UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 5 समुद्रगुप्त (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 5 समुद्रगुप्त (महान व्यक्तित्व)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 8 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 5 समुद्रगुप्त (महान व्यक्तित्व).

पाठ का सारांश

चन्द्रगुप्त प्रथम का पुत्र समुद्रगुप्त मगध का सम्राट था। उसकी माता कुमार देवी उदार और करुण स्वभाव की महिला थीं। समुद्रगुप्त में बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा, साहस वीरता, न्याय प्रियता, परोपकार और राष्ट्र-प्रेम की भावना थी। उसने सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में बाँधकर उसे एक सुदृढ़ राष्ट्र का स्वरूप प्रदान किया। सभी विपक्षी राजाओं ने उसके सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया था। अतः सम्पूर्ण भारत पर विजय-पताका फहराने के बाद समुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ किया। उसके 50 वर्ष के शासनकाल में प्रजा सुखी और समृद्ध थी। वह सभी धर्मों का आदर करता था। साहित्य और संगीत में उसकी (UPBoardSolutions.com) विशेष रुचि थी। उसने अदम्य इच्छा-शक्ति और अपार पौरुष बल पर एक प्रबल केन्द्रीय सत्ता की स्थापना की और पाँच सदी से छिन्न-भिन्न हुई राजनीतिक राष्ट्रीय एकता पुनः स्थापित हुई।

UP Board Solutions

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
समुद्रगुप्त कौन था?
उत्तर :
समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त प्रथम का पुत्र था।

प्रश्न 2.
समुद्रगुप्त की विजय यात्रा को मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर :
समुद्रगुप्त की विजय यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारत में राष्ट्रीय एकता की स्थापना करना था।

प्रश्न 3.
समुद्रगुप्त की विजय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
समुद्रगुप्त ने भारत की राष्ट्रीय एकता की स्थापना हेतु विजय यात्रा प्रारम्भ की। उसने उत्तर भारत के राजाओं को परास्त किया और उनके राज्यों को अपने साम्राज्य में मिला लिया। उसके साहस और पौरुष की (UPBoardSolutions.com) चारों ओर चर्चा होने लगी। अपनी सेना का संचालन वह स्वयं करता था और एक सैनिक की भाँति युद्ध में भाग लेता था। धीरे-धीरे उसने पूर्व में, बंगाल तक अपना राज्ये फैलाया। पूर्वी तट के द्वीपों पर आक्रमण के लिए उसने नौ सेना का गठन किया।

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
अश्वमेध यज्ञ किसे कहते हैं? इस अवसर पर समुद्रगुप्त को क्या उपाधि दी गयी थी?
उत्तर :
अश्वमेध यज्ञ में एक घोड़ा छोड़ा जाता था और सेना उसके पीछे चलती थी। यदि कोई घोड़ा पकड़ लेता था तो राजा उससे युद्ध करता था अन्यथा जब घोड़ा विभिन्न राज्यों की सीमाओं से होकर वापस आता था तब यह यज्ञ पूर्ण माना जाता था और राजा दिग्विजयी समझा जाता था। इसे ही अश्वमेध यज्ञ कहते हैं। इस अवसर पर समुद्रगुप्त को ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि दी गई थी।

प्रश्न 5.
समुद्रगुप्त की शासन व्यवस्था का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
समुद्रगुप्त की शासन व्यवस्था इतनी सुदृढ़ थी कि उसके लगभग पचास वर्ष के शासनकाल में किसी भी क्षेत्र में न अशान्ति हुई और न किसी ने साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने का साहस किया। उस समय (UPBoardSolutions.com) उत्तर भारत में सती प्रथा का प्रचलन था। समुद्रगुप्त ने न केवल इस सती प्रथा को समाप्त किया वरन् महिलाओं की मर्यादा और प्रतिष्ठा को भी यथोचित महत्त्व प्रदान किया। उस समय खेती और व्यापार उन्नत दशा में थे। भारत-भूमि धन-धान्य से परिपूर्ण थी।

प्रश्न 6.
समुद्रगुप्त के शासन काल को स्वर्णयुग क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
समुद्रगुप्त शासन के संचालन में सद्व्यवहार, न्याय, समता और लोक-कल्याण पर अधिक ध्यान देता था। उस समय खेती और व्यापार उन्नत दशा में थे। नहरों एवं सड़कों का जाल सा बिछा था। भारत-भूति धन धान्य से परिपूर्ण थी। पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता थी। समुद्रगुप्त की उदारता की प्रशंसा बौद्ध भिक्षु भी करते थे। अतः समुद्रगुप्त के शासनकाल को स्वर्ण युग कहा जाता है।

UP Board Solutions

We hope the UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 5 समुद्रगुप्त (महान व्यक्तित्व) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 5 समुद्रगुप्त (महान व्यक्तित्व), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 रामनरेश त्रिपाठी (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 रामनरेश त्रिपाठी (काव्य-खण्ड)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 रामनरेश त्रिपाठी (काव्य-खण्ड).

कवि-परिचय

प्रश्न 1.
श्री रामनरेश त्रिपाठी का जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्य-कृतियों (रचनाओं) का उल्लेख कीजिए। [2009, 10, 16]
या
रामनरेश त्रिपाठी का जीवन-परिचय देते हुए उनकी किसी एक रचना का नामोल्लेख कीजिए। [2012, 13, 14]
उत्तर
पं० रामनरेश त्रिपाठी स्वदेश-प्रेम, मानव-सेवा और पवित्र प्रेम के गायक कवि हैं। इनकी रचनाओं में छायावाद का सूक्ष्म सौन्दर्य एवं आदर्शवाद का मानवीय दृष्टिकोण एक साथ घुल-मिल गये हैं। आप बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न साहित्यकार (UPBoardSolutions.com) हैं। राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित इनके काव्य अत्यन्त हृदयस्पर्शी हैं।

UP Board Solutions

जीवन-परिचय-हिन्दी-साहित्य के विख्यात कवि रामनरेश त्रिपाठी का जन्म सन् 1889 ई० में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के कोइरीपुर ग्राम के एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता पं० रामदत्त त्रिपाठी एक आस्तिक ब्राह्मण थे। इन्होंने नवीं कक्षा तक स्कूल में पढ़ाई की तथा बाद में स्वतन्त्र अध्ययन और देशाटन से असाधारण ज्ञान प्राप्त किया और साहित्य-साधना को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। इन्हें केवल हिन्दी ही नहीं वरन् अंग्रेजी, संस्कृत, बंगला और गुजराती भाषाओं को भी अच्छा ज्ञान था। इन्होंने दक्षिण भारत में हिन्दी भाषा के प्रचार और प्रसार का सराहनीय कार्य कर हिन्दी की अपूर्व सेवा की। ये हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन की इतिहास परिषद् के सभापति होने के साथ-साथ स्वतन्त्रतासेनानी एवं देश-सेवी भी थे। साहित्य की सेवा करते-करते सरस्वती का यह वरद पुत्र सन् 1962 ई० में स्वर्गवासी हो गया। |

रचनाएँ–त्रिपाठी जी श्रेष्ठ कवि होने के साथ-साथ बाल-साहित्य और संस्मरण साहित्य के लेखक भी थे। नाटक, निबन्ध, कहानी, काव्य, आलोचना और लोक-साहित्य पर इनका पूर्ण अधिकार था। इनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ निम्नलिखित हैं|

(1) खण्डकाव्य-पथिक’, ‘मिलन’ और ‘स्वप्न’। ये तीन प्रबन्धात्मक खण्डकाव्य हैं। इनकी विषयवस्तु ऐतिहासिक और पौराणिक है, जो देशप्रेम और राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत है।
(2) मुक्तक काव्य-मानसी’ फुटकर काव्य-रचना है। इस काव्य में त्याग, देश-प्रेम, मानव-सेवा और उत्सर्ग का सन्देश देने वाली प्रेरणाप्रद कविताएँ संगृहीत हैं।
(3) लोकगीत-‘ग्राम्य गीत’ लोकगीतों का संग्रह है। इसमें (UPBoardSolutions.com) ग्राम्य-जीवन के सज़ीव और प्रभावपूर्ण गीत हैं। इनके अतिरिक्त त्रिपाठी जी द्वारा रचित प्रमुख कृतियाँ हैं|

वीरांगना’ और ‘लक्ष्मी’ (उपन्यास), ‘सुभद्रा’, ‘जयन्त’ और ‘प्रेमलोक’ (नाटक), ‘स्वप्नों के चित्र (कहानी-संग्रह), ‘तुलसीदास और उनकी कविता’ (आलोचना), ‘कविता कौमुदी’ और ‘शिवा बावनी (सम्पादित), ‘तीस दिन मालवीय जी के साथ’ (संस्मरण), ‘श्रीरामचरितमानस की टीका (टीका), ‘आकोश की बातें’; ‘बालकथा कहानी’; ‘गुपचुप कहानी’; ‘फूलरानी’ और ‘बुद्धि विनोद’ (बाल-साहित्य), ‘महात्मा बुद्ध’ तथा ‘अशोक’ (जीवन-चरित) आदि।

साहित्य में स्थान–खड़ी बोली के कवियों में आपका प्रमुख स्थान है। अपनी सेवाओं द्वारा हिन्दी साहित्य के सच्चे सेवक के रूप में त्रिपाठी जी प्रशंसा के पात्र हैं। राष्ट्रीय भावों के उन्नायक के रूप में आप हिन्दी-साहित्य में अपना विशेष स्थान रखते हैं।

UP Board Solutions

पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या

स्वदेश-प्रेम

प्रश्न 1.
अतुलनीय जिसके प्रताप का
साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर ।
घूम-घूम-कर देख चुका है,
जिनकी निर्मल कीर्ति निशाकर।
देख चुके हैं जिनका वैभव,
ये नभ के अनन्त तारागण।
अगणित बार सुन चुका है नभ,
जिनका विजय-घोष रण-गर्जन ।। [2015]
उत्तर
[ अतुलनीय = जिसकी तुलना न की जा सके। साक्षी = प्रत्यक्ष द्रष्टा। दिवाकर = सूर्य। निशाकर = चन्द्रमा। रण-गर्जन = युद्ध की गर्जना। ]

सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड में संकलित श्री रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित ‘स्वदेश-प्रेम’ शीर्षक कविता से अवतरित है। यह कविता त्रिपाठी जी के काव्य-संग्रह ‘स्वप्न’ से ली गयी है।

[ विशेष—इस शीर्षक के अन्तर्गत आने वाले समस्त पद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग-कवि ने इन पंक्तियों में भारत के गौरवपूर्ण (UPBoardSolutions.com) अतीत की झाँकी प्रस्तुत की है।

