UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 23 Means of Transport

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography
Chapter Chapter 23
Chapter Name Means of Transport (यातायात के साधने)
Number of Questions Solved 30
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 23 Means of Transport (यातायात के साधने)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
भारत में सड़क मार्गों के प्रकार तथा मुख्य सड़क मार्गों का वर्णन करते हुए पंचवर्षीय योजनाओं में इनके विकास पर प्रकाश डालिए।
या
टिप्पणी लिखिए-भारत में सड़क-यातायात। [2010]
या
भारत में सड़क परिवहन के विकास का विवरण दीजिए। [2011, 13]
उत्तर
भारत में सड़क परिवहन – आदिकाल से ही भारत के परिवहन पथों में सड़कों का सर्वाधिक महत्त्व है। भारतीय सड़कों का जाल विश्व का सबसे बड़ा सड़क जाल है। यात्री एवं सामान, दोनों दृष्टियों से सड़क यातायात का कुल यातायात में प्रतिशत बहुत तीव्रता से बढ़ा है। सड़कें राष्ट्रीय जीवन की धमनियाँ हैं। प्रमुख वस्तुओं को लाने-ले जाने, निर्यातक वस्तुओं को पत्तनों तक पहुँचाने, आयात की गयी वस्तुओं को देश के आन्तरिक भागों में भेजने आदि ऐसे कार्य हैं जो सड़क मार्गों द्वारा ही सम्भव हो पाये हैं। सड़क परिवहन के प्रमुख गुण उसकी लचक, सेवा का व्यापक क्षेत्र, माल की सुरक्षा, समय की बचत और बहुमुखी एवं सस्ती सेवा को होना है।

सड़कों के प्रकार
Types of Roads

भारत में 41 लाख किमी से अधिक लम्बे सड़कमार्ग हैं जो विश्व के विशालतम सड़क जालों में से एक है। इनमें निम्नलिखित प्रकार के सड़क मार्ग सम्मिलित हैं –
(1) राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highways) – ये मार्ग आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इन सड़कों द्वारा राज्य की राजधानियों, बड़े-बड़े औद्योगिक तथा व्यापारिक नगरों और पत्तनों को परस्पर मिला दिया गया है। सन् 1980 तक 4,269 किमी लम्बी सड़कें बनायी गयी थीं जो राष्ट्रीय राजमार्गों को परस्पर जोड़ती हैं। वर्ष 2001-2002 में इन मार्गों की लम्बाई 58,112 किमी हो गयी थी। देश को म्यांमार, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान और तिब्बत से भी ये सड़कें मिलाती हैं। इस प्रकार राष्ट्रीय राजमार्ग देश की कुल सड़कों का केवल 4% है। वर्ष 2011-12 के अनुसार इनकी कुल लम्बाई 70,934 किमी है तथा इन मार्गों पर देश का लगभग 40% सड़क परिवहन होता है। केन्द्र सरकार द्वारा 15 जून, 1989 ई० को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का गठन किया गया है।

(2) प्रान्तीय राजमार्ग (State Highways) – ये सड़कें राष्ट्रीय राजमार्गों अथवा निकटवर्ती राज्यों की सड़कों से जोड़ दी गयी हैं। इन सड़कों के निर्माण तथा उन्हें ठीक दशा में रख-रखाव का दायित्व राज्य सरकारों पर होता है। इनकी कुल लम्बाई 1,54,522 हजार किमी है।

(3) स्थानीय अथवा जिले की सड़कें (Local or District Roads) – ये सड़कें जिले के विभिन्न भागों को जोड़ती हैं। इनकी लम्बाई लगभग 4.68 लाख किमी है। इन सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्गों, प्रान्तीय राजमार्गों तथा रेलमार्गों से भी जोड़ा गया है। इनके निर्माण एवं रख-रखाव का दायित्व जिला सार्वजनिक अथवा लोक निर्माण विभाग का होता है।

(4) गाँव की सड़कें (Village Roads) – विभिन्न ग्रामों को परस्पर मिलाने के साथ-साथ ये सड़कें अपने जिले तथा राजमार्गों से भी मिली हैं। ये ग्रामीण जीवन की गतिशीलता के लिए अति महत्त्वपूर्ण हैं। देश की लगभग 26.5 लाख किमी लम्बी ग्रामीण सड़कें हैं जो अधिकतर कच्ची हैं। इनका रख-रखाव एवं निर्माण जिला परिषदों एवं ग्राम पंचायतों द्वारा किया जाता है।

भारत के प्रमुख सड़क मार्ग
Major Road Routes of India

भारत के प्रमुख सड़क मार्ग निम्नलिखित हैं –

  1. ग्राण्ड ट्रंक रोड (Grand Trunk Highway) – भारत की यह सबसे प्रमुख एवं प्राचीन सड़क है, जो कोलकाता को अमृतसर से जोड़ती है। यह कोलकाता से आसनसोल, धनबाद, सासाराम, वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर, अलीगढ़, दिल्ली, करनाल, अम्बाला, लुधियाना, जालन्धर होती हुई अमृतसर तक चली गयी है। इसकी एक शाखा जालन्धर से श्रीनगर तक जाती है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पूर्व यह अमृतसर को पेशावर से जोड़ती थी।
  2. कोलकाता-चेन्नई राजमार्ग (Kolkata-Chennai Highway) – यह मार्ग कोलकाता से खड़गपुर, सम्बलपुर, विजयवाड़ा और गुण्टूर होते हुए चेन्नई तक गया है।
  3. मुम्बई-आगरा राजमार्ग (Mumbai-Agra Highway) – यह सड़क मार्ग मुम्बई से नासिक, धूलिया, इन्दौर और ग्वालियर होता हुआ आगरा तक जाता है।
  4. ग्रेट दक्कन रोड (Great Deccan Highway) – यह सड़क मार्ग मिर्जापुर से जबलपुर, नागपुर, हैदराबाद होते हुए बंगलुरु तक चला गया है। मिर्जापुर से एक छोटे सड़क मार्ग द्वारा इसे माधो सिंह के समीप ग्राण्ड ट्रंक रोड से मिला दिया गया है। इसे वाराणसी-कन्याकुमारी राजमार्ग भी कहते हैं।
  5. कोलकाता-मुम्बई राजमार्ग (Kolkata-Mumbai Highway) – यह राजमार्ग कोलकाता से खड़गपुर, सम्बलपुर, नागपुर, धूलिया, आमलनेर होते हुए मुम्बई-आगरा राजमार्ग से मिल जाता है।
  6. चेन्नई-मुम्बई राजमार्ग (Chennai-Mumbai Highway) – यह मार्ग मुम्बई से पूना, बेलगाम, बंगलुरु होते हुए चेन्नई तक गया है।
  7. पठानकोट-जम्मू राजमार्ग (Pathankot-Jammu Highway) – यह सड़क मार्ग पठानकोट से जम्मू तक जाता है। यहाँ से इसका सम्बन्ध श्रीनगर जाने वाली सड़क से है।
  8. गुवाहाटी-चेरापूँजी राजमार्ग (Guwahati-Cherrapunji Highway) – यह सड़क मार्ग गुवाहटी से शिलांग होते हुए चेरापूंजी तक गया है।
  9. दिल्ली-मुम्बई राजमार्ग (Delhi-Mumbai Highway) – यह मार्ग दिल्ली से जयपुर, अजमेर, उदयपुर, अहमदाबाद, सूरत होते हुए मुम्बई तक जाता है।
  10. लखनऊ-बरौनी राजमार्ग (Lucknow-Barauni Highway) – यह मार्ग लखनऊ से गोरखपुर, मुजफ्फरपुर होते हुए बरौनी तेक जाता है। इसकी एक शाखा मुजफ्फरपुर से नेपाल सीमा तक जाती है।
  11. दिल्ली-लखनऊ राजमार्ग (Delhi-Lucknow Highway) – यह मार्ग दिल्ली से गाजियाबाद, हापुड़, गढ़, गजरौला, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली व हरदोई होते हुए लखनऊ तक गया है।

पंचवर्षीय योजनाओं में सड़क मार्गों का विकास
Development of Road Routes in Five Year Plans

पंचवर्षीय योजनाओं में सड़क मार्गों का विकास एवं उनके पुनर्निर्माण पर अधिक ध्यान दिया गया है। सन् 1991 में भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की लम्बाई 34,058 किमी थी। कुल-सड़कों की लम्बाई में राष्ट्रीय सड़कें 2% हैं। इनके द्वारा देश का 35% से 40% तक सड़क परिवहन होता है। इस समय पक्की संडंकों की लम्बाई 262,700 किमी से बढ़कर 6,23,402 किमी तक पहुँच गयी है। इससे स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास को प्रमुखता दिया जाना अति आवश्यक हैं। इनके अतिरिक्त निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण सड़कों को भी प्राथमिकता देने का प्रावधान किया गया था –

  1. सामरिक महत्त्व की सड़कें,
  2. अन्तर्राज्यीय अथवा आर्थिक महत्त्व की सड़कें एवं
  3. सीमान्त क्षेत्रों में सड़क संचार की सुविधा।

देश में राज्यों की सडेकों के विकास के लिए न्यूनतम आवश्यकताकार्यक्रम स्वीकार किया गया है। जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क निर्माण का कार्यक्रम सम्मिलित है। इस परियोजना के अनुसार ऐसा ग्राम जिसकी जनसंख्या 1,500 या उससे अधिक है, राजमार्गों से जोड़े जाने का प्रावधान रखा गया है। देश के पिछड़े क्षेत्रों तथा पर्वतीय, जनजातीय, मरुस्थलीय एवं तटीय क्षेत्रों में, जहाँ बिखरी जनसंख्या निवास करती है, वहाँ एक समूह के रूप में सड़कों का विकास किया जाएगा। इस आधार पर 20,000 ग्रामों को जिला मुख्यालयों से मिलाने वाली सड़कों से जोड़ा जाएगा। इस विकास के लिए हैं 1164.90 करोड़ का प्रावधान रखा गया है।

नागपुर सड़क योजना (Nagpur Road Plan) – इस योजना के अन्तर्गत सन् 1943 में सड़कों के विकास की एक दीर्घकालीन योजना तैयार की गयी थी, जिसे ‘नागपुर सड़क योजना’ के नाम से पुकारा जाता है। आगामी 20 वर्षों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर कुछ लक्ष्य निर्धारित किये गये थे। संशोधित योजना के अनुसार 5.2 लाख किमी लम्बी सड़कें बनाने का निश्चय किया गया था।

बीस-वर्षीय सड़क विकास योजना (Twenty-Year Road Development Programme) – द्वितीय पंचवर्षीय योजना के अन्त में नागपुर सड़क योजना में निर्धारित लक्ष्यों की समीक्षा की गयी तथा पाया गया कि इन लक्ष्यों को प्राप्त करना कठिन होगा। अत: राज्य सरकारों की एक समिति ने सन् 1960 से एक 20 वर्षीय सड़क योजना निर्धारित की, जिसके अन्तर्गत राष्ट्रीय सड़कों में 132%, राज्य सड़कों में 100%, जनपद सड़कों में 80% एवं ग्राम सड़कों में 43% वृद्धि के लक्ष्य अपनाये गये। इस योजना में देश के चहुंमुखी विकास का ध्यान रखा गया है। इसमें दो प्राथमिकताएँ रखी गयी थी –

  • सभी प्रमुख सड़कों पर जहाँ-जहाँ पुल छूटे हैं, इन्हें तैयार किया जाए तथा सड़कों को डामर से पक्का किया जाए।
  • नगरों को निकटवर्ती ग्रामों से जोड़ने वाली सड़कों को न केवल चौड़ा बनाया जाए, बल्कि उन पर एक तरफा यातायात की सुविधा भी प्रदान की जाये।

सड़क विकास की इस दीर्घकालीन योजना के पूर्ण होने पर भारत के प्रति 100 वर्ग किमी क्षेत्रफल के पीछे 32 किमी लम्बी सड़क होगी। कोई भी केन्द्र समीपवर्ती राष्ट्रीय राजमार्ग से 60 से 96 किमी से अधिक दूरी पर नहीं होगा। इस योजना पर १ 5,200 करोड़ के व्यय का अनुमान किया गया था। इस योजना के कार्यान्वित हो जाने पर देश में 10,51,200 किमी लम्बी सड़कें हो जाएँगी, परन्तु इनका विकास हो जाने के उपरान्त भी जनसंख्या के अनुपात में सड़क परिवहन विकसित रूप में नहीं हो सकेगी।

प्रश्न 2
भारत की रेलों पर एक भौगोलिक निबन्ध लिखिए।
या
टिप्पणी लिखिए-भारत में रेल यातायात।
या
भारत में रेलमार्गों के विकास तथा महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
किसी देश के आर्थिक विकास में एक यातायात के साधनों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
कृषि एवं औद्योगिक उत्पादन तथा व्यापार आदि यातायात साधनों के विकास से प्रत्यक्ष रूप से सम्बद्ध होते हैं। वास्तव में यातायात के साधन स्वयं उत्पादन की एक प्रक्रिया है, क्योंकि इसके द्वारा देश भर के उपभोक्ताओं को वस्तुओं एवं सेवाओं को भेजने के लिए परिवहन साधनों एवं मार्गों की आवश्यकता पड़ती है। मानव एक स्थान से दूसरे स्थान तक आवागमन के लिए इन्हीं साधनों का उपयोग करता है। भारत में यातायात साधनों में सड़कों, रेलों, आन्तरिक जलमार्गों एवं वायुमार्गों का महत्त्व अत्यधिक है। संलग्न तालिका इनके सापेक्षिक महत्त्व को प्रकट करती है।
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रेलमार्ग
Railways

देश के आन्तरिक परिवहन में रेलों का महत्त्व सर्वाधिक है। रेलों द्वारा प्रतिदिन बहुत-सा माल एवं यात्री ढोये जाते हैं। भारतीय रेलें (31 मार्च, 2013 ई० तक) 65,000 किमी की दूरी तय कर रही हैं। इस दृष्टिकोण से यह एशिया में प्रथम तथा विश्व में चौथे स्थान पर है। देश में रेलों द्वारा प्रतिदिन 14.5 लाख किमी दूरी तय की जाती है। रेलवे के पास 9,549 इंजन, 59,713 यात्री-डिब्बे, 4,827 अन्य सवारी के डिब्बे (कोच) तथा 2,39,281 माल डिब्बे (वैगन) है तथा 20,838 रेले हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के इस प्रतिष्ठान में र8,882.2 करोड़ की पूँजी लगी है। देश में 7,500 रेलवे स्टेशन हैं। वर्ष 2013 तक 23,541 किमी रेलमार्गों का विद्युतीकरण कर दिया गया है।

भारत में रेलमार्गों का विकास
Development of Railways in India

भारत में रेलमार्गों का विकास 19वीं शताब्दी से प्रारम्भ हुआ है। पहला रेलमार्ग सन् 1853 में ग्रेट इण्डियन पेनिनसुला था जो थाणे से मुम्बई के मध्य 34 किमी लम्बाई में बनाया गया। दूसरा रेलमार्ग 1854 में ही कोलकाता से पंडुवा के मध्य 63 किमी लम्बाई में बनाया गया। सन् 1950-51 में देश में रेलमार्गों की लम्बाई 59,315 किमी थी जो सन् 2002 में बढ़कर 82,354 किमी हो गयी थी। अब बढ़कर 1,15,000 किमी है। अब इनमें 56% बड़ी लाईन, 37% छोटी लाइन तथा 7% सँकरी लाइन हैं। बड़ी लाइन की चौड़ाई 1,676 मीटर, छोटी लाइन की चौड़ाई 1 मीटर तथा सँकरी लाइन की चौड़ाई 0.762 मीटर होती है। इनमें से सँकरी लाइन को समाप्त किये जाने के प्रयास किये जा रहे हैं।

भारतीय रेलों की प्रशासनिक व्यवस्था – भारतीय रेलों का संचालन केन्द्र सरकार के आधिपत्य में है। सन् 1949 तक भारतीय रेल व्यवस्था के अन्तर्गत 9 सरकारी और 28 देशी रियासतों की रेलवे प्रणालियाँ थीं जबकि वर्तमान में भारत में 17 रेल-क्षेत्र हैं। आर्थिक एवं प्रशासनिक दृष्टिकोण से इन छोटे-बड़े रेलमार्गों को सन् 1950 में 8 भागों में बाँटा गया। सन् 1966 में एक क्षेत्र और बढ़ा दिया गया। भारतीय रेलवे का 1,15,000 किमी का एक विस्तृत नेटवर्क है। वर्तमान समय में देश के रेलमार्गों को 17 भागों में बाँटकर संचालित किया जा रहा है, जिनमें प्रमुख का विवरण निम्नलिखित है –

(1) उत्तर रेलवे (Northern Railway) – उत्तर रेलवे देश का सबसे बड़ा एवं महत्त्वपूर्ण रेल क्षेत्र है। यह 10.977 किमी लम्बा है। इसका प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में है। यह रेलमार्ग सघन बसे एवं उपजाऊ क्षेत्रों से निकलने के कारण इस पर यात्रियों की भीड़ सर्वाधिक रहती है। पश्चिम में राजस्थान से लेकर पूर्व में मुगलसराय तक तथा उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में तुगलकाबाद तक इस रेलमार्ग का विस्तर है। इस प्रकार यह रेलमार्ग जम्मू एवं कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश राज्यों के अधिकांश भागों पर विस्तृत है। दिल्ली, आगरा, कानपुर, मेरठ, अमृतसर, पठानकोट, बीकानेर, जोधपुर, रिवाड़ी, जालन्धर, जम्मू, अम्बाला, लुधियाना, शिमला, चण्डीगढ़, हरिद्वार, बरेली, इलाहाबाद, लखनऊ, वाराणसी आदि इसी रेलमार्ग के सहारे स्थित प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं।

(2) उत्तर-पूर्व रेलवे (North-East Railway) – यह एक मीटर गेज रेलमार्ग है, जिसकी लम्बाई 5,163 किमी है। इसका प्रधान कार्यालय गोरखपुर में है। यह रेलमार्ग हिमालय के पर्वतपदीय प्रदेश में स्थित नगरों को जोड़ने का कार्य करता है। गन्ना, चाय, जूट, तम्बाकू, चीनी, चमड़ा एवं चावल का व्यापार इसी रेलमार्ग द्वारा किया जाता है। गोरखपुर, बरेली, मथुरा, काठगोदाम, कासगंज, लखनऊ, गाजीपुर, कटिहार, सोनपुर, बरौनी आदि प्रमुख नगर इसी रेलमार्ग के सहारे स्थित प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं। इस रेलमार्ग द्वारा उत्तर प्रदेश से असोम राज्य तक की यात्रा की जा सकती है। यह सम्पूर्ण रेलमार्ग कानपुर, लखनऊ एवं वाराणसी में उत्तरी रेलमार्ग से मिल जाता है।

(3) पूर्वोत्तर सीमान्त रेलवे (North-East Frontier Railway) – यह उत्तरी-पूर्वी रेलमार्ग को ही पूर्वी भाग है जो सामरिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसकी लम्बाई 3,763 किमी है। इसका प्रधान कार्यालय मालीगाँव (गुवाहाटी) में है। यह रेलमार्ग असोम एवं उसके पड़ोसी राज्य, पश्चिम बंगाल एवं बिहार राज्यों के कुछ भागों से होकर निकलता है। इसके द्वारा पेट्रोलियम, चाय, कोयला, लकड़ी, जूट, चावल आदि पदार्थ ढोये जाते हैं। यह मीटर गेज एवं नैरो गेज मिश्रित रेलमार्ग है। दार्जिलिंग, पूर्णिया, मनिहारी, जोरहाट, सिलचर, डिब्रूगढ़, गुवाहाटी आदि इस रेलमार्ग के सहारे स्थित प्रमुख नगर एवं रेलवे स्टेशन हैं।

(4) पूर्वी रेलवे (Eastern Railway) – यह रेलमार्ग मुगलसराय और हुगली के मध्य गंगा के निम्न मैदान में संचालित होता है। इसका प्रधान कार्यालय कोलकाता में है तथा इसकी लम्बाई 4,281 किमी है। यह रेलमार्ग पश्चिम में मुगलसराय से आरम्भ होकर पूर्व में बांग्लादेश की सीमा तक विस्तृत है। इस पर सबसे अधिक यात्री यात्रा करते हैं तथा सबसे अधिक माल ढोया जाता है। कोयला, लोहा, मैंगनीज, जूट, अभ्रक, सीमेण्ट, चावल, कागज, बॉक्साइट, सूती वस्त्र, रासायनिक उर्वरक आदि वस्तुओं का व्यापार इसी रेलमार्ग द्वारा किया जाता है। इस प्रदेश में कृषि एवं खनिज पदार्थों पर आधारित अनेक उद्योग-धन्धे विकसित हुए हैं।

(5) दक्षिण-पूर्वी रेलवे (South-Eastern Railway) – यह देश का तीसरा बड़ा रेलमार्ग है। इसका प्रधान कार्यालय कोलकाता में है। इस रेलमार्ग की लम्बाई 7,075 किमी है। यह पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार तथा मध्य प्रदेश राज्यों की सेवा करता है। इस रेलमार्ग द्वारा विशाखापट्टनम् तथा कोलकाता पत्तन जुड़े हैं। इस पर हीराकुड बहुउद्देशीय परियोजना, विशाखापट्टनम् में जलयान-निर्माण एवं तेल शोधनशाला तथा बर्नपुर, राउरकेला, आसनसोल, भिलाई और जमशेदपुर के इस्पात कारखाने स्थित हैं, क्योंकि इसके पृष्ठ प्रदेश में लौह-अयस्क, अभ्रक, कोयला, ताँबा, मैंगनीज, चूना, बॉक्साइट आदि खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।

(6) पश्चिमी रेलवे (Western Railway) – यह देश का दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रेलमार्ग है। इसकी लम्बाई 10,293 किमी है। इसका प्रधान कार्यालय चर्चगेट (मुम्बई) में है। यह राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश राज्यों से होकर गुजरता है। यहाँ बड़ी एवं मीटर गेज लाइन दोनों ही हैं। इस मार्ग के द्वारा कपास एवं सूती वस्त्र, खाद्यान्न, नमक, तिलहन, अभ्रक, खालें, ऊनी वस्त्र, ताँबा, पेट्रोलियम, सीमेण्ट, रासायनिक उर्वरक का व्यापार अधिक होता है। मुम्बई, अहमदाबाद, भड़ौंच, अजमेर, बड़ोदरा, आगरा, जयपुर, उदयपुर, रतलाम, फतेहपुर-सीकरी, उज्जैन आदि इसी रेलमार्ग के सहारे प्रमुख नगर एवं रेलवे स्टेशन विकसित हैं। द्वारका, सोमनाथ, अजमेर, नाथद्वारा, मथुरा, उज्जैन, ओंकारेश्वर आदि धार्मिक एवं पवित्र स्थान इसी रेलमार्ग के सहारे स्थित हैं जो तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

(7) मध्य रेलवे (Central Railway) – यह रेलमार्ग मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं आन्ध्र प्रदेश के पश्चिमी भाग तथा दक्षिणी उत्तर प्रदेश की सेवा करता है। इसकी लम्बाई 6,486 किमी है। इसका प्रधान कार्यालय विक्टोरिया टर्मिनस (मुम्बई) में है। केपास, मैंगनीज, ताँबा, लोहा, ऐलुमिनियम, सीमेण्ट, चूना-पत्थर, कोयला, सन्तरे, लकड़ी, पेट्रोल, रासायनिक उर्वरक इसी रेलमार्ग द्वारा ढोये जाते हैं। भुसावल, खण्डवा, इटारसी, भोपाल, झाँसी, ग्वालियर, आगरा, मथुरा, रायचूर, विजयवाड़ा, नागपुर, वर्धा, काजीपेट आदि इस रेलमार्ग के सहारे प्रमुख नगर एवं रेलवे स्टेशन विकसित हुए हैं।

(8) दक्षिणी रेलवे (Southern Railway) – इस रेलमार्ग में छोटी एवं बड़ी लाइन दोनों ही सम्मिलित हैं। इसका विस्तार केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक एवं दक्षिणी आन्ध्र प्रदेश राज्यों पर है। इस रेलमार्ग की लम्बाई 6,729 किमी है। इसका प्रधान कार्यालय चेन्नई में स्थित है। खाद्यान्न, कपास, नमक, तिलहन, चीनी, तम्बाकू, रबड़, गर्म मसाले, लकड़ी, खालें, चमड़ा, चाय, कहवा, मशीनें, ऐलुमिनियम, सीमेण्ट, सूती वस्त्र आदि इस मार्ग में ढोये जाने वाली प्रमुख वस्तुएँ हैं। इस रेलमार्ग के सहारे चेन्नई, कोयम्बटूर, मदुराई, कोचीन, बंगलुरू, त्रिवेन्द्रम, मंगलौर, रामेश्वरम् आदि महत्त्वपूर्ण नगर तथा रेलवे स्टेशन स्थित हैं।

भारतीय रेल-खण्ड
Railway Zones of India
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अन्य भाग हैं – पूर्वी (मध्य (तटीय) रेलवे, उत्तर मध्य रेलवे, पूर्वी मध्य रेलवे, उत्तर-पश्चिम रेलवे, दक्षिण-पश्चिम रेलवे, पश्चिम मध्य रेलवे, दक्षिण-पूर्व-मध्य रेलवे हैं।

(9) दक्षिणी-मध्य रेलवे (South-Central Railway) – यह एक नवीन रेल क्षेत्र है। इसकी लम्बाई 7,138 किमी है तथा प्रधान कार्यालय सिकन्दराबाद में स्थित है। यह रेलमार्ग आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं गोआ राज्यों को मिलाता है। इस रेलमार्ग द्वारा पश्चिमी तट पर स्थित नगर, पूर्वी तट पर स्थित नगरों से जोड़े गये हैं। इस रेलमार्ग द्वारा तिलहन, चावल, तम्बाकू, कपास, चीनी, लौह-अयस्क, सूती वस्त्र आदि ढोये जाते हैं।

रेलों का महत्त्व
Importance of Trains

  1. रेल परिवहन लम्बी दूरी के लिए विशेषत: उपयुक्त है।
  2. रेलों द्वारा भारी माल का परिवहन सुगमता से होता है, जो सड़क परिवहन द्वारा सम्भव नहीं है।
  3. रेल परिवहन, सड़क परिवहन की अपेक्षा सस्ता होता है।
  4. सड़क परिवहन की अपेक्षा रेल परिवहन तथा यात्रा अधिक सुरक्षित है। रेल यात्रा में दुर्घटनाओं की सम्भावना कम रहती है।
  5. रेलों द्वारा देश के परस्पर दूरस्थ स्थान एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं, जिससे देश की एकता तथा अखण्डता सम्भव हो पाती है।
  6. देश के औद्योगीकरण में रेलों का बहुत महत्त्व है।
  7. पत्तनों के विकास एवं व्यापार में रेलों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
  8. भारतीय रेल देश का सबसे बड़ा औद्योगिक प्रतिष्ठान है। इसमें भारी पूँजी लगी है तथा लाखों व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त होता है।

प्रश्न 3
भारतीय जल-यातायात पर प्रकाश डालिए। [2007]
उत्तर
जलमार्ग यातायात का सबसे पुराना, सुगम और सस्ता साधन है। लगभग 90% भारतीय विदेशी व्यापार जलमार्ग द्वारा किया जाता है। क्षेत्रीय विस्तार की दृष्टि से भारतीय जल-यातायात को दो भागों में विभाजित किया गया है – (1) आन्तरिक जलमार्ग तथा (2) समुद्री जलमार्ग।
(1) आन्तरिक जलमार्ग – भारत में नाव्य नदियों की लम्बाई केवल 5,200 किमी है, जिसमें 1,800 किमी जलमार्ग का वास्तविक रूप में उपयोग किया जाता है। प्रमुख जलमार्ग इस प्रकार हैं-गंगा, ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियाँ, गोदावरी, कृष्णा और इनकी सहायक नदियाँ, केरल की पश्चिमी तटीय नहरें तथा आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में बकिंघम नहर, ओडिशा में मन्दाकिनी में डेल्टा नहरें तथा गोआ में जौरी नहर। इस समय देश में नाव्य नहरों की कुल लम्बाई 4,300 किमी है जिसमें केवल 485 किमी लम्बी नहरों में आसानी से स्टीमर चलाये जा सकते हैं।

(2) समुद्री परिवहन – समुद्री जलमार्ग की दृष्टि से भारत की भौगोलिक स्थिति पूरी तरह अनुकूल है। भारत की जहाजरानी का स्थान विश्व में 17वाँ तथा एशिया में दूसरा है। भारतीय जलयान विश्व के सभी समुद्री मार्गों पर चलते हैं। 31 मार्च, 2003 को देश में 616 जलयान थे, जिनकाG.R.T.61.7 लाख टन था। 31 मार्च, 2003 तक देश में लगभग 140 जहाजी कम्पनियाँ थीं जिनमें से दो सार्वजनिक क्षेत्र में हैं। भारतीय जहाजरानी निगम देश की सबसे महत्त्वपूर्ण जहाजी इकाई है। मुगल लाइन्स हज यात्रियों के यातायात के लिए है। निजी क्षेत्र में ग्रेट इस्टर्न शिपिंग कम्पनी, एस्सार शिपिंग क०, चौगुले स्टीम शिप लि०, वरुण शिपिंग क० आदि महत्त्वपूर्ण हैं।
भारत के समुद्री मार्ग निम्नलिखित हैं –

  1. स्वेज नहर मार्ग – इस मार्ग द्वारा भारतीय जलयान लाल सागर, स्वेज नहर तथा भूमध्ये सागर होते हुए यूरोपीय देशों को जाते हैं।
  2. उत्तमाशा अन्तरीप मार्ग – इस मार्ग द्वारा भारतीय जलयान दक्षिणी तथा पश्चिमी अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका को चले जाते हैं।
  3. सिंगापुर मार्ग-इस मार्ग द्वारा भारतीय जलयान सिंगापुर होते हुए दक्षिणी-पूर्वी एशिया के देशों को जाते हैं।
  4. ऑस्ट्रेलिया मार्ग – इस मार्ग द्वारा भारतीय जलयान ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड की ओर जाते है।

तटीय जहाजरानी – देश के ही विभिन्न पत्तनों के बीच समुद्रतटीय व्यापार पूर्णतः भारतीय जलयानों द्वारा किया जाता है। अप्रैल, 2002 ई० में 98 जहाजी कम्पनियाँ तटीय व्यापार में संलग्न थीं।

जल-यातायात का महत्त्व
Importance of Water Transport

  1. सस्ता साधन – समुद्री परिवहन प्रकृति-प्रदत्त सुलभ एवं सस्ता साधन है। इसके निर्माण और रख-रखाव पर कोई खर्च नहीं करना पड़ता है। इसलिए रेलों व सड़कों की अपेक्षा जलमार्ग सस्ती यातायात सेवा प्रदान करते हैं।
  2. कम पोषण व्यय – एक अनुमान के अनुसार गंगा नदी का पोषण व्ययेर 350 प्रति किमी आता है, जबकि रेलमार्ग का पोषण व्यय 12 हजार से 17 हजार प्रति किमी और सड़क का 8 हजार से9 हजार प्रति किमी आता है।
  3. अधिक वाहन क्षमता – जलयान का भार खींचने की क्षमता भी अधिक होती है, क्योंकि जल परिवहन का घर्षण बहुत कम होता है।
  4. कुछ क्षेत्रों के लिए एकमात्र साधन – बर्फीले स्थानों, पहाड़ी ढालों और सघन वनों में जलमार्ग ही यातायात का एकमात्र साधन होता है।
  5. नवीन देशों की खोज – कोलम्बस और वास्कोडिगामा जैसे नाविकों ने जलमार्ग से यात्रा करके ही नये देशों और द्वीपों का पता लगाया था।
  6. थोक ढुलाई के लिए उपयुक्त – थोक माल की ढुलाई के लिए जल-यातायात सर्वाधिक सस्ता, सुविधाजनक और उपयुक्त साधन सिद्ध होता है।
  7. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण – भारत के आयात-निर्यात व्यापार का लगभग 92% भाग जलमार्ग से होता है।
  8. राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से महत्त्व – राष्ट्रीय प्रतिरक्षा की दृष्टि से भी जलमार्गों का बहुत अधिक महत्त्व है, क्योंकि पुलों को नष्ट करके शत्रु रेलमार्ग और सड़क-मार्ग को तो सरलता से सेवा के अयोग्य बना सकता है, परन्तु जलमार्गों में नदी, नहर और समुद्र का ऐसा विध्वंस सम्भव नहीं होता।

जल-यातायात की कठिनाइयाँ
Difficulties of Water Transport

  1. जलमार्ग में स्थल मार्ग की अपेक्षा जोखिम का अंश अधिक रहता है।
  2. मोटर वाहनों अथवा रेलगाड़ी की अपेक्षा जल-वाहन की चाल बहुत धीमी होती है।
  3. नदियाँ बहुत टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं। कुछ नदियाँ तो अपना मार्ग बदल देती हैं। इससे धन, समय और शक्ति का दुरुपयोग होता है।
  4. जलमार्ग की सेवा केवल तट तक सीमित होने के कारण स्थल मार्ग की तुलना में अपूर्ण होती है। अतः इसकी सेवाएँ एक सीमित क्षेत्र को ही प्राप्त हो सकती हैं।
  5. अधिकांश ठण्डे प्रदेशों में जलमार्ग बर्फ से ढके रहते हैं। वर्षाकाल में नदियों में प्राय: बाढ़े आ जाती हैं तथा ग्रीष्मकाल में अनेक नदियाँ सूख जाती हैं, फलतः जलमार्गों का प्रयोग कम होता है।

प्रश्न 4
भारत में वायु-परिवहन का वर्णन कीजिए तथा प्रमुख वायुमार्गों पर प्रकाश डालिए। टिप्पणी लिखिए-भारत में वायु-यातायात।
उत्तर
भारत में वायु-परिवहन (Air-Transport in India) – आधुनिक परिवहन साधनों में वायु-परिवहन सबसे तीव्रगामी साधन है। भारत में भौगोलिक दूरियों की अधिकता तथा दक्षिणी–पूर्वी एशिया में पूर्व एवं पश्चिम के मध्य इसकी स्थिति केन्द्रीय स्थान रखती है। दुर्गम क्षेत्रों; जैसे–पर्वत, सघन वन एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों में रेल एवं सड़क मार्गों का विकास करना असम्भव लगता है, परन्तु वायु-परिवहन द्वारा इन क्षेत्रों को सरलता से जोड़ा जा सकता है।

वायु-परिवहन का विकास – भारत में पहली हवाई उड़ान सन् 1911 में प्रारम्भ हुई। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद देश में वायु-परिवहने का वास्तविक विकास हुआ। सन् 1929-30 में ब्रिटेन, फ्रांस और डच देशों ने भारत में वायु-परिवहन को विकसित करने में सहायता प्रदान की। सन् 1934 में इण्डियन नेशनल एयरवेज कम्पनी बनायी गयी जिसके विमान कराँची एवं लाहौर के मध्य उड़ान भरते थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सरकार ने इस परिवहन सेवा को अपने अधीन कर लिया था। स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व देश में 11 वायु कम्पनियाँ तथा 61 हवाई अड्डे थे जिनमें से 4 हवाई अड्डे अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व रखते थे।

स्वतन्त्रता -प्राप्ति के बाद सरकार ने वायु-परिवहन के विकास हेतु एक समिति का गठन किया, जिसके सुझाव पर सन् 1953 में वायु-परिवहन का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया तथा सभी विमान कम्पनियों को निम्नलिखित दो निगमों में सम्मिलित कर दिया गया –
(i) इण्डियन (इण्डियन एयर लाइन्स) – इसका प्रमुख कार्य देश के भीतरी भागों में वायु सेवाओं का संचालन करना है। इसे पड़ोसी देशों से भी वायु सेवा सम्पर्क का दायित्व सौंपा गया है।
(ii) एयर इण्डिया इण्टरनेशनल – इस निगम को लम्बी दूरी के अन्तर्राष्ट्रीय मार्गों पर वायु सेवाओं के संचालन का दायित्व सौंपा गया है।

1972 में अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों के विकास के लिए भारत में अन्तर्राष्ट्रीय वायु अड्डा प्राधिकरण (International Airport Authority of India) की स्थापना की गयी थी। इस प्राधिकरण का प्रमुख कार्य चार अन्तर्राष्ट्रीय वायु अड्डों-मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता तथा दिल्ली–के विकास एवं व्यवस्था को सुचारु बनाये रखना है। इन वायु अड्डों के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय एवं घरेलू उड़ानों के 40% भाग का उत्तरदायित्व वहन किया जाता है।

वायु-परिवहन को संचालित करने वाले निगम
Controlling Agencies of Air Transport

वायु-परिवहन का संचालन अग्रलिखित दो निगमों द्वारा किया जाता है –
(1) इण्डियन एयरलाइन्स निगम (Indian Airlines Corporation) – यह निगम देश के आन्तरिक भागों तथा समीपवर्ती देशों-पाकिस्तान, म्यांमार, नेपाल, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव एवं श्रीलंका के साथ वायुमार्गों की व्यवस्था करता है। सन् 1979 में इस निगम द्वारा 54.1 लाख यात्रियों को ले जाया गया तथा इसकी कार्यक्षमता 40.68 करोड़ टन हो गयी। इसके बेड़े में 11 एयर बसें (एक पट्टे पर), 27 B-737(2 पट्टे पर), 7 HS-748, 5 फोकर फ्रेण्डशिप F-27 विमान हैं, जो देश के प्रमुख केन्द्रों को 31,782 किमी लम्बे मार्गों पर जोड़ते हैं।
इस निगम का प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में है। मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता एवं नई दिल्ली से इसकी सेवाएँ संचालित होती हैं।

(2) एयर इण्डिया निगम (Air India Corporation) – यह निगम विदेशों के लिए वायुमार्गों की व्यवस्था करता है। यह लगभग 50 देशों के साथ भारत का सम्बन्ध स्थापित करता है जो 37,790 किमी लम्बे वायुमार्ग हैं। इस निगम के अधिकार में कुल 55 विमान हैं जिनमें 9 बोइंग 707 और 27 बोइंग 737 (जम्बो जेट) विमान, 11 एयर बसें, 7 HS-748, F-27 सम्मिलित हैं। एयर इण्डिया ने खाड़ी युद्ध (1991) के दौरान अपने उड्डयन इतिहास में 1,07,822 भारतीयों को कुवैत से सुरक्षित भारत पहुँचाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।

हवाई केन्द्र/उड्डयन केन्द्र
Air Centres

भारत में हवाई परिवहन का संचालन उपर्युक्त दोनों निगमों द्वारा किया जाता है। भारतीय नागरिक उड्डयन विभाग के अन्तर्गत 90 वायु अड्डे हैं। भारत का अन्तर्राष्ट्रीय हवाई प्राधिकरण देश के चार बड़े अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों का प्रबन्ध करता है, जब कि राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण 86 देशीय हवाई अड्डों और रक्षा हवाई अड्डों पर असैनिक उड़ान पट्टियों का प्रबन्ध करता है। सन् 1992 में तिरुवनन्तपुरम् से अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें आरम्भ कर दी गयी हैं तथा यह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का वायु पत्तन हो गया है। विमानों द्वारा उड़ान भरने अथवा उतरने की सुविधाओं को दृष्टिगत रखते हुए भारतीय वायु अड्डों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है –
(1) अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (International Airports) – भारत में अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के पाँच अड्डे हैं—सहर (मुम्बई), दमदम (कोलकाता), मीनाम्बक्कम् (चेन्नई), इन्दिरा गांधी इण्टरनेशनल . (नई दिल्ली) तथा तिरुवनन्तपुरम् (केरल) को भी इसमें सम्मिलित कर लिया गया है।

