UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 4 Structure of the Atom

UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 4 Structure of the Atom (परमाणु की संरचना)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 4 Structure of the Atom (परमाणु की संरचना).

पाठ्य – पुस्तक के प्रश्नोत्तर

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 53)

प्रश्न 1.
केनाल किरणें क्या हैं ?
उत्तर-
केनाल किरणें- जब विसर्जन नलिका में बहुत कम दाब पर छिद्र युक्त कैथोड लेकर विद्युत विसर्जन किया जाता है तो छिद्र युक्त कैथोड से एक प्रकार की किरणें निकलती हैं जिनकी (UPBoardSolutions.com) दिशा कैथोड किरणों के विपरीत होती है। ये किरणें धनावेशित कणों से मिलकर बनी होती हैं। जिन्हें प्रोटॉन कहा गया। इनका द्रव्यमान हाइड्रोजन के एक परमाणु के द्रव्यमान के बराबर पाया गया।

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प्रश्न 2.
यदि किसी परमाणु में एक इलेक्ट्रॉन तथा एक प्रोटॉन है तो उसमें कोई आवेश होगा या नहीं ?
उत्तर-
यदि किसी परमाणु में एक इलेक्ट्रॉन तथा एक प्रोटॉन होगा, तो उस पर कोई आवेश नहीं होगा क्योंकि इलेक्ट्रॉन पर उपस्थित ऋण आवेश प्रोटॉन पर उपस्थित धन आवेश को उदासीन कर देगा।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 56)

प्रश्न 1.
परमाणु उदासीन है, इस तथ्य को टामसन के मॉडल के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
टॉमसन के परमाणे मॉडल के अनुसार परमाणु धन आवेशित गोले का बना होता है और इलेक्ट्रॉन उसमें फँसे होते हैं। क्योंकि धनात्मक आवेश तथा इलेक्ट्रॉन पर उपस्थित ऋणात्मक आवेश परिमाण में समान होते हैं।
अतः परमाणु उदासीन होता है।

प्रश्न 2.
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के अनुसार, परमाणु के नाभिक में कौन-सा अवपरमाणुक कण विद्यमान है?
उत्तर-
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के अनुसार, परमाणु के नाभिक में धनावेशित कण प्रोटॉन विद्यमान है।

प्रश्न 3.
तीन कक्षाओं वाले बोर के परमाण मॉडल का चित्र बनाइये।।
उत्तर-
तीन कक्षाओं वाले बोर के परमाणु का मॉडल चित्र निम्न प्रकार से है। तीन कक्षाएँ क्रमशः K, L तथा M द्वारा दिखाई गई हैं
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प्रश्न 4.
क्या अल्फा किरणों का प्रकीर्णन प्रयोग सोने के अतिरिक्त दूसरी धातु की पन्नी से संभव होगा?
उत्तर-
अल्फा किरणों के प्रकीर्णन प्रयोग में सोने की पन्नी को इसलिए चुना गया क्योंकि सोने की परत बहुत पतली अवस्था में प्राप्त हो सकती है अर्थात् 1000 परमाणुओं की मोटाई (UPBoardSolutions.com) के बराबर। यदि दूसरी भारी धातु लें तो हम इतनी पतली परत वाली पन्नी प्राप्त नहीं कर सकते अतः अल्फा किरणों का प्रकीर्णन तो इससे भी संभव होगा परन्तु परिणाम इतने स्पष्ट नहीं होंगे जितने सोने की पन्नी से प्राप्त होंगे।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 56)

प्रश्न 1.
परमाणु के तीन अवपरमाणुक कणों के नाम लिखिए।
उत्तर-
परमाणु के तीन प्रमुख कण हैं-इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, और न्यूट्रॉन।

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प्रश्न 2.
होलियम परमाणु का परमाणु द्रव्यमान 4u है तथा उसके नाभिक में दो प्रोटॉन होते हैं। इसमें कितने न्यूट्रान होंगे?
उत्तर-
न्यूट्रॉनों की संख्या = परमाणु द्रव्यमान – प्रोटॉन की संख्या = 4 – 2 = 2

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 57)

प्रश्न 1.
कार्बन और सोडियम के परमाणुओं के लिए इलेक्ट्रॉन-वितरण लिखिए।
उत्तर-
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प्रश्न 2.
अगर किसी परमाणु का K और L कोश भरा है, तो उस परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या क्या होगी ?
उत्तर-
K (पहला कक्ष)
इसमें इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 2
L (दूसरा कक्ष)
इसमें इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 8
अतः परमाणु में कुल इलेक्ट्रॉन = 2 + 8 = 10.

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 58)

प्रश्न 1.
क्लोरीन, सल्फर और मैग्नीशियम की परमाणु संख्या से आप इनकी संयोजकता कैसे प्राप्त करेंगे?
उत्तर-
(i) क्लोरीन परमाणु संख्या = 17
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 8, 7
क्लोरीन के बाह्यतम कोश को पूर्ण करने के लिए केवल 1 इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता होती है। इसलिए इसकी संयोजकता 1 है।
(ii) सल्फर परमाणु क्रमांक = 16
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 8, 6
क्योंकि इसके बाह्यतम कोश में 6 इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं।
अत: इसे पूर्ण रूप से भरने के लिए 2 इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता होती है। अतः इसकी संयोजकता 2 है।
(iii) मैग्नीशियम परमाणु क्रमांक = 12
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 8, 2
क्योंकि इसके बाह्यतम कोश में 2 इलेक्ट्रॉन हैं
अतः इसकी संयोजकता 2 होगी।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 59)

प्रश्न 1.
यदि किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 8 है और प्रोटॉनों की संख्या भी 8 है तब,
(a) परमाणु की परमाणुक संख्या क्या है ?
(b) परमाणु का क्या आवेश है ?
उत्तर-
(a) परमाणु संख्या = प्रोटॉनों की संख्या = 8
(b) प्रोटॉनों की संख्या = 8
धनात्मक आवेश = 8
इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 8
ऋणात्मक आवेश = 8
कुल आवेश = + 8 (- 8) = 0

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प्रश्न 2.
पाठ्य-पुस्तक की सारणी 4.1 की सहायता से ऑक्सीजन और सल्फर परमाणुओं की द्रव्यमान संख्या ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
(i) ऑक्सीजन की द्रव्यमान संख्या = प्रोटॉनों की संख्या + न्यूट्रॉनों की संख्या = 8 + 8 = 16 u
(ii) सल्फर की परमाणु द्रव्यमान संख्या = प्रोटॉनों की संख्या + न्यूट्रॉनों की संख्या = 16 + 16 = 32 u

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 60)

प्रश्न 1.
चिन्ह H, D और T के लिए प्रत्येक में पाए जाने वाले तीन अवपरमाणुक कणों को सारणीबद्ध कीजिए।
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प्रश्न 2.
समस्थानिक और समभारिक के किसी एक युग्म का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।
उत्तर-
कार्बन के समस्थानिक हैं
[latex]_{ 6 }^{ 12 }{ C }[/latex] और [latex]_{ 6 }^{ 14 }{ C }[/latex]
[latex]_{ 6 }^{ 12 }{ C }[/latex] (कार्बन-12)
प्रोटॉनों की संख्या = 8
इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 6
न्यूट्रॉन की संख्या = 12 – 6 = 6
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 4
[latex]_{ 6 }^{ 14 }{ C }[/latex] (कार्बन-14)
इलेक्ट्रॉन की संख्या = 6
न्यूट्रॉन की संख्या = 14 – 6 = 8
प्रोटॉन की संख्या = 6
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 4
समभारिक
[latex]_{ 18 }^{ 40 }{ Ar }[/latex] आर [latex]_{ 20 }^{ 40 }{ Ca }[/latex]
[latex]_{ 18 }^{ 40 }{ Ar }[/latex] (ऑर्गन)
इलेक्ट्रॉन की संख्या = 18
प्रोटॉन की संख्या = 18
न्यूट्रॉन की संख्या = 40 – 18 = 22
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 8, 8, 4
[latex]_{ 20 }^{ 40 }{ Ca }[/latex] (कैल्सियम)
इलेक्ट्रॉन की संख्या = 20
प्रोटॉन की संख्या = 20
न्यूट्रॉन की संख्या = 40 – 20 = 20
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 8, 8, 2

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अभ्यास के प्रश्न (पृष्ठ संख्या 61 – 63)

प्रश्न 1.
इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के गुणों की तुलना कीजिए।
उत्तर-
इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन व न्यूटॉन के गुणों की तुलना-
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प्रश्न 2.
जे. जे. टामसन के परमाणु मॉडल की क्या सीमाएँ हैं ?
उत्तर-
जे.जे. टामसन ने परमाणु को एक गोले के रूप में प्रतिपादित किया, जिसमें प्रोटॉनों की उपस्थिति के कारण धनात्मक आवेश होता है और इलेक्ट्रॉन इसके अन्दर धंसे होते हैं। टॉमसन के पास इसे प्रायोगिक रूप में सिद्ध करने का कोई प्रमाण नहीं था और इस मॉडल द्वारा दूसरे वैज्ञानिकों द्वारा किये गये प्रयोगों के परिणामों को भी नहीं समझाया जा सकता है।

प्रश्न 3.
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की क्या सीमाएँ हैं ?
उत्तर –
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की कमियाँ-रदरफोर्ड (UPBoardSolutions.com) ने प्रस्तावित किया कि इलेक्ट्रॉन धनावेशित नाभिक के चारों ओर घूमते हैं (या चक्कर लगाते हैं)।
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चित्र- चक्कर लगाता इलेक्ट्रॉन नाभिक में प्रवेश करता हुआ
अतः नाभिक व घूमने वाले इलेक्ट्रॉनों के मध्य आकर्षण बल इलेक्ट्रॉनों के अपकेन्द्रिय बल से संतुलित हो जाता है। परन्तु जब आवेशित वस्तु वृत्ताकार पथ पर घूमती है तो वह विकिरण उत्सर्जित करती है, जिससे ऊर्जा में हानि होती है। इसके फलस्वरूप इलेक्ट्रॉनों को नाभिक में गिर जाना चाहिए। (UPBoardSolutions.com) अगर ऐसा होता तो परमाणु अस्थिर हो जायेगा। परन्तु परमाणु स्थायी है। इन सब तथ्यों की रदरफोर्ड व्याख्या न कर सका और परमाणु की स्थिरता के कारण की व्याख्या भी नहीं कर सका।

प्रश्न 4.
बोर के परमाणु मॉडल की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
बोर का परमाणु मॉडल- रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की त्रुटियों का निवारण करके बोर ने परमाणु का नया मॉडल प्रस्तावित किया। उसकी मुख्य धाराएँ निम्नलिखित हैं|

  1. इलेक्ट्रॉन परमाणु के नाभिक के चारों ओर निश्चित कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं जिन्हें कक्ष कहते हैं।
  2. एक इलेक्ट्रॉन जब किसी कक्ष में चक्कर लगाता है तो उसमें निश्चित ऊर्जा होती है और ऊर्जा का विकिरण नहीं होता।
  3. प्रत्येक कक्ष की अपनी निश्चित ऊर्जा होती है। इसीलिए उन्हें ऊर्जा स्तर कहा जाता है।
    UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 4 Structure of the Atom image - 6
  4. इन ऊर्जा स्तरों को K, L, M, N… द्वारा या 1, 2, 3, 4 … द्वारा प्रदर्शित करते हैं।

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प्रश्न 5.
इस अध्याय में दिए सभी परमाणु मॉडलों की तुलना कीजिए।
उत्तर-
इस अध्याय में टॉमसन, रदरफोर्ड व बोर के परमाणु मॉडल दिये गये हैं। इनकी तुलना निम्न प्रकार से कर सकते हैं-
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प्रश्न 6.
पहले अठारह तत्त्वों के विभिन्न कक्षों में इलेक्ट्रॉन वितरण के नियमों को लिखिए।
उत्तर-
प्रथम 18 तत्त्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखने के लिए प्रयोग किए गए नियम निम्न प्रकार से हैं

  1. किसी भी कक्ष में उपस्थित इलेक्ट्रॉन की संख्या एक सूत्र 2n² द्वारा ज्ञात की जाती है, जहाँ n = कक्ष की संख्या या ऊर्जा स्तर की संख्या। अतः अधिकतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या
    पहले कक्ष (K) में होगी = 2 x 1² = 2
    दूसरे कक्ष (L) में होगी = 2 x 2² = 8
    तीसरे कक्ष (M) में होगी = 2 x 3² = 18
    चौथे कक्ष (N) में होगी = 2 x 4² = 32
  2. बाह्यतम कोष में अधिकतम आठ इलेक्ट्रॉन रखे जा सकते हैं।
  3. पहले कक्ष में इलेक्ट्रॉनों की संख्या पूर्ण होने पर शेष इलेक्ट्रॉन दूसरे कक्ष में जा सकते हैं अर्थात् कक्ष क्रमानुसार ही भरे जाते हैं।

प्रश्न 7.
सिलिकॉन व ऑक्सीजन का उदाहरण लेते हुए संयोजकता की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
किसी तत्त्व की संयोग करने की क्षमता को उसकी संयोजकता कहते हैं। यह उस परमाणु के बाह्यतम कोश (कक्ष) में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या से ज्ञात (UPBoardSolutions.com) की जाती है।
यदि बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या चार या उससे कम हो तो संयोजकता = बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या।
उदाहरण- सिलिकॉन (Si) की परमाणु संख्या 14 है।
अतः इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 8, 4
सिलिकॉन की संयोजकता = 4
यदि बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या चार से अधिक हो तो
संयोजकता = 8 – (बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या)
उदाहरण- ऑक्सीजन (O) की परमाणु संख्या 8 है।
इसका इलेक्ट्रॉनिक वितरण = 2, 6
अतः इसकी संयोजकता = 8 – 6 = 2

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प्रश्न 8.
उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए-परमाणु संख्या, द्रव्यमान संख्या, समस्थानिक और समभारिक। समस्थानिकों के कोई दो उपयोग लिखिए।
उत्तर-

  1. परमाणु संख्या – परमाणु के नाभिक में पाए जाने वाले (धनावेशित कण) प्रोटॉनों की संख्या को परमाणु संख्या कहते हैं।
    इसे Z द्वारा दर्शाया जाता है।
    उदाहरण-

    • कार्बन की परमाणु संख्या 6 है क्योंकि इसके नाभिक में 6 प्रोटॉन पाए जाते हैं।
    • ऑक्सीजन की परमाणु संख्या 8 है क्योंकि ऑक्सीजन के परमाणु के नाभिक में 8 प्रोटॉन पाए जाते हैं।
  2. द्रव्यमान संख्या – परमाणु के नाभिक में पाए जाने वाले प्रोटॉन व न्यूट्रॉन की कुल संख्या को द्रव्यमान संख्या कहते हैं।
    द्रव्यमान संख्या = प्रोटॉन की संख्या + न्यूट्रॉन की संख्या
    उदाहरण-

    • ऑक्सीजन की द्रव्यमान संख्या (परमाणु द्रव्यमान) 16 है क्योंकि ऑक्सीजन के परमाणु के नाभिक में 8 प्रोटॉन व 8 न्यूट्रॉन है।
      अतः द्रव्यमान संख्या = 8 + 8 = 16
    • सोडियम की द्रव्यमान संख्या 23 है क्योंकि सोडियम के नाभिक में 11 प्रोटॉन व 12 न्यूट्रॉन हैं।
      अतः द्रव्यमान संख्या = 11 + 12 = 23

समस्थानिक – एक ही तत्त्व के वे परमाणु जिनके परमाणु संख्या समान परन्तु द्रव्यमान संख्या भिन्न-भिन्न हों, समस्थानिक कहलाते हैं।
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समस्थानिकों के दो उपयोग-

  1. यूरेनियम के एक समस्थानिक का उपयोग परमाणु भट्टी में ईंधन के रूप में किया जाता है।
  2. कैंसर के उपचार में कोबाल्ट के एक समस्थानिक का उपयोग होता है।
  3. पेंघा रोग के उपचार में आयोडीन के समस्थानिक का उपयोग होता है।

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प्रश्न 9.
Na+ के पूरी तरह से भरे हुए K वे L कोश होते हैं- व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
Na की परमाणु संख्या = 11
Na+ में उपस्थित इलेक्ट्रॉन की संख्या = 11 – 1 = 10
Na+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = K, L = 2, 8
अत: Na+ में K तथा L कोश पूरी तरह भरे होते हैं।

प्रश्न 10.
अगर ब्रोमीन परमाणु दो समस्थानिकों [[latex]_{ 35 }^{ 79 }{ Br }[/latex] (49.7%) तथा [latex]_{ 35 }^{ 81 }{ Br }[/latex] (50.3%)] के रूप में हैं, तो ब्रोमीन परमाणु के औसत परमाणु द्रव्यमान की गणना कीजिए।
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प्रश्न 11.
एक तत्त्व X का परमाणु द्रव्यमान 16.2 u है तो इसके किसी एक नमूने में समस्थानिक [latex]_{ 8 }^{ 16 }{ X }[/latex] और [latex]_{ 8 }^{ 18 }{ X }[/latex] का प्रतिशत क्या होगा?
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प्रश्न 12.
यदि तत्त्व का Z = 3 हो तो उस तत्त्व की संयोजकता क्या होगी? उस तत्त्व का नाम भी लिखिए।
उत्तर-
दिया है- Z = 3
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 1
तत्त्व की संयोजकता = 1
तत्त्व का नाम = लीथियम (Li)

प्रश्न 13.
दो परमाणु स्पीशीज के केन्द्रकों का संघटन नीचे दिया गया है
प्रोटॉन = 6(X) 6(Y)
न्यूट्रॉन = 6(X) 8(Y)
X और Y की द्रव्यमान संख्या ज्ञात कीजिए। इन दोनों स्पीशीज में क्या सम्बन्ध है?
हल-
X की द्रव्यमान संख्या = प्रोटॉन + न्यूट्रॉन = 6 + 6 = 12u
Y की द्रव्यमान संख्या = प्रोटॉन + न्यूट्रॉन = 6 + 8 = 14u
X और Y दोनों में प्रोटॉनों की संख्या समांन है अर्थात् दोनों की परमाणु संख्या समान है। परन्तु उनकी द्रव्यमान संख्या भिन्न है।
अतः दोनों एक ही तत्त्व के समस्थानिक हैं।

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प्रश्न 14.
निम्नलिखित कथनों में से सही पर “T” और गलत पर “F” लिखिए
(a) जे. जे. टॉमसन ने यह प्रस्तावित किया था कि परमाणु के केन्द्रक में केवल न्यूक्लीयॉन्स होते हैं।
(b) एक इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन मिलकर न्यूट्रॉन का निर्माण करते हैं इसलिए यह अनावेशित होता है।
(c) इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान प्रोटॉन से लगभग [latex]\frac { 1 }{ 2000 }[/latex] गुना होता है।
(d) आयोडीन के समस्थानिक का इस्तेमाल टिंक्चर आयोडीन बनाने में होता है। इसका उपयोग दवा के रूप में होता है।
उत्तर-
(a) F, (b) F, (c) T, (d) T.

प्रश्न संख्या 15, 16, 17 और 18 में सही के सामने (✓) का चिह्न और गलत के सामने (✗) का चिह्न लगाइए।

प्रश्न 15. रदरफोर्ड का अल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग किसकी खोज के लिए उत्तरदायी था
(a) परमाणु केन्द्रक
(b) इलेक्ट्रॉन
(c) प्रोटॉन
(d) न्यूट्रॉन
उत्तर-
(a) ✓
(b) ✗
(c) ✗
(d) ✗

प्रश्न 16.
एक तत्त्वे के समस्थानिक में होते हैं
(a) समान भौतिक गुण
(b) भिन्न रासायनिक गुण
(c) न्यूट्रॉनों की अलग-अलग संख्या
(d) भिन्न परमाणु संख्या
उत्तर-
(a) ✗
(b) ✗
(c) ✓
(d) ✗

प्रश्न 17.
Cl आयन में संयोजकत्ना-इलेक्ट्रॉनों की संख्या है
(a) 16
(b) 8
(c) 17
(d) 18
उत्तर-
(a) ✗
(b) ✓
(c) ✗
(d) ✗

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प्रश्न 18.
सोडियम का सही इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न में कौन-सा है ?
(a) 2, 8
(b) 8, 2, 1
(c) 2, 1, 8
(d) 2, 8, 1
उत्तर-
(a) ✗
(b) ✗
(c) ✗
(d) ✓

प्रश्न 19.
निम्नलिखित सारणी को पूरा कीजिए-
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UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 4 Structure of the Atom image - 12

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कैथोड किरणों से उत्पन्न होने वाली दूसरी किरण का नाम बताइये जिसका उपयोग चिकित्सा क्षेत्र में किया जाता है।
उत्तर-
कैथोड किरणों से उत्पन्न होने वाली दूसरी किरण का नाम एक्स-किरणें (X-Rays) है जिसका उपयोग चिकित्सा क्षेत्र में किया जाता है।

प्रश्न 2.
X-किरणें किन्हें कहते हैं अथवा X-किरणों को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
X-किरणें (X-Rays)- जब कैथोड किरणें उच्च गलनांक (UPBoardSolutions.com) की किसी धातु जैसे टंगस्टन (W) के लक्ष्य से टकराती हैं तो अत्यधिक ऊर्जा वाली आवेशरहित किरणे प्राप्त होती हैं, जिन्हें x-किरणें कहते हैं।

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प्रश्न 3.
कैथोड किरणों के दो गुण लिखिए।
उत्तर-
कैथोड किरणों के दो गुण-
(1) ये किरणें ऋणावेशित होती हैं।
(2) इनमें गतिज ऊर्जा होती है।

प्रश्न 4.
X-किरणों की खोज किसने की थी ?
उत्तर-
X-किरणों की खोज डब्ल्यू. के. रान्टजन (W. K. Rontgen) ने की थी।

प्रश्न 5.
X-किरणें किस प्रकार उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर-
कैथोड किरणों के उच्च गलनांक की भारी धातु से टकराने से X-किरणें उत्पन्न होती हैं।

प्रश्न 6.
रान्टजन किरणें किन्हें कहते हैं और क्यों?
उत्तर-
X-किरणों को उसके खोजकर्ता के नाम पर रान्टजन किरणें भी कहते हैं।

प्रश्न 7.
धन किरणें’ किन्हें कहते हैं ? अथवा धन किरणों को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
धन किरणें या ऐनोड किरणें (Positive Rays or Anode Rays)- जब विसर्जन नलिका प्रयोग को छिद्रयुक्त कैथोड से दुहराते हैं तो छिद्रयुक्त कैथोड के पीछे परदे पर एक मन्द दीप्ति दिखाई देती है। यह दीप्ति किन्हीं धनावेशित कणों से बनी किरणों की उपस्थिति के कारण होती है। इन किरणों को धन किरणें या ऐनोड किरणें कहते हैं।

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प्रश्न 8.
धन किरणों या ऐनोड किरणों की खोज किसने की थी ?
उत्तर-
धन किरणों या ऐनोड किरणों की खोज ई. गोल्डस्टीन (E. Goldstein) ने की थी।

प्रश्न 9.
ऐनोड किरणों को केनाल किरणें क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
ऐनोड किरणों को केनाल किरणें (Canal Rays) भी कहा जाता है, क्योंकि ये कैथोड के छिद्रों या केनाल में से होकर निकलती हैं।

प्रश्न 10.
धन किरणों को ऐनोड किरणें क्यों कहते हैं?
उत्तर-
धन किरणे ऐनोड से कैथोडं की ओर चलती हैं, इसलिए इन्हें ऐनोंड किरणें कहते हैं।

प्रश्न 11.
कैथोड एवं ऐनोड किरणों का कोई एक गुण लिखिए जिसमें दोनों समानता दशति हैं।
उत्तर-
दोनों में गतिज ऊर्जा होती है जिससे दोनों ही (UPBoardSolutions.com) अपने मार्ग में रखे हल्के पहिये को घुमा देती हैं।

प्रश्न 12.
कैथोड किरणों का अध्ययन किसने किया ?
उत्तर-
कैथोड किरणों का अध्ययन सर जे.जे.टॉमसने ने 1897 में किया था।

प्रश्न 13.
कैथोड किरणें कैसे प्राप्त करते हैं ?
उत्तर-
कैथोड किरणों को प्राप्त करना-विसर्जन नलिका में निम्न दाब (लगभग 0.001 मिमी पारे के तल) पर उच्च विभव पर विद्युत प्रवाहित करके कैथोड किरणें प्राप्त करते हैं।

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प्रश्न 14.
कैसे सिद्ध होता है कि कैथोड किरणें सीधी रेखा में चलती हैं ?
उत्तर-
यदि कैथोड किरणों के मार्ग में कोई ठोस वस्तु रख दी जाये तो उसकी छाया दिखाई देती है। इससे सिद्ध होता है कि कैथोड किरणें सीधी रेखा में चलती हैं।

प्रश्न 15.
कैसे सिद्ध होता है कि कैथोड किरणें गतिज ऊर्जा युक्त कणों से बनी हैं ?
उत्तर-
यदि कैथोड किरणों के मार्ग में किसी धातु की हल्की चकरी रख दी जाये तो चकरी घूमने लगती है। इससे सिद्ध होता है कि कैथोड किरणें ऐसे कणों से बनी हैं जिनमें गतिज ऊजी होती है।

प्रश्न 16.
कैसे सिद्ध होता है कि कैथोड किरणें ऋणावेशित कण हैं ?
उत्तर-
कैथोड किरणें जब विद्युत क्षेत्र से होकर गुजरती हैं तो धन प्लेट की ओर आकर्षित होती हैं। इससे सिद्ध होता है कि कैथोड किरणें ऋणावेशित कणों से बनी होती हैं।

प्रश्न 17.
प्रोटॉन के आवेश तथा द्रव्यमान का अनुपात (e/m) कितना होता है ?
उत्तर-प्रोटॉन के आवेश तथा द्रव्यमान का अनुपात (e/m) का मान 9.58 x 104 कूलॉम प्रति ग्राम होता है।

प्रश्न 18.
परमाणु का पहला मॉडल किस वैज्ञानिक ने दिया ?
उत्तर-
परमाणु को पहला मॉडल जे. जे. टॉमसन (J. J. Thomson) ने दिया।

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प्रश्न 19.
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के दो दोष कौन-कौन से थे ?
अथवा
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के महत्त्वपूर्ण दोष क्या
उत्तर-
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के दोष- रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के दो दोष निम्नलिखित हैं
(1) परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या न कर पाना ।
(2) परमाणु के विभिन्न स्पेक्ट्रम की व्याख्या न करे पाना।

प्रश्न 20.
नील बोर के परमाणु मॉडल के अनुसार जब इलेक्ट्रॉन एक ही ऊर्जा स्तर में घूमता है तब वह ऊर्जा का उत्सर्जन करता है या अवशोषण या इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता, उत्तर दीजिए।
उत्तर-
इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता।

प्रश्न 21.
कक्षा या ऊर्जा स्तर किसे कहते हैं ?
उत्तर-
कक्षा या ऊर्जा स्तर (Shells or Energy Levels)- “नाभिक के चारों ओर निश्चित ऊर्जा वाले वे पथ जिनमें इलेक्ट्रॉन घूमते रहते हैं: कक्षा, कोश या ऊर्जा-स्तर कहलाते हैं।”

प्रश्न 22.
बोर के परमाणु मॉडल में (K, L, M, N) कक्षाओं में से नाभिक की निकटतम कक्षा कौन-सी है ?
उत्तर-
बोर के परमाणु मॉडल में K कक्षा नाभिक (UPBoardSolutions.com) की निकटतम कक्षा है।

प्रश्न 23.
किसी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकतम संख्या कितनी हो सकती है?
उत्तर-
किसी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की अधिकतम संख्या 2n² हो सकती है जहाँ कक्षा का क्रमांक है।

प्रश्न 24.
सबसे बाहरी कक्षा (कोश) में और उसके अन्दर वाली कक्षा में अधिकतम कितने इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं ?
उत्तर-
सबसे बाहरी कक्षा (कोश) में अधिकतम 8 इलेक्ट्रॉन तथा उसके अन्दर वाली कक्षा (कोश) में अधिकतम 18 इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं।

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प्रश्न 25.
संयोजी कोश को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
संयोजी कोश-किसी परमाणु के बाह्यतम कोश को संयोजी कोश कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
टॉमसन के परमाणु मॉडल के दो मुख्य अभिगृहीतियाँ बताइये।
उत्तर-
(i) परमाणु धन आवेशित गीले को बना होता है और इलेक्ट्रॉन उसमें फँसे होते हैं।
(ii) ऋणात्मक और धनात्मक आवेश परिमाण में समान होते हैं। इसलिए परमाणु वैद्युतीय रूप से उदासीन होते हैं।

