम लिखिए। [2011]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
int num, i, f = 1;
cout<<"Enter the number:";
cin>>num;
for(i = num; i > 0; i--)
{
f=f*i;
}
cout<<"Factorial of the number:"<<f;
}

आउटपुट:
Enter the number: 5
Factorial of the number : 120

प्रश्न 5
C++ में प्रारम्भिक 10 संख्याओं का औसत मान ज्ञात करने के लिए प्रोग्राम लिखिए।
उत्तर:
#include<iostream.h>.
void main( )
int sum=0,n, i=1;
float avg;
cout<<"\n Enter the value of n:";
cin>>n;
do
{
sum = sum + i ;
i = i + 1;
}
while (i <= n);
cout<<"\n Sum is: "<<sum;
avg=(float) sum/n;
cout<<"\n Average is :"<<avg;
}

आउटपुट:
Enter the value of n: 10
Sum is: 55
Average is; 5.5

प्रश्न 6
एक C++ प्रोग्राम लिखिए, जो A से H तक सीरीज प्रिण्ट करे, परन्तु उसमें c तथा F उपस्थित न हो।
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
for (char i='A';i<='H'; ++i)
{
if (i == "c' ।। i == 'F')
{
continue;
}
cout<<<<"\t";
}
}

आउटपुट:
A B D E G H

लघु उत्तरीय प्रश्न II (3 अक)

प्रश्न 1
उदाहरण सहित do-while व for लूप में भेद करें। [2016, 14]
उत्तर:
do-tuhile व for लूप में निम्न अन्तर हैं।

do-while लूप do-while लूप
इस लूप में लूप काउण्टर, असाइनमेण्ट, कण्डीशन की जाँच तथा लूप काउण्टर में दृद्धि या कमी एक साथ नहीं लिखे जा सकते। इस लूप में लूप काउण्टर, असाइनमेण्ट, कण्डीशन की जाँच तथा लूप काउण्टर में दृद्धि या कमी एक साथ नहीं लिखे जा सकते।

उदाहरण
do-while की सहायता से 1 से 20 तक की संख्याओं का योग निकालना।

#include<iostream.h>
void main( )
{
int i= 1, sum = 0;
do
{
sum = sum + i;
i++;
} while(i<=20);
cout<<"The sum is:"<< sum;
}

आउटपुट:
The sum is : 210

उदाहरण
for लूप की सहायता से 1 से 20 तक की संख्याओं का योग निकालना।

#include<iostream.h>
void main( )
{
int i, sum = 0;
for(s = 1 ; i <= 20 : i++)
{
sum = sum + i;
}
cout<<"The sum is :" << sum;
}

आउटपुट:
The sum is : 210

प्रश्न 2
for लूप का प्रयोग करके प्रथम 1000 पूर्णांकों का योगफल ज्ञात - करने हेतु एक प्रोग्राम लिखिए। [2013]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int i;
long sum = 0;
for(i = 0; i < 1000; i++)
{
sum = sum + i;
}
cout<<"The sum is:"<<sum;
}

आउटपुट:
The sum is : 500500

प्रश्न 3
do-while लूप का प्रयोग करके प्रथम एक सौ विषम संख्याओं का योगफल छापने हेतु C++ भाषा में एक प्रोग्राम लिखिए। [2013, 03]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int i = 1, sum = 0;
do
{
if(1%2 ! = 0)
{
Sum=sum + 1;
}
1++;
} whi1e(i < = 100);
cout<<"The sum is :"<<sum;
}

आउटपुट:
The sum is : 2500

प्रश्न 4
goto, break व continue स्टेटमेण्ट्स को समझाइए। [2016]
उत्तर:
goto स्टेटमेण्ट इस स्टेटमेण्ट का प्रयोग प्रोग्राम के एक्जीक्यूशन का सामान्य क्रम बदलने के लिए किया जाता है, जिससे प्रोग्राम का नियन्त्रण प्रोग्राम में किसी अन्य स्थान पर बिना शर्त अन्तरित हो जाता है।
प्रारूप label:
goto label name;

break स्टेटमेण्ट इस स्टेटमेण्ट का प्रयोग किसी भी प्रकार के लूप से बाहर निकलने के लिए किया जा सकता है। यह केवल सबसे भीतरी लुप के लिए लागू होगा, जिसमें इसका प्रयोग किया गया हो।
प्रारूप break;

continue स्टेटमेण्ट इस स्टेटमेण्ट का प्रयोग किसी लुप के शेष स्टेटमेण्टो को छोड़कर आगे बढ़ जाने के लिए किया जाता है। इस स्टेटमेण्टो के प्रयोग से लूप समाप्त नहीं होता, बल्कि उस पास (Pass) में लूप के आगे के स्टेटमेण्ट को छोड़ दिया जाता है। अगले पासों में लूप सामान्य रूप में चलता रहता है।
प्रारूप continue;

प्रश्न 5
C++ में एक प्रोग्राम लिखिए, जो किसी दो अंकीय पूर्णांक का पहाड़ा छापे। [2016]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int n, i, table;
cout<<"Enter the number:";
cin>>n;
cout<<"Table\n";
for(i = 1; i< = 10; i++)
{
table = n* i;
cout<< table << endl;
}
}

आउटपुट
Enter the number: 12
Table
12
24
36
48
60
72
84
96
108
120

प्रश्न 6
C++ में तीन संख्याएँ इनपुट कीजिए तथा फिर उनमें से सबसे बड़ी को बताइए।
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int a, b, C;
cout<<"Enter the value of a, b. and c\n";
cina >>b>>c;
if( (a > b) && (a > c))
cout<< "a is the largest number";
{
else if ((b> a) && (b> c))
{
cout<<"b is the largest number";
}
else
cout<<"c is the largest number";
}

आउटपुट
Enter the value of a, b and c
12
34
54
c is the largest number

प्रश्न 7
C++ में एक पाँच अंकीय संख्या के समस्त अंकों का योग प्रदर्शित करने हेतु एक प्रोग्राम लिखिए। [2008]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
unsigned long i,pin, sum = 0;
cout<<"Enter any number:";
cin>>n;
while(n!=0)
{
p = n %10;
sum + = p;
n = n/10;
}
cout<<endl<<"Sum of digits is:"<<sum;
}

आउटपुट
Enter any number: 36768
Sum of digits is : 30

प्रश्न 8
किसी दी हुई संख्या को उलट कर लिखने के लिए एक C++ प्रोग्राम forced [2009]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int n, rev = 0, rem;
cout<< "Enter an integer:";
cin>>n;
while(n! = 0)
{
rem = n$10;
rev = rev * 10+rem;
n = n/10;
}
cout<<"Reversed number=" <<rev;
}