(2) प्रधान हवाई अड्डे (Major Airports) – इसके अन्तर्गत 11 हवाई अड्डे हैं, जहाँ छोटे-बड़े वायुयान उतर-चढ़ सकते हैं। अगरतला, अहमदाबाद, बेगमपेट (हैदराबाद), सफदरजंग (दिल्ली), गुवाहाटी, चेन्नई, नागपुर, जयपुर, लखनऊ, पटना, वाराणसी एवं तिरुचिरापल्ली ऐसे ही हवाई अड्डे हैं।

(3) मध्यम श्रेणी के हवाई अड्डे (Intermediate Airports) – औरंगाबाद, बेहाना, बेलगाम, भावनगर, कुल्लू, भोपाल, भुवनेश्वर, भुज, जुहू (मुम्बई), कोयम्बटूर, गया, इन्दौर, जूनागढ़, खजुराहो, कोटा, कुम्भी ग्राम, मदुराई, मंगलौर, मोहनवाड़ी, मुजफ्फरपुर, नादिरगुल (हैदराबाद), उत्तरी लखीमपुर, पन्नागढ़, पन्तनगर, पोरबन्दर, पोर्ट ब्लेयर, रायपुर, राजकोट, राँची, तिरुपति, इम्फाल, उदयपुर, बड़ोदरा, विजयवाड़ा एवं विशाखापट्टनम् आदि वायु अड्डे इस प्रकार के हैं।

(4) लघु श्रेणी के हवाई अड्डे (Minor Airports) – इन हवाई अड्डों की संख्या 31 है। अकोला, बूलरघाट, बड़ापानी (असोम), बिलासपुर, चकुलिया (बिहार), कूचबिहार, कुडप्पा, दोनाकोण्डा, हसन, झाँसी, जबलपुर, कानपुर, खण्डवा, कोल्हापुर जोगबानी, ललितपुर, माल्दा, मैसूर, सतना, पालमपुर, राजमहेन्द्री, रामनाथपुरम्, सरसावा (सहारनपुर), शोलापुर, पन्ना, पासीघाट, रूपसी, वेलूर, वारंगल आदि स्थानों पर इस श्रेणी के वायु अड्डे स्थापित हैं।

(5) उड्यन क्लब एवं ग्लाइडिंग केन्द्र (Flying Clubs and Gliding Centres) – हमारे देश में 2.5% सहायता प्राप्त उड्डयन क्लब अर्थात् उड्डयन प्रशिक्षण केन्द्र हैं। इसके प्रमुख केन्द्र अमृतसर, वनस्थली, बंगलुरु, भुवनेश्वर, मुम्बई, कोलकाता, कोयम्बटूर, गुवाहाटी, हिसार, हैदराबाद, इन्दौर, जयपुर, जमशेदपुर, जालन्धर, करनाल, लखनऊ, लुधियाना, चेन्नई, नागपुर, नई दिल्ली, पटियाला, पटना, रायपुर, त्रिवेन्द्रम् एवं बड़ोदरा में स्थित हैं। पुणे में एक विभागीय ग्लाइडिंग केन्द्र है। इसके अतिरिक्त 14 सहायता प्राप्त ग्लाइडिंग क्लब हैं जो आगरा, अहमदाबाद, अमृतसर, देवलाली, हिसार, जयपुर, जालन्धर, कानपुर, लुधियाना, नई दिल्ली, पटियाला, पटना, पिलानी और रायपुर में स्थित हैं।

(6) वायुदूत – भारत में 105 स्थानों से वायुदूत सेवाएँ आरम्भ की गयी हैं। देश के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र की वायु परिवहन माँग को पूरा करने के लिए जनवरी, 1981 से इस सेवा को आरम्भ किया गया है।

भारत के प्रमुख वायुमार्ग
Major Air Routes of India

भारत के वायुमार्गों को दो निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है –
(अ) अन्तर्देशीय वायुमार्ग (Internal Airways) – देश में वायु परिवहन का विकास बड़े-बड़े नगरों तक सीमित है। देश के अधिकांश पूर्वी एवं उत्तरी पर्वतीय राज्य में वायु सेवाओं का विस्तार बहुत ही कम है। देश के आन्तरिक वायुमार्ग निम्नलिखित हैं –

  1. दिल्ली-इलाहाबाद-वाराणसी-कोलकाता।
  2. दिल्ली-लखनऊ-पटना-कोलकाता।
  3. दिल्ली-चण्डीगढ़-जम्मू-श्रीनगर।
  4. दिल्ली -अमृतसर-जम्मू-श्रीनगर।
  5. दिल्ली-ग्वालियर-भोपाल-इन्दौर-मुम्बई।
  6. दिल्ली-जयपुर-उदयपुर-अहमदाबाद-मुम्बई।
  7. दिल्ली-काठमाण्डू-पटना-राँची-कोलकाता।
  8. मुम्बई-मंगलौर-चेन्नई।
  9. मुम्बई-बेलगाम।
  10. मुम्बई-दावोलिम (गोआ)।
  11. मुम्बई-मंगलौर।
  12. मुम्बई-पोरबन्दर।
  13. मुम्बई-भुज।
  14. मुम्बई-राजकोट।
  15. मुम्बई-हैदराबाद-विजयवाड़ा-विशाखापट्टनम्-कोलकाता।
  16. कोचीन-तिरुवनन्तपुरम्-मुम्बई।
  17. मुम्बई-नागपुर-कोलकाता।
  18. कोलकाता-पोर्टब्लेयर।
  19. कोलकाता-गुवाहाटी-तेजपुर-जोरहाट-लीलावाड़ी-मोहनवाड़ी।
  20. कोलकाता-अगरतला-खोवाई-कमालपुर-कैलाशहर।
  21. कोलकाता-अगरतला-गुवाहाटी।
  22. चेन्नई-हैदराबाद-दिल्ली।
  23. चेन्नई-बंगलुरु-कोयम्बटूर-कोचीन-तिरुवनन्तपुरम्।

(ब) अन्तर्राष्ट्रीय वायुमार्ग (International Airways) – एयर इण्डिया द्वारा भारत से विदेशों को विमान सेवाओं का संचालन किया जाता है। इस समय इस निगम द्वारा 44 देशों के साथ वायु-सेवा समझौते किये गये हैं। एयर इण्डिया के वायुयान निम्नलिखित वायुमार्गों पर संचालित होते हैं –

  1. मुम्बई-काहिरा-रोम-जेनेवा-पेरिस-लन्दन।
  2. दिल्ली-अमृतसर-काबुल-मॉस्को।
  3. कोलकाता-सिंगापुर-सिडनी-पर्थ।
  4. मुम्बई-काहिरा-रोम-डुसैलडर्फ-पेरिस-लन्दन-न्यूयॉर्क।

भारत से ब्रिटिश ओवरसीज कॉरपोरेशन, एयरसिलोन लि०, एयर फ्रांस KLM (रॉयल डच एयरलाइन्स), पान अमेरिकन वर्ल्ड एयरवेज, ट्रांसवर्ड एयरलाइन्स, क्वेटास एम्पायर एयरवेज, स्केण्डैनेवियन एयरवेज, मिडिल-ईस्ट एयरलाइन्स, ईस्ट अफ्रीकन . एयरवेज, एलीटैलिया, चेकोस्लोवाकिया एयरलाइन्स, जापान एयरलाइन्स के वायुयान विभिन्न वायु अड्डों से होकर गुजरते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
यह एक महत्त्वपूर्ण सड़क विकास परियोजना है जिसमें मौजूदा दो लेन वाले राजमार्गों को चार लेनों, छः लेनों तक विस्तृत करना तथा लगभग 13,000 किमी की मौजूदा लेनों को मजबूत किया जाना सम्मिलित है। यह परियोजना विश्व में सबसे बड़ी एकल राजमार्ग परियोजनाओं में से एक है। इस परियोजना में 5,846 किमी का स्वर्ण चतुर्भुज (G.2.) जो दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता महानगरों को जोड़ता है तथा 7,300 किमी लम्बा उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम गलियारा शामिल है जो श्रीनगर से कन्याकुमारी तथा सिलचर से पोरबन्दर को जोड़ता है। इस परियोजना का कार्यान्वयन भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) द्वारा किया जा रहा है। इस परियोजना के प्रथम चरण में स्वर्ण चतुर्भुज जो दिसम्बर, 2000 ई० में शुरू हुआ था, 2004 ई० तक पूर्ण होने की आशा थी। इसके निर्माण के लिए विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक तथा जापान बैंक से ऋण प्राप्त किये गये हैं।

प्रश्न 2
भारत में मेट्रो रेल परिवहन प्रणाली के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर
भारत में मेट्रो रेल प्रणाली ( भूमिगत रेल सेवाएँ) अभी तक केवल कोलकाता में एसप्लेनेड से भवानीपुर तथा दमदम व बेलगछिया के मध्य विकसित है। दिल्ली में भी मेट्रो रेल प्रणाली केन्द्रीय सरकार तथा दिल्ली सरकार के संयुक्त उपक्रम में निर्माणाधीन हुई। परियोजना के प्रथम चरण में तीन मार्गों का समावेशन है जो 62.16 किमी लम्बा था। इस परियोजना से प्रतिदिन होने वाली यात्रियों की सवारी से सड़कों पर से दबाव घट गया है तथा सड़कों पर बसों की गति बढ़ गई है। प्रदूषण में भी भारी गिरावट आई है तथा दुर्घटनाएँ भी कम हुई हैं।

प्रश्न 3
भारत में रेल यातायात के विकास की समीक्षा कीजिए।
उत्तर
भारत में रेलों का विकास 19वीं शताब्दी से प्रारम्भ हुआ है। सन् 1853 में ग्रेट इण्डियन पेनिनसुला रेलमार्ग बोरीबन्दर (मुम्बई) से थाणे के बीच 34 किमी लम्बा पहला रेलमार्ग बनाया गया। दूसरा रेलमार्ग सन् 1854 में कोलकाता और पंडुआ के बीच 63 किमी लम्बा बनाया गया। सन् 1970 में देश में रेलमार्गों की लम्बाई 6,840 किमी थी। यह सन् 1980 में बढ़कर 13,680 किमी थी जो सन् 1990 में बढ़कर 39,843 किमी हो गयी। वर्ष 2000-2001 में यह लम्बाई 82,354 किमी हो गयी थी वर्तमान में यह बढ़कर 1,15,000 किमी हो गया है। वर्तमान में रेलमार्गों में से 56% बड़ी लाइन,37% छोटी लाइन तथा 7% सँकरी लाइन हैं।

आर्थिक एवं प्रशासनिक दृष्टिकोण से इन छोटे-बड़े रेलमार्गों को 1950 ई० में 8 भागों में बाँटा गया। 1966 ई० में एक क्षेत्र और बढ़ा दिया गया। 14,856 किमी मार्ग का विद्युतीकरण हो चुका है जो कुल रेलमार्गों की लम्बाई का 18.8% है। इन रेलमार्गों पर 11,900 रेलगाड़ियाँ 7500 स्टेशनों पर प्रतिदिन आती-जाती हैं। इन रेलगाड़ियों द्वारा प्रतिदिन 14.5 लाख किमी की दूरी तय की जाती है। यात्री-गाड़ियों की दृष्टि से प्रतिदिन लगभग 12,617 यात्री-गाड़ियाँ चलती हैं तथा 41,530 लाख यात्री लगभग 62,300 किमी से भी अधिक दूरी की यात्रा करते हैं। वर्तमान समय में देश के रेलमार्गों को 17 भागों में बाँटकर संचालित किया जा रहा है।

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प्रश्न 4
भारत की अर्थव्यवस्था में रेल यातायात का महत्त्व बताइए।
उत्तर

  1. रेल परिवहन लम्बी दूरी के लिए विशेषत: उपयुक्त है।
  2. रेलों द्वारा भारी माल का परिवहन सुगमता से होता है, जो सड़क परिवहन द्वारा सम्भव नहीं है।
  3. रेल परिवहन, सड़क परिवहन की अपेक्षा सस्ता होता है।
  4. सड़क परिवहन की अपेक्षा रेल परिवहन तथा यात्रा अधिक सुरक्षित है। रेल यात्रा में दुर्घटनाओं की सम्भावना कम रहती है।
  5. रेलों द्वारा देश के परस्पर दूरस्थ स्थान एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं, जिससे देश की एकता तथा अखण्डता सम्भव हो पाती है।
  6. देश के औद्योगीकरण में रेलों का बहुत महत्त्व है।
  7. पत्तनों के विकास एवं व्यापार में रेलों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
  8. भारतीय रेल देश का सबसे बड़ा औद्योगिक प्रतिष्ठान है। इसमें भारी पूँजी लगी है तथा लाखों व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त होता है।

प्रश्न 5
भारत में सड़क परिवहन के महत्त्व की विवेचना कीजिए। [2011, 16]
उत्तर
आदिकाल से ही भारत के परिवहन पथों में सड़कों का सर्वाधिक महत्त्व है। भारतीय सड़कों का जाले विश्व का सबसे बड़ा सड़क जाल है। यात्री एवं सामान, दोनों दृष्टियों से सड़क यातायात का कुल यातायात में प्रतिशत बहुत तीव्रता से बढ़ा है। सड़कें राष्ट्रीय जीवन की धमनियाँ हैं। प्रमुख वस्तुओं को लाने-ले जाने, निर्यातक वस्तुओं को पत्तनों तक पहुँचाने, आयात की गयी वस्तुओं को देश के आन्तरिक भागों में भेजने आदि ऐसे कार्य हैं जो सड़क मार्गों द्वारा ही सम्भव हो पाये हैं। सड़क परिवहन के प्रमुख गुण उसकी लचक, सेवा का व्यापक क्षेत्र, माल की सुरक्षा, समय की बचत और बहुमुखी एवं सस्ती सेवा का होना है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
भारत में यातायात के प्रमुख साधन बताइए।
उत्तर
भारत में यातायात के प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं –

  1. सड़क यातायात
  2. रेल यातायात
  3. जल यातायात तथा
  4. वायु यातायात

प्रश्न 2
भारत में कुल कितने प्रकार के सड़क मार्ग पाये जाते हैं?
उत्तर
सन् 1943 की नागपुर सड़क योजना के अनुसार, भारतीय सड़कों का वर्गीकरण निम्नवत् है –

  1. राष्ट्रीय राजमार्ग
  2. प्रान्तीय राजमार्ग
  3. जिले की सड़कें तथा
  4. ग्रामीण सड़कें।

प्रश्न 3
अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
जहाँ दो या दो से अधिक पड़ोसी देशों के राजमार्ग परस्पर एक-दूसरे की राजधानियों या नगरों को जोड़ते हैं, ऐसे राजमार्ग अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग कहलाते हैं; जैसे-मुख्य मार्ग भारत को पाकिस्तान में लाहौर से तथा म्यांमार में मांडले से जोड़ता है।

प्रश्न 4
देश में जल यातायात कितने प्रकार का है?
उत्तर
देश में जल यातायात को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. आन्तरिक जल यातायात तथा
  2. सामुद्रिक जल यातायात।

प्रश्न 5
भारत में हवाई यातायात का राष्ट्रीयकरण कब हुआ?
उत्तर
भारत में हवाई यातायात का राष्ट्रीयकरण सन् 1953 में हुआ।

प्रश्न 6
भारत में अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के हवाई अड्डों की कुल संख्या क्या है?
उत्तर
भारत में अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के कुल 15 हवाई अड्डे हैं।

प्रश्न 7
भारत में निजी एयरलाइन्स की किन्हीं दो कम्पनियों के नाम लिखिए।
उत्तर
भारत में निजी एयरलाइन्स की दो कम्पनियाँ हैं-

  1. जेट एयर लाइन्स तथा
  2. किंग फिशर एयर लाइन्स।

प्रश्न 8
भारत में प्रथम रेलमार्ग कब बनाया गया?
उत्तर
भारत में प्रथम रेलमार्ग सन् 1853 में मुम्बई-थाणे के मध्य बनाया गया।

प्रश्न 9
राष्ट्रीय राजमार्गों की लम्बाई लगभग कितनी है?
उत्तर
52,000 किमी।

प्रश्न 10
राष्ट्रीय राजमार्गों को जोड़ने वाला मार्ग क्या कहलाता है?
उत्तर
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना के अन्तर्गत देश के चार महानगरों (दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, मुम्बई) को जोड़ने वाला सड़क मार्ग ‘स्वर्ण चतुर्भुज’ कहलाता है, जो 5,846 किमी लम्बा है।

प्रश्न 11
भारत में इस समय कौन-सी पंचवर्षीय योजना चल रही है?
उत्तर
भारत में इस समय बारहवीं पंचवर्षीय योजना चल रही है। इसकी कार्य-अवधि2012-2017 है।

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प्रश्न 12
भारत में आन्तरिक जल परिवहन के विकास में बाधक दो भौगोलिक कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. वर्षाकाल में नदियाँ बाढ़ग्रस्त हो जाती हैं तथा शुष्क ऋतु में सूख जाती हैं।
  2. दक्षिण भारत की नदियाँ, विषम पठारी धरातल पर बहने के कारण प्रपाती हैं; अत: नौगम्य नहीं हैं।

प्रश्न 13
भारत में सड़क यातायात के दो महत्व बताइए।
उत्तर

  1. देश के दूरस्थ तथा दुर्गम क्षेत्र भी सड़कों द्वारा जुड़े हैं।
  2. सड़क परिवहन लघु दूरी के लिए शीघ्रतम तथा सस्ता साधन है।

प्रश्न 14
भारतीय अर्थव्यवस्था में वायु-यातायात के दो महत्त्व (लाभ) बताइए। [2016]
उत्तर

  1. भारतीय निर्यातकों की सहायता करने और उनके निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए सरकार ने ‘ओपने स्काई पॉलिसी’ अर्थात् मुक्त आकाश नीति’ की घोषणा की है।
  2. वायु-यातायात पर्यटन को बढ़ावा देता है। पर्यटन रोजगार के अवसर पैदा करने तथा निर्धनता को दूर करने में सहायक सिद्ध हुआ है।

प्रश्न 15
पंजाब की प्रमुख यातायात नहर कौन-सी है?
उत्तर
पंजाब की प्रमुख यातायात नहर सरहिन्द नहर है, जिसमें हिमालय पर्वत की लकड़ियाँ बहाकर लायी जाती हैं।

प्रश्न 16
उत्तमाशा अन्तरीप भारत को किससे मिलाता है?
उत्तर
उत्तमाशा अन्तरीप भारत को दक्षिण अफ्रीका और पश्चिमी अफ्रीका से मिलाता है।

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प्रश्न 17
सिंगापुर जलमार्ग भारत को किससे जोड़ता है?
उत्तर
सिंगापुर जलमार्ग भारत को चीन और जापान से जोड़ता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1
आगरा-ग्वालियर-हैदराबाद-बंगलुरु से धनुषकोटि तक का मार्ग है –
(क) राष्ट्रीय राजमार्ग
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग
(ग) (क) और (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग।

प्रश्न 2
भारत के शिरोभाग को तल भाग से जोड़ने वाली भारतीय रेल है –
(क) नालाचल एक्सप्रेस
(ख) शताब्दी एक्सप्रेस
(ग) जम्मू तवी एक्सप्रेस
(घ) छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
उत्तर
(ग) जम्मू-तवी एक्सप्रेस।

प्रश्न 3
अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व का दमदम हवाई अड्डा स्थित है –
(क) मुम्बई में
(ख) नई दिल्ली में
(ग) गुजरात में
(घ) कोलकाता में
उत्तर
(घ) कोलकाता में।

प्रश्न 4
निम्नलिखित में से कौन-सा जोड़ा सही नहीं है? (2009)
(क) मिजोरम – इटानगर
(ख) मणिपुर – इम्फाल
(ग) मेघालय – शिलांग
(घ) नागालैण्ड – कोहिमा
उत्तर
(क) मिजोरम – इटानगर।

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UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 19 Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act (MGNREGA)

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Subject Sociology
Chapter Chapter 19
Chapter Name Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act (MGNREGA) (महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम)
Number of Questions Solved 28
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 19 Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act (MGNREGA) (महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
मनरेगा कार्यक्रम क्या है? भारत के पुनर्निर्माण में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय गारण्टी योजना की भूमिका की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (नरेगा) का क्रियान्वयन ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा किया जाता है जो सरकार के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों में से एक है। इस योजना के तहत सरकार की गरीबों तक सीधे पहुँच रहेगी और विकास के लिए विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाएगा। इस अधिनियम के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन का गारण्टीशुदा अकुशल मजदूरी/रोजगार वित्तीय वर्ष में प्रदान किया जाएगा।
यह अधिनियम 2 फरवरी, 2006 को लागू किया गया। पहले चरण में वर्ष 2006-07 में देश के 27 राज्यों के 200 जिलों में इस योजना का कार्यान्वयन किया गया। इसमें चयनित 200 जिलों में 150 जिले ऐसे थे जहाँ काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम पहले से चल रहा था। ‘काम के बदले अनाज’ योजना व सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना का विलय अब इस नई योजना में कर दिया गया है। अप्रैल, 2008 से इस योजना को सम्पूर्ण देश में लागू कर दिया गया है।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहला कानून है। इसमें रोजगार गारण्टी किसी अनुमानित स्तर पर नहीं है, बल्कि इस अधिनियम को लक्ष्य मजदूरी रोजगार को बढ़ाना है। इसका सीधा लक्ष्य है कि प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन द्वारा सही उपयोग और गरीबी के कारण – सूखा, जंगल काटना एवं मिट्टी के कटाव को सही तरीके से विकास में लगाना है।

ज्ञातव्य है कि ‘नरेगा’ का नामकरण महात्मा गाँधी के नाम पर करने की घोषणा 2 अक्टूबर, 2009 को गाँधी जयन्ती के अवसर पर की गई थी। परिणामस्वरूप वर्ष 2005 में बने ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम’ का नाम औपचारिक रूप से ‘महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा) करने का प्रावधान किया गया।

भारत के पुनर्निर्माण में मनरेगा की भूमिका

भारतीय ग्रामीण क्षेत्र की छिन्न-भिन्न अर्थव्यवस्था को सुधारने तथा सामाजिक, व्यावसायिक तथा राजनीतिक अभ्युदय में समन्वित ग्रामीण कार्यक्रम ने बहुत महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया है। यह कार्यक्रम ग्रामीण उत्थान तथा निर्धनता उन्मूलन के क्षेत्र में नये आयाम उत्पन्न करने में सफल सिद्ध हो रहा है। इस चमत्कारी कार्यक्रम ने सदियों से निर्धनता की रेखा के नीचे जीवन व्यतीत करने वाले ग्रामीण लोगों के लिए सुख और सुविधा का नया धरातल प्रस्तुत किया है जिससे यह देश की निर्धन जनसंख्या को गरीबी की रेखा से ऊपर उठाने में सफल होगा। इस कार्यक्रम ने सदियों से गरीबी, भुखमरी, रूढ़िवादी और सड़ी-गली अर्थव्यवस्था से दबी ग्रामीण जनसंख्या को रोजगार की गारण्टी का नया आयाम प्रदान किया है। वास्तव में, जीर्ण-शीर्ण ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सँभालने में तथा ग्रामीण क्षेत्रों का पुनर्निर्माण करने में मनरेगा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ग्रामीण पुनर्निर्माण के सन्दर्भ में इसके महत्त्व का मूल्यांकन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है

1. निर्धन ग्रामवासियों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना – मनरेगी गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के युवकों को स्वरोजगार का अवसर प्रदान करता है। इससे गाँवों में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है और अप्रशिक्षित युवकों को रोजगार भी मिल जाते हैं।

2. निर्धनता कम करने में सहायक – मनरेगा का उद्देश्य ही गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को उस रेखा से ऊपर लाना है अर्थात् उनका सामाजिक, आर्थिक स्तर ऊँचा करना है; अतः निर्धनता को कम करने की दृष्टि से भी मनरेगा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत वर्ष में 100 दिनों का रोजगार दिलाने का लक्ष्य रखा गया है।

3. अनुसूचित जातियों, जनजातियों व महिलाओं के कल्याण में सहायक
मनरेगा कार्यक्रम का लाभ सभी निर्धनों को तो पहुँचा ही है, परन्तु समाज के कमजोर वर्गों, विशेषत: अनुसूचित जातियों/जनजातियों व महिलाओं का कल्याण तथा उन्हें गरीबी की रेखा से ऊपर लाना इसका विशेष उद्देश्य है। इसमें अनुसूचित जातियों व जनजातियों के परिवारों को 150 दिनों तक रोजगार प्रदान किए जाने का प्रावधान तथा 33 प्रतिशत महिलाओं को लाभान्वित करने का प्रावधान है।

4. ग्रामीण क्षेत्रों का विकास
मनरेगा कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है। यह रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने, निर्धनता कम करने, सूखे के लिए राहत देने, मरुस्थल विकास कार्यक्रमों तथा अनेक अन्य दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है तथा ग्रामवासियों को विकास सेवाएँ उपलब्ध कराता है। यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास से जुड़ा है।

5. क्षेत्रीय असन्तुलन कम करने में सहायक
यह कार्यक्रम क्षेत्रीय असन्तुलन, विशेष रूप से आर्थिक असमानता कम करने में भी सहायक है। क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

6. सामाजिक न्याय की दृष्टि से महत्त्व
मनरेगा विकास कार्यक्रम का उद्देश्य निर्धनता को दूर कर रोजगार की गारण्टी प्रदान करना है; अत: सामाजिक न्याय की दृष्टि से यह कार्यक्रम अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है तथा इसका लाभ केवल निम्न वर्ग को ही प्रदान किया जाता है।

7. उत्पादन-वृद्धि में सहायक
यह कार्यक्रम स्थानीय संसाधनों तथा मानवीय संसाधनों के समुचित दोहन द्वारा सभी क्षेत्रों में श्रम अवसरों को बढ़ाने पर बल देता है। श्रम के अवसर बढ़ने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण होगा। इसके परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो जाएगी।

8. अनुदान तथा आर्थिक क्षेत्र में सहायता
यह कार्यक्रम निर्धन परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के लक्ष्य हेतु कटिबद्ध है। कार्य के लिए सरकार ने प्रत्येक निर्धन परिवार को सौ दिनों के रोजगार उपलब्ध कराने का प्रावधान रखा है। सरकार ऐसे परिवारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर उन्हें नवजीवन प्रदान करेगी। इस प्रकार, ग्रामीण पुनर्निर्माण में इस कार्यक्रम की भूमिका बड़ी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी।

9. ग्रामीण जनसंख्या की सहभागिता सुनिश्चित करना
मनरेगा कार्यक्रम ग्रामीण जनता को निश्चित रोजगार के अवसर प्रदान कर नई ग्रामीण अर्थव्यवस्था का निर्माण कर सकेगी। यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों की ध्वस्त अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण में भी नींव का पत्थर सिद्ध होगा।

10. राष्ट्रीय विकास का आधार
मनरेगा कार्यक्रम राष्ट्र की निर्धनतम जनशक्ति को रोजगार के द्वारा उनके जीवन का पुनर्निर्माण करने में राष्ट्रीय समृद्धि और विकास को एक सुदृढ़ आधार प्रदान करेगा। यह कार्यक्रम निर्धनतारूपी अभिशाप को समाप्त कर निर्धन नागरिकों के जीवनयापन में गुणात्मक सुधार लाएगा तथा सम्पूर्ण राष्ट्र की समृद्धि में आशातीत वृद्धि करने में सफल बन सकेगा।

इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि भारत के गाँवों की अस्त-व्यस्त अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण में मनरेगा कार्यक्रम की भूमिका बड़ी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी। यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक विकास की बाधाओं को दूर करके उन्हें सामाजिक और आर्थिक समानताएँ प्रदान कर उनके लिए। सुखी तथा उज्ज्वल भविष्य की नींव रखेगा। इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता, बेरोजगारी, भुखमरी, कुरीतियाँ तथा रूढ़िवादिता पलायन कर जाएँगी।

प्रश्न 2
मनरेगा के मार्गदर्शी सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। या मनरेगा के मार्गदर्शी सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए तथा इस कार्यक्रम के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
मनरेगा के मार्गदर्शी सिद्धान्त
मनरेगा की माँग प्रेरित विशेषणों को सुदृढ़ करने के लिए मार्गदर्शी सिद्धान्त, जिन्हें बारहवीं योजना के लिए तैयार किया गया है, मिहिर शाह समिति की अनुशंसाओं पर आधारित है। ये इस प्रकार हैं

  1.  ग्राम पंचायत अथवा कार्यक्रम अधिकारी, यथास्थिति, वैध आवेदनों को स्वीकार करने तथा आवेदकों को दिनांकित प्राप्तियाँ जारी करने के लिए बाध्य होंगे।
  2.  आवेदनों को अस्वीकृत करना तथा दिनांकित प्राप्तियों को न देने की प्रक्रिया को मनरेगा की धारा 25 के अधीन उल्लंघन माना जाएगा।
  3.  कार्य हेतु आवेदन प्रस्तुत करने के लिए, प्रावधान को कार्य हेतु आवेदन प्राप्त करने और उनकी ओर से दिनांकित प्राप्तियाँ जारी करने के लिए वार्ड सदस्यों, ऑगनवाड़ी कामगारों, स्कूल अध्यापकों, स्व-सहायता दलों, गाँव स्तर के राजस्व पदाधिकारियों, सामान्य सेवाकेन्द्रों और महात्मा गाँधी नरेगा श्रम दलों को शक्ति प्रदान करने वाली ग्राम पंचायतों द्वारा इस प्रकार पुन:नामित बहुविध चैनलों के जरिए सतत आधार पर उपलब्ध कराया जाएगा।
  4. मनरेगा वेबसाइट के अतिरिक्त मोबाइल फोनों के जरिए कार्य हेतु आवेदन पंजीकृत करने के लिए कामगारों हेतु प्रावधान (व्यवहार्य होने पर) भी किया जाएगा और उसे सीधे ही प्रबन्धन सूचना प्रणाली में भरा जाएगा। मोबाइल फोनों की स्थिति में, इस प्रणाली को निरक्षर कामगारों के लिए सुविधाजनक बनाया जाएगा और उसमें अंत:सक्रिय वॉइस प्रत्युत्तर प्रणाली (आईवीआरएस) तथा वॉइस समर्थित आन्तरिक कार्यों को शामिल किया जाएगा। यह विकल्प स्वतः ही दिनांकित प्राप्तियों को जारी करेगा।
  5.  राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करेंगी कि मनरेगा प्रबन्धन सूचना प्रणाली कार्य-माँग को रिकॉर्ड करती है। यह कार्य शुरू होने की तारीख तथा कार्य आवेदन की तारीख के बीच होने वाले अन्तर (प्रत्येक ग्राम पंचायत के लिए) का पता लगाएँगी।
  6.  मनरेगा सॉफ्टवेयर ऐसे मजदूरी प्राप्तिकर्ता, जिनकी कार्य-माँग को माँग के 15 दिनों के भीतर पूरा नहीं किया जाता है, को बेरोजगारी भत्ते का भुगतान करने हेतु स्वतः ही अदायगी आदेश सृजित करेगा। इसके आधार पर तैयार की गई रिपोर्टे राज्य स्तर पर पता लगाए जाने वाली रिपोर्टों के अनिवार्य सेट का भाग होंगी।

मनरेगा कार्यक्रम का उद्देश्य

मनरेगा एक ऐसा कार्यक्रम है जो कि गरीबों को 100 दिन का गारण्टीशुदा रोजगार प्रदान करने हेतु अधिक विस्तृत एवं क्रमबद्ध, तरीकों को अपनाने पर जोर देता है। साथ ही यह प्रत्येक व्यक्ति को समाजोपयोगी तथा सरकारी कार्यों में इस प्रकार लगाने योग्य बनाना चाहता है कि वह अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु पर्याप्त आय अर्जित कर सके। इस प्रकार, इस कार्यक्रम के अन्तर्गत परम्परागत सिद्धान्तों, व्यवहारों तथा प्राथमिकताओं को बहुत कुछ बदला गया है। मनरेगा अधिनियम रोजगार की कानूनी गारण्टी प्रदान करने वाला एक व्यापक कार्यक्रम है।

स्वतन्त्र भारत में पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत ग्रामीण विकास के अनेक कार्यक्रम प्रारम्भ किए गए। ऐसे कार्यक्रमों में सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रमुख हैं। इन विकास कार्यक्रमों के परिणामों के अध्ययन के बाद ज्ञात हुआ कि विभिन्न कार्यक्रमों का लाभ अधिकांशतः उन लोगों को मिला है। जो पहले से ही साधन-सम्पन्न हैं तथा जिनके पास भूमि व उत्पादन के अन्य साधन प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं। अनुभव के आधार पर पाया गया कि विभिन्न-विकास कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामों को समन्वित विकास नहीं हो रहा है। भूमिहीन श्रमिकों तथा दस्तकारों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है, उन्हें निर्धनता से छुटकारा नहीं दिलाया जा सका है, उनमें व्याप्त बेकारी व अर्द्ध-बेकारी को समाप्त नहीं किया जा सका है।

साथ ही यह भी पाया गया कि विभिन्न विकास एजेन्सियों के कार्यक्रमों में समन्वय का अभाव है जिसके फलस्वरूप साधनों का दुरुपयोग होता है। इसके अलावा ग्रामीणों के सम्मुख यह समस्या भी बनी रहती है कि किस सरकारी विभाग के किस कार्यक्रम को अपनाया जाए और किसे नहीं। ऐसी स्थिति में वर्ष 2006-07 में एक नवीन कार्यक्रम जिसे मनरेगा कार्यक्रम कहते हैं, की रूपरेखा प्रस्तुत की गयी।

उपर्युक्त कार्यक्रम का एक उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के निर्धनतर्म परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाना एवं उन्हें आय के साधन प्रदान करना है। ग्रामीण विकास की दृष्टि से अपनाए गए अब तक के सभी कार्यक्रमों की तुलना में यह सबसे बड़ा एवं व्यावहारिक कार्यक्रम है। 2 फरवरी, 2006 से देश के सभी सामुदायिक विकास-खण्डों में मनरेगा कार्यक्रम प्रारम्भ किया जा चुका है। यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में बेकारी एवं गरीबी को दूर करने का प्रयत्न करता है।

प्रश्न 3
वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति के परिवारों के लिए मनरेगा के अन्तर्गत विशेष लाभ योजनाओं पर प्रकाश डालिए। इनर
उत्तर:
मनरेगा की विशेष लाभ योजनाएँ

ग्रामीण विकास मन्त्रालय ने वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति के परिवारों के लिए मनरेगा के अन्तर्गत 150 दिनों का रोजगार प्रदान करने के लिए एक निर्देश जारी किया है। इस कदम से झारखण्ड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और आन्ध्र प्रदेश जैसे राज्यों में लगभग आठ लाख लोगों को फायदा होगा। महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा) के अन्तर्गत निर्धारित 100 दिनों के रोजगार के अतिरिक्त 50 दिनों का रोजगार उन व्यक्तियों के लिए लागू होगा जिन्हें वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) 2006 के अन्तर्गत सम्बन्धित अधिकार-पत्र दिए गए हैं। इनमें से लगभग 8 लाख व्यक्तिगत अधिकार पत्र आन्ध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और ओडिशा में दिए गए हैं।

सरकार के अनुसार भूमि को और अधिक उत्पादक बनाने के लिए जमीनों का प्रयोग समतल और बागान और अन्य गतिविधियों के लिए किए जाने की आवश्यकता है। 50 अतिरिक्त दिनों के माध्यम से मनरेगा में परिवारों को अपनी ही जमीन पर अतिरिक्त काम करने की योजना को मंजूरी प्रदान की गई है। उस कार्य की मजदूरी का भुगतान उनको मनरेगा के मद से ही किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, एफआरए लाभार्थियों को पहले ही इन्दिरा आवास योजना के अन्तर्गत सहायता के लिए शामिल किया गया है।

12 नक्सल प्रभावित जिलों में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के सहयोग से त्वरित आजीविका सहायता परियोजना (एएलएसपी) को शुरू किया गया है। परियोजना में इन जिलों में 500 ग्राम पंचायतों में मनरेगा के माध्यम से आजीविका सृजन पर ध्यान दिया जाएगा। इन 12 जिलों में; लातेहार, पलामू, गुमला, पश्चिमी सिंहभूम (झारखण्ड); मलकानगिरी, कोरापुट नुआपाड़ा और कालाहांडी (ओडिशा); सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर, बलरामपुर (छत्तीसगढ़) शामिल हैं।

विशेष रूप से कृषि के क्षेत्र में मनरेगा और ग्रामीण आजीविका के बीच तालमेल मजबूत करने पर ध्यान देने के साथ ही मनरेगा के अन्तर्गत हो रहे कार्यों को मौजूदा सूची में जोड़ा गया है। मनरेगा में काम करने से हाशिए पर खड़े समाज के एक वर्ग की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होने की सम्भावना है। इसके अन्तर्गत अनुसूचित जाति/जनजाति, लघु एवं सीमान्त किसानों, इन्दिरा आवास योजना निर्दिष्ट लाभार्थियों, वन अधिकारियों को भू-अधिकार से सम्पन्न किया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
मनरेगा कार्यक्रम के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं।

  1. प्रत्येक ग्रामीण परिवार के एक वयस्क सदस्य को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कम-से-कम 100 दिन गारण्टीशुदा अकुशल मजदूरी/रोजगार माँग के अनुसार उपलब्ध कराना, परिणामस्वरूप । निर्धारित गुणवत्ता और स्थायित्व वाली रचनात्मक परिसम्पत्तियों का निर्माण,
  2. गरीबों को आजीविका का संसाधन आधार सशक्त करना;
  3. असक्रिय रूप से सामाजिक समावेश सुनिश्चित करना और;
  4. पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत बनाना।

प्रश्न 2
मनरेगा कार्यक्रम का सामाजिक महत्त्व बताइए।
उत्तर:
मनरेगा का सामाजिक महत्त्व मनरेगा के अन्तर्गत एक वित्तीय वर्ष के दौरान ऐसे सभी ग्रामीण परिवारों को जिनके वयस्क सदस्य अकुशल श्रम करने को तैयार हों। कम-से-कम 100 दिनों का गारण्टी मजदूरी देने का प्रयास किंया जाता है। इस रूप में मनरेगा अन्य श्रमिक रोजगार कार्यक्रमों से अलग किस्म का है क्योंकि इसके द्वारा ग्रामीण लोगों को एक संसदीय अधिनियम के द्वारा रोजगार पाने का वैधानिक अधिकार और गारण्टी प्राप्त है। यह अन्य श्रम रोजगार योजनाओं जैसा नहीं है। अपने अधिकार आधारित ढाँचे तथा माँग-आधारित तरीके द्वारा मनरेगा पिछली रोजगार योजनाओं की तुलना में एक भिन्न परिवर्तन का अग्रदूत है। इस योजना की विशेषताओं में शामिल हैं।