प्रश्न 2.
समस्थानिक तथा समभारिक में दो अन्तर लिखिए।
उत्तर-
समस्थानिक (Isotopes)-
(1) परमाणु संख्या समान लेकिन द्रव्यमान संख्या भिन्न होती है।
(2) प्रोटॉनों की संख्या समान होती है।
समभारिक (Isobars)-
(1) परमाणु संख्या अलग-अलग होती है लेकिन द्रव्यमान संख्या समान होती है।
(2) प्रोटॉनों की संख्या भिन्न होती है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सारणी में कुछ तत्त्वों की द्रव्यमान संख्या तथा परमाणु संख्या दी गई है :
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(a) उपर्युक्त सारणी से एक जोड़ा समभारिक चुनिए।
(b) उपर्युक्त सारणी में दिये गए तत्त्व ‘B’ की संयोजकता क्या होगी ?
उत्तर-
(a) D तथा E समभारिक हैं क्योंकि इनकी परमाणु संख्याएँ (40) परन्तु भिन्न-भिन्न द्रव्यमान संख्याएँ क्रमशः 18 तथा 20 हैं।
(b) B का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 5
अत: B की संयोजकता = 3, 5

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प्रश्न 4.
एक तत्त्व ‘X’ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 2 है।
(a) इलेक्ट्रॉन की संख्या ज्ञात कीजिए जो तत्व x में उपस्थित है।
(b) इसकी परमाणु संख्या लिखिए।
(c) यह तत्त्व ‘X’ एक धातु है या अधातु?
(d) तत्त्व X की संयोजकता ज्ञात कीजिए।
हल-
(a) X में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 2 + 8 + 2 = 12
(b) X की परमाणु संख्या = 12
(c) तत्त्व X एक धातु है।
(d) X की संयोजकता = 2

प्रश्न 5.
इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन के गुणों की तुलना कीजिए तथा इनकी परमाणु में स्थिति एवं इनके खोजकर्ता का नाम लिखिए।
अथवा
इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन की आवेश एवं (UPBoardSolutions.com) द्रव्यमान के तुलना कीजिए। इन कणों के खोजकर्ता का नाम एवं परमाणु क्रमांक में इनका स्थान लिखिए।
उत्तर-
इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन के गुणों की तुलना-
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प्रश्न 6.
रदरफोर्ड के प्रयोग का चित्र बनाइये तथा इसके निष्कर्ष लिखिये।
उत्तर-
रदरफोर्ड के प्रयोग का चित्र-
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रदरफोर्ड के प्रयोग के निष्कर्ष
(1) प्रयोग में परमाणु के केन्द्रीय भाग से टकराकर कुछ α-कण वापस लौट आते हैं इससे निष्कर्ष निकलता है कि परमाणु का केन्द्रक ठोस, अभेद्य तथा प्रतिकर्षी है।
(2) अधिकांश α-कण स्वर्ण पत्र में बिना छेद किये सरल रेखा से बाहर निकल जाते हैं इससे निष्कर्ष निकलता है कि परमाणु खोखला है।
(3) कुछ α-कण विचलित हो जाते हैं इससे निष्कर्ष निकलता है कि परमाणु में ऋणावेशित कण हैं।

प्रश्न 7.
(a) नीचे दी गई स्पीशीज में किसमें 18 इलेक्ट्रॉन हैं ?
Ca2+, K+, Na, Cl, Ar
(b) किसी तत्त्व के सभी समस्थानिकों के रासायनिक गुण एकसमान होते हैं। कारण लिखिए।
उत्तर-
(a) Ca2+, K+, Cl, Ar
(b) समस्थानिकों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान है, तब उनका इलेक्ट्रॉन विन्यास तथा संयोजकता इलेक्ट्रॉन की संख्या भी समान होगी।
अतः समस्थानिकों के रासायनिक गुण एकसमान होते हैं।

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प्रश्न 8.
नील बोर द्वारा अपने परमाणु मॉडल में शामिल नई संकल्पनाएँ बताइए। इस मॉडल को दिखाने के लिए एक रेखाचित्र खींचिए।
उत्तर-
बोर के मॉडल में शामिल नई संकल्पनाएँ हैं
(i) निश्चित ऊर्जायुक्त कुछ खास कक्षाएँ ही स्वीकार्य हैं।
(ii) जब तक कोई इलेक्ट्रॉन कण ऊर्जा स्तर में गतिशील है, इसमें ऊर्जा की हानि या लाभ नहीं होता।
(iii) जब इलेक्ट्रॉन ऊर्जा ग्रहण करते हैं तो उच्च ऊर्जा स्तर में पहुँच जाते हैं। जब ऊर्जा की हानि होती है तो निम्न ऊर्जा स्तर पर आ जाते हैं। इसे चित्र द्वारा दिखाया गया है।
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प्रश्न 9.
एक तत्त्व [latex]_{ 8 }^{ 16 }{ X }[/latex] के रूप में निरूपित होता है। ज्ञात कीजिए-
(a) तत्त्व x में इलेक्ट्रॉनों की संख्या,
(b) तत्त्व x की द्रव्यमान संख्या,
(c) तत्त्व x में न्यूट्रॉनों की संख्या।।
हल-
(a) तत्त्व x में इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 8
(b) तत्त्व x की द्रव्यमान संख्या = 16
(c) तत्त्व x में न्यूट्रॉनों की संख्या = 16 – 8 = 8

प्रश्न 10.
(a) किसी परमाणु के तीन अवपरमाणुक कणों के नाम लिखिए।
(b) किसी तत्त्व में परमाणु की L कक्षा में पाँच इलेक्ट्रॉन हैं-
(i) तत्त्व की परमाणु संख्या क्या है ?
(ii) इसकी संयोजकता व्यक्त कीजिए।
(iii) तत्त्व को पहचानिए तथा इसका नाम लिखिए।
हल-
(a) किसी परमाणु के तीन अवपरमाणुक कणों के नाम हैं : इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन।
(b) K कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 2
L कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 5
(i) तत्त्व की परमाणु संख्या 2 + 5 = 7
(ii) तत्त्व की संयोजकता।
(iii) तत्त्व नाइट्रोजन (N) है।

प्रश्न 11.
(a) हीलियम तथा बेरीलियमें दोनों में ही संयोजकता कक्षा में 2 इलेक्ट्रॉन होते हैं। हीलियम एक अक्रिय गैस है जबकि बेरीलियम एक धातु है। पुष्टि कीजिए।
(b) हाइड्रोजन का अस्तित्व तीन समस्थानिक रूपों में होता है। हाइड्रोजन के समस्थानिक रासायनिक रूप से समान क्यों होते हैं ?
उत्तर-
(a) हीलियम के बाह्यतम कक्ष में इलेक्ट्रॉनों की संख्या उसकी अधिकतम संख्या के बराबर है अतः हीलियम एक अक्रिय गैस है। बेरीलियम तत्त्व धातु है क्योंकि यह इलेक्ट्रॉन त्याग करके धनात्मक आयन बनाता है।
(b) समस्थानिकों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान है। अतः उनका इलेक्ट्रॉन विन्यास और संयोजकता इलेक्ट्रॉन की संख्या भी समान होती है। अत: हाइड्रोजन के समस्थानिक रासायनिक रूप से समान होते हैं।

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प्रश्न 12.
समस्थानिक और समभारिक क्या होते हैं ? क्लोरीन के दो समस्थानिक कौन-कौन से हैं ? क्लोरीन के प्राकृतिक नमूने में इनका क्या अनुपात होता है ? क्लोरीन परमाणु का औसत परमाणु द्रव्यमान परिकलित कीजिए।
उत्तर-
समस्थानिक- एक ही तत्त्व के परमाणु जिनकी परमाणु संख्या समान तथा द्रव्यमान भिन्न होता है, समस्थानिक कहलाते हैं।
समभारिक- वे परमाणु जिनकी द्रव्यमान संख्या समान होती है परन्तु परमाणु क्रमांक भिन्न होते हैं, समभारिक कहलाते हैं।
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प्रश्न 13.
परमाणु नाभिक के आवश्यक गुणधर्मों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
परमाणु नाभिक के गुणधर्म :
(i) परमाणु नाभिक धनावेश युक्त होता है।
(ii) परमाणु का सम्पूर्ण द्रव्यमान उसके नाभिक में ही स्थित होता है।
(iii) परमाणु नाभिक की त्रिज्या 10-13 से 10-12 cm होती है, जबकि सम्पूर्ण परमाणु की त्रिज्या लगभग 10-8 cm होती है।
अत: परमाणु का अधिकांश भाग रिक्त होता है।

प्रश्न 14.
टॉमसन परमाणु मॉडल, रदरफोर्ड परमाणु मॉडल तथा बोर परमाणु मॉडलों की तुलना कीजिए।
उत्तर-
टॉमसन परमाणु मॉडल – टॉमसन ने तरबूज के समान परमाणु मॉडल प्रस्तावित किया जिसमें परमाणु का धनावेश तरबूज के खाने वाले भाग की भाँति फैला हुआ है, जबकि इलेक्ट्रॉन (ऋणावेश) धनावेशित गोले में तरबूज के बीज की भाँति फँसे हैं। ऋणावेश तथा धनावेश परिमाण में समान होते हैं। इसलिए परमाणु विद्युतीय उदासीन होता है।

रदरफोर्ड परमाणु मॉडल – इसके अनुसार, परमाणु में धनावेशित केन्द्र, जिसे नाभिक कहते हैं, होता है और इलेक्ट्रॉन स्थिर कक्षा में चक्कर लगाते हैं। नाभिक का आकार, परमाणु के आकार की तुलना में अत्यन्त कम या उपेक्षणीय होता है।

बोर परमाणु मॉडल – बोर परमाणु मॉडल के अनुसार इलेक्ट्रॉन केवल कुछ निश्चित कक्षाओं में ही चक्कर लगा सकते हैं, जिन्हें इलेक्ट्रॉनों की विविक्त कक्षा कहते हैं। जब इलेक्ट्रॉन इन विविक्त कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं तो उनकी ऊर्जा का विकिरण नहीं होता।

प्रश्न 15.
सिलिकॉन और ऑक्सीजन का उदाहरण लेते हुए संयोजकता की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
परमाणु के अन्तिम कोश (बाह्यतम कोश) में विद्यमान इलेक्ट्रॉन, संयोजी इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं। किसी परमाणु द्वारा स्थायित्व (अष्टक) प्राप्त करने के लिए, त्यागे गए या प्राप्त या साझा किए गए इलेक्ट्रॉनों की संख्या, उसकी संयोजकता कहलाती है। परमाणु द्वारा अष्टक पूरा करने की क्रिया में संयोजी इलेक्ट्रॉनों का ही स्थानान्तरण या साझा होता है अर्थात संयोजी इलेक्ट्रॉन ही परमाणु की संयोजकता निर्धारित करते हैं। उदाहरणार्थ-सिलिकॉन का परमाणु क्रमांक 14 है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 4 होगा। इसमें 4 संयोजी इलेक्ट्रॉन उपस्थित हैं अर्थात् इसकी संयोजकता 4 है।
ऑक्सीजन का परमाणु क्रमांक 8 है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 6 होगा। इसमें 6 संयोजी इलेक्ट्रॉन उपस्थित हैं। ऑक्सीजन परमाणु की प्रवृत्ति दो इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके अष्टक प्रदान करने की होती है। अतः इसकी संयोजकता 2 है।

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प्रश्न 16.
Na+, K+, Al3-, O2- और F में कौन-से समइलेक्ट्रॉनी हैं ?
उत्तर-
समइलेक्ट्रॉनी स्पीशीज में इलेक्ट्रॉन की संख्या समान होती है।
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उपर्युक्त सारणी से स्पष्ट है कि Na+, K+, Al3-, O2- और F में 10-10 इलेक्ट्रॉन हैं। अतः ये समइलेक्ट्रॉनी हैं।

प्रश्न 17.
रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल क्या है?
उत्तर-
रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल (Atomic Model of Rutherford) – रदरफोर्ड ने अपने α-कणों के प्रकीर्णन के प्रयोग द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर परमाणु का एक मॉडल प्रस्तुत किया जो निम्न प्रकार है

  1. परमाणु का अधिकांश द्रव्यमान इसके केन्द्र में निहित है अतः परमाणु के केन्द्रीय भाग में प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन विद्यमान हैं। ये कण न्यूक्लिऑन कहलाते हैं। परमाणु के इस सूक्ष्म केन्द्र को नाभिक या केन्द्रक कहते हैं।
  2. केन्द्रक के चारों ओर का अधिकांश भाग रिक्त होता है।
    UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 4 Structure of the Atom image - 19
  3. परमाणु के केन्द्रक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन गतिशील होते हैं।
  4. नाभिक का आकार परमाणु के आकार की तुलना में बहुत छोटा होता है।
  5. चूँकि परमाणु उदासीन होता है अतः परमाणु में उपस्थित प्रोटॉन एवं इलेक्ट्रॉन की संख्या बराबर होती है।

प्रश्न 18.
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के महत्त्वपूर्ण दोषों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के महत्त्वपूर्ण दोषों की व्याख्या (Explanation of Defects of Rutherford’s Atomic Model)-

  1. परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या न कर पाना – रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल का पहला दोष यह है कि यह परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या नहीं करता है। मैक्सवैल के अनुसार, कोई भी आवेशित कण गतिमान होने पर निरन्तर विद्युत चुम्बकीय तरंगों को विकरित करेगा, जिसमें उसकी ऊर्जा में लगातार कमी होते रहने से उसे अपनी राह (कक्षा) घटानी पड़ेगी और ऐसा करते हुए अन्त में इलेक्ट्रॉन नाभिक में गिरकर नष्ट हो जायेगा परन्तु वास्तव में ऐसा घटित नहीं होता।
  2. परमाणु में विविक्त स्पेक्ट्रम की व्याख्या न कर पाना – रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल का दूसरा प्रमुख दोष यह है कि यह परमाणु के विविक्त स्पेक्ट्रम की व्याख्या भी नहीं कर पाता। रदरफोर्ड के अनुसार इलेक्ट्रॉन की कक्षा की त्रिज्या निरन्तर बदलती रहने के कारण सतत् स्पेक्ट्रम बनना चाहिए परन्तु रैखिक स्पेक्ट्रम प्राप्त होता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नप्रश्न

प्रश्न 1.
बोर का परमाणु मॉडल समझाइये।
उत्तर-
बोर का परमाणु मॉडल-नील्स बोर ने क्वाण्टम सिद्धान्त के आधार पर परमाणु संरचना का सरल मॉडल प्रस्तुत किया। इस मॉडल की प्रमुख अभिधारणाएँ निम्नलिखित हैं

  1. परमाणु के केन्द्र में नाभिक होता है, जिसमें धनावेशित कण (प्रोटॉन) उपस्थित होता है।
  2. इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर निश्चित ऊर्जा वाले पथ में घूमते हैं। ये निश्चित ऊर्जा वाले पथ कक्षा, कोश या ऊर्जा-स्तर कहलाते हैं।
  3. कक्षाओं के क्रम को (n) द्वारा व्यक्त किया जाता है जहाँ n = 1, 2, 3, 4….. हैं जो क्रमशः K, L, M, N…. आदि से व्यक्त किये जा सकते हैं।
  4. n के बढ़ते मान के साथ ये कक्षाएँ नाभिक से दूर होती जाती हैं और उनकी ऊर्जा क्रमशः बढ़ती जाती है। कक्षा k की ऊर्जा सबसे कम होती है। तथा यह नाभिक के निकटतम होती है।
  5. बोर के अनुसार यदि कोई इलेक्ट्रॉन एक ही ऊर्जा स्तर या कक्षा में घूमता रहे तो इस इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
  6. इलेक्ट्रॉन जब बाहर से ऊर्जा ग्रहण करता है तो उत्तेजित होकर निकटतम उच्च ऊर्जा स्तर में चला जाता है और जब ये ऊर्जा का उत्सर्जन करता है तब निकटतम निम्न ऊर्जा के स्तर में चला जाता है।

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प्रश्न 2.
इलेक्ट्रॉन वितरण की बोर-बरी योजना क्या है ? इसके अनुसार इलेक्ट्रॉनों की व्यवस्था लिखिए।
उत्तर-
इलेक्ट्रॉनवितरणकबर-बरीयोजना – इलेक्ट्रॉन वितरण के लिए बोर-बरी ने निम्न योजना प्रस्तुत की जिसे बोर-बरी की योजना कहते हैं। इसके प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं
(i) परमाणु की किसी भी कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की | अधिकतम संख्या 2n² होती है, जहाँ n कक्षा की क्रम संख्या है जो नाभिक से बाहर की ओर गिनी जाती है। इस तरह इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या पहली कक्षा में 2, दूसरी में 8, तीसरी में 18, चौथी में 32 एवं पाँचवीं में 50 होती है।
(ii) सबसे बाहर वाली कक्षा में 8 एवं उसके अन्दर वाली कक्षा में 18 से अधिक इलेक्ट्रॉन कभी नहीं हो सकते।
(iii) किसी कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन होने पर नई कक्षा प्रारम्भ हो जाती है चाहे उसकी अधिकतम सीमा कुछ भी हो।
(iv) सबसे बाहर की कक्षा में 2 से अधिक और उसके अन्दर वाली में 8 से अधिक इलेक्ट्रॉन तब तक नहीं होते जब तक अन्य अन्दर की कक्षाएँ 2n² से पूर्ण न हो जायें।

प्रश्न 3.
रिक्त स्थान भरिए-(इलेक्ट्रॉन विन्यास पूर्ण कीजिए)
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 4 Structure of the Atom image - 20

प्रश्न 4.
क्लोरीन तत्त्व ([latex]_{ 17 }^{ 35 }{ Cl }[/latex]) के उदाहरण से उसकी परमाणु संरचना का मॉडल बनाइये।
हल-
क्लोरीन परमाणु संरचना का मॉडल-
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 4 Structure of the Atom image - 21
चित्र- क्लोरीन की परमाणु संरचना
क्लोरीन का परमाणु क्रमांक Z = 17
क्लोरीन की द्रव्यमान संख्या A = 35
प्रोटॉन की संख्या p = Z = 17
न्यूट्रॉन की संख्या n = A – Z = 35 – 17 = 18
इलेक्ट्रॉन की संख्या e = p = 17
इलेक्ट्रॉन का वितरण e = 17 = 2, 8, 7

प्रश्न 5.
[latex]_{ 18 }^{ 40 }{ Ar }[/latex] (आर्गन तत्व) की परमाणु संरचना बनाइये।
उत्तर –
[latex]_{ 18 }^{ 40 }{ Ar }[/latex] (आर्गन तत्व) की परमाणु संरचना
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 4 Structure of the Atom image - 22
चित्र- आर्गन की परमाणु संरचना
आर्गन को परमाणु क्रमांक Z = 18
आर्गन की द्रव्यमान संख्या A = 40
प्रोटॉन की संख्या p = 18
न्यूट्रॉन की संख्या n = A – Z = 40 – 18 = 22
इलेक्ट्रॉन की संख्या e = p = 18
इलेक्ट्रॉन का वितरण e = 18 = 2, 8, 8

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प्रश्न 6.
दो तत्त्वों A और B के परमाणुओं के अवपरमाणुक कण नीचे दिए गए हैं। उसका अध्ययन कीजिए तथा निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए। अपने उत्तर की सत्यता सिद्ध कीजिए।
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 4 Structure of the Atom image - 23
(i) दोनों में से किसके परमाणु का आकार बड़ा है?
(ii) दोनों में से किसका नाभिक प्रबल है?
(iii) तत्त्व A तथा B की प्रकृति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
(i) B के परमाणु का आकार बड़ा है क्योंकि B में तीन कोश होते हैं जबकि A में एक कोश होता है।
(ii) B का नाभिक प्रबल है क्योंकि A की द्रव्यमान संख्या 2 + 2 = 4 है जबकि B की द्रव्यमान संख्या 11 + 12 = 23 है।
(iii) A अधातु है जबकि B धातु है। A गैस है तथा B के बाह्यतम कोश में एक इलेक्ट्रॉन है जिसका यह आसानी से त्याग कर सकता है।

प्रश्न 7.
(a) रदरफोर्ड के अल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग में निम्न निष्कर्ष व्युत्पन्न करने के लिए प्रायोगिक प्रमाण दीजिए।
(i) परमाणु के भीतर का अधिकतर भाग खाली होता है।
(ii) परमाणु का केन्द्र धनावेशित होता है।
(b) एक तत्त्व की द्रव्यमान संख्या 32 तथा परमाणु संख्या 16 है, ज्ञात कीजिए :
(i) तत्त्व के परमाणु में न्यूट्रॉनों की संख्या।
(ii) परमाणु के बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या ।
(c) रदरफोर्ड के परमाण्वीय मॉडल के आधार पर नाभिक में कौन-सा अवपरमाणुक कण विद्यमान होता है ?
उत्तर-
(a) (i) परमाणु के भीतर का अधिकतर भाग खाली होता है क्योंकि अधिकतर अल्फा कण बिना विक्षेपित हुए सोने की पन्नी को पार कर सीधे निकल गये।
(ii) कुछ α-कण अपने मूल पथ से थोड़ा विक्षेपित हो जाते हैं इससे सिद्ध होता है कि परमाणु का केन्द्र धनावेशित भाग है।
(b) तत्त्व की द्रव्यमान संख्या = 32
तत्त्व की परमाणु संख्या = 16
प्रोटॉनों की संख्या = परमाणु संख्या = 16
न्यूट्रॉनों की संख्या = द्रव्यमान संख्या – प्रोटॉनों की संख्या = 32 – 16 = 16
(ii) तत्त्व का इलेक्ट्रॉन विन्यास = 2, 8, 6
परमाणु के बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 6
(c) प्रोटॉन।

प्रश्न 8.
(a) उस अवपरमाणुक कण का नाम लिखिए जिसकी खोज जे. चैडविक ने की थी। इस कण पर कौन-सा आवेश होता है ? यह कण परमाणु के कौन-से भाग में स्थित होता है ?
(b) रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के प्रयोग के तीन चरणों की सूची बनाइए।
(c) एक उदाहरण देते हुए समभारिक परमाणु की परिभाषा लिखिए।
(d) यह निष्कर्ष किस वैज्ञानिक ने निकाला था कि परमाणु की अपेक्षा नाभिक का साइज बहुत छोटा होता है।
उत्तर-
(a) जे. चैडविक ने न्यूट्रॉन की खोज की थी। न्यूट्रॉन अनावेशित होता है। यह कण परमाणु के नाभिक में होता है।
(b) (i) रदरफोर्ड ने रेडियोऐक्टिव तत्त्व रेडियम को लैड के बॉक्स के भीतर रखकर प्राप्त अल्फा कणों को एक बारीक स्लिट से गुजारकर इन्हें पुंज के रूप में प्राप्त किया।
(ii) इस पुंज को उन्होंने एक भारी धातु, जैसे-गोल्ड के अत्यन्त पतली पन्नी पर डाला।
(iii) इससे ये अल्फा कण प्रकीर्णित हो गए तथा बहुत-से अल्फा कण पन्नी से पार होकर पीछे लगे जिंक सल्फाइड के मध्य जाकर टकरा गए।
(c) समभारिक – समभारिक, विभिन्न परमाणु संख्याओं परन्तु समान द्रव्यमान संख्या वाले विभिन्न तत्त्वों के परमाणु हैं। समभारिकों में, उनके नाभिकों में प्रोटॉनों की भिन्न संख्या होती है परन्तु उनमें न्यूक्लिआनो (प्रोटानों + न्यूट्रॉनों) की संख्या समान होती है। समभारिकों के उदाहरण आर्गन [latex]_{ 18 }^{ 40 }{ Ar }[/latex] और कैल्सियम [latex]_{ 20 }^{ 40 }{ Ca }[/latex] है।
(d) रदरफोर्ड ने निष्कर्ष निकाला था कि परमाणु की अपेक्षा नाभिक का साइज बहुत छोटा होता है।

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प्रश्न 9.
परमाणु क्रमांक 1 से 18 तक के तत्त्वों के परमाणुओं का इलेक्ट्रॉन-विन्यास दीजिए।
उत्तर-
परमाणु क्रमांक 1 से 18 तक के तत्त्वों का इलेक्ट्रॉन विन्यास

प्रश्न 10.
संयोजकता इलेक्ट्रॉन का महत्व लिखिए व तत्त्व की संयोजकता निर्धारण में इसकी भूमिका बताइए।
उत्तर-
संयोजकता – किसी तत्त्व के परमाणु द्वारा दिए जाने, लिए जाने या साझेदारी किए जाने वाले इलेक्ट्रॉन की संख्या, उस तत्त्व को संयोजकता कहलाती है।
हम जानते हैं कि किसी रासायनिक अभिक्रिया में केवल बाह्यतम कक्ष में उपस्थित इलेक्ट्रॉन या संयोजकता इलेक्ट्रॉन ही भाग लेते हैं।
अत: संयोजकता निर्धारण में संयोजकता इलेक्ट्रॉन ही महत्वपूर्ण होते हैं। यदि किसी तत्त्व के परमाणु के संयोजकता इलेक्ट्रॉन 1, 2 या 3 हैं तो उसकी संयोजकता क्रमशः 1, 2 या 3 होगी। यदि तत्त्व के बाह्यतम कक्ष में 4 से 8 इलेक्ट्रॉन हैं तो उसकी संयोजकता (संयोजकता इलेक्ट्रॉन–8) होगी।
उदाहरणार्थ – क्लोरीन या फ्लोरीन के बाह्यतम कक्ष में 7 इलेक्ट्रॉन हैं, तब उनकी संयोजकता 7 – 8 = -1 होगी।
अतः क्लोरीन या फ्लोरीन के आयन को Cl या F से प्रदर्शित करेंगे।

अभ्यास प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. चैडविक ने खोज की थी
(a) इलेक्ट्रॉन की
(b) प्रोटॉन की
(c) न्यूट्रॉन की
(d) रेडियम की।

2. परमाणु के केन्द्रक में होते हैं
(a) इलेक्ट्रॉन
(b) प्रोटॉन
(c) न्यूट्रॉन
(d) प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन !

3. प्रोटॉन की खोज का श्रेय था
(a) चैडविक को
(b) गोल्डस्टीन को
(c) जे. जे. टॉमसन को
(d) रदरफोर्ड को।

4. X-किरणों की खोज की थी
(a) राण्टजन ने
(b) चैडविक ने
(c) मैडम क्यूरी ने
(d) गोल्डस्टीन ने।

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5. समान परमाणु क्रमांक एवं भिन्न परमाणु भार वाले परमाणु कहलाते हैं
(a) समस्थानिक
(b) समभारिक
(c) समन्यूट्रानिक
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

6. निम्न किरणों में से सबसे अधिक बेधन क्षमता किसमें होती है?
(a) α-किरणे
(b) X-किरणें
(c) γ-किरणे
(d) कैथोड किरणें

7. सोने की पन्नी द्वारा अल्फा कण प्रकीर्णन का प्रयोग किया
(a) टॉमसन ने
(b) रदरफोर्ड ने
(c) बोर ने
(d) उपरोक्त सभी ने।

8. परमाणु धन आवेश का गोला है, बताया
(a) टॉमसन ने
(b) रदरफोर्ड ने
(c) बोर ने
(d) उपरोक्त सभी ने।

9. इलेक्ट्रॉन कुछ निश्चित कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं, प्रतिपादित किया
(a) टॉमसन ने
(b) रदरफोर्ड ने
(c) बोर ने
(d) उपरोक्त सभी ने।

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10. अवपरमाणुक कण है
(a) इलेक्ट्रॉन
(b) प्रोटॉन
(c) न्यूट्रॉन
(d) ये सभी।

11. दूसरे कक्ष में इलेक्ट्रॉन की अधिकतम संख्या है
(a) 2
(b) 4
(c) 18
(d) 8

12. डाल्टन के परमाणु सिद्धान्त की कमी थी
(a) उसने परमाणु को अविभाज्य बताया
(b) वह एक ही प्रकार के परमाणुओं से बने विभिन्न पदार्थों के अलग-अलग गुणों की व्याख्या न कर सका।
(c) क्यों कुछ कार्बनिक यौगिकों को संश्लेषण सम्भव नहीं है, स्पष्ट नहीं हो सका।
(d) उपर्युक्त सभी।

13. प्रोटियम में नहीं होता
(a) प्रोटॉन
(b) इलेक्ट्रॉन
(c) न्यूटॉन
(d) ये सभी।

14. दो न्यूट्रॉन होते हैं
(a) ड्यूटीरियम में
(b) ट्राइटियम में
(c) प्रोटियम में
(d) उपर्युक्त सभी में।

15. Ca व Ar के परमाणु हैं
(a) समस्थानिक
(b) समभारिक
(c) समावयव
(d) ये सभी।

16. फ्लोरीन की परमाणु संख्या 9 है, F में इलेक्ट्रॉन की कुल संख्या होगी
(a) 9
(b) 8
(c) 10
(d) 19

17. किसी तत्त्व के समस्थानिकों में
(a) प्रोटॉन की संख्या भिन्न होती है।
(b) इलेक्ट्रॉन की संख्या भिन्न होती है।
(c) न्यूट्रॉन की संख्या भिन्न होती है।
(d) न्यूट्रॉन की संख्या समान होती है।

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18. जब एक न्यूट्रॉन विघटित होता है तो ……… उत्पन्न होता है।
(a) एक प्रोटॉन
(b) एक इलेक्ट्रॉन
(c) एक न्यूट्रॉन व एक इलेक्ट्रॉन
(d) एक प्रोटॉन व एक इलेक्ट्रॉन

19. रेडियो आइसोटोप डेटिंग में ……. करते हैं।
(a) 12C परमाणु की
(b) 10C परमाणु की
(c) 14C परमाणु की
(d) 3C परमाणु की।

20. परमाणु संख्या 16 वाले तत्त्वे की संयोजकता है
(a) 6
(b) 4
(c) 1
(d) 2

21. एक तत्त्व A की परमाणु संख्या 40 व तत्त्व B की परमाणु संख्या 11 है। A व B के विषय में कौन-सा कथन सत्य है-
(a) A, B से अधिक सक्रिय है।
(b) B, A से अधिक सक्रिय है।
(c) B रासायनिक रूप से अक्रिय
(d) A व B समान रूप से सक्रिय हैं।

22. निम्न में कौन-सा कथन असत्य है
(a) भारी तत्त्व रेडियोधर्मी होते हैं।
(b) α-कण धन आवेशिते हैं।
(c) β-कण आवेश रहित हैं।
(d) समस्थानिकों की परमाणु संख्या समान होती है।

23. कैल्सियम परमाणु संख्या 20 की संयोजकता है
(a) 1
(b) 2
(c) 3
(d) 6.

