UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 24 श्रम

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 24
Chapter Name श्रम
Number of Questions Solved 25
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 24 श्रम

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सी क्रिया अर्थशास्त्र की दृष्टि से श्रम है? (2016)
(a) तस्करी,
(b) भीख माँगना
(c) अध्यापक द्वारा अपने पुत्र को पढ़ाना
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सी क्रिया अर्थशास्त्र की दृष्टि से ‘श्रम’ है? (2017)
(a) डकैती
(b) तस्करी
(c) चैन खींचना
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

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प्रश्न 3.
श्रम के अन्तर्गत सम्मिलित हैं।
(a) मानवीय क्रियाएँ
(b) वैधानिक क्रियाएँ
(c) मानसिक व शारीरिक दोनों क्रियाएँ
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) मानसिक व शारीरिक दोनों क्रियाएँ

प्रश्न 4.
श्रम उत्पत्ति का ……….. साधन होता है।
(a) सक्रिय
(b) निष्क्रिय
(c) शारीरिक
(d) मानसिक
उत्तर:
(a) सक्रिय

प्रश्न 5.
श्रम उत्पादन का
(a) साधन है
(b) साध्य है
(c) साधन व साध्य दोनों है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) साधन व साध्य दोनों है

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
माता द्वारा बच्चे का पालन-पोषण अर्थशास्त्र में श्रम है/नहीं है।
उत्तर:
नहीं है।

प्रश्न 2.
पूँजी की अपेक्षा श्रम अधिक गतिशील होता है।नहीं होता है।
उत्तर:
नहीं होता है।

प्रश्न 3.
श्रम उत्पादन का सक्रिय साधन है/सक्रिय साधन नहीं है।
उत्तर:
सक्रिय साधन है।

प्रश्न 4.
श्रम नाशवान है/नहीं है।
उत्तर:
नाशवान है।

प्रश्न 5.
श्रम में पूँजी का विनियोग किया जा सकता है/नहीं किया जा सकता है।
उत्तर:
किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
श्रम उत्पादन का गौण/अनिवार्य उपादान है।
उत्तर:
अनिवार्य उपादान है।

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प्रश्न 7.
श्रम उत्पादक एवं अनुत्पादक दोनों होता है/दोनों नहीं होता है।
उत्तर:
दोनों होता है।

प्रश्न 8.
अध्यापक का श्रम अनुत्पादक है/नहीं है।
उत्तर:
नहीं है।

प्रश्न 9.
इंजीनियर का कार्य मानसिक/शारीरिक श्रम है।
उत्तर:
मानसिक श्रम है।

प्रश्न 10.
श्रम की माँग प्रत्यक्ष/परोक्ष होती है।
उत्तर:
परोक्ष होती है।

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प्रश्न 11.
श्रमिकों की कार्यक्षमता पर जलवायु व प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव पड़ता है/नहीं पड़ता।
उत्तर:
पड़ता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
श्रम की दो मर्यादाएँ या मूल तत्त्वों को लिखिए।
उत्तर:
श्रम की दो प्रमुख मर्यादाएँ या मूल तत्त्व निम्नलिखित हैं

  1. धनोपार्जन के उद्देश्य से की जाने (UPBoardSolutions.com) वाली समस्त क्रियाओं को श्रम में सम्मिलित किया जाता है।
  2. श्रम में केवल मानवीय प्रयत्नों को ही सम्मिलित किया जाता है, मशीनी कार्य को नहीं।

प्रश्न 2.
उत्पादन के साधन के रूप में श्रम की दो विशेषताएँ लिखिए। (2016)
उत्तर:
उत्पादन के साधन के रूप में श्रम की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. श्रम उत्पत्ति को सक्रिय साधन है श्रम उत्पत्ति का सक्रिय साधन है, जबकि भूमि और पूँजी उत्पत्ति के निष्क्रिय साधन हैं। श्रम के अभाव में पूँजी और भूमि कोई उत्पत्ति नहीं कर सकती है।
  2. श्रम नाशवान है श्रम की सबसे बड़ी विशेषता श्रम का नाशवान होना है। यदि किसी दिन श्रमिक कार्य नहीं करता, तो उसका उस दिन का श्रम हमेशा के लिए नष्ट हो जाता है।

प्रश्न 3.
श्रम के प्रकार बताइए।
उत्तर:
श्रम का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है

  1. कुशल व अकुशल श्रम
  2. उत्पादक एवं अनुत्पादक श्रम
  3. शारीरिक व मानसिक श्रम

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प्रश्न 4.
भारतीय श्रमिकों की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले दो तत्त्व लिखिए।
उत्तर:
भारतीय श्रमिकों की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले दो तत्त्व निम्न प्रकार हैं

  1. पुरस्कार व उन्नति की आशा यदि श्रमिक को कार्य करने से उचित मजदूरी, पुरस्कार या पदोन्नति मिलती है, तो श्रमिक अधिक कुशलता से कार्य को सम्पन्न करते हैं। कम मजदूरी पाने वाले श्रमिकों में कुशलता की कमी होती है।

  2. शिक्षा तथा प्रशिक्षण एक शिक्षित व विशेष प्रशिक्षण प्राप्त श्रमिक, (UPBoardSolutions.com) अप्रशिक्षित श्रमिक की तुलना में अधिक कुशलता से कार्य करता है। प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति कार्य को शीघ्र समझकर सम्पन्न कर देता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
अम क्या है? भूमि व श्रम में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्रम से आशय साधारण भाषा में ‘श्रम’ शब्द का अर्थ शारीरिक परिश्रम अथवा किसी कार्य को सम्पन्न करने के लिए किए गए प्रयत्न से होता है, किन्तु अर्थशास्त्र में श्रम का तात्पर्य उन मानसिक व शारीरिक प्रयत्नों से होता है, जो आर्थिक प्रतिफल के उद्देश्य से किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, डॉक्टर, वकील, मजदूर, प्रबन्धक, मन्त्री या सरकारी कर्मचारी (चाहे वे किसी भी स्तर के हों), इन सभी के प्रयत्न श्रम की श्रेणी में आते हैं।

भूमि व श्रम में अन्तर

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प्रश्न 2.
उत्पादन में श्रम का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
किसी भी कार्य को करने में श्रम का जो महत्त्व होता है, उसे निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

  1. उत्पादन को सम्भव बनाना श्रम के बिना किसी भी वस्तु या सेवा का उत्पादन असम्भव है। अत: श्रम के द्वारा ही उत्पादन के अन्य उपादानों को क्रियाशील बनाया जाता है।
  2. आर्थिक विकास में सहयोगी श्रम के अभाव में कोई देश आर्थिक प्रगति नहीं कर सकता। किसी भी देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का मानवीय संसाधनों (श्रम) द्वारा कुशलतम उपयोग करके देश का आर्थिक विकास किया जाता है।
  3. औद्योगिक विकास में महत्त्व औद्योगिक विकास हेतु नई-नई उत्पादन (UPBoardSolutions.com) विधियों तथा मशीनों के निर्माण में भी श्रम का अत्यधिक महत्त्व है। एक कुशल श्रमिक द्वारा ही उद्योगों के क्षेत्र में नए-नए आविष्कार किए जाते हैं।
  4. वस्तुओं के उपभोग में महत्त्व श्रमिक द्वारा उत्पादित की गई वस्तुओं के उपभोग करने में भी श्रमिक का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि उत्पादित वस्तु का उपभोग भी मानवीय श्रम द्वारा ही किया जाता है।
  5. वितरण के अध्ययन में महत्त्व वितरण का अध्ययन करने में भी श्रम का अत्यधिक महत्त्व है, क्योंकि राष्ट्रीय आय के बढ़ने से भूमि के लगान तथा पूँजी के ब्याज में जो वृद्धि होती है, वह मानवीय श्रम के सहयोग द्वारा ही सम्भव है।
  6. वस्तुओं के विनिमय में महत्त्व वर्तमान युग में बाजारों में वस्तुओं तथा सेवाओं का विनिमय तभी सम्भव है, जब कृषक या श्रमिकों द्वारा उचित व अच्छी किस्म की फसल का उत्पादन किया जाए। अतः श्रम विनिमय के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
श्रम क्या है? उत्पादन के साधन के रूप में श्रम के प्रमुख लक्षणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2014)
अथवा
श्रम से आप क्या समझते हैं? श्रम की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
श्रम से आशय
श्रम से आशय साधारण भाषा में ‘श्रम’ शब्द का अर्थ शारीरिक परिश्रम अथवा किसी कार्य को सम्पन्न करने के लिए किए गए प्रयत्न से होता है, किन्तु अर्थशास्त्र में श्रम का तात्पर्य उन मानसिक व शारीरिक प्रयत्नों से होता है, जो आर्थिक प्रतिफल के उद्देश्य से किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, डॉक्टर, वकील, मजदूर, प्रबन्धक, मन्त्री या सरकारी कर्मचारी (चाहे वे किसी भी स्तर के हों), इन सभी के प्रयत्न श्रम की श्रेणी में आते हैं।

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भूमि व श्रम में अन्तर
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श्रम के लक्षण या विशेषताएँ श्रम के प्रमुख लक्षणे या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. श्रम उत्पत्ति का सक्रिय साधन है श्रम उत्पत्ति का सक्रिय साधन है, जबकि भूमि और पूँजी उत्पत्ति के निष्क्रिय साधन हैं श्रम के अभाव में पूँजी और भूमि कोई उत्पत्ति नहीं कर सकती है। प्रबन्ध और संगठन भी श्रम के ही विशिष्ट रूप हैं।

2. श्रम नाशवान है श्रम की सबसे बड़ी विशेषता श्रम का नाशवान होना है। यदि किसी दिन श्रमिक कार्य नहीं करता, तो उसका उस दिन का श्रम हमेशा के लिए नष्ट हो जाता है।

3. श्रमिक अपने श्रम को बेचता है स्वयं को नहीं श्रमिक को वहाँ उपस्थित रहना पड़ता है, जहाँ श्रम करना है। अतः श्रमिकों को अपना श्रम बेचते समय कार्य करने की जगह, कार्य की प्रकृति, भौतिक वातावरण, मालिकों के स्वभाव, आदि पर ध्यान देना आवश्यक होता है।

4. श्रमिक की मोल-भाव करने की क्षमता कम होती है श्रम के नाशवान होने तथा श्रम को श्रमिक से अलग न किए जा सकने के कारण श्रमिकों की मोल-भाव (सौदा) करने की शक्ति कमजोर होती है। श्रमिकों की दरिद्रता, अकुशलता तथा वैकल्पिक रोजगार के अभाव में भी वे मालिकों की तुलना में कमजोर रह जाते हैं।

5. श्रम साधन और साध्य दोनों है श्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि श्रम न केवल उत्पत्ति का एक सक्रिय साधन है, वरन् उपभोक्ता के रूप में सम्पूर्ण आर्थिक क्रियाओं का साध्य भी है। समस्त आर्थिक कार्यों का अन्तिम लक्ष्य अधिकतम मानव कल्याण होता है।

6. श्रम अपनी बुद्धि, तर्क व निर्णय शक्ति का प्रयोग करता है श्रमिक (UPBoardSolutions.com) किसी कार्य को सम्पन्न करने में अपनी बुद्धि, तर्क व निर्णय शक्ति का प्रयोग करता है, जिससे आविष्कार, अनुसन्धान व नई तकनीकों का विकास होता है। विभिन्न यन्त्रों का संचालन करने हेतु श्रमिकों को अपनी बौद्धिक व शारीरिक क्षमता को उपयोग में लाना पड़ता है।

7. श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है। श्रमिक श्रम का स्वामी है और जब वह उसे बेचता है, तो श्रम प्रदान करने के स्थान पर श्रमिक का उपस्थित रहना  अनिवार्य होता है।

8. श्रम की पूर्ति में परिवर्तन धीमी गति से होता है श्रम की पूर्ति को अल्पकाल में बढ़ाना कठिन है। दीर्घकाल में श्रम की पूर्ति धीमी गति से बढ़ाई जा सकती है। श्रम की पूर्ति दो बातों पर निर्भर रहती है|

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  • श्रम की कार्यकुशलता,
  • जनसंख्या

9. श्रम में पूँजी का विनियोग किया जा सकता है श्रम उत्पत्ति का एक सजीव व सक्रिय साधन है। प्रशिक्षण, शिक्षा, अच्छे पोषण, उच्च जीवन-स्तर, आदि से श्रम की शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों में वृद्धि की जा सकती है।