समयबद्ध रोजगार गांरटी और 15 दिनों के अन्दर मजूदरी का भुगतान तथा मजदूर संकेद्रित कार्य पर जोर जिसमें कॉन्टेक्टरों और मशीनरी के प्रयोग का निषेध किया गया है। योजना की कम-से-कम 33 प्रतिशत हितग्राही महिलाएँ होंगी। इस दृष्टि से समाज में महिलाएँ आर्थिक दृष्टि से भी सुदृढ़ होंगी। मनरेगा के अन्तर्गत मजदूरी का भुगतान बैंक एवं डाकघर खाते के माध्यम से किया जाना जरूरी है। इस योजना से गरीबों के आर्थिक समावेश में सहायता मिल रही है।

मनरेगा का मुख्य ध्यान जल संरक्षण, सूखा निवारण (वन संवर्द्धन/वृक्षारोपण सहित), भूमि विकास, बाढ़ नियन्त्रण/सुरक्षा (जल-जमाव वाले क्षेत्रों में नालियों के विकास सहित) तथा सभी मौसमों में गाँवों को सड़क से जोड़ने इत्यादि से सम्बन्धित कार्यों पर है। इन कार्यों से निश्चित रूप से समाज को बड़ा लाभ मिलेगा। भविष्य की योजनाएँ बनाने, प्रोजेक्ट शेल्फ के अनुमोदन तथा लागत के कम-से-कम 50 प्रतिशत तक के अनुपात में कार्यों को लागू किए जाने के माध्यम से मनरेगा के नियोजन, कार्यान्वयन और उनकी निगरानी की दृष्टि से पंचायतों की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इससे यह पता चलता है कि यह अधिनियम विकेन्द्रीकरण को मजबूत बनाने तथा निम्नतम स्तर पर लोकतान्त्रिक संरचना को दृढ़ करने के लिए भी एक महत्त्वपूर्ण साधन है।

प्रश्न 3
मनरेगा अधिनियम के मुख्य प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनरेगा अधिनियम के मुख्य प्रावधान मनरेगा अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं

  1. मनरेगा अधिनियम रोजगार की कानूनी (2008-09) गारण्टी प्रदान करता है।
  2. प्रत्येक विकास खण्ड पर इस कार्यक्रम की गतिविधियों का चयन पंचायत समितियों द्वारा करने का प्रावधान किया गया है।
  3.  पंचायत समितियों द्वारा लोगों को, कार्यक्रम की पारदर्शिता, सामाजिक उत्तरदायित्व तथा सामाजिक सहभागिता का पूर्ण आश्वासन दिया जाएगा।
  4.  कष्ट निवारण समितियाँ हर जगह उपलब्ध होंगी।
  5. 33 प्रतिशत लाभ महिलाओं को होगा तथा उन्हें पुरुषों के बराबर पारिश्रमिक की व्यवस्था की गई है।
  6. रोजगार का इच्छुक कोई भी व्यक्ति, ग्राम पंचायत समिति में पंजीकरण करा सकता है। पंजीकृत होने वाले व्यक्तियों को ग्राम पंचायत द्वारा ‘जॉब गारण्टी कार्ड जारी किया जाएगा। इस कार्ड के अन्तर्गत वैधानिक मान्यता है कि 15 दिनों के अन्दर व्यक्ति को रोजगार मिले।
  7. पंजीकरण कार्यालय वर्ष भर खुला रहेगा।
  8. व्यक्ति को रोजगार उसके घर से 5 किमी के दायरे में मिलेगा तथा साथ में मजदूरी भत्ता भी उपलब्ध कराया जाएगा।

प्रश्न 4
मनरेगा के विषय में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम सितम्बर 2005 में बनाया गया और 2 फरवरी, 2006, से इसे क्रमिक रूप से लागू किया गया। प्रथम चरण में इसे देश के अत्यधिक पिछड़े 200 जिलों में लागू किया गया। वहीं दूसरे चरण के दौरान, 2007-08 में, इसे 130 अतिरिक्त जिलों में लागू किया गया। आरम्भिक लक्ष्य के रूप में, मनरेगा को पाँच वर्षों के अन्दर पूरे देश में विस्तारित किया जाना था। किन्तु पूरे देश को इसके सुरक्षात्मक दायरे में लाने और भारी माँग को देखते हुए, चरण 3 के अन्तर्गत, 1 अप्रैल, 2008 से इस योजना को भारत के बाकी 274 जिलों में भी लागू कर दिया गया। इस तरह, अब यह राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (नरेगा) देश के समस्त ग्रामीण क्षेत्र को आच्छादित करता है। 2 अक्टूबर, 2009 को इसका नाम बदलकर महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा) रख दिया गया।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
‘मनरेगा राष्ट्रीय विकास का आधार है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मनरेगा अधिनियम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार का पहला कानून है। इसमें रोजगार गारण्टी किसी अनुमानित स्तर पर नहीं है, बल्कि इस अधिनियम का लक्ष्य मजदूरी रोजगार को बढ़ाना है। इसका सीधा लक्ष्य है कि प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन द्वारा सही उपयोग और गरीबी के कारण-सूखा, जंगल काटना एवं मिट्टी के कटाव को सही तरीके से विकास में लाना है। अतः कहा जा सकता है कि मनरेगा राष्ट्रीय विकास का आधार है।

प्रश्न 2
मनरेगा क्या है?
उत्तर:
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) देश के ग्रामीण इलाकों में लागू किया गया अधिकारों पर आधारित रोजगार कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य प्रत्येक ग्रामीण परिवार के एक वयस्क सदस्य को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कम-से-कम 100 दिन का गारंटीशुदा अकुशल मजदूरी-रोजगार उपलब्ध कराते हुए आजीविका सुरक्षा बढ़ाना है।

प्रश्न 3
मनरेगा को किस प्रकार लागू किया गया?
उत्तर:
पहले चरण में 2 फरवरी, 2006 से देश के सबसे पिछड़े 200 जिलों में मनरेगा को लागू किया गया, उसके बाद 1 अप्रैल, 2007 और 15 मई, 2007 को क्रमशः 113 और 17 अतिरिक्त जिलों को भी इसके दायरे में लाया गया। बचे हुए अन्य जिलों को 1 अप्रैल, 2008 से इस अधिनियम के दायरे में लाया गया। इस प्रकार, इस समय देश के सभी ग्रामीण जिले (644) इस अधिनियम के दायरे में हैं।

प्रश्न 4
मनरेगा की प्रमुख उपलब्धियाँ लिखिए।
उत्तर:
इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन के पिछले आठ वर्षों के दौरान इसकी प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं

  1.  वर्ष 2006 में लागू होने के बाद से करीब ₹ 1,63,754.41 करोड़ की राशि सीधे तौर पर ग्रामीण कामगार घरों को दिहाड़ी के भुगतान के रूप में प्रदान की गई।
  2. 1,657.45 करोड़ कार्यदिवसों को रोजगार सृजित किया गया।
  3. 2008 से लेकर अब तक औसतन 5 करोड़ ग्रामीण घरों को हर साल रोजगार मुहैया कराया गया है।
  4. 31 मार्च, 2014 तक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की भागीदारी 48 प्रतिशत रही।

निश्चित उत्तीय प्रश्न ( 1 अंक)

प्रश्न 1
मनरेगा योजना का पूरा नाम बताइए।
उत्तर:
मनरेगा योजना का पूरा नाम है-महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार ग्रामीण गारण्टी अधिनियम (मनरेगा) पहले इसका नाम राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी अधिनियम (नरेगा) था।

प्रश्न 2
मनरेगा कार्यक्रम कब से प्रारम्भ किया गया है?
उत्तर:
मनरेगा कार्यक्रम 2 फरवरी, 2006 से (नरेगा के रूप में) प्रारम्भ किया।

प्रश्न 3
नरेगा कार्यक्रम को कब मनरेगा कार्यक्रम के रूप में परिवर्तित किया गया?
उत्तर:
नरेगा कार्यक्रम को 2 अक्टूबर, 2009 को गाँधी जयन्ती के अवसर पर मनरेगा कार्यक्रम के रूप में परिवर्तित किया गया।

प्रश्न 4
मनरेगा कार्यक्रम में महिलाओं को कितने प्रतिशत लाभ प्रदान किया गया है?
उत्तर:
मनरेगा कार्यक्रम में महिलाओं को 33% लाभ प्रदान किया है।

प्रश्न 5
मनरेगा का क्रियान्वयन किसके द्वारा किया जाता है?
उत्तर:
ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा।।

प्रश्न 6
मनरेगा के अन्तर्गत कितने दिनों का रोजगार देने का प्रावधान है?
उत्तर:
100 दिन तक।

प्रश्न 7
मनरेगा की किस धारा के अन्तर्गत आवेदनों को अस्वीकृत करना इसका उल्लंघन माना गया है?
उत्तर:
धारा 25

प्रश्न 8
जवाहर रोजगार योजना में महिलाओं को क्या विशेष लाभ दिया गया है ?
उत्तर:
जवाहर रोजगार योजना के अन्तर्गत लाभ प्राप्तकर्ताओं में 30 प्रतिशत महिलाओं को आरक्षण किया गया है।

प्रश्न 9
मनरेगा का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम।

प्रश्न10
मनरेगा का पूर्व नाम क्या था?
उत्तर:
नरेगा।

प्रश्न 11
मनरेगा में बेरोजगार भत्ते की राशि कौन तय करता है?
उत्तर:
राज्य सरकार।

प्रश्न 12
मनरेगा कहाँ-कहाँ लागू है?
उत्तर:
देश के सभी जिलों में।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
वर्ष 2006-07 में देश के कितने जिलों में मनरेगा का कार्यान्वयन हुआ?
(क) 500
(ख) 200
(ग) 300
(घ) 400

प्रश्न 2
जॉब गारंटी कार्ड जारी होने के कितने दिन के अन्तर्गत व्यक्ति को रोजगार मिल जाना चाहिए?
(क) 25 दिन
(ख) 50 दिन
(ग) 100 दिन
(घ) 15 दिन

प्रश्न 3
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनयम कब लागू किया गया?
(क) 2 फरवरी, 2006
(ख) 1 अप्रैल, 2005
(ग) 31 मार्च, 2007
(घ) 2 अक्टूबर, 2011

प्रश्न 4
निम्न में से रोजगार गारण्टी योजना है।
(क) मनरेगा
(ख) अपर्णा योजना
(ग) अन्नपूर्णा योजना
(घ) ये सभी

प्रश्न 5
नरेगा’ को ‘मनरेगा’ किस वर्ष किया गया
(क) 2009 में
(ख) 2006 में
(ग) 2008 में
(घ) 2010 में

उत्तर:
1. (ख) 200,
2. (घ) 15 दिन,
3. (क) 2 फरवरी, 2006,
4. (क) मनरेगा,
5. (क) 2009 में।

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UP Board Solutions for Class 12 History Chapter 1 Beginning of Mughal Empire in India: Babar and Humayun

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject History
Chapter Chapter 1
Chapter Name Beginning of Mughal Empire in India: Babar and Humayun (भारत में मुगल साम्राज्य का प्रारम्भ- बाबर और हुमायूँ)
Number of Questions Solved 15
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 History Chapter 1 Beginning of Mughal Empire in India: Babar and Humayun (भारत में मुगल साम्राज्य का प्रारम्भ- बाबर और हुमायूँ)

अभ्यास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित तिथियों के ऐतिहासिक महत्व का उल्लेख कीजिए|
1. 1526 ई०
2. 1527 ई०
3. 1530 ई०
4. 1540 ई०
5. 1556 ई०
उतर
दी गई तिथियों के ऐतिहासिक महत्व के लिए पाठ्य-पुस्तक के पृष्ठ संख्या- 24 पर ‘तिथि सार’ का अवलोकन कीजिए।

प्रश्न 2.
सत्य या असत्य बताइए
उतर.
सत्य-असत्य प्रश्नोत्तर के लिए पाठ्य-पुस्तक के पृष्ठ संख्या – 24 का अवलोकन कीजिए।

प्रश्न 3.
बहुविकल्पीय
उतर.
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर के लिए पाठ्य-पुस्तक के पृष्ठ संख्या- 24 का अवलोकन कीजिए।

प्रश्न 4.
अतिलघु उत्तरीय
उतर.
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर के लिए पाठ्य-पुस्तक के पृष्ठ संख्या- 24 व 25 का अवलोकन कीजिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबर के समय पंजाब व गुजरात की क्या स्थिति थी?
उतर.
बाबर के समय पंजाब की स्थिति – बाबर के आक्रमण के समय पंजाब का सूबेदार दौलत खाँ था। यद्यपि वह दिल्ली साम्राज्य के अधीन था, लेकिन अपने आपको स्वतंत्र शासक के रूप में देखना चाहता था। इसलिए दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी को समाप्त करने के लिए उसने काबुल के शासक बाबर को पत्र-व्यवहार कर भारत पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया था।  बाबर के समय गुजरात की स्थिति- बाबर के आक्रमण के समय सुदूर पश्चिम में स्थित गुजरात का शासक मुजफ्फरशाहथा। अपने शासनकाल में वह मालवा और मेवाड़ के पड़ोसी राज्यों के साथ युद्ध लड़ता रहता था।

प्रश्न 2.
बाबर के प्रारम्भिक आक्रमणों का विवरण कीजिए।
उतर.
बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना से पहले भारत पर कई आक्रमण किए। इन आक्रमणों से मिली सफलताओं ने बाबर के दिल में यह विश्वास भर कि वह भारत में स्थायी तौर पर अपने राज्य की स्थापना कर सकता है। बाबर के इन प्रारम्भिक आक्रमणों का विवरण निम्न प्रकार है
पहला आक्रमण – बाबर ने भारत पर सर्वप्रथम 1519 ई० में आक्रमण किया। उसने बाजौर और भेरा में कत्ल-ए-आम करके उन्हें अपने कब्जे में ले लिया। भेरा को हिन्दू बेग को सौंपकर उसने काबुल प्रस्थान किया। परन्तु बाद में वहाँ के निवासियों ने हिन्दू बेग को भगा दिया।
दूसरा आक्रमण – सन् 1519 ई० में ही बाबर ने पेशावर पर आक्रमण किया। परन्तु बदख्शाँ के उपद्रवों की वजह से उसे वापस लौटना पड़ा।
तीसरा आक्रमण – सन् 1520 ई० में बाबर ने भारत पर आक्रमण कर पुनः बाजौर और भेरा को अपने कब्जे में ले लिया। फिर स्यालकोट और सैयदपुर जीतने के बाद बाबर ने कन्धार पर कब्जा करके अपने पुत्र कामरान को वहाँ का सूबेदार नियुक्त कर दिया।
चौथा आक्रमण – बाबर के चौथे आक्रमण ने भारत पर उसके साम्राज्य स्थापित करने का रास्ता साफ कर दिया। सन् 1524 ई० में उसने भारत पर आक्रमण करके पंजाब को अपने अधिकार में ले लिया। इस युद्ध में इब्राहीम लोदी की पराजय ने बाबर के लिए दिल्ली विजय का रास्ता खोल दिया।

प्रश्न 3.
पानीपत के युद्ध का क्या परिणाम हुआ?
उतर.
पानीपत के युद्ध से भारत में लोदी वंश के साम्राज्य और प्रभुत्व का अंत हुआ साथ ही भारत में एक नए वंश- मुगल वंश कीस्थापना हुई, जिसका भारत के इतिहास में गौरव पूर्ण स्थान है।

प्रश्न 4.
बाबर की विजय( सन् 1526 ई० ) में किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख कीजिए।
उतर.
बाबर की विजय के प्रमुख तीन कारणों का उल्लेख निम्नवत् है
(i) इब्राहीम लोदी की सैनिक कमजोरियाँ – इब्राहीम लोदी अनुभवहीन और अयोग्य सेनापति था। उसे रणक्षेत्र में सेनाओं के कुशल संचालन और संगठन का विशेष ज्ञान नहीं था। इब्राहीम के अन्य सेनापति और सरदार भी विलासी, दम्भी और अनुभवहीन थे। बाबर ने स्वयं अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ में लिखा है- “वह (इब्राहीम) अनुभवहीन युवक अपनी गतिविधियों में लापरवाह था, बिना किसी नियम-कायदे के वह आगे बढ़ जाता था, बिना किसी ढंग के रुक जाता अथवा पीछे मुड़ जाता और बिना सोचे-समझे शत्रु से भिड़ जाता।” इब्राहीम लोदी की सैनिक दुर्बलता बाबर जैसे सैनिक
के लिए वरदान सिद्ध हुई।।
(ii) इब्राहीम लोदी की अयोग्यता – इब्राहीम लोदी एक अयोग्य निर्दयी और जिद्दी सुल्तान था। उसमें राजनीतिज्ञता, कूटनीतिऔर दूरदर्शिता नहीं थी। इन गुणों के अभाव के कारण वह दौलत खाँ, आलम खाँ, मुहम्मदशाह और राणा साँगा को बाबर के विरुद्ध अपने पक्ष में नहीं मिला सका।
(iii) बाबर द्वारा तोपों का प्रयोग – पानीपत के युद्ध में इब्राहीम के पास तोपखाना और कुशल अश्वारोही सेना नहीं थी, जबकि बाबर के पास सुदृढ़ तोपखाना था, जिसका संचालन उस्ताद अली और मुस्तफा जैसे अनुभवी सेनानायकों ने किया। इसका परिणाम यह हुआ कि आग उगलने वाली तोपों के सम्मुख साधारण शस्त्रों से युद्ध करने वाले सैनिक नहीं टिक पाए। पानीपत में बाबर की विजय में उसके कुशल अश्वारोही और भारी तोपखाना अत्यन्त सहायक हुए।

प्रश्न 5.
हुमायूँ की शेर खाँ के विरुद्ध हार के किन्हीं तीन कारणों का वर्णन कीजिए।
उतर.
शेर खाँ के विरुद्ध हुमायूँ की हार के तीन कारण निम्नवत् हैं
(i) दोषपूर्ण युद्ध प्रणाली – हुमायूँ की युद्ध प्रणाली दोषपूर्ण थी। वह अपने शत्रुओं को परास्त करने के उपरान्त क्षमा कर दिया करता था, जिससे उन्हें अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर मिल जाता था। अपने महत्वाकांक्षी शत्रुओं को पूरी तरह कुचले बिना छोड़कर हुमायूं ने अपने पतन का मार्ग स्वयं प्रशस्त किया। हुमायूं का यह चारित्रिक दोष था कि वह अपनी विजय पर शीघ्र ही प्रसन्न हो जाता था।
(ii) धन का अपव्यय – बाबर ने युद्धों व खैरात के रूप में धन का अपव्यय करके शाही खजाने को खाली कर दिया था। इसी प्रकार हुमायूँ भी अपनी विजयों के उपलक्ष्य में बड़ी-बड़ी दावतें आयोजित करता था और अपने सरदारों तथा परिवार के सदस्यों को भेंट दिया करता था, अत: हुमायूँ को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा और अन्तत: उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा।
(iii) चारित्रिक अयोग्यता – हुमायूं अपनी असफलता का कारण स्वयं ही था। वह मदिरा-प्रेमी, अयोग्य एवं सैनिक गुणों से रहित एक असफल शासक था। हुमायूँ को अफीम सेवन का भी बहुत शौक था, जिससे वह आलसी हो गया था।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा का वर्णन कीजिए।
उतर.
बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा- बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ अथवा ‘बाबरनामा’ में लिखा है कि उसके आक्रमण के समय भारत में पाँच मुस्लिम राज्य और दो काफिर (हिन्दू) राज्य थे। देहली, मालवा, बंगाल, गुजरात व बहमनी राज्य मुस्लिम शासकों के अधीन थे तथा मेवाड़ व विजयनगर हिन्दू शासकों के अधीन थे। बाबर का यह कथन सही है कि “सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में भारत केवल ऐसे राज्यों का समूह था, जो किसी भी आक्रमणकारी का, जो उसे विजित करने की शक्ति और इच्छा रखता हो, सरलता से शिकार हो सकता था।”

(i) पंजाब – बाबर के आक्रमण के समय पंजाब का सूबेदार दौलत खाँ लोदी था। यद्यपि वह दिल्ली साम्राज्य के अधीन था, लेकिन अपने आपको स्वतन्त्र शासक के रूप में देखना चाहता था। इतिहासकारों के अनुसार उसने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी थी और इब्राहीम लोदी को समाप्त करने के लिए काबुल के शासक बाबर से पत्र-व्यवहार कर रहा था। उसने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया था।

(ii) गुजरात – सुदूर पश्चिम में स्थित गुजरात का शासक मुजफ्फरशाह था। उसने गुजरात पर 1511 ई० से लेकर 1526 ई० तक राज्य किया। अपने शासनकाल में वह मालवा और मेवाड़ के पड़ोसी राज्यों के साथ युद्धों में व्यस्त रहा। पानीपत के युद्ध के कुछ ही दिन पूर्व उसका देहान्त हो गया और तब उसका पुत्र बहादुरशाह गुजरात का शासक बना। वह बड़ा योग्य और सफल शासक सिद्ध हुआ। आगे चलकर उसका मुगल सम्राट हुमायूं से काफी संघर्ष हुआ।

(iii) दिल्ली – बाबर के आक्रमण के समय उत्तरी भारत का सबसे प्रसिद्ध राज्य दिल्ली था। इसका सम्पूर्ण वैभव समाप्त हो चुका था। कहने को तो दिल्ली का सुल्तान विशाल साम्राज्य का स्वामी था, किन्तु व्यवहारिक दृष्टि से उसका प्रभाव केवल दिल्ली और उसके आसपास के कुछ प्रदेशों तक ही सीमित रह गया था। बाबर के आक्रमण के समय दिल्ली का सुल्तान इब्राहीम लोदी था। उसके कठोर और मनमाने व्यवहार से उसके सूबेदार, सैनिक, अधिकारी और राज दरबारी तंग आ चुके थे। वे सब उसके पतन के आकाँक्षी थे।

फलस्वरूप दिल्ली राज्य के विभिन्न भागों में विद्रोह हो रहे थे। लाहौर के सूबेदार दौलत खाँ लोदी ने अपने आपको स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया था। वह काबुल के शासक बाबर से भी गठजोड़ कर रहा था और उसे दिल्ली पर आक्रमण के लिए उकसा रहा था। दरिया खाँ लोदी बिहार में स्वतन्त्र शासक बन बैठा था। सारांशतः बाबर के आक्रमण के समय दिल्ली राज्य पूर्णतया अव्यवस्थित था और निरन्तर दुर्बल होता जा रहा था।

(iv) बिहार – फिरोज तुगलक के शासनकाल में बिहार स्वतन्त्र हो गया था। बाबर के आक्रमण के समय बिहार शक्तिशाली मुस्लिम राज्य था।

(v) मालवा – तैमूर के आक्रमण के तुरन्त बाद मालवा के सूबेदार दिलावर खाँ ने स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया था। | मालवा के शासक महमूद खिलजी द्वितीय के शासनकाल में मेदिनीराय नामक एक राजपूत सरदार का दबदबा बढ़ गया था। उससे अप्रसन्न होकर मुस्लिम सरदारों ने उसका विरोध किया। मेदिनीराय ने महाराणा सांगा की सहायता से उन्हें परास्त | कर दिया। इस प्रकार मालवा के सरदारों में आपसी फूट बढ़ गई।

(vi) उड़ीसा (ओडिशा) – यह राज्य काफी समय से हिन्दू राजाओं के अधीन था। यह समृद्ध एवं शक्तिशाली राज्य था, किन्तु दिल्ली से अत्यधिक दूर स्थित होने के कारण उत्तर भारत की राजनीति में उसकी विशेष भूमिका न थी।
(vii) सिन्ध- महमूद तुगलक की मृत्यु होते ही सिन्ध राज्य स्वतन्त्र हो गया था। बाबर के भारत पर आक्रमण के समय यहाँ अरबों का अधिकार स्थापित हो गया था। सिन्ध पर अरब वालों का प्रभाव था। यहाँ की राजनैतिक व्यवस्था अत्यन्त ही असन्तोषजनक थी।

(viii) बंगाल – बाबर के आक्रमण के समय बंगाल एक स्वतन्त्र राज्य के रूप में स्थापित था, जहाँ का प्रशासक नुसरतशाह था। वह बड़ा योग्य और गुणवान व्यक्ति था। लोग उसके शासनकाल में आर्थिक दृष्टि से समृद्ध और सन्तुष्ट थे।

(ix) कश्मीर – कश्मीर भी एक महत्वपूर्ण राज्य था। यहाँ सत्ता के लिए आन्तरिक संघर्ष चल रहा था। यहाँ के प्रधान वजीर ने अपने स्वामी सुल्तान मुहम्मदशाह को बाबर की सहायता से अपदस्थ कर स्वयं सत्ता हथिया ली।

(x) मेवाड़ – मेवाड़ उत्तरी भारत का सबसे प्रसिद्ध हिन्दू राज्य था, जिस पर राणा साँगा अथवा राणा संग्रामसिंह का शासन था। कर्नल टॉड के अनुसार राणा साँगा का प्रभाव लगभग सम्पूर्ण राजपूताने पर था। राणा साँगा ने मालवा के अनेक भागों पर अधिकार कर लिया था। उसने गुजरात के शासक को भी हराया था। राणा साँगा का उद्देश्य भारत में फिर से हिन्दू राज्य स्थापित करना था। राणा साँगा निःसन्देह उत्तरी भारत का ही नहीं सम्पूर्ण भारत के शक्तिशाली शासकों में से था, जिससे बाबर को टक्कर लेनी थी।

(xi) पुर्तगाल शक्ति – यद्यपि बाबर के आक्रमण के समय पुर्तगालियों की शक्ति अधिक नहीं थी फिर भी उन्होंने गोआ पर अधिकार जमा लिया था। अपनी गतिविधियों के कारण उन्होंने भारत के पश्चिमी समुद्र तट के राजनीतिक एवं व्यापारिक जीवन में अस्थिरता ला दी थी।

(xii) खानदेश – ताप्ती नदी की घाटी में बसा हुआ खानदेश छोटा-सा किन्तु एक समृद्धशाली राज्य था। मलिक राजा फारुकी, मलिक नसीर खाँ तथा आदिल खाँ फारुकी खानदेश के प्रसिद्ध शासक थे। आदिल खाँ फारुकी की मृत्यु के पश्चात् महमूद प्रथम यहाँ का शासक बना। यह बाबर का समकालीन था।

(xiii) बहमनी राज्य – बहमनी राज्य अपने वैभव को खोकर जीर्ण-शीर्ण हो चुका था। उसके स्थान पर अब बीजापुर, बरार, बीदर, अहमदनगर और गोलकुण्डा के पाँच स्वतन्त्र राज्य स्थापित हो चुके थे। इन राज्यों के शासकों में भी परस्पर संघर्ष होता रहता था। इनकी आपसी फूट से उत्साहित होकर विजयनगर का शक्तिशाली हिन्दू राजा कृष्णदेवराय उन्हें अपने आक्रमण का शिकार बनाता रहता था। इस प्रकार बाबर के आक्रमण के समय दक्षिण में मुस्लिम शक्ति अपने अन्तिम दिन गिन रही थी।

(xiv) विजयनगर – यह हिन्दू राज्य सुदूर दक्षिण में स्थित था। बाबर के आक्रमण के समय यहाँ का राजा कृष्णदेवराय था। के०एम० पणिक्कर के शब्दों में वह अशोक, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, हर्ष और भोज की परम्परा में एक महान् सम्राट था, जिसका राज्य अपने वैभव के शिखर पर था।” बाबर ने भी विजयनगर के बारे में लिखा है कि राज्य एवं सैनिक दृष्टि से काफिर राजकुमारों में विजयनगर का राजा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।”

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि बाबर के आक्रमण के समय केन्द्रीय शक्ति का पतन हो चुका था तथा समस्त देश में स्वतन्त्र शासक अपनी सत्ता बढ़ाने के लिए पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता में लीन थे। उनमें एकता का अभाव था। लेनपूल ने उस समय की दशा का वर्णन करते हुए लिखा है कि विजेता जाति (मुसलमान) अशांतकारियों की एक भीड़ में बदल गई थी। दिल्ली सल्तनत के बड़े-बड़े प्रान्तों के अपने शासक थे। छोटे-छोटे नगरों, जिलों, यहाँ तक कि दुर्गों आदि पर वहाँ के सरदारों ने अधिकार कर लिया था। इस प्रकार बाबर के लिए भारत पर आक्रमण हेतु उपयुक्त परिस्थितियाँ थीं।

प्रश्न 2.
‘हुमायूँ ने सम्पूर्ण जीवन लुढ़कते हुए ही व्यतीत किया व अन्त में लुढ़ककर ही उसकी जीवन लीला समाप्त हो गई। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उतर.
हुमायूँ का जन्म 6 मार्च, 1508 ई० को काबुल में हुआ था। उसकी माता का नाम माहम सुल्ताना बेगम और पिता का नाम बाबर था। सन् 1520 ई० में हुमायूँ को 12 वर्ष की अवस्था में बदख्शाँ का शासक बनाया गया। बदख्शाँ में हुमायूँ ने लगभग दस वर्ष तक शासन किया। हुमायू ने 18 वर्ष की अवस्था में युद्धों में भाग लेना शुरू कर दिया था। हुमायूँ जिस समय गद्दी पर बैठा उस समय वह चारों ओर से कठिनाइयों और समस्याओं से घिरा हुआ था। पानीपत और खानवाँ के युद्ध में बाबर की क्रूरता के कारण हिन्दू और मुसलमान उसके विरोधी बन गए थे।

अत: जब हुमायूं सिंहासन पर बैठा तब उसे हिन्दुओं और मुसलमानों का सहयोग न मिल सका। बाबर का अधिक समय युद्धों में व्यतीत हुआ था। इन युद्धों में उसे विशाल धनराशि प्राप्त हुई थी, किन्तु उसने यह धन राशि अपने सरदारों और सम्बन्धियों में बाँट दी थी। अत: हुमायूँ को खाली राजकोश विरासत में मिला था। सिंहासन पर बैठते ही हुमायूँ को अपने सम्बन्धियों के षड्यंत्रों तथा अफगान सरदारों के विद्रोहों का सामना करना पड़ा था। सन् 1530 ई० से 1540 ई० तक वह इन समस्याओं में उलझा रहा तथा 1540 ई० में परिस्थितिवश उसे पराजित होकर 15 वर्षों के लिए भारत छोड़कर जाना पड़ा।

हुमायूं में नेतृत्व का अभाव था। जहाँ तक सम्भव होता, वह कठिनाइयों को टालता रहता था। अपने दस वर्षों के शासनकाल उसने नेतृत्व शक्ति तथा अपने सैनिकों एवं अधिकारियों को नियन्त्रण में रखने की योग्यता का अभाव प्रदर्शित किया। उसे न तो सैन्य संगठन का ज्ञान था और न ही सैन्य संचालन का। उसे इस बात का भी ज्ञान नहीं था कि शत्रु पर कब और किस प्रकार आक्रमण करना चाहिए। शेर खाँ की बढ़ती शक्ति का ठीक अनुमान न लगा पाना और उसके विरुद्ध कुशल नेतृत्व के साथ संघर्ष न करना उसकी असफलता के कारण थे।

हुमायूँ का अर्थ होता है – भाग्यशाली, परन्तु वास्तव में हुमायूँ बहुत ही दुर्भाग्यशाली था। कदम-कदम पर उसके भाग्य ने उसे धोखा दिया। यदि भाग्य साथ देता तो उसे कभी पराजय का मुंह न देखना पड़ता। जिस समय हुमायू आगरा पहुँचा वहाँ उसे शेर खाँ के आने का समाचार मिला। कन्नौज नामक स्थान पर दोनों की सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में हुमायूँ ने एक हाथी पर चढ़कर अपनी जान बचाई। यह युद्ध अफगानों और मुगलों का अन्तिम युद्ध था, जिसमें हुमायूं के विकास का सितारा डूब गया। कन्नौज युद्ध में पराजय के बाद हुमायूँ ने भारत में शरण मिलने की आशा छोड़कर काबुल की ओर प्रस्थान किया; किन्तु वहाँ उसके भाई कामरान ने उसकी सहायता नहीं की। इस प्रकार हुमायूँ को विदेशों में भाग्य आजमाने के लिए भटकना पड़ा इसके बाद के 15 वर्ष हुमायूँ को एक निर्वासित और भगोड़े के रूप में दर-ब-दर की ठोकर खानी पड़ी।

हुमायँ ने फारस के शाह की सहायता से अपने खोए हुए प्रदेशों को प्राप्त करने की कोशिश की। कंधार, काबुल और बदख्शाँ पर विजय प्राप्त करता हुआ दिल्ली की ओर बढ़ा। उस समय दिल्ली पर अयोग्य शासक सिकन्दर सूर का शासन था। सर हिन्द नामक स्थान पर सिकन्दर सूर को हराकर हुमायूं को पुनः सन् 1555 ई० में दिल्ली का शासन प्राप्त हो गया। हुमायूँ अपनी इस विजय का आनन्द अधिक दिनों तक न ले सका। 24 जनवरी, 1556 ई० को अजान की आवाज सुनकर वह जल्दी से अपने पुस्तकालय के जीने की सिढ़ियों से उतरने लगा और पैर फिसल जाने से लुढ़कता हुआ नीचे गिरा, जिससे उसकी खोपड़ी की हड्डी टूट गई। तीन दिन बाद 27 जनवरी, 1556 को उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार हुमायूँ ने सम्पूर्ण जीवन लुढ़कते हुए ही व्यतीत किया और अन्त में लुढ़ककर ही उसकी जीवन लीला समाप्त हो गई।

प्रश्न 3.
हुमायूँ की प्रारम्भिक कठिनाइयों का वर्णन कीजिए।
उतर.
हुमायूँ की प्रारम्भिक कठिनाईयाँ – हुमायूं जिस समय गद्दी पर बैठा, वह चारों ओर से कठिनाइयों और समस्याओं से घिरा हुआ था। ऐसी परिस्थितियों में एक सैनिक प्रतिभा से युक्त, कूटनीतिक चातुर्य और राजनीतिक सूझबूझ से सम्पन्न शासक की आवश्यकता थी, परन्तु हुमायूं में इन सबका अभाव था। अत: वह स्वयं अपना सबसे बड़ा शत्रु सिद्ध हुआ। हुमायूँ के चरित्र में अनेक दुर्बलताओं का सम्मिश्रण था। अत: कुछ विद्वानों का मत है कि हुमायूँ के चरित्र में अनेक दोष थे, जिनके कारण वह असफल रहा। किन्तु यह भी सत्य है कि हुमायूं को अनेक कठिनाइयाँ विरासत में भी मिली थी। अत: हुमायूँ की प्रमुख कठिनाइयों और समस्याओं का वर्णन करना आवश्यक है ।

(i) हिन्दुओं व मुसलमानों का विरोध – बाबर ने पानीपत के युद्ध में मुसलमानों को अपना शत्रु बना लिया था, साथ ही खानवा के युद्ध में हिन्दुओं का क्रूरता से हत्याकाण्ड करके उसने हिन्दुओं को भी अपना विरोधी बना लिया था। अत: उसका पुत्र हुमायूँ जब सिंहासन पर बैठा तब उसे हिन्दुओं व मुसलमानों दोनों का सहयोग न मिल सका।।

(ii) आर्थिक संकट – बाबर का अधिकतम जीवन युद्धों में व्यतीत हुआ था। हालाँकि पानीपत के युद्ध में उसे एक विशाल धनराशि प्राप्त हुई थी, किन्तु उसने वह धनराशि विजय की खुशी में अपने सरदारों, सम्बन्धियों आदि के बीच वितरित कर दी थी। इस प्रकार धन के वितरण तथा युद्धों में धन के अपव्यय के कारण उसका राजकोष खाली हो गया था। अत: जिस समय हुमायूं सिंहासन पर बैठा, उस समय खाली राजकोष उसे विरासत में मिला था।

(iii) उत्तराधिकार के नियमों का अभाव – मुगल वंश में भी उत्तराधिकार के नियमों का अभाव था, अत: बाबर की मृत्यु के बाद उसके अन्य तीन लड़के- कामरान, अस्करी व हिन्दाल तथा बाबर के अन्य सम्बन्धी भी अपने को सम्राट घोषित करने का प्रयास कर रहे थे। इसके साथ-साथ स्वयं बाबर का यह उपदेश था कि मेरी अन्तिम इच्छा का सार यही है कि अपने भाइयों के विरुद्ध कभी कोई कार्य न करना, चाहे वे उसके योग्य ही क्यों न हों। इस उपदेश के कारण हुमायूँ ने अपने भाइयों के साथ उदारता का व्यवहार करके अपनी कठिनाइयों को और अधिक बढ़ा लिया।

(iv) सम्बन्धियों की समस्या – सम्बन्धियों की समस्या भी हुमायूं के सम्मुख एक प्रमुख कठिनाई थी। इन सम्बन्धियों में उसकी सौतेली बहन मासूमा बेगम का पति मुहम्मद जमान मिर्जा, बाबर का बहनोई मीर मुहम्मद मेहँदी ख्वाजा तथा हुमायूं के भाई कामरान, अस्करी और हिन्दाल मुख्य थे। अस्करी और हिन्दाल दुर्बल व अस्थिर-बुद्धि के थे और वे इसलिए खतरनाक थे कि महत्वाकांक्षी लोग इन्हें अपने हाथों की कठपुतली बना सकते थे।

(v) असंगठित साम्राज्य – बाबर ने हालाँकि अपने सैनिक-बल पर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी, किन्तु न तो उसने उसे संगठित किया तथा न ही शासन-व्यवस्था में कोई सुधार ही किया। अत: विरासत में हुमायूँ को एक असंगठित साम्राज्य मिला था, जो अराजकता से पूर्ण था और ऐसी स्थिति में हुमायूं के लिए कार्य करना कठिन था।

(vi) दोषपूर्ण सैनिक संगठन – बाबर की सेना मुगल, पठान, चगताई आदि अनेक भिन्न-भिन्न जातियों के सैनिकों का सम्मिश्रण थी, जिनमें एकता का अभाव था। अतएव सेना को संगठित रखना भी हुमायूं के लिए बड़ी समस्या थी।

(vii) अफगानों की समस्या – यद्यपि बाबर ने अफगानों को पानीपत के युद्ध में परास्त कर दिया था तथा मुगल साम्राज्य की स्थापना कर दी थी, परन्तु अफगान अभी भी शान्त नहीं बैठे थे। वे बदला लेने के लिए आतुर थे। जिस दौरान हुमायूँ ने सिंहासनारोहण किया, उस समय महमूद लोदी, शेर खाँ जैसे शक्तिशाली किन्तु अत्यन्त महत्वाकांक्षी अफगानों ने उसके | विरुद्ध विद्रोह कर दिया। उसे उनके विरुद्ध लड़ना पड़ा। अतः अफगानों की समस्या हुमायूं को विरासत में प्राप्त हुई थी।

