UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 5

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Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Model Paper Paper 5
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 5

पूर्णाक : 70
समय : 3 घण्टे 15 मिनट

निर्देश: प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
नोट:

    • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
    • आवश्यकतानुसार अपने उत्तरों की पुष्टि नामांकित रेखाचित्रों द्वारा कीजिए।
    • सभी प्रश्नों के निर्धारित अंक उनके सम्मुख

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए।
(क) जब दो पारितन्त्र एक-दूसरे की सीमा को काटते हैं, तो निर्मित भाग कहलाता है [1]
(A) आवासीय
(B) निकेत
(C) इकोटोन
(D) इकोटाइप

(ख) निम्नलिखित में से कौन-सी एक प्लाज्मिड का अभिलक्षण नहीं है? [1]
(A) वृत्तीय संरचना
(B) स्थानान्तरण योग्य
(C) एकल रज्जुकीय
(D) स्वतन्त्र प्रतिकृतियन

(ग) एन्ट्रमी पुटक में निम्नलिखित में से कौन-सी अकोशिकीय होती है? [1]
(A) ग्रेन्युलोसा (कणिकीय)
(B) थीका इण्टर्ना (अन्तर प्रोवरक)
(C) स्ट्रोमा (पीठिका)
(D) जोना पेल्यूसिडा (पारदर्शी अण्डावरण)

(घ) निम्नलिखित में से कौन-सा एक जैव-उर्वरक नहीं है? [1]
(A) राइजोबियम
(B) नॉस्टॉक
(C) कवकमूल
(D) एग्रोबैक्टीरियम

प्रश्न 2.
(क) बैक क्रॉस क्या है?
(ख) क्रोमैटिन का वह भाग, जो हल्का अभिरंजित होता है, क्या कहलाता है? [1]
(ग) ल्यूकीमिया किसे कहते हैं? [1]
(घ) DNA से शीघ्रतापूर्वक पुंज निर्माण विधि का नाम बताइए। [1]
(ङ) अगर समुद्री मछली को अलवण जल की जलजीवशाला में रखा जाता है तो क्या वह मछली जीवित रह पायगी? क्यों और क्यों नहीं? [1]

प्रश्न 3.
(क) पर्यावरणीय प्रदूषण किसे कहते हैं? समझाइए। [2]
(ख) ZIFT एवं GIFT में अन्तर लिखिए। [2]
(ग) इडियोग्राम या कैरियोग्राम क्या होता है? [2]
(घ) HIV की रोगजनकता पर टिप्पणी लिखिए। [2]
(ङ) समर्थ कोशिका क्या होती है? इसके निर्माण में CaCI, का क्या योगदान होता है? [1+1]

प्रश्न 4.
(क) यह किस वैज्ञानिक ने बताया था कि DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है? इसके पक्ष में किसी एक प्रयोग को समझाइए। [1+2]
(ख) PCR में प्रयुक्त किन्हीं तीन एन्जाइम तथा उनके स्रोत के नाम लिखिए। [1 x 3]
(ग) तापमान के आधार पर विश्व में पाई जाने वाली वनस्पतियों पर प्रकाश डालिए। [3]
(घ) अंग प्रत्यारोपण क्या है? इसके सफल क्रियान्वयन के दो उपाय बताइए। [1+2]

प्रश्न 5.
(क) जीनीय सन्तुलन क्रियाविधि क्या है? समझाइए। [3]
(ख) बायोपाइरेसी के बारे में आप क्या जानते हैं? [3]
(ग) विद्यालयों में यौन शिक्षा की क्यों आवश्यकता है? कारण सहित स्पष्ट करें। [3]
(घ) ऊर्जा के पिरामिड की विशेषताएँ बताइए। [3]

प्रश्न 6.
(क) रूपान्तरण व परागमन पर टिप्पणी लिखिए। [1 1/2+1 1/2]
(ख) जनसंख्या विस्फोट किसे कहते हैं? इसके क्या परिणाम हो रहे हैं? [3]
(ग) स्तम्भ कोशिका पर टिप्पणी कीजिए। इसके क्या उपयोग हैं? [1+2]
(घ) नीगरॉइड्स और मोन्गोलॉइड्स पर टिप्पणी कीजिए। [3]

प्रश्न 7.
चिकित्सीय सगर्भता समापने क्या है? इसकी आवश्यकता एवं दुरुपयोग को विस्तारपूर्वक समझाइए। [1+2+2]
अथवा
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी करें [1+2+2]

  1. रेड डाटा बुक
  2. प्रचालक
  3. बहुजीनी वंशागति

प्रश्न 8.
मानव के आर्थिक महत्त्व के किन्हीं तीन कीटों के जन्तु वैज्ञानिक नाम लिखिए तथा इनके द्वारा उत्पादित पदार्थों की उपयोगिता बताइए। [5]
अथवा
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी करें [1 x 5]

  1. ऊतक संवर्धन
  2. पादप प्रजनन
  3. संयुक्त वन प्रबन्धन
  4. जैव-प्रबलीकरण
  5. निकेत

प्रश्न 9.
परागण क्या होता है? इसके प्रकार बताते हुए पर-परागण की विभिन्न युक्तियाँ बताइए। [1+2+2]
अथवा
पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया को विस्तार से समझाइए। [5]

Answers

उत्तर 1.
(क) (C)
(ख) (C)
(ग) (A)
(घ) (D)

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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 19 Development of Indian Population

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 19 Development of Indian Population (भारतीय जनशक्ति का विकास) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 19 Development of Indian Population (भारतीय जनशक्ति का विकास).

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Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 19
Chapter Name Development of Indian Population (भारतीय जनशक्ति का विकास)
Number of Questions Solved 69
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 19 Development of Indian Population (भारतीय जनशक्ति का विकास)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
जनसंख्या घनत्व क्या है? भारत में जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले कारकों/तत्त्वों का विश्लेषण कीजिए। [2011, 13, 16]
उत्तर:
जनसंख्या के घनत्व से अभिप्राय मनुष्य-भूमि अनुपात से है, अर्थात् देश के कुल भूमि के क्षेत्रफल को कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफले आता है, उसे देश की जनसंख्या का घनत्व कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, “किसी देश के प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों की औसत संख्या को ही जनसंख्या का घनत्व कहते हैं।”

जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले तत्त्व
किसी स्थान-विशेष पर जनसंख्या का घनत्व निम्नलिखित मुख्य तत्त्वों द्वारा प्रभावित होता है

1. जलवायु – जनसंख्या का घनत्व जलवायु पर निर्भर करता है। जिस क्षेत्र यो स्थान की जलवायु उत्तम और स्वास्थ्यवर्द्धक होती है, वहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। इसके विपरीत, यदि किसी स्थान की जलवायु अधिक गर्म या अधिक ठण्डी होती है तो ऐसे स्थान पर जनसंख्या का घनत्व कम होता है।

2. वर्षा – जिन स्थानों पर वर्षा न तो बहुत अधिक होती है और न ही बहुत कम, उन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। इसके विपरीत, जिन स्थानों पर अत्यधिक वर्षा होती है या बहुत कम वर्षा होती है, उन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व भी कम पाया जाता है। यही कारण है कि राजस्थान में वर्षा कम होने के कारण तथा असम में अधिक वर्षा होने के कारण जनसंख्या का घनत्व कम है।

3. भूमि की बनावट व उर्वरा-शक्ति – मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा पर्वतीय तथा पठारी क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व कम होता है, क्योंकि ऊँची-नीची भूमि होने के कारण कृषि कार्य करने तथा उद्योगों को स्थापित करने में कठिनाई होती है। इसके विपरीत, मैदानी भागों में मिट्टी समतल व अधिक उपजाऊ होती है इसलिए इन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में गंगा-यमुना के मैदानी भाग में जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

4. सिंचाई की सुविधाएँ – जिन क्षेत्रों में वर्षा की कमी को सिंचाई के साधनों द्वारा पूरा कर लिया जाता है या ज़िन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती हैं, उन क्षेत्रों में भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।

5. यातायात एवं संवहन/संचार के साधन – जिन क्षेत्रों में यातायात तथा संवहन/संचार के साधन विकसित होते हैं, उन क्षेत्रों में भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है, क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में उद्योग तथा व्यापार की सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र आदि राज्यों में यातायात एवं संवहन/संचार के साधनों के कारण ही जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

6. औद्योगिक विकास – औद्योगिक स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। इसका प्रमुख कारण श्रमिकों को रोजगार तथा व्यापारियों को व्यापार आदि की सुविधाएँ सरलता से मिल जाना है। जमशेदपुर, कानपुर, अहमदाबाद, मुम्बई आदि स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व इसी कारण अधिक है।

7. खनिज पदार्थ या खनिज सम्पत्ति – जिन क्षेत्रों में खनिज भण्डार अधिक मात्रा में होते हैं, वहाँ पर भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है; क्योंकि इन स्थानों पर आधारित अनेक उद्योग-धन्धों में इन्हें व्यवसाय मिल जाता है। बिहार व पश्चिम बंगाल में जनसंख्या का घनत्व अधिक होने का यही कारण है।

8. राजधानी – देश अथवा प्रदेश की राजधानी में भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है, क्योंकि इन स्थानों पर सचिवालय, संसद व विधानसभा भवन, राष्ट्रपति भवन, संसद-सदस्य निवास, विधायक निवास आदि के साथ-साथ अनेक कार्यालय, संस्थाएँ तथा व्यापार एवं वाणिज्य के केन्द्र होते हैं। दिल्ली, लखनऊ, चण्डीगढ़ आदि स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होने का प्रमुख कारण राजधानी होना ही है।

9. ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थान – ऐतिहासिक तथा धार्मिक महत्त्व के स्थानों पर भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। आगरा व दिल्ली ऐतिहासिक महत्त्व के स्थान हैं और मथुरा, काशी, हरिद्वार आदि धार्मिक स्थल। इसी कारण से इन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

10. शान्ति एवं सुरक्षा – जिन क्षेत्रों में शान्ति एवं सुरक्षा की व्यवस्था होती है, उन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है, क्योंकि ऐसे स्थानों पर लोग अपने जीवन और सम्पत्ति को सुरक्षित समझते हैं। इसके विपरीत, जो स्थान सीमा के समीप होते हैं, सुरक्षा व शान्ति की दृष्टि से वे अशान्त क्षेत्र माने जाते हैं; अत: वहाँ जनसंख्या का घनत्व कम होता है। पंजाब तथा असम के सीमान्त क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व कम होने का प्रमुख कारण यही है।

11. अप्रवास एवं उत्प्रवास – अप्रवास तथा उत्प्रवास का भी जनसंख्या के घनत्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। देश के विभाजन के समय दिल्ली में जनसंख्या का घनत्व बढ़ गया। इसका प्रमुख कारण पाकिस्तान से आये हुए शरणार्थियों का अप्रवास था। भारत में रीति-रिवाज, भाषा एवं धर्म तथा संस्कृति में विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। फलस्वरूप जनसंख्या के घनत्व में भिन्नता पायी जाती है।

12. शिक्षा के केन्द्र – जिन स्थानों पर शिक्षा के केन्द्र स्थापित होंगे, वहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक होगा। रुड़की, इलाहाबाद, वाराणसी आदि शिक्षा के केन्द्र हैं, इसी कारण ऐसे स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक पाया जाता है।

13. व्यापारिक केन्द्र – जो स्थान व्यापारिक महत्त्व के होते हैं, वहाँ पर भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, कानपुर आदि व्यापारिक केन्द्र हैं, इसी कारण इन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

प्रश्न 2
भारत में जनसंख्या-वृद्धि के कारणों एवं जनसंख्या-वृद्धि को रोकने के उपाय बताइए। [2008, 10, 11, 12]
या
“भारत में जनसंख्या की समस्या विस्फोटक है।” विवेचना कीजिए। इसे हल करने के लिए आप क्या सुझाव देंगे? [2008, 12]
या
भारत में जनाधिक्य की समस्या हल करने के लिए सुझाव दीजिए। [2013]
उत्तर:
भारत में तीव्र गति से जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित हैं

1. जन्म-दर एवं मृत्यु-दर के मध्य अन्तराल का बढ़ना – भारत में 1921 ई० से पूर्व तक जन्म-दर तथा मृत्यु-दर के बीच का अन्तर बहुत कम रहा। 1921 ई० के बाद से यह अन्तर बढ़ने लगा। पिछले तीस वर्षों से जन्म-दर जिस गति से घटी है उसकी अपेक्षा मृत्यु-दर कहीं अधिक घटी है, जिससे दोनों दरों में अन्तर बढ़ गया है। स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ जाने के कारण मृत्यु-देर में कमी आयी। 1921 ई० में जन्म-दर 46.4 प्रति हजार थी और मृत्यु-दर 36.3 प्रति हजार; जबकि 2011 ई० में जन्म-दर 23 प्रति हजार तथा मृत्यु-दर 9 प्रति हजार है। इससे स्पष्ट हो कि मृत्यु-दर में तेजी से कमी हुई है।

2. विवाह की औसत आयु – जन्म का सीधा सम्बन्ध विवाह से होता है। भारत में लड़कियों का विवाह कम आयु में हो जाया करता है, जिससे वे कम आयु में ही माँ बन जाती हैं। शारदा ऐक्ट के द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष थी, जो अब 18 वर्ष कर दी गयी है। विकसित देशों में लड़कियों के विवाह की औसत आयु 22-25 वर्ष है।

3. प्रजनन दर – विकसित देशों की अपेक्षा भारत में प्रजनन दर ऊँची है जिसका मुख्य कारण विवाह की अनिवार्यता, न्यूनतम आयु का कम होना, गर्भ निरोधक उपायों का सीमित उपयोग, साक्षरता में कमी, जीवन-स्तर की निम्नता, परम्परागत जीवन-दर्शन तथा 80% जनसंख्या का ग्रामीण होना है। कर्म आयु में विवाहित स्त्री कम आयु में ही माँ बन जाती है। इस प्रकार अपनी जीवन-अवधि में एक स्त्री 6 से 7 बच्चों तक की माँ बन जाती है। विकसित देशों में यह संख्या 2 से 3 तक ही है।

4. प्रचलित अन्धविश्वास – वंश चलाने एवं श्राद्ध कर्म हेतु पुत्र की कामना करना तथा अन्य धार्मिक अन्धविश्वासों के कारण परिवार में बच्चों की संख्या अधिक हो जाती है।

5. वृद्धावस्था की सुरक्षा – वृद्धावस्था में सन्तान उनकी देख-रेख करेगी; यह धारणा भी जनसंख्या वृद्धि में सहायक होती है।

6. ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े परिवारों का होना – भारत कृषि-प्रधान देश है। बड़ा परिवार कृषि के कामों में बाधक न होकर सहायक सिद्ध होता है। ग्रामीण स्त्रियों के कार्य इस प्रकार के होते हैं कि कार्य करने के साथ-साथ वे बच्चों की देख-रेख भी कर लेती हैं। इसी से अधिक बच्चों को जन्म देना उन्हें बाधक प्रतीत नहीं होता है।

7. अधिकांश लोगों का घर पर रहना – भारत में समस्त जनसंख्या का केवल 33% कार्यशील है। कुल कार्यशील जनसंख्या का लगभग 70% कृषि एवं सम्बन्धित कार्यों में संलग्न होने के कारण अधिकांश लोग घर पर ही रहते हैं, जिसके कारण जनसंख्या में वृद्धि होती है।

8. शरणार्थियों का आगमन – देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् पाकिस्तान तथा बांग्लादेश से आने वाले लाखों-करोड़ों शरणार्थियों के कारण भी देश में जनसंख्या में वृद्धि हुई है।

9. परिवार नियोजन के प्रति अज्ञानता – ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के अशिक्षित होने के कारण परिवार के आकार के सम्बन्ध में उदासीनता पायी जाती है। परिणामस्वरूप परिवार नियोजन के साधन देश में लोकप्रिय नहीं हो पा रहे हैं। परिवार नियोजन के उपायों के प्रति संकोच, लज्जा तथा निराधार शंकाओं के कारण दम्पती बच्चों को जन्म देते रहते हैं।

जनसंख्या-वृद्धि को रोकने के उपाय
जनसंख्या की समस्या के समाधान के लिए हमें एक साथ कई उपाय करने पड़ेंगे। जन्म-दर को कम करने के लिए तत्कालीन एवं दीर्घकालीन उपाय किये जाने चाहिए। तत्कालीन उपायों में निरोध, नसबन्दी, लूप, ऑपरेशन आदि के लिए लोगों को प्रेरित करना तथा दीर्घकालीन उपायों में विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि, बाल-विवाह पर रोक, मनोरंजन के साधनों में वृद्धि, आत्म-संयम वे ब्रह्मचर्य के पालन के लिए लोगों को प्रेरित करना आदि हैं। इन उपायों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. जन्म-दर में कमी करना – जनसंख्या-वृद्धि को सीमित करने के लिए यह आवश्यक है कि मृत्यु-दरे के साथ-साथ जन्म-दर में भी गिरावट लायी जाए। वर्ष 1951-60 में जन्म-दर 41.7% थी, जो 2011 ई० में 23% हो गयी। जन्म-दर में और अधिक कमी लायी जानी चाहिए।

2. साक्षरता तथा शिक्षा का प्रसार आवश्यक – शिक्षा के माध्यम से ही जन-साधारण में जनसंख्या-वृद्धि के विषय में जागरूकता लायी जा सकेगी। विकसित देशों में जनसंख्या-वृद्धि की समस्या न होने का प्रमुख कारण उनकी शत-प्रतिशत साक्षरता है। भारत में केवल केरल में ही साक्षरता अन्य प्रदेशों की अपेक्षा अधिक है।

3. स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल – जनसंख्या-वृद्धि के परिप्रेक्ष्य में स्त्री-शिक्षा का विशेष महत्त्व है। केरल में स्त्रियों की साक्षरता प्रतिशत 91.98 है, जबकि उत्तर प्रदेश में 59.26 है। इसी कारण से उत्तर प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि की दर भी उच्च है। अत: जनसंख्या-वृद्धि पर नियन्त्रण हेतु स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल देने की आवश्यकता है।

4. विवाह सम्बन्धी कानूनों का सख्ती से पालन – यद्यपि विवाह की न्यूनतम आयु कानूनी तौर पर निर्धारित है। बाल-विवाह वर्जित है, फिर भी ये बुराइयाँ समाज में यथावत् बनी हुई हैं। इनका सख्ती से पालन किया जाना भी आवश्यक है। इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाया जा सकता है।

5. मनोरंजन के साधनों में वृद्धि – विशेष रूप से ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में मनोरंजन के साधनों में वृद्धि की जानी चाहिए। इनमें सिनेमा, सार्वजनिक दूरदर्शन की व्यवस्था, शिक्षाप्रद छोटी-छोटी फिल्मों का प्रदर्शन, अखाड़े, खेल-कूद प्रतियोगिताएँ आदि मुख्य हैं। मनोरंजन के साधनों में वृद्धि होने से जनसंख्या-वृद्धि पर भी नियन्त्रण लगेगा।