24. P-32 प्रयोग किया जाता है
(a) कैंसर
(b) थायरॉइड
(c) ल्यूकेमिया
(d) धमनी की रुकावट।

25. I-131 ……………के उपचार में प्रयोग किया जाता है।
(a) कैंसर के उपचार में
(b) थायरॉइड विकार में
(c) ल्यूकेमिया में
(d) धमनी की रुकावट में।

26. इलेक्ट्रॉन पर आवेश है
(a) 1.6 x 10-19 C
(b) 9.1 x 10-16 C
(c) 1.9 x 10-16 C
(d) 6.1 x 10-19 C

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27. ……………… आवेश रहित हैं।
(a) न्यूट्रॉन
(b) प्रोटॉन
(c) इलेक्ट्रॉन
(d) इलेक्ट्रॉन व न्यूट्रॉन।

28. भारी तत्त्वों के नाभिक में ………. नहीं पाया जाता
(a) प्रोटॉन
(b) न्यूट्रॉन
(c) इलेक्ट्रॉन
(d) इलेक्ट्रॉन वे प्रोटॉन

29. हाइड्रोजन परमाणु में ………….. नहीं पाया जाता
(a) प्रोटॉन
(b) न्यूट्रॉन
(c) इलेक्ट्रॉन
(d) इलेक्ट्रॉन व प्रोटॉन।

30. कैथोड किरणों का प्रयोग सर्वप्रथम ……… किया।
(a) चैडविक ने
(b) जे. जे. टॉमसन ने
(c) नील बोर ने
(d) रदरफोर्ड ने।

31. सोने की पतली पन्नी पर α-कण की बौछार
वाला प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया
(a) चैडविक ने
(b) जे. जे. टॉमसन ने
(c) नील बोर ने
(d) रदरफोर्ड ने।

32. न्यूट्रॉन की खोज की
(a) चैडविक ने
(b) जे. जे. टॉमसन ने
(c) नील बोर ने
(d) रदरफोर्ड ने।

33. इलेक्ट्रॉन होता है
(a) द्रव्यमान में प्रोटॉन का [latex]\frac { 1 }{ 1838 }[/latex] वां भाग व धन आवेशित
(b) द्रव्यमान में प्रोटॉन के बराबर व ऋण आवेशित
(c) द्रव्यमान में प्रोटॉन का 1/1838 व ऋण आवेशित
(d) द्रव्यमान में प्रोटॉन के बराबर व धन आवेशित

34. किसी परमाणु में प्रोटॉन की संख्या होती है
(a) न्यूट्रॉन के बराबर
(b) इलेक्ट्रॉन के बराबर
(c) परमाणु द्रव्यमान के बराबर
(d) कोई निश्चित नहीं।

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35. यदि किसी तत्त्व के परमाणु में 9 प्रोटॉन व 10 न्यूट्रॉन हों तो उसका परमाणु द्रव्यमान है
(a) 19
(b) 9
(c) 10
(d) 1.

36. Na का परमाणु द्रव्यमान 23 व परमाणु क्रमांक 11 है तो उसके परमाणु में न्यूट्रॉन होंगे
(a) 11
(b) 12
(c) 23
(d) कोई निश्चित नहीं

37. संयोजकता इलेक्ट्रॉन परमाणु के ……. कक्ष में उपस्थित होते हैं।
(a) प्रथम कक्ष
(b) द्वितीय कक्ष
(c) बाह्यतम
(d) किसी भी।

38. यदि किसी तत्त्व का बाह्यतम कक्ष प्रथम कक्षे से तो वह बाह्यतम कक्ष में ……… इलेक्ट्रॉन होने पर ही अक्रिय गैस का विन्यास प्राप्त कर लेगा
(a) 2
(b) 4
(c) 6
(d) 8.

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39. प्रत्येक तत्त्वं अपने बाह्यतम कक्ष में ……… इलेक्ट्रॉन पूरे करने का प्रयत्न करता है।
(a) 2
(b) 4
(c) 6
(d) 8.

उत्तरमाला

  1. (c)
  2. (d)
  3. (b)
  4. (a)
  5. (a)
  6. (c)
  7. (b)
  8. (a)
  9. (c)
  10. (d)
  11. (d)
  12. (d)
  13. (c)
  14. (b)
  15. (b)
  16. (c)
  17. (c)
  18. (d)
  19. (c)
  20. (d)
  21. (b)
  22. (c)
  23. (b)
  24. (c)
  25. (b)
  26. (a)
  27. (a)
  28. (c)
  29. (b)
  30. (b)
  31. (d)
  32. (a)
  33. (c)
  34. (b)
  35. (a)
  36. (b)
  37. (c)
  38. (a)
  39. (d)

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UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes

UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes (पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Maths. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes (पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन).

प्रश्नावली 13.1

प्रश्न 1. 1.5 मीटर लम्बा 1.25 मीटर चौड़ा और 65 सेमी गहरा प्लास्टिक का एक डिब्बा बनाया जाना है। इसे ऊपर से खुला रखना है। प्लास्टिक शीट की मोटाई को नगण्य मानते हुए निर्धारित कीजिए।
(i) डिब्बा बनाने के लिए आवश्यक प्लास्टिक शीट का क्षेत्रफल।
(ii) इस शीट का मूल्य, यदि 1 मीटर शीट का मूल्य 20 है।
हल :
(i) प्लास्टिक के डिब्बे की लम्बाई (l) = 1.5 मीटर,
चौड़ाई (b) = 1.25 मीटर तथा
ऊँचाई h = 65 सेमी या 0.65 मीटर [: 1 मीटर = 100 सेमी]
डिब्बा ऊपर से खुला है; अतः इसमें 1 फलक कम होगा।
अतः डिब्बे को पृष्ठ = सम्पूर्ण पृष्ठीय क्षेत्रफल – ऊपरी फलक का क्षेत्रफल
= 2 (lb + bh + hl) – (l x b)
= 2 [(1.5 x 1.25) + (1.25 x 0.65) +(0.65 x 1.5)] – (1.5 x 1.25)
= 2 [1.875 + 0.8125 + 0.975] – 1.875
= 2 [3.6625] – 1.875
= 7.325 – 1.875
= 5.45 वर्ग मीटर
अतः डिब्बा बनाने के लिए आवश्यक प्लास्टिक शीट का क्षेत्रफल = 5.45 वर्ग मीटर।
(ii) 1 वर्ग मीटर शीट का मूल्य = 20
5.45 वर्ग मीटर शीट का मूल्य = (5.45 x 20) = 109.00
अतः आवश्यक प्लास्टिक शीट का मूल्य = 109

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प्रश्न 2. एक कमरे की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई क्रमशः 5 मीटर, 4 मीटर और 3 मीटर हैं। 7.50 प्रति मीटर की दर से इस कमरे की दीवारों और छत पर सफेदी कराने का व्यय ज्ञात कीजिए।
हल :
कमरे की लम्बाई (l) = 5 मीटर, चौड़ाई (b) = 4 मीटर व ऊँचाई (h) = 3 मीटर
कमरे की चारों दीवारों का क्षेत्रफल = परिमाप x ऊँचाई
= 2 (l + b) x h = 2 (5 + 4) x 3 वर्ग मीटर
= 18 x 3 वर्ग मीटर
= 64 वर्ग मीटर
छत का क्षेत्रफल = लम्बाई x चौड़ाई = l x b = (5 x 4) = 20 वर्ग मीटर
जिस भाग में सफेदी करानी है, उसका क्षेत्रफल = (54 + 20) वर्ग मीटर = 74 वर्ग मीटर
1 वर्ग मीटर पर सफेदी कराने का व्यय = 7.50
74 वर्ग मीटर पर सफेदी कराने का व्यय = (74 x 7.50) = 555
अतः कमरे की दीवारों और छत पर सफेदी कराने का व्यय = 555

प्रश्न 3. किसी आयताकार हॉल के फर्श की परिमाप 250 मीटर है। यदि के 10 प्रति मीटर² की दर से चारों दीवारों पर पेंट कराने की लागत के 15,000 है तो इस हॉल की ऊँचाई ज्ञात कीजिए।
हल :
माना हॉल की ऊँचाई h मीटर है।
हॉल की परिमाप = 250 मीटर
हाल की चारों दीवारों का क्षेत्रफल = हॉल की परिमाप x ऊँचाई। = 250 x h = 250h वर्ग मीटर
तब हॉल की दीवारों को पेंट कराने का व्यय = हॉल की चारों दीवारों का क्षेत्रफल x पेंट कराने की मूल्य-दर = 250h x 0 = 2,500 h
परन्तु दिया है 10 प्रति मीटर² की दर से हॉल की दीवारों को पेंट कराने का व्यय 15,000 है।
2500 h = 15000 ⇒ h = [latex]\frac { 15000 }{ 2500 }[/latex] = 6 मीटर
अत: हॉल की ऊँचाई = 6 मीटर।

प्रश्न 4. किसी डिब्बे में भरा हुआ पेंट 9.375 मीटर² के क्षेत्रफल पर पेंट करने के लिए पर्याप्त है। इस डिब्बे के पेंट से 22.5 सेमी x 10 सेमी x 7.5 सेमी विमाओं वाली कितनी ईंट पेंट की जा सकती हैं?
हल :
ईंट की विमाएँ 22.5 सेमी x 10 सेमी x 7.5 सेमी हैं।
माना l = 22.5 सेमी, b = 10 सेमी और h = 7.5 सेमी
प्रत्येक ईंट (घनाभ) का पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2 (lb + bh + hl)
= 2 [(22.5 x 10) + (10 x 7.5) + (7.5 x 22.5)]
= 2225.0 + 75.0 + 168.75
= 2 x 468.75
= 937.5 वर्ग सेमी
अब माना कि ईंटों की अभीष्ट संख्या n है।
कुल ईंटों का क्षेत्रफल = 937.5 n वर्ग सेमी
परन्तु प्रश्न में दिया है कि पेंट 9.375 वर्ग मीटर क्षेत्रफल पर पेंट करने के लिए पर्याप्त है।
937.5n वर्ग सेमी = 9.375 वर्ग मीटर।
⇒ 937.5 n वर्ग सेमी = 9.375 x 10,000 वर्ग सेमी (1 वर्ग मीटर = 10,000 वर्ग सेमी)
⇒ 937.5 n वर्ग सेमी = 93,750
⇒ n = 100
अत: ईंटों की अभीष्ट संख्या = 100

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प्रश्न 5. एक घनाकार डिब्बे का एक किनास 10 सेमी लम्बाई का है तथा एक अन्य घनाभाकार डिब्बे की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई क्रमशः 12.5 सेमी, 10 सेमी और 8 सेमी हैं।
(i) किस डिब्बे का पाश्र्व पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक है और कितना अधिक है?
(ii) किस डिब्बे का कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल कम है और कितना कम है?
हल :
(i) घनाकार डिब्बे का पार्श्व-पृष्ठीय क्षेत्रफल = 4 x भुजा² [भुजा = 10 सेमी]
= 4 x (10)² = 400 वर्ग सेमी
घनाभाकार डिब्बे का पार्श्व-पृष्ठीय क्षेत्रफल = परिमाप x ऊँचाई = 2 (l + b) x h = 2 (12.5 + 10) x 8
[l = 12.5 सेमी, b = 10 सेमी तथा h = 8 सेमी]
= 16 x 22.5
= 360.0 वर्ग सेमी
अतः स्पष्ट है कि घनाकार डिब्बे का पाश्र्व पृष्ठ क्षेत्रफल (400 – 360) = 40 वर्ग सेमी अधिक है।
(ii) घनाकार डिब्बे का सम्पूर्ण पृष्ठीय क्षेत्रफल = 6 x भुजा² = 6 x (10)² = 600 वर्ग सेमी
तथा
पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन 343 तथा घनाभाकार डिब्बे का सम्पूर्ण पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2 (lb + bh+ hl)
= 2 [(12.5 x 10) + (10 x 8) + (8 x 12.5)]
= 2[125 + 80 + 100]
= 2 x 305
= 610 वर्ग सेमी
अतः स्पष्ट है कि घनाकार डिब्बे का कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल (610 – 600) = 10 वर्ग सेमी कम है।

प्रश्न 6. एक छोटा पौधा-घर (greenhouse) सम्पूर्ण रूप से शीशे की पट्टियों से (आधार भी सम्मिलित है) घर के अन्दर ही बनाया गया है और शीशे की पट्टियों को टेप द्वारा चिपका कर रोका गया है। यह पौधा-घर 30 सेमी लम्बा, 25 सेमी चौड़ा और 25 सेमी ऊँचा है।
(i) इसमें प्रयुक्त शीशे की पट्टियों का क्षेत्रफल क्या है?
(ii) सभी 12 किनारों के लिए कितने टेप की आवश्यकता है?
हल :
(i) पौधा-घर की लम्बाई (l) = 30 सेमी,
चौड़ाई (b) = 25 सेमी व ऊँचाई (h) = 25 सेमी।
पौधा-घर (घनाभ) का सम्पूर्ण पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2(lb + bh + hl)
= 2 [(30 x 25) + (25 x 25) + (25 x 30)]
= 2 [750 + 625 + 750]
= 2 x 2125
= 4250 वर्ग सेमी।
अतः पौधा-घर बनाने में प्रयुक्त काँच का क्षेत्रफल = 4250 वर्ग सेमी।
(ii) 12 किनारों में 4 लम्बाइयाँ, 4 चौड़ाइयाँ व 4 ऊँचाइयाँ होती हैं।
सभी किनारों की माप = 4 (लम्बाई + चौड़ाई + ऊँचाई) = 4 (l + b + h)
= 4 (30 + 25 + 25) सेमी
= 4 x 80 सेमी
= 320 सेमी
अतः आवश्यक टेप की लम्बाई = 320 सेमी।

प्रश्न 7. शान्ति स्वीट स्टाल अपनी मिठाइयों को पैक करने के लिए गत्ते के डिब्बे बनाने का ऑर्डर दे रहा था। दो मापों के डिब्बों की आवश्यकता थी। बड़े डिब्बों की माप 25 सेमी x 20 सेमी x 5 सेमी और छोटे डिब्बों की माप 15 सेमी x 12 सेमी x 5 सेमी थीं। सभी प्रकार की अतिव्याप्तता (overlaps) के लिए कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल के 5% के बराबर अतिरिक्त गत्ता लगेगा। यदि गत्ते की लागत 4 रुपये प्रति 1000 सेमी 2 है तो प्रत्येक प्रकार के 250 डिब्बे बनवाने की कितनी लागत आएगी?
हल :
बड़े डिब्बे की विमाएँ 25 सेमी x 20 सेमी x 5 सेमी हैं।
l = 25 सेमी, b = 20 सेमी और h = 5 सेमी
बड़े डिब्बे का पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2 (lb + bh + hl)
= 2 [(25 x 20) + (20 x 5) + (5 x 25)]
= 2(500 + 100 + 125)
= 2 x 725
= 1450 वर्ग सेमी।
250 डिब्बों का पृष्ठीय क्षेत्रफल = 250 x 1450 = 3,62,500 वर्ग सेमी.
छोटे डिब्बे की विमाएँ 15 सेमी x 12 सेमी x 5 सेमी हैं।
L = 15 सेमी, B = 12 सेमी व H = 5 सेमी
छोटे डिब्बे का पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2 (LB + BH + HL)
= 2 [(15 x 12) + (12 x 5) + (5 x 15)]
= 2[180+ 60+75]
= 2 x 315
= 630 वर्ग सेमी
250 डिब्बों का पृष्ठीय क्षेत्रफल = 630 x 250 = 1,57,500 वर्ग सेमी
प्रत्येक प्रकार के 250 डिब्बों का कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल = (3,62,500 + 1,57,500) वर्ग सेमी = 5,20,000 वर्ग सेमी।
अतिव्याप्तता (overlaps) के लिए आरक्षित क्षेत्रफल = 5,20,000 का 5% (दिया है।)
= 5,20,000 x [latex]\frac { 5 }{ 100 }[/latex] = 26,000 वर्ग सेमी
डिब्बों के निर्माण में लगे गत्ते का कुल क्षेत्रफल = प्रत्येक प्रकार के 250 डिब्बों का कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल + अतिव्याप्तता के लिए आरक्षित क्षेत्रफल
= (5,20,000+ 26,000) वर्ग सेमी
= 5,46,000 वर्ग सेमी|
1000 वर्ग सेमी के लिए गत्ते की लागत = 4
1 वर्ग सेमी के लिए गत्ते की लागत = [latex]\frac { 4 }{ 1000 }[/latex]
5,46,000 वर्ग सेमी के लिए गत्ते की लागत = [latex]\frac { 4 }{ 1000 }[/latex] x 546000 = 2184
अतः प्रत्येक प्रकार के 250 डिब्बे बनवाने की लागत = 2184

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प्रश्न 8. परवीन अपनी कार खड़ी करने के लिए, एक सन्दूक के प्रकार के ढाँचे जैसा एक अस्थायी स्थान तिरपाल की सहायता से बनाना चाहती है, जो कार को चारों ओर से और ऊपर से ढक ले (सामने वाला फलक लटका हुआ होगा जिसे घुमाकर ऊपर किया जा सकता है)। यह मानते हुए कि सिलाई के समय लगा तिरपाल का अतिरिक्त कपड़ा। नगण्य होगा, आधार विमाओं 4 मीटर x 3 मीटर और ऊँचाई 2.5 मीटर वाले इस ढाँचे को बनाने के लिए कितने तिरपाल की आवश्यकता होगी?
हल :
ढाँचे की विमाएँ 4 मीटर x 3 मीटर x 2.5 मीटर हैं।
माना l = 4 मीटर, b = 3 मीटर व h = 2.5 मीटर
ढाँचे को पाश्र्व पृष्ठीय क्षेत्रफल = परिमाप x ऊँचाई = 2 (l + b) x h = 2 (4 + 3) x 2.5 = 14 x 2.5 = 35 वर्ग मीटर
तथा छत या ऊपर के पृष्ठ का क्षेत्रफल = l x b = 4 x 3 = 12 वर्ग मीटर
कुल क्षेत्रफल = 35 + 12 = 47 वर्ग मीटर
अतः ढाँचे के निर्माण में 47 वर्ग मीटर तिरपाल की आवश्यकता होगी।

प्रटनावली 13.2

जब तक अन्यथा न कहा जाए, π = [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] लीजिए।
प्रश्न 1. ऊँचाई 14 सेमी वाले एक लम्ब वृत्तीय बेलन का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल 88 सेमी है। बेलन के आधार का व्यास ज्ञात कीजिए।
हल :
माना बेलन के आधार का व्यास = 2R सेमी है। [जहाँ R बेलन की त्रिज्या है।]
तथा
बेलन की ऊँचाई (h) = 14 सेमी
बेलन का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2πRh = 2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x R x 14 = 88 R वर्ग सेमी
परन्तु दिया है, बेलन का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = 88 वर्ग सेमी
88R = 88 ⇒ R = 1 सेमी
अतः बेलन का व्यास = 2R = 2 x 1 = 2 सेमी।

प्रश्न 2. धातु की एक चादर से 1 मीटर ऊँची और 140 सेमी व्यास के आधार वाली एक बन्द बेलनाकार टंकी बनाई जानी है। इस कार्य के लिए कितने वर्ग मीटर चादर की आवश्यकता होगी?
हल : धातु की टंकी का व्यास = 140 सेमी
धातु की टंकी की त्रिज्या r = [latex]\frac { 140 }{ 2 }[/latex] = 70 सेमी = [latex]\frac { 70 }{ 100 }[/latex] [1 मीटर = 100 सेमी] = 0.7 मीटर
तथा टंकी की ऊँचाई h = 1 मीटर
टंकी का सम्पूर्ण पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2πr (h + r)
= 2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x 0.7 x (1 + 0.7)
= 4.4 x 1.7 = 7.48 वर्ग मीटर
अतः टंकी को बनाने में प्रयुक्त चादर का क्षेत्रफल = 7.48 वर्ग मीटर।

प्रश्न 3. धातु का एक पाइप 77 सेमी लम्बा है। इसके एक अनुप्रस्थ काट का आन्तरिक व्यास 4 सेमी और बाहरी व्यास 4.4 सेमी है, ज्ञात कीजिए।
(i) आन्तरिक वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल
(ii) बाहरी वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल
(iii) कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-1
हल :
धातु के पाइप की लम्बाई या ऊँचाई (h) = 77 सेमी
पाइप के अनुप्रस्थ काट का आन्तरिक व्यास = 4 सेमी
पाइप के अनुप्रस्थ काट की आन्तरिक त्रिज्या = [latex]\frac { 4 }{ 2 }[/latex] = 2 सेमी
पाइप के अनुप्रस्थ काट का बाहरी व्यास = 4.4 सेमी
पाइप के अनुप्रस्थ काट की बाहरी त्रिज्या R = [latex]\frac { 4.4 }{ 2 }[/latex] = 2.2 सेमी
(i) तब पाइप का आन्तरिक वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2πrh
= 2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x 2 x 77 वर्ग सेमी
= 968 वर्ग सेमी।
(ii) बाहरी वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2πrh
2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x 2.2 x 77 वर्ग सेमी
= 2 x 22 x 2.2 x 11 वर्ग सेमी = 1064.8 वर्ग सेमी।
(iii) पाइप का कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल = आन्तरिक पृष्ठ + बाहरी पृष्ठ + दोनों वलयाकार सिरों का क्षेत्रफल
= 968 + 1064.8 + 2π(R² – r²)
= 2032.8 + 2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] (2.2² – 2²)
= 2032.8+ 2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] (4.84 – 4)
= 2032.8+ (2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x 0.84)
= (2032.8 + 5.28) वर्ग सेमी
= 2038.08 वर्ग सेमी।

प्रश्न 4. एक रोलर (roller) का व्यास 84 सेमी है और लम्बाई 120 सेमी है। एक खेल के मैदान को एक बार समतल करने के लिए 500 चक्कर लगाने पड़ते हैं। खेल के मैदान का वर्ग मीटर में क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
हल :
रोलर को व्यास = 84 सेमी = 0.84 मीटर [1 मीटर = 100 सेमी]
रोलर की त्रिज्या (r) = [latex]\frac { 0.84 }{ 2 }[/latex] = 0.42 मीटर
और रोलर की लम्बाई (h) = 120 सेमी = 1.20 मीटर
रोलर का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2πrh
= 2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x 0.42 x 1.20 वर्ग मीटर
= 3.168 वर्ग मीटर
रोलर द्वारा 1 चक्कर लगाकर समतल किया गया मैदान का क्षेत्रफल = 3.168 वर्ग मीटर
रोलर द्वारा 500 चक्कर लगाकर समतल किया गया मैदान का क्षेत्रफल = 500 x 3.168 वर्ग मीटर = 1584 वर्ग मीटर
अतः खेल के मैदान का क्षेत्रफल = 1584 वर्ग मीटर।

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प्रश्न 5. किसी बेलनाकार स्तम्भ का व्यास 50 सेमी है और ऊँचाई 3.5 मीटर है। 12.50 प्रति वर्ग मीटर की दर से इस स्तम्भ के वक्र पृष्ठ पर पेंट कराने का व्यय ज्ञात कीजिए।
हल : बेलनाकार स्तम्भ का व्यास = 50 सेमी = 0.5 मीटर [1 मीटर = 100 सेमी]
बेलनाकार स्तम्भ की त्रिज्या (r) = [latex]\frac { 0.5 }{ 2 }[/latex] मीटर = 0.25 मीटर
स्तम्भ की ऊँचाई (h) = 3.5 मीटर
बेलनाकार स्तम्भ का वक्र पृष्ठ = 2πrh
= 2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x 0.25 x 3.5 वर्ग मीटर
= 5.5 वर्ग मीटर
1 वर्ग मीटर पर पेंट कराने का व्यय = 12.50
5.5 वर्ग मीटर पर पेंट कराने का व्यय = (5.5 x 12.50) = 68.75
अतः स्तम्भ पर पेंट कराने का व्यय = 68.75

प्रश्न 6. एक लम्ब वृत्तीय बेलन का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल 4.4मीटर है। यदि बेलन के आधार की त्रिज्या 0.7 मीटर है तो उसकी ऊँचाई ज्ञात कीजिए।
हल :
माना लम्ब वृत्तीय बेलन की ऊँचाई h मीटर है।
तथा बेलन की त्रिज्या (r) = 0.7 मीटर
बेलन का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2πrh
= 2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x 0.7 x h = 4.4h वर्ग मीटर
परन्तु दिया है, बेलन का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = 4.4 वर्ग मीटर
4.4 h = 4.4 ⇒ h = 1 मीटर
अतः बेलन की ऊँचाई = 1 मीटर।

प्रश्न 7. किसी वृत्ताकार कुएँ को आन्तरिक व्यास 3.5 मीटर है और यह 10 मीटर गहरा है। ज्ञात कीजिए :
(i) आन्तरिक वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल।
(ii) 40 रुपये प्रति मीटर की दर से इसके वक्र पृष्ठ पर प्लास्टर कराने का व्यय।
हल :
वृत्ताकार कुएँ का आन्तरिक व्यास = 3.5 मीटर
वृत्ताकार कुएँ की आन्तरिक त्रिज्या r = [latex]\frac { 3.5 }{ 2 }[/latex] मीटर
तथा कुएँ की गहराई (h) = 10 मीटर
(i) कुएँ का आन्तरिक वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2πrh
= 2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x [latex]\frac { 3.5 }{ 2 }[/latex] x 10 वर्ग मीटर = 110 वर्ग मीटर।
(ii) 1 वर्ग मीटर पर प्लास्टर कराने का व्यय = 40
110 वर्ग मीटर पर प्लास्टर कराने का व्यय = (110 x 40) = 4400
अत: कुएँ के वक्र पृष्ठ पर प्लास्टर कराने की व्यय = 4400

प्रश्न 8. गरम पानी द्वारा गरम रखने वाले एक संयन्त्र में 28 मीटर लम्बाई और 5 सेमी व्यास वाला एक बेलनाकार पाइप है। इस संयन्त्र में गर्मी देने वाला कुल कितना पृष्ठ है?
हल :
बेलनाकार पाइप का व्यास = 5 सेमी = 0.05 मीटर
बेलनाकार पाइप की त्रिज्या (r) = [latex]\frac { 0.05 }{ 2 }[/latex] = 0.025 मीटर
पाइप की लम्बाई (h) = 28 मीटर
पाइप का वक्र पृष्ठ = 2πrh
= 2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x 0.025 x 28 वर्ग मीटर = 4.4 वर्ग मीटर
अतः संयन्त्र में गर्मी देने वाला कुल पृष्ठ = 4.4 वर्ग मीटर।

प्रश्न 9. ज्ञात कीजिए।
(i) एक बेलनाकार पेट्रोल की बन्द टंकी का पाश्र्व या वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल, जिसका व्यास 4.2 मीटर है और ऊँचाई 4.5 मीटर है।
(ii) इस टंकी को बनाने में कुल कितना इस्पात (steel) लगा होगा, यदि कुल इस्पात का भाग बनाने में नष्ट हो गया है?
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-2