प्रश्न 4. बाबर की विजय के कारणों की व्याख्या कीजिए।
उतर.
भारत में बाबर की विजय के प्रमुख कारणों का विश्लेषण निम्नवत् है
(i) इब्राहीम लोदी की सैनिक कमजोरियाँ – इब्राहीम लोदी अनुभवहीन और अयोग्य सेनापति था। उसे रणक्षेत्र में सेनाओं के कुशल संचालन और संगठन का विशेष ज्ञान नहीं था। इब्राहीम के अन्य सेनापति और सरदार भी विलासी, दम्भी और अनुभवहीन थे। बाबर ने स्वयं अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ में लिखा है- “वह (इब्राहीम) अनुभवहीन युवक अपनी गतिविधियों में लापरवाह था, बिना किसी नियम-कायदे के वह आगे बढ़ जाता था, बिना किसी ढंग के रुक जाता अथवा पीछे मुड़ जाता और बिना सोचे-समझे शत्रु से भिड़ जाता।” इब्राहीम लोदी की सैनिक दुर्बलता बाबर जैसे सैनिक
के लिए वरदान सिद्ध हुई।

(ii) इब्राहीम लोदी की अयोग्यता – इब्राहीम लोदी एक अयोग्य निर्दयी और जिद्दी सुल्तान था। उसमें राजनीतिज्ञता, कूटनीति और दूरदर्शिता नहीं थी। इन गुणों के अभाव के कारण वह दौलत खाँ, आलम खाँ, मुहम्मदशाह और राणा साँगा को बाबर के विरुद्ध अपने पक्ष में नहीं मिला सका।

(iii) बाबर द्वारा तोपों का प्रयोग – पानीपत के युद्ध में इब्राहीम के पास तोपखाना और कुशल अश्वारोही सेना नहीं थी, जबकि बाबर के पास सुदृढ़ तोपखाना था, जिसका संचालन उस्ताद अली और मुस्तफा जैसे अनुभवी सेनानायकों ने किया। इसका परिणाम यह हुआ कि आग उगलने वाली तोपों के सम्मुख साधारण शस्त्रों से युद्ध करने वाले सैनिक नहीं टिक पाए। पानीपत में बाबर की विजय में उसके कुशल अश्वारोही और भारी तोपखाना अत्यन्त सहायक हुए।

(iv) बाबर की रणकुशलता और सैन्य संचालन – बाल्यकाल से ही निरंतर संकटों, संघर्षों और युद्ध में भाग लेते रहने से बाबर एक वीर, साहसी, कुशल योद्धा और अनुभवी सैनिक बन गया था। इस प्रकार बाबर एक जन्मजात वीर एवं महान् सेनापति था, इसीलिए उसे पानीपत और खानवा के युद्धों में निर्णायक विजय प्राप्त करने में अधिक कठिनाई नहीं हुई।

(v) राणा साँगा की गलतियाँ – खानवा के युद्ध में राणा साँगा की सबसे बड़ी भूल यह थी कि उन्होंने बाबर पर एकदम आक्रमण नहीं किया, अपितु उसे संगठित और तैयार होने के लिए अवसर दिया। खानवा के समीप की पहली मुठभेड़ में बाबर का सेनापति परास्त हो चुका था और बयाना से उसकी सेना पहले ही हारकर भाग चुकी थी और वह राजपूतों की वीरता व रणकौशल से आतंकित हो गई थी। यदि उसी समय राणा साँगा बाबर पर अपनी पूरी शक्ति से आक्रमण कर देते तो विजय उन्हें ही प्राप्त होती और बाबर भारत से भाग गया होता। राणा साँगा के युद्ध में हारने का एक कारण युद्ध में
हाथियों का प्रयोग भी था।

(vi) बाबर की सैनिक तैयारी तथा तुलगमा रणनीति का प्रयोग – बाबर ने पानीपत और खानवा दोनों ही युद्धों में पूर्ण सैनिक तैयारी की थी। उसने अपनी सेना के सबसे आगे बिना बैल की बैलगाड़ियों की पंक्ति लगाई और इन गाड़ियों को परस्पर जोड़कर एक-दूसरे से लगभग 18 फुट लम्बी लोहे की जंजीरों से बाँध दिया। सेना के जिस भाग में बैलगाड़ियाँ नहीं थीं, उस ओर सुरक्षा के लिए खाइयाँ खुदवा दीं। इनके पीछे बन्दूकची और तोपखाने के गोलन्दाज खड़े किए गए। खानवा के युद्ध में निजामुद्दीन अली खलीफा ने तोपों का नेतृत्व किया। बन्दूकों की व्यवस्था मुस्तफा के अधीन थी और तोपों से गोलाबारी उस्ताद अली ने करवाई। इसके अतिरिक्त बाबर ने पानीपत और खानवा के युद्धों में तुलगमा रणनीति अपनाकर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 5.
बाबर के चरित्र का वर्णन कीजिए।
उतर
बाबर के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ थीं
(i) व्यक्ति के रूप में – बाबर का व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक था। वह अदम्य शारीरिक और आत्मिक शक्ति का स्वामी था। विभिन्न समकालीन एवं आधुनिक विद्वानों ने उसके विभिन्न गुणों की प्रशंसा की है। बाबर के चरित्र की व्याख्या करते हुए एक विद्वान ने लिखा है- “बाबर का चरित्र नारी-दोष से निष्कलंक था, इस सन्दर्भ में तो उसे एक सूफी कहा जा सकता है। वह एक सच्चा मुसलमान था क्योंकि अल्लाह में उसे बड़ा विश्वास था। वह उच्चकोटि का साहित्यकार भी था। उसकी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ विश्व के महान ग्रन्थों में गिनी जाती है। बाबर प्रकृति-प्रेमी भी था। मुगल साम्राज्य का संस्थापक सम्राट बाबर अपने मनोरम और सुन्दर व्यक्तित्व, कलात्मक स्वभाव तथा अद्भुत चरित्र के कारण इस्लाम के इतिहास में सदा अमर रहेगा।

(ii) विद्वान शासक के रूप में – बाबर एक जन्मजात सैनिक था और उसे विजेता के रूप में याद किया जाता है, किन्तु यदि बाबर ने भारत ने जीता होता तो भी विद्वान् के रूप में उसे सर्वदा याद किया जाता। उसे पर्शियन और अरबी भाषा का ज्ञान था और वह तुर्की भाषा का विद्वान था। तुर्की भाषा में लिखी हुई उसकी आत्मकथा’ साहित्य और इतिहास दोनों ही दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ मानी गई है, इसमें सभी कुछ इतना सत्य, स्पष्ट, बुद्धिमत्तापूर्ण और रोचक है कि ‘तुजुक-ए-बाबरी’ (बाबरनामा) संसार की श्रेष्ठतम आत्मकथाओं में स्थान रखती है। पद्य की रचनाओं में उसके द्वारा किया गया संकलन ‘दीवारन’ था, जो तुर्की पद्य में श्रेष्ठ स्थान रखता है। न्याय पर भी उसने एक पुस्तक लिखी थी, जिसे सभी ने श्रेष्ठ स्वीकार किया था।

(iii) सेनापति के रूप में – बाबर एक साहसी और कुशल सैनिक था। वह एक प्रशंसनीय घुड़सवार, अच्छा निशानची, कुशल तलवारबाज और जबर्दस्त शिकारी था। सेनापति की योग्यता को बाबर ने अपने संघर्षमय जीवन के अनुभव से प्राप्त किया। वास्तव में बाबर में तुर्को की शक्ति, मंगोलों की कट्टरता और ईरानियों का उद्वेग एवं साहस सम्मिलित था। उसमें नेतृत्व करने का स्वाभाविक गुण था। वह अपनी सेना से बड़ी सेनाओं का मुकाबला करने में डरता न था। अनुशासनहीनता उसे पसन्द न थी और उसकी अवहेलना होने पर वह अपने सैनिकों को कठोर दण्ड देता था। इस प्रकार बाबर एक योग्य
सैनिक और सफल सेनापति था।

(iv) राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ के रूप में – एक राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ के रूप में बाबर पर्याप्त सफल था। अपनी दुर्बल स्थिति को देखकर उसने अपने मामाओं से समझौते के प्रस्ताव किए थे, परन्तु एक राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ की दृष्टि से उसका प्रमुख कार्य भारत में शुरू हुआ। जिस प्रकार उसने भारतीय और अफगान अमीरों में सन्तुलन बनाकर रखा और जिस प्रकार उसने बिहार और बंगाल के शासकों से व्यवहार किया उससे कूटनीतिज्ञ प्रतिभा झलकती है। कम-से-कम छ: हिन्दू राजाओं ने भी स्वेच्छा से उसके आधिपत्य को स्वीकार किया था।

(v) शासन-प्रबन्धक के रूप में – बाबर एक अच्छा शासन-प्रबन्धक नहीं था। यह केवल इसी से स्पष्ट नहीं होता कि उसने भारत के शासन-प्रबन्ध में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं किए बल्कि काबुल के शासक के रूप में भी वह सफल नहीं हुआ था। बाबर ने अपने प्रदेशों में समान शासन-व्यवस्था, लगान-व्यवस्था, कर-व्यवस्था और समुचित न्याय व्यवस्था लागू करने का प्रयत्न नहीं किया। धन सम्बन्धी मामलों में भी बाबर लापरवाह था।

प्रश्न 6.
हुमायूँ की असफलताओं के कारणों की विवेचना कीजिए।
उतर
हुमायूँ को शेरशाह के विरुद्ध कई पराजय झेलनी पड़ी। जब तक शेरशाह जीवित रहा, हुमायूँ को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। विभिन्न भूलें जो हुमायूँ ने अपने शासन के आरम्भ में कीं, वे अन्त में हुमायूँ की पराजय और असफलता के लिए उत्तरदायी हुईं। जिन परिस्थितियों में हुमायूँ को सिंहासन त्यागना पड़ा, उनमें से अधिकांश उसकी मूर्खता और कमजोरियों का परिणाम था, जिसका वर्णन निम्न प्रकार किया जा सकता है

(i) असंगठित शासन-व्यवस्था – यह सही है कि हुमायूं को विरासत में अस्त-व्यस्त प्रशासन-व्यवस्था प्राप्त हुई थी, जिसका कारण बाबर को पर्याप्त समय नहीं मिल पाना था, लेकिन हुमायूँ को तो पर्याप्त समय मिला था। सिंहासन पर आसीन होने के बाद हुमायूँ ने शासन-व्यवस्था पर जरा भी ध्यान नहीं दिया। बाबर ने अपने पुत्र हुमायूँ के लिए ऐसी शासन-व्यवस्था छोड़ी थी, जो केवल युद्धकालीन स्थिति में ही स्थिर रह सकती थी, शांति के समय वह शिथिल और निराधार थी। हुमायूँ इतना योग्य नहीं था कि असंगठित शासन-व्यवस्था को सुसंगठित कर पाता।

(ii) बहादुरशाह के प्रति हुमायूँ की नीति – बहादुरशाह के प्रति अपनाई गई हुमायूं की नीति उसकी असफलता का प्रमुख कारण बनी। हुमायूं को बहादुरशाह पर उसी समय आक्रमण कर देना चाहिए था, जब वह चित्तौड़ में राजपूतों से युद्ध कर रहा था। ऐसा करने पर उसे विजय और राजपूतों की सहानुभूति मिलने की अधिक सम्भावना थी। माण्डु में कई सप्ताह तक विलासिता में डूबे रहने के कारण वह गुजरात और मालवा विजय को स्थिर न रख सका। अवसर मिलते ही बहादुरशाह ने मालवा और गुजरात पर पुन: अधिकार कर लिया।

(iii) हुमायूँ के चारित्रिक दोष – हुमायूं में संकल्प-शक्ति और चारित्रिक बल का अभाव था। डटकर प्रयत्न करना उसकी शक्ति के बाहर था। विजय प्राप्ति के थोड़े समय बाद ही वह अपने हरम में जाकर आनन्द से पड़ा रहता था और अपने समय को अफीमची के सपनों की दुनिया में नष्ट करता था। उसने गुजरात और मालवा विजयों के पश्चात् कई सप्ताह तक रंगरेलियाँ मनाईं। इसी प्रकार गौड़ पर अधिकार करने के पश्चात् वहाँ भोग-विलास में आठ माह से अधिक का समय नष्ट किया। शत्रु की शक्ति का अनुमान न लगा पाना और कठिन परिस्थितियों में तत्काल निर्णय न कर पाना उसकी अन्य कमजोरियाँ थीं। जैसा कि एलफिंस्टन ने लिखा है कि वह वीर अवश्य था, किन्तु स्थिति की गम्भीरता को समझने की योग्यता उसमें नहीं थी। डॉ० ए०एल० श्रीवास्तव ने लिखा है कि “ऐसे अवसर पर जबकि उसे सजग-सचेष्ट होकर सैन्य संचालन में संलग्न रहना चाहिए था तब अपने हरम में रंगरेलियाँ मनाना और आराम करने का हुमायूँ का यह स्वभाव उसकी असफलता का एक प्रमुख कारण बना।”

(iv) हुमायूँ की भूलें – जिन विषम परिस्थितियों में हुमायूँ ने राज्य सम्भाला, अपनी गलतियों से उसने उसे और कठिन बना दिया। हुमायूँ ने अपने भाइयों में साम्राज्य का बँटवारा कर पहली भूल की। काबुल, कंधार और पंजाब कामरान को दे देने से उसकी शक्ति का आधार ही खत्म हो गया तथा अस्करी और हिन्दाल को छोटी जागीरें देने से उनमें असन्तोष बना रहा। द्वितीय, हुमायूं ने कालिंजर का अभियान कर दूसरी भूल की, क्योंकि न तो राजा को पराजित किया जा सका और न उसे मित्र बनाकर अपनी तरफ मिलाया जा सका।

चुनार का दुर्ग शेर खाँ के ही आधिपत्य में रख देना उसकी तीसरी भूल थी, इससे शेरखाँ को अपनी शक्ति बढ़ाने का मौका मिल गया। गुजरात में बहादुरशाह के विरुद्ध चित्तौड़ की मदद न करना उसकी चौथी भूल थी, जिससे उसने राजपूतों की सहानुभूति और सहयोग प्राप्त करने का अवसर खो दिया। जिस प्रकार राजपूतों ने बाद में अकबर का साथ देकर मुगल साम्राज्य को दृढ़ता प्रदान की, उसी प्रकार हुमायूँ भी उनका साथ लेकर अपने साम्राज्य की रक्षा कर सकता था।

पाँचवाँ, गुजरात के शासक बहादुरशाह के विरुद्ध आक्रमण की योजना में अनेक भूलें रह गई थीं, जिनके कारण मालवा और गुजरात से ही उसे हाथ नहीं धोने पड़े, बल्कि इससे उसकी भावी असफलता, अवनति और प्रतिष्ठा के अन्त का संकेत भी प्राप्त हो गया। छठा, कन्नौज की लड़ाई में तो उसने भारी भूल की, जैसे कि सैनिक-शिविर के लिए नीचा स्थान चुना, डेढ़ महीने तक अकर्मण्य बने रहना, शिविर को दूसरे स्थान पर हटाते समय अच्छा प्रबन्ध न करना, तोपखाने का युद्ध में उपयोग न कर पाना आदि बातें उसकी असफलता, पराजय और अन्त में युद्ध क्षेत्र से उसके भागने के लिए भी उत्तरदायी बनी।।

(v) भाइयों के प्रति उदारता – यह सत्य है कि बाबर ने हुमायूँ को अपने भाइयों के प्रति उदार रहने का निर्देश दिया था। लेकिन जब उसे मालूम हो गया था कि उसके भाई उसके प्रति वफादार नहीं है, तब उसे अपने व्यवहार में परिवर्तन लाना चाहिए था। लेकिन इसके बावजूद वह अपने भाइयों के प्रति उदार बना रहा। इसका परिणाम यह हुआ कि हिसार-फिरोजा और पंजाब जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र उसके हाथ से निकल गए और इन क्षेत्रों पर कामरान का अधिकार स्वीकार कर लिया। फिर भी कामरान के विरोधी रुख में कोई परिवर्तन नहीं आया। अस्करी और हिन्दाल भी उसके प्रति वफादार नहीं रहे। उन्हें जब भी अवसर मिला उन्होंने हुमायूं के विरुद्ध विद्रोह कर स्वयं को सम्राट घोषित कर दिया। लेकिन हुमायूं बार-बार अपने भाइयों को माफ करता रहा। अपने भाइयों के प्रति अत्यधिक उदारता हुमायूँ की असफलता में सहायक सिद्ध हुई।।

(vi) शेर खाँ के प्रति नीति – हुमायूँ कभी भी शेर खाँ की शक्ति और योजना का सही आकलन नहीं कर पाया। वह उसको सदैव अक्षम एवं दुर्बल समझता रहा और शेर खाँ अपनी शक्ति को बढ़ाने में जुटा रहा। शेर खाँ की शक्ति का सही आकलन न कर पाने की हुमायूँ को भारी कीमत चुकानी पड़ी।

(vii) हुमायूँ की अपव्ययता – हुमायूँ को विरासत में रिक्त राजकोष मिला था, उस समय एक ऐसे अर्थ-विशेषज्ञ शासक की जरूरत थी, जो साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को ठीक करता। लेकिन हुमायूं ने इस पक्ष की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। बाद में हुमायूँ को कालिंजर से युद्ध-क्षति के रूप में बहुत बड़ी धनराशि और चम्पानेर में गुजरात के शासकों का विशाल कोष मिला था, लेकिन उसने इस धन को बड़ी-बड़ी दावतें देने, आनन्द उत्सव मनाने, अपने अनुयायियों को पुरस्कार बाँटने और इमारतें बनाने में खर्च कर दिया। चम्पानेर से प्राप्त कोष को तो उसने खुले हाथों से खर्च किया। इससे साम्राज्य की
आर्थिक स्थिति और खराब हो गई।

(viii) भारतीय जनता का असहयोग – हुमायूँ को भारतीय जनता एक आक्रमणकारी मानती थी। हुमायूँ ने न तो कभी जनकल्याण की ओर ध्यान दिया और न ही जनता को अपनी ओर आकर्षित किया। रचनात्मक कार्यों के स्थान पर उसने साम्राज्यवादी नीति अपनाई जो जनता के असहयोग के कारण सफल न हो सकी।

(ix) हुमायूँ का दुर्भाग्य – हुमायूँ का अर्थ होता है- भाग्यशाली, लेकिन वास्तव में हुमायूँ अत्यन्त ही दुर्भाग्यशाली था। कदम कदम पर उसके भाग्य ने उसे धोखा दिया। यदि भाग्य ने उसका साथ दिया होता तो वह कभी पराजित न होता। कन्नौज के युद्ध में उसकी पराजय के विषय में डॉ० कानूनगो लिखते हैं कि ‘‘बादशाह का दुर्भाग्य था, जो असामयिक वर्षा के रूप में प्रकट हुआ और जिससे गर्मी के दिनों में उस शिविर में पानी घुस आया, यदि यह दुर्घटना न होती तो हुमायूँ अपने दुर्गम्य शिविर से नहीं हटता।”

(x) उचित नेतृत्व की योग्यता का अभाव – हुमायूँ में कुशल नेतृत्व का अभाव था। जहाँ तक सम्भव होता, वह कठिनाइयों को टालता जाता था। अपने दस वर्षों के राज्यकाल में उसने नेतृत्व शक्ति और अपने सैनिकों एवं अधिकारियों को नियन्त्रण में रखने की योग्यता का नितान्त अभाव प्रदर्शित किया। उसे न तो सैन्य संगठन का ज्ञान था और न ही सैन्य संचालन का। चौसा और कन्नौज के युद्ध में वह अपनी सेना पर कुशल नियन्त्रण न रख सका। उसे इस बात का भी ज्ञान नहीं था कि शत्रु पर कब और किस प्रकार आक्रमण करना चाहिए। शेर खाँ की दिन-प्रतिदिन बढ़ती शक्ति का ठीक अनुमान न लगा पाना और उसके खिलाफ कुशल नेतृत्व के साथ संघर्ष न करना उसकी असफलता के कारण थे। इस प्रकार हुमायूँ की असफलता के विभिन्न कारण बताए जाते हैं। इनसे स्पष्ट होता है कि हुमायूँ की विभिन्न दुर्बलताएँ और भूलें तथा इनके विपरीत शेर खाँ की योग्यता और उसका व्यक्तित्व हुमायूँ की असफलता के मुख्य कारण थे।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi अनेक शब्दों के लिए एक शब्द

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Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name अनेक शब्दों के लिए एक शब्द
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi अनेक शब्दों के लिए एक शब्द

अनेक शब्दों के लिए एक शब्द

नवीनतम पाठ्यक्रम में अनेक शब्दों अर्थात् वाक्य अथवा वाक्य-खण्डों के लिए उपयुक्त एक शब्द लिखने को सम्मिलित किया गया है। इस प्रकार के दो वाक्य-खण्डों के उत्तर लिखने होंगे। इसके लिए कुल 2 अंक निर्धारित हैं।

अनेक साधन (संकेत, लिपि आदि) होते हुए भी ‘भाषा’ ही भावों/विचारों की अभिव्यक्ति का सर्वोत्तम साधन है। ‘भाषा’ में भावों/विचारों की वही अभिव्यक्ति अधिक प्रभावकारी होती है, जिसमें स्पष्टता के साथ-साथ कुशलता भी हो। किसी भाव/विचार की अभिव्यक्ति हम एक व्यंजक शब्द द्वारा भी कर सकते हैं। और एक बड़े वाक्य द्वारा भी। साहित्यिक भाषा में ही नहीं, दैनिक व्यवहार की भाषा में भी ऐसे व्यंजक शब्दों का महत्त्व स्वीकार किया जाता है, जिनका प्रयोग एक वाक्य या वाक्य-खण्ड के लिए सफलतापूर्वक किया जा सकता है। अनेक शब्दों अर्थात् वाक्य अथवा वाक्य-खण्ड के लिए प्रयोग में लाये जा सकने वाले ऐसे व्यंजक और सटीक शब्दों की विस्तृत सूची यहाँ दी जा रही है।

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UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 8 Psychological Tests

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Class Class 12
Subject Psychology
Chapter Chapter 8
Chapter Name Psychological Tests (मनोवैज्ञानिक परीक्षण)
Number of Questions Solved 65
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UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 8 Psychological Tests (मनोवैज्ञानिक परीक्षण)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological Test) से आप क्या समझते हैं ? एक अच्छे मनोवैज्ञानिक परीक्षण की आवश्यक विशेषताओं का भी उल्लेख कीजिए। (2018)
या
मनोवैज्ञानिक परीक्षण किसे कहते हैं ? अच्छे मनोवैज्ञानिक परीक्षण (टेस्ट) की विशेषताएँ बताइए।
या
एक अच्छे परीक्षण की कसौटियों का वर्णन कीजिए। (2011)
उत्तर.

मनोवैज्ञानिक परीक्षण का अर्थ
(Meaning of Psychological Test)

मनोवैज्ञानिक परीक्षण के अर्थ को दो प्रकार से समझा जा सकता है –
(1) सामान्य अर्थ तथा
(2) वास्तविक या विश्लेषणात्मक अर्थ।

(1) सामान्य अर्थ – अपने सामान्य अर्थ में मनोवैज्ञानिक परीक्षण से तात्पर्य उन विधियों तथा साधनों से है जिन्हें मनोवैज्ञानिकों द्वारा मानव-व्यवहार के अध्ययन हेतु खोजा गया है।

(2) वास्तविक या विश्लेषणात्मक अर्थ–प्रत्येक व्यक्ति में बुद्धि, मानसिक योग्यता, रुचि, अभिरुचि, अभिवृत्ति तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी विभिन्न मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ पायी जाती हैं। इन विशेषताओं में से किसी खास विशेषता पर परीक्षण करने की दृष्टि से कुछ उद्दीपकों को चुनकर संगठित किया जाता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण के अन्तर्गत ये उद्दीपक परीक्षण पद (Test Item) कहे जाते हैं। व्यक्ति (विषय) सीमित या असीमित समयावधि में पहले से प्रदान किये गये आदेशों/निर्देशों के अनुसार उद्दीपकों के प्रति अनुक्रियाएँ व्यक्त करता है। समस्याओं के उत्तर देने में लगे समय तथा सही उत्तरों की संख्या के आधार पर व्यक्ति (विषय) की मनोवैज्ञानिक विशेषता ज्ञात होती है। यही एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण का उद्देश्य होता है।

मनोवैज्ञानिक परीक्षण की परिभाषा
(Definition of Psychological Test)

मनोवैज्ञानिक परीक्षण का अर्थ स्पष्ट करने की दृष्टि से कुछ विद्वानों ने इसे परिभाषित करने का प्रयास किया हैं। प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) मरसेल के अनुसार, “एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण उद्दीपकों का एक प्रतिमान है, जिन्हें ऐसी अनुक्रियाओं को उत्पन्न करने के लिए चुना और संगठित किया जाता है जो कि परीक्षण देने वाले व्यक्ति की कुछ मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को व्यक्त करेंगे।”

(2) फ्रीमैन के शब्दों में, “मनोवैज्ञानिक परीक्षण एक मानकीकृत यन्त्र है जो इस प्रकार बनाया गया है कि सम्पूर्ण व्यक्तित्व के एक या एक से अधिक अंगों का वस्तुपरक रूप से मापन कर सके, इसके लिए वह शाब्दिक या अशाब्दिक या अन्य प्रकार के व्यवहार के नमूनों का साधन अपनाता है।”

(3) क्रॉनबेक के मतानुसार, “एक परीक्षण दो या अधिक व्यक्तियों के व्यवहार की तुलना करने हेतु व्यवस्थित पद्धति है।’
निष्कर्षतः, मनोवैज्ञानिक परीक्षण उस व्यवस्थित पद्धति को कहा जाएगा जिसके माध्यम से व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के किन्हीं बौद्धिक या अबौद्धिक गुणों का मापन किया जा सके और उनके द्वारा प्राप्त किये गये परिणामों पर विश्वास किया जा सके।

एक अच्छे मनोवैज्ञानिक परीक्षण की विशेषताएँ
(Characteristics of Good Psychological Test)

मनोवैज्ञानिक परीक्षण की सोद्देश्यता तथा उपयोगिता तभी सिद्ध हो सकती है जब उससे ‘विषय (अर्थात् परीक्षार्थी) को मनोवांछित लाभ प्राप्त हो। निस्सन्देह एक अच्छा परीक्षण ही लाभकारी परीक्षण होता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण में निम्नलिखित विशेषताओं का होना आवश्यक है|

(1) विश्वसनीयता (Reliability)-एक अच्छा परीक्षण अनिवार्य रूप से विश्वसनीय होता है। विश्वसनीयता से अभिप्राय परीक्षण के उस गुण से है जिसके कारण कोई परीक्षण जितनी बार भी किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह पर प्रयोग किया जाएगा, प्रत्येक बार वह एक ही परिणाम देगा। विश्वसनीयता के कारण परीक्षण प्रतिपन्न (Accurate) और समरूप (Consistent) परिणाम देता है; अतः हर बार के परीक्षण के परिणामों में कोई अन्तर नहीं आता। मान लीजिए, कोई परीक्षार्थी एक परीक्षण को बार-बार हल करके 45 अंक ही प्राप्त करता है, तो उस दशा में वह परीक्षण विश्वसनीय कहलाएगा।

(2) वैधता या प्रामाणिकता (Vaidity)- जिस गुण अथवा योग्यता के मापने हेतु परीक्षण को तैयार किया गया है, यदि वह परीक्षण उसका यथार्थपूर्वक मापन करता है तो उसे पूर्ण रूप से वैध (Valid) कहा जाएगा। बुद्धिमापन के लिए निर्मित एक वैध बुद्धि परीक्षण सिर्फ बुद्धि का ही मापन करेगा, रुचि अथवा अभियोग्यता का नहीं। वैध परीक्षण के लिए अपने उद्देश्य की सफलता आवश्यक है।

(3) वस्तुनिष्ठता (Objectivity)- वस्तुनिष्ठता का तात्पर्य परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके कारण, परीक्षण के परिणाम पर परीक्षक की इच्छा, रुचि तथा पूर्वाग्रह आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस गुण के अन्तर्गत किसी परीक्षण का मूल्यांकन भले ही कोई भी परीक्षक क्यों न करे, उसके परिणाम (प्राप्तांकों) में कोई अन्तर नहीं आएगा। वस्तुनिष्ठता के लिए आवश्यक है कि परीक्षण के हर एक पद का उत्तर इतना निश्चित तथा सुस्पष्ट हो कि उसका अन्य कोई उत्तर ही न हो और न इस बारे में कोई मतभेद ही उभर सके।

(4) प्रमापीकरण (Standardization)- प्रमापीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत परीक्षण के समस्त निर्देश, प्रश्नों का स्वरूप, परीक्षण की विधि, मूल्यांकन का तरीका आदि पहले से ही निश्चित तथा निर्धारित कर दिये जाते हैं। प्रमापीकरण के माध्यम से किसी परीक्षण की विश्वसनीयता तथा वैधता ज्ञात की जाती है। परीक्षण के प्रमापीकरण के अन्तर्गत विभिन्न व्यक्तियों के परिणामों सम्बन्धी मानक (Norms) तैयार करके विभिन्न समय तथा स्थानों पर उनकी तुलना करना सम्भव होता है।

(5) व्यावहारिकता (Practicability)- एक अच्छे मनोवैज्ञानिक परीक्षण के लिए आवश्यक है कि उसे सरलतापूर्वक प्रयोग किया जा सके तथा उसे व्यवहार में लाने में कोई कठिनाई न हो। परीक्षण के सफल प्रशासन हेतु सरल आदेश दिये जाएँ तथा जाँचने की विधि भी सुविधाजनक हो। प्राप्त परिणामों का भली प्रकार अर्थ समझाने की दृष्टि से सम्बन्धित विवरण पुस्तिका पूर्ण होनी चाहिए। इससे सभी बातों की समुचित तथा पूरी व्याख्या सुलभ हो सकेगी।

(6) व्यापकता (Comprehensiveness)-व्यापक परीक्षण उसे कहा जाएगा जिसे बनाते समय इस बात को पूरा ध्यान रखा गया हो कि ‘विषय’ की जिस योग्यता का मापन करना हो उसके सभी पक्षों से सम्बन्धित परीक्षण पद उसमें शामिल किये गये हों तथा उसका मापन पूर्ण रूप से किया जाए। पाठ्यक्रम के थोड़े-से भाग से प्रश्न पूछना यथेष्ट नहीं कहा जा सकता और न ही उससे परीक्षण में व्यापकता का गुण ‘ही समाविष्ट होगा।

(7) विभेदकारी शक्ति (Discriminating Power)— किसी परीक्षण में ‘विषय’ की उत्कृष्टता तथा निम्न योग्यता में सही अन्तर स्पष्ट एवं व्यक्त करने की उचित क्षमता होनी चाहिए। यही परीक्षण की विभेदकारी शक्ति कही जाएगी। इस शक्ति के कारण अच्छे शिक्षार्थी को अधिक अंक तथा कमजोर शिक्षार्थी को कम अंक प्राप्त होने चाहिए। दोनों शिक्षार्थियों के मध्य यह अन्तर जितने सूक्ष्म रूप से प्रकट होगा, उतनी ही अधिक परीक्षण की विभेदकारी शक्ति कही जाएगी।

(8) रोचक (Interesting)-अच्छे मनोवैज्ञानिक परीक्षण की एक विशेषता उसका रोचक होना भी है। परीक्षक तथा परीक्षार्थी दोनों के लिए रुचिदायक परीक्षण ही अपने उद्देश्य में सफल कहा जा सकता है। परीक्षण की रोचकता परीक्षक के कार्य को भली प्रकार सम्पादित करने तथा परीक्षार्थी (विषय) को अपना भरपूर सहयोग देने में सहायक होती है। रुचिपूर्वक हल किये गये उत्तरों का ठीक-ठीक मूल्यांकन परिणाम को अधिकाधिक शुद्धता प्रदान करता है।

(9) मितव्ययिता (Economy)-परीक्षण के संचालन में न्यूनतम समय, धन व शक्ति का व्यय उसकी विशिष्टता का द्योतक है। भारत सदृश देश के लिए परीक्षण की मितव्ययिता का विचार अपना विशेष महत्त्व रखता है।

(10) भविष्यकथन (Predictability)—किसी परीक्षण के निर्माण, संचालन तथा परिणामों की व्याख्या सम्बन्धी प्रक्रिया का अन्तिम बिन्दु है-‘विषय’ की उस योग्यता के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करना। एक अच्छा और सफल मनोवैज्ञानिक परीक्षण परिणाम के आधार पर विषय को बुद्धि, रुचि, अभियोग्यता, मानसिक योग्यता तथा व्यक्तित्व के विषय में सत्य भविष्य कथन घोषित करता है।

प्रश्न 2.
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की उपयोगिता को विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए।
उत्तर.

मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की उपयोगिता
(Utility of Psychological Tests)

मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का निर्माण मानव जाति के कल्याण के लिए किया गया है। इनकी उपयोगिता या लाभों का विवेचन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है|

(1) शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)-मनोवैज्ञानिक परीक्षण का मुख्य उपयोग शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं के समाधान हेतु निर्देशया प्रदान करने में किया जाता है। आठवीं कक्षा के पश्चात् बालक के सामने साहित्यिक, वैज्ञानिक, वाणिज्यिक, रचनात्मक तथा कलात्मक–विभिन्न वर्गों में से किसी एक पाठ्यवर्ग के चुनाव की समस्या आती है। बालक की बुद्धि, रुचियों, अभिरुचियों तथा मानसिक योग्यताओं का मापन करके इन परीक्षणों के आधार पर यह निर्णय लिया जा सकता है कि कौन-सा वर्ग बालक के भावी जीवन को सफल बनाने में सहायक होगा। शैक्षिक कार्यों में पिछड़ने वाले बालकों के पिछड़ेपन का कारण जानने में बुद्धि परीक्षण, रुचि परीक्षण तथा अभियोग्यता परीक्षण हमारी सहायता करते हैं। पिछड़ेपन को कारण ज्ञात होने पर उसका आसानी से सही समाधान करना सम्भव है। इसी प्रकार तीव्र बुद्धि के उत्कृष्ट बालकों की रुचि तथा विशिष्ट योग्यताओं का मूल्यांकन करके उन्हें उचित निर्देशन प्रदान किया जाता है।

(2) व्यावसायिक निर्देशन (Vocational Guidance)- मनोवैज्ञानिक परीक्षण व्यक्ति को उपयुक्त व्यवसाय चुनने में मदद देते हैं। आधुनिक युग में जीवनयापन सम्बन्धी व्यवसाय अथवा रोजगार चुनने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। व्यावसायिक निर्देशन के अन्तर्गत व्यवसाय विश्लेषण (Job Analysis) की प्रक्रिया द्वारा यह ज्ञात कर लिया जाता है कि अमुक व्यवसाय के लिए किस बौद्धिक स्तर, किन मानसिक योग्यताओं, रुचियों, अभिरुचियों तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं, की आवश्यकता होगी। इसके लिए बड़े-बड़े शहरों में मनोवैज्ञानिक परीक्षण केन्द्र स्थापित किये गये हैं जिनके विशेषज्ञों की सहायता से युवक-युवतियाँ व्यावसायिक निर्देशन प्राप्त कर अपने लिए उपयुक्त रोजगार चुन सकते हैं।

(3) व्यक्तिगत निर्देशन (Individual Guidance)- मनोवैज्ञानिक परीक्षण, व्यक्तिगत निर्देशन में भी लाभकारी सिद्ध होते हैं। वर्तमान समाज जटिलता की ओर बढ़ रहा है। अधिकतर लोग व्यक्तिगत समस्याओं के कारण तनावग्रस्त, चिन्तित, दु:खी और निराश रहते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने घर-परिवार, पास-पड़ोस तथा समाज से समायोजन नहीं रख पाते। इस कुसमायोजन से कभी-कभी व्यक्ति को बड़ी भारी हानि होती है। इस कार्य के लिए व्यक्तित्व परीक्षण तथा व्यक्तित्व परिसूचियों का प्रयोग किया जाता है। स्पष्टत: मनोवैज्ञानिक परीक्षण व्यक्तिगत निर्देशन में हमारी सहायता करते हैं।

(4) चयन एवं नियुक्तियाँ (Selection and Appointment)- आजकल निजी एवं सार्वजनिक हर प्रकार के व्यवसाय या उद्यम में विशेषज्ञ (Experts) भर्ती किये जाते हैं। ऐसे विशेषज्ञ कर्मचारी कर्मचारी को नियुक्त करके जहाँ सेवायोजक अधिक लाभ कमाते हैं, वहीं कर्मचारी भी अपनी अभिरुचि व क्षमता के अनुसार कार्य पाकर सन्तोष का अनुभव करता है। इसी कारण, आजकल ज्यादातर चयन एवं नियुक्तियाँ मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर होती हैं। प्रशिक्षण संस्थाओं के प्रत्याशियों, बैंक-अधिकारी, उद्योग-कर्मचारी, पुलिस, सेना तथा प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति । में इन परीक्षणों का उपयोग होता है।

(5) अनुसन्धान कार्य (Research)– ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में अनुसन्धान कार्य उन्नति पर है। मनोविज्ञान, निर्देशन तथा शिक्षा से जुड़े अनुसन्धान कार्यों में विभिन्न मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का प्रयेग औजार (Tool) के रूप में किया जाता है। मनोविज्ञान से सम्बन्धित शोध-कार्यों अर्थात् बुद्धि, मानसिक योग्यता, अभिरुचि, रुचि तथा व्यक्तित्व आदि से सम्बन्धित विषयों के अनुसन्धानों में तो इन परीक्षणों के बिना काम न नहीं चल सकता। सभी प्रकार के मापनों तथा शोध-कार्यों में मनोवैज्ञानिक परीक्षण उपयोगी सिद्ध होते हैं।

(6) निदान एवं उपचार (Diagnosis and Treatment)-‘निदान’ वह क्रिया है जिसमें किसी समस्या के मूल कारणों का पता लगाया जाता है तथा उपचार’ इन कारणों से निराकरण द्वारा समस्याओं के समाधान की क्रिया है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण मानसिक रोगों, शैक्षणिक, व्यक्तिगत, व्यावसायिक, व्यक्तित्व सम्बन्धी तथा अन्य समस्याओं के निदान व उपचार की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

(7) चिकित्सा (Treatment)- मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का चिकित्सा के क्षेत्र में भी अपूर्व योगदान है। मनोविश्लेषणवादियों के मतानुसार, मनुष्य की अनेक शारीरिक-मानसिक व्याधियों के मूल में उसकी कुण्ठाएँ तथा भावना ग्रन्थियाँ होती हैं। इन मानसिक एवं सांवेगिक गुत्थियों को सुलझाने में मनोवैज्ञानिक परीक्षण, उपकरण की भाँति सहायता करते हैं तथा जटिल-से-जटिल व्याधि का निदान प्रस्तुत कर उसकी चिकित्सा को सुलभ कर देते हैं।

(8) पूर्वानुमान अथवा भविष्यवाणी (Prediction)-पूर्वानुमान का कार्य निर्देशन में कार्य का ही एक महत्त्वपूर्ण अंग है। भिन्न-भिन्न पाठ्य-विषयों तथा व्यवसायों में व्यक्ति की सफलता का पूर्वानुमान या भविष्यवाणी करने में मनोवैज्ञानिक परीक्षण लाभकारी सिद्ध होते हैं। मानव व्यवहार की भविष्यवाणी के लिए भी इन परीक्षणों को बहुतायत से प्रयोग होता है। यह उल्लेखनीय है कि मनोवैज्ञानिक परीक्षणों में पूर्वानुमान की शक्ति उनकी वैधता के अनुपात में होती है। | इस प्रकार मनोवैज्ञानिक परीक्षण हमारे जीवन की विविध समस्याओं के समाधान में हमारी सहायता करते हैं तथा मानव-जीवन के लिए अत्यधिक उपयोगी व लाभप्रद सिद्ध होते हैं।

बुद्धि-परीक्षण
(Intelligence Test)

प्रश्न 3.
बुद्धि-परीक्षण (Intelligence Test) से आप क्या समझते हैं ? बुद्धि-परीक्षणों का वर्गीकरण तथा उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।
या
बुद्धि को परिभाषित करें। (2013)
या
बुद्धि की संकल्पना को स्पष्ट करते हुए बुद्धि-परीक्षण के अर्थ, प्रकार तथा उपयोगिता का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या
बुद्धि-परीक्षण के प्रकारों को बताइए। (2017)
उत्तर.