6. आत्म-संयम/नैतिक शिक्षा का प्रसार – नैतिकतापूर्ण संयमित जीवन जनसंख्या को सीमित रखने का आदर्श उपाय है। अत: इस बात को समुचित प्रचार किया जाना चाहिए कि शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य अच्छी कार्यक्षमता, सुखद पारिवारिक जीवन तथा देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए संयमी जीवन बिताना उपयोगी है। इससे न केवल जन्म-दर कम होगी, वरन् अनेक सामाजिक समस्याओं; जैसे–चोरी, डकैती, व्यभिचार आदि; में भी कमी आएगी।

7. परिवार नियोजन का प्रचार तथा सम्बद्ध सुविधाओं को उपलब्ध कराना – परिवार तथा देश के कल्याण के लिए परिवार नियोजन के महत्त्व को देखते हुए 1977 ई० से इसे परिवार-कल्याण का नाम दिया गया है। परिवार-कल्याण के द्वारा दम्पति अपने बच्चों की संख्या सीमित रखने तथा दो बच्चों के जन्म के मध्य पर्याप्त समयान्तर रखते हैं। ग्रामीण जनता तक परिवार कल्याण कार्यक्रमों का लाभ पहुंचाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार नियोजन का प्रचार तथा सुविधाओं को उपलब्ध कराने की अधिक आवश्यकता है। परिवार कल्याण कार्यक्रम को ‘जन-अभियान’ बनाया जाना चाहिए।

8. विज्ञापन व संवहन/संचार के साधनों का उपयोग – जनसंख्या वृद्धि के कारणों, परिणामों एवं जनसंख्या को नियन्त्रित करने के उपायों का विज्ञापन एवं प्रचार रेडियो, दूरदर्शन व चलचित्रों के माध्यम से ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों में करने की आवश्यकता है। इसके माध्यम से भी जनसंख्या को सीमित करने में सहायता मिलेगी।

9. सीमित परिवारों को पुरस्कृत करना – जिन दम्पतियों के एक या दो ही बच्चे हैं, उन्हें पुरस्कृत किया जाना चाहिए। इससे अन्य व्यक्तियों को भी सीमित परिवार की प्रेरणा मिलेगी।

10. जनमानस में जनसंख्या के प्रति अनुकूल चेतना का विकास करना – जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए हमें जनमानस में अनुकूल चेतना का विकास करना होगा, जिससे आज के बालक-बालिकाएँ जो कल वयस्क नागरिक बनेंगे, वे यह निर्णय करने में सक्षम हो सकें कि उनके परिवार का आकार क्या होना चाहिए।

संक्षेप में, देश के तरुण वर्ग को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि जनसंख्या-वृद्धि की समस्या का हल उनके अपने ही हाथों में है। जागरूक एवं सक्रिय बनकर ही वे अपने वर्तमान और भविष्य को सुखद बना सकते हैं। जन-जन में जनसंख्या के प्रति अनुकूल चेतना का विकास होने पर ही हम जनसंख्या-वृद्धि पर नियन्त्रण पाने में सफल हो सकते हैं।

प्रश्न 3
परिवार-नियोजन देश के लिए अत्यन्त आवश्यक है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
या
भारत जैसे विकासशील देश के सन्दर्भ में परिवार-नियोजन के महत्त्व पर प्रकाश डालिए। निरन्तर प्रयत्नों के होते हुए भी भारत में परिवार-नियोजन कार्यक्रम सफल क्यों नहीं हो पा रहा है? समझाइए।
या
परिवार-कल्याण कार्यक्रम की अवधारणा की विवेचना कीजिए। [2011]
उत्तर:
परिवार-नियोजन या परिवार-कल्याण कार्यक्रम
सन् 1952 ई० में जनगणना आयुक्त ने परिवार नियोजन की आवश्यकता और महत्त्व को स्वीकार किया तथा परिवार नियोजन को अपनाने पर विशेष महत्त्व दिया था। भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना में जनसंख्या को नियन्त्रित करने का कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया, जिसे ‘परिवार-नियोजन’ का नाम दिया गया। सन् 1977 ई० में जनता पार्टी की सरकार ने परिवार नियोजन’ का नाम बदलकर ‘परिवार-कल्याण’ कार्यक्रम रखा।

श्रीमती इन्दिरा गांधी के अनुसार, “हमारी परिस्थितियों में परिवार नियोजन का अर्थ माँ और बच्चे का बेहतर स्वास्थ्य तथा पूरे परिवार के लिए अधिक अवसर है।”
परिवार नियोजन की आवश्यकता – भारत में विश्व की जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत भाग निवास करता है, जबकि दुनिया के कुल भू-भाग का मात्र 2.4 प्रतिशत ही भारत में है। भारत की जनसंख्या में प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ अस्सी लाख की वृद्धि हो जाती है। 1951 ई० में भारत की जनसंख्या 36.11 करोड़ थी, 2011 की जनगणना के अनुसार, 121 करोड़ हो चुकी है। तेजी के साथ बढ़ती हुई जनसंख्या विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है, जिसके कारण देश की प्रगति आशा के अनुकूल नहीं हो पा रही है। अतः देश के आर्थिक विकास की दर में तेजी लाने के लिए परिवार नियोजन एक आवश्यकता ही नहीं, अपितु परम आवश्यकता है, कम-से-कम भारत के लिए। अतः परिवार नियोजन भारत जैसे विकासशील देश के लिए निम्नलिखित कारणों से परमावश्यक है

1. पूँजी-निर्माण की गति में वृद्धि हेतु – बढ़ती हुई जनसंख्या बचतों की दर व पूँजी-निर्माण की गति में कमी लाती है; अत: इस बात की आवश्यकता है कि जनसंख्या-वृद्धि में कमी करके बचतों को बढ़ाया जाये, जिससे पूँजी निर्माण में वृद्धि हो सके।

2. खाद्यान्नों के अभाव की पूर्ति हेतु – खाद्यान्नों का मन्द गति से बढ़ता हुआ उत्पादन तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या की पूर्ति नहीं कर पाता, जिससे खाद्यान्नों की कमी बनी रहती है। अत: खाद्यान्नों के अभाव को दूर करने के लिए यह उचित है कि बढ़ती हुई जनसंख्या को परिवार नियोजन के माध्यम से रोका जाए।

3. भुगतान-सन्तुलन की समस्या के हल हेतु – बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए जब खाद्यान्नों एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं का आयात किया जाता है तो भुगतान-सन्तुलन की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अत: इससे बचने का एक मात्र रास्ता है कि परिवार नियोजन को अपनाकर जनसंख्या की वृद्धि को रोका जाए।

4. बेरोजगारी की समस्या के हल हेतु – बढ़ती हुई जनसंख्या बेरोजगारी में प्रति वर्ष वृद्धि करती जा रही है; अत: इसमें कमी करने के लिए परिवार नियोजन को अपनाया जाना चाहिए।

5. मूल्य-स्तर में वृद्धि को कम करने हेतु – जनसंख्या-वृद्धि से वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है, जब कि उत्पादन उस अनुपात में नहीं बढ़ता है। इससे मूल्य-स्तर बढ़ जाता है; अतः बढ़ती हुई जनसंख्या में कमी करने के लिए परिवार नियोजने अपनाकर मूल्य-स्तर में वृद्धि को रोका जा सकता है।

6. उत्पादन तकनीक में सुधार हेतु – जनसंख्या में वृद्धि व बेरोजगारी होने से श्रम प्रधान उत्पादन तकनीकें अपनायी जाती हैं तथा पूँजी-प्रधान आधुनिक उत्पादन तकनीकों को त्याग दिया जाता है; अत: उन्नत उत्पादन तकनीकों को अपनाने के लिए यह उचित होगा कि परिवार नियोजन को अपनाकर जनसंख्या वृद्धि को रोका जाए।

7. कृषि पर भार में कमी करने हेतु – जनसंख्या की वृद्धि कृषि पर भार को बढ़ा देती है। कृषि की औसत उत्पादकता में वृद्धि के लिए जनसंख्या-वृद्धि को रोका जाना आवश्यक है।

8. सामाजिक-कल्याण में वृद्धि हेतु – जनसंख्या-वृद्धि देश के आर्थिक विकास की गति को धीमा कर देती है। परिवार-कल्याण, शिक्षा, परिवहन व अन्य स्वास्थ्य सेवाएँ लोगों को उचित रूप में नहीं मिल पाती हैं; अतः इनमें सुधार करने व जन-कल्याण में वृद्धि करने के लिए उचित है कि परिवार नियोजन प्रणाली को अपनाया जाए।
उपर्युक्त आधार पर हमें कह सकते हैं कि भारत की आर्थिक प्रगति के लिए परिवार नियोजन एक आवश्यक कदम है।

परिवार नियोजन का महत्त्व
परिवार नियोजन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कहा था, “कहा जाता है कि समृद्धि एक बढ़िया गर्भ-निरोधक है, किन्तु विकास का प्रभाव कम हो जाता है जब तक कि हम जन्म-दर में कमी न लाएँ। परिवार नियोजन विकास का आधार है, निवेश है और मानव पूँजी के संगठन में एक अनिवार्य प्रयास है। शिक्षा, उत्पादन और आय की बेहतर क्षमताएँ तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि तभी सम्भव है जब जनसंख्या-वृद्धि पर अंकुश लगाया जा सके

भारत जैसे विकासशील देश के सन्दर्भ में परिवार नियोजन का निम्नलिखित महत्त्व है

  1.  यह देश के आर्थिक विकास का आधार है।
  2. इसके द्वारा ही नागरिकों का जीवन-स्तर ऊँचा हो सकता है।
  3.  इसके माध्यम से ही प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि सम्भव है, जिससे निर्धनता की समस्या हल होगी।
  4. सभी व्यक्तियों को ‘खाद्यान्न’ या सन्तुलित आहार इसके माध्यम से ही सुलभ हो सकता है।
  5. कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता भी परिवार नियोजन से ही कम हो सकती है। इससे कृषि की उत्पादन क्षमता भी बढ़ेगी।
  6. यह बेरोजगारी समाप्त करने की अचूक औषध है।
  7. इसके माध्यम से ही महँगाई को नियन्त्रित किया जा सकता है।
  8. माँ के स्वास्थ्य को ठीक बनाए रखने के लिए भी परिवार नियोजन का महत्त्व है।
  9. सभी को शिक्षा-दीक्षा व मनोरंजन के अवसर प्राप्त करने में यह अप्रत्यक्ष रूप से सहायक होता है।
  10.  इसके द्वारा ही तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या के आवास की समस्या को हल किया जा सकता है।
  11. बढ़ते हुए अपराधों, नगरीकरण के दोषों तथा प्रदूषण से बचने के लिए भी इसका महत्त्व अधिक है।
  12.  परिवार नियोजन शिशुओं के प्रति स्नेह उत्पन्न करता है तथा अच्छे माता-पिता व अच्छे समाज का निर्माण करता है।
  13. परिवार नियोजन के द्वारा प्रदूषण की समस्या, पारिस्थितिकी के असन्तुलन की समस्या, जन-जीवन के कल्याण एवं सुरक्षा की समस्या आदि को भी हल किया जा सकता है।

परिवार नियोजन कार्यक्रम की असफलता
यद्यपि भारत सरकार ने इस कार्यक्रम को पूर्ण प्राथमिकता के साथ लागू किया है, तथापि इस कार्यक्रम को अभी तक वांछित सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है। केवल 23% दम्पती ही अभी तक इस कार्यक्रम के दायरे में लाये जा सके हैं। शेष 77% दम्पतियों ने अभी तक इस कार्यक्रम को नहीं अपनाया है। जूनियर हक्सले के शब्दों में, “जनसंख्या के सम्बन्ध में भारत की स्थिति अत्यन्त संकटपूर्ण है। यदि वह अपनी जनसंख्या की समस्या को हल करने में असफल रहता है तो वह एक बड़ा आर्थिक एवं सामाजिक विनाश उत्पन्न कर लेगा। यदि वह सफल होता है तो न केवल उसे एशिया का नेतृत्व प्राप्त होगा, वरन् वह सम्पूर्ण विश्व की आशा का केन्द्र बन जाएगा।

इस कार्यक्रम की आंशिक सफलता के कारण निम्नलिखित हैं

  1.  अशिक्षा एवं जन-सहयोग का अभाव।
  2. अन्धविश्वास एवं धार्मिक अवरोध।
  3. जन-आन्दोलन का स्वरूप प्राप्त करने में असफल।
  4.  शहरों तक ही सीमित, ग्रामीण क्षेत्रों में आंशिक रूप से सफल।
  5. यौन शिक्षा का अभाव।

निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि आज के छात्र जो कल के कर्णधार हैं, जनसंख्या की वृद्धि से उत्पन्न होने वाली समस्याओं के बारे में गम्भीरता से सोचें और विचारों तथा बड़े होने पर उनके समाधान में सहयोग देने का दृढ़ निश्चय अभी से कर लें, तब ही इस समस्या का सार्थक समाधान सम्भव होगा।

प्रश्न 4
नयी राष्ट्रीय जनसंख्या-नीति, 2000 पर एक लेख लिखिए। [2007, 10]
या
भारत की जनसंख्या-नीति पर प्रकाश डालिए। [2008, 11]
या
राष्ट्रीय जनसंख्या-नीति, 2000 की मुख्य विशेषताएँ बताइए। [2007, 10]
या
भारत की जनसंख्या-नीति, 2000 पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2014]
उत्तर:
केन्द्र सरकार ने नयी जनसंख्या-नीति की घोषणा 15 फरवरी, 2000 ई० को की थी। राष्ट्रीय जनसंख्या-नीति, 2000 ई० का निर्धारण तीन मुख्य उद्देश्यों या लक्ष्यों को सामने रखकर किया गया; जो निम्नलिखित हैं,

1. नयी नीति का तात्कालिक उद्देश्य है – छोटे परिवार अर्थात् प्रति दम्पती 2 बच्चों के मानक को प्रोत्साहन देना। इसके लिए वांछित क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में गर्भनिरोधकों, स्वास्थ्य सुरक्षा ढाँचा व स्वास्थ्यकर्मियों की आपूर्ति करने के साथ-साथ प्रोत्साहन पुरस्कारों की योजना भी है।

2. मध्यकालीन उद्देश्य के अन्तर्गत परिवार नियोजन के उपायों को प्रभावी बनाकर 2010 ई० तक कुल प्रजननता दर को 2: 1 के प्रतिस्थापना स्तर तक लाना है तथा 2010 ई० तक देश की जनसंख्या को 110 करोड़ पर सीमित करना है।

3. दीर्घकालीन उद्देश्य के अन्तर्गत 2045 ई० तक स्थिर जनसंख्या को ऐसे स्तर पर स्थिर बनाने की बात कही गयी है जो आर्थिक वृद्धि, सामाजिक विकास तथा पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि के अनुरूप हो।

नयी जनसंख्या नीति में राज्यों की निर्भय सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए लोकसभा की संरचना को 2001 ई० के पश्चात् 25 वर्ष आगे तक अपरिवर्तित रखने की घोषणा की गयी है। इसका अर्थ है कि लोकसभा में निर्वाचित सीटों की संख्या अब 2026 ई० तक 543 ही बनी रहेगी तथा प्रत्येक राज्य में सीटों की संख्या भी तब तक यथावत् रहेगी।

15 फरवरी, 2000 ई० को केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल द्वारा अनुमोदित नयी जनसंख्या नीति की घोषणा करते हुए केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री ने बताया कि छोटे परिवार (प्रति दम्पती 2 बच्चे) का मानक अपनाने के लिए प्रोत्साहन एवं प्रेरणा प्रदान करने हेतु इसमें 16 उपायों को सम्मिलित किया गया है, जो निम्नलिखित हैं

  1.  केन्द्र सरकार उन पंचायतों और जिला पंचायतों को पुरस्कृत करेगी जो अपने क्षेत्र में रहने वाले लोगों को जनसंख्या नियन्त्रण के उपायों को अधिकाधिक अपनाने के लिए प्रेरित करेंगे।
  2.  नयी नीति के अन्तर्गत बाल-विवाह निरोधक अधिनियम तथा प्रसव पूर्व लिंग-परीक्षण निरोधक अधिनियम को कड़ाई के साथ लागू किया जाएगा।
  3. गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले उन परिवारों को पाँच हजार रुपये की स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दी जाएगी जिनके मात्र दो बच्चे होंगे और दो बच्चों के जन्म के बाद उन्होंने बन्ध्याकरण करा लिया होगा।
  4. ऐसे लोगों को पुरस्कृत किया जाएगा, जो निर्धारित आयु में विवाह करने के पश्चात् पहले बच्चे को तब तक जन्म न दें जब तक माँ की उम्र 21 वर्ष की न हो और छोटे परिवारों के सिद्धान्त में विश्वास रखते हुए दो बच्चों को जन्म देने के पश्चात् बन्ध्याकरण करा लें।
  5. ग्रामीण क्षेत्रों में एम्बुलेन्स की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए उदार शर्तों पर ऋण एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
  6. गर्भपात सुविधा योजना को और सुदृढ़ किया जाएगा।
  7. अशासकीय स्वयंसेवी संस्थाओं को इस कार्य से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
  8.  लड़कियों की विवाह की न्यूनतम आयु को 18 वर्ष से बढ़ाकर 20 वर्ष से भी अधिक किया जाएगा।
  9.  ऐसी सुविधाएँ जुटाने के प्रयास किए जाएँगे जिससे तीन-चौथाई से अधिक (80%) प्रसवों के लिए प्रशिक्षित कर्मियों, नियमित डिस्पेन्सरियों, अस्पतालों व चिकित्सा संस्थानों का प्रयोग किया जा सके।
  10.  शिशु मृत्यु-दर (1,000 जीवित जन्मे शिशुओं पर) को 30% से कम किया जाएगा।
  11.  मातृ मृत्यु-दर को एक लाख जीवित जन्मों के लिए 100 से भी कम करने के प्रयास किए जाएँगे।
  12.  भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का प्रजनन और बाल-स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उपयोग किया जाएगा।
  13. एड्स के बारे में सूचना उपलब्ध कराना तथा संक्रामक रोगों पर नियन्त्रण के प्रयास करना।
  14. प्राथमिक शिक्षा की उपलब्धता को नि:शुल्क और अनिवार्य करना।
  15. जन्म और मृत्यु के साथ ही विवाह और गर्भ के पंजीकरण को भी अनिवार्य किया गया है।
  16. जनसंख्या नीति के कार्यान्वयन पर निगरानी रखने के लिए प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में जनसंख्या पर एक राष्ट्रीय आयोग नियुक्त करना, जिससे जनसंख्या नियन्त्रण की समस्याओं का तत्काल समाधान किया जा सके।