आउटपुट
Enter an integer : 4567
Reversed number = 7654

प्रश्न 9
do-while लूप की सहायता से 8 व 11 का पहाड़ा लिखने हेतु C++ भाषा में एक प्रोग्राम लिखिए। (2003)
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int n,m;
cout<<"Enter n:";
cin>>n;
cout<<"Enter m:";
cin>>m;
int i = 1;
do
{
cout<<n*i<<"\t"<<m*i<<end1
i++;
} while (i< = 10);
}

आउटपुट
Enter n: 8
Enter m: 11
8        11
16      22
24     33
32     44
40    55
48    66
56     77
64    88
72    99
80   110

प्रश्न 10
- 100 व 100 के बीच पड़ने वाली सभी विषम संख्याओं का योग निकालने के लिए C++ में एक प्रोग्राम लिखिए। [2018]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int i, sum=0;
for (1= -100; 1<=100; 1< = 100; i=1+2)
{
if (i%2!=0)
{
sum = sum + i;
}
}
cout<<"The sum is:" <<sum;
}

आउटपुट
The sum is : 0
प्रश्न 11
for लूप का प्रयोग करते हुए 5 का पहाड़ा छापने के लिए C++ में एक प्रोग्राम लिखिए। [2018]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int i, n=5;
cout<< "The table is:" <<endl;
for (i=1; i<=10; i++)
{
cout<<n*i<<end1;
}
}

आउटपुट
The table is
5
1o
15
20
25
30
35
40
45
50

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)

प्रश्न 1
ब्रांचिंग का संक्षिप्त विवरण दीजिए। दी गई संख्या सम है या विषम, जानने के लिए C++ में प्रोग्राम लिखिए। [2012, 03]
उत्तर
जब C++ प्रोग्राम में किसी स्टेटमेण्ट पर ऐसी स्थिति आती है कि वहाँ से आगे बढ़ने के लिए एक से अधिक मार्ग होते हैं तो ऐसी स्थिति ब्रांचिंग कहलाती है। ब्रांचिंग स्थिति को हल करने के लिए ब्रांचिंग कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट का प्रयोग किया जाता है, जो निम्न हैं।

  1. if स्टेटमेण्ट
  2. if-else स्टेटमेण्ट
  3. switch स्टेटमेण्ट

दी गई संख्या सम है या विषम, जानने के लिए प्रोग्राम

#include<iostream.h>
void main( )
{
int num;
cout<<"Enter the number:";
cin>>num;
if (nurm2 == 0)
cout<<"The number is Even";
else
cout<<"The number is Odd";
}

आउटपुट
Enter the number : 25
The number is Odd

प्रश्न 2
C++ में, for तथा while loops का वर्णन कीजिए। C++ में, स्क्रीन पर निम्न चित्र को दर्शाने हेतु प्रोग्राम लिखिए। [2014, 12]
* * * * * *
* * * *
* * *
* *
*
उत्तर:
for लूप इस लूप का प्रयोग प्रोग्राम में ऐसे स्थानों पर किया जाता हैं। जब हमें किसी स्टेटमेण्ट या स्टेटमेण्ट के समूह का एक्जीक्यूशन एक निश्चित बार कराना हो।
while लूप इस लूप का प्रयोग प्रोग्राम में ऐसे स्थानों पर किया जाता है, जहाँ हमें यह पता नहीं होता कि लूप का एक्जीक्यूशन कितनी बार किया जाएगा। इसमें प्रत्येक बार लूप का एक्जीक्यूशन करने से पहले एक शर्त की जाँच की जाती है, जिसके सत्य होने पर ही लूप के स्टेटमेण्टों को एक्जीक्यूट किया जाता है अन्यथा कण्ट्रोल लूप से बाहर आ जाता है।

#include<iostream.h>
void main( )
{
int i, j, rows=5;
for(i=rows; i>= 1; --i)
{
for(j=1; j<=i ; ++j)
{
cout«"* ";
}
cout<<"\n";
}
}
प्रश्न 3
1 से 10 तक का पहाड़ा लिखने के लिए C++ में while लूप का प्रयोग करते हुए एक प्रोग्राम लिखिए। [2014]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int i, j;
for(i = 1; i <=10 : i + + )
{
j = 1;
while(i <=10)
{
cout<<i*j<<"\t";
j++;
}
cout<< endl;
}
}

आउटपुट
UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 10 कण्ट्रोल स्टेटमेण्ट्स img-1

प्रश्न 4
C++ में किन्हीं दस संख्याओं का योग एवं औसत प्रदर्शित करने हेतु प्रोग्राम लिखिए। (अपनी इच्छानुसार अंक ले) (2008)
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int i, sum = 0, avg, num;
cout<<"Enter the numbers"<< endl;
for(i = 0; i < 10 ; i++)
{
cin>>num;
sum = sum + num;
}
avg = sum/10;
cout<<"The sum is:"<<sum <<endl;
cout<<"The average is:"<<avg;
}

आउटपुट
Enter the numbers
3
4
5
7
4
9
8
5
4
9
The sum is : 58
The average is : 5

प्रश्न 5:
निम्न श्रेणी का योग ज्ञात करने के लिए C++ में एक प्रोग्राम लिखिए। 1 + [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] + [latex]\frac { 1 }{ 3 }[/latex] + [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] +.......+[latex]\frac { 1 }{ n }[/latex] [2009]
उत्तर:
#include<iostream.h>
void main( )
{
int n;
double i, sum = 0;
cout<<"1 + [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] + [latex]\frac { 1 }{ 3 }[/latex] + [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] +.......+[latex]\frac { 1 }{ n }[/latex]"<<end1;
cout<<"Enter the value of n:"<<end1;
cin >>n;
for(i = 1; i <=n; i++)
{
sum = sum (1/i);
}
cout<< "The sum of series is:"<< sum;
}

आउटपुट
1 + [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] + [latex]\frac { 1 }{ 3 }[/latex] + [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] +…….+[latex]\frac { 1 }{ n }[/latex]
Enter the value of n:5
The sum of series is : 2.283333

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi वाक्यों में त्रुटि-मार्जन

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi वाक्यों में त्रुटि-मार्जन are part of UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi वाक्यों में त्रुटि-मार्जन.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 6
Chapter Name वाक्यों में त्रुटि-मार्जन
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi वाक्यों में त्रुटि-मार्जन