बुद्धि-परीक्षण का अर्थ
(Meaning of Intelligence Test)

बुद्धि के वास्तविक स्वरूप को निर्धारित करने का प्रयास बुद्धि सम्बन्धी परीक्षण के आधार पर किया जाता है। प्राचीनकाल में बुद्धि और ज्ञान में कोई अन्तर नहीं समझा जाता था, किन्तु बाद में लोग इस भिन्नता से परिचित हुए और परीक्षा के माध्यम से बुद्धि का मापन करने लगे। आधुनिक युग में विश्व के प्रायः सभी देशों में बुद्धि-परीक्षण को महत्त्व प्रदान किया जाता है। बुद्धि-परीक्षण को इस रूप में परिभाषित कर सकते हैं –
“बुद्धि-परीक्षण वे मनोवैज्ञानिक परीक्षण हैं जो मानव व्यक्तित्व के सर्वप्रमुख तत्त्व एवं उसकी प्रधान मानसिक योग्यता ‘बुद्धि’ का अध्ययन तथा मापन करते हैं।”

बुद्धि की संकल्पना एवं परिभाषा
(Concept of Intelligence and Definition)

मनुष्य एक बौद्धिक प्राणी है, उसके व्यवहार में पशुओं की अपेक्षा जो विशिष्टता दृष्टिगोचर होती है उसका प्रमुख कारण ‘बुद्धि’ (Intelligence) है। एफ० एस० फ्रीमैन नामक मनोवैज्ञानिक ने विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रस्तुत बुद्धि की परिभाषाओं को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया है –
प्रथम वर्ग – बर्ट, स्टर्न तथा क्रूज आदि विद्वानों के अनुसार, “बुद्धि वातावरण के प्रति अभियोजन की योग्यता है।”
द्वितीय वर्ग – मैक्डूगल तथा बकिंघम के अनुसार, “बुद्धि सीखने की योग्यता है।”
तृतीय वर्ग – टरमन तथा बिने के अनुसार, “बुद्धि अमूर्त चिन्तने की योग्यता है।”
चतुर्थ वर्ग – समन्वयवादी विचारधारा तीनों वर्गों का समन्वय करती है जिसके अनुसार, “बुद्धि मनुष्य की एक जन्मजात विशेषता या गुण है जो अनेक मानसिक योग्यताओं का समन्वित रूप है तथा जो मनुष्य के पुराने अनुभवों के आधार पर नवीन परिस्थितियों तथा वातावरण से समायोजन स्थापित करने में एवं नवीन समस्याओं को सुलझाने में सहायता करती है।”
उपर्युक्त सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए वैशलर ने बुद्धि की परिभाषा इस प्रकार की है, “बुद्धि व्यक्ति की सम्पूर्ण शक्तियों का योग या सार्वभौमिक योग्यता है; जिसके द्वारा वह उद्देश्यपूर्ण कार्य करता है, तर्कपूर्ण ढंग से सोचता है तथा प्रभावपूर्ण ढंग से वातावरण के साथ सम्पर्क स्थापित करता है।”

बुद्धि-परीक्षणों के प्रकार (वर्गीकरण)
(Kinds of Intelligence Tests)

बुद्धि के मापन हेतु जितने भी बुद्धि-परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है, उनमें निहित क्रियाओं के आधार पर बुद्धि-परीक्षणों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
(A) शाब्दिक परीक्षण (Verbal Tests) तथा
(B) अशाब्दिक परीक्षण (Non – verbal Tests)

(A) शाब्दिक परीक्षण (Verbal Tests)
ये बुद्धि-परीक्षण शब्द अथवा भाषा युक्त होते हैं। इस प्रकार के परीक्षणों में प्रश्नों के उत्तर भाषा के माध्यम से लिखित रूप में दिये जाते हैं। इन परीक्षणों को व्यक्तिगत तथा सामूहिक दो उपवर्गों में बाँटा जा सकता है। इस भाँति शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण दो प्रकार के होते हैं –

  1. शाब्दिक व्यक्ति बुद्धि-परीक्षण (Verbal Individual Intelligence Tests)- शाब्दिक व्यक्ति बुद्धि-परीक्षण ऐसे बुद्धि-परीक्षण हैं जिनमें भाषा का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग करके किसी एक व्यक्ति की बुद्धि-परीक्षा ली जाती है। उदाहरणार्थ – बिने-साइमन बुद्धि-परीक्षण।
  2. शाब्दिक समूह बुद्धि-परीक्षण (Verbal Group Intelligence Tests)-इस परीक्षण में किसी एक व्यक्ति की नहीं अपितु समूह की बुद्धि परीक्षा ली जाती है। इस प्रकार के परीक्षणों के अन्तर्गत भी भाषागत प्रश्न-उत्तर होते हैं। उदाहरणार्थ-आर्मी ऐल्फा और बीटा परीक्षण।

(B) अशाब्दिक व निष्पादन परीक्षण (Non-verbal Tests)
इन बुद्धि-परीक्षणों के पदों में भाषा का कम-से-कम प्रयोग किया जाता है तथा चित्रों, गुटकों या रेखाओं द्वारा काम कराया जाता है। व्यक्तिगत तथा सामूहिक आधार पर ये परीक्षण भी दो उपवर्गों में बाँटे जा सकते हैं |

  1. अशाब्दिक व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण (Non-verbal Individual Intelligence Tests)- अशाब्दिक व्यक्ति बुद्धि-परीक्षण में भाषा सम्बन्धी योग्यता की कम-से-कम आवश्यकता पड़ती है। ये परीक्षण प्रायः अशिक्षित (बेपढ़े-लिखे लोगों पर लागू किये जा सकते हैं जिनके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के क्रियात्मक परीक्षण आयोजित किये जाते हैं और भाँति-भाँति के यान्त्रिक कार्य कराये जाते हैं। उदाहरणार्थ-घड़ी के पुर्जे खोलना-बाँधना।
  2. अशाब्दिक समूह बुद्धि-परीक्षण (Non-verbal Group Intelligence Tests)अशाब्दिक समूह बुद्धि-परीक्षण, ऊपर वर्णित व्यक्ति परीक्षण से मिलते-जुलते हैं। समय, धन एवं शक्ति के अपव्यय को रोकने के लिए एक समूह को एक साथ परीक्षण किया जाता है।

बुद्धि-परीक्षणों की उपयोगिता
(Utility of Intelligence Tests)

बुद्धि-परीक्षण मानव-जीवन के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुए हैं। शाब्दिक एवं अशाब्दिक सभी प्रकार के बुद्धि-परीक्षणों के लाभों या उपयोगिता के मुख्य बिन्दुओं पर अग्रलिखित प्रकार से प्रकाश डाला जा सकता है –

  1. बुद्धि-परीक्षण एवं शैक्षिक निर्देशन – बालकों को शैक्षिके निर्देशन प्रदान करने में बुद्धि-परीक्षण अपनी विशिष्ट भूमिका निभाता है, बुद्धि-परीक्षण की सहायता से शिक्षार्थी की। बुद्धि-लब्धि का मापन किया जाता है, जिसके आधार पर सामान्य, मन्द बुद्धि, पिछड़े तथा प्रतिभाशाली बालकों के मध्य विभेदीकरण हो जाता है। परीक्षण के परिणामों के आधार पर निर्देशन प्रदान किया। जाता है। इसी से उनकी समस्याओं का निदान व उपचार करना सम्भव हो पाता है।
  2. बुद्धि-परीक्षण एवं व्यावसायिक निर्देशन – व्यक्ति के बौद्धिक स्तर तथा उसकी मानसिक योग्यताओं के अनुकूल व्यवसाय तलाश करने तथा नियुक्ति के सम्बन्ध में बुद्धि-परीक्षण सहायक सिद्ध होता है। व्यावसायिक निर्देशन से जुड़े दो पहलुओं–प्रथम, व्यक्ति विश्लेषण जिसमें व्यक्ति की बुद्धि, योग्यता, रुचि तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी जानकारी आती है तथा द्वितीय, व्यवसाय विश्लेषण जिसमें विशेष व्यवसाय के लिए विशेष गुणों की आवश्यकता का ज्ञान आवश्यक है-में बुद्धि-परीक्षण उपयोगी है।
  3. नियुक्ति – विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थान व्यक्ति को रोजगार प्रदान करने से पूर्व उसके बौद्धिक स्तर का मूल्यांकन करते हैं। आजकल विभिन्न व्यवसायों से सम्बन्धित नियुक्ति से पूर्व की प्रायः सभी प्रतियोगिताओं में बुद्धि-परीक्षण लागू होते हैं।
  4. वर्गीकरण – शिक्षक अपने शिक्षण को अधिक उपयोगी एवं प्रभावशाली बनाने के लिए। कक्षा के छात्रों को विभिन्न वर्गों; यथा-प्रखर बुद्धि, मन्द बुद्धि तथा औसत बुद्धि में विभाजित कर पढ़ाना चाहता है। अलग वर्ग के लिए अलग एवं विशिष्ट शिक्षण विधि आवश्यक होती है। इस वर्गीकरण का आधार बुद्धि-परीक्षण होते हैं।
  5. शोध – आजकल मनोवैज्ञानिक तथा शैक्षिक शोध-कार्यों में विषय-पात्रों के बौद्धिक स्तर तथा मानसिक योग्यता का मापन एक आम बात है। इसके लिए बुद्धि-परीक्षण काम में आते हैं।

व्यक्तिगत एवं सामूहिक परीक्षण
(Individual and Group Tests)

प्रश्न 4.
व्यक्तिगत एवं सामूहिक बुद्धि-परीक्षणों का सामान्य परिचय दीजिए तथा गुण-दोषों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर.

बुद्धि-परीक्षण के दो रूप
(Two Types of Intelligence)

यदि मनोवैज्ञानिक परीक्षण के प्रशासन की विधि के आधार पर देखा जाये तो बुद्धि-परीक्षणों को प्रशासन दो प्रकार से सम्भव है—प्रथम, व्यक्तिगत रूप से परीक्षा लेकर एवं द्वितीय, सामूहिक रूप से परीक्षा संचालित करके। इसी दृष्टि से बुद्धि-परीक्षणों के दो भाग किये जा सकते हैं–
(1) व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण तथा
(2) सामूहिक बुद्धि-परीक्षण। अब हम बारी-बारी से इन दोनों के परिचय एवं गुण-दोषों का वर्णन करेंगे|

(1) व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण (Individual Intelligence Test) — व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण उन परीक्षणों को कहा जाता है जिनमें एक बार में एक ही व्यक्ति अपनी बुद्धि की परीक्षा दे सकता है। ये परीक्षण लम्बे तथा गहन अध्ययन के लिए प्रयोग किये जाते हैं। व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण दो प्रकार के होते हैं

(अ) शाब्दिक परीक्षण – शाब्दिक व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण में भाषा का प्रयोग किया जाता है। तथा परीक्षार्थी को लिखकर कुछ प्रश्नों के उत्तर देने पड़ते हैं।

(आ) क्रियात्मक परीक्षण – इन बुद्धि परीक्षणों में परीक्षार्थी को कुछ स्थूल वस्तुएँ या उपकरण प्रदान किये जाते हैं तथा उससे कुछ सुनिश्चित एवं विशेष प्रकार की क्रियाएँ करने को कहा जाता है। उन्हीं क्रियाओं के आधार पर उनकी बुद्धि का मापन होता है।
व्यक्तिगत बुद्धि – परीक्षण के गुण-दोष व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण के गुण-दोष अग्रवर्णित हैं –
गुण – 

  1. व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण छोटे बालकों के लिए, सर्वाधिक उपयुक्त है। छोटे बालकों की चंचल प्रवृत्ति के कारण उनका ध्यान जल्दी भंग होने लगता है। परीक्षण की ओर ध्यान केन्द्रित करने के लिए व्यक्तिगत परीक्षा लाभकारी हैं।
  2. इन परीक्षणों में परीक्षार्थी परीक्षण के व्यक्तिगत सम्पर्क में रहता है। उसकी बुद्धि का मूल्यांकन करने में उसके व्यवहार से भी सहायता ली जा सकती है। और अधिक विश्वसनीय सूचनाएँ प्राप्त हो सकती है।
  3. परीक्षा प्रारम्भ होने से पूर्व परीक्षार्थी से भाव-सम्बन्ध (Rapport) स्थापित करके उसकी मनोदशा को परीक्षण के प्रति केन्द्रित किया जा सकता है। इससे वह उत्साहित होकर परीक्षा देता है।
  4. आदेश/निर्देश सम्बन्धी कठिनाई का तत्काल निराकरण किया जाना सम्भव है।
  5. इन परीक्षणों का निदानात्मक महत्त्व अधिक होता है; अत: इसके माध्यम से व्यक्तिगत निर्देशन ‘कार्य को सुगम बनाया जा सकता है।

दोष-

  1. व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षा केवल विशेषज्ञ द्वारा सम्भव होती है।
  2. इसके माध्यम से सामूहिक बुद्धि का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
  3. समय तथा धन दोनों की अधिक आवश्यकता पड़ती है।
  4. प्रयोग की जाने वाली सामग्री अपेक्षाकृत काफी महँगी पड़ती है; अतः ये परीक्षण बहुत खर्चीले हैं।
  5. विभिन्न परीक्षार्थियों की परीक्षा भिन्न-भिन्न समय पर लेने के कारण परिस्थितियों में बदलाव आ जाता है। सभी परीक्षार्थियों की परीक्षा के प्रति एक समान रुचि नहीं रहती जिसकी वजह से परीक्षण की वस्तुनिष्ठता कम हो जाती है।

(2) सामूहिक बुद्धि-परीक्षण (Group Intelligence Test)-व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण की परिसीमाओं के कारण, कुछ समय बाद एक ऐसी पद्धति की माँग की जाने लगी जिसमें कम समय में ही कुछ व्यक्तियों की बुद्धि-परीक्षा सम्पन्न हो सके। जब वर्ष 1947-48 में अमेरिका ने युद्ध में प्रवेश किया तो लाखों की संख्या में कुशल सैनिकों तथा सैन्य-अधिकारियों की आवश्यकता पड़ी। इस दिशा में टरमन, थॉर्नडाइक तथा पिण्टर आदि मनोवैज्ञानिकों ने प्रयास करके दो प्रकार के सामूहिक परीक्षण तैयार किये आर्मी ऐल्फा तथा आर्मी बीटा। इन परीक्षणों के माध्यम से बहुत कम समय में बड़ी संख्या में सैनिक, तथा सैन्य अधिकारियों का चयन सम्भव हो सका। इस प्रकार, सामूहिक बुद्धि परीक्षण वे परीक्षण हैं जिनकी सहायता से एक साथ एक समय में बड़े समूह की बुद्धि परीक्षा ली जा सके। ये भी दो प्रकार के होते हैं –

(अ) शाब्दिक परीक्षण – शाब्दिक सामूहिक परीक्षणों में भाषा का प्रयोग होता है; अत: ये शिक्षित व्यक्तियों पर ही लागू हो सकते हैं।

(ब) अशाब्दिक परीक्षण – अशाब्दिक सामूहिक परीक्षणों में आकृतियों तथा चित्रों का प्रयोग किया जाता है। ये अनपढ़, अर्द्ध-शिक्षित या विदेशी लोगों के लिए होते हैं।

सामूहिक बुद्धि-परीक्षण के गुण-दोष – सामूहिक बुद्धि-परीक्षण के गुण-दोष निम्नलिखित हैं
गुण – 

  1. सामूहिक बुद्धि परीक्षण में यह जरूरी नहीं होता कि परीक्षक विशेषज्ञ या विशेष रूप से प्रशिक्षित व्यक्ति हो।
  2. समय तथा धन दोनों की काफी बचत होती है।
  3. जाँच का कार्य तो आजकल मशीनों द्वारा होने लगा है।
  4. विभिन्न स्थानों पर एक साथ एक ही प्रकार की परीक्षा का संचालन सम्भव है। परिक्षार्थियों का तुलनात्मक मूल्यांकन भी सुविधापूर्वक किया जा सकता है।
  5. ये परीक्षण अधिक वस्तुनिष्ठ हैं, क्योंकि एक ही परीक्षक पूरे समूह को एक समान आदेश देता है जिसके परिणामतः भाव सम्बन्ध की स्थापना तथा परीक्षार्थियों की परीक्षा में रुचि सम्बन्धी भेद उत्पन्न नहीं होता।
  6. शैक्षणिक तथा व्यावसायिक निर्देशन में सामूहिक परीक्षणों से बड़ा लाभ पहुँचा है।

दोष-

  1. सामूहिक बुद्धि-परीक्षण में परीक्षक परीक्षार्थी की मनोदशा से परिचित नहीं हो पाता; अत: व्यक्तिगत सम्पर्क व भाव सम्बन्ध की स्थापना का अभाव रहता है।
  2. परीक्षार्थी आदेश भली प्रकार नहीं समझ पाते, जिसके परिणामस्वरूप अधिक गलतियाँ होती हैं।
  3. यह ज्ञात नहीं हो पाता। कि परीक्षार्थी, अभ्यास से/रटकर या सोच-समझकर, कैसे परीक्षण पदों को हल कर रहे हैं।
  4. इन परीक्षणों का निदान तथा उपचार में सापेक्षिक दृष्टि से कम महत्त्व होता है।
  5. ये परीक्षण अपेक्षाकृत कम विश्वसनीय, कम प्रामाणिक तथा बालक के लिए बहुत कम उपयोगी सिद्ध होते हैं।

शाब्दिक एवं अशाब्दिक परीक्षण
(Verbal and non-Verbal Tests)

प्रश्न 5.
शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण से आप क्या समझते हैं ? विभिन्न शाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों का वर्णन कीजिए।
या
मुख्य व्यक्तिगत एवं सामूहिक शाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों को सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या
किन्हीं दो बुद्धि-परीक्षणों के बारे में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर.
भाषा के आधार पर बुद्धि-परीक्षणों के तीन प्रकार हैं-एक, शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण (Verbal Intelligence Test); दो, अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण (Non-verbal Intelligence Test) तथा तीन, मिश्रित बुद्धि-परीक्षण (Mixed Intelligence Test)। यहाँ हमारी सम्बन्ध केवल ‘शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण’ से है। सर्वप्रथम हम शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण का अर्थ जानने का प्रयास करेंगे।

शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण का अर्थ
(Meaning of Verbal Intelligence Tests)

शाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों से अभिप्राय उन परीक्षणों से है जिनमें शब्दों अर्थात् भाषा एवं संख्याओं के माध्यम से परीक्षण-पदों (Test Items) का निर्माण किया जाता है। ये परीक्षण सिर्फ शिक्षित एवं उच्च प्रकार की बुद्धि वाले लोगों के लिए अधिक सफल होते हैं।
गेट्स एवं अन्य विद्वानों ने शाब्दिक परीक्षण को इस प्रकार से परिभाषित किया है, “जब विषय-पात्र (परीक्षार्थी) को शब्दों में अभ्यास पढ़ने की अथवा दी गयी समस्या का समाधान करने की आवश्यकता पड़नी है तो उस परीक्षण को शाब्दिक परीक्षण कहते हैं।’
बिने और रमन द्वारा निर्मित प्रारम्भिक काल के बुद्धि-परीक्षण, शाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों के उदाहरण हैं। उत्तर प्रदेश की मनोविज्ञानशाला इलाहाबाद ने ‘टरमन-मैरिल स्केल का हिन्दी अनुशीलन प्रकाशित किया है।
शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण, प्रशासन विधि के आधार पर दो प्रकार के हैं –
(1) व्यक्तिगत शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण तथा
(2) सामूहिक शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण।
इनका विवेचन निम्नवर्णित है –

(1) व्यक्तिगत शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण (Individual Verbal Intelligence Test)
व्यक्तिगत शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण, वे परीक्षण हैं जिनमें भाषा का प्रयोग किया जाता है। ये पढ़े-लिखे लोगों की बुद्धि मापने के काम आते हैं तथा इनकी सहायता से एक समय में सिर्फ एक ही व्यक्ति की बुद्धि का मापन किया जा सकता है।

प्रशासन की प्रक्रिया – व्यक्तिगत शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण के प्रशासन हेतु परीक्षा के लिए परीक्षार्थी या विषय-पात्र (अभीष्ट व्यक्ति) को परीक्षण-कक्ष में बुलाकर सुविधापूर्वक बैठाया जाता है। परीक्षक पहले से ही कक्ष में आवश्यक सामग्री को यथास्थान रख देता है जिसमें एक विराम घड़ी तथा फलांक-पत्र (Scoring-sheet) भी सम्मिलित होते हैं। कक्ष का वातावरण परीक्षा की दृष्टि से अनुकूलित कर लिया जाता है, अर्थात् कक्ष में कोई व्यवधान पैदा नहीं किया जाता; पूर्ण शान्ति रखी जाती है। सर्वप्रथम परीक्षक परीक्षार्थी से इधर-उधर की बातें करके भाव-सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। जिससे परीक्षार्थी के मन में परीक्षा देते समय कोई झिझक बाकी न रहे। स्थिति सामान्य हो जाने पर वास्तविक परीक्षण शुरू किया जाता है। परीक्षार्थी कागज पर उत्तर लिखता है। परीक्षक स्वयं भी परीक्षार्थी के उत्तर नोट कर सकता है। परीक्षण समाप्त होने पर उत्तरों की, शुद्धता की जाँच की जाती है। और फलांकों के आधार पर बौद्धिक स्तर का निर्धारण कर लिया जाता है।

व्यक्तिगत शाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों का विकास एवं इनके उदाहरण
(Development of Individual Verbal Intelligence Tests and Their Examples)

(A) बिने-साइमन स्केल (Binet-Simon Scale)-प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान समय तक, बुद्धि के सम्बन्ध में विभिन्न अवधारणाओं के साथ, बुद्धि-परीक्षण को प्रारम्भ करने का श्रेय अल्फ्रेड बिने को जाता है। 1904 ई० में फ्रांस में अधिक संख्या में बालक अनुत्तीर्ण हो गये। इससे शिक्षाधिकारियों के सम्मुख यह प्रबल समस्या उपस्थित हुई कि किस भाँति पेरिस के विद्यालयों में पढ़ने वाले कमजोर बुद्धि के बालकों को सामान्य बुद्धि के बालकों से अलग किया जाए और उन्हें विशेष विद्यालयों में शिक्षा के लिए भेजा जाए। यह कार्य बिने को सौंपा गया। बिने ने 1905 ई० में साइमन (Simon) के सहयोग से एक बुद्धि-परीक्षण का निर्माण किया। इसे ‘बिने-साइमन स्केल’ कहा गया। इस स्केल में कुल मिलाकर 30 परीक्षण-पद थे, जिन्हें कठिनाई के क्रम में व्यवस्थित किया गया था।

संशोधन – बिने एवं साइमन ने 1908 ई० में अपने 1905 ई० के बुद्धि-परीक्षण को संशोधित करके प्रकाशित कराया, जिसमें परीक्षणों की संख्या 30 की जगह 59 हो गयी। इस बार परीक्षण-पदों को आयु-स्तर के अनुसार व्यवस्थित किया गया था। यह आयु सीमा 3 वर्ष से लेकर 13 वर्ष तक की थी। इस दौरान बालक की बुद्धि को मानसिक आयु (Mental Age) के माध्यम से व्यक्त किया जाने लगा था। सन् 1911 ई० में बिने-साइमन स्केल का पुनः संशोधन तथा पुनर्गठन किया गया।

उपयोग – आगे चलकर बिने-साइमन स्केल शिक्षा और मनोविज्ञान की दुनिया में उपयोगी सिद्ध हुआ और उसका विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद भी किया गया। अमेरिका में हैरिंग, कॉलमैन तथा गोडार्ड आदि विद्वानों ने इस स्केल के संशोधित वे परिवद्धित रूप का प्रकाशन किया। इस स्केल को देश-काल एवं परिस्थितियों के अनुसार संशोधित करके ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में अधिकाधिक अपनाया गया।

(B) स्टैनफोर्ड-बिने-साइमन स्केल (Stanford-Binet-Simon Scale)-1916 ई० में टरमन तथा उसके सहयोगियों द्वारा ‘बिने-साइमन स्केल’ का स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण संशोधिके संस्करण प्रकाशित हुआ, जिसका पूरा नाम ‘बिने-साइमन स्केल का स्टैनफोर्ड रिवीजन’ था। इसमें 90 परीक्षण-पदों को निर्धारित एवं आयु स्तरों के अनुसार पुनः विभाजित किया गया था। 1000 बालकों तथा 400 प्रौढ़ों के ऊपर प्रमापीकृत किये गये इस परीक्षण में बालकों की आयु सीमा 3 से लेकर 14 वर्ष तक निर्धारित थी।

(C) संशोधित स्टैनफोर्ड-बिने स्केल (Revised Stanford-Binet Scale)- 1937 ई० में ट्रमन एवं मैरिल द्वारा ‘स्टैनफोर्ड-बिने-साइमन स्केल, 1916’ का पुनः संशोधन किया गया–

  1. यह परीक्षण 2 से लेकर 14 वर्ष तक की आयु सीमा वाले बालकों के लिए था।
  2. एक समान कठिनाई वाले दो रूपों-‘ल एवं म’ (L & M) में समस्त परीक्षण-पदों को प्रस्तुत किया गया जिनमें से प्रत्येक रूप में 129 पद नियुक्त किये गये।
  3. 2 से 5 वर्ष तक की आयु के लिए छ:-छ: परीक्षण-पद हैं जो छ:-छ: महीने के अन्तर पर बनाये गये हैं। इनमें से प्रत्येक आयु के लिए एक अतिरिक्त परीक्षण-पद की व्यवस्था है।
  4. 6 से 14 वर्ष तक प्रत्येक अवस्था के लिए 6 परीक्षण-पद, औसत प्रौढ़ के लिए 8 पद तथा प्रौढ़ के बाद की अवस्था के लिए 6 परीक्षण-पद शामिल हैं।
  5. छोटी आयु के बालकों के लिए अशाब्दिक एवं क्रियात्मक परीक्षण-पद भी सम्मिलित किये गये हैं।
    परीक्षण-पदों के कुछ नमूने (Some Specimen of Test Items)-संशोधित स्टैनफोर्ड-बिने स्केल के परीक्षण-पदों के कुछ नमूने निम्नलिखित रूप में हैंदो वर्ष के लिए।
  • तीन छिद्रों वाले आकृति-पटल के दो छिद्रों में उपयुक्त लकड़ी के टुकड़ों को फिट करना।
  • दिये गये स्थूल या मूर्त पदार्थों; जैसे-थाली, गिलास, छुरी, बटन, चम्मच, लोटा आदि को पहचानना।
  • कागज से बनी गुड़ियों के शारीरिक अंगों की पहचान करना।
  • लकड़ी के गुटकों की सहायता से मीनार तैयार करना।
  • चित्र में प्रदर्शित वस्तुओं को पहचानना।
  • कम-से-कम दो शब्दों को मिलाकर सफलतापूर्वक उच्चारण करना।

पाँच से आठ वर्ष के लिए

  1. दी हुई शब्द-सूची में से आठ शब्दों के अर्थ निकालना।
  2. किसी कहानी की स्मृति।
  3. दिये हुए कथनों में मूर्खतापूर्ण बात को ढूंढ़ निकालना।
  4. नाम ली गयी वस्तुओं में समानता और अन्तर ज्ञात करना।
  5. किसी परिस्थिति-विशेष में परीक्षार्थी क्या करेगा, यह बताना।

दस वर्ष के लिए

  1. दी हुई शब्द-सूची के 11 शब्दों के अर्थ बताना।
  2. प्रस्तुत चित्र में असंगत बातों की तरफ संकेत करना।
  3. किसी गद्यांश को निश्चित समय में पढ़कर उसके विचारों की स्मृति द्वारा पुनरावृत्ति।
  4. कुछ घटनाओं तथा क्रियाओं के कारणों की व्याख्या करना।
  5. निर्धारित समय में परीक्षार्थी द्वारा उच्चारित शब्दों की संख्या नोट करना।
  6. सुनकर छ: अंकों को दोहराना।

हमारे देश भारत के विभिन्न भागों में ‘मनोविज्ञानशाला उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद’ द्वारा स्टैनफोर्ड-बिने बुद्धि-परीक्षण के विभिन्न रूपान्तरों का प्रयोग आजकल बहुतायत से किया जा रहा है। मौलिक स्वरूप को बनाये रखने की दृष्टि से इस परीक्षण का भारतीकरण कर दिया गया है। भारत में सर्वप्रथम 1982 में एच०सी० राइस द्वारा ‘हिन्दुस्तानी बिने परफार्मेस प्वाइंट स्केल’ विकसित किया। गया था।

(2) सामूहिक शब्दिक बुद्धि-परीक्षण
सामूहिक शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण वे परीक्षण हैं जिनसे एक साथ मनुष्यों के एक समूह की बुद्धि का मापन होता है। इन परीक्षणों में शब्दों अर्थात् भाषा का प्रयोग होता है तथा ये सिर्फ शिक्षित लोगों के लिए होते हैं।

परीक्षण की प्रयोग विधि – सामूहिक परीक्षण, व्यक्तिगत परीक्षणों से सर्वथा भिन्न, एक पुस्तिका के रूप में होता है, जिसे पेन या पेन्सिल की मदद से हल किया जाता है। परीक्षार्थियों के एक बड़े समूह को शान्त कक्ष में बैठाकर परीक्षा सम्बन्धी एक-एक पुस्तिका दे दी जाती है। प्रश्नों का हल शुरू करने का संकेत पाकर परीक्षा प्रारम्भ होती है। निर्धारित समय के पूरा होने तक बीच में कुछ भी पूछना मना होता है। तथा समय समाप्त होने पर पुस्तिका ले ली जाती है। पुस्तिका के उत्तरों को जाँचने की कुंजी होती है। इसके अतिरिक्त मशीनों के माध्यम से भी उत्तरों की जाँच की जा सकती है। ये सभी परीक्षण प्रमाणीकृत होते हैं। परीक्षार्थियों के फलांकों को ज्ञात करके उन्हें मानकों के अनुसार प्रामाणिक फलांकों में बदल लिया जाता है या बुद्धि-लब्धि ज्ञात कर ली जाती है। इस भाँति सामूहिक शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण की मदद से प्रत्येक परीक्षार्थी का बौद्धिक स्तर तुलनात्मक रूप से ज्ञात किया जा सकता है।

सामूहिक शाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों में प्रयुक्त परीक्षण-पदों के नमूने
इन परीक्षणों में निम्नलिखित प्रकार के पद होते हैं

(1) तुलना (Comparison) – इस तरह के पदों में परीक्षार्थी को तुलना करनी पड़ती है; जैसे—राम श्याम से बड़ा है, किन्तु मोहन से छोटा है। कैलाश मोहन से बड़ा है तो बताइए कि –

  1. सबसे बड़ा कौन है? (कैलाश)
  2. सबसे छोटा कौन है? (श्याम)

(2) समानता व भिन्नता (Similarities and Differences) – इन पदों के अन्तर्गत समानता की तलाश की जाती है और उसी के साथ भिन्नता भी ज्ञात हो जाती है; जैसे—निम्नलिखित पाँच शब्दों में चार तो किसी-न-किसी दृष्टि से एक-दूसरे के समान हैं, किन्तु एक अन्य से भिन्न है। भिन्न शब्द के नीचे रेखा खींचिए- मन्दिर, मस्जिद, चिकित्सालय, चर्च, गुरुद्वारा।

(3) पर्याय (Synonyms) -पर्याय के अन्तर्गत किसी दिये गये शब्द के समानार्थी शब्द को बताना होता है; जैसे-कोष्ठक के बाहर एक शब्द लिखा है तथा कोष्ठक के भीतर पाँच शब्द दिये गये हैं। अन्दर के पाँचों शब्दों में जो शब्द बाहर के शब्द के समान अर्थ वाला हो उसके नीचे रेखा खींचिए- सुबह (किरण, प्रात:, चन्द्रमा, सूर्य, दिवस)

(4) विलोम (Opposites) – विलोम में दिये हुए शब्द का विलोम बताना होता है; जैसे-कोष्ठक के अन्दर के शब्दों में से उसे शब्द के नीचे रेखा खींचिए जो बाहर वाले शब्द का | विलोम हो- काला (आदमी, गोरा, केश, पानी)

(5) दिशा-बोध (Orientation) – वर्णन के आधार पर किसी वस्तु की किसी स्थान से दिशा बतानी पड़ती है; जैसे-सीता का घर मेरे घर से 2 किलोमीटर उत्तर में है तथा मीना का घर 2 किलोमीटर पूर्व में है और यदि सुशीला का घर सीता के घर से 2 किलोमीटर पूर्व में है तो वह सुशीला के घर से किस दिशा में होगा? (उत्तर दिशा में) ।

(6) अंकगणितीय तर्क (Arithmetical Reasoning) – उदाहरणार्थ, माना 2 रुपये में 8 टॉफी आती हैं और एक टॉफी का मूल्य 4 गुब्बारों के मूल्य के बराबर है तो 50 पैसे में कितने गुब्बारे मिलेंगे ? (8 गुब्बारे)

(7) संख्याओं का क्रम (Number Series) – इस वर्ग के परीक्षण- पदों की कुछ संख्याएँ एक निश्चित क्रम में लिखी होती हैं तथा उनके क्रम को समझकर उस क्रम के बीच में या अन्त में छूटे हुए स्थान में उपयुक्त संख्या लिखनी होती है; जैसे—निम्नलिखित संख्याओं के क्रम को देखिए और बताइए कि इन संख्याओं के आगे कोष्ठक में कौन-सी संख्या आएगी
1, 4, 6, 9, 11, 14, 16, (19)

(8) परमावश्यक (Essentials) – उदाहरणार्थ, कोष्ठक के भीतर वाले उस शब्द के नीचे रेखा खींचिए जो कोष्क के बाहर वाले शब्द के लिए परमावश्यक हो
सूर्य (पूरब, प्रकाश, ग्रह, उपग्रह, अन्धकार)

(9) सादृश्य (Analogy) – नीचे कुछ परीक्षण-पद दिये गये हैं। इनमें कोष्ठक के बाहर 3 तथा कोष्ठक के भीतर 6 शब्द हैं। कोष्ठक के बाहर पहले दो शब्दों में जो एक प्रकार का सम्बन्ध है वैसा तीसरे शब्द का कोष्ठक के भीतर के 6 शब्दों में से किसी एक शब्द से है, उसके नीचे रेखा खींचिए –
बिस्तर, चारपाई, सिर, (हाथ, पैर, घड़ी, साफा, कोट, पतलून) ।

प्रश्न 6.
अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण से आप क्या समझते हैं? व्यक्तिगत अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण तथा सामूहिक अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण का वर्णन कीजिए।
उत्तर.
शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण की यह विशेषता कि उन्हें परीक्षण की भाषा जानने वाले शिक्षित लोगों पर ही लागू किया जा सकता है, उसकी एक बड़ी परिसीमा भी बन गयी। अतः ऐसी बुद्धि परीक्षाओं का प्रबल होकर मनोवैज्ञानिकों द्वारा अशाब्दिक/क्रियात्मक या निष्पादन बुद्धि परीक्षाएँ निर्मित की गयीं।

अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण का अर्थ
(Meaning of Non-Verbal Intelligence Test)

अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण का ‘क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण अथवा ‘निष्पादन बुद्धि परीक्षण (Performance Tests of Intelligence) के रूप में भी अध्ययन किया जा सकता है। इन परीक्षणों में शब्दों या भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता अपितु इनके अन्तर्गत क्रियाओं पर जोर दिया जाता है तथा परीक्षार्थी से कुछ विशिष्ट प्रकार की क्रियाएँ करायी जाती हैं। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मन (Munn) के अनसार, “क्रिया शब्द का प्रयोग आमतौर से ऐसे परीक्षण में किया जाता है जिसमें समझ और भाषा के प्रयोग की कम-से-कम आवश्यकता होती है।” फ्रीमैन (Frank S. Freeman) के शब्दों में, क्रियात्मक परीक्षण बहरे, अशिक्षित और अंग्रेजी न बोलने वाले परीक्षार्थियों की परीक्षा के लिए बिने-स्केल्स’ के स्थापन या पूरक के रूप में प्रथम साधन है।”

प्रकार-अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण के प्रशासन के दृष्टिकोण से दो प्रकार हैं —
(1) व्यक्तिगत अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण तथा
(2) सामूहिक अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण।

(1) व्यक्तिगत अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण
(Individual Non-verbal Intelligence Test)

व्यक्तिगत विभिन्नता के आधार पर हर एक व्यक्ति की मानसिक योग्यता एवं बुद्धि का स्तर दूसरे व्यक्तियों से भिन्न होता है। किसी ऐसे व्यक्ति की बुद्धि का मापन करने के लिए जो परीक्षण की भाषा से परिचित नहीं है, व्यक्तिगत अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण की सहायता ली जाती है। इनमें परीक्षण-पद पूर्ण रूप से क्रिया पर आधारित होते हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए विभिन्न स्थानों पर मनोवैज्ञानिकों ने अलग-अलग क्रियात्मक परीक्षण बनाये हैं। इस प्रकार के कुछ मुख्य परीक्षणों का संक्षिप्त परिचय नहीं दिया जा रहा है –