नयी जनसंख्या नीति के कार्यान्वयन एवं समीक्षा के लिए 11 मई, 2000 ई० को प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय 100 सदस्यीय राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया। केन्द्रीय परिवार-कल्याण मन्त्री व अन्य कुछ सम्बन्धित केन्द्रीय मन्त्रियों के अतिरिक्त सभी राज्यों व केन्द्रशासित क्षेत्रों के मुख्यमन्त्री इस आयोग के सदस्य बनाये गये। जाने-माने जनसंख्याशास्त्रियों, जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों व गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों को भी इसमें सम्मिलित किया गया। योजना आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष के०सी० पन्त को इस आयोग का भी उपाध्यक्ष बनाया गया था।

सरकार ने जनसंख्या नियन्त्रण की आधार-संरचना को उन्नत करने के उद्देश्य से ₹3,000 करोड़ का अतिरिक्त प्रावधान किया है, जिससे गर्भ-निरोध की अभी तक पूरी न हो सकी जरूरतों को पूरा किया जा सके।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
भारतीय जनसंख्या का विभिन्न आधारों पर वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
भारत में जनसंख्या का वितरण समान नहीं है। सन् 2011 के आँकड़ों के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ थी। भारत की जनसंख्या का विभिन्न आधारों पर वितरण निम्नलिखित है

1. जनसंख्या घनत्व के आधार पर – देश में जनसंख्या का घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी था: परन्तु विभिन्न राज्यों में जनसंख्या का घनत्व समान नहीं है। राज्यों में सर्वाधिक घनत्व बिहार का (1102 व्यक्ति) तथा सबसे कम अरुणाचल प्रदेश का (17 व्यक्ति) है। इसी प्रकार केन्द्रशासित क्षेत्रों में सर्वाधिक घनत्व दिल्ली में ( 11,297 व्यक्ति) तथा सबसे कम अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में ( 46 व्यक्ति) था।

2. स्त्री-पुरुष के आधार पर – 2011 के आँकड़ों के अनुसार कुल जनसंख्या 121 करोड़ रही, जिसमें पुरुष जनसंख्या 62.37 करोड़ (51.73 प्रतिशत) तथा स्त्री जनसंख्या 58.64 करोड़ (48.27 प्रतिशत) थी। स्त्री-पुरुष अनुपात 940 रहा। राज्यों में प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाओं की सर्वाधिक संख्या केरल (1,084) तथा सबसे कम हरियाणा में (877) रही।

3. साक्षरता के आधार पर – पूरे देश के लिए साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत थी, जिसमें पुरुषों की साक्षरता 82.14 प्रतिशत तथा महिलाओं की 65.46 प्रतिशत थी। सर्वाधिक साक्षरता केरल में 93.91 प्रतिशत तथा सबसे कम बिहार में 63.82 प्रतिशत थी। महिलाओं में सर्वाधिक साक्षरता केरल में 91.98 प्रतिशत तथा सबसे कम राजस्थान में 52.66 प्रतिशत थी।

4. जनसंख्या के आधार पर – देश में सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश है। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 19.95 करोड़ तथा सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम है, जिसकी जनसंख्या 6.07 लाख है। सर्वाधिक जनसंख्या वाला केन्द्रशासित क्षेत्र दिल्ली है। दिल्ली की जनसंख्या 167.53 लाख तथा सबसे कम जनसंख्या वाला केन्द्रशासित राज्य लक्षद्वीप है जहाँ की जनसंख्या 64.42 हजार है।

5. जनसंख्या-वृद्धि दर –  वर्ष 2001 की जनगणना की तुलना में 2011 में जनसंख्या में कुल 18.14 करोड़ व्यक्तियों की वृद्धि हुई। इस प्रकार वर्ष 2001-11 के दशक में जनसंख्या में 17.64 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वर्ष 2001-11 के दशक में जनसंख्या में वार्षिक घातांकी वृद्धि दर 1.64 प्रतिशत रही। राज्यों में सर्वाधिक दशक वृद्धि दर दादर नगर हवेली में 55.50 प्रतिशत रही, जबकि न्यूनतम केरल में 0.47 प्रतिशत रही।

प्रश्न 2
जनसंख्या-विस्फोट के परिणामों पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए। [2009]
या
भारत की सबसे कठिन समस्या उसकी तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या है।” विवेचना कीजिए।
या
सन् 1951 से भारत में मुख्य जनांकीय प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए। [2011]
या
जनसंख्या विस्फोट क्या है? जनसंख्या विस्फोट के परिणाम लिखिए। [2016]
उत्तर:
तीव्र गति से जनसंख्या का बढ़ना, जनसंख्या विस्फोट कहलाता है। विश्व में चीन के बाद भारत ही सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत की वर्तमान जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग छठवाँ हिस्सा है, जबकि भारत के पास विश्व के कुल भू-भाग का केवल 2.4 प्रतिशत भाग है। भारत की जनगणना आँकड़ों के अनुसार, सन् 1901 में भारत की जनसंख्या 23.84 करोड़ थी जो 1941 में बढ़कर 31.87 करोड़, 1951 में 36.11 करोड़, 1961 में 43.92 करोड़, 1971 में 54.82 करोड़, 1981 में 68.33 करोड़, 1991 में 84.64 करोड़, 2001 में 102.7 करोड़ तथा वर्तमान में भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ के ऊपर हो चुकी है। भारत में जनसंख्या वृद्धि के विगत दशकों के आँकड़े लें तो हमें ज्ञात होगा कि जनसंख्या वृद्धि दर 1921 ई० तक तो बहुत कम थी, परन्तु उसके उपरान्त वृद्धि-दर तेजी से बढ़ी है। वर्ष 1961-71 के मध्य वृद्धि दर 2.22 प्रतिशत प्रति वर्ष थी जो 1971-81 में 2.20 प्रतिशत प्रति वर्ष रही । भारत में इस समय जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि-दर लगभग 1.64 प्रतिशत प्रति वर्ष है। भारत की जनसंख्या 1.80 करोड़ वार्षिक वृद्धि की दर से बढ़ रही है अर्थात् हम भारत में प्रति वर्ष एक ऑस्ट्रेलिया एवं प्रति दस वर्षों में एक उत्तर प्रदेश को जन्म देते जा रहे हैं।

पिछले दो दशकों से समस्त विश्व में यह अनुभव किया जाने लगा है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में अनेक समस्याएँ सामने आ रही हैं। इसका प्रभाव विकास योजनाओं पर भी पड़ रहा है, क्योंकि विकास से उपलब्ध लाभों का वितरण अत्यधिक जनसंख्या में होने से प्रति व्यक्ति पर्याप्त सुविधाएँ नहीं मिल पा रही हैं, जिसके कारण देश की प्रगति अपेक्षित गति से नहीं हो पा रही हैं। यही कारण है। कि भारत जैसे विकासशील देशों के लिए अतिशय जनसंख्या अभिशाप मानी जाती है, क्योंकि इसके कारण ऐसी विकट समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं जो विकास के प्रयासों तथा परिणामों को मटियामेट कर देती हैं।

भारत में जनसंख्या-वृद्धि से उत्पन्न होने वाली प्रमुख समस्याएँ (परिणाम) निम्नलिखित हैं|

  1.  खाद्य सामग्री की आपूर्ति की समस्या!
  2. वस्त्र आपूर्ति की समस्या
  3. आवास समस्या।
  4. शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था की समस्या।
  5. स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाओं की समस्या।
  6. रोजगार की समस्या।
  7. यातायात सुविधाओं की समस्या।
  8. प्रदूषण की समस्या।
  9. पारिस्थितिकी के असन्तुलन की समस्या।
  10. जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने की समस्या।
  11.  जन-जीवन के कल्याण एवं सुरक्षा की समस्या।
  12.  गरीबी में वृद्धि व निम्न प्रति व्यक्ति आय की समस्या आदि।

अत: संक्षेप में हम कह सकते हैं कि भारत में आज जो भी महत्त्वपूर्ण समस्याएँ; जैसे-अपराध, भ्रष्टाचार, हिंसा, बेरोजगारी, अपहरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास आदि हैं, उनको मूल कारण भारत में तीव्रगति से बढ़ती जनसंख्या है।

प्रश्न 3
परिवार-नियोजन कार्यक्रम और प्रभावी कैसे हो सकता है? इस सम्बन्ध में अपने सुझाव प्रस्तुत करें। [2009, 10]
या
भारत में परिवार-कल्याण कार्यक्रम की सफलता के लिए दो/चार सुझाव दीजिए। [2011, 12]
उत्तर:
भारत की पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के अनुसार, “मृत्यु-दर में गिरावट संगठित सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के परिणामस्वरूप आती है। जन्म-दर में गिरावट शिक्षा-प्रसार तथा जीवन-स्तर में सुधार का परिणाम होती है। हम कह सकते हैं कि मृत्यु-देर में गिरावट समाज की

व्यक्ति के प्रति दायित्व के कारण तथा जन्म-दर में गिरावट व्यक्ति की समाज के प्रति दायित्व के कारण आती हैं। मानव-जाति का प्रारम्भ शिशु से होता है। जो व्यक्ति शिशु की परवाह करता है, वह मानव-जाति की परवाह करता है।”
उपर्युक्त विचार से यह स्पष्ट होता है कि परिवार नियोजन को प्रभावी बनाने में मनुष्य का सहयोग या दायित्व महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित हैं

  1. परिवार कल्याण कार्यक्रम का प्रचार एवं प्रसार पूरे देश में किया जाना चाहिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, क्योंकि भारत की 75% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में ही निवास करती है।
  2. परिवार कल्याण कार्यक्रम को ‘जन-अभियान’ बनाया जाना चाहिए।
  3. ‘सेक्स शिक्षा’ को हेय दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए, वरन् परिवार-कल्याण कार्यक्रम एवं सेक्स शिक्षा को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  4. परिवार-कल्याण कार्यक्रम के साधन आधुनिक बाजारवाद से लिप्त नहीं होने चाहिए, वरन् आयुर्वेद, होम्योपैथी आदि से सम्बन्धित गर्भनिरोधक होने चाहिए जो सस्ते, प्रयोग में आसान तथा बिना किसी अनुचित प्रभाव वाले हों।
  5.  प्रौढ़ शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार भी होना चाहिए।
  6. परिवार नियोजन की शिक्षा सभी व्यक्तियों को दी जानी चाहिए, जिससे वे नियोजित परिवार के महत्त्व को समझ सकें।
  7. परिवार नियोजन कार्यक्रम को राष्ट्रीय महत्त्व को समझा जाना चाहिए।
  8. उन डॉक्टरों को विशेष सुविधाएँ दी जानी चाहिए जो इस कार्यक्रम को लागू करने और सफल बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर काम करने को तैयार हैं।
  9. परिवार नियोजन कार्यक्रम में स्वैच्छिक संगठनों का सहयोग लिया जाना चाहिए, उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए तथा इन संगठनों के कर्मचारियों को भी उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
  10.  शिक्षाविदों तथा जन-माध्यम में लगे व्यक्तियों का कर्तव्य है कि वे ऐसे व्यक्तियों के प्रति. जो परिवार नियोजन के विचार से असहमत हैं और इसके बारे में भ्रामक प्रचार करते हैं, की कड़ी छानबीन करें तथा उन्हें गलत प्रचार करने से रोकें।।
  11.  अधिक-से-अधिक जनसंख्या को शिक्षित करके कट्टर धार्मिक विचारधारा को मानने वाले लोगों के कारण जो अवरोध उत्पन्न हो रहे हैं, उन्हें समाप्त किया जाना चाहिए।
  12.  गर्भ निरोधक औषधियाँ या अन्य उपकरण नि:शुल्क या कम मूल्य पर सरकार द्वारा वितरित की जानी चाहिए।
  13.  अधिक-से-अधिक परिवार कल्याण केन्द्र ग्रामीण क्षेत्रों तथा औद्योगिक क्षेत्रों में स्थापित किए जाने चाहिए।
  14. चलचित्र, नाटक, रेडियो, टेलीविजन आदि के माध्यम से परिवार नियोजन कार्यक्रम का प्रसार किया जाना चाहिए।
  15. स्त्री-पुरुषों को दीर्घकालीन प्रतिरक्षा प्रदान करने के लिए सम्बन्धित शोध-संस्थानों को अधिक प्रभावशाली तथा सुरक्षित तरीके खोज निकालने चाहिए।
  16. परिवार नियोजन से सम्बन्धित साधनों से दम्पती न केवल इसमें सक्षम हों कि वे गर्भ से बच सकें, बल्कि वे इच्छानुसार शिक्षा भी प्राप्त कर सकें।

प्रश्न 4
परिवार-कल्याण कार्यक्रम के सम्बन्ध में सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गये हैं ? [2006]
उत्तर:
स्वाधीनता के बहुत पहले ही हमने यह अनुभव कर लिया था कि गरीबी से तब तक नहीं निपटा जा सकता जब तक कि परिवार का आकार सीमित न हो। भारत परिवार नियोजन को सरकारी नीति के रूप में अपनाने वाला पहला देश है। जनसंख्या नियन्त्रण हमारी योजनाओं का एक अभिन्न अंग है। सरकार द्वारा किये गये प्रयासों के कारण जन्म-दर, जो सन् 1951 में 40.8 प्रति हजार से अधिक थी, वह 2011 में घटकर 23 प्रति हजार तक आ गयी है। हमारा लक्ष्य औसत राष्ट्रीय जन्म दर को घटाकर 21 प्रति हजार से भी कम करना है। सन् 1951 के जनगणना आयुक्त ने परिवार नियोजन की आवश्यकता पर बल दिया था। इसलिए प्रथम तथा द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं में सरकार ने कुछ अप्रत्यक्ष प्रयास किये, लेकिन इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। सन् 1961 ई० की जनगणना में हुई जनसंख्या-वृद्धि से सरकार अत्यधिक चिन्तित हुई। अत: 1966 ई० में इसके लिए एक पृथक् स्वतन्त्र विभाग खोला गया।
पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा सरकार जनसंख्या नियन्त्रित करने तथा परिवार कल्याण के लिए निम्नलिखित प्रयास किये हैं

1. परिवार-कल्याण मन्त्रालय की स्थापना – परिवार-कल्याण कार्यक्रमों के उचित संचालन के लिए परिवार कल्याण मन्त्रालय स्थापित किया गया है। यह मन्त्रालय परिवार कल्याण सम्बन्धी कार्यों एवं नीतियों के साथ-साथ इस बात का भी निर्धारण करता है कि परिवार कल्याण कार्यक्रम के अन्तर्गत हमने कितनी सफलता प्राप्त की है।

2. परिवार-कल्याण केन्द्र की स्थापना – जनता को परिवार-कल्याण सम्बन्धी सुविधाएँ उपलब्ध कराने हेतु देश के प्रत्येक भाग में यहाँ तक कि ब्लॉक-स्तर पर परिवार-कल्याण केन्द्रों की स्थापना की गयी है, जिससे जनसाधारण को नियोजन सम्बन्धी सामग्रियाँ; जैसे – ओषधि, निरोध आदि नि:शुल्क वितरित की जाती हैं तथा नसबन्दी कराने की भी सुविधा उपलब्ध रहती है।

3. पुरस्कार एवं दण्ड को प्रावधान – परिवार नियोजन कार्यक्रमों को सफल बनाने हेतु पुरस्कार एवं दण्ड के प्रावधान की व्यवस्था भी की गयी है। इसके अन्तर्गत जिसके तीन या अधिक बच्चे हैं, उनकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया गया है। ऑपरेशन कराने वालों तथा प्रेरकों को कुछ नकद रुपये भी प्रोत्साहन राशि के रूप में दिये जाते हैं। जिन दम्पतियों के दो या दो से कम बच्चे हैं, उन्हें सरकार एक विशेष वार्षिक वेतन वृद्धि दे रही है जिसका लाभ उन्हें सेवाकाल तथा उसके बाद भी मिलती रहता है।

4. अनुकूल जनमत तैयार करना – परिवार नियोजन के प्रचार व प्रसार के लिए समय-समय पर परिवार-कल्याण सप्ताह तथा ऑपरेशन शिविरों का भी प्रबन्ध किया जाता है। स्वास्थ्य शिक्षकों की नियुक्तियाँ भी की गयी हैं। ये गाँवों में घर-घर जाकर परिवार-कल्याण की शिक्षा देते हैं। परिवार नियोजन के प्रति जनमत तैयार करने के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर रेडियो, समाचार-पत्रों, चलचित्रों आदि के माध्यम से प्रचार किया जाता हैं।

5. गर्भपात को वैधानिक मान्यता – हमारे देश में अप्रैल,स सन् 1972 से ‘Medical Termination of Pregnancy Act’ जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में लागू किया गया है। इस कानून के द्वारा गर्भपात को वैधानिक मान्यता प्राप्त हो गयी है।

6. विवाह की आयु में वृद्धि – वैवाहिक आयु की सीमा को बढ़ाकर लड़कियों के लिए 18 वर्ष तथा लड़कों के लिए 21 वर्ष कर दिया गया है।

7. जनसंख्या-शिक्षा – सरकार ने यह अनुभव किया है कि जनसंख्या सम्बन्धी नीतियों एवं कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने हेतु शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सन् 1970 में राष्ट्रीय स्तर पर एक जनसंख्या शिक्षा कोष्ठ’ तथा प्रशिक्षण संस्थाओं के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ की शाखा ‘यूनाइटेड नेशन्स फण्ड फॉर पॉपुलेशन एक्टीविटीज’ के सहयोग से भारत सरकार ने जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम को देश में कार्यान्वित करने के लिए कदम उठाया।

प्रश्न 5
भारत में परिवार-कल्याण कार्यक्रमों के मार्ग में आने वाली बाधाओं को समझाइए। [2009]
उत्तर:
भारत परिवार नियोजन को सरकारी नीति के रूप में अपनाने वाला संसार का पहला देश है। जनसंख्या-नियन्त्रण हमारी विकास योजनाओं का अभिन्न अंग-पूर्णतया स्वैच्छिक है। परिवार-कल्याण कार्यक्रम के मार्ग में अनेक बाधाएँ हैं, जिससे यह कार्यक्रम पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पा रहा है। इस कार्यक्रम की प्रमुख बाधाएँ अग्रलिखित हैं

1. कार्यक्रम जन-अभियान न बन पाना – परिवार-कल्याण कार्यक्रम 50 वर्षों के पश्चात् भी जन-अभियान नहीं बन पाया है। इसका मूल कारण हमारे देश की जटिल सामाजिक व्यवस्था के द्वारा ‘सेक्स शिक्षा’ को हेय दृष्टि से देखना रहा है।

2. कार्यक्रम का पूरा दायित्व महिलाओं पर – परिवार कल्याण कार्यक्रम का पूरा दायित्व महिलाओं पर डाल दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप इस कार्यक्रम की कमर टूट गयी है। गर्भाधान रोकने के सबसे अधिक उपाय महिलाओं के हैं, जबकि पुरुषों के लिए मात्र एक गर्भ निरोधक है, उसे भी एड्स जैसे रोगों से बचाव के माध्यम के रूप में ही प्रचारित किया जा रहा है।