व्याख्या–त्रिपाठी जी कहते हैं कि तुम अपने उन पूर्वजों का स्मरण करो, जिनके अतुलनीय प्रताप की साक्षी सूर्य आज भी दे रहा है। ये ही तो हमारे पूर्वपुरुष थे, जिनकी धवल और स्वच्छ कीर्ति को चन्द्रमा भी यत्र-तत्र-सर्वत्र धूम-घूमकर देख चुका है। वे हमारे पूर्वज ऐसे थे, जिनके ऐश्वर्य को तारों का अनन्त समूह बहुत पहले देख चुका था। हमारे पूर्वजों की विजय-घोषों और युद्ध-गर्जनाओं को भी आकाश अनगिनत बार सुन चुका है। तात्पर्य यह है कि हमारे पूर्वजों के पवित्र चरित्र, प्रताप, यश, वैभव, युद्ध-कौशल आदि सभी कुछ अद्भुत और अभूतपूर्व था।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. कवि ने अपने पूर्वजों के गुणों का गरिमामय गान किया है।
  2. भाषासंस्कृत शब्दों से युक्त साहित्यिक खड़ी बोली
  3. शैली-भावात्मक।
  4. रस-वीर।
  5. गुण-ओज।
  6. छन्द-प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राओं वाला मात्रिक छन्दः
  7. अलंकार-अनुप्रास, रूपक और पुनरुक्तिप्रकाश।

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
शोभित है सर्वोच्च मुकुट से,
जिनके दिव्य देश का मस्तक।
पूँज रही हैं सकल दिशाएँ।
जिनके जय-गीतों से अब तक ॥
जिनकी महिमा का है अविरल,
साक्षी सत्य-रूप हिम-गिरिवर।
उतरा करते थे विमान-दल
जिसके विस्तृत वक्षस्थल पर ।।[2014]
उत्तर
[ दिव्य = अलौकिक। सकल = सम्पूर्ण अविरल = लगातार, निरन्तर। साक्षी = गवाह। सत्य-रूप हिम-गिरिवर = सत्य स्वरूप वाला श्रेष्ठ हिमालय। वक्षस्थल = सीना।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में भारत के गौरवपूर्ण अतीत की झाँकी प्रस्तुत की गयी है।

व्याख्या—कवि त्रिपाठी जी आगे कहते हैं कि यह ‘भारत’ (UPBoardSolutions.com) हमारे चिरस्मरणीय पूर्वजों का देश है। इसका मस्तक हिमालयरूपी सर्वोच्च मुकुट से सुशोभित हो रहा है। हमारे पूर्वजों के विजय-गीतों से आज . तक भी सम्पूर्ण दिशाएँ पूँज रही हैं। ये ही तो वे पूर्वज थे, जिनकी महिमा की गवाही आज भी सत्य स्वरूप वाला श्रेष्ठ हिमालय दे रहा है अथवा जिनकी महिमा की गवाही आज भी हिमालय के रूप में प्रत्यक्ष है। इस भारत-भूमि के अति विस्तृत अथवा विशाल वक्षस्थल पर विभिन्न देशों के विमान समूह बना-बनाकर उतरा करते थे।

काव्यगत विशेषताएँ–

  1. हिमालय के महत्त्व और सौन्दर्य की झाँकी प्रस्तुत की गयी है।
  2. भाषा-साहित्यिक और बोधगम्य खड़ीबोली।
  3. शैली-भावात्मक और वर्णनात्मक।
  4. रसवीर।
  5. गुण-ओज।
  6. छन्द-प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राओं वाला मात्रिक छन्द।
  7. अलंकार , अनुप्रास और रूपक।

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
सागर निज छाती पर जिनके,
अगणित अर्णव-पोत उठाकरे ।
पहुँचाया करता था प्रमुदित,
भूमंडल के सकल तटों पर ।
नदियाँ जिसकी यश-धारा-सी ।
बहती हैं अब भी निशि-वासर।
हूँढो, उनके चरण-चिह्न भी पाओगे तुम इनके तट पर । [2017]
उत्तर
[ अगणित = अनगिनत। अर्णव-पोत = समुद्री जहाज। प्रमुदित = प्रसन्नचित्त। भूमंडल = पृथ्वीमण्डल। निशि-वासर = रात-दिन।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में भारत के अतीत की गरिमापूर्ण झाँकी प्रस्तुत की गयी है।

व्याख्या-हमारे पूर्वज ऐसे थे कि स्वयं समुद्र भी उनकी सेवा में तत्पर रहता था। वह अपनी छाती पर उनके असंख्य जहाजों को उठाकर प्रसन्नता के साथ पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोने पर स्थित समस्त बन्दरगाहों पर पहुँचाया करता था। (UPBoardSolutions.com) इस देश में रात-दिन बहती हुई नदियों की धारा मानो हमारे उन पूर्वजों का यशोगान गाती जाती है। धन्य थे वे हमारे ऐसे पूर्वज! जिनका समर्पण, उत्साह और शौर्य अद्भुत था। कवि को विश्वास है कि उनके चंरण-चिह्न आज भी हमारी नदियों और समुद्रों के तटों पर मिल जाएँगे। तात्पर्य यह है कि यदि आप अपने पूर्वजों का अनुसरण करेंगे तो आपको उनका मार्गदर्शन अवश्य मिलता रहेगा।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. पूर्वजों की गौरव-गाथा का सजीव और आलंकारिक वर्णन किया गया है।
  2. भाषा-सरल, सुबोध तथा साहित्यिक खड़ीबोली।
  3. शैली-भावात्मक।
  4. रस-वीर।
  5. छन्द-प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राओं वाला मात्रिक छन्द।
  6. गुण–ओज।
  7. अलंकार— अनुप्रास, ‘नदियाँ जिसकी यश-धारा-सी’ में उपमा तथा रूपक हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
विषुवत्-रेखा का वासी जो,
जीता है नित हाँफ-हाँफ कर।
रखता है अनुराग अलौकिक,
वह भी अपनी मातृ-भूमि पर ॥
धुववासी, जो हिम में, तम में,
जी लेता है काँप-काँप कर। वह भी अपनी मातृ-भूमि पर, |
कर देता है प्राण निछावर ॥ [2011]
उत्तर
[ विषुवत्-रेखा = भूमध्य रेखा, वह कल्पित रेखा जो पृथ्वी तल के मानचित्र पर ठीक बीचो-बीच (गणना के लिए) पूर्व-पश्चिम है। वासी = निवासी, रहनेवाला। अनुराग = प्रेम। अलौकिक = दिव्य, लोक से परे। धुववासी = ध्रुव प्रदेश का रहने वाला। तम = अन्धकार।]

प्रसंग-कवि ने इन पंक्तियों में बताया है कि प्रत्येक मनुष्य को अपनी (UPBoardSolutions.com) मातृभूमि से प्रेम होता है। वह उसे छोड़कर कहीं जाना पसन्द नहीं करता। |

व्याख्या-जो मनुष्य भूमध्य-रेखा का निवासी है, जहाँ असहनीय गर्मी पड़ती है, वहाँ वह गर्मी के कारण हाँफ-हॉफकर अपना जीवन व्यतीत करता है, फिर भी उस स्थान से लगाव के कारण वहाँ की भीषण गर्मी को छोड़कर वह शीतल प्रदेश में नहीं जाता। वह कष्ट उठाता हुआ भी अपनी मातृभूमि पर असाधारण प्रेम और अपार श्रद्धा रखता है। जो मनुष्य ध्रुव प्रदेश का रहने वाला है, जहाँ सदा बर्फ जमी रहने के कारण भयंकर सर्दी पड़ती है, वहाँ वह भयंकर ठण्ड से काँप-कॉपकर अपना जीवन-निर्वाह कर लेता है, किन्तु ठण्ड से घबराकर गर्म प्रदेशों में जाकर जीवन नहीं बिताता। उसे भी अपनी मातृभूमि से बहुत प्रेम होता है और उसकी रक्षा के लिए वह भी अपने प्राण निछावर कर देता है।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. कवि ने स्पष्ट किया है कि मानव-मात्र को मातृभूमि से स्वाभाविक प्रेम होता है।
  2. इन पंक्तियों में स्वदेश-प्रेम की प्रेरणा दी गयी है।
  3. भाषा-सरल खड़ी बोली।
  4. रस–वीर।
  5. शैली-भावात्मक।
  6. छन्द-प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राओं वाला मात्रिक छन्द।
  7. गुण-ओज।
  8. शब्दशक्ति–व्यंजना।
  9. अलंकार-‘अनुराग अलौकिक’ तथा ‘हिम में, तम में में अनुप्रास, ‘हाँफ-हाँफ’ तथा ‘काँप-काँप’ में पुनरुक्तिप्रकाश।
  10. भावसाम्य-महर्षि वाल्मीकि ने जन्मभूमि को स्वर्ग से (UPBoardSolutions.com) भी बढ़कर माना है-‘जननी जन्मभूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी।’

UP Board Solutions

प्रश्न 5.
तुम तो, हे प्रिय बंधु, स्वर्ग-सी,
सुखद्, सकल विभवों की आकर।
धरा-शिरोमणि मातृ-भूमि में,
धन्य हुए हो जीवन पाकर॥
तुम जिसका जल अन्न ग्रहण कर,
बड़े हुए लेकर जिसकी रज।
तन रहते कैसे तज दोगे,
उसको, हे वीरों के वंशज ॥
उत्तर
[ आकर = खान, खजाना। धरा-शिरोमणि = पृथ्वी पर सबसे अच्छी व सर्वश्रेष्ठ।]

प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि ने मातृभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर बताते हुए देशप्रेम की प्रेरणा प्रदान । की है।

व्याख्या–देशप्रेम की प्रेरणा देते हुए कवि भारतवासियों से कहता है कि विषुवत् और ध्रुव-प्रदेशों के निवासी भी अपने देश से प्रेम रखते हैं तो आपको अपनी भारत-भूमि से तो निश्चय ही अधिक प्रेम होना चाहिए; क्योंकि यहाँ की धरती सुख-समृद्धि से युक्त, समस्त वैभवों से परिपूर्ण तथा स्वर्ग से भी बढ़कर है। सभी देशों की धरती की अपेक्षा इस धरती पर जन्म पाना बड़े पुण्यों का फल होता है। तुम धन्य हो कि जो तुमने यहाँ (UPBoardSolutions.com) जन्म पाया है और यहाँ का अन्न खाकर, पानी पीकर और इसी की धूल-मिट्टी में खेलकर बड़े हुए हो; तब शरीर के रहते हुए हे वीरों के वंशज! तुम इसको कैसे त्याग दोगे ? अर्थात् इसकी रक्षा करना तुम्हारा पहला कर्तव्य है।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. मातृभूमि की रक्षा करना प्रत्येक देशवासी का पहला कर्त्तव्य है।
  2. भाषा-प्रवाहमयी खड़ी बोली
  3. शैली-भावात्मक।
  4. रस-वीर।
  5. गुण-ओज।
  6. शब्द-शक्ति–व्यंजना।
  7. छन्द-प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राओं वाला मात्रिक छन्द।
  8. अलंकार-‘स्वर्ग-सी सुखद’ में उपमा तथा अनुप्रास।
  9. भावसाम्य-राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त तो स्वदेश-प्रेम की भावना से रहित हृदय को (UPBoardSolutions.com) हृदय न मानकर पत्थर मानते हैं