10. श्रम उत्पत्ति का गतिशील साधन है श्रम में भूमि की अपेक्षा अधिक गतिशीलता होती है। श्रम एक स्थान से दूसरे स्थान पर, एक व्यवसाय से दूसरे व्यवसाय में और एक उद्योग से दूसरे उद्योग में गतिशील रहता है।

11. श्रम उत्पत्ति का आवश्यक साधन है श्रम के बिना उत्पादन बिल्कुल असम्भव है, क्योंकि उत्पत्ति के अन्य साधन-भूमि एवं पूँजी उत्पत्ति के निष्क्रिय साधन हैं। उनमें उत्पादन करने के लिए श्रम जैसे सक्रिय साधन की अनिवार्यता होती है। इसी कारण श्रम की उत्पत्ति के अन्य साधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्व है।

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प्रश्न 2.
श्रम की विशेषताएँ बताइटे। श्रम कितने प्रकार का होता है? (2017)
उत्तर:
श्रम की विशेषताएँ

1. श्रम उत्पत्ति का सक्रिय साधन है श्रम उत्पत्ति का सक्रिय साधन है, जबकि भूमि और पूँजी उत्पत्ति के निष्क्रिय साधन हैं श्रम के अभाव में पूँजी और भूमि कोई उत्पत्ति नहीं कर सकती है। प्रबन्ध और संगठन भी श्रम के ही विशिष्ट रूप हैं।

2. श्रम नाशवान है श्रम की सबसे बड़ी विशेषता श्रम का नाशवान होना है। यदि किसी दिन श्रमिक कार्य नहीं करता, तो उसका उस दिन का श्रम हमेशा के लिए नष्ट हो जाता है।

3. श्रमिक अपने श्रम को बेचता है स्वयं को नहीं श्रमिक को वहाँ उपस्थित रहना पड़ता है, जहाँ श्रम करना है। अतः श्रमिकों को अपना श्रम बेचते समय कार्य करने की जगह, कार्य की प्रकृति, भौतिक वातावरण, मालिकों के स्वभाव, आदि पर ध्यान देना आवश्यक होता है।

4. श्रमिक की मोल-भाव करने की क्षमता कम होती है श्रम के नाशवान होने तथा श्रम को श्रमिक से अलग न किए जा सकने के कारण श्रमिकों की मोल-भाव (सौदा) करने की शक्ति कमजोर होती है। श्रमिकों की दरिद्रता, अकुशलता तथा वैकल्पिक रोजगार के अभाव में भी वे मालिकों की तुलना में कमजोर रह जाते हैं।

5. श्रम साधन और साध्य दोनों है श्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि (UPBoardSolutions.com) श्रम न केवल उत्पत्ति का एक सक्रिय साधन है, वरन् उपभोक्ता के रूप में सम्पूर्ण आर्थिक क्रियाओं का साध्य भी है। समस्त आर्थिक कार्यों का अन्तिम लक्ष्य अधिकतम मानव कल्याण होता है।

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6. श्रम अपनी बुद्धि, तर्क व निर्णय शक्ति का प्रयोग करता है श्रमिक किसी कार्य को सम्पन्न करने में अपनी बुद्धि, तर्क व निर्णय शक्ति का प्रयोग करता है, जिससे आविष्कार, अनुसन्धान व नई तकनीकों का विकास होता है। विभिन्न यन्त्रों का संचालन करने हेतु श्रमिकों को अपनी बौद्धिक व शारीरिक क्षमता को उपयोग में लाना पड़ता है।

7. श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है। श्रमिक श्रम का स्वामी है और जब वह उसे बेचता है, तो श्रम प्रदान करने के स्थान पर श्रमिक का उपस्थित रहना  अनिवार्य होता है।

8. श्रम की पूर्ति में परिवर्तन धीमी गति से होता है श्रम की पूर्ति को अल्पकाल में बढ़ाना कठिन है। दीर्घकाल में श्रम की पूर्ति धीमी गति से बढ़ाई जा सकती है। श्रम की पूर्ति दो बातों पर निर्भर रहती है|

  • श्रम की कार्यकुशलता,
  • जनसंख्या

9. श्रम में पूँजी का विनियोग किया जा सकता है श्रम उत्पत्ति का एक सजीव व सक्रिय साधन है। प्रशिक्षण, शिक्षा, अच्छे पोषण, उच्च जीवन-स्तर, आदि से श्रम की शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों में वृद्धि की जा सकती है।

10. श्रम उत्पत्ति का गतिशील साधन है श्रम में भूमि की अपेक्षा अधिक गतिशीलता होती है। श्रम एक स्थान से दूसरे स्थान पर, एक व्यवसाय से दूसरे व्यवसाय में और एक उद्योग से दूसरे उद्योग में गतिशील रहता है।

11. श्रम उत्पत्ति का आवश्यक साधन है श्रम के बिना उत्पादन बिल्कुल असम्भव है, क्योंकि उत्पत्ति के अन्य साधन-भूमि एवं पूँजी उत्पत्ति के निष्क्रिय साधन हैं। उनमें उत्पादन करने के लिए श्रम जैसे सक्रिय साधन की अनिवार्यता होती है। इसी कारण श्रम की उत्पत्ति के अन्य साधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्व है।

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श्रम के प्रकार श्रम को निम्नलिखित तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता

1. कुशल एवं अकुशल श्रम वह कार्य, जिसे करने से पूर्व किसी विशेष शिक्षा, ज्ञान अथवा प्रशिक्षण, आदि की आवश्यकता होती है, वह ‘कुशल श्रम’ कहलाता है; जैसे-वकील, इंजीनियर, डॉक्टर, अध्यापक, आदि के कार्य। इसके विपरीत ऐसा कार्य, जिसे करने से पूर्व किसी विशेष प्रकार की शिक्षा या प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती, वह ‘अकुशल श्रम’ कहलाता है; जैसे-कुली, चौकीदारे तथा चपरासी, आदि का श्रम्।

2. उत्पादक एवं अनुत्पादक श्रम मनुष्य के जिस प्रयत्न से उपयोगिता का सृजन होता है तथा उसे उसके उद्देश्य में सफलता प्राप्त होती है, उसे ‘उत्पादक श्रम’ कहते हैं; जैसे- यदि एक बढ़ई कुर्सी बनाने में लगा है। और कुर्सी बनकर तैयार हो जाती है, तो यह (UPBoardSolutions.com) श्रम उत्पादक श्रम है। इसके विपरीत, मनुष्य द्वारा किए गए ऐसे प्रयास जिनसे उपयोगिता का सृजन नहीं होता तथा उसके उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती, उसे ‘अनुत्पादक श्रम’ कहते हैं; जैसे-बढ़ई द्वारा कुर्सी बनाने के लिए काटी गई लकड़ी के गलत कट जाने से कुर्सी नहीं बन पाती, तो यह श्रम अनुत्पादक श्रम है।

3. मानसिक एवं शारीरिक श्रम जिस कार्य को करने में मानसिक शक्ति का उपयोग शारीरिक शक्ति की अपेक्षा अधिक होता है, उस कार्य में लगा श्रम ‘मानसिक श्रम’ कहलाता है; जैसे-डॉक्टर, वकील, अध्यापक, आदि का श्रम मानसिक श्रम है। इसके विपरीत, जब किसी कार्य को करने में मानसिक शक्ति की अपेक्षा शारीरिक शक्ति का अधिक उपयोग होता है, तो उस कार्य में लगा श्रम ‘शारीरिक श्रम’ कहलाता है; जैसे—कुली, मजदूर, लुहार, आदि का श्रम
शारीरिक श्रम है।

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प्रश्न 3.
श्रम की कार्यक्षमता से आप क्या समझते हैं? यह किन घटकों पर निर्भर होती है? (2016)
अथवा
‘श्रम की कार्यक्षमता से आप क्यों समझते हैं? श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए। (2018)
उत्तर:
श्रम की कार्यक्षमता से आशय कार्यक्षमता का शाब्दिक अर्थ ‘कार्य करने की शक्ति से होता है। श्रम की कार्यक्षमता (Efficiency of Labour) से तात्पर्य किसी श्रमिक की कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक कार्य करने की योग्यती या क्षमता से होता है। श्रम की कार्यक्षमता सापेक्षित होती है। श्रम की माँग परोक्ष होती है। कार्यक्षमता का अनुमान दो व्यक्तियों की तुलना करके लगाया जा सकता है।

मौरलैण्ड के अनुसार, “श्रम की कार्यक्षमता से हमारा अभिप्राय किसी निश्चित मात्रा में लगाए गए श्रम की अपेक्षा उत्पादित सम्पत्ति के अधीन होने से है।” प्रो. निर्वान एवं शर्मा के अनुसार, “श्रम की कार्यक्षमता का अर्थ किसी श्रमिक की उस क्षमता से है जिसके द्वारा वह अधिक उत्तम वस्तु की, अधिक मात्रा में वस्तु का या दोनों का उत्पादन करता है।”

श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व/घटक श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व/घटक निम्नलिखित हैं-

 1. पुरस्कार व उन्नति की आशा यदि श्रमिक को कार्य करने से उचित मजदूरी, पुरस्कार या पदोन्नति मिलती है, तो श्रमिक अधिक कुशलता से कार्य को सम्पन्न करते हैं। कम मजदूरी पाने वाले श्रमिकों में कुशलता की कमी होती है।

2. शिक्षा तथा प्रशिक्षण एक शिक्षित व विशेष प्रशिक्षण प्राप्त श्रमिक, अप्रशिक्षित श्रमिक की तुलना में अधिक कुशलता से कार्य करता है। प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति कार्य को शीघ्र समझकर सम्पन्न कर देता है।

3. प्रबन्धकों की योग्यता व व्यवहार प्रबन्धकों की व्यवहार कुशलता व योग्यता का श्रमिकों की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। प्रबन्धकों के अच्छे व्यवहार से श्रमिक योग्यतानुसार नवीन तकनीकी कार्यों को उचित रूप से पूर्ण कर सकते हैं।

4. पैतृक व जातीय गुण श्रमिकों की कार्यकुशलता पर उसके पैतृक गुणों व जातीय गुणों का भी प्रभाव पड़ता है। इन गुणों का उनकी कार्यक्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बच्चे पैतृक गुणों को शीघ्र ही सीख लेते हैं।

5. नैतिक गुण श्रमिकों में नैतिक गुणों से कर्तव्यनिष्ठा का भाव उत्पन्न होता है, इससे श्रमिक अपने कर्तव्य का समय से निर्वहन करता है। ऐसे श्रमिक ईमानदार, सच्चे व कर्त्तव्यपरायण होते हैं।

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6. सामान्य बुद्धिमत्ता श्रमिक की सामान्य बुद्धि का भी कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। सामान्य बुद्धि वाले श्रमिक कम बुद्धि वाले श्रमिक की तुलना में अधिक कार्यकुशल होते हैं। सामान्य बुद्धि के व्यक्ति या श्रमिक कार्य को समय पर निष्पादित करते हैं।

7. काम करने की दशाएँ जिन कारखानों में श्रमिकों के लिए स्वस्थ वातावरण व उसके परिवार के लिए शिक्षा, मनोरंजन, खेलकद, रोशनी, स्वच्छ पानी, आदि अनिवार्यताओं की व्यवस्था होती है, वहाँ श्रमिकों की कार्यक्षमता अधिक होती है। ऐसी व्यवस्था उपलब्ध नहीं होने से श्रमिकों की कार्यक्षमता में कमी होती है।

8. जलवायु तथा प्राकृतिक दशाएँ श्रमिकों की कार्यकुशलता पर जलवायु व प्राकृतिक वातावरण का भी अधिक प्रभाव पड़ता है। अधिक सर्द व अधिक गर्म जलवायु में अधिक देर तक कार्य नहीं किया जा सकता है, जबकि शीतोष्ण जलवायु में श्रमिक अधिक देर तक कार्य कर सकते हैं।

प्रश्न 4.
श्रम की कार्यक्षमता से आप क्या समझते हैं? भारतीय श्रमिकों की कार्यक्षमता कम होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
श्रम की कार्यक्षमता
श्रम की कार्यक्षमता से आशय कार्यक्षमता का शाब्दिक अर्थ ‘कार्य करने की शक्ति से होता है। श्रम की कार्यक्षमता (Efficiency of Labour) से तात्पर्य किसी श्रमिक की कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक कार्य करने की योग्यती या क्षमता से होता है। श्रम की कार्यक्षमता सापेक्षित होती है। श्रम की माँग परोक्ष होती है। कार्यक्षमता का अनुमान दो व्यक्तियों की तुलना करके लगाया जा सकता है।