3. भारतीय समाज का पुरुष-प्रधान होना – परिवार-कल्याण कार्यक्रम के अन्तर्गत महिला नसबन्दी की दर तो 35 प्रतिशत तक पहुँच गयी है, परन्तु पुरुष नसबन्दी की दर 3 प्रतिशत से भी कम है। इसका प्रमुख कारण भारतीय समाज का पुरुष-प्रधान होना है, जो परिवार कल्याण कार्यक्रम में बाधक है।

4. अशिक्षा एवं अन्धविश्वास – हमारे देश में अधिकांश व्यक्ति अशिक्षित हैं। इस कारण वे परिवार के आकार के सम्बन्ध में उदासीन रहते हैं। भारत में 26 प्रतिशत तथा उत्तर प्रदेश में 31 प्रतिशत व्यक्ति अशिक्षित हैं। लाखों दम्पतियों, जिनमें से अधिकांश अशिक्षित हैं, को परिवार नियोजन के प्रति सहमत करना कठिन है। सन्तान ईश्वर की देन है और आने वाली सन्तान को नहीं रोका जाना चाहिए, यह धारणा तथा शिक्षा की कमी परिवार नियोजन के विकास में सर्वाधिक बाधक है।

5. आर्थिक व धार्मिक दृष्टि से पुत्र का महत्त्व – धार्मिक दृष्टि से यह समझा जाता है कि पुत्र का जन्म होना अनिवार्य है तथा पुत्र के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं होता। इसलिए परिवार में कई लड़कियाँ होने पर भी पुत्र की अभिलाषा बनी ही रहती है। अधिक आर्थिक समृद्धि अधिक पुत्र सन्तति से ही मिल सकती है, यह धारणा भी परिवार कल्याण कार्यक्रम में बाधक है।

6. राष्ट्रीय भावना की कमी या राजनीतिक कारण – प्रजातन्त्रात्मक सरकार होने के कारण भारत का नागरिक-नेतृत्व किसी भी कार्यक्रम पर राष्ट्रीय दृष्टिकोण से विचार न करके अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण से विचार करता है तथा अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति करता है। यह मनोवृत्ति भी इस कार्यक्रम में बाधक बनती है।

7. धार्मिक मान्यताएँ – भारत में विभिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के व्यक्ति निवास करते हैं। कुछ धर्मावलम्बी इस कार्यक्रम में अपना सहयोग नहीं दे रहे हैं। उनका कहना है कि हमारा धर्म इन कार्यक्रमों को अपनाने की अनुमति नहीं देता है।

8. परिवार-नियोजन की विधियाँ – भारत में परिवार नियोजन की सरल एवं प्रभावी विधियों का अभाव है। भारत में अभी तक केवल एक ही विधि सफल रही है-बन्ध्याकरण। इसलिए उत्तम व श्रेष्ठ तथा सरल विधि का न होना भी परिवार नियोजन कार्यक्रम में बाधक है।

प्रश्न 6
‘जनसंख्या शिक्षा क्या है ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
जनसंख्या शिक्षा वह शिक्षा है जो मनुष्य को विश्व, देश तथा राज्य की जनसंख्या के सभी पक्षों का ज्ञान दे। जनसंख्या और इसकी समस्याओं के प्रति ऐसी अवधारणाओं तथा व्यवहार का विकास करने में सहायक हो, जो व्यक्ति और राष्ट्र के लिए हितकारी हों।
दूसरे शब्दों में, “जनसंख्या शिक्षा एक शैक्षिक प्रयास है, जिसके द्वारा विभिन्न वर्गों, विशेषकर छात्र-छात्राओं को विश्व के परिप्रेक्ष्य में देश, प्रदेश तथा क्षेत्र की जनसंख्या-स्थिति, जनांकिकी के प्रमुख तत्त्वों, जनसंख्या और पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्ध, जनसंख्या-वृद्धि का आर्थिक एवं सामाजिक विकास पर प्रभाव आदि का बोध कराया जा सकेगा। साथ ही जनसंख्या-वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं और जनसाधारण के जीवन-स्तर पर पड़ने वाले प्रभावों के विषय में भी जागरूक कराया जा सकेगा।

जनसंख्या शिक्षा न तो परिवार नियोजन सम्बन्धी कार्यक्रम है, न यौन शिक्षा और न कोई प्रचार या विशिष्ट दीक्षा सम्बन्धी कार्यक्रम। जनसंख्या शिक्षा का स्वरूप अति व्यापक है, जनसंख्या शिक्षा एक, सतत प्रक्रिया है। यह एक बार में ही अपना उद्देश्य पूरा कर समाप्त हो जाने वाली नहीं है। यह एक व्यापक विद्या है, जिसकी उपादेयता वर्तमान में भी है और भविष्य में भी रहेगी, क्योंकि इसका उद्देश्य मानव-कल्याण है।
जनसंख्या शिक्षा मानव जनसंख्या का वह अध्ययन है जिसका सम्बन्ध पर्यावरण से है तथा जिसके द्वारा पर्यावरण को प्रभावित किये बिना मानव-जीवन में गुणात्मक सुधार लाया जा सकता है।
विडरमैन ने लिखा है, “जनसंख्या शिक्षा एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा विद्यार्थी जनसंख्या प्रक्रिया की प्रवृत्ति एवं अर्थ, जनसंख्या की विशेषताओं, जनसंख्या परिवर्तन के कारण एवं परिणाम तथा इन परिवर्तनों के अपने परिवार, अपने समाज तथा विश्व पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है।’

प्रश्न 7
जनसंख्या शिक्षा के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत सरकार ने जनसंख्या सम्बन्धी नीतियों एवं कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने के लिए 1970 ई० में राष्ट्रीय स्तर पर एक ‘जनसंख्या शिक्षा कोष्ठ’ स्थापित किया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की शाखा ‘यूनाइटेड नेशन्स फण्ड फॉर पॉपुलेशन एक्टीविटीज’ के सहयोग से जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम को देश में कार्यान्वित करने के लिए कदम उठाया, जिसके निम्नलिखित उद्देश्य हैं

  1.  जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए हमें जनसाधारण में ऐसी चेतना का विकास करना है। जो व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र के लिए हितकारी हो।
  2. जनसंख्या शिक्षा माध्यम के द्वारा हमें छात्र-छात्राओं को इस योग्य बनाना है कि जो भविष्य में यह निर्णय लेने में सक्षम हों कि उनके परिवार का क्या आकार होना चाहिए।
  3. जनसंख्या शिक्षा के द्वारा राष्ट्र के समस्त निवासियों, विशेष रूप से छात्र-छात्राओं को विश्व के परिप्रेक्ष्य में अपने देश, राज्य एवं क्षेत्र की जनसंख्या स्थिति के सम्बन्ध में जानकारी देना है।
  4. जनसंख्या शिक्षा के माध्यम से जनसाधारण को जनसंख्या में होने वाली वृद्धि के कारणों एवं कुप्रभावों को भी बताना है।
  5.  जनसंख्या शिक्षा के द्वारा जनसंख्या के सिद्धान्तों का ज्ञान तथा उन सिद्धान्तों का परिपालन्। करना भी बताया जाता है।
  6. जनसाधारण को यह बताना कि प्राकृतिक साधनों एवं जनसंख्या का घनिष्ठ सम्बन्ध है और यदि जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधनों का सन्तुलन ठीक है तो यह हमारे सुख का आधार हो सकता है।
  7. जनसंख्या शिक्षा माध्यम के द्वारा मानव अधिकारों का ज्ञान कराना तथा व्यक्तियों में प्रेम और सहानुभूति की भावना का विकास करना।

प्रश्न 8
जनसंख्या शिक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
यह आशंका प्रकट की जाती है कि विश्व की जनसंख्या, जो 1980 ई० में 4 अरब के करीब थी, सन् 2000 तक 6 अरब की संख्या को पार कर चुकी थी। दूसरे शब्दों में, आने वाले दो दशकों में आज पृथ्वी पर जितने लोग रहते हैं उसका आधा हिस्सा उसमें और जुड़ जाएगा, यानि जनसंख्या डेढ़ गुना अधिक हो जाएगी। इस वृद्धि में 90% जनसंख्या की वृद्धि विकासशील देशों में होगी, जो कि पहले से ही भूमि, भोजन, पानी, आवास, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य की समस्याओं से ग्रस्त हैं। इन सब कारणों से आज जनसंख्या शिक्षा का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है। यदि विकासशील देशों को भोजन, आवास, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य की समस्याओं का निवारण करना है तो इन सबका एकमात्र उपाय जनसंख्या शिक्षा है, क्योंकि जनसंख्या शिक्षा के माध्यम से जन्म-दर में गिरावट आएगी तथा जनसंख्या को नियन्त्रित करने में सफलता मिलेगी। उपर्युक्त सभी समस्याओं, विशेष रूप से बेरोजगारी, निर्धनता, भोजन व आवास तथा शिक्षा और स्वास्थ्य की समस्याओं से तब तक सुचारु रूप से नहीं निपटा जा सकता, जब तक कि परिवार का आकार सीमित न हो जिससे हर शिशु को संसाधनों तथा अवसरों का उचित अंश मिल सके। यह सब जनसंख्या शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार द्वारा ही सम्भव है।

प्रश्न 9
नगरीकरण का आर्थिक विकास से क्या सम्बन्ध है? नगरों में जनसंख्या-वृद्धि के क्या कारण हैं?
उत्तर:
किसी भी देश के नगरीकरण में प्रगति उस देश के विकास की गति को सूचित करती है। यही कारण है जिसकी वजह से कहा जाता है कि नगरीकरण व आर्थिक विकास का घनिष्ठ सम्बन्ध है। जिस देश में नगरीकरण का अनुपात जितना अधिक होगा वह देश उतना ही अधिक विकसित होगा।
भारत की सन् 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या की 30 प्रतिशत नगरों में रहती है तथा शेष 70 प्रतिशत गाँवों में। वर्ष 1991 में यह अनुपात 26 : 74 था।
नगरों में जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित हैं

  1.  उद्योगीकरण एवं नवीन उद्योगों का विकास,
  2. देश-विभाजन,
  3. गाँवों की सुरक्षा में कमी,
  4.  नगरों में चिकित्सा, शिक्षा, मनोरंजन प्रशिक्षण व रोजगार की सुविधाओं व क्षमता का होना तथा
  5. जमींदारों की शहरों में बसने की प्रवृत्ति आदि।

भारत में भी नगरों में रहने वाली जनसंख्या का प्रतिशत बढ़ा है, जो वर्तमान में 30 प्रतिशत है, जबकि चेक गणराज्य, स्लोवाकिया में 66 प्रतिशत, रूस और अमेरिका में 77 प्रतिशत, जापान में 79 प्रतिशत, कनाडा में 77 प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया में 85 प्रतिशत व ब्रिटेन में 89 प्रतिशत व्यक्ति शहरों में रहते हैं।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जिन चार महानगरों की आबादी सबसे अधिक है, वे हैं-मुम्बई 1 करोड़ 24 लाख, दिल्ली 1 करोड़ 10 लाख, बंगलुरु 84 लाख व हैदराबाद 68 लाख।।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
भारत में तीव्र जनसंख्या-वृद्धि के किन्हीं चार प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए। [2016]
उत्तर:
जनसंख्या-वृद्धि को रोकने के उपाय
जनसंख्या की समस्या के समाधान के लिए हमें एक साथ कई उपाय करने पड़ेंगे। जन्म-दर को कम करने के लिए तत्कालीन एवं दीर्घकालीन उपाय किये जाने चाहिए। तत्कालीन उपायों में निरोध, नसबन्दी, लूप, ऑपरेशन आदि के लिए लोगों को प्रेरित करना तथा दीर्घकालीन उपायों में विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि, बाल-विवाह पर रोक, मनोरंजन के साधनों में वृद्धि, आत्म-संयम वे ब्रह्मचर्य के पालन के लिए लोगों को प्रेरित करना आदि हैं। इन उपायों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. जन्म-दर में कमी करना – जनसंख्या-वृद्धि को सीमित करने के लिए यह आवश्यक है कि मृत्यु-दरे के साथ-साथ जन्म-दर में भी गिरावट लायी जाए। वर्ष 1951-60 में जन्म-दर 41.7% थी, जो 2011 ई० में 23% हो गयी। जन्म-दर में और अधिक कमी लायी जानी चाहिए।

2. साक्षरता तथा शिक्षा का प्रसार आवश्यक – शिक्षा के माध्यम से ही जन-साधारण में जनसंख्या-वृद्धि के विषय में जागरूकता लायी जा सकेगी। विकसित देशों में जनसंख्या-वृद्धि की समस्या न होने का प्रमुख कारण उनकी शत-प्रतिशत साक्षरता है। भारत में केवल केरल में ही साक्षरता अन्य प्रदेशों की अपेक्षा अधिक है।

3. स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल – जनसंख्या-वृद्धि के परिप्रेक्ष्य में स्त्री-शिक्षा का विशेष महत्त्व है। केरल में स्त्रियों की साक्षरता प्रतिशत 91.98 है, जबकि उत्तर प्रदेश में 59.26 है। इसी कारण से उत्तर प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि की दर भी उच्च है। अत: जनसंख्या-वृद्धि पर नियन्त्रण हेतु स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल देने की आवश्यकता है।

4. विवाह सम्बन्धी कानूनों का सख्ती से पालन – यद्यपि विवाह की न्यूनतम आयु कानूनी तौर पर निर्धारित है। बाल-विवाह वर्जित है, फिर भी ये बुराइयाँ समाज में यथावत् बनी हुई हैं। इनका सख्ती से पालन किया जाना भी आवश्यक है। इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाया जा सकता है।

प्रश्न 2
जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले चार प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए। [2016]
उत्तर:
किसी स्थान-विशेष पर जनसंख्या का घनत्व निम्नलिखित मुख्य तत्त्वों द्वारा प्रभावित होता है

1. जलवायु – जनसंख्या का घनत्व जलवायु पर निर्भर करता है। जिस क्षेत्र यो स्थान की जलवायु उत्तम और स्वास्थ्यवर्द्धक होती है, वहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। इसके विपरीत, यदि किसी स्थान की जलवायु अधिक गर्म या अधिक ठण्डी होती है तो ऐसे स्थान पर जनसंख्या का घनत्व कम होता है।

2. वर्षा – जिन स्थानों पर वर्षा न तो बहुत अधिक होती है और न ही बहुत कम, उन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। इसके विपरीत, जिन स्थानों पर अत्यधिक वर्षा होती है या बहुत कम वर्षा होती है, उन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व भी कम पाया जाता है। यही कारण है कि राजस्थान में वर्षा कम होने के कारण तथा असम में अधिक वर्षा होने के कारण जनसंख्या का घनत्व कम है।

3. भूमि की बनावट व उर्वरा-शक्ति – मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा पर्वतीय तथा पठारी क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व कम होता है, क्योंकि ऊँची-नीची भूमि होने के कारण कृषि कार्य करने तथा उद्योगों को स्थापित करने में कठिनाई होती है। इसके विपरीत, मैदानी भागों में मिट्टी समतल व अधिक उपजाऊ होती है इसलिए इन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में गंगा-यमुना के मैदानी भाग में जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

4. सिंचाई की सुविधाएँ – जिन क्षेत्रों में वर्षा की कमी को सिंचाई के साधनों द्वारा पूरा कर लिया जाता है या ज़िन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती हैं, उन क्षेत्रों में भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।

प्रश्न 3
भारत में जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए कोई चार उपाय बताइए। [2010, 12, 14]
उत्तर:
जनसंख्या की समस्या के समाधान के लिए हमें एक साथ कई उपाय करने पड़ेंगे। जन्म-दर को कम करने के लिए तत्कालीन एवं दीर्घकालीन उपाय किये जाने चाहिए। तत्कालीन उपायों में निरोध, नसबन्दी, लूप, ऑपरेशन आदि के लिए लोगों को प्रेरित करना तथा दीर्घकालीन उपायों में विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि, बाल-विवाह पर रोक, मनोरंजन के साधनों में वृद्धि, आत्म-संयम वे ब्रह्मचर्य के पालन के लिए लोगों को प्रेरित करना आदि हैं। इन उपायों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. जन्म-दर में कमी करना – जनसंख्या-वृद्धि को सीमित करने के लिए यह आवश्यक है कि मृत्यु-दरे के साथ-साथ जन्म-दर में भी गिरावट लायी जाए। वर्ष 1951-60 में जन्म-दर 41.7% थी, जो 2011 ई० में 23% हो गयी। जन्म-दर में और अधिक कमी लायी जानी चाहिए।

2. साक्षरता तथा शिक्षा का प्रसार आवश्यक – शिक्षा के माध्यम से ही जन-साधारण में जनसंख्या-वृद्धि के विषय में जागरूकता लायी जा सकेगी। विकसित देशों में जनसंख्या-वृद्धि की समस्या न होने का प्रमुख कारण उनकी शत-प्रतिशत साक्षरता है। भारत में केवल केरल में ही साक्षरता अन्य प्रदेशों की अपेक्षा अधिक है।

3. स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल – जनसंख्या-वृद्धि के परिप्रेक्ष्य में स्त्री-शिक्षा का विशेष महत्त्व है। केरल में स्त्रियों की साक्षरता प्रतिशत 91.98 है, जबकि उत्तर प्रदेश में 59.26 है। इसी कारण से उत्तर प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि की दर भी उच्च है। अत: जनसंख्या-वृद्धि पर नियन्त्रण हेतु स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल देने की आवश्यकता है।

4. विवाह सम्बन्धी कानूनों का सख्ती से पालन – यद्यपि विवाह की न्यूनतम आयु कानूनी तौर पर निर्धारित है। बाल-विवाह वर्जित है, फिर भी ये बुराइयाँ समाज में यथावत् बनी हुई हैं। इनका सख्ती से पालन किया जाना भी आवश्यक है। इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाया जा सकता है।

5. मनोरंजन के साधनों में वृद्धि – विशेष रूप से ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में मनोरंजन के साधनों में वृद्धि की जानी चाहिए। इनमें सिनेमा, सार्वजनिक दूरदर्शन की व्यवस्था, शिक्षाप्रद छोटी-छोटी फिल्मों का प्रदर्शन, अखाड़े, खेल-कूद प्रतियोगिताएँ आदि मुख्य हैं। मनोरंजन के साधनों में वृद्धि होने से जनसंख्या-वृद्धि पर भी नियन्त्रण लगेगा।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
जनसंख्या के घनत्व की परिभाषा अपने शब्दों में दीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या के घनत्व से अभिप्राय मनुष्य-भूमि अनुपात से है अर्थात् “किसी देश के प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या को जनसंख्या का घनत्व कहते हैं।”