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है,पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ॥

UP Board Solutions

प्रश्न 6.
जब तक साथ एक भी दम हो,
हो अवशिष्ट एक भी धड़कन।
रखो आत्म-गौरव से ऊँची
पलकें, ऊँचा सिर, ऊँचा मन ॥
एक बूंद भी रक्त शेष हो,
जब तक मन में हे शत्रुजय !
दीन वचन मुख से न उचारो, मानो नहीं मृत्यु का भी भय ॥ [2017]
उत्तर
[दम = साँस। अवशिष्ट = बाकी, बची हुई। शत्रुजय = शत्रु को जीतने वाले। उचारो = बोलो।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में त्रिपाठी जी स्वाभिमान की भावना बनाये रखने पर बल दे रहे हैं।

व्याख्या-कविवर त्रिपाठी जी का कथन है कि जब तक तुम्हारी साँसें चल रही हैं और तुम्हारा हृदय धड़क रहा है, तब तक तुम्हें अपना और अपने देश का गौरव ऊँचा रखना है। अपनी पलकें, अपना सिर तथा अपना मनोबल ऊँचा रखना है; अर्थात् तुम्हें कोई ऐसा कार्य नहीं करना है, जिससे तुम्हें किसी के सामने सिर झुकाना पड़े, आँखें नीची करनी पड़े और दीन-हीन बनना पड़े। जब तक तुम्हारे शरीर में एक बूंद भी रक्त शेष रहे, तब तक (UPBoardSolutions.com) हे शत्रु को जीतने वाले भारतीयो! तुम दीन वचन नहीं बोलो और देश की रक्षा करते हुए यदि तुम्हारी मृत्यु भी हो जाए तो तुम्हें उसका भी डर नहीं होना चाहिए।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. स्वाभिमान की रक्षा पर बल दिया गया है।
  2. भाषा-सहज और सरल खड़ी बोली।
  3. शैली-भावात्मक।
  4. रस-वीर।
  5. छन्द–प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राओं वाला मात्रिक छन्दः
  6. गुण-ओज।
  7. शब्दशक्ति-व्यंजना।
  8. अलंकार-अनुप्रास।
  9. भावसाम्य-अन्यत्र भी कहा गया है

जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं पशु है निरा और मृतक समान है॥

UP Board Solutions

प्रश्न 7.
निर्भय स्वागत करो मृत्यु का,
मृत्यु एक है विश्राम-स्थल।
जीव जहाँ से फिर चलता है,
धारण कर नव जीवन-संबल ॥
मृत्यु एक सरिता है, जिसमें,
श्रम से कातर जीव नहाकर ।।
फिर नूतन धारण करता है, |
काया-रूपी वस्त्र बहाकर ॥ [2011, 13, 18]
उत्तर
[ निर्भय = भयरहित होकर। विश्राम-स्थल = विश्राम करने का स्थान। संबल = सहारा। सरिता = नदी। कातर = दु:खी। नूतन = नये। काया = शरीर।]

प्रसंग-कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में मृत्यु से भयभीत न होने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या–हे भारत के वीरो! तुम निर्भय होकर मृत्यु का स्वागत करो और मृत्यु से कभी मत डरो; क्योंकि मृत्यु वह स्थान है, जहाँ मनुष्य अपने जीवनभर की थकावट को दूर कर विश्राम प्राप्त करता है; अतः मानव को उससे भयभीत नहीं होना चाहिए। मृत्यु वह स्थान है, जहाँ मनुष्य पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करता है और पुन: नवीन जीवन की यात्रा पर अग्रसर होता है। कवि कहता है कि मृत्यु एक नदी है, जिसमें नहाकर (UPBoardSolutions.com) मनुष्य जीवनभर की थकान को दूर करता है। वह उस मृत्युरूपी नदी में अपने शरीररूपी
पुराने वस्त्र को बहा देता है और पुन: दूसरे नये जीवनरूपी वस्त्र को धारण करता है। कवि का तात्पर्य यह है कि हमें निर्भीकता और उल्लास के साथ मृत्यु का स्वागत करना चाहिए।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. जीवनरूपी मार्ग के मध्य में पड़ने वाले विश्राम-गृह के रूप में मृत्यु की कल्पना, कवि की नितान्त मौलिक कल्पना है। यह त्रिपाठी जी की प्रगल्भ चिन्तनशक्ति की परिचायक है।
  2. कवि ने स्वदेश पर मर-मिटने की प्रेरणा दी है।
  3. भाषा-सरल खड़ी बोली।
  4. शैली–उद्बोधन।
  5. रस-वीर।
  6. छन्द-प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राओं वाला मात्रिक छन्द।
  7. गुण–प्रसाद।
  8. शब्दशक्ति–व्यंजना।
  9. अलंकार-‘मृत्यु एक है विश्राम-स्थल’ तथा ‘मृत्यु एक सरिता है’ में रूपक तथा अनुप्रास।
  10. भावसाम्य–
    1. अंग्रेजी के कवि मिल्टन ने मृत्यु का मूल्यांकन करते हुए कहा है कि ‘मृत्यु सोने की वह चाबी है, जो अमरता के महल को खोल देती है।
    2.  कवि के विचारों पर भारतीय दर्शन का, विशेषकर गीता (UPBoardSolutions.com) का, प्रत्यक्ष प्रभाव परिलक्षित होता है–

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ।

UP Board Solutions

प्रश्न 8.
सच्चा प्रेम वही है जिसकी ।
तृप्ति आत्म-बलि पर हो निर्भर ।
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर ॥
देश-प्रेम वह पुण्य-क्षेत्र है,
अमल असीम, त्याग से विलसित ।
आत्मा के विकास से जिसमें,
मनुष्यता होती है विकसित ॥ [2009, 12, 14, 16]
उत्तर
[तृप्ति = सन्तुष्टि। आत्म-बलि = अपने प्राण न्योछावर कर देना। निष्प्राण = प्राणरहित, मृत। पुण्य-क्षेत्र = पवित्र स्थान। अमल = स्वच्छ। विलसित = सुशोभित। ]

प्रसंग–कवि ने त्याग और बलिदान को ही सच्चे देश-प्रेम के लिए आवश्यक माना है।

व्याख्या-कवि कहता है कि सच्चा प्रेम वही है, जिसमें आत्म-त्याग की भावना होती है; अर्थात् आत्म-त्याग पर ही सच्चा प्रेम निर्भर होता है। सच्चे प्रेम के लिए यदि हमें अपने प्राणों को भी न्योछावर करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए। बिना त्याग के प्रेम (UPBoardSolutions.com) प्राणहीन या मृत है। त्याग से ही प्रेम में प्राणों का संचार होता है; अत: सच्चे प्रेम के लिए प्राणों का बलिदान करने को भी सदैव प्रस्तुत रहना चाहिए। देशप्रेम वह पवित्र भावना है, जो निर्मल और सीमारहित त्याग से सुशोभित होती है। देशप्रेम की भावना से ही मनुष्य की आत्मा विकसित होती है। आत्मा के विकास से मनुष्य का विकास होता है; अत: देशप्रेम से आत्मा का विकास और आत्मा के विकास से मनुष्यता का विकास करना चाहिए।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. प्रस्तुत पद में देशप्रेम की उत्पत्ति के मूल भावों पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा-सरल खड़ी बोली।
  3. शैली-उद्बोधन।
  4. रस–वीर।
  5. छन्द–प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राओं वाला मात्रिक छन्द।
  6. गुण-ओज।
  7. अलंकार-“करो प्रेम पर प्राण निछावर’ में अनुप्रास तथा रूपका
  8. भावसाम्य-रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी ने भी कहा है

स्वातन्त्र्य गर्व उनका जो नर फाकों में प्राण गॅवाते हैं ।
पर नहीं बेचमन का प्रकाशरोटी का मोल चुकाते हैं।

UP Board Solutions

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त रस का नाम सलक्षण बताइए-
विषुवत्-रेखा का वासी जो,
जीता है नित हाँफ-हाँफ कर।
रखता है अनुराग अलौकिक,
वह भी अपनी मातृभूमि पर ॥
धुववासी जो हिम में तम में,
जी लेता है। काँप-काँप कर।
वह भी अपनी मातृ-भूमि पर,
कर देता है। प्राण निछावर ॥
उत्तर
वीर रस है। इसका लक्षण ‘काव्य-सौन्दर्य (UPBoardSolutions.com) के तत्त्व’ के अन्तर्गत देखें।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ? परिभाषा सहित लिखिए-
(क) निर्भय स्वागत करो मृत्यु का ,
मृत्यु एक है विश्राम-स्थल ।
जीव जहाँ से फिर चलता है ,
धारण कर नव जीवन-संबल ॥
मृत्यु एक सरिता है, जिसमें ,
श्रम से कातर जीव नहाकर ।
फिर नूतन : धारण करता है,
काया-रूपी वस्त्र बहाकर ॥

UP Board Solutions

(ख) तुम तो, हे प्रिय बन्धु, स्वर्ग-सी, सुखद, सकल विभवों की आकर।
धरा-शिरोमणि मातृभूमि में, धन्य हुए हो जीवन पाकर ॥
उत्तर
(क) मृत्यु एक है विश्राम-स्थल तथा ‘मृत्यु एक सरिता है’ में रूपक अलंकार है। रूपक अलंकार में उपमेय में उपमान का निषेधरहित आरोप होता है।

(ख) ‘स्वर्ग-सी सुखद’ में उपमा अलंकार है। उपमा (UPBoardSolutions.com) अलंकार में उपमेय और उपमान में स्पष्ट और सुन्दर समानता दिखाई जाती है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पदों में सनाम समास-विग्रह कीजिए-
अचर, परीक्षा-स्थल, देश-जाति, गिरि-वर, चरण-चिह्न, शत्रुजय |
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 रामनरेश त्रिपाठी (काव्य-खण्ड) img-1

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 रामनरेश त्रिपाठी (काव्य-खण्ड) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 रामनरेश त्रिपाठी (काव्य-खण्ड), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

 

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 गुरु नानकदेव (गद्य खंड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 गुरु नानकदेव (गद्य खंड)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 गुरु नानकदेव (गद्य खंड).