मौरलैण्ड के अनुसार, “श्रम की कार्यक्षमता से हमारा अभिप्राय किसी निश्चित मात्रा (UPBoardSolutions.com) में लगाए गए श्रम की अपेक्षा उत्पादित सम्पत्ति के अधीन होने से है।” प्रो. निर्वान एवं शर्मा के अनुसार, “श्रम की कार्यक्षमता का अर्थ किसी श्रमिक की उस क्षमता से है जिसके द्वारा वह अधिक उत्तम वस्तु की, अधिक मात्रा में वस्तु का या दोनों का उत्पादन करता है।”

श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व/घटक श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व/घटक निम्नलिखित हैं-

1. पुरस्कार व उन्नति की आशा यदि श्रमिक को कार्य करने से उचित मजदूरी, पुरस्कार या पदोन्नति मिलती है, तो श्रमिक अधिक कुशलता से कार्य को सम्पन्न करते हैं। कम मजदूरी पाने वाले श्रमिकों में कुशलता की कमी होती है।

2. शिक्षा तथा प्रशिक्षण एक शिक्षित व विशेष प्रशिक्षण प्राप्त श्रमिक, अप्रशिक्षित श्रमिक की तुलना में अधिक कुशलता से कार्य करता है। प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति कार्य को शीघ्र समझकर सम्पन्न कर देता है।

3. प्रबन्धकों की योग्यता व व्यवहार प्रबन्धकों की व्यवहार कुशलता व योग्यता का श्रमिकों की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। प्रबन्धकों के अच्छे व्यवहार से श्रमिक योग्यतानुसार नवीन तकनीकी कार्यों को उचित रूप से पूर्ण कर सकते हैं।

4. पैतृक व जातीय गुण श्रमिकों की कार्यकुशलता पर उसके पैतृक गुणों व जातीय गुणों का भी प्रभाव पड़ता है। इन गुणों का उनकी कार्यक्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बच्चे पैतृक गुणों को शीघ्र ही सीख लेते हैं।

5. नैतिक गुण श्रमिकों में नैतिक गुणों से कर्तव्यनिष्ठा का भाव उत्पन्न होता है, इससे श्रमिक अपने कर्तव्य का समय से निर्वहन करता है। ऐसे श्रमिक ईमानदार, सच्चे व कर्त्तव्यपरायण होते हैं।

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6. सामान्य बुद्धिमत्ता श्रमिक की सामान्य बुद्धि का भी कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। सामान्य बुद्धि वाले श्रमिक कम बुद्धि वाले श्रमिक की तुलना में अधिक कार्यकुशल होते हैं। सामान्य बुद्धि के व्यक्ति या श्रमिक कार्य को समय पर निष्पादित करते हैं।

7. काम करने की दशाएँ जिन कारखानों में श्रमिकों के लिए स्वस्थ वातावरण व (UPBoardSolutions.com) उसके परिवार के लिए शिक्षा, मनोरंजन, खेलकद, रोशनी, स्वच्छ पानी, आदि अनिवार्यताओं की व्यवस्था होती है, वहाँ श्रमिकों की कार्यक्षमता अधिक होती है। ऐसी व्यवस्था उपलब्ध नहीं होने से श्रमिकों की कार्यक्षमता में कमी होती है।

8. जलवायु तथा प्राकृतिक दशाएँ श्रमिकों की कार्यकुशलता पर जलवायु व प्राकृतिक वातावरण का भी अधिक प्रभाव पड़ता है। अधिक सर्द व अधिक गर्म जलवायु में अधिक देर तक कार्य नहीं किया जा सकता है, जबकि शीतोष्ण जलवायु में श्रमिक अधिक देर तक कार्य कर सकते हैं।

भारतीय श्रमिकों की अकुशलता या कार्यक्षमता कम होने के कारण भारतीय श्रमिकों की अकुशलता या कार्यक्षमता कम होने के कारण निम्नलिखित

1. शारीरिक दुर्बलता भारतीय श्रमिकों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य कमजोर होने से ये कठिन परिश्रम नहीं कर पाते हैं, इससे उनकी कार्यक्षमता में कमी आती है।

2. गर्म जलवायु भारत में गर्म जलवायु होने के कारण श्रमिकों की कार्यकुशलता |में कमी होती है, इसलिए भारतीय श्रमिक अकुशल होते हैं।

3. भर्ती की दोषपूर्ण प्रणाली भारत में श्रमिकों की अधिकांश भर्तियाँ ठेकेदारों के माध्यम से होती हैं। ठेकेदार इसके लिए कमीशन या दस्तूरी लेते हैं। ऐसा करने से ठेकेदार अपने स्वार्थ के लिए पुराने अनुभवी श्रमिकों को निकाल देते हैं एवं नए श्रमिकों को भर्ती करते रहते हैं, जिससे कार्यकुशलता में कमी आती है।

4. नैतिकता का अभाव भारतीय श्रमिकों में कर्तव्यनिष्ठा का अभाव होने के कारण इनकी कार्यक्षमता में कमी होती है।

5. निर्धनता व निम्न स्तर का रहन-सहन भारतीय श्रमिकों के गरीब होने के कारण उन्हें भरपेट भोजन व अन्य पर्याप्त सुविधाएँ नहीं मिल पाती हैं। इससे श्रमिकों की कार्यकुशलता में कमी आती है।

6. प्रवासी प्रवृत्ति भारतीय श्रमिक कारखानों में स्थायी रूप से कार्य नहीं करते हैं। इस प्रवृत्ति के कारण श्रमिक फसल के समय व विशेष उत्सवों व त्यौहार पर अपने गाँव चले जाते हैं। इससे श्रमिकों की कार्यकुशलता में कमी आती है।

7. श्रमिकों को संघर्ष भारत में आए दिन पूँजीपति व श्रमिकों में संघर्ष चलता रहता है, जिससे तालाबन्दी वे हड़ताल जैसी घटनाएँ जन्म ले लेती हैं। ऐसे में संघर्ष कर रहे श्रमिकों की कार्यक्षमता में कमी होना स्वाभाविक है।

8. प्रशिक्षण का अभाव भारत में तकनीकी शिक्षा का अभाव होने के कारण श्रमिकों की कार्यकुशलता में कमी होती है।

9. काम करने की दशाएँ भारत में अधिकांश कारखानों में दूषित वातावरण होता है, जिससे हवा, पानी व रोशनी की उचित व्यवस्था नहीं होती है। मजदूरों के लिए मशीन पर कार्य करने की सुरक्षा भी नहीं होती है। इससे श्रमिकों की कार्यकुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

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10. स्वतन्त्रता व.पदोन्नति का अभाव भारतीय श्रमिकों में स्वतन्त्रता का अभाव होता है वे इनकी समय पर पदोन्नति भी नहीं की जाती है। इससे श्रमिकों में निराशाजनक प्रवृत्ति उत्पन्न होती है और उनकी कार्यक्षमता में कमी आती है।

11. काम करने की समयावधि भारत में गर्म जलवायु होने पर भी कार्य करने (UPBoardSolutions.com) के घण्टे 8 या 9 हैं, जबकि अमेरिका व यूरोप में कार्य करने के घण्टे 6 या 7 हैं। भारत में ‘कारखाना अधिनियम द्वारा निर्धारित किए गए कार्य के घण्टे भी अधिक हैं। इसी कारण भारतीय श्रमिकों की कार्यक्षमता कम है।

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UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज

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अभ्यास

प्रश्न 1.
ब्याज की गणना करो-
(क) मूलधन रु. 700, दर 5% , समय 2 वर्ष।
हल:
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 1

(ख) मूलधन रु. 450, दर 7% , समय 3 वर्ष
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 2

(ग) मूलधन रु. 1000, दर 6% , समय 1 वर्ष
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 3

प्रश्न 2.
दिनेश ने घर बनवाने के लिए 15000 रुपए, 15% वार्षिक ब्याज की दर से बैंक से ऋण लिया। 3 वर्ष बीतने पर दिनेश को कितने रुपए वापस करने होंगे?
हल:
मूलधन = 15000 रु०, दर = 15 % वार्षिक, समय = 3 वर्ष
ब्याज = [latex]\frac{15000 \times 15 \times 3}{100}[/latex] = 6750 रु०
अतः 3 वर्ष बाद दिनेश को धन वापस करना होगा = 15000 + 6750 = 21750 रु.

प्रश्न 3.
मथुरा ने दुकान खोलने के लिए 16000 रु० बैंक से 10% वार्षिक ब्याज पर ऋण लिया। 2 वर्ष बाद उसे कितने रुपए वापस करने होंगे। मथुरा के पास इस समय 15000 रुपए हैं। ऋण चुकाने के लिए उसे कितने रुपए और चाहिए?
हल:
मूलधन = 16000 रु०, दर = 10% , समय = 2 वर्ष
ब्याज = [latex]\frac{16000 \times 10 \times 2}{100}[/latex] = 3200 रु.
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 4
अतः मथुरा को ऋण चुकाने के लिए 4200 रु. और चाहिए।

प्रश्न 4.
जुबैदा ने सिलाई मशीन खरीदने के लिए 4000 रुपए 12% वार्षिक ब्याज की दर से उधार लिए। 3 वर्ष बाद उसे कितने रुपए लौटाने होंगे?
हल:
मूलधन = 4000रु०, दर = 12% वार्षिक, समय = 3 वर्ष
ब्याज = [latex]\frac{4000 \times 12 \times 3}{100}[/latex] = 1440 रु०
अत: 3 वर्ष बाद जुबैदा को रुपए लौटाने होंगे = 4000 + 1440 = 5440 रु.

कितना सीखा-3

प्रश्न 1.
8, 0, 6, 0, 1 से बनने वाली पाँच अंकों की सबसे बड़ी और सबसे छोटी संख्याएँ लिखो। जबकि शून्य के अतिरिक्त कोई अंक दोहराया नहीं जाता है।
हल:
सबसे बड़ी संख्या = 86100
सबसे छोटी संख्या = 10068

प्रश्न 2.
दी गई संख्याओं का मस. निकालो।
(क) 32,48.
हल:
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 5

(ख) 21,35
हल:
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 6

प्रश्न 3.
वह बड़ी से बड़ी संख्या बताओ, जिससे 15, 30 और 45 को पूरा-पूरा विभाजित किया जा सके।
हल:
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 7
अतः बड़ी से बड़ी संख्या = 15

प्रश्न 4.
एक टोकरी के फूलों से 18, 48 और 40 फूलों की मालाएँ बन सकती हैं। टोकरी में कम से कम कितने फूल हैं?
हल:
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 8

प्रश्न 5.
मान बताओ (मान बताकर)-
हल:
(क)
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 9

(ख)
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 10

(ग)
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 11

प्रश्न 6.
निम्नलिखित भिन्नों को दशमलव में बदलो (बदलकर)
हन:
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 12

प्रश्न 7.
निम्नलिखित दशमलव संख्याओं को भिन्नों में बदलो (बदलकर)
हल:
(क)
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 13

(ख)
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 14

(ग)
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 15

(घ)
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 16

प्रश्न 8.
मान बताओ (मान बताकर)-
हल:
(क) 0.023 × 100 = 2.3
(ख)1.541 × 1000 = 1541

प्रश्न 9.
एक दुकानदार को 500 रुपए की लागत पर 8% का लाभ हुआ। उसे कुल कितने रुपए का लाभ हुआ?
हल:
दुकानदार को लाभ हुआ = 500 रुपए का 8% = [latex]\frac{500 \times 8}{100}[/latex] = 40 रुपए

प्रश्न 10.
[latex]\frac{3}{4}[/latex] को प्रतिशत में लिखो।
हल:
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 17

प्रश्न 11.
निम्नांकित सारिणी में रिक्त स्थान की पूर्ति करके (पाठ्यपुस्तक के अनुसार)-
हल:
(क) लाभ = 90 रु०
(ख) विक्रय मूल्य = 580 रु०
(ग) क्रय मूल्य = 13000 रु०

प्रश्न 12.
रु. 750 का 3 वर्ष में 5% वार्षिक ब्याज की दर से साधारण ब्याज ज्ञात कीजिए।
हल:
मूलधन = 750 रु०, समय = 3 वर्ष, दर = 5 % वार्षिक
साधायान ब्याज = [latex]\frac{750 \times 3 \times 5}{100}=\frac{225}{2}[/latex] = 112.50 रुपए

प्रश्न 13.
सरल करोहल:
(क)
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 18

(ख)
UP Board Solutions for Class 5 Maths गिनतारा Chapter 12 साधारण ब्याज 19
(ग) 526880 ÷ 32 = 16465
(घ) 598292 × 267 = 159743964

प्रश्न 14.
15 पुस्तकों का मूल्य 85.50 हैं। ऐसी ही 37 पुस्तकों का मूल्य कितना होगा?
(क) 555 रुपए
(ख) 210.90 रुपए
(ग) 2843.50 रुपए
(घ) 2109 रुपए
हल:
∵ 15 पुस्तकों का मूल्य = 85.50 रु०
∴ 1 पुस्तक का मूल्य [latex]\frac{85.50}{15}[/latex]
∴ 37 पुस्तकों का मूल्य = 8[latex]\frac{85.50}{15}[/latex] × 37 = 210.90 रु० (ख) सही है।

UP Board Solutions for Class 5 Maths Gintara

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 23 भूमि

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 23 भूमि are the part of UP Board Solutions for Class 10 Commerce. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 23 भूमि.

Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 23
Chapter Name भूमि
Number of Questions Solved 19
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 23 भूमि

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
प्रकृति द्वारा प्रदत्त निःशुल्क उपहार है।
(a) श्रम
(b) धन
(c) भूमि
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) भूमि

प्रश्न 2.
भूमि उत्पादन का…….साधन है।
(a) सक्रिय
(b) निष्क्रिये
(c) ‘a’ और ‘b’ दोनों :
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) निष्क्रिय

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प्रश्न 3.
भूमि की विशेषता है। (2018)
(a) असीमित भूमि
(b) सक्रिय साधन
(c) अनाशवान
(d) गतिशील
उत्तर:
(c) अनाशवान

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
क्या भूमि को भू-स्वामी से पृथक् नहीं किया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 2.
क्या भूमि का आशय प्रकृति-प्रदत्त सभी निःशुल्क उपहारों से है। (2014)
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 3.
भूमि उत्पादन का साधन है/नहीं है। (2007)
उत्तर:
साधन है।

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प्रश्न 4.
भूमि उत्पादन का सक्रिय साधन है/नहीं है। (2008)
उत्तर:
नहीं है।

प्रश्न 5.
भूमि उत्पादन का अनिवार्य/गौण उपादान है।
उत्तर:
अनिवार्य उपादान है।

प्रश्न 6.
भूमि उत्पादन का असीमित/सीमित साधन है। (2012)
उत्तर:
सीमित

प्रश्न 7.
क्या भूमि साधन एवं साध्य दोनों है?
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 8.
क्या भूमि का मूल्य उसकी स्थिति पर निर्भर करता है?
उत्तर:
हाँ।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
भूमि से आप क्या समझते हैं? (2012)
अथवा
अर्थशास्त्र में भूमि का क्या अर्थ है? (2012)
उत्तर:
भूमि (Land) उत्पादन का सबसे अनिवार्य, महत्त्वपूर्ण (UPBoardSolutions.com) तथा निष्क्रिय साधन है। सामान्य भाषा में भूमि का अभिप्राय केवल भूमि की ऊपरी सतह से होता है, परन्तु अर्थशास्त्र में भूमि का अभिप्राय उन समस्त प्राकृतिक उपहारों से है, जिसके अन्तर्गत भूमि की सतह, वायु, प्रकाश, खनिज, जल, आदि प्रकृति-प्रदत्त पदार्थ सम्मिलित होते हैं।

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प्रश्न 2.
भूमि की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भूमि की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. भूमि प्रकृति का निःशुल्क उपहार है भूमि को प्रकृति का एक नि:शुल्क उपहार बताया गया है। भूमि के अन्तर्गत भूमि की सतह, जंगल, पहाड़, पठार, नदी-नाले, खनिज, समुद्र, आदि प्रकृति से प्राप्त पदार्थ सम्मिलित हैं, जो हमें निःशुल्क प्राप्त होते हैं।

2. भूमि निष्क्रिय होती है भूमि उत्पत्ति का एक अनिवार्य साधन है, परन्तु यह एक निर्जीव साधन है। भूमि उत्पत्ति की क्रिया में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेती है। इसमें किसी व्यक्ति द्वारा श्रम लगाकर उत्पादन कार्य किया जा सकता है। मनुष्य द्वारा (UPBoardSolutions.com) भूमि पर श्रम करके उत्पादन सम्भव हो पाता है।

प्रश्न 3.
भूमि के मूल तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मार्शल के अनुसार, भूमि में निम्न तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है-

  1. भूमि की ऊपरी सतह जिस पर मनुष्य चलता-फिरता है, घूमता है तथा कार्य करता है, उसे पृथ्वी की ऊपरी सतह कहते हैं। इसमें पर्वत, नदियाँ, जंगल, मैदान, पठार, झील, प्राकृतिक बन्दरगाह, आदि तथा प्राकृतिक वनस्पतियाँ; जैसे-वन, पेड़-पौधे, घास, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, आदि आते हैं।
  2. भूमि की सतह के नीचे इसमें लौहा, कोयला, सोना, तेल, ताँबा, (UPBoardSolutions.com) अभ्रक, आदि खनिज पदार्थ आते हैं।
  3. भूमि की सतह के ऊपर इसमें जलवायु, धूप, वर्षा, पानी, सर्दी-गर्मी, आदि आते हैं।

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प्रश्न 4.
भूमि के दो महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
भूमि के दो महत्त्व निम्नलिखित हैं

  1. यातायात के साधनों के विकास का आधार किसी देश के यातायात व संचार के साधनों का विकास उस देश की भूमि के स्वरूप पर आधारित होता है।
  2. कृषि का आधार भूमि कृषि का आधार है। कृषि कार्य भूमि के बिना नहीं किया जा सकता है। सभी प्रकार के भोज्य-पदार्थ भूमि से ही प्राप्त होते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
भूमि की कार्यक्षमता से क्या आशय है? इसको प्रभावित करने वाले तत्वों को लिखिए।
उत्तर:
भूमि की कार्यक्षमता भूमि का प्रयोग जिस कार्य के लिए होता है, उसके लिए भूमि की उपयुक्तता को भूमि की कार्यक्षमता’ (Efficiency of Land)
कहते हैं; जैसे- उपजाऊ मैदानों में बहने वाली नदियाँ बिजली उत्पादन के लिए उपयुक्त होती हैं। भूमि की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व भूमि की कार्यक्षमता निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है

1. भूमि सम्बन्धी कानून भूमि के सम्बन्ध में सरकार की नीति एवं भूमि सम्बन्धी कानून का भी भूमि की उत्पादकता पर प्रभाव पड़ता है। जहाँ किसानों का भूमि पर पूर्ण स्वामित्व सम्बन्धी कानून होता है, वहाँ किसान | भूमि पर अथक परिश्रम करके भूमि (UPBoardSolutions.com) की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।

2. भूमि की स्थिति भूमि की स्थिति से भी भूमि की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। शहर से दूर या मुख्य मार्ग से हटकर स्थित भूमि शहर के निकट की भूमि से कम कार्यक्षमता वाली मानी जाती है। शहर के मुख्य मार्ग की भूमि मकान के लिए तथा अल्पविकसित या ग्रामीण क्षेत्रों की भूमि कृषि के लिए उत्तम होती है। ऐसी स्थिति में यातायात व्यय भी कम होते हैं।

3. प्राकृतिक तत्त्व भूमि के प्राकृतिक गुण; जैसे-उर्वरा शक्ति, जलवायु, सर्य का प्रकाश, मिटटी, वर्षा, भमि की सतह की बनावट आदि से भमि की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। जो भमि जिस कार्य के लिए उपयोगी होती है, उस भूमि पर वही कार्य किया जाए, तो उससे भूमि की कार्यक्षमता अधिक बनी रहती है; जैसे-काली मिट्टी में कपास और भुरभुरी मिट्टी में गेहूं बोने पर भूमि की उत्पादकता में वृद्धि होती है। भूमि की उत्पादन शक्ति प्राकृतिक तत्त्वों पर भी निर्भर करती है।

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4. आर्थिक तत्त्व भूमि की कार्यक्षमता पूँजी की मात्रा, भूमि को स्वामित्व, संगठन की योग्यता, कुशलता, आदि से भी प्रभावित होती है।

5. मानवीय प्रयास द्वारा किया गया भूमि सुधार भूमि पर कार्य करने वाले मनुष्यों के प्रयत्नों का भूमि की कार्यक्षमता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। मनुष्य भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए उर्वरकों का प्रयोग करते हैं तथा सिंचाई के साधनों का विकास करके भूमि के प्रति (UPBoardSolutions.com) सुधारात्मक कार्य करते हैं, परन्तु ये कार्य भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम करते हैं तथा भूमि का कटाव करते हैं।

6. भूमि को उपजाऊपन भूमि की कार्यक्षमता भूमि की उर्वरा शक्ति से भी प्रभावित होती है।

7. संगठनकर्ता की योग्यता भूमि की कार्यक्षमता एक कुशल संगठनकर्ता पर भी निर्भर करती है। किस भूमि के लिए किस अनुपात में बीज तथा खाद या उर्वरक का प्रयोग किया जाना चाहिए, यह संगठनकर्ता की योग्यता पर ही निर्भर करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
भूमि क्या है? उत्पादन के साधन के रूप में भूमि के प्रमुख लक्षणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2013, 08)
उत्तर:
भूमि का अर्थ भूमि उत्पादन का सबसे अनिवार्य व महत्त्वपूर्ण साधन है। साधारण भाषा में, भूमि का अभिप्राय केवल भूमि की ऊपरी सतह से होता है, परन्तु अर्थशास्त्र में भूमि का अभिप्राय उन समस्त प्राकृतिक उपहारों से है जिसके अन्तर्गत भूमि की सतह, वायु, प्रकाश, खनिज, जल, आदि प्रकृति-प्रदत्त पदार्थ सम्मिलित होते हैं। मार्शल के अनुसार, “भूमि का अर्थ केवल भूमि की ऊपरी सतह से नहीं है, वरन् उन समस्त भौतिक पदार्थों एवं शक्तियों से है, जो प्रकृति ने मनुष्य की सहायतार्थ नि:शुल्क रूप से जल, वायु और प्रकाश के रूप में प्रदान की हैं।”

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स्मिथ एवं पैटरसन के अनुसार, “प्रकृति की कोई भी भेट, जिसे हम आवश्यकता की सन्तुष्टि के लिए प्रयोग में लाते हैं, प्राकृतिक साधन या भूमि एस. के. रुद्र के अनुसार, “भूमि में वे समस्त शक्तियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें प्रकृति निःशुल्क उपहारों के रूप में प्रदान करती है।” भूमि की विशेषताएँ या लक्षण भूमि की विशेषताएँ या लक्षण निम्नलिखित