नवीनतम पाठ्यक्रम में वाक्यों में त्रुटि-मार्जन अर्थात् वाक्य-संशोधन को सम्मिलित किया गया है। इसमें लिंग, वचन, कारक, काल तथा वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियों के संशोधन कराये जाते हैं। इसके लिए कुल 2 अंक निर्धारित हैं।

वाक्य भाषा की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई होती है। यदि वाक्य-रचना निर्दोष हो तो वक्ता/लेखक का आशय श्रोता/पाठक को समझने में कठिनाई नहीं होती। दोषपूर्ण वाक्य से आशय स्पष्ट नहीं हो पाता; अतः वाक्य-रचना का निर्दोष होना अत्यन्त आवश्यक है। वाक्य-रचना में दोष अनेक कारणों से हो सकते हैं। यदि वाक्य में लिंग, वचन, पुरुष, काल, वाच्य, विभक्ति, शब्दक्रम आदि में कोई भी दोषपूर्ण हुआ तो वाक्य सदोष हो जाता है। शुद्ध वाक्य-रचना के लिए व्याकरण-ज्ञान परमावश्यक है। वाक्य-रचना की अशुद्धियाँ निम्नलिखित प्रकार की हो सकती हैं-

  1. अन्विति सम्बन्धी अशुद्धियाँ।
  2. पदक्रम सम्बन्धी अशुद्धियाँ।
  3. वाच्य सम्बन्धी अशुद्धियाँ।
  4. पुनरुक्ति सम्बन्धी अशुद्धियाँ।
  5. पदों की अनुपयुक्तता सम्बन्धी अशुद्धियाँ।
  6. वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ।

(1) अन्विति सम्बन्धी अशुद्धियाँ
वाक्यों में पदों की एकरूपता (लिंग, वचन, पुरुष आदि) के साथ क्रिया की भी अनुरूपता होनी चाहिए। हिन्दी में पदों की क्रिया के साथ इसी अनुरूपता अर्थात् अन्विति के कुछ विशेष नियम हैं-
(क) कर्ता-क्रिया की अन्विति
(1) विभक्तिरहित कर्ता वाले वाक्य की क्रिया सदा कर्ता के अनुसार होती है। यदि कर्ता के साथ ‘ने’ विभक्ति चिह्न जुड़ा हो तो सकर्मक क्रिया कर्म के लिंग, वचन के अनुसार होती है; जैसे

  • लड़का पुस्तक पढ़ता है। (कर्ता के अनुसार)
  • लड़की पत्र पढ़ती है। (कर्ता के अनुसार)
  • लड़के ने पुस्तक पढ़ी। (कर्म के अनुसार)
  • लड़की ने पत्र पढ़ा। (कर्म के अनुसार)

(2) कर्ता और कर्म दोनों विभक्ति-चिह्नसहित हों तो क्रिया पुंल्लिग एकवचन में होती है; जैसे-

  • प्रधानाचार्य ने अध्यापिका को बुलाया।
  • नेताओं ने किसानों को समझाया।

(3) यदि समान लिंग के विभक्ति-चिह्नरहित अनेक कर्ता पद ‘और’ से जुड़े हों तो क्रिया उसी लिंग की तथा बहुवचन में होती है; जैसे–

  • स्वाति, चित्रा और मधु आएँगी।
  • डेविड, नीरज और असलम खेल रहे हैं।

(4) ‘या’ से जुड़े विभक्तिरंहित कर्ता पदों की क्रिया अन्तिम कर्ता के अनुसार होती है; जैसे-
भाई या बहन आएगी।
(5) विभिन्न लिंगों के अनेक कर्त्ता यदि ‘और’ से जुड़े हों तो क्रिया पुंल्लिग बहुवचन में होती है; जैसे-
गणतन्त्र दिवस की परेड को लाखों बालक, वृद्ध और नारी देख रहे थे।
(6) यदि कर्ता भिन्न-भिन्न पुरुषों के हों तो उनका क्रम होगा—पहले मध्यम पुरुष, फिर अन्य पुरुष और अन्त में उत्तम पुरुष। क्रिया अन्तिम कर्ता के लिंग के अनुसार बहुवचन में होगी; जैसे-

  • तुम, गीता और मैं नाटक देखने चलेंगे।
  • तुम, विकास और मैं टेनिस खेलेंगे।

(7) कर्ता का लिंग अज्ञात हो तो क्रिया पुंल्लिग में होगी; जैसे-

  • देखो, कौन आया है ?
  • तुम्हारा पालन-पोषण कौन करता है ?

(8) आदर देने के लिए एकवचन कर्ता के लिए भी क्रिया बहुवचन में प्रयुक्त होती है; जैसे-

  • मुख्यमन्त्री भाषण दे रहे हैं।
  • महात्मा गाँधी राष्ट्रपिता माने जाते हैं।

(9) सम्बन्ध कारक का लिंग उसके सम्बन्धी के लिंग के अनुसार होता है–यदि ये लोग भिन्न-भिन्न लिंग के हों तथा ‘और’ से जुड़े हों तो संज्ञा-सर्वनाम का लिंग प्रथम सम्बन्धी के अनुसार होगा; जैसे—

  • मेरा बेटा और बेटी दिल्ली गये हैं।
  • मेरे भाई-बहन पढ़ रहे हैं।
  • तुम्हारे भाई और बहन आजकल क्या कर रहे हैं ?

(ख) कर्म और क्रिया की अन्विति
(1) यदि कर्ता ‘को’ प्रत्यय से जुड़ा हो तथा कर्म के स्थान पर कोई क्रियार्थक संज्ञा प्रयुक्त हुई हो तो क्रिया सदैव एकवचन, पुंल्लिग तथा अन्य पुरुष में होगी; जैसे

  • उसे (उसको) पुस्तक पढ़ना नहीं आता।
  • तुम्हें (तुमको) बात करने नहीं आता।

(2) यदि वाक्य में कर्ता ‘ने’ विभक्ति से युक्त हो तथा कर्म की ‘को’ विभक्ति प्रयुक्त नहीं हुई हो तो वाक्य की क्रिया कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार प्रयुक्त होगी; जैसे-

  • श्याम ने पुस्तक पढ़ी।
  • श्यामा ने क्षमा माँगी।

(3) यदि एक ही लिंग और वचन के अनेक अप्रत्यय कर्म एक साथ एक वचन में आयें तो क्रिया एक वचन में होगी; जैसे