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये-
(1) आकाश में जिस प्रकार षोडश कला से पूर्ण चन्द्रमा अपनी कोमल स्निग्ध किरणों से प्रकाशित होता है, उसी प्रकार मानव चित्त में भी किसी उज्ज्वल प्रसन्न ज्योतिपुंज का आविर्भाव होना स्वाभाविक है। गुरु नानकदेव ऐसे ही षोडश कला से पूर्ण स्निग्ध ज्योति महामानव थे । लोकमानस में अर्से से कार्तिकी पूर्णिमा के साथ गुरु के आविर्भाव को सम्बन्ध जोड़ दिया गया है। गुरु किसी एक ही दिन को पार्थिव शरीर में (UPBoardSolutions.com) आविर्भूत हुए होंगे, पर भक्तों के चित्त में वे प्रतिक्षण प्रकट हो सकते हैं। पार्थिव रूप को महत्त्व दिया जाता है, परन्तु प्रतिक्षण आविर्भूत होने को आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्त्व मिलना चाहिए। इतिहास के पण्डित गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के विषय में वादविवाद करते रहें, इस देश का सामूहिक मानव चित्त उतना महत्त्व नहीं देता।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) लेखक की दृष्टि में गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के स्थान पर किसको महत्त्व मिलना चाहिए?
(4) चन्द्रमा कितनी कलाओं से परिपूर्ण होता है?
(5) कार्तिक पूर्णिमा का सम्बन्ध किस महामानव से है?
[शब्दार्थ-लोकमानस = जनता का मन। अर्से से = बहुत समय से। आविर्भाव = उत्पत्ति, जन्म। पार्थिव = पृथ्वी सम्बन्धी, भौतिक स्थूल।]

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘गुरु नानकदेव’ पाठ से उधृत किया गया है। इसके लेखक संस्कृत एवं हिन्दी के मूर्द्धन्य विद्वान् आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी हैं। नियत गद्यांश में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने गुरु नानकदेव के जन्म-दिन का महत्त्व बताते हुए उनके प्रति भक्तों की असीम श्रद्धा को व्यक्त किया है। गुरु तो भक्तों के हृदय में प्रतिक्षण प्रकट होते रहते हैं-इस भावना का सहज आध्यात्मिक रूप प्रस्तुत किया है। ।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने यह बताया है कि आकाश में जिस प्रकार सोलह कलाओं से युक्त चन्द्रमा प्रकाशित होता है ठीक उसी प्रकार मानव के मस्तिष्क में किसी ज्योतिपुंज का उत्पन्न होना अत्यन्त स्वाभाविक है। गुरुनानक देव ऐसे ही सोलह कलाओं से युक्त स्निग्ध ज्योति महामानव थे। हमारे देश की जनता बहुत समय से गुरु नानकदेव के जम को कार्तिक महीने की पूर्णिमा के दिन मनाती आ रही है। गुरु नानकदेव तो किसी एक ही दिन अपने भौतिक शरीर से प्रकट हुए होंगे, (UPBoardSolutions.com) किन्तु श्रद्धालु भक्तगणों के हृदय में तो वे सदैव ही आध्यात्मिक रूप से प्रकट होते रहते हैं। यद्यपि भौतिक रूप से जन्म लेने को महत्त्व दिया जाता रहा है, फिर भी प्रतिक्षण आध्यात्मिक दृष्टि से जन्म लेने का अधिक महत्त्व समझा जाना चाहिए-ऐसी लेखक का मत है। यद्यपि इतिहास के विद्वानों के मत में उनकी जन्म-तिथि सम्बन्धी विवाद है, किन्तु इस देश की जनता का सामूहिक मन इस बात पर विशेष ध्यान नहीं देता। उसके मन में जो जन्म सम्बन्धी धारणा बन गयी है, उसके लिए वही सत्य है। उसे तो इसके माध्यम से अपने गुरु को पूजना है, सो वह कार्तिक पूर्णिमा को पूज लेता है।
  3. लेखक की दृष्टि में गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के स्थान पर उनके आध्यात्मिकता को महत्त्व मिलना चाहिए।
  4. चन्द्रमा षोडश कलाओं से परिपूर्ण होता है।
  5. कार्तिक पूर्णिमा का सम्बन्ध महामानव गुरु नानकदेव से है।

UP Board Solutions

(2) गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जायँ, वही क्षण उत्सव का है, वही क्षण उल्लसित कर देने के लिएपर्याप्त है।
नवो नवो भवसि जायमानः- गुरु, तुम प्रतिक्षण चित्तभूमि में आविर्भूत होकर नित्य नवीन हो रहे हो। हजारों वर्षों से शरत्काल की यह सर्वाधिक प्रसन्न तिथि प्रभामण्डित पूर्णचन्द्र के साथ उतनी ही मीठी ज्योति के धनी महामानव का स्मरण कराती रही है। इस चन्द्रमा के साथ महामानवों का सम्बन्ध (UPBoardSolutions.com) जोड़ने में इस देश का समष्टि चित्त, आह्लाद अनुभव करता है। हम ‘रामचन्द्र’, ‘कृष्णचन्द्र’ आदि कहकर इसी आह्लाद को प्रकट करते हैं। गुरु नानकदेव के साथ इस पूर्णचन्द्र का सम्बन्ध जोड़ना भारतीय जनता के मानस के अनुकूल है। आज वह अपना आह्लाद प्रकट करती है।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) शरदकाल की यह तिथि किसकी याद कराती रही है?
(4) उत्सव का क्षण कौन-सा है?
(5) शरद पूर्णिमा किसका स्मरण कराती है? |
[शब्दार्थ-उत्सव =त्योहार, उल्लास। उल्लसित = हर्षित । नव = नया। जायमानः = जन्म लेनेवाला । चित्तभूमि = चित्त या मन में। नवीन = नया।]

उत्तर- 

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘गुरु नानकदेव’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी हैं। प्रस्तुत गद्यांश में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने गुरु की महिमा की ओर संकेत करते हुए कहा है कि मन में जब कभी भी गुरु प्रकट हो जायँ वही क्षण हर्षित कर देनेवाला होता है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक का मत है कि गुरु जिस किसी भी शुभ मुहूर्त में हृदय में उत्पन्न हो जायँ वही समय वही मुहूर्त आनन्द का है, प्रसन्नता का है। वह ऐसा समय है जो जीवन में हर्षोल्लास भर देनेवाला होता है। परमात्मा की ये महान् विभूतियाँ प्रतिक्षण भक्तों के हृदय (UPBoardSolutions.com) में जन्म लेकर नित्य नया रूप धारण करती रहती हैं। सच है कि गुरु तो हर क्षण चित्तभूमि अर्थात् मन में उत्पन्न होकर नये-नये होते रहते हैं। भक्तों के लिए ऐसा हर क्षण उत्सव का है, उल्लास का है। हजारों वर्षों से शरदकाल की यह तिथि प्रभामंडित पूर्णचन्द्र के साथ उस महामानव का याद कराती रही है। इस चन्द्रमा के साथ महामानवों का तादात्म्य करने से इस देश का समष्टि चित्त प्रसन्नता का अनुभव करता है। हम लोग ‘रामचन्द्र कृष्णचन्द्र इत्यादि कहकर इसी प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। गुरु नानकदेव के साथ इस पूर्णचन्द्र का सम्बन्ध जोड़ना भारतीय जन-मानस के अत्यन्त अनुकूल है। आज भारतीय जनता गुरु नानकदेव को स्मरण (UPBoardSolutions.com) करके प्रसन्नता का अनुभव करती है।
  3. शरदकाल की यह तिथि प्रभामंडित पूर्णचन्द्र के साथ गुरुनानक जी की याद कराती रही है।
  4. गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जायँ, वह क्षण उत्सव का है।
  5. शरद पूर्णिमा महामानव गुरु नानकदेव का स्मरण कराती है।

(3) विचार और आचार की दुनिया में इतनी बड़ी क्रान्ति ले आनेवाला यह सन्त इतने मधुर, इतने स्निग्ध, इतने मोहक वचनों को बोलनेवाला है। किसी का दिल दुखाये बिना, किसी पर आघात किये बिना, कुसंस्कारों को छिन्न करने की शक्ति रखनेवाला, नयी संजीवनी धारा से प्राणिमात्र (UPBoardSolutions.com) को उल्लसित करनेवाला यह सन्त मध्यकाल की ज्योतिष्क मण्डली में अपनी निराली शोभा से शरत् पूर्णिमा के पूर्णचन्द्र की तरह ज्योतिष्मान् है। आज उसकी याद आये बिना नहीं रह सकती। वह सब प्रकार से लोकोत्तर है। उसका उपचार प्रेम और मैत्री है। उसका शास्त्र सहानुभूति और हित-चिन्ता है।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए। |
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) गुरुनानक जी का उपचार क्या है?
(4) क्रान्ति लाने वाले यहाँ किस सन्त का वर्णन है?
(5) शरद पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्र की तरह कौन ज्योतिष्मान है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘गुरु नानकदेव’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी हैं। इन पंक्तियों में गुरु नानकदेव के महान् व्यक्तित्व और उनकी महत्ता पर प्रकाश डाला गया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- गुरु नानकदेव एक महान् सन्त थे। उनके समय के समाज में अनेक प्रकार की बुराइयाँ विद्यमान थीं । समाज का आचरण दूषित हो चुका था। इन बुराइयों को दूर करने और सामाजिक आचरणों में सुधार लाने के लिए गुरु नानकदेव ने न तो किसी की निन्दा की और न ही तर्क-वितर्क द्वारा किसी की विचारधारा का खपडन किया। उन्होंने अपने आचरण और मधुर वाणी से ही दूसरों के विचारों और आचरण में परिवर्तन करने का प्रयास किया और इस दृष्टि से उन्होंने आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की। बिना किसी का दिल दुखाये और बिना किसी को किसी प्रकारे की चोट पहुँचाये, उन्होंने दूसरों के बुरे संस्कारों को नष्ट कर दिया। उनकी सन्त वाणी को सुनकर दूसरों का हृदय हर्षित हो जाता था और लोगों को नवजीवन प्राप्त होता था। लोग उनके उपदेशों को जीवनदायिनी औषध की भाँति ग्रहण करते थे। (UPBoardSolutions.com) मध्यकालीन सन्तों के बीच गुरु नानकदेव इसी प्रकार प्रकाशमान दिखायी पड़ते हैं, जैसे आकाश में आलोक बिखेरने वाले नक्षत्रों के मध्य; शरद पूर्णिमा का चन्द्रमा शोभायमान होता है । विशेषकर शरद पूर्णिमा के अवसर पर ऐसे महान् सन्त का स्मरण हो आना स्वाभाविक है। वे सभी दृष्टियों से एक अलौकिक पुरुष थे। प्रेम और मैत्री के द्वारा ही वे दूसरों की बुराइयों को दूर करने में विश्वास रखते थे। दूसरों के प्रति सहानुभूति का भाव रखना और उनके कल्याण के प्रति चिन्तित रहना ही उनका आदर्श था। गुरु नानकदेव का सम्पूर्ण जीवन, उनके इन्हीं आदर्शों पर आधारित था।
  3. गुरुनानक जी का उपचार प्रेम और मैत्री है।
  4. क्रान्ति लाने वाले यहाँ सन्त गुरु नानकदेव का वर्णन है।
  5. शरद पूर्णिमा पूर्ण चन्द्र की तरह गुरु नानकदेव ज्योतिष्मान हैं?

