UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 10 हरिवंशराय बच्चन (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 10 हरिवंशराय बच्चन (काव्य-खण्ड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

(पथ की पहचान)

1. पुस्तकों में है नहीं ……………………………………………………………. पहचान कर ले।
अथवा पुस्तकों में ……………………………………………………………. की जबानी।

शब्दार्थ-बटोही = राहगीर। बाट = रास्ता । पंथी = पथिक। पंथ = मार्ग। सन्दर्भ-यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘पथ की पहचान’ से उद्धृत है।

प्रसंग – 
इसमें कवि चाहता है कि हमें कोई भी कार्य सोच-विचारकर करना चाहिए। लक्ष्य चुन लेने के बाद उस काम की कठिनाइयों से नहीं घबराना चाहिए।

व्याख्या – 
कवि कहता है कि हमारे जीवन-पथ की कहानी पुस्तकों में नहीं लिखी होती है, वह तो हमें स्वयं ही बनानी पड़ती है, दूसरे लोगों के कथन के अनुसार भी हम अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित नहीं कर सकते। इसका निर्धारण हमें स्वयं ही करना पड़ेगा। इस संसार में अनेक लोग पैदा हुए और मर गये। उन सबकी गणना नहीं की जा सकती, परन्तु कुछ ऐसे कर्मवीर भी यहाँ जन्मे हैं जिनके पदचिह्न मौन भाषा में उनके (UPBoardSolutions.com) महान् कार्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं। उन सभी कर्मठ महापुरुषों ने काम करने से पहले खूब सोच-विचार किया और फिर जी-जान से अपने कार्य में जुटकर सफलता प्राप्त की। अतः हे राहगीर, उनसे प्रेरणा ग्रहण कर अपना मार्ग निश्चित कर ले और तब उस पर चलना शुरू कर।

काव्यगत सौन्दर्य

  • कार्य करने से पहले सोच-विचार करने की प्रेरणा दी गयी है।
  • सच्चे कर्मवीर बनने को उत्साहित किया गया है।
  • भाषा-सरल तथा खड़ीबोली।
  • शैली-गीत शैली।
  • रस-शान्त।
  • अलंकार-विरोधाभास

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2. यह बुरा है या कि ……………………………………………………………. पहचान कर ले।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित ‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं।

प्रसंग – कवि बताता है कि विवेकपूर्वक किसी कार्य को चुन लेने पर उसके मार्ग में आनेवाली कठिनाइयों या अन्य कारणों से उसे अधूरा छोड़ देना ठीक नहीं है।

व्याख्या – कवि कहता है कि विवेकपूर्ण कार्य का चुनाव करने के पश्चात् उसकी अच्छाई-बुराई पर सोचना व्यर्थ है-क्योंकि उस पथ को छोड़कर दूसरे पर चलना भी सम्भव नहीं हो सकेगा। कठिनाइयाँ तो हर मार्ग में होती हैं। इसलिए हे पंथी, अपने निश्चित कार्य को श्रेष्ठ समझकर उसे तुरन्त शुरू कर दे। यह कार्य करते समय तुझे आनन्द की अनुभूति होती रहेगी। ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि कठिनाइयाँ तुझे ही उठानी पड़ रही हैं। (UPBoardSolutions.com) वास्तविकता यह है कि जीवन में जिसे भी सफलता मिली है, वह अपने कार्य को श्रेष्ठ समझता रहा है। इसलिए तुम भी अपने कार्य को श्रेष्ठ समझो। सोच-विचार करना है तो कार्य का चुनाव करने से पहले किया करो।

काव्यगत सौन्दर्य

  • कवि व्यक्ति को चुने हुए कार्य में तन-मन से जुट जाने की प्रेरणा देता है।
  • भाषा-सरल- सुबोध खड़ीबोली।
  • शैली-प्रवाहपूर्ण गीत शैली।
  • रस-शान्त
  • शब्द-शक्ति-लक्षणा।
  • अलंकार-अनुप्रास।

3. है अनिश्चित किस ……………………………………………………………. पहचान कर ले।
अथवा है अनिश्चित ……………………………………………………………. सुन्दर मिलेंगे।

शब्दार्थ-सरिता = नदी गह्वर = गुफा। शर = बाण आन = प्रतिज्ञा। बाट = मार्ग।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में हरिवंशराय बच्चन’ द्वारा रचित ‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।

प्रसंग – इसमें कवि जीवन-पथ में आनेवाले सुख-दु:खों के प्रति सचेत करता हुआ मनुष्य को निरन्तर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रहा है।

व्याख्या – कवि कहता है कि हे जीवन-पथ के मुसाफिर ! यह नहीं बताया जा सकता है कि तेरे मार्ग में किस स्थान पर नदी, पर्वत और गुफाएँ मिलेंगी । तेरे मार्ग में कब कठिनाइयाँ और बाधाएँ आयेंगी, यह नहीं कहा जा सकता। यह भी नहीं कहा जा सकता कि तेरे जीवन के मार्ग में किस स्थान पर सुन्दर वन और उपवन मिलेंगे। तेरे जीवन में कब सुख-सुविधाएँ प्राप्त होंगी। यह भी निश्चित नहीं कहा जा सकता कि कब तेरी जीवन-यात्रा समाप्त होगी और कब तेरी मृत्यु होगी।

कवि आगे कहता है कि यह बात भी अनिश्चित है कि मार्ग में कब तुझे फूल मिलेंगे और कब काँटे तुझे घायल करेंगे। तेरे जीवन में कब सुख प्राप्त होगा और कब दु:ख-यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। यह भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि तेरे जीवन-मार्ग में कौन परिचित व्यक्ति (UPBoardSolutions.com) मिलेंगे और कौन प्रियजन अचानक तुझे छोड़ जायेंगे। हे पथिक! तू अपने मन में प्रण कर ले कि जीवन की कठिनाइयों की परवाह न करके तुझे आगे बढ़ते जाना है।
हे जीवन-पथ के यात्री! तू पथ पर चलने से पूर्व जीवन में आनेवाले सुख-दुःख को भली-भाँति जानकर अपने मार्ग की पहचान कर ले।

काव्यगत सौन्दर्य

  • कवि ने जीवन में आने वाली कठिनाइयों के प्रति मानव को सचेत किया है।
  • भाषा-सरल खड़ीबोली।
  • शैली–प्रतीकात्मक, वर्णनात्मक।
  • रस-शान्त
  • शब्दशक्ति-लक्षणा।
  • अलंकार-अनुप्रास, रूपक।

4. कौन कहता है ……………………………………………………………. कर ले।

शब्दार्थ-यत्न = प्रयत्न, कोशिश। ध्येय = लक्ष्य निलय = घर, नीड़, घोंसला । मुग्ध होना = रीझना।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित ‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।

प्रसंग – यथास्थिति और मनुष्य की महत्त्वाकांक्षा में क्या तालमेल होना चाहिए-इन पंक्तियों में इस समस्या का समाधान प्रस्तुत किया गया है।

व्याख्या – हे पथिक! तुमसे ऐसा किसी ने नहीं कहा है कि तुम अपने मन में स्वप्नों अर्थात् मधुर कल्पनाओं को न लगाओ। सब लोगों की अपनी-अपनी स्वप्निल कल्पनाएँ होती हैं। अपनी-अपनी उम्र और अपने-अपने समय में सभी ने इन्हें देखा है और अपने मन में उन्हें जगह दी है। हे पथिक! तू प्रयत्न करने पर भी इसमें सफल नहीं हो सकता कि तेरी कल्पनाएँ। मन में न उठे। ये स्वप्न, ये कल्पनाएँ व्यर्थ नहीं होतीं, इनका भी अपना लक्ष्य या ध्येय होता है। ये स्वप्न जबे आँखों के नीड़ में उपजते हैं, तब उनका अपना ध्येय होता है, ये व्यर्थ नहीं जाते, (UPBoardSolutions.com) किन्तु स्वप्नों से यथार्थ को झुठलाया नहीं जा सकता। कारण यह है कि स्वप्न या कल्पनाएँ जीवन में बहुत कम हैं, उनके सामने यथार्थ सत्य अनगिनत हैं। सत्य का मुकाबला कल्पनाओं से मत करो। संसार के रास्ते में यदि स्वप्न दो हैं, तो सत्य दो-सौ अर्थात् कल्पनाएँ बहुत कम हैं, यथार्थ बहुत अधिक हैं। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि तुम कल्पनाओं पर ही मत रीझते रहो वरन् सत्य क्या है-इसका भी निर्धारण कर लो। हे पथिक! चलने से पहले अपने रास्ते की पहचान कर लो।

काव्यगत सौन्दर्य ।

  • कवि यहाँ कहना चाहता है कि महत्त्वाकांक्षा यथार्थ के सत्य और उपलब्ध साधनों पर ही आधारित होनी चाहिए और उसके लिए कठिन श्रम के साथ-साथ कर्तव्य का पालन करना भी आवश्यक है।
  • भाषा-साहित्यिक हिन्दी।
  • रस-शान्त।
  • गुण-प्रसाद
  • अलंकार-रूपक तथा अनुप्रास

5. स्वप्न आता स्वर्ग का ……………………………………………………………. पहचान कर ले।
अथवा स्वप्न आता ……………………………………………………………. चीर देता।

शब्दार्थ-ललकती = लालायित होती है उन्मुक्त = स्वच्छन्द। दृग कोरकों = आँख के कोने ।

सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्यांश डॉ० हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित ‘पथ की पहचान’ नामक शीर्षक कविता से लिया गया है जो उनकी ‘सतरंगिणी’ नामक काव्य पुस्तक से उद्धृत है।

प्रसंग – इस पद में कवि पथिक को सम्बोधित करते हुए किसी भी मार्ग पर अग्रसर होने से पूर्व उसमें आनेवाली कठिनाइयों के प्रति आगाह कर देना चाहता है। कोरी भावुकता के प्रवाह में आकर किसी मार्ग पर चल पड़नी उचित नहीं है। कवि कहता है|

व्याख्या – हे पथिक ! भावुकता के आवेश में आकर किसी मार्ग पर अग्रसर होने से पूर्व हम स्वर्ग का सपना देखने लगते हैं। प्रसन्नता के कारण हमारी आँखें चमक उठती हैं। उस समय कल्पना लोक की उड़ान भरने के लिए हमारे पैरों में पंख लग जाते हैं। छाती उन्मुक्त हो उत्साह से भर जाती है। किन्तु ठीक उसी प्रकार राह का एक मामूली-सा काँटा पाँवों में चुभ जाता है और खुन की दो बूंदों के बहने से ही सारी कल्पना की दुनिया ही उसमें डूब जाती है अर्थात् मार्ग में मामूली अवरोध उत्पन्न हो जाने मात्र से ही सारी मजा किरकिरा हो (UPBoardSolutions.com) जाता है। अत: पाँवों के काँटे चुंभकर ये शिक्षा देते हैं कि भले ही तुम्हारी आँखों में स्वर्ण के सजीले सपने क्यों न हों किन्तु तुम्हें अपने पैरों को पृथ्वी पर सुरक्षित टिकाना चाहिए अर्थात् मस्तिष्क में भले ही कल्पना की ऊँची उड़ाने क्यों न हों, किन्तु व्यावहारिक जगत् की उपयोगिता कदापि भूलनी नहीं चाहिए। हमें पथ के चुभे काँटों की इस शिक्षा का सदैव सम्मान करना चाहिए। किसी मार्ग पर अग्रसर होने से पूर्व उस मार्ग की पूरी जानकारी अवश्य कर लेनी चाहिए।

काव्यगत सौन्दर्य

  • इस पद में कवि ने एक जीता-जागता जीवन-दर्शन प्रस्तुत किया है।
  • लाक्षणिक प्रयोगों के कारण काव्य की भाषा ओजपूर्ण एवं प्रभावशाली बन गयी है।

प्रश्न 2.
हरिवंशराय बच्चन का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

प्रश्न 3.
बच्चन जी की साहित्यिक विशेषताओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

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प्रश्न 4.
हरिवंशराय बच्चन का जीवन-परिचय लिखिए तथा उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

प्रश्न 5.
हरिवंशराय बच्चन का जीवन-वृत्त लिखकर उनके साहित्यिक योगदान का उल्लेख कीजिए।

हरिवंशराय बच्चन
(स्मरणीय तथ्य)