प्रश्न 2
परिवार-कल्याण कार्यक्रम के मार्ग में उत्पन्न होने वाली चार बाधाएँ लिखिए।
उत्तर:
परिवार-कल्याण कार्यक्रम के मार्ग में निम्नलिखित चार बाधाएँ उत्पन्न होती हैं

  1. अशिक्षा एवं अन्धविश्वास,
  2. राष्ट्रीय भावना की कमी,
  3. परिवार-कल्याण कार्यक्रम का जन अभियान न बन पाना तथा
  4. भारतीय समाज का पुरुष-प्रधान होना।

प्रश्न 3
जन्म-दर से आप क्या समझते हैं? भारत में जन्म-दर के नवीनतम आँकड़े दीजिए।
उत्तर:
जन्म-दर से अर्थ एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के पीछे बच्चों के जन्म से है। वर्ष 2011 में यह 23 प्रति हजार हो गयी। यह दर अन्य देशों की तुलना में अत्यधिक ऊँची है।

प्रश्न 4
मृत्यु-दर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मृत्यु-दर से अर्थ एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के पीछे मृत्युओं की संख्या से है। भारत में इस दर में भी अत्यधिक कमी हुई है। वर्ष 2011 में यह 9 प्रति हजार है। यह अन्य देशों की तुलना में ऊँची है।

प्रश्न 5
जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न होने वाली दो समस्याओं को लिखिए। [2008, 13]
या
भारत में जनसंख्या-वृद्धि के कोई दो दुष्प्रभाव लिखिए। [2015]
उत्तर:
(1) खाद्य-सामग्री की आपूर्ति की समस्या।
(2) आवास की समस्या।

प्रश्न 6
जनसंख्या का घनत्व किस प्रकार ज्ञात किया जाता है?
उत्तर:
देश के कुलं भूमि क्षेत्रफल को कुल जनसंख्या से भाग देने पर जनसंख्या का घनत्व ज्ञात किया जाता है।

प्रश्न 7
परिवार नियोजन के दो लाभ बताइए। [2009]
उत्तर:
(1) देश के आर्थिक विकास का आधार।
(2) बेरोजगारी कम करने की अचूक औषधि।

प्रश्न 8
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या कितनी है? [2011, 15]
उत्तर:
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 102.7 करोड़ है।

प्रश्न 9
वर्ष 1951 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या कितनी थी?
उत्तर:
वर्ष 1951 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 36.11 करोड़ थी।

प्रश्न 10
वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार पुरुष जनसंख्या तथा स्त्री जनसंख्या बताइए।
उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 62.37 करोड़ पुरुष एवं 58.64 करोड़ स्त्री जनसंख्या है।

प्रश्न 11
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पुरुष-स्त्री प्रतिशत बताइए।
उत्तर:
2011 की जनगणना के अनुसार पुरुष 51.73 प्रतिशत तथा स्त्री 48.27 प्रतिशत है।

प्रश्न 12
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में जनसंख्या का घनत्व कितना है?
उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में जनसंख्या का घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है।

प्रश्न 13
किस राज्य में जनसंख्या का घनत्व सर्वाधिक है? [2008, 11,14]
उत्तर:
सर्वाधिक जनसंख्या का घनत्व बिहार में (1,102 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी) है।

प्रश्न 14
किस राज्य में जनसंख्या का घनत्व सबसे कम है? [2009]
उत्तर:
सवसे कम जनसंख्या का घनत्व अरुणाचल प्रदेश में (17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी) है।

प्रश्न 15
केन्द्रशासित क्षेत्रों में सर्वाधिक जनसंख्या का घनत्व किसका है?
उत्तर:
केन्द्रशासित क्षेत्रों में सर्वाधिक जनसंख्या का घनत्व दिल्ली में (11, 297 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी) है।

प्रश्न 16
केन्द्रशासित क्षेत्रों में सबसे कम जनसंख्या का घनत्व किसका है?
उत्तर:
केन्द्रशासित क्षेत्रों में सबसे कम जनसंख्या का घनत्व अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में (46 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी) है।

प्रश्न 17
2011 की जनगणना के आधार पर भारत में साक्षरता-दर क्या थी?
उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर भारत की साक्षरता-दर 74.04 प्रतिशत थी।

प्रश्न 18
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पुरुष साक्षरता-दर क्या थी?
उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पुरुषों में साक्षरता दर 82.14 प्रतिशत थी।

प्रश्न 19
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार स्त्री की साक्षरता दर क्या थी?
उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार स्त्री साक्षरता दर 65.46 प्रतिशत थी।

प्रश्न 20
भारत के किस राज्य में साक्षरता का प्रतिशत सबसे अधिक है? [2014]
या
भारत में सर्वाधिक साक्षरता वाला राज्य कौन-सा है? [2014]
उत्तर:
सर्वाधिक साक्षरता दर केरल में (93.91) प्रतिशत है।

प्रश्न 21
सबसे कम साक्षरता दर किस राज्य में है?
उत्तर:
सबसे कम साक्षरता दर बिहार राज्य में (63.82 प्रतिशत) है।

प्रश्न 22
देश में सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य कौन-सा है? [2013, 15, 16]
या
भारत के किस राज्य में जनसंख्या सर्वाधिक है?  [2015]
उत्तर:
उत्तर प्रदेश देश में सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है।

प्रश्न 23
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की जनसंख्या कितनी थी?
उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की जनसंख्या (19.95) करोड़ थी।

प्रश्न 24
भारत में सर्वप्रथम नियमित रूप से जनगणना कब प्रारम्भ हुई? [2007, 08]
उत्तर:
भारत में 1881 ई० में सर्वप्रथम नियमित रूप में अखिल भारतीय जनगणना सम्पन्न हुई।
या
भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम प्रथम पंचवर्षीय योजना में 1952 से आरम्भ किया गया था।

प्रश्न 25
भारत में अन्तिम जनगणना कब हुई तथा अगली जनगणना कब होगी?
उत्तर:
भारत में अन्तिम जनगणना सन् 2011 में हुई तथा अगली जनगणना वर्ष 2021 में होगी।

प्रश्न 26
जनसंख्या विस्फोट का क्या अर्थ है? [2011, 15]
उत्तर:
तीव्र गति से जनसंख्या का बढ़ना, जनसंख्या विस्फोट कहलाता है।

प्रश्न 27
जनसंख्या के घनत्व का सूत्र लिखिए। [2014, 15, 16]
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 19 Development of Indian Population 1
प्रश्न 28
तीव्र जनसंख्या वृद्धि के किन्हीं चार दुष्परिणामों का उल्लेख कीजिए। [2008, 13, 16]
उत्तर:
(1) यह आर्थिक प्रगति में बाधक है।
(2) इससे खाद्य एवं बेरोजगारी की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
(3) प्रति व्यक्ति उत्पादकता में कमी आती है।
(4) उपभोग व्यय बढ़ जाने के कारण बचत एवं पूँजी निर्माण की दर कम होती है।

प्रश्न 29
परिवार कल्याण कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु चार सुझाव दीजिए। [2008]
उत्तर:

  1. कमजोर वर्गों को इस अभियान का केन्द्रबिन्दु बनाया जाए।
  2.  गहन परिवार जिला कार्यक्रमों का संचालन किया जाए।
  3. शिक्षा का प्रसार किया जाए।
  4.  बन्ध्यकरण के लिए विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
भारत का विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से स्थान है
(क) पहला
(ख) दूसरा
(ग) तीसरा
(घ) चौथा
उतर:
(ख) दूसरा।

प्रश्न 2
भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम है
(क) सफल
(ख) असफल
(ग) सन्तोषजनक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) असफल।

प्रश्न 3
जनसंख्या घनत्व का अभिप्राय है
(क) देश में घनी जनसंख्या वाला क्षेत्र
(ख) देश की सम्पूर्ण जनसंख्या
(ग) प्रति वर्ग किलोमीटर निवास करने वालों की औसत संख्या
(घ) उत्पादन कार्य में लगी हुई जनसंख्या
उत्तर:
(ग) प्रति वर्ग किलोमीटर निवास करने वालों की औसत संख्या।

प्रश्न 4
वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या थी
(क) 43.92 करोड़
(ख) 54.82 करोड़
(ग) 68.33 करोड़
(घ) 84.63 करोड़
उत्तर:
(घ) 84.63 करोड़।

प्रश्न 5
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में स्त्री-पुरुष अनुपात (प्रति हजार पुरुषों पर महिलाएँ है
(क) 930
(ख) 934
(ग) 927
(घ) 940
उत्तर:
(घ) 940.

प्रश्न 6
भारत का सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य है
(क) महाराष्ट्र
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) केरल
(घ) बिहार
उत्तर:
(ग) केरल।

प्रश्न 7
भारत में जनसंख्या का ( 2011 के अनुसार) प्रति वर्ग किलोमीटर घनत्व है
(क) 274
(ख) 382
(ग) 300
(घ) 364
उत्तर:
(ख) 382.

प्रश्न 8
भारत में विश्व की कितने प्रतिशत आबादी निवास करती है?
(क) 17.5%
(ख) 20.6%
(ग) 12.4%
(घ) 18.8%
उत्तर:
(क) 17.5%.

प्रश्न 9
उत्तर प्रदेश में भारत की जनसंख्या निवास करती है
(क) 20.6%
(ख) 12.4%
(ग) 16.6%
(घ) 18.8%
उत्तर:
(ग) 16.6%.

प्रश्न 10
देश के किस महानगर में सबसे अधिक जनसंख्या है ?
(क) दिल्ली
(ख) मुम्बई
(ग) कोलकाता
(घ) चेन्नई
उत्तर:
(ख) मुम्बई।।

प्रश्न 11
नयी जनसंख्या नीति में किस वर्ष तक जनसंख्या को स्थिर करने का लक्ष्य रखा गया है?
(क) 2015 ई० तक
(ख) 2025 ई० तक
(ग) 2035 ई० तक
(घ) 2045 ई० तक
उत्तर:
(घ) 2045 ई० तक।

प्रश्न 12
जनसंख्या का घनत्व दर्शाता है [2014]
(क) पूँजी-भूमि अनुपात
(ख) भूमि-उत्पाद अनुपात
(ग) भूमि-श्रम अनुपात
(घ) व्यक्ति- भूमि अनुपात
उत्तर:
(घ) व्यक्ति-भूमि अनुपात।।

प्रश्न 13
भारत के जनसंख्या इतिहास में महान विभाजन वर्ष है [2002]
(क) 1901
(ख) 1921
(ग) 1931
(घ) 1951
उत्तर:
(ख) 1921

प्रश्न 14
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन 2011 की जनगणना के अनुसार सही है?
(क) भारत में लिंगानुपात घट रहा है।
(ख) भारत में लिंगानुपात स्थिर रहा है।
(ग) भारत में लिंगानुपात बढ़ा है।
(घ) भारत में लिंगानुपात के बारे में सूचना उपलब्ध नहीं है।
उत्तर:
(ग) भारत में लिंगानुपात बढ़ा है।

प्रश्न 15
निम्न में से किस दशक में जनसंख्या की वृद्धि दर अधिकतम रही?
(क) 1961-1971
(ख) 1971-1981
(ग) 1981-1991
(घ) 1991-2001
उत्तर:
(क) 1961-1971

प्रश्न 16
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा किस वर्ष की गयी थी? [2007, 08, 10, 11, 14, 15, 16]
(क) 1999
(ख) 2000
(ग) 2001
(घ) 2002
उत्तर:
(ख) 2000

प्रश्न 17
सन् 2001 की जनसंख्या के अनुसार 1991-2001 के मध्य जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि कितनी थी ? [2008]
(क) 2.5%
(ख) 2.2%
(ग) 2.1%
(घ) 1.9%
उत्तर:
(क) 2.5%

प्रश्न 18
भारत में परिवार-नियोजन कार्यक्रम किस वर्ष प्रारम्भ किया गया था? [2018, 14]
(क) 1949 में
(ख) 1952 में
(ग) 1972 से
(घ) 1977 से
उत्तर:
(ख) 1952 में।

प्रश्न 19
निम्नलिखित में से किस वर्ष में राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन हुआ? [2010]
(क) 1998
(ख) 2000
(ग) 2001
(घ) 2002
उत्तर:
(ख) 2000

प्रश्न 20
राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का पदेन अध्यक्ष होता है [2012, 14]
(क) भारत का राष्ट्रपति
(ख) भारत का उपराष्ट्रपति
(ग) भारत का प्रधानमंत्री
(घ) भारत का स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मन्त्री
उत्तर:
(घ) भारत का स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मन्त्री।

प्रश्न 21
भारत के किस राज्य में लिंगानुपात सर्वाधिक है? [2013, 16]
(क) केरल
(ख) पंजाब
(ग) राजस्थान
(घ) हिमाचल प्रदेश
उत्तर:
(क) केरल।

प्रश्न 22
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर कितनी है? [2014]
(क) 1.00%
(ख) 1.50%
(ग) 1.64%
(घ) 1.92%
उत्तर:
(ग) 1.64%.

प्रश्न 23
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कितनी जनसंख्या है? [2014, 15]
(क) 100 करोड़
(ख) 105 करोड़
(ग) 121 करोड़
(घ) 122 करोड़
उत्तर:
(ग) 121 करोड़।

प्रश्न 24
भारत में जनगणना की जाती है, प्रत्येक [2015]
(क) 5 वर्ष में
(ख) 8 वर्ष में
(ग) 10 वर्ष में
(घ) 20 वर्ष में
उत्तर:
(ग) 10 वर्ष में।

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Subject Civics
Chapter Chapter 18
Chapter Name Public Services in India: Public Service Commission
(भारत में सार्वजनिक सेवाएँ-लोक सेवा आयोग)
Number of Questions Solved 31
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 18 Public Services in India: Public Service Commission (भारत में सार्वजनिक सेवाएँ-लोक सेवा आयोग)

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
संघीय लोक सेवा आयोग के गठन और कार्यों पर प्रकाश डालिए। [2008, 09, 10, 11, 12, 14, 15]
या
संघ लोक सेवा आयोग के कार्यों पर प्रकाश डालिए। [2009]
या
भारत में सार्वजनिक सेवाओं की कार्यप्रणाली का उल्लेख कीजिए। [2013]
या
संघ लोक सेवा आयोग के गठन और कार्यों को स्पष्ट कीजिए। [2016]
उत्तर :
संविधान के अनुच्छेद 315 (1) के अनुसार, भारत में अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के पदाधिकारियों की नियुक्ति को व्यवस्थित करने तथा तविषयक नियुक्तियों के निमित्त प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं को संचालित करने हेतु संघ लोक सेवा आयोग की व्यवस्था की गयी है।

सदस्यों की संख्या एवं नियुक्ति – संघ लोक सेवा आयोग, अखिल भारतीय सेवाओं तथा संघ लोक सेवाओं के सदस्यों की भर्ती, पदोन्नति एवं अनुशासन की कार्यवाही इत्यादि के सम्बन्ध में सरकार को परामर्श देता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 (1) से धारा 323 तक, संघ लोक सेवा आयोग के संगठन तथा कार्यों इत्यादि का विस्तृत वर्णन किया गया है। वर्तमान में संघीय लोक सेवा आयोग में 1 अध्यक्ष तथा 10 सदस्यों की व्यवस्था की गयी है। सदस्यों की संख्या राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करती है तथा अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति ही करता है।

योग्यताएँ – किसी भी योग्य नागरिक को संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य नियुक्त किया जा सकता है। आयोग का सदस्य नियुक्त होने के लिए सामान्य योग्यताओं के अतिरिक्त निम्नलिखित योग्यताएं होनी आवश्यक हैं –

  1. वह 65 वर्ष से कम आयु का हो।
  2. दिवालिया, पागल अथवा विवेकहीन न हो।
  3. संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों में से कम-से-कम आधे सदस्य ऐसे व्यक्ति होने चाहिए जो कम-से-कम दस वर्ष तक भारत सरकार अथवा राज्य सरकार के अधीन किसी पद पर कार्य कर चुके हों।

सदस्यों की कार्यावधि – संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति 6 वर्ष के लिए होती है। लेकिन यदि कोई सदस्य इससे पूर्व ही 65 वर्ष का हो जाता है तो उसे अपना पद त्यागना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, उच्चतम न्यायालय के परामर्श पर राष्ट्रपति इन्हें पदच्युत भी कर सकता

पद-मुक्ति – संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यगण अपनी इच्छानुसार राष्ट्रपति को त्याग-पत्र देकर अपने पद से मुक्त भी हो सकते हैं। इसके साथ ही भारत का राष्ट्रपति निम्नलिखित परिस्थितियों में उन्हें अपदस्थ भी कर सकता है –

  1. उन पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया जाए और वह उच्चतम न्यायालय में सत्य सिद्ध हो जाए।
  2. यदि वे वेतन प्राप्त करने वाली अन्य कोई सेवा करने लगे।
  3. यदि वे न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित कर दिये जाएँ।।
  4. यदि वे शारीरिक अथवा मानसिक रूप से कः पालन के अयोग्य सिद्ध हो जाएँ।

वेतन, भत्ते एवं सेवा-शर्ते – आयोग के सदस्यों के वेतन, भत्ते एवं सेवा-शर्तों को निर्धारित करने का अधिकार राष्ट्रपति को प्रदान किया गया है। किसी सदस्य के वेतन, भत्ते एवं सेवा-शर्ते को उसकी पदावधि में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।

संघ लोक सेवा आयोग के कार्य

डॉ० मुतालिब ने आयोग के कार्यों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया है – (1) कार्यकारी, (2) नियामक तथा (3) अर्धन्यायिक। परीक्षाओं के माध्यम से लोक महत्त्व के पदों पर प्रत्याशियों का चयन करना आयोग का कार्यकारी कर्तव्य है। भर्ती की पद्धतियों तथा नियुक्ति, पदोन्नति एवं विभिन्न सेवाओं में स्थानान्तरण आदि आयोग के नियामक प्रकृति के कार्य हैं। लोक सेवाओं से सम्बन्धित अनुशासन के मामलों पर सलाह देना आयोग को न्यायिक कार्य है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 320 के अनुसार लोक सेवा आयोग को निम्नांकित कार्य सौंपे गये हैं –

1. परीक्षाओं का आयोजन – संघ लोक सेवा आयोग का प्रमुख कार्य अखिल भारतीय लोक सेवाओं के लिए योग्यतम व्यक्तियों का चयन करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु यह अनेक प्रतियोगी परीक्षाएँ आयोजित करता है। इन परीक्षाओं में जो अभ्यर्थी अपनी योग्यता से पर्याप्त अंक पाता है, उसका चयन कर लिया जाता है। इसके बाद इन व्यक्तियों को सरकारी पदों पर नियुक्ति करने के लिए यह आयोग सरकार से सिफारिश करता है। कुछ पदों के लिए आयोग द्वारा मौखिक परीक्षाओं की व्यवस्था भी की गयी है। मौखिक परीक्षाओं में सफल होने पर सफल अभ्यर्थियों को निर्धारित पदों पर नियुक्त कर दिया जाता है।