UP Board Solutions

(4) किसी लकीर को मिटाये बिना छोटी बना देने का उपाय है बड़ी लकीर खींच देना। क्षुद्र अहमिकाओं और अर्थहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने के लिए तर्क और शास्त्रार्थ का मार्ग कदाचित् ठीक नहीं है। सही उपाय है बड़े सत्य को प्रत्यक्ष कर देना। गुरु नानक ने यही किया। उन्होंने जनता को बड़े-से-बड़े सत्य के सम्मुखीन कर दिया, हजारों दीये उस महाज्योति के सामने स्वयं फीके पड़ गये।।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) हजारो दीये किसके सामने स्वयं फीके पड़ गये?
(4) छोटी लकीर के सामने बड़ी लकीर खींच देने की क्या तात्पर्य है?
(5) अहमिकाओं और कार्यहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने का सही उपाय क्या है?
[शब्दार्थ-क्षुद्र = तुच्छ, छोटा। अहमिकाओं = अहंकार की भावनाएँ। संकीर्णता = हृदय का छोटापन। कदाचित् = कभः। सम्मुखीन = सामने।]

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक निबन्ध से अवतरित है। इन पंक्तियों में लेखक ने व्यक्त किया है कि गुरु नानकदेव ने महान् सत्य का उद्घाटन करके संसार की भौतिक वस्तुओं को सहज ही तुच्छ सिद्ध कर दिया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- हम किसी रेखा को मिटाये बिना यदि उसे छोटा करना चाहते हैं तो उसका एक ही उपाय है कि उस रेखा के पास उससे बड़ी रेखा खींच दी जाय। ऐसा करने पर पहली रेखा स्वयं छोटी प्रतीत होने लगेगी। इसी प्रकार यदि हम अपने मन के अहंकार और तुच्छ भावनाओं को दूर करना चाहते हैं, तो उसके लिये भी हमें महानता की बड़ी लकीर खींचनी होगी। अहंकार, तुच्छ भावना, संकीर्णता आदि को शास्त्रज्ञान के आधार पर वाद-विवाद करके या तर्क देकर छोटा नहीं किया (UPBoardSolutions.com) जा सकता; उसके लिये व्यापक और बड़े सत्य का दर्शन आवश्यक है। इसी उद्देश्य से मानव-जीवन की संकीर्णताओं और क्षुद्रताओं को छोटा सिद्ध करने के लिए गुरु नानकदेव ने जीवन की महानता को प्रस्तुत किया। गुरु की वाणी ने साधारण जनता को परम सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। परमसत्य के ज्ञान एवं प्रत्यक्ष अनुभव से अहंकार और संकीर्णता आदि इस प्रकार तुच्छ प्रतीत होने लगे, जैसे महाज्योति के सम्मुख छोटे दीपक आभाहीन हो जाते हैं। गुरु की वाणी ऐसी महाज्योति थी, जिसने जन साधारण के मन से अहंकार, क्षुद्रता, संकीर्णता आदि के अन्धकार को दूर कर उसे दिव्य ज्योति से प्रकाशित कर दिया।
  3. हजारों दीये गुरु नानकदेव की महाज्योति के सामने फीके पड़ गये।
  4. किसी लकीर को मिटाये बिना छोटी बना देने का उपाय है बड़ी लकीर खींच देना।
  5. अहमिकाओं और अर्थहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने के लिए सही उपाय है बड़े सत्य को प्रत्यक्ष कर देना।

(5) भगवान् जब अनुग्रह करते हैं तो अपनी दिव्य ज्योति ऐसे महान् सन्तों में उतार देते हैं। एक बार जब यह ज्योति मानव देह को आश्रय करके उतरती है तो चुपचाप नहीं बैठती। वह क्रियात्मक होती है, नीचे गिरे हुए अभाजन लोगों को वह प्रभावित करती है, ऊपर उठाती है। वह उतरती है और ऊपर उठाती है। इसे पुराने पारिभाषिक शब्दों में कहें तो कुछ इस प्रकार होगा कि एक ओर उसका ‘अवतार’ होता है, (UPBoardSolutions.com) दूसरी ओर औरों का उद्धार होता है। अवतार और उद्धार की यह लीला भगवान् के प्रेम का सक्रिय रूप है, जिसे पुराने भक्तजन ‘अनुग्रह’ कहते हैं। आज से लगभग पाँच सौ वर्ष से पहले परम प्रेयान् हरि का यह ‘अनुग्रह’ सक्रिय हुआ था, वह आज भी क्रियाशील है। आज कदाचित् गुरु की वाणी र सबसे अधिक तीव्र आवश्यकता अनुभूत हो रही है।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) भगवान के प्रेम में क्या सक्रिय रूप है?
(4) सन्तजन क्या कार्य करते हैं?
(5) अनुग्रह का क्या तात्पर्य है?
[शब्दार्थ-अनुग्रह = कृपा, उपकार। दिव्य ज्योति = आलोकित प्रकाश। आश्रय = आधार, सहारा। अभाजन = अयोग्य।]

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक निबन्ध से अवतरित है। लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि गुरु नानक जैसे महान् सन्तों में ईश्वर अपनी ज्योति अवतरित करते हैं और ये महान् सन्त इस ज्योति के सहारे गिरे हुए लोगों को ऊपर उठाते हैं।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- द्विवेदी जी का मत है कि जब संसार पर ईश्वर की विशेष कृपा होती है तो उसकी अलौकिक ज्योति किसी सन्त के रूप में इस संसार में अवतरित होती है। तात्पर्य यह है कि ईश्वर अपनी दिव्य ज्योति को किसी महान् सन्त के रूप में प्रस्तुत करके उसे इस जगत् का उद्धार करने के लिए पृथ्वी पर भेजता है। वह महान् सन्त ईश्वर की ज्योति से आलोकित होकर संसार का मार्गदर्शन करता है। ईश्वर निरीह लोगों के कष्टों को दूर करना चाहता है, इसलिए उसकी यह (UPBoardSolutions.com) दिव्य-ज्योति मानव-शरीर प्राप्त करके चैन से नहीं बैठती, वरन् अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए सक्रिय हो उठती है। मानव रूप में जब भी ईश्वर अवतार लेता है, तभी इस विश्व का उद्धार तथा कल्याण होता है। प्राचीन भक्ति-साहित्य में ईश्वर की दिव्य ज्योति का मानव रूप में जन्म ‘अवतार और उद्धार’ कहा गया है। इस दिव्य ज्योति का ‘अवतार’ अर्थात् उतरना होता है और सांसारिक प्राणियों का उद्धार’ अर्थात् ऊपर उठना होता है। आचार्य द्विवेदी अन्त में कहते हैं कि ईश्वर का अवतार लेना और प्राणियों का उद्धार करना ईश्वर के प्रेम का सक्रिय रूप है। भक्तजन इसे ईश्वर की विशेष कृपा मानकर ‘अनुग्रह’ की संज्ञा बताते हैं।
  3. भगवान् के प्रेम में अवतार और उद्धार की यह लीला सक्रिय रूप है।
  4. सन्तजन लोगों का उद्धार करते हैं।
  5. भगवान का अवतार लेकर गिरे जनों का उद्धार करने की लीला को अनुग्रह. करते हैं।

UP Board Solutions

(6) महागुरु, नयी आशा, नयी उमंग, नये उल्लास की आशा में आज इस देश की जनता तुम्हारे चरणों में प्रणति निवेदन कर रही है। आशा की ज्योति विकीर्ण करो, मैत्री और प्रीति की स्निग्ध धारा से आप्लावित करो। हम उलझ गये हैं, भटक गये हैं, पर कृतज्ञता अब भी हम में रह गयी है। आज भी हम तुम्हारी अमृतोपम वाणी को भूल नहीं गये हैं। कृतज्ञ भारत को प्रणाम अंगीकार करो।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) ‘कृतज्ञ भारत का प्रणाम अंगीकार करो’ का क्या मतलब है?
(4) कृतज्ञता से आप क्या समझते हैं?
(5) लेखक गुरु से किस प्रकार की ज्योति विकीर्ण करने का निवेदन कर रहा है?
[शब्दार्थ-विकीर्ण = प्रसारित । स्निग्ध = पवित्र। अमृतोपम = अमृत के समान । अंगीकार = स्वयं में समाहित, स्वीकार ।]

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक निबन्ध से अवतरित है। यहाँ लेखक ने गुरु नानकदेव के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके ति श्रद्धा का भाव व्यक्त किया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक गुरु से प्रार्थना करता है कि वे भटके हुए भारतवासियों के हृदय में प्रेम, मैत्री एवं सदाचार का विकास करके उनमें नयी आशा, नये उल्लास व नयी उमंग का संचार करें। इस देश की जनता उनके चरणों में अपना प्रणाम निवेदन करती है। लेखक का कथन है कि वर्तमान समाज में रहनेवाले भारतवासी कामना, लोभ, तृष्णा, ईष्र्या, ऊँचनीच, जातीयता (UPBoardSolutions.com) एवं साम्प्रदायिकता जैसे दुर्गुणों से ग्रसित होकर भटक गये हैं, फिर भी इनमें कृतज्ञता का भाव विद्यमान है। इस कृतज्ञता के कारण ही आज भी ये भारतवासी आपकी अमृतवाणी को नहीं भूले हैं। हे गुरु! आप कृतज्ञ भारतवासियों के प्रणाम को स्वीकार करने की कृपा करें।
  3. कृतज्ञ भारत का प्रणाम अंगीकार करो का मतलब आप कृतज्ञ भारतवासियों के प्रणाम को स्वीकार करने की कृपा करे।
  4. किसी के उपकार को अंगीकार करके सम्मान देना और उसके प्रति न्यौछावर होना कृतज्ञता है।
  5. लेखक गुरु से आशा की ज्योति विकीर्ण करने का निवेदन कर रहा है।