जन्म – सन् 1907 ई०, प्रयाग।
मृत्यु – सन् 2003 ई०।
शिक्षा – एम० ए०, पी-एच० डी०
पिता का नाम – प्रताप नारायण।
रचनाएँ – मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमन्त्रण, एकान्त संगीत, सतरंगिणी, हलाहल, बंगाल का काल, मिलनयामिनी, प्रणय-पत्रिका, बुद्ध और नाचघर (काव्य), क्या भूलें क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर (आत्मकथा), दो चट्टानें।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्य-विषय – प्रेम के संयोग-वियोग जन्य भावों का चित्रण, विषाद और निराशा का चित्रण, विद्रोह को स्वर, युग जीवन का व्यापक चित्रण।
भाषा – सहज व सरल खड़ीबोली।
शैली – गीतात्मक। छन्द-मुक्तक।
जीवन – परिचय – श्री हरिवंशराय बच्चन का जन्म प्रयाग में सन् 1907 ई० में हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू भाषा के माध्यम से हुई थी। आपने सन् 1925 ई० में कायस्थ पाठशाला, इलाहाबाद से हाईस्कूल, सन् 1927 ई० में गवर्नमेण्ट इन्टर कालेज से इण्टर तथा सन् 1929 ई० में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण आपने विश्वविद्यालय छोड़ दिया। बाद में सन् 1938 ई० में उसी विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1954 ई० में आपने कैम्ब्रिज (UPBoardSolutions.com) विश्वविद्यालय से पी-एच० डी० की उपाधि प्राप्त की। आरम्भ में आपने प्रयाग विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में कार्य किया। कुछ समय तक आपने आकाशवाणी में काम किया। तत्पश्चात् आपकी नियुक्ति भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ के पद पर हुई और वहीं से अवकाश ग्रहण किया। आप सन् 1965 ई० में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए।

साहित्य और कविता के प्रति आपकी रुचि बचपन से ही थी। सन् 1923 ई० में आपकी रचना ‘मधुशाला’ के प्रकाशन ने आपको कीर्ति के शिखर पर पहुँचा दिया। आपकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सन् 1976 ई० में भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पद्म भूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। आपका शरीरान्त सन् 2003 ई० में हो गया।

रचनाएँ – बच्चन जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, प्रणय-पत्रिका, एकांत संगीत, मिलन यामिनी, सतरंगिणी, दो चट्टानें आदि। ‘दो चट्टानें’ काव्य-ग्रन्थ के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया है।

काव्यगत विशेषताएँ

बच्चन जी उत्तर छायावादी काल के आस्थावादी कवि हैं। आपकी कविताओं में भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है। आपकी कविता में प्रेम के संयोग-वियोग जन्य भावपूर्ण चित्र अंकित हैं। प्रेम के अतिरिक्त जीवन के अन्य सन्दर्भो में निराशा की भाषा देखने को मिलती है। विद्रोह का स्वर भी कहीं-कहीं आपकी कविताओं में मिलता है। आपकी पूर्ववर्ती रचनाओं में वैयक्तिकता है तो परवर्ती रचनाओं में (UPBoardSolutions.com) जन-जीवन का व्यापक चित्रण है। वैचारिक क्रान्ति, मानवीय संवेदना और व्यंग्य-दंश से पूर्ण आपके काव्य ने हिन्दी कविता को नयी दिशा प्रदान की है।

बच्चन जी की भाषा साहित्यिक होते हुए भी बोलचाल की भाषा के अधिक निकट है। आपकी भाषा सरल व सरस है। आपने लोकगीतों और मुक्तक छन्दों की रचना की है। अपनी गेयता, सरलता, सरसता और खुलेपन के कारण आपके गीत बहुत ही पसन्द किये जाते हैं।

साहित्य में स्थान – नि:सन्देह लोकगीतों की धुन में गीतों की रचना करके बच्चन जी ने अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की है। हिन्दी साहित्य में हालावाद के स्थापक के रूप में आपका मान्य स्थान है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बटोही को चलने के पूर्व बाट की पहचान करने की सलाह कवि किस अभिप्राय से देता है?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि बच्चन ने पथिक के माध्यम से यह प्रेरणा दी है कि मनुष्य को अपने पथ की पहचान स्वयं करनी चाहिए, क्योंकि जीवन के मार्ग में अपने ही अनुभव सबसे श्रेष्ठ होते हैं। इस मार्ग का निर्धारण किसी दूसरे उपदेश या पुस्तकों को पढ़कर नहीं किया जा सकता है। (UPBoardSolutions.com) कुछ मनुष्य ऐसे अवश्य रहे हैं, जो अपने पथ पर अपने कदमों के निशान छोड़ गये। हैं। हमें उनसे अवश्य कुछ सहायता प्राप्त हो सकती है।

प्रश्न 2.
यात्रा सुगम और सफल होने के लिए कवि क्या सुझाव देता है?
उत्तर :
कवि कहते हैं कि जीवन के मार्ग का निर्धारण करके उस पर दृढ़ निश्चय के साथ चल पड़ना ही श्रेयस्कर है। अनिश्चय की स्थिति में बार-बार मार्ग बदलने से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पाती। कवि कहते हैं कि किसी भी मनुष्य का यह सोचना कि पथ के निर्धारण से उसे ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, गलत है। पूर्व के सभी मनुष्यों को भी अपने पथ का निर्धारण करना पड़ा था और बाधाएँ उनके सामने भी आयी थीं।

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प्रश्न 3.
यात्रा में विघ्न-बाधाओं को किन प्रतीकों से बतलाया गया है?
उत्तर :
बाधाओं और कठिनाइयों के लिए कवि ने नदी, पर्वत, गुफाओं और काँटों आदि को प्रतीक के रूप में प्रयोग किया है।

प्रश्न 4.
‘स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले’ कहने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
कवि के कहने का भाव यह है कि सुख के स्वप्नों में न डूबकर जीवन की वास्तविकताओं का भी ज्ञान होना आवश्यक है, तभी उन्नति का पथ प्रशस्त हो सकता है जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ने से पूर्व उचित लक्ष्य या मार्ग का भी निर्धारण कर लेना चाहिए।

प्रश्न 5.
कवि’आदर्श और यथार्थ’ के समन्वय पर किन पंक्तियों पर बल देता है और उसके लिए किस वस्तु का उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है?
उत्तर :
रास्ते का एक काँटा। पाँव का दिल चीर देता। राह के काँटे चुभकर बताते हैं कि सपने तो बुनें, लेकिन सच्चाई से इंकार नहीं करें, तभी जीवन में सफलता मिल सकती है। और आनन्द के फूल खिल सकते हैं। कवि की यही शिक्षा है।

प्रश्न 6.
‘पथ की पहचान’ कविता के द्वारा कवि क्या सन्देश देना चाहता है? अथवा ‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता के द्वारा कवि ने हमें क्या सन्देश देने का प्रयास किया है?
उत्तर :
कवि इस कविता के माध्यम से यह सन्देश देना चाहता है कि व्यक्ति को विवेकपूर्वक किसी कार्य को चुनना चाहिए, फिर आनेवाली किसी भी बाधा से घबराये बिना साहसपूर्वक निरन्तर आगे बढ़ते रहना चाहिए। आगे बढ़ते हुए आदर्श और यथार्थ को उचित समन्वय होना चाहिए।

प्रश्न 7.
‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि ‘बच्चन’ ने पथिक के माध्यम से यह प्रेरणा दी है कि मनुष्य को अपने पथ की पहचान स्वयं करनी चाहिए, क्योंकि जीवन के मार्ग में अपने ही अनुभव सबसे श्रेष्ठ होते हैं। इस मार्ग का निर्धारण किसी दूसरे के उपदेश से या पुस्तकों को पढ़कर नहीं किया जा सकता है। कुछ (UPBoardSolutions.com) मनुष्य ऐसे अवश्य रहे हैं, जो अपने पथ पर अपने कदमों के निशान छोड़ गये हैं। हमें उनसे अवश्य कुछ सहायता प्राप्त हो सकती है।

कवि कहते हैं कि जीवन के मार्ग का निर्धारण करके उस पर दृढ़ निश्चय के साथ चल पड़ना ही श्रेयस्कर है। अनिश्चय की स्थिति में बार-बार मार्ग बदलने से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पाती । कवि कहते हैं कि किसी भी मनुष्य का यह सोचना कि पथ के निर्धारण में उसे ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, गलत है। पूर्व के सभी मनुष्यों को भी अपने पथ का निर्धारण करना पड़ा था और बाधाएँ उनके सामने भी आयी थीं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हरिवंशराय बच्चन किस युग के कवि हैं?
उत्तर :
आधुनिक युग (काल) के।।

प्रश्न 2.
बच्चन जी की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
मधुशाला एवं मधु कलश।

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प्रश्न 3.
मधुशाला किसकी रचना है?
उत्तर :
हरिवंशराय बच्चन की।

प्रश्न 4.
बच्चन जी की भाषा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
खड़ीबोली।

प्रश्न 5.
बच्चन जी ने अपनी भाषा में किस शैली का प्रयोग किया है?
उत्तर :
भावात्मक गीत शैली।

प्रश्न 6.
मधुशाला की विषय-वस्तु क्या है?
उत्तर :
उल्लास एवं आनन्द।

प्रश्न 7.
बच्चन जी ने मधुशाला, मधुबाला, होला और प्याला को किस रूप में स्वीकार किया है?
उत्तर :
प्रतीकों के रूप में।।

प्रश्न 8.
‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य को अपने पथ की पहचान स्वयं करनी चाहिए, क्योंकि जीवन के मार्ग में अपने ही अनुभव सबसे श्रेष्ठ होते हैं।

प्रश्न 9.
‘पथ की पहचान’ कविता का उद्देश्य क्या है?
उत्तर :
व्यक्ति को विवेकपूर्वक किसी कार्य का चयन करना चाहिए और निरन्तर अपने पथ पर अग्रसर रहना चाहिए। सफलता निश्चित रूप से मिलेगी।

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
1.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
(अ) पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
(ब) रास्ते का एक काँटा, पाँव का दिल चीर देता।
उत्तर :
(अ) काव्य-सौन्दर्य-

  • किसी पथिक या राही को मार्ग पर चलने के पूर्व उसके विषय में भली-भाँति अवगत हो जाना चाहिए।
  • भाषा-खड़ीबोली।
  • शैली- भावात्मक गीत शैली।।

(ब) काव्य-सौन्दर्य-

  • रास्ते का एक काँटा पाँव को चोटिल कर देता है अर्थात् रास्ते का एक काँटा अनेक मुसीबतें खड़ी कर देता है।
  • भाषा – खड़ीबोली। (स) शैली- भावात्मक गीत शैली।

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2. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम लिखिए
(अ) रक्त की दो बूंद गिरती एक दुनिया डूब जाती।
(ब) है अनिश्चित, किस जगह पर बाज, बन सुन्दर मिलेंगे।
उत्तर :
(अ) अतिशयोक्ति।
(ब) सम्भावना।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 1 गृह विज्ञान के तत्त्व और क्षेत्र

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 1 गृह विज्ञान के तत्त्व और क्षेत्र

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
‘गृह विज्ञान’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए।
या
‘गृह विज्ञान’ से आप क्या समझती हैं? गृह विज्ञान के तत्वों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में हई औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप जीवन-मूल्यों में भारी परिवर्तन आए, जिससे स्त्रियों को पुरुषों के समान घर से बाहर निकलकर काम करना पड़ा। इससे स्त्रियों के कार्यक्षेत्र और उत्तरदायित्वों में वृद्धि हुई। घर एवं घर से बाहर के उनके द्विमुखी उत्तरदायित्व को कुशलतापूर्वक निभाने के लिए एक ऐसे विषय की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी जो सामान्य घरेलू जीवन को उत्तम, (UPBoardSolutions.com) सरल, कम श्रम-साध्य तथा समय की बचत कराने में सहायक हो। इसी सन्दर्भ में क्रमश: एक विषय का विकास हुआ, जिसे आज गृह विज्ञान के रूप में जाना जाता है। घर-परिवार को सुविधाजनक व आर्थिक रूप से निर्भर बनाने के लिए सर्वप्रथम स्त्रियों की रुचि गृह-अर्थशास्त्र की ओर उत्पन्न करने का प्रयास किया गया। समय के साथ-साथ इस विषय का क्षेत्र विस्तृत होता गया तथा इसने अन्त में आज के गृह विज्ञान का रूप ले लिया।