2. राष्ट्रपति को प्रतिवेदन – संघीय लोक सेवा आयोग को अपने कार्यों से सम्बन्धित एक वार्षिक रिपोर्ट (प्रतिवेदन) राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करनी पड़ती है। यदि सरकार इस आयोग द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट की कोई सिफारिश नहीं मानती है तो राष्ट्रपति इसका कारण रिपोर्ट में लिख देता है और इसके उपरान्त संसद इस पर विचार करती है। इस रिपोर्ट का लाभ यह है। कि इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि किन विभागों में इस आयोग ने स्वेच्छा से कितनी नियुक्तियाँ की हैं और सरकार ने कहाँ तक आयोग के कार्यों में हस्तक्षेप किया है।

3. संघ सरकार को परामर्श – संघ लोक सेवा आयोग अखिल भारतीय लोक सेवाओं के कर्मचारियों की नियुक्ति की विधि, पदोन्नति, स्थानान्तरण आदि के विषय में संघ सरकार को परामर्श देता है। यह सरकारी कर्मचारियों की किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक क्षति हो जाने पर संघ सरकार को उनकी क्षतिपूर्ति का परामर्श भी देता है और उससे सिफारिश भी करता है। यद्यपि सरकार आयोग के परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है, किन्तु सामान्यतः आयोग की सिफारिशों तथा उसके परामर्श को स्वीकार कर ही लिया जाता है, क्योकि आयोग के सदस्य बहुत कुशल और अनुभवी होते हैं।

4. विशेष सेवाओं की योजना सम्बन्धी सहायता – उस दशा में जब दो या दो से अधिक राज्य किन्हीं विशेष योग्यता वाली सेवाओं के लिए भर्ती की योजना बनाने या चलाने की प्रार्थना करें तो संघ लोक सेवा आयोग उन्हें ऐसा करने में सहायता करता है।

प्रश्न 2
राज्य लोक सेवा आयोग के गठन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए। [2007]
या
राज्य के लोक सेवा आयोग के गठन की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
राज्य लोक सेवा आयोग या उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग

प्रत्येक राज्य का एक लोक सेवा आयोग होता है। अतः उत्तर प्रदेश राज्य का अपना एक लोक सेवा आयोग है।

रचना या संगठन (सदस्यों की नियुक्ति) – उत्तर प्रदेश अथवा अन्य किसी राज्य के लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति, सदस्यों की संख्या तथा उनकी सेवा-शर्तों का निर्धारण राज्यपाल करता है। उत्तर प्रदेश राज्य के लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या वर्तमान समय में 9 है। इनमें से एक सदस्य अध्यक्ष का कार्य करता है।

योग्यताएँ व कार्यकाल – राज्य लोक सेवा आयोग में भी कम-से-कम आधे सदस्य ऐसे होने आवश्यक हैं जो कम-से-कम 10 वर्ष तक केन्द्र अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन किसी पद पर कार्य कर चुके हों। आयोग के सदस्यों की नियुक्ति 6 वर्ष के लिए होती है, परन्तु यदि कोई सदस्य 6 वर्ष पूर्व ही 62 वर्ष का हो जाता है तो उसे अपने पद से सेवानिवृत्त होना होता है। कोई भी सदस्य 6 वर्ष के कार्यकाल अथवा 62 वर्ष की आयु के पूर्व स्वयं भी राज्यपाल को अपना त्याग-पत्र दे सकता है।

पद से हटाना – राज्यपाल आयोग के अध्यक्ष अथवा किसी सदस्य को दुराचार या दुर्व्यवहार के आरोप के आधार पर पदच्युत कर सकता है, परन्तु इसके पूर्व उच्चतम न्यायालय से इन आरोपों की जाँच और पुष्टि आवश्यक है। उच्चतम न्यायालय से जाँच की अवधि में राज्यपाल सम्बन्धित सदस्य को निलम्बित कर सकता है।

इसके अतिरिक्त, निम्नलिखित परिस्थितियों में भी राज्यपाल को अधिकार होता है कि वह राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को पदच्युत कर सके

  1. यदि न्यायालय ने उसे दिवालिया घोषित कर दिया हो।
  2. यदि वह अपने पद के अलावा अन्य कोई नौकरी या वेतनभोगी कार्य करने लगा हो।
  3. यदि वह किसी शारीरिक या मानसिक असाध्य रोग से पीड़ित हो गया हो।

सदस्यता पर प्रतिबन्ध व छूटें – संविधान द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग के सभापति एवं सदस्य बनने के सम्बन्ध में कुछ प्रतिबन्ध भी लगाये गये हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. कोई भी व्यक्ति एक बार सदस्यता की अवधि समाप्त हो जाने पर दुबारा उसी राज्य के लोक सेवा आयोग का सदस्य नहीं बन सकता।
  2. राज्य लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य अवधि समाप्त होने पर उसी आयोग का सभापति तथा अन्य किसी राज्य के आयोग का सदस्य या सभापति बन सकता है।
  3. किसी राज्य लोक सेवा आयोग का सभापति (चेयरमैन) अवधि की समाप्ति पर संघीय लोक सेवा आयोग का सदस्य या सभापति अथवा किसी दूसरे राज्य के लोक सेवा आयोग का सभापति बन सकता है।
  4. राज्य लोक सेवा आयोग की सदस्य या सभापति संघ अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन अथवा उससे बाहर कोई भी नौकरी नहीं कर सकता।

ये प्रतिबन्ध आयोग के सदस्यों की निष्पक्षता को बनाये रखने के लिए लगाये गये हैं।

वेतन, भत्ते व सेवा-शर्ते – राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों को राज्यपाल द्वारा निर्धारित वेतन व भत्ते मिलते हैं। आयोग के सदस्यों व अन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्ते आदि राज्य की संचित निधि से दिये जाते हैं और उनके लिए विधानमण्डल की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती। राज्य आयोग के सदस्यों के वेतन, भत्तों, छुट्टी, पेन्शन तथा सेवा की शर्तों में उनके कार्यकाल में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।

राज्य लोक सेवा आयोग के कार्य

उत्तर प्रदेश या अन्य किसी राज्य के लोक सेवा आयोग के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं

1. प्रतियोगी परीक्षाओं की व्यवस्था – राज्य लोक सेवा आयोगका प्रमुख कार्य राज्य की सरकारी सेवाओं के पदों पर नियुक्ति के लिए मौखिक या लिखित, अथवा दोनों ही प्रकार की प्रतियोगिता परीक्षाओं की व्यवस्था करना और उनके परिणामों के आधार पर उम्मीदवारों का चयन करके उनकी नियुक्ति के लिए राज्यपाल से सिफारिश करना है।

2. परामर्श देना – संविधान में की गयी व्यवस्था के अनुसार राज्य लोक सेवा आयोग का कार्य निम्नलिखित विषयों में राज्यपाल को परामर्श देना है –

  1. असैनिक सेवाओं तथा असैनिक पदों पर भर्ती की प्रणाली के सम्बन्ध में परामर्श।
  2. असैनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्ति, पदोन्नति, पदावनति तथा स्थानान्तरण के सम्बन्ध में अपनाये जाने वाले नियमों के सम्बन्ध में परामर्श।
  3. असैनिक सेवाओं में राज्य सरकार के अधीन काम करने वाले कर्मचारियों के अनुशासन के सम्बन्ध में परामर्श।
  4. राज्य सरकार के किसी कर्मचारी द्वारा सरकारी कार्य को पूरा करते हुए शारीरिक चोट या धन की क्षतिपूर्ति के लिए किये गये दावे के सम्बन्ध में परामर्श।
  5. राज्य सरकार के किसी कर्मचारी द्वारा पेन्शन या सरकारी मुकदमे में अपनी रक्षा में व्यय किये गये धन की क्षतिपूर्ति के दावे के सम्बन्ध में परामर्श।
  6. राज्यपाल द्वारा भेजे गये अन्य किसी भी मामले के सम्बन्ध में परामर्श

3. वार्षिक रिपोर्ट देना – राज्य लोक सेवा आयोग को अपने कार्यों की वार्षिक रिपोर्ट राज्यपाल के पास भेजनी होती है। राज्यपाल द्वारा यह रिपोर्ट विधानमण्डल के दोनों सदनों के समक्ष रखी जाती है। रिपोर्ट में आयोग द्वारा अपनी उन सिफारिशों का भी उल्लेख किया जाता है। जो राज्य सरकार द्वारा न मानी गयी हों। सरकार को इस सम्बन्ध में विधानमण्डल के समक्ष अपना स्पष्टीकरण देना होता है।

प्रश्न 3.
भारतीय सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार पर एक निबन्ध लिखिए। [2016]
उत्तर :
भारतीय सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार

शाब्दिक अर्थों में भ्रष्टाचार का आशय भ्रष्ट अथवा बिगड़े हुए आचरण से है। सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार का अभिप्राय ऐसे आचरण से है, जिसकी आशा लोक सेवकों से नहीं की जाती। लोक सेवकों द्वारा प्राप्त शक्ति, सत्ता एवं स्थिति का उपयोग जन-कल्याण की अपेक्षा अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु किया जाना ही ‘भ्रष्ट आचरण’ माना जाता है। किसी व्यक्ति के किसी कार्य को करने के बदले रिश्वत लेना, भेंट स्वीकार करना, बेईमानी, गबन, अपने पुत्र-पुत्रियों एवं सगे-संबंधियों को नौकरी दिलाना, अवैध एवं अनुचित तरीकों से धन प्राप्त करना, अपनी सरकारी स्थिति एवं प्रभाव का दुरुपयोग अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु करना आदि लोक सेवकों के भ्रष्ट आचरण के प्रकार हैं।

सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार के कारण।

भारतीय सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार के प्रमुख रूप से निम्नलिखित कारण हैं।

1. अंग्रेजों की धरोहर – स्वाधीनता पूर्व ब्रिटिश भारत में उच्चाधिकारियों में भ्रष्टाचार कितना अधिक व्याप्त था इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन समय में वायसराय अथवा गवर्नर अपने पद से अवकाश ग्रहण करने से पूर्व राजाओं से विदाई लेने के नाम पर देशी रियासतों का दौरा किया करते थे, यद्यपि इनका वास्तविक प्रयोजन उनसे उपहार एवं भेटें प्राप्त करना होता था।

2. युद्धकालीन परिस्थितियाँ – द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप उत्पन्न परिस्थितियों के कारण देश में खाद्यान्नों सहित अन्य वस्तुओं का इतना अधिक अभाव हो गया कि सरकार ने बाध्य होकर व्यापार करने हेतु लाइसेंस एवं परमिट देना आरम्भ कर दिया। इससे भी भ्रष्टाचार को काफी प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। आजादी के पश्चात् देश के त्वरित आर्थिक विकास हेतु उपयुक्त योजनाओं का निर्माण करने तथा उपलब्ध समस्त संसाधनों पर प्रभावी नियन्त्रण स्थापित करने और उपभोक्ताओं को समस्त वस्तुओं एवं सामग्री का वितरण राशन प्रणाली के आधार पर सीमित मात्रा में करने के उद्देश्य की पूर्ति हेतु लाइसेंस, परमिट और कोटा की व्यवस्था प्रारम्भ की गई। इस व्यवस्था के अंतर्गत कारखानों से निश्चित मात्रा में वस्तुएँ प्राप्त करने के परमिट एवं अधिकार-पत्र कुछ विशेष व्यक्तियों को ही दिए जाने लगे। इस व्यवस्था का कु-परिणाम देश में व्यापक रूप से कालाबाजारी शुरू होने के रूप में सामने आया।

3. नैतिक मूल्यों में गिरावट – किसी भी विकसित समाज में शहरीकरण और औद्योगीकरण पर निरन्तर बल प्रदान किया जाता है, जिससे सामाजिक एवं वैयक्तिक मूल्यों में तथा आगे भौतिक मूल्यों में गिरावट आती है। विकास एवं समृद्धि बढ़ने के साथ-साथ मनुष्य की भौतिक आवश्यकताएँ बढ़ती जाती हैं और जो वस्तुएँ पूर्ण विलास की वस्तुएँ मानी जाती थीं, वे अब जीवन की आवश्यकताएँ बनती चली जाती हैं। इन समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु धन अनिवार्य रूप से अपेक्षित है। ऐसा माना जाता है कि ईमानदारीपूर्वक धन कमाना काफी दुष्कर हैं अत: इस हेतु अनैतिक उपायों का सहारा लिया जाता है।

4. लालफीताशाही – सरकारी फाइलों को लाल फीते से बाँधे जाने को ही प्रशासनिक शब्दावली में ‘लालफीताशाही’ कहा जाता हैं। भारत में सरकारी कार्यालयों में कार्य सम्पन्न करने की प्रक्रिया अत्यन्त जटिल एवं विलम्बकारी है। इनमें इतने अधिक नियमों एवं उपनियमों का संजाल विस्तृत है कि कोई भी कार्य चाहकर भी शीघ्रतापूर्वक सम्पन्न नहीं किया जा सकता फिर वह चाहे कितना ही महत्त्वपूर्ण जन-कल्याण सम्बन्ध विषय ही क्यों न हो? लाल फीते से बंधी फाइलों को एक अधिकारी की मेज से दूसरे अधिकारी की मेज तक पहुँचाने में काफी अधिक समय लग जाता है। फाइलों की यह स्थिति अधिकारियों के लिए रिश्वत हेतु आधार का सृजन करती है। अपना कार्य यथाशीघ्र कराने हेतु लोग सरकारी अधिकारियों को विभिन्न प्रकार से रिश्वत देने में किसी प्रकार का संकोच नहीं करते। इस प्रकार की रिश्वतखोरी ऐसे विभागों में अधिक पाई जाती है जहाँ नागरिकों का सरकार के साथ सम्पर्क अधिक रहता है। इस प्रमुख विभाग के विभागों में प्रमुख हैं—व्यापार, उद्योग, सार्वजनिक निर्माण, कर, संचार एवं यातायात।

5. व्यापारी एवं औद्योगिक वर्ग – वर्तमान व्यापारी एवं औद्योगिक वर्ग में भ्रष्ट करने की आकांक्षा और योग्यता दोनों ही पर्याप्त मात्रा में पाई जाती हैं। आज अपना काम निकलवाने हेतु सुरा एवं सुन्दरियाँ भ्रष्टाचार के नए स्वरूप हो गए हैं। व्यावसायिक घरानों द्वारा ‘जन-सम्पर्क अधिकारियों एवं सम्बन्ध कायम रखने वाले व्यक्तियों को बड़ी संख्या में नियुक्त किया जाता है। ये व्यक्ति शासकीय अधिकारियों को अपने निकृष्ट उद्देश्यों की पूर्ति में सहायता प्रदान करने हेतु धन अथवा अन्य लाभ प्रदान करते हैं।

6. वेतन में असमानता – भारत में कर्मचारियों के वेतन में काफी अधिक असमानता पाई जाती है। अधिक वेतन के कारण जहाँ उच्चाधिकारी आरामदायक जीवन का यापन करते हैं, वहीं निचले स्तरों पर कार्यरत कर्मचारी कम वेतन के कारण ऐसा जीवन यापन नहीं कर पाते। आरामदायक और विलासितापूर्ण जीवन जीने की आकांक्षा उन्हें अनुचित साधनों से धन कमाने के लिए प्रेरित करती है। इस प्रकार वेतन में असमानता का प्रशासन पर व्यापक रूप से अनैतिक एवं विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
सार्वजनिक सेवाओं का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सार्वजनिक सेवाओं का महत्त्व

किसी भी देश की शासन-व्यवस्था को सही रूप देने के लिए लोक सेवाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये आयोग लोक सेवाओं में योग्यता को एकमात्र मापदण्ड स्वीकार कर लोकतन्त्र के अर्थ व उसके व्यवहार को अभिव्यक्त करते हैं। ये प्रशासन को निष्पक्ष उपकरण प्रदान कर उसे राजनीतिक संस्थाओं के सम्भावित दबावों से बचाते हैं। संघ लोक सेवा आयोग के भूतपूर्व अध्यक्ष ए० आर० किदवई के शब्दों में, “संसदीय लोकतन्त्र में लोक सेवाओं में गुण-दोषों के आधार पर भर्ती की व्यवस्था होना आवश्यक होता है और यह काम लोक सेवा आयोग के माध्यम से ही होता है।” एम० वी० पायली के अनुसार, “किसी भी देश के प्रशासन का स्तर एवं कार्यक्षमता का आधार वहाँ की लोक सेवा के सदस्यों की मानसिक शक्ति प्रशिक्षण एवं सत्यनिष्ठा है।”

संविधान और उसके द्वारा आयोजित सरकार, शरीर एवं मस्तिष्क हैं तथा लोक सेवा आयोग हाथ के समान है। शासन को ही सही ढंग से चलाने के लिए कुशल, सुयोग्य, दक्ष, विद्वान् तथा ईमानदार पदाधिकारियों की उतनी ही आवश्यकता है जितनी मनुष्य को वायु की तथा मछली को पानी की। राज्य के द्वारा मनुष्य अपनी सारी इच्छाएँ पूरी करना चाहता है। यह तभी सम्भव है जब राज्य की शासन नीति को कार्यान्वित करने वाले केवल योग्य ही नहीं, अपितु पूर्ण रूप से सचेत एवं अनुभवशील व्यक्ति हों। लोक सेवा आयोग इसी कार्य को सम्पन्न करता है। ये स्थायी होते हैं। और इनके फलस्वरूप इनमें कार्य करने वाले व्यक्ति राज्य कार्य-प्रणाली के विषय में जन-निर्वाचित प्रतिनिधियों अथवा मन्त्रियों से अधिक व्यावहारिक ज्ञान रखते हैं। किसी भी सरकारी नीति का कुशल संचालन लोक सेवा के अन्तर्गत कार्य करने वाले मनुष्यों की दक्षता एवं कार्यकुशलता पर निर्भर रहता है। विलोबी का मत है कि “सार्वजनिक सेवाओं के प्रशासन के सम्बन्ध में कोई केन्द्रीय व्यवस्था करना बहुत आवश्यक है। सेवकों की नियुक्ति और उनके सामान्य प्रशासन के लिए एक केन्द्रीय निकाय होना चाहिए, जो निरन्तर इस बात को देखे कि जिन सिद्धान्तों पर सेवाओं की नियुक्ति होती है, उन सिद्धान्तों का पालन होता है अथवा नहीं।” इसी उद्देश्य से भारतीय संविधान में अखिल भारतीय सार्वजनिक सेवाओं के लिए एक ‘संघीय लोक सेवा आयोग की व्यवस्था की गयी है। साथ ही प्रत्येक राज्य में भी ‘राज्य लोक सेवा आयोग’ की स्थापना की गयी है। लोक सेवा आयोग का कार्य सरकारी अधिकारियों की नौकरी की दशाएँ, नियुक्ति, पदोन्नति आदि के सन्दर्भ में सरकार को परामर्श देना होता है।