प्रश्न 2. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 3. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के जीवन एवं साहित्यिक परिचय का उल्लेख कीजिए।

प्रश्न 4. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक विशेषताएँ बताते हुए उनकी भाषा-शैली पर अपने विचार प्रकट कीजिए। अथवा डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म-सन् 1907 ई०। मृत्यु-18 मई, 1979 ई० । जन्म-आरत दुबे का छपरा, जिला बलिया (उ० प्र०) में। शिक्षा-इण्टर, ज्योतिष तथा साहित्य में आचार्य।
रचनाएँ-‘हिन्दी साहित्य की भूमिका’, ‘सूर साहित्य’, ‘कबीर’, ‘अशोक के फूल’, ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’, विचार और वितर्क’, ‘विश्व-परिचय’, ‘लाल कनेर’, ‘चारु चन्द्रलेख’।
वर्य-विषय- भारतीय संस्कृति का इतिहास, ज्योतिष साहित्य, विभिन्न धर्म तथा सम्प्रदाय। ।
शैली- सरल तथा विवेचनात्मक।

  • जीवन-परिचय- डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म बलिया जिले के ‘आरत दुबे का छपरा’ नामक ग्राम में एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण-परिवार में सन् 1907 ई० में हुआ था। इनकी शिक्षा का प्रारम्भ संस्कृत से ही हुआ था। सन् 1930 ई० में इन्होंने काशी विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की और उसी वर्ष प्रधानाध्यापक होकर शान्ति निकेतन चले गये। सन् 1940 ई० से 1950 ई० तक वे वहाँ हिन्दी भवन के डायरेक्टर के पद पर काम करते रहे; तदुपरान्त वे काशी विश्वविद्यालय (UPBoardSolutions.com) में हिन्दी-विभाग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त हुए। लखनऊ विश्वविद्यालय ने इनकी हिन्दी की महत्त्वपूर्ण सेवाओं के लिए 1949 ई० में इन्हें डी० लिट्० की उपाधि प्रदान की। सन् 1957 ई० में इनकी विद्वत्ता पर इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया गया। 1960 ई० में ये चण्डीगढ़ विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष होकर चले गये और वहाँ से सन् 1968 ई० में पुन: काशी विश्वविद्यालय में ‘डायरेक्टर’ होकर आ गये। कुछ दिन तक उत्तर प्रदेश ग्रन्थ अकादमी के अध्यक्ष पद पर कार्य करने के उपरान्त 18 मई, 1979 ई० को इनका देहावसान हो गया।
  • कृतियाँ
    1. आलोचना- ‘सूर-साहित्य’, ‘हिन्दी-साहित्य की भूमिका’, ‘हिन्दी-साहित्य का आदिकाल’, ‘कालिदास की लालित्ययोजना’, ‘सूरदास और उनका काव्य’, ‘कबीर’, ‘हमारी साहित्यिक समस्याएँ’, ‘साहित्य का मर्म’, ‘भारतीय वाङ्मय’, ‘साहित्यसहचर’, ‘नखदर्पण में हिन्दी-कविता’ आदि।
    2. निबन्ध-संग्रह- अशोक के फूल’, ‘कुटज’, ‘विचार-प्रवाह’, ‘विचार और वितर्क’, ‘कल्पलता’, ‘आलोक-पर्व’ आदि।
    3. उपन्यास- ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘चारु चन्द्रलेख’, ‘पुनर्नवा’ तथा ‘अनामदास का पोथा’।
    4. अनूदित साहित्य- ‘प्रबन्ध-चिन्तामणि’, ‘पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह’, ‘प्रबन्ध-कोष’, ‘विश्व-परिचय’, ‘लाल कनेर’, ‘मेरा वचन’ आदि। द्विवेदी जी मूल रूप से शुक्ल जी की परम्परा के आलोचक होते हुए भी आलोचना-साहित्य में अपनी एक मौलिक दिशा प्रदान करते हैं।
    5. साहित्यिक परिचय- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी में मौलिक रूप से साहित्य का सृजन करने की योग्यता बाल्यकाल से ही विद्यमान थी। इन्होंने अपने बाल्यकाल में ही व्योमकेश शास्त्री से कविता लिखने की कला सीखनी प्रारम्भ कर दी थी। धीरे-धीरे साहित्य-जगत् इनकी विलक्षण सृजन-प्रतिभा से परिचित होने लगा। शान्ति-निकेतन पहुँचकर इनकी (UPBoardSolutions.com) साहित्यिक प्रतिभा और भी अधिक निखरने लगी । बंगला साहित्य से भी वे बहुत अधिक प्रभावित थे। इनकी बहुमुखी साहित्यिक प्रतिभा विभिन्न क्षेत्रों में प्रकट हुई । ये उच्चकोटि के शोधकर्ता, निबन्धकार, उपन्यासकार और आलोचक थे । इन्होंने अनेक विषयों पर उत्कृष्ट कोटि के निबन्धों तथा नवीन शैली पर आधारित उपन्यासों की रचना की। विशेष रूप से वैयक्तिक एवं भावात्मक निबन्धों की रचना करने में द्विवेदी जी अद्वितीय थे। ये ‘उत्तर प्रदेश ग्रन्थ अकादमी’ के अध्यक्ष और हिन्दी संस्थान’ के उपाध्यक्ष भी रहे। इनकी सुप्रसिद्ध कृति ‘कबीर’ पर इन्हें ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ तथा ‘सूर-साहित्य’ पर ‘इन्दौर साहित्य समिति’ से ‘स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ था।
    6. भाषा और शैली- द्विवेदी जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ शुद्ध खड़ीबोली है। इनकी भाषा के दो रूप हैं। निबन्ध में जहाँ संस्कृत के सरल तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है वहीं उर्दू, फारसी, बंगला और देशज शब्दों के भी प्रयोग मिलते हैं। द्विवेदी जी की शैली में अनेकरूपता है। उसमें बुद्धि-तत्त्व के साथ-साथ हृदय–तत्त्व का भी समावेश है। उनकी शैली को गवेषणात्मक शैली (UPBoardSolutions.com) (नाथसम्प्रदाय जैसे सांस्कृतिक निबन्धों में), आलोचनात्मक शैली, व्यावहारिक आलोचनाओं में, भावात्मक शैली (ललित और आत्मव्यंजक निबन्धों में), व्याख्यात्मक शैली (दार्शनिक विषयों के स्पष्टीकरण में), व्यंग्यात्मक शैली (हास्य-व्यंग्य सम्बन्धी निबन्धों में तथा ललित निबन्धों में), कथात्मक शैली (उपन्यासों और संस्मरणात्मक निबन्धों में) आदि छह कोटियों में विभक्त किया जा सकता है।

उदाहरण

  1. गवेषणत्मिक शैली- कार्तिक पूर्णिमा इस देश की बहुत पवित्र तिथि है। इस दिन सारे भारतवर्ष में कोई-न-कोई उत्सव, मेला, स्नान या अनुष्ठान होता है।” – गुरु नानकदेव
  2. आलोचनात्मक शैली- “अद्भुत है गुरु की बानी की सहज बोधक शक्ति। कहीं कोई आडम्बर नहीं, कोई बनाव नहीं, सहज हृदय से निकली हुई सहज प्रभावित करने की अपार शक्ति है।” – गुरु नानकदेव
  3. भावात्मक शैली- “दुरन्त जीवन शक्ति है। कठिन उपदेश है। जीना भी एक कला है लेकिन कला ही नहीं तपस्या है। जियो तो प्राण ढाल दो जिन्दगी में, जीवन रस के उपकरणों में ठीक है।” – कुटज
  4. व्याख्यात्मक शैली- “किसी लकीर को मिटाये बिना छोटी बना देने का उपाय है बड़ी लकीर खींच देना।” – गुरु नानकदेव
  5. व्यंग्यात्मक शैली- “इस गिरिकूट बिहारी का नाम क्या है? मन दूर-दूर तक उड़ रहा है-देश में और काल में-‘मनोरथमनार्नगतिनं विद्यते’ अचानक याद आया-अरे यह तो ‘कुटज’ है।” – कुटज
  6. कथात्मक शैली- ‘यह जो मेरे सामने कुटज का लहराता पौधा खड़ा है वह नाम व रूप दोनों में अपनी अपराजेय जीवनी शक्ति की घोषणा कर रहा है।” – कुटज

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. अपने समकालीन सन्तों से गुरु नानकदेव किस प्रकार भिन्न एवं विशिष्ट हैं?
उत्तर- अपने समकालीन सन्तों से गुरु नानकदेव भिन्न थे। उन्होंने प्रेम का संदेश दिया है। उनके लिए संन्यास तथा गृहस्थ दोनों समान हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 2. अनुग्रह का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- भगवान् जब अनुग्रह करते हैं तो अपनी दिव्य ज्योति ऐसे महान् सन्तों में उतार देते हैं। एक बार जब यह ज्योति मानव देह को आश्रय करके उतरती है तो चुपचाप नहीं बैठती है। वह क्रियात्मक होती है, नीचे गिरे हुए अभाजन जनों को वह प्रभावित करती है, ऊपर उठाती है।

प्रश्न 3. ‘गुरु नानकदेव’ पाठ की भाषा-शैली पर तीन वाक्य लिखिए। |
उत्तर-
गुरु नानकदेव पाठ की भाषा अत्यन्त सरल एवं प्रवाहमान है। इसमें उर्दू, फारसी, अंग्रेजी एवं देशज शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। यत्र-तत्र मुहावरेदार भाषा का भी प्रयोग हुआ है। भाषा शुद्ध, संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली है। शैली अत्यन्त सरल एवं आकर्षक है।

प्रश्न 4. गुरु नानक की ‘सहज-साधना’ से सम्बन्धित लेखक के विचार संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- गुरु नानक जी ‘सहज-साधना’ के पक्षधर थे। वे आडम्बर में विश्वास नहीं करते थे। सहज जीवन बड़ी कठिन साधना है। सहज भाषा बड़ी बलवती आस्था है।