गृह विज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा

गृह विज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है-‘गृह’ तथा ‘विज्ञान’। गृह का अर्थ है ‘घर’ और विज्ञान का अर्थ है ‘व्यवस्थित ज्ञान’। इस प्रकार, गृह विज्ञान का अर्थ गृह से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं; जैसे आवास, भोजन, वेशभूषा आदि का व्यवस्थित अध्ययन करना है। सर्वप्रथम गृह विज्ञान; अर्थशास्त्र की शाखा के रूप में अमेरिका में विकसित हुआ। अमेरिकन होम इकोनोमिक्स एसोसिएशन के अनुसार, “गृह-अर्थशास्त्र शिक्षा का विशिष्ट विषय है, जिसके अन्तर्गत आय-व्यय, भोजन की स्वच्छता एवं रुचिपूर्णता, वेशभूषा और आवास आदि के रुचिपूर्ण एवं उपयुक्त चुनाव तथा तैयारी और परिवार एवं अन्य मानव समुदायों द्वारा उनके उपयोग का अध्ययन किया जाता है।” समय के साथ-साथ इस विषय ने अधिक व्यापक रूप धारण कर (UPBoardSolutions.com) लिया तथा इसमें शरीर विज्ञान, स्वास्थ्य एवं रोगाणु विज्ञान, आहार एवं पोषण तथा पर्यावरण सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण विषय भी सम्मिलित किए गए हैं।

जापान में इस विषय को गृह-प्रशासन के नाम से जाना जाता है। गुड जॉनसन के अनुसार, “गृह व्यवस्था सामान्य देशों में अत्यधिक सामान्य व्यवस्था है जिसमें अधिकांश व्यक्ति कार्यरत होते हैं तथा अधिकतर धन का उपयोग किया जाता है और यह व्यक्तियों के स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।”

‘गृह विज्ञान’ नामक विषय को कुछ अन्य नामों से भी जाना जाता है; जैसे कि ‘गृह विज्ञान तथा गृह-कला’ (Home Science and Household Art), ‘घरेलू विज्ञान एवं गृह-कला’ (Domestic Science and Home Craft) गृह विज्ञान के विस्तृत विषय-क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए इस विषय की एक ब्यवस्थित परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की जा सकती है

“गृह विज्ञान वह सामाजिक विज्ञान है जो घर-परिवार से सम्बन्धित समस्त आवश्यकताओं एवं योजनाओं का व्यवस्थित अध्ययन करता है तथा पारिवारिक सुख-सुविधाओं में वृद्धि करने के लिए सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करता है।”

गृह विज्ञान की एक परिभाषा दिल्ली के लेडी इरविन कॉलेज के “गृह विज्ञान संस्थान’ ने इन शब्दों में प्रस्तुत की है, ”गृह विज्ञान वह व्यावहारिक विज्ञान है जो अपने अध्ययनकर्ताओं को सफल पारिवारिक जीवन व्यतीत करने, सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को हल करने और सुखमय जीवन-यापन करने की दशाओं का ज्ञान कराता है।”

उपर्युक्त विवरण द्वारा गृह विज्ञान का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि गृह विज्ञान एक उपयोगी तथा व्यावहारिक महत्त्व का विषय है। इस विषय के अध्ययन का मुख्य उद्देश्य सुखी एवं आदर्श पारिवारिक जीवन-यापन करने के उपाय जानना है। इस विषय के अन्तर्गत उन समस्त (UPBoardSolutions.com) उपायों को व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है जो पारिवारिक जीवन की दैनिक समस्याओं का उत्तम समाधान प्राप्त करने में सहायक होते हैं।

गृह विज्ञान के तत्त्व

गृह विज्ञान का अध्ययन गृह एवं परिवार के उत्तम जीवन–स्तर का मूल आधार है। गृह विज्ञान में वे सभी तत्त्व सम्मिलित हैं जो परिवार की आवश्यकताओं व उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। गृह विज्ञान के मूल तत्त्व निम्नलिखित हैं

(1) परिवार के सदस्यों की बहुमुखी विकास:
परिवार के रूप में मनुष्य ने एक ऐसी संस्था का विकास किया है जहाँ उसका शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सभी प्रकार का विकास होता है। परिवार में ही परिवार के प्रत्येक सदस्य को सुरक्षा प्राप्त होती है, प्रत्येक सदस्य का अपना उत्तरदायित्व होता है तथा प्रत्येक सदस्य के अधिकार (UPBoardSolutions.com) और कर्तव्य होते हैं। अतः परिवार के सभी सदस्यों के स्वस्थ विकास और अभिवृद्धि के लिए सहायक पर्यावरण की व्यवस्था करना गृह विज्ञान का मूल तत्त्व है अर्थात् बालकों का समुचित पालन-पोषण हो, जिससे वे समाज की उन्नति में अपना योगदान दे सकें, यह गृह विज्ञान का मुख्य उद्देश्य है।

(2) नियोजन:
किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक करने के लिए नियोजन आवश्यक है। पारिवारिक जीवन में आर्थिक सन्तुलन के लिए आय को नियोजित रूप से व्यय करने तथा नियमित बचत करने की आवश्यकता होती है। गृह विज्ञान से क्रय-विक्रय, बजट व बचत आदि से सम्बन्धित जानकारी मिलती है, जिससे व्यय एवं बचत का नियोजन करना सम्भव हो पाता है। गृह प्रबन्ध के लिए भी नियोजन अति महत्त्वपूर्ण है। गृह के सन्दर्भ में परिवार नियोजन, बजट बनाने तथा बचत नियोजन का महत्त्व आधुनिक युग की बढ़ती हुई आवश्यकताओं में प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

(3) नियन्त्रण:
नियोजन योजना के निर्माण में सहायक होता है, तो नियन्त्रण योजना के अनुसार कार्य करने के लिए उत्तरदायी है। नियन्त्रण चालू योजना को कार्यक्रम अथवा परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तित भी करता है। उदाहरण के लिए-गृहिणी अपने दैनिक कार्यक्रम की योजना स्वयं बनाती है। तथा (UPBoardSolutions.com) आवश्यकता पड़ने पर इसमें इच्छित परिवर्तन भी कर लेती है, परन्तु जीवन में अनेक घटनाएँ इस प्रकार की होती हैं कि जिन पर नियन्त्रण सम्भव नहीं हो पाता। गृह विज्ञान हमें ऐसी घटनाओं से निपटने की शिक्षा देता है; जैसे कि जल जाना, हाथ कट जाना आदि दुर्घटनाओं के लिए गृह विज्ञान प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी देता है।

(4) मूल्यांकन:
गृह विज्ञान एक जीवन दर्शन है, जिसका लक्ष्य सदैव परिवार के सभी सदस्यों का सर्वांगीण कल्याण करना रहता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मूल्यांकन एक महत्त्वपूर्ण कसौटी है। विभिन्न कार्यों के नियोजन का मूल्यांकन किया जानी चाहिए। नियोजन के मूल्यांकन पर नियोजन की सफलता अथवा असफलता निर्भर करती है। इसी प्रकार नियन्त्रण की सफलता भी मूल्यांकन पर निर्भर होती है। उदाहरण के लिए कोई (UPBoardSolutions.com) गृहिणी अपने दिनभर के कार्यों का मूल्यांकन जब रात्रि में करती हैं, तो उसे पता चलता है कि कुछ कम आवश्यक कार्यों में अधिक समय लगने के कारण उसे ललित कलाओं अथवा सामाजिक गतिविधियों के लिए समय नहीं मिल पाया। अत: दूसरे दिन वह कार्यों की योजना में यथेष्ट परिवर्तन कर समय की बचत कर सकती है। इस प्रकारे, मूल्यांकन भावी योजनाओं के लिए ठोस आधार प्रस्तुत करता है तथा भविष्य में होने वाली हानियों से बचाता है।

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प्रश्न 2:
”गृह विज्ञान कला और विज्ञान दोनों ही है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
‘गृह विज्ञान की प्रकृति को स्पष्ट कीजिए। या गृह विज्ञान की प्रकृति का विवेचन करते हुए स्पष्ट कीजिए कि इस विषय में कलात्मक एवं वैज्ञानिक दोनों ही पक्ष विद्यमान हैं।
उत्तर:
किसी भी विषय के व्यवस्थित अध्ययन के लिए उस विषय की प्रकृति को निर्धारित करना आवश्यक होता है। विषय की प्रकृति को निर्धारित करने के लिए सर्वप्रथम यह निश्चित (UPBoardSolutions.com) करना आवश्यक होता है कि अमुक विषय विज्ञान’ है अथवा ‘कला’। गृह विज्ञान की प्रकृति का विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि इसमें ‘विज्ञान’ तथा ‘कला’ दोनों के ही लक्षण विद्यमान हैं। इस तथ्य की पुष्टि अग्रवर्णित विवरण द्वारा हो जाएगी

(अ) गृह विज्ञान : एक विज्ञान के रूप में
विज्ञान शब्द का अर्थ एक विशिष्ट क्रमबद्ध ज्ञान से है। यह कार्य तथा कारण में सम्बन्ध स्थापित करता है। नियमों का निर्माण, सुनिश्चित अध्ययन प्रणाली एवं भावी घटनाओं का अनुमान इत्यादि विज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ हैं। ये लगभग सभी गृह विज्ञान की भी विशेषताएँ हैं, जिन्हें निम्नलिखित विवरण द्वारा स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है

(1) यह तथ्यात्मक है:
गृह विज्ञान के अन्तर्गत हम शरीर विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, गृह परि चर्या, वस्त्र विज्ञान तथा अर्थव्यवस्था आदि से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित कर उनका तथ्यात्मक अध्ययन करते हैं।

(2) वैज्ञानिक पद्धति द्वारा अध्ययन:
गृह विज्ञान में आहार एवं पोषण विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, प्राथमिक चिकित्सा एवं औषधि विज्ञान के वैज्ञानिक नियमों की जानकारी प्राप्त करके स्वास्थ्य, चिकित्सा एवं सुरक्षा आदि से सम्बन्धित नियम बनाये जाते हैं अर्थात् गृह विज्ञान के अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धति को अपनाया जाता है।

(3) गृह विज्ञान में सर्वमान्य सिद्धान्त हैं:
इसमें गृह-सज्जा, स्वास्थ्य, आहार और पोषण, चिकित्सा, बाल विकास, वस्त्रों की देख-रेख आदि के सर्वमान्य सिद्धान्त हैं। ये परिस्थितियों के अनुसार केवल कुछ संशोधनों के साथ विश्व के सभी भागों में स्वीकार किए जाते हैं।

(4) गृह विज्ञान में भविष्यवाणी सम्भव है:
गृह विज्ञान से सम्बन्धित अनेक विषयों पर तो निश्चित भविष्यवाणी की जा सकती है तथा अनेक विषयों पर सम्भावनाएँ व्यक्त की जा सकती हैं।

(5) गृह विज्ञान के तथ्य प्रामाणिक होते हैं:
गृह विज्ञान के सिद्धान्त एवं तथ्य सभी परिस्थितियों में प्रामाणिक होते हैं। । उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि ‘गृह विज्ञान’ में विज्ञान की विभिन्न विशेषताएँ विद्यमान हैं।

(ब) गृह विज्ञान : एक कला के रूप में
कला का अर्थ व्यावहारिक जीवन में ज्ञान के प्रयोग से हैं। यह एक मानवीय प्रयत्न है जिसके द्वारा वस्तुओं को पहले से श्रेष्ठ व सुन्दर बनाने का प्रयास किया जाता है। कल्पना एवं सृजनात्मकता कला की मुख्य विशेषताएँ हैं। गृह विज्ञान में भी कला के कुछ तत्त्व विद्यमान हैं। गृह विज्ञान का ज्ञान गृहिणी (UPBoardSolutions.com) में मानवीय गुणों का विकास करता है जिसमें गृह, परिवार व समाज का सर्वांगीण उत्थान निहित है। निम्नलिखित विवरण इस तथ्य की पुष्टि करते हैं—