  1. भूमि प्रकृति का निःशुल्क उपहार है भूमि को प्रकृति का एक नि:शुल्क उपहार बताया गया है। भूमि के अन्तर्गत भूमि की सतह, जंगल, पहाड़, पठार, नदी-नाले, खनिज, समुद्र, आदि प्रकृति से प्राप्त पदार्थ सम्मिलित हैं, जो हमें नि:शुल्क प्राप्त होते हैं।
  2. भूमि निष्क्रिय होती है भूमि उत्पत्ति का एक अनिवार्य साधन है। लेकिन यह एक निर्जीव साधन है। भूमि उत्पत्ति की क्रिया में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेती है। इसमें किसी व्यक्ति द्वारा श्रम लगाकर उत्पादन कार्य किया जा सकता है। मनुष्य द्वारा भूमि पर श्रम करके उत्पादन सम्भव किया जाता है।
  3. भूमि में विविधता पाई जाती है प्रत्येक स्थान का भू-तले अपनी स्थिति व उर्वरा शक्ति के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है; जैसे-कहीं पर उपजाऊ भूमि पाई जाती है, तो कही पर बंजर, कहीं पर लाल मिट्टी पाई जाती है, तो कहीं पर काली मिट्टी।
  4. भूमि सीमित है भूमि की पूर्ति सीमित होती है तथा इसे बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता है। केवल भूमि पर गहन कृषि कार्य करके प्रभावी पूर्ति को बढ़ाया जा सकता है।
  5. भूमि स्थिर है भूमि अपने स्थान पर स्थिर रहती है। यह अपने (UPBoardSolutions.com) स्थान को छोड़कर कहीं नहीं जा सकती है; जैसे-हिमालय पर्वत को उठाकर अमेरिका नहीं ले जाया जा सकता है।
  6. भूमि नाशवान नहीं है निरन्तर खेती करने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होती है, परन्तु भूमि नष्ट नहीं हो सकती है।
  7. भूमि के विभिन्न उपयोग भूमि के विभिन्न उपयोग; जैसे-खेती, मकान बनाना, कारखाने लगाना, सड़कें बनाना, आदि हो सकते हैं।
  8. भूमि उत्पादन का अनिवार्य साधन भूमि उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण व अनिवार्य साधन है। इसके बिना उत्पादन कार्य करना सम्भव नहीं होता है।
  9. भूमि का मूल्य उसकी स्थिति पर निर्भर करता है भूमि का मूल्य उसकी स्थिति अर्थात् शहर से दूरी, उपजाऊपन, दुर्गम या सुगम स्थान, आदि पर निर्भर करता है; जैसे-शहर के निकट वाली भूमि का मूल्य अधिक होगा, जबकि शहर से दूर स्थित भूमि का मूल्य कम होगा।
  10. भूमि जीवन का आधार भूमि मानव जीवन का आधार है। मानव इसका विभिन्न रूपों में प्रयोग करके अपने जीवन का निर्वाह करता है। जीवन-स्तर की विभिन्न क्रियाओं का आधार ही भूमि है।

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प्रश्न 2.
उत्पादन में भूमि का क्या महत्त्व है? भूमि की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2008)
उत्तर:
भूमि का महत्त्व उत्पत्ति के अनिवार्य साधन में भूमि का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. यातायात के साधनों के विकास का आधार किसी देश के यातायात व संचार के साधनों का विकास उस देश की भूमि के स्वरूप पर आधारित होता है। समतल भूमि पर परिवहन के साधनों का तेजी से विकास किया जा सकता है।
  2. कृषि का आधार भूमि कृषि का आधार है। कृषि कार्य भूमि के बिना नहीं किया जा सकता है। सभी प्रकार के भोज्य पदार्थ भूमि से ही प्राप्त होते हैं।
  3. जीवित रहने का आधार मनुष्य भूमि पर चलता-फिरता है, काम करता है, मकान बनाता है, खेती करता है, कारखानों की स्थापना करता है। इस प्रकार, मनुष्य भूमि के बिना एक पल भी जीवित नहीं रह सकता है।
  4. औद्योगिक विकास का आधार किसी देश का औद्योगिक विकास भूमि पर ही निर्भर करता है, क्योंकि कारखानों के लिए कच्चा माल, खनिज पदार्थ, जल शक्ति, वायु शक्ति, कोयला, आदि की पूर्ति भूमि के द्वारा ही पूर्ण की जाती है।
  5. प्राथमिक उद्योगों का विकास सभी प्रकार के प्राथमिक उद्योग; जैसे कृषि व खनिज व्यवसाय, मछली व्यवसाय, वन व्यवसाय, आदि भूमि पर ही निर्भर होते हैं। सभी प्रकार के खनिज पदार्थ भी भूमि से ही प्राप्त किए जाते हैं।
  6. आर्थिक सम्पन्नता का सूचक भूमि आर्थिक सम्पन्नता का सूचक होती है। (UPBoardSolutions.com) जिस देश के पास जितनी अधिक प्राकृतिक सम्पदा या भूमि होती है, उस देश को उतना ही अधिक सम्पन्न माना जाता है।
  7. रोजगार का आधार भूमि मनुष्य को रोजगार प्रदान करने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। कृषि-प्रधान राष्ट्रों में भूमि का महत्त्व अधिक होता है।
  8. भूमि सम्पूर्ण उत्पादन कार्यों को आधार है भूमि के बिना किसी भी प्रकार का उत्पादन करना असम्भव है। अत: भूमि प्रत्येक प्रकार की उत्पादन गतिविधियों के लिए अनिवार्य है।
  9. विभिन्न वैज्ञानिक कार्यों का आधार मनुष्य भूमि से प्राप्त खनिजों, जल, वायु, आदि को विभिन्न अनुपातों में मिलाकर उससे उपयोगी वस्तुएँ; जैसे दवाइयाँ, मशीनरी, यन्त्र व अन्य वैज्ञानिक विकास की वस्तुएँ बनाता है।
  10. भूमि के द्वारा आय प्राप्ति भूमि के द्वारा आय प्राप्त की जा सकती है। भूमि | के प्रयोगों का विस्तार करके अधिक उत्पादन किया जा सकता है तथा भूमि के वैकल्पिक प्रयोगों द्वारा आय का क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है।

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भूमि की विशेषताएँ
भूमि का अर्थ भूमि उत्पादन का सबसे अनिवार्य व महत्त्वपूर्ण साधन है। साधारण भाषा में, भूमि का अभिप्राय केवल भूमि की ऊपरी सतह से होता है, परन्तु अर्थशास्त्र में भूमि का अभिप्राय उन समस्त प्राकृतिक उपहारों से है जिसके अन्तर्गत भूमि की सतह, वायु, प्रकाश, खनिज, जल, आदि प्रकृति-प्रदत्त पदार्थ सम्मिलित होते हैं। मार्शल के अनुसार, “भूमि का अर्थ केवल भूमि की ऊपरी सतह से नहीं है, वरन् उन समस्त भौतिक पदार्थों एवं शक्तियों से है, जो प्रकृति ने मनुष्य की सहायतार्थ नि:शुल्क रूप से जल, वायु और प्रकाश के रूप में प्रदान की हैं।”

स्मिथ एवं पैटरसन के अनुसार, “प्रकृति की कोई भी भेट, जिसे हम आवश्यकता की सन्तुष्टि के लिए प्रयोग में लाते हैं, प्राकृतिक साधन या भूमि एस. के. रुद्र के अनुसार, “भूमि में वे समस्त शक्तियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें प्रकृति निःशुल्क उपहारों के रूप में प्रदान करती है।” (UPBoardSolutions.com) भूमि की विशेषताएँ या लक्षण भूमि की विशेषताएँ या लक्षण निम्नलिखित

  1. भूमि प्रकृति का निःशुल्क उपहार है भूमि को प्रकृति का एक नि:शुल्क उपहार बताया गया है। भूमि के अन्तर्गत भूमि की सतह, जंगल, पहाड़, पठार, नदी-नाले, खनिज, समुद्र, आदि प्रकृति से प्राप्त पदार्थ सम्मिलित हैं, जो हमें नि:शुल्क प्राप्त होते हैं।
  2. भूमि निष्क्रिय होती है भूमि उत्पत्ति का एक अनिवार्य साधन है। लेकिन यह एक निर्जीव साधन है। भूमि उत्पत्ति की क्रिया में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेती है। इसमें किसी व्यक्ति द्वारा श्रम लगाकर उत्पादन कार्य किया जा सकता है। मनुष्य द्वारा भूमि पर श्रम करके उत्पादन सम्भव किया जाता है।
  3. भूमि में विविधता पाई जाती है प्रत्येक स्थान का भू-तले अपनी स्थिति व उर्वरा शक्ति के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है; जैसे-कहीं पर उपजाऊ भूमि पाई जाती है, तो कही पर बंजर, कहीं पर लाल मिट्टी पाई जाती है, तो कहीं पर काली मिट्टी।
  4. भूमि सीमित है भूमि की पूर्ति सीमित होती है तथा इसे बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता है। केवल भूमि पर गहन कृषि कार्य करके प्रभावी पूर्ति को बढ़ाया जा सकता है।
  5. भूमि स्थिर है भूमि अपने स्थान पर स्थिर रहती है। यह अपने स्थान को छोड़कर कहीं नहीं जा सकती है; जैसे-हिमालय पर्वत को उठाकर अमेरिका नहीं ले जाया जा सकता है।
  6. भूमि नाशवान नहीं है निरन्तर खेती करने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होती है, परन्तु भूमि नष्ट नहीं हो सकती है।
  7. भूमि के विभिन्न उपयोग भूमि के विभिन्न उपयोग; जैसे-खेती, मकान बनाना, कारखाने लगाना, सड़कें बनाना, आदि हो सकते हैं।
  8. भूमि उत्पादन का अनिवार्य साधन भूमि उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण व अनिवार्य साधन है। इसके बिना उत्पादन कार्य करना सम्भव नहीं होता है।
  9. भूमि का मूल्य उसकी स्थिति पर निर्भर करता है भूमि का मूल्य उसकी स्थिति अर्थात् शहर से दूरी, उपजाऊपन, दुर्गम या सुगम स्थान, आदि पर निर्भर करता है; जैसे-शहर के निकट वाली भूमि का मूल्य अधिक होगा, जबकि शहर से दूर स्थित भूमि का मूल्य कम होगा।
  10. भूमि जीवन का आधार भूमि मानव जीवन का आधार है। मानव इसका विभिन्न रूपों में प्रयोग करके अपने जीवन का निर्वाह करता है। जीवन-स्तर की विभिन्न क्रियाओं का आधार ही भूमि है।

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प्रश्न 3.
भूमि की उत्पादकता से क्या आशय है? भूमि की उत्पादकता को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
भूमि की उत्पादकता/कार्यक्षमता

भूमि की कार्यक्षमता भूमि का प्रयोग जिस कार्य के लिए होता है, उसके लिए भूमि की उपयुक्तता को भूमि की कार्यक्षमता’ (Efficiency of Land)
कहते हैं; जैसे- उपजाऊ मैदानों में बहने वाली नदियाँ बिजली उत्पादन के लिए उपयुक्त होती हैं। भूमि की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व भूमि की कार्यक्षमता निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है

1. भूमि सम्बन्धी कानून भूमि के सम्बन्ध में सरकार की नीति एवं भूमि सम्बन्धी कानून का भी भूमि की उत्पादकता पर प्रभाव पड़ता है। जहाँ किसानों का भूमि पर पूर्ण स्वामित्व सम्बन्धी कानून होता है, वहाँ किसान | भूमि पर अथक परिश्रम करके भूमि की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।

2. भूमि की स्थिति भूमि की स्थिति से भी भूमि की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। शहर से दूर या मुख्य मार्ग से हटकर स्थित भूमि शहर के निकट की भूमि से कम कार्यक्षमता वाली मानी जाती है। शहर के मुख्य मार्ग की भूमि मकान के लिए तथा अल्पविकसित या ग्रामीण (UPBoardSolutions.com) क्षेत्रों की भूमि कृषि के लिए उत्तम होती है। ऐसी स्थिति में यातायात व्यय भी कम होते हैं।

3. प्राकृतिक तत्त्व भूमि के प्राकृतिक गुण; जैसे-उर्वरा शक्ति, जलवायु, सर्य का प्रकाश, मिटटी, वर्षा, भमि की सतह की बनावट आदि से भमि की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। जो भमि जिस कार्य के लिए उपयोगी होती है, उस भूमि पर वही कार्य किया जाए, तो उससे भूमि की कार्यक्षमता अधिक बनी रहती है; जैसे-काली मिट्टी में कपास और भुरभुरी मिट्टी में गेहूं बोने पर भूमि की उत्पादकता में वृद्धि होती है। भूमि की उत्पादन शक्ति प्राकृतिक तत्त्वों पर भी निर्भर करती है।

4. आर्थिक तत्त्व भूमि की कार्यक्षमता पूँजी की मात्रा, भूमि को स्वामित्व, संगठन की योग्यता, कुशलता, आदि से भी प्रभावित होती है।

5. मानवीय प्रयास द्वारा किया गया भूमि सुधार भूमि पर कार्य करने वाले मनुष्यों के प्रयत्नों का भूमि की कार्यक्षमता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। मनुष्य भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए उर्वरकों का प्रयोग करते हैं तथा सिंचाई के साधनों का विकास करके भूमि के प्रति सुधारात्मक कार्य करते हैं, परन्तु ये कार्य भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम करते हैं तथा भूमि का कटाव करते हैं।

6. भूमि को उपजाऊपन भूमि की कार्यक्षमता भूमि की उर्वरा शक्ति से भी प्रभावित होती है।