(i) पोर्टियस का व्यूह-परीक्षण (Porteus Maze Test) – इसे पोर्टियस भूल-भुलैया परीक्षण भी कहते हैं। पोर्टियस द्वारा निर्मित इस परीक्षण में व्यूह, रेखाओं से घिरी हुई एक ऐसी आकृति होती है जिसमें प्रवेश-द्वार से बाहर निकलने के विभिन्न मार्ग बने होते हैं। कुछ मार्ग बीच में ही अवरुद्ध हो जाते हैं और कुछ मार्ग बाहर निकलते हैं। परीक्षार्थी को पेन्सिल द्वारा व्यूह के प्रवेश-द्वार से लेकर इसके निकलने के द्वार तक पेन्सिल बिना उठाये हुए मार्ग खींचना पड़ता है। पेन्सिल सबसे छोटे मार्ग से गुजरनी चाहिए और उसमें कोई भूल भी नहीं होनी चाहिए। रेखा द्वारा मार्ग खींचते समय किसी रेखा के कट जाने यो पेन्सिल किसी अवरुद्ध मार्ग में चले जाने से गलती मानी जाती है। गलती होने पर परीक्षार्थी से वह कागज लेकर उसे दूसरे कागज पर बना हुआ उसी प्रकार का दूसरा व्यूह दे दिया जाता है। यदि दूसरे व्यूह पर भी कोई गलती हो जाती है तो परीक्षार्थी का प्रयास असफल अंकित कर दिया जाता है।

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(ii) पिण्टनर-पैटर्सन क्रियात्मक परीक्षण मान (Pintner-Paterson Scale of Performance Test) – पिण्टनर तथा पैटर्सन द्वारा 1917 ई० में प्रस्तुत यह पहली क्रियात्मक परीक्षण माना गया है। इसे 4 वर्ष में 15 वर्ष तक के बालकों के लिए बनाया गया था जिसमें 15 क्रियात्मक परीक्षण सम्मिलित किये गये। इनमें से मुख्य हैं—सैग्युइन आकार पटल, चित्रपूर्ति, चित्र पहेलियाँ तथा अनुकरण परीक्षण आदि।

(iii) मैरिल-पामर गुटका निर्माण परीक्षण (Merrill-Palmer Block Building Test) — विशेष रूप से छोटे बच्चों के लिए उपयुक्त इस बुद्धि-परीक्षण में लकड़ी के कुछ गुटकों का प्रयोग किया जाता है। इन गुटकों को एक-दूसरे के ऊपर रखकर भाँति-भाँति के नमूने (ढाँचे) तैयार किये जा सकते हैं। परीक्षण के अन्तर्गत सर्वप्रथम परीक्षक बच्चों के सम्मुख एक मॉडर्न नमूना प्रस्तुत

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करता है। बच्चों से निर्धारित समय में उसी प्रकार का नमूना स्वयं बनाने के लिए निर्देश दिया जाता है। बच्चे क्रिया के माध्यम से प्रयास करते हैं और परीक्षक उनके प्रयासों का मूल्यांकन करता है। इस भॉति बच्चों के क्रियात्मक प्रयास उनके बुद्धि-परीक्षाण के माध्यम बनते हैं।

(iv) सेग्युइन आकार-पटल परीक्षण (Seguin Form-Board Test) – सेग्युइन द्वारा मन्द बुद्धि बालकों की परीक्षा हेतु निर्मित यह एक अत्यन्त प्राचीन एवं सरल परीक्षण है। इसमें लकड़ी का एक पटल (Board) होता है जिसमें से विभिन्न आकार के दस टुकड़े काटकर अलग कर दिये जाते हैं। परीक्षार्थी के सम्मुख छिद्रयुक्त पटल तथा ये दस टुकड़े रख दिये जाते हैं। अब परीक्षार्थी से इन टुकड़ों को बोर्ड में कटे हुए उपयुक्त स्थानों में फिट करने के लिए कहा जाता है। इस प्रकार के तीन प्रयास (Trial) लिये जाते हैं। जिस प्रयास में परीक्षार्थी को सबसे कम समय लगता है, उसी को आधार मानकर फलांक (Score) प्रदान कर बुद्धि का निर्धारण किया जाता है।

(v) भाटिया की निष्पादन परीक्षण माला (Bhatia’s Battery of Performance Tests) – इस परीक्षण माला को उत्तर प्रदेश मनोविज्ञानशाला के भूतपूर्व निदेशक डॉ० चन्द्र मोहन

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भाटिया द्वारा तैयार किया गया है, जिसमें पाँच क्रियात्मक उप-परीक्षण हैं। इन क्रियात्मक परीक्षणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है |

(A) कोह का ब्लॉक डिजाइन परीक्षण (Koh’s Block Design Test) – इस परीक्षण में 2.5 घन सेण्टीमीटर के 16 लकड़ी के चौकोर रंगीन टुकड़े प्रयुक्त होते हैं। इनमें से 14 टुकड़े चारों तरफ से लाल-पीले तथा नीले-सफेद होते हैं, जबकि शेष दो टुकड़े नीले-पीले तथा लाल-सफेद होते हैं। इसके अतिरिक्त कार्ड पर निर्मित 10 रंगीन डिजाइन होते हैं। परीक्षा के समय परीक्षार्थी के सम्मुख कठिनाई के क्रम में डिजाइन तथा उन्हें बनाने के लिए आवश्यक लकड़ी के टुकड़े रख दिये जाते हैं। परीक्षार्थी को निर्देश दिया जाता है कि वह डिजाइनों को देखकर टुकड़ों की सहायता से क्रमानुसार डिजाइनों को तैयार करे। हर एक डिजाइन के लिए समय तथा फलांक पूर्व निर्धारित होते हैं।

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(B) अलेक्जेण्डर का पास-एलाँग परीक्षण (Alexander’s Pass-Along Test)-यह प्रसिद्ध क्रियात्मक परीक्षण बालक की क्रियात्मक योग्यता का मापन करता है। परीक्षा के समय बालक के सम्मुख कुछ नीले एवं लाल रंग के लकड़ी के टुकड़े एक विशेष क्रम से लकड़ी के ढाँचे के अन्दर रख दिये जाते हैं। बालक एक निश्चित समयावधि के भीतर लकड़ी के टुकड़ों को उठाकर नहीं बल्कि उन्हें खिसकाकर दिये गये डिजाइनों से नमूने तैयार करता है। इस परीक्षण में कठिनाई के क्रम से आठ
डिजाइनों की श्रेणी होती है। बालक द्वारा इस क्रिया में लगे समय को अंकित कर लिया जाता है। उसी के अधिार पर फलांक प्रदान कर बुद्धि निर्धारित की जाती है।

(C) पैटर्न ड्राइंग परीक्षण (Pattern Drawing Test)-इस परीक्षण में कठिनाई के क्रम से आठ कार्ड्स होते हैं, जिन पर आठ प्रतिरूप या रेखाकृतियाँ बनी होती हैं। परीक्षार्थी कागज पर बिना पेन्सिल उठाये हुए और बिना लाइन दोहराये हुए ये आकृतियाँ बनाता है। गलती करने पर वह पुनः प्रयास करता है। इसमें भी समय के आधार फलांक प्रदान किये जाते हैं।

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(D) तात्कालिक स्मृति परीक्षण (Immediate Memory Test)- तात्कालिक स्मृति परीक्षण शिक्षितों तथा अशिक्षितों के लिए अलग-अलग निर्मित किये गये हैं। शिक्षितों को सीधे तथा उल्टे क्रमों में अंक सुनकर मौखिक रूप से दोहराने होते हैं। सीधे क्रम में 9 अंक तथा उल्टे क्रम में 6 अंक दोहराने होते हैं। अशिक्षित परीक्षार्थियों को अर्थहीन अक्षर समूहों को सीधे तथा उल्टे क्रम में दोहराने के लिए कहा जाता है।

(E) चित्रपूर्ति परीक्षण (Picture Completion Test)-इस परीक्षण में पाँच चित्र अलग-अलग टुकड़ों में कटे हुए होते हैं। पहले चित्र में 2, दूसरे में 4, तीसरे में 6, चौथे में 8 तथा पाँचवें में 12 टुकड़ों को मिलाकर चित्र तैयार करना पड़ता है। परीक्षार्थी निर्धारित समय सीमा के भीतर इन टुकड़ों को जोड़कर सम्पूर्ण चित्र तैयार करता है।

(2) सामूहिक अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण
(Group Non-verbal Intelligence Test)

सामूहिक अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण भाषा से अनभिज्ञ, कम पढ़े-लिखे बालक और अशिक्षित लोगों की बुद्धि परीक्षा के लिए प्रयोग किये जाते हैं। स्पष्टतः इनके परीक्षण-पदों में शब्दों तथा भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता, बल्कि विभिन्न प्रकार के रेखाचित्रों तथा आकृतियों का ही प्रयोग होता है। इन परीक्षणों में जिन पदों का प्रयोग होता है, वे इस प्रकार हैं

(i) समानता (Similarity) — किसी व्यक्ति के बुद्धि-परीक्षण के लिए किन्हीं बातों में समानता प्रदर्शित करने वाली आकृतियों को बायीं और एक क्रम में व्यवस्थित कर दिया जाता है और कोई एक स्थान रिक्त रखा जाता है। दायीं ओर कुछ असमान गुणों वाली आकृतियाँ होती हैं जिनमें से रिक्त स्थान के लिए समान गुण वाली आकृति’ का चयन करना होता है।

(ii) भिन्नता (Differences)- भिन्नता से सम्बन्धित परीक्षण-पदों में कुछ ऐसी आकृतियाँ दी जाती हैं जिनमें एक को छोड़कर अन्य सभी कुछ-न-कुछ बातों में एक-दूसरे से मिलती हैं। जो आकृति अन्य आकृतियों से भिन्नता रखती है, उसकी पहचान कर निशान लगाना होता है।

(iii) आकृति क्रम (Series)– आकृति क्रम से सम्बन्धित चित्रावली में बायीं तथा दायीं तरफ आकृतियाँ बनी होती हैं। बायीं ओर की आकृतियाँ एक विशेष क्रम में होती है, लेकिन उनके मध्य में एक स्थान रिक्त होता है। दायीं ओर की आकृतियों को देख-समझकर उनमें से दायीं ओर रिक्त खाने के लिए उपयुक्त आकृति का चुनाव किया जाता है।

(iv) सादृश्यता (Analogy)- इस परीक्षण के लिए बनायी गयी आकृतियों में आपसी सादृश्यता का सम्बन्ध पाया जाता है। किसी एक विशिष्ट आकृति के सादृश्य दूसरी आकृति को अलग से प्रदर्शित अनेक आकृतियों में से चुना जाता है।
सामूहिक अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण में उपर्युक्त प्रकार के अनेकानेक परीक्षण-पद होते हैं। कोई परीक्षार्थी निर्धारित समयाविधि के भीतर जितनी अधिक-से-अधिक समस्याओं का सही-सही समाधान प्रस्तुत कर पाता है, वह उतने ही अधिक फलांक प्राप्त कर लेता है। फलांक के आधार पर उसकी बुद्धि-लब्धि का निर्धारण कर लिया जाता है।

विशेष योग्यता का मापन
(Measurement of Mental Ability)

प्रश्न 7.
बुद्धि-लब्धि से आप क्या समझते हैं? इसे कैसे ज्ञात करेंगे?
उत्तर.

बुद्धि-लब्धि का अर्थ व मापन
(Meaning and Measurement of Intelligence Quotient)

बुद्धि-परीक्षणों के माध्यम से ‘बुद्धि-लब्धि (Intelligence Quotient या I.O.) का मापन किया जाता है। अपने संशोधित स्केल (1908 ई०) में बिने ने बुद्धि मापन के लिए मानसिक आयु की अवधारणा प्रस्तुत की थी, जिसके आधार पर टरमन ने 1916 ई० में बुद्धि-लब्धि का विचार प्रस्तुत किया। आजकल मनोवैज्ञानिक लोग बुद्धि मापन में बुद्धि-लब्धि का प्रयोग करते हैं। बुद्धि-लब्धि वास्तविक आयु और मानसिक आयु का पारस्परिक अनुपात है; अतः सर्वप्रथम वास्तविक आयु और मानसिक आयु के निर्धारण का तरीका समझना आवश्यक है।

वास्तविक आयु (Chronological Age या C.A.)- वास्तविक आयु से अभिप्राय व्यक्ति की यथार्थ आयु है, जिसका निर्धारण जन्मतिथि के आधार पर किया जाता है।

मानसिक आयु (Mental Age या M.A:)-मानसिक आयु निर्धारित करने के लिए पहले व्यक्ति की वास्तविक आयु पर ध्यान देना होगा। मान लीजिए, किसी बालक की वास्तविक आयु 9 वर्ष है और 9 वर्ष के लिए निर्धारित प्रश्नों को सही-सही हल कर देता है तो उसकी मानसिक आयु 9 वर्ष ही मानी जाएगी ओर इस दृष्टि से वह बालक सामान्य बुद्धि का बालक कहा जाएगा। किन्तु यदि वह 9 वर्ष और 10 वर्ष के लिए निर्धारित प्रश्नों को सही-सही हल कर देता है तो उसकी मानसिक आयु 16 वर्ष समझी जाएगी और इस दृष्टि से बालक तीव्र बुद्धि का कहा जाएगा। इस भाँति, यदि वही बालक 8 वर्ष के लिए निर्धारितं सभी प्रश्नों को तो हल कर दे किन्तु 9 वर्ष के लिए निर्धारित किसी प्रश्न को हल न कर पाये तो उसकी मानसिक आयु 8 वर्ष होगी और इस आधार पर उसे मन्द बुद्धि का बालक कहा जाएगा। व्यावहारिक रूप में आमतौर पर यह देखा जाता है कि कोई बालक किसी आयु-स्तर के सभी प्रश्नों का तो उत्तर सही-सही दे ही देता है, इसके अतिरिक्त कुछ दूसरे आयु-स्तर के कुछ प्रश्नों को भी वह हल कर लेता है। ऐसे मामलों में गणना हेतु बिने-साइमन स्केल में 2 वर्ष से 5 वर्ष तक के प्रत्येक परीक्षण-पद के लिए 1 महीना, 5 वर्ष का औसत प्रौढ़ तक के प्रत्येक परीक्षण-पद के लिए 2 महीने और प्रौढ़ 1, 2 और 3 के हर एक परीक्षण-पद हेतु क्रमशः 4, 5 और 6 महीने की मानसिक आयु प्रदान करने का निर्देश दिया गया है।

बुद्धि-लब्धि (Intelligence Quotient) निकालने का सूत्र – बालक की वास्तविक आयु और मानसिक आयु के आनुपातिक स्वरूप को ‘बुद्धि-लब्धि’ कहा जाता है। बुद्धि-लब्धि की यह अवधारणा सर्वप्रथम प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एम० एल० टरमन (M.L. Terman) द्वारा प्रस्तुत की गयी थी, जिसकी गणना के अन्तर्गत व्यक्ति की मानसिक आयु में वास्तविक आयु से भाग देकर उसे 100 से गुणा कर दिया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है –

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उदाहरणस्वरूप – यदि किसी बालक की वास्तविक आयु 5 वर्ष है और उसकी मानसिक आयु
7 वर्ष है तो उसकी बुद्धि-लब्धि इस प्रकार निकाली जायेगी –

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अतः बालक की बुद्धि-लब्धि 140 होगी।
निष्कर्षतः बुद्धि-लब्धि मानसिक योग्यता का मात्रात्मक व तुलनात्मक रूप प्रस्तुत करती है। 5 वर्ष की आयु से लेकर 14 वर्ष की आयु तक बुद्धि-लब्धि ज्यादातर स्थिर रहती है। वस्तुतः मानसिक आयु में वास्तविक आयु के साथ-साथ वृद्धि होती है, किन्तु 14 वर्ष के आस-पास यह प्रायः रुक जाती है। परिवेश में परिवर्तन लाकर बुद्धि-लब्धि में परिवर्तन करना सम्भव है। गैरेट का मत है कि अच्छा या बुरा परिवेश होने से बुद्धि-लब्धि में 20 पाइण्ट तक वृद्धि या कमी पायी जाती है। यह सामाजिक अथवा आर्थिक स्तर के साथ-साथ घट-बढ़ सकती है। यह भी उल्लेखनीय है कि बुद्धि-लब्धि कभी शून्य नहीं होती, क्योंकि कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से बुद्धिहीन नहीं होता।

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व्यक्तित्व परीक्षण (Personality Test)

प्रश्न 8.
व्यक्तित्व से आप क्या समझते हैं ? व्यक्तित्व के मापने की प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए।
या
व्यक्तित्व मापन की प्रक्षेपण प्रविधियों के बारे में बताइए। इनमें से किसी एक प्रविधि का वर्णन कीजिए। (2011)
या
व्यक्तित्व मापन की प्रमुख विधियों का उल्लेख कीजिए। (2017)
उत्तर.

व्यक्तित्व का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Personality)

व्यक्तिगत, शैक्षिक तथा व्यावसायिक निर्देशन के लिए व्यक्तित्व मापन का विशेष महत्त्व है। व्यक्तित्व व्यक्ति के सम्पूर्ण वातावरण से सम्बन्धित उन विभिन्न गुणों या लक्षणों का समूह है जिनके कारण विभिन्न व्यक्तियों में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। वस्तुतः ‘व्यक्तित्व (Personality) व्यक्ति की समस्त विशेषताओं/विलक्षणताओं या बाह्य व आन्तरिक पहलुओं का एक अनूठा एवं गत्यात्मक संगठन (Dynamic Organisation) है, जिसका विकास वातावरण के सम्पर्क में आने से होता है।
व्यक्तित्व के सामान्य अर्थ को जान लेने के उपरान्त विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रतिपादित परिभाषाओं का उल्लेख करना भी आवश्यक है

(1) बीसेन्ज तथा बीसेन्ज के अनुसार, “व्यक्तित्व मनुष्य की आदतों, दृष्टिकोणों और लक्षणों का संगठन है जो प्राणिशास्त्रीय, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारकों के संयुक्त कार्य करने से उत्पन्न होता है।”

(2) म्यूरहेड के मतानुसार, “व्यक्तित्व से तात्पर्य पूर्ण रूप से विचार किये हुए सम्पूर्ण व्यक्ति की रचनाओं, रुचियों के तरीकों, व्यवहार, क्षमताओं, योग्यताओं और दृष्टिकोणों का एक अति विशिष्ट संगठन है।”

(3) आलपोर्ट के अनुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मनोदैहिक गुणों का गत्यात्मक संगठन है जो परिवेश के प्रति होने वाले अपूर्व अभियोजनों का निर्णय करते हैं।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर व्यक्तित्व के बाह्य एवं आन्तरिक पक्षों को समझाया जा सकता है। बाह्य पक्ष से अभिप्राय व्यक्ति की शारीरिक विशेषताओं; जैसे—मुखाकृति, रंग-रूप, डील-डौल आदि से है। आन्तरिक पक्ष के अन्तर्गत पायी जाने वाली विशेषताओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –

  1. बौद्धिक विशेषताएँ; जैसे—बुद्धि, रुचि, मानसिक योग्यताएँ इत्यादि तथा ।
  2. अबौद्धिक विशेषताएँ; जैसे—संवेगात्मक, प्रेरणात्मक, सामाजिक, नैतिक इत्यादि।

व्यक्तित्व के मूल्यांकन (मापन) की विधियाँ
(Methods of Assessment of Personality)

व्यक्तित्व का मूल्यांकन एक कठिन समस्या है जिसके लिए किसी एक विधि को प्रमाणित नहीं माना जा सकता। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व के परीक्षण/मूल्यांकन या मापन की विभिन्न विधियों का निर्माण किया है। इन विधियों को निम्नलिखित चार वर्गों में बाँटा जा सकता है –
(1) वैयक्तिक विधियाँ,
(2) वस्तुनिष्ठ विधियाँ,
(3) मनोविश्लेषण विधियाँ तथा
(4) प्रक्षेपण विधियाँ। इन विधियों का सामान्य विवरण निम्नलिखित है –

(1) वैयक्तिक विधियाँ (Subjective Methods)
वैयक्तिक विधियों के अन्तर्गत व्यक्तित्व का परीक्षण स्वयं परीक्षक द्वारा किया जाता है। इसमें जाँच कार्य किसी व्यक्ति-विशेष या उसके परिचित से पूछताछ द्वारा सम्पन्न होता है। प्रमुख वैयक्तिक विधियाँ चार हैं –

  1. प्रश्नावली,
  2. व्यक्ति इतिहास या जीवन वृत्त,
  3. भेंट या साक्षात्कार तथा
  4. आत्म-चरित्र लेखन।

(i) प्रश्नावली विधि (Questionnaire Method)-प्रश्नावली विधि के अन्तर्गत प्रश्नों की एक तालिका बनाकर उसे व्यक्ति को दी जाती है जिसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाना है। प्रश्नावलियों के चार प्रकार हैं — बन्द प्रश्नावली जिसमें हाँ या ‘ना’ से सम्बन्धित प्रश्न होते हैं, खुली प्रश्नावली जिसमें व्यक्ति को पूरा उत्तर लिखना होता है, सचित्र प्रश्नावली जिसके अन्तर्गत चित्रों के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दिये जारी हैं तथा मिश्रित प्रश्नावली जिसमें सभी प्रकार के मिले-जुले प्रश्न होते हैं। प्रश्नावली विधि का प्रमुख दोष यह है कि व्यक्ति अक्सर प्रश्नों का गलत उत्तर देते हैं या सही उत्तर छिपा । लेते हैं। अनेक व्यक्तियों की एक साथ परीक्षा से इस विधि में धन व समय की बचत होती है।

(ii) व्यक्ति इतिहास विधि (Case History Method)—विशेष रूप से समस्यात्मक बालकों के व्यक्तित्व का अध्ययन करने के लिए प्रयुक्त इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति विशेष से सम्बन्धित अनेक सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं; यथा—उसका शारीरिक स्वास्थ्य, संवेगात्मक स्थिरता, सामाजिक जीवन आदि। माता-पिता, अभिभावक, सगे-सम्बन्धी, मित्र-पड़ोसी तथा चिकित्सकों से प्राप्त इन सभी सूचनाओं, बुद्धि-परीक्षण तथा रुचि-परीक्षण के आधार पर व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। |

(iii) भेंट या साक्षात्कार विधि (Interview Method) — व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने की यह विधि सरकारी नौकरियों में चुनाव के लिए सर्वाधिक प्रयोग की जाती है। भेटे या साक्षात्कार के दौरान परीक्षक परीक्षार्थी से प्रश्न पूछता है और उसके उत्तरों के आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकॅन करता है। बालक के व्यक्तित्व का अध्ययन करने के लिए उसके अभिभावक, माता-पिता, भाई-बहन, मित्रों आदि से भी भेंट या साक्षात्कार किया जा सकता है। इस विधि का सबसे बड़ा दोष आत्मनिष्ठता का है।

(iv) आत्म-चरित्र लेखन विधि (Autobiography Method)— इस विधि में परीक्षक जीवन के किसी पक्ष से सम्बन्धित एक शीर्षक पर परीक्षार्थी को अपने जीवन से जुड़ी ‘आत्मकथा’ लिखने को कहता है। इस विधि का दोष यह है कि प्रायः व्यक्ति स्मृति के आधार पर ही लिखता है जिसमें उसके मौलिक चिन्तन का ज्ञान नहीं हो पाता। कई कारणों से वह व्यक्तिगत जीवन की बातों को छिपा भी लेता है। इस भाँति यह विधि अधिक विश्वसनीय नहीं कही जा सकती है।

(2) वस्तुनिष्ठ विधियाँ (Objective Methods)
व्यक्तित्व परीक्षण की वस्तुनिष्ठ विधियों के अन्तर्गत व्यक्ति के बाह्य आचरण तथा व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इसमें अग्रलिखित चार विधियाँ सहायक होती हैं-

  1. निर्धारण मान विधि,
  2. शारीरिक परीक्षण,
  3. निरीक्षण विधि तथा,
  4. समाजमिति विधि।

(i) निर्धारण मान विधि (Rating Scale Method)- किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के मूल्यांकन हेतु प्रयुक्त इस विधि में अनेक सम्भावित उत्तरों वाले कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं तथा प्रत्येक उत्तर के अंक निर्धारित कर लिये जाते हैं। इस विधि का प्रयोग ऐसे निर्णायकों द्वारा किया जाता है जो उस व्यक्ति से भली-भाँति परिचित होते हैं जिसके व्यक्तित्व का मापन करना है। इस विधि से सम्बन्धित दो प्रकार के निर्धारण मानदण्ड प्रचलित हैं

(अ) सापेक्ष निर्धारण मानदण्ड (Relative Rating Scale)- इस विधि के अन्तर्गत अनेक व्यक्तियों को एक-दूसरे के सापेक्ष सम्बन्ध में श्रेष्ठता क्रम में रखकर तुलना की जाती है। माना 10 व्यक्तियों की ईमानदारी के गुण का मूल्यांकन करना है तो सबसे अधिक ईमानदार व्यक्ति को पहला तथा सबसे कम ईमानदार को दसवाँ स्थान प्रदान किया जाएगा तथा इनके मध्य में शेष लोगों को श्रेष्ठता क्रम में स्थान दिया जाएगा।

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(ब) निरपेक्ष निर्धारण मानदण्ड (Absolute Rating Scale)- इस विधि में किसी विशेष गुण के आधार पर व्यक्तियों की तुलना नहीं की जाती अपितु उन्हें विभिन्न विशेषताओं की निरपेक्ष कोटियों में रख लिया जाता है। कोटियों की संख्या 3, 5, 7, 11, 15 या उससे अधिक भी सम्भव है। ईमानदारी के गुण को निम्नलिखित मानदण्ड पर प्रदर्शित किया गया है|

(ii) शारीरिक परीक्षण विधि (Physiological Test Method)- इस विधि में व्यक्तित्व के निर्माण में सहभागिता रखने वाले शारीरिक लक्षणों के मापन हेतु निम्नलिखित यन्त्रों का प्रयोग किया जाती है –
नाड़ी की गति नापने के लिए स्फिग्मोग्राफ, हृदय की गति एवं कुछ हृदय-विकारों को ज्ञात करने के लिए-इलेक्ट्रो-कार्डियोग्राफ, फेफड़ों की गति के मापन हेतु-न्यूमोग्राफ, त्वचा में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों के अध्ययन हेतु–साइको गैल्वैनोमीटर तथा रक्तचाप के मापन हेतुप्लेन्धिस्मोग्राफ।

(iii) निरीक्षण विधि (Observation Method)- इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति के आचरण का निरीक्षण करके उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। यहाँ परीक्षक देखकर व सुनकर व्यक्तित्व के विभिन्न शारीरिक, मानसिक तथा व्यावहारिक गुणों को समझने का प्रयास करता है। जिसके लिए निरीक्षण-तालिका का प्रयोग किया जाता है। निरीक्षण के पश्चात् तुलना द्वारा निरीक्षित गुणों का मूल्यांकन किया जाता है।

(iv) समाजमिति विधि (Sociometric Method)– समाजमिति विधि के अन्तर्गत व्यक्ति की सामाजिकता का मूल्यांकन किया जाता है। बालकों को किसी सामाजिक अवसर पर अपने सभी साथियों के साथ किसी खास स्थान पर उपस्थित होने के लिए कहा जाता है, जहाँ वे अपनी सामर्थ्य और क्षमताओं के अनुसार कार्य करते हैं। अब यह देखा जाता है कि प्रत्येक बालक का उसके समूह में क्या स्थान है। संगृहीत तथ्यों के आधार पर एक सोशियोग्राम (Sociogram) तैयार किया जाता है और उसका विश्लेषण किया जाता है। इसी के आधार पर बालक के व्यक्तित्व की व्याख्या प्रस्तुत की जाती है।

(3) मनोविश्लेषण विधियाँ (Psycho-Analystic Methods)
मनोविश्लेषण विधियों के अन्तर्गत अचेतन मन के रहस्यों का उद्घाटन किया जाता है। वैसे तो मनोवैज्ञानिकों ने कई प्रकार की मनोविश्लेषण विधियों का निर्माण किया है। प्रमुख मनोविश्लेषण विधियाँ इस प्रकार हैं-

  1. स्वतन्त्र साहचर्य तथा
  2. स्वप्न विश्लेषण |

(i) स्वतन्त्र साहचर्य (Free Association) – इस विधि में 50 से लेकर 100 तक उद्दीपक शब्दों की एक सूची प्रयोग की जाती है। परीक्षक परीक्षार्थी को सामने बैठाकर सूची का एक-एक शब्द उसके सामने बोलता है। परीक्षार्थी शब्द सुनकर जो कुछ उसके मन में आता है, कह देता है जिन्हे लिख लिया जाता है और उन्हीं के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

(ii) स्वप्न विश्लेषण (Dream Analysis) – यह मनोचिकित्सा की एक महत्त्वपूर्ण विधि है। मनोविश्लेषणवादियों के अनुसार, स्वप्न मन में दमित भावनाओं को उजागर करता है। इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति अपने स्वप्नों को नोट करता जाता है और परीक्षक उसका विश्लेषण करके व्यक्ति के व्यक्तित्व की व्याख्या प्रस्तुत करता है।

(4) प्रक्षेपण विधियाँ (Projective Techniques)
प्रक्षेपण (Projection) अचेतन मन की वह सुरक्षा प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी अनुभूतियों, विचारों, आकांक्षाओं तथा संवेगों को दूसरों पर थोप देता है। प्रक्षेपण विधियों द्वारा व्यक्ति-विशेष के व्यक्तित्व सम्बन्धी उन पक्षों को ज्ञान हो जाता है जिनसे वह व्यक्ति स्वयं ही अनभिज्ञ होता है। प्रमुख प्रक्षेपण विधियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. कथा प्रसंग परीक्षण,
  2. बाल सम्प्रत्यक्ष परीक्षण,
  3. रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण तथा
  4. वाक्य-पूर्ति या कहानी-पूर्ति परीक्षण।

(i) कथा प्रसंग परीक्षण (Thematic Apperception Test or TAT Method)- कथा प्रसंग विधि, जिसे प्रसंगात्मक बोध परीक्षण या टी० ए० टी० टेस्ट भी कहते हैं, के निर्माण का । श्रेय मॉर्गन तथा मरे (Morgan and Murray) को जाता है। परीक्षण में 30 चित्रों का संग्रह है जिनमें से 10 चित्र पुरुषों के लिए, 10 स्त्रियों के लिए तथा 10 स्त्री व पुरुष दोनों के लिए होते हैं। परीक्षण के समय व्यक्ति के सम्मुख 20 चित्र प्रस्तुत किये जाते हैं। इनमें से एक चित्र खाली रहता है। अब व्यक्ति को एक-एक चित्र दिखलाया जाता है और उस चित्र से सम्बन्धित कहानी बनाने के लिए कहा जाता है जिसमें समय का कोई बन्धन नहीं रहता। चित्र दिखलाने के साथ ही यह आदेश दिया जाता है-“चित्र को देखकर बताइए कि पहले क्या घटना हो गयी है, इस समय क्या हो रहा है, चित्र में जो लोग हैं उनमें क्या विचार या भाव उठ रहे हैं। तथा कहानी का अन्त क्या होगा ?” व्यक्ति द्वारा कहानी बनाने पर उसका विश्लेषण किया जाता है, जिसके आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

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(ii) बाल सम्प्रत्यक्ष परीक्षण (Children Apperception Test or CAT Method)- इसे बालकों का बोध परीक्षण या सी० ए० टी० टेस्ट भी कहते हैं। इसमें किसी-न-किसी पशु से सम्बन्धित 10 चित्र होते हैं जिनके माध्यम से बालकों की विभिन्न समस्याओं; जैसे-पारस्परिक या भाई-बहन की प्रतियोगिता, संघर्ष आदि; के विषय में सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं। इन उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर बालक के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

(iii) रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण (Rorshachs Ink Blot Test)— इस परीक्षण का निर्माण स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध मनोविकृति चिकित्सक हरमन रोर्शा ने 1921 ई० में किया था। इसके अन्तर्गत विभिन्न कार्डों पर बने स्याही के दस धब्बे होते हैं जिन्हें इस प्रकार से बनाया जाता है कि बीच की रेखा के दोनों ओर एक जैसी आकृति दिखाई पड़े। पाँच कार्डों के धब्बे काले-भूरे, दो कार्डों में काले-भूरे के अलावा लाल रंग के भी होते हैं तथा शेष तीन कार्डों में अनेक रंग के धब्बे होते हैं। अब परीक्षार्थी को आदेश दिया जाता है कि “चित्र देखकर बताओ कि यह किसके समान प्रतीत होता है ? यह क्या हो सकता है?” आदेश देने के बाद एक-एक कार्ड परीक्षार्थी के सामने प्रस्तुत किये जाते हैं, जिन्हें देखकर वह धब्बों में निहित आकृतियों के विषय में बताता है। परीक्षक, परीक्षार्थी द्वारा कार्ड देखकर दिये गये उत्तरों का वर्णन, उनका समय, कार्ड घुमाने का तरीका एवं परीक्षार्थी के व्यवहार, उद्गार और भावों को नोट करता जाता है। अन्त में, परीक्षक द्वारा परीक्षार्थी के उत्तरों के विषय में उससे पूछताछ की जाती है। रोर्शा परीक्षण में इन चार बातों के आधार पर अंक दिये जाते हैं —

    1. स्याही के धब्बों का क्षेत्र,
    2. धब्बों की विशेषताएँ (रंग, रूप, आकार आदि),
    3. विषय-पेड़-पौधे, मनुष्य आदि तथा
    4. मौलिकता। अंकों के आधार पर परीक्षक परीक्षार्थी के व्यक्तित्व का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। इस परीक्षण को व्यक्तिगत निर्देशन तथा उपचारात्मक निदान के लिए सर्वाधिक उपयोगी माना जाता है।

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(iv) वाक्य-पूर्ति या कहानी-पूर्ति परीक्षण (Sentence or Story-completion Method)- इस विधि के अन्तर्गत परीक्षण-पदों के रूप में अधूरे वाक्ये तथा अधूरी कहानियों को परीक्षार्थी के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है जिसकी पूर्ति करके वह अपनी इच्छाओं, अभिवृत्तियों, विचारधारा तथा भय आदि को अप्रत्यक्ष रूप से अभिव्यक्त कर देता है।

व्यक्तित्व मूल्यांकन सम्बन्धी अन्य विधियाँ

इनके अतिरिक्त निम्नलिखित विधियाँ भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं

(1) परिस्थिति परीक्षण विधि (Situation Test Method)- इसे वस्तु-स्थिति परीक्षण भी कहते हैं जिसके अनुसार व्यक्ति के किसी गुण की माप करने के लिए उसे उससे सम्बन्धित किसी वास्तविक परिस्थिति में रखा जाता है तथा उसके व्यवहार के आधार पर गुण का मूल्यांकन किया जाता है। इस परीक्षण में परिस्थिति की स्वाभाविकता बनाये रखना आवश्यक है।

(2) व्यावहारिक परीक्षण विधि (Performance Test Method)—इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति को वास्तविक परिस्थिति में ले जाकर उसके व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। परीक्षार्थी को कुछ व्यावहारिक कार्य करने को दिये जाते हैं। इन कार्यों की परिलब्धियों तथा व्यवहार सम्बन्धी लक्षणों के आधार पर परीक्षार्थी के व्यक्तित्व से सम्बन्धित निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं।

(3) व्यक्तित्व परिसूचियाँ (Personality Inventores)— ये कथनों की लम्बी तालिकाएँ होती हैं जिनके कथन व्यक्तित्व एवं जीवन के विविध पक्षों से सम्बन्धित होते हैं। परीक्षार्थी के सामने परिसूची रख दी जाती है जिन पर वह ‘हाँ/नहीं’,‘अथवा’,‘(✓)/(✗)’ के माध्यम से अपना मत प्रकट करता है। इन उत्तरों का विश्लेषण करके व्यक्तित्व को समझने का प्रयास किया जाता है। ये परिसूचियाँ व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों रूपों में प्रयुक्त होती हैं। भारत में मनोविज्ञानशाला, उ० प्र०, इलाहाबाद द्वारा भी एक व्यक्तित्व परिसूची का निर्माण किया गया है, जिसे चार भागों में विभाजित किया गया है –

  1. तुम्हारा घर तथा परिवार,
  2. तुम्हारा स्कूल,
  3. तुम और तुम्हारे लोग तथा
  4. तुम्हारा स्वास्थ्य तथा अन्य समस्याएँ।

रुचि परीक्षण 
(Interest Tests)

प्रश्न 9.
रुचि से आप क्या समझते हैं? रुचि के मूल्यांकन में प्रयुक्त प्रमुख रुचि परीक्षणों पर प्रकाश डालिये।
या
रुचि परीक्षण से आप क्या समझते हैं ? (2011)
उत्तर.