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प्रश्न 2.
सरकारी महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के लिए लोक सेवा आयोग अभ्यर्थियों का चयन करता है। यदि यह कार्य कैबिनेट मन्त्रियों को सौंप दिया जाए तो लोकतान्त्रिक सरकार की कार्यप्रणाली पर सम्भवतः क्या प्रभाव पड़ेगा? दो तर्क दीजिए। (2010)
उत्तर :
लोक सेवा आयोग संवैधानिक संस्था है जिसको संविधान से शक्ति व अधिकारों की प्राप्ति होती है। अत: उसके क्रियाकलाप निष्पक्ष होते हैं और समसामयिक आवश्यकताओं के अनुकूल रहते हैं। भारत में लोकतन्त्र अर्थात् भीड़तन्त्र का शासन है जिसमें किसी की जवाबदेही नहीं बनती है। मन्त्री भी विधायिका के हिस्से होते हैं जहाँ वोटों की दूषित राजनीति हावी रहती है। भारतीय प्रजातन्त्र शैशवावस्था में ही रेंग रहा है अतः लोक सेवकों की नियुक्ति के कार्य को लोक सेवा आयोग से लेकर मंत्रियों को आवंटित करने पर बड़े विपरीत परिणाम आएँगे जो देश को नैराश्य के गर्त में आकर डुबो देंगे। मूल रूप से लोकतान्त्रिक सरकार की कार्यप्रणाली पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ सकता है –

1. भर्ती किए गए कर्मचारी संविधान के प्रति निष्ठा न रखकर मन्त्रियों के प्रति भक्ति जाग्रत करने लगेंगे।
2. आज राजनीति में घनघोर भ्रष्टाचार व्याप्त है, ऐसे कुप्रबन्धन के दौर में अभ्यर्थियों के चयन में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला बड़े पैमाने पर होने लगेगा,और भाई-भतीजावाद भी पनपेगा, इसकी आशंका निर्मूल नहीं है।

प्रश्न 3
लोकसेवाओं का महत्त्व बताइए। [2015]
उत्तर :
लोकसेवाओं का महत्त्व

लोकसेवाओं के सदस्य अनुभव एवं ज्ञान की निधि होते हैं। यद्यपि सैद्धान्तिक रूप में कानूननिर्माण का कार्य व्यवस्थापिका द्वारा और इन कानून को कार्य रूप में परिणत करने तथा प्रशासनिक नीति निर्धारित करने का कार्य कार्यपालिका द्वारा किया जाता है, किन्तु वास्तव में कानून-निर्माण तथा प्रशासन का संचालन इन दोनों ही क्षेत्रों में लोक सेवाओं द्वारा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य किया जाता है। वर्तमान समय के जटिल कानूनों के प्रारूपों का निर्माण सम्बन्धित नीति-निर्धारण और उसका लागू करने का कार्य भी लोक सेवाओं के सदस्य ही करते हैं। वस्तुतः एक राज्य का प्रशासन लोक सेवाओं की कार्यक्षमता पर ही निर्भर करता है। प्रो० लॉस्की ने लिखा, “प्रत्येक राज्य अपने सार्वजनिक अधिकारियों के गुणों पर बहुत अधिक सीमा तक निर्भर करता है।”

यद्यपि व्यवस्थापिका और न्यायपालिका भी सरकार के महत्त्वपूर्ण अंग हैं, किन्तु व्यवहार में सरकार का तात्पर्य कार्यपालिका से ही होता है और कार्यपालिका के भी जो दो अंग होते हैंराजनीतिक कार्यपालिका और स्थायी कार्यपालिका अर्थात् लोक सेवाएँ–उनमें व्यवहार की दृष्टि से राजनीतिक कार्यपालिका की अपेक्षा लोक सेवाएँ अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।

चाहे संसदीय शासन हो या अध्यक्षात्मक शासन, शासन कार्य मन्त्रियों और लोक सेवा पदाधिकारियों के पारस्परिक सहयोग से चलता है और इस पारस्परिक सम्बन्ध की विशेषता यह है कि मन्त्रिगण नौसिखिये (amature) होते हैं, लेकिन स्थायी पदाधिकारी अपने कार्य के विशेषज्ञ होते हैं। ऐसी स्थिति में सामान्यतया सभी बातों के सम्बन्ध में मन्त्रिगण लोक सेवा पदाधिकारियों के परामर्श के अनुसार ही कार्य करते हैं।

प्रश्न 4.
संघीय लोक सेवा आयोग के दो कार्य बताइए। [2008, 10, 11, 13, 15,16]
उत्तर :
संविधान के अनुच्छेद 220 के अनुसार संघीय लोक सेवा आयोग के दो कार्य निम्नवत् हैं।

1. नियुक्ति सम्बन्धी कार्य (प्रतियोगिता परीक्षाओं की व्यवस्था) लोक सेवा आयोग का एक प्रमुख कार्य शासन के प्रमुख पदों हेतु चयन कर नियुक्ति की व्यवस्था करना है। विभिन्न विभागों में रिक्त हुए स्थानों की सूचना शासन द्वारा लोक सेवा आयोग को दी जाती है। आयोग इन स्थानों की पूर्ति के लिए लिखित या मौखिक अथवा दोनों प्रकार की परीक्षाएँ आयोजित करता है। आयोग परीक्षा के नियम तथा कार्यक्रम व प्रार्थी की योग्यता के विषय में कुछ बातें निर्धारित करके उनका प्रकाशन समाचार-पत्रों में करता है। वह परीक्षाओं में भाग लेने के लिए सम्पूर्ण भारत या कुछ परिस्थितियों में किन्हीं विशेष क्षेत्रों के निवासियों से प्रार्थना-पत्र आमन्त्रित करता है। इन परीक्षाओं के आधार पर उनके द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति हेतु सुयोग्य व्यक्तियों का चयन किया जाता है। 2011 की परीक्षाओं से आयोग ने परीक्षा प्रणाली में व्यापक फेर बदल किया है। अब प्रारम्भिक परीक्षा में अलग-अलग वैकल्पिक विषयों की व्यवस्था समाप्त कर दी गयी है तथा सभी अभ्यर्थियों को एक ही सामान्य रुझाने परीक्षा (Common Aptitude Test-CAT) में भाग लेना होगा। भविष्य में मुख्य परीक्षा में भी वैकल्पिक विषयों को समाप्त किये जाने की योजना है।

2. राज्य सरकारों की सहायता करना यदि दो या दो से अधिक संघीय लोक सेवा आयोग से किसी ऐसी नौकरी पर नियुक्ति की योजना बनाने में सहायता की प्रार्थना करें, जिसमें विशेष योग्यता सम्पन्न व्यक्तियों की आवश्यकता हों, तो संघीय आयोग इस कार्य में राज्यों की सहायता करेगा।

प्रश्न 5.
राज्य लोक सेवा आयोग के दो प्रमुख कार्य बताइए। [2015, 16]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश या अन्य किसी राज्य के लोक सेवा आयोग के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं।

1. प्रतियोगी परीक्षाओं की व्यवस्था –  राज्य लोक सेवा आयोग का प्रमुख कार्य राज्य की सरकारी सेवाओं के पदों पर नियुक्ति के लिए मौखिक या लिखित, अथवा दोनों ही प्रकार की प्रतियोगिता परीक्षाओं की व्यवस्था करना और उनके परिणामों के आधार पर उम्मीदवारों का चयन करके उनकी नियुक्ति के लिए राज्यपाल से सिफारिश करना है।

2. परामर्श देना – संविधान में की गयी व्यवस्था के अनुसार राज्य लोक सेवा आयोग का कार्य निम्नलिखित विषयों में राज्यपाल को परामर्श देना है।

  1. असैनिक सेवाओं तथा असैनिक पदों पर भर्ती की प्रणाली के सम्बन्ध में परामर्श।
  2. असैनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्ति, पदोन्नति, पदावनति तथा स्थानान्तरण के सम्बन्ध में अपनाये जाने वाले नियमों के सम्बन्ध में परामर्श।
  3. असैनिक सेवाओं में राज्य सरकार के अधीन काम करने वाले कर्मचारियों के अनुशासन के सम्बन्ध में परामर्श।
  4. राज्य सरकार के किसी कर्मचारी द्वारा सरकारी कार्य को पूरा करते हुए शारीरिक चोट या धन की क्षतिपूर्ति के लिए किये गये दावे के सम्बन्ध में परामर्श।
  5. राज्य सरकार के किसी कर्मचारी द्वारा पेन्शन या सरकारी मुकदमे में अपनी रक्षा में व्यय किये गये धन की क्षतिपूर्ति के दावे के सम्बन्ध में परामर्श
  6. राज्यपाल द्वारा भेजे गये अन्य किसी भी मामले के सम्बन्ध में परामर्श।

प्रश्न 6
राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की स्वतन्त्रता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
आयोग के सदस्यों की स्वतन्त्रता। भारत में लोक सेवा आयोगों को संवैधानिक स्थिति एवं संरक्षण प्रदान किया गया है, जबकि ब्रिटेन, अमेरिका और अन्य अनेक देशों में ऐसा नहीं है। वहाँ इनका गठन और संचालन व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानूनों के आधार पर होती है। इस प्रकार, भारत में लोक सेवा आयोगों की स्थिति अधिक सुदृढ़ तथा स्वतन्त्र है। लोक सेवा आयोग के सदस्यों की स्वतन्त्रता के लिए संविधान में निम्नलिखित व्यवस्थाएँ की गयी हैं –

  1. सुरक्षित कार्यकाल – आयोग के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष की आयु तक निर्धारित कर दिया गया है जिससे कि वे निष्पक्षता और स्वतन्त्रता के साथ कार्य कर सकें। यह भी व्यवस्था कर दी गयी है कि कोई सदस्य दुबारा अपने पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
  2. पदच्युति कठिन – आयोग के किसी सदस्य को संविधान द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही हटाया या निलम्बित किया जा सकता है।
  3. पर्याप्त और सुरक्षित वेतन – भत्ते-आयोग के सदस्यों के लिए पर्याप्त वेतन और भत्तों की व्यवस्था की गयी है और नियुक्ति के बाद इनकी सेवा शर्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
  4. व्यय संचित निधि पर भारित – आयोग पर हुआ व्यय संघ अथवा राज्य की संचित निधि पर भारित है। अत: इस व्यय पर संसद या राज्य विधानमण्डल को मतदान करने का अधिकार नहीं है।
  5. अवकाश प्राप्ति के बाद आवश्यक प्रतिबन्ध – आयोग के अध्यक्ष या सदस्य कार्यकाल की समाप्ति के बाद किसी सरकारी पद पर नियुक्त नहीं किये जा सकते, केवल आयोगों में ही पदोन्नति के रूप में उनकी पुनः नियुक्ति हो सकती है।

संविधान की उपर्युक्त व्यवस्थाओं से स्पष्ट है कि आयोग के सदस्यों को निष्पक्षता से अपना कार्य करने के लिए यथेष्ट स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है। इन व्यवस्थाओं के सम्बन्ध में संघीय लोक सेवा आयोग के एक भूतपूर्व सदस्य वी० सिंह ने कहा था, “संविधान द्वारा की गयी ये व्यापक व्यवस्थाएँ लोक सेवा आयोग की स्वतन्त्रता की गारण्टी देती हैं और कार्यपालिका के हस्तक्षेप से उन्हें पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करती हैं।”

प्रश्न 7.
भारत में सार्वजनिक सेवाओं के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
भारत में सार्वजनिक सेवाओं का इतिहास

आधुनिक सार्वजनिक सेवाओं का विकास भारत में ब्रिटिश काल से आरम्भ हुआ। वारेन हेस्टिग्स तथा लॉर्ड कार्नवालिस ने भारत में भू-राजस्व की वसूली के लिए सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति का आरम्भ किया। 1781 ई० में सर्वप्रथम ‘राजस्व मण्डल’ का गठन किया गया, जिसका कार्य राजस्व अधिकारियों की नियुक्ति करना था। 1787 ई० में जिला कलक्टर, मजिस्ट्रेट तथा जजों के पदों को एकीकृत किया गया और इन्हें प्रतिज्ञाबद्ध’ सिविल सर्विस का नाम दिया गया। लॉर्ड वेलेजली ने सर्वप्रथम सरकारी अधिकारियों को प्रशिक्षण हेतु फोर्ट विलियम कॉलेज, कलकत्ता भेजा। 1813 ई० में इंग्लैण्ड के हेलिबरी नामक स्थान पर सिविल सर्विस के अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए एक कॉलेज स्थापित किया गया। यह कॉलेज 1858 ई० तक चलता रहा।

स्वतन्त्र भारत में भारतीय सिविल सेवा (आई०सी०एस०) का स्थान भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई०ए०एस०) ने ले लिया। इसके साथ ही एक नई सेवा भारतीय विदेश सेवा (आई०एफ०एस०) का गठन किया गया। पूर्ववर्ती लोक सेवा आयोग का स्थान संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने ले लिया तथा परीक्षा में सफल उम्मीदवारों के लिए प्रशासनिक प्रशिक्षण की राष्ट्रीय अकादमी’, मसूरी तथा विशेषीकृत प्रशिक्षण अभिकरणों की स्थापना की गई। 27 जून, 1970 को केन्द्रीय सचिवालय में सेवा संवर्ग विभाग भी खोल दिया गया। वर्तमान समय में भारत में तीन अखिल भारतीय सेवाएँ, 59 केन्द्रीय सेवा ग्रुप ‘ए’ तथा अनेक राज्य स्तरीय लोक सेवाएँ हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
किन्हीं दो अखिल भारतीय सेवाओं के नाम बताइए। इसकी नियुक्ति में संघ लोक सेवा आयोग की क्या भूमिका है? [2008, 10, 11, 13, 15]
उत्तर :
दो अखिल भारतीय सेवाओं के नाम हैं –

  1. भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा
  2. भारतीय पुलिस सेवा।।

संघ लोक सेवा आयोग अखिल भारतीय सेवाओं के लिए योग्यतम व्यक्तियों का चुनाव करता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए, आयोग में जो वांछित अंक प्राप्त कर लेते हैं, उसकी मौखिक परीक्षा ली जाती है। मौखिक परीक्षा में सफल होने पर अभ्यर्थी को निर्धारित पदों पर नियुक्त कर दिया जाता है।

प्रश्न 2.
संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की पद-मुक्ति कैसे होती है? [2008, 10, 16]
उत्तर :
संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यगण अपनी इच्छानुसार राष्ट्रपति को त्याग-पत्र देकर अपने पद से मुक्त हो सकते हैं। इसके साथ ही भारत का राष्ट्रपति निम्नलिखित परिस्थितियों में उन्हें अपदस्थ भी कर सकता है –

  1. उन पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया जाए और वह उच्चतम न्यायालय में सत्य सिद्ध हो जाए।
  2. यदि वे वेतन प्राप्त करने वाली अन्य कोई सेवा करने लगे।
  3. यदि वे न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित कर दिये जाएँ।
  4. यदि वे शारीरिक अथवा मानसिक रूप से कर्तव्यपालन के अयोग्य सिद्ध हो जाएँ।

प्रश्न 3.
सार्वजनिक या लोक सेवा का अर्थ बताइए।
उत्तर :
सार्वजनिक या लोक सेवा का अर्थ

सामान्य अर्थ में सरकारी सेवा को सार्वजनिक या लोक सेवा कहा जाता है। कुछ विद्वानों ने लोक सेवाओं को नौकरशाही’ का नाम दिया है। फाइनर ने इसे ‘मेज का शासन’ कहा है। वास्तव में लोक सेवा का आशय उस संगठन से है जिसमें कार्यकुशल, प्रशिक्षित तथा कर्तव्यपरायण कर्मचारी होते हैं तथा जिसमें आदेश की एकता’ तथा ‘पद सोपान’ के सिद्धान्त का पालन किया जाता है।

स्थायित्व, राजनीतिक रूप से तटस्थता, उच्च अधिकारियों का निचले स्तर के अधिकारियों पर शासन, आदेश की एकता (उच्च अधिकारी के आदेश का पालन सभी कर्मचारियों द्वारा किया जाना) लोक सेवा की प्रमुख विशेषताएँ मानी जाती हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग व प्रत्येक राज्य के लिए एक लोक सेवा आयोग की व्यवस्था की गयी है?
उत्तर :
संविधान के अनुच्छेद 315 के अन्तर्गत।

प्रश्न 2
संघ लोक सेवा आयोग का व्यय किस पर भारित होता है?
उत्तर :
संघ लोक सेवा आयोग का व्यय भारत सरकार की संचित निधि पर भारित होता है।

प्रश्न 3.
संघ लोक सेवा आयोग का गठन कब किया गया?
उत्तर :
1926 ई० में ली आयोग के द्वारा संघ लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।

प्रश्न 4.
भारतीय लोक सेवाओं का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर :
लॉर्ड मैकाले को भारतीय लोक सेवाओं का जनक कहा जाता है।

प्रश्न 5.
संघ लोक सेवा आयोग की प्रथम महिला अध्यक्ष होने का गौरव किसको प्राप्त है?
उत्तर :
संघ लोक सेवा आयोग की प्रथम महिला अध्यक्ष होने का गौरव श्रीमती रोज मिलन मैथ्यू को प्राप्त है।

प्रश्न 6
अखिल भारतीय सेवाओं के नाम लिखिए। या दो अखिल भारतीय सेवाओं के नाम बताइए। [2008, 10, 11, 13]
उत्तर :
अखिल भारतीय सेवाओं के नाम हैं –

  1. I.A.S. भारतीय प्रशासनिक सेवा
  2. I.P S. भारतीय पुलिस सेवा तथा
  3. I.Es. भारतीय विदेश सेवा।

प्रश्न 7.
राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों का कार्यकाल बताइए।
उत्तर :
राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष है, परन्तु वे 62 वर्ष की आयु तक ही अपने पद पर रह सकते हैं।

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प्रश्न 8.
संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्य लोक सेवा आयोग का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर :
दोनों का मुख्य कार्य प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन कर कर्मचारियों का चयन करना है। प्रश्न 9 राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति कौन करता है? उत्तर राज्यपाल।

प्रश्न 10.
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति कौन करता है? [2016]
उत्तर :
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री के परामर्श से करता है।

प्रश्न 11
संघ लोक सेवा आयोग के किन्हीं दो कार्यों का उल्लेख कीजिए। (2008)
उत्तर :

  1. संघ की सरकार में नियुक्ति के लिए परीक्षा का संचालन करना।
  2. आयोग को निर्देशित किये गये किसी विषय पर तथा किसी अन्य विषय पर जिसे यथास्थिति राष्ट्रपति समुचित आयोग को निर्देशित करें, परामर्श देना।