7. संगठनकर्ता की योग्यता भूमि की कार्यक्षमता एक कुशल संगठनकर्ता पर भी निर्भर करती है। किस भूमि के लिए किस अनुपात में बीज तथा खाद या उर्वरक का प्रयोग किया जाना चाहिए, यह संगठनकर्ता की योग्यता पर ही निर्भर करता है।

भूमि की उत्पादकता को प्रभावित करने वाले तत्त्वं भूमि की उत्पादकता को निम्नलिखित तत्त्व प्रभावित करते हैं-

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1. सरकारी नीति सरकार द्वारा उचित नीतियाँ अपनाकर भी भूमि की कार्यक्षमता को बढ़ाया जा सकता है। सरकार द्वारा किसानों को साख-सुविधाएँ, सिंचाई सुविधाएँ, आदि प्रदान की जाती हैं, जिससे किसान उन्नत खाद-बीज खरीदकर भूमि की उत्पादकता को बढ़ाता है।

2. सामाजिक तथा राजनीतिक तत्त्व देश की सामाजिक तथा राजनीतिक परिस्थितियाँ भी भूमि की उत्पादकता पर अपना प्रभाव डालती हैं। भारत में भूमि का उपविभाजन, उपखण्डन की समस्याएँ उत्तराधिकार के नियमों के चलते पनप रही हैं, जिससे भूमि की उत्पादकता घट रही है। साथ ही राजनीतिक अस्थिरता भी भूमि की उत्पादन क्षमता पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

3. उन्नत तकनीक उत्पादन में वैज्ञानिक तथा आधुनिक तकनीकों (UPBoardSolutions.com) का प्रयोग कर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। अत: भूमि की उत्पादन-क्षमता पर उन्नत तकनीकों का प्रयोग अपना प्रभाव डालता है।

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 8
Chapter Name हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद
Number of Questions Solved 37
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद

किसी भी भाषा के वाक्यों को दूसरी भाषा के शब्दों में शब्दशः या भावत: बदलने को अनुवाद कहते हैं। अनुवाद शब्द दो शब्दों-अनु = पश्चात्, वाद = कहना–से मिलकर बना है। इसका तात्पर्य है-एक बात को फिर से कहना अर्थात दूसरे अन्य शब्दों में बदलकर कहना। प्रसिद्ध अर्थ में एक भाषा को दूसरी भाषा में परिवर्तित करने को अनुवाद कहते हैं।

यद्यपि संस्कृत भाषा में शब्दों के क्रम में उलट-फेर करने से वाक्य के अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता, फिर भी अनुवाद की सरलता के लिए संस्कृत के वाक्यों का क्रम भी हिन्दी के समान ही होता है; अर्थात् पहले कर्ता, फिर कर्म और अन्त में क्रिया। यह संस्कृत की अपनी विशेषता है कि इसमें कर्ता, कर्म और क्रिया का क्रम आगे-पीछे भी हो सकता है; जैसे-“मैं विद्यालय जाता हूँ।” का संस्कृत में अनुवाद अहं विद्यालयं गच्छामि।’ किया जाता है। फिर भी इसके क्रम को बदलने–विद्यालयम् अहं गच्छामि। गच्छामि विद्यालयम् अहम्। गच्छामि अहं विद्यालयम्- से वाक्य के अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता!

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संस्कृत में अनुवाद करने के लिये निम्नलिखित बातों का ज्ञान परमावश्यक है
(1) वचन- संस्कृत में तीन वचन होते हैं
(क) एकवचन–एक वस्तु के लिए।
(ख) द्विवचन-दो वस्तुओं के लिए।
(ग) बहुवचन-दो से अधिक वस्तुओं के लिए।

सम्मान प्रदर्शन करने के लिए बहुधा बहुवचन सूचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। संस्कृत में अनुवाद करते समय छात्रों को वचन का प्रयोग करते समय अत्यधिक सावधानी रखनी चाहिए।

(2) पुरुष- संस्कृत में पुरुष भी तीन ही होते हैं|
(क) प्रथम पुरुष या अन्य पुरुष–जिसके विषय में बात कही जाये (सः = वह, तौ = वे 
दोनों, ते = वे सब, भवान् = आप, भवन्तौ = आप दोनों, भवन्तः = आप सब)।
(ख) मध्यम पुरुष-जिससे बात कही जाये (त्वम् = तुम, युवाम् = तुम दोनों, यूयम् = तुम 
सब)।
(ग) उत्तम पुरुष–बात कहने वाला (अहम् = मैं, आवाम् = हम दोनों, वयम् = हम सब)।

(3) कर्ता- क्रिया के करने वाले कर्ता कहते हैं। कर्ता में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है। क्रिया से पहले ‘कौन’ लगाने से उत्तर में जो शब्द प्राप्त होता है, उसे ही कर्ता कहते हैं।

(4) क्रिया- जिससे किसी काम को करना या होना पाया जाता है, उसे क्रिया कहते हैं।
(5) काल-क्रिया के तीन प्रमुख काल होते हैं|
(क) वर्तमानकाल–जिससे चल रहे समय का बोध हो। संस्कृत में इसके लिए लट् लकार 
का प्रयोग होता है।
(ख) भूतकाल–जिससे बीते हुए समय का बोध हो। संस्कृत में इसके लिए लङ् लकार 
का प्रयोग होता है।
(ग) भविष्यत्काल—जिससे आने वाले समय का बोध हो। संस्कृत में इसके लिए लुट् 
लकार का प्रयोग होता है।

(6) लिङ्ग- संस्कृत में लिंग का क्रिया पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। लिंग तीन प्रकार के होते हैं
(क) पुंल्लिङ्ग–इससे पुरुष जाति का बोध होता है।
(ख) स्त्रीलिङ्ग-इससे स्त्री जाति का बोध होता है।
(ग) नपुंसकलिङ्ग–जिससे न पुरुष जाति का बोध होता है और न स्त्री जाति का। अनुवाद करते समय छात्रों को लिंग प्रयोग करते समय सावधानी रखनी चाहिए।

(7) कारक- सामान्यत: कारक आठ माने जाते हैं; परन्तु संस्कृत में छ: कारक होते हैं। ‘सम्बन्ध और सम्बोधन’ को कोरक नहीं माना जाता। प्रत्येक कारक को विभक्ति एवं चिह्न सहित आगे दिया जा रहा है–
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(8) पद- संस्कृत भाषा में हमेशा पदों का ही प्रयोग होता है। पद दो प्रकार के होते हैं-सुबन्त और तिङन्त। शब्दों में ‘सु’ इत्यादि प्रत्यय लगाये जाते हैं, इसलिए उससे निर्मित पद सुबन्त कहलाते हैं। धातुओं में ‘तिम्’ इत्यादि प्रत्यय लगाये जाते हैं, इसलिए उनसे निर्मित क्रियाएँ तिङन्त कहलाती हैं। अनुवाद करते समय सबसे पहले ‘कर्ता’ को ढूंढ़ना चाहिए। इसके बाद कर्ता के वचन और पुरुष पर ध्यान देना चाहिए। कर्ता का पुरुष और वचन जान लेने पर क्रिया के काल का निश्चय करना चाहिए। क्रिया का वही पुरुष और वचन होता है, जो उसके कर्ता का पुरुष और वचने होता है।

पाठ 1: संज्ञा तथा सर्वनाम (कर्ता) का तीनों पुरुषों एवं
 वचनों की क्रिया के साथ समन्वय

  1. संस्कृत में प्राय: सभी संज्ञा तथा सर्वनाम कर्ताओं के रूप सातों विभक्तियों के तीनों वचनों में चलते हैं।
  2. संज्ञा कर्ताओं के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। संज्ञा कर्ताओं के सम्बोधन में भी रूप बनते हैं।
  3. सर्वनाम कर्ताओं के रूप भी तीनों लिंगों में पृथक्-पृथक् चलते हैं, किन्तु इनके सम्बोधन के रूप नहीं बनते।।
  4. जिस पुरुष और वचन का कर्ता होता है, उसके साथ क्रिया भी उसी पुरुष और वचन की लगती है।
  5. क्रिया पर कर्ता के लिंग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। तीनों लिंगों के लिए सदैव एक समान क्रिया प्रयुक्त होती है।
  6. कर्तृवाच्य में कर्ता में सदैव प्रथमा विभक्ति होती है।
  7. मध्यम और उत्तम पुरुष में तीनों लिंगों के कर्ता एकसमान होते हैं।
  8. भवत् (आप) कर्ता होने पर क्रिया प्रथम पुरुष की प्रयोग की जाती है।
  9. त्वं, युवां, यूयं, अहं, आवां, वयं के अतिरिक्त सभी कर्ताओं के साथ प्रथम पुरुष की क्रिया प्रयोग की जाती है।

प्रथम पुरुष और प्रथमा विभक्ति के तीनों लिंगों के तीनों वचनों के संज्ञा एवं सर्वनाम कर्ताओं के रूप इस प्रकार होते हैं–
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विशेष-शेष विभक्तियों के रूप ‘शब्द रूप प्रकरण’ के अन्तर्गत देखे जा सकते हैं। निम्नलिखित तालिकाओं में तीनों लिंगों के संज्ञा तथा सर्वनाम कर्ताओं का तीनों पुरुषों और वचनों की क्रियाओं के साथ समन्वय दर्शाया जा रहा है–
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पाठ 2: अस धातु के रुप और उनका प्रयोग 

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पाठ 3: लङ् लकार (भूतकाल)

संस्कृत में भूतकाल के लिए चार लकारों का प्रयोग किया जाता है—लिट् लकार, लुङ् लकार, लङ् लकार, लुङ् लकार। वक्ता ने जिसका प्रत्यक्ष ने किया हो, वहाँ लिट् लकार; वक्ता ने जिसे प्रत्यक्ष देखा हो, वहाँ लङ् लकार तथा ‘ऐसा होता तो ऐसा होता’ शर्तयुक्त भूतकाल में लुङ् लकार प्रयुक्त होता है। शेष सभी प्रकार के भूतकालिक वाक्यों के लिए लुङ् लकार का प्रयोग होता है। भूतकाल में लङ् लकार का प्रयोग अन्य लकारों की अपेक्षाकृत अधिक होता है।
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पाठ 4: तृट् लकार (भविष्यत्काल)

भविष्यत्काल की क्रिया का बोध कराने के लिए लुट् और लुट् दो लकारों का प्रयोग होता है, जिनमें लृट् लकार का ही प्रयोग सर्वाधिक होता है। 

लृट् लकार में रूप बनाने के लिए धातु में ‘इ’ लगाकर ‘ष्य’ जोड़ने के बाद ‘ति’, ‘त:’, ‘न्ति’ आदि प्रत्यय जोड़ देते हैं। जिन धातुओं में ‘इ’ नहीं लगता, उनमें स्यति, स्यतः, स्यन्ति जोड़ा जाता है।
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पाठ 5: लोट् लकार (आज्ञार्थ)

आज्ञा, प्रार्थना, इच्छा तथा आशीर्वाद के अर्थ में लोट् लकार का प्रयोग होता है। आज्ञा और प्रार्थना अर्थसूचक वाक्यों में कर्ता प्रायः छिपा रहता है, ऐसी स्थिति में क्रिया मध्यम पुरुष एकवचन की प्रयुक्त होती है।
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पाठ 6 : विधिलिङ् लकार (विध्यर्थ)

इच्छा, सम्भावना, अनुमति तथा चाहिए के भाव को प्रकट करने के लिए विधिलिङ् लकार का । प्रयोग किया जाता है।

ध्यातव्य-हिन्दी में ‘चाहिए’ से युक्त वाक्यों में कर्ता में ‘को’ चिह्न लगा रहता है (जैसे—राम को पढ़ना चाहिए), यहाँ पर ‘को’ को कर्म कारक का चिह्न समझकर द्वितीया विभक्ति में अनुवाद नहीं करना चाहिए।
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पाठ 7: कर्मकारक (द्वितीया विभक्ति)

जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़ता है, उसको कर्मकारक कहते हैं। कर्म में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। क्रिया से सम्बन्ध रखने वाले जिस पदार्थ को, कर्ता अपने व्यापार से प्राप्त करने की सबसे अधिक इच्छा रखता है, उसे कर्म कहते हैं। कर्मकारक का चिह्न ‘को’ है। कभी-कभी यह चिह्न छिपा भी रहता है। क्रिया से पहले ‘किसको’ या ‘क्या’ लगाने पर उत्तर में जो कुछ आता है, वह कर्म है। उदाहरण–
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द्विकर्मक धातुएँ (द्वितीया विभक्ति)