प्रश्न 5. गुरु नानकदेव’ के आविर्भाव काल को दर्शाते हुए उनमें आनेवाली समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- गुरु नानकदेव का आविर्भाव आज से लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व हुआ। आज से पाँच सौ वर्ष पूर्व देश अनेक कुसँस्कारों से जकड़ा हुआ था। जातियों, (UPBoardSolutions.com) सम्प्रदायों, धर्मों और संकीर्ण कुलाभिमानों से वह खण्ड-विच्छिन्न हो गया था। इस विषम परिस्थितियों में महान् गुरु नानकदेव ने सुधा लेप का काम किया।

प्रश्न 6. किन तथ्यों के आधार पर लेखक ने कार्तिक पूर्णिमा को पवित्र तिथि बताया है?
उत्तर- कार्तिक पूर्णिमा भारत की बहुत पवित्र तिथि है। इस दिन सारे भारतवर्ष में कोई-न-कोई उत्सव, मेला, स्नान या अनुष्ठान होता है। शरद्काल का पूर्ण चन्द्रमा इस दिन अपने पूरे वैभव पर होता है । आकाश निर्मल, दिशाएँ प्रसन्न, वायुमण्डल शांत, पृथ्वी हरी-भरी, जल प्रवाह मृदु-मन्थर हो जाता है।

प्रश्न 7. गुरु नानकदेव द्वारा दिये गये जनता के सन्देश को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- गुरु नानक ने प्रेम का सन्देश दिया है। उनका कथन था कि ईश्वर नाम के सम्मुख जाति और कुल के बन्धन निरर्थक हैं क्योंकि मनुष्य जीवन का जो चरम प्राप्तव्य है (UPBoardSolutions.com) वह स्वयं प्रेमरूप है। प्रेम ही उसका स्वभाव है, प्रेम ही उसका साधन है। गुरु नानक जी बाह्य आडम्बर में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने अभिमान से दूर रहने का संदेश दिया।

प्रश्न 8. कार्तिक पूर्णिमा क्यों प्रसिद्ध है? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर- कार्तिक पूर्णिमा के दिन महान् गुरु नानकदेव का जन्म-दिवस मनाया जाता है, इसलिए कार्तिक पूर्णिमा प्रसिद्ध है।

प्रश्न 9. गुरु नानकदेव पाठ से दस सुन्दर वाक्य लिखिए। |
उत्तर- कार्तिक पूर्णिमा इस देश की बहुत पवित्र तिथि है। इस दिन सारे भारतवर्ष में कोई-न-कोई उत्सव, मेला, स्नान या अनुष्ठान होता है । शरदकाल का पूर्ण चन्द्रमा इस दिन अपने पूरे वैभव पर होता है। गुरु नानकदेव षोडश कला से पूर्ण स्निग्ध ज्योति महामानव थे! भारतवर्ष की मिट्टी में युग (UPBoardSolutions.com) के अनुरूप महापुरुषों को जन्म देने का अद्भुत गुण है। गुरु नानक ने प्रेम का संदेश दिया है। ईश्वर नाम के सम्मुख जाति और कुल का बन्धन निरर्थक है। प्रेम मानव का स्वभाव है। किसी लकीर को मिटाये बिना छोटी बना देने का उपाय है बड़ी लकीर खींच देना। सहज जीवन बड़ी कठिन साधना है। सहज भाषा बड़ी बलवती आस्था है।

UP Board Solutions

प्रश्न 10. गुरु नानकदेव के गुणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- गुरु नानक ने प्रेम का संदेश दिया। नानक जी जाति-पाँति में विश्वास नहीं करते थे। वे बाह्य आडम्बर से दूर थे। उनकी दृष्टि में संन्यास लेना आवश्यक नहीं है। वे अभिमान से दूर रहना चाहते थे। उन्होंने अहंकार से दूर रहने को संदेश दिया।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के दो उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के दो उपन्यास-पुनर्नवा और चारुचन्द्र लेख हैं।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाइए –
(अ) कार्तिक पूर्णिमा के साथ गुरु के आविर्भाव का सम्बन्ध जोड़ दिया गया है।    (√)
(ब) गुरु नानक ने प्रेम का संदेश दिया है।                                                          (√)
(स) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्विवेदी युग के लेखक हैं।                                 (×)
(द) सीधी लकीर खींचना आसान काम है।                                                         (×)

प्रश्न 3. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी किस युग के लेखक हैं?
उत्तर- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी शुक्लोत्तर युग के लेखक थे।

प्रश्न 4. ‘कबीर’ नामक रचना पर हजारीप्रसाद द्विवेदी को कौन-सा पारितोषिक प्राप्त हुआ?
उत्तर- ‘कबीर’ पर हजारीप्रसाद द्विवेदी को मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ।

प्रश्न 5. गुरु नानकदेव का आविर्भाव कब हुआ था?
उत्तर- गुरु नानकदेव का आविर्भाव आज से लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व हुआ था।

UP Board Solutions

व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित में सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम लिखिए –
उत्तर-  कुलाभिमान, सर्वाधिक, अनायास, लोकोत्तर, अमृतोपम।

कुलाभिमान  –  कुल + अभिमान    –    दीर्घ सन्धि
सर्वाधिक      –   सर्व + अधिक        –   
दीर्घ सन्धि
अनायास      –   अन + आयास       –    
दीर्ध सन्धि
लोकोत्तर      –   लोक + उत्तर         –    
गुण सन्धि
अमृतोपम     –  अमृत + उपम        –   
गुण सन्धि

प्रश्न 2निम्नलिखित समस्त पदों का समास-विग्रह कीजिए तथा समास का नाम लिखिए –
अर्थहीन, महापुरुष, स्वर्णकमल, चित्रभूमि, प्राणधारा।
उत्तर-
अर्थहीन      –  अर्थ से हीन             –   करण तत्पुरुष
महापुरुष    –  महान् है पुरुष जो    –   
कर्मधारय
स्वर्णकमल – स्वर्णरूपी कमल       –   
कर्मधारय
चित्रभूमि     –  चित्रों से युक्त भूमि   –   
करण तत्पुरुष
प्राणधारा    – प्राणरूपी धारा          –   कर्मधारय

प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों का प्रत्यय अलग कीजिए –
अवतार, संजीवनी, स्वाभाविक, महत्त्व, प्रहार, उल्लसित
उत्तर –
शब्द          –     प्रत्यय
अवतार       –        र
संजीवनी     –      अनी
स्वाभाविक –       इक
महत्त्व        –       त्व
प्रहार         –        र
उल्लसित   –       इत

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 गुरु नानकदेव (गद्य खंड) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 गुरु नानकदेव (गद्य खंड), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 8 मौर्योत्तर काल में भारत की स्थिति व विदेशियों से सम्पर्क

UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 8 मौर्योत्तर काल में भारत की स्थिति व विदेशियों से सम्पर्क

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 6 History. Here we have given UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 8 मौर्योत्तर काल में भारत की स्थिति व विदेशियों से सम्पर्क

मानचित्र देखकर लिखिए –

प्रश्न 1.
उन देशों के नाम लिखिए जिन देशों से होकर रेशम का व्यापार होता था।
उत्तर :
मानचित्र के अनुसार- साइप्रस, सीरिया, इराक, ईरान, अफगानिस्तान, भारत व चीन गणतन्त्र से होकर रेशम का व्यापार होता था।

अभ्यास

प्रश्न 1.
शृंगवंश का संस्थापक कौन था?
उत्तर :
पुष्पमित्र शुंग

UP Board Solutions 

प्रश्न 2.
कण्व वंश के अन्तिम शासक का नाम बताइए।
उत्तर :
कण्व वंश का अन्तिम शासक सुशर्मन था।

प्रश्न 3.
सिमुक किस वंश का शासक था?
उत्तर :
सिमुक कण्व वंश का शासक था।

प्रश्न 4.
सातवाहन कालीन धर्म की क्या विशेषता थी?
उत्तर :
सातवाहन राज्य का केन्द्र आंध्र प्रदेश में था। सातवाहन राजाओं ने उत्तर एवं दक्षिण की कला तथा शिल्प से परिचित होने के कारण दोनों का लाभ उठाया। इनके समय में पत्थर की ठोस चट्टानों को काटकर चैत्यों तथा विहारों का निर्माण किया गया। इनमें कार्ले का चैत्य मंडप प्रसिद्ध है। इस चट्टान को (UPBoardSolutions.com) गहराई में काटकर बनाया गया है। यह विशाल वास्तुकला का उदाहरण है। इन्होंने सिक्के, छल्लेदार कुएँ, पक्की ईंट और लेखन कला को उत्तर के सम्पर्क से सीखा।

इस वंश के शासक वैदिक धर्म के अनुयायी थे। इन्होंने सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण अपनाया। बौद्ध भिक्षुओं को भी भूमि तथा ग्राम दान में दिए। चैत्य बौद्ध धर्म के प्रार्थना स्थल होते हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 5.
भारत के विदेशों से सम्पर्क के कारण व्यापार, पहनावा, ज्ञान विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में क्या बदलाव आया ?
उत्तर :
भारत का विदेशों से सम्पर्क के कारण व्यापार, पहनावा, ज्ञान-विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आए बदलाव निम्नलिखित हैं –

व्यापार – मध्य एशिया व रोमन साम्राज्य से सम्पर्क के कारण भारी मात्रा में सोना प्राप्त हुआ। काँच के बर्तन बनाने की तकनीक में प्रगति हुई। नगरीकरण चोटी पर पहुँच गया। (UPBoardSolutions.com) कनिष्क ने तक्षशिला, पुरुषपुर (पेशावर) और कनिष्कपुर आदि नगर बसाए। कुषाणों ने चीन से मध्य एशिया होते हुए रोमन साम्राज्य जाने वाले रेशममार्ग पर नियन्त्रण कर लिया, जिससे भारतीय व्यापार की वृद्धि हुई।

पहनावा – कुषाणों के प्रभाव के कारण भारत में पगड़ी, कुर्ती, पजामे, लम्बे जूते और लम्बे कोट का प्रचलन शुरू हुआ।

ज्ञान-विज्ञान और प्रौद्योगिकी – नाट्यमंच में पर्दा का प्रचलन विदेशियों के प्रभाव से हुआ। नए-नए शब्दों का आदान-प्रदान हुआ, जिससे व्याकरण समृद्ध हुआ। खगोल और ज्योतिषशास्त्र में प्रगति हुई। सप्ताह के दिनों को ग्रहों के नाम से पुकारना यूनानियों से सीखा। यूनानी औषध पद्धति के विषय में जानकारी हुई। कनिष्क के समय में चरक नामक चिकित्सक हुए। इन्होंने चरक संहिता में 600 से ज्यादा औषधियों के विषय में लिखा है। इसमें चिकित्सक के लिए मरीजों के प्रति निर्देश भी दिए गए हैं।