  • राघव ने एक घोड़ा और एक ऊँट खरीदा।
  • रमेश ने एक पुस्तक और एक कलम खरीदी।

(4) यदि एक ही लिंग और वचन के अनेक प्राणिवाचक अप्रत्यय कर्म एक साथ प्रयुक्त हों तो क्रिया उसी लिंग में तथा बहुवचन में प्रयुक्त होगी; जैसे-

  • महेश ने गाय और बकरी मोल लीं।
  • लक्ष्मण ने दूध के लिए गाय और भैंस खरीदीं।

(5) यदि वाक्य में भिन्न-भिन्न लिंग के एकाधिक अप्रत्यय कर्म प्रयुक्त हों तथा वे ‘और’ से जुड़े हों तो क्रिया-अन्तिम कर्म के लिंग और वचन के अनुसार प्रयुक्त होगी; जैसे-

  • रमेश ने चावल, दाल और रोटी खायी।
  • सुरेश ने रोटी, दाल और चावल खाया।

(ग) विशेषण और विशेष्य की अन्विति,
(1) विशेषण का लिंग और वचन अपने विशेष्य के अनुसार होता है; जैसे

  • यहाँ उदार और परिश्रमी लोग रहते हैं।
  • गोरे मुखड़े पर काला तिल अच्छा लगता है।

(2) यदि एक से अधिक विशेषण हों, तब भी उपर्युक्त नियम का ही पालन होता है; जैसे| वह गिरती-उठती, ऊँची-ऊँची लहरों को निहारती रही।
(3) अनेक समासरहित विशेष्यों को विशेषण निकटवर्ती विशेष्य के अनुरूप होता है; जैसे-

  • भोले-भाले बालक और बालिकाएँ।
  • भोली-भाली बालिकाएँ और बालक।

(घ) सर्वनाम और संज्ञा की अन्विति
(1) सर्वनाम उसी संज्ञा के लिंग-वचन का अनुसरण करता है, जिसके स्थान पर वह आया है; जैसे-

  • मैंने सुमन को देखा, वह आ रही थी।
  • मैंने विजय को देखा, वह आ रहा था।

(2) आदर के लिए बहुवचन सर्वनाम का प्रयोग होता है; जैसे-

  • दादाजी आये हैं। वे एक महीना रुकेंगे।
  • कंथावाचक व्यास जी आ चुके हैं। अब वे नियमित पन्द्रह दिन तक प्रवचन करेंगे।

(3) वर्ग का प्रतिनिधि अपने लिए ‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’ का प्रयोग करता है; जैसे–

  • शिक्षा मन्त्री ने कहा कि हमें अपने देश से अशिक्षा दूर करनी है।।
  • शिक्षक ने कहा कि हमें अपने देश का गौरव बढ़ाना है।

अन्विति सम्बन्धी अशुद्धियों के उदाहरण

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(2) पदक्रम सम्बन्धी अशुद्धियाँ

वाक्य पदों और पदबन्धों से बनता है। वाक्य के साँचे में पदों का क्या क्रम हो, इसके कुछ निश्चित नियम हैं-
(1) प्रायः कर्तापद वाक्य में सबसे पहले आता है और क्रियापद सबसे अन्त में; जैसे–

  • भिखारी आ रहा है।
  • सूर्योदय हो गया।

(2) सम्बोधन और विस्मयसूचक पद वाक्य के प्रारम्भ में कर्ता से भी पहले आते हैं; जैसे-

  • अरे ! भिखारी आ रहा है।
  • अहा ! सूर्योदयं हो गया।

(3) कर्मपद कर्ता और क्रियापदों के बीच रहता है; जैसे।

  • राजेश पाठ पढ़ाता है।
  • बच्चे ने गीत सुनाया।

(4) सम्बन्धकारक अपने सम्बन्धी शब्द से पूर्व आता है; जैसे-

  • भिखारी के बच्चे ने रहीम का पद सुनाया।
  • वह तुम्हारा नाम पूछ रहा था।

(5) प्रश्नवाचक पद प्रश्न के विषय में पूर्व आता है; जैसे-

  • कौन खड़ा है ? (कर्ता पर प्रश्न)
  • तुम क्या खा रही हो ? (कर्म पर प्रश्न)
  • वह कैसे आया ? (रीति पर प्रश्न)

(6) कर्ता और कर्म को छोड़कर शेष सभी कारक कर्ता-कर्म के बीच आते हैं। एक से अधिक कारक रूप होने पर ये उल्टे क्रम में (पहले अधिकरण) रखे जाते हैं; जैसे-

  • मजदूर खेत में रहट से सिंचाई कर रहे थे।
  • छात्र मैदान में अपने मित्रों के साथ हॉकी खेलने लगे।

(7) पूर्वकालिक क्रिया, मुख्य क्रिया से पहले आती है; जैसे-

  • कल पढ़कर आइए।
  • कल मुँह धोकर आना।।

(8) ‘न’ या ‘नहीं’ का प्रयोग निषेध के अर्थ में हो तो क्रिया से पूर्व और आग्रह के अर्थ में हो तो क्रिया के बाद होता है; जैसे-

  • मैं नहीं जाऊँगा।
  • तुम आओ न।।

(9) पदक्रमों में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वाक्य के विभिन्न पदों में ऐसी तर्कसंगत निकटता होनी चाहिए, जिससे कि वाक्य द्वारा अपेक्षित अर्थ स्पष्ट हो। उदाहरण के लिए निम्नलिखित वाक्य देखें-

  • फल बच्चे को काटकर खिलाओ।
  • गर्म गाय का दूध स्वास्थ्यवर्द्धक होता है।

उपर्युक्त दोनों वाक्यों का अर्थ अटपटा और हास्यास्पद है। इन वाक्यों का उचित क्रम होगा

  • बच्चे को फल काटकर खिलाओ।
  • गाय का गर्म दूध स्वास्थ्यवर्द्धक होता है।

अन्य उदाहरण

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(3) वाच्य सम्बन्धी अशुद्धियाँ

वाच्य सम्बन्धी अशुद्धियों से भाषा का सौन्दर्य नष्ट हो जाता है। इस प्रकार की अशुद्धियों से अर्थ का अनर्थ होने का भय प्रायः कम ही रहता है। इस प्रकार की अशुद्धियों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं–

अशुद्ध वाक्य

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(4) पुनरुक्ति सम्बन्धी अशुद्धियाँ