प्रश्न 10. संलग्न आकृति में, आप एक लैम्प शेड का फ्रेम देख रहे हैं। इसे एक सजावटी कपड़े से ढका जाना है। इस फ्रेम के आधार का व्यास 20 सेमी है और ऊँचाई 30 सेमी है। फ्रेम के ऊपर और नीचे मोड़ने के लिए दोनों ओर 2.5 सेमी अतिरिक्त कपड़ा भी छोड़ा जाना है। ज्ञात कीजिए कि लैम्प शेड को ढकने के लिए कुल कितने कपड़े की आवश्यकता होगी।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-3
हल : लैम्प शेड वृत्ताकार है।
लैम्प शेड के आधार का व्यास = 20 सेमी
लैम्प शेड के आधार की त्रिज्या (r) = [latex]\frac { 20 }{ 2 }[/latex] = 10 सेमी
और लैम्प शेड की ऊँचाई (h) = 30 सेमी
लैम्प शेड को सजाने में दोनों ओर 2.5 सेमी कपड़ा अतिरिक्त छोड़ा जाता है।
कपड़े की लम्बाई (h1) = (30 + 2.5 + 2.5) सेमी = 35 सेमी।
कपड़े का क्षेत्रफल = 2πrh1
= 2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x 10 x 35 वर्ग सेमी = 2200 वर्ग सेमी
अत: लैम्प शेड को ढकने के लिए आवश्यक कपड़े का क्षेत्रफल 2200 वर्ग सेमी होगा।

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प्रश्न 11. किसी विद्यालय के विद्यार्थियों से एक आधार वाले बेलनाकार कलमदानों को गत्ते से बनाने और सजाने की प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कहा गया। प्रत्येक कलमदान को 3 सेमी त्रिज्या और 10.5 सेमी ऊँचाई का होना था। विद्यालय को इसके लिए प्रतिभागियों को गत्ता देना था। यदि इसमें 35 प्रतिभागी थे, तो विद्यालय को कितना गत्ता खरीदना पड़ा होगा?
हल :
कलमदान की त्रिज्या (r) = 3 सेमी
और कलमदान की ऊँचाई (h) = 10.5 सेमी।
बेलनाकार कलमदान का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2πrh
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-4

प्रश्नावली 13.3

जब तक अन्यथा न कहा जाए π = [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] लीजिए।
प्रश्न 1. एक शंकु के आधार का व्यास 10.5 सेमी है और इसकी तिर्यक ऊँचाई 10 सेमी है। इसका वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-5

प्रश्न 2. एक शंकु का कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए, जिसकी तिर्यक ऊँचाई 21 मीटर है और आधार का व्यास 24 मीटर है।
हल :
शंकु के आधार का व्यास = 24 मीटर
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-6

प्रश्न 3. एक शंकु का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल 308 सेमी है और इसकी तिर्यक ऊँचाई 14 सेमी है। ज्ञात कीजिए :
(i) आधार की त्रिज्या,
(ii) शंकु का कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल।
हल :
(i) माना शंकु के आधार की त्रिज्या सेमी है।
शंकु की तिर्यक ऊँचाई (l) = 14 सेमी
शंकु का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = πrl
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-7

प्रश्न 4. शंकु के आकार का एक तम्बू 10 मीटर ऊँचा है और उसके आधार की त्रिज्या 24 मीटर है। ज्ञात कीजिए:
(i) तम्बू की तिर्यक ऊँचाई।
(ii) तम्बू में लगे कैनवास (canvas) की लागत, यदि 1 मीटर कैनवास की लागत 70 है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-8
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-9

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प्रश्न 5. 8 मीटर ऊँचाई और आधार की त्रिज्या 6 मीटर वाले एक शंकु के आकार का तम्बू बनाने में 3 मीटर चौड़े तिरपाल की कितनी लम्बाई लगेगी? यह मान कर चलिए कि इसकी सिलाई और कटाई में 20 सेमी तिरपाल अतिरिक्त लगेगा। (π = 3.14 का प्रयोग कीजिए।)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-10

प्रश्न 6. शंकु के आधार की एक गुम्बज की तिर्यक ऊँचाई और आधार का व्यास क्रमशः 25 मीटर और 14 मीटर हैं। इसकी वक्र पृष्ठ पर 210 प्रति 100 मीटर की दर से सफेदी कराने का व्यय ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-11

प्रश्न 7. एक जोकर की टोपी एक शंकु के आकार की है, जिसके आधार की त्रिज्या 7 सेमी और ऊँचाई 24 सेमी है। इसी प्रकार की 10 टोपियाँ बनाने के लिए आवश्यक गत्ते का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-13
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-14

प्रश्न 8. किसी बस स्टॉप को पुराने गत्ते से बने 50 खोखले शंकुओं द्वारा सड़क से अलग किया हुआ है। प्रत्येक शंकु के आधार का व्यास 40 सेमी है और ऊँचाई 1 मीटर है। यदि इन शंकुओं की बाहरी पृष्ठों को पेंट करवाना है और पेंट की दर 12 प्रति मीटर है, तो इनको पेंट कराने में कितनी लांगत आएगी? (π = 3.14 और √1.04 = 1.02 को प्रयोग कीजिए।)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-15

प्रश्नावली 13.4

जब तक अन्यथा न कहा जाए, π = [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] लीजिए।
प्रश्न 1. निम्नलिखित त्रिज्या वाले गोले का पृष्ठीय क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए :
(i) 10.5 सेमी
(ii) 5.6 सेमी
(iii) 14 सेमी।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-16
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-17

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प्रश्न 2. निम्नलिखित व्यास वाले गोले का पृष्ठीय क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए :
(i) 14 सेमी,
(ii) 21 सेमी,
(iii) 3.5 मीटर।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-18

प्रश्न 3. 10 सेमी त्रिज्या वाले एक अर्धगोले का कुल पृष्ठीय क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए। (π = 3.14 लीजिए।)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-19

प्रश्न 4. एक गोलाकार गुब्बारे में हवा भरने पर, उसकी त्रिज्या 7 सेमी से 14 सेमी हो जाती है। इन दोनों अस्थितियों में, गुब्बारे के पृष्ठीय क्षेत्रफलों का अनुपात ज्ञात कीजिए।
हल :
पहले गुब्बारे की त्रिज्या (r) = 7 सेमी
गुब्बारे का पृष्ठीय क्षेत्रफल = 4πr² = 4π x 7 x 7 वर्ग सेमी = 196 वर्ग सेमी।
हवा भरने के बाद गुब्बारे की त्रिज्या (R) = 14 सेमी
हवा भरने के बाद गुब्बारे का पृष्ठीय क्षेत्रफल = 4πR² = 4π x 14 x 14 वर्ग सेमी = 784π वर्ग सेमी।
अतः गुब्बारे के पृष्ठीय क्षेत्रफलों में अनुपात = 196π : 784π = 1 : 4

प्रश्न 5. पीतल से बने एक अर्द्धगोलाकार कटोरे का आन्तरिक व्यास 10.5 सेमी है। 16 प्रति 100 सेमी की दर से इसके आन्तरिक पृष्ठ पर कलई कराने का व्यय ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-20

प्रश्न 6. उस गोले की त्रिज्या ज्ञात कीजिए जिसका पृष्ठीय क्षेत्रफल 154 वर्ग सेमी है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-21

प्रश्न 7. चन्द्रमा का व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग एक-चौथाई है। इन दोनों के पृष्ठीय क्षेत्रफलों का अनुपात ज्ञात कीजिए।
हल :
चन्द्रमा का व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग एक-चौथाई है।
चन्द्रमा की त्रिज्या भी पृथ्वी की त्रिज्या की लगभग एक-चौथाई होगी।
माना चन्द्रमा की त्रिज्या। है तब पृथ्वी की त्रिज्या 4r होगी।
तब चन्द्रमा का पृष्ठीय क्षेत्रफल = 4πr² वर्ग सेमी।
और पृथ्वी का पृष्ठीय क्षेत्रफल = 4π (4r)² = 64πr² वर्ग सेमी।
अत: चन्द्रमा और पृथ्वी के पृष्ठीय क्षेत्रफलों में अनुपात = 4πr² : 64πr² = 1 : 16

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प्रश्न 8. एक अर्द्धगोलाकार कटोरा 0. 25 सेमी मोटी स्टील से बना है। इस कटोरे की आन्तरिक त्रिज्या 5 सेमी है। कटोरे का बाहरी वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-22
हल : कटोरे की आन्तरिक त्रिज्या (r) = 5 सेमी
कटोरे की चादर की मोटाई (d) = 0.25 सेमी|
कटोरे की बाहरी त्रिज्या (R) = आन्तरिक त्रिज्या + मोटाई = 5 + 0.25 = 5.25 सेमी।
अर्द्धगोलाकार कटोरे का बाहरी पृष्ठ = 2πR²
= 2 x [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x 5.25 x 5.25 वर्ग सेमी। = 173.
अतः कटोरे का बाहरी वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल= 173. 25 वर्ग सेमी।

प्रश्न 9. एक लम्बवृत्तीय बेलन त्रिज्या वाले एक गोले को पूर्णतया घेरे हुए है ज्ञात कीजिए:
(i) गोले का पृष्ठीय क्षेत्रफल ।
(ii) बेलन का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल
(iii) ऊपर (i) और (ii) में प्राप्त क्षेत्रफलों का अनुपात
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-23
हल :
चित्र में लम्ब वृत्तीय बेलन गोले को पूर्णतया घेरे हुए है।
बेलन की त्रिज्या (R) = गोले की त्रिज्या (r)
(i) गोले का पृष्ठीय क्षेत्रफल = 4πr²
(ii) बेलन का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2πRH
चित्र से स्पष्ट है कि बेलन की ऊँचाई H = गोले का व्यास = 2r
बेलन का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2πR (2r) = 2πr (2r) (R = r) = 4πr²
अतः बेलन का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल = 4πr²
(iii) उक्त दोनों के पृष्ठीय क्षेत्रफलों में अनुपात = 4πr² : 4πr² = 1 : 1

प्रश्नावली 13.5

प्रश्न 1. माचिस की डिब्बी के माप 4 सेमी x 2.5 सेमी x 1.5 सेमी हैं। ऐसी 12 डिब्बियों के एक पैकेट का आयतन क्या होगा?
हल :
माचिस की डिब्बी की माप 4 सेमी x 2.5 सेमी x 1.5 सेमी है।
माना l = 4 सेमी, b = 2.5 सेमी तथा h = 1.5 सेमी
माचिस की डिब्बी (घनाभ) का आयतन = lbh = 4 x 2.5 x 1.5 घन सेमी = 15 घन सेमी
1 माचिस की डिब्बी का आयतन = 15 घन सेमी
12 माचिस की डिब्बियों का आयतन = 12 x 15 = 180 घन सेमी
अतः 12 माचिसों के पैकेट का आयतन = 180 घन सेमी।

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प्रश्न 2. एक घनाभाकार पानी की टंकी 6 मीटर लम्बी, 5 मीटर चौड़ी और 4.5 मीटर गहरी है। इसमें कितने लीटर पानी आ सकता है?(1 घन मीटर = 1000 लीटर)
हल :
घनाभाकार टंकी की लम्बाई (l) = 6 मीटर, चौड़ाई (b) = 5 मीटर
और गहराई (h) = 4.5 मीटर।
टंकी का आयतन = lbh = 6 x 5 x 4.5 घन मीटर = 135 घन मीटर
टंकी में समाहित हो सकने वाले पानी का आयतन = 135 घन मीटर
= 135 x 1000 लीटर [1 घन मीटर = 1000 लीटर)
= 1,35,000 लीटर
अतः टंकी में 1,35,000 लीटर पानी आ सकता है।

प्रश्न 3. एक घनाभाकार बर्तन 10 मीटर लम्बा और 8 मीटर चौड़ा है। इसको कितना ऊँचा बनाया जाए कि इसमें 380 घन मीटर द्रव आ सके?
हुल :
माना h मीटर ऊँचा बर्तन होना चाहिए।
घनाभाकार बर्तन की लम्बाई (l) = 10 मीटर और
चौड़ाई (b) = 8 मीटर
घनाभाकार बर्तन का आयतन = lbh = 10 x 8 x h = 80h घन मीटर
बर्तन में समा सकने वाले द्रव का आयतन 380 घन मीटर है।
80 h = 380 ⇒ h = 4.75 मीटर
अतः बर्तन की ऊँचाई = 4.75 मीटर।

प्रश्न 4. 8 मीटर लम्बा, 6 मीटर चौड़ा और 3 मीटर गहरा एक घनाभाकार गड्ढा खुदवाने में 80 प्रति घन मीटर की दर से होने वाला व्यय ज्ञात कीजिए।
हल :
घनाभाकार गड्ढे की लम्बाई (l) = 8 मीटर,
चौड़ाई. (b) = 6 मीटर
तथा गहराई (h) = 3 मीटर
गड्ढे का ओयतन = lbh = (8 x 6 x 3) घन मीटर = 144 घन मीटर
1 घन मीटर गड्ढा खुदवाने का व्यय = 30
144 घन मीटर गड्ढा खुदवाने का व्यय = 30 x 144 = 4320
अतः गड्ढा खुदवाने में होने वाला व्यय = 4320

प्रश्न 5. एक घनाभाकार टंकी की धारिता 50,000 लीटर पानी की है। यदि इस टंकी की लम्बाई और गहराई क्रमशः 2.5 मीटर और 10 मीटर है, तो इसकी चौड़ाई ज्ञात कीजिए।
हल :
माना टंकी की चौड़ाई b मीटर है।
टंकी की लम्बाई (l) = 2.5 मीटर
और टंकी की गहराई (h) = 10 मीटर।
घनाभाकार टंकी का आयतन = lbh = 2.5 x b x 10 घन मीटर = 25b घन मीटर
टंकी की धारिता = 25b घन मीटर = 25b x 1000 लीटर (1 घन मीटर = 1000 लीटर) = 25,000 लीटर
परन्तु प्रश्न में दिया है कि टंकी की धारिता 50,000 लीटर है।
25000 b = 50,000 ⇒ b = 25,000
अतः टंकी की चौड़ाई = 2 मीटर।

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प्रश्न 6. एक गाँव जिसकी जनसंख्या 4000 है, को प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 150 लीटर पानी की आवश्यकता है। इस गाँव में 20 मीटर x 15 मीटर x 6 मीटर मापों वाली एक टंकी बनी हुई है। इस टंकी का पानी वहाँ कितने दिन के लिए पर्याप्त होगा?
हुल : गाँव की जनसंख्या = 4000
प्रति व्यक्ति प्रतिदिन पानी की आवश्यकता = 150 लीटर
प्रतिदिन गाँव के लिए आवश्यक पानी की मात्रा = 4000 x 150 लीटर = 6,00,000 लीटर
= 600 घन मीटर (1000 लीटर = 1 घन मीटर)
टंकी की लम्बाई (l) = 20 मीटर,
टंकी की चौड़ाई (b) = 15 मीटर
तथा टंकी की ऊँचाई (h) = 6 मीटर
टंकी का आयतन = lbh = 20 x 15 x 6 घन मीटर = 1800 घन मीटर।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-24
अतः पानी से भरी टंकी गाँव के लिए 3 दिन के लिए पर्याप्त होगी।

प्रश्न 7. किसी गोदाम की मापें 40 मीटर x 25 मीटर x 15 मीटर हैं। इस गोदाम में 1.5 मीटर x 1.25 मीटर x 0.5 मीटर की माप वाले लकड़ी के कितने अधिकतम क्रेट (crate) रखे जा सकते हैं?
हल :
माना लकड़ी के n क्रेट रखे जा सकते हैं।
प्रत्येक क्रेट की माप 1.5 मीटर x 1.25 मीटर x 0.5 मीटर है।
अर्थात क्रेट की लम्बाई (l) = 1.5 मीटर,
क्रेट की चौड़ाई (b) = 1.25 मीटर
क्रेट की ऊँचाई (h) = 0.5 मीटर
प्रत्येक क्रेट का आयतन = lbh = 1.5 x 1.25 x 0.5 घन मीटर = 0.9375 घन मीटर
सभी n क्रेट्स का आयतन = 0.9375n घन मीटर
गोदाम की माप 40 मीटर x 25 मीटर x 15 मीटर है।
‘अर्थात गोदाम की लम्बाई (l1) = 40 मीटर,
गोदाम की चौड़ाई (b1) = 25 मीटर
तथा गोदाम की ऊँचाई (h1) = 15 मीटर
गोदाम का आयतन = l1b1h1 = 40 x 25 x 15 घन मीटर = 15,000 घन मीटर
गोदाम का आयतन लकड़ी के n क्रेट्स के आयतन के बराबर होना चाहिए।
0.9375 n = 15,000 ⇒ n = 16,000
अतः गोदाम में 16,000 क्रेट्स रखे जा सकते हैं।

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प्रश्न 8. 12 सेमी भुजा वाले एक ठोस घन को बराबर आयतन वाले 8 घनों में काटा जाता है। नए घन की भुजा क्या होगी? साथ ही, इन दोनों घनों के पृष्ठीय क्षेत्रफलों का अनुपात भी ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-25
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-26

प्रश्न 9. 3 मीटर गहरी और 40 मीटर चौड़ी एक नदी 2 किमी प्रति घण्टा की चाल से बहकर समुद्र में गिरती है। एक मिनट में समुद्र में कितना पानी गिरेगा?
हल :
नदी की गहराई (h) = 3 मीटर
और चौड़ाई (b) = 40 मीटर
नदी का परिच्छेद क्षेत्रफल (Sectional Area) = h x b = 3 x 40 = 120 वर्ग मीटर
नदी के पानी की चाल 2 किमी प्रति घण्टा है।
1 मिनट में नदी के विस्थापित पानी की लम्बाई = [latex]\frac { 2 x 1000 }{ 60 }[/latex] = [latex]\frac { 100 }{ 3 }[/latex]
1 मिनट में बहने वाले पानी का आयतन = [latex]\frac { 100 }{ 3 }[/latex] x 120 घन मीटर = 4000 घन मीटर
अतः 1 मिनट में समुद्र में 4000 घन मीटर पानी गिरेगा।

प्रश्नावली 13.6

जब तक अन्यथा न कहा जाए, 1 = लीजिए।
प्रश्न 1. एक बेलनाकार बर्तन के आधार की परिधि 132 सेमी और उसकी ऊँचाई 25 सेमी है। इस बर्तन में कितने लीटर पानी आ सकता है? (1000 सेमी3 = 1 लीटर)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-27

प्रश्न 2. लकड़ी के एक बेलनाकार पाइप को आन्तरिक व्यास 24 सेमी है और बाहरी व्यास 28 सेमी है। इस पाइप की लम्बाई 35 सेमी है। इस पाइप का द्रव्यमान ज्ञात कीजिए, यदि 1 सेमी लकड़ी का द्रव्यमान 0.6 ग्राम है।
हल : लकड़ी के बेलनाकार पाइप का आन्तरिक व्यास = 24 सेमी।
आन्तरिक त्रिज्या (r) = [latex]\frac { 24 }{ 2 }[/latex] = 12 सेमी
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-28

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प्रश्न 3. एक सोफ्ट ड्रिंक (soft drink) दो प्रकार के पैकों में उपलब्ध है:
(i) लम्बाई 5 सेमी और चौड़ाई 4 सेमी वाले एक आयताकार आधार का टिन का डिब्बा जिसकी ऊँचाई 15 सेमी है और
(ii) व्यास 7 सेमी वाले वृत्तीय आधार और 10 सेमी ऊँचाई वाला एक प्लास्टिक का बेलनाकार डिब्बा। किस डिब्बे की धारिता अधिक है और कितनी अधिक है?
हल :
टिन (आयताकार आधार वाले) के डिब्बे की लम्बाई (l) = 5 सेमी,
चौड़ाई (b) = 4 सेमी और ऊँचाई (h) = 15 सेमी
टिन के डिब्बे का आयतन = lbh = 5 x 4 x 5 घन सेमी। = 300 घन सेमी
टिन के डिब्बे की धारिता = 300 घन सेमी
प्लास्टिक के (वृत्तीय आधार वाले) डिब्बे का व्यास = 7 सेमी
वृत्तीय आधार वाले डिब्बे की त्रिज्या (r’) = [latex]\frac { 7 }{ 2 }[/latex] सेमी
डिब्बे की ऊँचाई (h’) = 10 सेमी
बेलनाकार डिब्बे का आयतन = π (r’)² h’
= [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x [latex]\frac { 7 }{ 2 }[/latex] x [latex]\frac { 7 }{ 2 }[/latex] x 10 घन सेमी
= 385 घन सेमी
बेलनाकार डिब्बे की धारिता = 385 घन सेमी|
अतः स्पष्ट है कि बेलनाकार डिब्बे की धारिता अधिक है तथा यह आयताकार आधार वाले डिब्बे की धारिता से (385 – 300) = 85 घन सेमी अधिक है।

प्रश्न 4. यदि एक बेलन का पार्श्व पृष्ठीय क्षेत्रफल 94.2 सेमी है और उसकी ऊँचाई 5 सेमी है, तो ज्ञात कीजिए :
(i) आधार की त्रिज्या,
(ii) बेलन का आयतन (π = 3.14 लीजिए)
हल :
(i) माना बेलन के आधार की त्रिज्या सेमी है।
दिया है, बेलन की ऊँचाई (h) = 5 सेमी
बेलन का पाश्र्व पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2πrh वर्ग सेमी = 2 x 3.14 x r x 5 वर्ग सेमी = 31.4r वर्ग सेमी
परन्तु प्रश्न में दिया है कि बेलन का पार्श्व पृष्ठीय क्षेत्रफल 94.2 सेमी है।
31.4r = 94.2 ⇒ r = 3
अतः बेलन के आधार की त्रिज्या = 3 सेमी।
(ii) बेलन की त्रिज्या (r) = 3 सेमी तथा
बेलन की ऊँचाई (h) = 5 सेमी बेलन का आयतन = πr²h = 3.14 x 3 x 3 x 5 घन सेमी = 3.14 x 45 घन सेमी = 141.3 घन सेमी।
अतः बेलन का आयतन = 141.3 घन सेमी।

प्रश्न 5. 10 मीटर गहरे एक बेलनाकार बर्तन की आन्तरिक वक्र पृष्ठ को पेंट कराने का व्यय 2200 है। यदि पेंट कराने की दर 20 प्रति मीटर है तो ज्ञात कीजिए :
(i) बर्तन का आन्तरिक वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल
(ii) आधार की त्रिज्या
(iii) बर्तन की धारिता
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-29
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-30

प्रश्न 6. ऊँचाई 1 मीटर वाले एक बेलनाकार बर्तन की धारिता 15.4 लीटर है। इसको बनाने के लिए कितने वर्ग मीटर धातु की शीट की आवश्यकता होगी?
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-31
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes img-32

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प्रश्न 7. सीसे की एक पेंसिल (lead pencil) लकड़ी के एक बेलन के अभ्यन्तर में ग्रेफाइट (graphite) से बने ठोस बेलन को डाल कर बनाई गई है। पेंसिल का व्यास 7 मिमी है और ग्रेफाइट का व्यास 1 मिमी है। यदि पेंसिल की लम्बाई 14 सेमी है, तो लकड़ी का आयतन और ग्रेफाइट का आयतन ज्ञात कीजिए।
हल : पेंसिल का व्यास = 7 मिमी = 0.7 सेमी [1 मिमी = [latex]\frac { 1 }{ 10 }[/latex] सेमी
पेसिल की त्रिज्या (r) = [latex]\frac { 0.7 }{ 2 }[/latex] सेमी = 0.35 सेमी
पेंसिल की लम्बाई (h) = 14 सेमी
पेंसिल का आयतन = πr²h = [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x 0.35 x 0.35 x 14 घन सेमी = 5.39 घन सेमी।
ग्रेफाइट रॉड का व्यास = 1 मिमी = 0.1 सेमी
ग्रेफाइट रॉड की त्रिज्या (r’) = [latex]\frac { 0.1 }{ 2 }[/latex] = 0.05 सेमी
ग्रेफाइट रॉड की लम्बाई (h) = 14 सेमी
ग्रेफाइट रॉड का आयतन = π(r’)²h
= [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x 0.05 x 0.05 x 14 घन सेमी = 0.11 घन सेमी
पेंसिल में लगी लकड़ी का आयतन = पेंसिल का आयतन – ग्रेफाइट रॉड का आयतन = (5.39 – 0.11) घन सेमी = 5.28 घन सेमी
अतः लकड़ी का आयतन 5.28 घन सेमी और ग्रेफाइट का आयतन 0.11 घन सेमी है।

प्रश्न 8. एक अस्पताल (hospital) के एक रोगी को प्रतिदिन 7 सेमी व्यास वाले एक बेलनाकार कटोरे में सूप (soup) दिया जाता है। यदि यह कटोरा सूप से 4 सेमी ऊँचाई तक भरा जाता है, तो इस अस्पताल में 250 रोगियों के लिए प्रतिदिन कितना सूप तैयार किया जाता है?
हल : बेलनाकार कटोरे का व्यास = 7 सेमी
कटोरे की त्रिज्या (r) = [latex]\frac { 7 }{ 2 }[/latex] सेमी
कटोरे की ऊँचाई (h) = 4 सेमी
बेलनाकार कटोरे में डाले गए सूप का आयतन = πr²h
= [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] x [latex]\frac { 7 }{ 2 }[/latex] x [latex]\frac { 7 }{ 2 }[/latex] x 4 घन सेमी
= 154 घन सेमी।
1 रोगी के लिए आवश्यक सूप की मात्रा = 154 घन सेमी
250 रोगियों के लिए आवश्यक सूप की मात्रा = 250 x 154 घन सेमी = 38,500 घन सेमी
= [latex]\frac { 38500 }{ 1000 }[/latex]
= 38.5 लीटर
अत: प्रतिदिन 38,500 घन सेमी या 38.5 लीटर सूप तैयार किया जाता है।

प्रश्नावली 13.7

जब तक अन्यथा न कहा जाए, π = [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] लीजिए।
प्रश्न 1. उस लम्ब वृत्तीय शंकु का आयतन ज्ञात कीजिए, जिसकी|
(i) त्रिज्या 6 सेमी और ऊँचाई 7 सेमी है।
(ii) त्रिज्या 3.5 सेमी और ऊँचाई 12 सेमी है।
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प्रश्न 2. शंकु के आकार के उस बर्तन की लीटरों में धारिता ज्ञात कीजिए जिसकी
(i) त्रिज्या 7 सेमी और तिर्यक ऊँचाई 25 सेमी है।
(ii) ऊँचाई 12 सेमी और तिर्यक ऊँचाई 13 सेमी है।
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प्रश्न 3. एक शंकु की ऊँचाई 15 सेमी है। यदि उसका आयतन 1570 सेमी है, तो इसके आधार की त्रिज्या ज्ञात कीजिए। (π = 3.14 प्रयोग कीजिए।)
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प्रश्न 4. यदि 9 सेमी ऊँचाई वाले एक लम्बे वृत्तीय शंकु का आयतन 48 7 सेमी है तो इसके आधार का व्यास ज्ञात कीजिए।
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प्रश्न 5. ऊपरी व्यास 3.5 मीटर वाले शंकु के आकार का एक गड्ढा 12 मीटर गहरा है। इसकी धारिता किलोलीटरों में कितनी है?
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प्रश्न 6. एक लम्ब वृत्तीय शंकु का आयतन 9856 सेमी है। यदि इसके आधार का व्यास 28 सेमी है तो ज्ञात कीजिए।
(i) शंकु की ऊँचाई
(ii) शंकु की तिर्यक ऊँचाई
(iii) शंकु का वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल
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प्रश्न 7. भुजाओं 5 सेमी, 12 सेमी और 13 सेमी वाले एक समकोण त्रिभुज ABC को भुजा 12 सेमी के परितः घुमाया जाता है। इस प्रकार प्राप्त ठोस का आयतन ज्ञात कीजिए।
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प्रश्न 8. यदि प्रश्न 7 के त्रिभुज ABC को यदि भुजा 5 सेमी के परितः घुमाया जाए, तो इस प्रकार प्राप्त ठोस का आयतन ज्ञात कीजिए। प्रश्न 7 और 8 में प्राप्त किए गए दोनों ठोसों के आयतनों का अनुपात भी ज्ञात कीजिए।
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प्रश्न 9. गेहूँ की एक ढेरी 10.5 मीटर व्यास और 3 मीटर ऊँचाई वाले एक शंकु के आकार की है। इसका आयतन ज्ञात कीजिए। इस ढेरी को वर्षा से बचाने के लिए कैनवास से ढका जाता है। वाँछित कैनवास का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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प्रश्नावली 13.8