(1) सौन्दर्य बोध:
कला सौन्दर्य बोध की प्रतीक है। गृह विज्ञान में घर की सज्जा की शिक्षा दी जाती है। इसमें पाक-कला एवं आहार-नियोजन के व्यावहारिक वे कलात्मक दोनों पक्षों का अध्ययन किया जाता है।

(2) परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं का अध्ययन:
परिवार के आर्थिक पक्ष अर्थात् आय-व्यय और बचत के विषय में जानकारी तथा नियोजन, नियन्त्रण एवं मूल्यांकन द्वारा जीवन को सुखमय एवं सुविधाओं से परिपूर्ण बनाने की शिक्षा मिलती है।

(3) व्यक्तिगत सज्जा, वस्त्र-निर्माण एवं देख-रेख आदि:
ये सब जीवन के कलात्मक पक्ष को दिशा प्रदान करते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि गृह विज्ञान में यदि एक ओर विज्ञान के अनेक विषयों का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया जाता है, तो दूसरी ओर गृह-व्यवस्था एवं गृह-सज्जा, अर्थव्यवस्था, व्यक्तिगत सज्जा आदि के कलात्मक सिद्धान्तों को भी व्यावहारिक रूप दिया जाता है। अतः यह कथन कि ”गृह विज्ञान कला और विज्ञान दोनों ही है” पूर्णरूप से तर्कसंगत है।

प्रश्न 3:
गृह विज्ञान के अध्ययन-क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
या
“गृह विज्ञान एक व्यापक विषय है।” सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
गृह विज्ञान का सम्बन्ध घर-परिवार के सामान्य जीवन के प्रायः सभी पक्षों से हैं। इसीलिए गृह विज्ञान का अध्ययन-क्षेत्र अत्यधिक व्यापक एवं बहुपक्षीय है। जीवन को सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण तथा पहले से अच्छा बनाने में गृह विज्ञान महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। यह उचित (UPBoardSolutions.com) रहन-सहन, स्वास्थ्य, आर्थिक व्यवस्था, गृह प्रबन्ध, कर्तव्यपरायणता एवं नैतिक मूल्यों की शिक्षा देता है। इसमें व्यक्ति, परिवार, समाज एवं राष्ट्र सभी को सम्मिलित किया जाता है। अध्ययन की सुविधा के लिए गृह विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र को अग्रलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

गृह विज्ञान के प्रमुख क्षेत्र

(1) गृह-प्रबन्ध:
गृह कार्यों की व्यवस्था, पारिवारिक कर्तव्यों का बोध, पारस्परिक सम्बन्ध इत्यादि गृह-प्रबन्ध के अन्तर्गत आते हैं। इसके अतिरिक्त उचित व्यवहार एवं नैतिक मूल्यों को ज्ञान भी सफल गृह-प्रबन्ध के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

(2) अर्थव्यवस्था:
परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं के अनुसार परिवार की आय से उचित बजट का बनाना तथा मितव्ययिता व बचत आदि के माध्यम से आय एवं व्यय में सन्तुलन बनाए रखना
अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत आते हैं।

(3) सफाई, सजावट आदि से सम्बन्धित जानकारी:
सफाई और सजावट आदि से सम्बन्धित जानकारी होना गृह विज्ञान का सबसे प्रमुख क्षेत्र है। सफाई हमारे रहने के वातावरण को शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से सुरक्षित बनाती है तथा सजावट से घर की सुन्दरता बढ़ती है।

(4) स्वास्थ्य रक्षा:
स्वास्थ्य रक्षा से आशय है-व्यक्तिगत व परिवार के अन्य सदस्यों के स्वास्थ्य की देख-रेख और रक्षा करना। इस विषय में सामान्य एवं संक्रामक रोगों के उपचार एवं बचाव के (UPBoardSolutions.com) उपायों की जानकारी के साथ-साथ पेय जल की शुद्धता का ज्ञान भी आवश्यक है। इसके अन्तर्गत जन-स्वास्थ्य के नियमों की समुचित जानकारी प्रदान की जाती है तथा पर्यावरण के प्रदूषण को नियन्त्रित रखने के उपाय भी सुझाए जाते हैं।

(5) आहार एवं पोषण विज्ञान:
गृह विज्ञान के अन्तर्गत ‘आहार तथा पोषण विज्ञान का भी अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से आहार के कार्यों, आहार के तत्त्वों, सन्तुलित आहार, आहार-आयोजन, पाक-क्रिया की प्रणालियों, खाद्य पदार्थों के संरक्षण, पोषण-प्रक्रिया तथा आहार द्वारा रोगों के उपचार का अध्ययन किया जाता है।

(6) बैक्टीरिया विज्ञान:
समस्त प्राणियों के आहार एवं स्वास्थ्य तथा अनेक बैक्टीरिया (जीवाणुओं) का घनिष्ठ सम्बन्ध है। विभिन्न बैक्टीरियाँ हमारे आहार एवं स्वास्थ्य पर अनुकूल अथवा प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। कुछ बैक्टीरिया हमारे भोज्य-पदार्थों की पोषकता तथा उपयोगिता में वृद्धि करते हैं जबकि कुछ अन्य बैक्टीरिया हमारे भोज्य पदार्थों को न केवल दूषित करते हैं बल्कि उन्हें नष्ट भी कर सकते हैं। कुछ बैक्टीरिया तथा विषाणु विभिन्न संक्रामक रोगों को भी जन्म देते हैं। अतः इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए गृह विज्ञान के अन्तर्गत बैक्टीरिया विज्ञान का भी व्यवस्थित अध्ययन किया
जाता है।

(7) प्राथमिक चिकित्सा एवं परिचर्या:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों और आकस्मिक रोगियों को तुरन्त आवश्यक एवं सम्भव उपचार उपलब्ध कराना प्राथमिक चिकित्सा कहलाता है। रोगी की उचित देख-रेख, औषधि का समय पर सेवन कराना, आवश्यक बिस्तर का प्रबन्ध करना, नाड़ी, श्वास-गति, ताप आदि का चार्ट बनाना इत्यादि गृह-परिचर्या के अन्तर्गत आते हैं। इन सभी विषयों का व्यवस्थित अध्ययन गृह विज्ञान के अध्ययन-क्षेत्र में सम्मिलित है।

(8) मातृ-कला तथा शिशु-कल्याण:
पारिवारिक सुख-समृद्धि के लिए मातृ-कला तथा शिशु-कल्याण को सभ्य समाज में महत्त्वपूर्ण एवं अति आवश्यक माना जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए गृह विज्ञान (UPBoardSolutions.com) के अध्ययन-क्षेत्र में मातृ-कला एवं शिशु-कल्याण को भी सम्मिलित किया गया है। इसके अन्तर्गत गर्भावस्था की देखरेख का व्यापक अध्ययन किया जाता है तथा शिशु-कल्याण सम्बन्धी समस्त गतिविधियों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है।

(9) बाल-विकास तथा पारिवारिक सम्बन्ध:
गृह विज्ञान बाल-विकास एवं पारिवारिक सम्बन्धों का भी व्यवस्थित अध्ययन करता है। इसमें शिशु के जन्म से लेकर उसके आगे के क्रमिक विकास का अध्ययन निहित होता है। गृह विज्ञान में बालकों के शारीरिक, भावात्मक, भाषागत तथा सामाजिक विकास के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का भी अध्ययन किया जाता है। पारिवारिक सम्बन्धों के अन्तर्गत परिवार के संगठन, विशेषताओं, महत्त्व, कार्यों एवं दायित्वों तथा बदलते सामाजिक प्रतिमानों आदि का अध्ययन किया जाता है।

(10) वस्त्र-विज्ञान एवं परिधान:
वस्त्र-विज्ञान के अन्तर्गत वस्त्र बनाने वाले प्राकृतिक एवं कृत्रिम तन्तुओं का, वस्त्र-निर्माण की विभिन्न विधियों का, वस्त्रों की परिष्कृति तथा प्ररिसज्जा का, वस्त्रों के रख-रखाव एवं संग्रह का, उचित प्रकार से धुलाई आदि का व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। ‘परिधान विज्ञान के अन्तर्गत (UPBoardSolutions.com) परिवार के सदस्यों के लिए वस्त्रों के चुनाव, वस्त्रों की कटाई-सिलाई तथा उनकी सज्जा आदि का भी अध्ययन किया जाता है। ये समस्त विषय गृह विज्ञान के अध्ययन-क्षेत्र में सम्मिलित हैं।

(11) गृह-गणित:
वर्तमान प्रणालियों के आधार पर सामान्य गणित का ज्ञोर्न गृह-गणित कहलाता है। इसके द्वारा क्रय-विक्रय में लाभ-हानि, प्रतिशत एवं साधारण ब्याज सम्बन्धी सरल गणनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है। गृह-गणित को सामान्य ज्ञान परिवार की अर्थव्यवस्था को सुचारु बनाए रखने में भी सहायक होता है।

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प्रश्न 4:
गृह विज्ञान शिक्षण क्षेत्र में कौन-कौन से प्रमुख विषय सम्मिलित किए जाते हैं और क्यों? समझाइए।
या
“गृह विज्ञान में विभिन्न विषयों का समावेश है।”इस कथन को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
साधारण रूप से गृह विज्ञान को गृह-प्रबन्ध समझा जाता है, जिसके अन्तर्गत घर की व्यवस्था, आर्थिक सन्तुलन तथा रहन-सहन का स्तर आदि सम्मिलित हैं। परन्तु वास्तविकता यह है कि गृह-प्रबन्ध, गृह विज्ञान का एक पक्ष है, जबकि गृह विज्ञान के अन्तर्गत गृह से सम्बन्धित सम्पूर्ण पक्षों का (UPBoardSolutions.com) समावेश होता है। गृह विज्ञान वास्तव में कोई एक स्वतन्त्र विषय नहीं है, वरन् यह विषय विभिन्न सामाजिक एवं वैज्ञानिक विषयों के ऐसे अंशों का समन्वित रूप है जिनका ज्ञान घर एवं सामाजिक परिवेश के सामान्य क्रिया-कलापों में भाग लेने एवं गृहस्थ-जीवन की दैनिक समस्याओं को हल करने हेतु आवश्यक है। इस प्रकार स्पष्ट है कि गृह विज्ञान का अध्ययन-क्षेत्र पर्याप्त विस्तृत है। इस विज्ञान के अन्तर्गत मुख्य रूप से निम्नलिखित विषयों का अध्ययन किया जाता है

(1) शरीर-रचना व स्वास्थ्य विज्ञान:
इसके अन्तर्गत सुखी, सन्तुष्ट एवं स्वस्थ रहने के लिए हमें शरीर-रचना एवं स्वास्थ्य विज्ञान का आवश्यक ज्ञान दिया जाता है।

(2) चिकित्सा एवं परिचर्या:
गृह विज्ञान द्वारा महत्त्वपूर्ण रोगों के निदान अथवा प्राथमिक चिकित्सा के लिए चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन तथा रोगी की देखभाल के लिए गृह-परिचर्या का आवश्यक ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

(3) आहार व पोषणविज्ञान:
इनके अध्ययन से भोजन व इसके पोषक तत्वों को आवश्यक ज्ञान प्राप्त किया जाता है। प्रत्येक परिवार में प्रतिदिन आहार की अनिवार्य रूप से व्यवस्था की जाती है (UPBoardSolutions.com) तथा इस व्यवस्था का दायित्व मुख्य रूप से गृहिणी का ही होता है। अतः गृह विज्ञान में बालिकाओं को आहार एवं पोषण विज्ञान की समुचित जानकारी प्रदान की जाती है।

(4) मातृकला और बाल-कल्याण:
आज की बालिकाएँ ही भावी माताएँ हैं; अतः उनके भावी जीवन को सरल एवं सफल बनाने के लिए गृह विज्ञान के अन्तर्गत मातृकला एवं बाल-कल्याण का
आवश्यक ज्ञान प्रदान किया जाता है।

(5) जीव विज्ञान:
यह हमें लाभदायक पौधों एवं प्राणियों से सम्बन्धित ज्ञान उपलब्ध कराता है। इस ज्ञान का भी व्यावहारिक जीवन में महत्त्व है। अतः गृह विज्ञान में जीव विज्ञान का प्रारम्भिक ज्ञान प्रदान किया जाता है।