पीछे दिये गये तीन भेदों के अतिरिक्त वाक्य में कुछ ऐसी अशुद्धियाँ भी मिलती हैं, जिनके मूल में एक ही घटक को दो भिन्न रीतियों से एक साथ उद्धृत किया गया होता है; जैसे-

(क) मुझे केवल दस रुपये मात्र मिले। (अशुद्ध)
(ख) मुझे केवल दस रुपये मिले। (शुद्ध)
(ग) मुझे दस रुपये मात्र मिले। (शुद्ध)

यहाँ प्रथम वाक्य अशुद्ध है; क्योंकि केवल’ शब्द के अर्थ को दो विभिन्न रीतियों के माध्यम से एक साथ प्रयुक्त कर दिया गया है। ऐसी अशुद्धियों के मूल में पुनरावृत्ति या पुनरुक्ति की भावना रहती है। आगे कुछ उदाहरणों की सहायता से इसे और अधिक स्पष्ट किया जा रहा है-
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(5) पदों की अनुपयुक्तता सम्बन्धी अशुद्धियाँ

कई बार लिखते समय हम वाक्यों में पदों के अनुपयुक्त रूपों का प्रयोग करके उन्हें अशुद्ध बना देते हैं। इस प्रकार की अशुद्धियों से बचने के लिए व्याकरण का ज्ञान होना अति आवश्यक है। पद-भेदों के अनुसार इस प्रकार की अशुद्धियों के भी अनेक भेद हैं, जिन्हें उदाहरणसहित यहाँ समझाया जा रहा है। दिये गये उदाहरणों में अनुपयुक्त पद को मोटे अक्षरों में अंकित किया गया है और उनके उपयुक्त (शुद्ध) रूप को वाक्य के सम्मुख कोष्ठक में दिया गया है।
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(6) वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ

वर्तनी का शाब्दिक अर्थ है-वर्तन यानि अनुवर्तन करना अर्थात् पीछे-पीछे चलना। लेखन-व्यवस्था में वर्तनी शब्द-स्तर पर शब्द की ध्वनियों का अनुवर्तन करती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि शब्द-विशेष के लेखन में शब्द की एक-एक करके आने वाली ध्वनियों के लिए लिपि-चिह्नों के क्या रूप हों और उनका कैसा संयोजन हो यह वर्तनी (वर्ण-संयोजन) का कार्य है।

वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ प्रायः निम्नलिखित कारणों से होती हैं—

(1) असावधानी अथवा शीघ्रता--वर्तनी सम्बन्धी अधिकांश अशुद्धियाँ असावधानी व शीघ्रता के कारण ही होती हैं। बहुत बार अच्छी तरह से ज्ञात शब्द के लिखने में भी अशुद्धि हो जाती है; जैसे-गौण का गौड़, धन का घन, पत्ता का पता आदि। ऐसी भूलों के निवारण के लिए यही सलाह दी जा सकती है कि लेखन-कार्य अत्यधिक सावधानी से करना चाहिए।

(2) उच्चारण-हिन्दी भाषा की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि वह जैसे बोली जाती है, वैसे ही लिखी जाती है और जैसे लिखी जाती है वैसे ही पढ़ी या बोली भी जाती है। उच्चारण अवयव में दोष, बोलने में अंसावधानी, शुद्ध उच्चारण का ज्ञान न होने आदि कारणों से उच्चारण में अन्तर आ जाता है और इस भूल का निराकरण न होने तक वर्तनी से सम्बन्धित अशुद्धियाँ होती ही रहती हैं।

(3) स्थानिक प्रभाव-भाषा का सौन्दर्य और सौष्ठव उसके गठन और उच्चारण की शुद्धता पर आधारित होता है। शुद्ध उच्चारण से ही भाषा का लिखित रूप (वर्तनी) शुद्ध होता है। अंग्रेजी बोलने वाला कितना ही अभ्यास कर ले, जब भी वह हिन्दी बोलेगा, उसके उच्चारण में अंग्रेजी का पुट जाने-अनजाने आ ही जाएगा। यही स्थिति हिन्दी में भी होती है। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग, दिल्ली व हरियाणा के निवासी ‘क, ख, ग’ को ‘कै, खै, गै, बोलते हैं, जबकि पूर्वी अंचल में इसका अभ्यास ‘क, खे, ग’ का ही विकसित होता है। स्वाभाविक है कि क्षेत्र-विशेष के उच्चारण का प्रभाव लिखने पर भी पड़ता है; परिणामस्वरूप वर्तनी में भी ऐसी ही भूलें दिखाई देती हैं। हिन्दी भाषा में वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ निम्नलिखित प्रकार की होती हैं-

  • स्वर (मात्रा) सम्बन्धी
  • व्यंजन सम्बन्धी
  • सन्धि सम्बन्धी
  • समास सम्बन्धी
  • विसर्ग सम्बन्धी तथा
  • हलन्त सम्बन्धी

वर्तनी से सम्बन्धित उपर्युक्त समस्त बिन्दुओं पर विवरण देना यहाँ नितान्त अप्रासंगिक है और परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी भी नहीं है। विद्यार्थियों से तो इतनी ही अपेक्षा है कि वे हिन्दी को अधिक-से-अधिक शुद्ध रूप में लिखें। इसके लिए उन्हें अधिकाधिक हिन्दी लिखने का अभ्यास करना चाहिए। हिन्दी की स्तरीय पुस्तकों का अध्ययन इसमें सहायक सिद्ध होगा।

अशुद्धियों के बहु-प्रचलित कुछ उदाहरण

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 18 सहकारी बैंक

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 18 सहकारी बैंक are the part of UP Board Solutions for Class 10 Commerce. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 18 सहकारी बैंक.

Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 18
Chapter Name सहकारी बैंक
Number of Questions Solved 21
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 18 सहकारी बैंक

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भारत में सहकारी समिति अधिनियम कब पारित हुआ? (2014)
(a) सन् 1901 में
(b) सन् 1904 में
(c) सन् 1903 में
(d) सन् 1905 में
उत्तर:
(b) सन् 1904 में

प्रश्न 2.
केन्द्रीय सहकारी बैंक किस स्तर पर होते हैं?
(a) ग्राम स्तर पर
(b) प्रदेश स्तर पर
(c) जिला स्तर पर
(d) मण्डल स्तर पर
उत्तर:
(c) जिला स्तर पर

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प्रश्न 3.
केन्द्रीय सहकारी बैंक कितने प्रतिशत लाभ का वितरण करते हैं?
(a) 25%
(b) 30%
(c) 75%
(d) 40%
उत्तर:
(c) 75%

प्रश्न 4.
केन्द्रीय सहकारी बैंक का मुख्य कार्य होता है।
(a) जननिक्षेप प्राप्त करना
(b) क्षेत्रीय व्यवस्था को प्रोत्साहित करना
(c) ग्रामीण साख-सुविधा प्रदान करना
(d) उपभोक्ताओं को ऋण देना
उत्तर:
(c) ग्रामीण साख-सुविधा प्रदान करना

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
केन्द्रीय सहकारी बैंक का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
जिला सहकारी बैंक

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प्रश्न 2.
केन्द्रीय सहकारी बैंक की स्थापना गाँव/शहर में की जाती हैं।
उत्तर:
शहर

प्रश्न 3.
केन्द्रीय सहकारी बैंकों का प्रबन्ध किसके द्वारा किया जाता है?
उत्तर:
संचालक मण्डल

प्रश्न 4.
केन्द्रीय सहकारी बैंक अल्पकालीन/दीर्घकालीन ऋण देते हैं।
उत्तर:
अल्पकालीन

प्रश्न 5.
राज्य सहकारी बैंक का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
शीर्ष बैंक

प्रश्न 6.
भारत के सहकारी साख आन्दोलन में सरकारी हस्तक्षेप कम/अधिक होता है।
उत्तर:
अधिक

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प्रश्न 7.
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना सन् 1975/1980 में की गई। (2014)
उत्तर:
सन् 1975 में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
सहकारी बैंकों के दो लक्षण बताइए।
उत्तर :
सहकारी बैंक के दो लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. प्रबन्ध इन बैंकों के प्रबन्ध का कार्य लोकतान्त्रिक आधार पर किया जाता है।
  2. स्थापना का उद्देश्य सहकारी बैंकों की (UPBoardSolutions.com) स्थापना व्यक्तियों द्वारा स्वयं के कल्याण अर्थात् स्वयं की सहायता के उद्देश्य से की जाती है।

प्रश्न 2.
सहकारी बैंक के प्रकार बताइए।
उत्तर:
सहकारी बैंक निम्नलिखित निम्न प्रकार के होते हैं

  1. केन्द्रीय सहकारी बैंक
  2. राज्य सहकारी बैंक

प्रश्न 3.
केन्द्रीय सहकारी बैंक से क्या आशय है?
उत्तर:
केन्द्रीय सहकारी बैंक को ‘जिला सहकारी बैंक (District Co-operative Bank) भी कहते हैं। इन बैंकों का प्रमुख उद्देश्य जिले की प्राथमिक समितियों से सम्पर्क स्थापित करना, उनका निरीक्षण करना व उन्हें सहयोग प्रदान करना होता है। यह प्रत्येक (UPBoardSolutions.com) जिले में एक ही होता है तथा इसकी स्थापना शहर में की जाती है।

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प्रश्न 4.
सहकारी बैंक के चार कार्य लिखिए। (2018)
उत्तर:
सहकारी बैंक के चार कार्य निम्नलिखित हैं

  1. ये बैंक सहकारी शिक्षा को बढ़ावा देते हैं।
  2. ये बैंक सम्पूर्ण प्रादेशिक सहकारी आन्दोलने के लिए वित्त की व्यवस्था ए करते हैं।
  3. ये बैंक केन्द्रीय सहकारी बैंक के मार्गदर्शक होते हैं।
  4. ये बैंक प्रदेश के अनेक केन्द्रीय बैंकों के मध्य सन्तुलन बनाए रखते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
सहकारी बैंक के बारे में आप क्या जानते हैं? वर्णन कीजिए। (2010)
उत्तर:
सहकारी बैंक (को-ऑपरेटिव बैंक) व्यक्तियों के ऐसे संगठन, जो समानता, स्वयं सहायता व प्रजातान्त्रिक आधार पर सभी के हित के लिए बैंकिंग सम्बन्धी सभी कार्य करते हैं, सहकारी बैंक कहलाते हैं। सहकारी बैंक, सहकारी समितियों का एक संगठन होता है। इन बैंकों की स्थापना सन् 1904 में सहकारी साख अधिनियम के पारित होने के बाद हुई। हेनरी वोल्फ के अनुसार, “सहकारी बैंकिंग एक ऐसी एजेन्सी है, जो छोटे वर्ग के व्यक्तियों से व्यवहार करने की स्थिति में है तथा जो अपनी शर्तों के अनुसार उनकी जमाओं को स्वीकार करती है व ऋण प्रदान करती है।

सहकारी बैंक कृषकों को वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन उधार देते हैं। सहकारी बैंक कषकों को बीज व खाद खरीदने, मजदरी का भगतान करने, भमि में सधार करवाने, कृषि उपकरणों को खरीदने के लिए किसानों को ऋण देते हैं। सहकारी बैंक किसानों (UPBoardSolutions.com) को सस्ती ब्याज दर एवं सरल शर्तों पर ऋण प्रदान करते हैं। भारत में सहकारी बैंक का ढाँचा त्रि-स्तरीय है। सहकारी बैंक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  1. जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक इनके द्वारा प्राथमिक साख समितियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूर्ण किया जाता है।
  2. राज्य स्तर पर शीर्ष बैंक ये बैंक राज्य में सहकारी आन्दोलन के विकास हेतु उत्तरदायी होते हैं।

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प्रश्न 2.
सहकारी बैंकों के दोषों का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
सहकारी बैंकों के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

  1. सरकार को अधिक नियन्त्रण इन बैंकों पर सरकार का अधिक नियन्त्रण रहता है, इसलिए जनता इन्हें अपना सहायक न मानकर सरकारी संस्थाएँ मानती है।
  2. अकुशल संचालक ग्रामीण क्षेत्रों की समितियों के संचालक बैंकों का प्रबन्ध सुव्यवस्थित प्रकार से नहीं कर पाते हैं।
  3. पूँजी की कमी भारतीय सहकारी बैंकों के पास पूँजी का अभाव पाया जाता है, इसलिए ये बैंक कुशलता से कार्य करने में असमर्थ होते हैं।
  4. ऋण वसूल करने में देरी सहकारी बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों की राशि समय (UPBoardSolutions.com) पर वसूल नहीं हो पाती है। इससे उनकी कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
  5. अधिक ब्याज दर इन बैंकों के पास पर्याप्त मात्रा में नकद कोष नहीं होता है, इसलिए ये समितियाँ दूसरों के ऋण पर निर्भर रहती हैं। अत: इनके ब्याज की दर अन्य संस्थाओं से अधिक होती है।
  6. सहकारिता के सिद्धान्तों का ज्ञान न होना भारतीय ग्रामीण जनता व इन समितियों के कर्मचारियों को सहकारिता के सिद्धान्तों का ज्ञान नहीं होता है। इससे ये संस्थाएँ सफल नहीं हो पाती हैं।