निम्नलिखित सोलह धातुएँ और उनके समान अर्थ वाली धातुएँ द्विकर्मक (इनके साथ दो कर्म होते हैं) होती हैं दुह् (दुहना), याच् (माँगना), पच् (पकाना), दण्ड् (दण्ड देना), रुध् (रोकना, घेरना), प्रच्छ (पूछना), चि (चुनना, इकट्ठा करना), बू (बोलना, कहना), शास् (शासन करना), जि (जीतना), मथ् (मथना), मुष (चुराना), नी (ले जाना), हृ (हरण करना), कृष् (खींचना, जोतना), वह (वहन करना, ढोना)। इन सभी द्विकर्मक धातुओं के योग में अपादान आदि कारकों में भी द्वितीया विभक्ति होती है। उदाहरण–
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द्वितीया विभक्ति- उपपद विभक्ति कारकों से ही सदैव विभक्तियों का निर्देश नहीं होता है। कुछ अव्ययों के योग में भी विशेष नियमों के अनुसार विशेष विभक्ति होती है। ऐसी स्थिति में उसे उपपद विभक्ति कहते हैं। उपपद विभक्ति से कारक विभक्ति बलवान् होती है। उपपद विभक्ति के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं–
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पाठ 8 : करण कारक (तृतीया विभक्ति)

कर्ता अपने कार्य को पूरा करने में जिसकी सहायता लेता है, उस साधन में तृतीया विभक्ति होती है। तृतीया विभक्ति का चिह्न ‘से’ या ‘के द्वारा है। उदाहरण–
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तृतीया विभक्ति–उपपद विभक्ति

नियम-

  1. ‘साथ’ का अर्थ रखने वाले सह, साकम्, सार्द्धम्, समम् शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
  2. जिस शब्द से शरीर के किसी अंग का विकार सूचित होता है, उस अंगवाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है।
  3. समानार्थक तुल्यः, समः, समानः शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
  4. किसी वस्तु के मूल्य में तृतीया विभक्ति होती है।
  5. निषेधार्थक ‘अलम्’ के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
  6. किम्, कार्यम्, कोऽर्थः, प्रयोजनम् के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
  7. हेतु (कारण) में तृतीया विभक्ति होती है।
  8. जिसकी सौगन्ध ली जाती है उसमें तृतीया विभक्ति होती है।
  9. प्रकृति और स्वभाव आदि या किसी के कार्य करने की विधि में तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है। उदाहरण–

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पाठ 9: सम्प्रदान कारक (चतुर्थी विभक्ति)

जिसको कोई वस्तु दी जाती है या जिसके लिए कोई कार्य किया जाता है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है। सम्प्रदान का चिह्न ‘को’ या के लिए है। उदाहरण–
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चतुर्थी विभक्ति-उपपद विभक्ति नियम

  1. ‘रुच्’ धातु या उसके समान अर्थ वाली धातु के योग में प्रसन्न होने वाले में चतुर्थी विभक्ति होती है।
  2. ‘स्पृह’ धातु के योग में ईप्सित पदार्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है।
  3. क्रुध्, द्रुह, असूय् धातुओं के योग में, जिसके प्रति क्रोध आदि किया जाता है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होता है।
  4. नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा तथा अलम् के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। उदाहरण–

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पाठ 10: अपादान कारक (पञ्चमी विभक्ति)

जिससे कोई वस्तु अलग होती है, उसे अपादान कारक कहते हैं। अपादान कारक में पञ्चमी विभक्ति होती है। अपादान का चिह्न ‘से’ (from, अलग होने के अर्थ में) है। उदाहरण–
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पञ्चमी विभक्ति–उपपद विभक्ति नियम-

  1. जिससे भय लगता हो अथवा जिससे रक्षा की जाती हो, उसमें पञ्चमी विभक्ति होती
  2. जहाँ से किसी को हटाया जाता है, उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है।
  3. जिससे विधिपूर्वक विद्या पड़ी जाती है, उसे अध्यापक में पञ्चमी विभक्ति होती है।
  4. ‘जन्’ धातु के कर्ता के कारण में पञ्चमी विभक्ति होती है।
  5. ‘भू’ धातु के उद्गम स्थान में पञ्चमी विभक्ति होती है।
  6. जिस स्थान से दूसरे स्थान की दूरी दिखाई जाती है, उस स्थान में पञ्चमी विभक्ति होती है।
  7. प्रभृति, आरभ्य, बहिः, अनन्तरम्, परम के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है।
  8. जब दो वस्तुओं में तुलना की जाती है, तब जिससे तुलना की जाती है, उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है। उदाहरण–

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पाठ 11: सम्बन्ध (षष्ठी विभक्ति)

जब दो या अधिक शब्दों में सम्बन्ध दिखाया जाता है, तो उसे सम्बन्ध कहते हैं। सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति होती है। षष्ठी विभक्ति के चिह्न ‘का, के, की, रा, रे, रो, ना, ने, नी’ हैं। नियम-

  1. ‘क्त’ प्रत्ययान्त शब्दों के वर्तमानकालवाची होने पर षष्ठी विभक्ति होती है। यह बात ध्यान रखने योग्य है कि ‘क्त’ भूतकालिक प्रत्यय है।
  2. हेतु’ शब्द के प्रयुक्त होने पर ‘हेतु’ शब्द में तथा उसके ‘कारण’ अथवा ‘प्रयोजन’ में षष्ठी विभक्ति होती है।
  3. जिसका अनादर किया जाता है, उसमें षष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है।
  4. समान या बराबर का अर्थ रखने वाले ‘समः’, ‘तुल्यः’, ‘सदृशः’ इत्यादि शब्दों के योग में जिससे तुलना की जाती है, उसमें षष्ठी या तृतीया विभक्ति होती है।
  5. ‘कृते’, ‘मध्ये’, ‘समक्ष’ आदि शब्दों के योग में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।
  6. जब समूह में से किसी एक की विशेषता बताने के लिए उसे समूह से अलग किया जाता है उसमें षष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है। उदाहरण–

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पाठ 12: अधिकरण कारक (सप्तमी विभक्ति)

जिस स्थान पर कोई कार्य होता है, उसमें अधिकरण कारक होता है। अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है। इसके हि ‘में, पर, ऊपर हैं। उदाहरण–
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सप्तमी विभक्ति-उपपद विभक्ति नियम

  1. जिस पर स्नेह किया जाता है, जिसमें भक्ति या विश्वास किया जाता है, उसमें सप्तमी विभक्ति होती है।
  2. जब किसी एक कार्य के हो जाने पर दूसरे कार्य का होना प्रतीत हो, तब पहले हो चुके कार्य में तथा उसके कर्ता में सप्तमी विभक्ति होती है।
  3. जिस समय कोई काम होता है तो समयवाचक शब्द को सप्तमी विभक्ति में रखा जाता है।
  4. जब किसी वस्तु की अपने समूह में विशेषता प्रकट की जाती है तो समूहवाचक शब्द में सप्तमी या षष्ठी विभक्ति होती है।
  5. कुशल, निपुण, पटु, साधु, असाधु, चतुर तथा संलग्न अर्थ वाले ‘युक्तः, लग्नः, तत्परः’ इत्यादि शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति होती है।
  6. जिसे कोई वस्तु समर्पित की जाती है, उसे सप्तमी विभक्ति में रखा जाता है। उदाहरण–

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पाठ 13 : सम्बोधन का प्रयोग नियम

  1. जिसको पुकारा जाता है, उसमें सम्बोधन होता है। सम्बोधन में प्राय: प्रथमा विभक्ति के रूपों से पूर्व सम्बोधन के चिह्न लग जाते हैं।
  2. सम्बोधन के चिह्न ‘हे ! भो ! अरे !’ इत्यादि हैं। कभी-कभी ये चिह्न छिपे भी रहते हैं।
  3. यद्यपि सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति के रूप प्रयुक्त होते हैं, किन्तु कुछ शब्दों के एकवचन में परिवर्तन हो जाता है; यथा-आकान्त स्त्रीलिंग शब्दों में अन्तिम ‘आ’ का ‘ए’ हो जाता है। यथा-‘रमा’ प्रथमा विभक्ति का एकवचन है, किन्तु सम्बोधन में रमे प्रयुक्त होता है।
  4. सम्बोधन के वाक्य प्रायः लोट् लकार में होते हैं। उदाहरण–

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पाठ 14: सर्वनामों का प्रयोग

नियम- सर्वनामों का प्रयोग संज्ञाओं के स्थान पर होता है। इनका प्रयोग विशेषणों की भाँति भी होता है। जहाँ ये विशेषण के रूप में आते हैं, वहाँ इनके विभक्ति, वचन और लिंग विशेष्य के अनुसार होते हैं। युष्मद्, अस्मद्, तद्, एतद्, यद्, किम्, इदम्, अदस्, सर्व आदि शब्द सर्वनाम हैं। उदाहरण–
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पाठ 15: विशेषणों का प्रयोग नियम

  1. विशेषणों के विभक्ति, वचन और लिंग अपने विशेष्य के अनुसार होते हैं।
  2. ‘मुझ जैसा’ और ‘तुझ जैसा’ आदि की संस्कृत बनाने के लिए इनके वाचक सर्वनाम शब्दों में ‘दृश’ जोड़ दिया जाता है। इनके लिंग, विभक्ति, वचन भी अपने विशेष्य के अनुसार प्रयुक्त किये जाते हैं। उदाहरण–

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

अनुवाद संस्कृत व्याकरण से
अभ्यास 1

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों से वाक्य-रचना कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित धातुओं के प्रथम पुरुष में रूप बताइए
उत्तर:
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अभ्यास 2

प्रश्न 1.
निम्नलिखित धातुरूपों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित संस्कृत वाक्यों एवं उनके उत्तरों को ध्यान से पढ़िए
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों के संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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अभ्यास 3

प्रश्न 1.
निम्नलिखित धातुओं का इयम्, इमे, इंमाः के साथ प्रयोग कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 4.
निम्नलिखित वर्गों से उपयुक्त शब्द चुनकर वाक्य बनाइए
उत्तर:
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के स्त्रीलिंग में रूप बताइए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

प्रश्न 6.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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अभ्यास 4

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त-स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

प्रश्न 4:
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 
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अभ्यास 5

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों को पूर्ण कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित तालिका से उपयुक्त शब्द चुनकर वाक्य बनाइए– शिशवः, कृषकाः, यूयम्, सः, खगः; पास्यन्ति, गमिष्यन्ति, धाविष्यथ, क्रीडिष्यति, कूजिष्यति।
उत्तर:
शिशवः पास्यन्ति।
कृषका: गमिष्यन्ति।
यूयं धाविष्यथ।
सः क्रीडिष्यति।
खगः कूजिष्यति

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए
उत्तर:
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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अभ्यास 6

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित से चतुर्थी विभक्ति के रूप छाँटिए— मृगेभ्यः, मृगाय, विप्राय, विप्रैः, मित्रे, भवते, हरये, भूपतये, गुरवे, शिशुभ्यः।
उत्तर:
मृगेभ्यः, मृगाय, विप्राय, भवते, हरये, भूपतये, गुरवे, शिशुभ्यः।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 4.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 58

अभ्यास 7

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

प्रश्न 3.
कृ धातु के विधिलिङ् लकार के रूप कण्ठस्थ कीजिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

प्रश्न 4.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 63

अभ्यास 8

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों में सप्तमी विभक्ति के शब्द छाँटिए
(अ) मीनाः जले निमज्जन्ति।
(आ) प्रकोष्ठे बालकाः पठन्ति।
(इ) वृक्षेषु खगाः कूजन्ति।
(ई) सः मातरि स्निह्यति।
(उ) ग्रीष्मे आतपः तीव्रः भवति।
उत्तर:
(अ) जले,
(आ) प्रकोष्ठे,
(इ) वृक्षेषु,
(ई) मातरि,
(३) ग्रीष्मे।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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अभ्यास 9

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के तीनों लिंगों में रूप लिखिए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
कोष्ठक में दिये हुए शब्दों से रिक्त-स्थानों की पूर्ति कीजिए
उतर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उतर:
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प्रश्न 4.
अपनी पुस्तक से दस विशेषण लिखिए।
उत्तर:
नील, शोभन, रम्य, अभिराम, मलिन, कुलीन, प्रचुर, यादृश, तादृश, कीदृश।