(6) भौतिक व रसायन विज्ञान:
ये हमें आधुनिक यन्त्रों एवं ऊर्जा के स्रोतों का व्यावहारिक ज्ञान एवं पर्यावरण सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराते हैं। यह ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति एवं परिवार के लिए अति आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है; अतः इस क्षेत्र के प्रारम्भिक ज्ञान को गृह विज्ञान में अनिवार्य रूपसे सम्मिलित किया जाता है

(7) अर्थशास्त्र व गृह-गणित:
इनके अध्ययन से हमें आय-व्यय, बचत, बजट अर्थात् परिवार के लिए आवश्यक एवं उपयोगी आर्थिक जानकारी एवं सम्बन्धित गणित का ज्ञान होता है। गृहिणियों के लिए दैनिक जीवन में इस ज्ञान की अत्यधिक आवश्यकता होती है; अतः इस विषय को भी गृह विज्ञान में
सम्मिलित किया गया है।

(8) मनोविज्ञान, दर्शन व नीतिशास्त्र:
इनको अध्ययन मानव जीवन में मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक एवं नैतिक मूल्यों के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।

(9) पारिवारिक समाजशास्त्र:
परिवार के संगठन, स्वरूपों, कार्यों तथा समस्याओं आदि का व्यवस्थित अध्ययन पारिवारिक समाजशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। पारिवारिक जीवन को सुखी एवं व्यवस्थित बनाने के लिए यह ज्ञान अति आवश्यक होता है। इस तथ्य यह खते ? रिट में पारिवारिक समाजशास्त्र का भी अध्ययन किया जाता हैं।

(10) नागरिकशास्त्र:
नागरिकों के मूल अधिकार क्या हैं? नागरिकों के प्रमुख कर्त्तव्य क्या हैं? इन्हें जानने के लिए नागरिकशास्त्र का अध्ययन आवश्यक है। गृह विज्ञान के मूल उद्देश्यों की प्राप्ति में यह ज्ञान सहायक होता है; अतः इस विषय का भी प्रारम्भिक अध्ययन गृह विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है।

(11) वस्त्र विज्ञान:
वस्त्र व्यक्ति की मौलिक आवश्यकता है। वस्त्र विज्ञान के अन्तर्गत वस्त्रों के निर्माण, गुणों, परिधान के चुनाव एवं निर्माण आदि का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। प्रत्येक घर-परिवार में परिवार के सदस्यों के लिए वस्त्रों की समुचित व्यवस्था की जाती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही गृह विज्ञान में वस्त्र विज्ञान का भी व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। इस प्रकार वह अपने परिवार का सदस्य होने के साथ-साथ सम्पूर्ण देश तथा विश्व से भी जुड़ा हुआ (UPBoardSolutions.com) है। इसलिए गृह विज्ञान का विषय-क्षेत्र भी घर तक ही सीमित नहीं है, वरन् इसका क्षेत्र समाज व विश्व भी है। इसी आधार पर गृह विज्ञान अपने सिद्धान्तों और क्रियाओं द्वारा बालक व बालिका को पूर्णता प्रदान करता है। अतः स्पष्ट है कि गृह विज्ञान अपने अन्तर्गत उन सभी आवश्यक विषयों को सम्मिलित करता है जो परिवार के विभिन्न सदस्यों के सर्वांगीण विकास हेतु अत्यन्त आवश्यक है।

प्रश्न 5:
गृह विज्ञान के अध्ययन के महत्त्व को विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए।
या
”गृह विज्ञान एक उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण विषय है।” इस कथन की पुष्टि करते हुए गृह विज्ञान के महत्त्व एवं उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गृह विज्ञान एक उपयोगी एवं व्यावहारिक महत्त्व का विज्ञान है। इसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध घर एवं परिवार के सामान्य जीवन के प्रायः सभी पक्षों से है। गृह विज्ञान मुख्य रूप से बालिकाओं की शिक्षा-पाठ्यचर्या का एक अनिवार्य विषय है। वास्तव में, आज की छात्राएँ ही भावी गृहिणियाँ एवं (UPBoardSolutions.com) माताएँ है, उन्हें ही धर-गृहस्थी का दायित्व सँभालना तथा बच्चों का पालन-पोषण करना होता है। इस स्थिति में बालिकाओं के लिए गृह विज्ञान का समुचित ज्ञान अर्जित करना नितान्त अनिवार्य है। गृह विज्ञान के अध्ययन के महत्त्व एवं उपयोगिता का विवरण निम्नवर्णित है

गृह विज्ञान का महत्त्व एवं उपयोगिता

(1) श्रम, समय एवं व्यय की बचत में सहायक:
गृह विज्ञान में उन समस्त उपायों एवं विधियों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है जिनके उपयोग से हमारे सभी घरेलू कार्य शीघ्र, आसानी से कम खर्च करके पूरे हो जाते हैं। गृह विज्ञान में ही श्रम, समय, धन तथा ईंधन आदि की बचत करने वाले उपकरणों को उचित ढंग से प्रयोग करने का अध्ययन किया जाता है। इसके अतिरिक्त गृह विज्ञान की छात्रा को सिखाया जाता है कि वह किस प्रकार से (UPBoardSolutions.com) अपने सभी कार्य व्यवस्थित रूप से कर सकती है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि गृह विज्ञान का ज्ञान श्रम, समय एवं धन को बचत में सहायक है।

(2) आर्थिक नियोजन में सहायक:
गृह विज्ञान के अन्तर्गत प्रारम्भिक आर्थिक नियमों का भी अध्ययन किया जाता है तथा प्रारम्भिक गणित भी सीखा जाता है। इससे गृहिणियों को अपने घर के खर्च व्यवस्थित करने तथा उसका ठीक-ठीक हिसाब रखने में सहायता प्राप्त होती है। गृह विज्ञान में घर का बजट तैयार करना तथा उसके (UPBoardSolutions.com) अनुसार खर्च करना भी सिखाया जाता है। बजट के अनुसार खर्च करने से व्यक्ति कभी भी आर्थिक संकट में नहीं फँसता। आर्थिक दृष्टि से नियोजित परिवार सदैव सुखी एवं समृद्ध कहता है। इस दृष्टिकोण से भी गृह विज्ञान के ज्ञान को उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

(3) आहार एवं पोषण सम्बन्धी ज्ञान अर्जित करने में सहायक:
गृह विज्ञान के अध्ययन का एक उल्लेखनीय महत्त्व यह भी है कि इससे हमें आहार एवं पोषण सम्बन्धी समुचित ज्ञान प्राप्त हो जाता है। गृह विज्ञान के अन्तर्गत हम आहार के तत्त्वों, विभिन्न भोज्य पदार्थों की उपयोगिता, सन्तुलित आहार तथा पोषण आदि के विषय में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन करते हैं। इस प्रकार के ज्ञान को प्राप्त करके कोई भी गृहिणी अपने परिवार के सदस्यों के लिए सीमित आय में भी सन्तुलित आहार उपलब्ध करा सकती है। यही नहीं गृह विज्ञान के ज्ञान के आधार पर आहार-आयोजन के नियमों को जानकर तथा
आहार–संरक्षण एवं संग्रह की विधियों को समझकर, अनेक प्रकार से बचत की जा सकती है।

(4) क्रय-विक्रय एवं बचत का ज्ञान अर्जित करने में सहायक:
गृह विज्ञान विषय के अन्तर्गत बालिकाओं की क्रय-विक्रय एवं बाजार की गतिविधियों में ध्यान रखने योग्य बातों की भी जानकारी प्रदान की जाती है तथा उपभोक्ताओं के हितों का ज्ञान प्रदान किया जाता है। इस जानकारी से आगे चलकर गृहिणियों को अपने दैनिक जीवन में विशेष सहायता प्राप्त होती है। गृह विज्ञान के अन्तर्गत बैंक, डाकघर तथा जीवन बीमा आदि की कार्य-प्रणालियों का भी अध्ययन किया जाता है। इससे भी गृहिणियों को विशेष लाभ होता है।

(5) स्वास्थ्य एवं शरीर सम्बन्धी ज्ञान अर्जित करने में सहायक:
गृह विज्ञान में स्वास्थ्य के नियमों का विस्तृत रूप में अध्ययन किया जाता है। व्यक्तिगत स्वच्छता, व्यायाम तथा विश्राम आदि के नियमों एवं लाभों का भी अध्ययन किया जाता है। गृह विज्ञान में स्वास्थ्य के लिए लाभदायक आदतों को अपनाने तथा हानिकारक आदतों को छोड़ने के लिए भी (UPBoardSolutions.com) सुझाव प्रस्तुत किए जाते हैं एवं उपाय बताए जाते हैं। इसके अतिरिक्त गृह विज्ञान में शरीर सम्बन्धी बहुपक्षीय ज्ञान भी प्रदान किया जाता है। इस ज्ञान का सम्पूर्ण परिवार के लिए विशेष महत्त्व है। इस दृष्टिकोण से भी गृह विज्ञान को उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण विषय माना जाता है।

(6) मातृ-कला एवं शिशु-कल्याण का ज्ञान अर्जित करने में सहायक:
आज की छात्राएँ ही भावी माताएँ हैं। लड़कियों के लिए मातृ-कला’ एवं ‘शिशु-कल्याण’ का समुचित ज्ञान विशेष रूप से उपयोगी होता है। गृह विज्ञान के अन्तर्गत इस विषय से सम्बन्धित व्यावहारिक एवं वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान किया जाता है। इस ज्ञान को प्राप्त करके, गृहिणियाँ गृहस्थ जीवन की समस्याओं एवं परेशानियों का विवेकपूर्ण ढंग से सामना कर लेती हैं। इस तथ्य के आधार पर कहा जा सकता है कि गृह विज्ञान का
अध्ययन लड़कियों के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण होता है।

(7) प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान प्राप्त करने में सहायक:
गृह विज्ञान के अन्तर्गत प्राथमिक चिकित्सा तथा गृह-परिचर्या का सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जाता है। इससे घर में घटित होने वाली किसी भी आकस्मिक दुर्घटना के समय, गृहिणियाँ घबराती नहीं, बल्कि सूझ-बूझ तथा जानकारी द्वारा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को, हर सम्भव (UPBoardSolutions.com) सहायता प्रदान करती हैं। परिवार के किसी सदस्य के बीमार हो जाने पर उसकी परिचर्या की व्यवस्था की जाती है। इस दृष्टिकोण से भी कहा जा सकता हैं कि गृह विज्ञान का अध्ययन विशेष महत्त्वपूर्ण है।

(8) वस्त्रों को तैयार करने तथा रख-रखाव के ज्ञान की प्राप्ति:
गृह विज्ञान में वस्त्रों की कटाई-सिलाई तथा मरम्मत आदि का प्रयोगात्मक रूप में अध्ययन किया जाता है। इसके साथ-साथ वस्त्रों की उचित धुलाई तथा संग्रह की विधियों को भी सिखाया जाता है। इन सबसे परिवार के सदस्यों के वस्त्र जहाँ एक ओर कम खर्चे में तैयार हो जाते हैं, वहीं वस्त्र अधिक समय तक अच्छी हालत में रहते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में भी गृह विज्ञान का अध्ययन विशेष रूप से उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है।

(9) शारीरिक श्रम तथा सामाजिक कार्यों के प्रति रुचि जाग्रत करना:
गृह विज्ञान में ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के सैद्धान्तिक अध्ययन के साथ-साथ प्रयोगात्मक कार्य भी किए जाते हैं। इस प्रकार के प्रयोगात्मक कार्यों को करने से छात्रों में शारीरिक श्रम तथा सामाजिक कार्यों के प्रति भी रुचि उत्पन्न होती है। इस प्रवृत्ति से पूरे समाज को ही लाभ होता है।