रुचि का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Interest)

किसी कार्य की सफलता या असफलता के लिए उत्तरदायी मानवे व्यक्तित्व के कुछ गुणों; जैसे—बुद्धि, मानसिक योग्यता एवं अभिरुचि के अलावा व्यक्ति की उस कार्य के प्रति रुचि भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। रुचि का गुण व्यक्ति को उस कार्य में रस एवं आनन्द की स्थिति प्रदान करता है। रुचि का अभिप्राय एक ऐसी मानसिक व्यवस्था है जिसके कारण से कोई व्यक्ति किसी वस्तु अथवा विचार को पसन्द या नापसन्द करता है। ये मूल प्रवृत्तियों से सम्बन्धित एक प्रवृत्ति है जो व्यक्ति को वातावरण के कुछ विशेष तत्त्वों की ओर ध्यान देने की प्रेरणा प्रदान करती है। हम रुचिकर कार्यों को करने की इच्छा रखते हैं तथा उन्हें करने में हमें सुख व सन्तोष का अनुभव भी होता है।
रुचि का मानसिक योग्यता तथा अभिरुचि से गहरा सम्बन्ध है। प्रायः अनुभव किया जाता है कि जिन कार्यों को करने की हमारे पास मानसिक योग्यता और अभिरुचि होती है, उन कार्यों को हम विशेष लगाव तथा रुचि के साथ करते हैं। रुचि की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं |

  1. गिलफोर्ड के अनुसार, “रुचि वह प्रवृत्ति है जिसमें हम किसी व्यक्ति, वस्तु या क्रिया की ओर ध्यान देते हैं, उससे आकर्षित होते हैं या सन्तुष्टि प्राप्त करते हैं।”
  2. बिंघम के शब्दों में, “रुचि वह मानसिक क्रिया है जो किसी अनुभव में एकाग्रचित्त हो जाने । पर बनी रहती है।”
    देश, काल एवं पात्र के अनुसार रुचियों में परिवर्तन होता रहता है तथा आयु बढ़ने पर यह स्थिरता को प्राप्त हो जाती है।

मुख्य रुचि परीक्षण
(Main Interest Tests)

मनोविज्ञान में रुचि का शुद्ध व वैज्ञानिक मापन करने के लिए अनेक परीक्षणों का निर्माण किया गया है। रुचि परीक्षणों का पहला रूप ‘रुची’ (Check list) होता है जिसमें परीक्षार्थी के सम्मुख विभिन्न व्यवसायों की सूची प्रस्तुत की जाती है। परीक्षार्थी अपनी पसन्द के व्यवसायों पर निशान लगाता है, जो उसकी पसन्दगी का क्रम भी बताते हैं। प्रमुख रुचि परीक्षण निम्नलिखित हैं|

(1) स्ट्राँग का व्यावसायिक रुचि-पत्र (The Strong Vocational Interest Check List)-इस ‘कागज-पेन्सिल परीक्षण’ (Paper-Pencil Test) के दो रूप हैं—पहला, पुरुषों के लिए तथा दूसरा, स्त्रियों के लिए प्रत्येक में 400 परीक्षण-पद होते हैं तथा 263 परीक्षण-पद ऐसे हैं जो दोनों में शामिल है। इस रुचि परीक्षण के पहले भाग में कुछ व्यवसाय हैं, शेष अन्य दोनों भागों में क्रमानुसार विद्यालय के पाठ्य-विषय, मनोविज्ञानों की क्रियाएँ (खेलकूद, पत्र-पत्रिकाएँ आदि), अनेक प्रकार के व्यक्तियों की विशेषताएँ इत्यादि। अन्तिम भाग में परीक्षार्थी को कुछ युगल परीक्षण-पदों की परस्पर तुलना करनी पड़ती है तथा उसे स्वयं अपनी मानसिक योग्यताओं, व्यक्तित्व की विशेषताओं तथा परीक्षण में निहित क्रियाओं का श्रेणीकरण करना पड़ता है। परीक्षण-पद में उल्लिखित कथन के विषय में परीक्षार्थी अपनी पसन्द, नापसन्द तथा उदासीनता व्यक्त करता है। हालांकि, परीक्षण हल करते समय परीक्षार्थी पर समय का कोई बन्धन नहीं रहता, किन्तु प्राय: सामान्य तथा तीव्र बुद्धि वाले व्यक्ति इसे 30 मिनट में, असन्तुलित मस्तिष्क या बुद्धि की कमी वाले लोग 1 से 2 घण्टे में उसे हल कर लेते हैं। सूक्ष्म विचारों तथा कठिन शब्दावली की उपस्थिति ने इस परीक्षण का प्रयोग कॉलेज के विद्यार्थियों तथा शिक्षित प्रौढ़ों तक सीमित कर दिया है। यह परीक्षण व्यावसायिक निर्देशन के लिए सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है। अलग-अलग व्यवसायों के लिए कुंजियाँ अलग-अलग बनी होती हैं। पुरुषों के व्यवसाय के लिए 47 कुंजियाँ तथा स्त्रियों के व्यव्साय के लिए 27 कुंजियाँ इसमें मौजूद हैं। इन कुंजियों के आधार पर व्यक्ति की रुचियों को ज्ञात किया जाता है और यह पता लगाया जाता है कि अमुक व्यक्ति किस व्यवसाय के लिए सर्वाधिक उपयुक्त रहेगा। व्यावसायिक निर्देशन में स्ट्राँग द्वारा निर्मित यह रुचि परीक्षण अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है।

(2) क्यूडर का व्यावसायिक पसन्द लेख (Cudor Vocational Preference Record)हाईस्कूल स्तर तक के बालकों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त सिद्ध होने वाला यह रुचि परीक्षण क्यूडर द्वारा बनाया गया। इसमें कुल मिलाकर 168 पद-समूह सम्मिलित हैं। प्रत्येक पद-समूह में तीन-तीन पद होते हैं एवं तीनों में से प्रत्येक पद अलग-अलग व्यवसाय की ओर इशारा करता है। इन पदों में से परीक्षार्थी को अपनी सबसे अधिक पसन्द के तथा सबसे कम पसन्द के पदों को बताना पड़ता है। परीक्षण को बनाते समय दस प्रकार की व्यावसायिक रुचियों को आधार बनाया गया है, जो इस प्रकार हैं –

  1. बाह्य,
  2. यान्त्रिक,
  3. यान्त्रिक रुचि,
  4. गणनात्मक रुचि,
  5. संगीतात्मक रुचि,
  6. संगीतात्मक,
  7. गणनात्मक,
  8. लिपिक सम्बन्धी,
  9. लिपिक रुचि तथा
  10. समाज-सेवा सम्बन्धी रुचि।

हाईस्कूल तथा इण्टरमीडिएट स्तर के विद्यार्थियों की व्यावसायिक रुचियों का पता लगाने के लिए यह रुचि-मापी अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है। इस परीक्षण का उपयोग हमारे प्रदेश अर्थात् उत्तर प्रदेश में शैक्षिक व्यावसायिक निर्देशन एवं परामर्श में विशेष रूप से किया जाता है।
निष्कर्षतः, रुचि के अनुकूल कार्य एवं व्यवसाय पाने वाले लोग जीवन में सुख, सन्तोष, उत्साह तथा सफलता प्राप्त करते हैं। ऐसे लोग स्वयं को हर प्रकार की परिस्थितियों से आसानी से अनुकूलित कर लेते हैं, लेकिन रुचि के प्रतिकूल कार्य मिलने पर लोगों का उत्साह ठण्डा पड़ जाता है। वे सदैव दु:खी, असन्तुष्ट तथा असफल देखे जाते हैं। यही कारण है कि आज की दुनिया में, खासतौर पर व्यवसाय के क्षेत्र में रुचि-मापी परीक्षणों का विशेष महत्त्व बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 10.
परीक्षण की विश्वसनीयता और वैधता से आप क्या समझते हैं? मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की विश्वसनीयता और वैधता किस प्रकार ज्ञात की जाती है?
उत्तर.
आधुनिक युग में मनोवैज्ञानिकों द्वारा अनेकानेक प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का निर्माण किया गया है। किसी भी परीक्षण को तभी अच्छा और उपयोगी कहा जा सकता है जब उसमें किन्हीं अपेक्षित विशेषताओं का समावेश हो। व्यक्ति में अन्तर्निहित शक्तियों, क्षमताओं तथा विशेषताओं का मापन करने से पूर्व उनसे सम्बन्धित परीक्षण का उपयुक्तता की जाँच करना परमावश्यक है। इस दृष्टि से विश्वसनीयता (Reliability) तथा वैधता (Validity) इन दोनों गुणों का यथोचित ज्ञान होना अपरिहार्य है।

विश्वसनीयता
(Reliability)

मनोवैज्ञानिक परीक्षण में विश्वसनीयता का तात्पर्य किसी परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके अनुसार यदि एक ही परीक्षण किसी व्यक्ति को समान परिस्थितियों में जितनी बार हल करने के लिए दिया जाता है तो उतनी ही बार उस व्यक्ति को उतने ही अंक प्राप्त होते हैं जितने कि उसे पहली बार प्राप्त हुए थे। फलांकों की यह समानता जितनी अधिक होती है, उतनी ही उस परीक्षण में विश्वसनीयता भी अधिक होगी और ऐसे मनोवैज्ञानिक परीक्षण को विश्वसनीय परीक्षण (Reliable Test) कहा जाएगा।
विश्वसनीयता की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

(1) फ्रेन्क फ्रीमैन के अनुसार, “विश्वसनीयता शब्द से तात्पर्य उस सीमा से है जिस तक कोई परीक्षण आन्तरिक रूप से समान होता है और उस सीमा से जिस तक वह परीक्षण और पुनर्परीक्षण के समान फल प्रदान करता है।

(2) अनास्टेसी के शब्दों में, “विश्वसनीयता से तात्पर्य स्थायित्व अथवा स्थिरता से है।”

(3) चार्ल्स ई० स्किनर के मतानुसार, “यदि कोई परीक्षण समान रूप से मापन करे तो वह विश्वसनीय होता है।”
विश्वसनीयता के अर्थ को स्पष्ट करने की दृष्टि से एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। मान लीजिए एक व्यक्ति दिनेश’ की एक बुद्धि-परीक्षण द्वारा 120 बुद्धि-लब्धि (1.0.) प्राप्त होती है। कुछ समय के उपरान्त, समान परिस्थितियों में उसी बुद्धि-परीक्षण से उसकी बुद्धि-लब्धि 120 ही निकलती है। इसी भाँति, तीसरी, चौथी और पाँचवीं बार सामान्य परिस्थितियों में उसी परीक्षण से उसकी बुद्धि-लब्धि 120 ही प्राप्त होती है तो इस प्रकार की परीक्षा पूर्णत: विश्वसनीय परीक्षा कहलाएगी। यह परीक्षण, विश्वसनीय परीक्षण तथा परीक्षणों की विशेषता विश्वसनीयता कही जाएगी।

विश्वसनीय परीक्षण के आवश्यक गुण (Essential Merits of Reliable Test)
किसी भी मनोवैज्ञानिक परीक्षण के विश्वसनीय होने के लिए उसमें दो मुख्य गुणों का समावेश परमावश्यक है। ये निम्नलिखित हैं –

(1) वस्तुनिष्ठता (Objectivity)- एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण तभी विश्वसनीय कहा जाएगा जब उसमें ‘वस्तुनिष्ठता’ का गुण विद्यमान हो। वस्तुनिष्ठता के लिए यह आवश्यक है कि परीक्षण के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर निश्चित एवं स्पष्ट हो और उसके उत्तरों के बारे में परीक्षकों में आपसी मतभेद न हो। मूलयांकन के समय परीक्षक के व्यक्तिगत विचारों का भी प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। दूसरे शब्दों में, यदि कई परीक्षक परीक्षार्थी के उत्तरों का मूल्यांकन करें तो सभी एकसमान अंक प्रदान करें।

(2) व्यापकता (Comprehensiveness)- उत्तम परीक्षण की एक विशेषता व्यापकता भी है। व्यापकता का एक दूसरा नाम ‘समग्रता है। इस गुण के अनुसार परीक्षण को जिस तत्त्व की जाँच के लिए बनाया गया है वह उससे जुड़े सभी पहलुओं की जाँच करे। इसके लिए परीक्षण में तत्त्व से सम्बन्धित सभी प्रश्न सम्मिलित किये जाने चाहिए।

विश्वसनीयता ज्ञात करने की विधियाँ
(Methods of Determining the Reliability of the Test)
किसी मनोवैज्ञानिक परीक्षण की विश्वसनीयता ज्ञात करने के लिए चार प्रमुख विधियों का प्रयोग किया जाता है —
(1) परीक्षण-पुनर्परीक्षण विधि,
(2) समानान्तर-परीक्षण विधि,
(3) अर्द्ध-विच्छेदित परीक्षण विधि तथा
(4) अन्तरपदीय एकरूपता |

(1) परीक्षण-पुनर्परीक्षण विधि (Test-Retes Method)- इस विधि के माध्यम से परीक्षण की विश्वसनीयता ज्ञात करने के लिए परीक्षार्थियों के किसी समूह-विशेष को कोई परीक्षण हल करने हेतु दिया जाता है जिसके उत्तरों पर अंक प्रदान किये जाते हैं। इस प्रकार दोनों बार के प्राप्तांकों का सांख्यिकीय गणना द्वारा सहसम्बन्ध (Correlation) निकाला जाता है, जिसके फलस्वरूप ‘सह-सम्बन्ध गुणांक (Coefficient of Correlation) का मान प्राप्त होता है। यदि यह सह-सम्बन्ध गुणांक + 100 आता है तो परीक्षण की विश्वसनीयता ‘पूर्ण’ मानी जाती है (हालांकि यह एक काल्पनिक स्थिति है)। इसका मान + 0.5 और + 1.00 के बीच प्राप्त होने पर भी अच्छी विश्वसनीयता का संकेत मिलता है, किन्तु यदि यह इसमें कम होता है तो परीक्षण को विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता।

दोष – परीक्षण-पुनर्परीक्षण विधि विश्वसनीयता ज्ञात करने की अत्यन्त सरल विधि होते हुए भी कुछ दोषों से युक्त है। जैसे –

  1. परीक्षण को एक बार हल करने से परीक्षार्थी को उसका कुछ-न-कुछ अभ्यास अवश्य हो जाता है, जो उसी परीक्षण को दुबारा हल करने में सहायक सिद्ध होता है। इसके परिणामस्वरूप दूसरी बार उसे पहले की अपेक्षा जयादा अंक प्राप्त होते हैं और इससे दोनों के फलांकों में पर्याप्त अन्तर आ जाता है।
  2. स्मृति तथा अभ्यास का प्रभाव सभी परीक्षार्थियों पर एक-सा नहीं पड़ता जिससे दोनों बार के प्राप्तांक एक-दूसरे से काफी भिन्न हो जाते हैं।
  3. इस विधि के अन्तर्गत यदि दोनों परीक्षाओं के बीच समय का काफी अन्तर रहेगा तो उस बीच में परीक्षार्थियों का मानसिक विकास होने तथा उनके ज्ञान में वृद्धि होने से भी दोनों बार के परिणामों में अन्तर स्वाभाविक है। निष्कर्षत: इन दोषों के कारण परीक्षण की विश्वसनीयता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

(2) समानान्तर-परीक्षण विधि (Parallel-Form Method)— समानान्तर-परीक्षण विधि द्वारा विश्वसनीयता ज्ञात करने के लिए एक प्रकार के दो परीक्षणों का निर्माण किया जाता है। इन परीक्षणों के पद या प्रश्न अलग-अलग होने के बावजूद भी रूप (Form), विषय-वस्तु (Content) तथा कठिनाई (Difficulty) में एकसमान होते हैं। परीक्षण दिया जाता है। दोनों परीक्षणों के अंकों के बीच सह-सम्बन्ध गुणांक का मान ज्ञात करके व्याख्या प्रस्तुत की जाती है। विश्वसनीयता बताने के लिए उपर्युक्त सिद्धान्त का ही पालन किया जाता है।
दोष-पहली विधि के समस्त दोषों के साथ उसमें एक नया दोष आ जाता है कि एक ही प्रकार के दो परीक्षणों का निर्माण अत्यन्त दुष्कर कार्य है।

(3) अर्द्ध-विच्छेदित विधि (Split-Half Method)—इस विधि के अन्तर्गत केवल एक बार एक ही परीक्षण का उपयोग किया जाता है। परीक्षार्थियों को पहले एक परीक्षण हल करने के लिए दिया जाता है और उसके उत्तरों पर अंक प्रदान कर दिये जाते हैं। अब परीक्षण को अर्द्ध-विच्छेदित (अर्थात् दो बराबर भागों में बाँटना) कर दिया जाता है। इसके लिए ‘सम संख्या’ (Even Number) वाले प्रश्नों; यथा-दूसरा, चौथा, छठा, आठवाँ, दसवाँ ……. आदि; तथा ‘विषम संख्या’ (Odd Number) वाले प्रश्नों; यथा-तीसरा, पाँचवाँ, सातवाँ, नवाँ, ग्यारहवाँ ………. आदि; को अलग-अलग करके दो श्रेणियाँ तैयार कर ली जाती हैं। इस प्रकार निर्मित दोनों परीक्षणों के बारे में होती है, जिसे सांख्यिकीय विधियों द्वारा संशोधित कर लिया जाता है। परीक्षण निर्माण के समय यह सावधानी अवश्य रखी जाए कि सभी परीक्षण-पद कठिनाई के क्रम में ही व्यवस्थित हों।

(4) अन्तरपदीय एकरूपता (Inter-Item Consistency)— इस विधि में भी एक परीक्षण सिर्फ एक बार ही प्रयुक्त होता है। सर्वप्रथम परीक्षार्थियों को परीक्षण हल करने के लिए देकर उसके उत्तरों पर अंक प्रदान कर दिये जाते है। इसके बाद प्रत्येक परीक्षण-पद में प्राप्त अंक का परस्पर तथा पूरे परीक्षण में प्राप्त अंकों में सह-सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है, जिसकी गणना के लिए क्यूडर तथा रिचर्डसन (Cuder and Richardson) के विश्वसनीयता निकालने के सूत्रों का प्रयोग किया जाता है।
वस्तुतः किसी मनोवैज्ञानिक परीक्षण की भिन्न-भिन्न विधियों द्वारा ज्ञात की गयी विश्वसनीयता का अर्थ भी भिन्न-भिन्न ही होता है; अतः इन विधियों को आवश्यकतानुसार ही प्रयोग में लाना चाहिए तथा परीक्षण की विश्वसनीयता का उल्लेख करते समय उस विधि का नाम भी बता देना चाहिए जिसके माध्यम से उसे ज्ञात किया गया है।

वैधता (Validity)

वैधता या प्रामाणिकता किसी भी मनोवैज्ञानिक परीक्षण की एक आवश्यक शर्त एवं विशेषता है। यदि कोई परीक्षण उस योग्यता अथवा विशेषताओं का यथार्थ मापन करे जिन्हें मापने के लिए उसे बनाया गया है, तो उस परीक्षण को वैध कहा जाएगा। उदाहरणार्थ-मान लीजिए, कोई परीक्षण बुद्धि मापन के लिए निर्मित किया गया है और प्रयोग करने पर वह बालक की बुद्धि का ही मापन करता है तो उसे वैध या ‘प्रामाणिक परीक्षण’ कहा जाएगा और उसका वह गुण वैधता या प्रामाणिकता कहलाएगा।
कुछ विद्वज्जनों ने वैधता को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है –

(1) बोरिंग एवं अन्य विद्वानों के मतानुसार, “जिस वस्तु के मापन का प्रयत्न कोई परीक्षण करता है, उसकी जितनी सफलता से वह मापन कर लेता है यही उसकी वैधता कहलाती है।”

(2) गेट्स एवं अन्य विद्वानों के अनुसार, “कोई भी परीक्षण प्रामाणिक होता है जब वह जिस गुण की हम परीक्षा करना चाहते हैं उसे वास्तविक रूप से और सही-सही मापता है।”

(3) गुलिकसन के अनुसार, “किसी कसौटी के साथ परीक्षण का सहसम्बन्ध उसकी वैधता कहलाता है।”

वैधता या प्रामाणिकता के प्रकार (Kinds of Validity)
किसी मनोवैज्ञानिक परीक्षण में कई प्रकार की वैधता पायी जाती है। वैधता के मुख्य प्रकारों को उल्लेख नीचे किये जा रहा है –

(1) रूप-वैधता (Face Validity)- रूप-वैधता के अनुसार परीक्षण देखने मात्र से वैध प्रतीत होता है। यहाँ परीक्षण के वास्तविक उद्देश्य से कोई सम्बन्ध नहीं होता अर्थात् यह नहीं देखा जाता कि उसे क्या मापने के लिए बनाया गया है, मात्र यह देखा जाता है कि परीक्षण बाह्य दृष्टि से क्या माप रहा है। अतः कोई भी परीक्षण बाहरी रूप से जो मापता हुआ प्रतीत होता है, वह उसकी रूप-वैधता कहलाती है।

(2) विषय-वस्तु वैधता (Content Validity)— इसे पारिभाषिक वैधता या तार्किक वैधता के नाम से भी जाना जाता है। इस वैधता को सम्बन्ध व्यापकता के गुण से है। इसके अनुसार, परीक्षण जिस विशेषता या योग्यता का मापन कर रहा है, उसकी विषय-वस्तु के समस्त पक्षों से सम्बन्धित प्रश्न यदि उसमें मौजूद होंगे तो उसमें विषय-वस्तु वैधता कही जाएगी।

(3) तात्त्विक या रचना सम्बन्धी वैधता (Construct of Factorial Validity)-तत्त्व या रचना से सम्बन्धित इस वैधता को ज्ञात करने के लिए तत्त्व विश्लेषण’ (Factor Analysis) नामक सांख्यिकी विधि प्रयोग की जाती है। यहाँ परीक्षण के उस तत्त्व से सहसम्बन्ध ज्ञात किया जाता है जो कि अनेकानेक परीक्षणों में उभयनिष्ठ होता है।

(4) सामयिक या पद की वैधता (Concurrent of Status Validity)-सामायिक या पद। की वैधता में दिये गये परीक्षण का सह-सम्बन्ध किसी मानदण्ड (Criterion) से ज्ञात करना होता है। परीक्षण की सफलता का वर्तमान समय में ही मूल्यांकन किया जाता है। यदि इस प्रक्रिया में सफलता मिल जाती है तो कहा जा सकता है कि परीक्षण में सामयिक वैधता है।

(5) पुर्वानुमान सम्बन्धी वैधता (Predictive validity)-इस प्रकार की वैधता के माध्यम से परीक्षण की भावी सफलता के बारे में पूर्वानुमान या भविष्यवाणी करने की सामर्थ्य ज्ञात की जाती है। इसके लिए प्रदत्त परीक्षण या किसी मानदण्ड से सहसम्बन्ध ज्ञात किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त किसी प्रकार की शिक्षा या व्यवसाय की सफलता को भी मानदण्ड स्वीकार किया जा सकता है।
वैधता के सम्बन्ध में एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि कोई भी परीक्षण किसी खास प्रयोजन या किसी विशेष आयु-वर्ग के बच्चों हेतु ही वैध होता है, अन्यों के लिए नहीं। अत: किसी परीक्षण की वैधता ज्ञात करते समय यह भी ज्ञात कर लेना चाहिए कि वह किस प्रयोजन या वर्ग-विशेष के लोगों के लिए प्रयोग में लाया गया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए। (2003)
उत्तर.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण अपने आप में एक विस्तृत अवधारणा है, जिसका सम्बन्ध व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के विभिन्न गुणों एवं विशेषताओं के व्यवस्थित मापन से होता है। वर्तमान समय में मनोवैज्ञानिकों ने अनेक प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षण तैयार कर लिए हैं। इस स्थिति में मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का वर्गीकरण मुख्य रूप से चार आधारों पर किया गया है। ये आधार हैं क्रमशः परीक्षण का उद्देश्य, परीक्षण का माध्यम, परीक्षण की विधि तथा समय। इन चारों आधारों पर किये गये वर्गीकरण का विवरण निम्नलिखित है –

(1) उद्देश्य के आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्रकार-उद्देश्य के आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के मुख्य रूप से पाँच प्रकार निर्धारित किये गये हैं। ये प्रकार हैं-

  1. बुद्धि-परीक्षण,
  2. मानसिक योग्यता परीक्षण,
  3. रुचि परीक्षण,
  4. अभिरुचि परीक्षण तथा
  5. व्यक्तित्व परीक्षण।

(2) माध्यम के आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्रकार – मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का एक वर्गीकरण माध्यम के आधार पर भी किया गया है। इस आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के तीन प्रकार हैं –

  1. शाब्दिक परीक्षण,
  2. अशाब्दिक परीक्षण तथा
  3. सामूहिक परीक्षण।

(3) परीक्षण विधि के आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्रकार –  परीक्षण विधि के आधार पर किये गये वर्गीकरण के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक परीक्षण के दो प्रकार निर्धारित किये गये हैं। ये प्रकार हैं –

  1. वैयक्तिक परीक्षण या व्यक्तिगत परीक्षण तथा
  2. सामूहिक परीक्षण।

(4) समय के आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्रकार – मनोवैज्ञानिक परीक्षण में लगने वाले समय के आधार पर किये गये वर्गीकरण के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक परीक्षण के दो प्रकार निर्धारित किये गये हैं। ये प्रकार हैं –

  1. गति-परीक्षण तथा
  2. शक्ति-परीक्षण।

प्रश्न 2.
उद्देश्य के आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर.
परीक्षण के उद्देश्यों के अनुसार मनोवैज्ञानिक परीक्षा निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
(1) बुद्धि परीक्षण (Intelligence Test) – बुद्धि प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग मात्रा में पायी जाती है, जिसके अध्ययन एवं मापन के लिए बुद्धि परीक्षणों का निर्माण किया जाता है। बुद्धि परीक्षण के दो प्रकार के होते हैं – वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण तथा सामूहिक बुद्धि परीक्षण। ये दोनों प्रकार के परीक्षण शिक्षा एवं निर्देशन की दृष्टि से अत्यधिक उपयोगी हैं।

(2) मानसिक योग्यता परीक्षण (Mental Ability Test)- मनोवैज्ञानिकों ने कई प्रकार की मानसिक योग्यताओं का उल्लेख किया है-सांख्यिकी, शाब्दिक, तार्किक, शब्द प्रवाह, आन्तरीक्षक, स्मृति सम्बन्धी एवं प्रत्यक्ष सम्बन्धी योग्यताएँ। इन मानसिक योग्यताओं के पृथक्-पृथक् मापन के लिए विभिन्न प्रकार के परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है।

(3) रुचि परीक्षण (Interest Inventry or Test)– लोगों की रुचियों में विभिन्नता पायी जाती है, व्यक्ति की क्षमताओं, योग्यताओं तथा समय का सदुपयोग करने की दृष्टि से आवश्यक है कि उसे उसकी रुचि के अनुसार कार्य सौंपा जाए। इसी कारण आजकल शैक्षिक तथा व्यावसायिक निर्णयों में रुचि परीक्षणों का महत्त्व बढ़ गया है।

(4) अभिरुचि परीक्षण (Aptitude Test)-मानसिक योग्यता परीक्षणों तथा रुचि-परीक्षणों को मिलाकर बनाये गये अभिरुचि परीक्षणों द्वारा ज्ञात होता है कि कोई व्यक्ति सम्बन्धित कार्य को करने या सीखने की किस सीमा तक योग्यता, कुशलता तथा रुचि रखता है। अभिरुचि परीक्षण के उदाहरणों में-कलात्मक परीक्षण, लिपित अभिरुचि परीक्षण, यान्त्रिक अभिरुचि परीक्षण, गत्यात्मक योग्यता परीक्षण तथा आन्तरीक्षिक परीक्षण मुख्य रूप से शामिल हैं।

(5) व्यक्तित्व परीक्षण (Personality Test)-व्यक्तित्व के अन्तर्गत शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, चारित्रिक, सामाजिक, नैतिक आदि सभी प्रकार के गुण सम्मिलित किये जाते हैं। शिक्षा, निर्देशन, मानसिक स्वास्थ्य तथा अपराध निरोध आदि ऐसे बहुत-से क्षेत्र हैं जिनमें इन गुणों को समझने की आवश्यकता होती है। व्यक्तियों के व्यक्तित्व को जानने के उद्देश्य से बनाये गये परीक्षण व्यक्तित्व परीक्षण कहलाते हैं।

प्रश्न 3.
माध्यम के आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
या
अशाब्दिक परीक्षण किसे कहते हैं?
या
शाब्दिक, अशाब्दिक व निष्पादन बुद्धि-परीक्षण क्या होते हैं?
या
शाब्दिक एवं अशाब्दिक परीक्षणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2018)
उत्तर.
‘विषय’ और ‘परीक्षण’ के मध्यम विचार-विनिमये तथा पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए किसी ‘माध्यम’ का होना अपरिहार्य है। वस्तुतः माध्यम की सहायता से ही विषय’ अपनी अन्तर्निहित शक्तियों को व्यक्त करता है। परीक्षण निम्नलिखित प्रकार के हैं |

(1) शाब्दिक परीक्षण (Verbal Test) – जिन परीक्षणों में शब्दों’ या ‘भाषा का प्रयोग किया जाता है, उन्हें शाब्दिक परीक्षण कहा जाता है। इन परीक्षणों में उत्तर लिखकर देना होता है। इसी कारण ये शिक्षित लोगों के लिए ही उपयोगी कहे जा सकते हैं।

(2) अशाब्दिक परीक्षण (Non-verbal Test) – इन परीक्षणों में शब्दों और भाषा को प्रयोग नहीं किया जाता। इनमें परीक्षण पद के रूप में विभिन्न प्रकार की आकृतियों तथा चित्रों का प्रयोग किया जाता है। ये परीक्षण मुख्यतः भाषा से अनभिज्ञ, अशिक्षित या कम पढ़े-लिखे तथा छोटे बालकों के परीक्षण हेतु प्रयुक्त होते हैं।

(3) क्रियात्मक परीक्षण (Performance Test) – जिन परीक्षणों में अशाब्दिक परीक्षणों की भाँति कागज-पेन्सिल का बिल्कुल प्रयोग नहीं किया जाता तथा जिनको माध्यम सिर्फ क्रियाएँ होती हैं, उन्हें क्रियात्मक परीक्षण कहा जाता है। क्रियात्मक परीक्षणों में ठोस पदार्थों या सामग्री, जैसे लकड़ी के गुटके, ठोस घा, टुकड़े या पटल इस्तेमाल किये जाते हैं। विषय इन्हीं की सहायता से निश्चित प्रकार के प्रतिरूप (Pattern) तैयार करता है। ये परीक्षण भी अशिक्षित तथा छोटे बच्चों के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं।

प्रश्न 4.
परीक्षण विधि के आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्रकारों को उल्लेख कीजिए।
या
वैयक्तिक परीक्षण (टेस्ट) से आप क्या समझते हैं? (2018)
उत्तर.
परीक्षण विधि के आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के निम्नलिखित दो प्रकार निर्धारित किये गये हैं –

(1) व्यक्तिगत या वैयक्तिक परीक्षण (Individual Test)- जब कोई मनोवैज्ञानिक परीक्षण एक समय में एक परीक्षक द्वारा केवल एक ही व्यक्ति पर लागू किया जाता है तो उसे व्यक्तिगत या वैयक्तिक मनोवैज्ञानिक परीक्षण कहते हैं। व्यक्तिगत मनोवैज्ञानिक परीक्षण प्रायः छोटे बालकों के लिए उपयुक्त रहते हैं। बालक तथा परीक्षक का व्यक्तिगत सम्पर्क होने की वजह से दोनों के बीच अच्छा भाव-सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। व्यक्तिगत परीक्षणों में विशेष योग्यता वाले परीक्षक की आवश्यकता होती है। इनमें प्रश्न या परीक्षण-पद कठिन स्तर के होते हैं तथा प्रश्नों के निर्धारण में भी कठिनाई आती है। परीक्षणों में भाषा, ज्ञान तथा व्यावहारिकता का खासे प्रभाव देखने में आता है। यद्यपि ये परीक्षण सामूहिक परीक्षणों की तुलना में कम यथार्थ तथा अधिक खर्चीले होते हैं, तथापि इनमें विश्वसनीयता एवं वैधता अधिक पायी जाती है और ये परीक्षण व्यक्तिगत निर्देशन के लिए विशिष्ट रूप से उपयोगी हैं। सभी क्रियात्मक परीक्षण (Performance Tests), व्यक्तिगत मनोवैज्ञानिक परीक्षण होते हैं। इसके अतिरिक्त इन परीक्षणों के अन्तर्गत ऐसी परीक्षाएँ भी सम्मिलित होती हैं जिनमें शाब्दिक योग्यताओं की आवश्यकता पड़ती है; जैसे – स्टैनफोर्ड-बिने बुद्धि-परीक्षण, टी० ए० टी० परीक्षण, कोह का ब्लॉक डिजाइन परीक्षण, रोर्शा का स्याही धब्बा परीक्षण, वैश्लर-बेलेव्यु बुद्धि- परीक्षण आदि।

(2) सामूहिक परीक्षण (Group Test)- सामूहिक परीक्षणों से तात्पर्य उन परीक्षणों से है। जिनका व्यवहार एक ही समय में एक से अधिक व्यक्तियों पर सामूहिक रूप से किया जाता है। इन परीक्षणों की खास बात यह है कि इनमें धन व समय की बचत होती है और साधारण ज्ञान वाला परीक्षक भी इन्हें संचालित कर सकता है। सामूहिक परीक्षणों में प्रायः प्रश्न सरल होते हैं और उनके निर्धारण में कठिनाई नहीं आती। अल्प समय में ही प्रखर, सामान्य तथा मन्द बुद्धि के बालकों का ज्ञान हो जाता है। हालाँकि सामूहिक मनोवैज्ञानिक परीक्षणों में परीक्षार्थी तथा परीक्षक के बीच भाव-सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता और ये परीक्षण शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन में भी अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होते हैं, तथापि इनमें सर्वाधिक यथार्थता पायी जाती है। सामूहिक परीक्षणों के अन्तर्गत व्यक्तित्व परिसूचियाँ, रुचि परिसूचियाँ, व्यावसायिक रुचि-पत्र तथा उ० प्र० मनोविज्ञानशाला के सामूहिक बुद्धि परीक्षण सम्मिलित हैं। कर्मचारियों, सैनिकों तथा शिक्षार्थियों के चयन से सम्बन्धित विभिन्न परीक्षाओं के लिए ये परीक्षण अत्यधिक लाभप्रद सिद्ध होते हैं।

प्रश्न 5.
व्यक्तिगत एवं सामूहिक परीक्षणों में अन्तर स्पष्ट कीजिए। या , वैयक्तिक तथा सामूहिक परीक्षणों के किन्हीं चार अन्तरों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर.
व्यक्तिगत एवं सामूहिक परीक्षणों के अन्तर का विवरण निम्नलिखित है –

UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 8 Psychological Tests (मनोवैज्ञानिक परीक्षण) 12
UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 8 Psychological Tests (मनोवैज्ञानिक परीक्षण) 13
प्रश्न 6.
शाब्दिक एवं अशाब्दिक परीक्षणों में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2016)
उतर.
UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 8 Psychological Tests (मनोवैज्ञानिक परीक्षण) 14
प्रश्न 7.
सामूहिक अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण के कुछ मुख्य उदाहरण दीजिए।
उत्तर.
सामूहिक अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण के मुख्य उदाहरणों का सामान्य परिचय निम्नलिखित

  1. सबसे पहले सामूहिक अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण प्रथम विश्व के दौरान आर्मी बीटा परीक्षण के नाम से अमेरिका में बनाया गया था।
  2. 5 वर्ष से लेकर 12 वर्ष तक के बालकों के लिए उपयुक्त डीयरबोर्न सामूहिक परीक्षण-1′ (Dearborn Group Tests Series-1) में अनेक अशाब्दिक परीक्षण-पदों का समावेश है।
  3. शिकागो अशाब्दिक परीक्षण 6 वर्ष के बच्चों से लेकर प्रौढ़ों तक के लिए है, जिसमें प्रयुक्त मुख्य परीक्षण-पद ये हैं — वस्तुओं का वर्गीकरण, कागज पर चित्रित आकार पटल तथा लकड़ी के घनाकार टुकड़ों को गिनना, अंक-प्रतीक, आकृतियों की तुलना एवं चित्र विन्यास आदि।
  4. इंग्लैण्ड का एक पिजन का अशाब्दिक परीक्षण, दूसरा परीक्षण ‘नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डस्ट्रियल साइकोलॉजी लन्दन (N.I.I. 70/23) को तथा तीसरा परीक्षण रैवन का प्रोग्रेसवि मैट्रीसेज है।
    भारत में पिजन का अशाब्दिक परीक्षण, N. I. I. 70/23 तथा प्रोग्रेसिव मैट्रीसेज ही प्रयुक्त हो रहा है।

प्रश्न 8.
अभिरुचि (Aptitude) से क्या आशय है? मुख्य अभिरुचि परीक्षणों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर.
व्यक्ति की एक विशिष्ट योग्यता को अभिरुचि (Aptitude) कहा जाता है। अभिरुचि से आशय है — किसी कार्य को सीखने की योग्यता तथा उसके प्रति रुचि को होना। अभिरुचि में दो तत्त्व निहित होते हैं। ये तत्त्व हैं – सम्बन्धित कार्य को करने या सीखने की क्षमता तथा उनके प्रति रुचि। यदि किसी व्यक्ति की किसी कार्य के प्रति रुचि हो, परन्तु उसमें उस कार्य को सीखने की क्षमता या योग्यता न हो तो हम यह नहीं कह सकते कि उस व्यक्ति की सम्बन्धित कार्य में अभिरुचि है। इसी प्रकार; भले ही व्यक्ति किसी कार्य को सीखने या करने की क्षमता रखता हो, परन्तु यदि उसकी उस कार्य के प्रति रुचि न हो तो भी हम यह नहीं कह सकते कि व्यक्ति की अमुक कार्य के प्रति अभिरुचि है।
व्यक्ति की अभिरुचियों को जानने एवं उनके मापन के लिए विभिन्न परीक्षण तैयार किये गये हैं। इन परीक्षणों को अभिरुचि परीक्षण कहा जाता है। मुख्य अभिरुचि परीक्षणों का सामान्य परिचय निम्नलिखित है |

(1) कैलिफोर्निया मानसिक परिपक्वता परीक्षण – एक मुख्य अभिरुचि परीक्षण है। ‘कैलिफोर्निया मानसिक परिपक्वता परीक्षण’। यह परीक्षण विभिन्न मानसिक शक्तियों के मापन के लिए तैयार किया गया है। इस परीक्षण के माध्यम से व्यक्ति के शब्द-ज्ञान तथा सह-सम्बन्ध ज्ञान आदि को जाना जाता है। व्यवहार में इस परीक्षण के माध्यम से महाविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की मानसिक परिपक्वती का मापन किया जाता है।

(2) मिनेसोटा यान्त्रिक संग्रह अभिरुचि परीक्षण – इस अभिरुचि परीक्षण के माध्यम से सम्बन्धित व्यक्ति की यान्त्रिक कार्यों के प्रति अभिरुचि को ज्ञात किया जाता है तथा उसका मापन किया जाता है। इस परीक्षण के अन्तर्गत व्यक्ति की यान्त्रिक अभिरुचि को जानने के लिए उससे कुछ सूक्ष्म यान्त्रिक कार्य करवाये जाते हैं तथा उसी के आधार पर व्यक्ति की यान्त्रिक अभिरुचि का निर्धारण किया जाता है।

(3) मिनेसोटा लिपिक अभिरुचि परीक्षण — यह अभिरुचि परीक्षण सम्बन्धित व्यक्ति की बौद्धिक योग्यता को ज्ञात करके उसकी अभिरुचि का मापन करता है। इस परीक्षण को भिन्न-भिन्न आयु-वर्ग के व्यक्तियों पर लागू किया जा सकता है।

(4) गिलफोर्ड-जिमरमैन अभिरुचि परीक्षण – यह अभिरुचि परीक्षण द्वितीय विश्व युद्ध के काल में तैयार किया गया था तथा इसका उपयोग सैनिकों की अभिरुचि को जानने के लिए किया जाता था। इस परीक्षण के माध्यम से व्यक्ति की विभिन्न अभिरुचियों को जाना जा सकता है।

(5) कुछ अन्य अभिरुचि परीक्षण – व्यक्ति की अभिरुचियों के मापन के लिए तैयार किये गये उपर्युक्त मुख्य अभिरुचि परीक्षणों के अतिरिक्त कुछ अन्य अभिरुचि परीक्षण भी तैयार किये गये हैं, जिन्हें प्रायः मनोवैज्ञानिकों द्वारा अभिरुचि मापन के लिए अपनाया जाता है। इस वर्ग के कुछ उल्लेखनीय अभिरुचि परीक्षण हैं-फ्रांफार्ड सूक्ष्म अंग-दक्षता परीक्षण, स्टाबर्ग अंग-दक्षता परीक्षण, मिलर का कला-निर्णय परीक्षण, जटिल-समन्वय परीक्षण, ओंकनूर अंगुलि-दक्षता परीक्षण तथा मैकवरी का मानसिक योग्यता परीक्षण।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण तथा मनोवैज्ञानिक प्रयोग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण तथा मनोवैज्ञानिक प्रयोग दो भिन्न प्रक्रियाएँ हैं जिनमें कुछ समानताएँ भी हैं। ये दोनों ही प्रक्रियाएँ अधिक-से-अधिक वस्तुनिष्ठ होने का प्रयास करती हैं। दोनों में ही मानव-व्यवहार की व्याख्या के लिए कुछ उद्दीपक प्रस्तुत किये जाते हैं, जिनके प्रति प्राणी की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया जाता है। इन समानताओं के होने के साथ-साथ इन दोनों में कुछ स्पष्ट अन्तर भी हैं। प्रथम अन्तर उद्देश्य से सम्बन्धित है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण का उद्देश्य है व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं, गुणों की मात्रा एवं स्वरूप का मूल्यांकन करना। इससे भिन्न, मनोवैज्ञानिक प्रयोग का मुख्य उद्देश्य प्राणी की मानसिक क्रियाओं, उनके सिद्धान्तों तथा नियमों का अध्ययन करना है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मनोवैज्ञानिक परीक्षण का उद्देश्य व्यावहारिक तथा मनोवैज्ञानिक प्रयोग का उद्देश्य सैद्धान्तिक होता है।