प्रश्न 12.
संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवानिवृत्ति आयु क्या है? [2013]
उत्तर :
संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष है।

प्रश्न 13.
राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति कौन करता है? [2016]
उत्तर
राज्यपाल।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है ?
(क) संसद
(ख) राष्ट्रपति
(ग) मन्त्रिपरिषद्
(घ) प्रधानमन्त्री

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सी अखिल भारतीय सेवा नहीं है?
(क) आई० ए० एस०
(ख) आई० पी० एस०
(ग) आई० सी० एस०
(घ) आई० एफ० एस०

प्रश्न 3.
नयी अखिल भारतीय सेवाएँ स्थापित करने का अधिकार किसको है? [2013]
(क) राष्ट्रपति
(ख) लोकसभा
(ग) संघीय लोक सेवा आयोग
(घ) राज्यसभा

प्रश्न 4.
ब्रिटिश भारत के लोक सेवा आयोग के प्रथम सदस्य कौन थे? [2014]
(क) सर रोज बार्कर
(ख) लॉर्ड मैकाले
(ग) लॉर्ड ली।
(घ) वारेन हेस्टिंग्स

प्रश्न 5.
निम्न में से केन्द्रीय लोक सेवा आयोग का कौन-सा कार्य है? [2014]
(क) खाली पदों का विज्ञापन करना।
(ख) परीक्षाओं का प्रबन्ध करना
(ग) (क) और (ख) दोनों
(घ) (क) और (ख) दोनों नहीं

प्रश्न 6.
सर्वप्रथम ‘राजस्व मण्डल’ को गठन कब किया? [2014]
(क) 1750 ई०
(ख) 1781 ई०
(ग) 1805 ई०
(घ) 1820 ई०

उत्तर :

  1. (ख) राष्ट्रपति
  2. (ग) आई० सी० एस०
  3. (ग) संघीय लोक सेवा आयोग
  4. (क) सर रोज बार्कर
  5. (ख) परीक्षाओं का प्रबन्ध करना
  6. (ख) 1781 ई०।

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UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 4

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Model Paper Paper 4
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 4

पूर्णाक : 70
समय : 3 घण्टे 15 मिनट

निर्देश: प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
नोट:

    • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
    • आवश्यकतानुसार अपने उत्तरों की पुष्टि नामांकित रेखाचित्रों द्वारा कीजिए।
    • सभी प्रश्नों के निर्धारित अंक उनके सम्मुख

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए।
(क) हर्षे तथा चेज ने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि [1]
(A) प्रोटीन का निर्माण RNA द्वारा होता है।
(B) DNA आनुवंशिक पदार्थ है।
(C) DNA द्विकुण्डलित होता है।
(D) DNA के द्वारा ही RNA का निर्माण होता है।

(ख) प्राथमिक उपभोक्ता है। [1]
(A) बाज
(B) शेर
(C) मृग
(D) भेड़िया

(ग) PCR की खोज किसने की? [1]
(A) जेम्स ग्रिफिथ
(B) जेम्स एलरिक ने
(C) कैरी मुलिस ने
(D) नैथन तथा स्मिथ ने

(घ) स्पाइरुलिना प्रसिद्ध है। [1]
(A) एगारोज निर्माण के लिए
(B) SCP निर्माण के लिए
(C) क्राईजीन के उत्पादन के लिए
(D) प्रतिजैविक निर्माण के लिए

प्रश्न 2.
(क) शुक्राणु में एक्रोसोम का क्या महत्त्व है? [1]
(ख) विश्व की सबसे समृद्ध जैव-विविधता कहाँ पाई जाती है? [1]
(ग) DNA अणु को वाँछित खण्डों में पृथकू करने के लिए किस एन्जाइम का उपयोग किया जाता है? [1]
(घ) पादपों में बहुगुणिता उत्पन्न कराने के लिए कौन-सा रसायन प्रयुक्त करते हैं? [1]
(ङ) ऐसे पादपों को क्या कहते हैं जो जल से संतृप्त स्थानों पर पाए जाते हैं। तथा पूर्णरूप या आंशिक रूप से जल में डूबे रहते हैं? [1]

प्रश्न 3.
(क) मेण्डल के युग्मकों की शुद्धता तथा स्वतन्त्र अपव्यूहन नियम पर प्रकाश डालिए [1+1]
(ख) पराग कण का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाते हुए इसकी एक विशेषता बताइए। [1+1]
(ग) नवडार्विनवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए। [1+1]
(घ) विश्व वन्य जीव कोष (WWF) क्या है? इसके उद्देश्य लिखिए। [2]
(ड़) ट्रान्सजेनिक किस विधि द्वारा प्राप्त होते हैं? इसके निर्माण के उद्देश्यों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [1+1]

प्रश्न 4.
(क) निएण्डरथल मानव के जीवाश्म कहाँ और किस युग की चट्टानों से प्राप्त हुए? इनकी कपाल गुहा का ‘आयतन कितना था? इनके कोई दो प्रमुख लक्षण बताइए। [1+1]
(ख) निम्न में अन्तर कीजिए [1 1/2+1 1/2]

  1. प्रतिजीविता एवं सहोपकारिता
  2. उत्पादक एवं उपभोक्ता

(ग) प्रतिजैविक औषधियाँ क्या हैं? ये किन पादपों से प्राप्त होती हैं? उदाहरण सहित बताइए। [1+2]
(घ) यदि आपको अपने घर से अपनी जीव विज्ञान प्रयोगशाला में एक जीवाणु का नमूना ले जाना हो, तो आप किस प्रकार का नमूना अपने साथ ले जाएँगें और क्यों? [3]

प्रश्न 5.
(क) मानव नर जननांगों से सम्बन्धित सहायक ग्रन्थियाँ कौन-सी हैं? संक्षेप में लिखिए। [3]
(ग) पारितन्त्र विविधता क्या है? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन ” कीजिए। [1 1/2+1 1/2]
(ख) एड्स क्या है? इसका विषाणु शरीर के किस भाग को प्रभावित करता है? इसका संचरण किस प्रकार होता है? [1+1+1]
(ग) पारितन्त्र विविधता क्या है? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन ” कीजिए। [1/2+14]
(घ) प्रत्यूर्जता क्या है? इसकी अनुक्रिया से किस इम्यूनोग्लोब्यूलिन का निर्माण होता है? [1+2]

प्रश्न 6.
(क) निम्न पर टिप्पणी लिखिए। [1 1/2+1 1/2]

  1. टर्नर सिण्ड्रोम
  2. क्राई-डू-चैट सिण्ड्रोम

(ख) निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए। [1+1+1]

  • अण्डोत्सर्ग
  • शुक्रकायान्तरण
  •  रजोनिवृत्ति

(ग) जैव-पेटेन्ट क्या है? इसका प्रमुख उद्देश्य क्या है? [1+2]
(घ) योग्यतम् की उत्तरजीविता का सिद्धान्त’ क्या है? इसे किसने प्रतिपादित किया? [2 +1]

प्रश्न 7.
जैव-विविधता से संरक्षण की आवश्यकता का वर्णन करते हुए इनकी प्रमुख संरक्षण विधियाँ बताइए। [5]
अथवा
मधुमक्खी पालन पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए। [5]

प्रश्न 8.
ठोस अपशिष्ट क्या होता है? ठोस अपशिष्ट को वर्गीकृत करते हुए इनके निस्तारण की प्रमुख विधियाँ बताइए। [1+2+2]
अथवा
मानव में प्रोटीन-संश्लेषण की प्रक्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए। [1+1+1+2]

प्रश्न 9.
आनुवंशिकीय रूपान्तरित फसलों की उपयोगिता तथा सम्भावित हानियों का वर्णन करें। [1+4]
अथवा
RCH कार्यक्रम क्या है? इसके प्रमुख उद्देश्य को विस्तारपूर्वक समझाइए। [1+4]

Answers

उत्तर 1.
(क) (B)
(ख) (C)
(ग) (C)
(घ) (B)

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UP Board Class 12 Chemistry Model Papers Paper 3

UP Board Class 12 Chemistry Model Papers Paper 3 are part of UP Board Class 12 Chemistry Model Papers. Here we have given UP Board Class 12 Chemistry Model Papers Paper 3.

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Subject Chemistry
Model Paper Paper 3
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 Chemistry Model Papers Paper 3

समय : 3 घण्टे 15 मिनट
पूर्णांक : 70

निर्देश प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
नोट

  • इस प्रश्न-पत्र में कुल सात प्रश्न हैं।
  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न के प्रारम्भ में स्पष्ट उल्लेख है, कि उसके कितने खण्ड करने हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न के अंक उसके सम्मुख अंकित हैं।
  • प्रथम प्रश्न से प्रारम्भ कीजिए और अन्त तक करते जाइए। जो प्रश्न न आता हो, उस पर समय नष्ट न करें।
  • यदि रफ कार्य के लिए स्थान अपेक्षित है, तो उत्तर-पुस्तिका के बाएँ पृष्ठ पर कीजिए और फिर काट (x) दीजिए। उस पृष्ठ पर कोई हल न कीजिए।
  • रचना के प्रश्नों के हल में रचना रेखाएँ न मिटाइए। यदि पूछा गया हो तो रचना के पद अवश्य लिखिए।
  • प्रश्न संख्या 1 के अतिरिक्त सभी प्रश्नों के हल के क्रियापद स्पष्ट रूप से लिखिए। प्रश्नों के हल को उत्तर-पुस्तिका के दोनों ओर लिखिए।
  • जिन प्रश्नों के हल में चित्र खींचना आवश्यक है, उनमें स्वच्छ एवं स्पष्ट चित्र अवश्य खींचिए। चित्र के बिना हल अशुद्ध तथा अपूर्ण माना जाएगा।

इस प्रश्न के प्रत्येक खण्ड में चार विकल्प दिए गए हैं, सही विकल्प चुनकर उसे अपनी उत्तरपुस्तिका में लिखिए।

प्रश्न 1.
(क) नायलॉन-6 बहुलक का निर्माण किस एकलक अणु के बहुलकन से होता है? [1]
(a) कैप्रोलेक्टम
(b) ऐडिपिक अम्ल
(c) एथिलीन ग्लाइकॉल
(d) टेरफ्थैलिक अम्ल

(ख) दिए गए सूत्र [latex]\frac { { p }^{ 0 }-p }{ { p }^{ 0 } } [/latex] = xA में p° सम्बन्धित है [1]
(a) विलायक का वाष्प दाब
(b) विलयन का वाष्प दाब
(c) विलेय का वाष्प दाब।

(ग) एक पदार्थ, जो पूतिरोधी तथा विसंक्रामी दोनों प्रकार से प्रयोग हो सकता है। [1]
(a) ऐस्प्रिन
(b) क्लोरोजाइलिनॉल
(c) बाइथायोनल
(d) फीनॉल

(घ) ऐस्कॉर्बिक अम्ल कौन-से विटामिन की कमी से होता है? [1]
(a) विटामिन A
(b) विटामिन B
(c) विटामिन C
(d) विटामिन D

(ङ) शर्करा के ताजे बने विलयन का प्रकाशीय घूर्णन कुछ समय उपरान्त परिवर्तित होना कहलाता है। [1]
(a) घूर्णन गति
(b) इन्वर्सन
(c) विशिष्ट घूर्णन
(d) म्यूटारोटेशन

(च) हाइड्रोजन द्वारा अपचयित होने वाला ऑक्साइड है। [1]
(a) CaO
(b) MnO2
(c) CuO
(d) Na2O

प्रश्न 2.
(क) पूतिरोधी तथा विसंक्रामी औषधियाँ क्या हैं? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए। [2]
(ख) अनुचुम्बकीय तथा लौह-चुम्बकीय पदार्थों में क्या अन्तर है? [2]
(ग) अपचायक प्रवृत्ति के आधार पर शर्कराओं को किस प्रकार वर्गीकृत किया गया है? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए। [2]
(घ) फॉस्फोरस प्राप्त करने की किन्हीं दो विधियों के रासायनिक समीकरण लिखिए। [2]

प्रश्न 3.
(क) नाइट्रोजन के विभिन्न ऑक्साइडों का संक्षिप्त परिचय दीजिए। [2]
(ख) 3.0 ग्राम यूरिया को 100 ग्राम जल में घोलने पर जल के क्वथनांक में उन्नयन की गणना कीजिए। जल के लिए मोलल उन्नयन स्थिरांक की मान 0.52 केल्विन किग्रा मोल-1 है।
(ग) आदर्श तथा अनादर्श विलयन क्या होते हैं? ऋणात्मक तथा धनात्मक विचलन प्रदर्शित करने वाले विलयनों में अन्तर बताइए। [2]
(घ) ऐलुमिनियम के विद्युतीय शोधन में क्रायोलाइट का क्या उपयोग है [2]

प्रश्न 4.
(क) निम्न पर टिप्पणी लिखिए।
(i) मॉण्ड-प्रक्रम
(ii) वॉन-आर्केल प्रक्रम

(ख) क्या होता है? जब (केवल समीकरण दीजिए) [3]
(i) ऐल्किल सायनाइड का LiAlH4 द्वारा अपचयन करते हैं।
(ii) नाइट्रोऐल्केन C2H5OH की उपस्थिति में Sn/HCl से अभिक्रिया करता है।
(iii) C2H5CONH2 की Br2 तथा KOH (गर्म) के साथ अभिक्रिया होती है।
(iv) C2H5NH2 की CHCl3 तथा KOH (ऐल्को.) के साथ अभिक्रिया होती है।

(ग) (i) ज्विटर आयन क्या है? [3]
(ii) ऐमीनो अम्लों के विलयन में सम-विभव बिन्दु क्या होता है?
(iii) ऐमीनो अम्लों के लिए D तथा L- विन्यास क्या हैं?

(घ) (i) यदि एक ऑक्साइड में चतुष्फलकीय रिक्तिका में तत्व A तथा अष्टफलकीय रिक्तिका में तत्व B स्थित है, तो ऑक्साइड का सूत्र क्या होगा? [3]
(ii) एक ठोस AB की संरचना CSCl के प्रकार की है। मात्रक कोष्ठिका के किनारों की लम्बाई 4.04 Å है। A+ एवं B के मध्य की दूरी ज्ञात कीजिए।

प्रश्न 5.
(क) निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
(i) पेप्टीकरण
(ii) अपोहन
(iii) टिण्डल प्रभाव
(iv) पायसीकारक

(ख) निम्न के IUPAC नाम लिखिए।
(i) K3[Fe(CN)6]
(ii) [NiCl4]2-
(iii) K3[Cr(C2O4)3]
(iv) [CoBr2(en)2]+

(ग) (i) हैलोऐरीनों में नाभिकस्नेही अभिक्रिया हैलोऐल्केनों की तुलना में कठिनता से होती है, क्यों?
(ii) हैलोऐल्केनों की विलोपन तथा नाभिक स्नेही अभिक्रियाओं के एक-एक उदाहरण दीजिए।

(घ) (i) प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक ऐमीनी में विभेद करने से सम्बन्धित एक अभिक्रिया का वर्णन कीजिए।
(ii) ल्यूकास परीक्षण क्या है? परीक्षण से प्राप्त परिणाम बताइए।

प्रश्न 6.
(क) निम्न अभिक्रियाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(i) रोजेनमुण्ड अभिक्रिया
(ii) हुन्सडीकर अभिक्रिया
(iii) सेण्डमेयर अभिक्रिया
(iv) गाटरमान-कोच अभिक्रिया
(v) वुज-फिटिग अभिक्रिया [5]
अथवा
बेन्जीन डाइऐजोनियम लवण बनाने की विधि एवं रासायनिक समीकरण देते हुए बेन्जीन डाइऐजोनियम लवण से निम्न को बनाने के लिए रासायनिक समीकरण दीजिए।
(i) फीनॉल
(ii) ऐनिलीन
(iii) p-हाइड्रॉक्सी ऐजो बेन्जीन

(ख) (i) कार्बोक्सिलिक अम्लों की अनुनाद संरचना का वर्णन कीजिए।
(ii) विशिष्ट गन्ध वाला कार्बनिक यौगिक A, सोडियम हाइड्रॉक्साइड के साथ क्रिया करके दो यौगिक B तथा C बनाती है। यौगिक B का अणुसूत्र C7H8O है। इसका ऑक्सीकरण करने पर पुनः यौगिक A बनता हैं। यौगिक C को सोड़ा लाइम के साथ गर्म करने पर बेन्जीन प्राप्त होती है। A, B तथा C कार्बनिक यौगिकों की संरचनाएँ लिखिए। सम्बन्धित अभिक्रियाओं के समीकरण भी लिखिए। [5]
अथवा
(i) निम्न में विभेद कीजिए।

  1. मेथिल तथा एथिल ऐल्कोहॉल में
  2. ऐसीटोन तथा ऐसीटैल्डिहाइड में
  3. फीनॉल तथा बेन्जोइक अम्ल में

(ii) लीबरमान नाइट्रोसो परीक्षण क्या है? सम्बन्धित रासायनिक अभिक्रिया दीजिए। [5]

प्रश्न 7.
(क) (i) डाऊ प्रक्रम क्या है? सम्बन्धित रासायनिक समीकरण लिखिए।
(ii) फीनॉल द्वारा फीनॉल्फथैलीन निर्माण से सम्बन्धित रासायनिक अभिक्रिया लिखिए।
(iii) ऐस्प्रिन क्या है? इसे निर्माण से सम्बन्धित एक रासायनिक विधि का समीकरण दीजिए।
(iv) फीनॉक्साइड आयन को स्थायित्व फीनॉल से अधिक क्यों है? [5]
अथवा
निम्न पर टिप्पणी कीजिए।
(i) बेन्जोइलीकरण
(ii) हैलोजनीकरण
(iii) ऐल्डोल संघनन
(iv) कैनिजारो अभिक्रिया
(v) शिफ अभिकर्मक [5]

(ख) (i) XeF2, XeF4 तथा XeF6 के निर्माण की विधियाँ लिखिए।
(ii) XeF4 तथा XeF2 के जल-अपघटन से सम्बन्धित रासायनिक अभिक्रियाएँ लिखिए। [5]
अथवा
(i) क्लोरीन के निर्माण की प्रयोगशाला विधि का वर्णन कीजिए। सम्बन्धित रासायनिक समीकरण भी दीजिए।
(ii) क्लोरीन के विरंजक गुण का वर्णन कीजिए। [5]

Solutions

उत्तर 1.
(क) (i)
(ख) (i)
(ग) (iv)
(घ) (iii)
(ङ) (iv)
(च) (i)

उत्तर 3.
(ख) 0.26°C

उत्तर 4.
(घ) (ii) 3.49Å

उत्तर 5.
(ख) बेजीन का द्रव्यमान प्रतिशत = 15.27%
कार्बन टेटोक्लोराइ का द्रव्यमान प्रतिशत = 84.73%

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