(10) गृह विज्ञान का व्यावसायिक महत्त्व:
गृह विज्ञान की शिक्षा ग्रहण करने वाली छात्राओं के लिए गृह विज्ञान के अध्ययन का व्यावसायिक महत्त्व भी है। गृह विज्ञान की शिक्षा प्राप्त छात्राओं के लिए विभिन्न व्यवसाय अपनाने के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध हो सकते हैं; जैसे  बालवाड़ी एवं आँगनवाड़ी शिक्षिका, समाज-सेविका, प्राथमिक (UPBoardSolutions.com) चिकित्सा निर्देशिका, ग्राम-सेविका, परिवार नियोजन निर्देशिका, पोषण-विशेषज्ञा तथा गृह विज्ञान अध्यापिका आदि पद प्राप्त हो सकते हैं। ये समस्त व्यवसाय मानव एवं समाज-सेवा से सम्बद्ध हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि गृह विज्ञान का व्यावसायिक महत्त्व भी उल्लेखनीय है।
उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि गृह विज्ञान के अध्ययन का बहुपक्षीय महत्त्व एवं उपयोग है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि गृह विज्ञान का ज्ञान केवल बालिकाओं एवं महिलाओं के लिए ही उपयोगी नहीं है बल्कि इस ज्ञान से परिवार के सभी सदस्य लाभान्वित हो सकते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
स्पष्ट कीजिए कि गृह विज्ञान परिवार के सभी सदस्यों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
या
‘गृह विज्ञान केवल बालिकाओं के लिए ही नहीं वरन् लड़कों के लिए भी उपयोगी विषय है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पारम्परिक रूप से यह माना जाता रहा है कि गृह विज्ञान केवल बालिकाओं एवं महिलाओं के लिए ही उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण विषय है, किन्तु यह धारणा भ्रामक है। वास्तव में गृह विज्ञान का ज्ञान परिवार के सभी सदस्यों के लिए उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है। आधुनिक पारिवारिक परिस्थितियों में गृह-व्यवस्था, गृह-सज्जा तथा परिवार की सुख-सुविधाओं में वृद्धि के लिए परिवार के सभी सदस्यों का समुचित योगदान आवश्यक होता है। इस स्थिति में परिवार के सभी सदस्यों के लिए गृह विज्ञान का समुचित ज्ञान आवश्यक है। इसी तथ्य (UPBoardSolutions.com) को ध्यान में रखते हुए अब लड़कियों के अतिरिक्त लड़कों के लिए भी गृह विज्ञान के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। लड़कों द्वारा अपनाए जाने वाले कुछ व्यवसाय ऐसे भी हैं, जिनमें गृह विज्ञान का अध्ययन एवं ज्ञान सहायक होता है। उदाहरण के लिए-होटल प्रबन्धन, खाद्य-संरक्षण तथा परिधान-निर्माण आदि कुछ ऐसे ही व्यवसाय हैं। इस स्थिति में हम कह सकते हैं कि गृह विज्ञान केवल बालिकाओं के लिए ही नहीं वरन् लड़कों के लिए भी समान रूप से उपयोगी विषय है।

प्रश्न 2:
स्पष्ट कीजिए कि गृह विज्ञान एक व्यापक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण विषय है।
उत्तर:
हम जानते हैं कि गृह विज्ञान वह व्यवस्थित अध्ययन है जिसके अन्तर्गत उन सभी विषयों का अध्ययन किया जाता है जो सुखी एवं आदर्श परिवार के निर्माण में सहायक होते हैं। पारिवारिक जीवन के अनेक पक्ष एवं क्षेत्र हैं; अतः गृह विज्ञान के अन्तर्गत ज्ञान के विभिन्न पक्षों एवं क्षेत्रों का अनिवार्य रूप से अध्ययन किया जाता है। गृह विज्ञान में गृह-प्रबन्ध एवं गृह-सज्जा, गृह कार्य-व्यवस्था, गृह अर्थव्यवस्था, सामान्य स्वास्थ्य एवं शरीर शास्त्र, प्राथमिक चिकित्सा एवं गृह-परिचर्या, आहार एवं पोषण विज्ञान, वस्त्र विज्ञान तथा पारिवारिक समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान आदि अनेक विषयों का अध्ययन किया जाता है। इस स्थिति में हम कह सकते हैं कि (UPBoardSolutions.com) गृह विज्ञान एक व्यापक विषय है।
गृह विज्ञान एक कोरा सैद्धान्तिक विषय नहीं है। इसके अध्ययन का मुख्य उद्देश्य पारिवारिक जीवन को अधिक-से-अधिक सरल, सुविधाजनक एवं उत्तम बनाना है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही गृह विज्ञान को व्यावहारिक दृष्टिकोण से उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण बनाया गया है। गृह विज्ञान के अन्तर्गत विभिन्न विज्ञानों से प्राप्त ज्ञान को दैनिक जीवन में उपयोग में लाया जाता है तथा उससे लाभ प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गृह विज्ञान एक व्यापक तथा व्यावहारिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण विषय है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह विज्ञान को इसके विकास के प्रथम चरण में किस नाम से जाना जाता था?
उत्तर:
गृह विज्ञान को इसके विकास के प्रथम चरण में ‘गृह अर्थशास्त्र’ (Home Economics) के नाम से जाना जाता था

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प्रश्न 2:
वर्तमान समय में गृह विज्ञान को अन्य किन-किन नामों से भी जाना जाता है?
उत्तर:
वर्तमान समय में गृह विज्ञान को

  1.  ‘गृह विज्ञान तथा गृह-कला’
  2.  “घरेलू विज्ञान तथा गृह-कला’ तथा
  3.  गृह शिल्प एवं सम्बन्धित कला’ आदि नामों से भी जाना जाता है।

प्रश्न 3:
गृह विज्ञान के मुख्य तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह विज्ञान के मुख्य तत्त्वे चार हैं अर्थात् ‘परिवार के सदस्यों का बहुमुखी विकास, नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन’।

प्रश्न 4:
गृह विज्ञान के अध्ययन का मुख्यतम उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
गृह विज्ञान के अध्ययन का मुख्यतम उद्देश्य सुखी एवं आदर्श पारिवारिक जीवन व्यतीत करने के उपाय जानना है।

प्रश्न 5:
गृह विज्ञान की एक व्यवस्थित परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
“गृह विज्ञान वह व्यावहारिक विज्ञान है, जो अपने अध्ययनकर्ताओं को सफल पारिवारिक जीवन व्यतीत करने, सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को हल करने और सुखमय जीवन-यापन करने की दशाओं का ज्ञान कराता है।

प्रश्न 6:
गृह विज्ञान के अध्ययन के किन्हीं चार केन्द्रों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. आगरा (उ० प्र०),
  2. पन्तनगर (उ० प्र०),
  3.  लेडी इरविन कॉलेज (दिल्ली ), तथा
  4. बंगलुरू (कर्नाटक)

प्रश्न 7:
गृह विज्ञान किस प्रकार का विज्ञान है?
उत्तर:
गृह विज्ञान एक सामान्य तथा व्यावहारिक महत्त्व का विज्ञान है।

प्रश्न 8:
परिवार में गृह विज्ञान के अध्ययन का सर्वाधिक महत्त्व किसके लिए है?
उत्तर:
परिवार में गृह विज्ञान के अध्ययन का सर्वाधिक महत्त्व गृहिणी के लिए है।

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प्रश्न 9:
पारिवारिक जीवन में गृह विज्ञान के ज्ञान के दो मुख्य लाभ बताइए।
उत्तर:
पारिवारिकजीवन में गृह विज्ञान के ज्ञान के दो मुख्य लाभ हैं

  1. श्रम, समय एवं व्यय की बचत में सहायक तथा
  2. आर्थिक-नियोजन में सहायक।

प्रश्न 10:
क्या गृह विज्ञान का अध्ययन गृहिणी के अतिरिक्त परिवार के अन्य सदस्यों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
गृह विज्ञान का अध्ययन एवं सम्बन्धित जानकारी परिवार के सभी सदस्यों के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न में चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) ‘गृह विज्ञान’ से आशय है
(क) गृह-निर्माण,
(ख) घर-परिवार सम्बन्धी व्यवस्थित ज्ञान,
(ग) गृहिणियों का अध्ययन विषय,
(घ) घर को सजाने सँवारने का ज्ञान।

(2) गृह विज्ञान है
(क) शुद्ध विज्ञान,
(ख) शुद्ध कला,
(ग) विज्ञान एवं कला दोनों,
(घ) इनमें में से कोई नहीं।

(3) गृह विज्ञान के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है
(क) आहार एवं पोषण विज्ञान का,
(ख) आय एवं व्यय के नियोजन का,
(ग) वस्त्र एवं परिधान शास्त्र का,
(घ) सम्पूर्ण गृह-व्यवस्था का

(4) गृह विज्ञान का क्षेत्र होता है
(क) सीमित,
(ख) व्यापक,
(ग) व्यावहारिक,
(घ) अव्यावहारिक

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(5) गृह विज्ञान के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है
(क) गृह-प्रबन्ध का,
(ख) गृह अर्थव्यवस्था का,
(ग) आहार एवं पोषण का,
(घ) इन सभी का।

(6) गृह विज्ञान किस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है?
(क) केवल सैद्धान्तिक,
(ख) केवल व्यावहारिक,
(ग) सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

(7) गृह विज्ञान उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है
(क) गृह विज्ञान की छात्राओं के लिए,
(ख) केवल गृहिणियों के लिए,
(ग) परिवार के सभी सदस्यों के लिए,
(घ) किसी के लिए भी नहीं।

उत्तर:
(1) (ख) घर-परिवार सम्बन्धी व्यवस्थित ज्ञान,
(2) (ग) विज्ञान एवं कला दोनों,
(3) (घ) सम्पूर्ण गृह-व्यवस्था को,
(4) (ख) व्यापक,
(5) (घ) इन सभी का,
(6) (ग) सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों,
(7) (ग) परिवार के सभी सदस्यों के लिए।

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UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 21 भारतरत्न महामना मदन मोहन मालवीय (मंजरी)

UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 21 भारतरत्न महामना मदन मोहन मालवीय (मंजरी)

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महत्वपूर्ण पद्यांश की व्याख्या

महामना मदन मोहन मालवीय …………………. प्रदान किया गया।

संदर्भ:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मंजरी’ के ‘भारतरत्न महामना मदन मोहन मालवीय नामक पाठ से लिया गया है।

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व्याख्या:
प्रस्तुत पद्यांश में मालवीय जी के हिन्दुत्व के प्रति (UPBoardSolutions.com) जो विचार थे, उसकी विवेचना की गई है। मालवीय जी हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति के सच्चे अनुयायी थे। वे भारत की सभी समस्याओं का समाधान हिंदू धर्म का पुनरुत्थान मानते थे। उनका मानना था कि हिन्दू धर्म ही वह धर्म है जो विश्व-बंधुत्व की भावना को परिपुष्ट कर सकता है। वो चाहते थे कि संपूर्ण विश्व में भाई-चारी स्थापित हो। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन अपने इसी स्वप्न को पूरा करने में समर्पित कर दिया और इसके लिए कई संस्था व संगठनों का भी निर्माण किया।

पाठ का सम्र (सारांश)