प्रश्न 6.
कुषाण कालीन कला की विशेषता का उल्लेख करिए।
उत्तर :
कुषाण शासन का भारतीय शिल्प और कला पर काफी प्रभाव पड़ा। कुषाणकाल की कला के दो प्रमुख केन्द्र मथुरा और गान्धार थे। मथुरा में लाल बलुआ पत्थर और गान्धार में लाल स्लेटी पत्थर की मूर्तियाँ गढ़ी जाती थीं। मथुरा की मूर्तियों में यूनानी शैली थी और उनमें भारतीय भाव और विचारों को (UPBoardSolutions.com) ध्यान में रखा गया, जबकि गान्धार शैली में मूर्तियों के कपड़ों में चुन्नटें और बालों का मुँघरालापन प्रदर्शित किया जाता था। कुषाण राजाओं ने सबसे ज्यादा स्वर्ण मुद्राएँ जारी कीं। उनकी स्वर्ण मुद्राएँ धातु की शुद्धता में गुप्त शासकों की स्वर्ण मुद्राओं से बेहतर थीं।

UP Board Solutions

प्रश्न 7.
विदेशियों ने भारत से क्या सीखा ? लिखिए।
उत्तर :
विदेशी आक्रमणकारियों के पास अपनी भाषा, लिपि और सुव्यवस्थित धर्म नहीं थे। उन्होंने संस्कृति के इन उपादानों को भारत से लिया। कनिष्क के शासनकाल में चीन, मध्य एशिया और अफगानिस्तान में बौद्ध धर्म का प्रचार किया गया। चीन से बौद्ध धर्म कोरिया और जापान पहुँचा। कनिष्क ने बुद्ध और। बोधिसत्व की प्रतिमाएँ विदेशों में भेजी। बौद्ध धर्म का नया रूप महायान कहलाया और विदेशों में बुद्ध की प्रतिमा की पूजा होने लगी।

प्रश्न 8.
भारतीय संस्कृति की ऐसी क्या विशेषताएं हैं, जिससे कि वह अन्य प्राचीन सभ्यताओं से । भिन्न है?
उत्तर :
भारतीय संस्कृति में अन्य देशों की संस्कृतियों को मिला लेने की अपूर्व क्षमता है, जिससे भारतीय संस्कृति आज भी विद्यमान है, जबकि अन्य प्राचीन सभ्यताएँ जैसे मेसोपोटामिया, मिश्र, यूनान एवं रोम विलुप्त हो चुकी हैं और उनके भौतिक अवशेष ही बचे हैं। इसका मुख्य कारण भारतीय संस्कृति में (UPBoardSolutions.com) सहिष्णुता, सामाजिक मेलजोल, लचीलापन, उदारवादिता व वसुधैव कुटुम्बकम् (पृथ्वी के सभी निवासी एक ही परिवार के सदस्य की तरह माने गए हैं) की ओर बढ़ना ही आदर्श माना गया है।

प्रश्न 9.
सही कथन के सामने (✓) तथा गलत कथन पर (✗) का निशान लगाइए –

(अ) कार्ले का चैत्य मण्डप कुषाणों ने बनवाया। (✗)
(ब) मिनाण्डर शक शासक था। (✗)
(स) भारत में सोने के सिक्के सबसे पहले कुषाण राजा ने चलाए। (✓)
(द) मथुरा एवं गान्धार कुषाण काल की कला के प्रमुख केन्द्र थे। (✓)

UP Board Solutions

प्रश्न 10.
रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए।

(अ) सातवाहन वंश के शासक वैदिक धर्म के अनुयायी थे।
(ब) कनिष्क ने शक संवत् चलाया।
(स) कण्व वंश के संस्थापक सुशर्मन थे।
(द) शक शासकों में रूद्रदामन प्रथम सबसे अधिक विख्यात शासक था।

प्रोजेक्ट वर्क –
नोट – विद्यार्थी स्वयं करें।

We hope the UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 8 मौर्योत्तर काल में भारत की स्थिति व विदेशियों से सम्पर्क help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 8 मौर्योत्तर काल में भारत की स्थिति व विदेशियों से सम्पर्क, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 9 English Suplementary Reader Chapter 2 The Swan and the Princes (A Play)

UP Board Solutions for Class 9 English Suplementary Reader Chapter 2 The Swan and the Princes (A Play)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 English Suplementary Reader Chapter 2 The Swan and the Princes (A Play)

(A)  SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS AND THEIR ANSWERS
Answer the following questions in not more than 25 words each :

Question 1.
Whom did Dev Datt shoot down?
देवदत्त ने किस पर निशाना लगाया?
Answer:
Dev Datt shot down a swan and it fell on the ground near the prince.
देवदत्त ने हंस को निशाना लगाया और वह जमीन पर राजकुमार के पास गिर पड़ा।

UP Board Solutions

Question 2.
What was the complaint of Dev Dott against Sidhartha?
सिद्धार्थ के विरूद्ध देवदत्त की क्या शिकायत थी
Answer:
Dev Datt complained against Sidhartha that he shot down a swan and it fell on the ground. He (Sidhartha) picked it up and said that he would not give it to him.
देवदत्त ने सिद्धार्थ के विरुद्ध शिकायत की कि उसने एक हंस (UPBoardSolutions.com) को निशाना लगाया और वह जमीन पर गिर पड़ा। उन्होंने (सिद्धार्थ ने) उसे उठा लिया और कहा कि वे इसे उन्हें (देवदत्त को) नहीं देगे।

Question 3.
What did Dev Datt say in support of his claim over the swan?
हंस पर अपने दावे के समर्थन में देवदत्त ने क्या कहा?
Answer:
Dev Datt said in support of his claim over the swan that he himself had shot it with an arrow. Besides, he was a Kshatriya who could not give up hishunt.
देवदत्त ने हंस पर अपने दावे के समर्थन में कहा कि उसने स्वयं उस पर तीर चलाया था। इसके अतिरिक्त वह क्षत्रिय था, जो अपने शिकार को छोड़ नहीं सकता।

Question 4.
Why did Sidhartha say that the swan was his?
सिद्धार्थ ने क्यों कहा कि हंस उनका है?
Answer:
Sidhartha said that the swan belonged to him because he had saved its life.
सिद्धार्थ ने कहा कि हंस उनका है क्योंकि उन्होंने उसकी जान बचायी थी।

Question 5.
Why did the wounded swan come to Sidhartha?
घायल हंस सिद्धार्थ के पास क्यों आया?
Answer:
The wounded swan came to Sidhartha seeking its protection.
घायल हंस सिद्धार्थ के पास अपनी रक्षा के लिए आया।

Question 6.
What two characteristics of the Kshatriya are referred to in the play?
इस नाटक में क्षत्रियों के कौन से दो प्रमुख गुण बताये गये हैं?
Answer:
Two characteristics of the Kshatriya are referred to in the play :
नाटक में क्षत्रियों के दो गुण बताये गये हैं—
(i)A Kshatriya can not give up what he has shot?
एक क्षत्रिय उस जीव को नहीं छोड़ सकता जिस पर उसने तीर चलाया है।
(ii)A Kshatriya can not give up a suppliant either.
एक क्षत्रिय शरणागत को भी नहीं छोड़ सकता।

Question 7.
Why was king Suddodhana puzzled?
राजा शुद्धोधन क्यों परेशान थे?
Answer:
King Suddodhana was puzzled because he could not decide the claim between Dev Datt and Sidhartha.
राजा शुद्धोधन हैरान थे क्योंकि वे देवदत्त और सिद्धार्थ के बीच दावे का निर्णय नहीं कर सकते थे।

UP Board Solutions

Question 8.
What did Sidhartha say to the swan? What did the swan do?
सिद्धार्थ ने हंस से क्या कहा? हंस ने क्या किया?
Answer:
Sidhartha said to the swan to come to him and sit in his arms. The swan came to him and sat his arms.
सिद्धार्थ ने हंस से उनके पास आने तथा उनकी (UPBoardSolutions.com) बांहों में बैठने को कहा। हंस उनके पास आया और उनकी बांहों में बैठ गया

Question 9.
Who decided the dispute between Dev Datt and Sidhartha?
देवदत्त और सिद्धार्थ के बीच के विवाद का निर्णय लेसने किया?
Answer:
The Chief Minister decided the dispute bei veen Dui Datt and Sidhartha.
देवदत्त और सिद्धार्थ के बीच के विवाद का निर्णय मुख्यमंत्री ने किया।

(B) MULTIPLE CHOICE QUESTIONS
Select the most suitable alternative to complete each of the following statements :
निम्नलिखित कथनों में से प्रत्येक को पूरा करने के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प चुनिए :
(A)
(i) Dev Datt claimed the swan because :
(a) he had caught it
(b) he had shot it
(c) he had bought it
(d) he had saved it
(ii)Sidhartha claimed the swan because :
(a) the swan was saved by him
(b) the swan was caught by him
(c) the swan was bought by him
(d) the swan was shot by him
(iii) Tie swan came to Sidhartha seeking :
(a) mercy
(b) revenge
(c) protection
(d) justice

UP Board Solutions

(B)
(iv) The case was decided by :
(a) the king
(b) the Chief Minister
(c)the swan itself
(d) door-keeper
Answers:
(i) (b) he had shot it.
(ii) (a) the swan was saved by him
(iii) (c) protection
(iv) (b) the Chief Minister

(C) Say whether each of the following statements is ‘true’ or ‘false’ :
बताइये कि निम्नलिखित कथनो में से प्रत्येक ‘सत्य’ है अथवा ‘असत्य’:
(i) Dev Datt brought the dispute before the king.
(ii) Prince Sidhartha was a good lad and he could not do a thing that was wrong.
(iii) Sidhartha claimed the swan because he had saved it.
(iv) The king did not know how to solve the case.
(v) The king sought the help of his Ministers.
(vi) The Chief Minister asked Dev Datt and Sidhartha both to call the swan to them.
(vii) The swan came to Dev Datt when he called it.
(viii) When Prince Sidhartha called the swan, it at once flew to his arms.
(ix) The Chief Minister failed to settle the dispute.
(x) The Chief Minister was very wise.
Answers:
(i) T, (ii) T, (iii) T, (iv) T, (v)F, (vi) T, (vii) F, (vii) T, (ix) F, (x) T.

UP Board Solutions

(D)Fill in the blanks with missing letters ‘t complete the spelling of the following words :
निम्नलिखित शब्दों की वर्तनी को पूरा करने के लिए लुप्त अक्षरों की सहायता से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
ar–w; sup-l-ant; pr-tec-ion; p—zz-ed; t-emb-es
Answers:
arrow, suppliant, protection, puzzled, trembles