प्रश्न 5.
पुस्तकालय पर पाँच वाक्य संस्कृत में लिखिए।
उत्तर:

  1. पुस्तकानाम् आलयः पुस्तकालयः कथ्यते।
  2. निजीपुस्तकालयः सार्वजनिकपुस्तकालयः च इमौ द्वौ भेदौ स्तः।
  3. पुस्तकालये एकः पुस्तकालयाध्यक्षः भवति।
  4. अत्रे विविधानि पुस्तकानि सन्ति।
  5. जनाः अत्र पठनाय आगच्छन्ति

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

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UP Board Class 12 History Model Papers Paper 4

UP Board Class 12 History Model Papers Paper 4 are part of UP Board Class 12 History Model Papers. Here we have given UP Board Class 12 History Model Papers Paper 4.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject History
Model Paper Paper 4
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 History Model Papers Paper 4

समय: 3 घण्टे 15 मिनट
पूणक: 100
निर्देश
प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
नोट

  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
  • इस प्रश्न-पत्र में पाँच खण्ड हैं।
  • खण्ड ‘क’ में 10 बहुविकल्पीय प्रश्न हैं, खण्ड ‘ख’ में 05 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 50 शब्द) हैं।
  • खण्ड ‘ग’ में 06 लघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 100 शब्द) हैं।
  • खण्ड ‘घ’ में 03 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (लगभग 500 शब्द) हैं।
  • खण्ड ‘ङ’ में ऐतिहासिक तिथियों व मानचित्र से सम्बन्धित 05 प्रश्न हैं। शब्द सीमा में (कम या ज्यादा) 10% की छूट अनुमन्य है।
  • सभी प्रश्नों के निर्धारित अंक उनके सम्मुख अंकित हैं।

खण्ड-‘क’

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
बाबर ने भारत पर पहली बार किस पर आक्रमण किया था? [1]
(a) बाजौर
(b) पानीपत
(c) चौसा
(d) खानवाँ

प्रश्न 2.
हुमायूँनामा की रचना किसने की थी? [1]
(a) हुमायूँ
(b) गुलबदन बेगम
(c) माहम अवगा.
(d) तौहीर

प्रश्न 3.
तुजुक-ए-जहाँगीरी पुस्तक की रचना किसने की थी? [1]
(a) हुमायूँ
(b) नूरजहाँ
(c) मिर्जा दुर्रानी
(d) जहाँगीर

प्रश्न 4.
निम्न में से किसे शाहजहाँ ने शाह बुलन्द इकबाल की उपाधि दी थी?  [1]
(a) मुराद को
(b) शुजा को
(c) औरंगजेब को
(d) दारा को

प्रश्न 5.
प्लासी को युद्ध किसके बीच हुआ था? [1]
(a) सिराजुद्दौला और अंग्रेज
(b) सिराजुद्दौला और फ्रांसीसी
(c) मीर जाफर और अंग्रेज
(d) मीर कासिम और औरंगजेब

प्रश्न 6.
1857 ई. की क्रान्ति की वास्तविक शुरुआत कहाँ से हुई थी? [1]
(a) मेरठ
(b) लखनऊ
(c) इलाहाबाद
(d) कानपुर

प्रश्न 7.
लखनऊ समझौता कब हुआ था?  [1]
(a) 1914 ई.
(b) 1915 ई.
(c) 1916 ई.
(d) 1919 ई.

प्रश्न 8.
स्थायी बन्दोबस्त को व्यवस्थित रूप किसने प्रदान किया था? [1]
(a) वारेन हेस्टिंग्स
(b) लॉर्ड कॉर्नवालिस
(c) लॉर्ड वेलेजली
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 9.
भारत छोड़ो आन्दोलन कब शुरू हुआ था? [1]
(a) 1939 ई.
(b) 1940 ई.
(c) 1941 ई.
(d) 1942 ई.

प्रश्न 10.
बेसिक शिक्षा किसकी देन है? [1]
(a) महात्मा गाँधी
(b) जवाहर लाल नेहरू
(c) महात्मा गाँधी
(d) अटल बिहारी वाजपेयी

खण्ड-‘ख

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 11.
शेरशाह के दो सैनिक सुधार बताइए।  [2]

प्रश्न 12.
अकबर की राजपूत नीति की दो विशेषताएँ लिखिए। [2]

प्रश्न 13.
1813 के चार्टर एक्ट के प्रमुख प्रावधानों का वर्णन कीजिए। [2]

प्रश्न 14.
1857 ई. की क्रान्ति के असफलता के कारण क्या थे?   [2]

प्रश्न 15.
लाल, बाल, पाल कौन थे? इनकी भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में क्या भूमिका थी?  [2]

खण्ड-‘ग’

लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 16.
शेरशाह की धार्मिक सहिष्णुता की नीति का वर्णन कीजिए।  [5]

प्रश्न 17.
अकबर के काल की दो इमारतों का उल्लेख कीजिए।  [5]

प्रश्न 18.
औरंगजेब की धार्मिक नीति पर प्रकाश डालिए।  [5]

प्रश्न 19.
पानीपत के तृतीय युद्ध के परिणाम को बताइए।  [5]

प्रश्न 20.
सहायक सन्धि से आप क्या समझते हैं? इसका क्या महत्त्व है?  [5]

प्रश्न 21.
आजाद हिन्द फौज के विषय में आप क्या जानते हैं?  [5]

खण्ड-‘घ’ 

दीर्घ उत्तरीय (विस्तृत उत्तरीय) प्रश्न
प्रश्न 22.
पानीपत और खानवा के युद्धों के कारणों और परिणामों की विवेचना कीजिए।  [10]
अथवा
अकबर की दक्षिण नीति का वर्णन कीजिए। क्या वह सफल थी?  [10]

प्रश्न 23.
शाहजहाँ की मध्य एशियाई नीति की विवेचना कीजिए।   [10]
अथवा
मराठा शक्ति के उत्कर्ष के कारण बताइए।  [10]

प्रश्न 24.
बक्सर युद्ध के कारण तथा परिणामों का उल्लेख कीजिए। [10]
अथवा
“रिपन भारत के गवर्नर जनरलों में सबसे महान् और प्रिय था।” स्पष्ट कीजिए। [10]

खण्ड-‘ङ’

प्रश्न 25.
निम्नलिखित तिथियों के ऐतिहासिक महत्त्व का उल्लेख कीजिए। [10]
1. 1530 ई.
2. 1605 ई.
3. 1665 ई.
4. 1707 ई.
5. 1799 ई.
6. 1813 ई.
7. 1828 ई.
8. 1872 ई.
9. 1905 ई.
10. 1856 ई.

प्रश्न 26.
मानचित्र सम्बन्धी प्रश्न
दिए गए भारत के मानचित्र में चार स्थान (०) दर्शाए गए हैं, इनकी पहचान कर इनके नाम लिखिए। सही नाम तथा सही थान दर्शाने के लिए 1+1 अंक निर्धारित है।
(i) वह स्थान जहाँ बाबर की मृत्यु हुई।   [2]
(ii) वह स्थान जहाँ 1857 ई. का प्रथम स्वाधीनता संग्राम आरम्भ हुआ।   [2]
(iii) वह स्थान जहाँ विक्टोरिया मैमोरियल स्थित हैं।   [2]
(iv) वह स्थान जहाँ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 1907 ई. में विभाजन हुआ था।   [2]
(v) वह स्थान जहाँ जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ।   [2]


Answers

उत्तर 1.
(a) बाजौर

उत्तर 2.
(b) गुलबदन बेगम

उत्तर 3.
(d) जहाँगीर

उत्तर 4.
(d) दारा को

उत्तर 5.
(a) सिराजुद्दौला और अंग्रेज

उत्तर 6.
(a) मेरठ

उत्तर 7.
(c) 1916 ई.

उत्तर 8.
(b) लॉर्ड कॉर्नवालिस

उत्तर 9.
(d) 1942 ई.

उत्तर 10.
(a) महात्मा गाँधी

उत्तर 11.
शेरशाह के दो सैनिक सुधार निम्नलिखित हैं।

(i) घोड़ो को दागने एवं सैनिकों का हुलिया लिखना
(ii) स्थायी सेना को नकद वेतन की प्रथा

उत्तर 12.
अकबर ने एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया था। अकबर की राजपूत नीति इस विशाल साम्राज्य का मुख्य तत्त्व थी। इस नीति की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

(i) उच्च पदों पर राजपूतों की नियुक्ति राजपूतों को मुगल सेना तथा प्रशासन में उच्च पद प्रदान किए गए। राजपूतों को मुगल सैन्य अभियानों का नेतृत्व करने तथा सूबों का सूबेदार बनने का अवसर प्राप्त हुआ।
(ii) हिन्दु परम्पराओं का आदर करना अकबर ने अनेक हिन्दू रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं का आदर किया तथा उन्हें अपनाया। उसने हिन्दुओं पर से तीर्थ यात्रा कर वे स्वयं जजिया कर हटा लिए, इससे राजपूतों एवं मुगलों के सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए।

उत्तर 13.
1813 के चार्टर एक्ट के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं।

  •  कम्पनी को भारतीय प्रदेशों पर प्रशासनिक व राजस्व प्रबन्ध आगामी 20 वर्षों के लिए सौंप दिया गया। साथ ही भारतीय प्रदेशों पर ब्रिटिश प्रभुसत्ता पर बल दिया गया।
  •  ब्रिटिश प्रजा को भारत में व्यापार की अनुमति दे दी गई, किन्तु चाय एवं चीनी के साथ व्यापार का कम्पनी पर एकाधिकार बरकरार रखा गया।
  • ईसाई, पादरियों को भारत में धर्मप्रचार की छूट दी गई। कम्पनी के द्वारा भारत में शिक्षा के विकास पर १ 1 लाख व्यय करने की व्यवस्था की गई।
  • गवर्नर जनरल, गवर्नर तथा प्रान्तीय गवर्नरों को नियुक्त करने हेतु ब्रिटिश सम्राट की मंजूरी अनिवार्य कर दी गई।

उत्तर 14.
1857 ई. की क्रान्ति की असफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं ।

  •  विद्रोह असंगठित था तथा भारत के अनेक क्षेत्र इससे अछूते रहे।
  •  विद्रोहियों के सैन्य संसाधन अंग्रेजों की तुलना में काफी कम थे।
  •  अंग्रेजों के पास विद्रोह तत्कालीन समय के उन्नत संचार साधन उपलब्ध थे।
  •  1857 ई. के के विद्रोह में नेतृत्व का अभाव था।
  •  विद्रोहियों के पास संगठन एवं योजना की कमी थी।
  •  विद्रोहियों के समक्ष उद्देश्य की अस्पष्टता थी।
  •  ब्रिटिश सेना में योग्य अधिकारी थे, जिन्होंने निर्दयता से विद्रोह का दमन किया।

उत्तर 15.
लाल, बाल, पाल वस्तुतः लाला लाजपतराय, बाल गंगाधर तिलक और विपिचन्द्र पाल को कहा जाता था। ये प्रारम्भिक कांग्रेस के गरमपन्थी नेता थे। ये कांग्रेस के नरमपन्थी नेताओं की राजनीतिक भिक्षावृत्ति की नीति के विरोधी थे। ये मानते थे कि माँग-पत्र, याचना, ज्ञापन से अपने अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते, अपतु इसके लिए सीधे संघर्ष करना आवश्यक है। इनका प्रमुख योगदान था—देश में राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा तथा राष्ट्रीय भावनाओं को अभिव्यक्ति देना।

उत्तर 25.
महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तिथियाँ एवं उनका घटनाक्रम

1. 1530  ई. बाबर की मृत्यु
2. 1605 ई. अकबर की मृत्यु एवं जहाँगीर का राज्यरोहण
3. 1665 ई. पुरन्दर की सन्धि शिवाजी व जयसिंह के मध्य
4. 1707 ई. औरंगजेब की मृत्यु एवं बहादुर शाह प्रथम राज्यरोहण
5. 1799 ई. टीपू सुल्तान की मृत्यु
6. 1813 ई. चार्टर एक्ट आया
7. 1828 ई. ब्रह्म समाज की स्थापना
8. 1872 ई. पहली बार जनगणना
9. 1905 ई. बंगाल विभाजन
10. 1856 ई. विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लागू

उत्तर 26.
UP Board Class 12 History Model Papers Paper 4 image 1

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