महामना मदन मोहन मालवीय का जन्म ऐसे कालखण्ड में हुआ था, जिस समय भारत नव जागरण के साथ-साथ स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्षरत था।
महामना मदन मोहन मालवीय ने भारतीय स्वतंत्रता की ऐसी नींव रखी जिसके परिणाम स्वरूप 15 अगस्त 1947 ई० को हमारा देश स्वतंत्र हुआ। महामना मदन मोहन मालवीय भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के नायक और साक्षी थे। इनका जन्म 25 दिसम्बर, 1861 ई० को प्रयाग में हुआ था। उनके पिता पण्डित ब्रजनाथ चतुर्वेदी और माता श्रीमती मूनादेवी थी। मालवीय जी के पूर्वज 15वीं शताब्दी में मालवा प्रर्दः से आकर प्रयाग में बस गये थे और स्थानवाची (मल्लई) अथवा ‘चौबे’ उपनाम से जाने गये। मल्लई शब्द को पं० मदन मोहन ने मालवीय बनाया। तब से सारे मल्लई मालवीय कहे जाने लगे। (UPBoardSolutions.com) मालवीय ने म्योर सेण्ट्रल कालेज से बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की।
महामना मदन मोहन मालवीय जी वैदिक (हिन्दू) धर्म और संस्कृति के सच्चे अनुयायी थे। उनका दृष्टिकोण था कि हिन्दू धर्म के दर्शन द्वारा ही विश्वबन्धुत्व के भाव को जाग्रत किया जा सकता है। अपने इस दिवास्वप्न को पूर्ण करने के लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज की सेवा में समर्पित कर दिया।
मालवीय जी ने गंगा के अविरल प्रवाह के लिए 1914 में हरिद्वार में तथा 1924 में प्रयाग में सत्याग्रह किया। मालवीय जी छुआ-छूत, अस्पृश्यता के घोर विरोधी थे। वे इसे कलंक और राष्ट्रीय विकास के मार्ग में बाधा मानते थे। वे नारी शिक्षा व सशक्तिकरण के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने जनता से अनुरोध किया कि वे उन सब सामाजिक कुरीतियों को दूर करें जो स्त्री जाति की उन्नति में बाधक हैं। वे बाल विवाह के घोर विरोधी थे।
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पण्डित मदन मोहन मालवीय ने गौ-रक्षा आन्दोलन भी चलाए। महामना मदन मोहन मालवीय एक राजनीतिज्ञ से अधिक शिक्षाशास्त्री थे। उन्होंने ही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। मालवीय जी का सपना था कि सभी स्तर पर शिक्षा का ऐसा प्रबन्ध हो कि कोई भी बच्चा गरीबी के कारण शिक्षा से वंचित न रह पाये। महामना मालवीय जी ने भारतीय राजनीति, शिक्षा, साहित्य एवं पत्रकारिता में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने (UPBoardSolutions.com) अनेक छोटी-छोटी संस्थाओं जैसे- हिन्दू छात्रवास, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भारती भवन पुस्तकालय आदि को खड़ा किया। राष्ट्र निर्माण में इन संस्थाओं की भूमिका मील का पत्थर है।।
मालवीय जी ने अधययन-अधयापन के साथ-साथ कई समाचार-पत्रे का संपादन किया तथा तत्कालीन ब्रिटिश शासन की नीतियों का प्रबल विरोध किया। मालवीय जी का निधन 12 नवम्बर, 1946 ई० में हुआ। विलक्षण प्रतिभा के धनी राष्ट्र नायक मालवीय जी को भारत सरकार द्वारा 30 मार्च, 2015 ई० को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया।

प्रश्न-अभ्यास

कुछ करने को

प्रश्न 1:
नोट- विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2:
मालवीय जी ने अनेक समाचार-पत्रों का संपादन किया। पता लगाइए कि (UPBoardSolutions.com) वे समाचार पत्र कौन-कौन से थे?
उत्तर:
महामना मदन मोहन मालवीय जी ने ‘हिन्दोस्थान’, ‘अभ्युदय’, ‘लीडर’, ‘भारत’, ‘मर्यादा’, ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’, इण्डियन ओपीनियन’ तथा ‘सनातन धर्म’ नामक समाचार-पत्रों का संपादन किया।

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प्रश्न 3:
नोट- विद्यार्थी स्वयं करें

विचार और कल्पना

प्रश्न 1:
मालवीय जी ने तत्कालीन समाज की समस्याओं पर आवाज उठाई। आपके विचार से तत्कालीन समाज में क्या-क्या समस्याएँ रही होंगी जिन पर उन्होंने आवाज उठायी ?
उत्तर:
तत्कालीन समाज की सबसे बड़ी समस्या थी-ब्रिटिश शासन, मालवीय जी ब्रिटिश शासन की नीतियों का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता की ऐसी नींव रखी जिसके परिणामस्वरूप हमारा देश 15 अगस्त, 1947 को आजाद हो सका। (UPBoardSolutions.com) तत्कालीन समाज में और भी कई समस्याएँ व्याप्त थीं; जैसे-छुआ-छूत, अस्पृश्यता, स्त्रियों की दुर्बल स्थिति, अशिक्षा, बाल-विवाह आदि। उन्होंने पौराणिक उद्धरणों द्वारा अस्पृश्यता को कलंक और राष्ट्रीय विकास के मार्ग में बाधक बताया। वे स्त्रियों को सबल बनाना चाहते थे। उन्होंने जनता से अनुरोध किया कि वे उन सब सामाजिक कुरितियों को मिटा दें जो स्त्री जाति की उन्नति में बाधक हैं। वे बाल-विवाह के विरोधी थे और स्त्री-शिक्षा के समर्थक थे। तत्कालीन समाज अशिक्षा के दौर से गुजर रहा था। उन्होंने इस दिशा में काशी हिंदु विश्वविद्यालय की स्थापना की। उन्होंने विघटित हो रहे हिंदु धर्म के उत्थान और पुनरुद्धार के लिए भी अनेक कार्य किए।

प्रश्न 2:
भारतीय संस्कृति में गाय को माता कहा गया है। इस संबंध में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
जिस प्रकार जन्म देने वाली माँ हमें अपना दूध पिलाकर ही कुछ सालों तक पालती-पोषती है, उसी प्रकार हम जीवनपर्यंत गाय के दूध का या दूध से बने अन्य उत्पादों का प्रयोग करते हैं। इसी संदर्भ में भारतीय संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया। (UPBoardSolutions.com) मेरे विचार से ये उचित ही है क्योंकि दूध पिलाकर पालन-पोषण तो माँ ही करती है। इस कारण गाय हमारी सही मायने में माता है जिसका दूध शुदध, मीठा, स्वास्थ्यवर्धक, पौष्टिक और अनेक रोगों को मिटाने वाला होता है।

प्रश्न 3:
मालवीय जी ने सभी के लिए शिक्षा की बात कही थी। आज सरकार ने शिक्षा के अधिकार के तहत इसे पूरे देश में लागू कर दिया। कल्पना कीजिए कि जब यह व्यवस्था नहीं रही होगी तो शिक्षा प्राप्त करने में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ होती होंगी ? लिखिए।
उत्तर:
जिस समय देश में सबके लिए शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी, उस समय देश के अधिकांश लोग खासकर गरीब तबके के लोग शिक्षा से वंचित रह जाते थे। महिलाओं को शिक्षा नहीं मिल पाती थी, वे भी अनपढ़ रह जाती थीं। गरीब समाज के लोगों को शिक्षा पाने के लिए अत्यंत संघर्ष करना पड़ता था, विद्यालय बहुत दूर-दूर होते जहाँ रोज समय पर पहुँचना ही एक चुनौती थी। साथ ही उस समय यातायात के साधन भी इतने विकसित नहीं थे फलतः लोगों को शिक्षा लेने में अनेक कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती थीं।

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प्रश्न 4:
मालवीय जी चाहते थे कि गंगा की धारा को कहीं रोका न जाय क्योंकि गंगा केवल नदी नहीं बल्कि संस्कृति की धारा है। आज गंगा प्रदूषण की शिकार हो गयी है। सोचिए जिस दिन गंगा नहीं रहेगी उस दिन क्या होगा ? इस सम्बंध में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
जिस दिन गंगा नहीं रहेगी वह दिन गंगा में आस्था रखने वाले लोगों के लिए प्रलय का दिन होगा। गंगा हमारी संस्कृति का हिस्सा है, गंगा नहीं तो हमारी संस्कृति नहीं। हिंदूधर्म छिन्न-भिन्न हो जाएगा। यही नहीं उत्तर भारत के जन-जीवन पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। सारी अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो जाएगी, उद्योग मिट जाएँगे, कृषि उत्पादन दुष्प्रभावित होगा। गंगा का नहीं होना मतलब उत्तर भारत का पतन। जिस दिन गंगा नहीं होगी, उस दिन की कल्पना भी भयावह है।

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प्रश्न 5:
आपके विचार में वर्तमान समाज की क्या-क्या समस्याएँ हैं? उनके क्या समाधान हो सकते हैं?
उत्तर:
वर्तमान समाज की सबसे बड़ी समस्या बढ़ती जनसंख्या है। उसके बाद गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी है। इसके अलावा भ्रष्टाचार, गंदी राजनीति, साम्प्रदायिकता, पर्यावरण प्रदूषण जैसी अनेक ज्वलंत समस्याएँ हैं। जिससे हमारा वर्तमान भारतीय समाज बुरी तरह से प्रभावित है। इन समस्याओं का पहला समाधान है-जनसंख्या पर नियंत्रण, शिक्षा को सबके लिए सहज एवं सुलभ बनाना, रोजगार की उचित व्यवस्था करना, भ्रष्टाचार पर कठोरता से रोक लगाना, प्रदूषण कम करने के लिए सभी नागरिकों को स्वयं जागरूक होकर इस दिशा में बनाए गए नियमों का सख्ती से पालन करना इत्यादि।

जीवनी से

प्रश्न 1:
महामना मदन मोहन मालवीय का जन्म कब और कहाँ हुआ था? इनके माता पिता का क्या नाम था?
उत्तर:
महामना मदनमोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर, 1861 को प्रयाग में हुआ था। इनके पिता पंडित ब्रजनाथ चतुर्वेदी और माता का नाम श्रीमती मूना देवी था।

प्रश्न 2:
मदन मोहन और उनके वंशज मालवीय क्यों कहे गये?
उत्तर:
मालवीय जी के पूर्वज 15वीं शताब्दी में मालवा प्रदेश से आकर प्रयाग में बस गये थे और स्थानवाची (मल्लई) अथवा ‘चौबे’ उपनाम से जाने गये। मल्लई शब्द को पंडित मदन मोहन ने मालवीय बनाया। तब से सारे मल्लई (मालवीय) कहे जाने लगे।

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प्रश्न 3:
मालवीय जी के जन्म के समय भारत की स्थिति कैसी थी?
उत्तर:
महामना मदन मोहन मालवीय का जन्म ऐसे कालखण्ड में हुआ था, जिस समय भारत नव जागरण के साथ-साथ स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्षरत था। जिस काल में मालवीय जी का जन्म हुआ वह समय भारत में बौधिक और वैचारिक जागरण का था। उस समय बहुत से समाज सुधारक तथा चिन्तक भारत देश को उसकी मूल राष्ट्रीय और आध्यात्मिक चेतना की ओर लौटाने के लिए प्रयासरत थे।

प्रश्न 4:
महामना ने तत्कालीन भारत में समस्याओं के समाधान का विकंल्प किसे माना है। और क्यों?
उत्तर:
महामना ने तत्कालीन भारत में समस्याओं के समाधान का विकल्प हिन्दू धर्म के पुनरूत्थान को माना है क्योंकि हिन्दू धर्म सनातन धर्म है और मालवीय जी इस धर्म और संस्कृति के सच्चे अनुयायी थे।

प्रश्न 5:
महामना मालवीय का दिवास्वप्न क्या था?
उत्तर:
महामना मालवीय जी का दिवास्वप्न था–हिन्दू धर्म के दर्शन द्वारा विश्वबन्धुत्व के भाव को जाग्रत करना।

प्रश्न 6:
उन्होंने तत्कालीन समाज में फैली किन-किन समस्याओं पर कुठाराघात किया?
उत्तर:
मालवीय जी ने तत्कालीन समाज में व्याप्त छुआ-छूत अस्पृश्यता, बाल-विवाह, स्त्री को अशिक्षित और कमजोर बनाए रखने जैसी कुप्रथाओं पर कुठाराघात किया था।

प्रश्न 7:
स्त्रियों के प्रति मालवीय जी का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
स्त्रियों के प्रति अपना दृष्टिकोण व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था कि मैं चाहता हूँ कि हमारे देश की सभी स्त्रियाँ अंगेज महिलाओं की भाँति पिस्तौल और बन्दूकें रखें और उनको चलाना सीखें ताकि वे किसी भी आक्रमण से अपनी रक्षा कर सकें। उन्होंने जनता से अनुरोध किया कि वे उन सब सामाजिक कुरीतियों को दूर करें जो स्त्री जाति की उन्नति में बाधक हैं। वे बाल विवाह के घोर विरोधी थे। उन्होंने सामाजिक उन्नति के लिए स्त्री शिक्षा पर विशेष जोर दिया।

प्रश्न 8:
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के पीछे मालवीय जी की क्या सोच थी ?
उत्तर:
महामना मदन मोहन मालवीय एक राजनीतिज्ञ से अधिक शिक्षाशास्त्री थे। उनका मानना था कि हमारी सारी समस्याओं की जड़ अशिक्षा है। वे शिक्षा को पुरातन एवं नवीनतम मूल्यों के बीच एक सेतु के रूप में देखते थे। इन्हीं धारणाओं को ध्यान में रखकर मालवीय जी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। मालवीय जी का सपना था कि सभी स्तर पर शिक्षा का ऐसा प्रबन्ध हो कि कोई भी बच्चा गरीबी के कारण शिक्षा से वंचित न रह पाये।