जब तक अन्यथा न कहा जाए, π = [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] लीजिए।
प्रश्न 1. उस गोले का आयतन ज्ञात कीजिए जिसकी त्रिज्या निम्नलिखित हैं
(i) 7 सेमी
(ii) 0.63 मीटर
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प्रश्न 2. उस ठोस गोलाकार गेंद द्वारा हटाए गए (विस्थापित) पानी का आयतन ज्ञात कीजिए, जिसका व्यास निम्नलिखित है :
(i) 28 सेमी
(ii) 0.21 मीटर।
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प्रश्न 3. धातु की एक गेंद को व्यास 4.2 सेमी है। यदि इस धातु का घनत्व 8.9 ग्राम प्रति घन सेमी है तो इस गेंद का द्रव्यमान ज्ञात कीजिए।
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प्रश्न 4. चन्द्रमा का व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग एक-चौथाई है। चन्द्रमा का आयतन पृथ्वी के आयतन की कौन-सी भिन्न है?
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प्रश्न 5. व्यास 10.5 सेमी वाले एक अर्द्ध-गोलाव कार कटोरे में कितने लीटर दूध आ सकता है?
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प्रश्न 6. एक अर्द्ध-गोलाकार टंकी 1 सेमी मोटी एक लोहे की चादर (sheet) से बनी है। यदि इसकी आन्तरिक त्रिज्या 1 मीटर है, तो इस टंकी के बनाने में लगे लोहे का आयतन ज्ञात कीजिए।
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प्रश्न 7. उस गोले का आयतन ज्ञात कीजिए जिसका पृष्ठीय क्षेत्रफल 154 वर्ग सेमी है।
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प्रश्न 8. किसी भवन का गुम्बद एक अर्द्ध-गोले के आकार का है। अन्दर से, इसमें सफेदी कराने में 498.96 व्यय हुए। यदि सफेदी कराने की दर 2 प्रति वर्ग मीटर है, तो ज्ञात कीजिए।
(i) गुम्बद का आन्तरिक वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल
(ii) गुम्बद के अन्दर की हवा का आयतन।
हल :
(i) माना अर्द्ध-गोलाकार गुम्बद की त्रिज्या मीटर है।
अर्द्ध-गोलाकार गुम्बद खोखला होता है।
अर्द्ध-गोलाकार गुम्बद को आन्तरिक पृष्ठ = 2πr² वर्ग मीटर
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प्रश्न 9. लोहे के संत्ताइस ठोस गोलों को पिघलाकर, जिनमें से प्रत्येक की त्रिज्या है और पृष्ठीय क्षेत्रफल S है, एक बड़ा गोला बनाया जाता है, जिसका पृष्ठीय क्षेत्रफल S’ है। ज्ञात कीजिए :
(i) नए गोले की त्रिज्या r’
(ii) S और S’ का अनुपात।
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प्रश्न 10. दवाई का एक कैपसूल (capsule) 3.5 मिमी व्यास का एक गोला (गोली) है। इस कैपसूल को भरने के लिए कितनी दवाई (घन मिमी में) की आवश्यकता होगी?
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प्रश्नावली 13.9 (ऐच्कि)

प्रश्न 1. एक लकड़ी के बुक-शैल्फ (book-shelf) की बाहरी विमाएँ 85 सेमी निम्नलिखित हैं :
ऊँचाई = 110 सेमी, गहराई = 25 सेमी, चौड़ाई = 85 सेमी। प्रत्येक स्थान पर तख्तों की मोटाई 5 सेमी है। इसके बाहरी फलकों पर पॉलिश कराई जाती है। और आन्तरिक फलकों पर पेंट किया जाना है। यदि पॉलिश कराने की दर 20 पैसे प्रति सेमी है और पेंट कराने की दर 10 पैसे प्रति सेमी है तो इस बुक-शैल्फ पर पॉलिश और पेंट कराने का कुल व्यय ज्ञात कीजिए।
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हल :
दिया है, ऊँचाई = 110 सेमी, गहराई = 25 सेमी तथा चौड़ाई = 85 सेमी तख्तों की मोटाई = 5 सेमी।
पॉलिश वाले भाग का क्षेत्रफल = चार दीवारों का क्षेत्रफल + बुक-शैल्फ के पीछे का क्षेत्रफल + सामने की पट्टिकाओं का क्षेत्रफल
= [(2 x गहराई x ऊँचाई) + (2 x चौड़ाई x गहराई) + (चौड़ाई x ऊँचाई) + {2 x ऊँचाई x मोटाई) + 4 x (चौड़ाई – 5 – 5) मोटाई }]
= [(2 x 25 x 110 + 2 x 85 x 25) + 85 x 10 + {2 x 110 x 5 + 4 x (85 – 10) x 5}]
= [2 (110 + 85) x 25 + 110 x 85 + 110 x 5 x 2 + (75 x 5) x 4]
= 9750 + 9350 + 1100 + 1500
= 21700 वर्ग सेमी
अब प्रति वर्ग सेमी पर पॉलिश कराने का व्यय = 20 पैसे = [latex]\frac { 20 }{ 100 }[/latex] [1 पैसा = [latex]\frac { 1 }{ 100 }[/latex] ]
21700 वर्ग सेमी पर पॉलिश कराने का व्यय = (21700 x [latex]\frac { 20 }{ 100 }[/latex]) = 4340
आन्तरिक वक्र पृष्ठ = विमाओं 75 सेमी x 30 सेमी x 20 सेमी के प्रत्येक 3 घनाभों का कुल वक्र पृष्ठ – विमाओं 75 सेमी x 30 सेमी x 20 सेमी के प्रत्येक 3 घनाभों के सामने के फलक का क्षेत्रफल
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प्रश्न 2. किसी घर के कम्पाउण्ड की सामने की दीवार को 21 सेमी व्यास वाले लकड़ी के गोलों को छोटे आधारों पर टिकाकर सजाया जाता है, जैसा कि संलग्न आकृति में दिखाया गया है। इस प्रकार के आठ गोलों का प्रयोग इस कार्य के लिए किया जाना है और इन गोलों को चाँदी वाले रंग में पेंट करवाना है। प्रत्येक आधार 1.5 सेमी त्रिज्या और ऊँचाई 7 सेमी का एक बेलन है तथा इन्हें काले रंग से पेंट करवाना है। यदि चाँदी के रंग का पेंट करवाने की दर 25 पैसे प्रति सेमी है तथा काले रंग के पेंट करवाने की दर 5 पैसे प्रति सेमी हो, तो पेंट करवाने का कुल व्यय ज्ञात कीजिए।
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प्रश्न 3. एक गोले के व्यास में 25% की कमी हो जाती है। उसका वक्र पृष्ठीय क्षेत्रफल कितने प्रतिशत कम हो गया है?
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We hope the UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes (पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 13 Surface Areas and Volumes (पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 (Section 3)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन (अनुभाग – तीन)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन (अनुभाग – तीन).

विस्तृत उत्तरीय प्रत

प्रश्न 1.
भारत में पायी जाने वाली मिट्टियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए तथा उनका आर्थिक महत्त्व लिखिए। [2011]
या

जलोढ़ मिट्टी वाले क्षेत्र में जनसंख्या के अधिक घनत्व के कारणों की व्याख्या कीजिए।
या
भारत में कितने प्रकार की मिट्टियाँ पायी जाती हैं ? उनके क्षेत्र तथा महत्त्व बताइए।
या
मरुस्थलीय मिट्टी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
या
जलोढ़ मिट्टी और काली मिट्टी में अन्तर बताइए। [2011]
या

भारत में पायी जाने वाली दो मिट्टियों का नाम क्षेत्र सहित लिखिए। [2011]
या

मिट्टी के किन्हीं दो महत्त्वों का वर्णन कीजिए। [2013]
या

जलोढ़ मिट्टी से आप क्या समझते हैं? इसके दो प्रमुख क्षेत्र तथा प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
या
काली मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। [2018]
या

भारत में पायी जाने वाली किसी एक प्रकार की मिट्टी का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) क्षेत्र, (ख) विशेषताएँ, (ग) उपयोगिता।
या
भारत की मिट्टियों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए तथा किसी एक मिट्टी की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :

भारतीय मिट्टियाँ, उनके क्षेत्र एवं आर्थिक महत्त्व

भारत में निम्नलिखित प्रकार की मिट्टियाँ पायी जाती हैं—

1. पर्वतीय मिट्टी,
2. जलोढ़ मिट्टी,
3. काली अथवा रेगुर मिट्टी,
4. लाल मिट्टी,
5. लैटेराइट मिट्टी तथा
6. मरुस्थलीय मिट्टी।

1. पर्वतीय मिट्टियाँ- हिमालय पर्वतीय प्रदेश में नवीन, पथरीली, उथली तथा सरन्ध्र मिट्टियाँ पायी जाती हैं। इन मिट्टियों का विस्तार भारत में लगभग 2 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्रफल में है। हिमालय पर्वत के दक्षिणी भागों में कंकड़-पत्थर तथा मोटे कणों वाली बालूयुक्त मिट्टी पायी जाती है। नैनीताल, मसूरी तथा चकरौता क्षेत्र में चूने के अंशों की प्रधानता वाली मिट्टी पायी जाती है। हिमालय के कुछ क्षेत्रों में आग्नेय (UPBoardSolutions.com) शैलों के विखण्डन से निर्मित मिट्टियाँ पायी जाती हैं। हिमाचल प्रदेश में काँगड़ा, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग तथा असम के पहाड़ी ढालों पर इसी मिट्टी की अधिकता मिलती है। चाय उत्पादन के लिए यह मिट्टी सर्वश्रेष्ठ है। इसी कारण इसे ‘चाय की मिट्टी’ के नाम से पुकारा जाता है।

2. जलोढ़ मिट्टी- भारत के विशाल उत्तरी मैदान में नदियों द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों से बहाकर लाई गयी जीवांशों से युक्त उपजाऊ मिट्टी मिलती है, जिसे ‘काँप’ या ‘कछारी’ मिट्टी भी कहते हैं। इस मिट्टी का विस्तार देश के 40% क्षेत्रफल में है। यह मिट्टी हिमालय पर्वत से निकलने वाली तीन बड़ी नदियों सतलुज, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा उनकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर लाई गयी है। जलोढ़ मिट्टी पूर्वी तटीय मैदानों, विशेष रूप से महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा प्रदेश में भी सामान्य रूप से मिलती है। जिन क्षेत्रों में बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता, वहाँ पुरानी जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है, जिसे ‘बाँगर’ कहा जाता है। वास्तव में यह मिट्टी भी नदियों द्वारा बहाकर लाई गयी प्राचीन काँप मिट्टी ही होती है। जिन क्षेत्रों में नदियों ने नवीन काँप मिट्टी का जमाव किया है, उसे ‘खादर’ के नाम से पुकारा जाता है। नवीन जलोढ़ मिट्टियाँ प्राचीन जलोढ़ मिट्टियों की अपेक्षा अधिक उपजाऊ होती हैं। सामान्यतः जलोढ़ मिट्टियाँ सर्वाधिक उपजाऊ होती हैं।

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इनमें पोटाश, चूना तथा फॉस्फोरिक अम्ल पर्याप्त मात्रा में होता है, परन्तु नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है। शुष्क प्रदेशों की मिट्टियों में क्षारीय तत्त्व अधिक होते हैं। भारत की लगभग 50% जनसंख्या का भरण-पोषण इन्हीं मिट्टियों द्वारा होता है। इन मिट्टियों में गेहूँ, गन्ना, चावल, तिलहन, तम्बाकू, जूट आदि फसलों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। इन्हीं कारणों से यहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

3. काली अथवा रेगुर मिट्टी- इस मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित लावा की शैलों के विखण्डन के फलस्वरूप हुआ है। इस मिट्टी का रंग काला होता है, जिस कारण इसे ‘काली मिट्टी’ अथवा ‘रेगुर मिट्टी’ भी कहा जाता है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है। इसमें लोहांश, मैग्नीशियम, चूना, ऐलुमिनियम तथा जीवांशों की मात्रा अधिक पायी जाती है। वर्षा होने पर यह चिपचिपी-सी हो जाती है तथा सूखने पर इसमें दरारें पड़ जाती हैं। इस मिट्टी का विस्तार दकन ट्रैप के उत्तर-पश्चिमी भागों में लगभग 5.18 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल पर है। महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा तथा दक्षिणी मध्य प्रदेश के पठारी भागों (UPBoardSolutions.com) में यह मिट्टी विस्तृत है। इस मिट्टी का विस्तार दक्षिण में गोदावरी तथा कृष्णा नदियों की घाटियों में भी है।
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन 1
इस मिट्टी में कपास का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन होने के कारण इसे ‘कपास की काली मिट्टी के नाम से भी पुकारा जाता है। इसमें पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। कैल्सियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम कार्बोनेट, पोटाश और चूना इसके प्रमुख पोषक तत्त्व हैं। इस मिट्टी में फॉस्फोरिक तत्त्वों की कमी होती है। ग्रीष्म ऋतु में इस मिट्टी में गहरी दरारें पड़ जाती हैं। इस मिट्टी में कपास, गन्ना, मूंगफली, तिलहन, गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, तम्बाकू, सोयाबीन आदि फसलों का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में किया जाता है।

4. लाल मिट्टी- यह मिट्टी लाल, पीले या भूरे रंग की होती है। इसमें लोहांश की मात्रा अधिक होने के कारण उनके ऑक्साइड में बदलने से इस मिट्टी का रंग ईंट के समाने लाल होता है। प्रायद्वीपीय पठार के दक्षिण-पूर्वी भागों पर लगभग 6 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल में इस मिट्टी का विस्तार पाया जाता है। लाल मिट्टी ने काली मिट्टी के क्षेत्र को चारों ओर से घेर रखा है। भारत में इस मिट्टी का विस्तार कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र के दक्षिण-पूर्वी भाग, तमिलनाडु, ओडिशा, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, मेघालय तथा छोटा नागपुर के पठार पर है। लाल मिट्टी में फॉस्फोरिक अम्ल, जैविक तथा नाइट्रोजन पदार्थों की कमी पायी जाती है। इस मिट्टी में मोटे अनाज; जैसे-ज्वार, बाजरा, गेहूँ, दलहन, तिलहन आदि फसलें उगायी जाती हैं।

5. लैटेराइट मिट्टी- उष्ण कटिबन्धीय भारी वर्षा के कारण होने वाली तीव्र निक्षालन की क्रिया के फलस्वरूप इस मिट्टी का निर्माण हुए है। इस मिट्टी का रंग गहरा पीला होता है, जिसमें सिलिका तथा लवणों की मात्रा अधिक होती है। इसमें मोटे कण, कंकड़-पत्थर की अधिकता तथा जीवांशों का अभाव पाया जाता है। भारत में यह मिट्टी 1.26 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल पर विस्तृत है। यह मिट्टी केरल, कर्नाटक, राजमहल की पहाड़ियों, ओडिशी, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पूर्वी बिहार, उत्तर-पूर्व में मेघालय तथा दक्षिण महाराष्ट्र में पायी जाती है। लैटेराइट मिट्टी कम उपजाऊ होती है। यह केवल घास तथा झाड़ियों को पैदा करने के लिए ही उपयुक्त है, परन्तु उर्वरकों की सहायता से इस मिट्टी में चावल, गन्ना, काजू, चाय, कहवा तथा रबड़ की कृषि की जाने लगी है।

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6. मरुस्थलीय मिट्टी- मरुस्थलीय क्षेत्रों में वर्षा बहुत कम होने के कारण यहाँ ऊसर, धूर, राँकड़ तथा कल्लर जैसी मिट्टियाँ पायी जाती हैं। यह मिट्टी लवण एवं क्षारीय गुणों से युक्त होती है। इस मिट्टी में सोडियम, कैल्सियम व मैग्नीशियम तत्त्वों की प्रधानता होती है, जिससे यह अनुपजाऊ हो गयी है। इसमें नमी एवं वनस्पति के अंश नहीं पाये जाते हैं। इसमें सिंचाई करके केवल मोटे अनाज ही उगाये जाते हैं। यह मिट्टी सरन्ध्र होती है तथा इसमें बालू के पर्याप्त कण दिखलायी पड़ते हैं। भारत में इस मिट्टी का विस्तार 1.5 लाख वर्ग हेक्टेयर क्षेत्रफल पर मिलता है। मरुस्थलीय मिट्टी पश्चिमी राजस्थान, उत्तरी गुजरात, (UPBoardSolutions.com) पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी पंजाब एवं हरियाणा राज्यों में पायी जाती है। बालू के मोटे कणों की प्रधानता होने के कारण इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता बहुत कम होने के साथ-साथ जीवांश तथा नाइट्रोजन की मात्रा भी कम होती है। आर्थिक दृष्टि से मरुस्थलीय मिट्टियाँ उपयोगी नहीं होतीं, परन्तु इनमें सिंचाई करके मोटे अनाज (ज्वार, बाजरा, मूंग तथा उड़द) उगाये जा सकते हैं।

प्रश्न 2.
‘भू-क्षरण’ या ‘मृदा-अपरदन’ से आप क्या समझते हैं ? इनके कारण तथा निवारण के उपायों पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
या
मृदा-अपरदन किसे कहते हैं ? मृदा-अपरदन के चार कारण लिखिए। [2009]
या

मृदा-संरक्षण के दो उपाय बताइए। [2013]
या

मृदा-संरक्षण नियन्त्रण हेतु चार सुझाव सुझाइए। [2016]
या

भूमि-क्षरण के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए। [2013]
या

भारतीय मिट्टी के संरक्षण हेतु पाँच सुझाव दीजिए। [2011, 17]
या

मृदा संरक्षण से आप क्या समझते हैं। मृदा संरक्षण के कोई छः उपाय बताइए। [2016, 18]
उत्तर :

भू-क्षरण या मृदा-अपरदन

भू-क्षरण या मृदा-अपरदन से अभिप्राय प्राकृतिक साधनों (जल या वर्षा, पवन आदि) के द्वारा भूमि की ऊपरी परत या आवरण के नष्ट होने से है। भूमि-अपरदन से भौतिक हानि के अलावा आर्थिक हानि भी होती है, क्योंकि इससे भूमि की ऊपरी परत में मौजूद उर्वर (UPBoardSolutions.com) पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं तथा भूमि अनुर्वर हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि भू-क्षरण वास्तव में मिट्टी के विनाश के लिए रेंगती हुई मृत्यु के समान है।

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भू-क्षरण के कारण
मृदा-अपरदन अथवा भू-क्षरण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

  1. पवन-अपरदन- मरुस्थलों और अर्द्ध-मरुस्थलों में पवन मिट्टी के महीन कणों को उड़ाकर ले जाती . है, जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो जाती है।
  2. अत्यधिक चराई- पहाड़ी ढालों पर पशुओं और विशेषकर बकरियों द्वारा अत्यधिक चराई के फलस्वरूप मिट्टी का अपरदन होता है।
  3. प्राकृतिक वनस्पति का विनाश- वृक्षों की जड़ें मिट्टी के कणों को बाँधे रहती हैं और उन्हें बह जाने से रोकती हैं। किन्तु जिन स्थानों पर वृक्षों को अन्धाधुन्ध काट दिया जाता है, वहाँ पानी के बहाव की गति तेज हो जाती है और मिट्टी का अपरदन बढ़ जाता है।
  4. मूसलाधार वर्षा- मूसलाधार वर्षा अपने साथ मृदा को बहाकर ले जाती है, जिससे अत्यधिक भूमि-अपरदन होता है।
  5. मिट्टी के प्रकार- जिन क्षेत्रों में मिट्टी ढीली, असंगठित या तीव्र ढाल वाली होती है, वहाँ मिट्टी का अपरदन भी अधिक या शीघ्र होता है। अधिक तीव्र ढालों पर बहता हुआ जल अधिक अपरदन करता
    है, जिसे अवनालिका अपरदन कहते हैं।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि भारत में भू-क्षरण के लिए तीव्र एवं मूसलाधार वर्षा का होना, नदियों में प्रतिवर्ष बाढ़ों का आना, वनों का अधिकाधिक विनाश, खेतों को खाली एवं परती छोड़ देना, तीव्र पवनप्रवाह का होना, कृषि-भूमि पर पशुओं की अनियमित एवं अनियन्त्रित चराई, खेतों की उचित मेड़बन्दी न किया जाना, भूमि का अधिक ढालूपन, जल निकास की उचित व्यवस्था का न होना आदि कारक उत्तरदायी हैं।

निवारण (मृदा संरक्षण) के उपाय
भू-क्षरण की समस्या के निवारण के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं

1. वृक्षारोपण- 
जिन प्रदेशों में बढ़े अधिक आती हैं, वहाँ जल की (UPBoardSolutions.com) गति को नियन्त्रित करने के लिए वृक्षारोपण किया जाना चाहिए। वृक्षों से गिरने वाली पत्तियाँ खेतों में जीवांश की वृद्धि कर उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में भी कारगर सिद्ध होती हैं।

2. नदियों पर बाँधों का निर्माण- 
नदियों पर बाँधों का निर्माण कर दिये जाने से जल-गति नियन्त्रित होती है तथा बाढ़ के प्रकोप में भी कमी आती है। बाढ़ में कमी आने से भू-क्षरण भी स्वत: ही कम होता है।

3. खेतों की मेड़बन्दी करना- 
भू-क्षरण में कमी लाने के लिए खेतों में ऊँची-ऊँची मेड़बन्दी करना अति आवश्यक है।

4. पशुचारण पर नियन्त्रण- 
पशुओं द्वारा खाली या जोती हुई भूमि पर चराई नहीं करानी चाहिए, क्योंकि पशुओं के खुरों से मिट्टी टूटती है। अत: चरागाहों पर ही पशुचारण किया जाना उचित होता है।

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5. ढाल के विपरीत दिशा में जुताई करना- 
भू-क्षरण रोकने के लिए भूमि के ढाल की विपरीत दिशा में जुताई करनी चाहिए। इससे निर्मित नालियाँ जल की गति को कम कर भू-क्षरण को रोकने में कारगर सिद्ध हो सकती हैं।

6. जल के निकास की उचित व्यवस्था- 
ढालू खेतों में वर्षा के जल के निकास की उचित व्यवस्था कर भू-क्षरण को कुछ सीमा तक रोका जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेतों का ही निर्माण किया जाना चाहिए, अन्यथा भू-क्षरण अत्यधिक होगा।

7. खेतों में हरी खाद वाली फसलें उगाना- 
वर्षा ऋतु में खेतों को खुला नहीं छोड़ना चाहिए, वरन् उनमें हरी खाद वाली फसलें—लैंचा, सनई, मूंग नं० 1 आदि बोनी चाहिए। ऐसा करने से मिट्टी को पोषक तत्त्वों की प्राप्ति होगी तथा भू-क्षरण भी रुक सकेगा।

8: नाली एवं गड्ढों को एक सम बनाना- 
वर्षा के आधिक्य के कारण जल-प्रवाह द्वारा निर्मित गड्ढों एवं नालियों को मिट्टी से भरकर भूमि को समतल बना देना चाहिए। इससे भूमि का कटाव स्वत: ही रुक जाएगा।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार का ध्यान भू-क्षरण की ओर गया है तथा इस समस्या के निवारण हेतु सन् 1953 ई० में केन्द्रीय भू-क्षरण बोर्ड की स्थापना की गयी है, जिसका मुख्य कार्य सरकार को इस
समस्या के सम्बन्ध में सुझाव देना है। वर्तमान समय तक 180 लाख हेक्टेयर (UPBoardSolutions.com) कृषि- भूमि का संरक्षण किया जा चुका है तथा 110 लाख हेक्टेयर भूमि पर वृक्षारोपण का कार्य पूरा किया जा चुका है।

प्रश्न 3.
भारत में भूमि उपयोग की विभिन्न श्रेणियों की व्याख्या कीजिए।
या
किसी देश में भूमि के उपयोग के बारे में जानने की आवश्यकता क्यों पड़ती है ? भारत में विभिन्न प्रकार की भूमि के उपयोग पर प्रकाश डालिए।
या
भारत में भूमि उपयोग का प्रारूप बताइए। [2013]
या
भूमि उपयोग से आप क्या समझते हैं ? भारत में भूमि उपयोग के प्रारूप पर प्रकाश डालिए। [2010]
उत्तर :

भूमि-उपयोग

किसी भी देश के आर्थिक विकास में संसाधनों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। संसाधन दो प्रकार के होते हैं–प्राकृतिक तथा मानव द्वारा निर्मित। प्राकृतिक संसाधनों में भूमि तथा खनिज, जल, वन तथा पशुधन आदि प्रमुख हैं। पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं, जब कि जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। घने बसे देशों; जैसे-भारत में भूमि संसाधन दुर्लभ होते जा रहे हैं।

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बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए आवास, अन्न तथा वनों की लकड़ी उपलब्ध कराने के लिए भूमि संसाधन का विवेकपूर्ण उपयोग अति आवश्यक हो गया है। अतः यह जरूरी है कि बंजर तथा बेकार भूमि का पुनरुद्धार, राष्ट्रीय उद्यानों तथा अभयारण्यों की स्थापना, वनारोपण उपायों द्वारा भूमि संसाधने का संरक्षण किया जाए जिससे भावी पीढ़ियों के लिए यह सुरक्षित रह सके। भूमि उपयोग से यही अभिप्राय है कि हम भूमि संसाधन का विवेकपूर्ण दोहन करें, क्योंकि भूमि संसाधन की उपयोगिता पर ही किसी देश की आर्थिक समृद्धि निर्भर करती है। अफगानिस्तान की आर्थिक दुर्दशा का कारण भूमि-संसाधन का प्रयोग में न आना ही है। इसके विपरीत भारत 108 करोड़ से भी अधिक देशवासियों को अन्न देकर भी अन्न बचा रहा है।

भूमि-उपयोग के ज्ञान की आवश्यकता

भूमि किसी भी देश का सबसे महत्त्वपूर्ण संसाधन है, क्योंकि भूमि पर ही कृषि, पशुपालन, खनन, उद्योग आदि व्यवसाय आधारित हैं। भूमि से ही किसी भी देश की जनसंख्या का पोषण होता है। मानव-मात्र की समस्त प्राथमिक आवश्यकताएँ (भोजन, वस्त्र, आवास) (UPBoardSolutions.com) भूमि से ही पूरी होती हैं। प्रत्येक देश में उपलब्ध भूमि संसाधनों की प्रकृति तथा स्वरूप भिन्न-भिन्न होते हैं। तदनुसार वहाँ भूमि का उपयोग किया जाता है। किसी भी देश के भूमि-उपयोग के बारे में जानना निम्नलिखित कारणों से आवश्यक होता है

  • इससे कुल प्राप्त भूमि संसाधनों के उचित उपयोग को नियोजित किया जा सकता है।
  • भूमि-उपयोग प्रारूप के ज्ञान से भूमि की विविध समस्याओं (जैसे-अपरदन, मरुस्थलीकरण, अनुर्वरता आदि) को नियन्त्रित किया जा सकता है।
  • बंजर भूमि तथा परती भूमि का उचित उपयोग किया जा सकता है।
  • आवश्यकतानुसार भूमि के उपयोग में परिवर्तन किया जा सकता है।

भारत में भूमि का उपयोग

भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र 3287.3 लाख हेक्टेयर में से 92.2% भूमि का उपयोग होता है। इसमें 19.3% भाग वनों से आच्छादित है। भारतीय सांख्यिकीय रूपरेखा में देश की भूमि के उपयोग को निम्नवत् प्रदर्शित किया गया है–

1. कृषि-भूमि- 
नवपाषाण काल के भारतीयों ने देश में लगभग 14 हजार हेक्टेयर भूमि पर कृषि- कार्य आरम्भ कर दिया, जो वर्ष 1993-94 तक 1,86,420 हजार हेक्टेयर तक पहुंच चुका था। इस प्रकार देश की लगभग आधी से अधिक भूमि कृषि के अन्तर्गत आ चुकी थी।

2. वन-भूमि- 
भारत के कुल क्षेत्रफल के 68,830 हजार हेक्टेयर भूमि (1995-96) अर्थात् 21% क्षेत्र वनों के अन्तर्गत है। वन वर्षा के जल को मिट्टी के अन्दर रिसने में सहायक होते हैं। इससे जल का संरक्षण होता है। वन मृदा का भी संरक्षण करते हैं, जिससे बाढ़ों पर नियन्त्रण होता है।

3. चरागाह भूमि- 
हमारा देश कृषि प्रधान देश है और यहाँ पशुपालन कृषि के सहायक उद्योग के रूप में प्रचलित है। अधिकांशतः पशुओं को चारे की फसलों; पुआल, भूसा आदि; पर पाला जाता है। वर्ष 1993-94 में हमारे देश में 11,176 हजार हेक्टेयर भूमि अर्थात् देश के कुल क्षेत्र के लगभग 4% भाग पर स्थायी चरागाह थे।