प्रश्न 3.
वाणिज्यिक बैंक व सहकारी बैंक में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2009,07)
उत्तर:
वाणिज्यिक व सहकारी बैंकों में अन्तर
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
को-ऑपरेटिव बैंक (सहकारी बैंक) क्या है? इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
अथवा
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में सहकारी बैंकों की भूमिका की विवेचना कीजिए। (2011, 06)
अथवा
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारी बैंक का महत्त्व बताइए। (2008)
अथवा
सहकारी बैंकों के गुणों का वर्णन कीजिए। (2007)
उत्तर:
को-ऑपरेटिव बैंक से आशय

सहकारी बैंक (को-ऑपरेटिव बैंक) व्यक्तियों के ऐसे संगठन, जो समानता, स्वयं सहायता व प्रजातान्त्रिक आधार पर सभी के हित के लिए बैंकिंग सम्बन्धी सभी कार्य करते हैं, सहकारी बैंक कहलाते हैं। सहकारी बैंक, सहकारी समितियों का एक संगठन होता है। इन बैंकों की स्थापना सन् 1904 में सहकारी साख अधिनियम के पारित होने के बाद हुई। हेनरी वोल्फ के अनुसार, “सहकारी बैंकिंग एक ऐसी एजेन्सी है, जो छोटे वर्ग के व्यक्तियों से व्यवहार करने की स्थिति में है तथा जो अपनी शर्तों के अनुसार उनकी जमाओं को स्वीकार करती है व ऋण प्रदान करती है।

सहकारी बैंक कृषकों को वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन उधार देते हैं। सहकारी बैंक कषकों को बीज व खाद खरीदने, मजदरी का भगतान करने, भमि में सधार करवाने, कृषि उपकरणों को खरीदने के लिए किसानों को ऋण देते हैं। सहकारी बैंक किसानों को सस्ती ब्याज दर एवं सरल शर्तों पर ऋण प्रदान करते हैं। भारत में सहकारी बैंक का ढाँचा त्रि-स्तरीय है। सहकारी बैंक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  1. जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक इनके द्वारा प्राथमिक साख समितियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूर्ण किया जाता है।
  2. राज्य स्तर पर शीर्ष बैंक ये बैंक राज्य में सहकारी आन्दोलन के विकास हेतु उत्तरदायी होते हैं।

भारत में सहकारी बैंकों को महत्त्व व गुण या भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारी बैंकों की भूमिका सहकारी बैंक देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रमुख कर्णधार हैं। इन बैंकों की व्यवस्था से समाज की आर्थिक स्थिति उन्नत हुई। है व कृषि क्षेत्र में अनेक लाभ हुए हैं। इसके प्रमुख लाभों या महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट कर सकते हैं

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  1. कृषि कार्यों के लिए ऋण सहकारी बैंक किसानों को खाद, बीज, कृषि यन्त्रों, आदि के लिए सस्ती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध करवाते हैं।
  2. कुटीर उद्योगों का विकास सहकारी बैंकों द्वारा कुटीर उद्योगों को सहायता प्रदान किए जाने से इनका विकास हुआ है।
  3. ग्रामीणों के रोजगार में वृद्धि सहकारी बैंकों द्वारा ऋण देने से कृषि कार्यों का विकास होता है, जिससे ग्रामीण जनता को अधिक रोजगार प्राप्त होता है।
  4. महाजनों के प्रभाव में कमी कृषि विकास बैंकों की स्थापना के बाद से यह बैंक किसानों को आवश्यकतानुसार ऋण प्रदान करते रहते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में साहूकारों का प्रभाव कम हुआ है।
  5. कृषि उपज के विपणन में सहायता इन बैंकों के द्वारा कृषि विपणन समितियों की स्थापना से किसानों को फसल का उचित दाम मिल जाता है।
  6. सामाजिक गुणों का विकास इन बैंकों व समितियों के सक्रिय रूप से कार्य करने के कारण लोगों में सहयोग, मित्रता, आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है।
  7. सहयोग की भावना में वृद्धि सहकारी बैंकों से जनता में परस्पर सहयोग (UPBoardSolutions.com) की भावना में वृद्धि हुई है।
  8. बचत की आदत का विकास ये समितियाँ प्रजातान्त्रिक सिद्धान्त पर कार्य करती हैं। इससे किसानों में बैंक के प्रयोग व उनमें बचत करने की आदत को प्रोत्साहन मिलता है।

प्रश्न 2.
हमारे देश में सहकारी बैंकों की असफलता के क्या कारण हैं? इन्हें उपयोगी बनाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए? (2016)
उत्तर:
सहकारी बैंकों की असफलता के प्रमुख कारण

  1. सहकारी बैंकों पर सरकार का अत्यधिक नियन्त्रण सरकार ने इन बैंकों पर अनेक प्रकार के नियन्त्रण लगाए हैं। इससे जनता इन्हें सरकार का बैंक समझती है।
  2. उचित प्रबन्ध का न होना इन बैंकों में कुशल व्यक्तियों का अभाव होता है। फलस्वरूप इनको लाभ के स्थान पर हानि अधिक होती है।
  3. पर्याप्त पूँजी का अभाव इन बैंकों के पास पूँजी की कमी होती है, क्योंकि इनके अधिकांश सदस्यों के पास धन नहीं होता है।
  4. ऋण वसूली करने में देरी सहकारी बैंक ऋण राशि को सही समय पर वसूल करने में असफल रहते हैं। परिणामस्वरूप, जिन्हें आवश्यकता होती है, उन्हें धन नहीं मिल पाता।
  5. अपूर्ण ज्ञान सहकारी बैंकों को ग्रामीण जनता व समितियों के सिद्धान्तों का ज्ञान नहीं होती है।

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भारत में सहकारी बैंकों के सुधार के लिए सुझाव