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भाषा की बात

प्रश्न 1:
पाठ में ‘साथ-साथ’ शब्द आया है जो पुनरुक्त शब्द है। इसी प्रकार दिये गये पुनरुक्त शब्दों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए
अपना-अपना, धीरे-धीरे, छोटे-छोटे, हँसते-हँसते, पानी-पानी ।
उत्तर:
अपना-अपना   –    तुम सबको अपना-अपना कार्य स्वयं करना चाहिए।
धीरे-धीरे          –    धीरे-धीरे उन्हें अपने मकसद में कामयाबी मिल ही गई।
छोटे-छोटे        –     इन छोटे-छोटे कामों में सफलता पाकर ही तुम आगे बढ़ पाओगे।
हँसते-हँसे        –     छोटे बच्चे के मुँह से इस तरह की बात सुनकर सब हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए।
पानी-पानी      –      चोरी करते हुए पकड़े जाने पर वह पानी-पानी हो गया।

प्रश्न 2:
नोट- विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 3:
निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए
जैसे- जो अनुकरण करने योग्य हो                     –  अनुकरणीय
(क) युग का निर्माण करने वाला।                      –  युगनिर्माता
(ख) जो सबको समान भाव से देखता हो।         –  समद्रष्टा
(ग) जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते प्रतीत हों।  –  क्षितिज
(घ) जिसका कोई खण्ड न हो सके।                  –  अखण्ड

प्रश्न 4:
इस पाठ को पढ़कर आपके मन में महामना मदन मोहन मालवीय के व्यक्तित्व की कुछ विशेषताएँ उभर रही होंगी। उन विशेषताओं को संक्षेप में लिखिए।
शिक्षण संकेत:
श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग करते हुए महामना पं० मदन मोहन मालवीय के जीवन की अन्य घटनाओं से बच्चों को अवगत कराएँ।

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उत्तर:
पंडित मदन मोहन मालवीय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक और साक्षी थे। वे हिंदू धर्म और संस्कृति के सच्चे अनुयायी थे। वे विश्वबंधुत्व के भाव के सच्चे समर्थक थे। मालवीय जी छुआ-छूत, अस्पृश्यता के घोर विरोधी थे। वे स्त्रियों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखते थे। उन्होंने समाज के पुनरुद्धार के लिए जिन विषयों को केंद्र में रखा उनमें गौ-रक्षा भी प्रमुख विषय था। महामना मदन मोहन मालवीय जी एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक शिक्षाशास्त्री भी थे। वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक थे। महामना मालवीय जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे एक साथ उच्चकोटि के राजनीतिज्ञ, शिक्षाशास्त्री, साहित्यकार और पत्रकार थे। वे ब्रिटिश शासन की नीतियों के प्रबल विरोधी थे। विलक्षण प्रतिभा के धनी मालवीय जी भारत के सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न से सम्मानित किए जा चुके हैं।

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UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 4 वर्षर्तुः (अनिवार्य संस्कृत)

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 4 वर्षर्तुः (वर्षा + ऋतुः) (अनिवार्य संस्कृत)

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आकाशं ………………………… सुखकरो वर्तते।

हिन्दी अनुवाद – आकाश में बादल छाए हैं। वर्षा होने वाली है। पानी बरसने से बच्चों और वयस्कों को बहुत खुशी होगी; वृक्षों पर नए पत्ते उग आएँगे; पुराने पत्ते झड़ जाएँगे। वर्षाजल पत्तों पर गिरकर मीठा स्वर उत्पन्न करेगा।

अध्यापक – देवदत्त! तुम कहो, बारिश के बाद किसान कौन-कौन-से कार्य करेंगे? | देवदत्त – गुरुवर! बारिश के बाद किसान खेतों में धान बोएँगे। इससे धान होगा। धान देखकर किसान के हृदय प्रसन्न हो जाएँगे।

अध्यापक – वर्षा के समय अर्थात् बरसात में लोगों को किस तरह के कष्ट का अनुभव होगा?

देवदत्त – गुरुवर! बरसात में धरती कीचड़ से भर जाएगी। इससे लोग गिरने लगेंगे। अधिक बारिश के कारण रास्ते बन्द हो जाएँगे; आवागमन में बाधा होगी; बादल गड़गड़ाएँगे और बिजली भी गिरेगी। इससे लोग डर जाएँगे। यह सब केवल कष्टकारक है; फिर भी यह ऋतु मानवों के लिए अतिशय सुखकारी है।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
उच्चारण करें
नोट – विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें

प्रश्न 2.
एक पद में उत्तर दें –

(क) आकाशं कदा मेघाच्छन्नं भवति?
(ख) वृक्षेषु कानि उद्भविष्यन्ति?
(ग) वर्षाजलं किं करिष्यति?
(घ) भूमिः कदा पड्किला भविष्यति?
(ङ) जनाः केन भयभीताः भविष्यन्ति?

उत्तर :

(क) वर्षाकाले।
(ख) नवीनानि पत्राणि।
(ग) मधुरंध्वनिं।
(घ) वर्षाकाले।
(ङ) विद्युत्पातेन।

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प्रश्न 3.
मंजूषा से उचित पदों का चयन कर रिक्त स्थानों की पूर्ति करें (पूर्ति करके) –

(क) प्राचीनानि पत्राणि पतिष्यन्ति।
(ख) वर्षाकाले मेघाः गर्जनम् करिष्यन्ति।
(ग) जलस्य अधिकतया मार्गाः अवरुद्धाः भविष्यन्ति।
(घ) गमनागमने बाधा आगमिष्यति।
(ङ) विद्युत्पातेन जनाः भयभीताः भविष्यन्ति।

विशेष

नोट – विद्यार्थी भविष्यति, भविष्यतः, भविष्यन्ति की तरह ‘पठिष्यति, पटिष्यतः, पठिष्यन्ति’, ‘गमिष्यति, गमिष्यतः, गमिष्यन्ति’ आदि रूप स्वयं लिखें।

प्रश्न 4.
रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण करें –

(क) वर्षायाः अनन्तरं कृषकाः क्षेत्रेषु धान्यं वपन्ति।
उत्तर :
वर्षायाः अनन्तरं कृषकाः क्षेत्रेषु किं वपन्ति?

(ख) धान्यं दृष्ट्वा कृषकाणां हृदयं प्रफुल्लितं भवति।
उत्तर :
धान्यं दृष्ट्वा केषाम् हृदयं प्रफुल्लितं भवति?

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(ग) वर्षाकाले आकाशं मेघाच्छन्नं भवति।
उत्तर :
कस्मिनुकाले आकाशं मेघाच्छन्नं भवति?

प्रश्न 5.
UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 4 वर्षर्तुः (अनिवार्य संस्कृत) 1

प्रश्न 6.
हिन्दी में अनुवाद करें –
नोट – विद्यार्थी पाठ का अनुवाद पढ़ें।

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UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 2 भारतीय संस्कृति के अग्रदुत भारतीर (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 2 भारतीय संस्कृति के अग्रदुत भारतीर (महान व्यक्तित्व)

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पाठ को सारांश

महर्षि अगस्त्य-इनको जन्म काशी में हुआ। ये काशी के विश्वनाथ मन्दिर में पूजा-पाठ करते थे। इन्होंने विंध्याचल पार कर सुदूर दक्षिण भारत में शैव मत का प्रचार किया। स्थानीय लोगों को शिष्य बनाकर विंध्याचल के घने जंगल कटवाए और यहाँ नगरों और आश्रमों की स्थापना की। यहाँ के लोगों को कला-कौशल सिखाया। पाण्ड्य देश के राजा इन्हें देवता की तरह (UPBoardSolutions.com) पूजते थे। भारतीय संस्कृति और शैव धर्म के प्रचार के लिए ये भारत से बाहर कम्बोडिया, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो आदि द्वीपों तक गए। कहा जाता है कि ये समुद्र पी गए थे। कम्बोडिया के एक शिलालेख के अनुसार इनमें अलौकिक शक्ति थी। ये कम्बोडिया में भुदेश्वर नामक शिवलिंग की पूजा-अर्चना बहुत समय तक करते रहे। यहीं पर इनका स्वर्गवास हुआ। भारत के बाहर सुदूर देशों तक जाकर भारतीय संस्कृति और शैव धर्म का प्रचार करने वाले महर्षि अगस्त्य प्रथम व्यक्ति थे।

महर्षि पतञ्जलि – महर्षि पतञ्जलि पाटलिपुत्र के राजा पुष्यमित्र शुंग के समकालीन थे। इनके दो कार्य प्रसिद्ध हैं- प्रथम तो व्याकरण की पुस्तक ‘महाभाष्य’ के लिए तथा दूसरे पाणिनि के ‘अष्टध्यायी’ की टीका लिखने के लिए। महाभाष्य व्याकरण ग्रन्थ है, इसमें साहित्य, धर्म, भूगोल, समाज तथा रहन-सहन के तथ्य भी मिलते हैं। पतञ्जलि के बाद यह पुस्तक लुप्त हो गई थी। इसे कश्मीर के राजा जयादित्य ने खोज करके पुनः लिखवाया। पतञ्जलि ने संस्कृत भाषा को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया। प्राचीन काल में किसी भी देश में व्याकरण का ऐसा विद्वान नहीं हुआ।

ऋषि याज्ञवल्क्य – इस नाम के दो विद्वान हुए हैं-पहले राजा जनक के समय में और दूसरे युधिष्ठिर काल में। यहाँ दूसरे याज्ञवल्क्य का विवरण है। इन्होंने ‘याज्ञवल्क्य-स्मृति’ नामक धर्मशास्त्र की रचना की जिसे याज्ञवल्क्य-संहिता भी कहा जाता है। स्मृति प्राचीन काल में ऐसे धर्मशास्त्र को कहा जाता था जिसमें आचार-व्यवहार, नियम-कानून (UPBoardSolutions.com) आदि की व्यवस्था दी जाती थी। याज्ञवल्क्य-स्मृति के एक हजार बारह श्लोक तीन अध्यायों में विभक्त हैं। इस ग्रन्थ पर अनेक टीकाएँ की गई हैं, जिनमें मिताक्षरा और दायभाग प्रसिद्ध हैं। हिन्दू कानून के लिए यह पुस्तक प्रामाणिक मानी जाती है। याज्ञवल्क्य ने शास्त्रार्थ में अनेक पण्डितों को हराया था। उन्होंने भारतीय संस्कृति को अमर बनाने की चेष्टा की।

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अभ्यास-प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
महर्षि अगस्त्य ने दक्षिण भारत में कौन से सामाजिक कार्य किए?
उत्तर :
महर्षि अगस्त्य ने विंध्याचल का जंगल कटवाया। यहाँ नगरों और आश्रमों की स्थापना की। लोगों को कला-कौशल सिखाया। आयुर्वेद का प्रचार किया। हिन्दू धर्म, कला, संस्कृति और भाषा का ज्ञान दिया।

प्रश्न 2.
महाभाष्य की रचना किसने और कहाँ की थी?
उत्तर :
महाभाष्य की रचना महर्षि पतञ्जलि ने काशी में की थी।

प्रश्न 3.
महर्षि पतंजलि के लुप्त महाभाष्य की खोज किसने करायी ?
उत्तर :
कश्मीर के राजा जयादित्य ने लुप्त महाभाष्य की खोज कराई।

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प्रश्न 4.
ऋषि याज्ञवल्क्य ने किस ग्रन्थ की रचना की थी?
उत्तर :
ऋषि याज्ञवल्क्य ने याज्ञवल्क्य-स्मृति की रचना की थी।

प्रश्न 5.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए- (पूर्ति करके)

  • पाण्ड्य देश के राजा अगस्त्य को देवता की तरह पूजते थे।
  • कम्बोडिया में अगस्त्य ने भुदेश्वर नामक शिवलिंग की बहुत काल तक पूजा की थी।
  • महर्षि पतंजलि पाटलिपुत्र के राजा पुष्यमित्र शुंग के समकालीन थे।
  • न्होंने पाणिनि के अष्टाध्यायी की टीका भी लिखी।।

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प्रश्न 6.
पता कीजिए-
नोट – विद्यार्थी अपने शिक्षक/शिक्षिका की सहायता से स्वयं पता करें।

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