4. बंजर भूमि- 
वह भूमि जिस पर कोई उपज पैदा नहीं होती, बंजर भूमि कहलाती है। अन्धाधुन्ध वृक्ष काटने, स्थानान्तरी कृषि तथा अत्यधिक नहरीय सिंचाई द्वारा भूमि बंजर हो जाती है। औद्योगिक कूड़ेकचरे को भूमि पर फेंकने से भी भूमि बंजर हो जाती है। (UPBoardSolutions.com) देश की लगभग 24% भूमि बंजर है, जिसके अन्तर्गत पर्वतीय, पठारी, हिमाच्छादित, मरुस्थलीय, दलदली तथा अन्य भूमि जो कृषि के लिए अनुपयुक्त है, सम्मिलित हैं।

5. परती भूमि- 
परती भूमि वह भूमि होती है, जिस पर प्रत्येक वर्ष खेती नहीं की जाती, अपितु दो या तीन वर्षों में एक बार फसल उगायी जाती है। यह सीमान्त भूमि होती है, जिसे उर्वरता बढ़ाने के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। वर्तमान समय में देश का लगभग 7% क्षेत्र इस प्रकार की भूमि के अन्तर्गत

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय मिट्टियों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
भारतीय संसाधनों में मिट्टियों का भूमि संसाधन के रूप में बड़ा महत्त्व है, क्योंकि इन्हीं पर देश का सम्पूर्ण कृषि उत्पादन एवं जैव-जगत् निर्भर करता है। अमेरिकी भूमि विशेषज्ञ डॉ० बेनेट के अनुसार, ‘मिट्टी भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की वह ऊपरी परत है, जो मूल शैलों, जलवायु एवं जैव क्रिया से बनती है।” भारतीय मिट्टियों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • पुरानी एवं परिपक्व- रचना की दृष्टि से अधिकांश भारतीय मिट्टियाँ बहुत (UPBoardSolutions.com) पुरानी और पूर्णत: परिपक्व हैं।
  • प्राचीन जलोढ़- भारत के मैदानी भागों की अधिकांश मिट्टियाँ प्राचीन जलोढ़ हैं, जो न केवल शैलों के विखण्डन से बनी हैं, वरन् उनके निर्माण में जलवायु सम्बन्धी कारकों का भी प्रमुख हाथ रहा है।
  • मिट्टियों में नाइट्रोजन, जीवांश, वनस्पति अंश और खनिज लवणों की कमी- भारत की प्रायः सभी मिट्टियों में इन उपयोगी तत्त्वों की कमी पायी जाती है।
  • ऊँचे तापमान- उपोष्ण कटिबन्धीय भारत में मिट्टियों के तापमान प्राय: ऊँचे पाये जाते हैं। इससे शैलों के टूटते ही उनका रासायनिक विघटन शीघ्र आरम्भ हो जाता है।
  • हल्का आवरण- पहाड़ी एवं पठारी भागों में मिट्टी का आवरण हल्का और फैला हुआ होता है, जबकि मैदानी और डेल्टाई क्षेत्रों में यह गहरों और संगठित होता है।

प्रश्न 2.
काली मिट्टी (रेगुर) तथा लैटेराइट मिट्टी में दो अन्तर लिखिए।
या
काली मिट्टी तथा लैटेराइट मिट्टी में अन्तर बताइए।
उत्तर :
काली मिट्टी तथा लैटेराइट मिट्टी में निम्नलिखित प्रमुख अन्तर हैं
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन 2

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प्रश्न 3.
खादर और बाँगर में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2011, 12, 16]
उत्तर :
बाँगर मिट्टी तथा खादर मिट्टी में निम्नलिखित प्रमुख अन्तर हैं
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन 3
प्रश्न 4.
जलोढ़ मिट्टी व लैटेराइट मिट्टी में अन्तर लिखिए।
उत्तर :
जलोढ़ मिट्टी व लैटेराइट मिट्टी में निम्नलिखित प्रमुख अन्तर हैं
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन 4
प्रश्न 5.
बंजर भूमि किसे कहते हैं ? मनुष्य बंजर भूमि का क्षेत्र बढ़ाने में किस प्रकार सहायक है ? दो बिन्दु दीजिए।
उत्तर :
वह भूमि जिस पर कोई उपज पैदा नहीं होती, ‘बंजर भूमि’ कहलाती है। प्रायः उच्च पहाड़ी. चट्टानी, रेतीली तथा दलदली भूमियाँ बंजर होती हैं। बंजर भूमि के क्षेत्रफल की वृद्धि में मनुष्य की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसके दो बिन्दु अग्रलिखित हैं

  • अन्धाधुन्ध वृक्ष काटने, स्थानान्तरी कृषि तथा अत्यधिक नहरी सिंचाई द्वारा भूमि बंजर हो जाती है।
  • औद्योगिक कूड़े-कचरे को भूमि पर फेंकने से भी वह भूमि बंजर हो जाती है।

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प्रश्न 6.
भूमि संसाधन का क्या तात्पर्य है? भूमि संसाधन के कोई तीन महत्त्व लिखिए। [2011]
या
भूमि से आप क्या समझते हैं ? [2010]
उत्तर :
किसी देश या प्रदेश के अन्तर्गत सम्मिलित भूमि को भूमि संसाधन कहते हैं। इसके अन्तर्गत कृष्य भूमि, चरागाह भूमि, कृषि-योग्य भूमि, बेकार भूमि, वन भूमि, बंजर भूमि, परती भूमि आदि सम्मिलित की जाती हैं। मनुष्य इस उपलब्ध भूमि पर विविध प्रकार से क्रिया-कलाप करता है। कृषि, पशुपालन, वनोद्योग, खनन, निर्माण उद्योग, परिवहन, व्यापार, संचार आदि सभी का सम्बन्ध भूमि संसाधन से होता है। भूमि संसाधन जल-संसाधनों को आधार प्रदान करते हैं तथा मनुष्य विभिन्न रूपों में इनका उपयोग अपने क्रिया-कलापों की पूर्ति में करता है।

प्रश्न 7.
हमारे देश में वनों के क्षेत्र को बढ़ाना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
वन किसी भी राष्ट्र की प्राकृतिक सम्पदा होते हैं। देश के आर्थिक विकास तथा पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए यह आवश्यक है कि देश में कम-से-कम एक-तिहाई क्षेत्र पर वनों का विस्तार हो। भारत में 20% से कम क्षेत्र पर ही वन उगे हुए हैं। देश की तेजी (UPBoardSolutions.com) से बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों का विस्तार करना आवश्यक है। वन प्राकृतिक सौन्दर्य में वृद्धि तो करते ही हैं, जीव-जन्तुओं और पक्षियों के अभयारण्य भी होते हैं। ये पारिस्थितिक सन्तुलन बनाने में भी महत्त्वपूर्ण होते हैं। वन जलवायु के नियन्त्रक भी कहे जाते हैं तथा वर्षा कराने में भी इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अतएव इनके क्षेत्र का विस्तार करना अत्यावश्यक है।

प्रश्न 8.
भारतीय काली मिट्टी को कपास की मिट्टी क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
इस मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित लावा की शैलों के विखण्डन के फलस्वरूप हुआ है। इस मिट्टी का रंग काला होता है, जिस कारण इसे ‘काली मिट्टी’ अथवा ‘रेगुर मिट्टी’ भी कहा जाता है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है। इसमें लोहांश, मैग्नीशियम, चूना, ऐलुमिनियम तथा जीवांशों की मात्रा अधिक पायी जाती है। इस मिट्टी का विस्तार लगभग 5 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल पर महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा तथा दक्षिणी मध्य प्रदेश के पठारी भागों में है। इसके अतिरिक्त दक्षिण में गोदावरी तथा कृष्णा नदियों की घाटियों में भी यह मिट्टी पायी जाती है। इस मिट्टी में कपास का भारी मात्रा में उत्पादन होने (UPBoardSolutions.com) के कारण इसे ‘कपास की काली मिट्टी’ के नाम से भी पुकारा जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऐसे दो राज्यों के नाम लिखिए जहाँ काली मिट्टी पायी जाती है।
उत्तर :
महाराष्ट्र तथा गुजरात ऐसे दो राज्य हैं, जहाँ काली मिट्टी बहुतायत से पायी जाती है।

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प्रश्न 2.
लैटेराइट मिट्टियाँ कहाँ पायी जाती हैं ?
उत्तर :
भारत में पश्चिमी घाट, छोटा नागपुर के पठार, मेघालय तथा तमिलनाडु की पहाड़ियों, केरल तथा पूर्वी घाट के क्षेत्रों में लैटेराइट मिट्टियाँ पायी जाती हैं।

प्रश्न 3.
मरुस्थलीय मिट्टी के कम उपजाऊ होने के दो कारण लिखिए।
उत्तर :
मरुस्थलीय मिट्टी के कम उपजाऊ होने के दो कारण निम्नलिखित हैं|

  • मरुस्थलीय मिट्टी में आर्द्रता धारण करने की क्षमता कम होती है।
  • इनमें नाइट्रोजन तथा जीवांश की कमी होती है।

प्रश्न 4.
‘बाँगर’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
बाँगर एक प्रकार की मिट्टी है, जो उत्तरी मैदान में नदियों की पुरानी काँप द्वारा निर्मित होती है।

प्रश्न 5.
लैटेराइट मिट्टी के कम उपजाऊ होने के दो कारण लिखिए।
उत्तर :
लैटेराइट मिट्टी के कम उपजाऊ होने के दो कारण निम्नलिखित हैं

  • लैटेराइट मिट्टी सिलिका तथा लवण (नमक) के कणों से युक्त होती है, जिसमें मोटे-मोटे कण तथा कंकड़-पत्थर का बाहुल्य होता है।
  • शुष्क मौसम में लैटेराइट मिट्टी ईंट की भाँति सख्त हो जाती है। (UPBoardSolutions.com) इस मिट्टी में कैल्सियम, मैग्नीशियम तथा नाइट्रोजन की कमी तथा पोटाश का अभाव होता है।

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प्रश्न 6.
लाल-पीली मिट्टी के कम उपजाऊ होने के दो कारण लिखिए।
उत्तर :
लाल-पीली मिट्टी के कम उपजाऊ होने के दो कारण निम्नलिखित हैं

  • प्राचीन क्रिस्टलीय शैलों के विखण्डन से बनने के कारण ये छिद्रयुक्त होती हैं; अत: इनमें जलधारण की क्षमता कम होती है।
  • इनमें फॉस्फोरिक अम्ल, जैविक तथा नाइट्रोजन पदार्थ (ह्यूमस) की कमी होती है।

प्रश्न 7.
जलोढ़ मिट्टी की किन्हीं दो प्रमुख विशेषताओं को लिखिए। [2016, 17]
उत्तर :
जलोढ़ मिट्टी की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • इसके कण सूक्ष्म होते हैं और इसमें जल देर तक ठहर सकता है।
  • इसमें पोटाश तथा चूने की पर्याप्त मात्रा होती है।

प्रश्न 8.
‘भू-क्षरण’ अथवा ‘भू-अपरदन’ के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
‘भू-क्षरण’ अथवा ‘भू-अपरदन’ के प्रमुख कारक हैं—

  • पवन,
  • अत्यधिक पशुचारण,
  • मूसलाधार वृष्टि तथा
  • प्राकृतिक वनस्पति का विनाश।

प्रश्न 9.
‘भू-क्षरण के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सामान्यतया भू-क्षरण निम्नलिखित दो प्रकार का होता है

  • चादरी भू-क्षरण-जब पवन अथवा जल के द्वारा भूमि की ऊपरी कोमल सतह काटकर उड़ा दी जाती है अथवा बहा दी जाती है, तो उसे समतल अथवा चादरी भू-क्षरण कहते हैं।
  • नालीदार भू-क्षरण–तीव्र गति से बहता हुआ जल जब भूमि (UPBoardSolutions.com) में गहरी-गहरी नालियाँ बना देता है, तो उसे गहन अथवा नालीदार भू-क्षरण कहते हैं।

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प्रश्न 10.
चाय की खेती के लिए उपयोगी मिट्टी कहाँ पायी जाती है ?
उत्तर :
मध्य हिमालय के पर्वतीय ढालों पर मिट्टी में वनस्पति अंशों की अधिकता होती है। इसमें लोहे की मात्रा अधिक तथा चूने का अंश कम होता है। यह मिट्टी चाय के उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। काँगड़ा, देहरादून, दार्जिलिंग तथा असोम के पहाड़ी ढालों पर यह मिट्टी अधिकता से पायी जाती है।

प्रश्न 11.
डेल्टाई काँप मिट्टी कहाँ पायी जाती है ?
उत्तर :
डेल्टाई काँप मिट्टी नदियों के डेल्टा में पायी जाती है, जहाँ नदियाँ काँप मिट्टी का जमाव करती रहती हैं। यह मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ होती है।

प्रश्न 12.
भारत की मिट्टी में किन तत्त्वों की कमी पायी जाती है ?
उत्तर :
भारत की मिट्टी में नाइट्रोजन, जीवांश, वनस्पति अंश और खनिज लवणों की कमी पायी जाती है।

प्रश्न 13.
समुचित भूमि उपयोग न करने के कौन-से दो दृष्परिणाम हो सकते हैं ?
उत्तर :
समुचित भूमि का उपयोग न करने के निम्नलिखित दो दुष्परिणाम हो सकते हैं|

  • कृषि-योग्य भूमि बंजर भूमि में बदल सकती है।
  • भूमि की उत्पादकता में कमी हो सकती है।

प्रश्न 14.
भारत में कहवा उत्पन्न करने वाले दो राज्यों के नाम लिखिए।
या
भारत में कहवा उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर :
उर्वरकों की सहायता से लैटेराइट मिट्टी में कहवा की खेती कर्नाटक, (UPBoardSolutions.com) केरल, महाराष्ट्र के दक्षिणी भागों, आन्ध्र प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है।

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प्रश्न 15.
चाय की खेती के लिए दो उपयोगी भौगोलिक दशाओं को लिखिए।
उत्तर :
चाय की खेती के लिए उपयोगी दो भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • मिट्टी में वनस्पति के अंशों व लोहे के अंशों की अधिकता तथा चूने के अंश की न्यूनता।
  • आग्नेय शैलों के विखण्डन से निर्मित नवीन, पथरीली, दलदली तथा प्रवेश्य मिट्टियाँ।

प्रश्न 16.
कपास की खेती के लिए सर्वोत्तम मिट्टी कौन-सी है ? उसकी एक विशेषता को लिखिए। [2015]
उत्तर :
कपास की खेती के लिए सर्वोत्तम मिट्टी ‘काली मिट्टी’ अथवा ‘रेगुर मिट्टी’ है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता पर्याप्त होती है तथा इसमें पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं।

प्रश्न 17.
लाल मिट्टी भारत में सबसे ज्यादा कहाँ पायी जाती है ?
उत्तर :
भारत में लाल मिट्टी कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के दक्षिण-पूर्वी भागों, तमिलनाडु, मेघालय, ओडिशा में पायी जाती है।

प्रश्न 18.
मिट्टी का निर्माण करने वाले दो कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • वायु तथा
  • जल

प्रश्न 19.
उत्तर प्रदेश के अधिकतर भागों में किस प्रकार की मिट्टी पायी जाती है ? [2010]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश के अधिकतर भागों में (UPBoardSolutions.com) जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है।

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‘बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. कौन-सी मिट्टी वर्षा से चिपचिपी हो जाती है? ‘
(क) लाल
(ख) काली
(ग) जलोढ़
(घ) पर्वतीय

2. काली मिट्टी कौन-सी फसल के लिए उपयुक्त है? [2013]
(क) गेहूँ
(ख) चना
(ग) कपास
(घ) गन्ना

3. लैटेराइट मिट्टी किस राज्य में अधिक मिलती है?
(क) कर्नाटक में
(ख) असोम में
(ग) मेघालय में
(घ) उत्तर प्रदेश में

4. जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है [2012]
(क) पर्वतीय क्षेत्रों में
(ख) मैदानी क्षेत्रों में
(ग) पठारी क्षेत्रों में
(घ) रेगिस्तानी क्षेत्रों में

5. लैटेराइट मिट्टी का रंग होता है
(क) काला
(ख) पीला
(घ) लाल

6. निम्नलिखित में से कौन-सी मिट्टी कपास उत्पादन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है? [2010]
या
कपास की खेती के लिए सबसे उत्तम मिट्टी है [2012, 13, 14]
(क) जलोढ़ मिट्टी
(ख) लाल मिट्टी
(ग) काली मिट्टी
(घ) लैटेराइट मिट्टी

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7. जलोढ़ मिट्टी का निर्माण मुख्यतः किसके द्वारा होता है? [2014, 16]
(क) ज्वालामुखी द्वारा
(ख) पवन द्वारा
(ग) हिमानी द्वारा
(घ) नदियों द्वारा

8. भारत के किस राज्य में काली मिट्टी का विस्तार सर्वाधिक है?
(क) महाराष्ट्र
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) असोम
(घ) राजस्थान

9. वन हमारी सहायता करते हैं
(क) मिट्टी का कटाव रोककर
(ख) बाढ़ रोककर
(ग) वर्षा की मात्रा बढ़ाकर
(घ) इन सभी प्रकार से

10. जलोढ़ मिट्टी किस फसल की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है? [2011]
(क) चाय
(ख) रबड़
(ग) कपास
(घ) गेहूँ

11. भारत की सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी है [2016]
(क) जलोढ़ मिट्टी
(ख) लाल मिट्टी
(ग) लैटेराइट मिट्टी
(घ) पर्वतीय मिट्टी

12. निम्न में से कौन-सी मिट्टी चाय की खेती के लिए उपयुक्त है? [2017]
(क) पर्वतीय मिट्टी
(ख) काली मिट्टी
(ग) जलोढ़ मिट्टी
(घ) लाल मिट्टी

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13. काली मिट्टी का निर्माण होता है [2017]
(क) वायु से
(ख) ग्लेशियरों से
(ग) ज्वालामुखी विस्फोट से
(घ) नदियों से

उत्तरमाला

1. (ख), 2. (ग), 3. (ग), 4. (ख), 5. (ख), 6. (ग), 7. (घ), 8. (क), 9. (घ), 10. (घ), 11. (क), 12. (क), 13. (ग)

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UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 9 गीतामृतम् (पद्य – पीयूषम्)

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 9 गीतामृतम् (पद्य – पीयूषम्)

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परिचय

समस्त उपनिषदों की सारभूत ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ भारतीय दर्शन की अमूल्य निधि है। यह महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित अनुपम ग्रन्थ; ‘महाभारत’ जिसे पंचम वेद भी माना जाता है; के अन्तर्गत सात-सौ श्लोकों का संकलन है। श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया; निष्काम कर्म करने का; उपदेश ही इसका मुख्य प्रतिपाद्य विषय है। ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ का एक भी वाक्य सदुपदेश से रहित नहीं है। यह भारत के समस्त आध्यात्मिक (UPBoardSolutions.com) ग्रन्थों की चरम परिणति है। प्रस्तुत श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता से ही संगृहीत हैं।

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पाठ-सारांश

श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि तुम्हारा अधिकार कर्म करने में है, फल की प्राप्ति में नहीं: अतः तुम निरन्तर कर्म करते रहो। हे अर्जुन! सफलता और असफलता को एक समान मानकर कर्म करो; ऐसा करने की बुद्धि रखने वाला व्यक्ति ही योगी कहलाता है। कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है; क्योंकि बिना कर्म किये तो जीवन ही सम्भव नहीं है। इसलिए अपने निर्धारित कर्मों को करो। हे भरतवंशी अर्जुन! लोक-कल्याण को चाहने वाले विद्वान् तो राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करते हैं। जो ऐसा नहीं करते, वे मूर्ख हैं। प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं से सन्तुष्ट, ईर्ष्या से रहित, सफलता-असफलता को एक समान मानकर कार्य करने वाला और सुख-दु:ख में तटस्थ व्यक्ति सांसारिक बन्धनों में नहीं बँधता है। श्रद्धावान्, प्रयत्नशील और इन्द्रियों को संयमित रखने वाला मनुष्य ही ज्ञान को प्राप्त कर परम शान्ति को प्राप्त करता है। इसके विपरीत ज्ञानहीन, श्रद्धाहीन और संशय से युक्त मन वाला व्यक्ति न तो इहलोक में और न ही परलोक में सुख-शान्ति प्राप्त करता है।

पाण्डुपुत्र अर्जुन! जो व्यक्ति मुझे बड़ा मानकर, कुसंगति एवं विद्वेषरहित होकर कर्म करता है, वह मुझे प्राप्त कर लेता है। जो व्यक्ति प्रसन्नता, द्वेष, शोक, शुभ-अशुभ में तटस्थ रहकर त्याग एवं भक्ति का जीवन बिताता है, जो शत्रु-मित्र, मान-अपमान, सर्दी-गर्मी एवं सुख-दु:ख को एकसमान मानता है (UPBoardSolutions.com) और आसक्ति से रहित है; जो निन्दा-प्रशंसा में समान भाव रखता है, प्राप्त वस्तु से सन्तुष्ट रहता है, गृह-त्यागी, स्थिर बुद्धि और भक्ति में लीन रहता है, वह मनुष्य मुझे प्रिय है।

पद्यांशों की ससन्दर्भ हिन्दी व्याख्या

(1)
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥ [2008]

शब्दार्थ कर्मणि एव = कर्म करने में ही। अधिकारः = अधिकार है। ते = तुम्हारा। मा = नहीं है। फलेषु =(कर्म, के) फलों पर। कदाचन = कभी। कर्मफलहेतुः = कर्मफल के निमित्त। मा भूः = मत बनो। सङ्गः = आसक्ति। अस्तु = हो। अकर्मणि = कर्म न करने में।

सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के पद्य-खण्ड ‘पद्य-पीयूषम्’ के ‘गीतामृतम्’ पाठ से उद्धृत है।

[संकेत इस पाठ के शेष सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

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प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि तुम्हारी अधिकार केवल कर्म करने में ही है।

अन्वय ते अधिकारः कर्मणि एव (अस्ति), फलेषु कदाचन मा (अस्ति)। कर्मफलहेतुः मा भूः। अकर्मणि ते सङ्गः मा अस्तु।

व्याख्या श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन! तुम्हारा अधिकार मात्र कर्म करने में ही है, उसके फल की प्राप्ति में कभी नहीं है। इसलिए तुम कर्मफल के हेतु मत बनो तथा कर्म न करने में अर्थात् कर्महीन होकर बैठे रहने में तुम्हारी आसक्ति न हो। तात्पर्य यह (UPBoardSolutions.com) है कि कर्म पर तुम्हारा अधिकार है, इसलिए तुम्हारा कर्महीन हो जाना एक अनुचित प्रवृत्ति है। अतः तुम्हें कर्महीनता की ओर उन्मुख नहीं होना चाहिए।

(2)
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ [2006]

शब्दार्थ योगस्थः = योग में स्थित रहते हुए। कुरु कर्माणि = कर्मों को करो। सङ्गम् = फल के प्रति आसक्ति को। त्यक्त्वा = त्यागकर। धनञ्जय = अर्जुन का एक नाम। सिद्ध्यसिद्ध्योः = सफलता और असफलता को। समः भूत्वा = समान रहकर। समत्वं = सदा समान स्थिति में रहना ही। योगः = योग। उच्यते = कहा जाता है।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में अर्जुन को योग-भाव से कर्म करने का उपदेश दिया गया है।

अन्वय धनञ्जय! सङ्गं त्यक्त्वा सिद्ध्यसिद्ध्योः समः भूत्वा योगस्थः कर्माणि कुरु। समत्वं योग उच्यते।

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व्याख्या श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन! फल के प्रति आसक्ति को छोड़कर सफलता और असफलता को समान समझकर योग में स्थित होकर कर्म करो। सफलता और असफलता को समान समझकर कार्य करना ही योग कहलाता है।

(3)
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः ॥ [2008, 14]

शब्दार्थ नियतम् = निर्धारित कुरु = करो। त्वं = तुम। ज्यायः = श्रेष्ठ है। हि = क्योंकि (UPBoardSolutions.com) अकर्मणः = कर्म न करने से। शरीरयात्रापि = शरीर-निर्वाह भी। प्रसिद्ध्येत् = पूर्ण नहीं हो सकता है।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में कर्म को जीवन के लिए आवश्यक बताया गया है।

अन्वय त्वं नियतं कर्म कुरु हि अकर्मणः कर्म ज्याय: (अस्ति)। अकर्मण: ते शरीरयात्रा अपि न प्रसिद्ध्येत्।

व्याख्या श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तुम निर्धारित कर्म करो अर्थात् अपने कर्तव्यों का पालन करो; क्योंकि कर्म न करने से कर्म करना अधिक श्रेष्ठ है। कर्म न करने वाले, तुम्हारा जीवन-निर्वाह भी सिद्ध नहीं हो सकता है। तात्पर्य यह है कि कर्म के बिना तो जीवन (जीवित रहना) ही असम्भव है।

(4)
सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत।
कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसङ्ग्रहम् ॥

शब्दार्थ सक्ताः = आसक्त रहने वाले कर्मणि = क़र्म में। अविद्वांसः = अज्ञानी लोग। यथा = जैसे। कुर्वन्ति = करते हैं। भारत = भरत-वंश में उत्पन्न होने वाले अर्जुन कुर्यात् = करना चाहिए। विद्वान् = विवेकी। तथा = उसी प्रकार। असक्तः = अनासक्त रहकर चिकीर्षुः = करने की इच्छा रखने वाला। लोकसङ्ग्रहम् = लोक-कल्याण।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में बताया गया है कि विद्वान् को कर्म का त्याग न करके उसकी (UPBoardSolutions.com) आसक्ति का त्याग करना चाहिए। अन्वय भारत! कर्मणि सक्ताः अविद्वांसः यथा कुर्वन्ति, लोकसङ्ग्रहं चिकीर्षुः विद्वान् असक्तः (सन्) तथा कुर्यात्।।

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व्याख्या श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे भरतवंशी अर्जुन! कर्म करने में आसक्त अर्थात् राग-द्वेष से लिप्त हुए अज्ञानीजन जैसा कार्य करते हैं, लोक-कल्याण करने की इच्छा रखने वाला विद्वान् अनासक्त रहकर अर्थात् राग-द्वेष में लिप्त न होकर वैसा कार्य करता है। तात्पर्य यह है कि कर्म को विवेकी और अविवेकी दोनों ही करते हैं किन्तु अविवेकी कर्म में आसक्ति के कारण कर्म करता है और विवेकी लोकशिक्षा की दृष्टि से।।

(5)
यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।
समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ॥

शब्दार्थ यदृच्छालाभसन्तुष्टः = स्वभावतः प्राप्त होने वाली वस्तुओं से सन्तुष्ट रहने वाला। द्वन्द्वातीतः = सुख और दुःख के द्वन्द्वों से रहित। विमत्सरः = ईष्र्या (मत्सर) से रहित। समः = समान रहने वाला। सिद्धौ असिद्धौ च= सफलता (सिद्धि) और असफलता (असिद्धि) में। कृत्वा अपि = कर्म करके भी। ननिबध्यते =(कर्मबन्धन में) नहीं बँधता है।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में बताया गया है कि कर्मफल भोगने के लिए कौन बाध्य नहीं होता।

अन्वय यदृच्छालाभसन्तुष्टः, द्वन्द्वातीतः, विमत्सरः, सिद्धौ असिद्धौ च समः (पुमान्) (कर्म) कृत्वा अपि न निबध्यते।

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व्याख्या श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो मनुष्य उसी लाभ से सन्तुष्ट होता है, जो उसे मिलता रहता है, जो सुख में प्रसन्न और दुःख में दु:खी नहीं होता है, ईर्ष्या से रहित, सफलता और असफलता में एक-सा रहने वाला पुरुष कर्म करके भी कर्मबन्धन में नहीं बँधता है।

(6)
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥ [2009, 11, 12, 13]

शब्दार्थ श्रद्धावान् = श्रद्धावाला, श्रद्धालु। लभते ज्ञानं = ज्ञान को प्राप्त करता है। तत्परः = उसमें लगा हुआ, तल्लीन। संयतेन्द्रियः = इन्द्रियों को वश में रखने वाला, जितेन्द्रिय। ज्ञानं = ज्ञान को। लब्ध्वा = प्राप्त करके। परां शान्ति = अत्यधिक शान्ति (UPBoardSolutions.com) को। अचिरेण = शीघ्र ही। अधिगच्छति = प्राप्त हो जाता है।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन को शीघ्र शान्ति प्राप्त करने का उपाय बता रहे हैं।

अन्वय श्रद्धावान्, तत्परः, संयतेन्द्रियः ज्ञानं लभते। ज्ञानं लब्ध्वा अचिरेण परां शान्तिम् अधिगच्छति।

व्याख्या श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो मनुष्य श्रद्धालु हो, सदैव ज्ञान प्राप्त करने का इच्छुक हो, अपनी इन्द्रियों को वश में करने वाला अर्थात् जितेन्द्रिय हो, वही पुरुष ज्ञान प्राप्त करता है और ज्ञान प्राप्त करके शीघ्र ही परम शान्ति अर्थात् लोकोत्तर शान्ति को प्राप्त कर लेता है।

(7)
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति
नायं लोकोऽस्ति नपरोन सुखं संशयात्मनः॥ [2010, 11, 12]

शब्दार्थ अज्ञः = ज्ञानहीना च = और अश्रद्दधानः = श्रद्धा न रखने वाला; अश्रद्धालु। संशयात्मा = संशय से युक्त मन वाला। विनश्यति = नष्ट हो जाता है। न अयं लोकः अस्ति =न यह संसार है। न परः =न परलोक है। न सुखं = न सुख है। संशयात्मनः = संशययुक्त मन वाले का।

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प्रसंग प्रस्तुत लोक में संशय में पड़े हुए मनुष्य की दुर्गति के विषय में बताया गया है।

अन्वय अज्ञः च अश्रद्दधानः संशयात्मा च विनश्यति। संशयात्मन: अयं लोकः न अस्ति, परः (लोकः) न अस्ति, सुखं न (अस्ति)।

व्याख्या श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि ज्ञानहीन, श्रद्धा न रखने वाला और संशय से युक्त मनवाला पुरुष नष्ट हो जाता है। संशय में पड़े हुए मनुष्य का न यह लोक है, न परलोक है और न ही सुख है।

(8)
मत्कर्म कृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्गवर्जितः।
निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव! ॥

शब्दार्थ मत्कर्म कृत् = मेरे लिये कर्म करने वाला। मत्परमः = मुझे ही सबसे बड़ा मानने वाला। मद्भक्तः = मेरा भक्त। सङ्गवर्जितः = आसक्तिरहित, दुर्जनों के साथ से रहित। निर्वैरः = शत्रुता से रहित; अर्थात् वैर न करने वाला। सर्वभूतेषु = सभी जीवों में। यः = जो। सः = वह। माम् = मुझको। एति = प्राप्त करता है।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को मोक्ष-प्राप्ति का उपाय बताया गया है।

अन्वये पाण्डव! यः मत्कर्म कृत्, मत्परमः, मद्भक्त: सङ्गवर्जितः, सर्वभूतेषु (च) निर्वैरः (अस्ति), सः माम् एति।।

व्याख्या श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे पाण्डुपुत्र अर्जुन! जो मेरे लिए कर्म करने वाला, मुझे ही सबसे बड़ा मानने वाला, मेरा भक्त (किसी भी व्यक्ति या वस्तु की) आसक्ति से रहित और सब जीवों पर शत्रुता-भाव से रहित है, वह पुरुष मुझे प्राप्त कर लेता है अर्थात् मोक्ष प्राप्त कर (UPBoardSolutions.com) लेता है। यह श्लोक श्रीकृष्ण के परमब्रह्म स्वरूप को दर्शाता है।

(9)
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः ॥ [2009, 12, 13, 14]

शब्दार्थ यः न हृष्यति = जो न प्रसन्न होता है। द्वेष्टि = द्वेष करता है। शोचति = शोक करता है। काङ्क्षति = इच्छा करता है। शुभाशुभपरित्यागी = शुभ और अशुभ का परित्याग करने वाला। भक्तिमान् = भक्त) मे प्रियः = मेरा प्रिय है।

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प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में बताया गया है कि भगवान् को कौन प्रिय ?