प्रश्न 2.
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों तथा सामान्य परीक्षाओं में क्या अन्तर है?
उत्तर.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण तथा शिक्षण-संस्थाओं द्वारा संचालित सामान्य परीक्षाओं में स्पष्ट अन्तर है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण का उद्देश्य व्यक्ति की अभिवृत्तियों, क्षमताओं, रुचियों तथा व्यक्तित्व के लक्षणों को मापना है। इससे भिन्न शैक्षणिक परीक्षाओं का उद्देश्य किसी विशेष परिस्थिति में सिखाये गये ज्ञान या कौशल का मापना है। मनोवैज्ञानिक के पद पाठ्य-विषयों अर्थात् पाठ्यक्रम “पद” (Items) सामान्य जीवन से जुड़े होते हैं। इससे भिन्न शैक्षणिक परीक्षाओं के पद पाठ्य-विषयों अर्थात् पाठ्यक्रम पर आधारित होते हैं। इस प्रकार मनोवैज्ञानिक परीक्षण का क्षेत्र अनिश्चित, किन्तु व्यापक होता है तथा शैक्षिक परीक्षा का क्षेत्र अपेक्षाकृत निश्चित तथा सीमित होता है।

प्रश्न 3.
सर्मस के आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर.
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का एक वर्गीकरण उनमें लगने वाले समय के आधार पर भी किया गा है। इस वर्गीकरण के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक परीक्षण के दो मुख्य प्रकारों का उल्लेख किया गया है। ये प्रकार निम्नलिखित हैं

  1. गति परीक्षण (Speed Test)- गति परीक्षण व्यक्ति के कार्य की गति का मापन करते हैं; उदाहरण के लिए टाइप-टेस्ट।
  2. शक्ति परीक्षण (Power Test)-जिन परीक्षणों में बिना समय के प्रतिबन्ध के किसी भी क्षेत्र में ‘विषय’ की शक्ति का मापन किया जाता है, उन्हें शक्ति परीक्षण कहते हैं। ऐसे परीक्षणों में समस्याओं/प्रश्नों को कठिनाई के क्रम में रखकर हल करने के लिए देते हैं।

प्रश्न 4.
अशाब्दिक परीक्षण किसे कहते हैं?
या
निष्पादन बुद्धि-परीक्षण से आप क्या समझते हैं? (2017)
उत्तर.
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्रकार की अशाब्दिक परीक्षण कहा जाता है। इन परीक्षणों को क्रियात्मक परीक्षण अथवा निष्पादन परीक्षण को भी कहा जाता है। इन परीक्षणों में शब्दों या भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता, अपितु इनके अन्तर्गत क्रियाओं पर बल दिया जाता है तथा परीक्षार्थियों द्वारा कुछ विशिष्ट प्रकार की क्रियाएँ करायी जाती हैं। सामान्य रूप से किन्हीं विशेष भाषाओं को न समझ सकने वाले अथवा निरक्षण करने व्यक्तियों की योग्यताओं की मापन के लिए अशाब्दिक परीक्षणों को ही अपनाया जाता है।

प्रश्न 5.
परीक्षण की वैधता (Validity) को परिभाषित कीजिए।   (2010)
उत्तर.
वैधता या प्रामाणिकता किसी भी मनोवैज्ञानिक परीक्षण की एक आवश्यक शर्त एवं विशेषता है। यदि कोई परीक्षण उस योग्यता अथवा विशेषताओं का यथार्थ मापन करें, जिन्हें मापन के लिए उसे बनाया गया है, तो वह परीक्षण वैध (Valid) माना जायेगा। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कोई परीक्षण बुद्धि मापन के लिए अर्जित किया गया है और प्रयोग करने पर वह बुद्धि का ही मापन करता है तो उसे वैध या प्रामाणिक परीक्षण कहा जायेगा और उसका यह गुण वैधता या प्रामाणिकता कहलाएगा।

प्रश्न 6.
बुद्धि-परीक्षणों की विश्वसनीयता से क्या आशय है?
उत्तर.
यदि बुद्धि-परीक्षण किसी व्यक्ति-विशेष की बुद्धि का एकरूपता से मापन करता है तो उसे विश्वसनीय (Reliable) कहा जाएगा। अनास्टेसी का कथन है कि, “विश्वसनीयता से तात्पर्य स्थायित्व अथवा स्थिरता से है।” उदाहरण के लिए मान लीजिए, ‘स्टैनफोर्ड-बिने बुद्धि-परीक्षण द्वारा एक बालक ‘रोहित’ की बुद्धि का मापन किया गया, जिसके परिणामस्वरूप उसकी बुद्धि-लब्धि 108 आती है। कुछ समय के पश्चात् साधारण परिस्थितियों में स्टैनफोर्ड-बिने बुद्धि-परीक्षण’ द्वारा रोहित की बुद्धि का पुनः मापन किया गया, जिसका परिणाम वही बुद्धि-लब्धि 108 निकला।

तीन-चार-पाँच बार जब परीक्षण द्वारा रोहित की बुद्धि मापी गयी तो भी उसकी बुद्धि-लब्धि 108 ही प्राप्त हुई। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि स्टैनफोर्ड-बिने बुद्धि-परीक्षण पूर्ण रूप से विश्वसनीय बुद्धि-परीक्षण है। एक विश्वसनीय बुद्धि-परीक्षण में वस्तुनिष्ठता तथा व्यापकता का गुण अनिवार्य रूप से होना चाहिए। एक बुद्धि-परीक्षण उस समय वस्तुनिष्ठ कहा जाएगा जब वह परीक्षण के व्यक्तिगत विचारों से प्रभावित न हो और उसकी व्यापकता से अभिप्राय है कि वह बुद्धि के सभी पक्षों का मूल्यांकन करेगा। एक बुद्धि-परीक्षण में विश्वसनीयता का गुण उसे प्रामाणिक बनाने में सहायता देता है।

प्रश्न 7.
सामूहिक शाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों के मुख्य उदाहरण लिखिए।
उत्तर. सामूहिक शाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों के मुख्य उदाहरण निम्नलिखित हैं

(1) प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका में सेना में नियुक्ति के लिए बनाया गया ‘आर्मी ऐल्फा परीक्षण, शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण का पहला उदाहरण था।

(2) इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध के समय युद्ध तथा नौ-सेना विभागों की ओर से सेना के वर्गीकरण हेतु मनोवैज्ञानिकों ने जिन दो परीक्षणों का निर्माण किया, वे सामूहिक शाब्दिक परीक्षण ही थे। ये थे –

  1. नौ-सेना सामान्य वर्गीकरण-परीक्षण तथा
  2. सैन्य सामान्य वर्गीकरण परीक्षण।

(3) वाक्यपूर्ति, अंकगणित तर्क, शब्द भण्डार तथा आदेश–इन परीक्षणों से सम्बन्धित D.A.V.D. नामक एक समूह परीक्षण थॉर्नडाइक तथा सहयोगियों द्वारा कोलम्बिया विश्वविद्यालय में तैयार किया गया था।’

(4) इसी प्रकार सूचना, पर्याय, तार्किक, चयन, वर्गीकरण, सादृश्य, विलोम तथा सर्वोत्कृष्ट उत्तर-इन परीक्षण-पदों से सम्बन्धित ‘टरमन मैक-नीमर परीक्षण ‘ (Terman MC Nemar Test) भी एक विख्यात परीक्षण रहा है।

(5) हमारे देश भारत में भी कुछ सामूहिक शाब्दिक बुद्धि परीक्षण बनाये गये जिनमें जलोटा बुद्धि-परीक्षण तथा ‘मनोविज्ञानशाला उ० प्र०, इलाहाबाद’ द्वारा निर्मित बुद्धि परीक्षाएँ-B.P.T.- 8, B.P.T.- 7 तथा B.P.T.-13 क्रमशः 14, 13 व 12 वर्ष के बच्चों को बुद्धि परीक्षण करती हैं। उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त अन्य राज्यों में भी इस दिशा में सफल प्रयास किये गये हैं।

प्रश्न 8.
सामूहिक शाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों की मुख्य कठिनाइयों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर.
सामूहिक शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण के सम्बन्ध में निम्नलिखित मुख्य कठिनाइयाँ दृष्टिगोचर होती हैं –

  1. सामूहिक शाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों में यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है कि परीक्षार्थी परीक्षण के संचालन/प्रशासन में पूर्ण सहयोग प्रदान कर रहा है अथवा नहीं।
  2. यह ज्ञात करना भी कठिन है कि परीक्षार्थी द्वारा लिखित उत्तर उसकी स्वयं की बुद्धि की उपज हैं या उसने किसी निकटस्थ व्यक्ति की नकल कर ली है।
  3. इन परीक्षणों व परीक्षार्थियों के शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक सन्तुलन की दशा को नहीं पहचाना जा सकता।
  4. यह जानना भी दूभर है कि परीक्षार्थी को परीक्षा देते समय कठिनाई अनुभव हो रही है या सुविधा।

प्रश्न 9.
सामूहिक अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर.
सामूहिक अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों की कुछ विशेष बातों को इस प्रकार उल्लेख किया जा सकता है –

  1. इन बुद्धि-परीक्षणों की सहायता से अनपढ़ या अन्य-भाषा-भाषी व्यक्तियों की बुद्धि का भी मापन सम्भव है।
  2. अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों द्वारा विभिन्न भाषाओं तथा संस्कृतियों से सम्बन्धित कई प्रकार के समूहों के बौद्धिक-स्तर की तुलना की जा सकती है।
  3. क्योंकि बालकों को परीक्षण की भाषा का उचित ज्ञान नहीं होता; अत: उनकी बुद्धि की परीक्षा के लिए शाब्दिक परीक्षण की अपेक्षा अशाब्दिक परीक्षण ही उपयुक्त समझा जाता है।
  4. जो बालक रोगग्रस्त या मानसिक दृष्टि से पिछड़े होते हैं उनके लिए अशाब्दिक परीक्षण ही ठीक रहता है।
  5. इन परीक्षणों के माध्यम से निरक्षर लोगों में अपेक्षित बुद्धि का ज्ञान होने से उन्हें व्यवसाय-विशेष के लिए छाँटने में सुविधा रहती है।

प्रश्न 10.
अभिरुचि परीक्षणों की मुख्य उपयोगिता क्या है?
उत्तर.
अभिरुचि परीक्षण अपने आप में विशेष उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण होते हैं। इन परीक्षणों की सर्वाधिक उपयोगिता व्यक्ति द्वारा व्यवसाय के चुनाव के सन्दर्भ में होती है। अभिरुचि के अनुकूल व्यवसाय के चुनाव से व्यक्ति व्यावसायिक क्षेत्र में एवं व्यक्तिगत जीवन में सन्तुष्ट रहता है तथा प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होता है। अभिरुचि के अनुकूल व्यवसाय के वरण के लिए अभिरुचि परीक्षण विशेष रूप से सहायक सिद्ध होते हैं। अभिरुचि परीक्षण के आधार पर व्यक्ति के व्यवसाय के निर्धारण एवं नियुक्ति से जहाँ एक ओर व्यक्ति लाभान्वित होता है, वहीं दूसरी ओर सम्बन्धित संस्थान अथवा कार्यालय भी लाभान्वित होता है, क्योंकि अभिरुचि के अनुकूल कार्य मिल जाने पर व्यक्ति अधिक कुशलता एवं क्षमता से कार्य करता है तथा उत्पादन की दर एवं गुणवत्ता में वृद्धि होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि अभिरुचि परीक्षणों से व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र सभी लाभान्वित होते हैं।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न I
निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्दों द्वारा कीजिए –
1. व्यक्तिगत योग्यताओं एवं क्षमताओं के शुद्ध मापन की प्रविधि को ……… कहा जाता है।
2. किसी मनोवैज्ञानिक परीक्षण के लिए उसकी वैधता एवं ………. का होना अनिवार्य विशेषताएँ है।
3. क्रॉनबैक के अनुसार मनोवैज्ञानिक ………… दो या अधिक व्यक्तियों के व्यवहार के तुलनात्मक अध्ययन की व्यवस्थित प्रक्रिया है।
4. किसी व्यक्ति पर कोई परीक्षण बार-बार प्रशासित करने पर पायी जाने वाली प्राप्तांकों की लगभग समानता से परीक्षण की …….. का पता चलता है।  (2011)
5. गुलिकसन के अनुसार, किसी कसौटी के साथ परीक्षण का सह-सम्बन्ध उसकी ……….. कहलाता है।
6. विभिन्न आकृतियों एवं चित्रों के माध्यम से व्यक्ति की योग्यता का मापन करने वाले परीक्षण को ……….. कहते हैं ।
7. भाषा के माध्यम से अथवा लिखित रूप से आयोजित किये जाने वाले परीक्षणों को ………….. कहते हैं।
8. विभिन्न क्रियाओं के माध्यम से व्यक्ति की योग्यता का मापन करने वाले परीक्षण को …………. कहते हैं।
9. एक समय में केवल एक ही व्यक्ति की योग्यताओं एवं क्षमताओं का मापन करने वाला परीक्षण ………. कहलाता है।
10. एक ही समय में व्यक्तियों के एक समूह की योग्यताओं एवं क्षमताओं का मापन करने वाला परीक्षण ………… कहलाता है। (2018)
11. टरमन के अनुसार “……” चिन्तन की योग्यता ही बुद्धि है।” (2017)
12. व्यक्तिगत परीक्षणों से प्राप्त निष्कर्ष ……….. होते हैं।
13. शाब्दिक व्यक्ति बुद्धि-परीक्षण का मुख्य उदाहरण ………… है।
14. स्टैनफोर्ड-बिने-साइमन स्केल एक …………… बुद्धि-परीक्षण है।
15. आर्मी ऐल्फा परीक्षण एक ……….. बुद्धि-परीक्षण है।
16. पोर्टियस का व्यूह-परीक्षण एक ……….. बुद्धि-परीक्षण है।
17. भाटिया की निष्पादन परीक्षण माला मूल रूप से । …….. बुद्धि-परीक्षण है। (2009)
18. भाटिया निष्पादन बुद्धि-परीक्षण माला (बैटरी) के निर्माता को पूरा नाम ………. है।
19. भाटिया निष्पादन बुद्धि-परीक्षण में उप परीक्षणों की संख्या ……….. है। (2013)
20. मानसिक आयु तथा वास्तविक आयु के बीच के अनुपात को ……….. कहते हैं।
21. बुद्धि-लब्धि की गणना का सूत्र ……. है। (2008)
22. गैरेट के अनुसार 140 से अधिक बुद्धि-लब्धि वाले व्यक्ति को ……… कहा जाता है।
23. प्रतिभाशाली बालकों की बुद्धि-लब्धि ……… या अधिक होती है। (2017)
24. यदि बालक की मानसिक आयु शारीरिक आयु से अधिक होगी तो बालक की बुद्धि-लब्धि ……… से अधिक होगी। (2018)
25.गैरेट के अनुसार 70 से कम बुद्धि-लब्धि वाले व्यक्ति को ……… माना गया है।
26. स्वतन्त्र साहचर्य तथा स्वप्न-विश्लेषण का व्यक्तित्व मापन की ………………. विधि से सम्बन्ध है।
27. रोर्णा स्याही-धब्बा परीक्षण एक ………… परीक्षण है। (2010, 15)
28. रोर्णा स्याही-धब्बा परीक्षण व्यक्तित्व मापन की एक ……….. है।
29. अन्तर्मुखी-बहिर्मुखी परीक्षण ……….. का परीक्षण करता है। (2008)
30. टी०ए०टी० (TATC) का निर्माण …………. ने किया है। (2009)
31. प्रसंगात्मक बोध परीक्षण (टी०ए०टी०) ……………. का परीक्षण है। (2014)
32. प्रक्षेपण विधियाँ …………. मापन हेतु प्रयुक्त की जाती हैं। (2013)
33. शब्द साहचर्य परीक्षण एक ……….. व्यक्तित्व परीक्षण है। (2012)
34. व्यावसायिक वरण एवं चुनाव में …………… परीक्षण सहायक होता है।

उत्तर -1. मनोवैज्ञानिक परीक्षण, 2. विश्वसनीयता, 3. परीक्षण, 4 विश्वसनीयता, 5, वैधता, 6. अशाब्दिक परीक्षण, 7. शाब्दिक परीक्षण, 8. क्रियात्मक परीक्षण, 9. व्यक्तिगत या वैयक्तिक परीक्षण, 10. सामूहिक परीक्षण, 11. अमूर्त, 12. अधिक विश्वसनीय, 13. बिने-साइमन बुद्धि-परीक्षण, 14. व्यक्तिगत शाब्दिक, 15. सामूहिक शाब्दिक, 16. व्यक्तिगत अशाब्दिक, 17. व्यक्तिगत अशाब्दिक, 18. डॉ० चन्द्र मोहन भाटिया, 19. 5, 20, बुद्धि-लब्धि, 21 imageee.22.अत्यन्त श्रेष्ठ, 23. 120. 24 100. 25. दुर्बल बुद्धि, 26. मनोविश्लेषण, 27. व्यक्तित्व, 28. प्रक्षेपण विधि, 29. व्यक्तित्व, 30. मॉर्गन तथा मरे, 31. व्यक्तित्व, 32. व्यक्तित्व, 33. प्रक्षेपण, 34. अभिरुचि,

प्रश्न II
निम्नलिखित प्रश्नों का निश्चित उत्तर एक शब्द अथवा एक वाक्य में दीजिए –
प्रश्न 1.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण का सामान्य अर्थ क्या है?
उत्तर.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण से आशय उन विधियों तथा साधनों से है जिन्हें मनोवैज्ञानिकों द्वारा मानव-व्यवहार के अध्ययन हेतु खोजा गया है।

प्रश्न 2.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण की कोई सुस्पष्ट परिभाषा लिखिए।
उत्तर.
फ्रीमैन के अनुसार, “मनोवैज्ञानिक परीक्षण एक मानकीकृत यन्त्र है जो इस प्रकार बनाया गया है कि सम्पूर्ण व्यक्तित्व के एक या एक से अधिक अंगों का वस्तुपरक रूप से मापन कर सकें।”

प्रश्न 3.
एक अच्छे मनोवैज्ञानिक परीक्षण की चार मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। यो मनोवैज्ञानिक परीक्षण के कोई दो आवश्यक गुण बताइए।
(2008)
उत्तर.

  1. विश्वसनीयता,
  2. वैधता या प्रामाणिकता,
  3. वस्तुनिष्ठता तथा
  4. व्यावहारिकता ।

प्रश्न 4.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण तथा मनोवैज्ञानिक प्रयोग में मुख्य अन्तर क्या है?
उत्तर.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण का उद्देश्य है-व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं की मात्रा तथा उनके स्वरूप को मूल्यांकन करना। इससे भिन्न मनोवैज्ञानिक प्रयोग का मुख्य उद्देश्य प्राणी की मानसिक क्रियाओं, उनके सिद्धान्तों तथा नियमों का अध्ययन करना है।

प्रश्न 5.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण तथा शिक्षण संस्थाओं द्वारा आयोजित परीक्षा में क्या अन्तर है?
उत्तर.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण का उद्देश्य व्यक्ति की अभिवृत्तियों, क्षमताओं, रुचियों तथा व्यक्तित्व के लक्षणों को मापना है, जबकि शिक्षण संस्थाओं द्वारा आयोजित परीक्षा का उद्देश्य किसी विशेष परिस्थिति में सिखाये गये ज्ञान या कौशल को मापना है।

प्रश्न 6.
उद्देश्य के आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षण के मुख्य प्रकार कौन-कौन से निर्धारित किये
उत्तर.

  1. बुद्धि-परीक्षण,
  2. मानसिक योग्यता परीक्षण,
  3. रुचि परीक्षण,
  4. अभिरुचि परीक्षण तथा
  5. व्यक्तित्व परीक्षण।

प्रश्न 7.
माध्यम के आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षण के मुख्य प्रकार कौन-कौन से है?
उत्तर.

  1. शाब्दिक परीक्षण,
  2. अशाब्दिक परीक्षण तथा
  3. क्रियात्मक परीक्षण।

प्रश्न 8.
बुद्धि-परीक्षण से क्या आशय है?
उत्तर.
बुद्धि-परीक्षण वे मनोवैज्ञानिक परीक्षण हैं जो मानव-व्यक्तित्व के सर्वप्रमुख तत्त्व एवं उसकी प्रधान मानसिक योग्यता ‘बुद्धि’ का अध्ययन तथा मापन करते हैं।

प्रश्न 9.
बुद्धि-परीक्षण के मुख्य प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर.
बुद्धि-परीक्षण के मुख्य प्रकार हैं-शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण तथा अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण ।

प्रश्न 10.
व्यक्तिगत शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण के मुख्य स्वरूपों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर.
व्यक्तिगत शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण के मुख्य स्वरूप हैं – बिने-साइमन-स्केल, स्टैनफोर्ड-बिने-साइमन स्केल तथा संशोधित स्टैनफोर्ड-बिने-स्केल।

प्रश्न 11.
मुख्य व्यक्तिगत अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर.

  1. पोर्टियस का व्यूह-परीक्षण,
  2. पिण्टनर-पैटर्सन क्रियात्मक परीक्षण मान,
  3. मैरिल-पामर गुटका निर्माण परीक्षण,
  4. सेग्युईन आकार-पटल परीक्षण तथा
  5. भाटिया की निष्पादन परीक्षण माला।

प्रश्न 12.
सामूहिक बुद्धि-परीक्षणों के नाम लिखिए।
उत्तर.
मुख्य सामूहिक बुद्धि-परीक्षण है — आर्मी-ऐल्फा’ परीक्षण, आर्मी बीटा परीक्षण तथा नौसेना और सेना सामान्य वर्गीकरण परीक्षण।

प्रश्न 13.
बुद्धि-लब्धि ज्ञात करने का सूत्र क्या है? (2013)
उत्तर.
UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 8 Psychological Tests (मनोवैज्ञानिक परीक्षण) 15

प्रश्न 14.
भाटिया की निष्पादन परीक्षण माला में कौन-कौन से परीक्षण सम्मिलित हैं?
उत्तर.

  1. कोह को ब्लॉक डिजाइन परीक्षण,
  2. अलेक्जेन्डर का पास-एलॉग परीक्षण,
  3. पैटर्न ड्राइंग परीक्षण,
  4. तात्कालिक स्मृति परीक्षण तथा
  5. चित्रपूर्ति परीक्षण।

प्रश्न 15.
अल्फ्रेड बिने ने किस क्षेत्र में अग्रणी कार्य किया?
उत्तर.
अल्फ्रेड बिने ने बुद्धि-परीक्षण के क्षेत्र में अग्रणी कार्य किया।

प्रश्न 16.
व्यक्तित्व-मापन के लिए अपनायी जाने वाली मुख्य विधियाँ कौन-कौन सी हैं? या व्यक्तित्व मापन के दो प्रक्षेपी परीक्षण लिखिए। (2011)
उत्तर.
व्यक्तित्व-मापन के लिए अपनायी जाने वाली मुख्य विधियाँ हैं –

  1. वैयक्तिक विधियाँ,
  2. वस्तुनिष्ठ विधियाँ,
  3. मनोविश्लेषण विधियाँ तथा
  4. प्रक्षेपण विधियाँ।

प्रश्न 17.
व्यक्तिगत-मापन की मुख्य वैयक्तिक विधियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर.
व्यक्तित्व-मापन की मुख्य वैयक्तिक विधियाँ हैं —

  1. प्रश्नावली विधि,
  2. व्यक्ति इतिहास विधि,
  3. भेंट या साक्षात्कार विधि तथा
  4. आत्म-चरित्र लेखन विधि।।

प्रश्न 18.
व्यक्तित्व-परीक्षण की मुख्य प्रक्षेपण विधियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर.
व्यक्तित्व-परीक्षण की मुख्य प्रक्षेपण विधियाँ हैं —

  1. कथा-प्रसंग परीक्षण,
  2. बाल सम्प्रत्यक्षण परीक्षण,
  3. रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण तथा
  4. वाक्य-पूर्ति या कहानी-पूर्ति परीक्षण।

प्रश्न 19.
कुछ मुख्यरुचि-परीक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर.

  1. स्ट्राँग का व्यावसायिक रुचि-पत्र,
  2. क्यूडर का व्यावसायिक पसन्द लेखा तथा
  3. मनोविज्ञानशाला का व्यावसायिक रुचि-मापी।

प्रश्न 20.
मुख्य अभिरुचि परीक्षण कौन-कौन से हैं?
उत्तर.
मुख्य अभिरुचि परीक्षण हैं –

  1. कैलिफोर्निया मानसिक परिपक्वता परीक्षण,
  2. गिलफोर्ड-जिमरमैन अभिरुचि परीक्षण,
  3. मिनेसोटा यान्त्रिक-संग्रह अभिरुचि परीक्षण तथा
  4. मिनेसोटा लिपिक अभिरुचि परीक्षण।

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए
प्रश्न 1.
किसी व्यक्ति की योग्यता एवं प्रतिभा को जानने का मनोवैज्ञानिक उपाय है –
(क) उसकी डिग्रियों का विश्लेषण
(ख) उसका मनोवैज्ञानिक परीक्षण
(ग) उसके व्यवहार का विश्लेषण
(घ) इन उपायों में से कोई नहीं
उतर.
(ख) उसका मनोवैज्ञानिक परीक्षण,

प्रश्न 2.
व्यक्ति की विभिन्न योग्यताओं की माप की प्रविधि को कहते हैं (2007)
(क) व्यवस्थित अध्ययन ।
(ख) मनोवैज्ञानिक निर्देशन
(ग) मनोवैज्ञानिक परीक्षण
(घ) वैज्ञानिक मापन
उतर.
(ग) मनोवैज्ञानिक परीक्षण

प्रश्न 3.
“एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण उद्दीपकों का एक प्रतिमान है जिन्हें ऐसी अनुक्रियाओं को उत्पन्न करने के लिए चुना और संगठित किया जाता है जो कि परीक्षण देने वाले व्यक्ति की कुछ मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को व्यक्त करेंगे।” – यह परिभाषा किसके द्वारा प्रतिपादित है?
(क) फ्रीमैन
(ख) क्रॉनबेक
(ग) मरसेल
(घ) इनमें से कोई नहीं
उतर.
(ग) मरसेल

प्रश्न 4.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण तथा मनोवैज्ञानिक प्रयोग में अन्तर है
(क) मनोवैज्ञानिक परीक्षण विद्वानों द्वारा किये जाते हैं तथा मनोवैज्ञानिक प्रयोग छात्रों द्वारा।
(ख) मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का उद्देश्य व्यावहारिक होता है, जबकि मनोवैज्ञानिक प्रयोगों का उद्देश्य सैद्धान्तिक होता है।
(ग) मनोवैज्ञानिक प्रयोग सिद्धान्तों पर आधारित होते हैं, जबकि मनोवैज्ञानिक प्रयोग अनुमान पर आधारित होते हैं।
(घ) दोनों में कोई अन्तर नहीं है।
उतर.
(ख) मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का उद्देश्य व्यावहारिक होता है, जबकि मनोवैज्ञानिक प्रयोगों का उद्देश्य सैद्धान्तिक सेता है

प्रश्न 5.
प्रथम बुद्धि-परीक्षण का निर्माण किया|
(क) वैशलर ने
(ख) फ्रॉयड ने
(ग) बिने ने
(घ) भाटिया ने
उतर.
(ग) बिने ने,

प्रश्न 6.
व्यक्ति की बुद्धि सम्बन्धी योग्यता को जानने के लिए किये जाने वाले परीक्षण को कहते हैं |
(क) बौद्धिक परीक्षण
(ख) बुद्धि-लब्धि परीक्षण
(ग) अभिरुचि परीक्षण
(घ) शाब्दिक परीक्षण
उतर.
(क) बौद्धिक परीक्षण

प्रश्न 7.
किसी विशेष भाषा को न समझ सकने वाले अथवा निरक्षर व्यक्तियों की योग्यता के मापन के लिए किस प्रकार के परीक्षण होते हैं?
(क) शाब्दिक परीक्षण
(ख) अशाब्दिक अथवा क्रियात्मक परीक्षण
(ग) व्यक्तिगत परीक्षण
(घ) ये सभी
उतर.
(ख) अशाब्दिक अथवा क्रियात्मक | परीक्षण

प्रश्न 8.
जिन बुद्धि-परीक्षणों में लकड़ी के गुटकों आदि पर आधारित पदों को करने में हाथों से बर्ताव (क्रिया) करना होता है, उसे कहते हैं
(क) व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण
(ख) निष्पादन बुद्धि-परीक्षण
(ग) शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण
(घ) मिश्रित बुद्धि-परीक्षण
उतर.
(ख) निष्पादन बुद्धि-परीक्षण

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में कौन सामूहिक परीक्षण है? (2012)
(क) भाटिया बैटरी
(ख) बिने बुद्धि-परीक्षण
(ग) बी०पी०टी०-13
(घ) रोर्शा टेस्ट
उतर.
(ग) बी०पी०टी०-13

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से कौन-सा बुद्धि-परीक्षण है ?
(क) चित्र कथानक परीक्षण (टी० ए० टी०)
(ख) हाईस्कूल पर्सनैलिटी क्वेश्चेनेयर (एच० एस० पी० क्यू०)
(ग) भाटिया निष्पादन परीक्षण-माला ।
(घ) रोर्शा टेस्ट
उतर.
(ग) भाटिया निष्पादन परीक्षण माला

प्रश्न 11.
उत्तम मनोवैज्ञानिक परीक्षण की विशेषताएँ हैं
(क) व्यापकता
(ख) विश्वसनीयता तथा वैधता
(ग) वस्तुनिष्ठता
(घ) ये सभी विशेषताएँ
उतर.
(घ) ये सभी विशेषताएँ

प्रश्न 12.
भाटिया बुद्धि निष्पादन परीक्षण माला है (2009)
(क) शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण
(ख) सामूहिक बुद्धि-परीक्षण
(ग) अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण
(घ) वैयक्तिक बुद्धि-परीक्षण
उतर.
(ग) अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षण,

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से कौन-सा शाब्दिक परीक्षण है? (2017)
(क) रेवेन्स प्रोग्रेसिव मैट्रिसेज
(ख) बी०पी०टी०-12
(ग) पिण्टनर-पैटर्सन परीक्षण
(घ) अलैक्जेण्डर पास-एलांग परीक्षण
उतर.
(ख) बी०पी०टी०-12

प्रश्न 14.
अलेक्जेण्डर पास-एलांग परीक्षण है-    (2015)
(क) शाब्दिक व्यक्तिगत परीक्षण
(ख) अशाब्दिक व्यक्तिगत परीक्षण
(ग) शाब्दिक सामूहिक परीक्षण
(घ) अशाब्दिक सामूहिक परीक्षण
उतर.
(ख) अशाब्दिक व्यक्तिगत परीक्षण

प्रश्न 15.
आर्मी ऐल्फा तथा बीटा परीक्षण किस श्रेणी के मनोवैज्ञानिक परीक्षण हैं?
(क) क्रियात्मक बुद्धि-परीक्षण
(ख) शाब्दिक व्यक्ति बुद्धि-परीक्षण
(ग) शाब्दिक समूह-बुद्धि-परीक्षण
(घ) इनमें से कोई नहीं
उतर.
(ग) शाब्दिक समूह बुद्धि-परीक्षण,

प्रश्न 16.
पिण्टनर तथा पैटर्सन नामक मनोवैज्ञानिक द्वारा तैयार किया गया परीक्षण किस श्रेणी का परीक्षण है?
(क) क्रियात्मक व्यक्ति बुद्धि-परीक्षण
(ख) क्रियात्मक समूह बुद्धि-परीक्षण
(ग) शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण
(घ) इनमें से कोई नहीं
उतर.
(क) क्रियात्मक व्यक्ति बुद्धि परीक्षण

प्रश्न 17.
बुद्धि-लब्धि की अवधारणा के विषय में सत्य है
(क) यह व्यक्ति की बुद्धि की मात्रा नहीं है।
(ख) यह बुद्धि की एक ऐसी क्षमता है जो समय-समय पर परिवर्तित हो सकती है।
(ग) यह मानसिक आयु तथा वास्तविक आयु के बीच अनुपात है।
(घ) उपर्युक्त सभी तथ्य सत्य हैं।
उतर.
(घ) उपर्युक्त सभी तथ्य सत्य हैं

प्रश्न 18.
UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 8 Psychological Tests (मनोवैज्ञानिक परीक्षण) 16a
(क) निष्पादन लब्धि
(ख) सृजनात्मक लब्धि
(ग) बुद्धि-लब्धि
(घ) शिक्षा लब्धि
उतर.
(ग) बुद्धि-लब्धि

प्रश्न 19.
बुद्धि-लब्धि ज्ञात करने का सूत्र है|    (2017)
UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 8 Psychological Tests (मनोवैज्ञानिक परीक्षण) 17
उतर.
(क) मानसिक आयु

प्रश्न 20.
यदि किसी व्यक्ति की वास्तविक आयु 20 वर्ष है तथा उसकी मानसिक आयु 30 वर्ष हो तो उसकी बुद्धि-लब्धि क्या होगी?
(क) 150
(ख) 100
(ग) 200
(घ) 125
उतर.
(क) 150

प्रश्न 21.
बिने-साइमन परीक्षण द्वारा मापन किया जाता है
(क) बुद्धि-लब्धि का
(ख) व्यक्तित्व का
(ग) अभिरुचि का
(घ) रुचि का
उतर.
(क) बुद्धि-लब्धि का

प्रश्न 22.
भारत में सर्वप्रथम 1922 में ‘हिन्दुस्तानी बिने परफॉर्मेंस प्वाइंट स्केल को विकसित किया गया (2016)
(क) यू०एन० पारीख द्वारा
(ख) एम० सी० जोशी द्वारा
(ग) एच० सी० राईस द्वारा
(घ) सी० एम० भाटिया द्वारा
उतर.
(ग) एच० सी० राईस द्वारा, वास्तविक आयु

प्रश्न 23.
यदि एक हाईस्कूल के विद्यार्थी की बुद्धि-लब्धि 100 है, तो उसका बौद्धिक स्तर होगा
(क) उच्च
(ख) सामान्य
(ग) निम्न
(घ) मन्द बुद्धि
उतर.
(ख) सामान्य

प्रश्न 24.
मेरिल के अनुसार 142 बुद्धि-लब्धि वाला बालक किस श्रेणी में आता है? (2013)
(क) औसत
(ख) प्रतिभाशाली
(ग) बॉर्डर लाईन
(घ) उत्तम
उतर.
(ख) प्रतिभाशाली,

प्रश्न 25.
व्यक्तित्व परीक्षण के लिए मनोविश्लेषणात्मक विधि का प्रतिपादन किया था
(क) सिग्मण्ड फ्रॉयड ने
(ख) हरमन रोर्शा ने
(ग) एडलर ने
(घ) मन ने
उतर.
(क) सिग्मण्ड फ्रॉयड ने

प्रश्न 26.
व्यक्तित्व-मापन की उस विधि को क्या कहते हैं, जिसके अन्तर्गत सम्बन्धित व्यक्ति के पत्रों, डायरियों तथा व्यक्तिगत प्रलेखों का विश्लेषण किया जाता है तथा उसके विषय में उसके मित्रों एवं रिश्तेदारों से बातचीत की जाती है?
(क) परिस्थिति परीक्षण विधि
(ख) मनोविश्लेषणात्मक विधि
(ग) प्रश्नावली विधि
(घ) जीवन-वृत्त विधि
उतर.
(घ) जीवन-वृत्त विधि

प्रश्न 27.
निम्नलिखित में कौन-सा व्यक्तित्व परीक्षण है?(2013)
(क) क्यूडर का प्राथमिकता प्रपत्र
(ख) कैटिल का संस्कृति युक्त परीक्षण
(ग) बेलक का बालके बोध परीक्षण
(घ) पिण्टनर-पैटर्सन निष्पादन परीक्षण
उतर.
(घ) पिण्टनर’पैटर्सन निष्पादन परीक्षण

प्रश्न 28.
निम्नलिखित में से किसका मापन प्रक्षेपण विधियों द्वारा होता है? (2011)
(क) रुचि
(ख) बुद्धि
(ग) व्यक्तित्व
(घ) अभिक्षमता
उतर.
(ग) व्यक्तित्व

प्रश्न 29.
चित्र कथानक परीक्षण (TAT) व्यक्तित्व मापन की कैसी विधि है?
(क) प्रक्षेपण विधि
(ख) निरीक्षण विधि
(ग) वाक्यपूर्ति विधि
(घ) प्रश्नावली विधि
उतर.
(क) प्रक्षेपण विधि

प्रश्न 30.
निम्नलिखित में कौन चित्र कथानक सम्बन्धी परीक्षण है? (2018)
(क) स्याही धब्बा परीक्षण
(ख) एम०एम०पी०आई०
(ग) प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण
(घ) वाक्य पूर्ति परीक्षण
उतर.
(ग) प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण

प्रश्न 31.
रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण में काड की संख्या होती है। (2008)
(क) 10
(ख) 8
(ग) 5
(घ) 12
उतर.
(क) 10

प्रश्न 32.
‘रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण है – (2008)
(क) बुद्धि-परीक्षण
(ख) उपलब्धि परीक्षण
(ग) रुचि परीक्षण
(घ) व्यक्तित्व परीक्षण
उतर.
(घ) व्यक्तित्व परीक्षण

प्रश्न 33.
“रुचि वह प्रवृति है जिसमें हम किसी व्यक्ति, वस्तु या क्रिया की ओर ध्यान देते हैं, उससे आकर्षिल होते हैं या सन्तुष्टि प्राप्त करते हैं।” यह कथन है – (2013)
(क) जे०पी० गिलफोर्ड का
(ख) इ०के०स्ट्राँग का
(ग) क्यूडर का
(घ) एच० जीस्ट का
उतर.
(क) जे०पी० गिलफोर्ड का

प्रश्न 34.
निम्नलिखित में से कौन रुचि-परीक्षण है? (2012)
(क) अलेक्जेण्डर पास-एलांग परीक्षण,
(ख) क्यूडर प्राथमिकता प्रपत्र
(ग) रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण
(घ) मिनेसोटा असेम्बली परीक्षण
उतर.
(ख) क्यूडर प्राथमिकता प्रपत्र

प्रश्न 35.
एक समय में एक ही व्यक्ति को दिया जाने वाला बुद्धि-परीक्षण कहलाता है- (2008)
(क) सामूहिक बुद्धि-परीक्षण
(ख) वैयक्ति बुद्धि-परीक्षण
(ग) क्रियात्मक बुद्धि-परीक्षण
(घ) सामाजिक बुद्धि-परीक्षण
उतर.
(ख) वैयक्तिक बुद्धि-परीक्षण

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