  1. पूँजी में वृद्धि इन समितियों को अपने रक्षित कोषों में वृद्धि करनी चाहिए।
  2. सरकारी नियन्त्रण में कमी सहकारी संगठन पर सरकारी नियन्त्रण में कमी कर देनी चाहिए, जिससे कि समिति के सदस्यों पर उत्तरदायित्व का भार डाला जा सके।
  3. सहकारिता के सिद्धान्तों का प्रचार इन बैंकों में सहकारिता के सिद्धान्तों की शिक्षा प्रदान करने की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।
  4. समन्वय एवं सहयोग इन बैंकों का व्यापारिक बैंकों के साथ सहयोग और समन्वय (UPBoardSolutions.com) होना चाहिए, जिससे ये बैंक अधिक सुविधाएँ प्रदान कर सकें।
  5. कर्मचारियों के लिए उचित प्रशिक्षण सहकारी बैंकों में अनेक स्थानों पर उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे योग्य कर्मचारियों की सेवाएँ बैंकों को उपलब्ध हो सकें।
  6. ब्याज की दर इन समितियों को ब्याज की दर में कमी करनी चाहिए।

प्रश्न 3.
सहकारी बैंक क्या है? इसके गुण वे दोषों का वर्णन कीजिए। (2013)
उत्तर:
सहकारी बैंक से आशय

सहकारी बैंक (को-ऑपरेटिव बैंक) व्यक्तियों के ऐसे संगठन, जो समानता, स्वयं सहायता व प्रजातान्त्रिक आधार पर सभी के हित के लिए बैंकिंग सम्बन्धी सभी कार्य करते हैं, सहकारी बैंक कहलाते हैं। सहकारी बैंक, सहकारी समितियों का एक संगठन होता है। इन बैंकों की स्थापना सन् 1904 में सहकारी साख अधिनियम के पारित होने के बाद हुई। हेनरी वोल्फ के अनुसार, “सहकारी बैंकिंग एक ऐसी एजेन्सी है, जो छोटे वर्ग के व्यक्तियों से व्यवहार करने की (UPBoardSolutions.com) स्थिति में है तथा जो अपनी शर्तों के अनुसार उनकी जमाओं को स्वीकार करती है व ऋण प्रदान करती है।

सहकारी बैंक कृषकों को वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन उधार देते हैं। सहकारी बैंक कषकों को बीज व खाद खरीदने, मजदरी का भगतान करने, भमि में सधार करवाने, कृषि उपकरणों को खरीदने के लिए किसानों को ऋण देते हैं। सहकारी बैंक किसानों को सस्ती ब्याज दर एवं सरल शर्तों पर ऋण प्रदान करते हैं। भारत में सहकारी बैंक का ढाँचा त्रि-स्तरीय है। सहकारी बैंक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  1. जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक इनके द्वारा प्राथमिक साख समितियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूर्ण किया जाता है।
  2. राज्य स्तर पर शीर्ष बैंक ये बैंक राज्य में सहकारी आन्दोलन के विकास हेतु उत्तरदायी होते हैं।

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सहकारी बैंकों के गुण

भारत में सहकारी बैंकों को महत्त्व व गुण या भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारी बैंकों की भूमिका सहकारी बैंक देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रमुख कर्णधार हैं। इन बैंकों की व्यवस्था से समाज की आर्थिक स्थिति उन्नत हुई। है व कृषि क्षेत्र में अनेक लाभ हुए हैं। इसके प्रमुख लाभों या महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट कर सकते हैं

  1. कृषि कार्यों के लिए ऋण सहकारी बैंक किसानों को खाद, बीज, कृषि यन्त्रों, आदि के लिए सस्ती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध करवाते हैं।
  2. कुटीर उद्योगों का विकास सहकारी बैंकों द्वारा कुटीर उद्योगों को सहायता प्रदान किए जाने से इनका विकास हुआ है।
  3. ग्रामीणों के रोजगार में वृद्धि सहकारी बैंकों द्वारा ऋण देने से कृषि कार्यों का विकास होता है, जिससे ग्रामीण जनता को अधिक रोजगार प्राप्त होता है।
  4. महाजनों के प्रभाव में कमी कृषि विकास बैंकों की स्थापना के बाद से यह बैंक किसानों को आवश्यकतानुसार ऋण प्रदान करते रहते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में साहूकारों का प्रभाव कम हुआ है।
  5. कृषि उपज के विपणन में सहायता इन बैंकों के द्वारा कृषि विपणन समितियों की स्थापना से किसानों को फसल का उचित दाम मिल जाता है।
  6. सामाजिक गुणों का विकास इन बैंकों व समितियों के सक्रिय रूप से कार्य करने के कारण लोगों में सहयोग, मित्रता, आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है।
  7. सहयोग की भावना में वृद्धि सहकारी बैंकों से जनता में परस्पर सहयोग की भावना में वृद्धि हुई है।
  8. बचत की आदत का विकास ये समितियाँ प्रजातान्त्रिक सिद्धान्त पर कार्य करती हैं। इससे किसानों में बैंक के प्रयोग व उनमें बचत करने की आदत को प्रोत्साहन मिलता है।

सहकारी बैंकों के दोष

UP Board Solutions

सहकारी बैंकों के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

  1. सरकार को अधिक नियन्त्रण इन बैंकों पर सरकार का अधिक नियन्त्रण रहता है, इसलिए जनता इन्हें अपना सहायक न मानकर सरकारी संस्थाएँ मानती है।
  2. अकुशल संचालक ग्रामीण क्षेत्रों की समितियों के संचालक बैंकों का प्रबन्ध सुव्यवस्थित प्रकार से नहीं कर पाते हैं।
  3. पूँजी की कमी भारतीय सहकारी बैंकों के पास पूँजी का अभाव पाया जाता है, इसलिए ये बैंक कुशलता से कार्य करने में असमर्थ होते हैं।
  4. ऋण वसूल करने में देरी सहकारी बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों की राशि समय पर वसूल नहीं हो पाती है। इससे उनकी कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
  5. अधिक ब्याज दर इन बैंकों के पास पर्याप्त मात्रा में नकद कोष नहीं होता है, इसलिए (UPBoardSolutions.com) ये समितियाँ दूसरों के ऋण पर निर्भर रहती हैं। अत: इनके ब्याज की दर अन्य संस्थाओं से अधिक होती है।
  6. सहकारिता के सिद्धान्तों का ज्ञान न होना भारतीय ग्रामीण जनता व इन समितियों के कर्मचारियों को सहकारिता के सिद्धान्तों का ज्ञान नहीं होता है। इससे ये संस्थाएँ सफल नहीं हो पाती हैं।

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