अन्वय यः न हृष्यति, ने द्वेष्टि, न शोचति, न काङ्क्षति, शुभाशुभ परित्यागी, यः भक्तिमान् (चे अस्ति) स मे प्रियः (अस्ति)।

व्याख्या श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो पुरुष न प्रसन्न होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न इच्छा करता है, शुभ और अशुभ पदार्थों का त्याग करने वाला और जो भक्तियुक्त है, वह मुझे प्रिय है।।

(10)
समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः
शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः ॥ [2014]

शब्दार्थ समः = समान। शत्रौ = शत्रु में। मित्रे = मित्र से। मानापमानयोः = मान और अपमान में।। शीतोष्णसुखदुःखेषु = सर्दी, गर्मी, सुख और दुःख में भी। सङ्गविवर्जितः = आसक्ति से रहित।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में बताया गया है कि भगवान् को कौन प्रिय है?

अन्वय (यः जनः) शत्रौ मित्रे च समः (अस्ति), तथा मानापमानयोः (समः अस्ति), शीतोष्ण सुखदुःखेषु समः (अस्ति), सङ्गविवर्जितः (च अस्ति), (स में प्रियः अस्ति)।

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व्याख्या श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन! जो मनुष्य शत्रु और मित्र में एक समान, सम्मान तथा अपमान में एक समान, सर्दी-गर्मी में एक समान और सुख-दुःख में एक समान आचरण करने वाला और आसक्ति से रहित होता है, वह मुझे प्रिय है। तात्पर्य यह है कि जो मनुष्य शत्रु से घृणा और मित्र से प्रेम नहीं करता, सम्मान से जिसे प्रसन्नता नहीं होती, अपमान से मानसिक कष्ट नहीं होता, गर्मी-सर्दी और सुख-दु:ख में जो समान है तथा इन्द्रियादि विषयों की (UPBoardSolutions.com) आसक्ति से रहित है, वह मुझे प्रिय है।

(11)
तुल्यनिन्दास्तुतिमनी सन्तुष्टो येन केनचित्
अनिकेत: स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः ॥ [2008, 10, 12]

शब्दार्थ तुल्यनिन्दास्तुतिः = जो निन्दा और प्रशंसा में समान है। मौनी = मौन रहने वाला अर्थात् मननशील। सन्तुष्टः = सुप्रसन्ना येन केनचित् = जिस-किसी वस्तु से, अर्थात् जो कुछ मिले उसी से। अनिकेतः = गृहरहित। स्थिरमतिः = स्थिर बुद्धि वाला। भक्तिमान् = भक्ति से युक्त। मे = मुझे। प्रियः = प्रिय है। नरः = मनुष्य।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में बताया गया है कि भगवान् को कौन प्रिय है?

अन्वय (य: नर:) तुल्यनिन्दास्तुतिः, मौनी, येन केनचित् (वस्तुना) सन्तुष्टः, अनिकेतः, स्थिरमतिः, भक्तिमान् (च अस्ति), (सः) नरः मे प्रियः (अस्ति)।

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व्याख्या जो मनुष्य निन्दा और स्तुति में समान रहता है, मौन रहता है, जो कुछ मिल जाये उसी में सन्तुष्ट रहता है, गृहविहीन, स्थिर बुद्धि वाला और भक्ति से युक्त मुझे प्रिय है। तात्पर्य यह है कि जो मनुष्य अपनी निन्दा सुनकर दुःखी नहीं होता, प्रशंसा सुनकर आनन्दित नहीं होता, वाणी पर जिसका संयम है, जो कुछ भी उसे प्राप्त हो जाता है, उसी में वह सन्तुष्ट हो जाता है, अपने घर का त्याग कर देता है, स्थिर बुद्धि वाला और भक्तियुक्त है, वह मनुष्य मुझे प्रिय है।

सूक्तिपरक वाक्यांशों की व्याख्या

(1) कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। [2007, 13, 14]

सन्दर्भ प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के पद्य-खण्ड ‘पद्य-पीयूषम्’ के ‘गीतामृतम्’ नामक पाठ से अवतरित है।

[संकेत इस पाठ की शेष सभी सूक्तियों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को कर्म करने के लिए प्रेरित किया गया है।

अर्थ तुम्हारा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फल की प्राप्ति में नहीं।

व्याख्या श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि तुम्हारे अधिकार में केवल कर्म करना है, उसके फल के विषय में सोचना नहीं। कर्म के फल पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है। इसलिए तुम्हें अकर्मण्य भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि बिना कर्म किये तो व्यक्ति वित भी नहीं रह सकता। इसलिए जो (कर्म-फल) तुम्हारे वश में नहीं है, उस पर विचार करना छोड़ दो और कर्म करने में लग जाओ।

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(2) ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।। [2009]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में कृष्ण अर्जुन को उपदेश दे रहे हैं कि कर्महीनता में तुम्हारी आसक्ति नहीं होनी चाहिए।

अर्थ तुम्हारी अकर्म में आसक्ति न हो।

व्याख्या श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि व्यक्ति को कभी भी आलस्य के वशीभूत होकर, कर्महीन होकर नहीं रहना चाहिए, क्योंकि कर्महीनता की स्थिति में व्यक्ति को जीवित रहना ही सम्भव नहीं। व्यक्ति को कभी इस बात से निराश होकर भी कर्महीन नहीं होना चाहिए कि वह जो कर्म करता है, उसको फल उसे नहीं मिलता। व्यक्ति का अधिकार तो केवल कर्म करने का ही है, अत: उसे अपने कर्तव्य का निर्वाह निरन्तर करते रहना चाहिए। व्यक्ति को उसके (UPBoardSolutions.com) कर्मों का फल कब और कितना मिलना है, यह सोचने का विषय तो केवल परमेश्वर का ही है।

(3) योगस्थः कुरु कर्माणि। [2008, 10, 15]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में कर्म के तरीके पर प्रकाश डाला गया है।

अर्थ योग में स्थित होकर कर्म करो।

व्याख्या, सफलता तथा असफलता में समान भाव रखना ही योग कहलाता है। कार्य करते समय मनुष्य को कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि वह सफल होगा अथवा असफल। सफलता मिलने पर प्रसन्न न होना और असफलता में दुःखी न होना ही समान भाव अर्थात् योग है। अत: व्यक्ति को सदैव योग अर्थात् समान भाव में स्थित होकर ही कोई भी कर्म करना चाहिए।

(4)
समत्वं योग उच्यते।। [2006, 07, 08,09, 10, 12, 14, 15]
सिध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में समत्व-योग को स्पष्ट किया गया है।

अर्थ सिद्धि और असिद्धि में समान रहने वाले समत्व को योग कहा जाता है।

व्याख्या श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मनुष्य को कर्म करते समय यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि मुझे इस कार्य में सफलता मिलेगी या असफलता। सफलता मिलने पर प्रसन्न न होना और असफलता मिलने पर दु:खी न होना अर्थात् सफलता और असफलता में समान भाव रखनी ही योग कहलाता है। तात्पर्य यह है। कि मनुष्य को आसक्तिरहित होकर अर्थात् सुख और दुःख में समभाव रखते हुए कर्म करना चाहिए।

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(5) ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति। [2009, 10, 11, 12]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में भगवान् कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि ज्ञान से चिरशान्ति प्राप्त होती है।

अर्थ व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करके शीघ्र ही परमशान्ति को प्राप्त करता है।

व्याख्या इस संसार में अज्ञान ही दु:खों का कारण है और जब तक व्यक्ति दु:खों का अनुभव करता रहेगा, उसे शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती। व्यक्ति को जैसे ही ज्ञान प्राप्त होता और वह यह जान लेता है कि संसार के सभी सुखोपभोग मिथ्या हैं, उनसे वास्तविक सुख-शान्ति (UPBoardSolutions.com) की प्राप्ति नहीं हो सकती, तब वह परम शान्ति की प्राप्ति के लिए ईश्वर-भक्ति में अपना समय लगाता है। संसार के सुखोपभोगों से उसे विरक्ति होने लगती है। जब व्यक्ति संसार से पूर्णरूपेण विरक्त होकर अपना सर्वस्व ईश्वर को समर्पित कर देता है, तब वह परम शान्ति का अनुभव करता है। इसीलिए उचित ही कहा गया है कि ज्ञान ही परम-शान्ति को प्रदान करने वाला है।

(6) श्रद्धावान् लभते ज्ञानम् तत्परः संयतेन्द्रियः। [2006, 12]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में कहा गया है कि श्रद्धालु व्यक्ति ही ज्ञानी होता है।

अर्थ, श्रद्धावान्, संलग्न और इन्द्रियों को वश में रखने वाला ही ज्ञान को प्राप्त करता है।

व्याख्या ज्ञान गुरु से प्राप्त होता है और ज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु के प्रति श्रद्धा की भावना अवश्य होनी चाहिए। श्रद्धा का भाव उसी व्यक्ति में होता है, जो विनयशील होता है। जिस व्यक्ति के हृदय में श्रद्धा का भाव नहीं होता है, वह विनयशील नहीं हो सकता; क्योंकि उसके हृदय में अहंकार का वास होता है और अहंकारी व्यक्ति कभी भी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। अत: कृष्ण का यह कथन कि श्रद्धा से ही ज्ञान प्राप्त होता है पूर्ण रूप से व्यावहारिक और स्वाभाविक है। विनयशील म य ज्ञान को प्राप्त करके परम शान्ति को प्राप्त करता है।

(7)
संशयात्मा विनश्यति।
न सुखं संशयात्मनः।। [2011, 13, 14]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में संशययुक्त व्यक्ति की दुर्गति के विषय में बताया गया है।

अर्थ संशययुक्त मन वाला विनष्ट हो जाता है। संशययुक्त व्यक्ति को कोई सुख प्राप्त नहीं होता।

व्याख्या ये दोनों ही सूक्तियाँ श्रीमद्भगवद्गीता के निम्नलिखित श्लोक की अंश हैं

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अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति ।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः ॥

अर्थात् अज्ञानी, श्रद्धा से रहित और संशय से युक्त मने वाला व्यक्ति नष्ट हो जाता है। ऐसे व्यक्ति के लिए न तो यह संसार है, न परलोक है और न तो सुख ही है। श्रीकृष्ण ने ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के इस श्लोक में नष्ट होने वाले व्यक्ति के तीन लक्षण बताये हैं—प्रथम लक्षण है-‘ज्ञान का न होना’, दूसरा लक्षण है-“श्रद्धा का न होना और तीसरा लक्षण है-‘संशय से युक्त मन वाला होना। व्यक्ति का अज्ञानी होना उसके लिए। कितना घातक है, यह तो वर्तमान (UPBoardSolutions.com) परिवेश में जीवन व्यतीत करने वाला सामान्य व्यक्ति भी जानता है। श्रद्धा का भाव सदैव अपने से बड़ों के प्रति होता है। जिस व्यक्ति में अपने से बड़ों के प्रति श्रद्धा नहीं होती, निश्चित ही उसके मन में अहंकार का भाव विद्यमान होता है और अहंकारी व्यक्ति का विनाश होना तो अवश्यम्भावी ही है। गीता में ही अन्यत्र कहा गया है कि श्रद्धावान् व्यक्ति को ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। संशययुक्त मन वाला अर्थात् द्विविधा में पड़ा हुआ व्यक्ति सदैव करणीय और अकरणीय के द्वन्द्व से ग्रस्त होने के कारण कुछ भी नहीं कर पाता। कहा भी गया है-“दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम।” निश्चित ही ज्ञानहीन के लिए इस लोक में कोई स्थान नहीं, श्रद्धाहीन व्यक्ति के लिए उसे लोक (परलोक) में कोई स्थान नहीं और संशयग्रस्त व्यक्ति को तो कभी सुख प्राप्त हो ही नहीं सकता। श्रीकृष्ण के कहने का आशय यह है कि इहलोक और परलोक में सुख-प्राप्ति के इच्छुक व्यक्ति को इनका-अज्ञान, अश्रद्धा, संशय-त्याग कर देना चाहिए।

(8) निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डवः। [2006]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में प्राणिमात्र से प्रेम को उचित बताया गया है।

अर्थ जो सभी प्राणियों के प्रति वैररहित होता है, वही मुझे प्राप्त करता है।

व्याख्या श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे पाण्डुपुत्र! जो व्यक्ति सभी प्राणियों से प्रेम करता है, किसी से वैरभाव नहीं रखता है, वह व्यक्ति मुझे सबसे अधिक प्रिय है। सभी प्राणियों को ईश्वर ने बनाया है, फिर उसके द्वारा बनायी वस्तु के प्रति बैर अथवा ईष्र्या-द्वेष रखना उचित नहीं है। जो प्राणी ईश्वर द्वारा बनायी गयी वस्तुओं से प्रेम नहीं कर सकता, ईश्वर को वह प्राणी कैसे प्रिय हो सकता है। यदि हम चाहते हैं कि हम पर ईश्वर की कृपा-दृष्टि बनी रहे तो हमें ईष्र्या-द्वेष आदि भावनाओं को अपने हृदय से निकालकर प्राणिमात्र से प्रेम करना चाहिए।

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(9) शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।

प्रसंग प्रस्तुत पंक्ति में भक्ति और समभाव के महत्त्व को बताया गया है।

अर्थ शुभ और अशुभ का परित्याग करने वाला भक्तिमान् व्यक्ति मुझे प्रिय है।

व्याख्या श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति–जो शुभ और अशुभ अर्थात् पवित्र और अपवित्र का विचार किये बिना समस्त भोग्य वस्तुओं का समान भाव से परित्याग करता है; अर्थात् उसे शुभ वस्तुओं के प्रति जरा-भी लगाव और अशुभ के प्रति जरा-भी दुराव नहीं होता; जो मेरी भक्ति; अर्थात् परमात्मा की भक्ति; में मन लगाता है, वही मुझे; अर्थात् परमात्मा को; प्रिय होता है।

श्लोक का संस्कृत-अर्थ

(1) कर्मण्येवाधिकारस्ते ……………………………………………….. सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥ (श्लोक 1) (2008, 15]
संस्कृतार्थः गीतायां भगवान् कृष्णः अर्जुनं कर्म कर्तुम् उपदिशति यत् भोः अर्जुन! कर्मकरणे एवं तव अधिकारः अस्ति, कर्मणः फले तव अधिकारः न अस्ति। अतः त्वं कर्मणः फलस्य कारणं मी भव। कर्मणां फलस्येच्छां त्यक्त्वा कर्म कर्त्तव्यम्। कर्म न करणे तव आसक्तिः अपि न स्यात्। अत: त्वं कर्म एव कुरु, तस्य फलस्य इच्छां मा करु।

(2) योगस्थः कुरु ……………………………………………….. योग उच्यते ॥ (श्लोक 2) 2011, 12]
संस्कृतार्थः गीतायां भगवान् कृष्णः अर्जुनम् उपदिशति यत् हे अर्जुन! सफलता-असफलतयोः समं भूत्वा, रागं त्यक्त्वा, योगस्थः भूत्वा च कर्माणि कुरु। यः पुरुषः सिद्ध्यसिद्ध्यो: समं मत्वा कार्यं कुरुते तस्य समत्वं योगः उच्यते।

(3) श्रद्धावान् लभते ……………………………………………….. अचिरेणाधिगच्छति ॥ (श्लोक 6) [2007,09, 12]
संस्कृतार्थः गीतायां भगवान् कृष्णः अर्जुनम् उपदिशति यत् यः व्यक्ति श्रद्धावान् भवति, ज्ञानम् (UPBoardSolutions.com) आप्तुं सदैव तत्परः भवति, इन्द्रियाणि संयमते, सः व्यक्तिः सद्ज्ञानं प्राप्य शीघ्रम् एव परां शान्ति प्राप्य सुखी भवति।।

(4) यो न हृष्यति ……………………………………………….. स मे प्रियः ॥ (श्लोक 9) [2007,08, 11, 14]
संस्कृतार्थः गीतायां भगवान् श्रीकृष्णः अर्जुनम् उपदिशति यत् यः पुरुषः सुखे न प्रसन्नं भवति, कस्मै न ईष्र्ण्यति, दु:खे न शोकं करोति, कस्मै न स्पृह्यति, शुभम् अशुभम् च परित्यजति, यः मां भजति, सः पुरुषः मे प्रियः अस्ति।

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(5) समः शत्रौ च ……………………………………………….. समः सङ्गविवर्जितः ॥ (श्लोक 10) [2009]
संस्कृतार्थः श्रीकृष्णः अर्जुनं कथयति–यः नर: रिपो सुहृदि च समानं व्यवहरति, आदरे अनादरे च तुल्यरूपः भवति, शीतम् उष्णं सुखं दुःखं च समानं मन्यते, एवेषु किमपि भेदं न करोति, आसक्तिहीनः च भवति, सः नरः मम (भगवत:) प्रियः भवति।

(6) तुल्यनिन्दास्तुतिः ……………………………………………….. प्रियो नरः ॥ (श्लोक 11)
संस्कृतार्थः गीतायां भगवान् श्रीकृष्ण: अर्जुनम् उपदिशति यत् यः पुरुषः निन्दायां स्तुतौ च समः भवति, मौनी तथा सर्वासु अवस्थासु सन्तुष्टः, गृहे ममत्वरहितः, स्थिरमतिः अस्ति, स एव भक्तिमान् पुरुष: मे प्रियः भवति।

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 जय सुभाष (खण्डकाव्य)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 जय सुभाष (खण्डकाव्य)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 जय सुभाष (खण्डकाव्य).

प्रश्न 1
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए। [2012, 15 16]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य का सारांश लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 14, 15]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य की कथा संक्षेप में लिखिए। [2009, 11, 12, 13, 14, 15, 18]
या
“जय सुभाष’ का कथानक राष्ट्रभक्ति से पूर्ण है।” सोदाहरण समझाइए। “जय सुभाष’ खण्डकाव्य का कथानक स्पष्ट कीजिए। [2011]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य हमें राष्ट्रीयता की प्रेरणा देता है। कथन की पुष्टि कीजिए। [2014]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
प्रस्तुत खण्डकाव्य नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के व्यक्तित्व और आदर्श गुणों का परिचय प्रदान करने वाली एक सुन्दर रचना है। इस काव्य का सम्पूर्ण कथानक सात सर्गों में विभक्त है। इसका सर्गवार सारांश इस प्रकार है

सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 (UPBoardSolutions.com) ई० को कटक (उड़ीसा) में हुआ था। इनके पिता को नाम ‘जानकीनाथ बोस’ और माता का नाम ‘प्रभावती देवी’ था।

बड़े होने पर सुभाष ने अपनी तीव्र बुद्धि का परिचय दिया। इन्होंने अपने परिश्रम एवं लगन से सभी शैक्षिक परीक्षाओं में उत्तम अंक प्राप्त किये। प्रेसीडेन्सी कॉलेज में पढ़ते समय ऑटेन नामक अंग्रेज प्रोफेसर द्वारा, भारतीयों की निन्दा सुनकर इन्होंने उसके गाल पर एक तमाचा मारकर स्वाभिमान, देशभक्ति एवं साहस का अद्भुत उदाहरण दिया। इन्होंने बी० ए० की परीक्षा तथा विदेश जाकर आई० सी० एस० की परीक्षा उत्तीर्ण की। महात्मा गाँधी और देशबन्धु चितरंजनदास से प्रभावित होकर सरकार द्वारा प्रदत्त आई० सी० एस० के उच्च पद को त्याग दिया और स्वतन्त्रता संग्राम में सम्मिलित हो गये।

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द्वितीय खण्डकाव्य के सर्ग में सुभाष के भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने का वर्णन है। सन् 1921 ई० में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन व्यापक रूप से चल रहा था। उन्हीं दिनों देशबन्धु जी ने एक नेशनल कॉलेज की स्थापना की, जिसका प्रधानाचार्य उन्होंने सुभाष को नियुक्त कर दिया। सुभाष ने छात्रों में देशप्रेम और स्वतन्त्रता की भावना जाग्रत की और राष्ट्र-भक्त स्वयंसेवकों की एक सेना तैयार की। ये पं० मोतीलाल नेहरू द्वारा स्थापित ‘स्वराज्य पार्टी के प्रबल समर्थक थे। इन्होंने दल के कई प्रतिनिधियों को कौंसिल में प्रवेश कराया। इन्होंने कलकत्ता महापालिका का खूब विकास किया। सरकार ने इन्हें अकारण ही अलीपुर जेल में डाल दिया। इनका अधिकांश जीवन कारागार में ही व्यतीत हुआ।

खण्डकाव्य के तीसरे सर्ग की कथा सन् 1928 से आरम्भ होती है। सन् 1928 ई० में कलकत्ता के कांग्रेस के 46वें अधिवेशन में पं० मोतीलाल नेहरू को अध्यक्ष बनाया गया। इसी समय लोगों को सुभाष की संगठन-कुशलता का परिचय मिला। इसके बाद सुभाष को कलकत्ता नगर का मेयर निर्वाचित किया गया। इन्होंने पुनः सभाओं में ओजस्वी भाषण दिये, जिनको सुनकर इन्हें सिवनी, भुवाली, अलीपुर और माण्डले जेल में भेजकर यातनाएँ दी गयीं, जिससे इनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। इन्हें स्वास्थ्य-लाभ के लिए पश्चिमी देशों में भेजा गया। इन्होंने वहाँ ‘द इण्डियन स्ट्रगल’ नामक पुस्तक लिखी। भारत लौटने पर अगले वर्ष हीरापुर के कांग्रेस अधिवेशन में इन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया।

चतुर्थ सर्ग में हीरापुर अधिवेशन से लेकर ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ की (UPBoardSolutions.com) स्थापना तक का वर्णन है। ताप्ती नदी के तट पर बिठ्ठल नगर में कांग्रेस का इक्यावनवाँ अधिवेशन हुआ। इन्हें अधिवेशन का अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया। इससे आजादी का आन्दोलन और अधिक तीव्र हो उठी।

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इसके बाद त्रिपुरा में कांग्रेस का अगला अधिवेशन हुआ। इसमें कांग्रेस अध्यक्ष के चयन में दो नेताओं में मतभेद हो गया। उस समय कांग्रेस को विघटन से बचाने के लिए सुभाष ने कांग्रेस से त्यागपत्र देकर ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ (अप्रगामी दल) की स्थापना की। अब सुभाष सबकी श्रद्धा और आशा के केन्द्र बनकर सबके प्रिय नेताजी’ बन गये थे। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि अपनी मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज सरकार की यातनाओं को निरन्तर सहन करते रहे।

पञ्चम सर्ग में सुभाष के छद्मवेश में घर से भाग जाने की कथा का वर्णन है। सुभाष जब घर में नजरबन्द थे, तब सरकार ने इनकी समस्त गतिविधियों पर कड़ा प्रतिबन्ध लगा रखा था। 15 जनवरी, 1941 ई० को जाड़े की अर्द्ध-रात्रि में दाढ़ी बढ़ाये हुए, ये एक मौलवी के वेश में पुलिस की आँखों में धूल झोंककर कल गये और फ्रण्टियर मेल से पेशावर पहुँच गये और वहाँ से बर्लिन। बर्लिन में इन्होंने ‘आजाद हिन्द फौज’ की स्थापना की। दूर रहकर स्वतन्त्रता-संग्राम का नेतृत्व करना कठिन जानकर ये पनडुब्बी द्वारा टोकियो पहुँचे। जापानियों ने इन्हें पूरा सहयोग दिया। सहगल, शाहनवाज, ढिल्लन और लक्ष्मीबाई ने वीरता से इसे सेना का नेतृत्व किया। सुभाष ने दिल्ली चलो’ का नारा हर दिशा में गुंजित कर दिया। ‘आजाद हिन्द फौज’ का हर सैनिक स्वतन्त्रता संग्राम में जाने को उत्सुक था।

षष्ठ सर्ग में ‘आजाद हिन्द फौज के भारत पर आक्रमण तथा प्राप्त विजय का वर्णन है। सुभाष ने ‘आजाद हिन्द फौज के वीरों को दिल्ली चलो’ और ‘जय हिन्द’ के नारे दिये। इन्होंने “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” कहकर युवकों का आह्वान किया। आजाद हिन्द सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये और उनके शिविरों पर चढ़ाई करके कई मोर्चे परे उनको अविस्मरणीय करारी हार दी।

सप्तम सर्ग में द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी तथा जापान की पराजय की चर्चा की गयी है। संसार में सुख-दु:ख और जय-पराजय का चक्र चलता रहता है। अंग्रेजों का पलड़ा धीरे-धीरे भारी होने लगा। आजाद हिन्द फौज की भी जय के बाद पराजय होने लगी। अगस्त, 1945 ई० में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर अमेरिका द्वारा अणुबम गिरा दिया गया। जापान ने मानवता की रक्षा के लिए जनहित में आत्मसमर्पण कर दिया। 18 अगस्त, 1945 ई० को ताइहोक में इनका विमान आग लगने से दुर्घटनाग्रस्त हो गया और सुभाष भी नहीं बच सके। जब तक सूर्य, चन्द्र और तारे रहेंगे, भारत के घर-घर में सुभाष अपने यश के रूप में अमर रहेंगे। उनकी यशोगाथा नवयुवकों को त्याग, देशप्रेम और बलिदान की प्रेरणा देती रहेगी।

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प्रश्न 2
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर सुभाषचन्द्र बोस के प्रारम्भिक जीवन (विद्यार्थी जीवन व बाल जीवन) पर प्रकाश डालिए। [2011]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का सारांश लिखिए। [2010, 11, 14, 18]
उत्तर
सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 ई० को कटक (उड़ीसा) में हुआ था। इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस’ और माता का नाम ‘प्रभावती देवी’ था। इनकी माताजी अत्यन्त विदुषी धार्मिक महिला थीं। इन्होंने बचपन में अपनी माताजी से राम, कृष्ण, अर्जुन, (UPBoardSolutions.com) बुद्ध, महावीर, शिवाजी, प्रताप आदि की कथाएँ सुनी थीं। बालक सुभाष पर उन्हीं के शील और शौर्य का प्रभाव पड़ा।

बड़े होने पर सुभाष ने अपनी तीव्र बुद्धि का परिचय दिया। इन्होंने अपने परिश्रम एवं लगन से सभी शैक्षिक परीक्षाओं में उत्तम अंक प्राप्त किये। विद्यालय में अपने गुरु बेनीमाधव जी के प्रभाव से, इनमें दीन-हीनों और दु:खी-दरिद्रों के प्रति प्रेम, करुणा एवं सेवाभाव जाग्रत हुआ। इन्होंने अपनी अल्प आयु में ही जाजपुर ग्राम में भयंकर बीमारी फैलने पर रोगियों की सेवा-सुश्रूषा की। प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके इन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज में प्रवेश लिया तथा सुरेशचन्द्र बनर्जी से आजीवन अविवाहित रहने की प्रेरणा प्राप्त की। कलकत्ता में महर्षि विवेकानन्द का ओजस्वी भाषण सुनकर सत्य की खोज में मथुरा, हरिद्वार, वृन्दावन, काशी आदि तीर्थों एवं हिमालय की कन्दराओं में भ्रमण किया, परन्तु कहीं भी इन्हें शान्ति न मिली। इन्होंने पुन: पढ़ाई प्रारम्भ कर दी। प्रेसीडेन्सी कॉलेज में ऑटेन नामक अंग्रेज प्रोफेसर द्वारा, भारतीयों की निन्दा सुनकर देशापमान को सहन नहीं कर सकने के कारण इन्होंने उसके गाल पर एक तमाचा मारकर स्वाभिमान, देशभक्ति एवं साहस का अद्भुत उदाहरण दिया। इस अपराध के लिए इन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। अन्य कॉलेज में प्रवेश पाकर इन्होंने बी० ए० की परीक्षा तथा विदेश जाकर आई० सी० एस० की परीक्षा उत्तीर्ण की। स्वदेश लौटने पर इन्होंने देश की दयनीय दशा देखी। महात्मा गाँधी और देशबन्धु चितरंजनदास से प्रभावित होकर सरकार द्वारा प्रदत्त आई० सी० एस० के उच्च पद को । (UPBoardSolutions.com) त्याग दिया और स्वतन्त्रता संग्राम में सम्मिलित हो गये।।

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प्रश्न 3
‘जय सुभाष के द्वितीय सर्ग का सारांश (कथानक, कथावस्तु, कथासार) अपने शब्दों में लिखिए। [2010, 13, 14, 15, 17, 18]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में सुभाष के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर
खण्डकाव्य के इस सर्ग में सुभाष के भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने का वर्णन है। भारतवर्ष में अंग्रेजों के अत्याचार और अन्याय को देखकर भारतमाता को परतन्त्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए सुभाष ने अपना जीवन देश को अर्पित कर देने का निश्चय किया। सन् 1921 ई० में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन व्यापक रूप से चल रहा था। छात्रों ने विद्यालयों का एवं वकीलों ने न्यायालयों का बहिष्कार करके आन्दोलन को तीव्र बनाया। बंगाल में देशबन्धु चितरंजनदास आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे थे। उन्हीं दिनों देशबन्धु जी ने एक नेशनल कॉलेज की स्थापना की, जिसका प्रधानाचार्य उन्होंने सुभाष को नियुक्त कर दिया। सुभाष ने छात्रों में देशप्रेम और स्वतन्त्रता की भावना जाग्रत की और राष्ट्र-भक्त स्वयंसेवकों की एक सेना तैयार की। इस सेना ने बंगाल के घर-घर में स्वतन्त्रता का सन्देश गुंजा दिया। इस सेना के भय से अंग्रेजी सत्ता डोल उठी, जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने देशबन्धु और सुभाष को जेल में बन्द कर दिया। जेल में जाकर (UPBoardSolutions.com) उनका साहस व शक्ति और बढ़ गये। जब ये जेल से मुक्त हुए, तब बंगाल भीषण बाढ़ से ग्रस्त था। सुभाष ने तन-मन-धन से बाढ़-पीड़ितों की सहायता की। ये पं० मोतीलाल नेहरू द्वारा स्थापित ‘स्वराज्य पार्टी के प्रबल समर्थक थे। इन्होंने दल के कई प्रतिनिधियों को कौंसिल में प्रवेश कराया। कलकत्ता महापालिका के चुनाव में सुभाष बहुमत से जीते। सुभाष को अधिशासी अधिकारी नियुक्त किया गया। इन्होंने १ 3,000 निर्धारित वेतन के बजाय केवल आधा वेतन लेकर महापालिका का खूब विकास किया। सरकार ने इनकी बढ़ती हुई लोकप्रियता से चिढ़कर इन्हें अकारण ही अलीपुर जेल में डाल दिया। वहाँ से बरहामपुर और माण्डले जेल में भेजकर इन्हें बड़ी यातनाएँ दी गयीं। इस कारण इनका स्वास्थ्य खराब हो गया। दृढ़ स्वर से जनता की माँग के कारण ये जेल से छोड़ दिये गये। कारागार से छूटते ही इन्होंने पुनः संघर्ष आरम्भ कर दिया। इनका अधिकांश जीवन कारागार में ही व्यतीत हुआ।

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प्रश्न 4
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग का सारांश (कथानक, कथावस्तु, कथासार) लिखिए। [2011, 13, 18]
या
‘जय सुभाष’ के आधार पर कलकत्ता में आयोजित 1928 ई० के कांग्रेस अधिवेशन का वर्णन कीजिए और बताइए कि इस अवसर पर सुभाष की क्या भूमिका रही ?
उत्तर
सन् 1928 ई० में कलकत्ता के कांग्रेस के 46वें अधिवेशन में पं० मोतीलाल नेहरू को अध्यक्ष बनाया गया। उनके सम्मान में अड़तालीस घोड़ों के रथ में शोभा-यात्रा निकाली गयी, जिसमें स्वयंसेवकों के दल का नेतृत्व स्वयं सुभाष कर रहे थे। इसी समय लोगों को सुभाष की संगठन-कुशलता का परिचय मिला। पं० मोतीलाल नेहरू ने अपने अध्यक्षीय भाषण में इनके उत्साह, कार्यकुशलता, देशप्रेम और कर्मठता की भूरि-भूरि प्रशंसा की। |

इसके बाद सुभाष को कलकत्ता नगर का मेयर निर्वाचित किया गया। इनके कार्यकाल में ही स्वतन्त्रता-सेनानियों का एक जुलूस निकला, जिसका नेतृत्व स्वयं सुभाष कर रहे थे। इस जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज करके सुभाष को लाठियों से बहुत पीटा और नौ माह के लिए इन्हें अलीपुर जेल में डाल दिया। जेल से छूटने पर इन्होंने पुन: सभाओं में ओजस्वी भाषण दिये, जिनको सुनकर देशभक्त युवकों को खून खौल उठा, तब इन्हें सिवनी जेल में डाल दिया गया। वहाँ से भुवाली, अलीपुर और माण्डले जेल में भेजकर यातनाएँ दी गयीं, जिससे इनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। इन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए पश्चिमी देशों में भेजा (UPBoardSolutions.com) गया। वहाँ जाकर इन्होंने यूरोप के वैभव को देखा और भारत से उसकी तुलना की। इन्होंने अपने देश की दशा और जनता के आन्दोलन को यथार्थ चित्र पश्चिमी देशों के सम्मुख रखा। वहाँ से पिता की बीमारी को समाचार सुनकर भारत आये, परन्तु पिता के अन्तिम दर्शन न पा सके। महान् शोक के कारण, स्वास्थ्य लाभ के लिए इन्हें पुनः यूरोप जाना पड़ा। इन्होंने वहाँ ‘द इण्डियन स्ट्रगल’ नामक पुस्तक लिखकर देशप्रेम की भावना और भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का सजीव वर्णन किया। ये विदेशों में रहकर स्वदेश का सम्मान बढ़ाते रहे। सन् 1936 ई० में स्वदेश वापस आने पर इन्हें पुन: जेल भेज दिया गया। जेल में स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण इन्हें स्वास्थ्य-लाभ के लिए एक बार फिर यूरोप भेजा गया। कुछ समय बाद पं० जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लखनऊ में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में सभी नेताओं और जनता ने सुभाष के त्याग और बलिदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की। भारत लौटने पर अगले वर्ष हीरापुर के कांग्रेस अधिवेशन में इन्हें कांग्रेस को अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया।

प्रश्न 5
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर इसके चतुर्थ सर्ग का सारांश (कथानक, कथावस्तु) लिखिए। [2017]
उत्तर
इस सर्ग में हीरापुर अधिवेशन से लेकर ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ की स्थापना तक का वर्णन है। ताप्ती नदी के तट पर बिट्ठल नगर में कांग्रेस का इक्यावनवाँ अधिवेशन हुआ। इक्यावन पताकाओं से सुसज्जित, इक्यावन द्वारों से, इक्यावन बैलों के रथ में बैठाकर सुभास का भव्य एवागत किया गया और इन्हें अधिवेशन का अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया। अध्यक्ष पद से इनके ओजस्वी भाषण को सुनकर नवयुवकों में देशप्रेम, एकता और बलिदान की भावना जाग उठी। इससे आजादी का आन्दोलन और अधिक तीव्र हो उठा।

इसके बाद त्रिपुरा में कांग्रेस का अगला अधिवेशन हुआ। इसमें कांग्रेस के दो नेताओं पट्टाभि । सीतारमैया और सुभाष में चुनाव हुआ, जिसमें सुभाष विजयी हुए। गाँधीजी क्योंकि पट्टाभि सीतारमैया का समर्थन कर रहे थे, इसीलिए उन्होंने पट्टाभि (UPBoardSolutions.com) सीतारमैया की हार को अपनी हार समझा। उस समय कांग्रेस को विघटन से बचाने के लिए सुभाष ने कांग्रेस से त्यागपत्र देकर ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ (अग्रगामी दल) की स्थापना की एवं सारे देश में घूम-घूमकर स्वतन्त्रता की ज्योति जगायी। अब सुभाष सबकी श्रद्धा और आशा के केन्द्र बनकर सबके प्रिय नेताजी’ बन गये थे। कलकत्ता में ‘ब्लैक हॉल’ संस्मारक; जिसके बारे में कहा जाता था कि यहाँ अनेक अंग्रेजों को सन् 1857 ई० में भारतीयों द्वारा जिन्दा जला दिया गया था; को हटाने के लिए आन्दोलन करते समय सरकार ने इन्हें फिर जेल में डाल दिया। इन्होंने जेल में भूख हड़ताल की। सरकार को इनके जेल में रहते ही संस्मारक हटाना पड़ा। जनता के प्रबल आग्रह करने पर इन्हें जेल से छोड़कर घर में नजरबन्द कर दिया गया। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि अपनी मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज सरकार की यातनाओं को निरन्तर सहन करते रहे।

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प्रश्न 6
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर बताइए कि सुभाषचन्द्र बोस किन परिस्थितियों में वेश छोड़कर विदेश गये ? वहाँ जाकर उनके द्वारा भारत की स्वतन्त्रता के लिए किये गये प्रयत्नों का वर्णन कीजिए। [2009, 10]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के ‘पाँचवें सर्ग’ का सारांश (कथासार लिखिए। [2011, 12, 13, 14, 16, 17]
[संकेत द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ सर्ग से परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए पाँचवें सर्ग का सारांश लिखिए।]
उत्तर
इस सर्ग में सुभाष के छद्मवेश में घर से भाग जाने की कथा का वर्णन है। सुभाष जब घर में नजरबन्द थे, तब सरकार ने इनकी समस्त गतिविधियों पर कड़ा प्रतिबन्ध लगा रखा था। गुप्तचरों की कड़ी नजर और पुलिस का पहरा रहने पर भी सुभाष 15 जनवरी, 1941 ई० को जाड़े की अर्द्ध-रात्रि में दाढ़ी बढ़ाये हुए, एक मौलवी के वेश में पुलिस की आँखों में धूल झोंककर निकल गये और फ्रण्टियर मेल से पेशावर पहुँच गये। वहाँ से उत्तमचन्द नाम के व्यक्ति के प्रयास से बर्लिन पहुँच गये। पेशावर से काबुल तक की इनकी यह यात्रा अति भयानक थी। इन्हें अनेक कष्ट सहते हुए अनेक छद्मवेश धारण (UPBoardSolutions.com) करने पड़े। बर्लिन में इन्होंने ‘आजाद हिन्द फौज’ की स्थापना की। दूर रहकर स्वतन्त्रता-संग्राम का नेतृत्व करना कठिन जानकर ये पनडुब्बी द्वारा टोकियो पहुँचे। जापानियों ने इन्हें पूरा सहयोग दिया। वहाँ से रासबिहारी के साथ ये सिंगापुर आये। इनकी सेना में विदेशों में रहने वाले अनेक भारतीय भी सम्मिलित हो गये। इन्होंने तन-मनधन से सुभाष को पूरा सहयोग दिया। इन्होंने गाँधीजी, नेहरू, आजाद और बोस के नाम से चार ब्रिगेड तैयार किये जिनमें पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियाँ भी सम्मिलित थीं। सहगल, शाहनवाज, ढिल्लन और लक्ष्मीबाई ने वीरता से इंस सेना का नेतृत्व किया। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई सभी धर्मावलम्बी एकजुट होकर स्वतन्त्रता संग्राम के लिए तत्पर हो गये। सुभाष ने दिल्ली चलो’ का नारा हर दिशा में गुंजित कर दिया। ‘आजाद हिन्द फौज का हर सैनिक स्वतन्त्रता संग्राम में जाने को उत्सुक था।

प्रश्न 7
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के षष्ठ सर्ग का सारांश लिखिए। [2009, 13, 17]
उत्तर
षष्ठ सर्ग में ‘आजाद हिन्द फौज के भारत पर आक्रमण तथा प्राप्त विजय का वर्णन है। सुभाष ने ‘जाद हिन्द फौज के वीरों को दिल्ली चलो’ और ‘जय हिन्द’ के नारे दिये। इन्होंने “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” कहकर युवकों का आह्वान किया। इस प्रकार इन्होंने अपनी सेना के वीरों में देश की स्वतन्त्रता के लिए बलिदान देने की प्रबल भावना भर दी। सेना के वीर इनके ओजपूर्ण भाषणों को सुनकर शत्रु की विशाल सैन्य-शक्ति की परवाह न (UPBoardSolutions.com) करके, विजय प्राप्त करते हुए 18 मार्च, 1944 ई० को कोहिमा तक पहुँच गये। भयंकर गोलाबारी करके इन्होंने इम्फाल नगर को घेरकर शत्रु को पीछे भगा दिया। अराकान पर्वत-शिखर पर भी भारतीय तिरंगा लहराने लगा। आजाद हिन्द सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये और उनके शिविरों पर चढ़ाई करके कई मोर्चे पर उनको अविस्मरणीय करारी हार दी।

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प्रश्न 8
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के सप्तम (अन्तिम) सर्ग की कथा लिखिए। [2012, 14]
उत्तर
सप्तम सर्ग में द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी तथा जापान की पराजय की चर्चा की गयी है। संसार में सुख-दु:ख और जय-पराजय का चक्र चलता रहता है। अंग्रेजों का पलड़ा धीरे-धीरे भारी होने लगा। आजाद हिन्द फौज की भी जय के बाद पराजय होने लगी। अंग्रेजों ने बर्मा (अब म्यांमार) में आकर अपना स्वत्व स्थापित कर लिया। अगस्त 1945 ई० में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर अमेरिका द्वारा अणुबम गिराकर सर्वनाश कर दिया गया। जापान ने मानवता की रक्षा के लिए जनहित में अमेरिका के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। सुभाष ने स्थिति अनुकूल न जानकर आजाद हिन्द फौज के आत्मसमर्पण करने का भी निर्णय किया। उन्होंने सेना के वीरों को बधाई देते हुए पुन: आकर उचित समय पर स्वतन्त्रता का बीड़ा उठाने का आश्वासन दिया। वे विमान द्वारा टोकियो में जापान के प्रधानमन्त्री (UPBoardSolutions.com) हिरोहितो से मिलने जाना चाहते थे। 18 अगस्त, 1945 ई० को ताइहोक में विमान आग लगने से दुर्घटनाग्रस्त हो गया और सुभाष भी नहीं बच सके। इस दु:खद समाचार को सुनकर हर मनुष्य रो पड़ा। भारत में बहुतों के मन में अब तक यही धारणा है कि सुभाष आज भी जीवित हैं। जब तक सूर्य, चन्द्र और तारे रहेंगे, भारत के घर-घर में सुभाष अपने यश के रूप में अमर रहेंगे। उनकी यशोगाथा नवयुवकों को त्याग, देशप्रेम और बलिदान की प्रेरणा देती रहेगी।

प्रश्न 9
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक (प्रमुख पात्र) नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2010, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘सुभाष में अनेक गुणों का समावेश था।”जय सुभाष’ के आधार पर खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14]
या

‘जय सुभाष खण्डकाव्य के आधार पर सुभाषचन्द्र बोस की चार विशेषताओं पर प्रकाश डालिए, जो आपको अधिकाधिक प्रभावित करती हैं। [2009, 14]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए कि सुभाषचन्द्र त्याग, अदम्य साहस और नेतृत्व क्षमता के प्रतीक हैं। [2010]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए। [2015, 17, 18]
उत्तर
श्री विनोदचन्द्र पाण्डेय ‘विनोद’ द्वारा रचित ‘जय सुभाष’ नामक खण्डकाव्य स्वतन्त्रता-संग्राम के महान् सेनानी सुभाषचन्द्र बोस के त्याग, देशभक्ति एवं बलिदानपूर्ण जीवन की गाथा प्रस्तुत करता है। प्रस्तुत काव्य का उद्देश्य सुभाषचन्द्र बोस के व्यक्तित्व एवं गुणों को उजागर करना है। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ही प्रस्तुत खण्डकाव्य के नायक हैं। इनके चारित्रिक गुण इस प्रकार हैं|

(1) कुशाग्र बुद्धि एवं प्रखर प्रतिभाशाली-सुभाष बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के और प्रतिभाशाली थे। इन्होंने मैट्रिक और इण्टर की परीक्षाएँ प्रथम स्थान प्राप्त करके उत्तीर्ण की थीं। विदेश जाकर इन्होंने आई० सी० एस० की परीक्षा उत्तीर्ण की। उस समय किसी (UPBoardSolutions.com) भारतीय के लिए यह परीक्षा उत्तीर्ण करना अत्यन्त गौरव की बात थी। आगे चलकर कलकत्ता अधिवेशन में इनकी प्रबन्ध-कुशलता, आजाद हिन्द फौज और फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना एवं पुलिस की आँखों में धूल झोंककर कड़ी निगरानी से निकल भागना इनकी विलक्षण प्रतिभा को सूचित करते हैं।

(2) समाजसेवी, अनुपम त्यागी एवं कष्टे-सहिष्णु–सुभाष मानवमात्र के सेवक थे। इन्होंने बंगाल में बाढ़ आने पर बाढ़-पीड़ितों की अपूर्व सहायता की। जाजपुर में महामारी के फैलने पर इन्होंने रोगियों की सेवा की। देश की स्वतन्त्रता के लिए आह्वान होने पर इन्होंने आई० सी० एस० जैसे उच्च पद को छोड़कर महान् त्याग का परिचय दिया। इन्होंने देश को स्वतन्त्र कराने के लिए जैसी कठोर यातनाएँ सहीं, वे अवर्णनीय हैं। इनकी मानव-सेवा की भावना के विषय में पाण्डेय जी ने लिखा है –
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दुःखी जनों का कष्ट कभी वह, नहीं देख सकते थे।
दोस्तों की सेवा करने में, वह न कभी थकते थे।

(3) स्वाभिमानी, साहसी और निर्भीक–सुभाष में स्वाभिमान और निर्भीकता की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। ये किसी भी तरह अपने देश का अपमान नहीं सह सकते थे। छात्रावस्था में प्रोफेसर ऑटेन द्वारा भारतीयों की निन्दा सुनकर इन्होंने ऑटेन को तमाचा जड़कर अपने स्वाभिमान को परिचय दिया था। इन्होंने आई० सी० एस० का गौरवपूर्ण पद भी इसलिए त्याग दिया था कि अंग्रेजों की नौकरी करना इनके स्वाभिमान के अनुकूल नहीं था

स्वाभिमान का परिचय सबको, हो निर्भीक दिया था।
ले देशापमान का बदला, उत्तम कार्य किया था।

(4) महान् देशभक्त और स्वतन्त्रता-प्रेमी–सुभाष देश की स्वाधीनता के अद्वितीय (UPBoardSolutions.com) आराधक थे। इन्होंने गाँधीजी और देशबन्धु चितरंजनदास के आह्वान पर राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए अपनी युवावस्था अर्पित कर दी

की सुभाष ने राष्ट्र-प्रेम हित अर्पित मस्त जवानी।
मुक्ति युद्ध के बने शीघ्र ही वे महान् सेनानी॥

उनके हृदय में आजादी की ज्वाला निरन्तर जलती रही। अनेक बार जेल-यातनाएँ सहने पर भी इन्होंने देश-सेवा का व्रत नहीं छोड़ा। अनेक बार अपने प्राणों को खतरे में डाला, शोषक अंग्रेजों से युद्ध किये और अन्त में बलिदान हो गये। इन्होंने अपने ओजस्वी भाषणों और कार्य-कलापों से समस्त देशवासियों के हृदय में स्वतन्त्रता की अग्नि प्रज्वलित कर दी।

(5) उत्साह की प्रतिमूर्ति–वीरता, उत्साह तथा साहस सुभाष के चरित्र के मुख्य गुण थे। उनके इन गुणों को देखकर जहाँ सामान्य जन प्रायः चकित रह जाते थे, वहीं अंग्रेज प्रायः भयभीत हो जाते थे। अंग्रेजी शासन इन्हें प्रायः कैद कर देता था, लेकिन ये इससे (UPBoardSolutions.com) हतोत्साहित नहीं होते थे। एक बार अंग्रेजों द्वारा घर में ही नजरबन्द कर दिये जाने पर ये अपनी बुद्धि, चतुरता तथा योजनाबद्धता द्वारा अंग्रेज सैनिकों की आँखों में धूल झोंककर भाग निकले और वेश बदलकर काबुल, जर्मनी तथा जापान पहुँच गये। विदेश में रहकर इन्होंने भारतीय युवकों को उत्साहित किया और आजाद हिन्द फौज का गठन किया। इनके भाषण उत्साह से परिपूरित होते थे। इनके उत्साह का ही प्रतिफल था कि आजाद हिन्द फौज को अंग्रेजी सेनाओं के विरुद्ध युद्ध में अनेक स्थानों पर सफलता प्राप्त हुई थी।

(6) जनता के प्रिय नेता–सुभाष सच्चे अर्थों में जनता के प्रिय नेता थे। अपने महान् गुणों एवं अनुपम देश-भक्ति के कारण वे करोड़ों देशवासियों के श्रद्धापात्र बन गये थे

वह थे कोटि-कोटि हृदयों के, एक महान् विजेता।
मातृभूमि के रत्न अलौकिक, जन-जन के प्रियनेता।

इनकी लोकप्रियता का प्रमाण यह है कि इन्होंने हीरापुर अधिवेशन में गाँधीजी द्वारा समर्थित ‘पट्टाभि सीतारमैया’ को चुनाव में पराजित कर दिया था। जिस मनोयोग और निष्ठा से इन्होंने स्वतन्त्रता-संग्राम का संचालन किया, उससे ये जनता के प्रिय नेता बन गये-

वह हो गये समस्त देश की, श्रद्धा के अधिकारी।
लेने लगे प्रेरणा उनसे, बाल-वृद्ध-नर-नारी॥

(7) ओजस्वी वक्ता–सुभाषचन्द्र बोस की वाणी बड़ी ओजपूर्ण थी। वे अपने ओजस्वी भाषणों द्वारा जनता में देशप्रेम, बलिदान और त्याग का मन्त्र फेंक देते थे। “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ की पुकार पर सहस्रों देशभक्त उनकी सेना में तन-मन-धन से सम्मिलित हो गये। उनकी ओजस्वी वाणी सुनकर, वीर पुरुष प्राण हथेली पर रखकर स्वतन्त्रता-संग्राम में कूद पड़े थे-

लगी गूंजने बंगभूमि में, उनकी प्रेरक वाणी।
मन्त्र मुग्ध होते थे सुनकर, उसको सारे प्राणी॥

उन्होंने अनेक सभाओं में एवं आजाद हिन्द फौज के सम्मुख जो भाषण दिये, वे अत्यन्त ओजस्वी और प्रेरणादायक थे।

(8) महान् सेनानी एवं योद्धा-सुभाष महान् सेनानी और अद्भुत योद्धा थे। ‘आजाद हिन्द फौज का संगठन और कुशल नेतृत्व करके उन्होंने एक श्रेष्ठ सेनापति होने की अपनी क्षमता सिद्ध कर दी थी। अंग्रेजों की विशाल सेना के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करके (UPBoardSolutions.com) उन्होंने अपने अदम्य साहस व बुद्धिमत्ता द्वारा उन्हें कई स्थानों पर पराजित किया तथा अनेक स्थानों पर भारतीय तिरंगा फहराकर अपने को महान् विजेता सिद्ध कर दिया-

सेनानी सुभाष ने भीषण, रण-दुन्दुभी बजाई।।
पाने हेतु स्वराज्य उन्होंने, छेड़ी विकट लड़ाई॥

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(9) युवा-आन्दोलन के प्रवर्तक-सुभाष युवा-आन्दोलन के प्रवर्तक तथा नवयुवकों के प्रेरणास्रोत थे। इन्होंने पूरे देश की युवक संस्थाओं को एक सूत्र में पिरोकर संगठित युवा-आन्दोलन के सूत्रपात का प्रशंसनीय कार्य किया था। इन्हीं के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप भारत में नवजवान सभा की स्थापना हो सकी थी–

नवयुवकों के भी प्रयाण की, आयी है शुभ बेला।
हो सकती है नहीं कभी भी, तरुणों की अवहेला॥

(10) महान् साहित्य सेवी-श्री सुभाष ने अत्यधिक विपरीत परिस्थितियों में ‘द इण्डियन स्ट्रगल पुस्तक लिखकर अपनी साहित्यिक प्रतिभा का परिचय दिया था। इनके भाषण भी साहित्य की अमूल्य निधि है-

लिख इण्डियन स्ट्रगल पुस्तक, ख्याति उन्होंने पायी।
प्रकट किये इसमें सुभाष ने, भाव प्रेरणादायी।

(11) स्वतन्त्रता के जन्मदाता–भारतवर्ष को स्वतन्त्र कराने में सुभाषचन्द्र बोस का योगदान स्तुत्य । है। अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़कर इन्होंने उन्हें भयाक्रान्त कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप वे भारत को स्वतन्त्रता प्रदान करने के लिए विवश हो गये थे-

मुक्त हुई उनके प्रयत्न से, अपनी भारतमाता।
दिन पन्द्रह अगस्त का अब भी, उनकी याद दिलाता॥

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इनके अतिरिक्त नेताजी में अन्य अनेक आदर्श गुण थे, जिनके आधार पर उनके महान् व्यक्तित्व और महान् चरित्र का परिचय मिलता है। इन्होंने जो उच्च आदर्श उपस्थित किया है, वह युग-युग तक संसार के अनेक व्यक्तियों को प्रेरणा प्रदान करता रहेगा। इनके (UPBoardSolutions.com) जीवन से मनुष्य कष्ट-सहने की शक्ति, त्याग-भावना एवं राष्ट्रीयता की शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। इनके आदर्श जीवन से भारत के नवयुवकों को स्वतन्त्रता-प्रेम और त्याग की प्रेरणा मिलती रहेगी–

वीर सुभाष अनन्तकाल तक, शुभ आदर्श रहेंगे।
युग-युग तक भारत के वासी, उनकी कथा कहेंगे।

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